बाबा बच ले इसी में भलाई हैं, क्योकि अपने ऊपर अभी साढ़े साती शनि की दशा आई हैं

हास्य परिहास

बाबा बच ले इसी में भलाई हैं, क्योकि अपने ऊपर अभी साढ़े साती शनि की दशा आई हैं

 

रामकिशोर पंवार ”रोंढावाला ”

रामदेव उर्फ रामकिशन यादव को अपनी कुण्डली बेजान दारूवाला को जरूर दिखानी चाहिए। जिस प्रकार से योग गुरू बाबा रामदेव विवादो में फंसते जा रहे हैं उससे तो ऐसा लग रहा हैं कि बाबा और मैं शनि की साढ़ेसाती से परेशान हैं। इसे संयोग मत कहिए लेकिन बात सोलह आने सच हैं कि रामकिशोर और रामकिशन में मात्रा समान ही हैं। दोनो ही तुला राशी के हैं पंवार और यादव में भी लगभग समानता हैं। बाबा की योग पर और मेरी संयोग पर पकड़ हैं। बाबा लोगो को योग परोस रहे हैं और मैं अपनी लेखनी का सुयोग ….. ऐसे में एक कटु सत्य यह हैं कि इस देश और विदेश में योग गुरू बाबा को रामदेव कह कर पुकारा जाता हैं लेकिन मुझे तो अपने घर के लोग रामूदेव कह कर नही पुकारते हैं। यह बात अलग हैं कि मेरी ससुराल में मेरी सास कभी – कभार मुझे रामूदेव कह देती हैं। उनके जमाने में दामाद को भगवान तुल्य माना जाता था। आपको याद होगा कि जब शिव अपनी ससुराल पहुंचे तो उनकी सास मैना देवी ने उनकी भगवान तुल्य आरती उतारी थी वह इसलिए कि ससुराल में दामाद देव तुल्य होता हैं। बाबा रामदेव तो अपनी सास को सामने लाए बिना ही केवल स्वास को छोडऩे और लेने के चलते देव बन गए। बाबा के बारे में इन दिनो क्या कुछ नहीं छप रहा हैं। लगता हैं कि बाबा का और विवाद का चोली दामन का साथ बन गया हैं। बाबा कुछ नसीहत देते ही विवादो एवं ब्यानो में ऐसे फंस जाते कि कोई तुफान आने का अंदेशा हो जाता हैं। बाबा रामदेव अन्ना हजारे के लिए उनके अनशन में तो पहुंच गए पर दोनो अन्ना और रमन्ना इस बात को अच्छी तरह से समझ नहीं पा रहे हैं कि कोई भी व्यक्ति खासकर वह भ्रष्ट्राचारी हो या दुराचारी या फिर अत्याचारी उनकी फूटी आंखो में दोनो लोग किरकिरी बने हुए हैं। वैसे भी कोई इसे मजाक समझे या हकीगत लेकिन बाबा भी इस बात को मुस्करा कर स्वीकार कर चुके हैं कि जबसे उन्होने मल्लिका शेरावत को योग क्या सिखाया ससुरी आंखे बार – बार झपक जाती हैं। बाबा रामदेव को साइकिल छाप बता कर बाबा के कुछ आलोचको ने उन्हे पहले समाजवादी पार्टी का प्रचारक और अब हेलिकाप्टर में घुमने वाला बता कर बनियों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा का प्रचारक बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं। बाबा को तो अखाड़ा परिषद के दांवो का जवाब तो आखड़ा के मैदान में ही आकर देना होगा कि आखिर उनके गुरू गायब कैसे हो गए। मात्र दस साल में बाबा के पास ऐसा कौन सा अलाऊदीन का चिराग हाथ लग गया कि चारो ओर बस बाबा की ही माया फैलने लगी। ऐसे में तो काशीराम का नाम जपने वाली मायावति का बाबा के खिलाफ कुछ भी बोलना बुरा नहीं लगना चाहिए क्योकि जयललीता की , ममता की सोनिया की , सुषमा , की वसुध्ंारा की मोहमाया का पूरा संसार मायावति के ऐरावत हाथी के सामाने बौन हैं। रामदेव बाबा को लेकर हिन्दु संगठन के लोग ही बाबा पर सबसे अधिक कीचड़ फेकने लगे तो फिर कांग्रेस को हाथ पर हाथ धरे बैठना शोभा देता हैं क्योकि उसका नारा भी हैं सबका साथ , कांग्रेस का साथ हमारे साथ जगन्नाथ हाालकि बिहारी नेता जगन्नाथ मिश्र का कांग्रेस का साथ कुछ ज्यादा दिनो तक रहा नहीं। इस समय पूरे देश में चुनावी महासग्रंाम और अन्ना का अनशन सुर्खियों में रहा। राष्टवादी कांग्रेस पार्टी के नेता का ब्यान मैं टीवी पर सुन रहा था उनका कहना था कि अन्ना यदि इतने लोकप्रिय हैं तो नगरपालिका का चुनाव लड़ कर बताए…? अन्ना स्वंय भी स्वीकार कर चुके हैं कि वे यदि चुनाव लड़े तो उनकी जमानत जप्त हो जाएगी। अन्ना को दुसरा महात्मा गांधी कहने से मुझे भी दुख हुआ क्योकि देश में दुसरे महात्मा गांधी का सम्मान सिर्फ एक ही व्यक्ति को मिला था। गफ्फार खान को ही दुसरा गांधी सीमांत गांधी का सम्मान मिला था। सीमांत गांधी ने आजादी की लड़ाई लड़ी हैं वे कई बार जेल तक गए लेकिन अन्ना हजारे जेल जाना तो दूर उन्होने ऐसा मौका किसी को दिया ही नहीं और जेल जाने के पहले ही अपने आन्दोलन से चलता बने। मैं कटट्र कांग्रेसी हूं इसलिए बाबा और अन्ना के बारे में ऐसा लिख रहा हूं ऐसा नहीं हैं। मैं पहले इस देश का नागरिक हूं इसलिए कम से कम से राष्ट्रपिता के नाम का उपयोग हर किसी को करने नहीं दुंगा। मुन्ना भाई एमबीबीएस में संजय दत्त ने गांधी गिरी का तरीका क्या अपनाया कोई आदमी अपनी तुलना गांधी से करवाने में मजा लेने लगा। सवाल यह उठता हैं कि अन्ना और अपने रमन्ना उर्फ रामदेव बाबा का काला इतिहास आखिर ऐसा क्या हैं कि उनकी जब भी चर्चा होती दोनो की भौंहे तन जाती हैं। बाबा रामदेव के योगा आसन को यदि उसकी सफलता का माध्यम माना जाए तो एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि योग और संभोग दोनो ही ऐसे विवादास्पद विषय रहे हैं जिस पर जिसने भी खुल कर प्रवचन दिया है या तो रामदेव बन गया या फिर ओशो…. आचार्य रजनीश को मैं मानता हूं क्योकि उन्होने भारत के मान सम्मान के लिए गोरे विदेशियो के कपड़े उतरवा कर उन्हे अपने पीछे भूखा और नंगा अमेरिकी संसद तक मार्च करवा या। आचार्य रजनीश ने कहा कि समाधी में जाना हैं ईश्वर को पाना हैं तो पहले सब प्रकार का भोग कर लो क्योकि तृप्ति ही आंनद का प्रतिक हैं और संभोग से ही आनंद और परमानंद को प्राप्त किया जा सकता हैं। बाबा रामदेव कहते हैं कि योग निरोगी बनाता हैं लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि कुएं से भरी बाल्टी पानी खीचते समय थोड़ी सी लापरवाही भी किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकती हैं। बाबा रामदेव के पूरे देश एवं विदेशो में बडे – बडे आश्रम हैं आखिर बाबा ने क्या लोगो को संजीवनी बुटी दे दी हैं कि लोग उसका सेवन करने के बाद मरने वाले नहीं हैं। बाबा का किसी भी ब्राण्ड को अपना नाम या काम बता कर बेचना भी एक प्रकार का धंधा हैं। बाबा जाति के ग्वाला हैं वे इस बात को कैसे भूल जाते हैं कि कई बार दुध देने वाली गाय और भैसें लात मार कर कुद जाती हैं ऐसे में वह दुध दुहने वाली को तो मारती हैं साथ ही दुध की बाल्टी अगल पलटा देती हैं। बाबा को और अन्ना दोनो अलग- अलग राज्यों के निवासी हैं। दोनो की वेशभुषा से लेकर भाषा तक अलग हैं लेकिन एक तीसरी तक पढ़ा हैं दुसरा पता नहीं कहां तक …? एक सरकारी नौकरी में था दुसरा खुद नौकर था। ऐसे में दो चतूर कहे जाने वाले कौवें भूल कर भी कोई ऐसा काम न कर जाए कि पूरे देश को उन पर अफसोस हो जाए। रही बात भ्रष्ट्राचार की तो इस देश में जब भगवान को ही रिश्वत के रूप में नारीयल और प्रसाद चढ़ाने का खुले आम रिवाज चल पड़ा हैं जहां पर बिना कुछ दिये भगवान तक के दर्शन नहीं हो पाते हैं उस देश में भ्रष्ट्रचार को कैसे समाप्त किया जा सकता हैं। उपहार देना या बेटी बिहा देना भी तो एक प्रकार का भ्रष्ट्राचार ही हैं। इतिहास के काले पन्नों मे दर्ज राजा – महाराजाओं की संधि भी तो भ्रष्ट्राचार का एक प्रतिक हैं। कोई स्वेच्छा से देता हैं कोई दुसरी की इच्छा से देता हैं। यदि देश का नागरिक यह समझ ले कि वह किसी टीसी को बिना भेट दिए खड़ा रह कर अपनी यात्रा पूरी कर लेगा तो अपने देश में भ्रष्ट्रार स्वत: समाप्त हो जाएगा। टीसी पैसे नहीं मांगता हम स्वंय टीसी को पैसे देकर स्वंय के लिए सुविधा चाहते हैं। साहब एक कडवा सच कहता हूं कि आज कल बच्चे पैदा नहीं होते उसके पहले ही मां बाप उसे जन्म देने का ब्याज तक पाने की इच्छा रखते हैं। क्या इंसान ही बच्चों को जन्म देता हैं जीव – जन्तु नहीं….? आखिर इस देश में जीव जन्तु कभी भ्रष्ट्राचार के खिलाफ में क्यों नहीं उतरते हैं क्योकि उन्हे मालूम हो चुका हैं कि इंसान जानवर कहलाने के लायक भी नहीं रहा। ऐसे में रामदेव बाबा और अन्ना बाबा देश में लोकपाल या जगतपाल को ही क्यों न ले आए इस देश का भ्रष्ट्राचार समाप्त नहीं होने वाला क्योकि किसी शायर ने कहा हैं कि ”हर साख पर उल्लू बैठा हैं , अंजामे गुलिस्तां क्या होगा…..” मैं इन सबसे हट कर अपनी सोच रखता हूं कि आदमी आलसी हो गया हैं वह चमत्कार पर भरोसा करने लगा हैं। जो आदमी घर से बाहर नहीं निकल सकता वह व्यक्ति रामदेव या अन्ना हजारे से कोई न कोई चमत्कार की उम्मीद तो रखेगा ही। मुझ अच्छी तरह से याद हैं कि किसी लेखक ने अपने लेख में उदाहरण दिया था कि एक गधे ने दुसरे गधे से ” कहां भाई तू इतना खौफजदा क्यों हैं …..?” दुसरे गधे ने कहा कि ” आज से दिल्ली में गधो का सम्मेलन हैं कहीं लोग मुझे मंचासीन न कर दे। यदि ऐसा हो गया तो मेरा मालिक मुझे तो मार ही डालेगा क्योकि उसने मुझसे बार – बार कहा था कि मैं तो इस गधे से बदतर हो गया हूं आज भी पूरे घर के लोग मुझे गधा समझ कर पूरा बोझ डाल देते हैं।” यदि मालिक ने मुझसे सवाल कर दिया कि ”तुझे गधा बनने को किसने कहा था…?” तब मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा। आज का समय आदमी के गधा बनने का ही हैं। हर कोई अपने – अपने हुनर से लोगो को गधा बनाने में लगे हुए हैं। बाबा रामदेव को तो मैं सिर्फ सलाह दे सकता हूं कि भैया एक नाम राशी होने के कारण कम से कम साढ़े साती शनि की महादशा में मेरी तरह आप भी मां सूर्यपुत्री ताप्ती की शरण में आ जाओं , वरणा कहीं ऐसा न हो जाए कि शनि की दशा के चलते राजा भोज को गंगू तेली के घर पर नौकर बन कर काम करना पड़ा था। बाबा मेरी बाते माने या न माने उनकी मर्जी क्योकि उनके द्वारा भी सुबह दोपहर शाम को जो योगासन दिखाये एवं बताये जाते हैं मैं भी नहीं मानता क्योकि जमाना ही खराब आ गया हैं। डाक्टर बोलता हैं ”वेट कम करो ” , बीबी बोलती हैं ”पेट कम करो ” , देने वाला बोलता हैं ”रेट कम करो ”…..? आखिर किसकी सूने किसकी नहीं…? यदि वेट कम हो जाएगा तो अपनी बात का वजन नही रहेगा, यदि रेट कम हो जाएगा तो लोग चवन्नी छाप समझ कर चन्नी फेक कर देगा। इन सबसे हट कर यदि पेट कम हो जायेगा तो बीबी कम से कम पेट पर तो नहीं बैठ पायेगी क्योकि उसे मालूम हैं कि बेडोल पेट के कारण वह कई बार स्लीप खा चुकी हैं। अंत में एक बार फिर बाबा रामदेव से कहना चाहता हूं कि ”आंख क्या मारते हो तीर मार दो , बार – बार दुबला होने से अच्छा एक ही बार में मार दो….”

Posted in Uncategorized | Leave a comment

यू एफ टी न्यूज डाट काम

यू एफ टी न्यूज डाट काम
मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का पहला अतंराष्ट्रीय वेब न्यूज एवं व्यू चैनल यू एफ टी न्यूज डाट काम है। बैतूल जिले के वरिष्ष्ठ पत्रकार एवं लेखक रामकिशोर पंवार द्वारा संचालित एवं संपादित इस बेव पोर्टल पर रामकिशोर पंवार की पत्रकारिता एवं लेखन के 27 वर्षो का लेखा – जोखा है। उनके संपादन एवं निर्देशन में बैतूल जिले की ही नहीं प्रादेशिक – राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय खबरो के अलावा कई महत्वपूर्ण समाचारो के वीडियो फूटेज है। जिले की यह एक मात्र पहली बेव पोर्टल न्यूज एवं व्यू सर्विस रहेगी जो पाठको के आलवा देश – विदेश के समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ के साथ – साथ न्यूज एजेंसियों को भी न्यूज एण्ड व्यू भेजा करेगी। सूर्यपुत्री मां ताप्ती को समर्पित बैतूल जिले के इस पहले बेव पोर्टल रामकिशोर पंवार द्वारा संचालित एवं निर्देशित इस बेव चैनल पर रामकिशोर पंवार की रहस्यमय सत्यकथायें , कहानियां , लेख एवं अब तक के सर्वश्रेष्ठ समाचारो एवं आलेखो की सचित्र रिर्पोटो को भी स्थान दिया जा रहा है। इस बेव चैनल के द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर संवाददाताओं , कैमरामेनो , का नेटवर्क है। जनता एवं शासन के बीच मध्यस्थता करने में सहायक सिद्ध होने वाले बैतूल जिले के एक मात्र बेव पोर्टल पर देश – प्रदेश – जिले के समाचार पत्रो को भी सीधे जोड़ा है।  हिन्दी के अलावा अग्रेंजी में भी इस वेब पोर्टल पर खबरो का अच्छा खासा ढांचा तैयार किया है। आदिवासी कला संस्कृति एवं सूर्यपुत्री मां ताप्ती महिमा से ओतप्रोत इस बेव चैनल पर गांव – शहर – जिला – प्रदेश – देश – दुनिया दिन की भी खबरो के भी फूटेज एवं समाचार एक साथ देखने एवं पढऩे को मिल जायेगें ।

Posted in Uncategorized | Leave a comment

रहस्य – रोमांच कहानी :- रामकिशोर पंवार

रहस्य – रोमांच
रहस्य रोमांच से भरपूर एक दिल को दहला देने वाली कहानी
मुझसे शादी कीजिए…..
कहानी :- रामकिशोर पंवार
उस रोज शाम को घर से निकलते समय वह बार – बार अपनी घड़ी की ओर देख कर बैचेनी महसुस  कर रहा था . उसकी मनोदशा को देख कर ऐसा लग रहा था कि वह बरसो से किसी का इंतजार कर रहा हो . उसने जैसे ही सामने वाले रास्ते की ओर मुडऩा चाहा इस बीच एक काली स्याह नागिन उसके रास्ते में आ खड़ी हो गई . एक पल के लिए पहले तो थर – थर कांपने लगा लेकिन कुछ ही पल में वहाँ पर उस नागिन के स्थान पर एक सुदंर सलोनी नाग कन्या खड़ी थी जो कि बार – बार राजेश की मनोंदशा को देख कर मुस्करा रही थी . उस नाग कन्या ने राजेश से कहा कि ”जब तक मेरा दिया मणी तेरे पास रहेगा कोई भी नाग – नागिन  तेरे करीब से नहीं गुजर पाएयें ………………!  राजेश के पास मणी रहने के बाद भी उसकी कंपकपी कम होने का नाम नहीं ले रही थी जब वह नागिन अपने अपने मूल रूप से नाग कन्या में आई तब जाकर राजेश की जान – में जान आई .  यँू तो राजेश का नाग कन्याओं से पिछले छै माह से रोज मिलना – जुलना हो रहा है . हर रोज  कोई न कोई नाग कन्या उसे अपने पास उस काली घटी पर बुला ही लेती है जहाँ पर उन नाग कन्याओ का राजेश से मिलन होता है .  राजेश जब भी सोता है उसे सपने में नाग – नागिन ही दिखाई पड़ते है इस बात को कई बार अपने माँ – बाप से कह चुका है अनेक भगत – भुमका उसके सपने का इलाज नहीं कर सके है. राजेश अपने परिवार के किसी भ्ी सदस्य से नाग कन्याओं के मिलन के बीते छै माह की एक भी घटना को नहीं बता पाया है. एक बार उससे उसकी छोटी भाभी ने यह जरूर कहा था कि ”भैया आपके गले में पहना मणी बहँुत बढिय़ा है वह मुझे दे दो ……………….! लेकिन राजेश ने मना कर दिया तबसे छोटी भाभी ने मँुह फुला रखा है. इधर राजेश अपने यार दोस्तो को भी उनके पुछने पर उस मणी के बारे में कुछ नहीं बताता है . इस नाग मणी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह रात में काफी चमकता है किसी पैदल चलने वाले राहगीर को अंधेरे में रास्ते दिखाने के लिए नाग मणी काफी है . राजेश के पास का नाग मणी पूरे गांव के लिए कौतूहलका विषय बना हुआ था . हर कोई उस मणी के बारे में जानने को इच्छुक है . राजेश ने अपने मँुह पर ताला लगा रखा उसे मालूम है कि अगर उसने मणी के बारे में कुछ भी बताया तो मणी तो अपने आप फूट जाएगा लेकिन नाग- नागिन के आक्रमण से उसे कौंन बचाएगा . राजेश इस बात को कई बार महसुस कर चुका है कि जब उसके पास मणी नहीं रहता है तब उसके साथ क्या होता है…….? नाग कन्या ने मणी देते समय साफ कहा था कि इसे गले में ही बांधे रखो अगर यह नहीं रहेगा तो तुम्हारी सुंगध के चलते सारे – जहरीले – बिना जहरीले नाग- नागिन तुम्हारे आसपास आ जाएगें . मणी के रहने से ऐसा नहीं होगा यह मणी तुम्हारी रक्षा करने के साथ – साथ  तुम्हारे हर कृष्टï – दुख – दर्द – पीड़ा को दूर करेगा . पहले तो राजेश को उस नाग कन्या की बात पर भरोसा नही हुआ लेकिन जब – उसने स्वंय महसुस किया तो वह यकीन करने लगा .
राजेश के परिवार में पाँच भाई तीन बहने थी . उसके अलावा सभी भाई – बहनो की शादी हो गई थी . छोटी भाभी कुछ लालची किस्म की थी तभी तो उसने एक रात राजेश के गले से वह मणी निकालने के लिए ज्यों ही हाथ बढ़ाया वह चीख मार कर बेहोश हो गई .  उसकी चीख सुन कर पूरा परिवार इक्कठा हो चुका था . छोटी भाभी को होश में लाने के लिए सारे गांव के सारे – जादू – टोना वाले भगत – भुमका को बुला डाला लेकिन उसे होश नहीं आया . इधर सब लोग यह जानने को उतावले थे कि छोटी आखिर राजेश के कमरे मेें क्यो गई थी…….? राजेश का भी हाल – बेहाल था क्योकि सारे – घर के लोग उसे ही शक की न$जर से देख रहे थे कि कहीं उसने तो छोटी के साथ ऐसी – वैसी हरकत तो नहीं डाली जिसकी व$जह से छोटी बेहोश हो गई . कुछ देर गुमसुम रहने के बाद अचानक राजेश के मँुह से झंाग निकलने लगी तथा उसकी आँखो से अंगारे उगलने लगे पल भर में राजेश नाग – नागिन की तरह झुमने लगा. राजेश ने अपने परिवार के सदस्यो भीड़ – भाड़ के बीच  यह कह कर सनसनी पैदा कर दी कि ” जो भी राजेश के करीब आने की कोशिस करेगा उसे मैं जिंदा नही छोडुंगी ………….!  राजेश मेरा है और जन्म – जन्म तक रहेगा. राजेश की पूर्व जन्म में नाग था लेकिन अकाल मौत के कारण उसकी आयु पूरी नहीं हो सकी और वह मानव योनी मेें आया . हम पिछले छै महिने से इसी कमरे में पति – पत्नि की तरह रह रहे थे लेकिन इस औरत ने हमें पति – पत्नि की तरह लिपटे देख लिया उस समय मैं नागिन रूप मेें थी अपना रूप बदल रही थी इस बीच मुझे किसी का स्पर्श हुआ तो मैंने उसे डंस लिया इसे मेरा जहऱ चढ़ा है जो इततनी आसानी से नहीं उतरेगा.
राजेश के मँुह से नाग कन्या की आवाज सुन कर पूरा गांव स्तबध था. आसपास के गांव में ऐसा कोई भी जानकार नहीं था जो कि इस समस्या का निराकरण कर सके . राजेश के पूरे परिवार का रो – रोकर हाल का बेहाल था . इस बीच गांव से हाथी वाले बाबा – लोग भीक्षा मांगते निकल रहे थे जब उन्होने एक घर के सामने भीड़ – भाड़ देखी तो वे अपने आप को रोक नहीं सके और वे भी उस मकान की ओर चले गए. भीड़ – भाड़ को हटा कर हाथी वाले बाबा कमरे के अंदर गए तो उन्होनें देखा कि एक युवती बेहोश पड़ी है तथा दुसरा युवक की मनोदशा काफी विचित्र थी . हाथी वाले बाबा ने राजेश की माँ से कहा ” माई एक लोटा पानी दे मैं अभी सब ठीक करता हँू……………..!  राजेश की माँ ने एक लोटा पानी लाकर हाथी वाले बाबा को दिया लेकिन हाथी वाले बाबा राजेश पर पानी के छीटे – मारते इसके पहले ही उस कमरे से आठ – दस काली स्याह नागिन फँुकारते हुई बाहर निकली और वे हाथी वाले बाबा पर आक्रमण करने वाली ही थी कि इस बीच हाथी वाले बाबा ने अपने झोले से एक जड़ी निकाल कर ज्यों ही उन नागिनो पर फेकी वे सारी की सारी वहाँ से गायब हो गई . बाबा और कुछ करते इसके पहले वह नाग कन्या बाबा के सामने आ गई और उससे बोली ”आखिर तू क्या चाहता है……..? हाथी वाले बाबा ने नाग कन्या से कहा कि  ” पहले तो तू इस युवती का ज़हर चँूस ले उसके बाद इस युवक का साथ छोड़ दे ………….! ऐसा करने में ही तेरी भलाई है . लेकिन नाग कन्या नहीं मानी उसने हाथी वाले बाबा की लाख धमकी के बाद राजेश का साथ नहीं छोड़ा तो आखिर में इस बात पर समझौता हुआ कि उस युवती का $जहर चँुस ले अगर राजेश तेरा पिछले जन्म का प्रेमी या पति है तो हम तेरा कुछ नहीं करेगें लेकिन तुझे नाग कन्या से मानव योनी में आना होगा तथा अपने सारे – सारे नाते – वाते रिश्ते छोड़ कर पूरा जीवन काल मानव योनी में बीताना होगा. नाग कन्या इस प्रस्ताव पर सहमत तो हो गई लेकिन उसकी सखी – सहेली नाग कन्याओं को जब इस प्रस्ताव का पता तो उन्होने साफ मना कर दिया. जब नाग कन्याये मानव योनी में आने को तैयार नहीं हुई तो हाथी वाले बाबा ने अपनी झोली में से एक जड़ी निकाल उसे उस स्थान पर घीसना शुरू किया जहाँ पर सर्पदंश हुआ था . कुछ ही देर मेें स्ििाति के सामान्य होतें के बाबद जब हाथी वाले बाबा ने जाने का मन बनाया तो अचानक कहीं से सर्पो के झुण्ड के झुण्ड आक्रमण कर दिया . उस समय वहाँ मौजूद सारे  लोग पल भर में नौ – दो ग्यारह हो गए लेकिन हाथी वाले बाबा ज्यों – के त्यों दोनो प्रेमियो के आसपास बैठे रहे .
एक बार फिर राजेश उसी रूप में आ गया जिस रूप में अभी कुछ देर पहले था . एक बार फिर हाथी वाले बाबा ने उस सर्पो के झुण्ड ओर मंत्र  गुण्गुनाते हुए दाने  फेके तो पल भर में वे सर्प जो कि झुण्ड की शक्ल में आए थे पल भर में  अदृश्य हो गए . इस बार  बाबा ने उस नागिन से कहा कि तुझे राजेश चाहिए तो तुझे मनुष्य योनी में आना होगा बगैर उसके तुम्हारा राजेश से मिलन संभव नही है . काफी जददे जहद के बाद यह तय हुआ कि नाग कन्या अपने शरीर को त्याग कर मनुष्य योनी मे जन्म लेगी हाथी वाले बाबा ने उसे आर्शीवाद दिया कि वह अपने आने वाले जन्म मे राजेश को यदि उसके विवाह के पूर्व पा लेगी तो राजेश उसका हो जाएगा अन्यथा राजेश को उस जन्म मेेंं पाना संभव नहीं है . हाथी वाले बाबा के वचन में बद्व नाग कन्या ने आखिर अपनी सहेलियो नाग कन्याओं की लाख समझाईश को ठुकरा कर अपनी देह त्याग दी ……………..  इधर राजेश को इस बात की चिंता  सता रही है कि वह एक साथ दो के साथ कैसे जीवन यापन करेगा. हालाकि उस नाग कन्या को मनुष्य योनी में जन्म लेने के उपरांत एक विवाह योग्य युवती बनने में 18 से 20 साल लग जाएगा .
इति,

 

भागो – भागो शेर खा गया……..
कहानी – रामकिशोर पंवार
दिसंबर का महिना था. आज दिन भर से कड़ाके की ठंड  पड़ रही थी . इस बीच किसी ने कलेक्टर के बंगले पर आकर दस्तक दी. आने वाला किसी गांव का कोटवार जान पड़ता था. सुबह से लोगो को वैसे भी इस कड़ाके की ठंड ने आग के अलावे के सामने एकत्र कर रखा था . कलेक्टर का बंगला भी इस ठंड से अछुता नही था . सोमवार 21 दिसंबर 1931 की शाम कलेक्टर बंगले पर आने वाले उस व्यक्ति ने अपना परिचय धाराखोह ग्राम के कोटवार के रूप में देते हुए उसने अपने बुढ़े जिस्म को झुका वह वह बोला मुझे कलेक्टर साहब से मिलना है . धाराखोह गांव का वह बुढ़ा कोटवार आज कुछ ज्यादा ही परेशान दिखाई पड़ रहा था . गांव के आसपास एक तो घनघोर जंगल जिसमें से अकेले पैदल निकल पाना जान को जोखिम में डालने जैसा था फिर भी पिछले चार – पाँच दिनो से एक आदमखोर शेर के आतंक ने आसपास का पूरा माहौल कंप- कपा रखा था . इस समय शेर के आंतक से बुरी तरह थर्रा उठा धाराखोह का जंगल ता इस बार इस शेर के आंतक से कुछ ज्यादा ही हैरान एंव परेशान था. कई किसानो के जानवरो को खा चुका शेर कहीं नरभक्षी न बन जाए बस इसी बात की चिंता गांव कोटवार को धाराखोह से कलेक्टर के बंगले तक खींच लाई थी. वैसे भी उस जमाने में तो धाराखोह का जंगल और ऐसे में पैदल बदनूर तक आना हर किसी के बस की बात नही थी. अग्रेंजी हुकुमत के दौरान ग्रामिण लोग बैतूल को बदनूर के नाम से ही पुकारते थे . जब भी किसी गांव वाले को बदनूर आना होता था तो वह अपने चार पाँच साथियों के साथ हाथ में लाठियाँ , कुल्हाड़ी , तीर कमान , बलम्ब, तथा आते समय रात्री हो जाने पर आते समय के लिए मशाल साथ लेकर आते थे ताकि लौटते समय जला कर रास्ते से आ सके . गांव से मलाश जला कर निकले गांव कोटवार के साथ आये कलेक्टर बंगले के बाहर खड़े गांव वालो के हाफने और कापंने की मनो दशा साफ दिखाई दे रही थी. इस कड़ाके की ठंड में भी पसीने से लथ पथ गांव वालो ने कलेक्टर बंगले के चौकीदार को अपने आने की खबर देते हुए कलेक्टर साहब से मिलने की अपनी इच्छा जतलाई. बंगले के चौकीदार ने अंदर जाकर कलेक्टर साहब को $खबर दी कि सर धाराखोह गांव का कोटवार अपने कुछ साथियो के साथ आपसे मिलने के लिए आया है . नई उम्र का कलेक्टर बैतूल शायद पहला या दुसरा जिला रहा होगा ऐसे मेें कलेक्टरी की जवाबदेही वास्तव में जोखिम भरी होती है पर उत्साह में कोई कमी नहीं हमेशा चुस्त – दुरस्त रहने वाले इस खुबसूरत – हैंडसम कलेक्टर को देख कर नहीं लगता था कि वे एक अच्छे शिकारी और निशाने बाज भी होगें , लेकिन जबसे बैतूल आये उन्हाने कई बार जंगलो में अपनी जान कों जोखिम में डाल कर शिकार किये . इस बार भी उन्हे जब धाराखोह में शेर के आंतक की $खबर मिली तो वे अपने आप को रोक नहीं  पायें  उस रोज का मंगलवार बैतूल कलेक्टर के लिए उनकी जिदंगी का सूरज डूबा देगा यह उसने कभी सपने में नहीं सोचा था.
बैतूल कलेक्टर के जीवन का सूरज नही डूबता यदि मवे अपनी जवानी के प्रति इतने दिवाने नहीं होते हालाकि उन्हे बताया जा चुका था कि सर शेर आदमखोर हो चुका है उसने धाराखोह के जंगल में शेर ने एक गोंड कृषक पर हमला कर किया…गले पर दांत गड़ा… कर उसे कई मील दूर तक ऐसा घसीटा कर वह मर गया . कुछ देर बाद शेर ने पहाड़ी ढलान पर ले जाकर उसे ‘ बुरी- तरह नोंच – नोंच कर खाÓ गया…लहुलोहान उस गोंड़ किसान की धोती से मालूम कि पड़ता था कि शेर ने उसका क्या हाल का बेहाल किया होगा .  सारा हाल- चाल जानने के बाद भी जवानी तो होती ही दीवानी है…कुछ करने की इच्छा ने बैतूल कलेक्टर को मौत की आगोश में धकेल ही दिया. कलेक्टर साहब का ‘दिल आखिर माना नह होगा इसलिए उन्होने उक्त दुस्साहस पूर्ण कार्य  करने का दम भर होगा. कहना नहीं चाहिए पर सच्चाई है कि ऐसी ही लालसा – ललक…इस तरह के हादसों को जन्म देती है. बैतूल कलेक्टर मिस्टर बोर्न को धाराखोह गांव कोटवार से जैसे ही यह जानकारी मालूम हुई . मिस्टर बोर्न ने बैतूल के तहसीलदार को अपने दरबार में बुलवा भेजा . इसके अलावा उन्होने यह भी पता कि कि क्या बैतूल जिले में कुछ अच्छे निशानेबाज शिकार है…….? उनकी इस अभिलाषा के तहत कुछ स्थानीय शिकारियों को भी कलेक्टर ने अपने बंगले पर बुलवा भेजा . लगभग आधा दर्जन से भी अधिक लोगो की टीम को अपने साथ लेकर मिस्टर बोर्न गांव कोटवार और कुछ गामिणो तथा स्थानीय शिकारियो के दल को अपने साथ लेकर धाराखोह के जंगलो की ओर निकल पड़े . उस समय कलेक्टर के साथ ‘देश के जाने-माने शिकारी चिचोली ग्राम के पटेल स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, जमींदार स्व. शिवदीन पटेल जिन्होंने अनेक ‘आदम खोरÓ शेर का शिकार किया…अनेक मर्तबा शासन-प्रशासन ने उन्हे सम्मानित किया वे भी शामिल थे .
22 दिसंबर 1931 युवा कलेक्टर खूबसूरत हेण्डसम-गोरा चिट्ïटा उम्र यही कुछ 35-40 मिस्टर बोर्न जो पहले भी कुछेक शेर मार चुके थे… के लिए अवसर था कि धाराखोह के इस आदमखोर (आदमी को खाने वाले) शेर को वे मारे. उन्होंने 2 दिन पहले मुझसे कहा था… ‘पटेल साÓ बड़े दिन के त्यौहार पर अपन नांदा वनग्राम चलेंगे…आज भिनसारे उनकी खबर आ गई है कि आदमखोर शेर के शिकार पर धाराखोह चलना है… अनहोनी कौन टाल सकता था? मेरा जाना नहीं हो पाया. 8 बजे सुबह, तारीख 22 दिसंबर 1931 कलेक्टर साहब धाराखोह के जंगल पहुंच गए…शेर ने एक बैल का भी शिकार किया था. जिस स्थान पर शेर ने बैल को मारा था…जिसे शिकारियों की भाषा में ‘गालाÓ कहते है…उसी स्थान पर, एक पेड़ पर ‘साहब बहादुरÓ के लिए ‘मचानÓ (खटिया-पेड़ की साखो में बांधकर बनाया गया बैठने का स्थान) बनाया गया. बोर्न साहब के साथ तहसीलदार मचान पर बैठे. कोटवार भी उसी पेड़ की एक साख पर बैठा… हांका शुरू हुआ (हांके का मतलब…. संभावित शेर के स्थान वाले जंगल को दूर से…. बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा घेरकर चिल्लाते…. हल्ला करते, आगे बढऩा, जिससे शेर-आवाज शोर सुन, वहां से आगे की ओर बढ़े) और शेर उस ओर बढ़ा भी… जिस स्थान पर…उसने बैल का शिकार किया था…जैसे ही शेर शनै:शनै: चौकस निगाह से अधखाए बैल की ओर पहुंचा…. कलेक्टर भी दम साधे…निशाना साध ही रहे थे…जैसे शेर-उनकी एवं बंदूक की रेंज में आया…कलेक्टर सा ने ट्रिगर दबा दिया…धॉय…गोली चली… गोली लगी या नहीं, कुछ मालूम नहीं हो पाया…शेर आगे बढ़ गया…
कलेक्टर बोर्न साहब बोले गोली लग गई है…तहसीलदार-कोटवार बोले-‘सरÓ गोली नहीं लगी है. तय यह हुआ कि नीचे उतरकर देखा जाय  कि गोली लगी या नहीं…अगर खून गिरा होगा… मतलब  गोली लगी है… तीनों नीचे उतर गए…उन्हें खून भी दिखलाई दिया… बोर्न साहब पर जवानी का नशा चढ़ा था… वे खून देखते आगे बढ़ते गए…साथ में तहसीलदार एवं कोटवार भी…अचानक भयानक गर्जना के साथ शेर टूट पड़ा घायल शेर भयावह होता है… पहले उसकी पकड़ में कोटवार आ गया… उसने कोटवार का सीना चबा डाला… खून के फव्वारे छूट पड़े… साहब ने गोली चलाई…वह साहब बहादुर पर टूट पड़ा.
स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, जमींदार स्व. शिवदीन पटेल चिचोली की हस्तलिखित डायरी के पन्नो में अंकित इस सत्यकथा के अुनसार कलेक्टर साहब मिस्टर बोर्न ने अपने को, बचाने पहले हाथ आगे बढ़ाया…शेर ने हाथ चबा डाला, पैर आगे बढ़ा तो पैर ‘चकनाचूरÓ हो गया फिर शेर सीने पर टूट पड़ा…और बोर्न साहब को चबाता रहा… खून के डबरे भर गए… स्व. पटेल की डायरी आगे कहती है… तहसीलदार वहां से जो भागा… तो नजदीक एक झाड़ पर चढ़ गया बंदूक नीचे ही फेंक दी…कपड़े पूरे गंदे कर चुका था. दूर झाड़ पर बैठे एक आदिवासी शिकारी को कुछ आभास हुआ कि-बड़े साहब की तरफ कुछ गड़बड़ है…वह वहां पहुंचा…कोटवार एक ओर पड़ा था.
दूसरी ओर बोर्न सा पड़े थे. धरती खून से सनी थी…कुछ ही दूर ‘निढालÓ शेर पड़ा था, क्योंकि वह भी ‘कमरÓ में गोली लगने से घायल था. गोंड शिकारी ने पहले अपनी भरमार बंदूक से शेर पर गोली चलाई… वह वही ढेर हो गया. उक्तसारे हादसे को देख कर तो बैतूल तहसीलदार की सिटट्ी – पिटटï़्ी गुम हो गई . वह थर- थर कांपने लगा. जब उनकी घबराहट कुछ कम हुई… वे पेड़ से उतरे… ‘आनन-फानन में खटिया का इंतजाम किया गया…Ó एक पर कलेक्टर, एक पर कोटवार… बैतूल लाया गया…मुख्य चिकित्सालय टिकारी जो (जो अब नर्सेज हास्टल है)  लाया गया .
दोनों की स्थिति बहुत नाजुक थी… कलेक्टर साहब होश आने पर बचाओ-दौड़ो शेर आया चिल्लाते रहे… उन्हें  कलेक्टर बंगला ले जाना ही उचित समझा गया… नागपुर से भी डाक्टर आए…परंतु उन्हें नहीं बचाया जा सका… बीच-बीच में चिल्लाते थे-दौड़ो-दौड़ों शेर आया-शेर आया. और कलेक्टर बंगले में उनके प्राण पखेरू उड़ गए… शाम हो रही थी सूरज ढल रहा था… एक जवान युवा कलेक्टर-‘विवेकÓ के अभाव में मारा गया था. जब यह जानकारी घायल कोटवार तक पहुंची… तो वह भी ‘शाकÓ नहीं झेल पाया…उसकी भी मौत हो गई.
बोर्न सा की मेम साहब को विलायत उनके स्वदेश तार से बोर्न साहब की इस हादसे में हुई मौत की खबर दी गई लेकिन वे नहीं आई बलिक उनका जवाब आ गया वह भी एक ऐसा तार था जिसमें लिखे शब्दो ने पति – पत्नि के रिश्तो को तार – तार करके रख दिया . तार का जवाब था…उनका जो भी सामान हो नीलाम कर पैसा यहां भिजवा दो…
डायरी आगे कहती है… बोर्न सा को माचना नदी के किनारे कब्रस्तान में दफनाया गया. कलेक्टर बंगले में काफी दिनों तक बोर्न सा की आवाज दौड़ो-दौड़ों शेर आया शेर आया…. आती थी . अब वह आवाज तो लोगो को सुनाई नहीं देती पर माचना नदी के किनारे बने ईसाईयो के कब्रिस्तान से आज भी काली अंधीयारी अमावस्या की रात हो या फिर उजियारी पूर्णिमा की रात में एक पैतीस छत्तीस साल का विलायती स्मार्ट गोरा – नारा  युवक जहाँ – तहाँ  खून से सना  उसके शरीर से खून की बूंद टपकती दिखाई पड़ती थी . वह अपने हाथो में  बंदुक लिए बदहवास सा चीखता हर आने – जाने वाले राहगिरो से यह कहता है दिखाई पड़ता कि ” भागो नहीं तो शेर खा जाएगा ………………! परतवाड़ा रोड़ पर स्थित ईसाई कब्रिस्तान के पास अकसर कई लोगो को दिखाई पड़ा तथा अभी भी उसके दिखाई देने के किस्से सुनाई पड़ते है . यह विलायती युवक उस रास्ते से आनें – जाने वाले लोगो से कहता है कभी – कभी तो यह भी कहता है कि दौड़ो……………..!   दौड़ों …………..!   शेर आया …………..!   शेर आया………………!    मुझे बचाओ ……………! मुझे बचाओ…………….! भागो नहीं तो शेर खा जाएगा ……………….
इति,

दिल को छू लेने वाली रहस्य रोमांचक युवा दिलों की कहानी
काला गुलाब
कहानी – रामकिशोर पंवार
रात की घटना को याद कर तरह – तरह के विचारो में खोये मनोज को पता ही नहीं चला  की कब अंजली उसके कमरे में आ गई. अचानक अंजली को पता नहीं क्या शरारत सुझी उसने चुपके से विचारो में खोये मनोज की आँखो को अपने दोनो हाथो की हथेली से दबाई तो मनोज ने जैसे ही अपनी आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह जोर से चीख पड़ा. अचानक मनोज के जोर से चीख कर बेहोश हो जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. बेहोश हुए मनोज की उससे हालत देखी नहीं गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांपने लगी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया…..?  मनोज की चीख को सुन कर उसके पड़ौस में रहने वाली अनुराधा दौड़ी चली आई. मनोज की चीख इतनी जोर की थी कि आसपास के लोग भी घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये.बड़े दिन की छुट्टïी खत्म होने वाली थी. स्कूल-कालेज लगना शुरू होने वाले थे. इस बीच अपने गांव से जल्दी लौट आये मनोज को अब सर पर सवार परीक्षा की तैयारी में जुट जाना था. अर्ध वार्षिक परीक्षा के बाद होने वाली पढ़ाई में जरा सी भी बरती ढील पूरा साल बरबाद कर सकती थी. सुबह जल्दी न उठ पाने की आदत के कारण मनोज ने अपने मकान मालिक से कहा था कि अंकल आप जब भी मार्निंग वाक के लिये जाते हैं मुझे भी साथ लेते चलिये मैं भी साथ चलूंगा. पिछले कई सालों से मनोज के मकान मालिक कुंदन मैथ्यू मार्निंग वाक के लिये जाते थे. मनोज ने सोचा कि वह सुबह चार से साढ़े पांच बजे तक मार्निंग वाक के बहानें अपनी किताबें-कापियां लेकर शांति से खुले मैदान में बैठकर पढ़ लेगा. एक पंथ दो काज के बहाने से सुबह देर से जगने की परेशानी से भी मुक्ति मिल जाएगी. अपने कमरे में सोने जाने से पहले मनोज ने एक बार फिर याद दिलाते हुये कहा कि अंकल रात से मैं भी आपके साथ चलूंगा.
मनोज का कमरा ऊपर की मंजिल पर होने की वजह से तीन चार दोस्त साथ मिलकर रहा करते थे. मनोज के सहपाठी आज शाम तक वापस लौट कर आने का कह कर गये थे लेकिन  जब वे नहीं आये तो आज शाम को ही अपने गांव से वापस लौटे मनोज को आज की रात अकेले ही काटनी थी. इसलिये वह ज्यादा देर तक जगने के बजाय सोने चला गया. 31दिसंबर की उस रात अपने कमरे में अकेले सोये मनोज ने उस रात को जोर की पडऩे वाली ठंड से बचने के लिए अपने सारे गर्म कपड़े पहनने के बाद अपने गांव से अबकी बार साथ लाई जयपुरी मखमली रजाई को अपने ऊपर डाल कर उसकी गर्माहट में दुबक कर सो गया. सपनों की दुनिया में खोये मनोज की अचानक हुई खटपट की आवाज से नींद खुल गई. उसने अपने कमरे का नाइट लैम्प जलाया तो उसे अचानक नाइट बल्ब की रोशनी में जो दिखाई दिया उससे वह बुरी तरह डर गया. उसे अपने कमरे में एक भयानक डरावनी सूरत वाली काली बिल्ली दिखाई दी. जिसकी आँखो से अंगारे बरस रहे थे. उस काली भयावह डरावनी सूरत वाली बिल्ली से वह कुछ पल के लिये डर गया लेकिन उसने हिम्मत से काम लेते हुए उस बिल्ली को भगाने के लिए डंडा तलाशना चाहा , लेकिन उसे जब कहीं भी डंडा दिखाई नहीं दिया इस बीच डंडा तलाशते समय उसकी न$जर अनायास सामने की ओर बने सेंट पाल चर्च की ओर गई तो उसका कलेजा कांप गया. उसने अपने ऊपर की मंजिल पर स्थित कमरे से देखा कि रात के समय आसमानी तारों की जगमग रोशनी में उस चर्च के सामने बनी बावली के भीतर से एक महिला निकल कर उसके मकान की ओर आती दिखाई दी. सफेद लिबास पहनी वह महिला उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू के कमरे की ओर आती दिखाई दी वह महिला आई महिला बिना कुछ बोले उसके मकान मालिक के कमरे में चली गई. उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि उसने अभी कुछ देर पहले क्या देखा. आखिर वह महिला कौन थी. उसका इस मकान मालिक से क्या नाता-रिश्ता है. वह यहां पर इतनी रात को क्या करने आई है……? और न जाने कितने प्रकार के विचारों में खोए मनोज का डर के मारे बुरा हाल था. अगर वह बिस्तर पर जाकर नहीं बैठता तो वह बुरी तरह लडख़ड़ा कर गिर जाता.
मनोज ने जैसे – तैसे पूरी रात को अपनी आँखे के सामने कांटा. उसका एक- एक पल उसे सालो की तरह लग रहा था. सुबह होते ही जब उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू ने उसे घूमने के लिये चलने को कहा तो उसने पेट दर्द का बहाना बना कर वह अपने बिस्तर में दुबक कर सो गया. उसकी आंखों की नींद उड़ गई थी वह बार-बार यही सोचता रहा कि उस बावली से निकलने वाली महिला कौन थी? उसका इस मकान मालिक से क्या संबंध है? सवालों में उलझे मनोज ने किसी तरह दिन निकलते तक का समय काट लिया पर वह रात की घटना से परेशान हो गया. दिन भर बेचैन मनोज जब आज कॉलेज भी नहीं आया तो उसके मकान मालिक ने उससे आखिर पूछ लिया-बेटा मनोज क्या बात है? तुम्हारा पेट दर्द क्या अब भी कम नहीं हुआ है? अगर तकलीफ अभी भी है तो डाक्टर के पास चलो मैं तुम्हें ले चलता हंू. नहीं अंकल ऐसी कोई बात नहीं है, बस यूं ही इच्छा नहीं हो रही है. आप चिंता न करें मैं ठीक हंू यह कह कर मनोज अपने कमरे से बाहर निकल कर आ गया. रात की घटना को याद करता विचारों में खोये मनोज की अचानक किसी ने आंखों पर हथेली रखकर उसकी आंखोंं को दबा दिया. मनोज ने जैसे ही आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह चीख पड़ा और वह कटे वृक्ष की भॉति जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा. मनोज के चीख कर बेहोश गिर जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांप रही थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को क्या हो गया. मनोज की चीख को सुनकर आसपास के लोग घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये. कुछ ही पल में पूरा मोहल्ला जमा हो गया. किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा था. अंजलि का तो हाल बेहाल था. कुछ लोग मनोज को उठाकर उसके कमरे में ले गये. इस बीच कुछ लोग डाक्टर को तो कुछ लोग झाडऩे-फूंकने वाले को लेकर आ गये. डाक्टरों के लाख प्रयास के बाद रात वाली घटना को याद करके सिहर उठता था. इस बीच जब अंजलि ने चुपके से आकर उसकी आँखे क्या दबाई  वह चीख कर ऐसा बेहोश हुआ कि उसे अभी तक होश नहीं आया. जब काफी देर तक मनोज को होश नहीं आया तो फिर क्या था उसके आस – पडौस के लोगो ने ओझा फकीरो को बुलवा लिया. सुबह से लेकर शाम तक झाड़ – फुक जंतर-मंतर का दौर शुरू हो गया. चर्च के फादर राबिंसन इन बातों पर विश्वास नहीं करते थे. इस बीच कोई मौलाना साहब को लेकर आ गया. मौलाना साहब ने कुछ बुदबुदाते हुये मनोज के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो अचानक बड़ी-बड़ी आंखें खोलकर घूरता हुआ जनानी आवाज में बोला ”तुम सब भाग जाओं नहीं तो किसी एक को भी नहीं छोडूंगी. …………. मौलाना साहब ने बताया कि यह लड़का किसी जनानी प्रेत के चक्कर में पड़ गया है. इसे कुछ समय लगेगा. ऐसा करें आप आधा घंटे का मुझे समय दे दीजिये. मैं इसे ठीक कर दूंगा. हां एक बात और भी इस लड़के का कोई अगर अपना है तो वह ही इसके साथ रहे बाकी सब चले जायें. सभी लोग अंजलि को छोड़ जाने लगे तो अंजलि जो कि इन सब बातों से बुरी तरह घबरा गई थी. बोली-प्लीज मेरे पापा को फोन करके बुला दीजिये न. अंजलि के पापा इसी शहर के पुलिस कप्तान थे इसलिये उन तक खबर पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं थी. पुलिस कप्तान साहब की बिटिया की खबर कौन नहीं पहुंचाएगा. लोग खबर देने के लिये दौड़ पड़े.
पुलिस कप्तान ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह का पूरे जिले में दबदबा था. अपराधी तो उसके नाम से ही थर-थर कांपता था. अंजलि उनकी एकमात्र संतान थी. तेजतर्रार पुलिस कप्तान साहब की एकमात्र नस थी तो वह उनकी बिटिया अंजलि जिसे वे बेहद प्यार करते थे. अंजलि मनोज के साथ डेनियल कालेज कला की छात्रा थी. मनोज भी उसी कालेज में साइंस का छात्र था. दोनों एक-दूसरे के विपरीत कोर्स की पढ़ाई कर रहे थे. कालेज की केन्टीन से शुरू हुये अंजलि और मनोज के प्रेम प्रसंग ने उन्हें पूरे कालेज में चर्चित कर रखा था. पुलिस कप्तान की बिटिया होने की वजह से हर कोई उसके आसपास आने से डरता था. वह अक्सर मनोज से मिलने आती थी. पिछले चार-पांच माह से दोनों के बीच चल रहे प्रेम प्रसंग की पूरी कालोनी में चर्चा होती थी. लोग चर्च कालोनी के इन दोनों प्रेमियों की तुलना हिर-रांझा, लैला-मजनू, सोनी-महिवाल से करते थे. अंजलि शहर के पुलिस कप्तान की बिटिया थी इसलिये कोई भी उसके बारे में बुरा भला कह पाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. कई बार तो कप्तान की कार ही मनोज को लेने आती थी. पूरे मोहल्ले में मनोज का जलवा था. अंजलि की मम्मी को ब्लड कैंसर की बीमारी थी. जिसकी वजह से वह असमय ही काल के गाल में समा गई थी. अंजलि की मम्मी का जब निधन हुआ था उस समय वह छ: माह की थी, ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह पर परिवार के लोगों का काफी दबाव आया कि वे दूसरी शादी कर लें, पर कप्तान साहब अपनी जिंदगी में किसी दूसरी औरत को आज तक आने नहीं दिया. अंजलि ही उसके जीने का एक मात्र सहारा थी. जब अंजलि के बीच प्रेम प्रसंग की उन्हें खबर मिली तो सबसे पहले कप्तान साहब ने बिना किसी को कुछ बताये मनोज के पूरे परिवार की जन्म कुंडली अपने मित्र से मंगवा ली थी. मनोज के घर परिवार के तथा उसके आचार विचार ने पुलिस कप्तान का दिल जीत लिया था. पुलिस कप्तान ने मनोज को अपना भावी दामाद बनाने का फैसला कर लिया था. अगले वर्ष दोनों का विवाह कर उनका घर संसार बसा देने का फैसला ठाकुर महेन्द्र  प्रतापसिंह तथा मनोज के पापा के बीच हो चुका था लेकिन दोनों के बीच की बातचीत को अभी गुप्त रखा था. इस बात का न अंजलि को पता था और ना ही मनोज को आभास था कि उसके पापा और अंजलि के डैडी के बीच कोई बातचीत भी हुई है.
अंजलि  की खबर मिलते ही पुलिस कप्तान दौड़े चले आए. उनके साथ शहर का पुलिस विभाग भी आगे-पीछे दौड़ा चला आया. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह की बिटिया संकट में है यह खबर सुन कर भला कौन चुप बैठ सकता था. सबसे ज्यादा हैरान – परेशान अखबार और टी.वी. चैनल वाले थे क्येकि उन्हे आपस में इस बात का डर सता रहा था कि कहीं उनकी खबर आने के पहले ही कोई ब्रेकिंग न्यूज न चला दे. शहर में सनसनी खेज खबर के घट जाने के चलते सारे मीडिया कर्मी ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह को खोजते कुन्दन मैथ्यू के घर पर आ धमके. सेंट पाल चर्च कालोनी की इस घटना की चर्चा शहर के पान ठेलो एवं होटलो तथा चाक चौराहो पर होने लगी. कुन्दन मैथ्यू के घर पुलिस कप्तान के पहँुचते ही वहाँ पर जमी भीड़ छटने लगी. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह उस कमरे में चले गए जहाँ पर गुमसुम अंजलि और मौलवी साहब के अलावा मनोज के अलावा उनके आसपास के लोग बैठे हुए थे. पापा के आते ही अंजलि स्वंय को रोक नही सकी और दहाड़ मार कर रोने लगी. ”पापा देखा न मनोज का क्या हो गया…..? अपनी बेटी की आँखो में आँसू देख महेन्द्र प्रतापसिंह स्वंय को रोक नही सके वे कुछ पुछते इसके पहले ही मौलवी साहब ने उन्हे चुपचाप रहने का इशारा कर दिया. पुलिस कप्तान साहब कमरे के एक कोने में बैठ कर वहाँ पर होने वाली गतिविधियो को देखने लगे. इस बार फिर मौलवी साहब ने गेहूँ के दानो को मनोज पर फेका तो आँखो में अंगारे लिए मनोज सोते से जाग गया. उसने सामने के मौलवी से तू चला जा नहीं तो बात बिगड़ जायेगी…….. मौलवी ने इस बार फिर कुछ बुदबुदाया और मनोज के चेहरे पर वह अभिमंत्रित पानी फेका तो वह जनानी आवाज में बोला मुझे छोड़ दो………… मौलवी साहब बोलें पहले तू यह तो बता आखिर तू है कौन………?  तूने इसे क्यो अपने जाल में फँसा रखा है………..? इस बार मनोज के शरीर में समाई प्रेतात्मा बोली………….. मैं मरीयम हँू…………..सिस्टर जूली की छोटी बहन हँू. फादर डिसूजा ने मेरी सिस्टर जूली से मैरिज की थी. मैं अपनी सिस्टर के पास ही रहती थी. आज से  45 साल पहले मेरी चर्च कालोनी की इस सामने वाली बावली में गिरने की वजह से मौत हो गई थी. मेरी मौत लोगो के बीच काफी समय तक चर्चा का विषय बनी क्योकि फादर डिसूजा ने मेरी मौत को आत्महत्या बताया था जिसे आसपास के लोग मानने को तैयार नही थे. उस समय मैं दसवी कक्षा में पढ़ती थी. कुंदन मैथ्यू फादर डिसूजा के घर पर ही रहता था इसलिए हम दोनो के बीच पता नही कब प्यार का बीज अंकुरित हो गया. कुंदन के बचपन मेरी माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गये थे . एक दिन फादर डिसूजा को भूखे से व्याकुल कुंदन एक होटल में चोरी करते मिला. फादर डिसूजा को कुंदन पर दया आ गई और उसने उसे पुलिस थाने से जमानत पर छुड़ा कर अपने पास ले आया. सात साल की उम्र से कुंदन फादर डिसूजा के पास ही रहता है. फादर डिसूजा ने कुंदन को ईसाई धर्म की दीक्षा देकर उसका नाम कुंदन मैथ्यू कर दिया. कुंदन ने भी फादर डसूजा को अपने माता- पिता की तरह चाह कर उसकी सेवा चाकरी में कोई कसर नही छोड़ी. फादर ने कुंदन का नाम सामने वाले चर्च स्कूल में लगा दिया. पढऩें में  तेज कुंदन ने हर साल अव्वल नम्बर पर आकर पूरे शहर में अपने नाम की पहचान बना ली थी. इस बीच सिस्टर जूली ने चर्च स्कूल में बतौर टीचर के जब नियुक्त हुई तो वह भी कुंदन की पढ़ाई के प्रति लगन और क्लास तथा स्कूल में नम्बर वन आने की वजह से उस पर खास ध्यान देने लगी. सिस्टर जूली भी श्ुारूआती दिनो में चर्च कालानी में रहती थी लेकिन जब फादर डिसूजा से उसकी मैरीज हो गई तो वह अपनी छोटी बहन मरीयम के साथ रहने लगी. मरीयम भी कुंदन के साथ पढ़ती थी इसलिए दोनो साथ – साथ रहने और पढऩे के कारण एक दुसरे के हमजोली बन गये. सिस्टर जूली से मैरीज के बाद फादर डिसूजा का कुंदन के प्रति व्यवहार काफी बदल गया. कुंदन का स्कूल जाना बंद करवा दिया गया. उसे चर्च में चौकीदार की नौकरी पर रखवाने के बाद फादर डिसूजा ने मरीयम की कुंदन से बातचीत तक बंद करवा दी. फादर डिसूजा नहीं चाहतें थे कि मरीयम की मैरीज एक ऐसे लड़के से हो जिसके  माता- पिता न हो…… जिसके पास न घर है न दो वक्त की दो का इंतजाम ऐसे लड़के से मैरीज न होने देने की वजह कुछ और ही थी. दर असल फादर मरीयम को पाना चाहते थे लेकिन सिस्टर जूली की वजह से उनकी दाल नही गल पा रही थी. एक दिन सिस्टर जूली और कुंदन किसी काम से दूर किसी शहर गये थे . उस रात को घर में अकेली देख फादर डिसूजा ने मरीयम की इज्जत लूटनी चाही तो वह अपनी जान बचाते समय ऐसी भागी की बावली में जा गिरी. मरीयम की अचानक मौत का सिस्टर जूली पर ऐसा सदमा पड़ा की वह अकसर बीमार पडऩे लगी और एक दिन चल बसी. फादर डिसूजा ने कई लोगो को मेरी मौत को आत्महत्या बताया लेकिन किसी ने भी उसकी बातो पर यकीन नही किया. मैने आखिर मेरी और मेरी सिस्टर जूली की मौत का बदला लेने के लिए मुझे मनोज का सहारा लेना पड़ा .
मैं मनोज को बस एक ही शर्त पर छोड़ सकती हँू यदि आप मेरी कब्र पर एक काला गुलाब वो भी मेरे और  कुंदन  के प्यार की निशानी बतौर लोगो के बीच लम्बे समय तक जाना – पहचाना जा सके. लोगो ने जूली की मनोज के माध्यम से कहीं बातो पर विश्वास करके एक काला गुलाब की कली की कहीं से व्यवस्था करके ज्यों ही उसकी कब्र पर गाड़ा इधर मनोज अपने – आप ठीक हो गया . आज भी कुंदन  और जुली के प्यार का वह प्रतिक लोगो के लिए ऐसा सबक साबित हुआ है कि लोग कभी भी ऐसे प्रेमी के प्यार के बीच में खलनायक बनने का प्रयास नहीं करते जों एक दुसरे को जान से जयादा चाहते है. अभी कुछ दिनो पूर्व ही अंजली अपने पति मनोज और पापा डी .आई .जी . ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह के साथ जब नागपुर जा रही थी तो वह छिन्दवाड़ा होते हुए जूली की कब्रतक पहँुची यह जानने के लिए की उसके द्वाराा अकुंरित काला गुलाब कैसा है………!
इति,
कथा के पात्र काल्पनिक है इसका किसी भी
जीवित व्यक्ति से कोई लेना – देना नहीं है .

भूत भगाने का पाखण्ड?
सचित्र आलेख – रामकिशोर पंवार
” बता तू कौन है ? वरणा तुझे जला कर भस्म कर दँूगा……..? रामदीन भगत ने कलावति की चोटी को पकड़ उसे जब एक चक्कर घुमाते हुए पुछा तो वह दर्द के मारे चीख पड़ी. वह दया की भीख मांगती हुई दामदीन से कह रही थी ”बाबा मुझे छोड़ दो…………….! कलावति को दर्द से कराहते और दसा की भीख मांगते हुए गिड़गिड़ाता देख भगत बाबा ने उसकी पीठ पर एक बार फिर वही जानवरों के बालो से बना सोटा (हंटर) खींच कर दे मारा. कलवाति एक बार फिर वही मिन्नत करने लगी , लेकिन बाबा उस पर एक ,दो, तीन, चार गिन कर सोटा (हंटर) कस कर मारने लगा तो वह दर्द से कराहती हुई वही औंधे मुँह गिर पड़ी . उसे गितरा देख रामदीन बाबा ने उस पर पानी के दो चार छीटें मारे फिर भी वह जब लोगो द्घारा उठाने  बाद भी नहीं उठी तो रामदीन बाबा घबरा गया. उसने अपनी जान बचाने के लिए लोगो से कहा ” घबराने की कोई बात नहीं ………….!   ” कुछ देर बाद इसे होश आ जायेगा. इतना कह कर बाबा अभी आता हॅंू कह कर जो गया तो आया नही. इधर कलावति को काफी देर बाद भी होश नहीं आया तो उसके रिश्तेदारों ने उसे उठा कर बैलगाड़ी से सीधे शहर के डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने कलावति की नब्ज टटोली तो पता चला कि वह अब इस दुनिया में नहीं रही.डाक्टर द्घारा कलावति को मृत घोषित करते ही पुरे रिश्तेदारों के बीच कोहराम मच गया. कलावति की इस मौत की सूचना पुलिस को मिलते ही पुलिस ने मृतिका का शव का पंचनाम तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिर्पोट आने के पूर्व पुलिस ने कलावति के भाई की शिकायत पर आरोपी रामदीन भगत के विरूद्घ हत्या हत्या का प्रकरण दर्ज तो कर लिया लेकिन भूत भगाने वाला पांखडी रामदीन बाबा आज भी पुलिस पकड़ से कोसो दूर है. इस घटना के बाद भी आज भी कई कलावति तथाकथित भूत भगाने के चक्कर में ऐसे पाखंडी बाबाओं के द्घारा जान माल से हाथ धो रही है.                         एक घटना मध्यप्रदेश के सबसे बड़े सतपुड़ा ताप बिजली घर सारनी की है. सारनी मेें बीते दिनो सुनिता के परिजन उसके मानसिक रोग से छुटकारा दिलवाने के लिए एक ऐसे ही झाड़ फुक वाले रफीक बाबा के पास ले गए जो कि पिछले कई सालो से भूत भगाने का काम करता चला आ रहा था. सुनिता की आपबीती सुनने के बाद ऐसे बाबाओं के द्घारा रचित पाखंडो का पता चलता है. सुनिता की कहानी भी कलावति से मिलती जुलती है. 22 वर्षिय सुनिता का विवाह रमेश के साथ हुआ था. शादी को पांच साल बीत जाने के बाद भी जब उसे बच्चा नही हुआ तो उसकी सास उसे पड़ौस के रफीक बाबा के पास ले गई. रफीक बाबा ने जवान युवती को देखने के बाद अपनी कुटिल मुस्कान को छुपाते हुए सुनिता की सास से कहा कि  ” इसे किसी ने कुछ कर दिया है. इसका अमावास्या की काली रात में शमशान में इलाज करना पड़ेगा………!  वंश की चाह में सुनिता की सास उसे अमावस्या की रात एक बार फिर उसी रफीक बाबा के पास ले आई. जहाँ पर रफीक बाबा ने सुनिता की सास को प्रसाद खिला कर बेहोश करके उसी शमशान में अकेली सुनिता के साथ अमानवीय ढंग से बलात्कार कर अपनी हवस की प्यास बुझा डाली. सुनिता के साथ हुए इस अमानवीय कृत्य से वह बेहोश हो गई. उसे जब होश आया तो उसने अपने आपको अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उसके आसपास डाक्टर और नर्स तथा उसके तमाम रिश्तेदार खड़े हुए थे. बिस्तर पड़ी सुनिता को अभी वह अमावस्या की काली रात रह रह कर याद आ रही थी. उसके सभी सगी सबंधी रिश्तेदारों के बीच उसकी सास भी अपनी गर्दन झुकाये खड़ी थी. सुनिता जैसी कई महिलाए अपनी कोख ना भर पाने का मेडिकल कारण जाने बिना ऐसे पाखंडी बाबाओं के चक्कर में पड़ जाती है.
भूत भगाने के नाम पर पुरे देश में फैले पाखंड का हर धर्म -मजहब का व्यक्ति  श्किार होता है. रेहाना बताती है कि उसकी अम्मी उसे एक ऐसे तथाकथित चमत्कारी रम्मू बाबा के पास ले गई जिसने उसके साथ पुरे छै महिने तक यौन शोषण किया. वह उस शैतान बाबा का चाहकर भी विरोध नहीं कर सकी क्योकि बाबा ने उसके पुरे परिवार को अपने वश में कर रखा था. एक दिन उसे अंघ श्रद्घा उन्मूलन समिति के कुछ सदस्य मिले जिसे उसने अपनी आपबीती सुनाई. रेहाना की आपबीती सुनने के बाद अंध श्रद्घा उन्मूलन समिति के लोगो रम्मू बाबा का भांडा ही नहीं फोड़ा बाबा के विरूद्घ रिर्पोट दर्ज करवा कर उसे जेल की हवा भी खिलवाई. ड्रग्स एण्ड मैजिक एक्ट के तहत ऐसे पांखडी बाबाओं के खिलाफ पुलिस कार्यवाही करती है. कानून के जानकार कहते है कि ”हमारे कानून में ऐसे ठगो के खिलाफ कठोर दण्ड का प्रावधन है पर शिकायत करने वाले व्यक्ति को अपने ब्कथन पर अडिग रहना चाहिए . महिला उत्थान के क्षेत्र से जुड़ी ‘मुक्तिÓ की संचालिका सुश्री कौशल्या पंवार कहती है कि ” महिलाओ के शरीर में अनेक प्रकार के रोगो के निदान के चिकित्सा विज्ञान का सहारा लेना चाहिए. बाबा और भगत के चक्कर में पडऩे से ऐसी महिलाए अनेक प्रकार के रोगो से ग्रसित हो जाती है. सुश्री कौशल्या ने एक ऐसी ही घटना के बारे में बताया. इन्दौर जैसे महानगर में ज्योति नामक महिला भी किसी भूत भगाने वाले बाबा के चक्कर में पड़ गई. उसे मिर्गी के दौरे पड़ते थे लेकिन परिवार के लोग उस प्रेतआत्माओं का प्रकोप बता कर उसका इलाज भगत भुमकाओं से करवाते चले आ रहे थे. भोपाल में दो सगी बहनो ने अपने पिता की भूत प्रेत के चलते जघन्य हत्या कर डाली. भोपाल की दो मुस्लिम समुदाय की उक्त दो बहनो द्घारा अपने पिता की हत्या के बाद की गई वहशीपन की हरकतों के कारण  आसपास के लोग भी डरे सहमें हुए है. सूर्य पुत्री ताप्ती की जन्म स्थली बैतूल जिले के मुलताई  नगर के मेघनाथ मोहल्ले में गुरूपूर्णिमा के अवासर पर रात भर आदीवासी समाज के ओझाराम उइके एवं उसकी पत्नि ने अपनी युवा पुत्र की मौजुदगी में निर्वस्त्र होकर अनुठा तांत्रिक अनुष्ठान किया. तथाकथित भूत भगाने के चलते की जाने वाली पूजा के लिए इस तरह का अनुष्ठïान करवा कर लोग अपना छर लोगो के बीच में पैदा करके उनके साथ ठगी करते है.
मनोरोग चिकित्सक सुश्री माधुरी भोभाटकर बताती है कि कई महिला पुरूष मानसिक रोगो के शिकार होते है. ऐसे लोगा इलाज संभव है लेकिन कुछ लोग बाबा भुमकाओं के चक्कर में पड़ कर इलाज के नाम पर फैले पांखड के जाल में फंस जाते है. सुश्री माधुरी कहती है कि मानसिक रोगो से पागल व्यक्तियों का इलाज पागल खाने में करवाने के बजाय कुछ लोग बदनामी के डर से रात अंधेरे में बाबा भुमकाओं के चक्कर में पड़ जाते है.  प्रतिवर्ष बारहालिंग नामक स्थान पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर अनेक आदीवासी समाज के लोग भगत भुमकाओं के साथ ताप्ती नदी के किनारे भूत भगाने का काम करते चले आ रहे है. बालाघाट जिले के एक दूरस्थ गांव में पिछले दिनो गांव के कुछ जागरूक नवयुवको ने एक ऐसे ही बाबा को नंगा करके घुमाने का काम किया जो कि भूत भगाने की आड़ में एक विधवा महिला की अस्मत लूटने वाला था. सुखवन्ती  (नाम बदला जा चुका है) नामक यह महिला अपने पति की मौत का सदमा बर्दास्त नहीं कर पाई और वह इस मानसिक रूप से जो बिमार हुई कि उसके परिजन उसे डाक्टरों को दिखाने के बजाए बाबा भुमकाओं के पास ले जाते रहे.  जवान विधवा महिला की स्थिति देख कर जग्गू बाबा ने उसके परिजनों को बताया कि इसका पति अपने अधुरे तन के मिलन के लिए इसे परेशान कर रहा है. इसका इलाज यह हैेे कि किसी भी व्यक्ति के शरीर में इसके पति की आत्मा को प्रवेश दिला कर इस महिला के साथ एक बार उसके तन का मिलन करवा दिया जाए पर यह काम काफी जोखिम भरा है. जग्गू बाबा ने सुखवन्ती के परिवार वालो को इतना डराया कि वे सब बाबा के ऊपर छोड़ कर चले गए. जग्गू बाबा ने जब सुखवन्ती की अस्मत लूटनी चाही तो उसने प्रतिकार किया. उसकी चीख पुकार को सुन कर कुछ नवयुवको ने जग्गू बाबा को पकड़ दबोचा तथा बाद में उसे नंगा करके घुमाया. हालाकि इस घटना को गांव वालों ने सुखवन्ती की बदनामी के डर से उसे आज तक छुपाये रखा. चूकि इस घटना को यहाँ इसलिए उल्लेख किया जा रहा है ताकि लोग इस प्रकार की घटना से सबक ले सके. महिला मध्यप्रदेश साइंंस सेन्टर पिछले कई सालों से भूत -प्रेत के नाम पर होने वाले पाखण्डों का पर्दाफाश करता चला आ रहा है. इसी तरह का एक अभिनव प्रयाय बैतूल जिला अधं विश्वास उन्मूलन मंच कर रहा है. मंच के सदस्य हर महिने दूर दराज के गांवों में जाकर इस प्रकार के अंध विश्वास को वैज्ञानिक आधार पर चुनौती देकर बाबा भुमकाओं का पोल – खोल कार्यक्रम जारी रखे हुए है. मंंंच के प्रमुख पदाधिकारी सतीश भोभाटकर कहते है कि हमारे मंच के गांव – गांव तक पहँुच रहे सदस्यो एवं प्रशिक्षित स्वंय सेवको के कारण अनेक बाबा भुमका जेल की हवा खा चुके है.  राष्टï्रीय हिन्दी दैनिक पंजाब केसरी के छिन्दवाड़ा एवं बैतूल स्थित संवाददाता के अनुसार भूत भगाने के नाम पर बाबाओं का गोरख धंधा को बंद किया जा सकता है अगर प्रदेश की सरकार दूर दराज के गांवों तक अंध श्रद्घा उन्मूलन समिति जैसे संगठनों के प्रशिक्षित सदस्यो को पहँुंंचाए ताकि वे लोगो को समझा सके कि भूत – प्रेत नाम की कोई चीज नहीं है. यह तो मात्र अंधविश्वासी लोगो के दिमाग से जन्मा वहम मात्र है.
इति,

भूतो का मेला
रामकिशोर पंवार
” बाबा मुझे माफ कर दो ……… !  मैं इसे छोड़ कर चला जाऊंगा……..! फिर कभी  इसकी डगर नहीं जाऊँगा !  बाबा मुझ पर रहम करो……!  गुरू साहेब बाबा की समाधी का चक्कर लगाती वह अस्त – व्यस्त हालत में बदहवास सी युवती की करूण वेदना को सुनने वाला एक पल के लिए स्तब्ध सा रह जाता है कि आखिर यहाँ पर हो क्या रहा है……! वह कौन है जो इस महिला के माध्यम से बाबा सें प्रार्थना कर रहा है….. रामकली नामक वह युवती मुलताई के पास के गांव की रहने वाली थी. उसके पीछे उसका परिवार भी बाबा की समाधी का चककर काट रहा था क्योकि वह युवती को जब भी वह अदृश्य आत्मा परेशान करती थी तो उसे होश तक नहीं रहता था. कई बार वह अपने शरीर के वस्त्रो को तार – तार कर चुकी थी. इस बार भी ऐसा कुछ न हो जाए इसलिए उसे संभालने के लिए उसके परिजन उसके साथ – साथ थे. उस दिन और रात भर मलाजपुर स्थित बंधारा नदी में कड़ाके की ठंड में नहा कर आने के बाद  रामकली जैसी कई महिलाए, पुरूष , युवक , युवतियाँ , बच्चे और बुढ़े व्यक्ति गुरू साहेब बाबा की समाधी के चारो ओर एक दुसरे के पीछे रेल गाड़ी के डिब्बो की तरह चक्कर काटते बाबा से रहम की भीख मांगते चले जा रहे थे. किसी फिल्मी के दृश्य की तरह दिखने वाले उस सीन को देखने के बाद आँखे स्थिर हो जाती थी. पूरी दुनिया में इस तरह का विचित्र भूतो का मेला कही भी नहीं लगता है. मलाजपुर के इस बाबा के समाधी स्थल के आसपास के पेड़ो की झूकी पड़ी डालियो पर उल्टे लटके भूत – प्रेत विक्रम और बेताल की याद ताजा करते महसुस हो रहे थे. ऐसी आम धारणा है कि जिस भी प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति को छोडऩे के बाद उसके शरी में समाहित प्रेत  बाबा की समाधी के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के किसी भी पेड़ पर उल्टा लटक जाता है. प्रतिवर्ष मकर संक्राति के बाद आने वाली पूर्णिमा को लगने वाले इस अजीबो – गरीब भूतो के मेले में आने वाले सैलानियो में देश – विदेश के लोगो की संख्या काफी मात्रा में होती है. मेले के दिन और रात में ”भूत राजा बहार आ जा ………..!   वाली स्टाईल में भूत अपने आप भगने लगते है . इसे देखने वाले के लिए यह किसी हिन्दी रामसे ब्रदर्स की डरावनी भूतो पर आधारित फिल्म या फिर जी हारर शो के धारावाहिक के दृश्य से कम वीभत्स नही रहता. खुली नंगी आँखोंं के सामने दुनियाँ भर से आये लोगो की मौजुदगी मेें हर साल होने वाले इस शो में लोग डरे – सहमेे वहाँ पर होने वाले हर पल का आनंद उठाते है. गुरू साहेब बाबा की समाधी पर लगने वाले वाले विश्व एक मात्र भूतो के मेले में पूर्णिमा की रात का महत्व काफी होता है. हालाकि मेला एक माह तक चलता है. ग्राम पंचायत मलाजपुर इस मेले का आयोजन करती है . अपने देश या विदेश में तो लोग भूतो को लेकर अविश्वास व्यक्त करते है ऐसे लोगो और उनसे जुड़े संगठनो को एक बार मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में स्थित ग्राम मलाजपुर के इस विचित्र मेले में आकर सब कुछ देखना चाहिये कि क्या वास्तव में इस वैज्ञानिक युग में भूतो का भी कोई अस्तिव है भी या नही? वैसे आजादी के पहले कई अंग्रेज यहाँ पर आकर बाबा के चमत्कार को जान चुके है तथा उन्होने भी अपनी पुस्तको एवं उपन्यासों तथा स्मरणो में इस भूतो के मेले का जिक्र किया है. इन विदेशी लेखको की किस्से कहानियो के चलते ही हर वर्ष कोई ना कोई विदेशी बैतूल जिले मे स्थित मलाजपुर के गुरू साहेब बाबा के मेले में आता रहता है.
सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में मध्यप्रदेश के दक्षिण में बसे गोंडवाना क्षेत्र के अति महत्वपूर्ण जिलो में से एक बैतूल विभिन्न संस्कृतियों एवं भिन्न-भिन्न परंपराओं, को मानने वाली जातियो – जनजातियों  सहित अनेकों धर्मो व संस्कृतियों के मानने वाले लोगो से भर पुरा है. इस क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ीयों से निवास करते चले आ रहे इन्ही लोगो की आस्था एंव अटुट विश्वास का केन्द्र कहा जाने वाला गुरू साहेब बाबा का यह समाधी स्थल पर आने – वाले लोगो की बताए किस्से कहानियाँ लोगो को बरबस इस स्थान पर खीच लाती है. क्षेत्र की जनजातियो एवं अन्य जाति, धर्म व समुदायों के बीच आपसी सदभाव के बीच इन लोगो के बीच चले आ रहे भूत-प्रेत, जादू-टोना, टोटका एवं झाड़-फूंक का विश्वास यहाँ के लोगो के बीच सदियो से प्रचलित मान्यताओं के कारण अमीट है. देवी – देवता – बाबा के प्रति यहाँ के लोगो की अटूट आस्था आज भी देखने को मिलती है . विशेषकर आदिवासी अंचल की गोंड, भील एवं कोरकू जनजातियों में जिसमें पीढ़ी – पीढ़ी से मौजूद टोटका, झाड़ फूंक एवं भूतप्रेत-चुड़ैल सहित अनेक ऐसे रीति -रिवाज निवारण प्रक्रिया आज भी पाई जाती है . आज के इस वैज्ञानिक युग में जब आदमी के कदम चन्द्रमा तक पहँुच रहे है तब का विज्ञान भले ही चाहे लोगो को कितना ही विश्वास दिलाने का प्रयास करे पर लोग इन सब बातो के प्रति अपनी अटूट श्रद्घा को दर किनार करने को हरगिज तैयार नहीं होगें . आज के चांद तक पहँुचने वाले वैज्ञानिक युग में भूत प्रेत व आत्माये भले न होती होगी पर गांव में आज भी भूत राजा का राज है . भूत प्रेत आदि मानव शरीर की अतृप्त आत्मायें होती है जो अपने पूर्व कर्मो का कर्ज नहीं चुका पाती तब तक भूलोक व पितृलोक के बीच भटकती रहती है . इन विक्षप्त अतृप्त भटकती अणगिणत आत्माओं की मानव शरीर प्राप्त करने की अभिलाषा ही अनेक प्रकार की घटनाओं को जन्म देती है. अकसर देखने को मिलता है कि कमजोर दिल वाले व्यक्तियों के शरीर के अंदर प्रवेशित होकर व्यक्ति को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीकों से मानसिक स्थिति असंतुलित करके कष्टï पहुंचाती है . इन्हीं परेशानियों व भूतप्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाले स्थानों में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के ग्राम मलाजपुर में स्थित गुरूसाहब बाबा का समाधि स्थल अब पूरी दुनिया में जाना- पहचाना जाने लगा है . अभी तक यहाँ पर केवल भारत के विभिन्नय गांवो में बसने वाले भारतीयो को जमावड़ा होता था लेकिन अब तो विदेशो से भी विदेशी सैलानी वीडियो कैमरो के साथ -साथ अन्य फिल्मी छायाकंन के लिए अपनी टीम के साथ पहँुचने लगे है . मलाजपुर के गुरूसाहेब बाबा के पौराणिक इतिहास के बारे में अनेक कथाए प्रचलित है. जनश्रुत्री है कि बैतूल जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर दूर विकासखंड चिचोली जो कि क्षेत्र में पायी जाने वाली वन उपजों के व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रख्यात हैं . इसी चिचोली विकासखंड से 8 किलोमीटर दूर से ग्राम मलाजपुर जहां स्थित हैं श्रद्घा और आस्थाओं का सर्वजातिमान्य श्री गुरू साहेब बाबा का समाधि स्थल .
उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस स्थल का पौराणिक इतिहास यह है कि विक्रम संवत 1700 के पश्चात आज से लगभग 348 वर्ष पूर्व ईसवी सन 1644 के समकालीन समय में गुरू साहब बाबा के पूर्वज मलाजपुर के पास स्थित ग्राम कटकुही में आकर बसे थे . बाबा के वंशज महाराणा प्रताप के शासनकाल में राजस्थान के आदमपुर नगर के निवासी थे . अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य छिड़े घमसान युद्घ के परिणामस्वरूप भटकते हुये बाबा के वंशज बैतूल जिले के इसरूरस्थ क्षेत्र में आकर बस गए . बाबा के परिवार के मुखिया का नाम रायसिंह तथा पत्नि का नाम चंद्रकुंवर बाई था जो बंजारा जाति के कुशवाहा वंश के थे . इनके चार पुत्र क्रमश: मोतीसिंह, दमनसिंह, देवजी (गुरूसाहब) और हरिदास थे . श्री देवजी संत (गुरू साहब बाबा) का जन्म विक्रम संवत 1727 फाल्गुन सुदी पूर्णिमा को कटकुही ग्राम में हुआ था . बाबा का बाल्यकाल से ही रहन सहन खाने पीने का ढंग अजीबो – गरीब था . बाल्यकाल से ही भगवान भक्ति में लीन श्री गुरू साहेब बाबा ने मध्यप्रदेश के हरदा जिले के अंतर्गत ग्राम खिड़किया के संत जयंता बाबा से गुरूमंत्र की दीक्षा ग्रहण कर वे तीर्थाटन करते हुये अमृतसर में अपने ईष्टïदेव की पूजा आराधना में कुछ दिनों तक रहें इस स्थान पर गुरू साहेब बाबा को ‘देवला बाबाÓ के नाम से लोग जानते पहचानते हैँ तथा आज भी वहाँ पर उनकी याद में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है . इस मेले में लाखों भूत – पेत बाधा से ग्रसित व्यक्तियो को भूत – प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है. गुरू साहेब बाबा उक्त स्थानों से चंद दिनों के लिये भगवान विश्वनाथ की पुण्य नगरी काशी प्रवास पर गये, जहां गायघाट के समीप निर्मित दरभंगा नरेश की कोठी के पास बाबा के मंदिर स्थित है .
बाबा के चमत्कारों व आशीर्वाद से लाभान्वित श्रद्घालु भक्तों व भूतप्रेतों बाधा निवारण प्रक्रिया के प्रति आस्था रखने वाले महाराष्ट भक्तों द्वारा शिवाजी पार्क पूना में बाबा का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया .श्री गुरू साहब बाबा की समाधि स्थल पर देखरेख हेतु पारिवारिक परंपरा के अनुरूप बाबा के उतराधिकारी के रूप में उनके ज्येष्ठï भ्राता महंत गप्पादास गुरू गादी के महंत हुये . तत्पश्चात यह भार उनके सुपुत्र परमसुख ने संभाला उनके पश्चात क्रमश: सूरतसिंह, नीलकंठ महंत हुये इनकी समाधि भी यही पर निर्मित है . वर्तमान में महंत चंद्रसिंह गुरू गादी पर महंत के रूप में सन 1967 से विराजित हुये . यहां पर विशेष उल्लेखनीय यह है कि वर्तमान महंत को छोड़कर शेष पूर्व में  सभी बाबा के उत्तराधिकारियों ने बाबा का अनुसरण करते हुये जीवित समाधियां ली . भूत – प्रेत बाधा निवारण के लिये गुरूसाहब बाबा के मंदिर भारत भर में विशेष रूप से प्रसिद्घ है . इस घोर कलयुग में जब विज्ञान लोगो की धार्मिक आस्था पर हावी है उस समय में यह सत्य है कि भूत प्रेत बाधा और अनुभूति को झुठलाया नहीं जा सकता है . भूत – प्रेतों के बारे में पढ़ा लिखा तथाकथित शिक्षित तबका भले ही कुछ विशिष्टï परिस्थितियों से प्रभावित होकर इन सब पर अश्विास व्यक्त करे लेकिन बाबा की समाधी के चक्कर लगाते ही इस भूत- प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति स्वंय ही बकने लगता है कि वह क्या है ? तथा क्या चाहता है ?  बाबा की समाधी के पूरे चक्कर लगाने के पहले ही बाबा कें हाथ – पैर जोड़ कर मिन्नत मांगने वाला व्यक्ति का सर पटकर कर माफी मांगने के लिए  पेट के बल पर लोटने का सिलसिला तब तक चलता है जब तब की उसके शरीर से वह तथाकथित  ‘भूत  याने कि अदृश्य आत्मा निकल नहीं जाती . एक प्रकार से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि ‘भूत – ‘प्रेत से आशय छोटे बच्चो या विकलांग बच्चों की आत्मा होती है. ‘पिशाच अधिकांशत: पागल, दुराचारी या हिसंक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति या अत्यधिक क्रोधी व्यक्ति का भूत होता है. स्त्री की अतृप्त आत्माओं में चुड़ैल, दुखी, विधवा, निसंतान स्त्री अथवा उस महिला भूत होता है जिसके जीवन की अधिकांश इच्छायें या कामनायें पूर्ण नहीं हो पायी हो . ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले गुरूसाहब बाबा की समाधि के समीप से बहती बंधारा नदी पर स्नान करवाने के बाद पीडि़त व्यक्ति को गुरूसाहब बाबा की समाधि पर लाया जाता है . जहां अंकित गुरू साहब बाबा के श्री चरणों पर नमन करते ही पीडि़त व्यक्ति झूमने लगता है . उसकी सांसो में अचानक तेजी आ जाती है आंखे एक निश्चित दिशा की ओर स्थिर हो जाती है और उसके हाथ पैर ऐंठने लगते है. उस व्यक्ति में इतनी अधिक शक्ति आ जाती है कि आस-पास या साथ में लेकर आये व्यक्तियों को उसे संभालना पड़ता है . बाबा की पूजा अर्चना की प्रक्रिया शुरू होते ही प्रेत बाधा पीडि़त व्यक्ति के मुंह से अपने आप में परिचय देती है . पीडि़त व्यक्ति को छोड़ देने की प्रतिज्ञा करती है . इस अवस्था में पीडि़त आत्मा विभूषित हो जाती है और बाबा के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम कर क्षमा याचना मांगता है . एक बात तो यहाँ पर दावे के साथ कही जा सकती है कि प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति यहां आता है तो वह निश्चित ही यहां से प्रेत बाधा से मुक्त होकर ही जाता है . धार्मिक आस्था के केन्द्र मलाजपुर में श्रद्घालुओं की उमड़ती भीड़ में बाबा की महिमा और चमत्कार के चलते ही पौष पूर्णिमा से एक माह तक यहाँ पर लगने वाला मेला बाबा के प्रति लोगो के विश्वास को प्रदर्शित करता है .
यहां पर सबसे बड़ा जीवित चमत्कार यह है कि यहाँ पर अपनी अभिलाषा पूरी होने पर भक्तो द्वारा स्वयं के वजन भर गुड़ की चढ़ौती तुलादान कर बाबा के चरणों में अर्पित कर गरीबों में प्रसाद बांट दिया जाता है . बाबा के श्री चरणो में चढ़ौती किया गया गुड़ को एक गोदाम में रखा गया है . सबसेे आश्चर्य जनक बात यह है कि यहाँं पर हजारों टन गुड होने के बाद भी मख्खी के दर्शन तक नहीं है. यहाँ पर गुड पर मख्खी होने की कहावत भी झूठी साबित होती है . बाबा के इस मेले में सभी जाति व धर्म के लोग आते है जो बाबा के श्री चरणों में शीश नवाते है .  दुनियाँ भर से अनेक लोग मध्यप्रदेश के आदीवासी बैतूल जिले के मलजापुर स्थित ग्राम में बरसो पहले पंजाब प्रांत के गुरूदास पुर जिले से आयें बाबा गुरू साहेब समाधी पर लगने वाले दुनियाँ के एकलौते  भूतो के मेले  में आते है. नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले के इसाई मिशनरी द्घारा विश्व प्रसिद्घ पाढऱ चिकित्सालय मार्ग से दस किलोमीटर दूर पर स्थित आठंवा मिल से मलाजपुर के लिए एक सड़क जाती है. मलाजपुर जाने के लिए बैतूल हरदा मार्ग पर स्थित ग्राम पंचायत  चिचोली से भी एक सड़क जाती है. इस वर्ष भी पौष माह की आने वाली पूर्णिमा की रात को भारत के विभिन्न प्रांतो से प्रेतबाधा से पीडि़त लोग बाबा गुरू साहेब की समाधी पर आना शुरू हो गयें है. पिछले वर्ष जर्मनी की मीडिया टीम इस विश्व प्रसिद्घ गुरू साहेब बाबा के भूत मेले की रात भर के उस डरा देने वाले मंजर का छायाकंन एवं चित्राकंन करके जा चुकी है . महाराणा प्रताप के वंशज रहे बाबा के परिजन मुगलो के आक्रमण के शिकार हुये बाबा अपनेे छोटे भाई हरदास तथा बहन कसिया बाई के साथ आये थे. चिचोली में बाबा हरदास की तथा मलाजपुर में गुरू साहेब बाबा तथा उनकी बहन कसिया बाई की समाधी है . बाबा के भक्तो मेंंं अधिकांश यादव समाज के लोग है जो कि आसपास केे गांवों में सदियों से रहते चले आ रहे है. सबसेेे बड़ी विचित्रता यह है कि बाबा के भक्तो का अग्रि संस्कार नही होता है. बाबा के एक अनुयायी के अनुसार आज भी बाबा के समाधी वाले इस गांव मलाजपुर में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसके शव को जलाया नही जाता है चाहे वह किसी भी जाती या धर्म का क्यो ना हो. इस गांव के सभी मरने वालो को उन्ही के खेत या अन्य स्थान पर समाधी दी जाती है. बैतूूूल जिले के चिचोली जनपद की मलाजपुर ग्राम पंंंचायत में सदियो से हजारों की संख्या मेें बाबा के अनुुुयायी अनेक प्रकार की मन्नत मांगने साल भर आते है .

इति

पारस पत्थर की खोज मे …….!
कहानी  :-  रामकिशोर पंवार
मैं और कुन्जू बचपन के सहपाठी कम संग साथी ज्यादा थे . हम दोनो एक  दुसरे के बिना रहते नहीं थे . साथ खेलने से लेकर पढऩे तक आना – जाना करने से हमारी जुगल जोड़ी को देख कर गांव का हर कोई हमे एक सिक्के के दो पहलू कह कर भी चिढ़ाया करते थे . वैसे देखा जाये तो मेरा एक प्रकार सें गांव का पूरा बचपन कुन्जू के साथ ही बीता . मैं जब अपने गांव को छोड़ कर जैसे शहर आया हम दोनो दोस्त एक दुसरे से ऐसे बिछड़े की सालो – साल बीत जाने के बाद एक दुसरे से नहीं मिल पाये. मुझे याद है कुन्जू के दादा जी जिसे पूरा गांव  ”लोहार बाबा   कहा करता था वह रोज शाम होते ही कोई  न कोई किस्सा कहानी सुनाया करते थे . गांव में  अपने घर के सामने ”लोहार बाबा   आँगन में खाट पर या फिर टाट पर बैठ जाते थे .  ”लोहार बाबा को घेरे आसपास के घरो के बच्चो का झुण्ड उनकी किस्से कहानी तक सुनते थे जब तक की उन्हे नींद नहीं आने लगे . गांवो में पाँच – छै साल की उम्र में अकसर बच्चे अपने दादा – दादी के पास किस्से कहानी सुनने के बहाने उन्हे घेरे रहते थे . नींद आने से पहले कहानी सुनते – सुनते सो जाना बचपन की एक आदत थी जो अब बच्चो में कहाँ रही . …..?  मुझे अच्छी तरह से याद है कि ”लोहार बाबा   जो कहानी बताया करते थे वह उनके परिवार से जुड़ी थी क्योकि कुन्जु के पुरखो ने ही खेड़ला के महाराजा जैतपाल लगान न चुकाने के बदले में उनके पास जितना लोहा था वह सब दे दिया था जिसे राजा जैतपाल ने पारस पत्थर से छुआँ कर उसे सोना बना दिया था . राजा जैतपाल के पास पारस पत्थर होने की जानकारी राज घराने तक को नहीं थी . राजा ने ही कुन्जू के पुरखो उनके राज्य की सीमा से निकाल बाहर किया था क्योकि उन्हे आशंका थी कि कहीं ए लोग पारस पत्थर होने का भेद न खोल दे .
उस जमाने में जब राजा जैतपाल के राज्य में आज का बैतूल बीते कल का बदनुर नामक कस्बा था जो कि खेड़ला के पास एक छोटी सी बस्ती के रूप बसा था . राज्य मेें रोंढ़ा नामक गांव में सबसे बड़ा बाजार लगता था . लोग दूर – दूर से दो दिन पहले ही बाजार करने आ जाया करते थे . जब कुछ महिने पहले कुन्जू ने यह बात बीरजू को बताई तो वह आश्चर्य चकित रह गया उसने कुन्जू से कहा कि ” भैया , आप भी क्या फालतू की बातें करते रहते हैं……………….! ” पूरी दुनिया में ऐसा कोई पत्थर है नहीं जिसके छुने से लोहा सोना बन जाये ……..!  और न कोई धन गढ़ा हुआ है ……. अगर धन गड़ा हुआ होता तो वह आज तक किसी को कहीं तो मिलता है…….?   जब खेड़ला के किले में गड़ा हुये धन की बात जब बीरजू ने गांव के कोटवार नौखेलाल को बताई तो वह हंस पड़ा . दुर्गेश के पिता बीरजू आसपास के जाने – माने भगत थे . नौखेलाल को हंसता देख पास खड़ा रामदीन बोला ” नौखे भैया अभी तूने कुछ देखा नही है इसलिए तू बीरजू भैया की कहीं बातो को हंसी में उड़ा रहा है. अगर तुझमे दम है तो आज हमारे साथ चल ………………….!, मैं तुझे बताता हँू कि कहाँ कौन सा खजाना छुपा है…………… ?  अब रामदीन की बात सुन कर नौखे को मिर्ची लग गई वह तांव खाकर बोला रामदीन से बोला ”चलो जो होगा देखा जायेगा ………….?   यह कह कर आज शाम को ही नौखे , रामदीन , बीरजू  , बाबूलाल तथा गोपाल बंगाली के साथ खेड़ला की ओर निकल पड़े . उनके साथ नौखे का साला मोहन ने यह सोच कर निकल पड़ा कि चलो आज मैं भी जीजा कि साथ चल कर तो यह देखू ए लोग कैसे गड़ा धन खोदते है………? उसने भी बीरजू भगत और नौखे के साथ खेड़ला किला जाने के लिए निकल पड़ा.
सतपुड़ा के पठार पर स्थित भारत के दक्षिण जिलो में एक बैतूल को बदनूर के नाम से भी जाना जाता है जो कि कालान्तर से लेकर आज तक उत्तर में नर्मदा घाटी तथा दक्षिण बरार के मैदानो के बीच स्थित है . विवेक सिंधु  के अनुसार ईसवी शताब्दी 997 में खेड़ला के राजा इल की राजधानी एलिजपुर भी थी . खेड़ला राजवंश का अंतिम राजा जैतपाल हुआ जिसके पास पारस पत्थर था . जैतपाल काफी सनकी टाइप का था . उसने अपने राज्य के सभी साधु , संतो , मौलवीयो , बाबाओं , सन्यासियो एवं फकीरो को आदेश देख रखा था कि वे जिसे भी मानते है उसका चमत्कार दिखाये ऐसा न करने पर वह उन्हे अपनी काल कोठरी में डाल देता था . उसकी काल कोठरी में लगभग तीन सौ की संख्या में साधु , संत , फकीर बंदी बनाये गये जिसे वह काफी यातना देकर प्रताडि़त किया करता था . इस दौरान उसकी भेट बनारस से आये मुकंदराज स्वामी हुई . मुकंदराज स्वामी ने सशर्त चमत्कार दिखाने की बात कहीं . मुकंद राज स्वामी की यह शर्त थी कि अगर वह चमत्कार दिखाने में सफल होगा तो उसकी काल कोठरी में बंदी सभी साधु – संतो को उसे छोडऩा होगा . राजा जैतपाल इस शर्त पर तैयार हो गया . मुकुंद राज स्वामी के स्पर्श मात्र से गैची , फावड़ा , कुल्हाड़ी , सब्ब्ल अपने आप चलने लगी . राजा जैतपाल इस चमत्कार देख कर चारो खाने चित हो गया और उसने  मुकंदराज स्वामी को अपने दरबार में सर्वोच्च स्थान दिया .  मुकंदराज स्वामी ने ही इस दौरान विवेक सिन्धु नामक गंथ की रचना की जिसके अनुसार ईसवी 1433 के बाद खेड़ला राजवंश के मालवा से जुड़ जाने की व$जह सें इसका प्रथम गोंड़ राजा नरसिंह राय एक अति महत्वाकांक्षी हिन्दु राजा होने के साथ – साथ उसने अपने राज्य में अपनी भक्ति भावना आस्था तथा क्रूरता के भी कई उदहरण प्रस्तुत किये . खेड़ला के राजा जैतपाल के बारे मेें यह भी जनश्ऱुति है कि वह राजपूत पिता तथा गोंड़ माता की संतान था . चण्डी उसकी ही माँ थी उसनें ही रहमान शाह दुल्हा का सिर उमरी में अपनी तलवार से उसके धड़ से अलग करके अपनी माँ को उसके समाधी स्थल जो कि चिचोली के पास चण्डी दरबार कहलाता है वहाँ पर ले जाकर उसे भेट किया था . जनश्रुति के अनुसार मुकंदराज स्वामी की मृत्यु के पश्चात दिल्ली के मुसलमान शासक के सेनापति रहमान शाह दुल्हा ने एक मुस्लीम फकीर की मौत का बदला लेने के लिए लगभग 12 वर्षो तक खेड़ला के किले को घेर को रखा इन बारह वर्षो के बाद हालकि राजपूत शासक की पराजय हुई लेकिन मुस्लीम सेनापति रहमान शाह दुल्हा को मौत भी हो गई कहा तो यह तक जाता है कि बिना सिर के रहमान शाह दुल्हा और जैतपाल एलिजपुर तक लड़ते गए लेकिन सुबह शौच के लिए जाने वालें महिला के द्वारा टोक देने पर वह वही पर ढेर हो गया आज भी एलिजपुर जो कि अचलपुर कहलाता है में रहमान शाह दुल्हा और जैतपाल की समाधी बनी हुई है . आज भी जिलें का चण्डी दरबार पूरे जिले में आस्था एवं विश्वास तथा श्रद्घा का केन्द्र है . बाबूलाल ने भी दस साल तक इसी चण्डी दरबार में रह कर तंत्र – मंत्र या जादु – टोना सीखा था . बाबूलाल इनके साथ आने के पहले अपने घर से चण्डी दरबार का नीबू और काला धागा साथ ले गया था . चलते – चलते उसने बिना किसी को बताये अपनी जेब में उस काली चुडैल को भी रख लिया था क्योकि वह जानता था कि राजा जैतपाल हो या इल इनका किला खेड़ला जरूर यंत्र – मंत्र – तंत्र से बंधा होगा .
असंख्य लोग खेड़ला के खजाने और पारस पत्थर की तलाश में यहाँ तक आने के बाद जो अनुभव अपने साथ लेकर गए है उन्हे सुनने के बाद कोई भी व्यक्ति यहाँ पर आने की हिम्मत नहीं करता लेकिन लालच के चलते आज भी कई लोग यहाँ पर आते हैं, कई बार तो लोग उस खजाने तक पहुंच भी जाते हैं. लेकिन आज तक उस खजाने से कोई चवन्नी लेकर जीवित वापस  नहीं लौट सका है . बाबूलाल ने यह बात नौखे को बता दी थी लेकिन वह कहाँ मानने वाला . उसे अपने साथी गोपाल बंगाली पर पूरा भरोसा था क्योकि वह भी काफी बड़ा जानकार था . लोग पता नहीं क्यो इस सच्चाई को जानने के बाद भी खजाने और पारस पत्थर को पाने की लालसा में अभी भी यहाँ तक आने के बाद हाथ – पैर तुड़वा कर चले जाते हैं . आज कार्तिक-पूर्णिमा की रात थी ऐसे में रोंढ़ा गांव से एक ऐसी ही मित्र मंडली, जिसमें आठ-दस लोग शामिल थे वे खेड़ला की पहाड़ी पर चढ़े चले जा रहे थे. दल का मुखिया बाबूलाल यूं तो एक पैर से अपाहिज था, पर वह चलने और भागने में चीते जैसा फुर्तीला था . वह पहाड़ों पर ऐसे चलता था कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबा लिया करते थे. इस वक्त भी वह सबसे आगे चल रहा था. उसके पीछे था उसका खास आदमी रामदीन, बीरजू, नौखे के अलावा , फिर उसके पीछे थे बबलू व जवाहर. कुल मिलाकर आठ – नौ उस टोली में शामिल थे नौखे ने अपने साथ चोपना बंगाली कैम्प के गोपाल बंगाली को भी अपने साथ इसलिए लाया था . क्योकि गोपाल बंगाली कई बार अपनी तंत्र-मंत्र के द्वारा जहाँ- तहाँ छुपे हुए गड़े धन को खोज निकाला था. जब उसे खेड़ला के किले में मौजूद खजाने के रहस्य के बारे में पता चला तो वह उसे पाने के लिए आज रात में इस टोली में शामिल हो गया जो कि खेड़ला आ पहँुची थी. बाबूलाल खजाने की खोज में कई बार खेड़ला जैसे किलो में अमावस्या और पूर्णिमा की रातो को आ चुका है लेकिन वह हर बार खाली हाथ ही लौटता है वह भी जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर उल्टे पांव ………….! जब भी वह खाली हाथ लौटता है तो वह कसमें खाता है कि अबकी बार चाहे जाने चली जाए पर खाली हाथ वापस नही लौटूगंा लेकिन हर बार की तरह वही होता जो वह नही चाहता है .
‘आज का मुहूर्त अच्छा है…….. ! खेड़ला की पहाड़ी पर चढ़ता हुआ बीरजू भगत अपने साथी मंगल सिंह से बोला…….. ! ‘ मंगल आज रात को देखना हमें इस बार पहले की तरह कुछ ज्यादा गडढा नहीं खोदना पड़ेगा………….!  बस बीस-बाईस फीट की खुदाई के बाद ही हमें छप्पर फाड़ कर खजाना मिल जाएगा……………!  . ‘मंगल बीरजू की बात पर खुशी से उछल कर बोला ‘ बीरजू भैया तुम्हारे मुंह में घी-शक्कर……………..!  मंगल और बीरजू की बातो को अनसुनी करते हुए रामदीन ने बीरजू भगत से कहा ,’ भैया हम तो तो कई बार इस तरह के प्रयास कर करके थक चुके है. देखते हैं, इस बार तुम्हारी वजह से किले में क्या गुल खिलता है……………… ?  अपने संगी साथियो की बातो को सुन रहा मनोहर उस बार की घटना को आज तक नहीं भूल पाया था. उसे जब भी वह घटना याद आती तो उसका पूरा बदन सिहर उठता है. मनोहर ने अजीब सा मुँह बना कर बीरजू भगत से कहा ‘ काका पिछली बार तो हमारे साथ गये एक भगत ने हमसे उस रात खजाना अब निकलेगा – तब निकलेगा  कह कर रात भर में जबरन तीस फिट का गहरा गड्ïढा खुदवा लिया …………….!   और उस रात न तो हमे ‘खजाना मिला और न कुछ ……. , उल्टे और बबलू वगैर की जान के लाले पड़ गये थे……………..!  वह तो भगवान की खैर मानो की उस रात हमारे साथ कुछ उल्टा नहीं हुआ वरणा बबलू का बाप हमारी जान ले लेता…………! मनोहर की बातो को सुन कर गोपाल बंगाली से रहा नहीं गया उसने आखिर मनोहर सें पुछ ही लिया कि उस रात ऐसा क्या हो गया था…………. .! मनोहर बोाला  उस रात हुआ यूं कि उस रात तीस फिट गहरा गड्ïढा खोदने के बाद हमने खजाने की खोज में बबलू को उस गड्ïढे में नीचे उतारा ही था कि वह उसमें धंसने लगा. तब गहरे गडडे में स्वंय को धंसता देख बबलू जोर – जोर से चीखते हुए चिल्लायाने लगा , ‘मुझे बाहर खींचो, मैं धंसा जा रहा हंू…………………….! ‘ओह…. ‘तब चार-पांच लोगों ने बबलू को उस गडडे में से बाहर खींच  निकाला …………!  बाबूलाल ने गोपाल बंगाली को आगे बताया, ‘भैया अगर हम उस रात बबलू को बाहर खीचने में जरा-सी भी देर कर देते तो खजाने के चक्कर में बबलू  की उस रात बलि चढ़ गयी होती. ‘मुझे तो बाद में पता था कि जिस जगह पर हमने गडड् खोदा था उसके नीचे से काफी गहरी और लम्बी सुरंग निकली हुई है……………!, मनोहर बोला कि गोपाल काका , ‘मैने उस रात उस भगत को यह बात बताई भी थी पर उसने मेरी एक न सुनी और हमसे जबरन तीस फिट गहरा गड्ïढा खुदवाकर समस्या पैदा कर दी थी……………..!  ‘लेकिन आज की रात तुम लोगों के सामने कोई भी समस्या नहीं आयेगी ‘गोपाल बंगाली पूरे आत्मविश्वास के साथ मंडली के लोगों से बोला, क्योंकि, आज तुम्हारे साथ कोई साधारण भगत नहीं, बल्कि मैं चल रहा हंू. यूं तो पूर्णिमा की रात होने के कारण पहाड़ी पर चांद की दूधिया रोशनी चारों ओर फैल रही थी, फिर भी सुरक्षा की दृष्टिï से हर किसी के हाथ में एक टार्च थी लोग खेड़ला की पहाँडियो पर चले जा रहे थे.
कई बार मुगलो शासको के आक्रमण के बाद भी खेड़ला राजवंश का यह किला अपनी जगह से टस से मस नहीं हो सका . आज इस किले को पुरात्व विभाग की उपेक्षा एवं गड़े हुए धन की लालसा ने खण्डहर का रूप दे दिया है. विश्व के जाने- माने इतिहासकार टोलमी के अनुसार आज बैतूल बीते कल के अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दु था. इस बैतूल में ईसा पश्चात 13० से 161 कोण्डाली नामक राजा का कब्जा था जो कि गौंड़ जाति से  अपने आप संबधित मानता था. इस अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दु कहा जाने वाला जिला बैतूल यँू तो गोंड राजा- महाराजाओं की कई सदियो तक से रियासत के अधिन रहा है. मुगलो के आक्रमण के पश्चात ही 35 परगनो वाले  खेरला राजवंश के किले को मुगलो ने अपने अनिश्चीत हमलो के बाद हुए समझौते के तहत उसे खेडला से मेहमुदाबाद नाम दिया गया . बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग दस कि.मी. की दूर पर स्थित ऐतिहासिक महत्व की धरोहर कहलाने वाला खेड़ला किला आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मौजूद है . खण्डहर में तब्दील हो चुके इस किले की दीवारों के बेजान पत्थर आज भी अपने साथ किले में छुपे खजाने को हासिल करने की नीयत से हुए बर्बरता पूर्वक व्यवहार और दुराचार को चीख-चीखकर सुनाते है . गुजरे इतिहास की गाथा को ताजा करते खेड़ला के किलो के इन पत्थरो को जब भी यहाँ पर आने- जाने वालो ने एक पल के लिए छुने का प्रयास किया तो उसका स्पर्श मात्र ही आने- जाने वाले को एक पल के लिए स्तब्ध कर देता है.
बाबूलाल जो कि इस मंडली का मुखिया था,वह पास के रानीपुर गांव का रहने वाला था. उसकी आसपास के गांवो में भरने वाले साप्ताहिक बाजार में परचून की दुकान लगती है. अकसर उसकी परचून की दुकान पर आने – वाले ग्राहको में ऐसे लोगो की संख्या ज्यादा होती है जो कि गड़े हुए मुर्दे उखाडऩे में माहिर होते है. बाबूलाल के सलाहकारो एवं जानकारो में आसपास के गांव के वे आदिवासी हुआ करते थे, जो तंत्र-मंत्र वगैरह जानते है. बाबूलाल का अधिकांश समय इन लोगों के पास बैठकर, गड़ा हुआ धन खोजने व उसे निकालने की तरकीब में ही बीता करता था. इस बात को उसके साथ वाले व रिश्तेदार भी जानते थे. बबलू व उसकी अच्छी पटती थी. गड़े धन के चक्कर में अक्सर दोनों कई बार रात-रात भर गायब रहा करते थे . एक दिन बबलू के पिता रघुनंदन ने एक दिन समझाइश देते हुये बाबूलाल से कहा भी था, ‘अरे बाबूलाल, ये तुम लोग रात-रात भर कहां रहते हो…….? तुम लोग खजाना पाने का चक्कर छोड़ कर मेहनत मजदुरी करो……  ‘भैया, आप भी क्या फालतू की बातें करते हैं. बाबूलाल ने बबलू के पिता से कहा . बाबूलाल बोला  ” अपनी झोपड़ी में चार आदमी के सोने की तो जगह है नहीं, इसलिए हम चाचा-भतीजा उधर माता मंदिर के पास बने चबूतरे पर सोते हैं, और कहीं नहीं जाते हैं ……….. तुम्हें यकीन नहीं है हमारी बात का तो तुम कभी भी माता मंदिर पर आकर देख सकते हो………………!   आज भी बाबूलाल रघुनंदन से यही झूठ बोल कर बबलू को अपने साथ इस अभियान में लाया था. जब से बबलू ने पढ़ाई – लिखाई बंद करके वह दुकानदारी करने लगा था वह भी बाबूलाल की तरह हाट बाजार में अपनी दुकान लगाता था . खजाने की चाह उसे भी थी. इसीलिये बाबूलाल के हर बार के खजाना खोजो अभियान में वह उसके साथ रहता था . बबलू को पिछली बार की घटना अच्छी तरह याद है क्योकि उसके पीछे चले आ रहे मनोहर को पहाड़ी पर चढ़ते समय काली नागिन ने डस लिया था . वह तो अच्छा था कि उस वक्त साथ में डोमा था . उसने हिम्मत नहीं हारी . वह सांप का जहर उतारना जानता था . उसने अपनी मंत्र साधना के बल पर उस काली नागिन को बुलाया और उसे मनोहर का जहर चूसने के लिए मजबूर किया . इस तरह उस बार मनोहर चाचा की जान बच पाई थी.
इधर इस टीम में शामिल जवाहर मामू को किसी ने बता दिया था कि अगर वह खजाने की खोज में यदि चार बार बच गया तो उसे पांचवी बार वह खजाना मिल जायेगा . आज जवाहर मामू फूले नहीं समा रहा था क्योकि वह चार बार तो मरते – मरते बचा . वह इस बार इसलिए ही इस बार खजाने की खोज में जा रहा था, इसलिए इस बार उसके मन में विशेष उत्साह था. पहाड़ी पर कुछ देर बाद जब वे सब लोग पहुंच गये तो किले के बाहर खंडहर के पास बबलू ने ठंड दूर करने के उद्देश्य से सूखी लकड़ी व पत्ते जमा कर उसमें आग लगानी चाही तो मनोहर ने उसे रोका, ‘इतनी रात गये पहाड़ी पर आग जलाना ठीक नही होगा. ‘चाचा मैं तो ठंड से कांप रहा हँू, इसलिये मैं तो आग जलाकर ही रहूंगा. बबलू ठंड से कांपता हुआ कह उठा. वह माना नहीं, मना करने पर भी उसने आग जलाकर ही छोड़ी. आग जब जल ही गयी तो मंडली के सभी लोग आग के चारों ओर बैठकर उस पर हाथ तापने लगे.
उसी वक्त एक बूढ़ा न जाने कहां से वहां आ गया. वह कुछ देर तक उन लोगों के पास चुपचाप खड़ा रहा. वह लगातार बाबूलाल को घूरे जा रहा था. काफी देर बाद वह बाबूलाल के नजदीक आकर बोला, ‘क्यों तू हर बार अपनी मौत बुलाने चला आया करता है यहां……..? जाने की खैर मानता है तो भाग जा यहां से…………………!  मैं आज पहली और आखिरी बार कहता हंू कि तू भाग जा अपनी मंडली के साथ यहां से. आज की रात तेरे और मंडली के लिये अच्छी नहीं है………………….! बूढ़े की बात सुनकर हर कोई चौंक पड़ा. बाबूलाल ने इशारे से गोपाल बंगाली से कुछ कहा. इस पर गोपाल बंगाली जोर से एक मंत्र गुनगुनाने लगा. मंत्र का प्रभाव कहिये या नियति का फेर, वह बूढ़ा पल भर में ही वहां से गायब हो गया. उसके गायब होते ही सभी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. गोपाल बंगाली मुस्कुराकर बाबूलाल से बोला ‘हम खजाने के रखवाले पहले शैतान को मारने में सफल हो गये हैं. अब केवल नौ रखवालों की तलाश और करनी है हमें. अब हमें यहां से आगे चल देना चाहिए, किसी भी प्रकार की देर हम सबकी जान जोखिम में डाल सकती है.
यह सुनकर सभी उठ खड़े हुए. हाथ में टार्च लेकर सभी बाबूलाल व बंगाली के पीछे-पीछे चलने लगे. वे किले के अंदर प्रवेश करने ही वाले थे, तभी मंत्रोच्चार करता गोपाल बंगाली अचानक चीख कर गिर पड़ा. बाबूलाल भगत भी खतरे को भांप चुका था उसने अपने साथ आये लोगो से चीखते हुये कहा  ‘संभलो. वे संभल पाते इससे पहले ही किले के अंदर से सिर कटी लाशों का एक – एक करके बाहर की ओर गिरना शुरू हो गया. अचानक हुये  हमले से बाबूलाल व उसकी मित्र मंडली सकपका गई क्योकि उन्हे पता ही नही था की वहाँ पर क्या – क्या हो सकता है. हालाकि बाबूलाल पूर्व से इन सब तमाम घटनाओं से परिचित था क्योकि उसका ऐसी घटनाओं से कई बार पाला पड़ चुका था. बाबूलाल भी थोड़ा तंत्र-मंत्र जादू – टोना क्रिया का जानकार था. उसने भी अपनी तंत्र -मंत्र शक्ति का प्रयोग करके लाशों को गायब करके गोपाल बंगाली को फिर से ठीक  करके उसे उठा लिया . गोपाल बंगाली ने बाबूलाल को प्रशंसा भरी नजरों से आश्चर्य चकित होकर उसकी ओर देखते हुए कहा, ‘बाबूलाल भाऊ तू भी तंत्र-मंत्र जानता है ……? आज अगर तू नहीं होता तो मैं अपने घर नहीं जा पाता ………?  बाबूलाल बोला काका ‘हां थोड़ी बहुत जानकारी तो रखनी ही पड़ती है.
रात काफी हो चुकी थी अब उन सबको किले के अंदर जाने से पहले लोहे के विशाल दरवाजे को खोलना था. सब लोगों ने ताकत लगाकर दरवाजे को धकेला तो वह ‘चर्र-चर्र की आवाज करता हुआ खुल गया. पास पड़े ढोल पर बाबूलाल ने थाप मारी तो किले के अंदर से मानव किलकारी व बच्चों की रोने और चीखने चिल्लाने की आवाजे आना शुरू हो गई . बाबूलाल ने फिर ढोल पर थाप मारी तो गरड़-गरड़ करती जमीन उनके पैरों के नीचे से खिसक गई. अब उन्हें सामने किले के अंदर एक सुरंग दिखाई दी. सुरंग के मुहाने पर दीवार पर कुछ लिखा हुआ था और एक रेखाचित्र बना हुआ था. बाबूलाल व उसके साथ यहां कई बार आ चुके थे . गोपाल बंगाली ने अपनी पोटली खोलकर उसमें से एक पुतले को निकाल कर उसे किले के अंदर फेंका तो जोरदार धमाके के साथ एक जिन्न ने प्रकट होकर सभी को हैरत में डाल दिया.’क्या हुक्म है, मेरे मालिक? जिन्न ने गोपाल बंगाली से पूछा. ‘मैं इस किले के अंदर छिपे करोड़ों के बहुमूल्य खजाने का पता जानना चाहता हंू. गोपाल बंगाली ने जिन्न से कहा. ‘मेरे मालिक, मैं आप लोगों को खजाने तक पहुंचा तो सकता हंू, पर उसे ला नहीं सकता. ‘अच्छा ठीक है, तू हम सब को वहां तक ले चल.पल भर बाद ही वे सब एक ऐसे स्थान पर थे, जिसकी कल्पना से ही बदन में कंपकंपी आ जाती है. उस वक्त वे करोड़ों के अनमोल खजाने को अपनी नंगी आंखों से देख रहे थे. बाबूलाल ने जब उस खजाने को छूना चाहा तो वह आगे खिसक गया. ज्यों-ज्यों कोई भी उस खजाने के पास पहुंचता, खजाना आगे की ओर खिसकता जाता. कई घंटे की मेहनत के बाद भी जब कोई भी उस खजाने को छू न सका तो गोपाल बंगाली ने एक बार फिर पोटली से एक पुतला निकाला और उसे खजाने की ओर फेंक दिया. उसी वक्त एक तेज प्रकाश हुआ, जिससे सभी की आंखें चकाचौंध हो उठीं. उस तेज प्रकाश से एक जिन्न प्रकट हुआ.
‘गुलाम जिन्न, सारा खजाना समेटकर ले चल. गोपाल बंगाली ने उस जिन्न को आदेश दिया.जिन्न ने उसके आदेश का पालन नहीं किया. वह चुपचाप खड़ा रहा. यह देखकर गोपाल बंगाली ने जिन्न से पुन: कहा, ‘गुलाम जिन्न, मेरा कहना मान, वरना मैं तुझे जलाकर राख कर दूंगा.जिन्न फिर भी नहीं हिला तो गोपाल बंगाली ने पोटली खोली और एक नींबू जिन्न की ओर फेंका. लेकिन जिन्न फिर भी किसी पुतले की तरह जमा खड़ा रहा. इससे खीझ कर गोपाल ने पूरी ताकत के साथ जिन्न के ऊपर मंत्रोच्चारण कर एक काले धागे से बंधी हड्डïी फेंकी तो वह चीखकर उससे बोला, ‘मेरे मालिक, मेरी जान फंस गई है. ऐसा लगता है कि कोई मुझसे बड़ी ताकत इस खजाने की रखवाली कर रही है. आप ऐसा करें कि अपने साथियों के साथ यहां से फौरन चले जाएं, वरना आप सबकी जान जा सकती है. आज पूर्णिमा है, उस ताकत को मुझसे बड़ी बलि चाहिए.
जिन्न की बात को अनसुनी कर गोपाल बंगाली उस अदृश्य शक्ति से भिड़ गया. कुछ देर की कोशिशों के बाद ही उसको लगने लगा कि उसके दांव उल्टे पड़ते जा रहे हैं. वह पसीने से तरबतर होकर बाबूलाल से कह उठा, ‘बाबूलाल जल्दी करो, मेरी शक्ति उल्टी होकर मुझ पर ही भारी पड़ रही है. कहीं मैं मर न जाऊं. इतना कहकर गोपाल किसी कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा. इस तरह गोपाल बंगाली ने इस अभियान के बारे में डींगे हांकी थी, वे धरी-की-धरी रह गई. यह देखकर एक बार फिर बाबूलाल ने बांस का वंश लोचन सिद्घ कर, उसे पूरी ताकत के साथ फेकने पर गोपाल की जान में जान आई .बाबूलाल सोचने लगा कि लोग पता नही क्यों बिच्छु का मंत्र मालूम नहीं और सांप के बिल में हाथ डाल बैठते है.
बाबूलाल को पता था कि राजा इल बहँुत बड़ा तंत्र – मंत्र विद्या का जानकार था . उसके किले से खजाना निकाल पाना इतना आसान नहीं है . आज का ग्राम दुधिया के पास स्थित अखंहर में परिवर्तित दुधिया गढ़ का किला किसी जमाने में आदिवासी राजा इल की राजधानी हुआ करती थी. राजा इल और उसकी पत्नि रानी चण्डी अपनी प्रजा को दर्शन देने के लिए दुधिया गढ़ के किले से गोधना के जंगलो में बने राजा – रानी के गुबंदो तक आना – जाना करते थे . गोधना के जंगलो में बने राजा इल और रानी के आराम करने वाले गुबंदो में रानी का गुबंद इस तकनीकी से बना था कि उसमें आवाज गुजंती थी तथा कम सुनाई देने वाले बहरे व्यक्ति को आज भी इस गुबंद में आवाज गुंजती हुई साफ सुनाई देती है. रानी चण्डी को कम सुनाई देता था इसलिए रानी का गुंबद इस तकनीकी पर आधारित बनाया गया था. किसी जमाने में राजा की रानी चण्डी का दरबार लगता था . राजा इल ने अपना सारा खजाना किले की सुरंग से बने तलघर में छुपा रखा था . उस समय दिल्ली की सल्तनत क्रूर मुगल शासक औंरगजेब के हाथों में थी. उस समय जब राजा इल अपनी तय शुदा वार्षिक लगान को मुगल शासक को नहीं चुका पाया तो मुगल शासक औंरगजेब ने राजा इल के किले पर हमला करवाने के लिए सेना भेज दी . जब हमलावार सेनापति ने अपनी सेना के साथ खेड़ला के किले को चारो ओर से घेर लिया . राजा इल अपने परिवार की जान को खतरे में देख कर उसने अपनी पत्नि चण्डी रानी छोटी बेटी छोटी चण्डी तथा अपने वफादार नौकर काल्या को लेकर सुरंग के रास्तो सें बाहर निकलने लगा तो इस बात की भनक मुगल सेना को पहँुच गई . मुगल सेना ने सुरंग के दोनो छोर पर सुर्ख लाल मिर्ची डाल उसमें आग लगा दी. जिसके चलते दम घुटने के कारण राजा इल का पूरा परिवार मर गया. गोपाल बंगाली को जब यह बात बाबूलाल ने बताई तो स्तब्ध सा रह गया. बाबूलाल बार – बार कह रहा था कि देखो जिद मत करो इतना आसान नहीं है इस किले से राजा इल का खजाना तथा राजा जैतपाल का वह पारस पत्थर हथियाना पर लोग नहीं माने और अपनी – अपनी साधना में भिड़ गये .
खेड़ला के राजा ने इल की रानी चण्डी ने अपने पति के जीवित रहते हुये स्वंय को सति साबित किया था . इसलिए हर कोई चण्डी माँ के रूप में उसे पूजता है . रानी चण्डी  कई अवसरो पर ऐसे चमत्कारो को अपनी प्रजा को दिखा चुकी थी कि प्रजा उसे देवी की आज भी पूजती चली आ रही है . जानकार लोगो तथा कुछ इतिहासकारो का यह भी तर्क चण्डी माँ का प्रभाव पाढुर्णा के आसपास आज भी देखने को मिलता है . विश्व प्रसिद्ध पाढुर्णा के गोटमार मेला की शुरूआत से लेकर अंत तक चण्डी माता की जय जयकार और इस मेले के पीछे लोगो का पागलपन भी इस बात प्रमाणित उदाहरण है कि बैतूल , छिन्दवाड़ा सिवनी , सहित वे सभी जिले जो कि गोंड़ राजाओं  के आधिपत्य में थे वे चण्डी को देवी माँ की तरह पूजते चले आ रहे है . पारस पत्थर को लेकर आज भी कई किस्से कहानियाँ इस किले और रावणवाड़ी के तालाब की के हिस्सो में खुदाई का कारण बनता चला आ रह है. बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र दस किलो मीटर की दूरी पर स्थित  यह रहस्य राजा के मरने के बाद ही आम हो पाया था. इधर जिस स्थान पर रानी चण्डी की मौत हुई थी उसी स्थान पर एक शिला  (पत्थर) के अंदर से ऊपर की ओर निकलने के बाद ग्रामिण लोगो ने उसे ही चण्डी देवी मान कर पूजना शुरू कर दिया. इस स्थान पर प्रगट चण्डी की शिला  (पत्थर) को समीप के गांव सिंगार चावड़ी के यादवो अपने गांव ले जाकर उसका मंदिर बनाना चाहा लेकिन उक्त शिला  (पत्थर) अपने स्थान से टस से मस तक नहीं हुई , जिससे नाराज यादवो ने छेनी – हत्थोड़ो से उस शिला  (पत्थर) के उसके टुकड़े करके उसे बैलगाड़ी से ले जाना चाहा लेकिन वह आज भी अपने स्थान पर ज्यों की त्यों है . इस स्थान पर एक अन्य जमीन से निकली छोटी शिला  (पत्थर) को रानी की बेटी छोटी चण्डी तथा समीप के एक पेड़ को राजा इल का वफादार नौकर काल्या जी मान कर पूजा जाता है.गोधना स्थित चण्डी दरबार तक जाते समय रास्ते में पडऩे वाली कुछ मजारो को राजा के परिजनो के रूप में पूजा जाता है उक्त परिजन राजा इल के किले पर हुये मुगल सेना के हमले में मारे गये थे .
मुगल शासको से 12 साल तक लड़तें रहे जैतपाल ने आखिर में सबसे पहले उस पारस पत्थर को इतनी ताकत से फेका कि वह किले के सामने मात्र 1.5 किलो मीटर की दूरी पर खुदे रावणवाड़ी के तालाब में जा गिरा. पारस पत्थर के चक्कर में रावणवाड़ी ऊर्फ खेडला ग्राम के पास स्थित खेडला के किले की कई बार खुदाई हो चुकी है. बाबूलाल को यह बात अच्छी तरह से पता थी कि वे लोग जिस पारस पत्थर की खोज में यहाँ आये है वह उन्हे इतनी आसानी से नहीं मिलने वाली क्योकि राजा इल को भी पारस पत्थर इतनी आसानी से नहीं मिला था . किले के सामने 22 हेक्टर की भूमि पर बना बैतूल जिले का सबसे बड़ा तालाब जिसमें एक सोने का सूर्य मंदिर धंसा हुआ है . इस मंदिर के लिए बाबूलाल कई बार खुदाई कर चुका है लेकिन वह हर बार बुरी तरह मुसीबतो के चक्कर में फँसा है इस बार भी नहीं आना चाहता था पर गोपाल बंगाली कहाँ मानने वाला था. उसने ही उसे जबरन घसीट कर ले आया था .
बीच तालाब में मंदिर के धंसे होने के कारण उसे चारो ओर से हजारो टन मिटट्ी के मलबे को आज तक कोई भी पूर्ण रूप से निकाल बाहर कर पाया है. इस मंदिर को लेकर आसपास के लोगो में प्रचलित एक अधंविश्वास के अनुसार मंदिर के लिए मंदिर की खुदाई करने वाले को उसके सपने में यह मांग की जाती है कि वह अगर मंदिर में छुपे खजाने को पाना चाहता है तो उसे सबसे पहलें अपने पहले पुत्र एवं पहली पुत्र वधु की नरबलि देनी होगी. आज यही कारण है कि मंदिर तक कोई भी पहँुच पाने में सफल नहीं हो सका है. बरसो पहले राजा इल की नगरी में एक बार बहुत जमकर अकाल पड़ा. सूखे व अकाल से प्रजा में त्राहि-त्राहि का आलम व्याप्त हो गया. तब कोई संत वहां से गुजरे . राजा जैतपाल ने उनकी आवभगत कर उनसे राज्य में फैले सूखे व अकाल के निदान का उपाय पूछा. राजा जैतपाल  के आतिथ्य से प्रसन्न महात्मा ने राजा जैतपाल से कहा कि वह अपने किल के ठीक सामने 22 एकड़ की भूमि पर तालाब खुदवाये तथा उस तालाब की खुदाई के बाद उस तालाब के बीचो बीच भगवान भोलेनाथ के मंदिर का बनवा कर उसके परास शिवलिंग की स्थापना कर उसकी प्रथम पूजा अपने पहले पुत्र व पुत्र वधू से करवाये साथ ही सूर्य के ताप को कम करने के लिए उसे भगवान सूर्य का सोने का भव्य मंदिर बनवाना होगा अगर वह ऐसा करता है तो उसके राज्य में तथा इस तालाब में कभी पानी की कमी नहीं आएगी. महात्मा की सीख के अनुसार जब राजा ने अपने पुत्र व वधु  मंदि स्थापना के बाद पूजन के लिए भेजा तब पुत्र व वधु का पूजन पूरा भी नहीं हुआ था कि वह स्थान पूरा का पूरा जलमग्न हो गया और राजा और उसके पुत्र एवं वधु उस जल में  जल मग्र हो गए. राजा इल के पुत्र एवं वधु की जल समाधि के बाद से लेकर आज तक यहां कभी पानी की कमी लोगों को महसूस नहीं होती हैं. राजा जैतपाल के पास जो चमत्कारिक पारस पत्थर था जो उन्हें उसी महात्मा ने अपनी सेवा से प्रसन्न होकर दिया था. साथ ही इसके दुरूपयोग करने का मना किया था लेकिन राजा जैतपाल ने अपने राजपाट के दौरान लगान न चुकाने वाले किसानो से लगान के बदले उसके घर के सभी लोहे के सामान को हथियाना शुरू कर दिया . राजा जैतपाल ने अपने खजाने में किसानो से मिलने वाले लोहे के सामन पारस पत्थर से छुआ कर उसे सोना बना कर अपने किले के अंदर खुदवाये विशाल टाके में जमा कर रखा था. राजा जैतपाल इस चमत्कारिक पारस पत्थर से लोहा को छुआने का काम पूर्णत: गुप्त रूप से करते थे  लेकिन कुन्जू के पुरखो को यह बात पता चल चुकी थी कि राजा जैतपाल ऐसा करता है क्योकि गांव के लोहार होने के कारण सबसे अधिक लोहा उन्ही के पास रहता था. राजा ने एक दिन उसके पास का पूरा लोहा बुलवा लिया और उसे भी पारस पत्थर से छुआ कर सोना बना दिया. अब लोहारो के सामने सबसे पहले संकट इसस बात का आया कि बिना लोहा के वे अपना पेट कैसे पालेगे…….? राजा जैतपाल ने उन्हे अपने राज्य से निकाल बाहर कर दिया. वे जैतपाल के मरने के बाद रोंढ़ा गांव में आकर बस गये तभी से इसी गांव के रहवासी हो गये .
रावणवाड़ी के इस तालाब में खेडला के राजा द्वारा मुगलो से आक्रमण के पश्चात उसके पास मौजूद अमूल्य पारस मणी को फेकने की इस कथा ने गोरे अग्रेंजो तक को विचलित कर दिया था. बताया जाता है कि चार हाथियो के पैरो में लोहे की मजबुत साकल बांध कर उन्हे तालाब के चारो ओर घुमाया गया था जिसमें से मात्र एक ही साकल के लोहे के होने की साकल के सोने के बन पाई थी . आज एक बार फिर अपनी किस्मत की साकाल को सोने का बनाने के चक्कर में रोंढ़ा गांव की पूरी टीम खेड़ला आई हुई थी. गोपाल बंगाली जब पूरी तरह हार गया तब बाबूलाल ने उसे सलाह दी कि क्यो बेवजह अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हो ……….? पारस पत्थर यूँ नही मिलने वाला…….? बाबूलाल भगत की बात मान कर गोपाल और उसकी पूरी टीम वापस बैंरग लौट आई क्योकि वे रात भर के अदृश्यो हमलो से वे यह जान सके थे कि दुनिया की कोई भी ताकत उस तालाब से पारस पत्थर को नहीं निकाल पायेगी. आज राजा इल का किला आज भी भले चारो ओर हरे भरे खेत और खलिहानो से घिरा हो लेकिन बीते कल वह जंगल और जंगली जानवरो से घिरा हुआ था. आदिवासी होने के कारण राजा ‘इलÓ के किले का प्रवेश द्वार 7० से 8० फीट ऊंचा होने के कारण वह किसी भी सीधे हमला का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था. लगभग दो ढ़ाई सौ बड़े मजबूत पत्थरों को कलात्मक रूप से तराशकर उनका उपयोग शानदार सीढिय़ों के निर्माण में किया गया था . प्रवेश द्वार से राजा के महल की दूरी साढ़ चार सौ गज की है.  अधिक ऊंचाई पर बने राज इल  के इस किले से पूरा आसपास का क्षेत्र दिखाई पड़ जाता है. किले तक पहँुचने वाली सभी संदिग्ध गतिविधियो पर पैनी नजर रखने के बाद भी इस किले पर अनेक बार आक्रमण हुए है वह सिर्फ इस महल में छुपे खजाने एवं पारस पत्थर के कारण जो इन पंक्तियो के लिखे जाने तक न तो मुगलो को मिला न आज के लालची इंसान को जिसने इसकी खोज में पूरे किले को खण्डहर का रूप दे दिया है.
इति,

रहस्य रोमांच से भरपूर एक सत्यकथा
बाबा कहा गया……….!
– रामकिशोर पंवार
सावन का महिना था बारीश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मोरखा गांव के करीब दो ढाई सौ लोग बेल नदी के उस पार खडे मंदिर में होने वाली रामायण को पढने एंव सुनने जाने के लिए बेल नदी में आई बाढ के उतरने का इंतजार कर रहे थ  .गांव की ओर खडे इन दो ढाई सौ लोगो में शामिल भरत चौरसे ने तभी देखा कि नाग देव मंदिर में सावन के महीने में रामायण करवाने वाला बाबा लोगो से कह रहा था कि डरो मत नदी को पार करके आओ और जाओं ………..! कुछ लोंगो ने आखिर बाबा की बात मान कर बाढ आई बेल नदी में सोमवार की उस काली अंधीयारी रात को आखिर हिम्मत करके पांव डाला………..! नदी का पानी जो कि नदी के पाट के पर से ओव्हर फलो हो रहा था वह अचानक घुटने के नीचे आ गया लोग आश्चर्य चकित होकर नदी के इस पार से पार हो गए और उस पार के लोग नदी के इस पार हो गए. रात भर रामायण का पाठ होता रहा.लोगो रामायण का पाठ पढ जरूर रहे थे लेकिन उनका ध्यान ले देकर  बस उस घटना की ओर जाकर सहम जाता था कि आखिर बेल नदी जिसमे बाढ आई थी उसका पानी घुटने के बराबर कैसे हो गया……! सुबह जब सब लोगो ने रामयण को समाप्तर कर पूजा अर्चना कर वापस अपने गांव की ओर जाने के लिए रूख किया तो बेल नदी किनारे आकर उनकी आंखे चकरा गई.रात की घटना को याद करके वे भौचक्के से रह गए जिस नदी को घटने के बराबर पानी के बीच पार किया था आज वह सुबह एक बार फिर अपने दोनो पाटो ओव्हर फलो चल रही थी. नाग मंदिर का बाबा भी लोगो की मनोदशा को देख कर मंद – मंद मुस्करा रहा था. सुबह से शाम हो गई लेकिन बेल नदी का पानी जो कि दोनो पाटो के ऊपर से ओव्हर फलो होकर बह रहा था वह कम नहीं हुआ. बाबा ने लोगो ने कहा कि ऐसा करो आगे जाकर नदी को तैर कर पार कर लो. जिसे तैरना नही आए वह नदी में नही जाना……..! लोगो को आखिर घर जाना था क्योकि घर के लोग भी इंतजार कर रहे थे कि रात को रामायण पढने गए अभी तक क्यो नहीं आए जबकि सुबह से शाम होनेे को चली थी. लोगो के सामनें सामस्या थी कि आखिर लबालब पानी से बह चली बेल को पार करना अपनी मौत को दावत देने के समान था. इससे पहले बायगांव के 50 लोगो ने बेल नदी को पार करने का साहस दिखलाया था जिसमें मात्र एक बच्चा और एक महिला ही बच सकी थी शेष की आज तक अस्थी क्या तन के कपडे तक नहीं ढुढे से मिले. आज इस घटना को चालिस साल से अघिक हो गए लेकिन न तो बेल नदी भूल पाई है और न बायगांव के लोग. मोरखा वालो को तो इस हादसे को याद करने के बाद पसीना टपकने लगता है. आखिर चालिस लोगो को नदी में बह जाना कोई छोटी – मोटी घटना नही थी. भरत ने अपने साथ आए साथी रामदीन से कहा यार जल्दी से घर चलो नहीं तो शााम हो जाएगी तो नदी पार करना भी मुश्कील हो जाएगा. लोग -जैसे – तैसे नदी पार करके जैसे नदी के दुसरे छोर पर आए कि बेल नदी का पानी एक बार फिर घुटने के बराबर कम हो गया और वे लोग नदी पार करके आ गए जो तैरना नही जानते थे.
मोरखा के पास से बहती बेल नदी के ठीक बीच में एक पत्थर गडा हुआ है. यह पत्थर ही दो जिलो की सीमा तय करता है नदी का एक छोर बैतूल तथाा दुसरा छोर छिन्दवाडा जिले की सीमा में आता है. सावन के महिने में पिछले दो – तीन सौ साल से लगातार नदी के उस पार दिन्दवाडा जिले की सीमा में बने नाग देव के मंदिर में रामायण पाठ होता चला आ रहा है. मोरखा बस्ती के लोग इस रामायण पाठ में कब से भाग ले है उन्हे भी कहलाता नही पता लेकिन नाग देव मंदिर आज भी सावन के महिने और महा शिवरात्री पर बडा महादेव जाने वाल शिव भक्तो की एक प्रकार से पहली सीढी है यही पूजा अर्चना करने के बाद ही बडा महादेव की ओर निकला जा सकता है. भरत जब अपने धर पहुंचा तो उसने आज की घटना अपने मात- पिता को बताई तो सभी आर्श्च चकित रह गए पुरा गांव एक बार फिर नदी के उस पार जाकर उस चमत्कारी बाबा के दिव्य दर्शन करना चाहता था जिसने यह चमत्कार दिखलया लेकिन यह क्या पिछले एक माह से नाग मंदिर में अनुष्ठान कर रहा वह बाबा आज दिख नही रहा है जो कि सावन महिने के हर सोमवार को अखंड रामायण का पाठ करवाता था. आज तो बल नदी में न तो बाढ थी और न वह खतरे के निशान को पार कर रही थी. मोरखा के पास स्थित नाग देव के इस मंदिर की इस अदभुत चमत्कारी घटना को देखने के बाद भरत चौरसे तो थर- थर कांपने लगा. उसे पता नहीं क्या हो गया उसने नाग देव मंदिर जाकर अपनी भूल चूक की माफी मांगी और नागदेव से प्रार्थना की एक बार फिर उस दिव्य आत्मा के दर्शन करवा दे लेकिन वह आत्मा ऐसे विलुप्त हुई की आज तक उस गांव वालो को नही दिख सकी. नागदेव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि सूरगांव का द्वादस शिव लिंग वाला एतिहासिक मंदिर एंव ग्राम ठेसका के पास बीच ताप्ती नदी में मौजूद पत्थरो पर बारह शिवलिंग के अलावा उसी मंदिर की तरह एक अन्य शिव लिंग मंदिर के साथ -साथ ग्राम मोरखा के पास होने बेल नदी के किनारे वर्तमान में छिन्दवाडा जिले की सीमा में नागदेव मंदिर का निमार्ण सूरगांव के पास स्थित एक अन्य ग्राम के मालगुजार सद्या पाटिल नें बनवाया था. सद््या पाटील द्वारा उक्त तीनो मंदिरो का निमार्ण कार्य एक ही कारीगीर से करवाया गया था . पिछले साल चंदोरा बांध के फूटने पर ठेसका का ग्राम का वह एतिहासिक बारह लिंग का मंदिर तो बह गया लेकिन बीच नदी की चटट्ान पर बनी बारह शिवलिंग आज भी लोगो क श्रद्वा का केन्द्र बने हुए है. नाग देव मंदिर से एक किलो मीटर पूर्व की आकर स्थित पुछ उोह में एक राजा की पूरी बारात डूब गई थी. मात्र दुन्हा दुल्हन के रूप में हाथी पर सवार राजा – रानी ही बख्े थे. वैसे तो हाथी भी डू ब रहा था लेकिन वह किसी तरह निकल आया. इस क्षेत्र में बसे बडा चमत्कार यह देखने को कमलता है कि आज भी यह क्षेत्र भले ही छिन्दवाडा जिलें में आत हो पर पर जाने का जो रास्ता है वह मोरखा के पास से बेल नदी को पार करके ही जाया जाता है. नाग देव मंदिर के आसपास के पेडो पर  बंदर ,शेर , नाग , नागीन, अनेको प्रकार के जानवरो की आकृति उभरी हुई दिखाई पडती है. पिछली कई सदियो से इस नागदेव के मंदिर में विदर्भ के अनेको जिलो के नव विवाहित दम्पति नवस के नाम पर आते है और मंदिर में बलि देकर पूजा पाठ कर चले जाते है. एक माह तक चलने वाले इस नागदेव के मंदिर के किस्से कहानी तो ढेर सारे है पर लोगो के किस्से कहानी सुनते -सुनते पूरी रात बीत जाती है. विदर्भ और बैतूल , छिन्दवाडा तथा आसपास जिले का किसान अपनी सुख समद्वि  के लिए नागदेव से मन्नत मांगता है और उस मन्नत को एक कुछ समय ाद पूरा करने के लिए वह पूरे परिवार के साथ घर के छोटे- बडे जानवर तक को नाग मंदिर लाकर अपना नवस पूरा करता है.
एक रात की बात है भरत अपने कमरे कीर चारपाई पर सोया हुआ था लेकिन उसे लगा कि कोई उसे पुकार रहा है. भरत ने दिश चलाने की कोशिस की लेकिन माचिस नही मिलने की वल?जह से वह एक बार फिर मन मार कर सो गया लेकिन यह क्या वह अभी एक नींद भी नही ले पाया था कि एक बार फिर उसे किसी ने पुकारा उसने सोचा कि माचिस तो मिल नहीं नही रही उठ कर क्या फायदा लेकिन यह क्या यह तो चमत्कार हो गया जो माचिस उसके ठीक के सिरहाने के पास काफी से नही मिली वह सिरहाने पास ही थी तथा उससे बडा ताजुब यह था कि दीया उसे जलते हुए मिला. भरत ने पहले तो यह सोचा कि घर के किसी लोगो ने दीया जलाया होगा तथा वह बुझाना भूल गया होगा लेकिन घर के सारे लोग तो गधे बेच कर सोये हुए थे तब ऐसे मेें दीया किसने जलाया होगा यह सोच कर भरत हैरान एंव परेशान था. विचारांे  में खोए भरत को एक बार फिर किसी ने पुकारा तो अबकी बार वह सकपका गया. दीया को थामे भरत ने आखिर हिम्मत करके दरवाजा खोला तो सामने का नजारा देखकर वह चीख मार कर धडाम से चक्कर खाकर गिर गया. उसकी चीख सुन कर घर के सारे लोग जग गए आनन-फानन में घर के सारे दीया जला डाले. बेहोश भरत को घेर कर बैठ घर के लोग अभी तक नहीं जान सके थे कि वह किस कारण बेहोश हुआ था. रात भर से जग रहे भरत के परिवार के लोगो को भरत के होश में न आने पर अब चिंता सताने लगी. ओझा, फकीर , बाबा, भुमका , भगत, सबको बुला डाला लेकिन कोई भी उसे होश में नही ला सका. आखिर भर की मां ने नागदेव बाबा से मन्नत मांगी की बाबा मेरे भरत को होश में ला दे मुझसे जो बन सकेगा तेरी सेवा करूगी. उसके इतना बोलतें से यह क्या चमत्कार हो गया भरत उठ कर बैठ गया और उसने उठते से अपने को घेर कर रखे लोगो से बस एक ही सवाल किया कि मैं यहां कैसे आया और वह बाबा जी आखिर कहां गया…………..
इति,

भर आया आंचल
रामकिशोर ंपवार
मां रेवा का आंचल आज भी पहले की तरह फैला हुआ था. नर्मदा प्रसाद भागते हुयें आया और धड़ाम से जाकर उसके आंचल में जा गिरा. मां रेवा ने अपना ममतामयी हाथ जब उसके सिर पर फेरा तो वह रो पड़ा. वह कुछ पुछना चाहता था लेकिन उसे जोर की भुख लगी थी. मां रेवा समझ चुकी थी कि उसका लाड़ला भुख से व्याकुल हो रहा है उसने उसके लिए भोजन की थाल परोस दी. भरपेट खाना खाकर वह फिर सो गया. वह ऐसा सोया कि अपने साथ लायें अनेक सवालों को वह भूल गया. जैसे ही भोर होने को आई कि उसे एक बार फिर मां रेवा ने नींद से जगाते हुयें कहा ‘ बेटा नर्मदा जरा उठ तो देख बेटा भोर होने वाली है. जा अपने मालिक के घर वहां उसके कोठे में बंधी पड़े गाय के बछड़े उनके छुटने का इंतजार कर रहे होगें …….! अगर तू नहीं गया तो वे बेचारे भुखे रह जायेगें ……..! सुन  बेटा नर्मदा उन्हे भी तेरी तरह उनकी मां से मिल कर अपनी भुख प्यास को शांत करना है……….. ! अधकचारी नीदं से अलसाय हुयें नर्मदा की बार तो इच्छा हुई कि वह मना कर दे ……… पर उसे तो जाना ही होगा क्योकि उसका मालिक बड़ा ही निर्दय और जालिम किस्म का है. वह जानता है कि एक दिन अगर कोठे से जानवर नहीं छुटेगें तो उसका मालिक उसे मार मार कर लहु लुहान कर देगा. वह डर के मारे उठ कर अपने मालिक के घर की ओर सरपट भागा. उसे आज इतनी जल्दी थी कि वह यह तक भूल गया कि वह यह तक भूल गया कि वह मां रेवा से आज क्या पुछने के लिए आया था.
पौराणिक कथाओं में सदियों से देवी देवताओं की आरध्य रही जगत तारणी पूण्य सलिला मां नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है. इसी जग कल्याणकारी मां रेवा के किनारे बसे एक छोेटे से गांव में रहने वाला नर्मदा प्रसाद करीब बीस साल पहले आई बाढ़ में अपने माता – पिता के साथ बहते हुयें इसी गांव के गोपाल मछुआरे को मिला था. नर्मदा प्रसाद के माता -पिता पहले ही दम तोड़ चुके थे. उनकी बहती लाश के साथ नर्मदा प्रसाद भी मछली की तलाश में जाल बिछायें गोपाल के जाल में आकर उलछ गया. गोपाल ने उसे बाहर निकाल कर फेकना चाहा लेकिन उसे उस नन्हे सी जान के शरीर में हलचल होती दिखाई दी. गोपाल अपने मछली के जाल को वही छोड़ कर उस बच्चे को लेकर गांव की ओर सरपट भागा. कुछ दिनो तक चले गांव के वैद्य के इलाज के चलते नर्मदा प्रसाद बच गया लेकिन वैद्य ने गोपाल को चेताया कि इस बच्चे को नदी के पानी से बचायें रखना. पानी देख कर इस बच्चे का शरीर अपने आप हिचकोले मारने लगेगा. इस रहस्य को गोपाल ने किसी को नही बताया. आज इस घटना को लगभग बीस साल हो गये. ना तो गोपाल उस रहस्य को जान पाया कि उसके बाबा उसे नदी के किनारे जाने से क्यो रोकते थे. नर्मदा कई बार अपने बाबा को बिना बताये एक रहस्य को आज तक छुपायें रखा था कि वह जब भी मां रेवा के किनारे बहती धारा को एकटक निहारता था तो उस बीच धार में एक महिला अपनी बांहे फैलाये उसे अपनी ओर बुलाती थी. जब वह उसकी ओर जाता था तो नदी में अपनी आप रास्ता बन कर निकल आता था. उसे वह महिला कई बार अपने हाथों से  नाना प्रकार के पकवान खिलाती थी तथा अपने ही आंचल में सुलाती थी. उसे जब तक वह इस रहस्य को समझ नहीं सका तब तक ऐसा होता था. लेकिन एक दिन उसे नदी की ओर जाता उसके बाबा ने देख लिया तो उसके बाबा ने उसे बहुॅंत डाटा फटकारा तब से वह नदी के किनारे नही जाता था. नर्मदा यह नहीं जान सका था कि उसके बाबा उसे क्यों नदी की ओर जाने से रोकते थे तथा नदी कह बीच धारा में बाहे फैलाये उसको बुलाने वाली महिला कौन है. उस महिला से उसका क्या नाता है. नर्मदा के अपने माता – पिता कौन थे इस बारे में उसे कोई जानकारी नही थी. पर उसने गंाव वालों के मुह से सुना था कि बाबा उसके पिता नही है. आज उसके बाबा भी अब इस दुनिया में नहीं रहे. एक रात जब उसे अपने बाबा से जिद करके यह जानने की कोशिश की कि बाबा आप मुझे क्यों नदी के किनारे जाने से रोकते है. तब उसके बाबा ने कहा कि वह कल उसे उस राज को बता देगा जो कि बरसो से उसके दिल के किसी कोने मेे दबा पड़ा है. कल सुबहउठ कर वह अपने बाबा से उस रहस्य को जान पाता इसके पहले ही उसे सुबह उठ कर गंाव के जमींदार के कोठे पर जाकर गाय बछड़ो को छोडना था. अपने वादे के मुताबिक गोपाल उस राज को बताने के पूर्व ही उस दिन चल बसा.
गोपाल बाबा उसे नर्मदा प्रसाद कह कर पुकारते थे.  अपने के नाम के पीछे बाबा कहा करते थे कि बेटा तू मां कौन है ……..! किस जाति का है ………….!  किस गांव का है …………..! तेरेे कौन रिश्तेदार है ……………? मैं नहीं जानता. तू मुझे मां नर्मदा की साठ साल की सेवा के बदले में मिला प्रसाद है इसलिए तू मेरा नर्मदा प्रसाद है………! गोपाल के मरने के बाद गंाव वालों ने इस एक बार फिर अनाथ हुयें नर्मदा प्रसाद के बारे में जांच पड़ताल की पर किसी को यह तक नही मालुम कि बाढ ़में बहता मिला यह बच्चा किसका था……? लगभग बीस साल पहले भी गांव वालों ने आसपास के गांवों तक मुनादी करवा दी थी कि जिसके भी परिवार के लोग बाढ़ में बह गयें हो वे आकर इस बच्चे के बारे में जानकारी देकर उसे ले जाना चाहे तो ले जा सकते है. लेकिन कोई नही आया तो गोपाल मछुआरे ने उसे अपने बेटे की तरह पाल पोश कर बड़ा किया था. गोपाल बाबा के मरने के बाद नर्मदा प्रसाद ने जमीदार के घर की नौकरी छोड़ दी वह अपने बाबा के पुश्तैनी काम को करने का बीड़ा उठा कर वह नही की ओर चला गया.
आज एक बार फिर मां रेवा में बाढ़ आई थी. उसका पानी हिलांेरे मार कर इस किनारे से उस किनारे तक अठखेलिया कर रहा था. नर्मदा प्रसाद को ऐसा लगा कि नदी की बीच धारा कोई महिला बाहें फैला कर उसे आंखों के छलकते आंसुओं से पुकार रही है. काफी देर तक उस महिला को अपनी ओर बाहें फैला कर पुकारते देख नर्मदा प्रसाद का शरीर हिचकोले मारने लगा. वह ऊफनती रेवा की बीच धारा में उसे पुकार रही महिला की ओर सरपट भागा. उसे पानी में भागते देख उसके संगी साथी गांव की ओर बद्हवाश से भागे. कुछ ही पल में पुरा गांव मां रेवा के किनारे जमा हो गया. गांव वाले शाम तक रहे पर किसी को भी नर्मदा का अता पता नही मिला तो गंाव वाले खाली हाथ वापस लौट कर आ गयें. गांव वाले कहने लगे बेचारा नर्मदा जहॉ से आया वहीं चला गया. नर्मदा के इस तरह नदी में बह जाने से पुरे गंाव में आज रात किसी के घर पर चुल्हा नही जला. सबके सब उदास थे. लोगो की आंखों के आंसु झर झर कर बह रहे थे. सारे गंाव वाले को आज ऐसा लग रहा था कि उसके परिवार का कोई सदस्य बह गया हो. आज की रात लोगो को पहाडत्र जैसी लग रही थी. कई लोगो ने तो रात भर सोच सोच कर काट ली. हर कोई नर्मदा को लेकर परेशान था.
खुले आसमान के चांद तारों को देख कर रात के पहर कटने के इंतजार करने वाले लोगो को जैसे ही भोर के होने की आहट हुई लोग अपने घरों से बाहर की ओर निकल पडें. हर कोई एक दुसरे की आंखों में झांक कर एक दुसरे को बताना चाह रहा था कि उसने इस काली अमावस्या जैसी रात को कैसे काटा है. गांव वाले अपने घरों से बाहर निकल कर रेवा के किनारे जाकर नर्मदा को तलाशते इसके पहले ही उन्हे रेवा के तट की ओर गंाव को आते रास्ते एक युवक आता हुआ दिखाई दिया. पास आने पर ऐसा लगा कि आने वाला कोई नही अपना नर्मदा है तो सारा गांव खुशी के मारे उसकी ओर दौड़ पड़ा. नर्मदा को जिंदा देख कर गांव की महिलाआंे के अंाचल भर आयें. गांव वाले दिल धडकने लगे. नर्मदा को जिंदा देख कर सब के सब प्रसन्नचित थे वही हर छोटे बडें सबके चेहरे पर एक जिज्ञासा झलक रही थी कि नर्मदा तू रात भर कहॉ था………?  वह मंा रेवा की ऊफनती धारा की ओर क्यों भागा था…..!  उसके साथ क्या हुआ…….! नर्मदा ने इस तरह सारे गांव वालों  को अपनी ओर जिज्ञासा भरी निगाहों से देख तो वह कुछ पल के लिए डर गया. उसने डरते डरते गंाव वालों से पुछा  पुछा इतनी सुबह पुरा गंाव कहॉ जा रहा है……..? उसके सवालों को सुन कर केतकी आजी रो पड़ी उसने नर्मदा के सिर पर हाथ फेर कर कहा बेटा हम तुझे ही ढुढ़ने जा रहे थे…….! तू रात भर से घर नहीं आया था……..! कल तेरे साथ गयें कुछ लड़को ने तुझे ऊफनती रेवा की बीच धारा में भागते हुयें देखा तब से पुरा गांव परेशान है. केतकी आजी के बताने पर कुछ याद आया.उसने बताया कि कल जब वह रेवा के किनारे मछली का जाल बिछाने गया था तब उसने देख कि नदी में बाढ़ आई थी. नदी की बीच धार में कोई महिला मुझे बांहे फैला कर अपनी ओर बुला रही है ………! मैं उसकी ओर भागा……. उसके बाद मुझे पता नही कि क्या हुआ………..? मुझे जब होश तब मैंने अपने आप को नदी के  दुसरे छोर पर पाया.मुझे आसपास चीखते सन्नाटे में समझ आया कि मैं जिस स्थान पर लेटा हू उसके आसपास कोई नदी बह रही है. दिमाग पर काफी जोर देने के बाद मुझे पता चला कि मैं जिस स्थान पर लेटा हुआ था उससे चार पांच फंलाग की दूरी पर मां रेवा बह रही है. मुझे डर लग रहा था मैं थर थर कर कांपते कांपते खुले आसमान में चन्द्रा के प्रकाश में उस भयावह चीखते सन्नाटे को चीरते हुयें नदी के किनारे आने के लिए निकल पड़ा . खुले आसमान में दिखने वाली चांदनी बता रही थी कि रात का तीसरा पहर बीत चुका है. चौथे पहर के शुरू होते ही मैंने अपने घर की ओर आने का मन बना कर मै जैसे नदी के किनारे आया तो मेरी सिटट्ी पिटट्ी गुम हो गई. कल की तरह आज भी मां रेवा पुरे उफान पर बह रही थी.चन्द्रमा के प्रकाश में साफ दिख रहा था कि मां रेवा नदी की धार में काफी बहाव था. नदी अपने अपने दोनो किनारों के उपर से बह रही थी. मुझे इस नदी पार करके गांव की ओर आना था. मुझे तो तैर कर नदी पार करना भी नहीं आता था. अब मेरे लिए नदी पार करके आना बड़ा ही कठीन काम था. मैं इसी उधेड़बुन में कुछ सोच रहा था कि मुझे ऐसे लगा कि कोई मेरा नाम लेकर पुकार रहा है. मैने आसपास चारों ओर चन्द्रमा के प्रकाश में अपनी निगाहे घुमा कर देखा तो मुझे कोई भी दिखाई नहीं दिया. सुनसान इलाके में जब किसी ने मेरा नाम लेकर एक बार फिर किसी ने मुझे पुकारा तो घबरा गया. इस बार की आवाज किसी महिला की थी. मैं उस अपरिचित महिला की आवाज को पहचानने की कोशिस कर रहा था कि इतने में वह आवाज एक बार फिर मुझे सुनाई दी. वह अपरिचित आवाज मुझसे कह रही थी बेटा ‘ नर्मदा तू उस पार जाना चाहता है तो , नदी की बीच धार को पार करके चले आ. ’ मैं नदी के किनारे को छुती उसकी धार तक आने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहा था. ऐसे में किसी ने मेरी किसी अदृश्य परछाई ने मेरी बांह पकड़ी और मुझे नदी की धार तक ले आया. मैंने जैसे नही नदी में पांव रखा कि चमत्कार हो गया . नदी के बीचो बीच में एक पगडंडी निकल आई जिस पर मैं चलकर नदी के इस छोर से दुसरे छोर तक चला आया. मैने जैसे पलटकर देखा तो मां रेवा उसी गति से शोर मचाती बह रही थी. मैं नदी पार कर सीधा चला आ रहा हूॅं. नर्मदा की बात को सुन कर गांव वालों का आश्चर्य का ठिकाना नही था. इतने साल से मां रेवा के किनारे रहते हो गयें लेकिन उन्हे आज तक मां रेवा ने कभी दर्शन तक नहीं दियें और इस लड़के की किस्मत तो देखियें कि यह उसकी गोद में खेल आया है. नर्मदा की बताई बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहे पुरे गांव को जैसे लकवा मार गया. गांव वालों के लिए नर्मदा की बताई बाते किसी अनहोनी घटना से कम नही थी. पुरा गंाव नर्मदा की बातों को सुन कर नर्मदा मैया की जय जय कार करते नदी के किनारे की ओर दौड़ पड़ा.आज इस घटना को बीते कई साल हो गयें लेकिन गांव में अब भी मां रेवा के किनारे एक घास फुस की झोपड़ी बना कर रह रहा नर्मदा को विश्वास है कि वह एक बार अपनी अंतिम सांस मां रेवा के आंचल में ही लेगा. उसे हर पल इंतजार है कि कब मां रेवा उसे एक बार फिर पुकार कर कहे बेटा नर्मदा आ अब विश्राम कर ले.
इति

रहस्यमय दिल को छु देने वाली काल्पनिक कहानी
”कबर बिज्जू”
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
उस रात को बड़े साहब के बंगले पर जग्गू दादा की डुयूटी थी। अपनी पूरी रौबदार मुछो एवं ड्रेस को लेकर पूरे जिले में जग्गू दादा की लोकप्रियता थी। जग्गू दादा को ही पता रहता था कि बड़े साहब कब कहां आते – जाते है। यदि दादा के बारे में यह कहा जाये कि दादा बड़े साहब की मास्टर चाबी है जिससे उनका पूरा जीवन का ताला खुलता और बंद होता है तो कहना गलत नहीं होगा। आज फिर काली अमावस्या की रात को बड़े साहब के बंगले में साहब नहीं थे। वे हर बार अमावस्य की रात को ही क्यों गधे के सिंग की तरह गायब हो जाते किसी को पता नहीं होत्रा। किसी ने एक दो बार जग्गू दादा से मजाक में भी कहा था कि ”दादा तेरा साहब कहीं कबर बिज्जू तो नहीं है कि अमावस्य की रात आते ही बिल में छुप जाता है ……” आज फिर वहीं रात की मनहुस घड़ी आ गई जिसमें पहली बार जग्गू दादा की रात डुयूटी लगी थी। वैसे तो जग्गू दादा ने अग्रेंजो के जमाने का शुद्ध देशी घी और माल पुड़ी खाया था।  उनकी रौबदार मुछो और शरीर के पीछे शायद वही खाया हुआ माल था। उनकी ढलती उम्र के इस पड़ाव में भी चाल और ढाल लोगो के लिए प्रेरणा बनी हुई थी। कोसो पैदल चलना और यदा – कदा साइकिल की सवारी कर लेना जग्गू दादा की दिनचर्या थी। दादा की पूरी सर्विस बड़े साहब के बंगले और आफिस के बीच ही कटती चली आ रही थी। आज रात के लिए दादा पहले तो मना करते रहे लेकिन रात डुयूटी करने वाले ने जब उनसे कहा कि ” यदि वह आज रात को डुयूटी कर लेगा तो वह उसके बदले में कल की दिन की डुयूटी कर लेगा………। ”  जग्गू दादा को कल और परसो दो दिन की छुटट्ी मिल जायेगी। दादा को दो दिन की छुटट्ी लिये महिनो बीत गये थे। इसलिए दादा इन दो दिनो के लिए अपने गांव रमोला जाना चाहता थे। दादा को अपने पहाडिय़ो पर बसे रमोला गांव गये बरसो बीत गये थे। उसके संगी – साथी सब एक – एक कर उसका साथ छोड़ कर जा चुके थे। जग्गू दादा अपने जमाने के संगी – साथियो के परिवार के लोगो से मिल कर उनके दुख को बाटना चाहते थे। दादा का अपने बचपन एवं जवानी के कुछ दोस्तो की आखरी यात्रा में न पहुंच पाना गांव के लोगो के बीच भी चर्चा का विषय बन चुका था। गांव वालो और अपने नाते – रिश्तेदारो के बीच दादा कई बार उन बातो को लेकर अपमान का घुट भी पी चुके थे। इस बार दादा ने पूरा मन बना लिया था कि वह चाहे कुछ भी हो जाये अपने गांव एक दिन के लिए जरूर जायेगा। जग्गू दादा ने अपने मन की बात किसी को नहीं बताई और उसे मन के किसी कोने में तब तक छुपा रखा जब तक कि वह पूरी न हो जाये। आज रात साहब के बंगले में दादा को अकेले ही पूरी रात काटना था। दादा ने पूरी रात काटने के लिए अपने घर से रामायण और हनुमान चालिसा भी साथ लेकर आये थे ताकि आज की पूरी रात वह रामकथा और हनुमान चालिसा का पाठ पढ़ सके। दादा घर से रामायण और हनुमान चालिसा लेकर तो आये लेकिन हडबड़ी में उसे कहां रख गये उन्हे पता नहीं चल रहा था। काली अमावस्या की रात अपने अगले पहर के लिए बढ़ती जा रही थी। अब रात में उल्लूओं की हरकतो के अलावा तरह – तरह की आवाजे आनी शुरू होने लगी थी। बड़े साहब के बंगलो के हरे भरे बरसो पुराने पेड़ो की डालियो के हिलने – डुलने शुरू हो गये थे।  बंगले के पूरे परिसर में दर्जनो पीपल – बरगद – नीम – आम के पेडो की पत्तियों से भी छन – छन करती आवाजे आने लगी थी। ज्यों – ज्यों रात आगे की ओर बढ़ती जा रही थी , त्यों – त्यों बंगले के चारो ओर चीखता सन्नाटा डराने लगता था। बंगले के आसपास लगी टयूब लाइटो के अचानक के बंद हो जाने का मतलब तो यही निकल रहा था कि पूरे बंगले की ही नहीं शहर की ही बिजली गुल हो गई है। यूं तो बडे साहब के बंगले में अभी तक सैकड़ो अफसर आये और चले गये। अग्रेंजो के जमाने के इस बंगले की शान की कुछ और थी। पूरे पांच एकड़ में शहर के बीचो बीच में बना यह बंगला उन अग्रेंजी अफसरो के जुल्मो की कहानी बयां करता है जिन्होने आजादी के कई दिवानो को मौत के घाट सुला दिया। इस बंगले में आज तक किसी भी अफसर के घर में न तो कोई शहनाई गुंंजी और न किलकारी …….. ऐसे में एक प्रकार से मनहुस कहा जाने वाला बंगला दर असल में अफसरो की मौज मस्ती एवं रंगरैलियो का केन्द्र रहा है। बिजली के चले जाने के बाद जग्गू दादा कुछ पल के लिए स्तब्ध सा रहा गया। उसने मोमबत्ती जलाने के लिए अपनी सफेद वर्दी की जेब में हाथ डाला तो बीड़ी का बंडल तो मिला लेकिन माचिस नहीं मिली। ऐसे हाल में दादा को आज राज कुछ अजीब सा लगने लगा। पता नहीं आज रात को क्या होने वाला है। अजीबो – गरीबो हरकतो एवं घटनाओं से जग्गू दादा का दिल भी घबराने लगा लेकिन बुढ़ी सांसो की ताकत उन्हे इस तरह से डर जाने से रोक रही थी। कुछ देर बाद अचानक बिजली आ गई और सामने टेबल पर दादा को वहीं माचिस भी मिल गई जो उनके जेब में होनी थी। कुछ पल तक माचिस को लेकर सोचते दादा को पता भी नहीं चला कि दिवाल पर लगी घड़ी में कब बारह बज गये। बारह बजते ही दिवार की घड़ी से आवाजे आने लगी। दादा ने टेबल पर पड़ी माचिस को लेकर अपने जेब से बीड़ी का बण्डल निकाला और एक बीड़ी निकाल कर जलाने वाले ही थे कि किसी ने उन्हे आवाज दी कि ”जग्गु दादा एक बीड़ी मेरे लिए भी जला देना…….  ” अनजान व्यक्ति की आवाज को सुन कर दादा के तो होश हवास उड़ गये। अचानक बंगले के मालगोदाम से निकली आवाज ने जब शक्ल का रूप लिया तो उसे देख कर दादा के मुख से चीख निकलने वाली थी…….. दादा ने अपने आप को संभाला और वे उसे देखने लगे जो बीड़ी के लिए आवाज दे रहा था। दादा के करीब आ चुकी उस आकृति को देख कर दादा को कुछ महिनो पहले की घटना याद आ गई। यह तो वहीं आदमी था जो उस रात बड़े साहब से मिलने के लिए आया था। उसके साथ उसकी जवान बेटी फुलवा भी थी जो फटेहाल कपड़ो में अपने तन को छुपाये हुई आई थी। कोसो दूर अपने गांव से न्याय मांगने आया वह बुढ़ा व्यक्ति साहब से मिलने के लिए उस रोज सुबह से लेकर शाम तक बैठा हुआ था। पांच बजने के कारण जग्गु दादा उस रोज अपने घर को निकल पड़े थे। उसने जाने से पनले उन दोनो पिता – पुत्री से कहा भी था कि ” साहब दौरे पर गये है हो सकता है देर रात तक लौटे …….”  लेकिन वह उसकी कही बातो को अनसुना करके साहब के बंगले के सामने बने आफिस में बड़े बाबू के पास बैठा रहा। बड़े बाबू अकसर देर रात तक आफिस में काम करने के लिए रूके रहते थे। इसलिए जग्गु दादा ने उन दोनो को बडे बाबू के हवाले करके वह अपने घर की ओर चला गया। आज कई दिनो बाद उस व्यक्ति को काली अमावस्या की रात में वह भी बंगले के मालगोदाम से बाहर निकलता देख जग्गू दादा को अजीबो – गरीब लगा। उस बुढ़े व्यक्ति को पास आने पर दादा ने पुछा कि ” बाबा तुम यहां पर कब आये…….? ” आने की बाम सुन कर वह खिलखिला कर हस पड़ा। उसकी हसी जग्गू दादा के लिए जानलेवा साबित हो जाती लेकिन दादा ने हिम्मत नहीं हारी। दादा को कड़ाके की ठंड में पसीने से नहाता देख कर वह बुढ़ा बोला ” तुम्हारे मना करने के बाद भी यहां पर रूका रहा न्याय पाने के लिए , लेकिन मुझे क्या मालूम था कि यहां पर भी मेरे साथ अन्याय ही होगा……” जग्गू दादा उससे कुछ और पुछता वह खुद ही बताने लगा कि ” उस रोज जब साहब देर शाम तक नहीं आये तो बड़े बाबू ने मुझे बड़े साहब के बंगले ले गया। मैं वहां पर पौन्रे बारह बजे तक अपनी जवान बेटी के साथ बाबू जी के साथ रूका रहा। दिन भर का भूखा – प्यासा थका हारा मैं न लाने कब वही दिवार के सहारे सर रख कर सो गया। मेरी नींद तब खुली जब बंद कमरे से मेरी फुलवा के चीखने – चिल्लाने की आवाजे आने लगी। मैने खुब जतन कर डाले लेकिन मैं दरवाजो को जब नहीं खुलवा सका तो मैने पास की कुल्हाड़ी उठा कर दरावाजे को काट डालना चाहा लेकिन पीछे से किसी ने मेरे सिर पर लाठी दे मारी जिसके चलते मैं धड़ाम से ऐसे गिरा की फिर दुबारा उठ नहीं सका। उस काली अमावस्या की रात को बड़े बाबू ने मुझे मालगोदाम में ऐसे छुपा रखा कि मेरा पूरा शरीर तार – तार हो गया। पूरी रात बड़े साहब ने मेरी फुलवा को कबर बिज्जू की तरह नोंच -नोंच कर खा लिया। आज भी मैं उस काली अमावस्य की रात मेे मेरी फुलवा को पूरे बंगले भर में खोजता फिर रहा हूं……… न जाने ऐसी किस कोने में मेरी फुलवा छुपा दी गई है कि वह मुझे बीते दो सालो से नहीं मिल रही है। ” जग्गू दादा को अचानक वह बात याद आ गई जब वह दो दिन की छुटट्ी से वापस लौटा तो पता चला था कि साहब पिछले शनिवार से जो गये है तो अभी तक वापस नहीं लौटे। जब आये तो मैने उन्हे चाय की प्याली दी और यूं ही पुछ लिया था कि ”साहब उस रोज फिर कितने बजे आना हुआ……? क्या वे दोनो बाप – बेटी आपसे मिले …..? साहब क्या आपने उनको न्याय दिलवा दिया…..?  ” जग्गु दादा को अब समझ में आने लगा कि साहब ने क्यों उसके मुँह पर चाय की प्याली फेक कर मारी थी। अपनी सर्विस के पूरे तीस – बत्तीस साल काटने के बाद पहली बार जग्गु दादा को किसी अफसर ने इस तरह से जलील किया था। इस सदमें मे वह ऐसा बीमार पड़ा कि उसे ठीक होने में पूरे आठ महिने से ज्यादा का समय लग गया। इस बीच बड़े बाबू एक दो बार हाल – चाल जानने के लिए आये लेकिन बड़े साहब नज़रे चुराने लगे थे। जब जग्गू दादा डुयूटी पर आये भी थे तो साहब ने उसे अपने से दूर ही रखा। अब उसके पास साहब की सेवा चाकरी के बदले दुसरे अन्य कामकाज आ गये थे। उस रोज साहब की हरकत पर मैने सोचा था कि काम के टेंशन की वज़ह से शयद साहब दुसरे का गुस्सा मेरे ऊपर ही निकाल दिये। अब सारा माजरा खुल जाने के बाद जग्गु दादा ने साहब को अपने मुंह पर गरम चाय की प्याली फेकने का बदला चुकाने का मौका आ गया था। वह विचारो में इतना खो गया कि वह अनजान व्यक्ति एक बार फिर वहां से गधे के सिंग की तरह आंखो से ओझल हो चुका था। जग्गू दादा को अब पता चल चुका था कि बड़े बाबू पर साहब की इतनी मेहरबानी क्यों है। साहब की गैर हाजरी में बडे बाबू साहब की आड़ में कैसे पैसे कमाने लगे है। जग्गु दादा के विचारो को उस समय विराम लग गया जब उन्होने सामने से एक सफेद साड़ी में लिपटी युवती को अपने करीब आते देखा। पास आते ही वह युवती जग्गु दादा को देख कर खिल खिला कर हस पड़ी। करीब आई उस युवती को देख कर दादा को लकवा मार गया। अचानक दादा के मुँह से आवाज आई ” अरे बाप रे यह तो वही युवती है जो उस रोज बड़े साहब के बंगले पर उस बुढ़े व्यक्ति के साथ आई थी। गांव के दबंगो के हाथो अपनी अस्मत को तार – तार करवा कर न्याय के लिए फटेहाल कपड़ो में आई उस युवती को सफेद साड़ी में देखते ही दादा के मन में तरह – तरह के सवालो ने उथल – पुथल मचाना शुरू कर दी। दादा को अचानक कुछ साल पहले की वह घटना याद आ गई जब वह अपने पिता के साथ बड़े साहब से मिलने के लिए आई थी। सुबह से शाम हो जाने तक जब बड़े साहब नहीं आये तो वह बेचारी मिलने के लिए शाम तक रूकी रही। उसके बाद क्या हुआ उसका पता उसे अभी कुछ देर पहले ही पता लगा था। उस घटना के बाद तो दादा की तबीयत खराब हो गई और वह लम्बे समय तक बिस्तर पर पड़ा रहा। आज अमावस्या की काली रात में पहले पिता को और बाद में इस युवती को अकेले साहब के बंगले के परिसर से बाहर निकलते देख दादा को कपकंपी छुटने लगी। ठंड के महीने में पसीने से लथपथ दादा की हालत देख कर वह युवती जैसे ही खिलखिला कर हसी तो आसपास का पूरा माहौल तरह – तरह की चीखो से गुंज गया। जग्गू दादा ने अपनी पूरी उम्र में पहली बार किसी सोलह साल की युवती को सफेद कपड़ो में लिपटी हुई देखा था। लम्बे -चौड़े क्षेत्रफल में बने साहब के बंगले में साहब पहले तो अकेले ही रहते थे उस रोज के बाद से साहब एक भी रात को इस बंगले में नहीं रूके। साहब अकसर सरकारी बंगले को छोड़ कर आसपास के सर्किट हाऊस – सरकारी डाक बंगले में रूक जाते थे। अपनी आयु और सर्विस के रिटायरमेंट की कगार पर आ खड़े बड़े साहब की अपनी बीबी और बच्चो से कभी भी पटरी नहीं बैठी। साहब का कई बार अपने बेटो और बीबी ने झगड़ा मारापीटी तक जा चुका था। बड़े लोगो के बड़े चौचले समझ कर दादा ने उन पुरानी बातो को अपने दिमागी पटल से कब का भूल चुके थे। काका को आज इस युवती के अस्त – व्यस्त हालत में कपड़ो के बाद दादा  को देख कर वह युवती बोली ”दादा क्यों परेशान हो रहे हो …….? मैं  तुम्हारा कुछ नहीं करूंगी…….. , लेकिन दादा देख लेना एक न एक दिन तेरे बड़े साहब का मैं वो हाल करूंगी कि वह फिर किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचेगा। उस कबर बिज्जू को मैं ऐसी मौत मारूंगी कि उसकी आने वाली सात पुश्ते भी कांप उठेगी। उस कबर बिज्जू को मैं ऐसी सजा दंूगी कि उसकी पीढ़ी में कोई मर्द या औरत पैदा नहीं होगी…… सब के सब हिजड़े पैदा होंगे वे भी दुसरे के दंभ पर ……..” उस युवती की इस तरह श्राप देते देख कर जग्गु दादा गश्त मार कर ऐसे गिरे की फिर उठ नहीं सके। रहस्यमय बनी जग्गु दादा की मौत पर से आज तक पर्दा नहीं उठ सका लेकिन कल शाम जब बंगले में बड़े साहब की टुकड़ो में मिली लाश के बाद समझ में नहीं आ रहा था कि इस प्रकार के प्रतिशोध के पीछे किसी का क्या हाथ होगा। साहब के बेमौत मरने की $खबर सुनने के बाद बड़े बाबू ने भी फांसी लगा ली। मरने से पहले बड़े बाबू ने अपने पुराने गुनाहो को उजागर करते हुये फुलवा की मौत पर से पर्दा हटा कर वह सब बता डाला जो कि बंगले में अकसर होता रहता था। आज भी उस बंगले से सड़क के किनारे के पीपल के पेड़ तक उस सफेद साड़ी में लिपटी युवती के मिलने की कहानी सुनने को मिलती है। जब मैं इस काहनी को लिख रहा था तो मुझे बरबस वह पीपल का पेड़ और सामने बड़े साहब का बंगला और उस कबर बिज्जू की मौत की कहानी घुमने लगी। कहानी को शब्दो में पिरो पाता इस बीच कोई न कोई आ टपकता और कहानी आधी – अधुरी रह जाती। इस बार मैने पूरे मन को स्थिर कर उस कहानी को पूरा करने का मन बना निया था जो किसी इंसान रूपी वासना के कबर बिज्जू से जुड़ी थी जो अपनी बेटी की उम्र की युवती को नोंच – नोंच कर खा चुका था। आज जब कहानी पूरी बन गई तो मन को शांती मिली लेकिन जब आंखे खुली तो मैने देखा कि कहानी के पीछे एक युवती की छाया उभर रही थी। फटेहाल में दिखने वाली वह देहाती युवती मुझसे कुछ कहना चाहती थी। मैं उसकी बातों को शब्दो में पिरो पाता इस बीच श्रीमति ने आकर मुझे झकझोर कर दिया कि ”चलिए तो अपने घर के पीछे बड़ा ही खतरनाक कबर बिज्जू निकला है , जल्दी चलो आकर देख लो…… ” अब मैं उसे कैसे बताऊ कि मैने जिस कबर बिज्जू को देखा है उससे खतरनाक कोई दुसरा भी कबर बिज्जू हो सकता है।
इति,
नोट :- प्रस्तुत कहानी के पात्रो एवं स्थानो का किसी से कोई लेना – देना नहीं है। यदि घटना और पात्र किसी से मिल भी गये तो इसे संयोग ही माने

कहानी
”ज्योति आइ लव यू …..”
कहानी :- रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला ”
बात उन दिनो की है जब हर कोई  अपनी बाल अवस्था जवानी की दहलीज पर पांव रखता है. गांव की टूटी – फूटी छत वाली पाठशाला हो या फिर शहर की कांक्रिट से बनी पाठशाला जहां पर बचपन पहली से लेकर दसवी तक ध्यान लगा कर पढ़ता है. ऐसा भी नहीं कि वह चौबिसो घंटे पढ़ता ही रहता है. कहने का अभिप्राय: यह रहता है कि उस दौर में न तो दिल किसी के लिए धड़कता है और न उसे दिल की धड़कने सुनाई या महसूस होती है. ऐसे दौर में किसी का किसी के प्रति लगाव को प्रेम या प्यार की तराजू में नहीं तौला जा सकता है. जब जवानी और चेहरे पर हल्की – हल्की से ऊगने लगती मुंछो से ही पता चलता है कि अब दिल भी इस शरीर में किसी कोने में किसी चहेती के लिए धड़कता है. आज से तीस साल पहलें उस दौर में लड़के – लड़कियो के अलग से स्कूल – पाठशाला नहीं हुआ करती थी. ऐसे समय में माता – पिता से लेकर शिक्षको को तक इन लड़के – लड़कियां एक ही कक्षा में साथ – साथ पढ़ाना अटपटा सा नहीं लगता था. इसे अब मजबुरी कहे या फिर उस समय का दौर लेकिन यकीन मानिए उस समय में गांव का जमीदार और गांव कोटवार का बच्चा सभी एक साथ बिना किसी भेदभाव के साथ – साथ पढ़ा करते थे. पाठशाला की फटी – मैली टाट पटटी पर एक के पीछे कौन सी जाति या धर्म का लड़का – लड़की बैठा पढ़ रहा है कोई नहीं जानता था. बस स्कूल के हाजरी रजिस्ट्रर से ही नाम पुकारते समय पता चलता था कि कौन किस जाति या धर्म का है. गांव की पाठशाला से लेकर शहर की पाठशाला तक में टाट पटटी पर बैठ कर पढऩे का रिवाज था. कुछ समय बाद गांव की पाठशाला तो नहीं शहर की पाठशाला स्कूल बन चुकी थी जिसमें टाट पटटी की जगह लकड़ी की बेंच डेस्क ले चुकी थी. उस समय में भी फैशन का तो नहीं पर स्कूल में सबसे सुंदर दिखने की चाहत हर किसी के मन में रहती थी. मुझे अच्छी तरह से याद है कि जवानी की दहलीज के दिनो में काका की फिल्मो का दौर उस समय ऊफान पर था. काका के रोमाटिक फिल्मी तरानो की गुंज में मुकेश के दर्द और रफी के तरानो को को लोग बखुबी समझते थे. युवा पीढ़ी पर तो प्रेम का रोग ऐसा लगा था कि हर कोई मो रफी के गीतो को गुनगुनाते हुये हवा में कागज के बने हवाई जहाज में अपनी – अपनी चहेती लड़कियो की ओर प्रेम पत्र भी लिख कर फेकने लगे थे. गर्मी की तपन के बाद जैसे ही स्कूलो के गेट खुले तो नई क्लास के लिए नई कापी – पुस्तकों को लेकर स्कूल जाने की शुरूआत हो गई. प्राथमिक पाठशाला अब माध्यमिक स्कूल में बदल चुकी थी. एक दिन क्लास में पहली बार किसी बेबीकट जुल्फो के साथ एक कजरारी आंखो वाली लड़की ने दाखिला लिया. वह इसके पहले उस शहर में किसी को नहीं दिखी तो सभी ने एक साथ अंदाज लगाया कि छोरी नई है लगता है किसी दुसरे शहर से आई है. उसकी हेयर स्टाइल को देख कर लगता था कि स्वर्ग से धरती पर उतरा यह चांद किसी बड़े घर की छोरी होगी या फिर किसी अफसर की साहबजादी…. उसके क्लास में आते ही युवा दिलो में धड़कन होना स्वभाविक था. आज की एश्वर्या राय यदि तीस साल पहले किसी को दिख जाये तो क्या हाल होगा यह तो वही जाने लेकिन सच्चाई अपनी जगह सोलह आने सच थी कि वह उस दौर की मुमताज – जीनत अमान – रेखा से कम भी नहीं थी. यदि मैं उसे मधुबाला या वैजयंती समझ लू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. क्लास का पहला दिन और वह उस डेस्क पर बैठ गई जिसके पीछे की डेस्क पर लड़के बैठा करते थे. कक्षा शिक्षक ने जब हाजरी ली तो पता चला कि उसका नाम ज्योति है. क्लास का पहला दिन उसे निहारते कब बीत गया पता ही नहीं चला. दुसरे दिन जब वह बालो की लटो को चेहरो पर से हटा कर इठलाती – बलखती आई तो पूरी क्लास सकते में आ गई. आज क्लास में मानीटर का चयन होना था जो क्लास टीचर की अनुउपस्थिति में क्लास को संभाल सके. बीस लड़को और आठ लड़कियो में से किसी एक को मानीटर बनना था. हर कोई दावेदारो की दौड़ में था लेकिन बना मैं जो इस दौड़ से बाहर था. मैं क्लास मानीटर नहीं बनना चाहता था लेकिन मेरे दोस्तो ने मुझे मानीटर बनने के लिए विवश कर दिया. अपने ठीक सामने की बेंच पर बैठी ज्योति उसकी स्वजाति थी. वह अपने जीजा के पास पढऩे के लिए अपने गांव से कोसो दूर आई तो थी लेकिन उसे गांव के माहौल से यहां का महौल अजीब सा लगा. अकसर गुमसुम रहने वाली इस लड़की से बात तो हर कोई करना चाहता था लेकिन हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता था. दिन – महिने बदलने लगे. तीमाही फिर छैमाही परीक्षा हो गई. अब वार्षिक परीक्षा सामने आ खड़ी थी इस बीच जब वह एक दो दिन स्कूल नहीं आई तो सामने खाली पड़ी बैंच को देख कर उसकी मुझे दिनभर बरबस याद आती रही. जब वह अपने गांव से वापस लौटी तो दो दिन का होमवर्क करने के लिए उसने मुझसे अपनी कापी मांगी तो पता चला कि वह अपने गांव में अपनी बीमार नानी से मिलने गई थी जो कुछ ही पल की मेहमान थी. वापस लौटी तो आंखे लाल थी जिससे ऐसा लग रहा था कि या तो वह रात भर सोई नहीं या फिर उसके रोने से उसकी आंखे लाल हो गई. अपनी पड़ौसी की सहेली शर्मिला से वह कह रही थी कि ”उसकी नानी अब इस दुनिया में नहीं रही……ÓÓ नानी के इस दुनिया से चले जाने से सबसे बड़ा सदमा उसे ही लगा क्योकि गांव में उसका पूरा बचपन नानी के आसपास ही बीत गया. गांव से आते समय ही नानी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुये कहा था कि ”देख बेटी तू गांव से शहर तो जा रही है लेकिन क्या करू मेरी मौत तेरे हाथ पीले होने तक ठहर भी पायेगी या नहीं …..” नानी की कहीं दर्द भरी बातो याद करके वह कई बार रूमाल से अपनी आंखो से झलक पड़ते आंसूओं की बुंदो को पोछ लेती लेकिन वह चाह कर भी अपनी चेहरे पर वह मुस्कान नहीं ला सकी जिसे देखे मुझे कई पहर हो गये थे. बातचीत के दौरान पता चला कि वह मेरी ही स्वजाति है. अब एक ही जाति और समाज के नाते दोनो के बीच बातचीत का दौर धड़कते युवा दिलो के किसी न किसी कोने में अपनी पैठ बनाने में कामयाब हो गया. ज्योति जिस दिन से स्कूल में पढऩे आई थी उस दिन से ही उसके पीछे की डेस्क पर बैठने के लिए लड़को के बीच झगड़ा होता रहता था. इस बीत की खबर न तो प्रिंसीपल को थी और न उसकी लड़की को जिसके पीछे उस क्लास  के सभी लड़के दिवाने बन कर भंवरे की तरह मंडराते रहते थे. शर्मिला मेरी अच्छी दोस्त थी. वह अकसर मुझसे बातचीत करती रहती थी. हम दोनो कई बार स्कूल के वार्षिक उत्सव में साथ – साथ भाग ले चुके थे. हम उम्र होने के कारण शर्मिला का झुकाव मेरी प्रति कुछ लड़को एवं लड़कियो के बीच द्धेष – जलन – इष्र्षा का कारण बन चुका था. खासकर माला को यह बात पसंद नही थी कि मैं शर्मिला से बाते तो दूर तक उसकी ओर देखू तक नहीं. कई बार इसी बात को लेकर माला मुझसे लड़ चुकी थी. इस बीच ज्योति के आ जाने से त्रिकोणे घेरे में फंस चुका मैं किसी बड़े षडय़ंत्र का शिकार हो चुका था. शर्मिला को चाहने वाले महेन्द्र ने एक दिन माला के साथ मिल कर मेरे नाम से एक प्रेम पत्र ज्योति की ओर फेक दिया. वह पत्र पढ़ नहीं पाई कि क्लास टीचर ने आकर उसके हाथो से वह पत्र छीन लिया. पत्र में दिल को रेखाकिंत कर उसकेे बीचो – बीच लिखा था ”ज्योति आइ लव यू …..” उस पत्र ने मेरी जिंदगी में ऐसा तुफान ला दिया कि हम दोनो एक नदी  के छोर न होकर सागर के दो छोर हो गये जिनका मिलना तो दूर एक दुसरे को देखना तक संभव नहीं था. मैं आज तक ज्योति से वह नहीं कहा जो उस पत्र में लिखा गया था. आज इस बात को लेकर दिन और कई साल बीत गये लेकिन मैं उसे आज तक ”ज्योति आइ लव यू नहीं कह पाया हूं …..”  आज उम्र के इस दौर में उसे आइ लव यू कहने का मतलब दो परिवारो के बीच शंका – कुशंका का बीज बोना है. आज दोनो की हरी – भरी जिंदगी है.  हसता – खेलता परिवार है यदि आज के इस दौर में जब हम दोनो के बच्चे आइ लव यू कहने के हो गये है ……ऐसे मे ज्योति से भलां कैसे कहूं ” ज्योति आइ लव यू….” .

नोट :- इस काल्पनिक कहानी का किसी भी जीवित सा मृत व्यक्ति से कोई सबंध नहीं है.

मां सूर्यपुत्री की महिमा को समर्पित एक मार्मिक कहानी
वह सुबह कभी तो आयेगी
कहानी :- रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला ”
पूरी रात वह अपने जाने की तैयारी में लगा रहा. देश छोड़  परदेश जाने वाला वह गांव का पहला व्यक्ति था इसलिए पूरा गांव उसकी बिदाई की तैयारी में लगा था. अमावस्या की काली अंधियारी रात को हर घर में मिटट्ी के तेल के लालटेन जल रहे थे. गांव के कुछ लोग चौपाल पर बैठ कर मंशाराम की किस्मत को लेकर चर्चा कर रहे थे. दुसरो के घर पर पूरी जिदंगी हाथ मज़दूरी करने वाले मंशाराम का इकलौता बेटा आज शहर से अपनी पढ़ाई पूरी करके अपनी एक खोज को पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए सरकारी खर्चे पर विदेश जा रहा था. उसे गांव का छोटा – बड़ा सभी दीनू कह कर पुकारते थे लेकिन आज तो गांव आई सरकारी लालबत्ती वाली कार से उतरे दीनू को उस कार में आये अफसर सर दीनदयाल कह कर पुकार रहे थे. दीनू ने गुजरात के कच्छ प्रदेश में भारतीय वैज्ञानिक संस्थान में विश्व समूचे विश्व को आश्चर्यचकित कर देने वाली एक ऐसी खोज कर ली थी जिसके चलते अब पानी को लेकर होने वाले तथाकथित तीसरे विश्व युद्ध के प्रकोप से बचा जा सकता है. उसे इसी माह की आने वाली 20 तारीख को अपनी उस खोज को दुनिया भर के वैज्ञानिको के न्यूयार्क में होने वाले सम्मेलन में रख कर उसका पैर्टन करवाना था. पूरी दुनिया को दीनू की इस खोज पर यकीन नहीं हो रहा था लेकिन सच्चाई भी सोलह आने सच थी कि कच्छ प्रदेश में सागर के खारे पानी को मीठा करने वाले इस देहाती छोरे ने पूरी दुनिया में भारत का झण्डा शान के साथ लहरा दिया था. देश भर के वैज्ञानिक एवं देश – प्रदेश की सरकार के मंत्री – संत्री तक उसे दिल्ली हवाई अडड्े से बिदाई देने के लिए कल जमा हो रहे थे. देश के महामहिम राष्ट्रपति इस गांव के होनहार छोरे के सम्मान में भोज देकर उसे सम्मानित कर चुके थे. दुनिया के पांच महासागर में से आधा पानी भी मीठा हो गया तो पूरी दुनिया को आने वाले हजारो सालो तक जल संकट से नहीं जुझना पड़ेगा. दीनू उर्फ दीनदयाल के इस काम से पूरा गांव भी झुम उठा था. भोर होने से पहले पनघट पर पानी की कतार में खड़ी मां को पानी के लिए तरसते देख दीनू ने पानी को लेकर कुछ करने का मन बना लिया था. उसके पाँव तब और डगमगा गये जब एक दिन भोर में पनघट पर पानी लेने गई उसकी मां के पाँव फिसल जाने से वह औंधे मुँह ऐसी गिरी की वह फिर दुबारा उठ नहीं सकी. मां की मौत की $खबर उसे इसलिए नहीं दी गई क्योकि उसकी खोज अंतिम चरण में थी. जब उसने अपनी खोज का नाम अपनी मां ताप्ती के नाम पर तृप्ति पर रखा गया तो उपस्थित सभागृह उस सच को ज्यादा दिन तक छुपा कर नहीं रख सके और दीनू को आखिर उस दर्दनाक हादसे और उसके बाद के हालातो के बारे में सब कुछ बता दिया गया. पिछले दो माह से गांव आया दीनू अपनी मां की याद में अपनी झोपड़ी के एक कोने में बैठा रोता रहता था. अपनी मां की अस्थियो को वह आते ही अपने सीने से लगा कर दुखी मन से मां सूर्य पुत्री तपती के शीतल जल में प्रवाहित कर चुका था. अब उसके पास सिर्फ मां की यादे ही शेष बची थी. गुमसुम ख्यालो में खोये दीनू को परसो ही इस बात की जानकारी मिली थी कि विश्व वैज्ञानिक सम्मेलन में उसकी खोज को रखने का भारत सरकार का प्रस्ताव मंजूर कर लिया गया है. अभी दीनू मां की दर्दनाक मौत के हादसे से उबर भी नहीं पाया था इस बीच उसे एक बार फिर अपने बुढ़े हो चुके पिता को अकेले छोड़ कर परदेश जाना था. जब गांव की पूरी पंचायत ने उसके पिता का ध्यान रखने की जवाबदेही ली तब वह गांव छोड़ कर जाने को तैयार हुआ. गांव को भी दीनू के दर्द की चिंता सताये जा रही थी. इसी सप्ताह के पहले दिन जब गांव में कारो का काफिया आया और सीधे दीनू की झोपड़ी के पास रूका तो पूरा गांव जिज्ञासु हो गया. गांव के मुखिया को कलेक्टर साहब बता रहे थे कि उनके गांव के सर दीन दयाल ने उनके गांव का ही नहीं अपने जिला – प्रदेश – देश का नाम रोशन कर दिया है. उसे कल दिल्ली से न्यूयार्क जाना है इसलिए उन्हे यह $खबर देने आये है. दीनू को कल सुबह भोर होते ही गांव के स्कूल के खाली मैदान में उतरने वाले हेलिकाप्टर से सीधे भोपाल और वहां से प्लेन से दिल्ली होते हुये न्यूयार्क जाना था. सुबह होते ही पूरा गांव बाजे – गाजे के साथ दीनू को बिदाई देने के लिए स्कूल मैदान में जमा हो चुका था. गांव के सभी मंदिरो में मत्था टेकने के बाद गांव के सभी बड़े – बुर्जगो के पाँव छुने के बाद जब उसने अपने पिता से गले मिलने के लिए कदम बढ़ाये तो उसके पाँव एक दम लडख़ड़ा पड़े. यदि उसका पिता उसे संभाल नहीं पाता तो शायद वह भी जमीन पर गिर जाता. अपने बेटे को बांहो में भरते ही मंशाराम की आंखे भर आई. उसने अपने दीनू के सिर पर हाथ फेरा और उसकी आंखो से झलकते आंसुओ को पोछते हुये कहा कि ”मुझे नहीं पूरे गांव को उस सुबह का इंतजार रहेगा जब गांव के पनघट पर पीने के पानी की न तो कतार होगी और न किसी बेटे की मां पानी के लिए बेमौत मरना पड़ेगा…..”  पूरी दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचाने की दवा खोजने वाले दीनू को आज अपनी ही मां की मौम की दवा समय पर न खोज पाने का गम सता रहा था. जब सूरज आसमान पर पूरी तरह से बीचो – बीच आ चुका था इस बीच गांव पर मंडराते उडन खटोले को देखने को जमा हो चुकी भीड़ भी बेकाबू होती जा रही थी. दर्जनो लाल – पीली – नीली कारो के काफिले के चलते उस गांव की सड़क  और खाली पड़ी जगह भर चुकी थी. हेलिकाप्टर में बैठने से पहले एक बार अपनी जन्मभूमि तथा पिता के पाँव छुने के बाद दीनू नीले आकाश में कहीं ओझल हो गया. पूरी दुनिया के पांच हजार से अधिक वैज्ञानिक मंत्रमुग्ध होकर दीन दयाल की बातो को सुन रहे थे. उसे न्यूयार्क के उस सभाकक्ष में कुछ देर पहले मंगवाये सागर के खारे पानी में एक प्रकार की मिटटी को मिलाने के बाद उसके खारेपन का परीक्षण करवाया. जब खारा पानी मीठा हो गया तो सबकी आंखे फटी की फटी रह गई. अब सब लोग उससे यह पता करना चाहते थे कि आखिर वह मिटटी कहां की है तथा उसमें ऐसा क्या मिलाया कि महासागर का खारा पानी मीठा हो गया. एक नहीं दस बार उस मिटटी एवं पानी का परीक्षण होने के बाद विश्व के पांचो अलग – अगल महासागरो के खारे पानी को मीठा करने वाली मिटट्ी में कहीं शक्कर जैसा कोई प्रदार्थ तो नहीं मिलाया गया.  उस मिटटी को अच्छी तरह से जांचने एवं परखने के बाद उसे खाकर भी देखा गया लेकिन वह सिर्फ खारे पानी को ही मीठा कर पाई. उसे मीठे पानी में मिला कर भी देखा गया लेकिन उसके स्वाद में कोई फर्क नहीं दिखाई दिया. खारे पानी को मीठा करने वाली मिटटी का महासागरो के बीचो – बीच में जाकर भी परीक्षण किया गया लेकिन जितने क्षेत्र में मिटटी घुली उतने क्षेत्र का पानी मीठा हो चुका था. पूरे विश्व के वैज्ञानिको को दीन दयाल की एक और खोज को उजागर करने पर जोर का झटका लगा जब उसने यह कहा कि इस पानी को पीने के बाद सुगर की बीमारी तक ठीक हो जाती है. दो सप्ताह तक चली बहस के बाद आखिर पूरी दुनिया ने भारत के दीनदयाल के नाम पर उक्त खोज का पैर्टन तृप्ति के नाम से पंजीकृत कर लिया. स्वदेश आने पर दीनदयाल ने अपनी उस खोज के बारे में जब लोगो को बताया तो वे सभी आश्चर्यचकित रह गये. सूरत में अरब सागर की कच्छ की खाड़ी में मिलने वाली सूर्य पुत्री पुण्य सलिला मां ताप्ती नदी के बीच प्रवाह में उक्त मिटट्ी सदियो से बहती चली आ रही है जिसकी मारक क्षमता खारे पानी को मीठा में बदल सकती है. दीन दयाल की इस खोज पर उसे देश भर के कई विश्व विद्यालयो ने डी लिट की उपाधी से अलंकृत किया. अमेरिकी सरकार ने अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से अंलकृत किया. दीनू चाहता था कि भारत जो कि सदियो से गांवो का देश कहलाता चला आ रहा है उसके तीनो ओर विशाल सागर – महासागरो की लहरे उठती है. इन्ही लहरो का पानी यू टर्न करके गांवो की ओर यदि मोड़ दिया जाये तो कई प्यासे कंठो की प्यास बुझाई जा सकती है. खारे पानी को मीठा करने वाली मिटट्ी के 750 किलोमीटर लम्बे विशाल भण्डार से केवल ग्रीष्म ऋतु में ही संग्रहण किया जा सकता है तथा उस संग्रहित मिटट्ी को सागर के पानी में घोल कर उसे भी नहरो एवं नदियो की तरह गांवो की ओर बहाया जा सकता है. सागर के पानी के इस तरह से बहाव से बाढ़ जैसी आपदा होने का खतरा नहीं रहेगा. ढलान से ऊंचाई की ओर सागर के पानी को ले जाना उतना कठीन काम नहीं जितना आज पानी के संकट पर सरकारी पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है. गांव की गागर को सागर से भरने की इस अतिमहत्वाकांक्षा योजना को यदि मान लिया गया तो गांव की ही नही बल्कि जंगल – जमीन – पशु -पक्षी सभी के प्यासे कंठ तृप्त हो जायेगें लेकिन यह तभी संभव है तब तृप्ति को सरकार दिल और दिमाग से लेकर काम करे. पूरी दुनिया में अपने नाम का डंका बजा कर पूरे तीन माह बाद अपने गांव लौट आया दीनू अपने बुढ़े पिता के चरणो में अपने सिर को रख कर सो गया. आज वह अपने पिता के चरणो में चैन की नींद सोया कि वह फिर उठ नहीं सका. अपने पिता के चरणो में अपने प्राण छोडऩे वाले दीनू को लोग भले ही भूलते जा रहे हो लेकिन यदि फिर कभी पानी को लेकर तीसरा विश्च युद्ध नहीं हुआ तो फिर तब बरबस दीनू की याद आयेगी क्योकि उसे मरते समय तक उस सुबह का इंतजार था जब देश – प्रदेश की सरकार उसे पैर्टन तृप्ति को स्वीकार कर गावो से लेकर शहरो तक को समुद्र के खारे पानी को मीठा करके पहुंचा कर लोगो की प्यासी कंठा को तृप्त कर देगी. वह कहता था कि एक न एक दिन वह सुबह जरूर आयेगी…….

रहस्य रोमांच से भरपूर
माइकल अंकल
कहानी :- रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
रात को आसमान में तारे कहीं से कहीं तक दिखाई नहीं पड़ रहे थे. आज पूणम की रात थी इसलिए चांद भी अपनी पूरी जवानी पर चहक रहा था. उसके ऊजियारे में सब कुछ स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. करबला के पास की बस्ती के बच्चो को जब आंखो में नींद नहीं आ रही थी और गर्मी के मारे बुरा हाल था तो वे सब स्कूल के पास के कब्रिस्तान में एक बार फिर जमा हो गये. मोहन ने अपने साथी गोपाल से कहा ”यार चलो वहीं पर किक्रेट खेलते है…. ” आज हम अपना शाम का अधुरा मैच भी पूरा कर लेगें और साथ में डे नाईट मैच का मजा भी ले लेगे. गोपाल को मोहन की बात कुछ जमी उसने अपने सभी साथियो को बुलवा भेज दिया. खिलाड़ी तो पूरे हो गये लेकिन मंगल के न होने से उन्हे एम्पायर की कमी उन्हे खलने लगी. भलां एक एम्पायर से वह भी रात का मैच कैसे होगा. करबला के पास प्रायमरी स्कूल से सटे अग्रेंजो के जमाने के कब्रिस्तान की खाली पड़ी जमीन पर आसपास के बच्चे कई सालो से किक्रेट का मैच खेलते चले आ रहे है . आज भी पूणम की रात में डे नाइट का मैच होना था लेकिन क्या करे अपना मंगल तो आज अपने साथ है ही नहीं …. बिना मंगल के कैसे होगा किक्रेट का मैच यह सोच कर गोपाल और उसकी मित्र मण्डली पास की खाली जगह पर बैठ कर मंथन कर रही थी . इस बीच एक गोरा व्यक्ति सफेद कपड़े पहने उनके पास आया और
बोला ”क्या बात है बच्चो आज मैच नहीं हो रहा क्या…? ”  रात के नौ बज रहे होगें ऐसे में करबला रोड़ पर चहल कदमी बरकरार थी. मोटर गाडिय़ा आ जा रही थी. इस शोर गुल के बीच उन्हे पता ही नहीं चला कि उनके पास आया व्यक्ति कहां से चला आ रहा था . बच्चो को गुमशुम देख वह गोरा व्यक्ति एक  बार फिर वहीं सवाल करने लगा तो मोहन बोल पड़ा ”अंकल हमने आपको पहली बार देखा है…..? आप कौन है……? तथा कहां से चले आ रहे है…..? बच्चो के सवालो की झड़ी के बीच आने वाले व्यक्ति ने अपना परिचय दिया कि ”उसका नाम माइकल एंथोनी है तथा वह पास में रहता है. तुम्हारी आवाज को सुन कर वह इस ओर चला आया…. तुम्हे परेशानी क्या है ….?”  माइकल की प्यार भरी बातो को सुन कर मोहन बोल पड़ा ”माइकल अंकल दर असल में आज मंगल नहीं है इसलिए हमें एक एम्पायर नहीं मिल पा रहा है , जिसके चलते हम आज का डे नाइट किक्रेट मैच नहीं हो पायेगा…..?” माइकल ने बच्चो से कहा कि ”यदि तुम चाहो तो मैं एम्पायर बन सकता हंू ….” बच्चो को उस अनजान व्यक्ति की बात पहले तो अजीब लगी फिर वे कुछ पल सोचने के बाद बोले ”ठीक है अंकल आप ही हमारे सेकण्ड एम्पायर होगें….” और फिर बच्चो ने अपनी पूरी टीम को मैदान में उतार कर किक्रेट मैच शुरू कर दिया. मैच के रोमांच के आगे बच्चे समय की घड़ी का काटा ही भूल गये. मैच के चक्कर में वे सब कुछ भूल कर उसमें इतना रम गये कि उन्हे पता ही नहीं चला कि कब सुबह होने लगी. जैसे ही सुबह होने को आई माइकल ने बच्चो से कहा कि ”भई दिन निकलने वाला है अब तुम सभी अपने – अपने घर जाकर आराम से सोओ और मुझे भी आराम करने दो…. ” . किक्रेट मैच खेल रहे सभी बच्चे माइकल अंकल की बातो में आकर मैच को वहीं समाप्त कर अपने – अपने घर को चले गये. अब बच्चो के लिए रात का मैच वह भी चांद के ऊजियारे में रोमांच भरा लगने लगा. बच्चो के हर मैच में माइकल एंथोनी मैच के शुरू होते ही आ जाता और फिर रात भर उनके मैच की एम्पायरिंग करने के बाद चिडिय़ो की चहकार गुंजने के पहले ही चला जाता. ऐसा कई महिनो तक चला. बच्चे उस व्यक्ति से ऐसा घुल – मिल गये कि उन्हे अब वह अपनी टीम का ही सदस्य लगने लगा.  बच्चो के दिलो – दिमाग में छाये किक्रेट के भूत के आगे उनके माता – पिता सभी ने अपना माथा पीट लिया लेकिन बच्चे नहीं माने. रात दिन उसी कब्रिस्तान में मैच खेलते – खेलते उनका बचपना कब जवानी में बीत गया उन्हे पता भी नहीं चला. अब सभी कल के बच्चे आज के नौजवान युवक काम धंधे की तलाश में जाने लगे. दिन भर काम के बोझ से थके हारे होने के बाद भी यदि जब भी पूर्णमासी की रात आती है तो फिर क्या उनका डे नाइट मैच तो होना पक्का रहता है. काफी साल बाद जब एक दिन पूणम की रात को किक्रेट का मैच खेलन के लिए मोहल्ले के युवक नहीं आये तो उस गोरे एम्पायर माइकल एंथोनी को चिंता होने लगी. अपनी कब्र पर बैठा वह गोरा अग्रेंज माइकल एंथोनी तरह – तरह के विचार में खो गया. माइकल को इतने महिनो बाद अइ इस बात की चिंता लगी कि कहीं उसका राज तो उन लड़को के बीच फूट तो नहीं गया…..?  हो सकता है कि शायद इसी डर के मारे वे सभी लड़के फिर कभी मैच खेलने ही न आये . चारो ओर फैले सन्नाटे एवं कड़ाकी ठंड के बीच विचारो में खोये माइकल से अब जब रहा नहीं गया तो वह कब्रिस्तान से बाहर सड़क पर आ गया. आज रात को सड़क भी सुनसान था. चारो ओर छाई खामोशी के बीच उसे एक घर के पास जाने पर कुछ लोगो के रोने की आवाज सुनाई दी. माइकल जानता था कि लोग उसे नहीं पहचानते लेकिन मोहल्ले के सभी लड़के तो उसे अच्छी तरह से पहचानते है. कच्चे मकान के सामने लोगो का हुजुम लगा था. एक युवक लेटा हुआ था और बाकी सब लोग रो रहे थे. किसी से पुछा तो पता चला कि मंगल अब इस दुनिया में नहीं रहा….. मंगल आज दोपहर को एक ट्रक के चपेटे में आ गया. माइकल एंथोनी भी आज ही के दिन इसी सड़क पर एक हादसे में आकर अपनी जान गवां बैठा था. माइकल एंथोनी के दादा ब्रिटेन से इंडिया आये थे. लगभग एक दशक तक यही रहने के बाद उसके सभी परिवार के सदस्य यही पर बस गये. जब ब्रिट्रीश हुकुमत का पतन हुआ तो सारे अगेंज लोग वापस जाने लगे लेकिन माइल के फादर यही रह गये. अपनी मौत की सौवी वर्षगांठ पर माइकल आज बेसुध होकर अपनी कब्र में दिन भर सोया रहा जिसके चलते उसे पास की सड़क पर मंगल की मौत की जरा भी आहट नहीं हुई. मंगल की असमय मौत के बाद से पूरी किक्रेट टीम का खेलना ही बंद हो गया. एक दिन सभी मंगल को याद करके उसी कब्रिस्तान में अपने दिन भर के काम काज की थकान को मिटाने के लिए जमा होकर गप्पे हांक रहे थे. इस बीच माइकल एंथोनी को अपने करीब आता देख सभी चौंक पड़े. पास आने पर मोहन ही कहने लगा कि ”सारी अंकल हम लोग आज मैच खेलने नहीं आये है….. अब आज क्या अब हम कभी भी मैच नहीं खेल पायेगे…..” कारण पुछने पर मोहन कहने लगा कि अंकल मंगल के न होने से मैच का मजा ही नहीं ….. कुछ देर बाद उन लड़को की खामोशी को तोड़ते हुये वह गोरा व्यक्ति बोला ”यदि मंगल भी तुम्हारे साथ आज मैच खेलेगा तब भी तुम मैच नहीं खेलोगें…?” उस गोरे अग्रेंज माइकल अंकल की बात को सुन कर सभी लड़के हस पड़े और कहने लगे ”क्या अंकल आप भी सठिया गये हो कभी आपने किसी मुर्दे को मैच खेलते देखा है….?” कुछ पल शांत रहने के बाद वह गोरा अग्रेंज एम्पायर माइकल कहने लगा ”देखो बेटे मेरी बातो को सुनने के बाद वादा करो कि तुम किसी से कुछ नहीं कहोगें और ना डरोगें भी नही…..” अब इन लड़को की सिटटी – पिटटी गुम हो गई. वे डर के मारे थर – थर कांप रहे थे लेकिन जब माइकल ने उनसे कहा कि ”मैं भी एक मुर्दा ही हँू. पास की कब्र से निकल कर आता हूं . बीते सोलह साल से तुम्हारे मैच की एम्पायरिंग करने वाला मैं एक अग्रेंजी शासन काल का अफसर माइकल एंथोनी हूं. पास ही डान बास्को में मेरा परिवार रहता था लेकिन मेरे मरने के बाद सभी अपने देश चले गये और मैं आज भी सामने वाली कब्र में पड़ा हँू. मुझे भी किक्रेट का बहुंत शौक है. मुझे मरे सौ सवा सौ साल हो गये लेकिन आज भी मैं अपनी कब्र से सिर्फ इसलिए बाहर निकल आता हंू क्योकि मुझे तुम्हारे साथ मैच में मजा आता है. ” अब उस सुनसान कब्रिस्तान में मौजूद सभी बारह लड़को को सांप सुघ गया था. उन्हे भयकांत देख कर माइकल ने उनसे कहा कि ”देखा मैं तुम्हारा पहले भी कोई नुकसान नहीं किया और न आगे करने वाला हँू. मेरी पूरी हकीगत जानने के बाद अब मुझे पूरा विश्वास है कि तुम लोग मुझसे फिर कभी नहीं डरोगें और रोजाना की तरह मेरे साथ मैच खेलने आया करोगें….” माइकल ने जब मंगल को आवाज लगाई तो करबला नदी के छोर से मंगल आत हुआ दिखाई दिया. मंगल को अपने करीब आता देख उसके सभी साथियो का डर के मारे बुरा हाल था. जैसे ही मंगल पास आया तो उसे देख कर सारे लड़के धड़ाम से जमीन पर गिर पड़े………अपनो को कब्रिस्तान के बाहर स्कूल के हाल में देख सभी लड़के भौचक्के रह गये. पुछने पर बताया कि वे सभी कब्रिस्तान में बेहोश पड़े थे. चारो ओर लोगो का मेला लगा हुआ था. लोग उनसे पुछ रहे थे कि वे इस पूर्णमासी की रात को कब्रिस्तान में क्या करने गये थे तथा उनके साथ क्या हुआ. वे उन लोगो को कुछ बताते इसके पहले उन्हे उस भीड़ में मंगल और माइकल एंथोनी दोनो दिखाई पड़े जो अपने हाथो को अपने मुँह पर रख कर उनसे चुप रहने का इशारा कर रहे थे. लोगो के सुबह से लेकर शाम तक पुछने पर भी जब सभी लड़के कुछ नहीं बता पाये तो मोहल्ले के लोग कल्लू बाबा को अपने साथ ले आये. कल्लू बाबा ने उन सभी लड़को को अपने साथ लाया पानी पीने को कहा. पानी पीते ही सभी लड़के उल्टे पाँव उस कब्रिस्तान की ओर भागने लगे. एक टूटी – फूटी कब्र के पास सभी खड़े होकर जोर – जोर से चिल्लाने लगे ”माइकल अंकल हमें बचा लो …….” कल्लू बाबा ने अपनी पोटली में से एक लोहे की किल निकाली और उस कब्र में जैसी ही गाड़ी की खून की तेज धार बाहर आकर बहने लगी. कल्लू बाबा कुछ देर तक बुदबुदाने के बाद उन सभी लड़को से कहने लगा कि ”अब तुम सभी ठीक हो , लेकिन याद रखना फिर कभी इधर आकर किक्रेट मैच मत खेलना…..”
इति,

प्रेम कहानी
पूर्णा
कहानी :- रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला ”
वह गोरी चंचल हिरणी जैसी मदमदस्त चाल वाली लड़की का नाम पूर्णा था. पूर्णा का मतलब कई प्रकार से निकाला जा सकता है. एक तो वह पूर्ण रूप से अपने मदमस्त यौवन की दहलीज पर आ खड़ी होने के कारण एक पूर्ण महिला बन चुकी थी. गरीबी और लाचारी यही शायद उसकी मज़बुरी रही होगी तभी तो वह अपने से कई साल बड़े उस पौढ़ व्यक्ति से शादी कर चुकी थी. जिस समाज मे ऐसे रिश्तो को जोडऩे की प्रक्रिया को गंधर्व विवाह कहा जाता है उसे आम बोलचाल की भाषा में पाट भी कहते है. पूर्ण की आखिर क्या मज़बुरी थी यह तो वही जाने लकिन लोगो को ऐसा कहते जरूर सुना था कि यह शादी नहीं बल्कि सौदा था. पूर्णा की शादी को लेकर उसके समाज के कथित समाज सुधारक लोग उसे उस व्यक्ति के चुंगल से बलात् पूर्वक छुड़ा कर अपने साथ तो लाये लेकिन पूर्णा का अब क्या होगा कोई नहीं जानता था. पूर्णा का मामला किसी दुसरी जाति के पौढ़ व्यक्ति के साथ कथित शादी – विवाह या उसकी खरीदी – बिक्री से जुड़ा हुआ प्रतीत होता था. एश्चवर्या राय की हमशक्ल कहलाने वाली इस कजरारी आंखो वाली पूर्णा पर हर किसी का दिल आना ठीक उसी प्रकार था जिस प्रकार जैसा
अकसर जलेबी को देखते ही मुंह से लार टपकने लगती है. उसे देख कर अगर कोई आंह न भरे तो उस हिरणी की बलखाती जवानी का एक प्रकार से निरादर
होगा. आज उसे समाज के ठेकेदार समाज के मान – सम्मान की दुहाई देकर जबरन विवाह मंडप से उठा कर तो लेकर आ गये लेकिन अब समस्या उठी की आखिर
वह रहेगी कहाँ…..? हर कोई पूर्णा को अब अपने घर रखने से इंकार कर रहा था. जवानी की दहलीज पर पांव रख चुकी पूर्णा के पांव में कब कोई गिर पड़े इस बात का हर किसी का अंदेशा था. शायद एक कारण यह भी रहा हो कि कोई भी परिवार वाल व्यक्ति उसे अपने साथ अपने घर ले जने से मुंह चुरा रहा था. पूर्णा इन सब बातो से बेखबर थी. उसका दुसरा विवाह न करने देने वाले समाज के ठेकेदार एक – एक करके खिसकने लगे. आखिर में उसे एक घर में कुछ समय के लिए ठहराने का वादा करके समाज की पंचायत में उसका फैसला कर देने की बात करके वे लोग भी नौ – दो ग्यारह हो गये जो कि समाज की बेटियो की दुहाई का दंभ भरते थे. जिस व्यक्ति के घर पूर्णा रूकी थी उस घर के लोगो ने बेसहारा – बेसहाय – गरीब – लाचार स्वजाति लड़की को यह सोच कर पनाह दी थी कि उसका दुख दर्द कम हो जाये. जब पूर्णा दर्द के रूप में नासूर बनने लबी तो अब उनके लिए भी पूर्णा बोझ सी लगने लगी. दो चार नहीं बल्कि जब पूरे एक पखवाड़ा बीत गया लेकिन न तो समाज की पंचायत बैठी और न लोग उसकी सुध लेने आये. ऐसे में अब पूर्णा को लेकर उस घर में भी कोहराम मचना स्वभाविक था. अब पूर्णा को पनाह देने वाले पर भी ऊंगलियां उठनी शुरू हो गई. पूर्णा को लेकर सबसे पहले शरणदाता की धर्मपत्नि ने ही बगावत का डंका बजा डाला. इधर उस महिला को भी चिंता सताने लगी थी कि कहीं उसका पति कोई दुसरी सौतन तो घर में नहीं ले आया. सौत की डाह बहुंत बुरी होती है. जवान बेटे को छोड़ अब पति पर ही शक का बीज अंकुरित होकर पौधा बन चुका था. पूर्णा और अपने जवान बेटे के बीच सिमटी दूरी से बेखबर मां को अपने पति की चिंता और सौत की आशंका ने बीमार बना डाला था. इधर अनाथ पूर्णा का जब भरा -पूरा परिवार एवं हम उम्र प्रेमी मिल गया तो दोनो की बीच की दूरियां सिमटने लगी. घर परिवार में अब पूर्णा को लेकर मची महाभारत से तंग आकर एक दिन उसका शरणदाता समाज के उन ठेकेदारो के पास जा पहुंचा जिन्होने उनके शांत – खुशहाल जीवन में भूचाल ला दिया था. पत्नि के रात -दिन ताने और बाने से तंग आकर उसने भी पूर्णा को अपने घर से बाहर निकालने का मन बना लिया. एक बार फिर पूर्णा सड़क पर आ गई. कल बाजार में बिक चुकी पूर्णा को आज फिर किसी नये खरीददार का इंतजार था क्योकि वह अपना पूरा जीवन आखिर काटे भी तो किसके सहारे…..
पूर्णा का जैसा नाम वैसा काम था. चंचल हिरणी और कलकल बहती नदी की तरह थी . उसका कोई ठहराव नहीं थी इसलिए उसे उस सागर की ओर बहना था जिससे उसका मिलन होगा. सागर की खोज में पूर्णा बह तो निकली लेकिन वह आखिर क्या सागर से मिली भी या नहीं किसी को कुछ पता नहीं. पूर्णा को पूरा यकीन था कि उसका वह हम उम्र पे्रमी हाथ जरूर थाम लेगा लेकिन माता – पिता पर आश्रित वह उसका हाथ थामना तो दूर उससे जाते वक्त आंख तक मिलाने को तैयार नहीं था. ऐसे में आंखो में उम्मीद और आसुंओ का समुन्दर लिये पूर्णा ने अपना सामान समेटा और उस घर को भी बिदा करके चली गई. उसे पता भी नहीं चला कि उसने कब सवा महिने उस घर में बीता दिये जहां पर उसको लेकर आये दिन लड़ाई – झगड़ा होता रहता था. पूर्णा कौन थी कोई नहीं जानता लेकिन जब उससकी एक पौढ़ व्यक्ति से शादी हो रही ी तो उसे रोकने के लिए पूरा कथित समाज लावालश्कर के साथ जमा हो गया था. ऐसे लग रहा था कि भीड़ की शक्ल में आये इन्ही लोगो में से किसी के परिवार की सदस्य है पूर्णा लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी जिसे छुपाने का प्रयास किया जा रहा था. आज पूर्णा को गये पच्चीस साल हो गये. वह जिंदा भी है या नहीं कोई नहीं जानता. पूर्णा की मदमस्त जवानी और उसका अल्हड़पन हर किसी को अपनी ओर मोहित कर देता था. काफी दिनो बाद आज जब दक्षिण भारत की आइटम गर्ल सेक्स बम कही जाने वाली अभिनेत्री स्वर्गीय सिल्क स्मिता की टीवी पर चल रही फिल्म में उसके चेहरे की झलक एवं आंखो में दिख रही अपील को देख कर उसे अपनी पूर्णा की बरबस याद आ गई. अपनी पूर्व प्रेमिका एवं पहले प्यार को याद कर जब उसकी आंखो से आंसु बहने लगे तो पास में बैठी पत्नि ने आखिर सवाल दाग ही दिया कि ”क्या हुआ आप रो क्यों रहे हो………! अपनी के द्वारा बहते आंखो के आंसुओ के पीछे की चोरी पकडने के बाद उसने बहाना बनाया कि ”कुछ नहीं आंख में कुछ चला गया ……!”
पत्नि ने देरी किये बिना अपने साड़ी के पल्लू से आंखो को पोछ कर आंखो से कुछ निकालना चाहा लेकिन जब आंखो से कुछ नहीं निकला तो पत्नि को भी आश्चर्यचकित रहना पड़ा. आखिर पति को रोता देख पत्नि ने एक बार फिर सवलो की तोप उसकी ओर दागी और वह बोल पड़ी ”कहीं उस सौतन की याद तो नहीं आ गई जिसके पीछे अभी तक अपना सब कुछ लुटाते चले आ रहे थे……!”
पत्नि के मुंह से कड़वे शब्दो को सुन कर वह अपने कमरे से बाहर की ओर निकल पड़ा. जब देर रात तक पति घर पर नहीं आया तो पत्नि को भी कुछ शक हुआ और उसने सभी जगह फोन काल खडख़ड़ा डाले.

रोमांच से भरपूर सत्यकथा
सातबड
रामकिशोर पंवार ”रोंढावाला”

रोढा सहित आसपास के दर्जनो गांव के लोग ताप्ती नदी पर स्थित बारहलिंग के मेले के लिए पैदल – बैलगाडी से सातबड होते हुये ही आना – जाना करते थे। आज पूरे दिन जम कर बरसात होने से पूरे गांव में अफरा – तफरी मची हुई थी। गांव का तलाब लबालब भर चुका था। मरघट वाला नाला पूरी तरह से ऊफान पर थ। गांव के कुछ चरवाहे जो कि बरसात में किसानो के जानवरों को ठेके पर चराने ले जाया करते थे उन्ही लोगो में से एक परिवार का सदस्य था वामन जिसके सातबड के पास किसी नदी – नाले में बह जाने की खबर सुनने के बाद पूरे गांव मे सन्नाटा छा गया था। वामन को खोजने के लिए गांव के आधा दर्जन युवको की टोली अपने साथ राशन – पानी का सामान लेकर बरसात से बचने के लिए कम्बल को ढक कर गांव से निकल चुके थे। हमारे गांव में गायकी समाज के लोग न होने के कारण गांव के जानवरो की बरसात के चार महिने की चरवाही का काम गांव के ही किसी भी गरीब परिवार के बेरोजगार युवक से लेकर पौढ व्यक्ति किया करते थे। ऐसे लोग समूह बना कर जानवरो को एकत्र कर ताप्ती के जंगलो में ले जाया करते थे। गांव से कोसो दूर इन जंगलो में एक झोपडा बन कर उसमें रह कर जानवरो के लिए बाडा बना कर उसमें उन्हे रात में बांध लिया करते थे। वामन – तुकाराम और दयालू तीनो संगी – साथी होने के कारण वे पिछले सात – आठ सालो से जंगलो में बरसात के समय जानवरो को ले जाया करते थे। ताप्ती के जंगलो में जानवरो को चरने ले जाने से पहले सभी चरवाहे और ग्रामिण सातबड के पास सातबड वाले बाबा के स्थान पर पूजा – अर्चना करने के बाद ही आगे की ओर प्रस्थान करते थे। सेलगांव और सावंगा के बीच में स्थित सातबड के बारे में अकसर नानी कहानी बताया करती थी कि इस स्थान पर सात बरगद के पेड है जिन्हे ग्रामिण अपनी भाषा में सातबड कहा करते थे। इस स्थान पर अकसर शेर – चीतो की दहाडे सुनने को मिलती थी। पालतू जानवरो को जंगलो में शेर -चीते न खा जाये इसलिए ग्रामिण और चरवाहे सातबड वाले बाबा की पूजा – अर्चना करते रहे थे। तुकराम को घर के लोग बंगा कह कर ही पुकारते थे। अकसर अपनी मनमर्जी के अनुसार रहन – सहन करने वाले बंगा की और वामन की अच्छी – खासी यारी – दोस्ती थी। पिछले कई सालो से वे जंगलो की खाक छानने के साथ – साथ एक दुसरे के पक्के दुख – सुख के साथी बन चुके थे। वामन के नदी – नाले में बह जाने की खबर भी गांव तक तुका ऊर्फ बंगा काका ही लेकर आया था। गांव के युवको की चार – पांच टोली अलग – अलग दिशा में वामन को खोजने को निकल चुकी थी। गांव के लोगो ने उन्हे बताया भी था कि जंगल में जाने से पहले सातबड वाले बाबा की पूजा – अर्चना कर लेना लेकिन वामन के गम में सभी लडके उस बात को भूल गयें और अपने – अपने रास्तो की ओर निकल पडे।
तुकाराम काका के साथ जो चार पांच लडके गये थे उसमें मैं भी शामिल था। मैने भी पता नहीं क्यों दादी की कहीं बातों को अनसुना करके बिना पूजा – अर्चना के ताप्ती के जंगलो में प्रवेश कर लिया। इधर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी।  किसी तरह गांव के आसपास के नालो को पार करके ताप्ती के जंगलो मे आ तों गये लेकिन जंगल में अंदर घुसने के बाद चारो ओर छाये घनघोर अंधेरे ने हमें पास के उस नाले तक पहुंचाने में पूरा दिन लगा दिया जिसमें वामन के बह जाने की खबरी मिली थी। पता नहीं क्यों हम उस नाले के आसपास होने के बाद भी उस तक पहुंच नही पा रहे थे। हम बार – बार घुम फिर कर उसी रास्ते पर आ जाते जहां से शुरू हुये थे। अब जब पूरी तरह पांवो ने जवाब दे दिया तो ऐसा लगने लगा कि हम किसी बडी मुसीबत में फंस चुके है। आसपास के आदिवासी गांवो के लोगो के बंजर पडे खेतो में बनाई बाडी यहां तक हमंे अपने जंगलो में चराने के लिए लाये गये जानवरो का बाडा तक नजर नहीं आ रहा था। अब हमें ऐसा लगने लगा था कि जंगल में वामन को खोजने के चक्कर में हम सब अपने दयालू को भी भूल चुके थे जिसे वामन के गुम हो जाने के बाद तुका काका ने जानवरो के साथ उस बाडे में रूकने को कहा था। शाम के ढलते ही जंगलो में बुरी तरह फंसने के बाद हम सभी सिर पर मौत का संकट मंडराने लगा था। घनघोर जंगलो में रास्ते तक भूलने के बाद किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर करे तो क्या…! जब हम सभी लडको को रोता देख अचानक तुका काका ने अपना मौन तोडा और वह जोर- जोर से ठहाको के साथ हसने लगा। उसे इस तरह हसता देख हम सभी यार – दोस्तो की सिटट्ी – पिटट्ी गुम हो चुकी थी। उस समय हम सभी दोस्तो की उमर कोई ज्यादा नही थी। गांव के ही मीडिल स्कूल में छटवी कक्षा में पढते थे। बरसात में स्कूल की छतो से पानी टपकता था इसलिए मास्टर लोग बरसात के चार महिने चार दिन भी सही ढंग से स्कूल नहीं लगाते थे। दो बार स्कूल की दिवार के गिर जाने तथा उसमें दो लडको के दब कर मर जाने के बाद भी जब स्कूल की दिवारो को नहीं सुधारा गया तो बच्चो की जान को जोखिम में डालने के बजाय मास्टर जी ने स्कूल ही लगाना बंद कर दिया था। गांव के मुखिया को इस बात की खबर थी लेकिन उसके लडके तो शहर में पढा करते थे इसलिए उसे कोई चिंता नहीं थी। गांव के लडके भी बरसात के महिनो में बस्तो मे बंद काफी – पुस्तको को पढने के बजाय किसी के खेत – खलिहान में मजूदरी करना पंसद करते थे। एक आना रोज से गांव में लडको को जानवर चराने से लेकर खेतो – खलिहानो में जागली – चौकीदारी का काम मिल जाता था।
हमारे गांव के मोहल्ले में तेरह – चौदह साल के हम चार – पांच लडको की टोली हुआ करती थी। गरीब परिस्थिति में जीवन यापन किसी यातना से कम नहीं होता है। दादा ठेके पर कुयें खोदने का काम करते थे। दादी और मां गांव में जमीदारो के खेतो में काम पर जाती थी। आज जब हम सभी हम उम्र के लडको की टोली गांव से की सरहद से बाहर निकली जिसमें तुका काका ही सबसे बडा था। गांव के लोगो ने हमें जंगल जाने से मना भी किया लेकिन वामन के घरवालो का रोता हाल देख कर कुंजू – गिरधारी – भगवान और गजानंद अपने घर वालो को बिना बतायें घर से मेरे कहने पर निकल चुके थे। सिर्फ मैं ही अपनी दादी वामन को ढुढने जाने की बात बता कर निकला था। मेरे सहपाठी कंुजू लोहार ने अपने घर में किसी को कुछ बताया भी नहीं जबकि उसके घर पर कल से गणेश जी बैठने वाले थे। हम सब संगी साथी कंुजू लोहार के घर पर गणेश जी को बैठालने की तैयारी में लगे हुये थे इस बीच वामन के नाले में बह जाने की खबर मिलने के बाद हम सभी लडके भी अन्य लोगो की तरह ताप्ती केे जंगलो की ओर तुका ऊर्फ बंगा काका के साथ निकल पडे थे। अब काली स्हाय रात को कैसे काटे इस चिंता से ज्यादा जानमाल की हो रही थी। पटोली में लाई रोटी नम  मिर्ची के साथ खाने के बाद पेट का ज्वाला तो शांत हो गई लेकिन मन बार – बार होने वाले किसी अंदेशे को को लेकर सहम जाता था। अब हमारे पास अपनी उस अनजानी भूल को सुधारने के सिवाय कोई चारा नहीं था। सभी ने सातबड वाले बाबा को एक साथ पुकारा और हमें राह दिखाने की विनती की। इधर बरसात से हमारा कम्बल भी पूरी तरह भीग चुका था। ठंड से शरीर थर – थर कांपने लगा।
कल गणेश जी को कंुजू लोहार के घर पर कैसे बैठाल पायेगें इस बात को लेकर मन में तरह – तरह के सवाल उठने लगे थे। कुछ देर में बरसात के छीटे कम पडते देख हम सभी पेड की ओट में दुबके रहने के बाद एक बार फिर रास्ते को खोजने के लिए आगे बढने ही वाले थे कि किसी ने आवाज दी ‘‘ रामू बेटा कहां जा रहा है…….!’’ आवाज कुछ जानी – पहचानी लगी। इस विरान जंगल में हमें कुंजू के दादा जी लोहार बाबा की आकृति दिखाई दी। उस आकृति को देख कर हम सब भौचक्के रह गये क्योकि अभी दो महिने पहले ही कुंजू के दादा जी की मृत्यु हो चुकी थी। दादा जी का अंतिम संस्कार गांव के लोगो द्धारा ताप्ती नदी में किये जाने के लिए उन्हे सातबड वाले रास्ते ही ले गये थे। पास आने पर लोहार बाबा ने कुंजू के शरीर पर हाथ फेरा और बोले ‘‘ कंुजू तू बेटा नाराज है…..! मुझे अभी नहीं मरना था…….! तुम लोग चाहते थे कि गणेश जी विसर्जित होने के बाद ही मेरी मौत हो ताकि तुम लोग गणेश जी की अच्छे से पूजा – अर्चना कर सके। पर क्या करू बेटा मुझे तो ऊपर वाले का बुलावा आ गया था इसलिए जाना पडा……! ’’ इधर कुंजू सहित हम सबका डर के मारे बुरा हाल हो रहा था। अभी कुछ देर पहले तक लगने वाली ठंड के बाद भी हम पसीने से तर – बतर हो गयें थे। लोहार बाबा ने हमें बताया कि ‘‘ चिंता कि कोई बात नहीं वामन जिंदा है तथा वह अपने घर पहुंच चुका है। उसे भी बहता देख मैने ही बाहर निकाल कर उसे गांव जाने को कहा था……।’’ उस घनघोर जंगल में कुंजू के दादा जी हमें अपने गांव के जानवरो के बाडे के पास ले जाने के बाद पता नहीं कहां अदृश्य हो गये। अपने झोपडे में आग ताप रहा दयालू हमें देखने के बाद बोला ‘‘ इतनी रात को आने की क्या जरूरत थी , सबुह आ जाते…….!’’किसी तरह रात काटने के बाद सुबह उठते ही हम सभी लडके तुका ऊर्फ बंगा काका को वही छोड कर सीधे ताप्ती से सातबड वाले रास्ते से गांव की ओर निकल पडे। सातबड के आते ही हम सभी ने कान पकड कर अपनी अनजानी भूल के लिए माफी मांगी और सातबड वाले बाबा से कहा कि‘‘ बाबा हमें पता चल चुका है कि लोहार बाबा की शक्ल में आप ही हमें रात को संकट से बाहर निकालने के लिए आये थे, यदि रात को आप नहीं आते तो हम शायद आज की सुबह नही देख पाते…..!’’ हम सभी लडको ने उन सातो एक साथ आसपास लगे बरगद ‘‘ बड ’’ के पेडो की परिक्रमा लगाई और सीधे अपने गांव के रास्ते की ओर निकल पडे। गांव पहुंचने पर हमें अपने रिश्तेदारो की डाट – फटकार तो सुनने को मिली लेकिन जब हमने वामन से पुछा कि ‘‘ वह जब नाले में बह गया था तो उसे किसने बचाया……! ’’ वामन की बताई कहानी में भी काफी रहस्य एवं रोमांच था। उसके अनुसार वह नाले में बहते काफी दूर जा निकला था लेेकिन तैराना जानने के बाद भी वह नाले को पार कर इस पार या उस पार नहीं जा पा रहा था। ऐसे में वामन ने अपनी जान को संकट में देख सातबड वाले बाबा को आवाज लगाई लेकिन कुछ   देर बाद जब उसे होश आया तो उसने स्वंय को सातबड के पास बेहोश पाया। सातबड के पास एक आठ – नौ साल का बच्चा खडा था जो उससे कह रहा था कि ‘‘ वामन गांव जा पूरे गांव में तेरे बह जाने की खबर फैलने के बाद तेरे घर वालो का रो – रोकर बुरा हाल हो गया है। गांव वाले तुझे खोजने इस जंगल में आ चुके है। वामन तू जितनी जल्दी हो सके अपने घर जा क्योकि मुझे भी कहीं और जाना है……’’! इधर उस रात को हमंे लोहार बाबा तथा वामन को बच्चे के रूप मंे मिलने वाले सातबड वाले बाबा के चमत्कार से हम सभी उपकृत हो चुके थे लेकिन गांव का वामन को खोजने गई दुसरी टोली के न आने से पूरे गांव के लोग डरे सहमे दिखाई दे रहे थे । शाम के ढलते ही वे लोग भी आ चुके थे उनकी बताई कहानी में भी काफी रोमांच था। उन्हे भी भूलन बेल ने जब अपने चक्कर में डाल दिया तो वे लोग भी सारी रात जंगल – जंगल घुमते रहे लकिन जब सुबह हुई तो उन्हे वामन मिला और बोला कि ‘‘ तुम लोग    गांव चलो , मैं बंगा भाऊ को लेकर गांव आ रहा हूं……..!’’ गांव तब वामन तो आ चुका था लेकिन बंगा काका अभी तक गांव नहीं पहुंचा। आज इस घटना को तीस साल से ऊपर हो चुके है लेकिन तुकाराम ऊर्फ बंगा काका का कोई अता – पता नहीं। गांव के जानवरो को चराने गये दयालू और वामन ने एक स्वर में एक ही बात बताई कि हमारे साथ बरसात के समय बंगा काका जानवर चराने गया ही नहीं था। अब पूरे गांव में बंगा काका के अचचानक गायब हो जाने की खबर चौकान्ने वाली थी। यदि बंगा काका वामन और दयालू के साथ गया नहीं था तो गांव आकर वामन के नाले में बह जाने की खबर लेकर आने वाला कौन था…….! कहीं ऐसा तो नहीं कि सातबड वाले बाबा ने हीं बंगा काका के रूप में आकर गांव वालो को वामन के बह जाने की खबर बताई हो………! हमारे साथ उस विरावान जंगल में जोर – जोर से ठहाके लगाने वाला यदि बंगा काका नहीं था तो कौन था………..! कहीं ऐसा तो नहीं कि सातबड वाले बाबा हम सबकी परीक्षा लेने के लिए उस रात जंगल में साथ – साथ रहे और फिर दयालू के पास रूकने का बहाना करके अदृश्य हो गये।
दादी को जब तुकाराम ऊर्फ बंगा काका के गुम हो जाने की खबर मिली तो वह बीमार पड गई। कुछ दिनो बाद कृष्ण जन्माष्टमी के दिन दादी का भी अचानक निधन हो गया। आज भी पूरे गांव वालो को यकीन नहीं हो रहा है कि वामन के नाले में बह जाने की खबर लाने वाला युवक तुकाराम ऊर्फ बंगा काका नहीं था…..! दादा – दादी के निधन के बाद गांव का एक घर बेचने के बाद हम लोग शहर आ गये। आज इस घटना को बीते कई दिन – साल हो चुके है। बंगा काका की तस्वीर भी आंखो से ओझल हो चुकी है। जब मैं अपने बच्चो को अपने बंगा काका की बाते बताता हूं तो उन्हे यकीन ही नहीं होता कि मेरे बाबू जी के पांच भाई थे। इस गर्मी में जब ननिहाल गया था तो अचानक मेरे कदम सातबड वाले बाबा के पास जा पहुंचे। उन सात बडो की परिक्रमा लगाते ही मुझे वह घटना याद आ जाती है जिसे याद करते ही पूरा बदन सिहर उठता है।
इति,

बहुचर्चित रहस्य रोमांच से जुडी कहानी
नागमणी
रामकिशोर पंवार रोंढावाला
सुबह के छै बजे जब जेल का घंटा बजा तो सारे कैदी अपने – अपने बैरको से बाहर निकल कर लाइन आकर खडे होने लगने शुरू हो गये । कैदियो की गिनती के समय जब मकलसिंह दिखाई में नहीं दिया तो जेल पहरी रामदीन को बडी चिंता होने लगी । उसने मकलसिंह को आवाज लगाई लेकिन अपने बिस्तर में सोया मकलसिंह जब बार – बार उसे पुकारे जाने पर भी जब नहीं आया तो पहरी गिनती अधुरी छोड कर मकलसिंह के बैरक में जा पहुंचा । उसने वहां पर देखा कि अपने बिस्तर में गहरी नींद में सोया हुआ था । जेल पहरी रामदीन ने मकलसिंह को जब हिलाया – डुलाया तब भी वह नहीं उठा तो वह घबराहट के मारे सीधे बैरक नम्बर 16 से जेलर साहब के बंगले पर जा पहुंचा । पसीने से लथपथ रामदीन ने जेलर शैतान सिंह के दरवाजे की कुण्डी को दो – तीन खटखटाया तो नींद से अलसाये जेलर शैतान सिंह ने सुबह – सुबह पहरी रामदीन के अचानक आने का कारण पुछा । जेल पहरी ने जब पूरी घटना जेलर शैतान सिंह को सुनाई तो उनके पांव के नीचे की जमीन खसक गई । क्योकि जिस मकलसिंह से वे अपने कमरे में रात के दो बजे तक उसकी कहानी को सुन रहे थे वह अचानक मर कैसे गया । वे अपनी नाइट ड्रेस में ही जेल के अंदर 16 नम्बर के बैरक में जा पहुंचे । जेलर शैतान सिंह के आते ही जेल में होने वाली कानफुसी बंद हो गई और लोगो को जैसे सांप सुंघ गया । इस बीच जेल कैम्पस से डाक्टर जौहर साहब भी अपने पूरे साजो – सामान के साथ आ चुके थे । हाथो की नब्ज टटोलने के बाद डाक्टर जौहरी ने मकलसिंह की मौत की खबर सुनाकर सभी को स्तब्ध कर दिया था।
पिछले चौदह सालो से जिला जेल में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मकलसिंह के अच्छे चाल – चलन की वजह से इस बार सरकार ने उसे आजादी की वर्षगांठ पर रिहा करने का कल ही फरमान सुनाया था । जेलर साहब स्वंय उसके बैरक में आकर उसकी बाकी की सजा की माफी की जानकारी उसे दे चुके थे। अपनी सजा की माफी की जानकारी मिलने के बाद से ही जब मकलंिसंह उदास रहने लगा तो उसके संगी -साथियो को बडा ही आश्चर्य हुआ । किसी तरह यह बात उडते – उडते जेलर शैतान सिंह के कानो तक पहुंची तो वे एक बार स्वंय शाम के ढलने से पहले मकल सिंह से मिलने गये थे ताकि वे उसके नाते – रिश्तेदारो की सही – सही जानकारी प्राप्त कर उन्हे मकलसिंह की रिहाई की जानकारी दे सके । पिछले चार महिने पहले ही शैतान सिंह रीवा से टंªासफर होकर बदनुर जेल आये थे। अभी जेलर साहब का परिवार नहीं आ पाया था। जेलर साहब की बिटिया कविता रीवा के इंजीनिरिंग कालेज में फायनल इयर में थी इसलिए वे अपने परिवाार को नहीं ला सके थे। बार – बार अपने नाते – रिश्तेदारो के नाम – पते पुछने के बाद भी जब मकलसिंह कुछ बताने को तैयार नहीं हुआ तो जेलर साहब को बडा ही अटपटा सा लगा । अपनी सजा माफी के बाद से हर समय हसंता – खिलखिलाता बुढा हो चुका मकलसिंह को इस तरह उदास देखकर जेलर शैतान सिंह को काफी हैरानी हुई । मकलसिंह से मिलने के बाद जेलर शैतान सिंह अपने जेल रिकार्ड में पडे उन पुराने रिकाडो के पन्नो से मकलसिंह के उस अपराध की तह में जाने का प्रयास किया जिसकी वह पिछले चौदह सालो से जेल में सजा काट रहा था ।  जेल रिकार्ड में मकलसिंह के गुनाहो की तह में जाने के बाद जेलर शैतान सिंह को पता चला कि मकलसिंह ने अपनी उस जान से प्यारी पत्नी और साले को ही मार डाला था। दो जघन्य हत्याओं के आरोपी मकलसिंह को चौदह साल पहले आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अपनी पत्नी और साले की हत्या के कारणो के पीछे की सच्चाई को जानने के लिए एक बार फिर जेलर शैतान सिंह ने देर रात को मकलसिंह को अपने कमरे में बुलावा भेजा । मकलसिंह आया तो जरूर पर वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं था। काफी कुदरने के बाद मकलसिंह ने जो हत्या की कहानी बताई उसको सुनने के बाद जेलर शैतान सिंह को यकीन नहीं हो रहा था। मकलसिंह की बताई कहानी सही भी है या काल्पनिक ।
महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश की सीमा से लगे आदिवासी बाहुल्य बदनूर जिला मुख्यालय की जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काटने वाला मकलसिंह दरअसल में नागपुर – भोपाल रेल एवं सडक मार्ग पर स्थित ढोढरा मोहर रेल्वे स्टेशन से बीस – बाइस कोस दूर पंक्षी  – टोकरा नामक गांव का रहने वाला था। पंक्षी और टोकरा दो टोलो की मिली – जुली बस्ती में रहने वाले अधिकांश परिवारो में आदिवासी लोगो की संख्या सबसे अधिक थी। सौ सवा सौ घरो के इस वनग्राम पंक्षी – टोकरा में गरीब आदीवासी मकलसिंह की आजीविका जंगलो से निकलने वाली वनो उपज पर आश्रीत थी। वह दिन भर जंगलो से जडी – बुटी एकत्र करता रहता था। उसे जंगली – जुडी बुटियो का अच्छा – खासा ज्ञान था। उसके पास से लाइलाज बीमारियों के उपयोग मे आने वाली जडी – बुटियो को औन – पौने दामो में खरीदने के लिए महिने में एक दो बार हरदा और हरसुद के वैद्य – हकीम आया करते थे । महिने में सौ – सवा सौ रूपये कमा लेने वाले मकलसिंह के पास अपने पुरखो की सवा एकड जमीन थी। जिसमें महुआ के पड लगे थे। बंजर पडी जमीन में किसी तरह अपने हाड – मास को तोड कर बरसाती फसल निकाल पाता था। वैसे तो मकलसिंह का टोकरा टोले का रहने वाला था । इस बिरली आदिवासी बस्ती के एक छोर पर स्थित मिटट्ी का बना पुश्तैनी मकान में मकलसिंह अपने परिवार के साथ रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी सुगरती के अलावा उसकी बुढी मां भी थी। मकलसिंह के मकान के पिछवाडे में उसका छोटा सा पुश्तैनी बाडा । उस बाडे में बरसात के समय मक्का और ज्वार लगा लेने से वह अपने परिवार के लिए साल भर की रोटी का बंदोबस्त तो कर लेता था लेकिन कई बार तो फसल के धोखा देने पर उसे यहां – वहां मजदूरी करने के लिए भी जाना पडता था । मकल सिंह के बाडे में कई साल पुराना पीपल का पेड था। इस पेड के नीचे उसके पुश्तैनी कुल देवो की गादी बनाई हुई थी । कई पीढी से मकलसिंह और उसके पुरखे उस गादी की पूजा करते चले आ रहे थे।
साठ साल की आयु पार कर चुके मकलसिंह निःसंतान था । अपने माता – पिता की एक मात्र संतान के घर में जब किलकारी नहीं गुंजी तो उसकी मां ने उससे बहुंत कहा कि वह दुसरी शादी कर ले लेकिन अपनी घरवाली सुगरती से बेहद प्यार करने वाले मकलसिंह ने किसी एक भी बात नहीं मानी । यहां तक की उसकी पत्नी सुगरती तक ने उससे कई बार कहा कि वह उसकी छोटी साली कमलती को ही घरवाली बना ले लेेकिन वह नहीं माना। एक रोज जब अपने बिस्तर से बाहर जाने को उठी सुगरती ने अपने बाडे में किसी ऊजाले को देखा तो वह दंग रह गई। वह सरपट वापस दौडी आई और उसने अपने पति को सोते से जगा कर उसे वह बात बताई तो मकलसिंह के होश उड गये। अब मकलसिंह को पुरा यकीन हो गया था कि उसकी मां रमोला ने जो उसे अपने बाडे में नागमणी वाले नाग की जो बाते बताया करती थी दर असल में कहानी न होकर हकीगत थी । लोगो का ऐसा मानना था कि जिस नाग की आयु सौ पार कर जाती है उसके शरीर में एक ऐसा मणी आकार रूप ले लेता है जिसका प्रकाश में वह बुढा नाग काली अमावस्य स्हाय रात में विचरण कर सकता है ।  मकलसिंह ने जब अपने बाडे में नागमणी के ऊंजाले को देखा तो वह समझ चुका था कि उसके बाडे में ही नागमणी वाला नाग कहीं रह रहा है । मकलसिंह ने हर महिने को आने वाली काली अमावस्या के अंधकार में स्हाय अंधेरी रात को अपने बाडे में दिखने नागमणी के प्रकाश वाली आंखो देखी घटना पर चुप्पी साध ली तथा उसने अपनी पत्नी सुगरती को भी यह कह कर चुप करा दिया कि यदि वह किसी को यह बात बता देगी तो उसके घर परिवार में अनर्थ हो जायेगा।
पुरे दिन भर बैचन रहा मकलसिंह किसी भी तरह से उस नागमणी को पाना चाहता था लेकिन उसे मिलेगा कैसे……! शाम होने के पहले मकलसिंह ने अपने घर की घास – फंूस काटने वाली दरातियों की धार को और भी अधिक तेज करने के बाद तोता वाले पिंजरे के चारो ओर उसे इस तरह बांध दिया कि यदि नाग उस पर हमला करे तो वह कट जाये । मकलसिंह ने पिंजरे के नीचे का भाग खुला रखा था ताकि वह पेड के ऊपर से यदि पिंजरे को फेके तो वह मणी के चारो ओर घेरा बना डाले । ऐसा सब करने के बाद वह बिना किसी को कुछ बताये रात के होते ही अपने बाडे के उसी पीपल के पेड पर चढकर बैठ गया। इधर सुगरती ने मकलसिंह को काफी खोजने की कोशिसे की लेकिन थकी – हारी सुगरती निराश होकर घर आकर सो गई । जब सुगरती मकलसिंह को खोजने के लिए अपनी बस्ती की ओर निकली तो उसकी रमोला ने उसे कहा भी कि वह मकलसिंह की चिंता न करे वह कहीं पीकर पडा होगा , जब सुबह होगी तो वह खुद ब खुद घर आ जायेगा लेकिन सुगरती का दिल नहीं माना। इधर पीपल के पेड पर बैठे मकलसिंह को नींद सताने लगी थी। उसके नींद की झपकी बस आने वाली थी कि उसे पेड के नीचे उसी ऊंजाले ने चौका दिया। मकलसिंह को लगा कि अपने बिल से निकलने के बाद नागमणी वाले नाग ने अपने शरीर से मणी को निकाल कर रख दिया है और वे उसके प्रकाश में विचरण करने लगा । अपने मणी से कुछ दुरी पर नाग के पहुंचते ही मकलसिंह ने दरातियों की तेजधार से बंधे उस पिंजरे को ठीक उस स्थान पर ऊपर नीचें की ओर गिरा दिया , जहां से प्रकाश आ रहा था। अचानक अंधकार होता देख गुस्से से तमतमाये उस नागमणी वाले नाग ने उस पिंजरे पर अपनी फन से जैसे ही वार किया उसकी फन कट कर दूर जा गिरी । सब कुछ देखने के बाद जब मकलसिंह को इस बात का पूरा यकीन हो गया कि नाग मर चुका है तो वह धीरे – धीरे पेड से नीचे उतर कर पिंजरे के पास आया और उसने उस मणी को अपने पास रख कर वह चुपचाप पिंजरे को लेकर चला गया । सुबह होते ही मकलसिंह ने उस नाग को जमीन में गडडा खोद कर उसे दबा दिया।
इस घटना को बीते कई साल हो जाने के बाद एक दिन मकलसिंह ने अपनी पत्नी सुगरती को वह मणी वाली घटना बता दी । सुगरती को भरोसा दिलाने के लिए कमलसिंह ने एक रात उसे वह मणी भी दिखा दिया। मकलसिंह ने सुगरती को बार – बार चेताया था कि वह यह बात किसी को न बताये लेकिन  नारी के स्वभाव के बारे में क्या कहा जाये कुछ कम है। सुगरती ने नागमणी वाली बात अपने छोटे भाई मकालू को बता दी । एक दिन अपने बहनोई के घर आ धमके मकालू ने कमलसिंह को उस मणी को दिखाने की जिद कर दी तो मकलसिंह भौचक्का रह गया। अब मकलसिंह को मणी की और स्वंय की चिंता सताने लगी। उसे लगा कि कहीं उसकी पत्नी नागमणी के चक्कर में कही उसके भाई के साथ मिल कर उसे मार न डाले इस डर से डरा – सहमा मकलसिंह ने पूरे दिन किसी से बातचीत नहीं । उस रात शराब के नशे मे धुत  मकलसिंह ने अपनी कुल्हाडी से अपनी पत्नी और साले मकालू की जान ले ली । मकलसिंह को जब होश आया तब तक सब कुछ अनर्थ हो चुका था। गांव में दो हत्या होने की भनक मिलते ही पुलिस भी आ चुकी थी। मकलसिंह ने अपने अपराध को तो स्वीकार कर लिया पर उसने वह नागमणी वाली बात किसी को नहीं बताई । मकलसिंह के जेल जाते ही उसकी बुढी मां उस सदमे को बर्दास्त नहीं कर सकी और वह भी मर गई ।
अपनी रिहाई की खबर सुनाने आये जेलर शैतान सिंह को जब मकलसिंह अपनी आपबीती व्यथा सुना रहा था तो शैतानसिंह जैसे कुख्यात जालिम जेलर की भी आंखे पथरा गई। मकलसिंह कहने लगा कि साहब जिस मणी के चक्कर मंे उसने अपनी जान से प्यारी पत्नि को ही अपना सबसे बडा दुश्मन समझ कर मार डाला तब वह जेल से रिहा होने के बाद बाहर जाकर क्या करेगा । जेलर के बार – बार पुछने के बाद भी मकलसिंह ने उसे वह मणी के कहां छुपा कर रखने की बात नहीं बताई। आज जब मकलसिंह मर चुका था तब बार – बार जेलर शैतानसिंह को उसकी मौत पर और नागमणी के होने पर विश्वास नहीं हो रहा था । जेलर शैतान सिंह ने स्वंय आगे रह कर मकलसिंह का पोस्टमार्टम करवाने के बाद उसकी लाश को लेकर उसके गांव गया जहां पर गांव के अधिकांश लोग मकलसिंह और सुगरती को भूल चुके थे। एक खण्डहर हो चुके मिटट्ी के मकान के पीछे पुराने पीपल के पेड के पास जेलर शैतान सिंह ने गांव वालो की मदद से एक गडडा खुदवा कर वहीं मकलसिंह को दफन कर दिया। आज भी उसी पेड के नीचे काली अमावस्या की रात को गांव के लोगो को ऐसा लगता है कि कोई व्यक्ति अपने हाथो में ऊंजाले लिए उस बाडे में घुमता रहता है । जिस – जिस भी व्यक्ति को इस नागमणी के होने की खबर मिलती वही व्यक्ति उस काली अमावस्या की रात को उसे पाने के लिए मकलसिंह के बाडे में मौजूद पीपल के पेड की डाली पर पूरी रात बैठा रहता है ताकि वह उस मणी को पा सके । गांव के लोगो के लोगो की बातो पर यकीन करे तो पता चलता है कि हर अमावस्या की काली रात किसी ने किसी नागमणी को पाने वाले इंसान की बलि ले लेती है। ऐसा पिछले कई दशको से चला आ रहा है। गांव के लोगो को आज भी काली अमावस्या की रात को होने वाले हादसे की आहट स्तब्ध कर देती है ।

इति,
नोट:- इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना – देना नहीं है।

रहस्य रोमांच से भरपूर सत्यकथा
‘‘ डब्लयू डब्लयू डाट काम ’’ की वंदना……..!
रामकिशोर पंवार रोंढावाला
आज फिर अमावस्या की काली रात थी। शाम को अपने सहपाठी के साथ टूयुशन पढने घर से निकला डब्लयू जब देर रात तक घर नहीं आया तो घर के लोगो की चिंता बढना स्वभाविक थी। डब्लयू के दोस्तो के घर से निराश लौटी दोनो बहनो शर्मिला – निर्मला ने जब उसकी मम्मी को डब्लयू के उनके दोस्तो के घरो पर न होने की खबर सुनाई तो वह गश्त खाकर गिर गई। आज सुबह ही इन्दौर जाते समय डब्लयू के पापा ने उसे बार – बार चेताया था कि ‘‘ आज अमावस्या है , डब्लयू को टुयूशन पढने मत भेजना ……….! लेकिन पता नहीं कब डब्ल्यू अपने दोस्तो के साथ अपनी उसी क्लास टीचर के पास टुयूशन पढने चला गया जिसके पास वह पिछले दो सालो से आ रहा था। पिछले कई दिनो से डब्लयू सोते समय किसी वंदना का नाम लेकर उसे पुकारते हुये अचानक गहरी नींद से जाग उठता था। ऐसे समय उसका पूरा बदन पसीने से तर – बतर हो जाता था। पिछले एक साल से उसके घर परिवार के लोगो ने उसकी इस अजीबो – गरीबो बीमारी को लेकर डाक्टरो से लेकर तांत्रिक – मांत्रिको – ओझा – फकीरो के पास खाक छानने में कोई कसर नहीं छोडी लेकिन किसी की भी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिर यह वंदना है कौन….! इसका उस ग्यारह साल के डब्लयू से क्या रिश्ता – नाता है।
डब्लयू के माता – पिता तथा रिश्तेदारो एवं मित्रो ने उसके स्कूल में पढने वाली सभी लडकियो में वंदना नामक की लडकी की तलाश की लेकिन सबसे बडा आश्चर्य इस बता का रहा कि पूरे स्कूल में दो हजार लडकियो में किसी का भी नाम वंदना नहीं था। इस वंदना ने पूरे परिवार के साथ हर महिने की उस काली अमावस्या की पूरी रात मंे सभी का जीना दुभर कर दिया था। डब्लयू उसके परिवार में सबसे छोटा सदस्य होने के कारण सबका प्रिय था। उसने पिछले साल ही ग्यारह साल की उम्र में तीसरी क्लास पास की थी। भारत सरकार द्धारा संचालित बारहवी बोर्ड मान्यता प्राप्त सरकारी स्कूल में पढने वाला डब्लयू पूरी क्लास में अव्वल नम्बर पर पास होने वाला छात्र था इसलिए पूरी क्लास का वह चेहता था।
पिछले साल अप्रैल माह की अमावस्या के बाद से शुरू ही इस लाइलाज समस्या से पूरे परिवार की शारीरिक – मानसिक – आर्थिक स्थिति डावाडोल हो चुकी थी। आज फिर अमावस्या की इस काली स्हाय रात में डब्लयू का इस तरह गायब हो जाना पूरे परिवाद चैन को गायब कर चुका था। पुलिस को भी इस बारे में सूचना दे दी गई थी कि एक ग्यारह साल का लडका अपने घर से टुयुशन से जाने के बाद से गायब है। सिटी कोतवाली ने पूरे क्षेत्र को वायरलैस सेट पर इस बात की जानकारी भेज दी थी। इधर धनश्याम भी अचानक अपने छोटे बेटे के रहस्यमय ढंग से गायब होने की खबर से इंदौर से भागा – भागा दौडा भोपाल आ चुका था। अपने परिवार में दो भाई – दो बहनो में डब्लयू डब्लयू डाट सबसे छोटा था। उसके पिता मध्यप्रदेश शासन की सरकारी नौकरी में भोपाल पदस्थ थे। सरकारी काम – काज की वजह से उसे अकसर इंदौर – ग्वालियर – जबलपुर – आना – जाना पडता था।
उसका नाम डब्लयू नहीं था लेकिन जब उसका जन्म हुआ था उस दिन उसके पापा ने अपने घर पर इंटरनेट कनेक्शन लिया था। इसलिए वे नेट पर किसी साइड में कोई जानकारी सर्च कर रहे थे उसी समय उसके जन्म की खबर मिलने के बाद से ही उसके बडे पापा उसे ‘‘ डब्लयू डब्लयू डाट काम ’’ के नाम से ही उसे पुकारते थे। बडे पापा की देखा देखी घर के सभी लोग उसे या तो ‘‘ डब्लयू  ’’ या फिर ‘‘ डाट काम ’’ के नाम से पुकारने लगे थे। झीलो  के शहर भोपाल जिसे ताल – तलैयो का शहर भी कहा जाता है। भोपाल को लोग भले ही नवाबो के शहर के रूप में जानते हो लेकिन सच्चाई यह है कि भोपाल को बसाने वाले राजा भोज थे जिन्होने भोजपुर में विशाल एतिहासिक शिव मंदिर और इस शहर में ताल – तलैया खुदवायें। धार के राजा भोज के वंशजो की लम्बी चौडी श्रंखला है। मध्प्रदेश के सात जिलो की बहुसंख्यक पंवार जााित के लोग स्वंय को राजा भोज के वशंज मानते चले आ रहे है। इसी भोपाल शहर में पुरानी जेल के पास मध्यप्रदेश फायर पुलिस स्टेशन भी बना है। इसी स्थान के आसपास किसी कालोनी में डब्लयू अपने परिवार के साथ रहता था। जैसे – जैसे अमावस्या की काली रात कटने लगी तो घर परिवार की चिंता भी बढने लगी। सुबह होते ही अचानक अपने स्कूल का बैग लेकर डब्लयू को कालोनी कैम्पस में आता देख सभी लोग भौचक्के रह गये। उसे आता देख पूरी कालोनी में कोहराम मच गया। किसी को भी अपनी आंखो पर भरोसा नहीं था कि वे जो देख रहे है वह सच भी है या नहीं…..! डब्लयू की खबर मिलते ही दौडी आई उसकी मम्मी का रो – रोकर बुरा हाल था। उसे गोदी में लेकर जाने लगे तो डब्लयू ने पीछे मुड कर देखा और पुकारा ‘‘ वंदना तुम भी मेरे साथ मेरे घर पर चलो ना………!’’ सुबह – सुबह पहली बार डब्लयू को उस अदृश्य तथाकथित वंदना का नाम लेकर बडबडाते देख आसपास भीड का शक्ल में खडे लोगो का हाल बेहाल था। किसी तरह उसे घर लाने के बाद जब पास के ही किसी युवक ने सामने वाली गली से मौलवी साहब को बुला लिया लेकिन मौलवी साहब की आठ -दस घंटे की पूरी मेहनत पर जैसे पानी फिर गया। आखिर किसी ने सलाह दी कि क्यों न इसे मलाजपुर गुरूसाहब बाबा की समाधी पर लेकर चले हो सकता है कि बच्चा ठीक हो जाये। लोगो की सलाह को उचित मान कर पूरी कालोनी के गिने – चुने लोग एक किरायें की जीप लेकर सीधे चिचोली के पास स्थित गुरू साहेब बाबा की समाधी पर ले आये। पहले तो डब्लयू यहां आने को तैयार नहीं हुआ लेकिन उसे किसी तरह से सब लोगो ने अपी बाहों में जकड कर लाया। समाधधी पर लाने के पूर्व ही उसे सामने बह रही बंधारा नदी में नहलाया गया उसके बाद बाबा की समाधी के पास बैठे बाबा के सेवक ने उसके सिर पर पानी के छीटे मारे । पानी के छीटे पडते ही डब्लयू के शरीर में प्रवेश कर चुकी वंदना ने बताया कि दरअसल में यह बालक उसके पिछले जन्म का पति है। भोपाल के पास ही बखरिया गांव के रहने वाले रमेश की गांव की छोरी वंदना से बारह साल पहले शादी हुई थी।  वंदना के हाथो की मेंहदी अभी सुखी भी नहीं थी कि वह एक दिन अपने पति रमेश के साथ भोपाल में झील में नाव पर बैठी सैर कर रही थी कि अचानक उनकी नाव पलट गई और दोनो पति – पत्नि की मौत हो गई। नाव का नावीक तैरना जानता था इसलिए वह बच निकला लेकिन मैं तो अपने पति के साथ ही इसी झील में डूब कर मर गई। पुलिस और गोताखोरो ने मेरे पति की लाश तो ढुंढ निकाली लेकिन मेरी लाश उन्हे आज तक नहीं मिली जिसकी चलते उसे अकाल मौत से प्रेतयोनी में जाना पडा। पिछले साल अमावस्या की रात की पूर्व संध्या पर डब्लयू को जब मैने देखा तो मुझे अपने पति रमेश की डब्लयू से हुबहू मिलती शक्ल के कारण मैं उसके पीछे पड गई। इन लोगो को याद होगा कि पिछले साल अप्रैल माह में डब्लयू भी नांव से अवानक नीचे झील में गिर गया था। दरअसल में मैने ही उसे गिराया था लेकिन जब मुझे पता चला कि यदि यह आज भी अकाल मौत मर जायेगा तो मुझे मुक्ति कौन दिलवायेगा……! इसलिए मैने ही डब्लयू को अवनक झील की गहराई से ऊपर की ओर फेका और ऐ लोग उसे तैराता देख बचा लाये। वंदना की कहीं बाते सुनने वालो को सौ प्रतिशत सही लग रही थी क्योकि उस शाम जो हादसा डब्लयू के साथ हुआ था उसके सभी प्रत्यक्षदर्शी भी आज यहां पर मौजूद थे। वंदना से बाबा ने डब्लयू को छोडने का संकल्प लेने को कहा लेकिन काफी ना – नुकर के बाद वह इस शर्त पर मानी की उसे गुरू साहेब बाबा प्रेत योनी से मुक्ति दिलवाये ताकि वह फिर जन्म लेकर अपने पति के रूप में डब्लयू को पा सके। वंदना की कहीं बातो पर सभी को सहमति थी क्योकि मात्र ग्यारह साल के इस युवक की अभी शादी तो होना है नहीं यदि उसकी शादी के बहाने किसी को प्रेत योनी से छटकारा मिल सकता है तो इससे बडी बात क्या होगी। आखिर वंदना को वचनबद्ध करने के बाद वंदना ने डब्लयू की देह से बाहर निकल कर अपने अन्यत्र स्थान की ओर प्रवेश कर लिया। आज डब्लयू की शादी की उम्र हो चुकी है लेकिन तीस साल के इस बांके युवक को इंतजार है कि उसकी वंदना उससे एक बार फिर शादी करेगी……!
इति,

बहू – बहन – बेटी के लिए ग्राहक तलाशते लोग
रामकिशोर पंवार की विशेष रिर्पोट
अफीम की तस्करी के लिए अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नीमच शहर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर राष्टरीय राजमार्ग पर बाछड़ा जाति की बस्ती बसी हुई है. सौ सवा सौ घरो की इस बदनाम बस्ती में पहँुचने वाले किसी भी आम आदमी से उस बस्ती का बच्चा हो या बुढ़ा बस एक ही सवाल करता है ”साहब फ्रेश माल चाहिए क्या………..?   बहू – बेटी बहन के लिए ग्राहक तलाशते लोगो के लिए उक्त जिज्ञासा भरा प्रश्र उसकी रोजी -रोटी से जुड़ा होता है. वह सिर से पांव तक फटेहाल कपड़े से अपने जिस्म को ढ़कता पौढ़ अपनी बुझती बीड़ी को जलाने के लिए लम्बा कश लगाते हुये मुझसे से वही सवाल ”साहब फ्रेश माल चाहिए क्या………..?  किया तो मैं उसकी बात को सुन कर हैरत में पड़ गया. यूँ तो मैं कई बार देह व्यापार करने वाली महिलाओं की बस्ती में उन पर स्टोरी लिखने के लिए जा चुका हँू. मुझे पहली बार उस पौढ़ व्यक्ति का अपनी बहू-बेटी की उम्र की लड़कियों के लिए ग्राहक तलाशना अजीब सा लगा. मैं उस पौढ़ व्यक्ति से कुछ बोल पाता इसके पहले उस कच्चे मकान के भीतर से एक सजी संवरी युवती ने मुझे आँख मारते हुए अंदर आने का इशारा किया. मैं मकान के अंदर जानेे के लिए आगे बढ़ा. करीब आने पर मैने देखा कि उस मकान में कुल दो कमरे बने हुए थे. सामने के कमरे में एक पौढ़ महिला बैठी हुई थी.अंदर से इशारा करने वाली युवती ने मुझसे उस महिला को रूपये देने का इशारा किया. पर्स से सौ रूपये का नोट निकाल कर मैने जैसे ही उस महिला को दिया वह रूपयें लेकर कमरे से बाहर चली गई. कमरे बाहर जाते ही उस महिला ने बाहर से कमरे का दरवाजा बंद किया तो मैं घबरा गया लेकिन वह युवती मेरा हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले जाते हुए बोली ”बाबू घबरा नहीं पुलिस वालो से बचने के लिए ऐसा करना पड़ता है.  उस युवती ने अपना नाम निर्मला बताया. निर्मल मन की उस युवती की वेश्या बनने की त्रासदी किसी हिन्दी फिल्म की नायिका से काफी मिलती जुलती थी. जब मैने उसे सवालो से उसके जिस्म को कुरेदना चाहा तो वह सिसकती हुई बोली ”बाबू जिस काम के लिए आए हो वो करो और हमे भी अपना काम करने दो ना  क्यो नाहक हमारा टाइम खराब कर रहे हो ? आप मेरे पहले ग्राहक है ? मुझे और भी लोगो को खुश करना है? मुझे कुछ कमाने दो ना ?  उसकी यह मजबुरी मुझे अजीब उलझन में डाल गई. मेरा उसके बारे में जानना बहँत जरूरी था मैने उससे कहा ” निर्मला अपने बारे में मुझे सब कुछ बताओं  मैं जितनी देर इस कमरे में रहँुगा उतनी देर का तुम्हे रूपैया दँुगा . काफी मिन्नत के बाद वह इस शर्त पर मानी कि उसकी इस कहानी में उसका नाम पता सब कुछ बदलना होगा. मैने उसे विश्वास दिलाया तो वह बताने लगी.
निर्मला आज अजीब उलझन में है. उसकी उलझन न तो पैसों को लेकर है और न ही किसी अन्य कारण से. पैसा उसके पास बहुत है, आधुनिक सुख-सुविधाएं भी उसने अपने पास काफी मात्रा में जुटा ली है. निर्मला की दिक्कत उसकी चार साल की बेटी ममता है. ममता अब सब कुछ समझने लगी है. ममता अब उससे सवाल करती है कि मम्मी मेरा बाप कौन है? वह मुझसे मिलने क्यो नहीं आता है? वह हमारे पास क्यो नहीं रहता? ऐसे कई सवाल वह पूछती है. उसके हर सवाल ऐसे है जिसका जवाब वह खुद भी नहीं जानती.  निर्मला ने जबसे होश संभाला है तबसे अपने आपको देह व्यापार की मण्डी में बैठा पाया है. खुद निर्मला को यह नही मालूम कि वह किसकी बेटी है? उसके पास अब तक कितने पुरूष आए और अपनी रातें रंगीन कर चले गए . जब निर्मला को खुद नहीं मालूम कि वह किसकी बेटी है तब वह अपनी बेटी को कैसे बताए कि वह किसकी बेटी है? उस रोज जब वह गर्भपात कराने अस्पताल गई थी तो डाक्टरो ने उसे यह कह कर मना कर दिया था कि अगर उसकी सेहत का ध्यान रखे बिना गर्भपात करा दिया गया तो उसकी जान जा सकती है. अपनी जान को बचाने के लालच में ममता ने जन्म ले लिया.जब ममता हुई तो उसने सोचा था कि वह अपनी बेटी को पढ़ लिख कर इस काबिल बनायेगी कि वह इस बदनाम बस्ती से कोसो दूर रहे. शायद ममता को जयपुर के कान्वेट स्कूल में भर्ती कराते समय उसने यही सोचा भी था. चार साल की होते ही ममता ने स्कूल जाना शुरू कर दिया.बाछड़ा जाति के लोगों की इस बस्ती में  निर्मला  ही अकेली ऐसी औरत नहीं है, दर्जनों ऐसी औरतें है, जिनकी ममता जैसी बेटीया है. हर रोज दर्जनो बाछड़ा जाति की युवतियाँ अपने-अपने घरों से निकलकर सड़क पर खड़ी हो जाती है और जैसे ही कोई पुरूष उधर आता दिखाई देता है, उसे अश्लील इशारे करके उसे अपने पास बुलाती है. मध्यप्रदेश के नीमच, मंदसौर , रतलाम जिले के बागाखेड़ा, पयलिया, माननखेड़ा तथा ढोढर और मंदसौर जिले के चिकलाना, मोयार बेड़ा, हनुमंतिया पिपलियामण्डी, मल्हारगढ़, चल्हू इंगोरिया तथा शंकर ग्राम गांव में ऐसे दृश्य आम बात है. आज भी इन गांवों में देह-व्यापार का धंधा कई पीढिय़ो से होता चला आ रहा है. इन गांवो में आने वालों में अधिकतर ट्रक ड्रायवर तथा उधर से गुजरने वाले राहगीर होते है.सौदा तय हो जाने पर पेशेवर औरतें ग्राहक को अपने घर ले जाकर उसे शारीरिक सुख देती है. नीमच, रतलाम तथा मंदसौर में 67 गांव ऐसे है जहां जिस्म फरोशी का धंधा धड़ल्ले से होता है. बाछड़ा जाति में जिस्म-फरोशी के धंधो को बुरा नहीं माना जाता है बल्कि यही धंधा उनकी रोजी-रोटी का आधार है. इस जाति की पौढ़ महिलाए अपने परिवार की रजस्वला की उम्र पार करने वाली हर लड़की को जिस्म बेचने की विशेष ट्रेनिंग देती है.12 वर्ष की अवस्था में पहुंचते ही उसे जिस्म-फरोशी के धंधे में उतार दिया जाता है. आज भी देह व्यापार से जुड़ी बाछड़ा जाति में बेटी के पैदा होने पर उसके परिवार के लोग जश्र मनाते है. साथ ही जब परिवार में लड़का पैदा होता है तो मातम मनाया जाता है. बाछड़ा जाति के पुरूषों के बारे में आम धारण है कि ए लोग एक नम्बर के कामचोर, निकम्मे और आलसी होते है, घर बैठकर रोटी तोडऩे के अलावा अपनी बहू- बहन – बेटी के लिए ग्राहक तलाशना इनका काम रहता है. आज भी केवल इस जाति में परिवार की सबसे बड़ी महिला को ही परिवार का मुखिया स्वीकारा जाता है. पुरा परिवार उसी महिला के हुक्म पर चलता है. बीते कुछ साल पूर्व तक बाछड़ा जाति में पहली लड़की को ही धंधे पर बिठाने की परम्परा थी, लेकिन पैसे की हवस में जाति के लोगों ने इस परम्परा को तोड़कर परिवार की सभी लड़कियों को धंधे में बिठाने की नई परम्परा शुरू कर दी है. आज भी इस जाति की अधिकांश युवतियाँ छोटी सी उम्र से ही शराब, हीरोइन , अफीम ,चरस ,की आदी हो जाती है.
वैसे देखा जाए तो इस जाति की महिलाओं का जिस्मफिरोशी का धंधा पुलिस के संरक्षण में ही चलता है. पुलिस यदा – कदा बदनामी से बचने के लिए इनके अडडे पर छापे मार देती है. ऐसा तक ही होता है जब क्षेत्र का कोई दरोगा या पुलिस का बड़ा अफसर बदल जाए. कुछ बाछड़ा जाति की महिलाओं को पुलिस छापे का भय सताते रहता है. पुलिस के डर से ए महिलाए अपने घरों में चारपाई और खाना बनाने के बर्तनों के अतिरिक्त कुछ भी सामान नहीं रखती है. हालाकि अधिकांश बाछड़ा जाति महिलाओं ने वेश्यावृत्ति से लाखों रूपए की कमाई करके नीमच एवं मंदसौर तथा रतलाम शहरों में अपने भव्य आलीशान मकान रखे है. अपने जिस्म के धंधे की मजबूरी को ध्यान में रखकर ए लोग आज भी कच्चे घरों में रहकर बेधड़क जिस्म फरोशी के धंधे को चलाये रखी है. बाछड़ा जाति में भी लड़की की नथ उतारने की परम्परा आजभी जारी है.नथ उतराने के लिए उस लड़की के परिवार को पाँच हजार रूपैया दिया जाता है. देह व्यापार के इन अड्डï पर दिल बहलाने आने वालों के लिए हर तरह की शराब सहित अन्य नशो का भी इंतजाम करवाया जाता है. मटन मुर्गा खाने वाले ग्राहको को उनकी मांग के अनरूप भोजन पका कर उपलब्ध कराया जाता है.कम उम्र की लड़कियां 275 से 300 रूपए के बीच मिल जाती है. ऐसा नहीं कि बाछड़ा जाति की लड़कियां जिस्म-फरोशी के धंधे को स्वेच्छा से करती है. दरअसल उनके मां-बाप ही उन पर दबाव डालकर धंधा करने के लिए प्रेरित करते है. बहुत सी लड़कियां चाहती है कि उनकी भी शादी हो और वे भी अपना घर बसायें, लेकिन मां-बाप की पैसों की हवस ही उनके इस स्वप्र को खाक कर देती है.
सबसे बड़ा आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि बाछड़ा जाति की युवतियाँ जिस्मफिरोशी के धंधे आने के कारण कई बार समय पर गर्भनिरोधक सामग्री का उपयोग नही कर पाने के कारण बिना ब्याही माँ बन जाती है. ऐसी महिलाओं की संख्या काफी है. शायद यही वजह रही होगी कि इस जाति की महिलाओं में कोर्ट-कचहरी से लेकर बच्चे के दाखिले तक में पिता की जगह इनकी मां का नाम ही लिखने की परम्परा जन्मी है. महू-नीमच मार्ग के किनारे बसे बाछड़ा समाज के गांवों के आसपास कई ट्रक खड़े देखे जा सकते है. ये ट्रक ड्रायवर ही इन लोगों के मुख्य ग्राहक होते है. स्थानीय लोग इन अड्डïों पर कम ही जाते है. जिस्म फिरोशी की इन बदनाम बस्तियों में पुलिस को कई बार कुख्यात अपराधी हाथ लगते है. देह-व्यापार के धंधे में लिप्त होने की वजह से यहां की ज्यादातर वैश्याएं भयानक यौन रोगों से पीडि़त होती है. कई बार अनेक चिकित्सा दलों द्वारा समय-समय पर किए गए सर्वेक्षण से चौकाने वाले निष्कर्ष सामने आए है. नीमच एवंंं रतलाम तथा मंदसौर जिलों की अधिकंाश बाछड़ा जाति की महिलाए एड््ïस जैसे भयानक रोग से पीडि़त मिली है.एड््ïस रोगी महिलाओं ने जागरूकता के अभाव के चलते इस बीमारी से निपटने के लिए न तो अस्पतालों की शरण ली है और न राज्य सरकार ने इन पीडि़त महिलाओं की सुध ली है.राज्य सरकार ने बाछड़ा समाज के बच्चों तथा महिलाओं के लिए स्कूल तथा वोकेशन ट्रेनिंग सेन्टर जरूर खोले है, लेकिन समाज में जागरूकता ला पाने के अभाव से ये योजनाएं विफल हो गई है. यहां के एक सरकारी स्कूल में इस समय केवल सात बच्चियां ही शिक्षा ग्रहण कर रही है। इसी तरह ढोढर सिलाई केन्द्र में केवल तीन लड़कियां सिलाई का प्रशिक्षण ले रही है। इन सब बात से पता चलता है कि बाछड़ा जाति की महिलाए अपने पुश्तैनी धंधे को छोडऩा नहीं चाहती है. मंदसौर जिले के 57 गांवो में बाछड़ा समाज के लगभग 5668 लोग रहते है. स्वास्थ्य विभाग ने एड्ïस की जांच के लिए बाछड़ा समुदाय की 12 से 35 वर्ष की लड़कियों एवं पुरूषों के 950 रक्त नमूने लिए. प्रारंंभिक जांच में इनमें एड्स की संवेदनशीलता 99.9 प्रतिशत आंकी गई. सर्वे के अनुसार 756 महिलाओं की जांच की गई, जिसमें 50.6 प्रतिशत वीडीआरएल पाई गई. एचआईवी पॉजिटिव की प्रमाणिकता 1.93 प्रतिशत पाई गई है. बाछड़ा समुदाय के 765 पुरूषों में 46.4 प्रतिशत वीडीआरएल पॉजिटिव पाए गए है, इसमें 0.75 प्रतिशत एचआईवी पॉजिटिव पाए गए है. इसी सर्वेक्षण में 435 स्त्रियों में वीडीआरएल पॉजिटिव पाया गया. इतनी बड़ी संख्या में एचआईवी सिद्ध होना भयंकर खतरे की ओर संकेत करता है. रतलाम से लेकर मंदसौर जिले के मुख्य सड़क मार्ग जिसे महू-नसीराबाद राजमार्ग कहा जाता है, इस पर 24 घंटे में लगभग तीन-चार हजार भारी वाहन गुजरते है. इसी मार्ग पर बाछड़ाओं के डेरे है. इस सड़क पर स्थित ढाबो पर आपराधिक गतिविधियां, अफीम, ब्राउन शुगर तथा स्मेक जैसे नशीले पदार्थों की बिक्री तथा देह व्यापार संचालित होता है. स्वास्थ्य विभाग ने यहां से गुजरने वाले ट्रक ड्रायवरों एवं क्लीनरों के भी रक्त नमूने लिए. जांच करने पर 20.7 प्रतिशत वीडीआरएल पॉजिटिव पाए गए. इस जांच में पता चलता है कि बाछड़ा समुदाय की पेशेवर लड़कियों से इन ट्रक ड्रायवरों में एचआईवी का प्रतिशत काफी अधिक है। इस निष्कर्ष के अनुसार ट्रक ड्रायवर इन बीमारियों को ज्यादा फैला रहे है. क्योंकि ये ट्रक ड्राइवर तथा क्लीनर जिस तरह बाछड़ा जाति की लड़कियों के साथ जिस्मानी संबंध बनाते है उसी तरह अन्य जगहों पर भी संबंध बनाते है. बाछड़ा जाति की युवतियाँ कब इस दलदल से बाहर निकल पायेगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन निर्मला को आज भी यह उम्मीद है कि उसकी ममता भविष्य में कभी भी उसका स्थान नहीं लेगी.
इति,

नाच मेरी बुल बुल तुझे पैसा मिलेगा
रामकिशोर पंवार
भारतीय संस्कृति का लाबदा ओढे उसके तथाकथित संरक्षक होने का दावा करने वाली मध्यप्रदेश की भाजपा के शासनकाल में महाराष्ट एवं मध्यप्रदेश के करोड़ो रहवासियों की धार्मिक आस्था एवं श्रद्घा का केन्द्र कहे जाने वाले जग प्रसिद्घ पवित्र शिवधाम सालबर्डी मेले में पिछले कई सालो से वैराइटी जैसे दर्जनो तमाशो के रात्री शो की आड़ में बेहुदा उत्तेजक अश्लील नृत्यों एवं अवैध धंधो की धूम मची रहती है. महाराष्ट सीमा से सटे हुए शिवधाम सालबर्डी में शिवरात्रि के अवसर पर आयोजित जिले के सबसे बड़े मेले में पिछले कई वर्षो से पड़ौसी राज्य महाराष्ट की युवा कमसिन बार बालाओं द्वारा खुलेआम बेरोकटोक किया जा रहे अश्लील नृत्य के चलते जहाँ एक ओर असंख्य शिवभक्तों की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचती चली आ रही है. वही दूसरी ओर कई वर्षो से इस मेले में वैराइटी जैसे शो के संचालकों द्वारा अपनी लाखों रूपयों का जरीया बने इन तमाशो को बड़ी संख्या में लगाने के लिए तथा उन पर किसी तरह की पाबंदी न लगे इसके लिए अपनी ओर से तन-मन-धन से राजनैतिक – आर्थिक तथा अन्य तरह की बिसात बिछाने में लगे हुए है. मध्यप्रदेश शासन को एक मुश्त मनोरंजन कर ने देकर उसकी चोरी करने वाले इन देह दर्शन कराने वाले व्यापारियो द्वारा ऐसा प्रयास किया जा रहा है कि उनके भाग्य से हर बार की तरह इस बार भी शीका टूट जाए ! महाराष्ट एवं मध्यप्रदेश के ताकतवर एवं ऊंची पहुंच वाले देह दर्शन कराने वाले तमाशेबाज वैराइटी शो के संचालकों के सामने मेला संचालक जनपद पंचायत प्रभातपट्टïन के अधिकारी एवं मेले में सुरक्षा व्यवस्था सम्भाल रही आठनेर पुलिस उनके द्वारा हर साल फेके जाने वाले टुकड़ो चलते वह हर प्रकार से नतमस्तक बनी रहती है. सालबर्डी मेले में चल रहे अश्लील नृत्यों के मामले में जनपद प्रशासन एवं पुलिस द्वारा जिला कलेक्टर एवं एसपी को पूरी तरह गुमराह कर वैराइटी शो की अनुमति दी गई है. वर्षो बरस से चले आ रहे आस्था के प्रतीक इस धार्मिक मेले में खुलेआम बिकती अवैध शराब, जगह-जगह खेला जा रहा तीन पत्ती का जुआं और नाबालिग लड़कियों से कराये जा रहे अश्लील डांस की ओर आंखे मूंदे प्रशासन और पुलिस के कारिंदों के सामने यह सब खुलेआम होना क्या साबित करता है? इसे लिखने की आवश्यकता नहीं है.
इधर इस मामले में जनपद पंचायत प्रभातपट्टन के मुख्य कार्यपालन अधिकारी का कहना है कि यदि वैराइटी शो संचालन की अनुमति नहीं दी जाती तो सालबर्डी मेला सफल नहीं होता. जबकि वैराइटी शो की आड़ में चल रहे अश्लील नृत्यों को रोकने के सवाल पर मेले में सुरक्षा व्यवस्था की कमान सम्भाल रहे आठनेर थाना प्रभारी साफतौर पर कहते है कि मेले में चल रहे वैराइटी शो के लिए स्थान का आवंटन जनपद पंचायत प्रभातपट्टन द्वारा किया गया है. फलस्वरूप जब मेला आयोजक जनपद पंचायत की सहमति से वैराइटी शो चल रहे है तो हम इन्हें रोकने वाले कौन होते है?बैतूल जिले की प्रभात पटटन जनपद पंचायत  के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत सालबर्डी में पहाड़ी के ऊपर एक गुफा में शिवजी का पुरातन मंदिर है. वर्षो पूर्व से यह पुरातन मंदिर मध्यप्रदेश, महाराष्ट तथा गुजरात के लोगों की धार्मिक आस्था का केन्द्र बना हुआ है. प्रति शिवरात्रि के अवसर पर यहां भरने वाले जिले के सबसे बड़े धार्मिक मेले में लाखों लोग आते है. हॉलाकि इस वर्ष शिवरात्रि के समय खराब मौसम एवं बारिश के कारण पूर्व वर्षो की अपेक्षा लगभग 40 फीसदी कम श्रद्घालु मेला में आये। धार्मिक महत्व के इस मेले में वैराइटी शो की आड़ में अश्लील नृत्यो एवं अवैध धंधों की धूम मची है मेले में अश्लील नृत्यो के साथ अवैध शराब की जमकर बिक्री हो रही. मेला में जगह-जगह लगे तीन पत्ती तथा जुएं के फड़ों में जमकर जुआं खिलवाया जा रहा है. सालबर्डी मेला में खुलेआम बेरोकटोक चल रहे अवैध धंधों से जहां एक ओर अवैध धंधों में लगे लोग जमकर कमाई कर रहे है वहीं दूसरी ओर इन अवैध धंधों से मेले में आने वाले सैलानियों विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
सालबर्डी मेले में पूजा डांस क्लब धमाका, करिश्मा, पूनम व धूम वैराइटी शो सहित लगभग पांच डांस क्लब बीते लगभग एक सप्ताह से संचालित है. इन वैराइटी शो की आड़ में कमसिन लड़कियों से अश्लील नृत्य करवाये जा रहे है. दोपहर 2 बजे से सुबह चार बजे तक चलने वाले  वैराइटी शो में फिल्मी गानों की धुनों पर कम कपड़ों में लड़कियों द्वारा अश्लील  अदाओं वाले कैबरे नुमा नृत्य होते रहते है. वैराइटी शो में डांस करने वाली लड़कियों को भाड़े पर लाया जाता है. प्रत्येक डांस ग्रुप में लड़कियों के साथ कुछ लड़के भी शामिल होते है. प्रत्येक डांस ग्रुप को वैराइटी शो के संचालकों द्वारा दो हजार रूपए से लेकर पांच हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाता है. डांस ग्रुप के रूकने एवं भोजन की व्यवस्था वैराइटी शो के संचालकों द्वारा की जाती है. सालबर्डी मेला में महाराष्टï्र के अमरावती तथा बैतूल जिले के आमला क्षेत्र के लोगों द्वारा वैराइटी शो लगाये गये है. यहां उल्लेखनीय है कि एक डांस शो में लगभग बीस मिनट तक फिल्मी गानों पर लड़के एवं लड़कियों द्वारा बेहुदा उत्तेजक अश्लील भाव भंगिमा के नृत्य किये जाते है. डांस शो की शुरूआत दोपहर 2 बजे से हो जाती है जो प्रात: तीन-चार बजे तक बेरोकटोक चलते है. बताया जाता है कि जैसे-जैसे रात गहराती जाती है शो में अश्लीलता बढ़ती जाती है. इन वैराइटी शो को देखने के लिए दस रूपये शुल्क निर्धारित किया गया है. शो के टिकटों की बिक्री भी डांसरों द्वारा ही की जाती है. डांस पार्टियों की कुछ लड़कियों द्वारा गहरा मेकअप एवं बदन उघाड़ कपड़ों के साथ पंडाल के सामने अश्लील भवभंगिमा एवं इशारों से लोगों को आकर्षित किया जाता है. यदि वैराइटी शो में दर्शकों की संख्या कम होती है तब वैराइटी शो के निर्देश पर डांस पार्टी का कम उम्र की कमसिन लड़कियों द्वारा पंडाल के सामने रेलिंग पर बैठकर ऐसे दर्शकों को आकर्षित करने के लिए अपना ऊपरी बदन तक उघाड़ा जाता है. एक प्रकार अति उत्तेजित करने वाले अंग प्रदर्शन के माध्यम से बाद में देह परोसने तक की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. एक वैराइटी शो में लगभग 15 से 2० दर्शक एक बार में नाच गाने का मजा लूटते है. इस तरह बीस मिनट के एक शो में प्रत्येक वैराइटी संचालकों 15 से 2० रूपये की आमदनी होती है. दोपहर 2 बजे से सुबह तीन चार बजे तक बेरोकटोक चलने वाली वैराइटी शो में डांसरों द्वारा 25 से 3० कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते है. इस तरह एक दिन में प्रत्येक वैराइटी शो के संचालकों को चालीस से पाचास हजार रूपये की आमदनी हो जाती है. हॉलाकि इस मोटी आमदनी में से एक बड़ा हिस्सा आबकारी  पुलिस, स्थानीय प्रशासन, कतिपय स्थानीय जनप्रतिनिधियों तथा एंट्री (चौथ) वसूलने वालो को चढ़ोतरी के रूप में वैराइटी शो के संचालकों द्वारा चढ़ाया जाता है. परंतु वैराइटी शो के संचालकों के मेले में प्रतिदिन मोटी रकम कमाकर देने वाली लड़कियों को 18 से बीस घंटे की कड़ी मेहनत के बावजूद चंद रूपयों देकर उनका दैहिक से लेकर आर्थिक शोषण तक किया जाता रहा है. मजबुरी में परिस्थितियो से समझौता करने वाले इन लड़कियो की आवाज आज भी शो से बाहर नहीं आ पाती है क्योंकि इस प्रकार के शो के संचालको द्वारा उन्हे चू चपट करने पर काफी यातना देने के बाद पुलिस तक से पताडि़त करवाया जाता है. एक रोचक तथ्य यह भी है कि सालबर्डी के मेले में लगने वाले तमाशो में नाचने वाली कमसिन बालाओ को वैराइटी शो के संचालकों द्वारा 2० से 5० रूपये प्रतिदिन के कान्ट्रेक्टर पर लाया जाता है. एक डांस ग्रुप में 8 से 1० महिला पुरूष सदस्य शामिल रहते है. इस हिसाब से 14 से 16 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद डांसरों के हिस्से में बमुश्किल तीन सौ से पांच सौ रूपये प्रतिदिन के हिसाब से आते है. इन डांस ग्रुपों में नाबालिक लड़कियों से भी डांस करवाये जाते है. सालबर्डी के धार्मिक मेले में मेला प्रबंधक द्वारा वैराइटी शो के संचालन की अनुमति दिये जाने से मेले में आये लोगों में खासी नाराजगी व्याप्त है. मोर्शी निवासी कृषक राजेश करमले के अनुसार मेले में वैराइटी शो के आयोजनों को गलत बताकर उन पर पाबंदी लगाने की मांग की. सालबर्डी मेले में वैराइटी शो के आसपास लगी चूडिय़ों, कपड़ों एवं महिलाओं के उपयोग की वस्तुओं की दुकानों में खरीददारी करने आ रही महिलाओं एवं युवतियों को वैराइटी शो के सामने डांसरों की अश्लील हरकतों को देखकर अपना सिर झुकाकर खरीददारी करना पड़ता है. मेले में आने वाले श्रद्घालुओं एवं सैलानियों की भावनाओं की परवाह न तो मेला संचालकों को है और न पुलिस को. सालबर्डी मेला के संचालन की जिम्मेदारी सम्भाल रहे जनपद पंचायत प्रभातपट्टïन के मुख्य कार्यपालन अधिकारी तो यहां तक कहते है कि यदि वैराइटी शो के संचालन की अनुमति नहीं दी जाती तो मेले में रौनक नहीं आती. इधर पुलिस तथा आबकारी विभाग के अधिकारी भी वैराइटी शो में हो रहे अश्लील नृत्यों को रोकने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे है.शो पर पाबंदी लगा कर बुरी नही बनना चाहती पुलिस सालबर्डी मेला में कानून व्यवस्था का जिम्मा सम्भाल रहे आठनेर थाना प्रभारी की पीड़ा यह र्है कि वे अकेले ही क्यो इस मेले में सबकी कमाई का जरीया बनने वाले तमाशो के आयोजन पर रोक लगवा कर बुरे बने. उनका कहना है कि मेला में वैराइटी शो की अनुमति जनपद पंचायत प्रभातपट्टïन द्वारा देकर उन्हें वैराइटी शो लगाने के लिए भूमि आवंटित करवाई जाती है. इसलिए वैराइटी शो पर पाबंदी लगाना पुलिस के बस में नहीं रहता है. धार्मिक स्थलों पर नाच गानों के अश्लील कार्यक्रमों के खुलेआम आयोजन से श्रद्घालुओं एवं सैलानियों की भावनाओं को ठेस पहुंचने एवं संस्कृति के दूषित होने के सवाल पर आठनेर थाना प्रभारी चुप्पी साध कर कर यह बात अपने ही स्टाफ के किसी कर्मचारी से कहलवाते है कि इस तरह के आयोजन आजकल सभी जगह देखने को मिल रहे है. इसलिए वैराइटी शो पर पाबंदी लगाने की आवश्यकता नही है.शो के बगैर मेला सफल नहीं होता सीईओ जनपद पंचायत प्रभातपट्टन द्वारा सालबर्डी धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है.मेला में संचालित वैराइटी शो की आड़ में अश्लील नाच गानो के प्रदर्शन के बारे में जनपद पंचायत प्रभातपट्टन के सीईओ का कहना है कि यदि सालबर्डी मेला में वैराइटी शो के संचालन की अनुमति प्रदान नहीं जाती तो मेले का सफल आयोजन नहीं हो पाता. प्रभात पटट्न के सीईओ ने इन तमाशो को लगवाने के पीछे का राज कुछ इस प्रकार बताया कि वैराइटी शो को अनुमति देने के लिए उन पर भारी दबाव था. इसी दबाव के चलते उन्होंने वैराइटी शो के संचालकों को मेले में जमीन आवंटित की. अश्लील नृत्यों के बारे में उनका कहना था कि यहां महाराष्ट्र का कल्चर है और मेला में ज्यादातर लोग महाराष्ट्र से ही आते है इसलिए महाराष्ट्र के सैलानियों की पसंद को ध्यान में रखते हुए वैराइटी शो के संचालन की अनुमति दी गई.
पापी पेट का सवाल है बाबू जी  :स्वीटी
सालबर्डी मेले में लगे वैराइटी शो के पूनम डांस ग्रुप की डांसर स्वीटी का कहना था कि उसे केवल अपने और परिवार के पापी पेट के लिए इतना सब कुछ करना पड़ता है. स्वीटी कहती है कि अमरावती के युसुफ भाई ने उनके ग्रुप को पांच हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से नागपुर से मेला में डांस करने के लिए लाया है. उनके ग्रुप के रूकने एवं खाने पीने का इंतजाम आयोजकों द्वारा किया जाता है.
अपनी दिनचर्या के बारे में स्वीटी ने बताया कि वे सबुह पांच बजे तक कार्यक्रम में डांस पेश करती है. उसके बावजूद भी सुबह आठ बजे उठकर दोपहर 12 बजे तक तैयार होकर कार्यक्रम स्थल तक पहुंचना पड़ता है. इतनी कड़ी मेहनत के बाद इस काम को छोड़कर दूसरा काम करने के सवाल पर उनका कहना था कि 12 वीं कक्षा में फेल हो जाने के बाद वे नवरंग डांस ग्रुप नागपुर में शामिल हो गई थी. एक बार इस पेशे में शामिल होने के बाद यहां से निकलना बहुत मुश्किल होता है. नाबालिक लड़कियों द्वारा डांस ग्रुप में शामिल होने के सवाल पर भावना का कहना था कि अपनी-अपनी मजबूरी के कारण 15-16 साल की लड़कियों को भी डांस करना पड़ता है.
डांस देखने को उमड़ता जन समूह जैसे-जैसे सालबर्डी मेला के शुरू होने की तारीख करीब नजर आती नजर आ रही है ऐसे लोगो के दिलो की धड़कने बढऩें लगती है जो कि इस प्रकार के तमाशों में देह दर्शन को जाते है. अकसर देखने को यह मिलता है कि मेला लगने के बाद रविवार को अवकाश होने के चलते डांस शो में महाराष्ट एवं बैतूल जिले के सैलानियों का जन सैलाब बड़ी संख्या में उमड़ता है. कई बार वैराइटी शो में आने वालो के बीच लड़ाई झगड़े एवं डांसरों के साथ जोर जबरदस्ती व छेड़छाड़ की घटनायें घट जाता है. फलस्वरूप किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए वैराइटी शो संचालकों द्वारा अपने लठैतों एवं भाड़े के अपराधी छबि के लोगों को पंडाल के आसपास एवं अंदर मुस्तैदी से तैनात कर दिया जाता है. अब इस बार दिसम्बर महिने के अंत में लगने वाले इस धार्मिक मेले में क्षेत्रिय विधायक की बेहुदा उत्तेजक अश्लील नृत्यो के प्रदर्शनो पर रोक लगवाने की पहल कितनी रंग लाती है यह देखना बाकी है.
इति,

सत्यकथा
मुझे मत रोको ……………!
– रामकिशोर पंवार
कई दिनो से सूरज आग उगल रहा था. तपते सूरज ने सबके हाल के बेहाल कर रखे थे . उसके तेज के आगे तो उसकी सबसे प्यारी बेटी ताप्ती भी सुखने लगी थी . ताप्ती के पोखरों में केवल उतना ही पानी बचा था कि जानवर और इसंान अपनी प्यास बुझाने के साथ अमावस्या – पूर्णिमा नहाना धोना कर सके . बदनूर और आसपास के गांव के कुँओ से जब खाली बाल्टीयाँ आने लगी तो लोगो की धड़कने बढऩे लगी . पानी की ऐसी हा- हा कार पहले कभी देखने को नहीं मिल पा रही थी . इस बीच आसामान में कुछ बादलो के आने से सूरज का तेज कुछ कम हुआ लोगो ने आसमान की ओर की ताका . अब बरसे – कब बरसे के इंतजार में पूरा जून बीत गया जुलाई का महिना और श्रावन मास ने एक साथ जब दस्तक दी तो खुले आसमान से हल्की – हल्की बुन्दा बुंदी होने लगी .  उस रात काफी तेज बरसात हुई . पिछले तीन महिने से जोरो की गर्मी ने लोगो के हाल के बेहाल करके रखे थे. जुलाई के महिने की दस तारीख हो जाने के बाद भी जब पानी नहीं गिरा तो चारो ओर हा- हा कार मच गया था. सभी लोगो पानी के गिरने की कामना कर रहे थे लेकिन मानसून का दूर तक अता पता तक नहीं था. पानी न गिरने से जल संसाधन विभाग की चांदी हो गई थी वह जोर – शोर के साथ उस नदी पर बांध बनवाने जा रहा था जिस पर उसे बांध बनवाने से कई लोगो ने मना किया था. अपने विभाग के मंत्री को खुश करने  तथा करोड़ो की लागत सें बनने वाले बांध में दस- बीस लाख रूपये अपने लिए भी कमाने की धुम मेें पंडित सूर्यकंात त्रिपाठी को जुलाई महिने की पद्रंह तारीख तक हर हाल में बांध में पूरा करना था. जिस नदी पर जल संसाधन विभाग के द्वारा काफी बड़ा डेम बनवाने का काम चल रहा था. पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी की टीम में वैसे तो सभी धर्म – जाति के लोग थे लेकिन उसका जूनियर मुस्लिम होने के साथ- साथ पाँच वक्त का नमाजी भी था. वैसे तो पूरा का पूरा जल संसाधन विभाग रफीक खान को एक सच्चा देश भत्त मुसलमान ही मानता था. उसके मन में कभी भी हिन्दू – मुसलमान वाली बात नहीं आई वह सभी के तीज ज्यौहारो पर बढ़ – चढ़  कर हिस्सा लेता था. सार्वजनिक गणेश और दुर्गा पूजा पर तो पूरे दिन बढ़ – चढ़ कर आरती और विर्सजन में भाग लेता था. उसकी इसी भक्ति -भावना को देख कर कोई भी उसे मुसलमान मानने को तैयार नही रहता था. इन सबके बवजूद भी उसने भगवान के प्रति अपनी आस्था को खुदा और अल्हा के समान रखा ताकि उसमें किसी प्रकार का भेद – भाव न हो सके.
एक रात उसने अपने सपने में किसी एक नदी जिस पर वह डेम बनवा रहा था उस डेम पर एक महिला आकर उससे बार – बार कह रही थी कि  उसे और आगे जाने जाना है उसके किनारे अगर सुखे रह जाएगें तो संख्य लोग प्यासें  मर  जाएगें ……………  उसके द्वारा बाहर जाने का रास्ता  मांगे जाने की बात जब उसके सपने में बार- बार आने लगी तों आखिर एक दिन अपने वरिष्ठï अधिकारी सूर्यकात त्रिपाठी से किया तो वे हँस पड़े और रफीक खान से कहने लगे कि ”यार अगर उसे अपने लिए जाने का रास्ता ही मांगना था तो वह मुझसे मांगती …………..!  ” तू …………. तो मुसलमान है वह तेरे सपने में क्यो आकर अपने लिए क्यो रास्ता मांगेगी…….?    अपने वरिष्ठï अधिकारी से इस तरह के शब्दो को सुनने के बाद रफीक ने इस बात का जिक्र किसी ने नही किया और वह अपने काम में लग गया. बनवाने का काम वह कई बार लोगो को सपने में आकर कह चुकी थी कि ” देखो  बांध बनवाओं वहाँ तक ठीक है पर मुझे रोकने का प्रयास करना ………………!   ” क्योकि मेरे किनारे असंख्य जीव – जन्तु रहते है  अगर मैं उन तक नहीं पहँुची तो वे बेचारे प्यासे मर जायेगें . इतना ही नहीं हर साल यम चतुर्थी पर मेरा भाई शनि मेरी राह देखेगा ………..!  कितने लोग मेरे किनारे पर नहाने के लिए आयेगें अगर मैं सुखी रही …….मेरा ठंठल – गोपाल की तरह अगर में आँचल में पानी की एक बुंद भी नही ही तो वे बचारे क्या करेगे……?   इसलिए मुझे मत रोकना. सपने में कहीं बातो को लोगो ने एक कान से सुना और दुसरे कान से निकाल दिया. आज जब बारीश हुई तो एक बार फिर वह सपने में आकर कई लोगो को बोली लेकिन लोगो ने इस बार भी उसकी बात को सुन कर टाल दिया.  बार- बार  लोगो को हिदायत देने के बाद भी लोगो उसकी बातो को अनसुनी करने लगे तो वह आखिर अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर पाई ………! आखिर वह थी भी तो शनि की बहन उसके माँ और बहन पुत्री के रूप को सात सौ बावन किलो मीटर के
मध्यप्रदेश एंव गुजरात के लोग देख चुके है.
उस रात काफी तेज बरसात हुई . पिछले तीन महिने से जोरो की गर्मी ने लोगो के हाल के बेहाल करके रखे थे. जुलाई के महिने की दस  तारीख हो जाने के बाद भी जब पानी नहीं गिरा तो चारो ओर हा- हा कार मच गया था. सभी लोगो पानी के गिरने की कामना कर रहे थे लेकिन मानसून का दूर तक अता पता तक नहीं था. पानी न गिरने से जल संसाधन विभाग की चांदी हो गई थी वह जोर – शोर के साथ उस नदी पर बांध बनवाने जा रहा था जिस पर उसे बांध बनवाने से कई लोगो ने मना किया था. अपने विभाग के मंत्री को खुश करने  तथा करोड़ो की लागत सें बनने वाले बांध में दस- बीस लाख रूपये अपने लिए भी कमाने की धुम मे पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी को जुलाई महिने की पद्रंह तारिख तक हर हाल में बांध में पूरा करना था. जिस नदी पर जल संसाधन विभाग के द्वारा काफी बड़ा डेम बनवाने का काम चल रहा था. पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी की टीम में वैसे तो सभी धर्म – जाति के लोग थे लेकिन उसका जूनियर मुस्लिम होने के साथ- साथ पाँच वक्त का नमाजी भी था. वैसे तो पूरा का पूरा जल संसाधन विभाग रफीक खान को एक सच्चा देश भत्त मुसलमान ही मानता था. उसके मन में कभी भी हिन्दू – मुसलमान वाली बात नहीं आई वह सभी के तीज ज्यौहारो पर बढ़ – चढ़  कर हिस्सा लेता था. सार्वजनिक गणेश और दुर्गा पूजा पर तो पूरे दिन बढ़ – चढ़ कर आरती और विर्सजन में भाग लेता था. उसकी इसी भक्ति -भावना को देख कर कोई भी उसे मुसलमान मानने को तैयार नही रहता था.
एक रात उसने अपने सपने में किसी एक नदी जिस पर डेम बन रहा है उसे महिला के रूप मे सपने में आने और और उसे जाने का रास्ता देने की बात बार- बार कहने की बात का जिक्र जब अपने वरिष्ठï अधिकारी सूर्यकात त्रिपाठी से किया तो वे हँस पड़े और रफीक खान से कहने लगे कि ”यार अगर उसे अपने लिए जाने का रास्ता ही मांगना था तो वह मुझसे मांगती …………..!  ” तू तो मुसलमान है वह तेरे सपने में क्यो आकर अपने लिए रास्ता मांगेगी…….?    अपने वरिष्ठï अधिकारी से इस तरह के शब्दो को सुनने के बाद रफीक ने इस बात का जिक्र किसी ने नही किया और वह अपने काम में लग गया. बनवाने का काम वह कई बार लोगो को सपने में आकर कह चुकी थी कि ” देखो  बांध बनवाओं वहाँ तक ठीक है पर मुझे रोकने का प्रयास करना ………………!   ” क्योकि मेरे किनारे असंख्य जीव – जन्तु रहते है  अगर मैं उन तक नहीं पहँुची तो वे बेचारे प्यासे मर जायेगें . इतना ही नहीं हर साल यम चतुर्थी पर मेरा भाई शनि मेरी राह देखेगा ………..!  कितने लोग मेरे किनारे पर नहाने के लिए आयेगें अगर मैं सुखी रही …….!  मेरा ठंठल …………….!   गोपाल ……….!   की तरह अगर में आँचल में पानी की एक बुंद भी नही ही तो वे बचारे क्या करेगे……?   इसलिए मुझे मत रोकना. सपने में कहीं बातो को लोगो ने एक कान से सुना और दुसरे कान से निकाल दिया.
आज जब बारीश हुई तो एक बार फिर वह सपने में आकर कई लोगो को बोली लेकिन लोगो ने इस बार भी उसकी बात को सुन कर टाल दिया.  बार- बार  लोगो को हिदायत देने के बाद भी लोगो उसकी बातो को अनसुनी करने लगे तो वह आखिर अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर पाई ………! आखिर वह थी भी तो शनि की बहन उसके माँ और बहन पुत्री के रूप को सात सौ बावन किलो मीटर के मध्यप्रदेश एंव गुजरात के लोग देख चुके है. उस रात गुस्से से आग बबुला सूर्य पुत्री ने अपने लिए जाने का समुचित रास्ता न मिलने पर ऐसा विकराल रूप दिखाया कि जिन्हे सपने में चेतावनी मिली थी वे अपनी जान बचाने के लिए पेड़ो की डाल पर टंगे पड़े थे. आस-पास के दर्जनो गांवो की लाखो की चल – अचल सम्पति को बहा कर ले गई शनि की लाड़ली बहन के क्रोप के आगे कोई नही बच पाया . बले गांव का नौखेलाल भी उन लोगो में से एक था जिस का सब कुछ बह चुका था. उसके बुढ़े – माँ बाप उससे अकसर कहा करते थें कि देख बेटा तूझे कितनी भी तंगी आई लेकिन तू हमारा क्रिया क्रम ताप्ती माई के किनारे ही करना ……….! लेकिन नौखे को तो यह सपने में भी इस बात का यकीन नही था कि उएक दिन ऐसा भी आएगा कि ताप्ती माई उसके खुद अपने साथ उसके बुढ़े  माँ – बाप को ऐसे बहा ले जाएगी कि उसकी उसकी अस्थियाँ उसे ढुढंने से भी नही मिलगी और वह अपने माँ – बाप का श्राद्घ के कार्यक्रम भी बिना अस्थियो के करने को मजबुर होगा ………….!
पूरी दुनिया में अगर देखा जाए तो नदियों का इंसान से काफी पुराना रिश्ता रहा है . आज कल और परसो तक जिसके चलते पूरी दुनिया में कई सभ्यताओं ने नदियों के किनारे ही समय-समय पर जन्म लेकर कल्पनीय घटनाओं एंव चमत्कारो तथा एतिहासिक दस्तावेजो को स्वरूप दिया है . नदियो के किनारे फली – फूली असंख्य सभ्यताओं मे से एक मिश्र की सभ्यता की बात करे या फिर सिंधु घाटी का हर किसी का किसी ने किसी नदी से उसकी आत्मीय रिश्तो से आम जन मानस को अवगत कराया है. प्राचिन एतिहासिक सभ्यताओं  के जनक आर्य पुत्र (हिन्दू ) नदियों को देवियों के रूप में सदियों से पूजते चले आ रहे है. भारत की पवित्र नदियों में ताप्ती एवं पूर्णा का भी उल्लेख मिलता है . सूर्य पुत्री ताप्ती बैतूल जिले के मुलताई स्थित तालाब से निकलती है जो बैतूल जिले की ही नहीं बल्कि महाराष्टï्र एवं गुजरात के विभिन्न जिलों की पूज्य नदियों की श्रेणी में आती है . इसी तरह ताप्ती नदी की सहायक नदियों में पूर्णा का विशेष उल्लेख मिलता है. पूर्णा नदी भैंसदेही नगर के पश्चिम दिशा में स्थित काशी तालाब से निकलती हैं. प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्घालु लोग अमावस्या और पूर्णिमा के समय इन नदियों में नहा कर पूर्ण लाभ कमाते हैं . एक किवदंती  कथाओं के अनुसार सूर्य और चन्द्र दोनों ही आपस में एक दूसरे के विरोधी रहे हैं , तथा दोनों एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते हैं. ऐसे में दोनों की पुत्रियों का अनोखा मिलन बैतूल जिले में आज भी लोगों की श्रद्घा का केन्द्र बना हुआ हैं . ताप्ती नदी के किनारे बसे सैकड़ो गांवो के लोग आज भी उसे देवी की तरह पूजते चले आ रहे है . उस रात को ताप्ती जी का रूद्र रूप रात के समय कोई नही देख सका जिसने देखा उसकी याददास्ता चली गई . चन्दोरा डेम को बहा ले गई ताप्ती ने अपने साथ  कई गांवो और उसमें रहने वालो  में किसी के साथ भेदभाव नही किया वह सबको एक साथ ले गई बचे वही जिसे तैरना और पेड़ो की डालियो पर चढऩा आता था. जिले के इतिहास में पहली बार ताप्ती जी ने अपना इतना बड़ा विकराल रूप दिखा वह कभी भी अपने आपे से बाहर नहीं हुई लेकिन जब उसे रोकने का प्रयास किया तो उसने लोगो को बार – बार चेताया कि उसे न रोके अन्यथा परिणाम बुरे हो सकते है लेकिन एक मुसलमान को ताप्ती माई की कहीं बातो पर यकीन था लेकिन एक पंडित हिन्दू ने अविश्वास दिखा उसके कहे वचनो का उपहास उठा कर एक ऐसा कहर बरपा दिया कि लोग आज तक नहीं भूल नहीं पाए है.
ठेसका का जंगली ताप्ती माई का भक्त था वह प्रतिदिन माता के दरबार में जाकर उसके जल से अपने आप को निवृत करता था. उसके जीवन में शायद ऐसा कोई दिन आया होगा जब वह माता के जल से नहा नही पाया होगा . साठ दशक पार कर चुका वह आज भी इस बात को मानता है कि माई के किनारे दर्जनो गांव बसे है लेकिन चन्दोरा बांध जैसी त्रासदी आज तक नही हो पाई…….? ताप्ती माई पर अटूट श्रद्घा एंव विश्वास रखने वाले इस आदिवासी का एक मात्र मूल मंत्र है कि ताप्ती माई की जितनी सेवा हो सके करो वह एक न एक दिन चमत्कार जरूर दिखाएगी .जंगली और उसका साथी एक दिन तो ताप्ती माई के दर्शन करने से चूक गए वजह यह रही कि वे जिसे नदी में बहती लाश समझ रहे थे दरअसल में वह लाश की शक्ल में ताप्ती माँ थी क्योकि लाश थोड़ी दूर जाने के बाद अचानक एक बुढिय़ा की शक्ल में परिवर्तित होकर उससे बिना कुछ कहे गायब हो गई . मुलताई से निकली ताप्ती माई ने दामजीपुरा – मोहटा तक के ग्रामवासियो को अपने निर्मल जल से आनंदित किया. ताप्ती माई ने बलेगांव सहित अनेक गांवो को बहा ले जाने से पहले गांव को चेताया था कि गांव के आसपास ढेर सारी गंदगी और लोगो के बीच अविश्वास तथा धर्म के प्रति नफरत जागी है लोगो ने भगवानो की पूजा पाठ बंद कर दी वे नास्तीक बनते जा रहे है . दुनिया में अगर इसी तरह पाप और पापी बढ़ते चले जाएगें तो इंसान का भगवान से रिश्ता – नाता टूट जाएगा.
ताप्ती जी के बारे में कहा जाता है कि वह स्ंवय अपने आचँल में लगभग 172 तीर्थस्थलो को समेटे हुए है. मुलताई के पास स्थित गो मुख और पंचधारा से लेकर मुनी दुर्वासा के आश्रम तक तप्ती के किनारे आने वाले सभी शहरो और गांवो को उस रात जल मग्र कर देने वाली ताप्ती उस दिन काफी खफा थी क्योकि चंदोरा बांध के सारे गेट बंद हो चुके थे ताप्ती का बुंद भर पानी भी जब रिस कर बाहर नहीं आया तो उसके गुस्से ने ऐसा कहर बरपाया कि बलेगांव ओर बाड़ेगांव सहित दर्जनो गांवो का सब कुछ बह गया हालाकि अभी ताप्ती जी ने उन्ही लोगो को पूर्वोतर स्थिति में ला खड़ा कर दिया है. आज भी इन पंक्त्यिो के लिखे जाने तक चंदोरा बांध के एक गेट से गर्मी हो या बारीश ताप्ती माई की एक जलधारा बिना किसी रोक – टोक के अविरल बहती चली जा रही है . बांध के इंजीनियरो ने उस गेट से बहने वाले ताप्ती के रिसाव को रोकने का भरपुर प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हो सके. ताप्ती माई के किनारे बरसो से तपस्या कर रहे मौनी बाबा भी माई के चमत्कारो से स्वंय को अलग – थलग नहीं कर सके है . वे तो कई बार माई के चमत्कारो को देख चुके है . माई  का वह रौद्र रूप उस दिन पता नही कितनो को बहा कर ले जाता पर सैकड़ो लोग माई को अपने अपने ढंग से मनाने में लगे हुये थे . केरपानी के बजरंग बली भी ताप्ती माई के करीब बसे होने के कारण उनका माई के प्रति प्रेम जग जाहिर है . बजरंग बली के लाखो भक्त आज भी माई के निर्मल जल से स्वंय स्नान ध्यान करने करने के बाद बजरंग बली का जल अभिषेक करते है . दददू की प्रार्थना का  ताप्ती माई पर असर हुआ इसलिए ही उसने बलेगांव के बाद कुछ ही गांव को अपने साथ बहा ले गई . ताप्ती पश्चिम भारत की सबसे बडी नदियो में से एक है . 242 किलोमीटर चौड़ी घाटियो में बहने वाली ताप्ती माई ने उस रात लोगो की अगर प्रार्थना , दुआ तथा अन्य प्रकार के अनुरोधो को नही सुना होता तो गजब हो जाता .मुलताई सें लेकर गुजरात के अरब सागर तक पता नही कितने जल मग्र हो जाते . आज ताप्ती माई की वह चमत्कारिक रहस्य रोमांच से भरपूर अदभुत सत्य घटना जिसके केवल पात्र बदले गए बरबस याद आ गई क्योकि इस बार फिर उसी तरह का पानी एक बार फिर बरसने लगा है .
इति,

रहस्य एवं रोमांच से भरी दिल
को दहला देने वाली कहानी
अला – बला
सत्यकथा :- रामकिशोर पंवार
उस समय रात के बारह बज रहे होगें . सही समय जानने के लिए मेरे मन में उठ रही जिज्ञासा की शांती के लिए जैसे ही मैने अपने बाये हाथ घड़ी की ओर देखना चाहा तो  कुछ पल के लिए मेरी मोटर साइकिल लहरा गई . वह तो अच्छा हुआ कि आगे या पीछे से कोई गाड़ी नही आ रही थी , वरणा अपना तो राम – नाम सत्य हो जाता ?. मैने माँ काली को याद किया और फिर आगे की ओर निकल पड़ा . आज फिर वही काली अमावस्या की दिल को दहला देने वाली भयवाह डरावनी रात थी . ऐसी काली अमावस्या रात का जिक्र ही पूरे बदन में सिरहन पैदा कर देता है तब जब आदमी अकेला सफर कर रहा हो ………!  आज एक बार फिर मैं अपने माँ – बाबू जी की हिदायतों को दर किनार कर  अपने पैतृक घर से बदनूर जाने को निकल पड़ा था . आज की वही सुनसान चारो ओर चीखता सन्नाटा और उस काली डरावनी रात में बरेठा होते हुए बदनुर की ओर सुनसान रास्ते परमैं अपनी  सी.डी.डान मोटर साइकिल पर जब घर से अकेला निकल रहा था तब मुझे लगा कि मैं आज भी सबसे बड़ी गलती कर रहा हँू पर क्या करू………..! लगता है आज मेरी बारी आ ही गई थी…..! मुझे रह- रह कर अपनी मुर्खता पर गुस्सा भी आ रहा था . अब जो होगा देखा जाएगा यह सोच कर मैं अपनी अराध्य देवी काली माँ के नाम को गुणगुनाता  चला जा रहा था . हमारा परिवार बनदूर के पास बसे एक छोटे से गांव रोंढ़ा का मूल निवासी है लेकिन बाबू जी के जंगल विभाग में पदस्थ होने के कारण हम सब परिवार के लोग उनके पास एन.सी.डी.सी. में ही आकर रहने लगे थे . एन.सी.डी.सी. की कोयला खदाने और सतपुड़ा थर्मल पावर स्टेशन दो मात्र ऐसे रोजगार के क्षेत्र थे जहाँ पर पूरे भारतवर्ष के अलाव बदनूर के आसपास के लोग भी काम धंधे की तलाश में आकर बस गए थे . एन.सी.डी.सी. से बदनूर की दूरी लगभग साठ किलो मीटर रही होगी. बदनूर को अग्रेेंजो के जमाने में ही डिस्ट्रीक हेड क्वाटर बना दिया था . जंगल सत्याग्रह कह वजह से बदनूर उस जमाने का जान- माना डिस्ट्रीक हेड क्वाटर था . मुझे भी नई दिल्ली से छपने वाले एक राष्टï्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र के ब्यूरो चीफ बनने के बाद से पिछले डेढ़ – दो साल से मुझे बदनूर में  पत्नि और एक छोटे बेटे मोहित के साथ किराये के मकान में  रहना पड़ा . वैसे भी बदनूर के जिस मोहल्ले में मैं रहता था वहाँ से कत्तल ढाना जाने का रास्ता पड़ता था और इस रास्ते पर हमेशा गुण्डे मवाली अकसर उधम मचाते रहते थे . रात के समय में पत्नि और बच्चे को अकेला छोड़ कर आ जाने के कारण मुझें एन.सी.डी.सी. से देर रात को आना पड़ा रहा था . बदनूर जाने के लिए दो रास्ते है. एक बरेठा होकर दुसरा रानीपुर होकर जाता है. बरेठा वाले रास्ते में पक्की सड़क तथा रानीपुर वाले में कच्ची सड़क पड़ती है. रानीपुर वाले रास्ते में अकसर रात को हनुमान डोल के पास शेर -चीता के मिल जाने का डर बना रहता था. लोग तो कहते है कि कुछ मिले ना मिले लेकिन इस रास्ते में कोई ना कोई खतरनाक जंगली जानवर मिल ही जाता है. इसलिए यह रास्ता जोखिम भरा कहा जाता है. शायद यही वजह है कि कोई भी देर रात को इस रास्ते से आने – जाने की रिस्क नही लेता है. आज जब मैं घर से बदनूर के लिए अकेला निकल रहा था तो बाबू जी ने मुझे रोका लेकिन मैं जिद् करके घर से बदनूर के लिए निकल पड़ा. एन.सी.डी.सी. से निकलते समय रात के सवा दस बज रहे थे लेकिन बरेठा तक पहँुचते ही घड़ी का काटा पौने बारह को पार कर गया था. बरेठा आते ही जैसे ही मैने बदनूर जाने के लिए अपनी मोटर साइकिल मोड़ी तो मेरी गाड़ी का अचानक संतुलन बिगड़ गया और मैं स्लिप होते- होते बचा . एक पल के लिए तो मैं इस फिसलन के चलते सर से पांव तक कांप गया था इसके बावजुद मैने हिम्मत नही हारी और मैं चल पड़ा.
आज रात मैं अपने कुछ काम के चलते तथा आते समय माँ – बाबू जी से मिल कर आते समय काफी लेट हो गया था . वैसे भी आज मैं अकेला था. यूँ तो मुझे हर सप्ताह माँ – बाबू जी से मिलने जाना ही पड़ता है. आज जब मैं अपने घर से एन.सी.डी.सी. बाबू जी से मिलने जा रहा था तब मोहित की मम्मी ने मुझे कहा था सुनो जी आज फिर काली अमावस्या है……………?  इसलिए देर मत करना और जल्दी से घर आ जाना…….  लेकिन मैं क्या करू आज फिर लेट हो गया. माँ बाबू जी कह रहे थे कि तू इसको समझाती क्यो नही……………रात हो गई है इसे मत जाने दे………. माँ ने भी कहा बेटा तू मत जा पर मुझे जाने की जल्दी थी. अकसर अमावस्या – पूर्णिमा को मेरी तबियत बिगड़ जाती है. गले और हाथ में बाबा – फकीरो के ताबिज और धागे बांधे रहने के बाद भी मैं इन रातो को अचानक बेहोश हो जाता हँू. इसलिए घर के सब लोग मुझे रात – बिरात कही आने – जाने नही देते है . आज बाबू जी कह भी रहे थे कि रामू ……….. तू जिद मत कर अकेला मत जा अपने साथ छोटे भाई को ले जा पर मैं नहीं माना और अपनी मोटर साइकिल को स्टार्ट कर चला आया था . इधर मैं श्रीमति को बता कर आया था कि मैं हर हाल में देर रात को आ जाऊंगा क्योकि मुझे कल ही किसी काम से बाहर जाना था. नवम्बर का महिना था. आज एक बार फिर वही काली अमावस्या की रात मेरी जिदंगी में कोई न कोई हलचल लाने को आतुर थी तभी तो मैं सबकी बातो को दर किनार कर अकेला निकल पड़ा था . उस रात को मैने आने वाली घटना की परवाह किये बिना ही आगे निकलने का मन बना रखा था. बदनूर आते समय मुझे रास्ते में मिलने वाले सभी यार दोस्तो ने न जाने की बाते कही लेकिन मैं उनकी बातो को नजर अदांज करते आगे की ओर चला जा रहा था .
आज रात को ठंड काफी शबाब पर थी साथ ही ठंडी सर्द हवाए भी चल रही थी. यूँ तो मैने काफी गर्म कपड़े पहन रखे थे इसके बाद भी ठंड से मेरा पुरा शरीर कंपकपा रहा था. हाथों में पहने दास्ताने और कानो को ढ़ाकाती टोपी भी सुनसान रास्ते पर साठ सत्तर की स्पीड़ से दौड़ती मोटर साइकिल के चलते लगने वाली ठंडी हवाओं के थपेड़ो से मेरे शरीर को कंपकपाने से नहीं रोक पा रही थी. एक घड़ी तो मैने सेाचा कि मैने रात में आने की कहाँ मुसीबत मोल ले ली………….?  घर में बाबू माँ के कहने पर रूक जाता तो ठीक था ? पर इधर श्रीमति और छोटे बेटे की चिंता ने मुझे रात को ही आने को आने को विवश कर दिया था. ख्यालो में खोने के कारण मुझे पता ही नही कि मेरे पीछे से कोई मोटर साइकिल भी आ रही है. इस बीच उस मोटर साइकिल वाले ने मुझे ओव्हरटैक किया और वह तेजी से मेरी आँखो के सामने से ओझल हो गया. मैं अभी कुछ दूर चला था कि मैने मोटर साइकिल के लार्ईट में देखा कि मोटर साइकिल को रूकने का इशारा कर रही है . इतनी रात को सुनसान रास्ते पर यह बुढ़ी महिला क्या कर रही है…… ? मेरे मन में उसके करीब पहँुचने तक अनेक सवाल कौंध रहे थे. मै उस महिला के पास आने पर एक पल के लिए डर गया . इतनी भयानक काली स्याह रात को सुनसान रास्ते पर जर्जर हो चुका जिस्म और तन पर फटे कपड़े होने के बाद भी उस पौढ़ महिला को न तो ठंड लग रही थी और न वह ठंड से कांप रही थी उसे इस हालत में देख कर मेरी बोलती बंद हो गई ………!  उस महिला के व्यवहार से मुझे कपंकपी छुट गई थी . वह पौढ़ महिला कुछ बोलती इसके पहले ही मेरी मोटर साइकिल अचानक बंद हो गई जिसके चलते मुझे रूकना पड़ा . मेरी मोटर साइकिल के रूकते ही सबसे पहले उस वह पौढ़ महिला ने मेरी मोटर साइकिल को करीब से देखा . उसके बाद उसने मेरे पास आकर मेरा करीबी से मुआयना किया उसकी इन हरकतो से मेरा  हाल – बेहाल था . मैने काफी हिम्मत करके जैसे – तैसे मोटर साइकिल स्टार्ट कर उस महिला का चेहरा देखना चाहा . मैं चाह कर भी उस पौढ़ महिला का चेहरा नही देख पा रहा था . मुझे उसके अब तक के रूख से मैं बेहद डर लग रहा था शायद अपना क्या कर लेगी . मैंने ही हिम्मत करके कहा अच्छा ठीक है माता जी आप पीछे की सीट पर बैठ जाइए . मैने काफी देर बाद एक बार फिर हिम्मत करके उस पौढ़ महिला से पुछा कि ”अम्मा आप इधर कहां सें आ रही है………?  मेरे इस सवाल पर वह बताने लगी कि ” बेटा मैं बनारस की रहने वाली हँू………. मेरा नाम अला है….. ?  उस महिला का अजीबो – गरीब नाम सुन कर एक पल के लिए तो मैं कांप गया क्योकि ऐसा नाम मैने पहली बार सुना था . इस अजीबो – गरीब नाम से तो यह पता नही चल पा रहा था कि मोटर साइकिल पर पीछे बैठी अम्मा जो कि अपना नाम अला बता रही है वह  किस जाति या धर्म की होगी ……? मैं  उस पौढ़ महिला से कुछ इस बारे में पुछता इसके पहले ही बताने लगी कि बेटा दर असर हम लोग बनारस के रहने वाले है . हमारा पुरा परिवार इस काली अमावस्या की रात को भोपाल से नागपुर जा रहा था कि जिस स्थान पर मैं तुम्हे मिली ठीक उसी स्थान पर ………….!  वह इसके पहले कुछ बताती कि बरेठा बाबा का मंदिर आ गया . मैंने उसे पौढ़ महिला से कहा ”अम्मा बरेठा बाबा का मंदिर आ गया…………….  लेकिन जब मैने पीछे मुड़ कर देखा तो वह महिला नहीं थी . मुझे कांटो तो खून नहीं था .
इस घटना के बाद तो मैं दिसम्बर महिने की इस कड़ाके ठंड में पसीने से नहा चुका था . मेरे साथ इतनी बड़ी घटना घट जाने के बाद भी पर मैंने हिम्मत नही हारी और हर बार की तरह अपनी मोटर साइकिल को रोक कर बरेठा बाबा के मंदिर में जाकर बाबा की चरण वंदना की साथ ही बाबा के मंदिर के पास ही बने अपनी आराध्य देवी माँ काली के मंदिर में जाकर उसके चरण स्पर्श किये और माँ काली के त्रिशूल से हरि और लाल रंग की चुडिय़ा निकाल ली और उसे अपनी  मोटर साइकिल के हैंडि़ल के पास बांध ली . मैंने जब से मोटरसाइकिल खरीदी है तब से लेकर आज तक मैं अपनी मोटर साइकिल में माँ काली जी की चुडिय़ा बांधता चला आ रहा हँू जिसके चलते मैं अकसर आने वाली कई विपदाओं से माँ काली की कृपा से बच जाता हँू . बरेठा मंदिर से जाते समय जैसे ही मैने आगे की ओर रूख कर गाड़ी का हार्न बजाया . हार्न की आवाज को सुन कर मंदिर का पुजारी जाग गया . वह मुझे अच्छी तरह जानता पहचानता था . जैसे ही उसने झोपड़ी के अंदर से लाये दिया की रोशनी में मुझे झोपड़ी के अंदर से बाहर आकर देखा तो वह मुझे देख कर दंग रह गया . दिया लेकर झोपड़ी से मंदिर के पास आने लगे पुजारी ने मुझसे सवाल किया ”भैया आज इतनी रात को…………………….?  मैं उसके सवाल का जवाब देता पर मैं अभी कुछ देर पहले की घटना से अभी भी थर- थर काँप रहा था .  मंदिर के पुजारी ने पास आकर मुझे इस हालत में देखा तो उसने ही एक बार फिर मुझसे वही सवाल किया ”भैया आज इतनी रात को वो भी अकेले ……………? मैंने उसके सवालो का जवाब देकर उसे कुछ बताने के बजाय चुप रहने में अपनी भलाई समझी . मैनें अपकी बार अपने पास आए पुजारी के चरण स्पर्श कर अपनी मोटर साइकिल को स्टार्ट कर आगे की ओर निकल पड़ा .
इस बार मंदिर के ऊपर घाट सेक्सन होने की वजह से मैं बड़ी सावधानी से अपनी मोटर साइकिल को चलाते जा रहा था . मैं अभी मंदिर से बड़ी मुश्कील एक किलोमीटर भी आगे नही चल पाया था कि मुझे गाड़ी की रोशनी में एक सोलह सत्तह साल की कमसीन युवती मेरी मोटर सालकिल को रोकने के लिए हाथ देती दिखाई दी. मैं गाड़ी न रोक कर आगे बढऩा चाहा पर अचानक एक बार फिर मेरी गाड़ी आगे की ओर बढ़ ही नही पा रही थी . काली अंधीयारी रात में मेरी गाड़ी के सामने उसकी लाइट में अपने रूप सौंदर्य को प्रदर्शित कर अपनी ओर मुझे आकर्षित करनी वाली युवती ने मुझसे कहा कि ” देखिए मुझे पाढऱ तक जाना है , क्योकि मेरे सारे रिश्तेदार वहाँ पर भर्ती है…………..! क्या आप मुझे अपनी गाड़ी में पाढऱ तक चलने के लिए लिफ्ट देगे….. ?  मैंने सोचा अगर इसे पाढऱ तक नही ले चला तो हो सकता है ए मेरा कोई अहित कर डाले इसलिए मैंने उससे बिना किसी प्रकार का पंगा लिए कहा कि ”ठीक है आप पीछे बैठ जाइए ………………. ! लेकिन वह मेरी गाड़ी के करीब आते ही एकदम दो कदम पीछे हट गई ……………..! उसका यह व्यवहार मेरे लिए काफी आश्चर्य जनक था . आखिर मैने ही उससे सवाल किया ” आप गाड़ी पर क्यो नही बैठ रही………….? वह बोली ”मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चल सकती हँू यदि आप आपकी गाड़ी में बंधी चुडिय़ो को निकाल कर बाहर फेक दे……………?  ” मैने कहा ऐसा तो नही हो सकता………………. तब वह ”  बोली ठीक है मैं चलती हँू …………… यह कह कर वह पल भी में गायब हो गई . अबकी बार मैं इस कमसीन युवती के साथ घटित घटना से भी बेहद डर गया . उस युवती के गायब होते ही जैसे ही मोटर साइकिल को आगे बढ़ाना चाह गाड़ी जो अचानक रूक गई थी वह आगे की ओर निकल पड़ी . जैसे – तैसे मैं रात के लगभग तीन सवा तीन बजे घर पहँुचा तो श्रीमति जी को मेरा इस तरह रात में आना बेहद आश्चर्यजनक लगा पहले तो वह मुझसे इसी बात पर काफी नाराज हो गई की मुझे बाबू माँ की बात को अनसुनी करके काली अमावस्या की सुनसान रात में अकेले नही आना था . श्रीमति के इस व्यवहार पर मैं उससे अपने साथ घटी किसी भी घटना को नही बताना चाहा क्योकि मुझे मालूम था कि जब मैं उसे उक्त सारी बात बताऊंगा तो वह तो डर जाएगी साथ में अगर उक्त बाते बाबू – माँ को भी बताएगी तो वे तो उन पर क्या बीतेगी……………?
इस घटना के एक सप्ताह बाद जब मैं बदनूर से एन .सी .डी .सी . बाबू – माँ से मिलने जा रहा था तो बरेठा बाबा के मंदिर पर मुझे वही पुजारी मिला . दिन का समय होने के कारण वह एक बार फिर उसने मुझसे वही सवाल करने लगा कि  ” भैया उस रात को आप अकेले क्यो जा रहे थे ………..? और फिर जब मैने आपसे इसी सवाल को कई बार पुछा तो तो आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया…………..  ! भैया आप मानो या न मानो उस रात आपका व्यवहार मुझे काफी आश्चर्यजनक लगा .  आखिर क्या बात थी………ï? इस बार मैंने पुजारी को उस रात की सारी बाते बता दी तों  वह मुझसे बोला  ”भैया  आपकी काली जी ने आखिर आपकी जान बचा ली वरणा आप भी उस बला के चक्कर में पड़ जाते……….. ! मैने पुजारी से पुछा कि  ” पुजारी जी कैसे बला …..? कहाँ की बला…………? और कैसा चक्कर मैं आपकी बात समझ नही पा रहा हँू…………?  बरेठा बाबा मंदिर का पुजारी बताने लगा  ” भैया  दर असल में बात आज से पाँच साल पहले की है . आपको याद होगा कि बरेठा के इसी घाट पर आगे आने वाले मोड़ पर बनारस की एक मारूति कार को एक प्रट्रोल डीजल वाले टैंकर ने टक्कर मार कर चकना चुर कर डाला था. इस दुर्घटना में एक पौढ़ महिला के साथ – साथ एक युवती भी घटना स्थल पर मर गई थी. उस कार में सवार उसके परिवार के बाकी सदस्य पाढऱ हास्पीटल में भर्ती होने के कुछ देर बाद मौत की गोद में सो गए . तबसे लेकर आज तक बरेठा के इसी घाट पर अकसर किसी न किसी मोटर साइकिल से लेकर चौ पहिया वाहन चालको से वह पौढ़ महिला और उसकी बहन पाढऱ तक जाने के बहाने लिफ्ट मांगती रहती है. जो भी उनके चक्कर में पड़ता है वे उसे इसी बरेठा घाट सेक्सन के बीच में अपना शिकार बना कर उसकी असमायिक मौत का कारण बन जाती है . इन दोनो अला और बला ने अब तक एक दर्जन से भी अधिक लोगो को को काल के गाल में पहँुचा दिया है वह तो माँ काली की आप पर कृपा रही कि आप बाल- बाल बच गए वरणा आपका भी काम लग जाता…………. ! मंदिर पुजारी की बात सुनने के बाद मैं आज तक उन दोनो बहनो  अला- और बला को नही भूल पाया हँू . मुझे आज भी लगता है कि मेरी मोटर साइकिल की पीछे वाली सीट पर कही अला – या बला तो नहीं बैठ गई है .
इति,

दिल को छू लेने वाली रहस्य
रोमांचक युवा दिलों की सत्यकथा
काला गुलाब
रामकिशोर पंवार
रात की घटना को याद कर तरह – तरह के विचारो में खोये मनोज को पता ही नहीं चला  की कब अंजली उसके कमरे में आ गई. अचानक अंजली को पता नहीं क्या शरारत सुझी उसने चुपके से विचारो में खोये मनोज की आँखो को अपने दोनो हाथो की हथेली से दबाई तो मनोज ने जैसे ही अपनी आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह जोर से चीख पड़ा. अचानक मनोज के जोर से चीख कर बेहोश हो जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. बेहोश हुए मनोज की उससे हालत देखी नहीं गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांपने लगी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया…..?  मनोज की चीख को सुन कर उसके पड़ौस में रहने वाली अनुराधा दौड़ी चली आई. मनोज की चीख इतनी जोर की थी कि आसपास के लोग भी घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये.बड़े दिन की छुट्टïी खत्म होने वाली थी. स्कूल-कालेज लगना शुरू होने वाले थे. इस बीच अपने गांव से जल्दी लौट आये मनोज को अब सर पर सवार परीक्षा की तैयारी में जुट जाना था. अर्ध वार्षिक परीक्षा के बाद होने वाली पढ़ाई में जरा सी भी बरती ढील पूरा साल बरबाद कर सकती थी. सुबह जल्दी न उठ पाने की आदत के कारण मनोज ने अपने मकान मालिक से कहा था कि अंकल आप जब भी मार्निंग वाक के लिये जाते हैं मुझे भी साथ लेते चलिये मैं भी साथ चलूंगा. पिछले कई सालों से मनोज के मकान मालिक कुंदन मैथ्यू मार्निंग वाक के लिये जाते थे. मनोज ने सोचा कि वह सुबह चार से साढ़े पांच बजे तक मार्निंग वाक के बहानें अपनी किताबें-कापियां लेकर शांति से खुले मैदान में बैठकर पढ़ लेगा. एक पंथ दो काज के बहाने से सुबह देर से जगने की परेशानी से भी मुक्ति मिल जाएगी. अपने कमरे में सोने जाने से पहले मनोज ने एक बार फिर याद दिलाते हुये कहा कि अंकल रात से मैं भी आपके साथ चलूंगा.
मनोज का कमरा ऊपर की मंजिल पर होने की वजह से तीन चार दोस्त साथ मिलकर रहा करते थे. मनोज के सहपाठी आज शाम तक वापस लौट कर आने का कह कर गये थे लेकिन  जब वे नहीं आये तो आज शाम को ही अपने गांव से वापस लौटे मनोज को आज की रात अकेले ही काटनी थी. इसलिये वह ज्यादा देर तक जगने के बजाय सोने चला गया. 31दिसंबर की उस रात अपने कमरे में अकेले सोये मनोज ने उस रात को जोर की पडऩे वाली ठंड से बचने के लिए अपने सारे गर्म कपड़े पहनने के बाद अपने गांव से अबकी बार साथ लाई जयपुरी मखमली रजाई को अपने ऊपर डाल कर उसकी गर्माहट में दुबक कर सो गया. सपनों की दुनिया में खोये मनोज की अचानक हुई खटपट की आवाज से नींद खुल गई. उसने अपने कमरे का नाइट लैम्प जलाया तो उसे अचानक नाइट बल्ब की रोशनी में जो दिखाई दिया उससे वह बुरी तरह डर गया. उसे अपने कमरे में एक भयानक डरावनी सूरत वाली काली बिल्ली दिखाई दी. जिसकी आँखो से अंगारे बरस रहे थे. उस काली भयावह डरावनी सूरत वाली बिल्ली से वह कुछ पल के लिये डर गया लेकिन उसने हिम्मत से काम लेते हुए उस बिल्ली को भगाने के लिए डंडा तलाशना चाहा , लेकिन उसे जब कहीं भी डंडा दिखाई नहीं दिया इस बीच डंडा तलाशते समय उसकी न$जर अनायास सामने की ओर बने सेंट पाल चर्च की ओर गई तो उसका कलेजा कांप गया. उसने अपने ऊपर की मंजिल पर स्थित कमरे से देखा कि रात के समय आसमानी तारों की जगमग रोशनी में उस चर्च के सामने बनी बावली के भीतर से एक महिला निकल कर उसके मकान की ओर आती दिखाई दी. सफेद लिबास पहनी वह महिला उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू के कमरे की ओर आती दिखाई दी वह महिला आई महिला बिना कुछ बोले उसके मकान मालिक के कमरे में चली गई. उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि उसने अभी कुछ देर पहले क्या देखा. आखिर वह महिला कौन थी. उसका इस मकान मालिक से क्या नाता-रिश्ता है. वह यहां पर इतनी रात को क्या करने आई है……? और न जाने कितने प्रकार के विचारों में खोए मनोज का डर के मारे बुरा हाल था. अगर वह बिस्तर पर जाकर नहीं बैठता तो वह बुरी तरह लडख़ड़ा कर गिर जाता.
मनोज ने जैसे – तैसे पूरी रात को अपनी आँखे के सामने कांटा. उसका एक- एक पल उसे सालो की तरह लग रहा था. सुबह होते ही जब उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू ने उसे घूमने के लिये चलने को कहा तो उसने पेट दर्द का बहाना बना कर वह अपने बिस्तर में दुबक कर सो गया. उसकी आंखों की नींद उड़ गई थी वह बार-बार यही सोचता रहा कि उस बावली से निकलने वाली महिला कौन थी? उसका इस मकान मालिक से क्या संबंध है? सवालों में उलझे मनोज ने किसी तरह दिन निकलते तक का समय काट लिया पर वह रात की घटना से परेशान हो गया. दिन भर बेचैन मनोज जब आज कॉलेज भी नहीं आया तो उसके मकान मालिक ने उससे आखिर पूछ लिया-बेटा मनोज क्या बात है? तुम्हारा पेट दर्द क्या अब भी कम नहीं हुआ है? अगर तकलीफ अभी भी है तो डाक्टर के पास चलो मैं तुम्हें ले चलता हंू. नहीं अंकल ऐसी कोई बात नहीं है, बस यूं ही इच्छा नहीं हो रही है. आप चिंता न करें मैं ठीक हंू यह कह कर मनोज अपने कमरे से बाहर निकल कर आ गया. रात की घटना को याद करता विचारों में खोये मनोज की अचानक किसी ने आंखों पर हथेली रखकर उसकी आंखोंं को दबा दिया. मनोज ने जैसे ही आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह चीख पड़ा और वह कटे वृक्ष की भॉति जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा. मनोज के चीख कर बेहोश गिर जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांप रही थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को क्या हो गया. मनोज की चीख को सुनकर आसपास के लोग घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये. कुछ ही पल में पूरा मोहल्ला जमा हो गया. किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा था. अंजलि का तो हाल बेहाल था. कुछ लोग मनोज को उठाकर उसके कमरे में ले गये. इस बीच कुछ लोग डाक्टर को तो कुछ लोग झाडऩे-फूंकने वाले को लेकर आ गये. डाक्टरों के लाख प्रयास के बाद रात वाली घटना को याद करके सिहर उठता था. इस बीच जब अंजलि ने चुपके से आकर उसकी आँखे क्या दबाई  वह चीख कर ऐसा बेहोश हुआ कि उसे अभी तक होश नहीं आया. जब काफी देर तक मनोज को होश नहीं आया तो फिर क्या था उसके आस – पडौस के लोगो ने ओझा फकीरो को बुलवा लिया. सुबह से लेकर शाम तक झाड़ – फुक जंतर-मंतर का दौर शुरू हो गया. चर्च के फादर राबिंसन इन बातों पर विश्वास नहीं करते थे. इस बीच कोई मौलाना साहब को लेकर आ गया. मौलाना साहब ने कुछ बुदबुदाते हुये मनोज के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो अचानक बड़ी-बड़ी आंखें खोलकर घूरता हुआ जनानी आवाज में बोला ”तुम सब भाग जाओं नहीं तो किसी एक को भी नहीं छोडूंगी. …………. मौलाना साहब ने बताया कि यह लड़का किसी जनानी प्रेत के चक्कर में पड़ गया है. इसे कुछ समय लगेगा. ऐसा करें आप आधा घंटे का मुझे समय दे दीजिये. मैं इसे ठीक कर दूंगा. हां एक बात और भी इस लड़के का कोई अगर अपना है तो वह ही इसके साथ रहे बाकी सब चले जायें. सभी लोग अंजलि को छोड़ जाने लगे तो अंजलि जो कि इन सब बातों से बुरी तरह घबरा गई थी. बोली-प्लीज मेरे पापा को फोन करके बुला दीजिये न. अंजलि के पापा इसी शहर के पुलिस कप्तान थे इसलिये उन तक खबर पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं थी. पुलिस कप्तान साहब की बिटिया की खबर कौन नहीं पहुंचाएगा. लोग खबर देने के लिये दौड़ पड़े.
पुलिस कप्तान ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह का पूरे जिले में दबदबा था. अपराधी तो उसके नाम से ही थर-थर कांपता था. अंजलि उनकी एकमात्र संतान थी. तेजतर्रार पुलिस कप्तान साहब की एकमात्र नस थी तो वह उनकी बिटिया अंजलि जिसे वे बेहद प्यार करते थे. अंजलि मनोज के साथ डेनियल कालेज कला की छात्रा थी. मनोज भी उसी कालेज में साइंस का छात्र था. दोनों एक-दूसरे के विपरीत कोर्स की पढ़ाई कर रहे थे. कालेज की केन्टीन से शुरू हुये अंजलि और मनोज के प्रेम प्रसंग ने उन्हें पूरे कालेज में चर्चित कर रखा था. पुलिस कप्तान की बिटिया होने की वजह से हर कोई उसके आसपास आने से डरता था. वह अक्सर मनोज से मिलने आती थी. पिछले चार-पांच माह से दोनों के बीच चल रहे प्रेम प्रसंग की पूरी कालोनी में चर्चा होती थी. लोग चर्च कालोनी के इन दोनों प्रेमियों की तुलना हिर-रांझा, लैला-मजनू, सोनी-महिवाल से करते थे. अंजलि शहर के पुलिस कप्तान की बिटिया थी इसलिये कोई भी उसके बारे में बुरा भला कह पाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. कई बार तो कप्तान की कार ही मनोज को लेने आती थी. पूरे मोहल्ले में मनोज का जलवा था. अंजलि की मम्मी को ब्लड कैंसर की बीमारी थी. जिसकी वजह से वह असमय ही काल के गाल में समा गई थी. अंजलि की मम्मी का जब निधन हुआ था उस समय वह छ: माह की थी, ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह पर परिवार के लोगों का काफी दबाव आया कि वे दूसरी शादी कर लें, पर कप्तान साहब अपनी जिंदगी में किसी दूसरी औरत को आज तक आने नहीं दिया. अंजलि ही उसके जीने का एक मात्र सहारा थी. जब अंजलि के बीच प्रेम प्रसंग की उन्हें खबर मिली तो सबसे पहले कप्तान साहब ने बिना किसी को कुछ बताये मनोज के पूरे परिवार की जन्म कुंडली अपने मित्र से मंगवा ली थी. मनोज के घर परिवार के तथा उसके आचार विचार ने पुलिस कप्तान का दिल जीत लिया था. पुलिस कप्तान ने मनोज को अपना भावी दामाद बनाने का फैसला कर लिया था. अगले वर्ष दोनों का विवाह कर उनका घर संसार बसा देने का फैसला ठाकुर महेन्द्र  प्रतापसिंह तथा मनोज के पापा के बीच हो चुका था लेकिन दोनों के बीच की बातचीत को अभी गुप्त रखा था. इस बात का न अंजलि को पता था और ना ही मनोज को आभास था कि उसके पापा और अंजलि के डैडी के बीच कोई बातचीत भी हुई है.
अंजलि  की खबर मिलते ही पुलिस कप्तान दौड़े चले आए. उनके साथ शहर का पुलिस विभाग भी आगे-पीछे दौड़ा चला आया. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह की बिटिया संकट में है यह खबर सुन कर भला कौन चुप बैठ सकता था. सबसे ज्यादा हैरान – परेशान अखबार और टी.वी. चैनल वाले थे क्येकि उन्हे आपस में इस बात का डर सता रहा था कि कहीं उनकी खबर आने के पहले ही कोई ब्रेकिंग न्यूज न चला दे. शहर में सनसनी खेज खबर के घट जाने के चलते सारे मीडिया कर्मी ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह को खोजते कुन्दन मैथ्यू के घर पर आ धमके. सेंट पाल चर्च कालोनी की इस घटना की चर्चा शहर के पान ठेलो एवं होटलो तथा चाक चौराहो पर होने लगी. कुन्दन मैथ्यू के घर पुलिस कप्तान के पहँुचते ही वहाँ पर जमी भीड़ छटने लगी. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह उस कमरे में चले गए जहाँ पर गुमसुम अंजलि और मौलवी साहब के अलावा मनोज के अलावा उनके आसपास के लोग बैठे हुए थे. पापा के आते ही अंजलि स्वंय को रोक नही सकी और दहाड़ मार कर रोने लगी. ”पापा देखा न मनोज का क्या हो गया…..? अपनी बेटी की आँखो में आँसू देख महेन्द्र प्रतापसिंह स्वंय को रोक नही सके वे कुछ पुछते इसके पहले ही मौलवी साहब ने उन्हे चुपचाप रहने का इशारा कर दिया. पुलिस कप्तान साहब कमरे के एक कोने में बैठ कर वहाँ पर होने वाली गतिविधियो को देखने लगे. इस बार फिर मौलवी साहब ने गेहूँ के दानो को मनोज पर फेका तो आँखो में अंगारे लिए मनोज सोते से जाग गया. उसने सामने के मौलवी से तू चला जा नहीं तो बात बिगड़ जायेगी…….. मौलवी ने इस बार फिर कुछ बुदबुदाया और मनोज के चेहरे पर वह अभिमंत्रित पानी फेका तो वह जनानी आवाज में बोला मुझे छोड़ दो………… मौलवी साहब बोलें पहले तू यह तो बता आखिर तू है कौन………?  तूने इसे क्यो अपने जाल में फँसा रखा है………..? इस बार मनोज के शरीर में समाई प्रेतात्मा बोली………….. मैं मरीयम हँू…………..सिस्टर जूली की छोटी बहन हँू. फादर डिसूजा ने मेरी सिस्टर जूली से मैरिज की थी. मैं अपनी सिस्टर के पास ही रहती थी. आज से  45 साल पहले मेरी चर्च कालोनी की इस सामने वाली बावली में गिरने की वजह से मौत हो गई थी. मेरी मौत लोगो के बीच काफी समय तक चर्चा का विषय बनी क्योकि फादर डिसूजा ने मेरी मौत को आत्महत्या बताया था जिसे आसपास के लोग मानने को तैयार नही थे. उस समय मैं दसवी कक्षा में पढ़ती थी. कुंदन मैथ्यू फादर डिसूजा के घर पर ही रहता था इसलिए हम दोनो के बीच पता नही कब प्यार का बीज अंकुरित हो गया. कुंदन के बचपन मेरी माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गये थे . एक दिन फादर डिसूजा को भूखे से व्याकुल कुंदन एक होटल में चोरी करते मिला. फादर डिसूजा को कुंदन पर दया आ गई और उसने उसे पुलिस थाने से जमानत पर छुड़ा कर अपने पास ले आया. सात साल की उम्र से कुंदन फादर डिसूजा के पास ही रहता है. फादर डिसूजा ने कुंदन को ईसाई धर्म की दीक्षा देकर उसका नाम कुंदन मैथ्यू कर दिया. कुंदन ने भी फादर डसूजा को अपने माता- पिता की तरह चाह कर उसकी सेवा चाकरी में कोई कसर नही छोड़ी. फादर ने कुंदन का नाम सामने वाले चर्च स्कूल में लगा दिया. पढऩें में  तेज कुंदन ने हर साल अव्वल नम्बर पर आकर पूरे शहर में अपने नाम की पहचान बना ली थी. इस बीच सिस्टर जूली ने चर्च स्कूल में बतौर टीचर के जब नियुक्त हुई तो वह भी कुंदन की पढ़ाई के प्रति लगन और क्लास तथा स्कूल में नम्बर वन आने की वजह से उस पर खास ध्यान देने लगी. सिस्टर जूली भी श्ुारूआती दिनो में चर्च कालानी में रहती थी लेकिन जब फादर डिसूजा से उसकी मैरीज हो गई तो वह अपनी छोटी बहन मरीयम के साथ रहने लगी. मरीयम भी कुंदन के साथ पढ़ती थी इसलिए दोनो साथ – साथ रहने और पढऩे के कारण एक दुसरे के हमजोली बन गये. सिस्टर जूली से मैरीज के बाद फादर डिसूजा का कुंदन के प्रति व्यवहार काफी बदल गया. कुंदन का स्कूल जाना बंद करवा दिया गया. उसे चर्च में चौकीदार की नौकरी पर रखवाने के बाद फादर डिसूजा ने मरीयम की कुंदन से बातचीत तक बंद करवा दी. फादर डिसूजा नहीं चाहतें थे कि मरीयम की मैरीज एक ऐसे लड़के से हो जिसके  माता- पिता न हो…… जिसके पास न घर है न दो वक्त की दो का इंतजाम ऐसे लड़के से मैरीज न होने देने की वजह कुछ और ही थी. दर असल फादर मरीयम को पाना चाहते थे लेकिन सिस्टर जूली की वजह से उनकी दाल नही गल पा रही थी. एक दिन सिस्टर जूली और कुंदन किसी काम से दूर किसी शहर गये थे . उस रात को घर में अकेली देख फादर डिसूजा ने मरीयम की इज्जत लूटनी चाही तो वह अपनी जान बचाते समय ऐसी भागी की बावली में जा गिरी. मरीयम की अचानक मौत का सिस्टर जूली पर ऐसा सदमा पड़ा की वह अकसर बीमार पडऩे लगी और एक दिन चल बसी. फादर डिसूजा ने कई लोगो को मेरी मौत को आत्महत्या बताया लेकिन किसी ने भी उसकी बातो पर यकीन नही किया. मैने आखिर मेरी और मेरी सिस्टर जूली की मौत का बदला लेने के लिए मुझे मनोज का सहारा लेना पड़ा
. मैं मनोज को बस एक ही शर्त पर छोड़ सकती हँू यदि आप मेरी कब्र पर एक काला गुलाब वो भी मेरे और  कुंदन  के प्यार की निशानी बतौर लोगो के बीच लम्बे समय तक जाना – पहचाना जा सके. लोगो ने जूली की मनोज के माध्यम से कहीं बातो पर विश्वास करके एक काला गुलाब की कली की कहीं से व्यवस्था करके ज्यों ही उसकी कब्र पर गाड़ा इधर मनोज अपने – आप ठीक हो गया . आज भी कुंदन  और जुली के प्यार का वह प्रतिक लोगो के लिए ऐसा सबक साबित हुआ है कि लोग कभी भी ऐसे प्रेमी के प्यार के बीच में खलनायक बनने का प्रयास नहीं करते जों एक दुसरे को जान से जयादा चाहते है. अभी कुछ दिनो पूर्व ही अंजली अपने पति मनोज और पापा डी .आई .जी . ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह के साथ जब नागपुर जा रही थी तो वह छिन्दवाड़ा होते हुए जूली की कब्रतक पहँुची यह जानने के लिए की उसके द्वाराा अकुंरित काला गुलाब कैसा है………!
इति,
कथा के पात्र काल्पनिक है इसका किसी भी
जीवित व्यक्ति से कोई लेना – देना नहीं है

पत्रकार बना नटवर लाल
रामकिशोर पंवार
उस दिन जन सम्पर्क संचनालय भोपाल में काफी चहल- पहल थी . आयुक्त  जन सम्पर्क अपने कक्ष में बैठे किसी फाइल के पन्ने पलट रहे थे . इस बीच कार्यालय का चपरासी एक विजिटींग कार्ड के साथ अंदर आया . कार्ड पर लिखा परिचय देख कर आयुक्त ने उस कार्ड धारक को अंदर बुलवा लिया . बातचीत चली तो पता चला कि कमरे में आने वाला युवक मयंक भार्गव है तथा वह मुख्यमंत्री पत्रकार सहायता कोष से अपनी कैंसर से पीडि़त माँ के इलाज के लिए 20 हजार रूपये की आर्थिक सहायता के प्रोफार्म के साथ आया हुआ था . आयुक्त ने सहायता नीधि के कागजो और संलग्र दस्तावेजो को देखने के बाद उस आवेदन की सिफारीश कर डाली और वह चला गया स्वीकृति के लिए……. पता नहीं क्यो आयुक्त जन सम्पर्क को रह – रह कर ऐसा लग रहा था कि मुख्यमंत्री पत्रकार सहायता कोष से बीस हजार रूपये की सहायता मांगने वाला युवक कहीं से कही तक असहाय या लाचार लग रहा था . मोबाइल धारक  स्कारपीयों से आने वाले इस युवक को बीस हजार रूपयें की आर्थिक सहायता स्वीकृत करवाने वाले पूरे जन सम्पर्क विभाग को भी इस बात का अंदेशा नही था कि कल चल कर यह मामला इतना तूल पकडेगा कि जन सम्पर्क विभाग को लेने के देने पड़ जायेगें. आखिर एक दिन हुआ भी वही जिसकी आशंका थी. बैतूल जिला मुख्यालय स्थित प्रथम श्रेणी न्यायाधीश माननीय सुनील शौक की अदालत में  एक परिवाद प्रस्तुत करते हुये जिले के जाने – माने अधिवक्ता राधाकृष्ण गर्ग के भतीजे मनीष गर्ग ने एक परिवाद पत्रकार मयंक भार्गव एवं उनकी माता श्रीमति उर्मिला भार्गव के खिलाफ प्रस्तुत करते हुये आरोप लगाया कि मयंक भार्गव ने अपनी बुढ़ी विधवा माँ श्रीमति उर्मिला शिव शंकर भार्गव को कैंसर का मरीज बतलाते हुये मुख्यमंत्री पत्रकार सहायता कोष से झुठे दस्तावजे तैयार करके पत्रकार मयंक भार्गव ने बीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता ली है . इसके अलावा दो अन्य परिवाद में विक्रमा दित्य सिंह ठाकुर , वीरेन्द्र दुबे तथा मयंक के छोटे भाई मयूर भार्गव जिनके खिलाफ परिवाद  क्रंमाक 499- 6 , 500- 6 , 501- 6 धारा 420 , 467 , 468 , 471 , 468 , 469 , तथा दायर करने के बाद उक्त सभी पाँचो ्रआरोपियो ने ना – ना प्रकार के दबाव डाल कर फरियादी रामकिशोर पंवार को प्रताडि़त किया लेकिन इन पँाच आरोपियो की एक याचिका को खारीज करते हुये अपर सत्र न्यायाधीश श्री ए . जे . खान ने प्रथम श्रेणी मुख्य न्यायाधीश श्री सुनील शौक के आदेश को उचित बतलाते हुये इन पाँचो आरोपियो के खिलाफ बैतूल थाना प्रभारी को अपराध पंजीबद्घ कर मामले की जाँच के निर्देश दिये .
गत वर्ष 26 जून 2006 को अपर सत्र न्यायाधीश श्री ए . जे . खान के आदेश पर बैतूल पुलिस ने मयंक , मयूर , श्रीमति उर्मिला भार्गव , श्री विक्रमादित्य सिंह ठाकुर , श्री वीरेन्द्र दुबे के खिलाफ मामला तो दर्ज कर डाला लेकिन वह जाँच के बहाने आज दिनाँक तक न्यायालय में लंबित है . प्रथम श्रेणी मुख्य न्यायाधीश श्री सुनील शौक ने इन पाँचो आरोपियो के खिलाफ पुलिस विवेचना में देरी तथा चालान प्रस्तुत न किये जाने के मामले को लेकर पुलिस महानिर्देशक से लेकर पुलिस अधिक्षक तक को कड़ा पत्र लिख डाला लेकिन किसी के कान में जूँ तक नही रेंगी आखिर प्रथम श्रेणी मुख्य न्यायाधीश श्री सुनील शौक नें बैतूल थाना प्रभारी आर. एस. अग्रवाल को न्यायालय की अवमानना का नोटिस थमा डाला . आरोपियो को गिरफ्तार नही करने वाली पुलिस के पास ना – ना प्रकार के बहाने भी रहते है . एक दिन तो गजब हो गया जब बैतूल न्यायालय द्वारा लगभग 11 माह पूर्व बैतूल थाना में इन तीन अलग – अलग परिवादो पर दर्ज करवाये गये जालासाजी के प्रकरणो के चालान के बारे भोपाल में बैठे अफसरो को न्यायालय की ओर से लिखे पत्र मे चेतावनी दी गई तो स्वंय अनुविभागीय पुलिस अधिकारी श्रीमति सीमा अलाव ने विश्वास दिलाया कि बैतूल कोतवाली 15 दिनो के अंदर ही न्यायाधिपति सुनील शौक की अदालत में चलने वाले जालसाजी के मामले में जाँच रिर्पोट प्रस्तुत करने जा रही है . न्यायालय तय करता कि मामला सही है या गलत इसके पूर्व ही उन्होने कह डाला कि पुलिस ने अपनी जाँच रिर्पोट में उक्त मामले को झूठा पाया है . पुलिस के 15 दिन जब सवा माह हो गये लेकिन पुलिस 11 माह पुराने मामले पर सहीं जाँच निर्णय से न्यायालय को अवगत नहीं करा सकी है . वह न्यायालय के बार- बार आदेशो के बाद आज तक परिवाद में प्रस्तुत साक्ष्य को हासिल नहीं कर सकी है . सबसे मजेदार बात तो यह है कि बैतूल पुलिस ने अब वहीं रिर्पोट को आधार बनाया है जिसे बनाने वाले मध्यप्रदेश पुलिस के उप निरीक्षक एवं बैतूल गंज पुलिस चौकी के प्रभारी पर आज भी खण्डवा जिले के न्यायालय में बलात्कार एवं अनुसूचित जाति – जनजाति प्रताडऩा अधिनियम के दर्ज मामला विचारधीण है. जो खुद अपराधी हो उसे ही अपराधियो के खिलाफ जाँच करने की जवाबदारी देकर जिला मुख्यालय के आला पुलिस के अफसरो ने उस लोकप्रिय कहावत को सत्य साबित कर दिखाया कि चोर के हाथ में तिजोरी की चाबी……!   ज्ञात हो कि लगभग 10 माह की तथाकथित जाँच के दौरान मामले की जाँच करने वाले बैतूल गंज पुलिस चौकी के प्रभारी एच.एल.शर्मा ने इस लम्बी समयावधि के दौरान मामले के सारे साक्ष्यो एवं गवाहो को आरोपियो के पक्ष में करके न्यायालय के द्वारा दर्ज जालासाजी के आरोपियो को बचाने का प्रयास किया है . अब देर – सबेर जागी पुलिस द्वारा इस बहुचर्चित जालसाजी के मामले के आरोपियो को बचाने के लिए न्यायालय में पेश की जाने वाली जाँच रिर्पोट तथा चालान के साथ पुलिस न्यायालस से अपील भी करने वाली है कि मामले को खारीज कर दिया जाये . अपने स्वजाति अपराधियो को बचाने के लिए पूरे मामले के साक्ष्यो को तोड़ – मरोड़ कर प्रस्तुत करने की रणनीति के तहत जाँच अधिकारी ने इन मामलो के सभी आरोपियो के खिलाफ गवाही देने वालो तक के आरोपियो के पक्ष में बयान करवा लिया है .पुलिस की यह कार्यवाही एक नई मिसाल साबित होगी.
इधर अपनी माँ को कैंसर का मरीज बता कर मुख्यमंत्री पत्रकार सहायता कोष से बीस हजार रूपसे की सहायता स्वीकृत करने वाले अफसर अब बुरी तरह दहशत में है . अब उन्हे भी लगने लगा है कि जो दस्तावेज प्रसतुत किये गये है उस आधार को न्यायालय में दी गई चुनौती के हिसाब से उनकी भी कलम बुरी तरह फँस चुकी है.  बैतूल जिले के इस जालसाज पत्रकार मयंक को आर्थिक सहायता स्वीकृत करवा कर जन सम्पर्क के अफसर अब अपनी जान बचाने में लगे है . सबसे ज्यादा हैरान- परेशान रज्जू राय  नामक अफसर बताया जाता है . जन सम्पर्क विभाग के सूत्रो के अनुसार इस अफसर ने ही मयंक को 20 हजार रूपये की सहायता राशी दिलवाने में अहम भूमिका निभाई थी .सूत्र बताते है कि शासन के राजपत्र में प्रकाशित  प्रारूप के विपरीत सहायता दिलवाने का दु:साहस करने वाले रज्जू भैया अब इस बात को लेकर चिंतित न$जर आ रहे है कि मयंक का अपराध सिद्घ हुआ तो उन पर भी गाज गिर सकती है …. गार -पीट से बचने के लिए मंयक को स्वीकृत सहायता राशी की फाइल से कई महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब है लेकिन परिवाद के साथ प्रस्तुत दस्तावेजो की फोटो काफी में  और पुलिस विभाग की जाँच तथा जन सम्पर्क विभाग के कथन में जमीन आसमान का फर्क है . विभाग के अफसरो को बैतूल जिले का नाम सुनते ही पसीना आने लगता है . कई भोपाली अफसर तो बैतूल के नाम से ऐसा रोना रोते जैसे उनके साथ कोई बहँुत बड़ी घटना या हादसा घट गया हो . जन सम्पर्क विभाग के एक अफसर ने स्वीकार किया कि पेंशनधारक पति के जिंदा होने पर उसकी आयकरदाती पत्नि को उसके पुत्र पर आश्रित दिखा कर बड़ी भूल तो हुई है क्योकि जो महिला हर साल 20 हजार से ज्यादा तो अपनी चल – अचल सम्पति का आयकर चुकाती हो वह भला अपने इलाज के लिए शासन से बीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता क्यो लेगी……? मयंक की विधवा माँ श्रीमति उर्मिला भार्गव के पति उस समय जीवित थे जब उसके इलाज के नाम पर बीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता ली गई . श्रीमति उर्मिला भार्गव के नाम पर बारह लाख रूपये  का दो मंजिला मकान के अलावा 15 लाख रूपये की तिरूपति बालाजी आफसेट प्रिटंर्स है साथ ही वह स्कारपीयो वाहन की मालिक है . वह प्रति वर्ष अपनी चल एवं अचल सम्पति का आयकर चुकाती है .
जन सम्पर्क विभाग के उन अफसरो ने अपने स्वजाति भाई जो कि दूरदर्शन , आकाशवाणी और पी .टी .आई . तथा इंडिया टी .वी . का बैतूल ब्यूरो है उसे हर समय सहयोग किया . इन्ही भोपाल में बैठे ब्यूरो प्रमुखो या इंचार्ज प्रमुखो के दम पर मयंक भार्गव , मयूर भार्गव तथा उसके मित्रो के नाम पर इन लोगो ने कभी डाँ अशोक साबले से तो कभी विनोद डागा से सहायता पाने वाले इन जालसाजो ने तो सुखदेव पांसे , डाँ सुनीलम  , सज्जन सिंह और महेन्द्र सिंह पर भी आर्थिक सहायता दिलवाने के लिए पहले तो दबाव डलवाया और जब वह काम नहीं आया तो ना – ना प्रकार के चक्कर चलाये लेकिन उक्त सभी विधायक इन जालसाजो को आर्थिक सहायता नहीं दिलवा सके .जन सम्पर्क विभाग के आला अफसर यह मानने लगे है कि इन दोनो भाईयो ने तो अंतरराष्टïय ठगराज को भी मात दे डाली .अभी हाल ही की सबसे बड़ी खबर यह है कि जन सम्पर्क विभाग के अफसरो ने इन दोनो भाईयो के साथ जेल जाने से बचने के लिए विभाग की कई महत्वपूर्ण फाइलो को ठिकाने लगाने का काम तो कर डाला पर उनके ही खास लोगो ने उन दस्तावेजो की फोटो कापी उपलब्ध करवाते हुये उनके जेल जाने का रास्ता पक्का कर दिया है . मयंक – मयूुर प्रकरण में अप्रत्यक्ष रूप से जिला कलेक्टर बैतूल श्री चन्द्रहास दुबे ने अपना बड़ा योगदान दिया वे पुलिस अधिक्षक से लेकर न्यायपालिका तक को अपने प्रभाव से प्रभावित करके मयंक के प्रकरण की जाँच को अभी तक लटकाये रखे. इधर बैतूल जिले के पुलिस अधिक्षक बस एक ही राग अलापते रहे कि मैं थानेदार तो हँू नहीं कि जाँच करू  अब देखता हँू कि पुलिस क्यो जाँच नहीं कर रही है . कुल मिला कर न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका तक इस ठगी के बेताज बादशाह के कदमो में घुटने टेक चुकी है . अब उन परिवादो का क्या होगा  यह तो ईश्वर ही जाने ………….?
इति,

कंलकित हुआ राखी का धागा
तेरे – मेरे बीच में कैसा है ए बंधन अंजाना
सत्यकथा :- रामकिशोर पंवार
उस दिन पूरे गांव की पंचायत की बैठक थी . . बैतूल जिला मुख्यालय से 25 किलो मीटर दूर रानीपुर के आगे कतिया कोयलारी नामक गांव बसा हुआ हैै . इसी ग्राम छन्नू नामक कोरकू का परिवार रहता है . छन्नू के परिवार में उसके तीन बेटे एवं छै बेटियाँ है . बड़ा बेटा कमल की अभी कुछ ही साल पहले शिवकली धुर्वे से शादी हुई थी . छन्नू कोरकू की पत्नि इमरती के अलावा उसके परिवार में उसका सबसे छोटा बेटा सम्बल को लेकर आज जात – समाज और गांव की पंचायत की बैठक में छन्नू धुर्वे का पूरा परिवार आज सर झुकाये बैठा हुआ था . गांव की पंचायत ने सर्व सम्मति से छन्नू धुर्वे के पूरे परिवार के सामाजिक बहिष्कार के अलावा उसके गांव से निकाले जाने की घोषणा करके सबको आश्चर्यचकित कर डाला था . गांव की महिला कोटवार सरस्वती देवी गांव का फैसला लेकर जब रानीपुर थाना पहँुची तो सारी घटना को सुनने के बाद थाना प्रभारी श्री के .एस . बघेल को पहले तो घटना पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब दोनो ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थानेदार बघेल अब कानून के पन्नो को पलटने ले क्योकि कानून में यह कही भी नही लिखा था कि युवक और युवती अगर बालिग हो तो उनके बीच स्थापित शारीरिक सबंध क्या कानून अपराध की श्रेणी में आता है .
जिस भारतीय समाज में हम सदियो से रहते चले आ रहे है , उस समाज में माँ और बेटे के बाद अगर कोई रिश्ता पवित्रता की कसौटी पर खरा उतरा है तो वह है राखी के धागो से बंधा भाई और बहन का रिश्ता लेकिन अब उस रिश्ते पर भी कलंक लगना शुरू हो गया है .रिश्तों की मर्यादाओं को तोड़ते हुए इस पवित्र बंधन को कलंकित करने वाले एक हवस के भूखे भेडिय़े ने अपनी सगी छोटी बहन को शिकार बनाने के बाद भले ही आत्मग्लानि की व$जह से फाँसी लगा कर आत्महत्या कर ली हो पर उसके इस कुकर्म ने माँ से उसका बेटा , बहन से उसका भाई जो बाद उसका होने वाला पति था तथा उस कंलकित रिश्ते से जन्मे नवजात शीशु के सिर पर से बाप का साया छीन लिया . एक ही छत के नीचे कब दोनो जवानी की दहलीज पर पैर रखने वाले भाई – बहन के पैर फिसल गए किसी को पता नहीं चला . उसके परिवार में उसके सगे बड़े भाई कमल और उसकी पत्नि शिवकली धुर्वे ,माँ इमरती बाई धुर्वे तथा बहनो तक उनके बीच बने इस शारीरिक सबंध से तब तक अंजान रही जब तक उस लड़की कोख का बीज अंकुरित होकर पेट में हलचल पैदा न कर सका . जैसे ही पेट के भीतर का पाप लोगो को दिखने लगा लोगो ने इस मामले को लेकर गांव और समाज की पंचायत बुलवा कर इस परिवार के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा करके उसे गांव से बाहर करने का फरमान जारी कर दिया . 21 वर्षिय सम्बल आत्मज छन्नू धुर्वे की मां इमरती पत्नि छन्नू धुर्वे की ममता ने उनके इस कृत्य को स्वीकार करते हुए दोनों की शादी करवाने का निर्णय तो ले लिया लेकिन गांव की पंचायत के दबाव तथा स्वंय को हुई आत्मग्लानि के चलते सम्बल धुर्वे अपनी ही सगी छोटी बहन का पति बन पाता इसके पूर्व ही उसने फाँसी का फंदा लगा कर मार डाला . बैतूल जिला मुख्यालय से 25 किलो मीटर दूर रानीपुर के आगे कतिया कोयलारी ग्राम में घटित हुई इस शर्मनाक – शर्मसार घटना से पूरा गांव अपने आपने आपको अपराधी मान रहा है . हालाकि इस घटना का खुलासा बीते शनिवार 9 जून 2007 को सूर्यास्त के बाद हुआ जब गांव की महिला कोटवार सरस्वती बाई मृतक युवक 21 वर्षीय सम्बल धुर्वे और 19 वर्षीय उसकी बहन माधुरी (परिवर्तित नाम) को लेकर रानीपुर थाने पहुंची जहां थाना प्रभारी के .एस . बघेल के पास उन दोनो के कारण गांव में उत्पन्न हुई समस्या और उनके बीच बने संबध के चलते गांव की एवं समाज की पंचायत से बहिष्कार की बात रखी तो थाना प्रभारी श्री बघेल सकते में पड़ गए उन्हे गांव की महिला कोटवार सरस्वती बाई की बात  पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं हुआ लेकिन मामले की गम्भीरता तथा ग्रामिणो का आक्रोष के आगे वह स्वंय इस ज्वलंत प्रश्र पर कोई निर्णय नहीं ले सका कि इनके खिलाफ किस धारा का अपराध दर्ज किया जाए…..? अब सवाल यह उठता है कि जिस रिश्ते की डोर पवित्रता के विश्वास से जुड़ी है और जिस बहन की रक्षा का जीवन – मरण तक का दायित्व भाई के  ऊपर रहता है वहीं भाई अपनी बहन का भक्षक बन जाये और बहन भी भाई के भाई के उस कृत्य को छुपा कर उस पाप को अपनी कोख में पलने दे तब कानून क्या करेगा . यह घटना अपने आपमें कटुसत्य है कि सम्बल ने अपनी बहन के साथ एक साल पहले ही जबरदस्ती कहे या उसकी मर्जी से अनैतिक असामाजिक शारीरिक संबंध स्थापित कर लिए थे और वे दोनो एक ही छत के नीचे पति-पत्नी के रूप में रहते चले आ रहे थे . गांव और समाज के लोगो को भले ही इस घटना के बारे में बाद में पता चला हो पर इसकी जानकारी उन दोनो के परिवार वालों को पहले ही लग गई थी ….. ! माँ की ममता ने बेटे और बेटी के इस अपराध को स्वीकार कर लिया था लेकिन जब लड़की के गर्भवती होने का खुलासा गांव वालों के सामने हुआ तो तत्काल ही गांव और समाज की एक पंचायत ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि सम्बल के पूरे परिवार का सामाजिक बहिष्कार किया जाये एवं इन दोनों को गांव निकाला भी दिया जाये . रानीपुर थाना प्रभारी श्री बघेल के पास गांव के उक्त फरमान को लेकर पहँुची गांव की महिला कोटवार सरस्वती बाई की मौजूदगी में पुलिस ने दोनों से पूछताछ करने के बाद उन्हें समझाईश देकर गांव वापस भेज दिया क्योकि पुलिस भी इस बात को जान चुकी थी कि दोनो बालिग होने के साथ – साथ इनके बीच बने अवैध या जोर – जबरदस्ती का न होकर आपसी सहमति का है . जिसके कारण पुलिस के पास ऐसी कोई धारा नहीं है , जिसके बल पर वह उन दोनो को दंडित कर सके . ग्राम कतिया कोयलारी में रहने वाले छन्नू धुर्वे की कुल 9 संतान है जिसमें 3 भाई तथा 6 बहने है . मात्र बड़े भाई कमल की ही शादी हो चुकी थी शेष की शादी होना बाकी था . ग्राम पंचायत कोयलारी पंच अशोक उइके ने गांव पहँुचे इस संवाददाता को बताया कि इस कंलकित घटना का पूरे स्वजाति समाज एवं अन्य समाज पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा ……  ! भारतीय समाज में जिस रिश्ते को सम्मान से देखा जाता है अगर उस रिश्ते पर दाग लग जाए तो आने वाली पीढिय़ों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा . भले ही गांव की पंचायत ने मृतक सम्बल धुर्वे के परिवार का इस घटना को लेकर उनका सामाजिक बहिष्कार – दाना – पानी बंद कर दिया था पर उसे मिली सामाजिक प्रताडऩा एवं स्वंय को हुई इस नापाक घटना की आत्मग्लानि ने 21 वर्षिय सम्बल धुर्वे को पुलिस थाने से आने के बाद दुसरे दिन ही स्वंय के गले के गमछे से फाँसी लगा कर आत्महत्या कर ली . इधर सम्बल धुर्वे ने दम तोड़ा उधर उसकी 19 वर्षिय बहन माधुरी (परिवर्तित नाम) ने उस पाप से अंकुरित बीज को जन्म दिया . हालाकि मृतक सम्बल धुर्वे की मां इमरती बाई ने बार – बार मृतक के आत्महत्या करने के पूर्व अपने जात – समाज और गांव की पंचायत के समक्ष इनकी शादी को स्वीकार करने को तैयार थी, लेकिन समाज और गांव किसी भी सूरत में इस बात को स्वीकार करने को तैयार नही था . काफी मिन्नते के बाद सशर्त समाज और गांव पंचायत ने फैसला दिया कि प्रसव के बाद दोनों की शादी अलग-अलग स्थानों पर कराने के बाद ही इन पर लगाया गया दण्ड हटाया जाएगा . इस मामले को लेकर सम्बल की मां इमरती बाई का कहना है कि उनके बच्चों से गलती तो हुई है लेकिन अब उनकी शादी के अलावा कोई विकल्प नहीं है इसलिए अब वे भाई बहन की शादी करा देती लेकिन सम्बल ने फाँसी लगा कर आत्महत्या करके पूरे परिवार को एक बार फिर जीते – जी मार डाला . आदिवासी समाज में अकसर देवर – भौजाई , जीजा – साली के बीच अवैध संबधो के मामले जनप्रकाश में आते – रहते है लेकिन यह घटना पूरे बैतूल जिले में इस रूप में पहली बार घटी जिसके चलते सभी के होठ सिल गए .
इति,

माँ तो ऐसी नहीं होती ..!
आलेख – रामकिशोर पंवार
11 साल से माँ न बन पाने की त्रासदी भोग रही एक महिला ने स्वंय के माँ बनने का नाटक करने के लिये क्या नहीं किया . वह अपने पति – ससुराल वालो तक को अपने पेट में न ठहर पा रहे गर्भ का झूठा नाटक रचते हुये उसने स्वंय को गर्भवति तक बताया. उसकी माँ बनने की अभिलाषा ने उसे एक महिला के नवजात शीशु को चुरा कर ले जाने तक का कृत्य कर डाला उसकी यही लालसा से जेल के दरवाजे तक ले गई वही दुसरी ओर हवस की अंधी एक माँ ने पहले तो भरी पंचायत में अपने प्रेम का इजहार कर प्रेमी के साथ रहने का निर्णय लिया , निर्णय भी इसलिए लिया क्योंकि उसे गर्भ ठहर गया था. परन्तु डेढ़ माह माह में ही उसका प्रेमी से भी जी भर गया तब उसने स्वजातीय व्यक्ति से शादी कर ली. जहां 15-20 दिन बाद ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया. जिस पर उसके पति ने इस अवैध बच्चे को पालने से इनकार कर दिया. तब इस निर्दयी माँ ने अपने सुख के लिए बच्चे को ही ठिकाने लगाने के उद्देश्य से उसे एक सुनसान स्थान पर बने कुंए में फेंक डालने का एक ऐसा घिनौना अपराध कर डाला जिसके चलते ममतामयी माँ की परिभाषा ही बदल कर रख दी ……! लोग कहने लगे कि माँ तो ऐसी नहीं होती…..! अपनी कोख को कंलकित करने वाली इस पुत्रहंता माँ ने जिस लालसा से अपने गर्भ में 9 माह तक जिस बच्चे को पाल रखा था उसे अपने आँचल का दुध पिलाने के बजाय उसे कुआँ में पॅेक कर उसे अपनी प्रसव पीड़ा से बह निकले आसुँओ के स्थान पर कुआँ के पानी डुबा का मार डालने का कृत्य कर डाला जिसके चलते समुची नारी जाति ही शर्मसार हो गई क्योकि आमतौर पर यह कहा जाता है कि माँ – जननी  के बारे में एक कवि की पंक्तिया कुछ इस प्रकार है कि ”अबला तेरी यही कहानी आँचल में दुध और आँखो में पानी…..!
मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के ग्राम टेकड़ाढाना की युवती फुलवंता बाई को अपने ही गांव के चैतराम लोहार से प्रेम हो गया लेकिन उससे जी भर जाने के साथ वह यह भी नहीं जान सकी कि उसे ठहरा अपने प्रेमी चैतराम का गर्भ वह उससे पीछा छुड़ाने के बाद उसका क्या करेगी. आदिवासी बाहुल्य इस गांव के लोगो ने अपने समाज की पंचायत बुला कर फुलवंती का विवाह गांव के हीरालाल गोंड (20) से करवा डाला लेकिन हीरा लाल वह हीरा नहीं निकला जो पत्थर को भी पारस कर दे . हीरालाल से शादी किये अभी 20 दिन भी नहीं बीत पाये थे कि फुलवंती की कोख ने एक बच्चे को जन्म दे डाला जिसे हीरा ने छुकर पारस बनाने से इंकार कर डाला और आखिर में उस निर्दयी माँ ने उसे कुआँ में फेक दिया. 10 दिन बाद जब गांव के कुएं में एक बच्चे की लाश तैरती न$जर आई तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई . समीपस्थ पुलिस थाना ने गांव कोटवार की सूचना पर मर्ग कायम कर जांच प्रारंभ की तो एक ऐसी दुख भरी कहानी सामने आई जिसने समुची मानव जाति पर कालिख पोत डाली . पुलिस ने इस पुत्रहंता मां फुलवंती को गिरफ्तार कर लिया.घटना के संबंध में पुलिस के रोजनामचे पर दर्ज अपराध के अनुसार चिचोली थाना अन्तगर्त ग्राम गोधना के ग्राम कोटवार ने थाना चिचोली में सूचना दी कि ग्राम गोधना से थोड़ी दूर पर एक निर्जन स्थान पर कुएं में एक अज्ञात बालक उम्र 3-4 माह का शव कुएं में पानी में दिखाई दे रहा है. पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच प्रारंभ कर दी. संपूर्ण जांच पर पुलिस ने पाया कि उक्त अज्ञात बच्चा ग्राम टेकड़ाढाना निवासी फुलवंता बाई पति हीरालाल गोंड (20) का था. जिसे अवैध संतान होने से खुद बच्चे की मां फुलवंता बाई ने कुएं में फेंक कर हत्या कर दी. प्रकरण के संबंध में विस्तृत जानकारी जो मिली वह इस प्रकार है ग्राम चिखलीढाना निवासी फुलवंता बाई (20) का प्रेम गांव के ही चैतराम लोहार से हो गया था. चैतराम लोहार से फुलवंता को गर्भ ठहर गया. गांव वालो की यह बात पता चली तो गांव में पंचायत हुई. तब पंचायत के सामने फुलवंता बाई ने अपनी मर्जी से चैतराम लोहार के साथ ही रहने की बात कह वह चैतराम के साथ ही रहने लगी. करीब एक डेढ़ माह बाद चैतराम लोहार के यहां से फुलवंता बाई निकल कर उनकी जाति प्रथानुसार ग्राम टेकड़ाढाना के हीरालाल गोंड के घर बैठ गई (हीरालाल से शादी कर ली) हीरा लाल से शादी करने के 15-20 दिन बाद ही फुलवंता बाई को बच्चा पैदा हो गया . इस बच्चे को लेकर फुलवंता का पति हीरालाल फुलवंता को हर कभी बोलते रहता था कि यह अवैध बच्चा है, मैं इसे नहीं पालूंगा या तो तू इस बच्चे को लेकर जा और दूसरा आदमी कर ले. तब फुलवंता बाई ने उस बच्चे को ही ठिकाने तो लगा दिया लेकिन वह भी इस घृणित कृत्य करने के बाद महिला जेल के सीखचो के पीछे एक कमरे आज पछताप के आँसु बहा रही है.
ऐसा नहीं कि इस प्रकार के अपराध नहीं होते …….. जो काम सदियो सें गांव की दाई – नाईन किया करती थी वही काम शहरो और महानगरो के बड़े नामचीन हास्पीटलो के बंद कमरो में होता है . भ्रूण हत्या पाप है लेकिन रतलाम की घटना हो या फिर अन्य किसी स्थान की आज भी वंश चलाने की लालसा के चलते सैकड़ों माँ अपने पति और परिवार के दबाव में वैध गर्भ में पल रही कन्याओं की किलकारी गुंजने से पहले ही उसे मार डालते है . सड़को पर या दुकान लगा कर बैठे नीम हकीम खतरे जान भी इस प्रकार के कृत्यो को करते है लेकिन प्रसव पीड़ा सहने के बाद बच्चे को अपने आँचल का दुध पिलाने के बदले उसका गला घोट कर मार डालने की घटना तब जन्म लेती है जब अवैध गर्भ पनपने लगता है जिसके बाहर आने पर उसे समाज में अपनी इज्जत का डर सताने लगता है . इन सबके पीछे वह रंगरैलिया – मौज मस्तीयाँ – रासलीला होती है जो शारीरिक भुख की तृप्ति के लिए जन्म लेती है .

उन्हें जमीन खा गई या आसमाँ निगल गया…!
लेख – रामकिशोर पंवार
उन्हे जमीन खा गई या आसमाँ निगल गया, यह कोई नहीं जानता. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस के प्रयास भी नाकाम साबित हो रहे हैं. यह दास्तां है जिले के उन 269 बदनसीब महिलाओं की है जो पिछले साढ़े सात वर्षो में अलग-अलग स्थानो से अलग – अलग समय में रहस्यमय ढंग से लापता है . कई के परिवारजनो ने जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रो से उनकी गुमशुदायगी की रिर्पोट दर्ज तो करवाई है पुलिस की फाइलो में महज खानापूर्ति बनी इन लापता महिलाओं में कई शादी शुदा तो कई विधवा और तलाकशुदा भी है . कुछ ऐसी भी महिलाए है जिनके बच्चे रोते बिखलते अपनी माँ को पुकार रहे है तो कुछ ऐसी भी है जिनकी कोख भर ही नही पाई और वे नौ – दो ग्यारह हुई या फिर उन्हे कोई बहला फुसला कर लोभ – लालच दिखा कर भगा ले गया . सबसे आश्चर्य जनक तथ्य तो यह है कि अधिकांश लापता महिलाओं में से कुछ देह व्यापार के बाजार में जा पहँुची है ….! जो हालात न$जर आ रहे है उनके अनुसार इन्ही लापता महिलाओ में कुछ तो शादी की आड़ में मुँह मांगे दामो पर बिक चुकी है . ऐसी ही कुछ युवतियो एवं महिलाओं के वापस लौटने पर आई जानकारी के अनुसार शादी और काम के नाम पर बिकने वाली अधिकंाश लापता महिलाओं की संख्या बीते साढ़े सात वर्षो में लगभग 614 रही जिसमें से 319 मिल चुकी है तथा शेष 269 का आज तक कोई पता नही चल सका है . जो युवतियाँ या महिलाए गायब है उनके परिजनो का रो-रोकर बुरा हाल है. गायब महिलाओं में सभी आयु वर्ग  की हैं . जिसमें सबसे अधिक लापता महिलाए आदिवासी समाज की है. बैतूल जिले की पुलिस अकसर किसी भी गुमश्ुादा की रिर्पोट आने पर गुम इंसान का मामला दर्ज कर अपनी कागजी खानापूर्ति कर अपना पींड छुड़ा लेती है . एक अनाधिकृत जानकारी के मुताबिक वर्ष 2001 में गुमशुदा महिला 100 थी जिसमें से 78 मिली 22 अभी तक लापता है . इसी तरह वर्ष 2002 में 93 महिलाए गुम हुई जिसमें मात्र 63 मिली शेष 30 अभी तक लापता है. वर्ष 2003 में 83 महिलाए गुम हुई जिसमें 51 महिलाओं का पता चला शेष 32 का आज तक पता नही चल सका है. वर्ष 2004 में गुमशुदा महिलाओं की संख्या 78 थी जिसमें 36 महिला अपने घर वापस लौटी है अन्य 42 महिलाए अभी तक लापता है. वर्ष 2005 में गुमशुदा महिलाओं की संख्या 100 तक पहँुच गई जिसमें से मात्र 32 मिली शेष 68 महिलाओं का आज तक पता नही चल सका . वर्ष 2006 में यही आकड़ा 108 तक पहँुच गया जिसमें की 45 महिलाए अपने घर वापस लौटी 73 महिलाओं का आज तक पता नही लग सका आज भी इनमें से अधिकांश महिलाओं के परिजन इनके रहस्यमय ढंग से लापता होने के कारणो की तह तक नही पहँुच सके है . वर्ष 2007 में इन पंक्तियो के लिखे जाने तक गुमशुदा महिलाओं की संख्या 52 तक पहँुच गई है जिसमें मात्र 14 महिलाओं को पुलिस खोजने में सफल रही शेष 38 महिला की खोजबीन जारी है. इस तरह वर्ष 2001 से अभी तक 396 महिलाए गुम हो चुकी है जिसमें से 242 महिलाए अपने घर वापस लौटी है शेष 154 महिला पिछले पाँच वर्षो से अभी तक लापता है.
आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले से वर्ष 2001 से इन पंक्तियो के लिखे जाने तक गुमशुदा कमसीन बालाओं की संख्या 580 है जिसमें से 235 बालिकाओं की खोज हो चुकी है शेष 345 बालिकाएँ आज तक लापता है. इन लापता बालिकाओं 10 वर्ष से कम उम्र की 113 बालिकाए है शेष 232 बालिकाए दस वर्ष से अधिक उम्र की है जिनके माता- पिता आज भी पुलिस थानो के चक्कर लगा रहे है. वैसे देखा जाए तो 2001 से आज तक 481 बालक लापता हुए है जिनमें 214 बालक ही अपने घर वापस लौटे है शेष 481 बालको का आज तक पता नही चल सका है. लापता बालको में से दस वर्ष से अधिक उम्र के बालको की संख्या 242 है . शेष 239 लापता बालक दस वर्ष से कम उम्र है . बैतूल जिले के विभिन्न पुलिस थाना क्षेत्रो से मिली जानकारी के मुताबिक सबसे अधिक महिलाएं लापता हैं. लापता लोगों में समाज के प्राय: सभी वर्गो के लोग शामिल हैं. लेकिन सबसे अधिक घर से भागने वाले लोगो में अधिकांश संख्या आदिवासी युवतियो की है. जिनके बारे पुलिस कहती है कि वे किसी के साथ भाग गई होगी? बैतूल जिले की पुलिस ने लापता लोगों के मामले में उनके परिजनों की रिपोर्ट पर गुमइंसान का मामला तो दर्ज कर लिया है किन्तु उनके अब तक न मिलने से ये लोग काफी निराश है. महीनों से लापता लोगों के वापस न आने से उनके परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल हो गया है. कुछ लोग तो लापता के चक्कर में बीमार भी पड़ गए हैं. उनका इलाज चालू है तो कुछ परिवारों के मुखिया भी लापता की फेहरिस्त में शामिल है. इस कारण उनके परिजनों की आर्थिक स्थिति कमजोर होते जा रही है तो कुछ परिवारों के सामने भीख मांगने की नौबत आ गई है. इनमें से बैतूल थाने के सराड़ से लापता भूपत के परिवार वाले 4 माह से उसे ढूंढ-ढूंढकर  परेशान हो उठे है. वे बताते है कि 4 माह में पुलिस भूपत का पता नहीं लगा पाई. इससे उनका पुलिस की कार्यप्रणाली पर से ही विश्वास उठ गया. लापता लोगों में जनवरी से अब तक 35 महिलाएं, 15 पुरूष, 16 बालक और 13 बालिकाएं शामिल हैं. जिनमें सांईखेड़ा थाने के सोहबत निवासी सांईखेड़ा की सर्वाधिक 75 वर्ष उम्र है, जबकि आमला थाने की पर्वतडोंगरी निवासी बबली पुत्री रामप्रकाश और बोरदेही थाने की शांति पुत्री मंशू की सबसे कम 9 वर्ष उम्र है. साढ़े सात माह में लापता 79  लोगों की फेहरिस्त में चौंकाने वाले तथ्य उभरकर सामने आए हैं कि बूढ़े, जवान और नन्हें बच्चे भी इस सूची में शािमल हैं. लापता में से सिर्फ 11 लोगों की जानकारी आज तक पता चल पाई है . सबसे आश्चर्य जनक तथ्य तो यह है कि जिले की पुलिस अभी भी इन आकड़ो को झुठलाती हुई कहती है कि इतने लोग न तो भागे है और न गुमशुदा है ……! जबकि पुलिस के रिकार्ड स्वंय इन तथ्यो से परे नही है आज भी गुमशुदायगी दर्ज करने वाला पुलिस विभाग का सेल अपने ही विभागो के अफसरो एवं कर्मचारियो से हैरान एवं परेशान है क्योकि वह लापता लोगो की खोज करने में आज तक सार्थक रूप से सफल सिद्घ नही हुआ है क्योकि अभी तक जितने भी लापता लोग अपने घर को वापस लौटे है उनके बारे में यह कहा जा सकता है कि वे लौट के बुद्घु घर को आए याने पुलिस ने उन्हे खोज निकाला नही बल्कि वे खुद वापस लौटे है. अब देखना बाकी है कि बैतूल जिले की पुलिस इन लापता लोगो के प्रति कौन सा तौर तरीका अपनाती है जिससे इन लोगो का पता चल सके.
इति,

लेख
कल के तुकाराम आज के आशाराम
सच्चा सदगुरू वही जो अपने साधक से बिना कुछ लिए उसे ज्ञान दे लेकिन आधुनिकता के इस दौर में गुरू से लेकर साधक भी मार्डन होते चले जा रहे है. गुफाओं – कंदराओं – नदियो और ऊँची – ऊँची पहाडिय़ो पर वर्षो से बिना कुछ खाये – पीये तपस्या करने वाले साधु – संतो की जगह अब बाबाओं और ने ले ली है . आज के इस भौतिकवादी युग में किसी भी चाइल्ड से लेकर एडल्ट वेब साइट पर ही अपना तथाकथित दिव्य ज्ञान की वर्षा करने वाले बाबाओं की एक – एक बुंदो की पल्स रेट तक तय है . जितनी देर आपको ज्ञान चाहिए उतनी देर तक कोई भी प्रशिक्षु साधक को एडवांस में डी.डी. या अपने ए टी एम कार्ड से बाबा से लेकर वेब साइट को आन करने वाले वेबसाइट को भुगतान करना पड़ता है . किसी बाबा से मिलना हो तो उसके लिए नम्बर लगेगा और उसके लिए भी बुकिंग करवाना पडेगा . बाबा की निर्धारित तारीख पर उनसे मिलने के बाद बाबा के दर्शन से लेकर उनके चरण स्पर्श या उन्हे माला पहनाने या उनसे अपने सिर पर हाथ रखवाने तक के रेट निर्धारित है . इन सबके पीछे कहीं न कहीं भारतीय प्राचिन सभ्यता और संस्कृति को नष्टï करने की अतंरराष्टï्रीय साजिश है जिसने गुरू से लेकर चेले तक की सोच में में अमूल- चूल परिवर्तन ला दिया है. बाबा के हाई – फाई होने का असर छोटे – मंझोले बाबाओं पर भी पडऩे लगा है तभी तो लेपटाप बाबा , वेबसाइट बाबा जैसे कई नाम सुनने को मिल रहे है. कुछ साल पहले तक भारत के बाबाओं के पास तन ढकने को कपड़े नही रहते थे तो वे पेड़ो के पत्तो से अपना तन ढक लेते थे लेकिन अब तो बाबा स्वंय के चार्टर प्लेन से आने – जाने लगे है. करोड़ो – अरबो – खरबो की बेनामी  सम्पति के मालिक बने बाबाओं में कुछ ही ऐसे बाबा है जिसने लोगो को कुछ ऐसा संदेश दिया है जिससे उसके जीवन की दिनचर्या बदली है . साई इतना दीजिए जा में कुटंब समाय लेकिन अब तो भाई इतना दीजिए कि तुम कंगाल हो जाये ….?
संतो की भूमि महाराष्टï्र के महान संतो में तुकाराम जी महाराज का नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है. कल के तुकाराम जी महाराज और आज के आशाराम जी के रहन – सहन में परिवर्तन से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सच्चा सदगुरू कौन है….? सच्चाई सोलह दुनी बत्तीस आने सही है कि साई बाबा , संत ज्ञानेश्वर , गजानंद महाराज , दादा धुनी वाले , ताज वाले बाबा , संत तुकड़ो जी महाराज , के समकालिन इन महान दिव्य आत्माओं के शिष्यो की लम्बी चौड़ी जमात है. इनके प्रवचनो को सुनने का न तो कोई पैसा लगता था न किसी प्रकार का दान. साई बाबा तो अपने लिए भीक्षा मांग कर स्वंय अपना भोजन पकाते और खाते थे उसमें का एक हिस्सा वे किसी न किसी पशु को अवश्य खिलाते थे लेकिन आज के बाबा के लिए खाना भी किसी फाइव स्ट्रार  होटल से आता है . आज के मार्डन बाबा चार घर भीक्षा मांगने के बजाय बाबा चार धन्नासेठो और राजनीतिझो को ही मुर्गा बना कर अपने लिए एक दिन के खर्चे का बंदोबस्त कर लेते है. बीते दिनो बैतूल जैसे पिछड़े जिले में आये आशराम बापू के दो दिवसीय प्रवचन के दौरान हजारो साधको के लिए भोजन से लेकर भजन तक की दुकाने लगी थी जो किसी स्थानीय व्यक्ति या दुकानदार की न होकर स्वंय योग वेदांत समिति के बैनर तले संचालित थी. लोगो की आस्था का पागल पन कहिए या फिर इन तथाकथित मार्डन युग के बाबाओं का सम्मोहन जाल की लोग आंख होते हुए भी अंधे कुये में डुबने को तैयार है . आशाराम बापू के करीबी दर्शन से लेकर उनके चरण स्पर्श के नाम पर लोगो का लूटना या लूटा जाना अपने आप में घिनौना मजाक है . यह अपने आप में कड़वी सच्चाई भी है कि जहाँ एक ओर अंधश्रद्घा में डूबे लोग अपने बुढ़े – लाचार माता – पिता को घर से निकाल रहे है और उन जैसे जीवित बाबाओं के फोटो जो पुलिस थानो में लगने चाहिए उन्हे अपने घरो में लगा कर उस पर जूतो की बजाय फूलो माला लगा कर उनके नाम पर भंडारा चला रहे . बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में दो दिन रहे संत आशाराम ने अपनी जेब से चार आने किसी गरीब – बेसहारा – विकलांग या जरूरतमंद व्यक्ति को न देकर स्वंय ही लाखो रूपैया बटोर कर ले गये. इसमें किसी को किसी प्रकार का गिला या शिकवा नही क्योकि दु़कानदार का काम तो अपना माल बेचना है लोग जब स्वेच्छा से उसे खरीद रहे है तब किसी प्रकार की जालसाजी या धोखाधड़ी या चिटिंग नही …. पर इस बात पर भी अमल करना चाहिए कि पड़ौसी भूखा हो और हम गिद्घ भोज करवाये क्या यही सच्चा धर्म है…?
जिस देश में नदियो को देवी के रूप में पूजा जाता है उस नदी ने कभी किसी से नही कहा कि वह उसमें नहाने से पहले एडंवास बुकिंग की रसीद दिखाये लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा हो रहा है. हर चीज बिकाऊ हो रही है जिसके चलते बाबाओं के बैंक बैलेंस बढ़ते जा रहे है. कभी कभार लुढकन बाबा जैसे पाखंडियो का पर्दाफाश तब होता है जब कोई नाबालिग युवती का बाप अपनी इज्जत की परवाह किये बिना इन बाबाओं की काली करतूतो को उजागर करने के लिए पुलिस की शरण ले. इस देश में कई संत – फकीर बाबाओं को रंगरैली मनाते रासलीला मनाते देश के छोटे से गांव से लेकर समुन्द्र के उस पार तक लोगो ने पकड़ा है लेकिन बाहुबल और धनबल के दम पर बाबा आज भी दम मारो दम   मिट जाए गम का संदेश देते लोगो को चरस से लेकर हीरोइन तक का आदी बना चुके है . आज जरूरत इस बात की है कि इस देश का हर नागरिक इस बात पर चिंतन – मनन करे कि उसे कैसा गुरू चाहिए…?
इति,

प्याले से गायब हुई काफी.. …. !
रामकिशोर पंवार
काफी भारत की मूल्यवान फसल होने के साथ -साथ देश के लिए बहुँत महत्वपूर्ण है . काफी केवल 2500 फुट से 5000 फुट की ऊँचाई वाले क्षेत्र में अच्छी तरह से ऊगाई जा सकती है .बैतूल जिले के कुकुरू – खामला वन परिक्षेत्र की ऊँची पहाँडिय़ो पर आज से ठीक 89 साल पहले सेंट विल्फोर्ड द्घारा 208 एकड़ का रकबा काफी प्लांट के लिए आरक्षित कर काफी के उत्पादन की संभावनाओं को मूर्त रूप दिया गया था .हालाकि शुरूआती दौर में 110 एकड़ में काफी के उत्पादन को शुरू किया गया था . 5 – 7  फीट के अंतर लगाये जाने वाले काफी के पौधे सामान्यत: पाँच या छै साल के बाद फसल देना शुरू कर देते है . औसतन काफी का उत्पादन प्रति एकड़ दो हंडरवेट होता है . बैतूल जिले में काफी की इन्ही संभावनाओं को सबसे पहले 1907 में आज से ठीक सौ साल पहले ब्रिट्रिस हुकुमत के समय बैतूल जिले में पदस्थ एक ब्रिट्रिश नागरिक सेंट विल्फोर्ड ने अपने परिवार के सदस्यो एवं मित्रो को घुमाने के बहाने इस स्थान पर एक व्ही . आई .पी . सर्किट हाऊस की नींव रखी थी . जिसके पीछे यहाँ की प्राकृतिक सुन्दता एवं मौसमी वातावरण था . इस दौरान सेंट विल्फोर्ड को ऐसा लगा कि इतली ऊँचाई वाले क्षेत्र में काफी के उत्पादन की काफी संभावनाए है तब उसके द्घारा पेय प्रदार्थ काफी के उत्पादन की शुरूआत भी कुछ काफी के पौधो को रोपित करके की थी . उसकी दोनो अभिलाषा जब पूर्ण हुई तब तक वह इस जिले से जा चुका था . आज 1907 में बने इस सर्किट हाऊस के सौ साल तो पूरे हो गए . देश छोड़ कर अग्रेंज चले गए लेकिन हमे दे गए दो अनमोल सामान जिसकी हम देश आजादी के 60 साल बाद हिफाजत नही कर पाये . मध्यप्रदेश का एकलौता काफी उत्पादक क्षेत्र कुकुरू खामला में बना वह सर्किट हाऊस अपने मूल स्वरूप को खोते जा रहा है साथ ही वन विभाग अपने पूर्व दक्षिण वन मण्डल के वन मण्डलाधिकारी श्री मान द्घारा उस अग्रेंज सेंट विल्फोर्ड के सपनो को साकार करने के लिए काफी अथक प्रयास करके काफी के बीजो का उत्पादन का कार्य कुछ ग्रामिणो की मदद से वन सुरक्षा समिति बैनर तले शुरू किया प्रयास को संरक्षित एवं सुरक्षित नहीं रख पाए . अब दिन प्रतिदिन देश का जाना पहचाना काफी उत्पादक क्षेत्र जहाँ पर पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गांधी से लेकर न जाने कितने अनगिनत लोग आकर यहाँ की काफी की चुस्की का स्वाद लेकर चले गए आज वही काफी उत्पादक क्षेत्र कुकुरू खामला जाने वाले पर्यटको के प्याले से काफी गायब होती काफी दूर चली जा रही है . बैतूल जिले के वर्तमान वन संरक्षक श्री ए.के. भटटाचार्य एवं दक्षिण वन मण्डल के वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज अग्रवाल द्घारा पत्रकारो को इस भैसदेहीं तहसील मुख्यालय से लगभग पैतीस किमी दूर सतपुड़ा अंचल की गोद मे सबसे ऊंचाई वाला क्षेत्र कुकुर खामला की काफी उत्पादक नर्सरी को दिखाने के लिए ले जाया गया . जहाँ एक ओर काफी प्लांट में इस बरसात में काफी के पौधे सुख कर डंढ़ल जेसे दिखाई पड़ रहे है . समुद्र सतह से लगभग चार घन फीट ऊंचाई पर सीना ताने हुए भैसदेहीं तहसील के इस वन ग्राम को ऊंची पहाड़ी के नाम से जाना एवं पहचाना जाता है . यही व$जह भी है कि मध्यप्रदेश में सिर्फ इसी स्थान पर काफी बीजो का उत्पादन कार्य शुरू किया गया था . इस स्थान की काफी के बीजो को खरीदने के लिए देश की जाने – मानी काफी बनाने वाली कंपनियाँ के अलावा अन्य लोग भी आया करते थे . बैतूल जिला मुख्यालय से रिमझीम बरसात के दिनों में पत्रकारो को इस पर्यटक स्थल की प्राकृतिक सौंदर्यता का दर्शन कराने ले गए वन विभाग . को लगा कि पत्रकार लोग उनकी भाटगिरी – चाटुकारिता करके इस काफी उत्पादक क्षेत्र की कम$जोरीयो को उजागर नही कर पायेंगे लेकिन राज्य एवं केन्द्र सरकार से काफी उत्पादक नर्सरी को बचाने के लिए उत्पादित काफी के मूल्य से अधिके रूपयो को खर्च करने के बाद भी काफी उत्पादक की इस नर्सरी को वन विभाग के अफसरो एवं कर्मचारियो की लापरवाही रूपी दीमक ने चाट खाया है . जिसके कारण आज इस क्षेत्र की मूल पहचान उससे छीनती चली गई .. …. …. …. …. …. !   अँकड़ो पर गौर किया जाए तो वन विभाग के कई अफसरो को घर बैठना पड़ सकता है क्योकि इस काफी के पीने वालो ने काफी के बदले पूरा – का पूरा पैसा जो कि लाखो एवं करोड़ो रूपयो में आता है . वन सुरक्षा समिति को अपनी लापरवाही एवं भ्रष्टïचार की ढ़ाल बनाने वाले अफसरो ने कभी सपने मे भी नही सोचा था कि ग्रीष्मकाल में तपती धूप से बचने इस शांत एवं ठंडकपूर्ण स्थान का काफी उत्पादन इतने नीचे गिर जाएगा . कितनी शर्मसार बात है कि देश एवं प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रो के हजारों की संख्या में आने वाले पर्यटको को जब पता चलता है कि अब उन्हे यहाँ के सर्किट हाऊस में वन विभाग की इस नर्सरी से उत्पादित काफी के प्याले की चुस्की का म$जा नही मिल पाएगा …. …. …. …. …. !  इस खबऱ को सुनने के बाद हर कोई काफी आश्चर्यचकित हो जाता है . मंदसौर से कुकुरू खामला की सुन्दरता निहारने आए मनमोहन दुबे कहते है कि यहाँ आने के लिए उनके एक बैतूल जिले में पदस्थ रह चुके स्वास्थ विभाग में कार्यरत जीजाजी ने काफी आग्रह किया था , लेकिन यहाँ पर काफी का प्याला चाहने पर भी नही मिल सकता…. …. …. …. …. ….! अपने आप में प्राकृतिक सौंदर्यता का अनमोल खजाना समेटे हुए है कुकुरू खामला ग्राम से लगे हुए दुर्ग में पहाडिय़ों की मेखलाकार सौंदर्यता देखते बनती है. इस रमणीय स्थल पर देश – प्रदेश से वर्ष भर हजारों की संख्या में पर्यटक अनुपम प्रकृति की सुंदरता को अपने सजल नयनों से निहारने आते है.वन सुरक्षा समिति के पदाधिकारी ने पत्रकारो को इस रमणीय क्षेत्र के बारे में बताया कि इस पर्यटन स्थल को बुच पाइंट के नाम से जाना जाता है क्योंकि अपने ही जिले के पूर्व कलेक्टर एवं जाने – माने पर्याविद एम .एन . बुच ने अपने प्रवासी दौरे पर इस स्थल को पर्यटन स्थल बनाने का निश्चत किया था, तभी से यह प्राकृतिक सौंदर्यता का अनमोल खजाना बुच पाइंट कहलाने लगा . इस पर्यटन पाइंट के लिए जाने वाले 30 किमी के रास्ते में ऐसे अनेकानेक रमनीय एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत स्थान देखने मिलते है जिसे देखकर ह्दय प्रफुल्लित हो उठता है. यहां भैसदेही तहसील मुख्यालय से उतर – पश्चिम दिशा में 3 किमी दूरी पर स्थित ग्राम बगदरा में 25 से 40 ऊंचे दो मौसमी झरने है, जिनका पानी एक दूसरे के विपरीत दिशा में गिरता हुआ पहाडिय़ों से होकर बहता है, जिसका बलखाते हुए अंगडाईयां मारना मचलना देखते ही बनता है. यह स्थान अंधूरा देव बाबा के खोरे के नाम से जिले में विख्यात है. इस स्थान के कुछ आगे चले तो एक विशाल जलाशय मिलता है जिसका जल निर्मल एवं स्वच्छ दर्पण सा प्रतीत होता है जो अपने जल से आसपास के क्षेत्र को सदा लहलहाने में मदद करता है. वर्तमान समय में अंचल में व्याप्त जल संकट का भी एकमात्र विकल्प यह कुर्सी जलाशय ही है. इन दृश्यों को देखते हुए जब हम पहुंचते है जिले के विख्यात पर्यटन स्थल कुकुरू खामला तो मानो आत्मा आनंद विभोर हो जाती है. यहां काफी प्लांट के प्लाप हो जाने के बाद से बरसते पानी के मौसम और कड़कती ठंड में होठो की चुस्की से दूरे हुए काफी के प्याले पर आश्रित वन सुरक्षा समिति कुकुरू खामला के गरीब आदिवासी को यह नहीं पता कि अब उनकी नर्सरी में काफी के बीज क्यो नहीं उत्पादित हो पा रहे है . पूर्व वन मण्डलाधिकारी श्री मान ने वन सुरक्षा समिति का गठन करके इस काफी प्लांट के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार से काफी बड़ा अनुदान प्राप्त कर इसे काफी ख्याति दिलवाई थी लेकिन आज वही काफी उत्पादक नर्सरी के सदस्य अपनी रोजी – रोटी के छीन जाने से काफी मुसीबत में है . वन विभाग के इस सरकारी रेस्ट हाउस के ठीेक सामने पत्रकारो से चर्चा करते वन विभाग के अफसरो के साथ नाश्ता एवं रात्री भोज के पूर्व पत्रकारो का दल सूर्य का उदय एवं अस्त खुले आसमान में होता देख इस क्षेत्र की प्रशंसा करते ही मनमोहित हो गये . समीर के झोको का दिशा ज्ञान कराती रेस्ट हाऊस के पास ही लगी पवन चक्की, समीप बसा ग्राम कुकुरू ऊँची पहाडिय़ां ऐसे अनेक प्राकृतिक स्थल जो सुंदरता की रश्मियों को बिखेरता हुआ पर्यटको का मन मोह लेता है. ऐसे प्रकृति के अनुपम अनमोल खजाने की जितनी सराहना की जाए कम है. इस अनमोल एवं रमणीय से सराबोर प्राकृतिक सौंदर्य के धनी वन ग्राम कुकुरू खामला से लुप्त काफी के प्रति अगर राज्य सरकार का वन विभाग लापरवाह एवं भ्रष्टïचार के अजगर की तरह इसे निगलता गया तो कोई भी कुकुरू खामला नही पहँुच सकेगा क्योकि उन्हे नही मिल सकेगी काफी की चुस्की……..!
इति,

मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 लापता…..?
रामकिशोर पंवार
भारत में बाघों की संख्या को उजागर करने वाली ”भारतीय वन्य जीव संस्थान  देहरादुन की ताजा रिर्पोट में इस बात का खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती बैतूल तथा महाराष्टï्र के सीमावर्ती अमरावती जिले के वन्य जीव क्षेत्र में बनी मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 बाघो का कोई अता – पता नहीं है . भारत सरकार के नियत्रण में कार्यरत इस संस्थान ने मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट द्घारा उपलब्ध आकड़ो की पोल खोलते हुए चौकान्ने वाले तथ्यों को उजागर करके दावा किया है कि वर्तमान समय में मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के वन्य जीव क्षेत्र में 67 बाघो में से केवल 30 ही बाघ बचे है…! देश के प्रधानमंत्री डाँ मनमोहन सिंह ने स्वंय देश की जानी- मानी एवं अनुभवी वन्य जीव विशेषज्ञ श्रीमति सुनीता नारायण की अगुवाई में टाइगर टास्क फोर्स का गठन किया गया था . इस टाइगर टास्क फोर्स ने मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट में बाघो के शिकार के मामले में चिंतित होकर आई . एफ . एस . अधिकारियों को लेकर बनाई  ”भारतीय वन्य जीव संस्थान ÓÓ देहरादुन से मदद मांगी थी जिसके बाद ही उक्त तथ्यों का खुलासा हो सका .  मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के वन क्षेत्र में बसे 22 गांवो में से इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मात्र दो ही गांवो का पुर्नवास हो सका है . शेष 20 गांव आज भी तलहटी एवं नदी – नालो तथा प्राकृतिक जल संग्रहित स्थानो के आसपास बसे होने के कारण इन गांवो के ग्रामिण जिनमें अधिकांश अनुसूचित जन जाति के लोग है वे ही वन्य प्राणियो के सबसे बड़े दुश्मन बने हुए है . बैतूल जिले की सीमा से लगे इस प्राजेक्ट में जिले का भी वन क्षेत्र तथा गांव आने से महाराष्टï्र सरकार के वन विभाग के पास एक रटा – रटाया जवाब रहता है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती बैतूल जिले के शिकारी और ग्रामिणो के कारण वन्य प्राणियो को जान के लाले पड़ रहे है लेकिन अब तो मध्यप्रदेश सरकार का वन मोहकमा भी महाराष्टï्र के अफसरो के सुर में सुर मिलाते हुए कहने लगा है कि जिले के वन्य प्राणियो का महाराष्टï्र के शिकारी एवं ग्रामिण शिकार कर रहे है . दोनो राज्यों के वन विभागो के आला अफसरो के लिए यह सबसे बड़ा शर्मनाक तथ्य है कि मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 बाघ न तो मध्यप्रदेश के वन क्षेत्र में है और न महाराष्ट के वन क्षेत्र में ऐसी परिस्थिति में अंतरराष्टïरीय वन्य प्राणियो के अवयवो का कुख्यात तस्कर संसार चंद भले ही तिहाड़ जेल की चार दिवारी में कैद हो लेकिन उसका अच्छा खासा नेटवर्क आज भी मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट में फैला हुआ है . ”भारतीय वन्य जीव संस्थान  देहरादुन की रिर्पोट में इस बात को भी उजागर किया है कि 20 गांवो के लोगो को मोहरा बना कर वन्य प्राणियो अवयवो के तस्कर द्घारा पानी में जहर मिलाने एवं अधखाई शिकार पर जहर डालने तथा बिजली का कंरट लगा कर वन्य प्राणियो को मारने के तौर – तरीके अजमाए जा रहे है . दो राज्यो की सीमावर्ती वन क्षेत्र में मध्यप्रदेश के कटनी क्षेत्र की बहेरिया जाति के लोगो को भी संदेह की न$जर से देखा जा रहा है क्योकि यह जाति अपने तथाकथित जड़ी – बुटी से इलाज के नाम पर गाडिय़ो में पूरे साज और सामान के साथ आते है . इनके पास लोहे के बने फंदे होते है जिसमें वन्य प्राणी आसानी से फंस जाता है . बैतूल जिले के भैसदेही , आठनेर , भीमपुर तथा महाराष्ट के अजंनगांव , दर्यापुर , परतवाड़ा के आसपास के गांवो में अपना डेरा जमाने वाली इस बहेरिया जाति भी बरसो से वन्य प्राणियो की जानी दुश्मन बनी हुई है . बैतूल जिले के वन विभाग के अफसर तो साफ शब्दो में कहते है कि वर्तमान समय में बैतूल जिले में एक भी बाघ नही है . पड़ौसी सीमावर्ती राज्य के मेलघाट के टाइगर प्रोजेक्ट से 37 बाघो के लापता होने के लिए वे जिम्मेदार नहीं है …. भारत सरकार द्घारा बाघो के संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश एवं महाराष्टï्र के सीमावर्ती वन परिक्षेत्रो में स्थापित महाराष्ट जिले के अमरावती जिले के दो प्रमुख गुगामल राष्टरीय बाघ अभ्यारण और मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले दोनो राज्यो के भारतीय वन सेवा (आई . एफ . एस .) के अफसरो की एक साझा बैठक बुलवाने के बाद ही उक्त प्रोजेक्ट को मूर्त रूप दिया गया था . जिसमें दोनो राज्यो के वन विभाग के आला अफसरो को साफ तौर यह निर्देशित किया गया था कि दोनो ही पड़ौसी राज्यों बाघो के संरक्षण के लिए आपसी तालमेल के कार्य करेगें तथा दोनो ही अपने वन क्षेत्रो में इस प्रोजेक्ट के बाघो पर निगरानी से लेकर उनके संरक्षण के प्रति जवाबदेह होंगे . दोनो राज्यो के अफसरो की समय – समय पर होने वाली साझा बैठको की खानापूर्ति तो हुई लेकिन दोनो ने ही एक दुसरे पर जवाबदेही का आरोप – प्रत्यारोप लगा कर वे स्वंय इन आरोपो से बचते रहे कि इन बाघो के लापता होने के लिए वे स्वंय जवाबदेह है . आज यही कारण है कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले से लगे दो वन्य प्राणियो के प्रोजेक्ट जिसमें एक भोपाल – नागपुर राष्टï्रीय राजमार्ग 69 पर बैतूल एवं छिन्दवाड़ा जिले के सीमवर्ती वन परिक्षेत्रो में स्थापित है उस पर अंतराष्टï्रीय वन्य प्राणियो के तस्कर की न$जर लग गई है . आज भले मध्यप्रदेश राज्य सरकार का वन मोहकमा टाइगर प्रोजेक्ट की जवाबदेही से स्वंय को दूर कर रखा हो पर उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि बैतूल जिले में वन्य प्राणियो की संख्या दिन – प्रतिदिन क्यो घटते जा रही है . जब इस संवाददाता ने राज्य के वन सचिव से इस बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाही तो स्वंय संतोष जनक जवाब नहीं दे सके .  बैतूल जिले की एक मात्र पंजीकृत संस्था बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के संयोजक एवं भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्घारा गठित  जिला पर्यावरण वाहिणी के सदस्य के अनुसार अभी हाल ही में जिला मुख्यालय पर स्थित अिकारी क्षेत्र में पूरे मोहल्ले के लोगो ने सांभर का मांस खाया लेकिन वन विभाग के अफसरो से लेकर पुलिस मोहकमा तक के लोग के कानो में जँू तक नहीं रेगी . सबसे शर्मनाक बात तो यह रही कि जिस मोहल्ले में सांभर का मांस बटा . समिति का आरोप है कि जिले में इस समय पूरा वन मोहकमा वन्यप्राणियो के संरक्षण तो दूर रहा वनो के संरक्षण तक के लिए अपनी जवाबदेही सही ढंग से नहीं निभा पा रहा है . आज जिले में लाखो की लकडिय़ा वन विभाग के उडऩदस्ते के सामने वन माफिया द्घारा जला दिया जाना तथा उसके बाद एक ही गांव से लाखो की लकड़ी वन्य प्राणियो की खाल तथा उन्हे पकडऩे के लिए उपयोग में आने वाले फंदो की बरामदी इस बात का प्रमाण है कि जिले का वन मोहकमा अपने कत्वर्य का किस ढंग से पालन कर रहा है .
इति,
रहस्य रोमांच पर आधारित कहानी
कटे हाथ वाला
रामकिशोर पंवार
जुलाई महीने की नौ – दस तारीख की उस काली स्याह रात को तकरीबन 11 बज रहे थे . मगरडोह रेल्वे स्टेशन पर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस अपने समय से आज फिर सवा घंटे लेट आई . उसका बदनूर पहुंचने का समय तो निकल गया . यात्रियों में टे्न के लेट होने के कारण बैचेनी हो रही थी . लेट आई टे्रन ने जब मगरडोह स्टेशन छोड़ा तब सवा ग्यारह बज रहे थे . लगता है कि इस गाड़ी को बदनूर पहुंचने में आज अगर बाहर या एक बज जाएंगे तो उसे अपने गांव जाने में उसे काफी परेशानी होगी . बदनुर रेल्वे स्टेशन से उसका गांव छै -सात कोस दूर था . गांव जाने के लिए उसे आज रात को कोई साधन नही मिला तो फिर उसे पैदल भी जाना पड़ सकता है . यह सोचकर रामू दरवाजे के पास वाली खिड़की के पास सर रखकर लेट गया . इस टे्रन में भीड़भाड़ नहीं थी. इसलिए रामू छत्तिसगढ़ एक्सप्रेस के गोरखपुर-परासिया कोच में घुस आया था. उसने सोचा कि वह एक आध घंटा आराम कर लेगा लेकिन उस डिब्बे में कुल 3-4 लोग ही थे. चारों परासिया जाने वाले थे. अगर वह सो गया तो उसे जगाएगा कौन..? आज दिन भर काम की वजह से चाह कर भी सो नहीं सका था. उसका इतनी रात को गांव जाने का कोई कार्यक्रम नहीं था पर क्या करे गांव से सुनार बाबा की चिी आ गई थी . आज अगर वह गांव नहीं जा सका तो फिर बात एक महीने फिर टल जाएगी. अगर इस बीच बारिश शुरू हो गई तो उसके बाप-दादों का पुश्तैनी मकान गिर जाएगा. गांव वालों ने उसकी गैर हाजिरी में मकान की मिट्टी तक खुरच-खुरच कर ढो डाली थी. अब तो उसके मकान के चारो ओर लंबा चौड़ा गड्ढा हो जाने से बरसात का सारा पानी उसके मकान को गिरा देगा. जिस घर में रामू का बचपन बीता था. आज उस घर में लोग अपने जानवर बांध रहे थे. कुछ लोगों ने तो खाली पड़ी जमीन पर ही कब्जा कर लिया था. गांव वाली माता माय और चम्पा के पेड़ की तो हालत बताई नहीं जा सकती थी. चिी पढ़कर वह कई बार रो दिया. कितना बढिय़ा गांव था उसका पता नहीं इसे किसकी नजर लग गई…? गांव और उसके बचपन की यादों में प्रकाश इस कदर खो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि कब बदनूर आ गया. जब टे्रन ने जाने के लिए सीटी बजाई तो प्रकाश दरवाजा खोलकर चलती गाड़ी से कूद पड़ा. किसी ने पीछे से टोका… क्यों भैया? सो गए थे क्या…? उसने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और वह गांव जाने के लिए निकल पड़ा. रात के सवा बाहर बज रहे थे. काली अंधयारी रात में अकेला करबला के किनारे सदर गेट तक चला आया. उसे उम्मीद थी कि कोई न कोई इस रोड पर मोटर साइकिल वाला उसे मिल जाएगा. लेकिन इंतजार करते-करते सवा बज गया. जब कोई नहीं आया तो वह अकेले ही गांव जाने का इरादा कर निकल पड़ा. करबला को पार कर आगे निकल गया. अभी कुछ दूर ही चला था कि पीछे से एक मोटर साइकिल आती दिखी. प्रकाश ने उसे हाथ देकर लिफ्ट लेनी चाही, उसके हाथ का इशारा देखकर वह मोटर साइकिल वाला उसके पास आकर रूक गया. रात अंधियारी थी जिसके चलते उसका चेहरा समझ में नहीं आ रहा था. उस अनजान व्यक्ति से प्रकाश ने पूछा भाई साहब कहा जा रहे हो तो वह बोला जूनागांव. उसे लगा शायद ऊपर वाले ने उसकी मुराद सुन ली और वह उस अनजान व्यक्ति की मोटर साइकिल के पीछे बैठ गया. सफर लंबा था इसलिए प्रकाश ने सोचा कि चलो इससे बातचीत कर टाईमपास कर लिया जाए . इधर रात का सन्नाटा चीख रहा था तो वह सवाल पर सवाल कर रहा था. मोटर साइकिल वाला उसके कुछ सवालों का जवाब नहीं देता. प्रकाश के सवाल पर वह एक दो बार तो खीज गया. प्रकाश ने कुछ पल के लिए चुप्पी साध ली, फिर वह रात काली अंधियारी थी. वह गाड़ी की टिमटिमाते लाइट में गाड़ी चला रहा था. प्रकाश के पूछने पर वह बताने लगा कि वह करंजी नदी के पास उसका खेत है.वह दूध का धंधा करता है. उसके घर में चार भाई तीन बहनें है. भाई बहनों में वह सबसे छोटा है. 12 वीं तक पढ़ा है. उसका पड़ोस के गांव की सुनंदा से चक्कर पिछले दिनों से चल रहा था. यह बात उसके जीजा जुगल को अच्छी नहीं लगती थी. वह उसे कई बात तो उसे अकेला देखकर डरा धमका चुका था. जुगल ने उसे कई बार तो घेरकर मारा-पीटा भी, परंतु उसने सुनंदा का चक्कर नहीं छोड़ा. उसने अपनी जान को जोखिम में डालकर सुनंदा को एक दिन भगाकर ले गया. जब वह सात दिन बाद लौटा तो सुनंदा को उसकी पत्नी के रूप में मांग भरा देखकर गुस्से से आग बबूला हो गया और उसने एक दिन सुनंदा की हत्या कर लाश को जला डाला. गांव वालों और तमाम रिश्तेदारों को यह बता दिया कि सुनंदा कहीं भाग गई, जबसे सुनंदा मरी है तब से वह उसे ढूंढता है. उसकी सुनंदा उसे केवल अमावस्या की रात को ही मिलती है. आज फिर वही अमावस्या की रात….है. जिस रात को उसे उसके जीजा ने मार डाला था. इस अमावस्या की रात को वह मुझे लेंडी नदी के पास मिलेगी…? आज भी उससे मिलने का वादा है. प्रकाश उसकी बात को सुनकर घबरा गया और वह हकलाते हुए कुछ पूछता उसकेेपहले ही एक ट्रक तेजी से आता देख प्रकाश ने उस मोटर साइकिल चालक को रोकने के लिए जैसे ही तेज रोशनी में उसे पकडऩा चाहा लेकिन उसकी आँखे फटी सी रह गई और धड़ाम से गिर गया. सुबह जब उसी आँखे खुली तो उसने स्वयं को लेंडी नदी के पास पुलिस के नीचे पाया. इतनी ऊपर से नीचे गिरा देख लोगों की भीड़-भाड़ जमा हो गई थी. भीड़ में से किसी ने उसे पहचान लिया. जब उसने उसे पुकारा तो वह उठकर बैठ गया और रात वाली बात को याद कर एक फिर थर-थर कांपने लगा. लोगों ने उसके ऊपर पानी छिड़का तब जाकर उसे होश आया. कुछ लोग उसे लेकर पास के आम के पेड़ की छांव में ले गए. लोगों के पूछने पर कि वह नदी के नीचे कैसे गिरा तो उसे याद आया कि जब उसने ट्रक की रोशनी में देखा कि वह जिस लड़के की मोटर साइकिल पर बैठकर यहां तक आया है उसके तो दोनों हाथ कटे हुए खून से लथपथ हैं. वह कटे हाथ से इतनी दूर से मोटर साइकिल कैसे चलाकर लाया. वह कौन है…? उसके हाथ कैसे कट गए…? उसकी किसने ऐसी हालत की है..? दर्जनों सवालों का पहाड़ उसके दिमाग में उथल-पुथल मचा रहा था. जब प्रकाश ने उसे घेर रखी भीड़ की मोटर साइकिल चालक की रात वाली बात बताई तो उस भीड़ में से बुर्जुग बोला- बेटा, किसी जन्म का पुण्य तुम्हारे काम आ गया..? तुम्हारी किस्मत अच्छी है कि तुम एक ही के फेर में पडे…? वरना कल रात तुम्हारे साथ क्या होता भगवान ही जाने….! यह कह उसने लंबी सांस ली, एक का फेर…. प्रकाश के लिए यह बात कुछ समय के बाहर की थी. जब उसने कारण पूछा तो वह बुर्जुग बोला- बेटा करबला से लेंडी तक तू जिस सुरेश की मोटर साइकिल पर बैठकर आया वह सुरेश आज से नौ माह पहले इसी रोड पर मरा मिला था. वह अमावस्या या पूनम की रात में किसी न किसी को अपनी मोटर साइकिल पर बैठाकर लाता है. लेंडी नदी के बाद करंजी नदी तक सुरेश और सुनंदा दोनों मिल जाते है. फिर दोनों भटकती आत्माएं मिलकर सुरेश के साथ आए व्यक्ति को फांस लेती है. सुनंदा अक्सर उन लोगों को अपना जीजा समझकर मार डालती है. सुरेश के बारे में कुछ लोगों ने बताया कि सुनंदा के जीजा ने एक रात दस सवा दस बजे मोटर साइकिल से घर वापस जा रहे सुरेश की बांह काटकर उसे भी मार डाला. जबसे सुरेश की आत्मा सुनंदा से मिली है तब से सुनंदा का बदला लेना शुरू हुआ है. वह उसके जीजा तक को मार चुकी है. अब तक इस रोड पर सुनंदा का प्रतिशोध कायम है. कई लोगों ने उसे बांधना चाहा पर वह काली नागिन की तरह एक-एक से बदला ले रही है. सुनंदा का इस तरह लोगों को सुरसा की तरह निगलना जारी है. वह अक्सर अपने प्रेमी ओर एक रात के पति के साथ किसी नए शिकार की तलाश में हर अमावस्या की रात को लेंड़ी नदी से लेकर करंजी के बीच मिलती है. आज भी जब प्रकाश उस घटना को याद करता है तो वह थर-थर कांपने लगता है.
इति,

दांत पीले है इसलिए ,  हाथ पीले नहीं हो पायेंगें …!
– रामकिशोर पंवार
शादी – विवाह का मौसम आया और चला भी गया…….  इस बार भी सीवनपाट नामक उस गांव में एक बार फिर भी न तो ढोल बजे और न कोई शहनाई गुंजी ……. इसके पीछे जो भी कारण हो पर सच्चाई सोलह आने सच है कि इस गांव की लड़कियो के दंातो पर छाए पीलेपन को  कोलेगेट से लेकर सिबाका ……. यहाँ तक की डाबर लाल दंत मंजन तक दूर नहीं कर पाया है . यह अपने आप में कम आश्चर्य जनक घटना नही है कि देश – दुनिया की कोई दंत मंजन कंपनी सीवन पाट गांव की उन युवतियों के चेहरो पर मुस्कान नहीं ला सकी है जिनके दांत पीले होने की वज़ह से उनके हाथ पीले नहीं हो पा रहे है . दंातो की समस्या पर आधारित उस गांव के हेडपम्प से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ता मीरा पत्नि शिवजी इवने एक हाथ से विकलंाग बन चुकी है . एक हाथ से काम ही नहीं हो पाने के कारण मीरा अपने पीड़ा को अपने गिरधर गोपाल को भी गाकर – बजा कर नहीं सुना सकती है . अपने एक कम$जोर हाथ को दिखाती मीरा इवने रो पड़ती है वह कहती है कि साहब जब हाथ ही काम नहीं कर पा रहा है तब दांत के बारे में क्या करू……. ! काफी शिकवा – शिकायते करने के बाद लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के द्घारा बंद किये गये बैतूल से आठनेर जाते समय ताप्ती नदी के उस पार बसे सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य गांव मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के अन्तगर्त आता है. इस गांव के बंद किये गये हेडपम्प के पानी पीने से के पानी की व$जह से अकेली मीरा ही विकलांग नहीं है उसकी तरह कक्षा 9 वी में गांव से 6 किलो मीटर दुर बसे कोलगांव में पढऩे जाने वाली गांव कोटवार हृदयराम आत्मज राधेलाल की बेटी रेखा आज भी बैसा$खी के सहारे गांव से पैदल ताप्ती मोड़ तक आना- जाना करती है. प्रतिदिन बस से किराया लगा कर  स्कूल पढऩे जाने वाली रेखा की हिम्मत को दांद देनी चाहिये क्योकि उसने विकलांगता को चुनौती देकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा . अनुसूचित जाति की कक्षा 9 वी की इस विकलांग छात्रा कुमारी रेखा के पिता हृदयराम अपनी पीड़ा को व्यक्त करते समय रो पड़ता है वह बताता है कि  ” साहब मेरी बेटी कन्या छात्रावास बैतूल में पढ़ती थी लेकिन वह इस पानी के चलते विकलांग बन गई और बीमार रहने लगी जिसके चलते वह एक साल फेल क्या हो गई उसे छात्रावास से छात्रावास अधिक्षका ने निकाल बाहर कर दिया मैंने काफी मन्नते मांगी लेकिन मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई …… !  हालाकि दांत के पीले होने की त्रासदी से रेखा भी नहीं बच पाई है. गांव में यूँ तो फ्लोराइड़ युक्त पानी ने कई लोगो को शारीरिक रूप में कम$जोर बना रखा है. 34 साल की देवला पत्नि राजू भी अपने पीले दांतो को दिखाती हुई कहती है कि मेरी शादी को 20 साल हो गये उस समय से मेरे दांत पीले है आज मैं हाथ – पैर से कम$जोर हँू आज मेरे पास कोई काम धंधा नही है….! गांव के स्कूल के पास रहने वाली इस आदिवासी महिला के 4 बच्चे है जिसमें एक बड़ी लड़की की वह बमुश्कील शादी करवा सकी है……! पथरी का आपरेशन करवा चुकी देवला और उसके सभी बच्चो के दांत पीले है.
उस गांव की युवतियाँ अपने भावी पति के साथ सात जन्मो का साथ निभाने के लिए दिन – प्रति दिन अपने यौवन को खोकर बुढ़ापे की ओर कदम रख रही है लेकिन इन पंक्तियो के लिखे जाने तक कोई भी इन युवतियों से शादी करने को तैयार नहीं है. इस गांव की फुलवा अपनी बेटी की दुखभरी दांस्ता सुनाते रो पड़ती है वह कहती है कि ”साहब इसमें हमारा क्या दोष ……… ! इस गांव के पानी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है . मेरी ही नहीं बल्कि इस गांव की हर दुसरी – तीसरी लड़की के हाथ सिर्फ इसलिए पीले नहीं हो पा रहे है क्योकि उनके दांत पीले है…….!   माँ सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का जब यह हेड पम्प नहीं खुदा था तब तक पानी पीने वाले गांव के भूतपूर्व पंच 57 वर्षिय बिरजू आत्मज ओझा धुर्वे कहता है कि ”साहब उस समय हमें कोई बीमारी नहीं हुई न दांत पीले हुये न हाथ – पैर कमज़ोर हुये ……..! पता नहीं इस गांव को इस हेड पम्प से क्या दुश्मनी थी कि इसने हमारे पूरे गांव को ही बीमार कर डाला…… .!  मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के इस गांव में बने स्कूल में पहली से लेकर पाँचवी तक कक्षाये लगती है . सीवनपाट के स्कूल में पहली कक्षा पढऩे वाली पांच वर्षिय मनीषा आत्मज लालजी के दांत पीले क्यो है उसे पता तक नहीं ….. मँुह से बदबू आने वाली बात कहने वाली शिवकला आत्मज रामचारण कक्षा दुसरी तथा कंचन आत्मज शिवदयाल दोनो ही कक्षा दुसरी में पढ़ती है इनके भी दांत पीले पड़ चुके है. 6 वर्षिय प्रियंका आत्मज पंजाब कक्षा दुसरी , 7 वर्षिय योगिता आत्मज रियालाल कक्षा तीसरी की छात्रा है. इसी की उम्र की सरिता आत्मज मानक भी कक्षा तीसरी में पढ़ रही है उसके पीले दांत आने वाले कल के लिए समस्या बन सकते है. गांव की कविता आत्मज लालजी सवाल करते है कि Ó”साहब कल मेरी बेटी शादी लायक होगी तब उसे देखने वाले आदमी को जब पता चलेगा कि इसके दांत पीले है तथा उसके मँुह से बदबू आती है तब क्या वह उससे शादी करेगा…. विनिता आत्मज सुखराम कक्षा तीसरी की तथा कक्षा पांचवी की प्रमिला चैतराम भी अपने दांत दिखाते समय डरी – सहमी से सामने आती है . लगभग तीन घंन्टे तक इस गांव की पीड़ा को परखने गए इस संवाददाता को ग्रामिणो ने बताया कि 290 जनसंख्या वाले इस गांव में सबसे अधिक महिलायें 151 है. 139 पुरूष वाले लगभग 60 से 65 मकान वाले इस गांव में जुलाई 2006 को स्कूली मास्टरो से करवाये गये सर्वे के अनुसार इस गांव में 54 बालिकायें 44 बालक है जिनकी आयु 1 से 14 वर्ष के बीच है. इन 54 बालिकाओं में 49 के दांत पूरी तरह पीले पड़ चुके है. इसी तरह गांव की 151 महिलाओं में से 99 महिलाओं के दांत पीले है. शेष 52 महिलाओं की उम्र 45 से अधिक है जिनके दांतो पर उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी कोई असार नहीं कर सका है. जिला प्रशासन द्घारा लगभग 5 साल पहले ही उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी वाले हेड पम्प को बंद करवा कर उसके बदले में दो फ्लांग की दूरी पर एक हेड पम्प तो खुदवा दिया लेकिन उस हेडपम्प से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी का निकलना जारी है क्योकि जिन लड़कियो की उम्र पाँच साल है जिनके दँुध के दांत टूट कर नये दांत उग आये है वे भी पीले पड़ चुके है . आंगनवाड़ी पढऩे वाली अधिकांश बालिकाओं के पीले दांत इस बात का जीता – जागता उदाहरण है कि गांव में टुयुबवेल से दिलवाये चार नल कनेक्शन से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी निकल रहा है. दस वर्षिय सीमा आत्मज रमेश की माँ रामकला कहती है कि ”आज – नही तो कल जब मेरी लड़की को देखने को कोई युवक आयेगा तक क्या वह उसके पीले दांतो को देखने के बाद उससे शादी करने को तैयार हो जाएगा…..?   गांव की मालती आत्मज जुगराम कक्षा दसवी तथा कविता आत्मज बिन्देलाल कक्षा 9 वी में पढऩे के प्रतिदिन कोलगांव आना – जाना करती है. इसी तरह सरिता कक्षा 7 वी में पढऩे के लिए बोरपानी गांव जाती है .
गांव के कृष्णा आत्मज तुलाराम तथा गजानंद आत्मज राधेलाल की शिकायत पर वर्ष 2004 में बंद किये गये इस हेडपम्प के पानीे से जहाँ एक ओर राजू आत्मज तोताराम भी विकलांगता की पीड़ा को भोग रहा है. वही दुसरी ओर गांव की फूलवंती आत्मज झुमरू , कला आत्मज चैतू तथा संगीता आत्मज गोररी की भी समस्या दांत के पीले पन से है. उन्हे इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनका भावी पति उनके दांतो के पीलेपन तथा मँुह से आने वाली बदबू की व$जह से उनसे शादी करने से मना न कर दे . जब प्रदेश की विधानसभा तक मेें फ्लोराइड युक्त पानी पर बवाल मचा तो बैतूल जिला कलेक्टर भी दौड़े – दौड़े उन गांवो की ओर भागे जिनके हेडपम्पो से फ्लोराइड युक्त पानी निकलता था. बमुश्कील आधा घन्टा भी इस की दहली$ज तक पहँुचे जिला कलेक्टर ने यहाँ – वहाँ की ढेर सारी बाते की लेकिन जब गांव कोटवार ने ही अपनी बेटी की विकलांगता की बात कहीं तो उसके इलाज की बात कह कर कलेक्टर महोदय चले गये .
गांव के पंच संतराम , सुरतलाल , जुगराम , यहाँ तक की महिला पंच  रामकली बाई भी कहती है कि ”साहब हमें नेता – अफसर नही चाहिये हमें तो ऐसा आदमी चाहिये जो कि हमारे दांतो का पीला पन दुर कर सके ताकि हम अपनी गांव की लड़कियो के हाथ आसानी से पीले कर सके……..!   गांव के हेडपम्प और टुयुबवेल से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी की वजह सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य इस गांव की दुखभरी त्रासदी को सबसे पहले पत्रकारो ने ही जनप्रकाश में लाया लेकिन जिला प्रशासन की दिलचस्पी केवल उन्ही कामो में रही जिनसे कुछ माल मिल सके और यही माल कमाने की अभिलाषा जिले के तीन अफसरो को विधानसभा सत्र के दौरान सस्पैंड करवा चुकी है. लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के अफसरो का अपना तर्क है कि वह इस गांव के बारे में कई बार अपनी रिर्पोट जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार तक भिजवा चुका है लेकिन इस गांव की समस्या से उसे कोई निज़ात नहीं दिलवा सका है. अब जब इस गांव की लड़की अपने हाथ पीले होने के इंतजार में बुढ़ापे की दहलीज पर पहँुच रही है तब जाकर मध्यप्रदेश की वर्तमान राज्य सरकार ने यह स्वीकार किया है कि बैतूल जिले के कुछ गांवो में पोलियो की व$जह इन गांवो के लोगो द्घारा पीया जाने वाला फ्लोराइड़ युक्त पानी है. राज्य की भगवा रंग में रंग खाकी हाफपैन्ट छाप भाजपाई सरकार का प्रदेश की जनता के स्वास्थ के प्रति कितन सजग एंव कत्वर्यनिष्ठï है इस बात का पता आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला मुख्यालय की नगरपालिका बात की कार्यप्रणाली से लग सकता है. लोगो को बिमारियो की आगोश में समा देने वाली भाजपाई अध्यक्ष के नेतृत्व में कार्य कर रही इस नगरपालिका को इस बात का पता चल गया था कि बैतूल की जमीन से निकलने  वाले पानी को पीने से कई प्रकार की गंभीर बिमारियाँ लग सकती है इसके बाद भी नगर पालिका ने अपने अंधे और बहरे होने का प्रमाण देकर बैतूल की जनता के स्वास्थ के साथ खिलवाड़ किया है. वैसे तो आमला एवं भैसदेही को छोड़ कर जिले की सभी नगरपालिका एवं नगर पंचायतो पर भाजपा का शासन है. जिला मुख्यालय पर श्रीमति पार्वती बाई बारस्कर की अध्यक्षता वाली भाजपा शासित बैतूल नगरपालिका परिषद की काफी बड़ी आबादी बीते डेढ़ महिने से शरीर के लिए निर्धारित मापदण्ड से दुगनी मात्रा वाले फ्लोराइड का पानी बगैर फिल्टर के पी रहे है. जबकि कार्यपालन यंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय खंड बैतूल ने मुख्य नगरपालिका अधिकारी बैतूल को देड़ माह पूर्व दी जांच रिपोर्ट में साफ कहा है कि संबंधित नलकूपों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित मापदंड से दुगनी है अत: इस पानी का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाए. फिर भी नगरपालिका द्वारा शहरवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर उन्हें फ्लोराइड युक्त पानी पिलाया जा रहा है. लेकिन न तो जनप्रतिनिधियों और न ही नपा के अफसरों का ध्यान इस ओर है. हालात इतने बदतर हो गए हैं कि नगरपालिका का भगवान ही मालिक है. नपा द्वारा डेढ़ माह से पिलाए जा रहे अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पानी के संबंध में डाक्टरों का कहना है कि अधिक मात्रा में फ्लोराइड वाले पानी के लगातार सेवन से हड्ïिडयों और दांतों पर दूरगामी असर पडऩा तय है.
दातो के पीले पन के लिए जिस फ्लोराइड को जिम्मेदार बताया जा रहा हन्ै वह तो जिला मुख्यालयो भी कई हेड़ पम्पो से लोगो को पिलाया गया. जिला मुख्यालय पर बीती ग्रीष्म ऋतु में नगरपालिका बैतूल द्वारा फिल्टर प्लांट स्थित माचना नदी का पानी पूरी तरह सूख जाने पर केन्द्रीय भूजल विभाग की मशीन से फिल्टर प्लांट परिसर में किए गए बोर का पानी नगर में सप्लाई करवा दिया. एक हजार और पांच सौ फीट के इन बोर का पानी विवेकानंद वार्ड, विकास नगर, शंकर नगर, कोठीबाजार, शिवाजी वार्ड, आर्यपुरा, टिकारी, मोतीवार्ड, दुर्गा वार्ड, में आज भी इस बोर का पानी दिया जा रहा है. नपा के जवाबदार अधिकारियों ने पेयजल सप्लाई के पहले इस पानी की केमिकल जांच किए बिना, फिल्टर किए जल प्रदाय किया गया व आज भी माचना नदी का फिल्टर किया हुआ पानी बोर का पानी साथ साथ सप्लाई कर आपूर्ति की जा रही है. नपा द्वारा उक्त बोर के पानी की केमिकल रिपोर्ट लाने स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से मांगी गई थी जो कि पानी का परीक्षण करने के बाद 6 जुलाई 05 को नपा को सौपी गई थी जिससे एक हजार फीट के इस बोर के पानी में फ्लोराइड  की मात्रा 3.19 मिग्राम प्रति लीटर बताई गयी है. जो कि निर्धारित आईएसआई मापदंड 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है. अत: नलकूप के जल का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाना चाहिए बावजूद इसके बैतूल नगरपालिका परिषद द्वारा दुगना फ्लोराइड मिला पानी शहर की जनता को पिलाया जा रहा है वहीं उक्त जल का डीफाउंडेशन भी नहीं किया गया. जब फिल्टर प्लांट जाकर वस्तुस्थिति की जानकारी लेनी चाही गई तो अभी भी यहां से स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग की रिपोर्ट के बाद भी फ्लोराइड  मिला पानी वितरित किया जा रहा है. फिल्टर प्लांट में लगे उत्फालवन पंखे भी विगत दो वर्षो से खराब पड़े हुए है जबकि पानी को साफ करने हेतु  उसमें मिलाया जाने वाला सोडियम हाइड्रोक्लोराइड की 38 लीटर पानी वाली केनो पर भी पर्चियों में जानकारी नहीं लिखी गई है. साथ ही जिस कुएं में पानी स्टोर कर साफ किया जाता है वहां लोग वाहन धो रहे है. जिससे पानी दूषित हो रहा है. इस संबंध में बैतूलनगरपालिका परिषद से संपर्क करना चाहा गया तो वहां पर संबंधित अधिकारी मौजूद नहीं थे.
निर्धारित मापदण्ड से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड के पानी का पेयजल के रूप में लगातार सेवन करना बच्चों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं सहित सभी के लिए अत्यधिक नुकसानदायक है और इसके दुरगामी परिणाम शरीर पर होते है जिसके चलते दात, हड्डïी, पर्वस सिस्टम और किडनी पर असर पड़ता है. यह बात प्रसिद्घ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ.योगेश गढ़ेकर से विशेष चर्चा में कही. उन्होंने बताया कि फ्लोराइड की अधिक मात्रा वाले पानी को पीने से फ्लोरोसिस नामक बीमारी होती है. इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है अन्य लोगों पर भी दूरगामी नतीजे नजर आते है. फ्लोराइड युक्त पानी पीने से दांतो, हड्डïी, नर्व सिस्टम और किडनी कमजोर होना शुरू हो जाती है. अधिक मात्रा में हड्डïी का बनना शुरू हो जाता है. गर्दन, पीठ, जोड़ों, एड़ी में दर्द शुरू हो जाता है. हड्डïी बढऩे से सवाईकल रेडिकूलो पेथी, लंबर रेडिकूलो पेथी नामक बीमारी शुरू हो जाती है. किडनी में यूरिया लेबल बढऩा शुरू हो जाता है. डॉ गढ़ेकर ने कहा कि बचाव का सबसे बेहतर उपाय यही है कि फ्लोराइड युक्त पानी का सेवन तत्काल रोका जाये और यदि किसी की उपरोक्त लक्षण नजर आते है तो ऐसे लोगो को तत्काल डाक्टर के पास जाकर अपना स्वास्थ परीक्षण करवाना चाहिए.राज्य सरकार से दूर रखे इस गांव में पोलियो के मरीज मिलना तो आम बात है लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से गांव की युवतियों के दांत पीले है जिसके चलते उन्हे देखने वाला युवक पहली ही बार में उसे अस्वीकार कर देता है . इस गांव को फ्लोराइड़ युक्त पानी से छुटकारा दिलवाने का भरोसा दिलवाने वाला व्यक्ति के रंग – ढंग से बेहद खफा इस गांव में के लोग कहीं इसी समस्या के चलते इस गांव में पहँुचने वाले उस हर व्यक्ति का हाल का बेहाल न कर दे बस इसी डर से वह दुबारा इस गांव में इसलिए नहीं आ रहा है. बरहाल दांत पीले से हाथ के पीले न होने की समस्या का हल कब निकल पायेगा यह कहना अतित के गर्भ में है.
इति,

कही ऐसा तो नही कि मेरे गांव को किसी की नजर लग गई ……..!
रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने एक पत्रिका देखी तो उसमें छपा एक कालम ”मेरा गांव ….! मुझे अपने बचपन की ओर ले गया . मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है. बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया – गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है. गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा – तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. इधर परासोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है. खेड़ी – सेलगांव – बावई  होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. पंगडंडी जितनी है मेरे गांव को जाने के लिए उतनी गांव को जाने वाली सड़के नही है. दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है. लोग आते है , चले जाते है. कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है. जहाँ  पर लोग केवल घुमने के लिए आते है . जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है. थोड़ी से भूल – चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया…. ऐसे में सब कुछ खो जाने का डर रहता है. इसलिए लोग संभल – संभल कर चलने लगे है . गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के करतब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है . मेरे पापा बताते थे कि गांव के बुढे – बजुर्ग लोग विशेषकर महिलाये गांव से लड़को को बाहर जाने नहीं देती थी . पापा के एक जीजाजी राणा थानेदार खंडवा के रहने वाले थे वे उनसे कई बार कह चुके थे कि तू गांव को छोड़ कर बंबई चला जा लेकिन मेरे पापा की दादी लंगड़ी थी वह काफी नियम – कानून कायदे वाली थी. गांव में उस समय छुआछुत को काफी माना जाता था. गांव से दो – चार दिन लड़का बाहर क्या रहा उसे पुराने जमाने के पुराने रिवाजो को मानने वाले लोग गोबर – गौमुत्र – तुलसी के पत्तो से नहलाते थे उसके बाद भी उसे घर के अंदर आने देते थे . वन विभाग में नाकेदार के पद पर रहे पापा की नौकरी पंक्षी – टोकरा  कनारी – पाट में रही . उस समय शुटिंग ब्लाक होने की व$जह से कई लोग जानवरो का शिकार करने आते थे . जानीवाकर खंडवा के रहने वाले थे इसलिए उन्हे बैतूल – होशंगाबाद के जंगलो में शिकार का बड़ा शौक था. जानीवाकर मेरे पापा से इतने प्रभावित हो गये थे कि वे उन्हे बंबई चलने का कह चुके थे . उस जमाने की मशहुर अदाकार मीना कुमारी के पास काम करने के लिए बबंई चलने का जानीवकार का प्रस्ताव शायद हम लोगो की तकदीर और तस्वीर बदल सकता था लेकिन मेरे पापा की दादी की $िजद के चलते वे बैतूल जिले से बाहर कहीं नही जा सके . कुछ लोग बड़े – बुर्जगो की िजद को दर किनार कर गांव से बाहर गये तो दुबारा फिर वापस नही लौटे . आज भी मेरे गांव के लोग बम्बई – दिल्ली – कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है . जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ”बच्चो का भविष्य देखना है …..! ”आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या…. ? अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि ……!  मेरा जन्म गांव माता माँ की गली वाले चम्पा के पेड़ के पास बने पुश्तैनी मकान में ही हुआ जिसके चलते मेरा बचपन और उससे जुड़ी अमिट यादे आज भी मेरा मेरे गांव से पीछा नही छोड़ती. रोंढ़ा आज भले ही कुछ भी हो लेकिन मेरी जन्मभूमि होने के कारण वह मुझे अपने से जोड़ रखी है . आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ मेरे नटखट बचपन की एक ऐसी निशानी है जिसे बरबस याद करते ही मुझे मेरा बचपन किसी फिल्मी चलचित्र की तरह दिखाई पडऩे लगता है. काफी पुराना मेरे गांव के विकास बारे में क्या लिखूँ क्योकि मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है. मेरे दादा ने उस गांव के आसपास के खेतो और खलिहानो में तीस साल अपनी भुजाओं के बल पर तीस साल तक कुआँ खोदा लेकिन आज मैं गांव तक आने वाले 3 किलोमीटर का फासला तक पैदल नही तय नही कर सकता. पहले गांव की सड़क को जोड़ती पगडंडी ठीक थी कम से कम पैदल तो चला जा सकता था लेकिन अब तो उबड़ – खाबड़ सड़क पर मोटर साइकिल लेकर चलना तक मुश्कील हो गया है. हमेशा इस बात का डर सताता है कि कही टायर में कोई कट न लग जाये. गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ – बहने – बहु – बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें का पानी गर्मी आने के पहले ही सुखने लगा है.पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ – तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है.
जब मेरा बेटा रोहित तीन साल का था तब मेरे दादा का निधन हो गया.  तीस साल तक कुआँ खोदने वाले मेरे दादा तीन बार मौत के मँुह से वापस लौटे शायद इसलिए कि उन्हे वे अपने मूलधन का ब्याज और उसका ब्याज देखना चाहते थे. अपने वंश के वृटवृक्ष की डालियो में खिले फूलो और फलो को देखने वाले मेरे दादा संत तुकड़ो जी महाराज के अन्यन्न भक्त वे खंजरी की थाप पर मराठी भाषी भजनो को गाने के साथ वे लावणी के अच्छे गायक थे. जिस गांव में रोज सुबह – शाम संत तुकड़ो जी महाराज के भजनो पर खंजरी की थाप गुंजा करती थी आज उसी गांव में बात – बात पर खंजर निकलने से लोग घरो में दुबके रहते थे. मेरे गांव को जैसे किसी की न$जर लग गई हो. आज मेरा गांव पुलिस की प्रोफाइल में झगड़ालू गांव के रूप में जाना जाता है. पिछले एक दशक से मेरे गांव में होने वाली हत्याओं ने गांव की छबि का विकृत स्वरूप पेश किया है. जंगल विभाग में नौकरी करने के बाद सेवानिवृत हुये मेरे पापा बताया करते है कि मेरे पूरे गांव को दुध और दही की धार से बांधा गया है वह इसालिए कि गांव में कोई बीमारी या अकाल मौत से कोई इंसान या जानवर नहीं मरे ……… लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि किसी ने मेरे पूरे गांव को उन्माद – नफरत – हिंसा – िजद और बदले की भावना से निकाले गये खून की धार से बांध रखा हो जिसके कारण मेरा गांव आज पुलिस की न$जर में हत्यारा गांव कहलाने लगा है . पापा बताते है कि पिछले कई वर्षो से मेरे गांव की जनसंख्या न तो बढ़ी है और न घटी है. एक दशक पहले तक तो पूरा गांव चारो ओर लहलहाते खेतो से घिरा था लेकिन अब लोगो ने भी गांव छोड़ कर खेत में अपना मकान बना कर रहना शुरू कर दिया है जिससे पूरे गांव की आबादी लगभग चौदह सौ रह गई है . कई साल पहले भी इतनी ही आबादी थी . आज मेरे गांव मे लोग आते कम जाते ज्यादा है . मेरे बचपन का साक्षी चम्पा का पेड़ की झुकी डालिया ही बताती है कि जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी संत तुकड़ो जी महाराज के तो कभी सर्वोदयी नेता एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे . आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है . अब तो इस गांव में भूदान करना तो दूर रहा दो गज जमीन के लिए ही लोगो को जान देनी पड़ रही है . गांव का प्राचिन शिव मंदिर हो या भुवानी माँ की दरबार सभी अपने स्थानो को छोड़ कर गांव की गलियो में आ गये है . अपने लिए घर बार बनाने वालो को पता नही क्यो उनके लिए घर – बार बनाने की चिंता नही रही जिनके दरवाजे पर जाकर जो मन्नते मांगते रहे है. एक प्रकार से देखा जाये तो जबसे हमारा पुश्तैनी घर ढहा है तबसे उससे लगा माता मंदिर का चबुतरा और चम्पा का पेड़ मुझे बार – बार इस बात के लिए कटोचता रहता है कि मैं एक बार फिर वापस आकर अपने लिए और अपने बचपन के साक्षी चम्पा के पेड़ और माता माँ के लिए एक ठौर ठिकाना बना लूँ …. लेकिन मैं जब भी यह बात अपनी बीबी और बच्चो के बीच करता हँू तो मेरा ही उपहास करते है कि गांव जाकर क्या करेगे ….? बच्चो के भविष्य के नाम पर मेरा बचपन मुझसे कोसो दूर होता जा रहा है . लोग कहते है कि भारत गांवो में बसता है लेकिन कोई भी इस गांव को आज तक भरत की तरह प्रतिज्ञा करने वाला भरतवंशी नहीं मिल सका जो कि मेरे इस गांव की तस्वीर को बदल सके .
इति,

Posted in Uncategorized | Leave a comment

हास्य – परिहास

हास्य – परिहास
सरकार को चाहिए कि वह साली को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करे या फिर क्रेडिट या डेबिट कार्ड पर उपलब्ध करवाएं
रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला
आज एक फिर साली के गम ने मुझे गमगीन कर दिया। पिछले बाइस वर्षो से साली न होने का श्राप भोग रहा मेरा मन एक बार नहीं हजारो बार बस यही सवाल करता था कि मुझे किस बाम की सजा मिल रही हैं। आज और न कल मैं चाह कर भी अपने माता – पिता से या ससुराल वालो से यह सवाल नहीं पुछ पाया हूं कि आखिर मुझे किस अपराध की सजा सुनाई गई..? साली गुड की जलेबी हो या रसमलाई लेकिन जिसकी साली नहीं होती हैं उसके लिए तो साली का शब्द एक प्रकार की गाली जैसा ही हैं। बांझ और नामर्द को कोई अगर ताना मारे तो वह कह सकता हैं कि इसमें हमारा क्या दोष यह तो ऊपर वालो की मर्जी हैं, लेकिन मैं ऊपर वालों को क्यों दोष दूं जब मेरी लुटिया नीचे वालों ने डुबाई हैं। साली के वियोग को मैं बार – बार भूलने की कोशिस करता हूं लेकिन कभी सपने में मल्ल्किा शेरावत और प्रियंका चोपड़ा जैसी अनजान सुरत आकर पुछ जाती हैं कि कैसे हो जीजा जीजा जी….? उसका यह पुछना था कि मैं नींद से जाग जाता हूं और आसपास में अपने सपनो की साली को खोजता हूं तो वह गधे के सिंग की तरह गायब हो जाती हैं। बगल में बेसुध होकर सोई घरवाली को जैसे ही मेरे नींद से उठने की भनक लगती हैं वह नींद में बड़बड़ाने लगती हैं कि कहीं तुम्हारे सपने में शकीरा तो मेरी बहन बन कर नहीं आ गई थी…..? ताने मारने में बाहर वाले तो दूर अब तो घर वाले भी कोई कसर नहीं छोडऩे लगे हैं। अब तो घरवाली भी ताक झांक करती निगाहें पर ही सवाल दाग देती हैं क्या मतलब आंखे फाड़ कर देखने से वह नहीं मिलने वाली…….? अब जवान बच्चों के बाप बन गए हो बहू लाने के दिन आ गए हैं क्यों साली के चक्कर में मरे जाते हो…..? अफसोस साल में एक बार हो तो उस दिन को काली अमावस की रात समझ कर चुपचाप सो जाए लेकिन यह तो हर पल की काली अमावस की तरह होता है जब कोई किसी से कहती हैं कैसे हो जीजा जी …..? अब उसे कौन बताएं कि तेरे अपने जीजा तो अच्छे है लेकिन हमारे तो हाल – बेहाल हैं…..? मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि किसी की एक ही बेटी हो वहां तक तो चल जाएगा लेकिन चार बेटी हैं और चौथी बेटी के पति की किस्मत में यदि साली नहीं हैं तो वह तो बेचारा उस दिन के लिए ही अपने सास – ससुर को कोसेगा कि बस मेरे ही टाइम पर क्या परिवार नियोजन लागू हुआ था….? मैं सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को नहीं कोसना रहा हूं लेकिन सरकार यदि जनता की भलाई चाहती हैं तो अनिवार्य करे कि दो बच्चे अच्छे लेकिन दोनो हो लड़के ही लड़के या लड़की ही लड़की क्योकि समान अधिकार का सिद्धांत सभी लागू होना चाहिए। साली का सुख सभी को मिलना चाहिए। साली की कमी को लेकर भारत सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय साली आयोग बनाना चाहिए। साली को मानवीय अधिकारों में शामिल करना चाहिए। सरकार को साली को विलुप्त प्रजाति एवं विलुप्त धरोहर में शामिल करना चाहिए। साली को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अनुसार बीपीएल , एपीएल , अंत्योदय , दीन दयाल के कार्ड धारको की श्रेणी में शामिल करना चाहिए। जब सरकार को पता हैं कि साली विस्फोटक , ज्वलनशील प्रदार्थ की श्रेणी में रख कर उसका भी कोटा आरक्षित एवं सुरक्षित करना चाहिए। साली का बिना सरकार की मर्जी के परिवहन , अधिग्रहण नहीं होना चाहिए। सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि साली का दुरूप्रयोग रोकने के लिए सरकार ने पूरे देश में साली पंजीयन केन्द्र स्थापित करके उसका सीमांकन , नामांकन करना चाहिए। भारत सरकार को इस बारे में यूएसए से मिल कर एक संधि प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि ऐसे लोग जिनकी साली नहीं हैं उसे सरकार अपने कोटे से देशी संभव नहीं हो सके तो विदेशी साली क्रेडिट या डेबिट कार्ड पर उपलब्ध करवाना चाहिए। किसी कुंवारे व्यक्ति या बाल बह्रमचारी व्यक्ति को राष्ट्रीय साली वितरण प्रणाली बोर्ड का चेयरमेन बनाना चाहिए। बोर्ड में ऐसे लोगो को शामिल किया जाना चाहिए जिनकी किस्मत में साली की कोई गुंजाइश नहीं हैं यदि सरकार ऐसा नहीं कर सकती हैं तो फिर सरकार को ऐसे लोगो को साली रखने की विशेष छुट का लाभ मिलना चाहिए। अब हमारी मांगो का भले ही लालू प्रसाद यादव या नरेन्द्र मोदी जी विरोध करे लेकिन नीतिगत मामलो में पूरे देश भर के साली सुख – सुविधा से वंचित लोगो को भी जाटो और गूजरो की तरह आन्दोलन करने को बाध्य होना पड़ सकता हैं। दरअसल में देखा जाए तो घरवाली वर्तमान है और साली आने वाला भविष्य हैं। सरकार भी कहती हैं कि हमे सुनहरे कल की ओर बढऩा चाहिए लेकिन इसमें भी किसी प्रकार का भेदभाव तो न बरता जाए इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए। मैं आज के इस रंगो के त्यौहार में अपनी सभी अनचाही और सपने में आने वाली सालियों को अपने शब्दों के रंगो से रंगीन करके अपनी बात को यही समाप्त करता हूं।

‘रामू की साली ……!
रामकिशोर पंवार

होली के आते ही होली के तरानो की गली – गली में गुंज सुनाई देने लगती है। होली के मस्ती भरे फागो के बीच फिल्मी तरानो में पिचकारी के साथ गीत -गाते टोलियो के एक दुसरे पर किये जाने वाले शब्दो के प्रहारो के बीच में आनंदीत होते छोटे – छोटे बच्चो से लेकर जवानो और बुढ़ापो की टोलियो में लोग एक दुसरे के बीच होली में अपनी प्रेमिका – पड़ौसन – साली – घरवाली – बाहरवाली – दिलवाली – मतवाली को रंगो में रंगन करने के किस्से कहानियाँ सुनाते – दिखाते और उसे करते दिखाई देते रहते है। कई ऐसे भी बदनसीब होते है जो कि रंगो से रंगीन होने से परहेज रखते है जिसके पीछे उनकी अपनी ढपली अपना राग है। कुछ ऐसे होते है जिन्हे कोई रंगीन नहीं करता तो कुछ ऐसा होते है जिन्हे कोई घास -भाव ही नहीं डालता है। ऐसे भी हाथ रहते है जिन्हे कोई गाल नही मिलता और कुछ ऐसे गाल होते है जिन्हे कोई रंगीन करने वाला नहीं मिलता। इन सबके बावजूद भी कई गाल और माल ऐसे भी होते है जिन्हे कोई रंगीने वाला ही नही मिलता। माल से मेरा कोई गलत अर्थ न निकाले क्योकि आज कल आम बोलचाल की भाषा में उक्त शब्द का प्रयोग होने लगा है। होली दरअसल में प्रतीक है इस बात का कि भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा और वंदावन मे गोपियो के साथ होली खेली थी इसलिए आज भी लोग मथुरा के पास बरसाने की लठमार होली को देखने के लिए देश – विदेश से दौड़े चले आते है। ऐसा नही कि मथुरा की होली ही देखने के लायक है। हमारे बैतूल जिले में चैत काटने गये चैतूये होली खेलने के लिए जब अपने गांव में लौट आते है तब उनकी एक पखवाड़े की होली देखने लायक होती है। आजकल तो हर आदिवासी क्षेत्रो में आदिवासी बालाओ पर चढ़ा पश्चिमी संस्कृति एवं बालीवुड – हालीवुड के भूत ने उन्हे गांव की आम बाला से जबरदस्त बला बना दिया है। हाथो में चायनीज मोबाइल – टज्ञइट जींस एवं टी शर्ट से कसा उसका यौवन किसी अनहोनी हादसे को आमत्रण देता दिखाई पड़ता है। प्रधानमंत्री ग्राग्रामिण सड़को से लेकर कपीलधारा के कुओ एवं ग्रेवल सड़को पर रोज किसी न किसी हवस के भूखे दंरीदे की शिकार बनती आदिवासी बालाये स्वंय को राखी सावंत और मल्लिका शेरावत – एश्ववर्या राय और प्रियंका चोपडा से कम नहीं समझती है आज यही कारण है कि इनके साथ रोज कहीं न कहीं किसी न किसी मोड पर कोई न कोई मस्ती के रंग में रंगीन होते रहता है। आज के इस दौर में सबसे ज्यादा उनमुक्त आदिवासी समाज की बालायें बैतूल जिले में बढऩे वाले बलात्कारो के प्रकरणो के लिए कहीं न कहीं स्वंय भी जिम्मेदार है। आप इसे अन्यथा न ले पर इस बात में भी सोलह आने सच्चाई है कि आप जब अपनी शहरी चकाचौंध से भरपूर साली की तुलना में गांव की इन बालाओं को जब गांवो के लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में देख लेगें तो उस मर मिटेगें यहाँ तक की दो – तीन आपके स्वपनो की सुदंरी की तरह रोज आपको परेशान कर डालेगी। होली पर तो इन बालाओ का यौवन पलाश के फूलो पर छाई रंगीन मस्ती से भी सौ गुण अधिक रंगीन हो जाता है। आज इसे विडम्बना कहे या फिर त्रासदी की बैतूल जिले की यौन शोषण की शिकार बनी बालाये दुसरे जिलो एवं प्रदेशो में भारी डिमांड पर बिकती चली जा रही है। आज यह विषय नहीं है इन सब बातो का लेकिन कहीं न कहीं होली की मस्ती से जुड़ी किस्से – कहानियों से मेल खाती है। होली के फिल्मी तरानो पर गांवो में टोलियो में नाचती – गाती फाग मांगती इन बालाओ जिसे यदि बला कहे तो अतिश्योक्ति नही होनी चाहिये क्योकि जो दुसरो को नीयत और चरित्र को डावा डोल कर दे वह बाला तो हो ही नही सकती। मैं भी कई बार लिखते – लिखते अपने मूल शीर्षक से भटक जाता हँू। बात करता हँू खेत की और पहँुच जाता हँू खिलहान हालाकि खेत को खिलहान से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।
मुझे उन फिल्म निर्मातो – गीतकारो – संगीतकारो – निर्देशको – नायक – नायिकाओ से जबरदस्त शिकायत है। आखिर वे जब भी कोई मस्ती भरा होली का गाना गायेगे या उसका संगीत तैयार करेगे या फिर उस फिल्मी नायक – नायिकाओ को नचवायेगे तब वे बार – बार होली के रंगीन तरानो में मस्ती में मस्त होने के बाद बार – बार ”रामू की साली ……! कह कर मेरा दिल तोड़ते रहते है। अब मैं किस – किस को बताते फिर कि भैया आप बार – बार ”रामू की साली ……! क्यों पुकारते है वह भी यह सब जानने के बाद की मेरी किस्मत में साली नहीं है। बार – बार मेरी दुखती नस पर हाथ रखने के बजाय पैर रख देतो हो और बाद मुझे तड़पता – किलपता देख कर हसते – खिलखिलाते दिखते हो…..! अब ऐसा भी नहीं है कि हर कोई किसी को भी रंगीन करे और उसे वह ”रामू की साली ……! कहे तो यह तो बर्दास्त न करने वाली बात होगी। हमारे भी मानवीय अधिकार है जिसको कोई इस तरह सरे आम ठेस पहँुचायेगा तो हमें भी प्रदेश से लेकर अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठनो तक अपील करना पड़ सकता है। एक प्रकार से देखा जाये तो यह यरा – सरा साक्ष्य के अभाव में झुठे साक्ष्श् बनाने या पैदा करने का मामला है क्योकि जब दुनिया जानती है कि ”मेरी याने रामू की कोई साली है नहीं तब किसी को भी मेरी साली बताना तो संगीन अपराध है……!यदि मेरी साली है तो फिर वह आपके पास क्या कर रही है….?  बीते लगभग बीस वर्षो से साली को तरसते और तड़पते मेरे दिल को चैन दिलवाने वाली साली यदि फिल्मी गायको – नायको – संगीतकारो – निर्देशको – निर्माताओं के पास मौजूद है तो फिर बैतूल से लेकर वाशिंगटन की कोर्ट तक में जाकर अपनी साली को मुक्त करवाने के लिए आर्डर लेना पडेगा। मेरा यह नजरिया आपके लिए भला बकवास भरा होगा लेकिन कोई क्यो किसी को भी अपनी साली को उसके पास इतने सालो तक रखने देगा। साली तो घर की तिजोरी की नहीं बल्कि दिल की तिजोरी की कुंंजी है लेकिन जब मैने शादी की थी तब से लेकर आज तक मुझे अपनी कोई साली नहीं मिली। मेरी स्थिति में भगवान श्री राम की तरह साली बिन उपवास – वनवास काटने की हो गई है। भगवान श्री राम की भी कोई सगी साली नहीं थी। लोग राम अनुज लक्ष्मण की जीवन संगनी उर्मिला के बारे में बताते है कि वह प्रभु श्री राम की भार्या माता सीता की सखी – सहेली थी। इसलिए प्रभु श्री राम के अलावा उनके तीनो भाई अपने लिए माता सीता की सखी – सहेलियो को उस सीता स्वंयवर के दौरान जीवन संगनी बना कर साथ ले आये थे। वैसे कोई माने या न माने पर पर मेरे साथ जो बीत रही है उसको देखकर मैं यह बात तो दावे के साथ कह सकता हँू कि राम नाम के साथ साली और पत्नि वियोग कही न कहीं जुड़ ही जाता है। पत्नि वियोग को कम किया जा सकता है यदि साली हो लेकिन हाय री किस्मत अपनी तो साली नहीं है बस चारोधाम घरवाली ही है। होली के मौसम में जब नेता से लेकर अभिनेता तक होली पर एक दुसरे पर आरोपो – प्रत्यरोपो की पिचकारी मारेगें ऐसे में दिल की भड़ास को शब्दो में पाठको तक पहँुचाने का एक अच्छा माध्यम है लेखन जिसके जरीये पीड़ा को बाटा जा सकता है। लिखना – बकना दोनो ही कला है पर लोग एक दुसरे की बक – बक सुन कर बोर हो जाते है लेकिन लेखन एक ऐसी शब्दो की विधा है जिसमेे पढऩे वालो को बोर न हो इसलिए शब्दो की घटनाओ की हसी – ठिठोली – फूलछड़ी छोड़ी जाती है। अब चलते – चलते अपनी बात को विराम देते हुये मैं उन लोगो से गुजारीश करना चाहूंगा कि भैया जब भी कोई गाना जिसमें मेरा और मेरी साली का जिक्र हो तो कम से कम मेरे को देख कर न बजाये क्योकि यह अच्छे नागरिक की सोच नहीं है कि वह उसकी दुखती नस को दबाये……..

हास्य परिहास
तुम अपने बंगलो में अपने विदेशी कुत्तो को नहलाने से बाज नहीं आये,

रामकिशोर पंवार
दरअसल में होली हमारी बरसो की संस्कृति का एक अंग है। होली के दिन दिल मिल जाते है , दुश्मन भी गले मिल जाते है लेकिन लगता है कि अब हमारी संस्कृति पर धीरे – धीरे कुछ विदेशी संस्कृति के नारू रोग के कीड़े अंदर ही अंदर उसे नष्ट करने में लगे हुये है। आज लोगो को पानी का दुरूप्रयोग का पाठ पढाने वाले 99 प्रतिशत लोगो के घरो में या तो देशी – कुत्ता है या फिर विदेशी ……. इन कुत्तो को नहलाने में साल भर में तो दूर एक दिन में जितना पानी बर्बादा होता है उतना पानी होली के रंग में एक दुसरे पर छिड़काव करने में नहीं लगता। अपने बंगलो में हरियाली रहे इसके लिए लाखो टन पानी को बर्बाद करने वाले यदि लोगो को पानी के उपयोग का पानी पढाये तो वहीं कहावत साबित होगी कि अंधा व्यक्ति आँख वाले को रास्ता दिखाये। पानी के उपयोग के लम्बे – चौड़े बैनरो एवं पोस्टरो तथा अखबारो में अपनी स्वंय की तस्वीरे छपवाने वाले नारू रोग के कीड़े उस समय कहाँ मर जाते है जब बैतूल जिले की सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का पूरा जल बह कर गुजरात चला जाता है। जिस व्यक्ति ताप्ती सरोवर की परिकल्पना करके वह पानी वाला बाबा कहलाया आज उसी व्यक्ति के द्धारा शुरू की गई ताप्ती सरोवरो की योजना तालाब से पोखर बन रही है। आज ताप्ती पर स्टाप डेम बनवाने की बैतूल जिले की पहाड़ी नदियो को एक दुसरे से जोडऩे का भागीरथी प्रयास करने के बजाय अपने मूल दायित्व से भागने वाले यदि लोगो को इस तरह की बेकुफी भरी बातो का ज्ञान बाटे तो इससे बड़ी शर्मनाम बात क्या होगी। आज हम अकेले बैतूल जिले के बात करे तो यह सबसे शर्मसार बात है कि अपने सगे बच्चो को कभी गोदी में लेकर घुमने वाले व्यक्ति विदेशी कुत्तो को अपनी कारो में घुमा कर उसे मंहगे साबुनो से नहला कर क्या पानी का सदुप्रयोग कर रहे है। गायत्री परिवार के संस्थापक परम पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री राम शर्मा का एक मात्र नारा था कि  ”हम सुधरेगें,युग सुधरेगा ,  ” हम बदलेगें ,युग बदलेगा । आज दुसरो को ज्ञान बाटने वाले ज्ञानचंदो एवं ज्ञानपांडो की कोई कमी नहीं है। जाने – माने शायर डाँ. राहत इन्दौरी कहा करते है कि  ”तुझे पता नहीं मेले में घुमने वाले , तेरी दुकान कोई दुसरा चलाता है ……! इन सब बातो को कहने का मतलब आज हमारी संस्कृति पर सीधे – सीधे कुठाराघात का एक उदाहरण है। लोगो ने अपनी दुकान जमाने के लिए लोगो को तरह – तरह के लोभ – लालच एवं प्रलोभन दिये। आज भी गुलाल से तिलक लगा कर सुखी होली मनाने का संदेश देने वाले शायद भूल गये कि जब कोई व्यक्ति की अंतिम यात्रा निकलती है जब भी गुलाल उसके ऊपर डाला जाता है उसका भी तिलक वंदन – चंदन किया जाता है। जीवित व्यक्ति को रंगा जाता है क्या किसी मुर्दे को रंगते या उसको होली खेलते देखा है। होली हमारी संस्कृति है मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के द्धारा खेली गई होली को क्या पानी के अभाव में बंद करवा दी जाये। बैतूल जिले की नदियो एवं ताालाबों तथा पोखरो में अभी इतना पानी है कि हमारी साल में एक दिन आने वाली बरसो की परम्परा का हम जीवित रख सकते है। पानी की बचत का यह कौन सा तरीका है कि सुखी होली खेली जाये और लोग भी पेपरो में फोटो छपवाने के लिए संकल्प ले रहे है शपथ खा रहे है कि हम सौंगध खाते है कि जो कहा है वहीं करेगे। अरे मेरे शपथ तो राम की उन लोगो ने भी खाई थी कि सौंगध राम की खाते है मंदिर वही बनायेगें लेकिन बनवाया क्या…..? यदि इस आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के बैतूल शहर के दस तथाकथित समाज सेवी – धन्नासेठ – मोटर कार मालिक – देशी – विदेशी कुत्तो के स्वामी – समाज सुधारक – ज्ञानपांडे यदि इस बात की सौंगध खाते है कि  ” आज के बाद वे अपने घरो में खुदवाये गये नीजी या सरकारी नलकुपो एवं सरकारी नल के पानी का उपयोग केवल पीने के लिए ही करेगें तथा इस पानी से वे या उनके परिवार का कोई सदस्य या नौकर उनकी मंहगी चमचमाती कारो एवं देशी – विदेशी – पालतू कुत्तो को धोने के लिए नही करेगें।  यदि ऐसा करते पायेगें गये तो उन्हे बैतूल शहर में सरे राह और मुख्य चौक चौराहो पर जलील किया जाये तथा उनके गले जूते की माला पहनाई जाये ….!ÓÓ  जिस दिन भी पानी के सदउपयोग – दुरूप्रयोग – सुखी होली – तिलक होली का संदेश देने वाले लोग यदि इस बात का शपथ पत्र देकर यदि लोगो को कहे कि वह तिलक होली की शुरूआत करे तो मैं पहला व्यक्ति रहूँगा जो कि आज के बाद कभी किसी के चेहरे पर या शरीर कोई रंग डालना तो दूर रंग को हाथ तक नहीं लगाऊंगा। हमारे देश में ज्ञानपांडो की दुसरो की बागुड लाघने वाले सांडो की कमी नहीं है। अपनी पत्नि से उम्मीद रखेगें कि वह सति सावित्री बनी रहे

हास्य – परिहास
‘जीजाजी मैं कब आपकी आधी से पूरी घरवाली बनूगी……!
रामकिशोर पंवार
आजकल टी वी चैनलो पर मनोरंजक हास्य – परिहास से ओत- पोत धारावाहिको के प्रसारण की भरमार है। इस समय सास – बहू के बीच तू – तू – मैं – मैं वाले धारावाहिको में एक है ”मैं कब सास बनूगी …..! इस धारावाहिक को देख कर मुझे एक चुटीले आलेख की पृष्ठभूमि मिल गई जिसका मैं शीर्षक यह बनाया कि ”जीजाजी मैं कब आपकी आधी से पूरी घरवाली बनूगी……! दर असल में यह किसी साली की पीड़ा या वेदना नहीं है कि वह कब अपने ”जीजाजी की आधी से पूरी घरवाली बनेगी……! दरअसल में यह दर्द उन जीजा लोगो का है जो कि समाज में मौजूद उस कथित मानसिकता का बोझ ढो रहे है जिसमें यह कहा जाता रहा है कि  ”साली तो आधी घरवाली होती है…….! अब उन लोगो की तो लाटरी लग जाती है जिन्हे एक के बदले आधा दर्जन साली ब्याज में मिल जाती है। ऐसे लोगो की तो आधा दर्जन साली आधी घरवाली हो जायेगी लेकिन उन लोगो का क्या होगा जिनकी घरवाली किसी की साली होने के साथ आधी घरवाली होगी……? ऐसे में शकीला पति तो किसी नदी नाले में डुबकी लगा लेगा या फिर कच्ची देशी ठर्रा पीकर किसी चौराहे पर लुढ़का हुआ मिलेगा। ईश्वर न करे किसी पति को शक के चलते किसी भी प्रकार के गम में या रम में डुबना पड़े। साली के बारे में अनेक किस्से कहानियां पढने को मिलती रहती है। साली रसमलाई भी है और वह हल्दीराम की नमकीन भी है। यदि साली को चाट और भेलपुड़ी कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हम सब की माँ – बहने – बहू – बेटी – मामी – फूफी – चाची – भाभी – यहाँ तक नानी और दादी भी किसी न किसी की साली रही है। ऐसे में उन लोगो के ससुराल में साली का न होना एक प्रकार का अभिश्राप होगा जिन्होने साली को लेकर लम्बी – चौड़ी अभिलाषा पाली रखी थी। साली के बिना जीवन किसी विधुर पुरूष की तरह या विधवा नारी की तरह होता है। साली के न होने का दर्द उस कहावत के समान है कि ”बांझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा….. अब ऐसे में उन लोगो का दर्द बाटने वाला कहां मिलता है जो कि ऐसे लोगो को साली की सुविधा उपलब्ध करवा सके। आजकल चुनावी आचार संहिता ्रलगी हुई है यदि चुनाव नहीं होता तो आने वाले फागुन के गुलाल और रंग के लिए किसी राखी सावंत जैसी साली के लिए नगरपालिका या सरकारी किसी मोहकमे से बोल – चाल कर निविदा या टेण्डर या कोटेशन मंगवा लेते लेकिन हाय री किस्मत इस बसंत बहार के मौसम में जब अंगना में उड़े  रे गुलाल और हम करते रहे साली न होने का मलाल…….!  आज के इस रंगीन मौसम में कोई कुछ भी कहे लेकिन हमारी तो आदत है बक – बक कहने की …… हमारी बक – बक का लोग भले ही अर्थ का अनर्थ निकाले पर यह बात तो सोलह आने सच है कि इस बार जब ससुराल में साली न हो , पडौसन मतवाली न हो तब हम जैसे लोग आखिर किससे कहे कि रंग – बरसे और बलम तरसे …….! किसी को यकीन हो न हो पर साली के लिए हर साल की तरह इस साल भी तरसे ……!  मुझे एक बात आज तक समझ में नहीं आती है कि लोग साली के बिना होली या रंग पंचमी कैसी होती है……? कुछ लोगो जब यह कहते कि साली फुलझड़ी है तो कुछ लोग उसे एटम बम बताते है। मैं साली को मिसाइल या तोप मानने के बजाय उसे दिल के किसी कोने में मचलती जीजा – साली के बीच तय सामाजिक रिश्तो में बधी उस मर्यादा मानता हँू जिसमें स्वस्थ मनोरंजन – हास्य – परिहास – हसी – ठिठोली कहा जाता रहा है। भारतीय समाज में साली को को जो दर्जा मिला है वह मर्यादा से बंधा है लेकिन जब – जब मर्यादा अपनी सीमा से बाहर होती है किसी न किसी प्रकार की अप्रिय घटना या वारदात किसी न किसी परिवार को ले डुबती है। जो लोग साली को आधी घरवाली मानते है वे लोग साले को आधा घरवाला क्यों नहीं मानते…..? साले बारे में हमारे समाज की मानसिकता में अलग प्रकार की धारणा है। लोग कहते है कि खेत में नाला नहीं चाहिये , ससुराल में साला नहीं चाहिये , घर में आला नहीं चाहिये , फसल के लिए पाला नहीं चाहिये…..! जिस समाज में लोग खेत के बहने के लिए नाले को – बेड़ा गर्क होने पर साले को – घर के गिरने पर आले को – फसल के ठीक से न उग पाने के लिए पाले को जवाबदार मानते है ऐसे लोगो को चाहिये कि वे अपनी साली और साले के प्रति धारणाओं को बदले। मेरा मतलब यह कदापि यह नही है कि मेरी साली नहीं है तो मैं लोगो की साली के साथ उनके इंटर टीटमेंट में किसी खलनायक की भूमिका निभाऊ……! सामाजिक रिश्तो में तो यह कहा गया है कि छोटी साली बहन और बेटी की तरह होती है लेकिन ऐसा मानने वाले या समझने वाले बहँुत कम होगें। मेरे एक मित्र ने मुझे एक नया अनुभव बताया उसका कहना है कि कोई भी व्यक्ति किसी राह चलती युवती या महिला को आखिर किस रिश्ते में देखे……!  यदि वह उसे माँ समझे तो उसके बाप का चरित्र पर कीचड़ उछलेगा। बहन समझे तो जीजा की इमेज खराब होगी। भाभी समझे तो भैया पर मुसीबत आयेगी। मामी समझे तो बेचारा मामा ब्याज में जूते खायेगा। चाची समझेगा तो चाचा का हाल का बेहाल हो जायेगा। ऐसे में उसके सामने सामने वाली को कुछ और समझने और दुसरो के चरित्र पर लालछन लगे इससे अच्छा है कि वह खुद ही बदनामी का ठीकरा अपने सर पर फोड़ ले ……! सामाजिक रिश्तो में वैसे देखा जाये तो साली आधी की जगह पूरी घरवाली तो कई लोगो की बनी है लेकिन उन बहनो का भी बसा – बसाया घर संसार लंका की तरह जल कर राख हो गया जिसे सोने की कहा जाता रहा है।  सुखी परिवार तब तक सुखी रहता है जब तक की उस कोई आफत न आ आये लेकिन साली तो चलती फिरती आफत होती है। इसी तरह साला भी ज़हर के प्याले की तरह होता है जब तारक मेहता के उल्टा चश्मा की दया भाभी के भाई सुदंर की तरह साला मिल जाये…..!
कभी – कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि हमारे जैसे लोगो के साथ उनके ससुराल वालो ने इतना बड़ा अन्याय क्यो किया। यदि हमारे ससुराल वाले बता देते कि भैया तुम्हे अपनी बीबी के साथ में इनाम के रूप में कोई साली या आधी घरवाली की स्कीम नहीं मिलेगी…..! यदि वो पहले ही दुत्कार- फटकार – लताड़ देते तो हम उसी समय कोई दुसरा घर या ठौर ठिकाना ढुंढ लेते…..! कम से कम आज की इस उम्र की पीड़ा से पींड तो छुट जाता। अब उन लोगो को तो मेरे साथ मिल कर एक साली की डिमांड को लेकर युनियन बना लेनी चाहिये और हमें भी साली दिलाओ बैनर के तले सास – ससुर के द्धारा किये गये अन्याय के खिलाफ दस जनपथ पर गुहार लगानी चाहिये। सरकार सबके लिए कोई न कोई योजना – पैकेज – लालीपाप लेकर आ जाती है लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी किसी भी सरकार ने साली विहीन जीजा लोगो के लिए कोई विशेष पैकेज नहीं लाया और न दिया। ऐसे में हमें उन नारी शक्तियो की भी जरूरत पड़ सकती है जिनके कोई जीजा नहीं है। साझा प्रदर्शन से हो सकता है कि सरकार हम दोनो पीडि़त पक्षो के बीच कोई सुलहनाम या समझौता करवा दे जिसके चहते बिना जीजा वाली नारी को जीजा और बिना साली वाले जीजा को साली मिल जाये। सरकार को ऐसी अति महत्वाकांक्षी योजनाओ को सरकारी मोहर लगानी चाहिये लेकिन सरकार को ऐसे लोगो के बारे में सोचने के बजाय वह बिना वजह के पाकीस्तान और अमेरिका के पीछे पड़ी रहती है। अब देश के राजनैतिक दलो का भी हाल इस अहम मुद्दे पर संतोषप्रद नहीं है। अब नेतओ की बात करे तो उनकी तो सेके्रटी साली की तरह ही होती है जो कि उनके हर परसनल फाइलो को निकालती और संभालती रहती है। ऐसे में राजनैतिक पाटी के नेता भी इस अहम अंतराष्ट्रीय सवाल पर क्यों आ गले पड़ जा की तरह महत्व दे। इस देश में साली के बिना चांद पर जाने की या चांद हो जाने की परिकल्पना नही की जा सकती। अथ श्री साली पीड़ा अध्यात्म को अब मैं यह पर समाप्त करता हँू क्योकि मुझे किसी ने बताया कि इंटरनेट की गुगल बेव साइट पर सर्च इंजीन में डब्लयू – डब्लयू साली डाट काम लिख कर सर्च करने से साली मिल सकती है। अब आप लोगो से मैने साली के न होने की जो पीडा बाटी है उसे किसी से मत कहना वरना मैं समाज में किसी को मँुह दिखाने के लायक नहीं रहँूगा क्योकि जिसकी भी साली होगी वह मुझे तिस्कार की दृष्टि से देखेगा तथा हर राह चलती वह नारी भी मुझे देख कर ताने मारती फिरेगी और अपनी सखी – सहेली से कहती फिरेगी देखो बेचारा कितना बदनसीब है उसके साली भी उसके करीब नहीं है। अब मैं इन सब बातो को यही पर विराम देते हुये उस ईश्वर से सिर्फ यही कह सकता हँू कि हे भगवान तेरा क्या चला जाता यदि तू मुझे घरवाली के साथ – साथ एक साली दे जाता……!

पंडित जी मेरे मरने के बाद , इतना कृष्ट उठा लेना
मदिरा जल की जगह , ताप्ती का जल पिला देना
व्यंग्य :- रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला
कल रात जब मैं रायपुर से छत्तिसगढ एक्सप्रेस से बैतूल वापस लौटा तो रात के ढाई बज चुके थे। ऐसे समय जब रात आधी ज्यादा बीत जाये तब नींद कहाँ आती है। रात को चाय पीकर जब मैने टीवी चालू की तो मेरी पंसीदा फिल्म रोटी – कपडा और मकान आ रही थी। यह फिल्म उस दौर की है जब मेरी शादी भी नहीं हुई थी। इसलिए जवानी के दिनो की मनोज कुमार की इस फिल्म की अभिनेत्री जीनत अमान मेरे दिल के किसी कोने में भी हलचल मचाने लगी थी। उस समय का लोकप्रिय गाना मैं ना भूलूंगा — मैं ना भूलंूगी — इस गीत के आधी रात को बजने के बाद मुझे अपने सपनो की जीवन संगनी की परिकल्पना किसी चलचित्र की तरह मेरी आँखो के पटल के सामने चलने लगी। मैं उस फिल्म का दुसरा गीत को भी कभी नहीं भूल सकता क्योकि उस गीत ने आज के इस समय में मेरी सोच में जमीन आसमान का परिवर्तन ला दिया। उस समय के रामू में और आज के रामू जमीन आसमान का इसलिए फर्क आ गया क्योकि वह उम्र थी गंगाजल की जगह मदीरा पीने की लेकिन पता नहीं क्योकि उस न तो गंगा मिली न शराब और रह गये यूँ ही प्यासे के प्यासे—– आज जब लोग चाहते कि मैं गंगाजल की जगह शराब पीऊ तो शराब पीने की इच्छा न तब हुई और न अब—- आज तो ऐसा लगता है कि हम मरने से पहले ही अपनी वसीयत कर जाये  कि पंडित जी मेरे मरने के बाद मेरे मँुह में मदिरा जल की जगह ताप्ती जल पिला देना। आज लोग ताप्ती की जगह मदिरा को पीने में अपनी प्रतिष्ठा समझते है। पता नहीं लोगो को क्यूँ शराब – शबाब – कबाब का चस्का लग गया है जो कि मृत्यु की पहली सीढ़ी है।  जीवन एक चक्र है जिसमें लोगो का आना – जाना एक नियती का चक्र है जिसके तहत जो आया है उसे एक न एक दिन जाना है। मनोज कुमार की उस फिल्म की एक नायिका अरूणा ईरानी पर फिल्माया गया वह गाना आज के पंडित जी के ऊपर सटीक बैठता है क्योकि कहना नहीं चाहिये कि अधिकांश पंडित जी अपने मँुह मे गंगा जल कीह जबह मदीरा जल का ही सेवन करने लगे है। मेरे दोस्त तो दूर मेरे दुश्मन भी यही चाहत पाले है कि मैं भी किसी भी तरह से शराबी हो जाऊ और उनकी तरह यहाँ – वहाँ पर कटोरा लेकर दारू मांगता फिरू लेकिन मेरे लिए यह सब इसलिए मुनकीन नहीं क्योकि बचपन से ही मैने शराब से बिडगते परिवारो को और अपने नाते – रिश्तेदारो के हश्र को देखा है। मैं नहीं चाहता कि मेरे बारे में कम से कम लोग यह तो नहीं कहे कि वो देखो साला दारू कुटट दो पैग छाप पत्रकार जा रहा है जिससे अध्धी – पौवा देकर जो चाहे छपवा लो…… आज की पत्रकारिता में लोगो की भीड बढने का वज़ह भी कुछ हद तक फ्री की शराब और कबाव भी है। लोगो जब बिना हाथ पांव चलाये रोज कोई न कोई बकरा दारू पिलाने के लिए या फिर नरेन्द्र जैसा कथित छपास रोग की पीडा से ग्रसित व्यक्ति मिल जाये तब तो उसकी हर रात रंगीन होगी। आज बैतूल जिले के पत्रकारो को रोज ताप्ती जल पीने की या उसमें नहाने की नसीहत देना बेकुफी होगा क्योकि उसे तो सुबह – दोपहर – शाम को बस कोई भी मुज्जी चाहिये। बैतूल शहर में ही नहीं गांवो में भी पागलो की और मुर्खो की कमी नहीं है। एक ढुंढो – दस हजार मिलेगें। आज बैतूल जिले में ही नहीं दिल्ली – भोपाल और गांव – गांव में पेपर बेचने वाले हाकर पत्रकार बन गये स्थिति तो यह आने वाली है कि हम कैमरा पकडने वाला कैमरामेन की जगह न्यूज चैनल का पत्रकार मिलेगा जिसके एक सेकण्ड का पैसा नहीं बल्कि रूपैया होगा वह भी दस – पाच में न होकर हजारो में होगा। आज बैतूल जिले की पत्रकारिता को आवश्क्यता इस बात की है कि जिले भर के पत्रकारो को पहले खुब शराब पिला कर उन्हे ताप्ती में तब तक डुबाये रखना है जब तब की वे शराब और शबाब से तौबा न कर ले। मैं तो यही चाहता हँू पता नहीं कितने लोग मेरी नसीहत पर खरे उतरते है। अंत में माँ ताप्ती सबका भला करे पीने वाले का भी और पिलाने वाले का भी सबसे बाद मे मेरे जैसे नहीं पीने वाले का भला का जिससे की समाज का कथित सुधार हो सके। एक बार फिर उस रोटी – कपडा और मकान के दर्द को परिभाषित करने वाली फिल्म में व्यक्त की गई मनोज ऊर्फ भारत कुमार की पीडा को मैं अपनी पीडा समझ कर अपनी वसीसत करना चाहता हँू कि मरने के बाद उसके साथ लोग जो करना है वह करे लेकिन यदि संयोग से कोई पंडित उस अंतिम यात्रा में साथ रहे तो वह इतना कृष्ट जरूर करे कि मेरे मँुह में ताप्ती जल जरूर हो।

शादी के नाम पर कमसीन युवतियो की खरीदी बिक्री
आलेख – रामकिशोर पंवार
उस दिन अनिता कुछ परेशान थी. पुछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया . उसकी खास सहेली ने भी उससे कुछ पुछने की कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सकी. गांव का रामदीन काका जब हैरान- परेशान अनिता के पास आया तो वह उसे देख कर रो पड़ी. पुछने पर उसे पता चलाकि आखिर माजऱा क्या है . पिछले कई दिनो से उसके गांव से उसे बाहर काम दिलवाने के नाम पर कुछ लोग उसका शारीरिक शोषण कर रहे थे लेकिन उसने अभी तक बदनामी के डर से किसी को कुछ नहीं बताया  लेकिन जब जब बर्दास्त के बाहर की बात आ गई  तो फिर उसने अपना मुँह आखिर एक दिन खोल कर उन लोगो को बेनकाब कर ही डाला जो कि भेली – भाली युवतियो को काम के बहाने बाहर ले जाकर बेच दिया करते थे या फिर उनका शारीरिक , मानसिक , आर्थिक शोषण करते थे . बरसो से बैतूल जिले की सैकड़ो आदिवासी तथा गैर आदिवासी युवतियाँ ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाती है. अकसर सुनने को मिलता रहता है कि ऐसी कई युवतियों का ठेकेदार और उसके सुपरवाइजर शारीरिक , आर्थिक , मानसिक शोषण करते रहते है. बैतूल जिले मेें ऐसी घटनाए आम होती चली जा रही है. हाल ही में बैतूल जिले की दो विधानसभा क्षेत्र आमला एवं बैतूल के दो आदिवासी ग्रामीणों ने छह माह पूर्व से अपनी नाबालिग लड़कियों के अपहरण और उन्हें बेचने की शंका जाहिर करते हुए शपथ पत्र के साथ एसपी बैतूल को शिकायत की है. जिसमें उन्होंने स्थानीय एक आदमी और महिला के अलावा गुजरात के एक ठेकेदार पर शक जाहिर किया है. रंगलाल पुत्र सोमजी निवासी बघवाड़ थाना आमला और फूलेसिंह पुत्र मंगू निवासी कनारा थाना बैतूल ने एसपी को एक आवेदन देकर अपनी पुत्रियों इमरती उर्फ झब्बो आयु 15 वर्ष एवं सरस्वती आयु 13 वर्ष को मजदूरी करने के बहाने पाठा डेम  (गुजरात) ले जाने के बहाने उसके तथाकथित अपहरण करने की आशंका व्यक्त करते हुए एक शिकायत पत्र पुलिस अधिक्षक को शपथपत्र के साथ दिया है. शपथ पत्र के अनुसार गुजरात के किसी शर्मा ठेकेदार द्वारा वहां बन रहे पाठा डेम पर मजदूरी करने के नाम पर बघवाड़ से गुजरात ले जाई गई दो नाबालिग आदिवासी युवतियां संदिग्ध अवस्था में गायब हो गई है. जिसको लेकर उनके परिजनों ने जिला पुलिस अधीक्षक को आवेदन देकर कार्रवाई की मांग की है. प्राप्त जानकारी अनुसार थाना आमला के ग्राम बघवाड़ निवासी रंगलाल पिता सोमजी गोंड (45) एवं उसकी धर्मपत्नि बिस्सोबाई तथा थाना बैतूल के ग्राम कनारा निवासी फूलेसिंह पिता मंगू गायकी (35) तथा उसकी पत्नि असंतीबाई ने पुलिस अधीक्षक को शिकायत की कि ग्राम कनारा पिपलाढाना निवासी तिलक पिता जंगली शिवकली एवं गुजरात का कोई ठेकेदार शर्मा विगत दिनों सितंबर माह में गांव आया था और यहां से 60 रूपए प्रतिदिन मजदूरी देने के नाम पर कई नौजवान युवक युवतियों सहित इनका पुत्री इमरती उर्फ झब्बो (15) तथा सरस्वती (13) को भी ले गया. गत्ï सप्ताह में गांव की ही सगंती पत्नि गंगाराम जो इन्हीं के साथ काम पर गई थी. वापस आई उसने बताया कि इमरती और सरस्वती काम पर से लापता है. इस बारे में जब इन्हें गुजरात काम पर ले जानी वाली शिवकली एवं ठेकेदार शर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. अब एसपी को शिकायत करने आये दोनों परिवार वालों को शंका है कि तिलक शिवरती एवं शर्मा ठेकेदार ने दोनों नासमझ लड़कियों को कहीं बेच दिया है अथवा उनकी जान ले ली है. ग्राम बघवाड़ एवं कनारा के दोनों आदिवासी परिवारों ने संयुक्त रूप से एस .पी . विवेक शर्मा को दिए एक आवेदन में कार्रवाई करने की मांग की है. इस पत्र के अनुसार गणेश चतुर्थी के समय गुजरात का ठेकेदार शर्मा पाठा डेम  पर काम कराने के लिए मजदूर लेने गांव आया था. तथा गांव के बहुत सारे लड़के-लड़कियों को ले गया. चूंकि बहुत सारे लोग गए थे. इसलिए ये  दोनों भी अपनी लड़कियों को भेजकर निश्चिंत थे. आज से 8 दिन पहले इन्हीं के गांव की सगन्ती ने काम से लौटकर आकर बताया कि इमरती और सरस्वती वहां बांध स्थल पर नहीं है? उक्त खबर सुनने के बाद से दोनो युवतियों के माता- पिता काफी हैरान एवं परेशान है. इन लोगो ने अपने स्तर पर अपनी बेटी की खोज खबर ली पर जब कुछ भी पता नही चला तो दोनो शिकायतकर्ताओं ने गांव की ही शिवकली बाई नामक उक्त महिला से पूछताछ की, जिसने इन लड़कियों की जवाबदारी ली थी. उसके द्घारा बताई गई जानकारी के आधार पर दोनो युवतियों के परिजन गुजरात स्थित पुनासा बांध गए, लेकिन उन्हे उनकी बेटियाँ नही मिली और ना उनका कोई पता लगा. हताश -लाचार उक्त युवतियों के परिजन ने बैतूल आकर पुलिस का दरवाजा खटखटाया.
इन शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि उनकी नाबालिग लड़कियों को शर्मा ठेकेदार ने कहीं बेच दिया है ? या इनके साथ कुछ गलत काम करके उन्हें मार डाला होगा ?  उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले से हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है. काम का लोभ लालच देकर अकेले बैतूल जिले में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मध्यप्रदेश के दर्जनो आदिवासी जिलो से कमसीन नाबालिग युवतियों की खरीदी- बिक्री का अंतहीन सिलसिला इन पंक्तियो के लिखे जाने तक जारी है . जारी है. महाकौशल और सतपुड़ाचंल से दो दर्जन से भी अधिक युवतियों  के उनके तथाकथित कार्यस्थल से लापता होने तथा बाद में उनके बेचे जाने की शिकवा शिकायते  सुने बरसो बीत गए लेकिन पुलिस नहीं जागी जो भी लड़की दलालो के चुंगल से भाग कर आई है उन्होने अपनी जान को जोखिम में डाल कर उक्त साहस किया है. इतना सब कुछ होने के बाद भी आज भी बैतूल जिले की सैकड़ो आदिवासी तथा गैर आदिवासी युवतियाँ ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाती है. अकसर सुनने को मिलता रहता है कि ऐसी कई युवतियों का ठेकेदार और उसके सुपरवाइजर शारीरिक , आर्थिक , मानसिक शोषण करते रहते है. बैतूल जिले मेें ऐसी घटनाए आम होती चली जा रही है. हाल ही में बैतूल जिले की दो विधानसभा क्षेत्र आमला एवं बैतूल के दो आदिवासी ग्रामीणों ने छह माह पूर्व से अपनी नाबालिग लड़कियों के अपहरण और उन्हें बेचने की शंका जाहिर करते हुए शपथ पत्र के साथ एसपी बैतूल को शिकायत की है. जिसमें उन्होंने स्थानीय एक आदमी और महिला के अलावा गुजरात के एक ठेकेदार पर शक जाहिर किया है. रंगलाल पुत्र सोमजी निवासी बघवाड़ थाना आमला और फूलेसिंह पुत्र मंगू निवासी कनारा थाना बैतूल ने एसपी को एक आवेदन देकर अपनी पुत्रियों इमरती उर्फ झब्बो आयु 15 वर्ष एवं सरस्वती आयु 13 वर्ष को मजदूरी करने के बहाने पाठा डेम  (गुजरात) ले जाने के बहाने उसके तथाकथित अपहरण करने की आशंका व्यक्त करते हुए एक शिकायत पत्र पुलिस अधिक्षक को शपथपत्र के साथ दिया है. शपथ पत्र के अनुसार गुजरात के किसी शर्मा ठेकेदार द्वारा वहां बन रहे पाठा डेम पर मजदूरी करने के नाम पर बघवाड़ से गुजरात ले जाई गई दो नाबालिग आदिवासी युवतियां संदिग्ध अवस्था में गायब हो गई है. जिसको लेकर उनके परिजनों ने जिला पुलिस अधीक्षक को आवेदन देकर कार्रवाई की मांग की है. प्राप्त जानकारी अनुसार थाना आमला के ग्राम बघवाड़ निवासी रंगलाल पिता सोमजी गोंड (45) एवं उसकी धर्मपत्नि बिस्सोबाई तथा थाना बैतूल के ग्राम कनारा निवासी फूलेसिंह पिता मंगू गायकी (35) तथा उसकी पत्नि असंतीबाई ने पुलिस अधीक्षक को शिकायत की कि ग्राम कनारा पिपलाढाना निवासी तिलक पिता जंगली शिवकली एवं गुजरात का कोई ठेकेदार शर्मा विगत दिनों सितंबर माह में गांव आया था और यहां से 60 रूपए प्रतिदिन मजदूरी देने के नाम पर कई नौजवान युवक युवतियों सहित इनका पुत्री इमरती उर्फ झब्बो (15) तथा सरस्वती (13) तथा अनिता को भी ले गया. गत्ï सप्ताह में गांव की ही सगंती पत्नि गगाराम जो इन्हीं के साथ काम पर गई थी. वापस आई उसने बताया कि इमरती और सरस्वती काम पर से लापता है. इस बारे में जब इन्हें गुजरात काम पर ले जानी वाली शिवकली एवं ठेकेदार शर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. अब एस .पी को शिकायत करने आये दोनों परिवार वालों को शंका है कि तिलक शिवरती एवं शर्मा ठेकेदार ने दोनों ना समझ लड़कियों को कहीं बेच दिया है अथवा उनकी जान ले ली है. ग्राम बघवाड़ एवं कनारा के दोनों आदिवासी परिवारों ने संयुक्त रूप से तत्कालिन एस .पी . विवेक शर्मा को दिए एक आवेदन में कार्रवाई करने की मांग की है . इस पत्र के अनुसार गणेश चतुर्थी के समय गुजरात का ठेकेदार शर्मा पाठा डेम  पर काम कराने के लिए मजदूर लेने गांव आया था. तथा गांव के बहुत सारे लड़के-लड़कियों को ले गया.चूंकि बहुत सारे लोग गए थे. इसलिए ये  दोनों भी अपनी लड़कियों को भेजकर निश्चिंत थे. आज से 8 दिन पहले इन्हीं के गांव की सगन्ती ने काम से लौटकर आकर बताया कि इमरती और सरस्वती वहां बांध स्थल पर नहीं है? उक्त खबर सुनने के बाद से दोनो युवतियों के माता- पिता काफी हैरान एवं परेशान है. इन लोगो ने अपने स्तर पर अपनी बेटी की खोज खबर ली पर जब कुछ भी पता नही चला तो दोनो शिकायतकर्ताओं ने गांव की ही शिवकली बाई नामक उक्त महिला से पूछताछ की, जिसने इन लड़कियों की जवाबदारी ली थी. उसके द्घारा बताई गई जानकारी के आधार पर दोनो युवतियों के परिजन गुजरात स्थित पुनासा बांध गए, लेकिन उन्हे उनकी बेटियाँ नही मिली और ना उनका कोई पता लगा. हताश -लाचार उक्त युवतियों के परिजन ने बैतूल आकर पुलिस का दरवाजा खटखटाया . इन शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि उनकी नाबालिग लड़कियों को शर्मा ठेकेदार ने कहीं बेच दिया है ? या इनके साथ कुछ गलत काम करके उन्हें मार डाला होगा ? पूर्व जनपद सदस्य बिस्सो बाई के अथक प्रयासो से आखिर पुलिस कुछ दबाव में आई और उसने सबसे पहले अनिता को उन लोगो के  चुंगल से मुक्त करवाया जो कि उसका अब तक दैहिक एवं आर्थिक तथा अन्य शोषण कर रहे थे . काम के बहाने अनिता जैसी कई युवतियाँ जिसमें इमरती और सरस्वती भी शामिल है उनको खोज पाने में पुलिस आज तक अक्षम साबित रही है. उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले से हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है
स्टाम्प पेपर पर बिकी नाबालिग युवती
एक नाबालिग लड़की को बैतूल से देवास ले जाकर बेचने के सनसनीखेज मामले में बैतूल पुलिस ने एक महिला सहित पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है . इनमें तीन आरोपी लड़की को खरीदने वाले और दो बेचने वाले है .लड़की को बेचने वालों में एक महिला भी शामिल है .बेचे जाने के मामले में लड़की द्वारा पूर्व में अपने माता-पिता को दोषी बताने की शिकायत को बाद में लड़की ने खुद झूठा बताया और कहा कि माता पिता से नफरत होने के कारण उनका भी नाम रिपोर्ट में लिखा दिया था .बैतूल जिले के संवेदनशील एसपी विवेक शर्मा के मार्गदर्शन में शाहपुर थाना प्रभारी उपनिरीक्षक मोहनसिंग सिंगोरे ने 48 घंटे में बैतूल से मुलताई देवास तक मामले की तहकीकात करके पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है . घटनाक्रम का सबसे गंभीर पहलू यह है कि नाबालिग लड़की को खरीदने वाले आरोपियों ने बकायदा 100 रूपये के स्टाम्प पेपर पर खरीदी-बिक्री का अनुबंध करवाकर रखा था . जिसे पुलिस ने जप्त कर लिया है . बेचने के आरोप में गिरफ्तार बैतूल जिले के बडग़ांव निवासी नथियाबाई ने बेचने की बात स्वीकार करते हुए  बताया कि-वहीं लड़की को खरीदने वाले देवास निवासी संतोष ने कहा कि लिखा पढ़ी इसलिए की ताकि लड़की भागे नहीं .उसने कहा कि हमने लड़की को शादी करके घर में रखा था .वहीं समूचे घटनाक्रम में सक्रियता से कार्य करने वाले शाहपुर थाना प्रभारी मोहन सिंगोरे ने बताया कि नाबालिग अनामिका को बेचने के पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, शेष बचे आरोपियों को तलाशा जा रहा है .वहीं दूसरी ओर मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक विवेक शर्मा का मानना है कि मामला इतना ही नहीं माना जा सकता .उन्होंने कहा कि यह जांच भी कराई जाएगी कि क्या आरोपियों ने बैतूल जिले की और भी लड़कियों को बेचा है . देखना यह है कि नाबालिग लड़कियों की खरीद फरोख्त के मामले में और कितनी लड़कियों को बेचे जाने का खुलासा हो पाता है .
बीते वर्ष 21 जनवरी 2003 को जब इटारसी रेल्वे स्टेशन पर पेंचव्हली एक्सप्रेस से आमला आ रहे रामप्रसाद ने ‘ज्योत्सना सिस्टरÓ के साथ एक तीखे नाक नक्श वाली लड़की को देखा तो उसके कदम बरबस ज्योत्सना की ओर चल पड़े। पास आने पर ज्योत्सना से रामप्रसाद ने पूछा अरी सिस्टर आप कहां जा रही हो? और ये कौन है आपके साथ? पास खड़ी लड़की के बारे में उसने पूछा .ज्योत्सना बोली-अरे आपने इसे नहीं पहचाना यही तो आपकी भांजी रानी (काल्पनिक नाम) है, जो मेरे साथ आपके गांव में रहती थी .रामप्रसाद को याद आ गया बीता हुआ कल और फिर उसने रानी को पाने के लिए जो कहानी रची, उसी का परिणाम यह निकला कि शाहपुर पुलिस ने रानी जानसन आत्मज अजय जानसन उम्र 15 वर्ष की शिकायत पर आरोपी रामप्रसाद उम्र 25 वर्ष, सरवन आत्मज भैरूलाल 25 वर्ष, बाबूलाल (23), संतोष (25 वर्ष) निवासी फोफल्या देवास के विरूद्ध बलात्कार तथा श्रीमती नथिया बाई जौजे साबूलाल उम्र 40 वर्ष निवासी बडग़ांव, किशोर छगन आत्मज धन्नालाल के विरूद्ध 372, 373, 376, 34 का प्रकरण दर्ज कर पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की है .
इस प्रकरण का प्रमुख आरोपी रामप्रसाद ने आज से करीब एक वर्ष पूर्व इटारसी रेल्वे स्टेशन से शुरू होती है . ज्योत्सना जानसन ग्राम खल्ला में रामप्रसाद के मकान में रहती थी .ज्योत्सना इस गांव में नर्स थी, जिसकी वजह से लोग उसे सिस्टर कहकर पुकारते थे. रामप्रसाद भी ज्योत्सना को अपनी तथाकथित मुंहबोली बहन कहा करता था .जब ज्योत्सना ग्राम खल्ला में रहती थी उस समय रानी की उम्र पांच-छह साल की थी . इस बीच मुलताई से आमला तबादला हो जाने के कारण ज्योत्सना जानसन आमला आकर रहने लगी . इस बीच बीमार रहने के कारण अजय जानसन की अकाल मौत हो गई .पति के मरने के बाद ज्योत्सना जानसन ने मंडला निवासी रज्जाक से शादी कर ली और वह उसकी पत्नी बनकर उसके साथ रहने लगी . इस बीच रानी ने बचपन से जवानी की दहलीज में पांव रखा और यही से उसकी बर्बादी की कहानी ने नया रूप ले लिया .
दिल्ली ले जाते दलाल पकड़ाये महाकौशल के जबलपुर जिले के भुवा बिद्दिया क्षेत्र की भोली-भाली आदिवासी लड़कियों को दिल्ली में बेचने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है. देह दलाल 18 लड़कियों को बेच चुके थे. 20 लड़कियों की दूसरी खेप ले जाते समय एसएएफ के एक सेवानिवृत्त सेनानी श्री भोला पोर्ते की पहल पर पकड़े गए. जबलपुर से सिर्फ सौ किलोमीटर दूर भुवा बिद्दिया के वनवासी आजादी के 58 वर्ष बाद भी नारकीय स्थिति में जीवन-यापन कर रहे हैं. उनकी इस स्थिति का लाभ दलाल लोग उठा रहे हैं. इन लड़कियों को नौकरी दिलाने का प्रलोभन देकर देह व्यापार में लगाने का षडय़ंत्र चल रहा है. नरहरगंज भुवा बिद्दिया के घने वनांचलों में स्थित दो सौ आदिवासी घरों की एक गुमसुम और गुमनाम-सी बस्ती है. इस पतित धंधे में लिप्त चार व्यक्तियों को मोतीताला पुलिस के हवाले किया गया, जहां मुक्त कराई गई लड़कियों को कड़ी सुरक्षा में रखा गया है. हिरासत शुदा व्यक्तियों में दो महिलाएं, बीस वर्षीय मुक्ता तथा पैंतीस साल की बिनिया और भूरा तथा एक शासकीय शिक्षक श्रीराम अहिरवार शामिल हैं. ये चारों धंधेबाज पंद्रह से अठारह वर्ष उम्र की बीस लड़कियों को जंगल के अलग-अलग रास्तों से पैदल काटीगहन मोटर मार्ग तक ला रहे थे, जहां से उन्हें दिल्ली ले जाया जाना था. दिल्ली में उन लड़कियों के सौदागर पहले ही भुवा बिद्दिया क्षेत्र की करीब अठारह लड़कियों को बेच चुके थे. ये बीस लड़कियां अगली खेप में बेची जानी थीं. आरोपियों ने इन अभागी लड़कियों को प्रलोभन दिया था कि दिल्ली में उनको बढिय़ा नौकरी दिलाई जाएगी जिससे वे अपने परिवार की गरीबी दूर कर सकने में मददगार साबित होगी. चूंकि अपहृत युवतियों में से अधिकांश के अभिभावक पेशे से मजदूर और लकड़हारे हैं अथवा महुआ बीनकर अपनी जिंदगी की गाड़ी आगे खींचते हैं, लिहाजा निर्धनता से मुक्ति पाने और हाथ में चार पैसे आने के प्रलोभवन ने नर्मदा नदी के किनारे बसे वनांचलों की इन दुर्भाग्यग्रस्त बेटियों को दिल्ली में नई रोशनी और नई जिंदगी की चमक नजर आई और वे जिस्म के इन दलालों के झांसे में आ गई. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ इन युवतियों के अपहरण का मामला दर्ज किया है. अपहृत युवतियों को उनके अभिभावकों के हवाले कर दिया है. भुवा बिद्दिया और डिंडोरी के वनांचल आदिवासी विकास के नाम पर सरकारी विभागों में चल रहे शोचनीय भ्रष्टïाचार का शर्मनाक आईना बन चुके है. श्री कमलनाथ के संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की दशा तो कदाचित सर्वाधिक बदतर है, जहां जमीन के नीचे बारह सौ फुट की गहराई में बसे पातालकोट में अनाज के अभाव में वहां के बाशिंदे जिंदा बंदरों और बैलों को मारकर अपनी भूख बुझा रहे हैं. पातालकोट और कुंडम जैसे दुर्गम स्थलों के वनवासी इन दिनों जबलपुर में रिक्शा चलाकर अपना पेट भर रहे हैं. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बैतूल सहित प्रदेश के अन्य जिलों से भी हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है.ये बीस लड़कियां अगली खेप में बेची जानी थीं. आरोपियों ने इन अभागी लड़कियों को प्रलोभन दिया था कि दिल्ली में उनको बढिय़ा नौकरी दिलाई जाएगी जिससे वे अपने परिवार की गरीबी दूर कर सकने में मददगार साबित होगी. चूंकि अपहृत युवतियों में से अधिकांश के अभिभावक पेशे से मजदूर और लकड़हारे हैं अथवा महुआ बीनकर अपनी जिंदगी की गाड़ी आगे खींचते हैं, लिहाजा निर्धनता से मुक्ति पाने और हाथ में चार पैसे आने के प्रलोभन ने नर्मदा नदी के किनारे बसे वनांचलों की इन दुर्भाग्यग्रस्त बेटियों को दिल्ली में नई रोशनी और नई जिंदगी की चमक नजर आई और वे जिस्म के इन दलालों के झांसे में आ गई. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ इन युवतियों के अपहरण का मामला दर्ज किया है.
गांव की शादीशुदा महिलाये भी नही बच रही दलालो से
आपको सुन कर बड़ा ही आश्चर्य लगेगा कि बैतूल जिले की आदिवासी युवतियो के बेचे जाने के मामलो में हाल ही की एक घटना ने सनसनी पैदा कर दी। बैतूल जिले में सक्रिय महिलाओं और नवयुवतियो के दलालो के हाथो जब युवतियां नही चढ़ी तो उन्होने ने एक शादीशुदा महिला को ही चालिस हजार रूपये में बेच डाला। बैतूल जिले की मुलताई तहसील के बोरदेही थानांतगर्त ग्राम तरोड़ा बुर्जग की विवाहित महिला श्रीमति रामकला बाई को पास के सोनेगांव के दो युवक उसे मां की बीमारी का बहाना बना कर ग्वालियर ले गये जहां पर उन युवको ने हरियाणा की महिला को उसे चालिस हजार बेच दिया। बबलू पिता गुलाब महाराजे निवासी ग्राम सोनेगांव तथा तरोड़ा ग्राम निवासी अनिल पिता अनिल राव ने झुठी खबर देकर उसे बबलू की बहन जो कि ग्वालियर रहती है वहां ले जाकर उसे दो महिलाओं को बेच दिया जो उसे हरियाणा में किसी ठाकुर को बेच आई थी। हरियाणा से किसी तरह बच निकली इस महिला ने बैतूल पहँुचने पर अपनी आपबीती पुलिस को सुनाई जिस पर पुलिस ने फिलाहल मामला दर्ज न करते हुये उसे जांच में शामिल कर लिया है।
,दहेज लाओ…दुल्हन ले जाओ!
दहेज के नाम पर कन्या पक्ष का आर्थिक शोषण करने की कुप्रथा भले ही शहरी संस्कृति में पनप रही हो, मगर बैतूल जिले में सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों में निवास करने वाली कोरकू आदिवासी जनजाति ने साबित कर दिया कि अभी वे इतने लाचार, मजबूर और भिखमंगे नहीं हुए कि कन्यापक्ष को दहेज के नाम पर गीले कपड़े की तरह निचोड़ डालें. कोरकू आदिवासी जनजाति में लड़का तो एक तयशुदा रकम ससुर के हाथ में रखता है तब उसकी बेटी से शादी करता है. यह रकम बाद में लड़की को दे दी जाती है. बैतूल जिले का जोडिय़ा गांव सतपुड़ा  पर्वत की श्रृंखलाओ में घने जंगलों के बीच बसा हुआ है. शहरी संस्कृति यहां भले ही पहुंच नहीं पायी मगर यहां  के कई युवा रोजगार की तलाश में शहरों में पहुंच गये हैं. 25 वर्षीय शिबू और बीस वर्षीया डाली, ऐसे ही नवदम्पत्ति हैं जो साथ साथ रहते हुए मेहनत मजदूरी तो कर रहे है मगर इनकी शादी को भी अभी तक समाज से वैधता नहीं मिली हैं, क्योंकि शिबू को अपने ससुर के पास 20 हजार रूपए जमा करना है. इसके पश्चात ही उसकी शादी को हरी झंडी मिलेगी. शिबू अपने दर्जनभर साथियों के साथ दिल्ली में पिछले तीन माह से पैसा कमाने आया हुआ है. दोनों दिल्ली में कहीं भवन निर्माण के काम में मजदूरी कर रहे हैं. शिबू और डाली पिछले छह माह से पति-पत्नि के रूप में रह रहे हैं मगर समाज ने उनकी शादी को अभी तक मान्यता नहीं दी है. शिबू इस बात से बेहद खुश है कि अभी तक वह 16 हजार रू. अपने ससुर को सौंप चुका है. अब उसे केवल 4 हजार रू. अदा करने है. कोरकू आदिवासी समाज को इस उपलब्धि पर गर्व है कि अभी तक उनके समाज में बहू को दहेज के लिए जिंदा नहीं जलाया गया. किसी की लाड़ली बेटी को घर लाकर उसकी हत्या नहीं की. इसके विपरीत दूल्हा बनने वाला लड़का ससुर को रकम कमाकर पहले यह दिखा देता है कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है. साथ ही उसकी बेटी (अपनी पत्नि) का पालन पोषण करने में भी सक्षम है. इस प्रथा को कोरकू आदिवासी लोग ‘लमझियानाÓ कहते हैं. इस प्रथा के अनुसार लड़का व लड़की शादी के लिए तैयार होने के बावजूद लड़के को विवाह किए बिना दामाद के रूप में ससुर के घर रहना पड़ता है. इस दौरान वह तयशुदा रकम अपने ससुर को कमाकर देता है. इस कमाई में लड़की भी लड़के का साथ देती है. यह रकम अदा करते ही दोनों की विधिवत रूप से शादी कराकर बिदाई दी जाती है. इस रकम को लड़की का पिता अपने पास ही रखता है. जरूरत पडऩे पर पिता बाद में इस पैसे को अपनी बेटी को लौटा भी देता है।

”रावण जी मरने का क्या लोगें……!
आजकल पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व में बस हर कोई किसी से बस यही सवाल करता है कि ”बोलो क्या लोगें….? लेने – देने का प्रचलन बैतूल की जनपद के पास की गंगा की होटल के गंगा से लेकर अमेरिका की सीनेट के सदस्य तक के पास चलता है। वह भी आपसे यही सवाल करेगा कि ”कहिये आप क्या लेना पंसद करोगे…..?  विहस्की हो या रम मिट जाये सबके गम लेकिन लेने – देने की इस संगत से कोई नहीं बच सका है। यह बात को आप कही पर भी किसी भी प्लेटफार्म पर देख सकते है । श्रीमान बुरा मत मानिये लेकिन सच्चाई जानने के बाद हैरान भी मत होईयें क्योकि यह सच है कि आप किसी को भी कुछ भी काम बता दीजिए वह आपासे यह जरूर कहेगा कि ”बोले क्या दोगे.. अब यह भी कडुवा सच है कि लेने – देने की प्रकिया आपको हर वक्त कहीं भी दिखाई पड़ जाती है। आपकी घरवाली हो या बाहरवाली – सगी हो या मँुहबोली साली वह भी यही सवाल करेगी जीजा जी क्या लोगें…? बगैर लिये – दिये तो कुछ भी काम – धाम नहीं होने वाला..? अब यह बात अलग है कि दाऊद मेमन के डर से उसकी चिटठ्ी पर बिना कुछ लिये दिये बैतूल आकाशवाणी का उद्घोषक भाई पंसीदा फिल्म पार्टनर का गाना उन्हे सुना दे..! लेन -देने के इस कलयुग में जब रामलीला चल रही थी तब रावण बना व्यक्ति राम से लगातार युद्ध करने के बाद मरने का नाम ही नहीं ले रहा था तब बेचारा राम हैरान और परेशान हो गया। जब रावण मरने को तैयार नहीं हुआ तो रामलीला का डायरेक्टर उसके हाथ – पैर जोडऩे के लिए तैयार हो गया कि वह मर जा लेकिन रावण बना व्यक्ति इस जिद पर अड़ा रहा कि पहले राम बने व्यक्ति की साली से उसकी सेटिंग करा दे…….! राम और रावण के युद्ध में राम की साली कहाँ से आ गई ..? कई बार अकसर होता है कि कई मामले सिर्फ लेन -देन के चक्कर में उलझ कर रह जाते है। जबसे त्रेतायुग के राम ने रावण को मारा है उसके बाद से आज तक कलयुग का रावण राम के हाथो मरने का तैयार ही नहीं हो रहा है। आज इस देश में कलयुग का रावण कभी साम्प्रदायिका का रूप लेकर गोधरा का काण्ड करा देता है तो कभी काशी की बाढ़ बन कर प्रलय ला देता है। इस देश का क्या होगा जहाँ पर रावण कभी सिमी का जुबान बोलता है तो कभी बजरंग दल के उप्रदवी तत्वो की शक्ल में उत्पात मचाता है। कभी वासना का रूप लेकर अपनी बहु की अस्मत को लूटने वाले ससुर के रूप में रावण की करतूत सामने आती है तो कभी वह साध्वर ऋतुम्भरा  की वाणी से वैमनस्ता का ज़हर उगलने लगता है। आज का राम उसके सामने घुटने टेक कर देश के अरबो – खरबो आबादी के रूप में विवश होकर उसकी जुल्म – यातना को सहन करने का मजबुर हो जाता है। कई युगो तक कोई रावण के समान विद्धवान महापंडित नहीं हुआ है उस रावण को पता नही इस घोर कलयुग में ऐसा क्या नशा चढ़ गया है कि वह अपनी प्रजा सहित इस सृष्टि पर निवास करने वाले सभी जलचर – नभचार – निसचर सहित आम जन मानस को भी ना- ना प्रकार की यातनो के साथ शारीरिक – मानसिक – बौद्धिक – आर्थिक प्रताडऩा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। रावण से हम सभी का बहँुत पुराना रिश्ता रहा है। अगर कोई कहे कि वह रावण सगा नहीं है या उसका रावण से कोई सबंध नहीं है तो मै इसे नहीं मानता क्योकि रावण तो हर व्यक्ति में निवास करता है। रावण को बुराई का प्रतिक माना गया है। हर इसंान में कोई न कोई बुराई जरूर होती है। असत्य पर सत्य की विजय का प्रतिक है विजय दशमी दशहरा पर्व जिसे सभी लोग मनाते है। भगवान राम ने जब रावण का वध किया था तब उस समय उन्होने अपने अनुज लक्ष्मण से कहा था कि लक्ष्मण जाओं रावण से कुछ ज्ञान हासिल करो। जब लक्ष्मण रावण के सिर के सामने खड़े हुये तो भगवान राम ने लक्ष्मण को समझाया कि अगर किसी से कुछ  सीखना चाहते हो तो उसके चरणो में जाकर सीखो….! आज यदि राम अपने अनुज लक्ष्मण से कहता कि ” जाओ रावण से कुछ सीखो ……! तो वह बसी सवाल करता कि ”भैया रावण क्या लेगा…! कलयुगी रावण भी लक्ष्मण को देख कर यही पुछता ”पहले तू यह तो बता कि तू मुझसे ज्ञान लेने के बदले में क्या देगा….? आज के इस दौर में हालात तो यह हो चुके है कि पहली हो या कालेज हर कोई स्कूल या कालेज जाने वाला बच्चा अपने बाप से लेकर मास्टर – प्रोफेसर से बस यही सवाल करेगा कि ” बोलो क्या लोगो….! आजकल इस समय समय का चक्कर कहिये या फिर आदमी के घन चक्कर बनने का असर हर कोई इतना – उलझ गया है कि इस देश में मंहगाई – दहेज – वैमनस्ता – भुखमरी – गरीबी – लाचारी – व्याभीचारी – चोरी – चकारी – गददरी – मक्कारी – रूपी रावण के दस सिरो को काटने का साहस नहीं कर पा रहा है उसे इन सब दस सिरो वाले संकट रूपी रावण को बार – बार – मोबाइल पर मैसेज भेज कर यही सवाल पुछना पड़ रहा है कि हे दशानन तुम मेरे देश में नासूर की तरह फैले हुये हो प्लीज अपने मरने की कीमत तो बता दो…..? एक बार तो अपनी मौत के लिए ली जाने वाली रकम तो बता दो….? आखिर हम सब तो जान सके कि आप मरने का क्या लोगें…..? यदि रावण जी आप नहीं मरे तो इस कलयुग की जनता तड़प – तड़प कर मर जायेगी। हम मर जायेगें तो फिर हर साल रामलीला करने का या दशहरा के मनाने का क्या औचित्य रह जायेगा…? रावण जी एक बात दिल से कहना चाहता हँू कि आप माने या न माने लेकिन दिल की बात कह रहा हँू अब तो हमे भी आपको जलाने और आपके झुठे मरने के नाटक करने से ऊब होने लगी है क्योकि मेरे बच्चे भी यह सवाल करते है कि पापा जब त्रेतायुग में रावण मर गया तो फिर बार – बार उसके मरने क्रा नाटक क्यों मंचित किया जाता है….? कहीं ऐसा तो नही कि पापा आज तक रावण मरा ही नहीं हो ….? कई बार अज्ञानी बेटा भी ज्ञानवर्धक बाते कह जाता है तब यह सोचा जा सकता है कि कौन किसका बाप है….? आज के समय में देश के ही नही विश्व के हालात बता रहे है कि रावण मरा नहीं जिंदा है। रावण का जगंलराज आज भी श्री लंका ही नहीं ्रबल्कि अमेरिका में भी चल रहा है। आज दुनिया की नम्बर वन पोजिशन पर सिरमौर बना अमेरिका स्वंय कोई निर्णय लेेने की स्थिति में नहीं है तभी तो उसके देश की जनता को सददाम हुसैन रावण के रूप में दिखाई पड़ा और उसने उसे तब तक फाँसी पर लटकाये रखा जब तक कि वह पूरी तरह मर नहीं गया। अमेरिका को अपनी सुरक्षा के लिए सैकड़ो रावणो का डर सताने लगा है तभी तो हर किसी से डरा सहमा रहता है। मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम भारत के साथ संधि करने में उसे राम की मर्यादा की जगह रावण की कुटनीति दिखाई पड़ती है और इसी वज़ह से वह राम को भी रावण की शक्ल में देख कर बार – बार उसके मरने के लिए षडयंत्र रच कर अनेका आंतकवादियो को प्रशिक्षित कर उन्हे हथियार और पैसे देकर भारत में आंतकवाद का साम्राज्य स्थापित करने में लगा है। आज की स्थिति में अगर यदि हमें अपने देश और देश की जनता को सलामत रखना है तो रावण के प्रतिक बने दशानन से एक ही प्रश्र करना चाहिये कि रावण जी मरने का क्या लोगें….?

‘लाख छुपाओं छुप न सकेगा , राज है इतना गहरा ,
दिल की बता देता है असली – नकली चेहरा ……..!
रामकिशोर पंवार
बहुँत दिनो की बात है मैं कहीं जा रहा था। रास्ते में मुझे एक व्यक्ति मिला उसने मेरी ओर देखा कुछ पल के लिए वह सोचने लगा और फिर मुझसे कहने लगा कि ” क्यों भाई एक बात बताओगें क्या तुम कुछ दिनो से कोर्ट – कचहरी के मामलो को लेकर परेशान हो …….!   अनजान व्यक्ति से अपनी परेशानी के बारे में जानने के बाद मैं एक दम घबरा गया….. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैने उस अनजान व्यक्ति की ओर देखा और उसके पैरो पर गिर गया। उसने मुझे रोकना चाहा लेकिन तब तक मैंने उसके पांवो को पकड़ चुका था। वह व्यक्ति मुझसे बोला ”देख बेटा जैसा कह रहा हँू वैसा कर कोई तेरा बाल बांका भी नहीं कर पायेगा। उस व्यक्ति की सलाह मेरे काम में आई और मैं उसकी बताई सीख से आज भी कई प्रकार की मुसीबतो के बाद भी दुश्मनो के – दोस्तो के – वार – प्रतिवार से विचलीत नहीं हँू। उस व्यक्ति ने अपने बारे में बताया कि उसने चेहरा को पढऩे की विद्या अपने गुरू जी से सीखी थी। उसके अनुसार वह दिन में केवल एक ही बार किसी का चेहरा देख कर उसका भविष्य बता सकता है। चेहरा ही हर आदमी के सुख – दुख – आपदा – विपदा – उसके मन के मैल और उसके अच्छे कर्म का पता बता देता है। हर कोई किसी का चेहरा देख कर उसका भविष्य नहीं बता सकता। किसी फिल्मी गीतकार ने अपने तराने में ठीक ही लिखा है कि ”लाख छुपाओं छुन प सकेगा राज है कितना गहरा , दिल की बात बता देता है असली – नकली चेहरा …..!  ÓÓ पता नहीं क्यो लोग आज भी अपने चेहरे पर नकली मुखौटा लगाये घुमते – फिरते रहते है। आज बैतूल जिले की राजनीति में असली – नकली चेहरो की चर्चा जोरो पर चल रही है। एक गाना मैं जरूर आज के इस दौर पर गुण गुनाना चाहता कि ”चेहरा न देखो – चेहरे ने लाखो को लूटा , दिल सच्चा और चेहरा छुठा ……!  एक बात मैं अपने अनुभव के आधार पर नहीं बल्कि लोगो के अनुभवो के आधार पर बतौर सीख देश – दुनिया को बताना चाहता हँू कि इस भरी दुनिया मे ऐसे एक खोजो दस हजार मिलेगें जिन्हे चेहरो ने ही लूटा…..!   कोई किसी के चेहरे पर लूट जाता है कोई किसी के मोहरे पर …… लूट – खसोट का गोरखधंधा बरसो से चला आ रहा है। इस देश में प्यार में और दोस्ती में बेवफाई की एक वज़ह चेहरा भी रहती है क्योकि लोग अकसर कहते है कि उसके चेहरे के रंग – रूप पर न जा……! चेहरो के प्रति लोगो की दिन प्रतिदिन बदलती सोच पर किसी ने सही कहा है कि ”हम नहीं लूटते यदि चेहरा खुबसूरत न होता ……!   अब चेहरे की खुबसूरती पर लूटे लोग या फिर शहर के गुण्डे मवाली के हाथो पीटे लोग हर किसी को दर्द की पीड़ा यही सबक देती है कि ”अगर बेवफा तुझको पहचान जाते – खुदा की कसम हम मुहब्बत नहीं करते…..!   इस समय बैतूल जिले की राजनीति में भी कुछ चेहरो की ही चर्चा चौक – चौराहो पर गली – मोहल्लो में चल रही है। हर कोई असली -नकली को लेकर बहस करने लगता है। कोई कुछ कहता – कोई कुछ ….. हर आदमी के पास केवल एक ही सवाल रहता कि आखिर सहीं क्या है……!   कोई तो बतायें कि उन उठे हुये बवण्डरो के आसमान में उठने के पीछे की त्रासदी ……!  मेरे पास एक दिन एक व्यक्ति मोबाइल पर काल आया वह मुझसे पुछने लगा कि ” रामू भैया ज्योति किसी जाति की है……!  मैने उसे जब बताया कि ज्योति पंवार है तो वह एक दम सकुचा गया और मुझसे बोला क्यों रामू भैया सुबह से कोई और नहीं मिला क्या ……!   मैने जब उसे बताया कि ज्योति वास्तव में पंवार है क्योकि वह मेरे साथ तीन साल पढी है इसलिए मैं उसे जानता हँू……!  मेरे जवाब से वह जब संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने दुसरे व्यक्ति से मोबाइल पर मुझसे एक बार फिर वहीं सवाल किया। मैने भी उसे वही जवाब दिया तो वे दोनो सीधे मेरे घर आ धमके…… ज्योति की जाति को लेकर जिज्ञासु दोनो व्यक्तियों ने मुझसे तीसरी बार एक साथ वहीं सवाल किया कि रामू भैया सच बताओं न कि ज्योति किस जाति की है…..!  इस बार मुझसे रहा नहीं गया। मैने उन लोगो से ही सवाल किया कि आखिर तुम किस ज्योति की बात कर रहे हो…..! जब उन्होने मुझसे भाजपा की सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे की जाति को लेकर उठे असली – नकली के बारे में उनके दिलो – दिमाग में मची उथल – पुथल के बारे में बताया तो मैने उन्हे समझाया कि मुझे उस ज्योति की जाति से क्या लेना – देना ….. इस बारे में किसी को कुछ जानना है तो वह ज्योति से सीधे सवाल क्यों नहीं कर लेते कि वह किस जाति की है या फिर उसकी जाति को लेकर मचे बवाल की सच्चाई क्या है…..!  मैं जिस ज्योति के बारे में जानता हँू वह मेरे साथ पढ़ती थी। इसलिए मैं उसे अच्छी तरह से जानता था। एक ही समाज और जाति के होने के कारण हम उम्र और सहपाठी के बीच तो थोड़ी – बहुँत जान – पहचान का होना स्वभाविक रहता है। तब तो और भी घनिष्ठता रहती है जब दोनो सहपाठी एक साथ आगे – पीछे बैंचो पर बैठ कर स्कूल में 11 से 5 बजे तक का समय बीताते है। अब मेरे पास आयें व्यक्ति जिस ज्योति की बात कर रहे है उसे तो अच्छी तरह से जानता भी नहीं हँू…….!  लेकिन एक बात भी अपनी जगह सही है कि भाजपा की सासंद महोदया श्रीमति ज्योति धुर्वे के पति स्वर्गीय प्रेम धुर्वे मेरे अच्छे परिचितो में से थे क्योकि वह घोड़ाडोंगरी की कांग्रेसी विधायिका श्रीमति मीरा बाई धुर्वे के रिश्तेदार एवं निज सहायक थे। पाथाखेडा – सारनी में पाँच साल तक श्रीमति मीरा बाई धुर्वे और मैं एक ही पार्टी के साथ एक ही मंच पर अकसर मिलते – जुलते थे तब उस दौरान प्रेम भाई से दो चार प्रेम भरी बाते हो जाया करती थी। अब उस समय के काफी अरसे बाद मुझे तो प्रेम की शक्ल तक ठीक से याद नहीं ऐसे में कोई उसकी पत्नि की जाति के बारे में अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए मुझे मोहरा बनाये ऐसा तो नहीं हो सकता। भाजपा की लोकसभा सदस्या श्रीमति ज्योति धुर्वे के असली – नकली का फैसला उसकी जाति के लोग ही करेगें। लोगो को बिलकुल इस बात को नहीं भूलना चाहिये कि कोई इंसान हो या पक्षी ज्यादा दिन आसमान में नहीं रह सकता उसे एक न एक बार जमीन पर तो आना ही पड़ेगा। एक पल के लिए मान भी लिया जाये या प्रमाण भी प्रस्तुत कर दिये जाये कि इसकी या उसकी जाति यह या वह है तो कौन उसे चुनाव लडऩे से मना कर सकता है। हमने बैतूल में मोहन बाबरू का और छत्तिसगढ में अजीत जोगी का जाति को लेकर उठे बवाल का हश्र देखा है। जनता और उसका समाज सबसे बड़ा निर्णायक है इसलिए असली – नकली के लाख दस्तावेजो को यदि उनका समाज नकार कर श्रीमति ज्योति धुर्वे को जीता चुका हैं। अब अदालत तय करेगी कि वह किस जाति या बिरादरी की है…? अदालत के सामने हम क्या कर सकते ….? यह सब काम है अदालत का है…कोर्ट के सामने किसी की नहीं चलती हैं। जनता को तो सिर्फ राजेश खन्ना की स्टाइल में यह गाना गाना है और नाचती है कि ए जो पब्लिक है सब जानती है……..! आज के समय में जरूरी है कि जनता को ही निर्णय लेने दिया जाये कि वह कैसा – कैसी प्रतिनिधि चुनना चाहती है।  आज की जनता को आप पैसे और लालच देकर खरीद नहीं सकते यदि ऐसा होता तो अपने सेठ जी चुनाव ही नही हारते……!  चलते – चलते एक बात और कह दू तो अच्छा रहेगा कि लोग किसी बारे में किसी भी प्रकार की गलत फहमी सबूत और साक्ष्य रहने के बाद भी न पाले क्योकि कानून अंधा और लाचार तथा बेबस नहीं रहा है। इस देश का कानून धन्ना सेठ की तिजोरी बंद लक्ष्मी की तरह नहीं  है। जिसे केवल साल में एक बार लक्ष्मी पूजा पर बाहर निकाला जाए। भगवान से बड़ा कोई न्यायाधीश नहीं है इसलिए सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दो वहीं सही निर्णय सुना देगा कि कौन कितने पानी में है या नही है। आज के इस सशंय के युग में वही बता पायेगा कि कौन किसकी माँ और बाप है……! जात से लेकर पात तक का पता उसे ही मालूम है इसलिए मेरे भाई एक बार फिर सब कुछ उसी पर छोड़ दो वहीं सर्वोपरी है।

जिले में दर्जनो बेरोक टोक चल रही कोयला खदाने
बैतूल। बैतूल जिले में शाहपुर एवं घोड़ाडोंगरी विकास खण्ड में राष्ट्रीय खनीज संपदा का खुले आम दोहण हो रहा है। खनीज विभाग से लेकर भारत सरकार का कोयला मंत्रालय तक इस बारे में मौन साधे हुये है क्योकि सबको घर बैठे पैसा – रूपैया दाना – पानी मिल रहा है। बैतूल जिला खनीज अधिकारी अधिकारी शिन्दे की दरिया दिली इस बात से देखी जा सकती है कि उसका आप पूरा सरकारी बंगला खोद डालो वह ऊफ तक नहीं करेगा लेकिन साहब आपको पैसा तो देना पड़ेगा। इतने दिनो से टिकने की वज़ह भी यही है। बैतूल जिले के सरकारी अफसरो के लिए चारागाह बना हुआ है। कलैक्टर का स्टेनो सोहाने अपने बार – बार तबादले के बाद भी नहीं बदला तब लखन काका के पीछे हाथ धोकर बैठना नाइंसाफी होगी। लोग बैतूल में चौकीदार करते थे आज वहीं बैतूल जिले में बार – बार आकर अफसर बने लोगो को अपना रूतबा दिखा रहे है। शिन्दे भी उन्ही एक अफसरो में से है। बार – बार बैतूल का उनका मोह उनकी नौकरी के बाद भी छुटेगा या नहीं कहा नहीं जा सकता क्योकि हो सकता है वे भी शाहपुर – घोडाडोंगरी में कोई कोयला खदाने शुरू कर दे। कांग्रेस के केन्द्र में रहने के बाद भाजपा के नेताओं की दर्जनो कोयला खदाने बे रोक टोक चल रही है। इस संगीन अपराध को रोकने के लिए वह लाल पैदा ही नही हुआ है जिसने वास्तव में अपनी माँ का दुध पीया है। ऐसा लगता है कि बैतूल जिले के अधिकारियो से लेकर नेताओ तक ने या तो दुध का पैकेट पीया है या फिर बंद डिब्बा का दुध तभी तो उनकी कमजोरी इतने बड़े संगीन अपराधो को बे रोक टोक चलने दे रहे है। कहना नहीं चाहिये पर सच्चाई इन अधिकारियों के कार्यालयों से पता चलती है कि यदि खनीज विभाग कोई कोयला परिवहन की गाड़ी को पकड़े तो कलैक्टर के नाम पर सेंटिग होती है और कलैक्टर पकड़े तो नेताजी के नाम पर सेटिंग होती है। अब तो जिले में खनीज विभाग के आसपास कोयला के परिवहन और अवैध उत्खनन के मामलो की सेंटिग के मामले अकसर ले देकर छुटते देखे जा सकते है। जिले का एक बड़ा अफसर अपने कुछ चहेतो मित्रो को ओबलाइज करने के लिए कोयले की दलाली का हिस्सा भी देने लगा है। साहब के परसनल मोबाइल से आने वाली काले अकसर किसी न किसी मामले की दलाली के हिस्से के लिए होती है। इस लिस्ट में बैतूल जिले के कई नेता एवं पत्रकार तथा ऐसे लोग भी है जिनका काम केवल दलाली करना है। बीते दिनो कोयला के परिवहन एवं अवैध उत्खनन कर दो बिल्टी पर जा रही शोभापुर कालोनी स्थित काली माई के पास के ट्रांसपोटरो की गाडिय़ो को शाहपुर एवं पाढऱ के पास पकडऩे के दो दिन बाद पूरा मामला 70 हजार में सूलटा जिसमें के आधे पैसे जिले के एक बडे अफसर के मुँह लगे उनके मित्र को दलाली के रूप में मिले। खनीज विभाग में रात दिन कोयला – रेत – गिटट्ी के अवैध उत्खनन एवं परिवहन के दर्जनो फोन काल आने  के बाद भी पूरा विभाग अपने मराठी आपला मानूस की सेटिंग और वेटिंग के पास सुलझ जाता है। जिले के मामलो में मध्यप्रदेश सरकार के खनीज विभाग के मंत्री तक के नाम पर इंदौर की एक पार्टी से पैसा लेने के बाद जब इंदौर के एक मंत्री ने हस्तक्षेप किया तो फिर खनीज विभाग का अफसर चोरी – चुपके रूपैया वापस लौटने इंदौर गया और वहाँ पर कान पकड़ कर उठक बैठक भी की लेकिन आने के बाद फिर वहीं उगाही चालू हो गई।  ,

”ए मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर तुम नाराज न होना ………..!
रामकिशोर पंवार ”रोंढावाला
प्यार -लव -प्रेम – मोहब्बत और न जाने कितने नामो से पहचाने एवं पुकारने जाने वाला यह ढाई अक्षर का शब्द दरअसल में किसी अफसाने – तराने से कम नही है। प्यार जिदंगी में हर किसी को होता और छोड़ता रहता है। अकसर लोग कहते है कि ”ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित हो….! प्यार दरअसल में भूले बिसरे गीतो की तरह होता है जब बजता है तो याद आ जाता है गुजरा जमाना। हर व्यक्ति का अपनी इस मौजूदा जिदंगी में किसी न किसी से प्रेम जरूर होता है। जिसका किसी से प्रेम न हो वह व्यक्ति अनजाने में प्रेम कर बैठता है इस बात का उसे भी अदंाज नहीं होता है। वैसे कोई माने या न माने लेकिन सच तो कड़वा होता है बिलकुल नीम और करेले की तरह जिसको पीने से पहले उसकी गंध ही जी को मचला देती है। दरअसल में होता यह है कि हर किसी को अपने जीवन में कभी न कभी किसी अनजान एवं पहचान के मेल – फिमेल से प्यार – लव हो जाता है। वैसे लव की पूरी परिभाषा की जाये तो उसे भी शार्टकट में लफड़ा वाला या वाली कह सकते है। आजकल लव के चक्कर भी इतने जबरदस्त हो जाते है कि कई बार उसका जुनून किसी भी हद – सीमा को पार कर लेता है। लव के चक्कर में कई लोग निपट गये और कई को लोगो ने निपटा दिया। आजकल कलर्स और कलर टीवी पर कई लव के लफड़े बाज धारावाहिक आ रहे है। लोगो का ऐसा पागलपन लव के लफड़े को गांव की गलियो तक ले जा चुका है। आजकल गांवो में भी हीर – रांझा और लैला मजनू के कलयुगी किस्से सुनने को मिलते है जिसमें धोखेबाजी और चालबाजी देखने को सामने आती है। बैतूल के कुछ समाचार पत्रो में आजकल आन किलिंग का मामला रोज छप रहा है।   विक्रम और बेताल की तरह रोज नये सवालो के साथ इस तरह के किस्से सुनने को मिल रहे है। हाल ही में लव के लफडे के चक्कर में सारनी के एक अधिकारी की उसकी पत्नि ने पोल खोल दी। सारनी थर्मल पावर स्टेशन की राख से गर्म हो चुके अधिकारी ने जब अपनी वासना को ठंडा और शीतल करने के लिए किसी शीतल की जगह चीतल का उपयोग कर लिया तो अधिकारी महोदय की श्रीमति घायल शेरनी की तरह दहाड़ कर उस चीतल पर झपटा मार कर उसे घायल कर दिया। शर्मसार अधिकारी इसे प्यार का तराना तो बता रहा है लेकिन गीदड़ की तरह दुम दबा कर भागे अधिकारी को उसकी बीबी ने इस तरह बेनकाब कर दिया कि बेचारे ने शर्म के मारे घर में ताला लगा कर कुछ दिनो के लिए घर छोड़ कर वन टू का फोर हो जाने में ही अपनी भलाई समझी। अब मीडिया उसे खोज रही है तभी तो रहमान को रहम नहीं आई और उसने अधिकारी को सार्वजनिक पोस्टर बना डाला। आजकल इंसान अपने अंदर छुपे वासना के जानवर को भी प्यार का नाम देकर उसे बदनाम करने में लगा हुआ है। बैतूल जिला मुख्यालय पर आजकल लव के लफड़े में क्या कुछ नहीं हो रहा है। सर्व शिक्षा अभियान के एक कर्मचारी ने अपने प्यार के लिए उसे कम्प्यूटर्स तक भेट कर दिया। उसके लिए मकान तक विभाग के इंजीनियरो की मदद से बनवाने के बाद भी वह लव के लिए कुछ भी करेगा की स्थिति में है। बैतूल जिले में लव के लफड़े आजकल हर कहीं सुनने को मिलने लगे है अब इन लफड़ो से तो बेचारा जिला पंचायत भी नहीं बच सका है। यहां पर भी लव का पंचायती राज चल रहा है। लव का लफड़ा पुलिस से लेकर प्रेस तक में देखने को मिलता रहता है। लव के लिए कुछ भी करेगा कि स्थिति में शाहपुर का एक थानेदार अपनी बेटी समान बाला को लेकर वन टू का फोर हो चुका है। लव के चक्कर में एक वरिष्ठ समाजसेवी पत्रकार भी बुरी तरह से पीट चुका है। लव के चक्कर में बैतूल जिले में जबदस्त बहार चल रही है। हर किसी पर लव के चक्कर में फागुन की मस्ती छा गई है। लड़के – लड़की भागे रहे है वहां तक तो ठीक है लेकिन अब तो लव के लफड़े में अधेड़ भी गधे के सिंग की तरह गायब होने लगे है। किस्सा अभी कुछ दिन पुराना ही है जिले के एक गांव के सबके प्यारे दादाजी जी पोता – पोती के रहते हुये नौ दो ग्यारह हो गये अब उनका नाम और लोकेशन इसलिए नहीं बता सकते क्योकि कुछ भी कहे भैया मामला ससुरी इज्जत का जो आ गया है। किसी ने ठीक ही कहा है कि प्यार जात – पात नहीं देखता …. प्यार में आदमी अंधा हो जाता है लेकिन यदि कोई अंधा व्यक्ति ही प्यार करके उसकी आंखो में अपनी जीवन की दुनिया देखने लगे तब आप क्या कहेगें…..? इस अवसर पर तो बस यही शायराना अदंाज कुछ इस तरह से गाया जा सकता है कि तराना गाया जा सकता है कि ”तेरी आंखो में डूब जाऊंगा , कोई अंधा न कहे इसलिए चश्मा लगाते रहूंगा…..!ÓÓ  वैसे भी प्यार को लेकर लोगो ने इतना कुछ कहा एवं लिखा तथा गाया है और इसके आगे कुछ कहने को मन नहीं करता लेकिन प्यार के किस्से रोज जो सुनने को मिलते है उसे देख कर चुप रहा भी नहीं जा सकता। प्यार में एकरार और तकरार तो होना स्वभाविक है लेकिन कई बार तो एक तरफा प्यार में एकरार – तकरार के अलावा भी बहुंत कुछ हो जाता है। वैसे मुझे यह कहने या स्वीकार करने में कोई एतराज नहीं कि मुझे भी ज्योति से प्यार हो गया था…..? मैं कितना भी कुछ कहूं इस प्रेम के बारे में लेकिन पाथाखेडा के स्कूल से तो मुझे निकाला ही गया था अपनी कथित प्रेमिका ज्योति को प्रेम पत्र लिखने के चक्कर में…….! हालाकि उस समय मैं प्रेम के सहीं अर्थो को समझ नहीं सका था । आज जब उस बीते पल को याद करता हँू तो मेरे दिल के किसी कोने से आहट आती है कि उस पर कटी बालो वाली कजरारी आंखो से कह दूं कि ”ज्योति आइ लव यू…… हालाकि बरसो पहले के उस कथित प्रेम पत्र को लेकर यह कहना कि ”ए मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर तुम नाराज न होना की तुम मेरी जिदंगी हो की तुम मेरी बदंगी हो …………!  अब इतने दिनो बाद उससे यह कहना कि ”मुझको तुम से प्यार है…….! बेमानी होगा क्योकि अब वह दुसरे की अमानत हो चुकी है। अब जब उसके और मेरे बच्चो के प्रेम करने के दिन आ गये तब मेरा यह कहना न्याय संगत नहीं होगा कि ”तुझे मैं चांद कहता था मगर उसमें भी दाग है, तुझे मैं सूरज कहता था उसमें भी आग है……! मेरा ऐसा कहना दो परिवारो को जला कर राख कर सकता है। अब केवल इतना ही कहा जा सकता है कि ”तुझे गंगा मैं समझुंगा – तुझे जमुना समझुंगा , तू दिल के पास है इतनी है कि तुझे अपना मैं समझुंगा …….! आज भी मेरे तरह ऐसे लाखो – करोड़ो लोग होगें जो कि ”अजीब – प्रेम की गजब कहानी  के शिकार बने हुये है। ऐसे में उससे मेरा यह कहना कि ”ज्योति आई लव यू ……! सही नहीं होगा लेकिन प्रेम के अर्थ कई प्रकार के भी हो सकते है। कोई जरूरी नहीं है कि प्यार का मतलब पति – पत्नि के रूप में ही देखे जाये क्योकि हर किसी की किस्मत में एश्वर्या राय नहीं होती है इसलिए किसी को ललीता पंवार से भी काम चलाना पड़ता है। प्रेम के अर्थ का तब भी गलत अर्थ निकाला है तब – तब प्रेम बदनाम हुआ है।  प्रेम ज़हर भी है और संजीवनी भी लेकिन यह तो पीने वाले की तासीर पर निर्भर करता है कि उसे वह किस रूप में स्वीकार करे। प्रेम के लिए चक्कर में घर तबाह हो चुके है। प्रेम को वफा और बेवफा दोनो प्रकार से देखा एवं परखा जा सकता है। बचपन का प्रेम और वह गुडडा – गुडडी का खेल जवानी के दहलीज तक नये रूप में सामने आता है तब भी कई बार घुट – घुट कर मरना पड़ता है। प्रेम राधा और मीरा की तरह हर कोई नहीं कर सकता है लेकिन प्रेम तो आजकल राखी सावंत की तरह हो गया है जो कि मुन्नी की तरह बदनाम होता चला आ रहा है और न जाने कब तक वह मुन्नी की तरह बदनाम होता रहेगा…….! अंत में चलते – चलते यही कहना चाहता हँू कि ”भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहां जाये ……!

बदला जीने का रंग और ढंग
यहाँ भी है राखी सावंत और मल्लिका शेरावत…….. !
लेख – रामकिशोर पंवार
पश्चिमी से आई शहरी आधुनिकता का भारत के अँचलो में इस कदर असर हुआ है कि लोगो को रहन – सहन  उसकी चाल-ढाल तथा रंग- रूप तक बदलने लगा है. गांव के लोग जिन्हे अनपढ़ , गोंड , गवार कह कर उलाहना दी जाती थी आज वही लोग अपने आप को किसी से कम नहीं समझ रहे है. तन से नंगे पेट से भूखे लोगो को अपने आगोश में पूर्ण रूप से जकड़ती आधुनिकता के प्रभाव का सबसे ज्यादा असर आदिवासी समाज पर पड़ा है. मध्यप्रदेश के बैतूल जैसे पिछड़े आदिवासी बाहुल्य जिले के साप्ताहिक बाजारो में आने वाली आदिवासी बालाओं को देखने के बाद उनके रंग-ढंग में आए अमूल चूल परिवर्तन ने व्यापारियो की चांदी कर दी है. साप्ताहिक बाजारो में नकली और घटिया सामग्री को मंहगे दामो वाली बता कर इस समाज की अशिक्षा का भरपूर फायदा उठा कर जहाँ एक ओर लोग मालामाल हो रहे है वही दुसरी ओर नकली मेहनतकश अशिक्षित समाज उपभोक्ता अधिनियमो को न जानने की वजह से ठगी का शिकार बन रहा है. साप्ताहिक बाजारो में अकसर देखने को मिलता है कि हर दुसरी – तीसरी दुकान नकली माल से भरी रहती है. नकली माल का इन लोगो के तन से लेकर मन तक बुरा असर पड़ा रहा है. सौंदर्य विशेषज्ञ जुही अग्रवाल कहती है कि बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारो में बिकने वाली इन्दौर मेड सौंदर्य क्रीम एवं अन्य सामग्री चेहरे से लेकर शरीर के विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालती है. घटिया किस्म की लिपीस्टीक से होठो पर दाग पड़ जाते है. कई बार तो यह देखने में आया हे कि चेहरो पर भी सफेद दाग दिखाई पडऩे लगते है. सुश्री जुही मानती है कि आदिवासी समाज की युवतियाँ अपने सौंदर्य पर आजकल कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी. आज के आदिवासी बालाए भले ही विश्व सुदंरी एश्वर्या राय को नहीं जानती हो पर वे अपने आप को एश्वर्या से कम भी नही समझती है. आज यही वजह है कि इन युवतियों के अपने रूप सौदंर्य के प्रति बढ़ते शौक ने उन्हे आज अपनी पारम्परीक वेशभुषा और संस्कृति से कोसो दूर कर दिया है. ग्रामिण अंचलो में बसे आदिवासी परिवार के नौजवान लड़के व लड़कियां दोनों ही कम उम्र से ही हाथ मजदूरी पर ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाने लगते है. मेहनतकश इस समाज की काम के प्रति बढ़ती लगन ने उन्हे हर मोर्चे पर लाकर खड़ा किया है.
सदियो से आदिवासी समाज की युवतियो एवं महिलाओं ने सोने के जेवर के स्थान पर चांदी के जेवरो को सबसे उपयोग में लाया है. चांदी एवं गीलट  (खोटी चांदी) के ही सबसे अधिक जेवर खरीदने वाली इन युवतीयो के शरीर पर गले से लेकर पंाव तक दस हजार रूपये तक के जेवर लदे रहते है. उक्त जेवरो को केवल साप्ताहिक बाजारो एवं किसी कार्यक्रम में पहन कर आने वाली इन युवतीयो का शौक भी बदलता जा रहा है. बाजारो में अब तो कई युवतीयो को कोका कोली और पेप्सी पता देख आप भी हैरत में पड़ जाएगें कि दुसरो का अनुसरण करने वाली ए युवतियाँ आखिर किस ओर भागी जा रही है. आदिवासी समाज की युवतियाँ शादी के पहले भी नाक में नथ और कान में चांदी की बाली पहन लेती है. इन युवतियो को देखने के बाद आप एक पल में यह पता नही लगा सकते कि कौन शादी शुदा है और कौन कुवारी ! वे भले ही तन -मन और धन से गरीब है पर उनके शौक ने उन्हे कहीं का नही छोड़ा है. इनके द्वारा पहने गए आभुषणो के बारे में पगारिया ज्वेलर्स के संचालक नीतिन कहते है कि यह समाज सबसे इमानदार और वादे का पक्का है. उनका यह कहना था कि इस समाज की अज्ञानता का लोग भले ही फायदा उठा ले पर आज सबसे अधिक ग्राहक इसी समाज के साप्ताहिक बाजारो एवं तीज त्यौहार पर खरीदी- बिक्री कने के लिए आते है. अब समय की कहिए या आधुनिकता का असर अब इस समाज की महिलाओ का हमेल  (जिसके सिक्को की माला भी कहते है . ) हस , पैर पटटी, शादी की कड़ी, पायल, बाखडिय़ा, सरी, सहित कई प्रकार आभुषण को पहन कर साप्ताहिक बाजारो एवं शादी विवाह के कार्यक्रम में जाती है. राजश्री से लेकर पान पराग तक खाने वाली इन युवतियो ने सप्ताह में एक बार दोमट मिटटी से नहाने के बजाय लक्स और रेक्सोना से नहाना शुरू कर दिया है. गोदना आज भी इनकी संस्कृति का अंग है जिसे वह नहीं छोड़ सकी है.
बैतूल जिले में रोजगार के सबसे बड़े केन्द्र पाथाखेड़ा कोयला खदान हो या सारनी ताप बिजली घर या फिर बहार की. इन खदानों से निकलने वाले कोयले को ट्रकों में भरना और खाली करने का काम करने वाली रेजा (आदिवासी युवतीयां) माली, जिस्मानी व दिमागी शोषण का शिकार होती है. अपनी मेहनत की मजदूरी लेने वह साप्ताहिक बाजारों के दिनों में जाती हैं. अकसर कई ठेकेदार भी इन को आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजारों के दिनों में जाती हैं. अकसर कई ठेकेदार भी इन को आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजार के दिनों में ही मजदूरी का रूपया देते हैं.  दिन भर काम करने वाली आदिवासी युवतीयो को जब हाथ में मजदूरी मिलती है तो उन का चेहरा खिल उठता है . हफ्ते के आखिरी दिन जिस गांव, शहर में बाजार लगता है, वहां पर टोलियों में नाचती गाती ये आदिवासी औरतें खाना – पीना छोड़ कर अपने रूप श्रंगार एवं पहनावे की चीजों पर टूट पड़ती हैं . शहरी चकाचौंध में रच बस जाने की शौकीन ये आदिवासी युवतीयाँ अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को लिपिस्टक , नेलपालिश, पाऊडर, बिंदिया, क्रीम पर खर्च करती हैं . कभी पोण्डस का पाऊडर खरीदने वाली युवतीयाँ आजकल क्रीम  की मांग करने लगी है. साप्ताहिक बाजारो में अकसर देखने को मिलता है कि हर दुसरी – तीसरी दुकान नकली और मिलते – जुलते नाम और माल से भरी रहती है. नकली माल का इन लोगो के तन से लेकर मन तक बुरा असर पड़ा रहा है. सौंदर्य विशेषज्ञ जुही अग्रवाल कहती है कि बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारो में बिकने वाली इन्दौर मेड सौंदर्य क्रीम एवं अन्य सामग्री चेहरे से लेकर शरीर के विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालती है. घटिया किस्म की लिपीस्टीक से होठो पर दाग पड़ जाते है. कई बार तो यह देखने में आया हे कि चेहरो पर भी सफेद दाग दिखाई पडऩे लगते है. सुश्री जुही मानती है कि आदिवासी समाज की युवतियाँ अपने सौंदर्य पर आजकल कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी. आज के आदिवासी बालाए भले ही विश्व सुदंरी एश्वर्या राय को नहीं जानती हो पर वे अपने आप को एश्वर्या से कम भी नही समझती है. आज यही वजह है कि इन युवतियों के अपने रूप सौदंर्य के प्रति बढ़ते शौक ने उन्हे आज अपनी पारम्परीक वेशभुषा और संस्कृति से कोसो दूर कर दिया है.
बैतूल जिले के एक प्रमुख प्रेस फोटोग्राफर और पत्रकार हारून भाई के शब्दो में इन आदिवासी बालाओं का शौक फोटो  खिंचवाना और हफ्ते में एक दिन आस पड़ोस में पडऩे वाले साप्ताहिक बाजार के दिनों में अच्छे कपड़े पहन कर मद मस्त होकर नाचना – गाना होता है . इस दिन ए युवतियाँ खूब रूप श्रंगार करने के साथ – साथ अपनी सखी सहेली को उत्प्रेरित भी करती है . नए समाज और नई क्रांति का आदिवासी समाज पर काफी असर पड़ा है. आज भी उन्मुक्त सेक्स के मामले अन्य समाज से दो कदम आगे रहे इस समाज के परिवारों में सेक्स को लेकर कोई बंदिश नही है. परिवार की ओर से मिली छूट का आदिवासी समाज की लड़कियां अपनी जात के युवकों के साथ भरपूर फायदा उठाती हैं . यह एक कटू सत्य अपनी जगह काफी मायने रखता है कि इन युवतीयो के फोटोग्राफी के शौक के चलते कई घरो के चुल्हे जलते है.
कुछ साल पहले तक देशी काटन के लुगड़े और फड़की से अपने शरीर को ढ़कनी वाली युवतीयाँ अब अपने गांव के आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में अपने लिए ब्रा और पैन्टी की मांग करने लगी है. बैतूल जिले के विभिन्न साप्ताहिक बाजारो में कपड़े की दुकान लगाने वाले कन्हैया के अनुसार बाजारो में अब देशी सूती – काटन के लुगड़ो और फड़की के स्थान अब उन्हे पोलीस्टर की साडिय़ो के शौक ने घेर रखा है. आज यही वजह है कि गोंडवाना क्षेत्रो के साप्ताहिक बाजारो से सूती- काटन के कपड़ो की मांग कम होती जा रही है. अपने ऊपरी तन पर ओढऩे वाली फड़की के प्रति इन आदिवासी बालाओं की मांग में आई कमी के कारण इन फड़की को बनानें वाले कई छीपा जाति के लोग बेरोजगार हो गए है तथा उनका पुश्तैनी व्यवसाय भी लगभग बंद होने की कगार पर है. बैतूलबाजार के छीपा जाति के परमानंद दुनसुआ कहते है कि एक जमाना था जब हमारे घर के बुढ़े से लेकर बच्चे तब तक हर दिन कहीं न कही लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में आने वाली मांग की पूर्ति के लिए काम करके थक जाते थे लेकिन आज हमे अपने पुश्तैनी व्यवसाय के बंद होने की स्थिति में दुसरो के घरो पर काम करना पड़ रहा है
फिल्मी संस्कृति का इन आदिवासी आलाओं पर इतना जबरदस्त असर पड़ा है कि ए टाकीजो में फिल्मे देखने के बजाए आजकल अपने घरो के लिए वी.सी.डी. पर दिखने वाली फिल्मो की सी.डी. खरीदने लगी है. आजकल गांवो में भी हजार दो हजार में बिकने वाले सी.डी. प्लेयरो ने गांव के लोगो को टाकिजो से दूर कर रखा है. मुलताई की कृष्णा टाकिज के संचालक कहते है कि पहले हर रविवार एवं गुरूवार साप्ताहिक बाजारो के दिन हमारी टाकिजो में शहरी दर्शको के स्थान पर गांव के ग्रामिण लोग ज्यादा आते थे. इनमें आदिवासी युवतीयो की संख्या सबसे अधिक होती थी लेकिन अब तो हमें खाली टाकीज में भी मजबुरी वश शो करने पड़ रहें है. ग्रामिण क्षेत्रो में आदिवासी समाज में आए बदलाव पर शोध करने वाली अनुराधा के अनुसार घर में दो वक्त की रोटी को मोहताज इन आदिवासी युवतीयो को पश्चिमी स़स्कृति ने अपने आगोश में ले लिया है. वे मानती है कि जिनके शरीर पर पहनने के लिए ढंग के कपड़ें नही होते थे वे ही आजकल भड़किले कपड़ो को पहनने लगी है. आदिवासी समाज में आ रहे बदलवा का ही नतीजा है कि ए किसी के भी चक्कर में पड़ जाती है.आदिवासी महिलाओं के साथ होने वाले यौन प्रताडऩा सबंधी अत्याचार पर अधिवक्ता अजय दुबे की राय यह है कि न्यायालय तक आने वाले मामले की तह तक जाने के बाद यह कहा जा सकता है कि लोभ और लालच की शिकार बनने वाली युवतीयाँ अपने केस के फैसले के समय भी लोभ लालच का शिकार बन जाती है. पैसो के बढ़ती भूख और उन पैसो से केवल अपने रूप श्रंगार तथा एश्वर्या से कम न दिखने की चाहत ही इन आदिवासी युवतीयो के जीवन में अमूल चूल परिवर्तन ला रही है.  सेवानिवृत वनपाल दयाराम भोभाट के अनुसार मैने अपने वन विभाग की पूरी नौकरी इस समाज के बीच बिताई है इस कारण मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हँू कि इस समाज में आए बदलाव के पीछे गांव – गांव तक पहँुच चुकी टी.वी. और फिल्मी संस्कृति काफी हद तक जवाबदेह है. आपके अुनसार इन लोगो को फिर से उनकी संस्कृति के से जोडऩा होगा. अन्यथा हमें भी किताबों में ही पढऩे को मिलेगा कि आदिवासी ऐसे होते थे.
इति,

प्याले से गायब हुई काफी.. …. …. …. …. …. !
रामकिशोर पंवार
काफी भारत की मूल्यवान फसल होने के साथ -साथ देश के लिए बहुँत महत्वपूर्ण है . काफी केवल 2500 फुट से 5000 फुट की ऊँचाई वाले क्षेत्र में अच्छी तरह से ऊगाई जा सकती है .बैतूल जिले के कुकुरू – खामला वन परिक्षेत्र की ऊँची पहाँडिय़ो पर आज से ठीक 89 साल पहले सेंट विल्फोर्ड द्घारा 208 एकड़ का रकबा काफी प्लांट के लिए आरक्षित कर काफी के उत्पादन की संभावनाओं को मूर्त रूप दिया गया था .हालाकि शुरूआती दौर में 110 एकड़ में काफी के उत्पादन को शुरू किया गया था . 5 – 7  फीट के अंतर लगाये जाने वाले काफी के पौधे सामान्यत: पाँच या छै साल के बाद फसल देना शुरू कर देते है . औसतन काफी का उत्पादन प्रति एकड़ दो हंडरवेट होता है . बैतूल जिले में काफी की इन्ही संभावनाओं को सबसे पहले 1907 में आज से ठीक सौ साल पहले ब्रिट्रिस हुकुमत के समय बैतूल जिले में पदस्थ एक ब्रिट्रिश नागरिक सेंट विल्फोर्ड ने अपने परिवार के सदस्यो एवं मित्रो को घुमाने के बहाने इस स्थान पर एक व्ही . आई .पी . सर्किट हाऊस की नींव रखी थी . जिसके पीछे यहाँ की प्राकृतिक सुन्दता एवं मौसमी वातावरण था . इस दौरान सेंट विल्फोर्ड को ऐसा लगा कि इतली ऊँचाई वाले क्षेत्र में काफी के उत्पादन की काफी संभावनाए है तब उसके द्घारा पेय प्रदार्थ काफी के उत्पादन की शुरूआत भी कुछ काफी के पौधो को रोपित करके की थी . उसकी दोनो अभिलाषा जब पूर्ण हुई तब तक वह इस जिले से जा चुका था . आज 1907 में बने इस सर्किट हाऊस के सौ साल तो पूरे हो गए . देश छोड़ कर अग्रेंज चले गए लेकिन हमे दे गए दो अनमोल सामान जिसकी हम देश आजादी के 60 साल बाद हिफाजत नही कर पाये . मध्यप्रदेश का एकलौता काफी उत्पादक क्षेत्र कुकुरू खामला में बना वह सर्किट हाऊस अपने मूल स्वरूप को खोते जा रहा है साथ ही वन विभाग अपने पूर्व दक्षिण वन मण्डल के वन मण्डलाधिकारी श्री मान द्घारा उस अग्रेंज सेंट विल्फोर्ड के सपनो को साकार करने के लिए काफी अथक प्रयास करके काफी के बीजो का उत्पादन का कार्य कुछ ग्रामिणो की मदद से वन सुरक्षा समिति बैनर तले शुरू किया प्रयास को संरक्षित एवं सुरक्षित नहीं रख पाए . अब दिन प्रतिदिन देश का जाना पहचाना काफी उत्पादक क्षेत्र जहाँ पर पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गांधी से लेकर न जाने कितने अनगिनत लोग आकर यहाँ की काफी की चुस्की का स्वाद लेकर चले गए आज वही काफी उत्पादक क्षेत्र कुकुरू खामला जाने वाले पर्यटको के प्याले से काफी गायब होती काफी दूर चली जा रही है . बैतूल जिले के वर्तमान वन संरक्षक श्री ए.के. भटटाचार्य एवं दक्षिण वन मण्डल के वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज अग्रवाल द्घारा पत्रकारो को इस भैसदेहीं तहसील मुख्यालय से लगभग पैतीस किमी दूर सतपुड़ा अंचल की गोद मे सबसे ऊंचाई वाला क्षेत्र कुकुर खामला की काफी उत्पादक नर्सरी को दिखाने के लिए ले जाया गया . जहाँ एक ओर काफी प्लांट में इस बरसात में काफी के पौधे सुख कर डंढ़ल जेसे दिखाई पड़ रहे है . समुद्र सतह से लगभग चार घन फीट ऊंचाई पर सीना ताने हुए भैसदेहीं तहसील के इस वन ग्राम को ऊंची पहाड़ी के नाम से जाना एवं पहचाना जाता है . यही व$जह भी है कि मध्यप्रदेश में सिर्फ इसी स्थान पर काफी बीजो का उत्पादन कार्य शुरू किया गया था . इस स्थान की काफी के बीजो को खरीदने के लिए देश की जाने – मानी काफी बनाने वाली कंपनियाँ के अलावा अन्य लोग भी आया करते थे . बैतूल जिला मुख्यालय से रिमझीम बरसात के दिनों में पत्रकारो को इस पर्यटक स्थल की प्राकृतिक सौंदर्यता का दर्शन कराने ले गए वन विभाग . को लगा कि पत्रकार लोग उनकी भाटगिरी – चाटुकारिता करके इस काफी उत्पादक क्षेत्र की कम$जोरीयो को उजागर नही कर पायेंगे लेकिन राज्य एवं केन्द्र सरकार से काफी उत्पादक नर्सरी को बचाने के लिए उत्पादित काफी के मूल्य से अधिके रूपयो को खर्च करने के बाद भी काफी उत्पादक की इस नर्सरी को वन विभाग के अफसरो एवं कर्मचारियो की लापरवाही रूपी दीमक ने चाट खाया है . जिसके कारण आज इस क्षेत्र की मूल पहचान उससे छीनती चली गई .. …. …. …. …. …. !   अँकड़ो पर गौर किया जाए तो वन विभाग के कई अफसरो को घर बैठना पड़ सकता है क्योकि इस काफी के पीने वालो ने काफी के बदले पूरा – का पूरा पैसा जो कि लाखो एवं करोड़ो रूपयो में आता है . वन सुरक्षा समिति को अपनी लापरवाही एवं भ्रष्टï्राचार की ढ़ाल बनाने वाले अफसरो ने कभी सपने मे भी नही सोचा था कि ग्रीष्मकाल में तपती धूप से बचने इस शांत एवं ठंडकपूर्ण स्थान का काफी उत्पादन इतने नीचे गिर जाएगा . कितनी शर्मसार बात है कि देश एवं प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रो के हजारों की संख्या में आने वाले पर्यटको को जब पता चलता है कि अब उन्हे यहाँ के सर्किट हाऊस में वन विभाग की इस नर्सरी से उत्पादित काफी के प्याले की चुस्की का म$जा नही मिल पाएगा …. …. …. …. …. !  इस खबऱ को सुनने के बाद हर कोई काफी आश्चर्यचकित हो जाता है . मंदसौर से कुकुरू खामला की सुन्दरता निहारने आए मनमोहन दुबे कहते है कि यहाँ आने के लिए उनके एक बैतूल जिले में पदस्थ रह चुके स्वास्थ विभाग में कार्यरत जीजाजी ने काफी आग्रह किया था , लेकिन यहाँ पर काफी का प्याला चाहने पर भी नही मिल सकता…. …. …. …. …. ….! अपने आप में प्राकृतिक सौंदर्यता का अनमोल खजाना समेटे हुए है कुकुरू खामला ग्राम से लगे हुए दुर्ग में पहाडिय़ों की मेखलाकार सौंदर्यता देखते बनती है. इस रमणीय स्थल पर देश – प्रदेश से वर्ष भर हजारों की संख्या में पर्यटक अनुपम प्रकृति की सुंदरता को अपने सजल नयनों से निहारने आते है.वन सुरक्षा समिति के पदाधिकारी ने पत्रकारो को इस रमणीय क्षेत्र के बारे में बताया कि इस पर्यटन स्थल को बुच पाइंट के नाम से जाना जाता है क्योंकि अपने ही जिले के पूर्व कलेक्टर एवं जाने – माने पर्याविद एम .एन . बुच ने अपने प्रवासी दौरे पर इस स्थल को पर्यटन स्थल बनाने का निश्चत किया था, तभी से यह प्राकृतिक सौंदर्यता का अनमोल खजाना बुच पाइंट कहलाने लगा . इस पर्यटन पाइंट के लिए जाने वाले 30 किमी के रास्ते में ऐसे अनेकानेक रमनीय एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत स्थान देखने मिलते है जिसे देखकर ह्दय प्रफुल्लित हो उठता है. यहां भैसदेही तहसील मुख्यालय से उतर – पश्चिम दिशा में 3 किमी दूरी पर स्थित ग्राम बगदरा में 25 से 40 ऊंचे दो मौसमी झरने है, जिनका पानी एक दूसरे के विपरीत दिशा में गिरता हुआ पहाडिय़ों से होकर बहता है, जिसका बलखाते हुए अंगडाईयां मारना मचलना देखते ही बनता है. यह स्थान अंधूरा देव बाबा के खोरे के नाम से जिले में विख्यात है. इस स्थान के कुछ आगे चले तो एक विशाल जलाशय मिलता है जिसका जल निर्मल एवं स्वच्छ दर्पण सा प्रतीत होता है जो अपने जल से आसपास के क्षेत्र को सदा लहलहाने में मदद करता है. वर्तमान समय में अंचल में व्याप्त जल संकट का भी एकमात्र विकल्प यह कुर्सी जलाशय ही है. इन दृश्यों को देखते हुए जब हम पहुंचते है जिले के विख्यात पर्यटन स्थल कुकुरू खामला तो मानो आत्मा आनंद विभोर हो जाती है. यहां काफी प्लांट के प्लाप हो जाने के बाद से बरसते पानी के मौसम और कड़कती ठंड में होठो की चुस्की से दूरे हुए काफी के प्याले पर आश्रित वन सुरक्षा समिति कुकुरू खामला के गरीब आदिवासी को यह नहीं पता कि अब उनकी नर्सरी में काफी के बीज क्यो नहीं उत्पादित हो पा रहे है . पूर्व वन मण्डलाधिकारी श्री मान ने वन सुरक्षा समिति का गठन करके इस काफी प्लांट के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार से काफी बड़ा अनुदान प्राप्त कर इसे काफी ख्याति दिलवाई थी लेकिन आज वही काफी उत्पादक नर्सरी के सदस्य अपनी रोजी – रोटी के छीन जाने से काफी मुसीबत में है . वन विभाग के इस सरकारी रेस्ट हाउस के ठीेक सामने पत्रकारो से चर्चा करते वन विभाग के अफसरो के साथ नाश्ता एवं रात्री भोज के पूर्व पत्रकारो का दल सूर्य का उदय एवं अस्त खुले आसमान में होता देख इस क्षेत्र की प्रशंसा करते ही मनमोहित हो गये . समीर के झोको का दिशा ज्ञान कराती रेस्ट हाऊस के पास ही लगी पवन चक्की, समीप बसा ग्राम कुकुरू ऊँची पहाडिय़ां ऐसे अनेक प्राकृतिक स्थल जो सुंदरता की रश्मियों को बिखेरता हुआ पर्यटको का मन मोह लेता है. ऐसे प्रकृति के अनुपम अनमोल खजाने की जितनी सराहना की जाए कम है. इस अनमोल एवं रमणीय से सराबोर प्राकृतिक सौंदर्य के धनी वन ग्राम कुकुरू खामला से लुप्त काफी के प्रति अगर राज्य सरकार का वन विभाग लापरवाह एवं भ्रष्टï्राचार के अजगर की तरह इसे निगलता गया तो कोई भी कुकुरू खामला नही पहँुच सकेगा क्योकि उन्हे नही मिल सकेगी काफी की चुस्की……..!
इति,

जहाँ हर रोज होती है केसर की वर्षा
रामकिशोर पंवार
बैतूल यूँ तो सतपुड़ाचंल का बैतूल जिला धार्मिक महत्व की दृष्टिï से काफी विशिष्ठï स्थान रखता है. जहाँ एक ओर बैतूल जिले में सूर्यपुत्री ताप्ती की जन्मस्थली मुलताई है तो वही दुसरी ओर दक्षिण भारत का शिखरजी कहलाने वाला ै जैन समुदाय का पवित्र तीर्थस्थल मुक्तागिरी भी है. सतपुड़ाचलं की सुगम मनमोहक रमणीय पहाडिय़ों में बसे 52 चैत्यालयों का करिश्माई नजारा आज भी इस स्थान पर सैकड़ो पर्यटको और धर्मालु भक्तो को खीच लाता है. ऐसी आम धारणा के साथ मान्यता भी है कि जैन धर्म के अनुयायियों के लिये श्री दिगंबर जैन सिद्घक्षेत्र मुक्तागिरी के देव दुर्लभ दर्शन करने से उन्हे परमपिता परमेश्वर से मिलने का सुअवसर मिल जाता है.ऐसा व्यक्ति यहाँ पर आने के बाद परमेश्वर से अपनी अंतरआत्मा के साथ साक्षात्कार करने में सफल हो जाता है. ऐसे व्यक्ति को आंतरिक अनुभूति होती है कि उसने परम पिता परेश्वर से रूबरू बातचीत कर ली हो. वैसे तो साल के चारो माह मुक्तागिरी का दृश्य मनभावन होता है पर वर्षाकाल में चातुर्मास के समय मुक्तागिरी की शांत प्रकृति यहाँ पर आने वाले हर व्यक्ति को अपनी ओर बार-बार आने को लालायित करती है. इस पवित्र तीर्थस्थल के बारे कहा तो यह तक गया है कि यहाँ आने वाले की अंतरआत्मा उसे सशरीर अध्यात्म से जुडऩे का बाध्य करती है. ईश्वर प्रदत्त वास्तुकला का अद्ïभूत, अनूठा जीवंत संसार है मुक्तागिरी, जहां प्रकृति यहाँ आने वाले हर व्यक्ति से रूबरू बातें करती महसुस होती है. इस स्थल के कलकल करते झरने ऐसे लगते है जैसे वे कोई मध्ुार गीत की तान छेड़ हुए कुछ गुणगुणा रहे है.  हरे भरे पल्लवित वृक्ष राग मेघ मल्हार की रचना प्रस्तुति करते आल्हादित कर देते हैं. यूँ तो मुक्तागिरी से लौटकर जाने वाला यर कोई श्रद्घालू कोई न कोई चमत्कार के किस्से कहानियाँ सुनाता है , पर परतवाड़ा में कॉटन फेडरेशन के सामने वैद्य ब्रदर्स का एक प्रतिष्ठïान है. उनके रिश्तेदार की युवा लड़की बरसों से गूंगी थी. एक चातुर्मास के दौरान लड़की का मुक्तागिरी से साक्षात्कार होने के बाद से वह गुंगी लड़की ने बोलना शुरू कर दिया. उक्त लड़की अब धारा प्रवाह बोलते हुये नमो अरिहंताण का रोजाना जाप करती है.
मुक्तागिरी क्षेत्र भारत के मध्य में महाराष्टï्र तथा मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है, वैसे मूलत: मुक्तागिरी  मध्यप्रदेश के बैतूल जिले अंतर्गत भैंसदेही तहसील में आता है. किंतु मुक्तागिरी का ज्यादातर व्यवहार महाराष्टï्र के परतवाड़ शहर से ही चलता रहता है. परतवाड़ा से यह मात्र 15 किमी की दूरी पर है. परतवाड़ा-बैतूल मार्ग पर खरपी ग्राम से सात किमी दूरी पर सतपुड़ा पर्वत की रमणीय पहाडिय़ों के बीच मुक्तागिरी बसा है. भोपाल से 240 किमी, आकोट से 75 किमी, अमरावती से 65 किमी एवं बैतूल से 100 किमी दूरी पर स्थित मुक्तागिरी के लिये ट्रेन, बस के द्वारा सहजता से पहुंचा जा सकता. परतवाड़ा से आटो रिक्शा-मेटाडोर वाजबी दाम में यात्रियों को मुक्तागिरी तक पहुंचा देते हैं. मुक्तागिरी ट्रस्ट द्वारा सिद्घिक्षेत्र परिसर में भक्तगणों की बढिय़ा व्यवस्था की जाती है. आज की तारीख में मुक्तागिरी यहां बिजली, पोस्ट व अन्य जरूरी सेवाओं की भी व्यवस्था की जा चुकी है.
अचलपुर की दिशा ईशान, तहां मेंढागिरी नाम प्रधान, साढ़े तीन कोटी मुनीराय, तिनके चरण नमंू चितलाय. जैन धर्म की परंपरा में तीर्थ क्षेत्र दो प्रकार के होते हैं एक सिद्घक्षेत्र और दूसरा अतिशय क्षेत्र. जिस जगह से मुनिश्वर तीर्थकरदिक, महान साधकों ने विशेष आत्मसाधना की और सब कर्मबंधन से छूटकर मुक्ति लक्ष्मी की प्राप्ति की, उसी स्थान को सिद्घ भूमि कहते हैं. जिनेन्द्रदायिक के जन्म से, तप साधना से या चमत्कारादिक से जिस जगह को पवित्रता आई, उन्हें अतिशय तीर्थक्षेत्र कहा जाता. मुक्तागिरी में साढ़ें तीन करोड़ मुनिश्वरों को मोक्ष प्राप्ति हुई है. अत: यह पवित्र सिद्घ क्षेत्र है. मुक्तागिरी क्षेत्र का नाम मेंढागिरी भी है. जिसका उल्लेख निर्वाण कांड में देखने को मिलता है. इस पर्वत पर जो दस क्रमांक का मंदिर है इसके विषय में कहा जाता है कि लगभग एक सहस्त्र वर्ष पूर्व ऊपर से एक मेंढा ध्यानमग्र मुनिराज के सामने गिरा. तत्पश्चात ध्यान के बाद उन्होंने मेंढे के कान में नमोकर मंत्र सुनाया. फलस्वरूप मेंढा मर कर स्वर्ग में देव हुआ. देव होने पर उसे जाति स्मरण हुआ सो वह अपने उपकारक मुनिराज के दर्शन के लिये आया और उसने मुनि महाराजे से उपदेश के लिये प्रार्थना की. तभी से पर्वत का यह पूरा क्षेत्र मेंढागिरी कहलाता है. तब से मंदिर में अष्टïमी, चौदस व पूनम के दिन केशर की वर्षा होती है. इसी चैत्यालय को अकृत्रिम चैत्यालय कहते हैं. चैत्यालय में 72 जिनबिंब विराजमान है. इस संदर्भ में यह भी कहा जाता है कि क्रमांक दस का निर्माण एलिचपुर के राजा एैल ने किया था.
मुक्तागिरी मुक्ता बरसे, शीतलनाथ का डोरा उक्त पंक्ति इस तीर्थ के विषय से सुप्रचलित है. इन पंक्तियों में दसवें तीर्थकर शीतलनाथ भगवान के समवशरण का उल्लेख है. इस पर्वत पर जब उनका समवशरण आया था तब मोतियों की वर्षा हुयी थी. इसी वजह से इस क्षेत्र का नाम मुक्तागिरी पड़ा है, सतपुड़ा की इस पर्वत श्रृंखला पर मानव निर्मित 52 चैत्यालय है. इन मंदिरों में कुछ अति प्राचीन हैं और शेष 16 वीं शताब्दी के बताये जाते है. यहां से प्राप्त एक ताम्रपट के विवरण से इस क्षेत्र का संबंध सम्प्रट श्रेणिक बिंबसार के साथ बताया गया है. भगवान पाश्र्वनाथ का यह मंदिर जिसमें केशर की वर्षा होती है, यह प्रतिमा शिल्पकला का दर्शनीय नमूना है. प्रतिवर्ष कार्तिक शुद्घ पूर्णिमा और चातुर्दशी कार्तिक शुद्घ पूर्णिमा मुक्तागिरी में मेला लगता हैं इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण रथ यात्रा हुआ करती थी. सागौन लकड़ी से बने उक्त भव्य रथ को सने 56 में राजाराम सावे काटोलकर ने मंदिर को दान किया था. रथ पर सारथी बन बैठने के लिये बोली लगाई जाती थी.
पिछले 50 वर्षो से मप्र खेड़ी (सांवलीगढ़) के वेकौबाजी सरोदे ही रथ के सारथी रहे. अब इसे ईश्वर का अजीब संयोग ही कहना होगा कि सन्ï 95 में एक दिन पहाड़ से करीब दस मन वजनी एक पत्थर अचानक लुढ़कता हुआ रथ पर जा गिरा. जिसमें रथ जगह पर चकनाचूर हो गया. इधर रथ गया, उधर वेकौबाजी के भी प्राण पखेरू उड़ गये. इसी अजीबो-गरीब संयोग के लिये वेकौंबाजी आज भी याद किया जाते हैं. मुक्तागिरी को ऐतिहासिक पृष्ठïभूमि के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करने पर मालूम पड़ा कि यह समूची पर्वत श्रृंखला अमरावती निवासी बाबा साहब खापड़े ने की थी, ब्रिटिश हुकूमत ने बाबा साहब को निंभोरा, पलासखेड़ी, थापोड़ा, मालनी, जामूलनी और पुंडी का जहांगिरदार बनाया था. उस समय खापडेजी ने अंग्रेजों से मुक्तागिरी पर्वत दस हजार रूपये में खरीदा था. गाहे-बगाहे अंग्रेज अफसर बाबा साहब के साथ शिकार के लिये इस पर्वत पर आते रहते थे. शिकार को ले जाने के लिये मंदिर से होकर जाना पड़ता था. यह बात उस वक्त के मंदिर व्यवस्थापक नत्थूसा पात्थ्ूासा कलमकर (अचलपुर) इन्हें अच्छी नहीं लगती थी. मंदिर से होकर ये घटनाएं ना हो, पवित्र उद्देश्य से नत्थूसा ने खापडेजी से 40 हजार रूपये में मुक्तागिरी सौदा तय कर लिया. इसके लिये उन्हें परतवाड़ा से सेठ हीरालाल चंपालाल बडज़ात्या, राय साहब मोती संगई, अंजनगांव इन दो मान्यवरों ने अर्थ सहयोग उपलब्ध करवाया था. सन्ï 32 से 58 तक इन तीनों व्यक्तियों ने मंदिर व्यवस्थापन की जिम्मेदारी निभायी पश्चात 58 में विधिवत दिगंबर जैन सिद्घ क्षेत्र ट्रस्ट मुक्तागिरी की स्थापना कर दी गयी. यही ट्रस्ट आज भी मंदिर के सभी कार्यो का संचालन करता है. नत्थूसा के परिवार से विजय बाबू हिरासा कलमकर ने कई वर्षो तक ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभाली. मार्च 2004 में उनका भी निधन हो गया. अब ताजा स्थिति में अतुल विजय कलमकर यह व्यवस्थापक ट्रस्टी का दायित्व संभाल रहे हंै. अन्य ट्रस्टियों में रविन्द्र गेंदालाल बडजात्या, परतवाड़ा, अरूण संघई, अंजनगांव, देवकुमारसिंह, कासलीवाल, इंदौर तथा अशोक चवरे, कारंजा लाड इनका समावेश है. मैनेजर के रूप में नेमीचंद जैन (महरहरज) तथा अरविंद मोहनलाल खंडारे यहां बरसों से कार्यरत हैं. मुक्तागिरी में 350 पायरिया है जिसके माध्यम से 52 मंदिरों के दर्शन किये जा सकते हैं 1986 में इस सिद्घक्षेत्र को 24 तीर्थकरों का सान्नि आतंकवादियां को नरसंहारों को अंजाम देने से आज तक कभी रोकने में कामयाबी नहीं मिली है. प्रत्येक नरसंहार के बाद हालांकि सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने की बात तो कही जाती रही है लेकिन वह सब कागजों में ही होता था. कभी धरातल पर वह सुरक्षा व्यवस्था नहीं दिखी जिसके प्रति लंबे चौड़े दावे किए जाते रहे हैं. प्राप्त हुआ था. करीब एक सौ वर्ष पूर्व जब संपूर्ण अमरावती जिला सूखे की चपेट में था, तब यहां 108 आचार्य शांति सागर महाराज का आगमन हुआ. मुनिराज ने अपनी तपस्या के बलबूते पर यहां पानी (कुआं) की व्यवस्था कर दिखाई थी. यह कुआं आज भी यहां देखा जा सकता है. 26 जनवरी को जब गुजरात में भूकंप आया तभी से मुक्तागिरी के गोमुख से निकलती जलधारा अप्रत्याशित तरीके से दोगुनी होकर निकलने लगी. अंतरर्राष्टï्रीय ख्याति प्राप्त आचार्य विद्यासागरजी महाराज सन्ï 90-91 में मुक्तागिरी में चातुर्मास तक स्थानापन्न थे. सन 84 में आचार्य देशभूषण महाराज ने यहां सत्संग प्रवचन किया. बैनेट एण्ड कोलमैन के निदेशक अशोक बाबू जैन, संगीतकार रविन्द्र जैन, कविवर्य विट्ïठलभाई पटेल, आयएएस अधिकारी सुरेश जैन, जैन, महासभा के अध्यक्ष निर्मलकुमार सेठी आदि मान्यवरगण अपनी बैचेनियों को ईश्वर चरणों में रख योग्य मार्ग की तलाश करने मुक्तागिरी में ध्यानमग्र हो चुके है. मुक्तागिरी परिसर में प्रवेश करते ही एक महाद्वार तथा मानस्तंभ नजर आता है. मानस्तंभ के दर्शन होते ही तमाम व्यस्तताओं से मुक्त होने का सुखद अनुभव होने लगता. पर्वत की तलहटी में भगवान आदिनाथ का मंदिर है. समीप में ही नवनिर्मित भगवान महावीर का मंदिर है, जिसकी मूर्तियां भव्य व मनोरम हैं. इसके पश्चात ही शुरू होती है पर्वत पर निर्मित 52 मंदिरों के दर्शन की शारीरिक व मानसिक यात्रा. भावुक लोग दूर-दूर से इस पवित्र क्षेत्र के दर्शन लिये पधारते हैं. इसे दक्षिण भारत का शिखरजी भी कहते हैं प्राय: भक्तगण प्रात: व सायंकाल इस पर्वत की वंदना करते हैं. पर्वत पर पहुंचते ही चारों ओर घना जंगल दिखायी देता. जंगल की हरियाली और जल प्रपात का संगीत यहाँ पर आने वाले प्रत्येक तीर्थयात्रीयो के मन में शांति भर उल्लास की अनुभूति कराती है. मुक्तागिरी की प्राकृतिक सुन्दरता मन को प्रफुल्लित कर देती है. सबसे निारली बात तो यह है कि इन पहाडिय़ो पर चढ़ाई की थकान महसुस तक न होने के पीछे की वजह भी शायद यही है. चारो ओर घना घोर जंगल है जिसमें विचरीत करते हिंसक जंगली जानवरो के बीच अहिंसा परमोधर्म का पाठ पढ़ाते जैन समुदाय के लोग  जिन्हे यहाँ पर आते- जाते आज तक किसी भी जंगली जानवर से किसी भी प्रकार का खतरा न होना अपने आप में सबसे बड़ा चमत्कार है.  40 क्रमांक का मंदिर पर्वत के गर्भ में खुदा है. यह भगवान शांतिनाथ का प्राचीन मंदिर है. मंदिर की नक्काशी का काम अत्याधिक सुंदर है. उसी प्रकार स्तंभ व छत की रचना भी प्रत्येक को आकर्षित करती रहती. शांतिनाथ की प्रतिमा अतिभव्य एवं दर्शनीय है. मंदिर के समीप ही 250 फिट ऊंचाई से पानी की धारा गिरती, जिससे रमणीय जल प्रपात निर्मित हुआ है. निर्वाचन क्षेत्र (सिद्घ क्षेत्र) होते हुये भी मुक्तागिरी अनेक अतिशयों से युक्त है. मूलनायक भगवान पाश्र्वनाथ के मंदिर में अनेक भावुक भक्तों ने विविध प्रकार की बाधाओं, सांसारिक रोगों से मुक्ति पायी है. मुक्तागिरी के बारे यह भी कहा जाता है कि यहाँ पर जैन धर्म के अनेक महात्माओं एवं प्रवचको ने मुक्ति पाई है जिसके चलते ऐसी महान पूण्यत्माओं की समाधी स्थलो पर प्रतिदिन प्रकृति केसर की वर्शा करके उनका अभिनंदन करती है. मध्यप्रदेश सरकार के गैजेट बैतूल में इसका उल्लेख देखा जा सकता. अपनी क्रुद्घ मनोवृत्ति को शांत करने के लिये आप भी वीतराग के चरणों में बैठने का लाभ उठा सकते हंै. इसी मुक्तागिरी में, जहां परमात्मा और सेवक के बीच की तमाम दूरियां क्षणभर में मटियामेट हो जाती है. हो, मनुष्य को एक नई उर्जा प्रदान करती है. चातुर्मास में मुक्तागिरी जरूर आइये, आचार्य विधानसागरजी ने लिखा है सतत सातपुड़ा कह रहा, असत त्याग संतधार, मुक्तागिरी आ देख लो, दिखता शिवपुर द्वार.गमन चूमते शिखर है, रहे एक में एक युवा मेद्य ही जल भरें करते है अभिषेक.
इति,

ऊँजाले को तरसता भारत का पहला गांव
उस दिन कसई गाँव को देश की सारी मीडिया ने सर पर बैठाल रखा था क्योकि वह भारत का पहला गाँव कहलाया जहाँ पर भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय एवं मध्यप्रदेश की राज्य सरकार के सौजन्य से विद्युत विहीन ग्राम कसई के 55 घरो में वैकल्पीक ऊर्जा के पहँुचाने के लिए केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्री विलास मुत्तेमवार इस गाँव में पहँुचे थे लेकिन आज इस गांव में 16 लाख 18 हजार रूपये की लगात से बना उक्त वैकल्पीक ऊर्जा उत्पादन के प्रोजेक्ट को किसी की न$जर लग गई ……… यूँ तो ऐसा कहा जाता है कि भारत गांवो में बसता है . इन्ही गाँवो में आज भी घन्टो लाइन में लग कर कई दिनो बाद मिलने वाले मिटटïï््ी के तेल से रोशनी जलाने की म$जबुरी में जी रहे ग्रामिणो के चेहरे पर मुस्कान लाकर अपनी तस्वीरो को छपवाने वाले जनप्रतिनिधियो ने दुबारा कसई गांव जाकर उन लोगो की पीड़ा जानने का प्रयास नहीं किया है जहाँ पर 55 घरो में बिजली का प्रकाश पहँुचाने के लिए केन्द्रीय सरकार से अनुदान प्राप्त राज्य सरकार 16 लाख 18 हजार रूपये खर्च कर वैकल्पीक ऊर्जा उत्पादन प्रोजेक्ट लगाया था . इससे बड़ा इन लोगो के साथ और मज़ाक क्या होगा कि इन्हे अंधरे से ऊँजाले की ओर चलने के लिए उत्प्रेरित करने के बाद उत्प्रेरक ही नौ – दो – ग्यारह हो जाये ……..
अंधकार भरा जीवन जी रहे गांवो के लिए बिजली का ऊँजियारा महज एक काल्पनिक सुखद सपना जैसा है . जिसका केवल अहसास किया जा सकता है . ऐसे सपने के पूरे होने की कोई समय सीमा नहीं है फिर भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के 21 वी सदी के सुखद सपने को साकार करने की मंशा के साथ भारत के उन गांवो में रोशनी पहँुचाने का बीड़ा उठाया था जिसके लिए कसई गांव को पहली प्राथमिकता मिली लेकिन आज इस गांव की यह हालत है तो आने वाले कल के बारे में क्या कहा जा सकता है . जिन गांवो तक जाने के लिए रास्ता तक नहीं है. भारत सरकार की इस अति महत्वाकांक्षी अभिनव योजना को मूर्त रूप देने के लिए भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय ने देश के अत्यंत अंदरूनी ऐसे ग्रामों में जहंा सामान्य विद्युत ग्रिड से बिजली देना निकट भविष्य में संभव नहीं है, वहाँ पर वैकल्पिक संवहनीय साधनों से ऊर्जा प्राप्ति का प्रयास किया है
मध्यप्रदेश एवं महाराष्टï्र की सीमा से लगे बैतूल जिले के सुदूरवर्ती एकांकी स्थल पर स्थित ग्राम कसई में इस समय 55 परिवार जिनमें से 54 कोरकू जनजाति के एवं एक घर अनुसूचित जाति का है . इस ग्राम में वैकल्पीक ऊर्जा का उत्पादक प्रोजेक्ट की स्थापना के साथ इसी ग्राम के 3 युवकों एवं वन विभाग के कर्मचारियों को गैसीफायर संचालन हेतु प्रशिक्षण दिया गया है. गैसी फायर के उपयोगी जलाऊ लकड़ी स्थानीय ग्रामीणों द्वारा एकत्रित की जाती है तथा इस लकड़ी का गैसी फायर संयंत्र में उपयोग कर बिजली उत्पादन किया जाता है. कसई ग्राम में सभी 55 परिवारों को वैकल्पीक ऊर्जा से उत्पन्न बिजली के कनेक्शन दिए गए हैं तथा एक आटा चक्की संचालन के लिए भी बिजली की आपूर्ति की जा रही है. अभी वर्तमान में कसई ग्राम के सभी ग्रामीण परिवारो द्वारा स्वयं के द्वारा उत्पादित वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन की इस व्यवस्था का सफलता से उपयोग किया जा रहा. यह योजना आने वाले कई दिनो तक सुचारू रूप से चले इस कार्य के लिए कसई ग्राम ऊर्जा समिति को पंजीकृत कर उसे पूरी जवाबदेही सौपी गई है. इस समिति द्वारा ग्राम ऊर्जा  सुरक्षा योजना का प्रोजेक्ट के सुचारू रूप से क्रियान्वयन के लिए ग्रामसभा/ग्राम पंचायत कसई द्वारा चयनित ग्राम ऊर्जा समिति के द्वारा 2 खाते खोले गए . ग्राम ऊर्जा फण्ड खाता नामक इस खाते से योजना का क्रियान्वयन किया जाना था लेकिन गांव के लोगो को घर के लिए जलाऊ लकड़ी तक तो लाले पड़ रहे है ऐसे में इस प्रोजेक्ट के लिए लकड़ी लाकर उन्हे कौन काटेगा ……ï? सबसे बड़ी समस्या यह सामने आई कि जिन गांव के लोगो को काम धंधे की तलाश में पलायन करने को म$जबुर होना पड़ रहा हो वे हर महिने बिजली का बिल कहाँ से भरेगे ……..? सरकार की मंशा यह थी कि ग्राम परिवार स्वेच्छा से इस खाते में योगदान करे साथ ही विभिन्न शासकीय विभागों की अनुदान योजनाओं से भी कुछ सहयोग राशि इस खाते में जमा हो लेकिन जहाँ शासकीय योजनाओं को अफसर , बाबू तथा राजनीतिज्ञ दीमक की तरह खा रहे हो वहाँ पर रूपये – पैसे की अपेक्षा करना बेमानी होगा . 55 घरो का कसई गांव के ग्रामीणों के पास मौजूदा परिस्थिति 20 रूपये नहीं सरकारी अनाज और खाने का तेल लाने के लिए वे भला हर महिने घर में बिजली के बल्ब जलाने का 120/-रूपये कहाँ दे देगें उन्हे तो पचास रूपये का पाँच लीटर मिटटïी का तेल इस बिजली से सस्ता पड़ता है . हालाकि भारत सरकार द्वारा प्रोजेक्ट की लागत की 90 प्रतिशत राशि उपलब्ध कराई गई  शेष 10 प्रतिशत राशि ग्रामीण स्वयं योगदान करके अथवा अन्य शासकीय विभागों की मदद से प्राप्त होना था लेकिन मौजूदा परिस्थित में कसई गांव का अधंकार शासन की मंशा पर कालिख पोत गया है .
भारत सरकार की ग्राम ऊर्जा सुरक्षा योजना का लाभ मध्यप्रदेश के वनक्षेत्रों में बसे अविद्युतीकृत ग्रामों को लाभ देने के लिए वन विभाग द्वारा प्रयास किया जा रहा है. मध्यप्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा 1300 ग्रामों की सूची जारी की गई है जिनमें अभी  विद्युतीकरण नहीं हुआ है तथा अगले कई वर्षो तक होने की संभावना भी नहीं है. ऐसे सभी ग्राम पहुंचविहीन हैं तथा इनमें से बहुत से ग्राम वनक्षेत्रों के अंदर या उसके आसपास हैं. प्रथम चरण में वन विभाग द्वारा 26 ग्रामों का चयन कर उनका प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया था. अपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इनमें से निम्रानुसार 11 ग्रामों के प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए है:-
क्रमांक          जिले का नाम              ग्राम का नाम  स्वीकृत राशि (रूपए लाख में)
01        झाबुआ                  भाजीदुनसरा                 18.18
02                          होशंगाबाद          सुपलई                            19.89
03        होशंगाबाद             माना                          17.56
04        होशंगाबाद                बारासेल                        19.05
05        हरदा                देबराबंदी                        17.61
06        मण्डला                सुरंगवानी                        19.30
07        सिवनी                  खुबी रायत                        19.26
08        बैतूल          कसई                        16.18
09        छिंदवाड़ा             खुनाझिर                             8.77
10        धार             बडख़ोदरा                             9.90
11        धार               बावड़ीखोदरा                       10.82
कुल       1 करोड़ 76 लाख 52 हजार की यह अति महत्वाकंाक्षी योजना आने वाले दिनो के लिए बनी है लेकिन कसई गांव से सरकार को सबक सीखना चाहिये वरणा सरकार करोड़ो ही नही बल्कि अरबो – खरबो रूपये खर्च कर डाले लेकिन गांवो को निगल रहा अंधियारा किसी अमावस्या और पूर्णिमा के ग्रहण की तरह भारत शासन के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय की इस अति महत्वाकांक्षी योजना को ही न निगल जाये.
इति,

कही ऐसा तो नही कि मेरे गांव को किसी की नजर लग गई ……..!
रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने एक पत्रिका देखी तो उसमें छपा एक कालम ”मेरा गांव ….! मुझे अपने बचपन की ओर ले गया . मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है. बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया – गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है. गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा – तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. इधर परासोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है. खेड़ी – सेलगांव – बावई  होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. पंगडंडी जितनी है मेरे गांव को जाने के लिए उतनी गांव को जाने वाली सड़के नही है. दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है. लोग आते है , चले जाते है. कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है. जहाँ  पर लोग केवल घुमने के लिए आते है . जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है. थोड़ी से भूल – चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया…. ऐसे में सब कुछ खो जाने का डर रहता है. इसलिए लोग संभल – संभल कर चलने लगे है . गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के करतब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है . मेरे पापा बताते थे कि गांव के बुढे – बजुर्ग लोग विशेषकर महिलाये गांव से लड़को को बाहर जाने नहीं देती थी . पापा के एक जीजाजी राणा थानेदार खंडवा के रहने वाले थे वे उनसे कई बार कह चुके थे कि तू गांव को छोड़ कर बंबई चला जा लेकिन मेरे पापा की दादी लंगड़ी थी वह काफी नियम – कानून कायदे वाली थी. गांव में उस समय छुआछुत को काफी माना जाता था. गांव से दो – चार दिन लड़का बाहर क्या रहा उसे पुराने जमाने के पुराने रिवाजो को मानने वाले लोग गोबर – गौमुत्र – तुलसी के पत्तो से नहलाते थे उसके बाद भी उसे घर के अंदर आने देते थे . वन विभाग में नाकेदार के पद पर रहे पापा की नौकरी पंक्षी – टोकरा  कनारी – पाट में रही . उस समय शुटिंग ब्लाक होने की व$जह से कई लोग जानवरो का शिकार करने आते थे . जानीवाकर खंडवा के रहने वाले थे इसलिए उन्हे बैतूल – होशंगाबाद के जंगलो में शिकार का बड़ा शौक था. जानीवाकर मेरे पापा से इतने प्रभावित हो गये थे कि वे उन्हे बंबई चलने का कह चुके थे . उस जमाने की मशहुर अदाकार मीना कुमारी के पास काम करने के लिए बबंई चलने का जानीवकार का प्रस्ताव शायद हम लोगो की तकदीर और तस्वीर बदल सकता था लेकिन मेरे पापा की दादी की $िजद के चलते वे बैतूल जिले से बाहर कहीं नही जा सके . कुछ लोग बड़े – बुर्जगो की $िजद को दर किनार कर गांव से बाहर गये तो दुबारा फिर वापस नही लौटे . आज भी मेरे गांव के लोग बम्बई – दिल्ली – कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है . जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ”बच्चो का भविष्य देखना है …..! ”आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या…. ? अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि ……!  मेरा जन्म गांव माता माँ की गली वाले चम्पा के पेड़ के पास बने पुश्तैनी मकान में ही हुआ जिसके चलते मेरा बचपन और उससे जुड़ी अमिट यादे आज भी मेरा मेरे गांव से पीछा नही छोड़ती. रोंढ़ा आज भले ही कुछ भी हो लेकिन मेरी जन्मभूमि होने के कारण वह मुझे अपने से जोड़ रखी है . आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ मेरे नटखट बचपन की एक ऐसी निशानी है जिसे बरबस याद करते ही मुझे मेरा बचपन किसी फिल्मी चलचित्र की तरह दिखाई पडऩे लगता है. काफी पुराना मेरे गांव के विकास बारे में क्या लिखूँ क्योकि मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है. मेरे दादा ने उस गांव के आसपास के खेतो और खलिहानो में तीस साल अपनी भुजाओं के बल पर तीस साल तक कुआँ खोदा लेकिन आज मैं गांव तक आने वाले 3 किलोमीटर का फासला तक पैदल नही तय नही कर सकता. पहले गांव की सड़क को जोड़ती पगडंडी ठीक थी कम से कम पैदल तो चला जा सकता था लेकिन अब तो उबड़ – खाबड़ सड़क पर मोटर साइकिल लेकर चलना तक मुश्कील हो गया है. हमेशा इस बात का डर सताता है कि कही टायर में कोई कट न लग जाये. गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ – बहने – बहु – बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें का पानी गर्मी आने के पहले ही सुखने लगा है.पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ – तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है.
जब मेरा बेटा रोहित तीन साल का था तब मेरे दादा का निधन हो गया.  तीस साल तक कुआँ खोदने वाले मेरे दादा तीन बार मौत के मँुह से वापस लौटे शायद इसलिए कि उन्हे वे अपने मूलधन का ब्याज और उसका ब्याज देखना चाहते थे. अपने वंश के वृटवृक्ष की डालियो में खिले फूलो और फलो को देखने वाले मेरे दादा संत तुकड़ो जी महाराज के अन्यन्न भक्त वे खंजरी की थाप पर मराठी भाषी भजनो को गाने के साथ वे लावणी के अच्छे गायक थे. जिस गांव में रोज सुबह – शाम संत तुकड़ो जी महाराज के भजनो पर खंजरी की थाप गुंजा करती थी आज उसी गांव में बात – बात पर खंजर निकलने से लोग घरो में दुबके रहते थे. मेरे गांव को जैसे किसी की न$जर लग गई हो. आज मेरा गांव पुलिस की प्रोफाइल में झगड़ालू गांव के रूप में जाना जाता है. पिछले एक दशक से मेरे गांव में होने वाली हत्याओं ने गांव की छबि का विकृत स्वरूप पेश किया है. जंगल विभाग में नौकरी करने के बाद सेवानिवृत हुये मेरे पापा बताया करते है कि मेरे पूरे गांव को दुध और दही की धार से बांधा गया है वह इसालिए कि गांव में कोई बीमारी या अकाल मौत से कोई इंसान या जानवर नहीं मरे ……… लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि किसी ने मेरे पूरे गांव को उन्माद – नफरत – हिंसा – िजद और बदले की भावना से निकाले गये खून की धार से बांध रखा हो जिसके कारण मेरा गांव आज पुलिस की न$जर में हत्यारा गांव कहलाने लगा है . पापा बताते है कि पिछले कई वर्षो से मेरे गांव की जनसंख्या न तो बढ़ी है और न घटी है. एक दशक पहले तक तो पूरा गांव चारो ओर लहलहाते खेतो से घिरा था लेकिन अब लोगो ने भी गांव छोड़ कर खेत में अपना मकान बना कर रहना शुरू कर दिया है जिससे पूरे गांव की आबादी लगभग चौदह सौ रह गई है . कई साल पहले भी इतनी ही आबादी थी . आज मेरे गांव मे लोग आते कम जाते ज्यादा है . मेरे बचपन का साक्षी चम्पा का पेड़ की झुकी डालिया ही बताती है कि जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी संत तुकड़ो जी महाराज के तो कभी सर्वोदयी नेता एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे . आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है . अब तो इस गांव में भूदान करना तो दूर रहा दो गज जमीन के लिए ही लोगो को जान देनी पड़ रही है . गांव का प्राचिन शिव मंदिर हो या भुवानी माँ की दरबार सभी अपने स्थानो को छोड़ कर गांव की गलियो में आ गये है . अपने लिए घर बार बनाने वालो को पता नही क्यो उनके लिए घर – बार बनाने की चिंता नही रही जिनके दरवाजे पर जाकर जो मन्नते मांगते रहे है. एक प्रकार से देखा जाये तो जबसे हमारा पुश्तैनी घर ढहा है तबसे उससे लगा माता मंदिर का चबुतरा और चम्पा का पेड़ मुझे बार – बार इस बात के लिए कटोचता रहता है कि मैं एक बार फिर वापस आकर अपने लिए और अपने बचपन के साक्षी चम्पा के पेड़ और माता माँ के लिए एक ठौर ठिकाना बना लूँ …. लेकिन मैं जब भी यह बात अपनी बीबी और बच्चो के बीच करता हँू तो मेरा ही उपहास करते है कि गांव जाकर क्या करेगे ….? बच्चो के भविष्य के नाम पर मेरा बचपन मुझसे कोसो दूर होता जा रहा है . लोग कहते है कि भारत गांवो में बसता है लेकिन कोई भी इस गांव को आज तक भरत की तरह प्रतिज्ञा करने वाला भरतवंशी नहीं मिल सका जो कि मेरे इस गांव की तस्वीर को बदल सके .
इति,
प्रस्तुति – रामकिशोर पंवार पत्रकार
कहानी एवं सत्यकथा लेखक
मो. 9406535572

लेख
कल के तुकाराम आज के आशाराम
सच्चा सदगुरू वही जो अपने साधक से बिना कुछ लिए उसे ज्ञान दे लेकिन आधुनिकता के इस दौर में गुरू से लेकर साधक भी मार्डन होते चले जा रहे है. गुफाओं – कंदराओं – नदियो और ऊँची – ऊँची पहाडिय़ो पर वर्षो से बिना कुछ खाये – पीये तपस्या करने वाले साधु – संतो की जगह अब बाबाओं और ने ले ली है . आज के इस भौतिकवादी युग में किसी भी चाइल्ड से लेकर एडल्ट वेब साइट पर ही अपना तथाकथित दिव्य ज्ञान की वर्षा करने वाले बाबाओं की एक – एक बुंदो की पल्स रेट तक तय है . जितनी देर आपको ज्ञान चाहिए उतनी देर तक कोई भी प्रशिक्षु साधक को एडवांस में डी.डी. या अपने ए टी एम कार्ड से बाबा से लेकर वेब साइट को आन करने वाले वेबसाइट को भुगतान करना पड़ता है . किसी बाबा से मिलना हो तो उसके लिए नम्बर लगेगा और उसके लिए भी बुकिंग करवाना पडेगा . बाबा की निर्धारित तारीख पर उनसे मिलने के बाद बाबा के दर्शन से लेकर उनके चरण स्पर्श या उन्हे माला पहनाने या उनसे अपने सिर पर हाथ रखवाने तक के रेट निर्धारित है . इन सबके पीछे कहीं न कहीं भारतीय प्राचिन सभ्यता और संस्कृति को नष्टï करने की अतंरराष्टï्रीय साजिश है जिसने गुरू से लेकर चेले तक की सोच में में अमूल- चूल परिवर्तन ला दिया है. बाबा के हाई – फाई होने का असर छोटे – मंझोले बाबाओं पर भी पडऩे लगा है तभी तो लेपटाप बाबा , वेबसाइट बाबा जैसे कई नाम सुनने को मिल रहे है. कुछ साल पहले तक भारत के बाबाओं के पास तन ढकने को कपड़े नही रहते थे तो वे पेड़ो के पत्तो से अपना तन ढक लेते थे लेकिन अब तो बाबा स्वंय के चार्टर प्लेन से आने – जाने लगे है. करोड़ो – अरबो – खरबो की बेनामी  सम्पति के मालिक बने बाबाओं में कुछ ही ऐसे बाबा है जिसने लोगो को कुछ ऐसा संदेश दिया है जिससे उसके जीवन की दिनचर्या बदली है . साई इतना दीजिए जा में कुटंब समाय लेकिन अब तो भाई इतना दीजिए कि तुम कंगाल हो जाये ….?
संतो की भूमि महाराष्टï्र के महान संतो में तुकाराम जी महाराज का नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है. कल के तुकाराम जी महाराज और आज के आशाराम जी के रहन – सहन में परिवर्तन से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सच्चा सदगुरू कौन है….? सच्चाई सोलह दुनी बत्तीस आने सही है कि साई बाबा , संत ज्ञानेश्वर , गजानंद महाराज , दादा धुनी वाले , ताज वाले बाबा , संत तुकड़ो जी महाराज , के समकालिन इन महान दिव्य आत्माओं के शिष्यो की लम्बी चौड़ी जमात है. इनके प्रवचनो को सुनने का न तो कोई पैसा लगता था न किसी प्रकार का दान. साई बाबा तो अपने लिए भीक्षा मांग कर स्वंय अपना भोजन पकाते और खाते थे उसमें का एक हिस्सा वे किसी न किसी पशु को अवश्य खिलाते थे लेकिन आज के बाबा के लिए खाना भी किसी फाइव स्ट्रार  होटल से आता है . आज के मार्डन बाबा चार घर भीक्षा मांगने के बजाय बाबा चार धन्नासेठो और राजनीतिझो को ही मुर्गा बना कर अपने लिए एक दिन के खर्चे का बंदोबस्त कर लेते है. बीते दिनो बैतूल जैसे पिछड़े जिले में आये आशराम बापू के दो दिवसीय प्रवचन के दौरान हजारो साधको के लिए भोजन से लेकर भजन तक की दुकाने लगी थी जो किसी स्थानीय व्यक्ति या दुकानदार की न होकर स्वंय योग वेदांत समिति के बैनर तले संचालित थी. लोगो की आस्था का पागल पन कहिए या फिर इन तथाकथित मार्डन युग के बाबाओं का सम्मोहन जाल की लोग आंख होते हुए भी अंधे कुये में डुबने को तैयार है . आशाराम बापू के करीबी दर्शन से लेकर उनके चरण स्पर्श के नाम पर लोगो का लूटना या लूटा जाना अपने आप में घिनौना मजाक है . यह अपने आप में कड़वी सच्चाई भी है कि जहाँ एक ओर अंधश्रद्घा में डूबे लोग अपने बुढ़े – लाचार माता – पिता को घर से निकाल रहे है और उन जैसे जीवित बाबाओं के फोटो जो पुलिस थानो में लगने चाहिए उन्हे अपने घरो में लगा कर उस पर जूतो की बजाय फूलो माला लगा कर उनके नाम पर भंडारा चला रहे . बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में दो दिन रहे संत आशाराम ने अपनी जेब से चार आने किसी गरीब – बेसहारा – विकलांग या जरूरतमंद व्यक्ति को न देकर स्वंय ही लाखो रूपैया बटोर कर ले गये. इसमें किसी को किसी प्रकार का गिला या शिकवा नही क्योकि दु़कानदार का काम तो अपना माल बेचना है लोग जब स्वेच्छा से उसे खरीद रहे है तब किसी प्रकार की जालसाजी या धोखाधड़ी या चिटिंग नही …. पर इस बात पर भी अमल करना चाहिए कि पड़ौसी भूखा हो और हम गिद्घ भोज करवाये क्या यही सच्चा धर्म है…?
जिस देश में नदियो को देवी के रूप में पूजा जाता है उस नदी ने कभी किसी से नही कहा कि वह उसमें नहाने से पहले एडंवास बुकिंग की रसीद दिखाये लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा हो रहा है. हर चीज बिकाऊ हो रही है जिसके चलते बाबाओं के बैंक बैलेंस बढ़ते जा रहे है. कभी कभार लुढकन बाबा जैसे पाखंडियो का पर्दाफाश तब होता है जब कोई नाबालिग युवती का बाप अपनी इज्जत की परवाह किये बिना इन बाबाओं की काली करतूतो को उजागर करने के लिए पुलिस की शरण ले. इस देश में कई संत – फकीर बाबाओं को रंगरैली मनाते रासलीला मनाते देश के छोटे से गांव से लेकर समुन्द्र के उस पार तक लोगो ने पकड़ा है लेकिन बाहुबल और धनबल के दम पर बाबा आज भी दम मारो दम   मिट जाए गम का संदेश देते लोगो को चरस से लेकर हीरोइन तक का आदी बना चुके है . आज जरूरत इस बात की है कि इस देश का हर नागरिक इस बात पर चिंतन – मनन करे कि उसे कैसा गुरू चाहिए…?
इति,

दांत पीले है इसलिए , हाथ पीले नहीं हो पायेंगें …!
– रामकिशोर पंवार
शादी – विवाह का मौसम आया और चला भी गया…….  इस बार भी सीवनपाट नामक उस गांव में एक बार फिर भी न तो ढोल बजे और न कोई शहनाई गुंजी ……. इसके पीछे जो भी कारण हो पर सच्चाई सोलह आने सच है कि इस गांव की लड़कियो के दंातो पर छाए पीलेपन को  कोलेगेट से लेकर सिबाका ……. यहाँ तक की डाबर लाल दंत मंजन तक दूर नहीं कर पाया है . यह अपने आप में कम आश्चर्य जनक घटना नही है कि देश – दुनिया की कोई दंत मंजन कंपनी सीवन पाट गांव की उन युवतियों के चेहरो पर मुस्कान नहीं ला सकी है जिनके दांत पीले होने की वज़ह से उनके हाथ पीले नहीं हो पा रहे है . दंातो की समस्या पर आधारित उस गांव के हेडपम्प से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ता मीरा पत्नि शिवजी इवने एक हाथ से विकलंाग बन चुकी है . एक हाथ से काम ही नहीं हो पाने के कारण मीरा अपने पीड़ा को अपने गिरधर गोपाल को भी गाकर – बजा कर नहीं सुना सकती है . अपने एक कम$जोर हाथ को दिखाती मीरा इवने रो पड़ती है वह कहती है कि साहब जब हाथ ही काम नहीं कर पा रहा है तब दांत के बारे में क्या करू……. ! काफी शिकवा – शिकायते करने के बाद लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के द्घारा बंद किये गये बैतूल से आठनेर जाते समय ताप्ती नदी के उस पार बसे सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य गांव मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के अन्तगर्त आता है. इस गांव के बंद किये गये हेडपम्प के पानी पीने से के पानी की व$जह से अकेली मीरा ही विकलांग नहीं है उसकी तरह कक्षा 9 वी में गांव से 6 किलो मीटर दुर बसे कोलगांव में पढऩे जाने वाली गांव कोटवार हृदयराम आत्मज राधेलाल की बेटी रेखा आज भी बैसा$खी के सहारे गांव से पैदल ताप्ती मोड़ तक आना- जाना करती है. प्रतिदिन बस से किराया लगा कर  स्कूल पढऩे जाने वाली रेखा की हिम्मत को दांद देनी चाहिये क्योकि उसने विकलांगता को चुनौती देकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा . अनुसूचित जाति की कक्षा 9 वी की इस विकलांग छात्रा कुमारी रेखा के पिता हृदयराम अपनी पीड़ा को व्यक्त करते समय रो पड़ता है वह बताता है कि  ” साहब मेरी बेटी कन्या छात्रावास बैतूल में पढ़ती थी लेकिन वह इस पानी के चलते विकलांग बन गई और बीमार रहने लगी जिसके चलते वह एक साल फेल क्या हो गई उसे छात्रावास से छात्रावास अधिक्षका ने निकाल बाहर कर दिया मैंने काफी मन्नते मांगी लेकिन मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई …… !  ÓÓ हालाकि दांत के पीले होने की त्रासदी से रेखा भी नहीं बच पाई है. गांव में यूँ तो फ्लोराइड़ युक्त पानी ने कई लोगो को शारीरिक रूप में कम$जोर बना रखा है. 34 साल की देवला पत्नि राजू भी अपने पीले दांतो को दिखाती हुई कहती है कि मेरी शादी को 20 साल हो गये उस समय से मेरे दांत पीले है आज मैं हाथ – पैर से कम$जोर हँू आज मेरे पास कोई काम धंधा नही है….! गांव के स्कूल के पास रहने वाली इस आदिवासी महिला के 4 बच्चे है जिसमें एक बड़ी लड़की की वह बमुश्कील शादी करवा सकी है……! पथरी का आपरेशन करवा चुकी देवला और उसके सभी बच्चो के दांत पीले है.
उस गांव की युवतियाँ अपने भावी पति के साथ सात जन्मो का साथ निभाने के लिए दिन – प्रति दिन अपने यौवन को खोकर बुढ़ापे की ओर कदम रख रही है लेकिन इन पंक्तियो के लिखे जाने तक कोई भी इन युवतियों से शादी करने को तैयार नहीं है. इस गांव की फुलवा अपनी बेटी की दुखभरी दांस्ता सुनाते रो पड़ती है वह कहती है कि ”साहब इसमें हमारा क्या दोष ……… ! इस गांव के पानी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है . मेरी ही नहीं बल्कि इस गांव की हर दुसरी – तीसरी लड़की के हाथ सिर्फ इसलिए पीले नहीं हो पा रहे है क्योकि उनके दांत पीले है…….!   माँ सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का जब यह हेड पम्प नहीं खुदा था तब तक पानी पीने वाले गांव के भूतपूर्व पंच 57 वर्षिय बिरजू आत्मज ओझा धुर्वे कहता है कि ”साहब उस समय हमें कोई बीमारी नहीं हुई न दांत पीले हुये न हाथ – पैर कमज़ोर हुये ……..! पता नहीं इस गांव को इस हेड पम्प से क्या दुश्मनी थी कि इसने हमारे पूरे गांव को ही बीमार कर डाला…… .!  मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के इस गांव में बने स्कूल में पहली से लेकर पाँचवी तक कक्षाये लगती है . सीवनपाट के स्कूल में पहली कक्षा पढऩे वाली पांच वर्षिय मनीषा आत्मज लालजी के दांत पीले क्यो है उसे पता तक नहीं ….. मँुह से बदबू आने वाली बात कहने वाली शिवकला आत्मज रामचारण कक्षा दुसरी तथा कंचन आत्मज शिवदयाल दोनो ही कक्षा दुसरी में पढ़ती है इनके भी दांत पीले पड़ चुके है. 6 वर्षिय प्रियंका आत्मज पंजाब कक्षा दुसरी , 7 वर्षिय योगिता आत्मज रियालाल कक्षा तीसरी की छात्रा है. इसी की उम्र की सरिता आत्मज मानक भी कक्षा तीसरी में पढ़ रही है उसके पीले दांत आने वाले कल के लिए समस्या बन सकते है. गांव की कविता आत्मज लालजी सवाल करते है कि ”साहब कल मेरी बेटी शादी लायक होगी तब उसे देखने वाले आदमी को जब पता चलेगा कि इसके दांत पीले है तथा उसके मँुह से बदबू आती है तब क्या वह उससे शादी करेगा….ï?  विनिता आत्मज सुखराम कक्षा तीसरी की तथा कक्षा पांचवी की प्रमिला चैतराम भी अपने दांत दिखाते समय डरी – सहमी से सामने आती है . लगभग तीन घंन्टे तक इस गांव की पीड़ा को परखने गए इस संवाददाता को ग्रामिणो ने बताया कि 290 जनसंख्या वाले इस गांव में सबसे अधिक महिलायें 151 है. 139 पुरूष वाले लगभग 60 से 65 मकान वाले इस गांव में जुलाई 2006 को स्कूली मास्टरो से करवाये गये सर्वे के अनुसार इस गांव में 54 बालिकायें 44 बालक है जिनकी आयु 1 से 14 वर्ष के बीच है. इन 54 बालिकाओं में 49 के दांत पूरी तरह पीले पड़ चुके है. इसी तरह गांव की 151 महिलाओं में से 99 महिलाओं के दांत पीले है. शेष 52 महिलाओं की उम्र 45 से अधिक है जिनके दांतो पर उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी कोई असार नहीं कर सका है. जिला प्रशासन द्घारा लगभग 5 साल पहले ही उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी वाले हेड पम्प को बंद करवा कर उसके बदले में दो फ्लांग की दूरी पर एक हेड पम्प तो खुदवा दिया लेकिन उस हेडपम्प से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी का निकलना जारी है क्योकि जिन लड़कियो की उम्र पाँच साल है जिनके दँुध के दांत टूट कर नये दांत उग आये है वे भी पीले पड़ चुके है . आंगनवाड़ी पढऩे वाली अधिकांश बालिकाओं के पीले दांत इस बात का जीता – जागता उदाहरण है कि गांव में टुयुबवेल से दिलवाये चार नल कनेक्शन से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी निकल रहा है. दस वर्षिय सीमा आत्मज रमेश की माँ रामकला कहती है कि ”आज – नही तो कल जब मेरी लड़की को देखने को कोई युवक आयेगा तक क्या वह उसके पीले दांतो को देखने के बाद उससे शादी करने को तैयार हो जाएगा…..? ÓÓ   गांव की मालती आत्मज जुगराम कक्षा दसवी तथा कविता आत्मज बिन्देलाल कक्षा 9 वी में पढऩे के प्रतिदिन कोलगांव आना – जाना करती है. इसी तरह सरिता कक्षा 7 वी में पढऩे के लिए बोरपानी गांव जाती है .
गांव के कृष्णा आत्मज तुलाराम तथा गजानंद आत्मज राधेलाल की शिकायत पर वर्ष 2004 में बंद किये गये इस हेडपम्प के पानीे से जहाँ एक ओर राजू आत्मज तोताराम भी विकलांगता की पीड़ा को भोग रहा है. वही दुसरी ओर गांव की फूलवंती आत्मज झुमरू , कला आत्मज चैतू तथा संगीता आत्मज गोररी की भी समस्या दांत के पीले पन से है. उन्हे इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनका भावी पति उनके दांतो के पीलेपन तथा मँुह से आने वाली बदबू की व$जह से उनसे शादी करने से मना न कर दे . जब प्रदेश की विधानसभा तक मेें फ्लोराइड युक्त पानी पर बवाल मचा तो बैतूल जिला कलेक्टर भी दौड़े – दौड़े उन गांवो की ओर भागे जिनके हेडपम्पो से फ्लोराइड युक्त पानी निकलता था. बमुश्कील आधा घन्टा भी इस की दहली$ज तक पहँुचे जिला कलेक्टर ने यहाँ – वहाँ की ढेर सारी बाते की लेकिन जब गांव कोटवार ने ही अपनी बेटी की विकलांगता की बात कहीं तो उसके इलाज की बात कह कर कलेक्टर महोदय चले गये .
गांव के पंच संतराम , सुरतलाल , जुगराम , यहाँ तक की महिला पंच  रामकली बाई भी कहती है कि ”साहब हमें नेता – अफसर नही चाहिये हमें तो ऐसा आदमी चाहिये जो कि हमारे दांतो का पीला पन दुर कर सके ताकि हम अपनी गांव की लड़कियो के हाथ आसानी से पीले कर सके……..! ÓÓ  गांव के हेडपम्प और टुयुबवेल से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी की
व$जह सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य इस गांव की दुखभरी त्रासदी को सबसे पहले पत्रकारो ने ही जनप्रकाश में लाया लेकिन जिला प्रशासन की दिलचस्पी केवल उन्ही कामो में रही जिनसे कुछ माल मिल सके और यही माल कमाने की अभिलाषा जिले के तीन अफसरो को विधानसभा सत्र के दौरान सस्पैंड करवा चुकी है. लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के अफसरो का अपना तर्क है कि वह इस गांव के बारे में कई बार अपनी रिर्पोट जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार तक भिजवा चुका है लेकिन इस गांव की समस्या से उसे कोई निज़ात नहीं दिलवा सका है. अब जब इस गांव की लड़की अपने हाथ पीले होने के इंतजार में बुढ़ापे की दहलीज पर पहँुच रही है तब जाकर मध्यप्रदेश की वर्तमान राज्य सरकार ने यह स्वीकार किया है कि बैतूल जिले के कुछ गांवो में पोलियो की वजह इन गांवो के लोगो द्घारा पीया जाने वाला फ्लोराइड़ युक्त पानी है.
राज्य की भगवा रंग में रंगी खाकी हाफपैन्ट छाप भाजपाई सरकार का प्रदेश की जनता के स्वास्थ के प्रति कितन सजग एंव कत्वर्यनिष्ठï है इस बात का पता आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला मुख्यालय की नगरपालिका बात की कार्यप्रणाली से लग सकता है. लोगो को बिमारियो की आगोश में समा देने वाली भाजपाई अध्यक्ष के नेतृत्व में कार्य कर रही इस नगरपालिका को इस बात का पता चल गया था कि बैतूल की जमीन से निकलने  वाले पानी को पीने से कई प्रकार की गंभीर बिमारियाँ लग सकती है इसके बाद भी नगर पालिका ने अपने अंधे और बहरे होने का प्रमाण देकर बैतूल की जनता के स्वास्थ के साथ खिलवाड़ किया है. वैसे तो आमला एवं भैसदेही को छोड़ कर जिले की सभी नगरपालिका एवं नगर पंचायतो पर भाजपा का शासन है. जिला मुख्यालय पर श्रीमति पार्वती बाई बारस्कर की अध्यक्षता वाली भाजपा शासित बैतूल नगरपालिका परिषद की काफी बड़ी आबादी बीते डेढ़ महिने से शरीर के लिए निर्धारित मापदण्ड से दुगनी मात्रा वाले फ्लोराइड का पानी बगैर फिल्टर के पी रहे है. जबकि कार्यपालन यंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय खंड बैतूल ने मुख्य नगरपालिका अधिकारी बैतूल को देड़ माह पूर्व दी जांच रिपोर्ट में साफ कहा है कि संबंधित नलकूपों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित मापदंड से दुगनी है अत: इस पानी का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाए. फिर भी नगरपालिका द्वारा शहरवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर उन्हें फ्लोराइड युक्त पानी पिलाया जा रहा है. लेकिन न तो जनप्रतिनिधियों और न ही नपा के अफसरों का ध्यान इस ओर है. हालात इतने बदतर हो गए हैं कि नगरपालिका का भगवान ही मालिक है. नपा द्वारा डेढ़ माह से पिलाए जा रहे अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पानी के संबंध में डाक्टरों का कहना है कि अधिक मात्रा में फ्लोराइड वाले पानी के लगातार सेवन से हड्ïिडयों और दांतों पर दूरगामी असर पडऩा तय है.
दातो के पीले पन के लिए जिस फ्लोराइड को जिम्मेदार बताया जा रहा हन्ै वह तो जिला मुख्यालयो भी कई हेड़ पम्पो से लोगो को पिलाया गया. जिला मुख्यालय पर बीती ग्रीष्म ऋतु में नगरपालिका बैतूल द्वारा फिल्टर प्लांट स्थित माचना नदी का पानी पूरी तरह सूख जाने पर केन्द्रीय भूजल विभाग की मशीन से फिल्टर प्लांट परिसर में किए गए बोर का पानी नगर में सप्लाई करवा दिया. एक हजार और पांच सौ फीट के इन बोर का पानी विवेकानंद वार्ड, विकास नगर, शंकर नगर, कोठीबाजार, शिवाजी वार्ड, आर्यपुरा, टिकारी, मोतीवार्ड, दुर्गा वार्ड, में आज भी इस बोर का पानी दिया जा रहा है. नपा के जवाबदार अधिकारियों ने पेयजल सप्लाई के पहले इस पानी की केमिकल जांच किए बिना, फिल्टर किए जल प्रदाय किया गया व आज भी माचना नदी का फिल्टर किया हुआ पानी बोर का पानी साथ साथ सप्लाई कर आपूर्ति की जा रही है. नपा द्वारा उक्त बोर के पानी की केमिकल रिपोर्ट लाने स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से मांगी गई थी जो कि पानी का परीक्षण करने के बाद 6 जुलाई 05 को नपा को सौपी गई थी जिससे एक हजार फीट के इस बोर के पानी में फ्लोराइड  की मात्रा 3.19 मिग्राम प्रति लीटर बताई गयी है. जो कि निर्धारित आईएसआई मापदंड 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है. अत: नलकूप के जल का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाना चाहिए बावजूद इसके बैतूल नगरपालिका परिषद द्वारा दुगना फ्लोराइड मिला पानी शहर की जनता को पिलाया जा रहा है वहीं उक्त जल का डीफाउंडेशन भी नहीं किया गया. जब फिल्टर प्लांट जाकर वस्तुस्थिति की जानकारी लेनी चाही गई तो अभी भी यहां से स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग की रिपोर्ट के बाद भी फ्लोराइड  मिला पानी वितरित किया जा रहा है. फिल्टर प्लांट में लगे उत्फालवन पंखे भी विगत दो वर्षो से खराब पड़े हुए है जबकि पानी को साफ करने हेतु  उसमें मिलाया जाने वाला सोडियम हाइड्रोक्लोराइड की 38 लीटर पानी वाली केनो पर भी पर्चियों में जानकारी नहीं लिखी गई है. साथ ही जिस कुएं में पानी स्टोर कर साफ किया जाता है वहां लोग वाहन धो रहे है. जिससे पानी दूषित हो रहा है. इस संबंध में बैतूलनगरपालिका परिषद से संपर्क करना चाहा गया तो वहां पर संबंधित अधिकारी मौजूद नहीं थे.
निर्धारित मापदण्ड से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड के पानी का पेयजल के रूप में लगातार सेवन करना बच्चों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं सहित सभी के लिए अत्यधिक नुकसानदायक है और इसके दुरगामी परिणाम शरीर पर होते है जिसके चलते दात, हड्डïी, पर्वस सिस्टम और किडनी पर असर पड़ता है. यह बात प्रसिद्घ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ.योगेश गढ़ेकर से विशेष चर्चा में कही. उन्होंने बताया कि फ्लोराइड की अधिक मात्रा वाले पानी को पीने से फ्लोरोसिस नामक बीमारी होती है. इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है अन्य लोगों पर भी दूरगामी नतीजे नजर आते है. फ्लोराइड युक्त पानी पीने से दांतो, हड्डïी, नर्व सिस्टम और किडनी कमजोर होना शुरू हो जाती है. अधिक मात्रा में हड्डïी का बनना शुरू हो जाता है. गर्दन, पीठ, जोड़ों, एड़ी में दर्द शुरू हो जाता है. हड्डïी बढऩे से सवाईकल रेडिकूलो पेथी, लंबर रेडिकूलो पेथी नामक बीमारी शुरू हो जाती है. किडनी में यूरिया लेबल बढऩा शुरू हो जाता है. डॉ गढ़ेकर ने कहा कि बचाव का सबसे बेहतर उपाय यही है कि फ्लोराइड युक्त पानी का सेवन तत्काल रोका जाये और यदि किसी की उपरोक्त लक्षण नजर आते है तो ऐसे लोगो को तत्काल डाक्टर के पास जाकर अपना स्वास्थ परीक्षण करवाना चाहिए.राज्य सरकार से दूर रखे इस गांव में पोलियो के मरीज मिलना तो आम बात है लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से गांव की युवतियों के दांत पीले है जिसके चलते उन्हे देखने वाला युवक पहली ही बार में उसे अस्वीकार कर देता है . इस गांव को फ्लोराइड़ युक्त पानी से छुटकारा दिलवाने का भरोसा दिलवाने वाला व्यक्ति के रंग – ढंग से बेहद खफा इस गांव में के लोग कहीं इसी समस्या के चलते इस गांव में पहँुचने वाले उस हर व्यक्ति का हाल का बेहाल न कर दे बस इसी डर से वह दुबारा इस गांव में इसलिए नहीं आ रहा है. बरहाल दांत पीले से हाथ के पीले न होने की समस्या का हल कब निकल पायेगा यह कहना अतित के गर्भ में है

शनि दोस्त या दुश्मन
अपनी बहन के घर शनिदेव की वसूली ठेके पर ….
रामकिशोर पंवार
ग्रहो मे शनि के बारे में यह आम धारणा है कि वह अपने बाप का भी नहीं है . जब उसे आना होता है तो या उसका प्रकोप जिस पर आने को होता है तो वह हर हाल में आता है . शनि के प्रकोप उसे सूर्यपुत्री ताप्ती और पवन पुत्र हनुमान के अलावा आज तक कोई नहीं बच पाया है. महाकाल स्वंय भगवान भोलेनाथ को भी शनि से बचने के लिए एक बार हाथी बन कर जंगल – जंगल घुमना पड़ा था . शनि के प्रकोप से शांती का एक मात्र माध्यम है वह उसकी सबसे प्यारी लाड़ली बहन ताप्ती जिस पर शनि देव की कृपा ऐसी है कि जो भी माँ ताप्ती की शरण मे गया है शनिदेव ने उसकी ओर फिर कभी मुड़ कर नहीं देखा है . कई बार यह सवाल उठता है कि क्या शनि हर किसी का शत्रु ही होता है ऐसा भी नही है . शनि अगर किसी पर मेहरबान हो जाए तो उसे मालामाल कर देता है . गुण एवं दोष एक सिक्के के दो पहलू होते है . शनि में भी दोष की अपेक्षा गुण अधिक है लेकिन शनि का नाम सुन कर अच्छे खासे की पतलून ढीली पड़ जाती है बरसो से लोगो के दिलो – दिमाग में बैठा शनि का डर इसके दोष को देखता चला आ रहा है लेकिन शनि के गुण को नजर अंदाज करने से यह पता नही चल पाता है कि शनि दोस्त है या दुश्मन ….
शनि को लगड़ा ग्रह भी कहते हैं, क्योंकि यह बहुत ही धीमी गति से चलता है .  इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि मेघनाथ के जन्म के समय में रावण ने हर ग्रह को आदेश दिया था कि वे सबके सब एकादश भाव में रहे . इससे जातक की हर इच्छा की पूर्ति होती है . शनि भी एकादश भाव में बहुत बढिय़ा प्रभाव देता है, उतना ही बुरा प्रभाव द्वादश में देता है .  शनि, मोक्ष का कारक ग्रह, मोक्षकारक द्वादश में हो, तो इससे बुरा फल और क्या हो सकता है? देवताओं के इशारे पर शनि ने मेघनाथ के जन्म समय में अपना एक पैर द्वादश भाव में बढ़ा दिया, जिसे देख रावण का क्रोध सीमा को पार कर गया एवं शनि के एक पैर को काट कर उसको लंगड़ा ग्रह बना दिया . एक अन्य कथा के मुताबिक रावण ने अपने बंदी ग्रह में शनि को उल्टा लटका रखा था जब पवन पुत्र हनुमान लंका को जला कर जाने लगे तो उस दौरान उनकी नजर शनि पर पड़ ई पवन पुत्र हनुमान ने रावण के बंधन से शनि को मुक्त कराया जिसके चलते शनि ने पवन पुत्र को यह वचन दिया कि मैं आपकी शरण में आने वाले किसी भी प्राणी को अपने कोप से मुक्त रखूँगा . आज भी अधिकांश लोग शनि के कोप से बचने के लिए पवन पुत्र हनुमान की शरण में जाते है.
शनि का सूर्य एवं चंदा के प्रति मित्रता का भाव नहीं होता है . सूर्य तो पिता होने के बाद भी शनि की अपने पिता ने कभी नहीं पटी . शनि का आचरण सूर्य-चंद्र के आचरण के विरूद्घ होता है . यही वजह है कि सूर्य-चंद्र की राशियों-सिंह एवं कर्क के विपरीत इसकी राशियां मकर एवं कुंभ है . वैसे आम तौर यह कहा जाता है कि चंदा किसी काम को जल्दी में अंजाम देना चाहता तो है, पर शनि और चंदा का किसी तरह आमना – सामना हो गया, तो एक तो काम जल्दी नहीं होगा, दूसरे उसी काम के लिए अनेको बार प्रयास करने होगें . सूर्य भले ही आग का गोला हो लेकिन उसका हृदय संवेदनशील है इसलिए उसे आम तौर पर  हृदय कारक ग्रह कहते है . अगर शनि का अपने पिता सूर्य से आमना – सामना होता है तो हृदय रोग से जुड़ी बिमारीयाँ इस इंसान का तब तक पीछा करती है जब तक की उसकी शनि की शांती न हो जाए .
यूँ तो शनि के अनेको अवगुण स्पष्टï नजर आते हैं, लेकिन शनि जितना बुरा है उससे लाख गुणा अच्छा भी है . इसमें गुणों की भी कमी नहीं है . शनि के बारे में कहा जाता है कि वह जनतंत्र कारक ग्रह है . राजनीति के क्षेत्र में ज्योतिषी विद्या के जानकारो की न$जर में शनि विश्वास पात्र ग्रह है . मान लो किसी नेता जी की जन्म कुंडली में शनि महाराज की स्थिति ठीक नहीं रहने पर उसके क्षेत्र की का नेताजी पर विश्वास डगमगाने लगता हैै . शनि के दोस्त ग्रहों में बुध एवं शुक्र के नाम आते है . जहाँ एक ओर वैसे देखा जाए तो शनि वृष एवं तुला लग्न वालो के लिए हमेशा ही लाभदायक साबित हुआ है वही दुसरी ओर मिथुन एवं कन्या लग्न वालो पर लागू शनि का प्रभाव विपरीत साबित हुआ है . एक बात विचारणीय है कि अगर शनि अपनी भाव स्थिति के अनुसार शुभ है तो उसे स्वयं की राशि पर उगा राशि में या वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए . अगर कही भूल – चूक से ऐसा हुआ तो योग कारक शनि के समय मंत्री को संत्री और सेठ को नौकर तथा राजा को भिखारी बनने में देर नहीं लगेगी. वैसे शनि देव का डर इतना आम जन मानस में भरा गया है कि हर शनिवार लोहे के पात्र में शनि के नाम पर भिक्षावृति इस कदर बढ़ गई है कि लोग शनि भगवान की वसूली का ठेक भी लेने लगे हैै. बैतूल जिले में आने वाली एक विशेष प्रकार घुमन्तु जन जाति काल बेलिए का प्रमुख व्यवसाय शनिवार के दिन शनि वसूली हो गया है . शनि के नाम पर ज्यादातर कोर्ट कचहरी के पास लोगो का जमघट लगा रहता है जो कि कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाने वालो को शनि की शांती की नाम पर जम कर ठगने से नही चुकते. वैसे इस बात में कोई अतिश्योक्ति नही है कि अपनी छोटी एवं लाड़ली बहन ताप्ती की जन्मस्थली कहे जाने वाले बैतूल जिले में शनि भगवान ठेके पर चल रहे है……!
इति,

सब कुछ बदला लेकिन हम नही बदले
उसके पांव अंगद के पांव से भी अधिक भारी है तभी तो आज तक उसके पांव को कोई नही हिला सका . भले ही यह बात आपको अटपटी लगे पर सच्चाई सोलह आने सच है उस आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले जहाँ बैतूल जिले का कलेक्टर कार्यालय है . जिला प्रशासन की प्रमुख जन सम्पर्क इकाई इस कार्यालय में अगंद के पांव से भी भारी हो चुका फर्जी स्टोनो की डिग्री प्राप्त बैतूल जिला निवासी अरूण सोहाने से पूरा जिला हैरान एवं परेशान है जिसकी वज़ह यह है कि वह जिस पद पर पर पदस्थ है वह जिला कलेक्टर से सम्पर्क की पहली सीढ़ी है . भले ही कलेक्टर साहब अपने चेम्बर में हो पर कलेक्टर के स्टोनो ने आपको कह दिया कि साहब आऊट आफ स्टेशन है या फिर साहब आज किसी से नहीं मिल सकते ……… ! अगर आपने किसी प्रकार की जोर जबऱदस्ती की तो आपका भी वहीं हाल होगा जो अभी कुछ दिन पहले आठनेर के भाजपाई जनपद उपाध्यक्ष गुलाब सोलंकी का हुआ था . ऐसा कोई पहली बार नही हुआ है , गुलाब सोलंकी जैसे दर्जनो लोग रोज कलेक्टर से मिलने आते लोगो के साथ होता चला आ रहा है ……. !  पहले दुत्कार फिर फटकार ……… !  उसके बाद गाली – गलौच और इसके बाद भी नही माने तो पुलिस से इतने डण्डे पडेंगे कि तबीयत हरी हो जाएगी…… .. !  इस बेलाग हो चुके कलेक्टर के स्टोनो के आऊट आफ कंट्रोल होने के पीछे की एक व$जह  है कि कोई भी इस स्टोनो को बैतूल से स्थायी तौर पर दुसरे जिले का रास्ता नही दिखा सका है …..! एक झणीक प्रयास बमुश्कील जिले की एक मात्र दंबग महिला कलेक्टर श्रीमति सुधा चौधरी ने किया था . श्रीमति चौधरी ने अपने आने से पहले ही इसके जाने का बंदोबस्त किया था लेकिन श्रीमति सुधा चौधरी के जाते ही पुन:स्टोनो की अपनी पुश्तैनी कुर्सी पर आ  बैठे इस तथाकथित फर्जी स्टोनो ने अपनी सर्विस काल में एक दो नही बल्कि 22 कलेक्टरो को बैतूल से ऐसा बाहर का रास्ता दिखाया कि वे दुबारा बैतूल की ओर वापस नही लौट सके…..!  जिले के पूर्व दबंग कलेक्टर मुक्तेश्वर सिंह के पहले से इस कुर्सी पर डटे इस स्टोनो की पुरी जन्म कुण्डली इसके पूर्व मात्र एक साल भी नही रहे पाए स्टोनो विनोद जैन ने उपलब्ध करवाते हुए एक सनसनी खबऱ दी जिसके अनुसार राज्य सरकार की तबादला नीति को ठेंगा दिखाते यह स्टोनो उसी पद पर दुबारा पदस्थ होने के साथ अभी तक 22 कलेक्टरो के बाद भी इस कुर्सी पर अगंद के पांव से भारी हो गया है जिसके चलते बैतूल की किसी भी राजनैतिक पार्टी के सूरमा उसका बालबांका नही कर सके ….!  एक अधिकारिक कार्यालीन सूत्र के अनुसार जिला कलेक्टरो के सबंधो को जन प्रतिनिधियो एवं आम जन मानस से बिगाडऩे में इस स्टोनो की अहम भूमिका रही है……!  कलेक्टर कार्यालय की गोपनीयता भंग करने के साथ – साथ उनके आधार लोगो के साथ ब्लेकमेलिंग और सौदेबाजी के चलते जिले के पूर्व कलेक्टर बैतूल जिले से काफी बदनाम हुए . इसी बात का अंदेशा होने पर जिले के पूर्व कलेक्टर स्वर्गीय रजनीकांत गुप्ता ने अपने तबादले के पूर्व ही इसके तबादले की अनुशंसा करके उसे बैतूल से हटाने का अद्घितीय कार्य किया है जिसे अपने पदभार ग्रहण करने के साथ ही उसे जिले से रिलीव करके श्रीमति सुधा चौधरी ने इस स्टोनो को ऐसा छटका दिया था कि वह यहाँ से हटने के बाद भी पूरे समयकाल के दौरान अपनी वापसी के लिए जी – तोड़ प्रयास करता रहा . सूत्र बताते है कि बैतूल कलेक्टर के इस स्टोनो के द्घारा अभी हाल ही में सत्ताधारी  पार्टी के आठनेर जनपद के उपाध्यक्ष एवं सदस्य जो कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के स्वजाति जन प्रतिनिधियों को अपने चेम्बर दुत्कार ही नही बल्कि जेल भिजवाने देने की धमकी एवं अभ्रदता पूर्ण व्यवहार को लेकर द्रवित जनपद उपाध्यक्ष गुलाब सोलंकी ने तो अपने ऊपरी कपड़े उतार फेके ….!  बेचारा जनपद उपाध्यक्ष अपनी इस अपमान जनक बेइज्जती के लिए भाजपा के हर छोटे – बड़े नेताओं को फोन लगा कर बुलाता रहा लेकिन कोई भी शीर्ष से लेकर छुटभैया सत्ताधारी पार्टी का नेता या कार्यकत्र्ता उस अगंद के पांव की तरह जमें कलेक्टर के स्टोनो के खिलाफ खुल कर या लुक – छीप कर भी  या प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से गुलाब सोलंकी के पक्ष में न तो आकर खड़ा हुआ और न उसने इस घटना के प्रति कोई टीका – टिप्पणी की जिसके पीछे की व$जह कुछ इस प्रकार की है कि कलेक्टर का स्टोनो सत्ता और विपक्ष के नेताओं के बहुँत काम का आदमी है   ……….!  ऐसी स्थिति में गुलाब सोलंकी जैसे आदमी के लिए कलेक्टर के स्टोनो से पंगा लेना याने अपनी बंद फाइले खुलवा कर मुसीबतो का पहाँड़ खड़ा करना जैसा है……..! दिन प्रतिदिन बेलगाम हो जा रहे इस कलेक्टर के स्टोनो पर अगर वर्तमान
ने करूणा दिखलाई तो वे भी बैतूल से निपट जायेगें लेकिन यह अगंद का पांव जैसा का वैसा ही भरी रहेगा…….?

द्ररिद्र नारायण की सेवा का सुख
बैतूल (रामकिशोर पंवार )यूँ तो भारत भूमि में दयावानों की कमी नही है. जिस धरती पर  आज तक कर्ण से बड़ा कोई दानी नहीं जन्मा हो वहाँ पर छोटा मोटा अंकुरित आहार का दान कर देना कोई बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात तो सिर्फ यह है कि इस काम को पिछले सात सालों से आज तक विराम नहीं लगा है. देश में ऐसे किस्से बिरले ही सुनने को मिलेगें जब कोई संस्था और ना व्यक्ति इस काम को लगातार इतने वर्षो से कर रहा हो. रीमझीम बारिश हो या फिर तेज मूसलाधार बरसात हर सुबह कुछ लोगो का समुह निकल पड़ता है जिला चिकित्सालय बैतूल की ओर जहाँ पर  8.30 बजे अंकुरित आहार से भरे दोनो की भारी भरकम टे्र उठाये कुछ कर्तव्यनिष्ठï नागरिक अपने काम में जुट जाते है. साल भर बिना रूके उक्त अंकुरित आहार वितरीत करने वाले ए मानवतावादी कर्तव्यनिष्ठ लोग हैं जो मंदिर के पवित्र शंखनाद में, गुरू ग्रंथ साहब की शबद में या अल्लाहो अकबर वाली पवित्र आ$जान में ईश्वर को ढूंढने के पहले यथाशक्ति रोग से लड़ रहे रोगियों के दुख को कम करने का जटायु प्रयास करने का साहस करते हुए चिकित्सालय में पैर रखते ही प्रार्थना करते हैं कि- हे ईश्वर आपके आशीष से हमारे दिलों में जो प्रेम भाव जागृत हुआ है वह सदैव बना रहे ऐसी आपसे प्रार्थना है.
मध्यप्रदेश का आदीवासी बाहुल्य बैतूल जिला बैतूल शहर के द्वारा दिये गये मानव सेवा के नये आयाम आज पूरे मध्यप्रदेश में एक अनुकरणीय पहल के रूप में दस्तक दे चुके है. वैसे तो हर शहर में साधन संपन्न एवं दयालु प्रवृत्ति के बुद्घिजीवी विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से मानव सेवा कार्य में लगे हुए हैं किन्तु पूरे मध्यप्रदेश में शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहां बैतूल शहर के समान मध्यवर्गीय परिवारों की प्रचुर भागीदारी से शहर के शासकीय चिकित्सालय में बगैर एक भी दिन की चूक के लगातार छ: वर्षो से (01 जनवरी 99 से आज तक) एक निर्धारित समय प्रात: 8.30 से 8.45 बजे पर मात्र पंद्रह मिनट के अंतराल में सभी जनरल वार्डो में रोग से लड़ रहे रोगियों एवं उनके परिजनों को बड़े प्रेम पूर्वक एवं आग्रहपूर्ण तहजीब के साथ अंकुरित आहार से भरा हुआ एक दोना देकर न केवल उनके एक लोटा पानी की व्यवस्था की जाती है, अपितु साथ-साथ अंकुरित आहार योजना की दूसरी विशेषता यह है कि इसके संचालन के लिए न तो कोई समिति बनी है और ना भविष्य मेें बनाने का इरादा है. बैतूल शहर के चुनिंदा 25-30 नागरिकों ने इस कार्य से शहर के सभी वर्ग समुदायों को जोडऩे का अद्घितिय कार्य किया है और करते वले आ रहे है. मध्यवर्गीय परिवार की इतनी बड़ी जन भागीदारी जिला बैतूल को पुरे मध्यप्रदेश में सर्वोच्च स्थान पर ला खड़ी की है क्योकि इस जिले में द्ररिद्र नारायण की सहायतार्थ जनभागीदारी का उल्लेखनीय प्रयास अंकित किया जा रहा है.अंकुरित आहार वितरण का श्री गणेश परिवार के सदस्यों द्वारा उस समय से माना जाना चाहिये जब वे अपनी रोजी रोटी के अर्थ उपार्जन की दिनचर्या के साथ मिलने वाले नागरिकों को इस योजना की जानकारी देते हुये प्रेरित करते हैं कि वे अपने बच्चों को जन्म दिन पर अथवा अपनी शादी की वर्षगांठ पर या अपने प्यारों की पुण्यतिथि पर मात्र 250 रूपये अथवा 10 किलो अंकुरित आहार चाहे वो चना, मूंग हो अथवा कोई भी अनाज को गीले कपड़े में बांधकर दो दिन पूर्व से अंकुरित किये हुये अनाज को शासकीय चिकित्सालय में प्रात: 8.15 बजे लाने का कष्टï करें जहां पर अंकुरित आहार परिवार आपके सहयोग के लिये प्रतिदिन उपलब्ध रहता है जो शीघ्र ही इस अंकुरित आहार वितरण की शुरूआत अंकुरित आहार को तैयार कराने से होती है जिसमें सुगनचंद जी तातेड़ जयंतीलाल गोठी, इंदरचंदजी तातेड़, प्रवीण दोषी, धनराज पगारिया, सुरेश जैन अपने सामने अंकुरित आहार को गुजराती काका के होटल में जांच कर सायकिल से अस्पताल की ओर अंकुरित आहार को रवाना करते है . अंकुरित आहार वितरण करने परिवार के सदस्य चाहते है कि बच्चों की सालगिरह पर आयोजित की जाने वाली केक, कैंडल पार्टियों में कटौती कर जीवन के वास्तविक सुख ‘दान की गरिमा से अपने नौनिहालों को नवाजें, इसके अलावा अपने बुजुर्गो की पुण्यतिथि पर अथवा शादी की वर्षगांठ की खुशियों में रोगियों को भी शामिल कर पुण्य लाभ अर्जित करें. उक्त सभी योजना की विस्तृत जानकारी देते हुये सुगनचंद जैन बताते हैं कि 120 बेडयुक्त अस्पताल में 120 मरीजों के अतिरिक्त इतने ही इनके परिजनों एवं भर्ती हुये अन्य मरीजों की कुल संख्या 350 से लेकर 400 के लगभग होती है . इन सभी को 75-100 ग्राम अंकुरित आहार देने के लिये लगभग 10 किलो मूंग अथवा कोई भी अंकुरित किया जाने वाला अनाज जैसे चना, मोठ, बरबटी दो दिन पूर्व अंकुरित है जिससे उस आहार में दाने अंकुरित होकर सफेद-सफेद जड़ें निकल जाती है तत्पश्चात उसमें नमक डालकर उसे और पौष्टिïक करने हेतु पालक के पत्ते, टमाटर, धनिया डाल दिया जाता है तथा दो विभिन्न बर्तनों में डालकर चिकित्सालय ले आया जाता है . वर्तमान में प्रचलित दरों के अनुसार 200 रूपये का अंकुरित आहार व 400 दोने 40 रूपये के इस प्रकार मात्र 250 रूपये के अंदर एक व्यक्ति का बजट बनता है जिससे पूरा चिकित्सालय लाभंावित हो जाता है.

दहेज लाओ… दुल्हन ले जाओ!
बैतूल (रामकिशोर पंवार ) वे भले ही शहरी लोगो की न$जर में अनपढ़ – गोंड – गवार हो सकते है लेकिन भारतीय समाज के लिए वे आज के इस युग में जीती जागृति आदर्श एवं नैतिकता की मिसाल है जिससे कुछ सीखा जाता सकता है . आज पूरे देश में फिल्मी दुनिया की अपने अभिनय के चलते बेमिसाल बनी स्वर्गीय ललीता पंवार जैसे क्रूर – अत्याचारी – बहुओं का जीना दुभर करने वाली सास (पति की मां) की कमी नही है . दहेज रूपी दानव के मुख से दहकने वाली आगों में जलाने एवं दहेज के नाम पर कन्या पक्ष का आर्थिक शोषण करने की कुप्रथा भले ही शहरी संस्कृति में पनप रही हो, मगर बैतूल जिले में सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों में निवास करने वाली कोरकू आदिवासी जनजाति ने साबित कर दिया कि अभी वे इतने लाचार, मजबूर और भीखमंगे नहीं हुए है कि कन्यापक्ष को दहेज के नाम पर गीले कपड़े की तरह निचोड़ डालें. कोरकू आदिवासी जनजाति में लड़का तो एक तयशुदा रकम ससुर के हाथ में रखता है तब उसकी बेटी से शादी करता है. यह रकम बाद में लड़की को दे दी जाती है . बैतूल जिले का जोडिय़ा गांव सतपुड़ा  पर्वत की श्रृंखलाओ में घने जंगलों के बीच बसा हुआ है . यह गांव आज भी शहरी दहेज रूपी कुसंस्कृति के प्रकोप से सुरक्षित रहने के कारण इस गांव के वे लोग जिन्हे अपने घर बसाने है वे आज भी गांवो से कोसो दूर बैतूल – भोपाल – इन्दौर – नागपुर जैसे महानगरो में काम की तलाश में जा पहँुचे है जिसके पीछे की व$जह यह है कि उन्हे अगर ”दुल्हन वहीं जो पिया मन भाए चाहिए …..! ÓÓ तो काम -धाम करके 20 हजार रूपये कमा कर अपने ससुर को देना होगा ताकि वह यह जान सके कि उसका दामाद कमाऊपूत है तथा उसकी बेटी का पेट पाल सकता है……! लोगो को सुनने मेें यह बात भली ही अटपटी लगी हो पर सच्चाई सोलह आने सच है . बैतूल में एक प्रायवेट ट्रक पर कन्डेक्ट्ररी करने वाला गबरू की यही आपबीती है . उसके जैसे वे हर नौजवान काम की तलाश में 20 हजार रूपये जमा करने के लिए शहरो में अपना पसीना बहा रहे है ताकि उनके सपनो की राखी सावंत उन्हे भी मिल सके . इस जाति ने शहरी संस्कृति से ऊपर उठ कर शादी के पूर्व ही तय शुदा नवदम्पत्ति हैं को साथ – साथ मेहनत मजदूरी करने के लिए गांव छोड़ कर शहर जाने तथा साथ – साथ रह कर 20 हजार रूपये कमाने की छुट दे रखी है जिनकी शादी को भी अभी तक समाज से वैधता नहीं मिली हैं, क्योंकि इन नव दम्पति ने अपने ससुर के पास 20 हजार रूपए जमा नही किया है  उक्त रूपये जमा होने के पश्चात ही उसकी शादी को हरी झंडी मिलेगी.
मंगल अपनी पत्नि मझोली के साथ पाथाखेड़ा की कोयला खदानो में ट्रको में कोयला भरने का काम करता था . पिछले सात महिने दोनो पति – पत्नि ने कड़ी मेहनत करने के बाद मंगल ने 18 हजार रूपये कमा कर अपने ससुर के पास जमा तो कर दिये लेकिन इस बीच एक हादसे में मझोली की मौत हो गई . मंगल के ससुर ने अपने दामाद को इस हादसे से उबारने के लिए अपनी छोटी बेटी की शादी मंगल से करवा कर उसे अपने घर लमझेना (घर जवाई) ले आया . इसी तरह मकालू और सुकाली पिछले छह माह से पति-पत्नि के रूप में रह रहे हैं , मगर समाज ने उनकी शादी को अभी तक मान्यता नहीं दी है. क्योकि मकालू ने अभी तक तय शुदा रकम अपने ससुर को नही सौंपी है . बैतूल जिले के कई ग्रामिण अंचलो में रहने वाली मेहनत कश कोरकू आदिवासी समाज को इस बात पर ना$ज है कि अभी तक उसके अनपढ़ समाज में बहू को दहेज के लिए जिंदा जलाने का कोई भी हादसा न तो हुआ है और न हो पाएगा . किसी की लाड़ली बेटी को घर लाकर उसकी हत्या करना महापाप समझने वाली इस जाति में लड़का लड़की समान है . इस समाज के लिए दुसरे का लड़का खुद का दामाद जो कि लमझेना (घर जवाई) कहलाता है वह बेटे के समान होता है . इसके विपरीत दूल्हा बनने वाला लड़का ससुर को पहले रकम कमाकर इस बात का यकीन दिला देता है कि वह अपने पैरों पर खड़ा होकर उसकी बेटी (अपनी पत्नि) और बाल – बच्चो को पाल सकता है . कोरकू आदिवासी समाज में इस प्रथा को लोग ‘लमझियानाÓ कहते हैं.
इस प्रथा के अनुसार लड़का व लड़की शादी के लिए तैयार होने के बावजूद लड़के को विवाह किए बिना दामाद के रूप में ससुर के घर रहना पड़ता है. इस दौरान वह तयशुदा रकम अपने ससुर को कमाकर देता है. इस कमाई में लड़की भी लड़के का साथ देती है. यह रकम अदा करते ही दोनों की विधिवत रूप से शादी कराकर बिदाई दी जाती है. इस रकम को लड़की का पिता अपने पास ही रखता है. जरूरत पडऩे पर पिता बाद में इस पैसे को अपनी बेटी को लौटा भी देता है.

लावारिश लाशों का वारिस बदरूद्दीन पठान
हरदा  (रामकिशोर पंवार ) इस बेहरम दुनिया में फरिश्ते कहाँ मिलते है…….! 57 वर्षिय आटो चलाने वाला बदरूद्दीन उन मृत आत्माओं के लिए किसी फरिश्ते से कम नही है . अकाल मौत के आगोश में आए ऐसे अज्ञात एवं ज्ञात शवो को मुक्तिधाम पहँुचाने के लिए हमेशा मदद के लिए उत्सुक रहने वाला शख्स बदरूद्दीन कहने को तो आटो ड्राइवर है, लेकिन उनका काम शहर के यात्रियों के अलावा जिदंगी का सफर पूरा कर चुके बेनाम यात्रियों को भी मंजिल तक पहुंचाना है . कोई उसे बदरूद्घीन ‘पठान चाचा कहता है तो कोई भाई जान ……..!  इन सब से हट कर वह उन लोगो के लिए उनके परिवार का कोई बड़ा बुर्जग व्यक्ति से कम नहीं है जो अपने बड़े होने का दायित्व निभाते चला आ रहा है . हरदा शहर इंसानियत के कलयुगी फरिश्ते बदरूद्दीन को पता भर चलना चाहिए कि कहीं लावारिस लाश मिली है . वह तुरंत वहां पहुंच जाते हैं अब तो स्थिति यह है कि लावारिस लाश मिलने पर पुलिस या जीआरपी के लोग ही पठान को बुलवा लेते है . अद्घितीय अनोखी समाजसेवा में जुटा पठान लावारिस लाशों को उसके धर्म और संस्कार के तहत अंतिम क्रियाकर्म करता है . स्वभाव से बेहद विनम्र बदरूद्दीन कहता है कि इससे, उसे सकून मिलता है . उसने इस कार्य की शुरूआत करीब 25 साल पहले एक मैकेनिक के यहां कार्य करने के दौरान यह भावना जागृत हुई. बदरूद्दीन बताता है कि वह करीब दो हजार लावारिस शवों का क्रियाकर्म स्वंय के खर्च पर कर चुका है साधनों के अभाव के बावजूद पठान कभी अपने काम से परेशान नहीं हुआ। कई बार अर्थी को कांधा देने के लिए 4 लोग नहीं मिलने पर पठान हाथ ठेले पर ही शव को मुक्तिधाम या कब्रगाह तक ले जाता है .

मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 लापता……..?
सचित्र रिर्पोट :- रामकिशोर पंवार
भारत में बाघों की संख्या को उजागर करने वाली ”भारतीय वन्य जीव संस्थान  देहरादुन की ताजा रिर्पोट में इस बात का खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती बैतूल तथा महाराष्टï्र के सीमावर्ती अमरावती जिले के वन्य जीव क्षेत्र में बनी मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 बाघो का कोई अता – पता नहीं है . भारत सरकार के नियत्रण में कार्यरत इस संस्थान ने मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट द्घारा उपलब्ध आकड़ो की पोल खोलते हुए चौकान्ने वाले तथ्यों को उजागर करके दावा किया है कि वर्तमान समय में मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के वन्य जीव क्षेत्र में 67 बाघो में से केवल 30 ही बाघ बचे है…! देश के प्रधानमंत्री डाँ मनमोहन सिंह ने स्वंय देश की जानी- मानी एवं अनुभवी वन्य जीव विशेषज्ञ श्रीमति सुनीता नारायण की अगुवाई में टाइगर टास्क फोर्स का गठन किया गया था . इस टाइगर टास्क फोर्स ने मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट में बाघो के शिकार के मामले में चिंतित होकर आई . एफ . एस . अधिकारियों को लेकर बनाई  ”भारतीय वन्य जीव संस्थान  देहरादुन से मदद मांगी थी जिसके बाद ही उक्त तथ्यों का खुलासा हो सका .  मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के वन क्षेत्र में बसे 22 गांवो में से इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मात्र दो ही गांवो का पुर्नवास हो सका है . शेष 20 गांव आज भी तलहटी एवं नदी – नालो तथा प्राकृतिक जल संग्रहित स्थानो के आसपास बसे होने के कारण इन गांवो के ग्रामिण जिनमें अधिकांश अनुसूचित जन जाति के लोग है वे ही वन्य प्राणियो के सबसे बड़े दुश्मन बने हुए है . बैतूल जिले की सीमा से लगे इस प्राजेक्ट में जिले का भी वन क्षेत्र तथा गांव आने से महाराष्टï्र सरकार के वन विभाग के पास एक रटा – रटाया जवाब रहता है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती बैतूल जिले के शिकारी और ग्रामिणो के कारण वन्य प्राणियो को जान के लाले पड़ रहे है लेकिन अब तो मध्यप्रदेश सरकार का वन मोहकमा भी महाराष्टï्र के अफसरो के सुर में सुर मिलाते हुए कहने लगा है कि जिले के वन्य प्राणियो का महाराष्टï्र के शिकारी एवं ग्रामिण शिकार कर रहे है . दोनो राज्यों के वन विभागो के आला अफसरो के लिए यह सबसे बड़ा शर्मनाक तथ्य है कि मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 बाघ न तो मध्यप्रदेश के वन क्षेत्र में है और न महाराष्टï्र के वन क्षेत्र में ऐसी परिस्थिति में अंतरराष्टï्रीय वन्य प्राणियो के अवयवो का कुख्यात तस्कर संसार चंद भले ही तिहाड़ जेल की चार दिवारी में कैद हो लेकिन उसका अच्छा खासा नेटवर्क आज भी मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट में फैला हुआ है . ”भारतीय वन्य जीव संस्थान  देहरादुन की रिर्पोट में इस बात को भी उजागर किया है कि 20 गांवो के लोगो को मोहरा बना कर वन्य प्राणियो अवयवो के तस्कर द्घारा पानी में $जहर मिलाने एवं अधखाई शिकार पर $जहर डालने तथा बिजली का कंरट लगा कर वन्य प्राणियो को मारने के तौर – तरीके अजमाए जा रहे है . दो राज्यो की सीमावर्ती वन क्षेत्र में मध्यप्रदेश के कटनी क्षेत्र की बहेरिया जाति के लोगो को भी संदेह की न$जर से देखा जा रहा है क्योकि यह जाति अपने तथाकथित जड़ी – बुटी से इलाज के नाम पर गाडिय़ो में पूरे साज और सामान के साथ आते है . इनके पास लोहे के बने फंदे होते है जिसमें वन्य प्राणी आसानी से फंस जाता है . बैतूल जिले के भैसदेही , आठनेर , भीमपुर तथा महाराष्टï्र के अजंनगांव , दर्यापुर , परतवाड़ा के आसपास के गांवो में अपना डेरा जमाने वाली इस बहेरिया जाति भी बरसो से वन्य प्राणियो की जानी दुश्मन बनी हुई है . बैतूल जिले के वन विभाग के अफसर तो साफ शब्दो में कहते है कि वर्तमान समय में बैतूल जिले में एक भी बाघ नही है . पड़ौसी सीमावर्ती राज्य के मेलघाट के टाइगर प्रोजेक्ट से 37 बाघो के लापता होने के लिए वे जिम्मेदार नहीं है …. भारत सरकार द्घारा बाघो के संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश एवं महाराष्टï्र के सीमावर्ती वन परिक्षेत्रो में स्थापित महाराष्टï्र जिले के अमरावती जिले के दो प्रमुख गुगामल राष्टï्रीय बाघ अभ्यारण और मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले दोनो राज्यो के भारतीय वन सेवा (आई . एफ . एस .) के अफसरो की एक साझा बैठक बुलवाने के बाद ही उक्त प्रोजेक्ट को मूर्त रूप दिया गया था . जिसमें दोनो राज्यो के वन विभाग के आला अफसरो को साफ तौर यह निर्देशित किया गया था कि दोनो ही पड़ौसी राज्यों बाघो के संरक्षण के लिए आपसी तालमेल के कार्य करेगें तथा दोनो ही अपने वन क्षेत्रो में इस प्रोजेक्ट के बाघो पर निगरानी से लेकर उनके संरक्षण के प्रति जवाबदेह होंगे . दोनो राज्यो के अफसरो की समय – समय पर होने वाली साझा बैठको की खानापूर्ति तो हुई लेकिन दोनो ने ही एक दुसरे पर जवाबदेही का आरोप – प्रत्यारोप लगा कर वे स्वंय इन आरोपो से बचते रहे कि इन बाघो के लापता होने के लिए वे स्वंय जवाबदेह है . आज यही कारण है कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले से लगे दो वन्य प्राणियो के प्रोजेक्ट जिसमें एक भोपाल – नागपुर राष्टï्रीय राजमार्ग 69 पर बैतूल एवं छिन्दवाड़ा जिले के सीमवर्ती वन परिक्षेत्रो में स्थापित है उस पर अंतराष्टï्रीय वन्य प्राणियो के तस्कर की न$जर लग गई है . आज भले मध्यप्रदेश राज्य सरकार का वन मोहकमा टाइगर प्रोजेक्ट की जवाबदेही से स्वंय को दूर कर रखा हो पर उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि बैतूल जिले में वन्य प्राणियो की संख्या दिन – प्रतिदिन क्यो घटते जा रही है . जब इस संवाददाता ने राज्य के वन सचिव से इस बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाही तो स्वंय संतोष जनक जवाब नहीं दे सके .  बैतूल जिले की एक मात्र पंजीकृत संस्था बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के संयोजक एवं भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्घारा गठित  जिला पर्यावरण वाहिणी के सदस्य के अनुसार अभी हाल ही में जिला मुख्यालय पर स्थित अिकारी क्षेत्र में पूरे मोहल्ले के लोगो ने सांभर का मांस खाया लेकिन वन विभाग के अफसरो से लेकर पुलिस मोहकमा तक के लोग के कानो में जँू तक नहीं रेगी . सबसे शर्मनाक बात तो यह रही कि जिस मोहल्ले में सांभर का मांस बटा इस मोहल्ले में बैतूल विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक शिवप्रसाद राठौर का भी निवास है साथ ही वन एवं पुलिस विभाग के कई कर्मचारी निवास करते है . समिति का आरोप है कि जिले में इस समय पूरा वन मोहकमा वन्यप्राणियो के संरक्षण तो दूर रहा वनो के संरक्षण तक के लिए अपनी जवाबदेही सही ढंग से नहीं निभा पा रहा है . आज जिले में लाखो की लकडिय़ा वन विभाग के उडऩदस्ते के सामने वन माफिया द्घारा जला दिया जाना तथा उसके बाद एक ही गांव से लाखो की लकड़ी वन्य प्राणियो की खाल तथा उन्हे पकडऩे के लिए उपयोग में आने वाले फंदो की बरामदी इस बात का प्रमाण है कि जिले का वन मोहकमा अपने कत्वर्य का किस ढंग से पालन कर रहा है .
इति,

सुर्खियों में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं बैतूल जिले के टीवी चैनल के रिर्पोटर …..?
कभी सफेद उल्लू को गरूड़ बतायेगें तो कभी बिरजू को नमक खाने वाला
बैतूल, रामकिशोर पंवार: सच कड़वा जरूर होता हैं लेकिन सच सामने भी एक न एक दिन आ ही जाता हैं। अपने स्वार्थ के लिए भूत का भय दिखाने वाले पांखडिय़ो ने जबसे उनकी पोल परत दर परत खुलने लगी हैं उस ओर मुड़ कर भी नहीं देखा हैं। सबसे पहले हमने ऐसे लोगो को बेनकाब किया था जो स्ट्रींग आपरेशन या प्रायोजित स्टोरी करके न्यूज चैनलो पर दहशतगर्दी का कारोबार चलाए हुए हैं। बैतूल जैसे छोटे से आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में ऐसे लोग कभी बिरजू को नमक खाने वाला बता देते हैं तो कभी एक स्कूल के 40 में से 39 बच्चों को शराब के नशे का आदी बता कर एक समाज सुधारक को महिमा मंडित कर उन बच्चों से कथित शराब पीकर आने की आदत को छोड़ देना बता देते हैं। ऐसे लोग बैतूलवी पत्रकारिता के लिए नासूर है लेकिन बड़े चैनल का तमगा लेने की वज़ह से ऐसे लोगो के झुठ का लोग सामना करने को लाचार हैं। जिस दिन बैतूल जिले के चिचोली उत्कृष्ट बालिका छात्रावास में कथित रहस्यमय परिस्थितियों से जूझ रही छात्राओं मे से तीन छात्राओं को जिला अस्पताल भेजा गया। उसी शाम एक छात्रा बेहोश हुई जिसे स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में प्राथमिक उपचार के बाद जिला अस्पताल भेज दिया गया। इस घटना के बाद छात्रावास में महज 8 छात्राएं बची हैं बाकी सभी छात्राएं छात्रावास छोड़कर घर चली गई। छात्रावास की छात्राओं के कथित बेहोश होने के घटनाक्रम के बाद जेएच कॉलेज से डॉ. पुष्पारानी आर्य और जीपी साहू काउंसलिंग के लिए पहुंचे। चर्चा में छात्राओं ने काउंसलर को बताया कि उन्हें न तो ढंग का भोजन मिलता है और न साबुन, तेल। छात्रावास में मनोरंजन के लिए कोई सामग्री नहीं है। छात्रावास अधीक्षिका का व्यवहार भी ठीक नहीं है। छात्राओं से चर्चा के बाद काउंसलर ने छात्राओं के बेहोश होने के लिए तनाव व छात्रावास की अव्यवस्थाओं को दोषी बताया। चर्चा के दौरान भूत – प्रेत की बाते सामने नहीं आई। छात्रावास में अव्यवस्था एवं परीक्षा के चलते मानसिक तनाव ग्रस्त छात्राएं भूत की खबरो के प्रसारण होने के बाद से और भी हैरान एवं परेशान हो गई हैं। छात्राओं के साथ राते बिताने के बाद प्रभारी छात्रावास अधिक्षक का यह कहना काफी चौकान्ने वाला था कि भ्रम का भूत इनके बीच दहशत का प्रमुख कारण था। अब इस खबर के साथ सलंग्र छायाचित्र को भी देख कर आप अंदाज लगा सकते हैं कि भूतो को लेकर दहशत में फंसी छात्रा कैसी मंद – मंद मुस्करा रही हैं। किसी एक भी छात्रा के चेहरे पर टेशंन के बजाय राहत की मंद – मंद मुस्कराहट थी।
यहां पर यह उल्लेखनीय हैं कि आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में जहां पर दुनियां का एक मात्र भूतो का मेला लगता हैं उसी क्षेत्र में भूत – प्रेतो के नाम पर डराने धमकाने का धंधा कुछ टीवी चैनल वालो के लिए सनसनी पैदा करने का जरीया बन गया हैं। जहां एक ओर बैतूल जिले की चिचोली जनपद क्षेत्र की मलाजपुर ग्राम पंचायत में गुरू साहेब बाबा की समाधी पर भूतो का मेला लगता हैं। यहां पर अच्छे – अच्छे लोगो के भूत उतर जाते हैं , वही दुसरी ओर चिचोली जनपद मुख्यालय पर स्थित उत्कृष्ट आदिवासी बालिका छात्रावास में इन दिनों के टीवी चैनल के रिर्पोटर तथाकथित स्ट्रींगर रिर्पोटरों के गठबंधन से बैतूल जिले में भूत,प्रेत का सहारा लेकर मासूम स्कूली छात्राओं में भय और अध्विश्वास के साथ – साथ दहशत का भी माहौल तैयार किया जा रहा हैं। टीवी चैनलों पर आने वाले तथाकथित सनसनी , आहट ,जी हारर शो की तर्ज पर गांवो और सुनसान पड़े स्थानो से भय के भूत को साकार रूप देकर परोसा जा रहा हैं। कुछ दिन पहले निरगुड़ में दो हजार लोगो के बीच दहशत की सनसनी खेज खबर का हमारे द्वारा किया गए खंडन से सबक न लेते हुए एक बार फिर बैतूल जिले से भूत – प्रेत बाधा पर प्रायोजित खबर दिखाई गई। प्रेत बाधा पर आधारित टीवी चैनल के रिर्पोटर खबर के बाद सच का सामना करने महाराष्ट्र के विभिन्न जिलो से आई अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के सदस्यों ने उत्कृष्ट बालिका छात्रावास की किसी भी छात्रा को तथाकथित भूत – प्रेत बाधा से पीडि़त होना नहीं पाया। समिति ने अपनी जांच के दौरान पाया कि नगर पंचायत मुख्यालय चिचोली में बैतूल से कुछ दिन पूर्व में आए एक टीवी चैनल के पत्रकार ने स्थानीय छुटभैया नेता की मदद से स्कूल की छात्राओं को टीवी चैनलो पर दिखाने का लालच देकर उनसे पूरी मनगढ़ंत कहानी बनाई। कहानी का द एण्ड तब हो गया जब कुछ छात्राओं ने बताया कि छात्रावास में ऐसी कोई भी आहट सुनाई नहीं दे रही थी। मजेदार बात तो यह हैं कि विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी आइ के बोडख़े बैतूल नगर के निवासी हैं तथा उनके परिवार की बैतूल में पिंजरकर स्टोर्स के नाम की दुकान हैं। जहां पर कुछ टीवी चैनलो के पत्रकारों की आवाजाही बनी रहती हैं। श्री बोडख़े एवं अत्कृष्ट स्कूल प्राचार्य श्री डी के केनकर तथा छात्रावास अधिक्षिक सुश्री पिंकी राठौर ने सोची समझी नीति एवं रीति के अनुसार पिछले 15 दिनो से स्कूली छात्राओं के बीच जानबुझ कर भूत – प्रेत को लेकर भ्रम फैलाने का प्रयास किया गया। एक पडय़ंत्र जो कि कुछ टी वी चैनलो द्वारा आयोजित था उसके लिए बकायदा तंत्र – मंत्र साधना , पूजा पाठ , हवन किया गया। बालिकाओं को बकायदा रामायण पाठ पढ़वाने के लिए छात्रावास में रामायण पहुंचाई गई। स्वंय आर के श्रोती सहायक परियोजना अधिकारी भी इस षडय़ंत्र में शामिल थे क्योकि उन्होने अपने भोपाल से आए आला अफसर श्री सेगंर की मौजूदगी में बेव न्यूज पोर्टल यू एफ टी न्यूज को बताया कि स्कूली छात्राए मानसिक रूप से पढ़ाई से भयक्रांत थी लेकिन वे रामायण पढ़ती थी। अब सवाल यह उठता हैं कि स्कूली छात्राओं से छात्रावास परिसर में रामायण का पाठ , मंदिर में पूजन , हवन आखिर क्यों करवाया गया। यदि छात्रावास में भूत था तो उन्हे पास में ही मलाजपुर क्यों नहीं ले जाया गया। अलग से तांत्रिक – मांत्रिक बुलवा कर टीवी चैनल वालों के सामने ड्रामा किसी अनुमति से हुआ। छात्रावास परिसर में पालक के अलावा बाहर के लोगो को खास कर टीवी चैनल वालों को घुसने एवं अंदर जाकर छात्राओं से बातचीत करके उनके दिलो दिमाग में भय का भूत डालने की क्या जरूरत थी। जब इटीवी पर उन चैनलों के मंशा के ठीक विपरीत $खबर प्रसाति की गई तब भी उक्त टीची चैनलों द्वारा अपने स्ट्रींगरों एवं रिर्पोटरों से $खबर की सच्चाई जानने का प्रयास क्यों नहीं किया गया। अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति का तो सीधा सीधा आरोप था कि जानबुझ कर दहशत का माहौल पैदा करके कुछ तांत्रिक – मांत्रिक टीवी चैनलो को माध्यम बना कर उन 50 स्कूली छात्राओं के पालको से मोटी रकम ठगना चाहते थे। मध्यप्रदेश में महाराष्ट्र सरकार की तरह अघोरी प्रेक्टीस एक्ट 2005 की तरह कोई कड़ा कानून नहीं है जिसके चलते आदिवासी बाहुल्य जिलों में इस तरह का गोरखधंधा फल फूल रहा हैं। देश के नॅबर वन का तमगा लेकर स्वंय भू टीवी चैनलों को ऐसी भ्रामक $खबरो को जो खास कर स्कूली छात्राओं के भविष्य से जुड़ सकती हैं को प्रसारित करने से पहले सोचना चाहिए। एक भी चैनल यदि चांद पर पहुंचने वाले युग में कोमल मानसिक पटल पर भ्रम का या अधंविश्वास के भूत को बढ़ावा देगा तो आने वाले कल में वह भयभीत होकर दहशत भरा जीवन जीने को बेबस हो जाएगी। चिचोली छात्रावास की घटना का पूरजोर खंडन करते हुए विद्धवान कानूनविद भरत सेन कहते हैं कि हमारे छात्रावासों में यदि तंत्र – मंत्र में शिक्षा अधिकारी , प्राचार्य , अधिक्षक आस्था रखेगें तो देश में आइंस्टीन , न्यूटन, एडीशन जैसे वैज्ञानिक कैसे पैदा होगें? और ऐसे में भारत की कोई भी कल्पना चावला जैसी अंतरीक्ष यात्री कभी नहीं मिलेगी। इस छात्रावास की बालिकाए इस समय गणित और विज्ञान जैसे विषयों से भटक कर भूत – प्रेतो के अस्तीव में खो जाएगीं तो इनके भीतर विज्ञान कैसे पैदा होगा। श्री सेन तर्क देते हैं कि प्रिंट एण्ड इलेक्ट्रानिक मीडिया तंत्र – मंत्र – यंत्र भूत – प्रेत – नजर बाधा निवारण के तांत्रिक प्रयोग तथा तथाकथित आलौकिक शक्तियों का प्रचार – प्रसार – प्रसारण करके अंधविश्वास को बढ़ावा देकर प्रेस एक्ट की मूल भावनाओं का हनन कर रही हैं।
इधर बैतूल जिले के चिचोली नगर पंचायत मुख्यालय पर स्थित आदिवासी बालिका छात्रावास की 50 छात्राओं से यू एफ टी न्यूज ने चर्चा की जिसमें सभी छात्राओं ने एक सिरे से उक्त खबर का खंडन किया। वही मनोवैज्ञानिक डाँ देवेन्द्र बलसारा कहते हैं कि अधिकांश छात्राए 10 एवं 12 की बोर्ड परीक्षा देने के चलते देर रात्री तक पढ़ाई करती हैं ऐसे में उनकी पढ़ाई के चलते पूरी नींद नहीं हो पाती हैं। यहां पर यह देखने को आ रहा हैं कि छात्रावास की अधिकांश आदिवासी छात्राएं बोर्ड परीक्षा में पास – फेल के चक्कर मानसिक तनाव में रहती हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ श्रीमति रश्मी पंवार कहती हैं कि आज के समय में चौदह साल में ही अधिकांश बालिकाओं को मासिक धर्म शुरू हो जाते हैं। ऐसे समय में बालिका कमजारे हो जाती हैं तथा उन्हे मानसिक तनाव भी कई बार उन्हे बहोशी एवं चक्कर आने लगते हैं। पचास में से मात्र तीन ही बालिकाओं को उक्त कथित प्रेत बाधा से पीडि़त बता कर पूरा माहौल को अंधविश्वास की बलि पर चढ़ाया जाना न्योचित नहीं हैं। घटना के पीछे की एक कहानी यह भी बताई जा रही हैं कि नेशनल हाइवे 59 ए बैतूल से इन्दौर पर स्थित इस छात्रावास को किसी सरकारी बैंक द्वारा बीते वर्ष ही किराये पर अनुबंधित कर लिया गया था। सरकारी बैंक इसी वर्ष जनवरी से अपनी शाखा खोलना चाहती थी लेकिन पिछले माह से जब मुख्य मार्ग चिचोली पर स्थित छात्रावास भवन खाली नहीं हुआ तो फिर उक्त कहानी को मूर्त रूप दिया गया था। बताया जाता हैं कि बीते आठ वर्षो से सरकारी दर पर किराये पर चल रहे भवन के मालिक द्वारा कई बार छात्रावास को खाली करवाने का प्रयास किया गया लेकिन जब बात नहीं बनी तो यह कुछ टीची चैनल वालों से मिल कर छात्रावास भवन में भूत – प्रेत होने की बाते फैलाई गई ताकि प्रशासन दबाव में आकर आनन – फानन में उक्त भवन को खाली कर नए छात्रावास भवन में स्थानांतरीत कर दे। हालाकि अब भी उक्त भवन को त्वीत खाली नहीं करवाया जा रहा हैं। परीक्षा सत्र पूर्ण हो जाने के बाद भी छात्रावास नए भवन में जाएगा। इधर सामाजिक कार्यकत्र्ता एवं अनिस से जुड़े श्री राम भलावी का कहना हैं कि उक्त तीनो चैनल पिछले तीन सालों से किसी को नमक खिलाते दिखा रहे हैं तो किसी कुंजीलाल के मरने की भविष्यवाणी करते दिखा रहे हैं। कभी किसी सुनसाने खण्डहर में मुजरा होते और पायल छनकते दिखाते हैं तो कभी किसी खण्डहर को अभिश्रप्त दिखा रहे हैं। श्री भलावी का कहना हैं कि मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र की सीमा से लगे बैतूल जिले में इन टीवी चैनलों द्वारा अभी तक दिखाई गई सनसनी खेज स्पेशल स्टोरी में से एक ने भी भूत – प्रेत के वजूद को सिद्ध नहीं कर दिखाया हैं।

पलाश पर छाई मस्ती एवं फागुन के मेलो में बढऩे लगी है स्वच्छंद उन्मुक्ता
आदिवासी बालाओं के लिए प्रणय और मिलन का माह होता हैं फागुन
बैतूल , रामकिशोर पंवार: पलाश के फूलो पर छाने वाली मस्ती से मदमस्त होती आदिवासी बालाओं पर फागुन का रंग चढऩे को बेताब रहता हैं। पलाश के सूर्ख फूलो से निकला रंग और वह भी बांस की पिचकारी से पूरे तन और मन को रंगीन कर देता हैं। बैतूल जिले में फागुन के मेलो के करीब आते ही सूर्ख लाल होते जा रहे पलाश के फूलों से रंग बनाने का प्राचिन तौर – तरीका आज भी इस जिले के आदिवासियों को अपनी संस्कृति से जोड़ कर रखा हैं। बैतूल जिले में यूं तो हर गांवों में आदिवासी परिवार मिल जाएगें लेकिन सबसे अधिक शाहपुर ,घोड़ाडोंगरी, चिचोली, भैसदेही , आमला, जनपद क्षेत्रों में मिलेगें। वैसे तो कोरकू को भी आदिवासी समाज का अंग माना जाता हैं लेकिन कोरकू विलुप्त जनजाति हैं जिसमें लमझेना प्रथा आज भी प्रचलित हैं। फागुन के मास में ही कोरकू जनजाति के युवको के वैवाहिक सबंध स्थापित होते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार का युवक बारह साल तक अपनी ससुराल में लमझेना बर रहता हैं। इस दौरान वह अपने ससुराल वालों की जमकर सेवा चाकरी भी करता हैं। जवानी की दहलीज पर पांव रखते ही उसके अपनी भावी पत्नि से नैन मटका शुरू हो जाते हैं। फागुन के मेले के समय वह अपने भावी पति से मेला घुमाने के लिए कहती हैं और भी मेले के बहाने घर से निकले युवक – युवती भाग जाते हैं। जब दोनो के बीच शारीरिक सबंध हो जाते हैं या फिर अविवाहित युवती को गर्भ ठहर जाता है ऐसे में दोनो के परिवार के लोग एकत्र होकर पंचायत के समक्ष पहुंच जाते हैं जहां पर समर्थ परिवार युवती के माता पिता को एक किस्त मोटी रकम देकर उसे खरीद लेता हैं और फिर विवाह का खर्च वधु पक्ष को देकर दोनो का विवाह करा दिया जाता हैं। सबसे ज्यादा युवक – युवतियों के नैन मटका एवं भागने के प्रकरण फागुन के मेलो में ही होते हैं। मदमस्त पलाश के फूलो की पूरी मस्ती ही दोनो के बीच शारीरिक सबंधो को भी बढ़ावा देती हैं। अब तो गांव – गांव में युवक – युवतियों पर फिल्मी ग्लैमर और चायना के मोबाइल का इस कदर असर पड़ा हैं कि वे अपने प्रेमी को रिझाने के लिए तरह – तरह के फैशने बल कपड़ो , श्रंगार एवं आभुषणो का उपयोग करती हैं। अब फागुन के मेलो में आदिवासी एवं कोरकू समाज की युवतियां अपने शरीर के अंगो पर गोदना कराने से भी परहेज करने लगी हैं। हालाकि पहले फागुन के मेलो में सबसे अधिक भीड़ उन्ही लोगो के पास होती थी जो शरीर के विभिन्न अंगो पर गोदना करवाती थी। गोदना में अपने प्रेमी , पति , भाई , का नाम लिखवना आम बात होती थी। आज के समय टेटू भी उसी गोदना परम्परा के एक अंग हैं जो आदिवासी समाज की देखादेखी करने से फैशन एवं आकषर्ण के चलते चल पड़े हैं। बैतूल जिले की पूरी जनजाति में सबसे ज्यादा उन्मुक्त यौन सबंधो के पीछे भी फागुन के मेले का असर हैं। मेले के बहाने गांव से आसपास के मेलो में जाने की छुट का युवक युवतियां भरपूर फायदा उठाती हैं। मेले तो बहाने होते है दो जिस्म एक जान होने के लिए। सबसे ज्यादा व्याभिचार भी इन्ही मेले में देखने को मिलता हैं। रंग लगाने के बहाने आदिवासी बालाओं का यौन शोषण भी सबसे ज्यादा इसी माह में देखने को एवं सुनने को मिलते हैं। बैतूल जिले की पुलिस डायरी कहती हैं कि मार्च से लेकर मई तक सबसे अधिक यौनाचार के मामले दर्ज होते हैं। जिले में यौन शोषण खासकर उस जनजाति का आम बात हैं जो कि आर्थिक रूप से कमजोर होती हैं। वैसे पुलिस का यह कहना रहता हैं कि पुलिस तक मामले उस स्थिति में पहुंचते है जब कोई समझौता या लेन -देन नहीं हो पाता हैं। वैसे भी पूरे मध्यप्रदेश में बैतूल जिले को सबसे अधिक बलात्कार दर्ज करने वाले जिलो की श्रेणी में रखा गया हैं। पिछले चार साल से बैतूल जिले पूरे प्रदेश में शीर्ष स्थान पर है जिसके पीछे कहीं न कहीं फागुन के मेले एवं पलाश के फूलों से आने वाली सुगंध और देशी महुआ से बनी कच्ची शराब का नशा है जो कि उन्मुक्त देह व्यपार को बढ़ावा देता हैं। हालाकि बैतूल जिले में देह व्यापार करती या करवाती कोई भी आदिवासी बाला या महिलाएं नहीं पकड़ाई है लेकिन अकसर ऐसे मामले ले देकर ही तय हो जाते हैं। बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारों में आपको यह फर्क करना मुश्कील हो जाएगा कि इस जिले की आदिवासी बाला की आखें मदमस्त कर देने वाली है या विपाशा बसु की नशीली आंखे….. कहने को तो बैतूल जिले में इस समय पूरे घटते जंगलो के पलाश के पेड़ो पर फागुन फूलों के रूप में बौरा गया हैं लेकिन आम के बौर और महुआ के फूलो से भी रस टपकने से यौन इच्छाएं स्वत: हिचकोले मारने लगती हैं। बैतूल जिले में हर गांव में होलिका दहन के बाद मेघनाथ की पूजा के साथ ही फागुन के मेलो का लगना शुरू हो जाता हैं। जिले की पहली गोण्डी फागुन की जतरा वैसे तो बैतूल जिला मुख्यालय के टिकारी कस्बे से शुरू होती हैं। दुसरे दिन बैतूल बाजार तथा तीसरे दिन रोंढ़ा में फागुन का मेला लगता हैं। हालाकि रोंढ़ा में एक भी आदिवासी नहीं है उसके बाद भी बरसो से गांव के लोग मेघनाथ की पूजा करते चले आ रहे हैं। अभी कुछ साल से एक दो आदिवासी परिवार यहां पर आकर बस गये हैं। बैतूल जिले में गोण्डी जतरा को फागुन के मेले के नाम से भी पुकारा जाता हैं। आदिवासियों एवं कोरकुओं में खासकर होली एवं दिवाली पूरे सवा महिने की होती हैं। दोनो ही समयकाल ऐसे होते है जब आदिवासी परिवार सारे कार्यो से फ्री हो जाता हैं। बैतूल जिले में सबसे अधिक बसने वाली आदिवासी एवं कोरकू जनजाति के परिवारों में होली के समय फाग के रूप में रूपए मांगने का रिवाज हैं। इस दौरान गांव में कोई भी अनजान व्यक्ति से फाग के रूपए में मांगे जाते हैं। रूपए न देने पर उन्हे अश£ील गालियां दी जाती हैं कई बार तो आदिवासी युवतियों से लेकर पौढ़ महिलाए तक शालीनता की सारी हदो को पार कर जाती हैं। डर सहमे लोगो से बलात् पूर्वक वसूले गए रूपए से सामुहिक भोज के रूप में मुर्गा – बकरा – दारू की दावते उड़ाई जाती हैं। पूरे सवा महिने तक धुप के तेज होते ही आदिवासी बालाओं के बीच मौज मस्ती की खुली स्पर्धा चल पड़ती हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतों मे से आधी से अधिक ग्राम पंचायते आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं। इस समय पूरे गांवो में फागुन के मेलो को लेकर पड़ौसी राज्यों से दुकानदार और झूले लगाने वाले आने शुरू हो जाते हैं। सावन के झूलो से कहीं अधिक मदमस्त करने वाले होते है फागुन के झूले जिन पर अपने प्रेमी के साथ गोल – गोल ऊपर से नीचे होती बालाएं इस दौरान रंगीन रूमालो को भी जमीन पर डाल कर उसे पकड़ती हैं। ऐसे मेले में आदिवासी बालाओं को पान और अब राजश्री जैसे गुटके देकर भी पटाया जाता हैं। यदि युवती को आपका प्रेम प्रणय स्वीकार हैं तो आपका दिया पान – गुटका वह स्वीकार कर लेगी। अब तो मेलो में फुहड़ता देखने को मिल रही हैं जो कहीं न कहीं पश्चिमी संस्कृति एवं फिल्मो का कुप्रभाव के कारण पैदा होने लगी हैं। सजी धजी बैल गाडिय़ों एवं साइकिलो और अब मोटर साइकिलो में बैठ कर जाने वाली आदिवासी बालाएं सभ्य समाज के लिए एक सबक है क्योकि जिस सभ्य समाज में पर्दे के पीछे अंधेरे में व्याभिचार होता हैं वह आदिवासी समाज के लिए स्वच्छंद उन्मुक्ता का एक रूप हैं।

ऐसे विश्व रिकार्ड बनाने का क्या औचित्य?
लेख :- रामकिशोर पंवार
हमारे देश में विश्व रिकार्ड बनाने का लोगों पर इस कदर भूत सवार है कि लोग विश्व रिकार्ड बनाने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल देते हैं . विचित्र हरकतों, हैरत अंगेज कारनामों तथा बे सिर पैर के रिकार्ड बनाने के चक्कर में लोग अपना तन – मन – धन ही नही बल्कि अपने अमूल्य तक को दाव पर लगा लेते है . तथा कथित गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवाने की महत्वकांक्षा सें ग्रसित ऐसे लोग न जाने कैसे – कैसे पापड़ बेलते है . अब इलाहाबाद के राजेन्द्र कुमार तिवारी उर्फ दुकानजी-मकानजी की हरकतों को ले लीजिए वे अपनी मूछों पर जलती हुई मोमबत्तियों को नचाकर एक नया विश्व रिकार्ड बनाया है . जरा सी असावधानी किसी अप्रिय घटना को जन्म दे सकती है पर रिकार्ड बनाने वालों को नाम की ऐसी भूख रहती है कि वे महज नाम के लिए अपनी जान को जोखिम में डाल देते हैं . हरियाणा के चण्डीगढ़ शहर स्थित रहने वाले गुप्ता बंधुओं ने सामग्रियों (उपभोक्ता) के साथ मिलने वाली मुफ्त की वस्तुओं को एकत्र करने का नया विश्व रिकार्ड बनाया है . गिफ्ट आइटमों को एकत्र करने वाले गुप्ता बंधुओं के पास मौजूदा स्थिति में एक लाख रूपये से ज्यादा के गिफ्ट आइटम पड़े हुए है .  इन गिफ्ट आइटमों को संकलन करने में विश्व गुप्ता एवं विजय गुप्ता नामक दोनों भाइयों ने अपनी नौकरी का अधिकांश वेतन अपने शौक में फूंक डाला  . गुप्ता बंधुओं ने गिफ्ट आइटमों को एकत्र करने में जो समय बर्बाद किया वह धन तो वापस आने से नहीं रहा और न ही गुप्ता बंधुओं को उनके इस शौक के चलते कुछ मिलने से रहा  . पर नाम छपवाने और रिकार्ड बनवाने की लालसा से पीडि़त गुप्ता बंधुओं  ने मुफ्त की सामग्री को कबाडऩे में जो रूपये बर्बाद किये उनसे कोई अच्छा कार्य किया जा सकता था .
अपनी विचित्र हरकतों के चलते नवा शहर के मोहल्ला सेरिया निवासी द्रविन्द्र भिण्डी ने अपने मुंह में सुई रखने का एक नया रिकार्ड बनाने का दावा किया है . द्रविन्द्र ने दावा किया है कि वह पचास से भी अधिक सुईयों को मुंह में हमेशा रखता है . खाना खाते, नहाते व सोते समय भी द्रविन्द्र के मुंह में सुईयां रहती है  . अब इस प्रकार के रिकार्ड बनाने से द्रविन्द्र को क्या मिलेगा  . यह तो कोई नहीं जानता पर कभी भी सुई पेट के अंदर जा सकती है और यह रिकार्ड का जुनून जानलेवा भी साबित हो सकता है . लोगों को ऐसे रिकार्ड बनाने से पहले होने वाले परिणामों के संदर्भ में सोचना चाहिए . अहमदाबाद के एक रेस्टारेंट के मालिक 25 फुट लम्बा डोसा बनाने का रिकार्ड बनाया है . 15 कुशल रसोईयों की मदद से 25 फुट डोसा बनाने वाले कैलाश गोयल का नाम गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज हो जाने से भारत को कौन सा मैडल मिल जाने से रहा  . देश तो दूर रहा कैलाश गोयंका ने 25 फुट लम्बा डोसा बनाकर लोगों से वाहवाही अवश्य लूट ली होगी . कुलक्षेत्र की एक नन्ही सी लड़की ने एक नया कारनामा किया मल्लिका सेठ नामक इस लड़की ने अपने शरीर को मधुमक्खियों के हवाले करके एक नया रिकार्ड बनाया है . मधुमक्खियां को शरीर पर बैठालकर रिकार्ड बनाना कहां तक उचित है . मधुमक्खियां मल्लिका सेठ को नुकसान भी पहुंचा सकती थी , लेकिन नाम की चाहत ने लोगों को इतना प्रेरित कर दिया है कि वे अपनी जान को जोखिम में डाल देते है .
जीने के लिए इंसान को रोटी कपड़ा और मकान के अलावा और क्या चाहिए  , पर नाम दुनिया भर में रोशन हो इसलिए लोग क्या क्या नहीं कर जाते . इनके द्वारा किये गये काम से देश को क्या मिला इस बात की कभी भी रिकार्ड बनाने वाले चिंता नहीं करते . अब बात संजय कुलकर्णी की ही ले लीजिए पूना के इस नाम के भूखे इंसान ने गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम अपनी विचित्र हरकतों के कारण शामिल करवा लिया है .संजय कुलकर्णी ने 2.6 किलोग्राम कांच खाकर विश्व रिकार्ड बनाया है . यह युवक मजे के साथ बल्ब बोतलें को ऐसे चबा जाता है जैसे वह लिज्जत पापड़ खा रहा हो . लिम्का बुक आफ रिकार्ड्ïस में दर्ज नामों में भी अधिकांश ऐसे लोग है जिन्होंने रिकार्ड बनाने के लिए तन – मन – धन बर्बाद करते है . मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पढ़े लिखे युवा अधिवक्ता महेन्द्र सिंह चौहान ने लगातार 18 घंटे तक सिक्का घुमाने का एक नया रिकार्ड बनाया है . अब भला आप ही सोचिए कि सिक्का घुमाने से देश या स्वंय महेन्द्र भाई को क्या मिलने वाला….?  आज यह सिक्का घुमाने वाला युवक खुद इस बात से हैरान है कि उसका नाम लिम्का बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में प्रकाशित होने के बाद भी उसे आज तक कुछ नहीं मिला . नाम कमाने के लालसा ने इस युवा अधिवक्ता को लगातार 18 घंटे तक सिक्का घुमाने के लिए विवश कर दिया था . उसे सिक्का घुमाने के बाद जब कुछ नहीं मिला तब यहां यह प्रश्न उठता है कि ऐसे विश्व रिकार्ड बनाने से क्या फायदा…….? कुछ लोगों को विश्व रिकार्ड बनाने का इस तरह भूत सवार हो जाता है कि वे लगातार रिकार्ड बनाते और तोड़ते  चले आते हैं . इन रिकार्डो को बनाने और तोडऩे के चक्कर में लोग अपना अधिकांश समय और पैसा बर्बाद कर देते है . मध्यप्रदेश के सागर जिले में रहने वाले गिरीश शर्मा ने 55 घंटे 35 मिनिट खड़े रहकर एक नया विश्व रिकार्ड बनाया है . रिकार्ड बनाने वाले इस युवक को रिकार्ड बनाने के बाद पता चला कि लगातार पचपन घंटे खड़े होने की वजह से उसके पैर की नस फट गई और खून बहने लगा . इसी प्रकार का एक रिकार्ड मंदसौर के राधेश्याम प्रजापति ने बनाया है . मंदसौर का यह युवक लगातार एक मुद्रा में 18 घटें तक खड़ा रहा जिसके चलते उसका नाम गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया . राधेश्याम प्रजापति ने इस विश्व रिकार्ड में धारक को जितना समय खड़े रहने लगा उतना समय वह अपनी नौकरी को ढूंढने में लगाता तो शायद उसके परिवार को दो वक्त की रोटी की व्यवस्था हो जाती . आज वह युवक विश्व रिकार्ड बनाने के बाद इस बात से खफा है कि उसे कोई नौकरी नहीं दे रहा है .
विश्व रिकार्ड बनाने के चक्कर में महाराष्टï्र की उप राजधानी नागपुर के एक बालक ने अपने दोनो हाथो में हथकड़ी लगा कर तैरने का विश्व रिकार्ड बना डाला . अब हाथो में हथकड़ी पहन कर तैरने से इस देश को क्या मैडल मिले वाला . इसी तरह की उसकी अभिलाषा उसके तैरते समय किसी प्रकार की अप्रिय घटना को जन्म दे सकती है . हाथो के बिना तैरना जान को जोखिम में डालने के बराबर है पर नाम कमाने और विश्व रिकार्ड बनाने की अभिलाषा दूरगामी परिनामो को नहीं देखती . अब इसी कड़ी में एक अनोखे कार्य के लिये पंजाब के फरीद कोट स्थित तैलिया मोहल्ला निवासी पी .के . सेठी का नाम भी दर्ज है . इस सज्जन के पास भारत सरकार के ऐसे दुर्लभ नोट हैं जिन्हें नियमानुसार बैंकों में जमा कर देना चाहिए परंतु ये सज्जन अपने रिकार्ड बनाने के चक्कर में भारत के उन नोटों को जमा करके रखा हुआ है जो गलत छपे हुए हैं  . अप्रचलित इन नोटों को रिजर्व बैंक में जमा करके नये नोट प्राप्त करके उन्हें प्रचलन में लाया जा सकता है लेकिन रिकार्ड के चक्कर में सेठी जी विगत 15 सालों से ऐसे नोटों को दबा कर बैठ जाते हैं जिनके मुद्रण में त्रुटियां हो जाती है . पंजाब के ही वीरेन्द्र सिंह बिरदी को गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में नाम शामिल करवाने का ऐसा चस्का लगा है कि यह युवक हर दो तीन साल के अंदर में एक न एक नया विश्व रिकार्ड बनाकर ही दम लेता है . विश्व में सबसे लंबा वजनी कैलेन्डर बनाने का रिकार्ड वीरेन्द्र सिंह बिरदी के नाम दर्ज है . वीरेन्द्र सिंह बिरदी ने इतना लंबा कलेण्डर बनाया है कि 40 हजार लोग एक साथ खड़े हो सकते है . लगभग 10475 मीटर लंबे इस कैलेण्डर को उठाने में 3 व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है . गायत्री मंत्र सहित 23 भाषाओं में लिखा गया वीरेन्द्र सिंह बिरदी का यह विश्व का सबसे लम्बा कैलेण्डर भारत के लिए क्या फायदा पहुंचा सकता है इस बात से तो वीरेन्द्र सिंह बिरदी भी अपरिचित है .महज नाम कमाने की लालसा में व्यतीत किया गया समय देश के किसी अच्छे काम के लिए अगर किया जाता तो देश और देश की जनता को कुछ राहत मिल सकती थी . इन विश्व रिकार्ड धारकों से अच्छे तो भोपाल के वे दो अपंग सायकल चालक है जो अपंगता होने के बावजूद भी बैंगलौर से दिल्ली, दिल्ली से कन्या कुमारी तक साढ़े तीन हजार किमी की यात्रा देश में साम्प्रदायिक एकता, भाईचारा को कायम करने के उद्देश्य से प्रेरित होकर निकले थे . विश्व रिकार्ड धारकों में डॉ. एमसी मोदी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने काम ही ऐसा किया था . डॉ. मोदी ने 833 मोतिया बिन्द के आपरेशन करके सैकड़ों लोगों को नेत्र ज्योति दी है . ऐसा कोई भी कार्य जो जनहित में हो वह सराहनीय है .अब इंदौर के ही अरविन्द्र कुमार आगार को ले लीजिए इन्होंने रक्तदान करके अपना विश्व रिकार्ड बनाया है . विश्व में सबसे अधिक बार लोगों को रक्त देकर उनकी जान बचाने वाले अरविन्द्र कुमार पर भारत को गर्व है . बिना उद्देश्य के रिकार्ड बनाना मूर्खता का काम तब हो सकता है जब इनका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकले .
बैतूल जिले के राम प्रसाद राठौर को बैल जोड़ी को पट पर सबसे तेज दौडाऩे वाला कहा जाता है . रामप्रसाद राठौर का यह कार्य भी किसी विश्व रिकार्ड से कम नहीं है . पिछले दस वर्षो से उससे तेज पट पर तेज गति से बैल जोड़ी आज तक कोई दौड़ा सका है . राम प्रसाद राठौर के पास मौजूद बैलो की कीमत एक लाख रूपये तक है . मध्यप्रदेश – महाराष्टï्र तथा अन्य राज्यो में उनकी बैल जोड़ी विश्व रिकार्ड बना पाई है . इस प्रकार के विश्व रिकार्ड बनाने का औचित्य कुछ भी नहीं है पर आन – बान – शान के लिए लोग कुछ भी कर जाते है . अब के.जी. हनुमंत रेडडïी को ही ले लीजिये इस महाशय ने आज तक सबसे अधिक भारत सरकार के विरूद्घ सर्वाधिक मुकदमे दर्ज करने का एक प्रकार से विचित्र विश्व रिकार्ड तो बना डाला पर रेडडïी के सरकार की कितनी परेशान हो रही है यह तो उस राज्य की सरकार ही बता सकती है जहाँ के रेडडï्ी साहब मूल निवासी है . सरकार के खिलाफ जनहित के मामले दर्ज करना तो अच्छी बात है पर सरकार को परेशान करने के लिए या फिर अपना नाम रिकार्ड बुक में दर्ज कराने के लिए ऐसे मुकदमे दर्ज करने से क्या हनुमंत रेड्ïडी ने कोई नया तीर मारा है . मिलिन्द देशमुख की चर्चा करते हैं तो हमें पता चलता है कि मिलिन्द ने पैंसठ किमी की दूरी अपने सर पर दूध की बाल्टी रखकर तय करके रिकार्ड बुक में नाम दर्ज करवाया है . जिनके पास कोई काम नहीं है वे सर के ऊपर बाल्टी क्या पूरा देश लेकर ही निकल जायें तो इससे क्या मिलने से रहा .मिलिन्द भाई की तरह एक सज्जन अरविन्द्र पण्डया भी है जिन्होंने लांस ऐन्जिल से न्यूयार्क तक की दूरी पीछे की ओर दौड़कर पूरी की है . पीछे भागने से रिकार्ड बनाने वाले अरविन्द्र भाई पता नही देश की जनता को क्या सबक देना चाहते है . यहां पर बाबा महेन्द्र पाल की प्रशंसा करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बाबा महेन्द्र पाल ने शारीरिक रूप से अपंग होने के बावजूद 7360 मीटर ऊंची माउण्ट आबू की गामिन चोटी पर चढ़ाई करके लोगों को प्रेरित  किया है कि अपंगता किसी भी कार्य में बाधक सिद्घ नहीं हो सकती .
जगदीश चन्द्र नामक व्यक्ति द्वारा 15 माह तक रेंगते हुए 1400 किमी की दूरी तय करके बनाया गया रिकार्ड समय की बर्बादी ही कहा जा सकता है . इसी तरह 9 साल के बालक चिराग शाह ने 72 घंटे तक 2 सीट वाले विमान को चलाकर अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करवा लिया पर चिराग शाह के पालकों ने कभी यह नहीं सोचा कि किसी दुर्घटना का शिकार हो सकता था पर बच्चों के ऊपर अपनी महत्वाकांक्षा लादना लोगों के लिए खेल बन गया है  . नागौर के महेश प्रसाद ने एक साधारण सायकल पर 21 छात्रों को 381 किमी की यात्रा कराकर विश्व रिकार्ड बनाया है . महेश प्रसाद का यह रिकार्ड उनके दोस्तों के लिए प्रेरणादायी हो सकता है पर इन रिकार्डो से देश की जनता को क्या मिला . यह कहना असंभव है, पश्चिम बंगाल निवासी सुकुमार दास ने रिकार्ड बनाने के लिए एक दिन में 50 कि ग्राम भोजन करने के दो दिन बाद 62 कि ग्राम सब्जियां खाकर अपना नाम शामिल करवाने के लिए दावा किया है . सुकुमार दास ईट, ट्ïयूब लाईट, नाई की दुकान से एकत्र बाल, फटे पुराने कपड़े तक खा जाते है . ऐसा शौक जिसके चलते लोगों को क्या क्या नहीं खाना पड़े किस काम का .किसी की जान बचाने के लिए या फिर देश हित में किया गया कार्य भले ही गिनीज बुक या लिमका बुक में न छपे पर ऐसा करना प्रशंसनीय है क्योंकि ऐसा करने से लोगों को फायदा होता है और देश को भी ऐसे लोगों पर गर्व होता है .ऐसे विश्व रिकार्ड बनाने वालो को रिकार्ड बनाने से पहले सोचना चाहिए कि वे ऐसे रिकार्ड बनाएं जिनमें तन मन धन की बर्बादी न हो तथा उसके द्वारा किया गया कार्य देशहित में हो .
इति,

रहस्यमय दिल को छु देने वाली काल्पनिक कहानी
”कबर बिज्जू”
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
उस रात को बड़े साहब के बंगले पर जग्गू दादा की डुयूटी थी। अपनी पूरी रौबदार मुछो एवं ड्रेस को लेकर पूरे जिले में जग्गू दादा की लोकप्रियता थी। जग्गू दादा को ही पता रहता था कि बड़े साहब कब कहां आते – जाते है। यदि दादा के बारे में यह कहा जाये कि दादा बड़े साहब की मास्टर चाबी है जिससे उनका पूरा जीवन का ताला खुलता और बंद होता है तो कहना गलत नहीं होगा। आज फिर काली अमावस्या की रात को बड़े साहब के बंगले में साहब नहीं थे। वे हर बार अमावस्य की रात को ही क्यों गधे के सिंग की तरह गायब हो जाते किसी को पता नहीं होत्रा। किसी ने एक दो बार जग्गू दादा से मजाक में भी कहा था कि ”दादा तेरा साहब कहीं कबर बिज्जू तो नहीं है कि अमावस्य की रात आते ही बिल में छुप जाता है ……” आज फिर वहीं रात की मनहुस घड़ी आ गई जिसमें पहली बार जग्गू दादा की रात डुयूटी लगी थी। वैसे तो जग्गू दादा ने अग्रेंजो के जमाने का शुद्ध देशी घी और माल पुड़ी खाया था।  उनकी रौबदार मुछो और शरीर के पीछे शायद वही खाया हुआ माल था। उनकी ढलती उम्र के इस पड़ाव में भी चाल और ढाल लोगो के लिए प्रेरणा बनी हुई थी। कोसो पैदल चलना और यदा – कदा साइकिल की सवारी कर लेना जग्गू दादा की दिनचर्या थी। दादा की पूरी सर्विस बड़े साहब के बंगले और आफिस के बीच ही कटती चली आ रही थी। आज रात के लिए दादा पहले तो मना करते रहे लेकिन रात डुयूटी करने वाले ने जब उनसे कहा कि ” यदि वह आज रात को डुयूटी कर लेगा तो वह उसके बदले में कल की दिन की डुयूटी कर लेगा………। ”  जग्गू दादा को कल और परसो दो दिन की छुटट्ी मिल जायेगी। दादा को दो दिन की छुटट्ी लिये महिनो बीत गये थे। इसलिए दादा इन दो दिनो के लिए अपने गांव रमोला जाना चाहता थे। दादा को अपने पहाडिय़ो पर बसे रमोला गांव गये बरसो बीत गये थे। उसके संगी – साथी सब एक – एक कर उसका साथ छोड़ कर जा चुके थे। जग्गू दादा अपने जमाने के संगी – साथियो के परिवार के लोगो से मिल कर उनके दुख को बाटना चाहते थे। दादा का अपने बचपन एवं जवानी के कुछ दोस्तो की आखरी यात्रा में न पहुंच पाना गांव के लोगो के बीच भी चर्चा का विषय बन चुका था। गांव वालो और अपने नाते – रिश्तेदारो के बीच दादा कई बार उन बातो को लेकर अपमान का घुट भी पी चुके थे। इस बार दादा ने पूरा मन बना लिया था कि वह चाहे कुछ भी हो जाये अपने गांव एक दिन के लिए जरूर जायेगा। जग्गू दादा ने अपने मन की बात किसी को नहीं बताई और उसे मन के किसी कोने में तब तक छुपा रखा जब तक कि वह पूरी न हो जाये। आज रात साहब के बंगले में दादा को अकेले ही पूरी रात काटना था। दादा ने पूरी रात काटने के लिए अपने घर से रामायण और हनुमान चालिसा भी साथ लेकर आये थे ताकि आज की पूरी रात वह रामकथा और हनुमान चालिसा का पाठ पढ़ सके। दादा घर से रामायण और हनुमान चालिसा लेकर तो आये लेकिन हडबड़ी में उसे कहां रख गये उन्हे पता नहीं चल रहा था। काली अमावस्या की रात अपने अगले पहर के लिए बढ़ती जा रही थी। अब रात में उल्लूओं की हरकतो के अलावा तरह – तरह की आवाजे आनी शुरू होने लगी थी। बड़े साहब के बंगलो के हरे भरे बरसो पुराने पेड़ो की डालियो के हिलने – डुलने शुरू हो गये थे।  बंगले के पूरे परिसर में दर्जनो पीपल – बरगद – नीम – आम के पेडो की पत्तियों से भी छन – छन करती आवाजे आने लगी थी। ज्यों – ज्यों रात आगे की ओर बढ़ती जा रही थी , त्यों – त्यों बंगले के चारो ओर चीखता सन्नाटा डराने लगता था। बंगले के आसपास लगी टयूब लाइटो के अचानक के बंद हो जाने का मतलब तो यही निकल रहा था कि पूरे बंगले की ही नहीं शहर की ही बिजली गुल हो गई है। यूं तो बडे साहब के बंगले में अभी तक सैकड़ो अफसर आये और चले गये। अग्रेंजो के जमाने के इस बंगले की शान की कुछ और थी। पूरे पांच एकड़ में शहर के बीचो बीच में बना यह बंगला उन अग्रेंजी अफसरो के जुल्मो की कहानी बयां करता है जिन्होने आजादी के कई दिवानो को मौत के घाट सुला दिया। इस बंगले में आज तक किसी भी अफसर के घर में न तो कोई शहनाई गुंंजी और न किलकारी …….. ऐसे में एक प्रकार से मनहुस कहा जाने वाला बंगला दर असल में अफसरो की मौज मस्ती एवं रंगरैलियो का केन्द्र रहा है। बिजली के चले जाने के बाद जग्गू दादा कुछ पल के लिए स्तब्ध सा रहा गया। उसने मोमबत्ती जलाने के लिए अपनी सफेद वर्दी की जेब में हाथ डाला तो बीड़ी का बंडल तो मिला लेकिन माचिस नहीं मिली। ऐसे हाल में दादा को आज राज कुछ अजीब सा लगने लगा। पता नहीं आज रात को क्या होने वाला है। अजीबो – गरीबो हरकतो एवं घटनाओं से जग्गू दादा का दिल भी घबराने लगा लेकिन बुढ़ी सांसो की ताकत उन्हे इस तरह से डर जाने से रोक रही थी। कुछ देर बाद अचानक बिजली आ गई और सामने टेबल पर दादा को वहीं माचिस भी मिल गई जो उनके जेब में होनी थी। कुछ पल तक माचिस को लेकर सोचते दादा को पता भी नहीं चला कि दिवाल पर लगी घड़ी में कब बारह बज गये। बारह बजते ही दिवार की घड़ी से आवाजे आने लगी। दादा ने टेबल पर पड़ी माचिस को लेकर अपने जेब से बीड़ी का बण्डल निकाला और एक बीड़ी निकाल कर जलाने वाले ही थे कि किसी ने उन्हे आवाज दी कि ”जग्गु दादा एक बीड़ी मेरे लिए भी जला देना…….  ” अनजान व्यक्ति की आवाज को सुन कर दादा के तो होश हवास उड़ गये। अचानक बंगले के मालगोदाम से निकली आवाज ने जब शक्ल का रूप लिया तो उसे देख कर दादा के मुख से चीख निकलने वाली थी…….. दादा ने अपने आप को संभाला और वे उसे देखने लगे जो बीड़ी के लिए आवाज दे रहा था। दादा के करीब आ चुकी उस आकृति को देख कर दादा को कुछ महिनो पहले की घटना याद आ गई। यह तो वहीं आदमी था जो उस रात बड़े साहब से मिलने के लिए आया था। उसके साथ उसकी जवान बेटी फुलवा भी थी जो फटेहाल कपड़ो में अपने तन को छुपाये हुई आई थी। कोसो दूर अपने गांव से न्याय मांगने आया वह बुढ़ा व्यक्ति साहब से मिलने के लिए उस रोज सुबह से लेकर शाम तक बैठा हुआ था। पांच बजने के कारण जग्गु दादा उस रोज अपने घर को निकल पड़े थे। उसने जाने से पनले उन दोनो पिता – पुत्री से कहा भी था कि ” साहब दौरे पर गये है हो सकता है देर रात तक लौटे …….”  लेकिन वह उसकी कही बातो को अनसुना करके साहब के बंगले के सामने बने आफिस में बड़े बाबू के पास बैठा रहा। बड़े बाबू अकसर देर रात तक आफिस में काम करने के लिए रूके रहते थे। इसलिए जग्गु दादा ने उन दोनो को बडे बाबू के हवाले करके वह अपने घर की ओर चला गया। आज कई दिनो बाद उस व्यक्ति को काली अमावस्या की रात में वह भी बंगले के मालगोदाम से बाहर निकलता देख जग्गू दादा को अजीबो – गरीब लगा। उस बुढ़े व्यक्ति को पास आने पर दादा ने पुछा कि ” बाबा तुम यहां पर कब आये…….? ” आने की बाम सुन कर वह खिलखिला कर हस पड़ा। उसकी हसी जग्गू दादा के लिए जानलेवा साबित हो जाती लेकिन दादा ने हिम्मत नहीं हारी। दादा को कड़ाके की ठंड में पसीने से नहाता देख कर वह बुढ़ा बोला ” तुम्हारे मना करने के बाद भी यहां पर रूका रहा न्याय पाने के लिए , लेकिन मुझे क्या मालूम था कि यहां पर भी मेरे साथ अन्याय ही होगा……” जग्गू दादा उससे कुछ और पुछता वह खुद ही बताने लगा कि ” उस रोज जब साहब देर शाम तक नहीं आये तो बड़े बाबू ने मुझे बड़े साहब के बंगले ले गया। मैं वहां पर पौन्रे बारह बजे तक अपनी जवान बेटी के साथ बाबू जी के साथ रूका रहा। दिन भर का भूखा – प्यासा थका हारा मैं न लाने कब वही दिवार के सहारे सर रख कर सो गया। मेरी नींद तब खुली जब बंद कमरे से मेरी फुलवा के चीखने – चिल्लाने की आवाजे आने लगी। मैने खुब जतन कर डाले लेकिन मैं दरवाजो को जब नहीं खुलवा सका तो मैने पास की कुल्हाड़ी उठा कर दरावाजे को काट डालना चाहा लेकिन पीछे से किसी ने मेरे सिर पर लाठी दे मारी जिसके चलते मैं धड़ाम से ऐसे गिरा की फिर दुबारा उठ नहीं सका। उस काली अमावस्या की रात को बड़े बाबू ने मुझे मालगोदाम में ऐसे छुपा रखा कि मेरा पूरा शरीर तार – तार हो गया। पूरी रात बड़े साहब ने मेरी फुलवा को कबर बिज्जू की तरह नोंच -नोंच कर खा लिया। आज भी मैं उस काली अमावस्य की रात मेे मेरी फुलवा को पूरे बंगले भर में खोजता फिर रहा हूं……… न जाने ऐसी किस कोने में मेरी फुलवा छुपा दी गई है कि वह मुझे बीते दो सालो से नहीं मिल रही है। ” जग्गू दादा को अचानक वह बात याद आ गई जब वह दो दिन की छुटट्ी से वापस लौटा तो पता चला था कि साहब पिछले शनिवार से जो गये है तो अभी तक वापस नहीं लौटे। जब आये तो मैने उन्हे चाय की प्याली दी और यूं ही पुछ लिया था कि ”साहब उस रोज फिर कितने बजे आना हुआ……? क्या वे दोनो बाप – बेटी आपसे मिले …..? साहब क्या आपने उनको न्याय दिलवा दिया…..?  ” जग्गु दादा को अब समझ में आने लगा कि साहब ने क्यों उसके मुँह पर चाय की प्याली फेक कर मारी थी। अपनी सर्विस के पूरे तीस – बत्तीस साल काटने के बाद पहली बार जग्गु दादा को किसी अफसर ने इस तरह से जलील किया था। इस सदमें मे वह ऐसा बीमार पड़ा कि उसे ठीक होने में पूरे आठ महिने से ज्यादा का समय लग गया। इस बीच बड़े बाबू एक दो बार हाल – चाल जानने के लिए आये लेकिन बड़े साहब नज़रे चुराने लगे थे। जब जग्गू दादा डुयूटी पर आये भी थे तो साहब ने उसे अपने से दूर ही रखा। अब उसके पास साहब की सेवा चाकरी के बदले दुसरे अन्य कामकाज आ गये थे। उस रोज साहब की हरकत पर मैने सोचा था कि काम के टेंशन की वज़ह से शयद साहब दुसरे का गुस्सा मेरे ऊपर ही निकाल दिये। अब सारा माजरा खुल जाने के बाद जग्गु दादा ने साहब को अपने मुंह पर गरम चाय की प्याली फेकने का बदला चुकाने का मौका आ गया था। वह विचारो में इतना खो गया कि वह अनजान व्यक्ति एक बार फिर वहां से गधे के सिंग की तरह आंखो से ओझल हो चुका था। जग्गू दादा को अब पता चल चुका था कि बड़े बाबू पर साहब की इतनी मेहरबानी क्यों है। साहब की गैर हाजरी में बडे बाबू साहब की आड़ में कैसे पैसे कमाने लगे है। जग्गु दादा के विचारो को उस समय विराम लग गया जब उन्होने सामने से एक सफेद साड़ी में लिपटी युवती को अपने करीब आते देखा। पास आते ही वह युवती जग्गु दादा को देख कर खिल खिला कर हस पड़ी। करीब आई उस युवती को देख कर दादा को लकवा मार गया। अचानक दादा के मुँह से आवाज आई ” अरे बाप रे यह तो वही युवती है जो उस रोज बड़े साहब के बंगले पर उस बुढ़े व्यक्ति के साथ आई थी। गांव के दबंगो के हाथो अपनी अस्मत को तार – तार करवा कर न्याय के लिए फटेहाल कपड़ो में आई उस युवती को सफेद साड़ी में देखते ही दादा के मन में तरह – तरह के सवालो ने उथल – पुथल मचाना शुरू कर दी। दादा को अचानक कुछ साल पहले की वह घटना याद आ गई जब वह अपने पिता के साथ बड़े साहब से मिलने के लिए आई थी। सुबह से शाम हो जाने तक जब बड़े साहब नहीं आये तो वह बेचारी मिलने के लिए शाम तक रूकी रही। उसके बाद क्या हुआ उसका पता उसे अभी कुछ देर पहले ही पता लगा था। उस घटना के बाद तो दादा की तबीयत खराब हो गई और वह लम्बे समय तक बिस्तर पर पड़ा रहा। आज अमावस्या की काली रात में पहले पिता को और बाद में इस युवती को अकेले साहब के बंगले के परिसर से बाहर निकलते देख दादा को कपकंपी छुटने लगी। ठंड के महीने में पसीने से लथपथ दादा की हालत देख कर वह युवती जैसे ही खिलखिला कर हसी तो आसपास का पूरा माहौल तरह – तरह की चीखो से गुंज गया। जग्गू दादा ने अपनी पूरी उम्र में पहली बार किसी सोलह साल की युवती को सफेद कपड़ो में लिपटी हुई देखा था। लम्बे -चौड़े क्षेत्रफल में बने साहब के बंगले में साहब पहले तो अकेले ही रहते थे उस रोज के बाद से साहब एक भी रात को इस बंगले में नहीं रूके। साहब अकसर सरकारी बंगले को छोड़ कर आसपास के सर्किट हाऊस – सरकारी डाक बंगले में रूक जाते थे। अपनी आयु और सर्विस के रिटायरमेंट की कगार पर आ खड़े बड़े साहब की अपनी बीबी और बच्चो से कभी भी पटरी नहीं बैठी। साहब का कई बार अपने बेटो और बीबी ने झगड़ा मारापीटी तक जा चुका था। बड़े लोगो के बड़े चौचले समझ कर दादा ने उन पुरानी बातो को अपने दिमागी पटल से कब का भूल चुके थे। काका को आज इस युवती के अस्त – व्यस्त हालत में कपड़ो के बाद दादा  को देख कर वह युवती बोली ”दादा क्यों परेशान हो रहे हो …….? मैं  तुम्हारा कुछ नहीं करूंगी…….. , लेकिन दादा देख लेना एक न एक दिन तेरे बड़े साहब का मैं वो हाल करूंगी कि वह फिर किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचेगा। उस कबर बिज्जू को मैं ऐसी मौत मारूंगी कि उसकी आने वाली सात पुश्ते भी कांप उठेगी। उस कबर बिज्जू को मैं ऐसी सजा दंूगी कि उसकी पीढ़ी में कोई मर्द या औरत पैदा नहीं होगी…… सब के सब हिजड़े पैदा होंगे वे भी दुसरे के दंभ पर ……..” उस युवती की इस तरह श्राप देते देख कर जग्गु दादा गश्त मार कर ऐसे गिरे की फिर उठ नहीं सके। रहस्यमय बनी जग्गु दादा की मौत पर से आज तक पर्दा नहीं उठ सका लेकिन कल शाम जब बंगले में बड़े साहब की टुकड़ो में मिली लाश के बाद समझ में नहीं आ रहा था कि इस प्रकार के प्रतिशोध के पीछे किसी का क्या हाथ होगा। साहब के बेमौत मरने की $खबर सुनने के बाद बड़े बाबू ने भी फांसी लगा ली। मरने से पहले बड़े बाबू ने अपने पुराने गुनाहो को उजागर करते हुये फुलवा की मौत पर से पर्दा हटा कर वह सब बता डाला जो कि बंगले में अकसर होता रहता था। आज भी उस बंगले से सड़क के किनारे के पीपल के पेड़ तक उस सफेद साड़ी में लिपटी युवती के मिलने की कहानी सुनने को मिलती है। जब मैं इस काहनी को लिख रहा था तो मुझे बरबस वह पीपल का पेड़ और सामने बड़े साहब का बंगला और उस कबर बिज्जू की मौत की कहानी घुमने लगी। कहानी को शब्दो में पिरो पाता इस बीच कोई न कोई आ टपकता और कहानी आधी – अधुरी रह जाती। इस बार मैने पूरे मन को स्थिर कर उस कहानी को पूरा करने का मन बना निया था जो किसी इंसान रूपी वासना के कबर बिज्जू से जुड़ी थी जो अपनी बेटी की उम्र की युवती को नोंच – नोंच कर खा चुका था। आज जब कहानी पूरी बन गई तो मन को शांती मिली लेकिन जब आंखे खुली तो मैने देखा कि कहानी के पीछे एक युवती की छाया उभर रही थी। फटेहाल में दिखने वाली वह देहाती युवती मुझसे कुछ कहना चाहती थी। मैं उसकी बातों को शब्दो में पिरो पाता इस बीच श्रीमति ने आकर मुझे झकझोर कर दिया कि ”चलिए तो अपने घर के पीछे बड़ा ही खतरनाक कबर बिज्जू निकला है , जल्दी चलो आकर देख लो…… ” अब मैं उसे कैसे बताऊ कि मैने जिस कबर बिज्जू को देखा है उससे खतरनाक कोई दुसरा भी कबर बिज्जू हो सकता है।
इति,
नोट :- प्रस्तुत कहानी के पात्रो एवं स्थानो का किसी से कोई लेना – देना नहीं है। यदि घटना और पात्र किसी से मिल भी गये तो इसे संयोग ही माने

”ज्योति आइ लव यू ”
रामकिशोर पंवार ” रोंढ़ावाला ”
आज के इस प्रेम दिवस पर यूं तो कई लोग अपने – अपने विचारो को शब्दो में पिरोने का काम करेगें। मेरे अपने जीवन में प्यार के कई अर्थ और अनर्थ निकले है। मैने जिससे भी प्यार किया उसी ने मुझे दगा दिया। मुझे वह दर्द भरा गीत काफी मन को कुदेरने वाला लगता है जिसमें स्वर्गीय मुकेश के स्वर कुछ इस प्रकार थे कि ”वफा जिनसे की वे बेवफा हो गए , ओ वादे के कहा खो गए …..” मैं स्वर्गीय मुकेश को प्रेम के लिए तरसते दिल के दर्द का प्रतीक मानता हूं क्योकि स्वर्गीय मुकेश के गीत कुछ इस प्रकार थे कि ” आज तुमसे दूर होकर ऐसा रोया मेरा प्यार ….. ” प्यार यदि रोता है तो उससे निकलने वाली पीड़ा भी कम कुछ नहीं होती। प्यार वे क्या जाने जो ” ढाई अक्षर प्रेम का ” भी नहीं समझ पाते है। मैं देखा है कि लोगो को किसी से भी किसी को प्यार होता देख कर मिर्ची लग जाती है। लोग किसी को प्रेम करते देखना पसंद नहीं करते है। मेरे साथ तो अकसर यही होता रहा है कि मैंने जिससे भी प्रेम किया उससे मुझे चोट ही मिली। प्रेम के मामले में मैं अपनी कहानी ” अजब प्रेम की गजब कहानी  ”से जोड़ कर देख लेता हूं। लोग अकसर यह गीत गुनगुनाया है कि  ” सौ साल पहले हमें तुमसे प्यार था आज भी है और कल भी रहेगा…… ”  मैं इस गीत को सुनने के बाद उक्त गीत काफी मजाकिया लगता है। सौ साल पहले का प्यार आज भी रहे सरासर आसमान मे सुराख करने जैसा है क्योकि हर मिनट तो इस इंटरनेट के युग में प्रेमी और प्रेमिका बदलते रहते है ऐसे में सौ सेकण्ड का कोई भरोसा नहीं कि फेस बुक पर आई प्रेयसी फेस टू फेस होने पर कहीं इंकार न कर दे। प्रेम में लोगो को क्या कुछ मिला मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझसे सिर्फ बेवफाई ही मिली। मैं तो कई बार इस ” ढाई अक्षर के प्रेम के चक्कर में ” घनचक्कर तक बना हंू। लोगो ने आज नहीं बरसो पहले भी भड़ास डाट काम की तरह मेरे से भड़ास निकाली थी। मुझे अपने छात्र जीवन में अपने कथित प्रेम के वलते स्कूल तक से निकलना पड़ा सिर्फ इसलिए कि मैं चाहता था किसी और को और कोई और चाहती थी मुझे ……. किसी दिल जले ने शार्टशर्किट करके मुझे प्रेम का ऐसा करंट लगाया कि मैं आज भी प्रेम के नाम पर झटका खा जाता हंू। प्रेम का मतलब आप कहीं प्रेम उइके या प्रेम कुमारी से मत जोड़ लेना नहीं तो मुझे जबरन एक और झुठे मुकदमें के लिए लम्बी छुटट्ी पर जाना पड़ सकता है। आज कल तो प्रेम जात पात से ऊपर हट कर उसकी औकात को देख कर करना चाहिए क्योकि प्रेक के चक्कर बहुंत बुरे नज़र आने लगे है। मैं अपने अजब – प्रेम की गजब कहानी के कुछ पन्नो को आज के इस प्रेम दिवस पर इसलिए खोलना चाहता हंू कि लोगो को पता चल सके कि प्रेम का चक्कर कितना बुरा होता है लेकिन उससे कई गुणा बुरा होता है किसी को प्रेम के चलते किसी झुठे षडय़त्र में फंसाना। छात्र जीवन में मुझे अपनी स्वजाति लड़की से कथित प्यार जरूर हुआ था लेकिन उसमें कहीं भी आज के दौर का उस दौर का प्यार नहीं था। स्वजाति होने की वज़ह से हुए लगाव और एक साथ एक ही छत के नीचे आगे – पीछे बैठने के चलते हुई जलन ने मुझे जो दाग दिया उसे मैं आज तक धो नहीं पा रहा हंू। उस एक तरफा कहूं या दो तरफा प्यार जिसका खामियाजा मैं और मेरा एक अजीज दोस्त ने जो भोगा था वह भुलाया नहीं जा सकता। शाला प्राचार्य स्कूली कुछ छात्र – छात्राओं के हम दोनो स्वजाति के प्रति नकरात्मक सोच एवं षडय़ंत्र ने हम दो दोस्तो का स्कूल से नाम ही नहीं कटवाया बल्कि उस हसमुख चेहरे वाली आज की एश्वर्या हमशक्ल मेरी अपनी स्वजाति लड़की को बदनाम भी कर डाला। उस हादसे के बाद मेरा दोस्त कोयला खदान का मजदूर बन गया और मैं कलम का …… न तो वह मुझसे मिला और न मैं उससे मिला। दोनो ने कभी एक दुसरे से मिल कर कह भी नहीं पाए कि ” ए क्या हुआ….?   क्यों हुआ  ….? कैसे हुआ……? किसने किया ……? और क्यों किया……? इस तरह के कई सवाल आज तक मेरे दिलो दिमाग में भूचाल मचाता है कि मैं ”न तो उसे प्रेम पत्र लिख और न उससे नाराज होने को कहा……  ” अचानक वह सिर्फ इस बात को लेकर मुझसे नाराज हुई कि मैं उसे प्रेम पत्र लिख डाला …..? या उसे किसी ने मेरे नाम से प्रेम पत्र लिख कर बदनाम कर डाला…..? आज तक मैं इस उलझन भरी पहेली को समझ नहीं सका हंू कि मामला क्या था……? वास्तव में पुछा जा तो मुझे स्कूल से निकाले जाने का आज तक दुख नहीं है लेकिन दुख इस बात का जरूर रहेगा कि मेरे कारण मेरे दोस्त को स्कूल से निकलना पड़ा। मैं उस अनसुलझी पहेली को एक बार फिर प्रेम दिवस पर याद करने की कोशिस कर रहा हंू कि मैं अपने छात्र जीवन मे अपनी ही स्वजाति लड़की से कभी भी यह तक नहीं कहा कि ”ज्योति आइ लव यू ” और आज भी दो बच्चो का पिता होने के बाद भी यही शब्द अपनी पत्नि से भी नहीं कह पाता हंू क्योकि अब हमारे बच्चे भी जवानी की दहलीज पर पांव रखने लगे है। जिसे मैं आई लव यू नहीं कह सका उसे मैने कैसे प्रेम पत्र लिख दिया होगा….? यह पहेली मेरे लिए आज भी अनसुलझी है। मैं आज भी जब हम दोनो का घर संसार अलग – अलग बस जाने के बाद भी उस एश्वर्या की ओरीजनल कापी से आज भी नज़रे तक नहीं मिला पा रहा हूं आखिर वह मेरे बारे में क्या सोचती होगी….? मेरे दिल के किसी कोने में ज्योति के प्रति प्रेम की धड़कन धड़कती होगी लेकिन जमाने के डर से आज ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है लेकिन ज्योति आइ लव यू नहीं कह पाया हंू। मेरा आज भी बीती बातों को याद करके उन जख्मों को हरा करने का कोई विचार नहीं है। मैं तो अपनी उस स्वजाति ज्योति से यह कहना चाहता हू कि ” चांद को क्या मालूम  चाहता है उसको ए चकोर ” प्रेम प्रतीक है दिल की भावनाओं का और उन धड़कनो का जो अपनो के प्रति धड़कती रहती है। आज जिदंगी के इस मुकाम पर जब हम दोनो के बच्चों के प्रेम प्रसंग करने के दिन आ गए ऐसे में पुरानी बातों को याद करने से होता तो कुछ नहीं पर ” भूली हुई यादें  मुझे इतना न सताओं …….”  मैं आज के इस अंतराष्ट्रीय प्रेम दिवस पर अपनी स्वजाति प्रियतमा तो नहीं कह सकता है पर एक अच्दी मित्र नहीं बन सकी ज्योति को यह लेख समर्पित करता हूं कुछ इस अंदाज में कि ” तुम यू मुझे न भूला पाओंगें , जब भी सुनोगें गीत मेरे संग – संग तुम भी गुनगुनाओगें……. ” प्रेम एक लगन है जो कि राधा को श्रीकृष्ण से और मीरा को घनश्याम से जोड़ रखी थी। प्रेम एक अभिलाषा है उस पुष्प की तरह जो कि कुछ इस प्रकार कहता है कि ” चाह नहीं मैं मधुबाला के गहनो में गुथा जाऊं…… ” प्रेम एक उन्माद है जो कि राम के रूप को देख कर रावण की बहन सुर्पनाखा के मन में जागा था जिसने राम को पति के रूप में पाने के लिए अपनी नाक तक कटवा डाली। प्रेम एक बेला है जिसके सहारे गोस्वामी तुलसीदास अपनी पत्नि रत्नावली के पास पहुंचने के लिए सर्प को ही बेला समझ कर उसके सहारे उस तक पहुंच गए थे लेकिन रत्नावली को तुलसी का प्रेम – समर्पण समझ में नहीं आया और उसने अपने प्रेम में अंधे पति को वह फटकार लगाई कि वे तुलसीदास बन गए। जीवन के परिर्वतन में भी प्रेम का बहुंत बड़ा रोल रहता है कई बार प्रेम के वश में लोगो का जीवन चक्र तक बदल जाता है। प्रेम चाहे   सलीम को हो या फिर लैला मजनू का या फिर हीर रांझा का प्रेम और प्यार दोनो ने ही दिल के बदले दर्द दिया है। किसी ने कहा भी है कि प्रेम और प्यार यदि ढाई अक्षर का है तो दर्द भी तो ढाई अक्षर का है लेकिन दर्द सहा नहीं जा सकता। प्यार के बारे में कई शायरो ने कुछ इस प्रकार भी कहा है कि ” प्यार और दिलदार नसीब वालो को मिलता है ”  आज के दौर में प्यार का रूप परिवर्तित होता जा रहा है। प्यार में समपर्ण कम स्वार्थपन और कमीनापन ज्यादा भरा हुआ है। प्यार में जिस – जिस ने भी धोखा खाया है उसने बस ही गीत गाया है कि ”वफा जिनसे की वे बेवफा हो गए , वो वादे मोहब्बत के न जाने कहां खो गए ….” एक तरफ तो यह भी कहा जाता है कि ” यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए , प्यार चाहिए कि पैसा चाहिए…… ” आज के समय दिलदार को सिर्फ पैसे की भूख है क्योकि उसे पता है कि पैसा रहेगा पास तो फिर मंदाकिनी के भी मिलने की रहेगी आस……. पैसा प्यार और इनसे पैदा हुई विकृत मानसिकता की वासना ने आज प्यार की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। मेरा ऐसा मानना है कि ” जिदंगी की न टूटे लड़ी , प्यार कर ले घड़ी – दो घड़ी…… ” वैसे कुछ लोग तो यहां तक कहते है कि ”प्यार करने वाले जीते है शान से मरते है शान से…..  ”  लेकिन मैं यह मानता हंू कि ” प्यार करने वाले न तो जी पाते है शान से और न मर पाते है जान से .. ”  अब मैं अपनी बकवास को यही समाप्त करता हूं। सभी को प्रेम दिवस पर अच्छी और अच्छा मनपसंद प्रेम करने वाला चकोर मिले बस यही कामना के साथ ……..

मनरेगा में इतना भ्रष्ट्राचार की सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध
अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को हो जाएगी हाईपरटेंशन की बीमारी
बैतूल,रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में रोज सामने आ रही मनरेगा के कार्यो की गुणवत्ता एवं भ्रष्ट्राचार की शिकवा शिकायतों की यदि सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक जांच शुरू करेगी तो उन्हे छै महिने के बदले छै दिनो में ही हाईपरटेंशन की बीमारी हो जाए। सप्ताह में हर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में आने वाली हर दुसरी – तीसरी शिकायते मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर होती हैं। उक्त शिकायतों पर कार्यवाही क्या होती है या क्या हो चुकी हैं इस बात की किसी को पता नहीं लेकिन शिकायतों के बाद पैसे हल्का होने वाला सरपंच – सचिव जब आप खोकर गांव के लोगो को गंदी – गंदी गालियां देते हुए धमकाने लगते हैं तब शायद गांव वाले ही खबर का असर समझ कर फूले नहीं समाते हैं। मनरेगा को लेकर गांव से जिला मुख्यालय तक शिकायतों की आड़ में होने वाली सौदेबाजी का खेल चलता है। शिकायतों को लेकर गांव वालो के कथित ब्यानो एवं सच का पता लगने वाला मीडिया से लेकर जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी तक गांव तक पहुंचने के बाद मैनेज हो जाता हैं और गांव का गरीब जाबकार्ड धारक बार – बार जेब का पैसा खर्च करके जिला कलैक्टर से यह तक सवाल नहीं कर पाता हैं कि उसकी शिकायतें पर कोई सुनवाई क्यों नहीं हुई। आज यही कारण हैं कि गांव में भी ब्लेकमेलरो की दिन प्रतिदिन संख्या में इजाफा होते जा रहा हैं। गांव में ही सरपंच एवं सचिवो को पहले चरण में कथित शिकायतों को लेकर ब्लेकमेल करने के बाद सौपा न पटने की स्थिति में शिकायत करता स्वंय के रूपए – पैसे खर्च करके गांव वालों की भीड़ मंगलवार की जन सुनवाई में लाने से लेकर मीडिया तक को मैनजे करके मनरेगा के कार्यो को लेकर पेपरबाजी करवाता हैं। जितनी ज्यादा पेपरबाजी होती हैं उसके हिसाब से ब्लेकमेलर एवं सरपंच – सचिव के बीच सौदेबाजी होती हैं। कई बार तो दलाली के काम में जनपद के मुख्यकार्यपालन अधिकारी से लेकर राजनैतिक पार्टी के जनप्रतिनिधि तक अहम भूमिका निभाते हैं। आज का पंचायती राज कुल मिला कर रेवड़ी बन गया है जिसे हर कोई बाट का छीन कर खाना चाहता हैं। एक सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार बैतूल जिले में 6 जनवरी दिन मंगलवार वर्ष 2009 के बाद आज दिनांक तक हर मंगलवार याने दो साल पौने दो माह में लगभग 104  मंगलवार को लगे बैतूल जिले के जनसुनवाई शिविर में कुल तीस हजार पांच चालिस शिकायते दर्ज हुई है जिसमें से सोलह हजार नौ सौ तीस शिकायते बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के गांवो से मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर आई है। प्रशासन के पास $खबर लिखे जाने तक इस बात की कोई भी जानकारी नहीं है कि कितनी शिकायतों का निराकरण हो चुका हैं। मनरेगा के कार्यो की जांच एवं भुगतान को लेकर की गई शिकायतों की न तो जांच रिर्पोट लगी हैं और भुगतान पाने वालों के भुगतान मिलने सबंधी को प्रमाणिक दस्तावेज जिसके चलते कई शिकवा – शिकायते तो लगातार होने के बाद भी मनरेगा का भुगतान न तो हो सका हैं और न इन प्रकरणों की जांच हो सकी हैं। जिला प्रशासन द्वारा सीधे तौर पर मनरेगा के कार्यो की शिकवा शिकायतों की जांच सबंधित विभाग या फिर शाखा को भेज दी जाती हैं। उक्त विभाग या शाखा द्वारा जिला प्रशासन को इस बात की कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं भेजी जाती हैं कि शिकायत यदि सहीं हैं उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई हैं। वैसे देखा जाए तो 2 लाख 48 जाबकार्ड धारक है। जिसमें 1 लाख 78 हजार जाबकार्ड धारक परिवारों के एक सदस्य को एक साल में सौ दिन का रोजगार देने के प्रावधान हैं। जिले में जाबकार्ड धारको को हर बार भुगतान को लेकर प्रशासन की ओर से कई पहल की गई लेकिन हर बार शिकवा – शिकायते सुनने को मिली हैं। इस बार बैतूल जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा चलित मोबाइल बैंक की शुरूआज एच डी एफ सी बैंक के माध्यम से की जाने वली हैं। बैतूल जिले में वर्तमान में कुल 80 बैंक है जिनके माध्यम से जाबकार्ड धारको को भुगतान उनके खातों के माध्यम से किया जाता हैं। बैंक के पास वर्कलोड़ की वज़ह से वह मनरेगा के भुगतान कार्यो के प्रति उतनी दिलचस्पी भी नहीं लेती क्योकि बैंको को कोई विशेष लाभ नहीं मिलता हैं। वैसे भी सरकारी बैंको की ऋण देने एवं ब्याज पाने में ज्यादा रूचि रहती हैं। बैतूल जिले में लगातार ग्राम पंचायत स्तर के भ्रष्ट्राचार में कई बार बैंक भी लपेटे में आ चुकी हैं इसलिए बैंको का इस कार्यो के प्रति नकारात्मक रूख रहा हैं। बैंक से भुगतान पाने के लिए गांव से बैंको तक धक्के खाने वाला ग्रामीण आखिर विवश होकर शिकवा – शिकायते करने लगता हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता के अनुसार बैतूल जिले में सेन्ट्रल बैंक के साथ मोबाइल बैंक की एक योजना शुरू की थी लेकिन बैंक ही पीछे हट गई। अब प्रदेश में अनूपपुर की तरह एटीएम से भुगतान की जगह नगद भुगतान के लिए एच डी एफ सी बैंक से एक अनुबंधन किया जा रहा हैं। बैंक को मोबाइल बैंको के लिए जिला पंचायत वाहन तक उपलब्ध करवाने के लिए तैयार हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी भुगतान एवं कार्यो को लेकर होने वाली शिकायतों पर कार्यवाही होने की बाते तो करते है लेकिन उनके पास आकड़े नहीं हैं। श्री गुप्ता का तो यहां तक कहना हैं कि ग्राम पंचायत स्तर तक के कार्यो में भ्रष्ट्राचार के मामले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को भेजे गए है लेकिन उनके नाम उन्हे नहीं मालूम हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो एवं 10 जनपदो में आज तक कोई भी ऐसर रिकार्ड पंजी उपलब्ध नहीं है जिसमें ग्राम पंचायत सबंधी शिकायतों एवं उनके समाधान का जिक्र हो ऐसी स्थिति में बैतूल जिले का ग्राम पंचायती राज अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत पर खरा उतरता हैं।
एक कड़वा सच यह भी हैं कि बैतूल जिले में पदस्थ रहे मुख्यकार्यपालन अधिकारी एवं जिला कलैक्टरों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में कई प्रकरण चल रहे हैं लेकिन खबर लिखे जाने तक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)  द्वारा किसी भी बड़ी मछली को अपने फंदे में नहीं फंसाया जा सका है तब छोटी मछली के फंदे बाहर निकले की संभावना तो बरकरार रहेगी। बैतूल जिले के बारे में कहा जाता हैं कि मध्यप्रदेश का कमाऊपूत जिला हैं जहां पर हर कोई अपना देश है बड़ा विशाल लूटो खाओं है बाप का माल के मूल सिद्धांत पर कार्य कर रहा हैं। बैतूल जिले का पंचायती राज कब सार्थक एवं सफल सिद्ध होगा सयह कह पाना अतित के गर्भ में हैं।

मां मेरा जीवन धन्य हो जाए , यदि आप रामूरथी मां सूर्य ताप्ती कहलाएं
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
धरती पर गंगा को लाने के लिए भागीरथ ऋषि की ग्यारह पीढ़ी को कठीन तप करना पड़ा। अपने पितरो के उद्धार के लिए भागीरथ को गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाना पड़ा। आज गंगा का अनेको नामों में एक नाम भागीरथी गंगा भी हैं। हर नदी के स्वर्ग से धरती पर आने के पीछे कोई न कोई साधु – महात्मा – संत ऋषि – युग पुरूष का नाम आता हैं। चन्द्रपुत्री मां पूर्णा भी राज गय के आमंत्रण पर धरती पर सफेद गाय के रूप में आई थी लेकिन दुग्ध पान के बाद जब सप्त ऋषियों की नीयत डोलने लगी तो मां पूर्णा नदी की धार बन कर बह निकली। इन सबसे हट कर धरती पर सबसे पहली अवतरीत होने वाली नदियों में सर्वश्रेष्ठ मां सूर्यपुत्री ताप्ती हैं जिसका एक नाम आदिगंगा भी हैं। ताप्ती स्वंय अपने पिता के तेज को कम करने एवं जल – जीव – जन्तु- वनस्पति , सहित मनुष्य की प्यास से व्याकुल कंठा को शांत करने के लिए अपने पिता के निर्देश पर आई थी। मां ताप्ती का महात्मा इतना अधिक था कि स्वंय गंगा ने धरती पर आने से मना कर दिया था। बाद में नारद ने ताप्ती महात्म को कम करने के लिए ताप्ती पुराण को विलुप्त कर दिया। इस चोरी के चलते उन्हे नारद टेकड़ी पर बारह वर्षो तक तप करना पड़ा। ताप्ती जन स्थली पर नारद कुण्ड में प्रतिदिन स्नान एवं ध्यान के बाद ही नारद को ताप्ती पुराण चुराने के श्राप के चलते हुई कोढ़ से मुक्ति मिली थी। ताप्ती की तीन धार हैं एक स्वर्ग में एक धरती पर तथा एक पाताल में जिसके कारण मां सूर्यपुत्री ताप्ती पाताल गंगा भी कहलाई जाती हैं। मानव लोक बनने से पूर्व धरती पर आई मां ताप्ती का विलुप्त महात्म को जन – जन तक पहुंचाने के लिए मैं मां सूर्य पुत्री ताप्ती जागृति मंच को एक रथ का रूप देकर उसका सारथी बना बैठा हुआ हूं। मेरी अभिलाषा हैं कि मेरी आरध्य मां सूर्य पुत्री ताप्ती इस रथ पर सवार होकर पूरी दुनिया पर अपनी करूणा एवं अमृत रूपी जल को बरसाने के लिए चले। ममता मयी हे मां आप कृपा कर मेरे प्रचारक रथ पर सवार होने की असीम कृपा करे। मैं आपके रथ को लेकर पूरी दुनिया और तीनो लोको में आपके दिव्य दर्शन एवं आपके जल को तरसते जीव – जन्तु – वनस्पति सहित उन सभी को जो आपके माहत्म को समझने की क्षमता – दक्षता रखते हैं उन्हे आपकी कथा को सुना कर अपने जीवन को सार्थक करना चाहता हँू। हे ममतामयी मां मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझुंगा यदि मैं अपने जीवन का एक अंश भी आपकी कीॢत एवं यश को जन – जन तक पहुंचाने में सफल हो सका। आपके यश को आपके पिता के प्रकाश की तरह चहूं ओर फैलाने की मेरी अभिलाषा को पूरा करने का कृष्ट करे। हे मां अपने इस बालक की अभिलाषाओं को मूर्त रूप देने में कृपा करें। मां आपके नाम के स्मरण से जब जीव जन्तु का जीवन तर – सफल – सार्थक सिद्ध हो जाता हैं तब मां मुझे आपकी ताप्ती कथा का वाचन करने का आर्शिवाद देने की कृपा करे। यदि मुझे हे जीवन दायनी , ममतामयी मां आपका स्नेह एवं प्यार मिला तथा कृपा बनी रही तो हो सकता हैं कि मैं भी आने वाले युगों में मां ताप्ती के महात्म को जन – जन तक पहुंचाने के अपने सुक्ष्म प्रयासों के चलते जाना पहचाना जाऊ। लोग मेरी अराध्य मां सूर्यपुत्री ताप्ती को रामूरथी गंगा कह कर पुकारे जिससे मेरे भी कुलो का भागीरथ की तरह उद्धार हो सके। मां ताप्ती आपके अतुल्य महात्म के प्रचार – प्रसार को जन – जन तक पहुंचाने के पीछे मेरी व्यक्तिगत मंशा बस यही रही हैं कि मां के नाम का रोज स्मरण हो ताकि मुझे भी मां के  नाम का स्मरण करने से गंगा के स्नान एवं मां रेवा के दर्शन के समान पुण्य लाभ मिल सके। मैं लव कुश की तरह तो नहीं पर उसी तर्ज पर मां आपके मानस पुत्र के रूप में कहलाने का सौभाग्य पाकर आपकी महिमा को श्री राम के दरबार की तरह हर घर बार तक पहुंचा सकूं। मां मैं लोगो को बता सकूं कि आपके पावन जल के शरीर को छुने के बाद किसी तरह लोगो के रोग – कृष्ट दूर हो जाते हैं। आपके जल में स्नान करने को तरसते 33 कोटी देवी – देवताओं की कथा लोगो को सुना कर हर माह की हर तीथी को आपके जल में स्नान – ध्यान – पूजा – कर्म – साधना एवं दर्शन का किस प्रकार लाभ एवं पुण्य मिलता हैं यह लोगो को समझा सकूं। जिस कुल में भगवान श्री राम और आपने जन्म लिया हैं उस सूर्यवंशी की महिमा की कथा लोगो को सुनाने के पीछे मेरी मंशा हैं कि दुनिया जान सके कि हमारे देश में नदियों को देवी के रूप में क्यों पूजा जाता रहा हैं। आपकी कथा और आपके भाईयों विशेषकर न्याय के देवता शनिदेव एवं दानवीर कर्ण की कथा भी आपके संग – संग सुनाने से लोगो को आपके पितृवंश का ज्ञान हो सके। मां मैं यह भी चाहता हंू कि आपकी और चन्द्र वंश के महान प्रताप राजी सवरण के संग आपके विवाह एवं आपके पुत्र महराजा कुरू के द्वारा स्थापित कुरूवंश का भी लोगो को ज्ञान मिल सके। मां लोग जान सके कि आपके तट कि किनारे शिव लिंगो की स्थापना के पीछे की कथा क्या हैं। लोग दुनिया एक मात्र एक ही स्थान पर स्थापित बारह ज्योर्तिलिंगों की अमरकथा का भी श्रवण कर आनंद ले सके। मां आपके किनारे किन – किन महात्माओं ने जप – तप किया हैं उसका भी लोगो का ज्ञान हो सके। आपके  पावन जल में किस प्रकार का चमत्कार हैं यह दुनिया जा सके ऐसी मैं कामना करता हूं। मां आज के आपके  महात्म में एक सत्य घटना को भी जोडऩा चाहता हूं जो मुझे गंज के जगदीश नामक गुजराती काका ने अपनी ने बताई थी। बैतूल गंज में एक होटल का संचालक जैन परिवार में जन्मा जगदीश गुजराती काका ने बताया कि वर्ष 1970 के दशक में चिचोली के सिद्ध महात्मा संत परम पूज्य तपश्री बाबा ताप्ती जी के खेड़ी घाट पर भण्डारा करवा रहे थे। भण्डारे के लिए पूरियां तलने का काम जगदीश काका कर रहे थे अचानक तेल कम पड़ गया। तपश्री बाबा ने कहा कि जाओं तेल का टीन लेकर ताप्ती माई से उधार चार – चार टीन तेल लेकर आ जाओं। काका बाबा के कहे अनुसार चार टीन ताप्ती जी का जल भर के ले आया और खौलती कढ़ाई में जैसी ताप्ती माई का पावन जल पड़ा पूरिया तलने लगी। दुसरे दिन उसे बाबा ने याद दिलाया कि वह ताप्ती माई से कुछ सामान उधार लाया हैं उसे वापस करके आ और मैं चार टीन तेल मां के पावन जल में छोडऩे लगा तो बैतूल के कई लोगो ने मेरी शिकायत पूज्य तपश्री बाबा से की तो वे हस कर बोले गलत क्या हैं उसने किसी से उधार सामान लाया था वह वापस लौटा रहा हैं। जगदीश काका मां ताप्ती के पावन जल का चमत्कार बताते – बताते  आत्मा से भाव विभोर हो जाते हैं। उनके नेत्रों से जल बहने लगता हैं। जगदीश काका कहते हैं कि मां का इससे बड़ा चमत्कार और क्या होगा। जगदीश काका जैसे सैकड़ो – हजारो – लाखो मां ताप्ती के भक्त होगें जो किसी न किसी चमत्कार की कथा को अपने दिल के किसी कोने में छुपा रखे हैं। वक्त और सत्संग आने पर कोइ न कोई मां ताप्ती का भक्त उनके चमत्कार की कथा लोगो को सुनाने से नहीं चुकता हैं। मैं हमेशा मां से बस यही कामना करता हूं कि हे मां जन्म से लेकर मृत्यु तक के सारे संस्कार आपके पावन जल में ही हो। मैं किसी नाले या गटर के किनारे जल कर भस्म होने दफन होने को कतई तैयार नहीं हूं। मां मेरी शरीर की हर हडड्ी और जल कर बनी राख आपके पावन में  समाहित होकर तृत्त होना चाहती हैं। मेरा बचपन आपके आंचल मुलताई में बीता हैं ऐसे में मां मैं चाहता हूं कि जीवन का अंतिम दौर भी आपके महात्म को जन – जन तक पहुंचाने में गुजरे और जीवन की आखरी सांस लेते समय में मेरी जुबान पर सिर्फ आपका ही नाम हो।

सुर्खियों में बन गया परिवार नियोजन का लक्ष्य
चाहो तो हमारी टीवी और नई नवेली बीबी देने की लगी होड़
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में परिवार नियोजन का 70 प्रतिशत लक्ष्य पूरा करने में कर्मचारियों को अब पसीना छूटने लगा है जबकि शासन की ओर से उन्हे बतौर इनाम में रंगीन टीवी का भी लालच दिया गया है। लक्ष्य पूर्ति के लिए अपने को मिलने वाले रंगीन टीवी को भी लोग देने को तैयार है यदि कोई उनकी मदद करे। पहले कर्मचारियों को रंगीन टीवी विभाग की ओर से दिया जाला है लेकिन अब उन लोगो द्वारा गांव के नवयुवको को नई नवेली बीबी और रंगीन टीवी का आफर फासना पड़ रहा हैं। कुछ गांवों में तो ऐसे भी प्रसंग सुनने को मिल रहे हैं कि लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुंवारों की नसबंदी की जा रही हैं। आमला तहसील मुख्यालय में एक कुंवारे युवक की नसबंदी की स्याही अभी सुख भी नहीं पाई हैं। जहां एक ओर ऐसे बदनामी के दौर में खासकर ऐसे आदिवासी युवको की जिन्हे रूपए – पैसे की जरूरत हैं तथा किन्ही कारणो से अविवाहीत भी है ऐसे गांव के युवको को कहा जा रहा हैं कि उन्हे अच्छी सुंदर बीबी भी दिलवा देगें यदि वे नसबंदी करवाते हैं। गांव के युवको को अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह भी समझाने का प्रयास किया जा रहा हैं कि उनकी शादी हो जाने के बाद उनकी सेहत एवं सेक्स क्षमता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा वे जब चाहे तब उस नसबंदी को पुन: जुड़वा भी सकते हैं। वही दुसरी ओर आदिवासी परिवार की कुंवारी लड़कियों के परिवार जनो को इस बात के लिए तैयार किया जा रहा हैं कि वे उनकी लड़की का मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत नि:शुल्क विवाह के अलावा उनके लिए दान -दहेज की भी व्यवस्था करवा देगें। किसी भी तरह से लोभ – लालच में आकर ग्राम पंचायत के सरपंच , सचिव से लेकर फील्ड वर्क कर रहे शासकीय कर्मचारियों को नौकरी बचाने के लिए कुंवारे और बुढ़े बुर्जग तक को मोहरा बनाया जा रहा हैं। गांवो में जहां उन्हें लोगों की खरी-खोटी सुनना पड़ रही हैं, वहीं अपनों की रूसवाई ने उनका मनोबल तोड़ कर रख दिया है। ऊपर से वेतन रोके जाने से कर्मचारियों की हालत और भी दयनीय हो गई है। ऐसे में भयाक्रांत शासकीय कर्मचारियों को शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करना भी किसी मुसीबत से कम नजर नहीं आ रहा है। हम दो हमारे दो के स्लोगन ने शासकीय कर्मचारी को कहीं का नहीं छोड़ा हैं। परिवार नियोजन के कार्य में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों को स्वास्थ्य विभाग से लेकर सभी शासकीय विभाग जिसमें ग्राम पंचायत , स्कूली शिक्षा विभाग , महिला बाल विकास विभाग सजा की धमकी देने से भी नहीं चूक रहा है। जिले भर के शासकीय विभगो के प्रमुखो को जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए निर्देशो में शासन की मंशा का ख्याल रखने को कहा हैं। अभी हाल ही में स्वास्थ विभाग द्वारा परिवार नियोजन कार्य में 70 प्रतिशत से कम लक्ष्य हासिल करने वाले आधा सैकड़ा कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया है। साथ ही यह निर्देश दिए गए है कि यदि वे 70 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य पूर्ण नहीं करते हैं तो उन्हें वेतन नहीं दिया जाएगा। इस साल परिवार नियोजन कार्य को स्वास्थ्य विभाग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा गया है। यही कारण है कि इस कार्य की हर माह समीक्षा भी की जा रही है। फरवरी माह की समीक्षा जल्द की जाना है। यदि समीक्षा के दौरान किसी कर्मचारी की उपलब्घि कम पाई जाती है तो उसके खिलाफ दो वेतन रोकने की कार्रवाई भी विभाग द्वारा सुनिश्चित की गई है। साथ ही कठोर कार्रवाई की बात भी कही जा रही है। नसबंदी कार्यक्रम के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग को 16 हजार 300 का लक्ष्य निर्घारित किया गया है। जिसके तहत अभी तक 13 हजार 52 नसबंदी ऑपरेशन किए जा चुके है। लक्ष्य हासिल करने के लिए विभाग द्वारा आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहित पंच एवं सचिवों की भी मदद ली जा रही है। वहीं कार्य में शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने हितग्राहियों के लिए इनाम भी रखा गया है। नसबंदी कार्यक्रम में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों का वेतन रोका गया है। यदि वे 70 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य हासिल कर लेते हैं तो उन्हें वेतन दे दिया जाएगा।

प्रदेश में दूरवर्ती शिक्षा की दशा खराब
बैतूल,रामकिशोर पंवार: महात्मा गाँधी चित्रकुट ग्रामोदय विश्वविद्यालय जिला सतना मध्यप्रदेश द्वारा संचालित के दूरवर्ती शिक्षा पाठयक्रम के छात्र परेशानी में पड़ गए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने वर्ष 2010 का परीक्षा परिणाम घोषित किए बिना ही वर्ष 2011 का परीक्षा कार्यक्रम को घोषित कर दिया हैं। विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन प्रस्तुत करने की अंतिम तारीख 25 फरवरी नियत कर दी गई थी। विलम्ब शुल्क के साथ आवेदन पत्र 15 मार्च तक विश्वविद्यालय पहुँच जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात भारी भरकम विलम्ब शुल्क 5000रू नियत किया गया हैं। विश्वविद्यालय ने कुछ पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क में बढ़ोत्तरी भी कर दी हैं। इसके साथ ही छात्रों के लिए व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए भारी कीमत अदाकरनी पड़ रही हैं। समाज के कमजोर वर्ग के लिए सरकारी विश्वविद्यालय के दूरवर्ती पाठ्क्रम सफेद हाथी साबित हो सकते हैं। अगर विश्वविद्यालय कम दरों पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था नही कर पाता हैं तो दूवर्ती शिक्षा प्रदान करने का उसका सामाजिक लक्ष्य ही समाप्त हो जाता हैं। विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की तुलना में बहुत ही ज्यादा हैं जबकि अध्ययन सामग्री की गुणवत्ता सवालों के दायरें में मालूम पड़ती हैं। अनुसूचित जाति जनजाति छात्र संगठन के अध्यक्ष भोजराम टिलरे सवाल करते हैं कि बीए प्रथम वर्ष की परीक्षा परिणाम को जाने बिना ही आगामी परीक्षा के लिए आवेदन आखिर कैसे किया जा सकता हैं? पुर्नगणना और पुर्नमूल्यांकन के लिए भी तो समयबद्ध कार्यक्रम होनी चाहिए। छात्र  माँग करते हैं कि वर्ष दो में बार परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए। अध्ययन सामग्री छात्रों के पोस्टल पते पर पहुँचानी चाहिए। अनुसूचित वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जानी चाहिए। परीक्षा परीणाम घोषित किए जाने के बाद ही नया परीक्षा कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाना चाहिए पर ऐसा न होने से शासन की मंशा का पलीता हो रहा हैं।

अब पुलिस वाले भी करने लगे इनाम से परहेज
बैतूल, रामकिशोर पंवार: सरकारी नौकरी में अपने आला अफसरों से इनाम पाना किसे अच्छा नहीं लगता लेकिन बैतूल जिले में ठीक इसके उलट काम हो रहा हैं। जिले के पुलिस विभाग के कर्मचारी अब अपने आला अफसरो से इनाम लेने से ही परहेज कर रहे हैं। यहां बात हो रही है परीक्षाओं के दौरान सेवाएं देने वाले पुलिस एवं होमगार्ड सैनिकों को बोर्ड द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार की राशि इतनी कम है कि इन्होंने इस इनाम को लेने में ही कोई रूचि नहीं दिखाई। लगभग एक महीने चलने वाली परीक्षाओं में सेवा देने वाले पुलिसकर्मियों और होमगार्ड सैनिकों को बोर्ड द्वारा उनकी सराहनी सेवाओं के लिए पुरस्कृत किया जाता है। जिसमें होमगार्ड सैनिकों को 15 रूपए, आरक्षक को 23 रूपए, प्रधान आरक्षक को 28 रूपए, एएसआई को 35 रूपए और एसआई को 50 रूपए दिए जाते हैं। इस राशि को लेकर पुलिसकर्मियों का मानना है कि एक महीने के लिए यह इनाम बहुत कम है और उनके सीआर में भी दर्ज नहीं होगा। विगत बोर्ड परीक्षाओं में सेवाएं देने वाले पुलिसकर्मियों के लिए अक्टूबर 2010 में पुरस्कार की राशि आई है। इसमें 119 पुलिसकर्मियों के लिए तीन हजार रूपए दिए गए हैं। स्थिति यह है कि अधिकांश लोगों ने यह पुरस्कार ही ग्रहण नहीं किया है। कुछ लोगों को तो इसकी जानकारी ही नहीं है कि उन्हें नगद इनाम से पुरस्कृत भी किया गया है। अन्य थानों में पदस्थ पुलिसकर्मियों का कहना है कि यह इनाम की राशि लेने बैतूल आना ही महंगा है। बहुत कम पुलिसकर्मी इनाम लेने आ रहे हैं। इनाम की राशि देना जरूरी है। राशि थानों में पहुंचा दी जाएगी

शिक्षा का लगा बाजार चौतरफा मची है लूट , लूट सके तो लूट
बैतूल जिले में मिशनरी स्कूलों में अर्थदंड का चल पड़ा दौर
बैतूल, रामकिशोर पंवार: लोगो के दिलो दिमाग पर छाई पश्चिमी सभ्यता और दुसरो से अच्छा बनने की चाहत कई बार अनजान मुसीबतों का पहाँड़ लेकर टूट पड़ती हैं। ऐसे में आदमी बन जाता हैं धोबी का कुत्ता जो न तो घर का रहता हैं और न घाट का …. बैतूल जिला मुख्यालय के कुछ हाई प्रोफाइल कहलाने वाले पालको को उस समझ तगड़ा छटका लगा जब ईएलसी कोठीबाजार प्रबंधन ने अपने स्कूल में पढऩे वाले छात्रों को प्रवेश पत्र देने से पहले अतिरिक्त रूपए की मांग रख दी और फीस के रूप में अर्थदण्ड वसूलने शुरू कर दिए। कुछ ने तो विरोध किया लेकिन अधिकांश अर्थदंड की भरपाई करके अपने बच्चों के प्रवेश पत्र लेकर चलते बने। क्षणिक विरोध की परवाह किए बिना स्कूल प्रबंधन ने अपना सुरसा जैसा मुंह फाडऩा शुरू किया तो भागे – भागे स्कूल के छात्र और उनके पालक पहुंच गए भाजपा एवं संघ के विचारक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद नामक संगठन के पास और फिर शुरू हो गई नेतागिरी। इसाई मिशनरी द्वारा संचालित स्कूली शिक्षा से वैसे ही नाराज संघ विचारक विद्यार्थी परिषद के हाथों में जैसे कोई ब्रहमास्त्र आ गया और उन्होने मिशनरी संचालित स्कूल पर धावा बोल दिया। भाजपा समर्थक संगठन के दबाव में तथाकथित शिकायत सहीं पाई गई और स्कूल प्रबंधन को फीस वापस करनी पड़ी। पूरी कहानी कुछ इस प्रकार से रही। पैसे मांगने और प्रवेश पत्र नहीं देने से नाराज स्कूल के छात्रों ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में प्रदर्शन किया।  अभाविप के आंदोलन प्रभारी सनी राठौर के नेतृत्व में अवैध फीस वसूली बंद करने के विरोध में प्रदर्शन किया। बिगड़ती हुई स्थिति को देखते हुए स्कूल प्रबंधन ने इसकी सूचना पुलिस को दी। पुलिस भी स्कूल पहुंच गई थी। पुलिस ने मामला शांत कराया। प्रदर्शन के बाद स्कूल प्रबंधन ने छात्रों को प्रवेश पत्र दिए। कलैक्टर कार्यालय रोड़ पर कोठीबाजार स्थित ईएलसी स्कूल के छात्रों ने प्राचार्य एवं शिक्षकों पर अवैध रूप से फीस के नाम पर पैसों वसूली करने एवं परिजनों से अभद्र व्यवहार करने की शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी बीके पटेल से भी की थी। छात्रों की शिकायत के बाद शिक्षा विभाग से स्कूल में जांच के लिए दो सदस्यीय दल पहुंचा। दल में शामिल कन्या गंज स्कूल के प्राचार्य केके वरवड़े, सिविल लाइन प्राथमिक स्कूल के प्रधानपाठक वीआर वाघमोड़े पहुंचे। जांच दल ने छात्रों को प्रवेश पत्र देने एवं फीस वापस करने के निर्देश स्कूल प्रबंधन को दिए हैं। जांच करके लौटे प्राचार्य केके वरवड़े को स्कूल के छात्रों ने बताया कि स्कूल प्रबंधन अनपुस्थित रहने पर एक छात्र से प्रतिदिन 10 रूपए के हिसाब से अर्थदंड से वसूल रहा है। रेडक्रास, स्काउट गाइड के नाम पर भी अर्थदंड लिए जा रहे हैं। छात्रों ने 500 रूपए से लेकर एक हजार रूपए तक लिए जा रहे हैं। इसकी कोई रसीद भी नहीं दी जा रही है।छात्रों ने जांच अधिकारी वरवड़े को बताया कि पैसे नहीं देने पर प्रवेश पत्र नहीं दिए जा रहे हैं। रिजल्ट खराब करने की धमकी दी जा रही है। श्री वरकड़े के कहे अनुसार स्कूल प्रबंधन परिजनों से भी अभद्र व्यवहार किया जा रहा है। प्रथम दृष्टया फीस वसूली में गड़बड़ी नजर आ रही है। छात्रों को प्रवेश पत्र देने एवं फीस वापस करने के प्रबंधन को निर्देश दिए हैं। जांच रिपोर्ट डीईओ को सौंप दी है। छात्र पालको ने कभी किसी से यह नहीं कहा कि उनके बच्चों से टाई , बैल्ट , जूते मौजे, होमवर्क न करके आने पर जबरिया अर्थदंड आरोपित कर वसूला जाता हैं। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि बैतूल जिले में सवा सौ से अधिक मिशनरी द्वारा संचालित हाई प्रोफाइल स्कूल हैं जहां पर क्लासवन से लेकर आम आदमी तक के बच्चे शोषण एवं यातना के शिकार बन रहे हैं लेकिन कथित बच्चों के भविष्य के चलते पालक सब कुछ सहन कर रहा हैं जिसके शोषण की गथा आमजन तक नहीं पहुंच पाती हैं। अकसर देखने में आया हैं कि धनबल – बाहुबल से समर्थ इन स्कूल प्रबंधनो द्वारा अनैतिक नियम विरूद्ध कानून के मंशा के खिलाफ ऐसे कार्य संपादित किए जाते हैं जो भादवि के अनुसार संगीन अपराध की श्रेणी में आते हैं।

शैफाली की जेल में सुरंग
कहीं गोद भराई करने वालों ने तो नहीं की……?
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के चुने हुए जिलों में से एक है आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जहां सुश्री शैफाली तिवारी नामक महिला जेल अधिक्षक पदस्थ हैं। सुश्री शैफाली यूं तो शोले की गब्बर सिंह या फूलनदेवी की तरह कोई डाकू नहीं है बल्कि चोर उच्चको को सुधारने वाली सुधारगृह की अधिक्षक हैं। महिला जेल अधिक्षक को इस बात के लिए चिंता सता रही हैं कि उनकी जेल में आखिर ऐसी कौन सी सुरंग खुद गई कि अकसर आलू चोर सुरंग से आकर आलू ही चोरी करके नौ – दो ग्यारह हो जाती हैं। दबंग छवि की यह महिला अधिक्षक वैसे तो सुदंरता में किसी से कम नहीं हैं लेकिन भोली सूरत पर इस समय इस बात को लेकर मायूसी हैं कि उनकी जेल की चार दिवारी को भलां कोई कैसे लांध सकता हैं। फिल्म शोले में जिस तरह अंग्रेजों के जमाने के जेलर के होश जेल में सुरंग खोदे जाने की खबर से उड़ गए थे। ठीक इसी तरह अंग्रेजों के जमाने की बैतूल जेल में जहां पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता वहां से कथित आलू खोदकर चोरी किए जाने से की घटना से सुश्री शैफाली तिवारी को गहरा धक्का लगा हैं। अभी कुछ दिन पहले ही मीडिया में सुर्खियों में छाई रही बैतूल जेल अधिक्षक सुश्री शैफाली तिवारी ने बाजे – गाजे के साथ जेल कैम्पस में अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने वाली एक महिला की गोद भरवाई का कार्यक्रम संपादित करवाया था। महिला बाल विकास विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों तथा भाजपा सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे की उपस्थिति में सम्पन्न हुए गोद भराई के कार्यक्रम की अपार पब्लिसिटी के बाद अचानक नींद से जाग उठी सुश्री शैफाली लगातार एक सप्ताह से जेल परिसर में विचारधीण कैदियों द्वारा लगाई गई आसू की फसल की निगरानी के बावजूद चोरी का खुलासा न होने से हैरान एवं परेशान हैं। सुश्री शैफाली तिवारी को समझ नहीं आ रहा कि उनकी जेल से आलू की चोरी करने वाले चोर को धरती खा गई या आसमान निगल गया है। वही दुसरी ओर बैतूल जिले में बंद 350 कैदियों में कई शातीर – चोर – उच्चके – गुण्डे – मवाली यहां तक कि लूटेरे तक हैं इन सब लोगो की मेहनत पर पानी फेर कर जाने वाले चोर का पता नहीं लगने से उनकी भी हालत पतली हो चुकी हैं। बैतूल जेल परिसर के अंदर कैदियों ने पहली बार आलू और गेहंू की खेती शुरू की। जिसमें करीब तीन एकड़ में आलू की फसल बोई थी और वर्तमान में आलू भी तैयार हो गए हैं। आलू की इस फसल को अज्ञात चोरों द्वारा रात के समय चुराकर ले जाने का काम चल रहा है। चोर आलू खोदकर निकाल लेते हैं और आलू के पौधे को वहीं छोड़ देते हैं। लगातार एक सप्ताह से धड़ल्ले से चल रही इस चोरी ने जेल प्रबंधन को शर्मसार कर दिया हैं उनकी समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर चोर आते कहां से हैं और जाते कहां है? बैतूल जेल जो कि सुरक्षा के लिहाज से बेहद मजबूत और अभेद किले की तरह मानी जाती है। हालाकि बहुंत कम लोगो को पता होगा कि खेड़ला के किले से जो सुरंग एलिजपुर आज के अचलपुर महाराष्ट्र तक जाती हैं। उस सुरंग का रास्ता जेल के अंदर से भी जाता हैं। सैकड़ो सालों से बंद सुरंग के अंदर कहीं कोई हलचल तो शुरू नहीं हो रही हैं इस बात से भी जेल प्रबंधन परेशान हैं। जिला जेल में इस तरह आलू की फसल चोरी होने से जेल के अधिकारियों को तो चिंता में डाल दिया हैं लेकिन पुलिस भी कम सकते में नहीं हैं कि आखिर यदि जेल प्रबंधन चोरी की रिर्पोट लिखवाता हैं तो उसे कैसे लिखे…..? वर्तमान में जिला जेल में 6 बैरक में 350 कैदी बंद है और इनकी सुरक्षा के लिए महज 17 सुरक्षा प्रहरी तैनात है। खाने के शौकिन कथित आलू चोरों ने जेल की सुरक्षा और अधिकारियों के अभेद जेल होने के दावे पर सवालिया निशान लगा दिया है। सबसे मजेदार बात यह हैं कि दिमाग में नम्बर वन कहे जाने वाले पंडितो जिसमें जेल अधिक्षक सुश्री शैफाली तिवारी एवं उप जेल अधिक्षक एस एन शुक्ला के पदस्थ हैं। हालाकि इस समय जेल अधिक्षक सुश्री शैफाली तिवारी दो दिन से छुटट्ी पर हैं इसलिए उनसे कोई घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी हैं।

अपने ममेरे ससुर पर लगाया दहेज न देने का आरोप हैं
शिवराज की कन्यादान योजना के पात्रों को ही नहीं मिल रहा दान
बैतूल, रामकिशोर पंवार: प्रदेश की लाड़लियों के लोकप्रिय जगत मामा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अति महात्वाकांक्षी कन्यादान योजना अब विवादो में घिर गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों के अनुसार दहेज लेना एवं देना कानून की नज़र में अपराध हैं तब बैतूल जिले की उस युवक का क्या होगा जो अपनी पत्नि के साथ अपने ममेरे ससुद शिवराज सिंह के सुशासन में कुछ बैतूल जिले के अधिकारी उसे दहेज नहीं दे रहे हैं। इस सनसनी खेज आरोप का अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है कि शादी के नौ माह बाद भी कन्या को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत मिलने वाला दान – दहेज नहीं मिल सका है। महिला ने इसकी शिकायत जिला कलैक्टर की जनसुनवाई के दौरान करते हुए आरोप लगाया कि मामा के राज्य में उसके साथ उसे दान – दहेज का वादा करने के बाद भी वादा खिलाफी हो रही हैं। प्रभारी जिला कलैक्टर से अपना दान दहेज , उपहार सामग्री दिलाने की मांग की करने वाली दंपति ग्राम बरेठा झल्लार थाना क्षेत्र की रहने वाली हैं। श्रीमति अनिता इवने ने बताया कि उसका विवाह ग्राम चौकी निवासी समाज के प्रेम उइके से मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत ग्राम हरदू मे 12 मई 2010 को हुआ। योजना के तहत शादी रचाने वाली महिला को उपहार में सामग्री प्रदान की जाती है। अनीता ने बताया कि शादी होने को अब नौ महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन अभी तक उपहार में कुछ नहीं दिया गया है। अनिता ने बताया कि हरदू में कन्यादान योजना के तहत शादी करने वाली और भी महिलाएं है, जिन्हें योजना के उपहार में मिलने वाली सामग्री नहीं मिली है। महिलाएं सामग्री के लिए अधिकारियों के चक्कर काट काट कर थक गई हैं।

बीकानेर की मिठाई का नमूना एक, जांच रिपोर्ट दो
बैतूल, रामकिशोर पंवार:  खाद्य वस्तुओं मे मिलावट की जांच के लिए सेम्पल जिस सरकारी प्रयोगशाला में भेजे जाते हैं उसकी रिपोर्ट पर सवालिया निशान लग रहा है। एक ही दिन, एक ही समय और एक ही मावे से दो अलग-अलग विभागों ने नमूने जांच के लिए भोपाल प्रयोगशाला में भेजे थे, लेकिन जब रिपोर्ट आई तो एक रिपोर्ट में सेम्पल फेल बताया गया जबकि दूसरी रिपोर्ट में सेम्पल पास कर दिया गया। दीपावली पर्व के समय बैतूल एसडीएम को यह सूचना मिली थी कि बीकानेर मिष्ठान भंडार में जो मावा बाहर से आ रहा है वह मिलावटी है। इस सूचना पर उन्होंने 29 अक्टूबर को शाम के समय छापा मारा और यहां पर आए हुए मावे की सेम्पलिंग करवाई। जिसमें एक सेम्पल स्वास्थ्य विभाग के खाद्य एवं औषधि अपमिश्रण शाखा ने लिया था। वहीं दूसरा सेम्पल नगरपालिका की स्वास्थ्य शाखा द्वारा लिया गया। दोनों ही सेम्पल जांच के लिए भोपाल प्रयोगशाला में भेजे गए थे। लगभग तीन महीने के बाद जब प्रयोगशाला से जांच की रिपोर्ट आई तो वह काफी चौकाने वाली थी। नगरपालिका के सेम्पल की जांच रिपोर्ट में मावे को शुद्ध बताया गया। वहीं खाद्य एवं औषधि अपमिश्रण शाखा के सेम्पल की रिपोर्ट में इस मावे में मिलावट बताई गई। जिसके आधार पर दुकानदार पर प्रकरण भी दर्ज किया गया। दो प्रकार की रिपोर्ट ने प्रयोगशाला की व्यवस्थाओं को संदेह के दायरे में ला दिया है। प्रयोगशाला जांच रिपोर्ट सचमुच हैरत में डालने वाली है। जब दोनों ही नमूने एक साथ लिए गए हैं तो रिपोर्ट भी एक जैसी आना चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
भगवान भरोसे हो गई बैतूल जिले की स्वास्थ सेवा

गांव से लेकर शहर तक हर जगह अव्यवस्था का ही आलम
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आमला तहसील के ग्राम बोरदेही के सरकारी अस्पताल में बीते करीब छ: महीनों से जननी एक्सप्रेस नहीं है। यह वाहन नहीं होने से डिलेवरी करवाने अस्पताल तक पहुचने में महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।वहीं अब सप्ताह में 2 दिन डॉक्टर पहुंचनें से लोगों ने थोड़ी राहत महसूस की है। यहां करीब छ: माह पहले तक वाहन उपलब्ध था, लेकिन कुछ कारणों से वाहन की सेवाएं बंद हो गई है।लिहाजा अब महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचना है तो आशा कार्यकर्ता का मुंंह ताकना पड़ता है या फिर किराए का वाहन लेकर अस्पताल पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि वाहन नहीं होने से उन्हें जहां अक्सर अधिक खर्च उठाना पड़ता है तो कई बार वाहन नहीं मिलने पर जिंदगी और मौत से जूझने जैसी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। जानकारी के मुताबिक करीब 6 माह पहले तक अस्पताल में जननी एक्सप्रेस की सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन कुछ समय बाद इसे बंद कर दिया गया। तब से यह समस्या बढ़ गई है। जानकारी के मुताबिक पर्याप्त प्रकरण नहीं मिलने के कारण संबंधित ने यहां वाहन की सेवा देना बंद कर दिया है। इटावा सरपंच उमा प्रमोद सोनी, हथनोरा की संध्याबाई राजेंद्र सिंह, बामला के भवानी सूर्यवंशी, बोरदेही के संजय सूर्यवंशी, हथनोरा के भगवत पटेल, घाटावाड़ी के हरिराम पटेल का कहना है कि प्राइवेट वाहन बंद भी हो गया है तो शासन अस्पताल में स्थाई वाहन का इंतजाम किया जाना था। ग्राम पंचायत की शिकायतों से कई ज्यादा गंभरी हैं बैतूल जिला मुख्यालय के मुख्य अस्पताल की जहां पर ओपीडी में डाक्टरों के बैठने के समय में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। प्रतिदिन जिला चिकित्सालय में सभी डयूटी पर पदस्थ डाक्टर अपने कक्षों से नदारद रहते हैं। इससे मरीजों को देर तक इंतजार करना पड़ा। कतार लगाकर खड़े मरीज कहने को मजबूर हो गए कि, डॉक्टर साहब कब आएंगें…..? जिला अस्पताल में सुबह 8 से 1 बजे तक डॉक्टरों की ड्यूटी रहती है। वैसे तो जिला चिकित्सालय में मरीजों की हमेशा लम्बी कतार लगी रहती हैं। सुबह से मरीज ओपीडी में बैठकर डॉक्टरों का इंतजार करते रहे। कई बार तो सुबह से देर शाम तक डॉक्टरों के नहीं आने पर कई लोग तो बिना उपचार कराए ही वापस चले जातें हैं। गौठान से डॉक्टर को स्वास्थ्य दिखाने आई युवती कमलती ने बताया कि वह साढ़े 9 बजे से डॉक्टर के आने का इंतजार कर रही है। कक्ष में डॉक्टर नहीं है तो फिर किसे दिखाऊं…? अस्पताल में अक्सर ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। बच्चे को इंजेक्शन लगवाने वाले भी अकसर सुबह 9 बजे से आकर डाक्टरों को ताकते रहते हैं। डाक्टरों के कक्ष में बैठने का इंतजार करते रहे। बीते दिनो मोबाइल टार्ज में हुई महिला की डिलेवरी की घटना को लेकर हुई अपने विभाग की फजी़हत के बाद जिला चिकित्सालय बैतूल अधिक्षक द्वारा रानीपुर अस्पताल में एक महिला के प्रसव में लापरवाही के मामले में पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पारानी को तलब किया है। सीएमएचओ डॉ. डीके कौशल ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र रानीपुर में पदस्थ चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीमती पुष्पारानी सिंह को निर्धारित मुख्यालय पर नियमित न रहने, स्वास्थ्य केंद्र में रात में दरवाजे पर हुए एक प्रसव में लापरवाही के मामले में कारण बताओ नोटिस दिया है। सीएमएचओ ने नोटिस में डॉ. पुष्पारानी को निर्धारित मुख्यालय पर निवास कर मरीजों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने तथा अधीनस्थ कर्मचारियों का मुख्यालय पर निवास सुनिश्चित करने के लिए भी पाबंद किया है। परिवार कल्याण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में उदासीनता एवं लापरवाही बरतने के मामले में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र प्रभातपट्टन में पदस्थ एलएचवी रेणुका कातलकर तथा महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सत्यफुला देशमुख को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। सीएचएमओ डॉ. डीके कौशल ने बताया कि निलंबन अवधि में दोनों कर्मचारियों का मुख्यालय जिला अस्पताल बैतूल होगा।  इतना सब कुछ होने के बाद भी हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी तो बैठे मिले, लेकिन डॉक्टर नहीं आए। समय में परिवर्तन के बावजूद डॉक्टरों ने अपनी सीटों पर बैठकर ही आवेदनोंं पर हस्ताक्षर किए और टाइम पर निकल गए। हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड के बैठने के समय में प्रभारी मंत्री के निर्देश पर परिवर्तन कर दिया गया है। इससे अब बोर्ड सुबह 9 से 1 बजे की जगह 4 बजे तक लगेगा। यह परिवर्तन मेडिकल व विकलांग सर्टिफिकेट बनाने आने वाले लोगों की सुविधा के लिए किया गया था। इस मंगलवार को लगे मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी बैठकर सील-सिक्के लगाते रहे, लेकिन डॉक्टर नहीं बैठे। दूर-दराज से आने वाले लोगों को प्रमाण पत्रों पर सील-सिक्के लगाने के बाद डाक्टरों को ढूंढते रहना पड़ा। डाक्टरों ने ओपीडी में बैठकर प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षकर करने का काम निपटाया और एक बजे राइट टाइम पर घर रवाना हो गए। मेडिकल बोर्ड के नियम के मुताबिक डॉक्टरों को बोर्ड में बैठना चाहिए, लेकिन वे बोर्ड में न बैठकर ओपीडी में हस्ताक्षर करते रहे। जिन व्यक्तियों को डॉक्टर मिल गए तो उनके प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षर हो गए, लेकिन जिन्हें नहीं मिले उन्हें भटकते रहना पड़ा। मुलताई चूनाभट्टी गांव के रमेश अपनी विकलांग बेटी का प्रमाण पत्र बनाने आए थे। उनके प्रमाण पत्रों पर सील सिक्के तो लग गए थे, लेकिन डाक्टरों के हस्ताक्षर कराने उन्हें कक्षों में परेशान होते रहना पड़ा। मेडिकल बोर्ड में सिविल सर्जन डॉ. डब्ल्यूए नागले, डॉ. ओपी माहोर, डॉ. पीके कुमरा, डॉ. डीटी गजभिए, डॉ. के बाजपेयी, डॉ. श्रीमती आर गोहिया, आरएमओ डॉ. एके पांडे सदस्य हैं। मंगलवार की शाम 4 बजे बोर्ड कक्ष में डॉ. बाजपेयी और अस्पताल परिसर में डॉ. नागले नजर आए। इनके अलावा कोई डॉक्टर नहीं था। मेडिकल बोर्ड की दीवार पर प्रमाण पत्र बनाने की सूचना के संबंध में चस्पा पर्चें में टाइम टेबल नहीं बदला गया। इस पर्चे पर सुबह 9 से 1 बजे का टाइम लिखा हुआ था। इससे लोग भ्रमित होते नजर आए। जबकि टाइम सुबह 9 से 4 बजे तक का हो चुका है। इसे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। मेडिकल बोर्ड के सदस्य डॉक्टरों ने ओपीडी में पहुंचने वाले लोगोंं के प्रमाण पत्रों के बनाने का काम निपटाया। दोपहर 1 बजे तक 35 विकलांग और 28 मेडिकल प्रमाण पत्र बनाए। इसके बाद कोई प्रमाण पत्र नहीं बन सके। क्योंकि 1 बजे ओपीडी बंद हो जाती है। बोर्ड का समय 4 बजे का होने के बावजूद डॉक्टर नहीं आए। इससे 1 बजे के बाद आने वाले लोगों को परेशान होना पड़ा। वे डाक्टरों के बैठने का इंतजार करते रहे। विकलांगता श्रेणी में मिलने वाली छूट एवं फायदों के लिए अब अपात्र भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। यही कारण है कि अस्पताल के आसपास दलालों की सक्रियता भी बढ़ गई है। 40 प्रतिशत विकलांगता की पात्रता के लिए लोग जहां बार-बार अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। वहीं इनकी हर सप्ताह बढ़ती संख्या से जिला मेडिकल बोर्ड भी खासा चितिंत है। विकलांगता प्रमाण-पत्र से मिलने वाले लाभ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब प्रमाण-पत्र बनाने की कतार में फै्रक्चर और मामूली विकलांगता वाले भी खड़े नजर आ रहे हैं। जिला मेडिकल बोर्ड का कहना था कि अधिकांश लोग लाभ के लिए प्रमाण-पत्र बनवाना चाहते हैं। यहीं कारण है कि एक बार अपात्र घोषित कर दिए जाने के बाद भी वे दोबारा यहां आ रहे हैं। जिससे ?से लोगों की संख्या बढ़ रही है। विकलांगता प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए हर मंगलवार को करीब एक सैकड़ा से अधिक लोग जिला अस्पताल के चक्कर काटते हैं। जबकि नियमानुसार जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा 40 प्रतिशत से ऊपर विकलांगता होने पर ही प्रमाण-पत्र जारी किए जाते हैं, लेकिन कुछ लोग विकलांगता प्रमाण-पत्र का लाभ लेने अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। देखने में आ रहा है कि अपात्र लोग भी विकलांगता प्रमाण-पत्र बनाने के लिए आ रहे हैं। बार-बार इनके आने से अस्पताल में भीड़ बढ़ जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए अब जिला चिकित्सालय बैतूल में कम्प्यूटर फिडिंग के संबंध में भी विचार किया जा रहा है ताकि ?से लोग आसानी से पकड़े जा सके।

मनरेगा में इतना भ्रष्ट्राचार की सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध
अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को हो जाएगी हाईपरटेंशन की बीमारी
बैतूल,रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में रोज सामने आ रही मनरेगा के कार्यो की गुणवत्ता एवं भ्रष्ट्राचार की शिकवा शिकायतों की यदि सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक जांच शुरू करेगी तो उन्हे छै महिने के बदले छै दिनो में ही हाईपरटेंशन की बीमारी हो जाए। सप्ताह में हर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में आने वाली हर दुसरी – तीसरी शिकायते मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर होती हैं। उक्त शिकायतों पर कार्यवाही क्या होती है या क्या हो चुकी हैं इस बात की किसी को पता नहीं लेकिन शिकायतों के बाद पैसे हल्का होने वाला सरपंच – सचिव जब आप खोकर गांव के लोगो को गंदी – गंदी गालियां देते हुए धमकाने लगते हैं तब शायद गांव वाले ही खबर का असर समझ कर फूले नहीं समाते हैं। मनरेगा को लेकर गांव से जिला मुख्यालय तक शिकायतों की आड़ में होने वाली सौदेबाजी का खेल चलता है। शिकायतों को लेकर गांव वालो के कथित ब्यानो एवं सच का पता लगने वाला मीडिया से लेकर जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी तक गांव तक पहुंचने के बाद मैनेज हो जाता हैं और गांव का गरीब जाबकार्ड धारक बार – बार जेब का पैसा खर्च करके जिला कलैक्टर से यह तक सवाल नहीं कर पाता हैं कि उसकी शिकायतें पर कोई सुनवाई क्यों नहीं हुई। आज यही कारण हैं कि गांव में भी ब्लेकमेलरो की दिन प्रतिदिन संख्या में इजाफा होते जा रहा हैं। गांव में ही सरपंच एवं सचिवो को पहले चरण में कथित शिकायतों को लेकर ब्लेकमेल करने के बाद सौपा न पटने की स्थिति में शिकायत करता स्वंय के रूपए – पैसे खर्च करके गांव वालों की भीड़ मंगलवार की जन सुनवाई में लाने से लेकर मीडिया तक को मैनजे करके मनरेगा के कार्यो को लेकर पेपरबाजी करवाता हैं। जितनी ज्यादा पेपरबाजी होती हैं उसके हिसाब से ब्लेकमेलर एवं सरपंच – सचिव के बीच सौदेबाजी होती हैं। कई बार तो दलाली के काम में जनपद के मुख्यकार्यपालन अधिकारी से लेकर राजनैतिक पार्टी के जनप्रतिनिधि तक अहम भूमिका निभाते हैं। आज का पंचायती राज कुल मिला कर रेवड़ी बन गया है जिसे हर कोई बाट का छीन कर खाना चाहता हैं। एक सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार बैतूल जिले में 6 जनवरी दिन मंगलवार वर्ष 2009 के बाद आज दिनांक तक हर मंगलवार याने दो साल पौने दो माह में लगभग 104  मंगलवार को लगे बैतूल जिले के जनसुनवाई शिविर में कुल तीस हजार पांच चालिस शिकायते दर्ज हुई है जिसमें से सोलह हजार नौ सौ तीस शिकायते बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के गांवो से मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर आई है। प्रशासन के पास $खबर लिखे जाने तक इस बात की कोई भी जानकारी नहीं है कि कितनी शिकायतों का निराकरण हो चुका हैं। मनरेगा के कार्यो की जांच एवं भुगतान को लेकर की गई शिकायतों की न तो जांच रिर्पोट लगी हैं और भुगतान पाने वालों के भुगतान मिलने सबंधी को प्रमाणिक दस्तावेज जिसके चलते कई शिकवा – शिकायते तो लगातार होने के बाद भी मनरेगा का भुगतान न तो हो सका हैं और न इन प्रकरणों की जांच हो सकी हैं। जिला प्रशासन द्वारा सीधे तौर पर मनरेगा के कार्यो की शिकवा शिकायतों की जांच सबंधित विभाग या फिर शाखा को भेज दी जाती हैं। उक्त विभाग या शाखा द्वारा जिला प्रशासन को इस बात की कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं भेजी जाती हैं कि शिकायत यदि सहीं हैं उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई हैं। वैसे देखा जाए तो 2 लाख 48 जाबकार्ड धारक है। जिसमें 1 लाख 78 हजार जाबकार्ड धारक परिवारों के एक सदस्य को एक साल में सौ दिन का रोजगार देने के प्रावधान हैं। जिले में जाबकार्ड धारको को हर बार भुगतान को लेकर प्रशासन की ओर से कई पहल की गई लेकिन हर बार शिकवा – शिकायते सुनने को मिली हैं। इस बार बैतूल जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा चलित मोबाइल बैंक की शुरूआज एच डी एफ सी बैंक के माध्यम से की जाने वली हैं। बैतूल जिले में वर्तमान में कुल 80 बैंक है जिनके माध्यम से जाबकार्ड धारको को भुगतान उनके खातों के माध्यम से किया जाता हैं। बैंक के पास वर्कलोड़ की वज़ह से वह मनरेगा के भुगतान कार्यो के प्रति उतनी दिलचस्पी भी नहीं लेती क्योकि बैंको को कोई विशेष लाभ नहीं मिलता हैं। वैसे भी सरकारी बैंको की ऋण देने एवं ब्याज पाने में ज्यादा रूचि रहती हैं। बैतूल जिले में लगातार ग्राम पंचायत स्तर के भ्रष्ट्राचार में कई बार बैंक भी लपेटे में आ चुकी हैं इसलिए बैंको का इस कार्यो के प्रति नकारात्मक रूख रहा हैं। बैंक से भुगतान पाने के लिए गांव से बैंको तक धक्के खाने वाला ग्रामीण आखिर विवश होकर शिकवा – शिकायते करने लगता हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता के अनुसार बैतूल जिले में सेन्ट्रल बैंक के साथ मोबाइल बैंक की एक योजना शुरू की थी लेकिन बैंक ही पीछे हट गई। अब प्रदेश में अनूपपुर की तरह एटीएम से भुगतान की जगह नगद भुगतान के लिए एच डी एफ सी बैंक से एक अनुबंधन किया जा रहा हैं। बैंक को मोबाइल बैंको के लिए जिला पंचायत वाहन तक उपलब्ध करवाने के लिए तैयार हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी भुगतान एवं कार्यो को लेकर होने वाली शिकायतों पर कार्यवाही होने की बाते तो करते है लेकिन उनके पास आकड़े नहीं हैं। श्री गुप्ता का तो यहां तक कहना हैं कि ग्राम पंचायत स्तर तक के कार्यो में भ्रष्ट्राचार के मामले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को भेजे गए है लेकिन उनके नाम उन्हे नहीं मालूम हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो एवं 10 जनपदो में आज तक कोई भी ऐसर रिकार्ड पंजी उपलब्ध नहीं है जिसमें ग्राम पंचायत सबंधी शिकायतों एवं उनके समाधान का जिक्र हो ऐसी स्थिति में बैतूल जिले का ग्राम पंचायती राज अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत पर खरा उतरता हैं।
एक कड़वा सच यह भी हैं कि बैतूल जिले में पदस्थ रहे मुख्यकार्यपालन अधिकारी एवं जिला कलैक्टरों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में कई प्रकरण चल रहे हैं लेकिन खबर लिखे जाने तक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)  द्वारा किसी भी बड़ी मछली को अपने फंदे में नहीं फंसाया जा सका है तब छोटी मछली के फंदे बाहर निकले की संभावना तो बरकरार रहेगी। बैतूल जिले के बारे में कहा जाता हैं कि मध्यप्रदेश का कमाऊपूत जिला हैं जहां पर हर कोई अपना देश है बड़ा विशाल लूटो खाओं है बाप का माल के मूल सिद्धांत पर कार्य कर रहा हैं। बैतूल जिले का पंचायती राज कब सार्थक एवं सफल सिद्ध होगा सयह कह पाना अतित के गर्भ में हैं।

पंचायती राज में दिन प्रतिदिन करोड़पति बनते जा रहे सचिवो की सीबीआई को शिकायत
बैतूल, रामकिशोर पंवार:  मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में पंचायती राज्य में सरपंच सचिवो की मनमर्जी के आगे सरकारी योजनाओं को हश्र हो रहा है वह किसी से छुपा नहीं है। इस समय बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के आधे से ज्यादा के सरपंच सचिवो के नीजी एवं परिजनो के वाहनो को नरेरा के तहत मिलने वाली राशी से भुगतान किया जा रहा हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले की ग्राम पंचायतो से सबसे अधिक भुगतान उन कृषि कार्यो के लिए पंजीकृत टे्क्टर ट्रालियों को हुआ हैं जो व्यवसायिक कार्यो के लिए प्रतिबंधित हैं। जिले में इसी तरह पानी के टैंकरो , रोड रोलरो , जेसीबी मशीनो , ब्लास्टींग मशीनो आदि को किया गया भुगतान भी नियम विरूद्ध किया गया है। बैतूल जिले की प्राय: सभी ग्राम पंचायतो के सरपंच एवं सचिवो से नियम विरूद्ध कार्य करके अतिरिक्त भुगतान करने पर रिकवरी के आदेश के जारी होने के तीन माह बाद भी एक भी सरपंच एवं सचिव से रिकवरी नहीं हो सकी हैं। पूरे जिले में साठ करोड़ के लगभग राशी की रिकवरी होना हैं। राजनैतिक संरक्षण एवं अधिकारियों की कथित मिली भगत के चलते आडिट आपत्तियों के चलते की जाने वाली रिकवरी शासन के खाते में नहीं जा सकी है। बीती पंचवर्षिय योजना में बैतूल जिले के प्राय: सभी सरपंच एवं सचिवो की सम्पत्ति में काफी इजाफा हुआ हैं। गांव के विकास के नाम पर जारी हुआ एक रूपैया का नब्बे पैसा सरपंच सचिवों की आलीशान कोठियों , चौपहिया वाहनो एवं बैंक बैलेंसो को बढ़ाने में उपयोगी साबित हुआ हैं। जिले के करोड़पति सचिवों में भीमपुर विकास खण्ड के यादव समाज के सचिवों का नाम सबसे ऊपर हैं। लोकायुक्त एवं राज्य आर्थिक अपराध अनुवेषण के कार्यालय तक भेजी गई सैकड़ो शिकवा , शिकायते आज भी फाइलों में बंद पड़ी हुई हैं। बैतूल जिले के पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी बाबू सिंह जामोद के खिलाफ बीते माह ही आर्थिक अपराध अनुवेषण द्वारा बैतूल जिले में उनके तीन साल में नरेरा , कपिलधारा के कूप निमार्ण कार्यो के अलावा एक दर्जन से अधिक कार्यो में हुए भ्रष्ट्राचार को लेकर प्रकरण दर्ज हुआ हैं लेकिन प्रकरण के संदर्भ में इस भ्रष्ट्राचार की जड़ कहे जाने वाले सरपंच एवं सचिवों के गिरेबान तक किसी के भी हाथ नहीं पहुंच सके हैं। आय से अधिक सम्पत्ति जमा करने वाले करोड़पति बने रमेश येवले , महेश उर्फ बंडू बाबा , जगदीश शिवहरे, सहित सवा सौ सचिवों को लोकायुक्त से लेकर सीबीआई तक की जांच के दायरे में शामिल करने का प्रयास किया गया है। एक स्वंयसेवी द्वारा भेजी गई शिकायती पुलिंदा में सीबीआई को विशेष से इसकी जांच का निवेदन किया है जिसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि केन्द्र सरकार से भेजे गए अरबो – खरबो के अनुदान से कई सचिवो की माली हालत में जबरदस्त इजाफा हुआ है। जांच में इन बातो का भी उल्लेख किया गया हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में निलम्बित सचिवो को पुन: बहाल कर उसी स्थान पर क्यों पदस्थ किया गया हैं। बैतूल जिले को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा भेजी गई अरबो – खरबो की राशी का नरेरा में उपयोग कितना हुआ है और कितना नहीं हुआ हैं।
बैतूल की दसों जनपदों के अंतर्गत आने वाली 558 पंचायतों की आडिट रिपोर्ट तो यह बता रही है कि या तो आडिट सही तरीके से नहीं हुआ है या फिर सभी पंचायतों में पूरा काम ही गोलमाल है। एक जैसी आडिट रिपोर्ट पर आडिट प्रक्रिया को जानने वाले भी हैरत में है।बैतूल जिले में 10 जनपदें हैं और इन जनपदों के अंतर्गत 558 पंचायतें आती हैं। बैतूल जनपद की 77 पंचायतों में ऑडिट करने वाली कम्पनी अग्रवाल एंड मित्तल कंपनी भोपाल ने जो ऑडिट आपत्ति का प्रपत्र जनपदों को दिया है उसमें सभी जनपदों में एक जैसी आपत्ति बताई गई है। यह किसी भी हालत में संभव नहीं है कि सभी पंचायतों में एक जैसी गलतियां की जा रही है या एक जैसा गोलमाल हो रहा हो। कंपनी द्वारा आडिट आपत्तियों के साथ यह भी दावा किया गया है गोलमाल छोटा नहीं बल्कि करोड़ो का है। वैसे भी बैतूल जिले के दस जनपदो की आधे से ज्यादा ग्राम पंचायतो पर 57 करोड़ रूपए की वसूली के आदेश जारी होने के बाद भी सरपंच और सचिव राजनैतिक संरक्षण की छांव में है। ग्राम पंचायतो का आडिट करने वाली कम्पनी ने करीब 16 आपत्तियां अपनी आडिट रिपोर्ट में लगाई है। वर्ष 2009-10 के लिए किए गए इस आडिट में यह भी कहा गया है कि इस प्रतिवेदन में उल्लेखित तुलन पत्रक, आय-व्यय पत्रक एवं प्राप्ति तथा भुगतान पत्रक लेखा पुस्तकों से मेल नहीं खाते है। आडिट रिपोर्ट में जो आपित्तयां ली गई है उसमें साफ कहा गया है कि कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र जांचने के लिए पंचायतों में प्रस्तुत नहीं किया। पांच हजार से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीद नहीं लगाई गई है। यहां तक कि मस्टर रोल के प्रपत्र दो और तीन उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए। साथ ही जनपदों ने भी मस्टर रोल में कार्य का नाम और जारी करने की तिथि भी नहीं दशाई गई है। यह तमाम चीजें नियमों के खिलाफ और बड़े गोलमाल की ओर खुला इशारा कर रही है। स्थिति यह है कि भुगतान देयकों पर सरपंचों के अधिकृत हस्ताक्षर भी नहीं है। रोकड़ अवशेष एवं ग्राम पंचायत द्वारा किए गए कार्यो का भौतिक सत्यापन हमारे द्वारा नहीं किया गया है। अंकेक्षण कार्य हेतू हमारे समक्ष सिर्फ कैश बुक, पास बुक और खर्च से संबंधित प्रमाणक ही उपलब्ध कराए गए। कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र को जांचने हेतू प्रस्तुत नहीं किया गया।ग्राम पंचायत द्वारा माप पुस्तिका प्रस्तुत न करने के कारण उससे संबंधित मस्टर रोल अन्य खर्च का मिलान संभव नहीं था।अधिकांशत: पांच हजार रूपए से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीदी टिकट नहीं लगाए गए।ग्राम पंचायत द्वारा योजनान्तर्गत फंड से किसी भी प्रकार की निश्चित अवधि जमा नहीं बनवाई गई।बैंक खातों में जमा दर्शाई गई मजदूरी वापसी से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं की गई।पूर्ण जानकारी के अभाव में अंकेक्षण का मूलभूत आधार रोकड़ खाते को माना गया है। पंकज अग्रवाल, अग्रवाल मित्तल एंड कंपनी ने बताया कि यह बता पाना संभव नहीं है कि किसी भी कार्य या सामग्री क्रय हेतु किया गया भुगतान अग्रिम है या नहीं। इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा रोकड़ खाता एवं उपलब्ध प्रमाणकों के आधार पर किया गया अग्रिम भुगतान अलग से दर्शाया गया है। ग्राम पंचायत द्वारा अचल सम्पत्ति का रजिस्टर संधारित नहीं किया गया है। पंचायत कार्यालय से प्राप्त रजिस्टरों के अतिरिक्त सामान्यत संधारित रजिस्टर के पृष्ठ पूर्व मशीनीकृत नहीं थे। सामान्यत: सभी मस्टर रोल के प्रपत्र 2 व 3 उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए है। जनपद पंचायत द्वारा मस्टर रोल में कार्य का नाम व जारी किये जाने की तिथि अंहिकत नहीं की गई है। सामान्यत: ग्राम पंचायत द्वारा निर्माण हेतु सामग्री क्रय करने के दौरान शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। इसी तरह सामग्री क्रय के व अन्य बिल कच्चे के लिये गये है। भुगतान देयकों पर सरपंच द्वारा अधिकृत हस्ताक्षर नहीं किये गये है। ग्राम पंचायत के अंकेक्षण हेतु कुछ प्रमाणक प्रस्तुत नहीं किए गए। सबसे ज्यादा घोटाले बाज भीमपुर जनपद की स्थिति तो काफी भयाववह है। इस जनपद में तो अधिकांश सचिवो की गिनती करोड़पति एवं लखपतियों में होती है। इन सभी दुरस्थ ग्राम पंचायतो के सचिवो ने उक्त माल कमाने के लिए अपनो को ही लाभ पहुंचाया है। रमेश येवले नामक एक सचिव के पास आज करोड़ो की सम्पत्ति जमा हो गई है। रमेश के द्वारा अपने सचिव कार्यकाल में तथा पूरी जनपदो के की ग्राम पंचायतो में सबसे अधिक भुगतान रमेश येवले सचिव के परिवार के सदस्यों के नाम पर किया गया है। रमेश येवले को टे्रक्टर ट्राली एवं ब्लास्टींग के नाम पर भुगतान किया गया है। आज मौजूदा समय में रमेश येवले सहित दो दर्जन से अधिक सचिवो पर कंसा शिकंजा अब ठीला पड़ता जा जा रहा है। अभी हाल ही में भीमपुर ब्लॉक में आयोजित जनपद पंचायत की समीक्षा बैठक में उपस्थित नहीं होने वाले एडीईओ (विकास विस्तार अधिकारी) को जिला पंचायत सीईओ द्वारा निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा मिटिंग में शामिल नहीं होने वाले सचिवों एवं अन्य कर्मचारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। यदि वह नोटिस का संतुष्ठ जवाब नहीं देते है तो उनका 15 दिन का वेतन काट लिया जाएगा। जिला पंचायत सीईओ एसएन चौहान ने बताया कि उन्हे शिकायते मिल रही थी जिसके चलते उक्त कार्यवाही की गई। श्री चौहान के अनुसार बैठक में एडीईओ कृष्णा गुजरे सहित सचिव एवं अन्य कर्मचारी उपस्थित नहीं हुए थे। जिस पर उनके एडीईओ गुजरे को निलंबित कर दिया है। वहीं सचिव सहित अन्य कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। सीईओ चौहान ने बताया कि एडीईओ द्वारा विभिन्न कार्यो के टारगेट को भी समय पर पूर्ण नहीं किया गया था। मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत बन रही ग्रेवल सड़कों को लेकर अभी से सवाल खड़े होना शुरू हो गए है। बताया जा रहा है कि विगत दिनों जो जिला पंचायत अध्यक्ष का गुस्सा योजना मंडल की बैठक में आरईएस पर फूटा था उसकी वजह भी यही सड़कें थीं। सड़कें जिस रफ्तार से बन रही है उसको लेकर संदेह जाहिर किया जा रहा है।लम्बाई कम और दर अधिक बैतूल जनपद अंतर्गत बोरीकास से सालार्जुन तक बन रही 2.80 किलोमीटर लम्बी ग्रेवल सड़क की लागत जहां 51.95 लाख रूपये है। वहीं भरकवाड़ी से खानापुर तक बनने वाली तीन किलोमीटर लम्बी सड़क की लागत महज 33.94 लाख है। लागत में इस अंतर को लेकर पंचायती राज के जनप्रतिनिधी अब सवाल खड़े कर रहे है।एक महीने में 40 प्रतिशतबोथी सियार से मांडवा 1.3 किमी, बोरीकास से सालार्जुन 2.80 किमी, आरूल से खाटापुर 2.2 किमी, भकरवाड़ी से खानापुर तीन किमी और बारवी से डोडरामऊ 3.75 किमी की जब जनपद पंचायत बैतूल अध्यक्ष ने समीक्षा की थी तो दिसम्बर में काम प्रारंभ ही हुआ था और अब निर्माण एजेंसी आरईएस 40 प्रतिशत तक काम हो जाना बता रही है।

दैहिक शोषण बनी खाण्डसारी मिले पुलिस की अवैध कमाई के धंधे बने
आदिवासी बालाओं के साथ रोज हो रहे दुराचार के मामले
बैतूल, रामकिशोर पंवार: आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आदिवासी बालाए आजकल जिले की आमला एवं मुलताई तहसील के कुछ क्षेत्रों में कार्यरत खाण्डसारी मिलों में दैहिक शोषण एवं दुराचार के मामलों की शिकार बन रही हैं। पुलिस के संरक्षण में रही पौने दो सौ से अधिक खाण्डसारी मिलो में कार्यरत आमला विधानसभा क्षेत्र की सैकड़ो आदिवासी बाला किसी ने किसी खाण्डसारी मिल पर रोज रात्री में किसी न किसी वासना के भूखे दंरिदे की यौन कुंठा का शिकार बन रही हैं। जिले की देश भक्ति जनसेवा का तमगा लगानी वाली पुलिस इन दुराचार एवं दैहिक शोषण की शिकार बनी आदिवासी बालाओं की आड़ में खाण्सरी मिलों के संचालको से चौथ वसूली करने में लगी हुई हैं। प्रतिमाह एक खाण्डसरी मिल से आमला एवं बोरदेही थाना प्रभारी के अलावा अजाक के थाना प्रभारी तक को एक मोटी रकम दी जाती हैं। इन सबके बाद भी पुलिस किसी न किसी आदिवासी बाला के नाम का सहारा लेकर किसी ने किसी मिल पर मिल ही जाती हैं। पुलिस को सूचना न देने पर पुलिस अपना गुस्सा सीधे – साधे आदिवासियों पर निकालती हैं। आमला से बोरदेही मार्ग पर चुटकी के पास उत्तर भारत के किसी राठौड़ के द्वारा एन आर आई हाजी साहब से खरीदी गई। खाण्डसारी मिल पर भाटिया नामक युवक द्वारा सारनी क्षेत्र की दो युवतियों के साथ किये गए दुराचार के मामले में घटना के प्रत्यक्षदर्शी युवक को पुलिस ने मल संचालक के इशारे पर देर रात में बेरहमी से पीटा। उस आदिवासी युवक की गलती मात्र इतनी थी कि वह अपने साथियों के साथ दुराचार की शिकार हो रही आदिवासी लड़कियों को बचाने के लिए दौड़ पड़ा था। मिल के संचालक ने रात्री में ही कुंभकरणी निंद्रा मेंं सोई पुलिस को जगा दिया और पुलिस ने उस युवक को ही बेरहमी से पीट डाला। दुराचार की शिकार बनी लड़कियों से घटना के संदर्भ में कुछ पुछताछ करना भी उचित नहीं समझा और उस युवक को बेरहमी से पीट डाला और विरोध करने पर उसके संगी साथियों पर डकैती एवं लूट का मामला तक दर्ज करने की धौंस दे डाली। आदिवासी नेता राजेश वटकी को जब इस बात की भनक लगी तो उसने अपने साथियों के साथ मीडिया के समक्ष पूरे मामले की जानकारी ली। श्री वटकी पूरे मामले को लेकर बैतूल जिला मुख्यालय पर धरना – प्रदर्शन करने जा रहे है। बैतूल जिले में कार्यरत पौने दो सौ मिलो मे एक समुदाय विशेष के लोगो की बड़ी संख्या में उपस्थिति का बैतूल जिले के बोरदेही एवं आमला थाने में कोई रिकार्ड एवं चरित्र सत्यापन दर्ज नहीं हैं। बैतूल जिले में यूपी के बदायूं जिले के चार सौ से लोग इस समय विभिन्न मिलों में कार्यरत है। अवैध खतरनाक हथियारों से लैस इन यूपी के अपराधिक चरित्र के एक समुदाय विशेष के लोगो के बैतूल जिले में मौजूदगी के बाद उनके द्वारा किये जाने वाले कृत्य भी सामने आने लगे हैं। आमला तहसील में अवैध रूप से संचालित इन खाण्डसारी में होने वाली गतिविधियों के प्रति पुलिस का ढुलमुल रवैया किसी दिन किसी भी बड़ी घटना को अजंाम दे सकता हैं। खाण्डसारी मिलों में उत्तर भारत के लोगो की मौजूदगी पर दोनो थाना क्षेत्रों की पुलिस संरक्षक के रूप में उभरती छबि के चलते आदिवासी एवं गरीब सीधे – साधे किसानो का आर्थिक एवं शारीरिक शोषण अब दैहिक शोषण में बदलने लगा हैं।
बैतूल जिले में बड़े पैमाने पर हो रहा है अवैध खांड़सारी मिलो के अनैतिक कारोबार पर जिले भर के सरकारी विभाग खामोश हैं। मध्यप्रदेश की भगवा सरकार के राज्य में किसानों के हमदर्द मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राज्य सरकार के अधिनस्थ कार्यपूरे सरकारी विभाग  की मौजूदगी में किसानो का हो रहा शोषण बैतूल प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के अधिनस्थ कार्यरत गुड़ उत्पादक विभाग एवं प्रदुषण विभाग की बिना अनुमति के एक नहीं पूरे 176 खांड़सारी एवं शक्कर की उत्पादक मिलो का अवैध कारोबार बैतूल जिले के आमला विकासखण्ड में धडल्ले से चल रहा है। बैतूल जिले की शासकीय एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के गरीब किसानो से किराये पर ली गई जमीन पर उत्तर प्रदेश के एक मात्र बदायु जिले से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के करीब पौने दौ सौ लोगो द्वारा संचालित इन खांड़सारी मिलो में सारे नियमों को ताक में रख कर बड़े पैमाने पर अध कच्चा गुड़ का जिसे खांड़सारी अथवा राब भी कहते है का उत्पादन कर उत्तर प्रदेश , बिहार , पश्चिम बंगाल को भेजा जा रहा है। औसतन प्रतिदिन दस से बारह ट्रको से छिन्दवाड़ा होते हुये परिवहन किये जाने वाले ट्रक मालिको एवं विके्त्रा द्वारा कृषि उपज मंडी तथा सेल टैक्स विभाग को कोई शासकीय शुल्क चुकाया जाता है।  जहां एक ओर राजनैतिक संरक्षण में चल रहे है इन खांड़सारी मिलो के संचालको द्वारा समय – समय पर किसानो के साथ कथित धोखाधड़ी किये जाने के भी मामले प्रकाश में आ रहे है वही दुसरी ओर इनके द्वारा हर साल नये स्थान पर नए नाम के साथ अपनी मिलो को स्थापित भी किया जा रहा है ताकि किसानो में भ्रम की स्थिति बनी रहे। बीते वर्ष 2010 में छिन्दवाड़ा जिले के एक ही ग्राम चांद के सौ से अधिक किसानो के साथ धोखाधड़ी का मामला भी प्रकाश में आया है। चांद गांव के किसी शैलू पटेल के कथित संरक्षण में चल रही एक खांड़सारी मिल के संचालक द्वारा करीब 25 लाख रूपये का गन्ने का भुगतान किये बिना ही नौ दो ग्यारह हो जाने से किसानो के परिवारो को भूखे मरने की स्थिति आ गई थी। उक्त खांड़सारी मिल के संचालक द्वारा इस बार बैतूल जिले के आमला विकासखड़ के जम्बाड़ा ग्राम में अपनी मिलो को स्थान परिर्वतन कर लगाया गया है। बैतूल जिले में चार से छै माह तक अस्थायी रूप से लगने वाली इन अवैध खांड़सारी मिलो द्वारा पूरा काला कारोबार ग्राम एवं तहसील तथा जिले के कुछ तथाकथित स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियो , वकीलो , पत्रकारो , राजनैतिक दलो के नेताओं, तथा शासकीय विभागो के आला अफसरो के संरक्षण में चल रहे इस अवैध कारोबार के चलते किसानो द्वारा अपने गन्ने से न तो गुड़ का उत्पादन किया जा रहा है और न उत्पादन करवा कर गुड़ को मुलताई एवं बैतूल बाजार की गुड़ मंडिय़ो में लाकर बेचा जा रहा है। बड़े पैमाने पर दबाव डाल कर या तरह – तरह के लोभ लालच देकर किसानो का खेतो में लगा गन्ना अपने लोगो से कटवा कर अवैध रूप से परिवहन में लगे बिना नम्बरो के टैक्टर ट्रालियो से लाकर मिलो में पहुंचाया जा रहा है। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि बैतूल जिले के अकेले आमला विकासखण्ड में पौने दो सौ अवैध खांड़सारी की मिलो में एक क्षेत्र विशेष के एक ही समुदाय के सैकड़ो लोग बोरदेही एवं आमला थाना में अपनी मुसाफिरी लिखवाये बिना ही रह रहे है। इन लोगो के पास अवैध रूप से हथियारो का जखीरा लोगो को डराने एवं धमकाने के अलावा अपने कारोबार की तथाकथित सुरक्षा के नाम पर एकत्र कर रखा है। अकसर कम दाम पर किसानो का गन्न अपनी – अपनी खांडसारी मिलो के लिए खरीदने के चलते इन लोगो के बीच गैंगवार की स्थिति भी अकसर बन जाती है। भाजपा शासन काल में प्राकृतिक आपदा के चलते किसानो की लगातार मौते के बीच किसानो का कम भाव में गुण्डागर्दी एवं डरा धमका कर खरीदे जाने वाले गन्ना एवं अवैध खांडसारी मिलो की जानाकारी राज्य एवं केन्द्र सरकार के बैतूल जिले के कार्यरत कृषि विभाग , कृषि उपज मंडियो , खाद्य विभाग विभाग , नापतौल विभाग , पुलिस विभाग , सेल टैक्स विभाग , इनकम टैक्स विभाग सहित पूरे सरकारी मोहकमे को रहने के बाद भी पूरा कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। अंतराज्यीय खांड़सारी , राब , शक्कर के परिवहन तथा व्यापार के बदले सभी को कुछ न कुछ इस अवैध काले कारोबार से मिलता है। बैतूल जिले के इस काले कारोबार में भारतीय लोगो की साझेदारी तो समझ में आती लेकिन अब तो इस कारोबार में अप्रवासी भारतीय भी कुद गये है। आमला – बोरदेही मार्ग पर चुटकी – खतेड़ा जोड़ में हाजी साहब नामक अप्रवासी भारतीय द्वारा पिछले तीन सालो से जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन को जानकारी दिये बिना ही कारोबार बिना किसी रोक – टोक के संचालित किया जा रहा है। इस वर्ष हाजी साहब द्वारा अपने कारोबार को बरेली के किसी बड़े करोड़पति को बेच कर पुन: अपनी नई खांड़सारी मिल को स्थापित किया जा रहा है। नजूल की जमीन पर कथित लीज लेकर स्थापित खांड़सारी मिल के स्थापना के पूर्व गन्ना उत्पादक विभाग एवं प्रदुषण विभाग की अनुमति के बिना चल रही इस प्रकार की मिलो से जिले के किसानो के गन्ने का गुड़ नहीं बन पा रहा है।

अपने ही पति को आत्महत्या के उकसाने वाली महिला बंदी की गोद भराई का मनाया जश्र
बैतूल, रामकिशोर पंवार: उस कोख में पल रहे शिशु की मां की गोद भराई का कार्यक्रम वह भी बाजे गाजे के साथ मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार सम्पन्न हुआ। जब कोख से बाहर निकलने वाले शिशु को यह पता चलेगा उसके सिर पर से बाप का साया छिनने वाली कोई और नहीं बल्कि उसकी अपनी सगी मां है। तब उसके दिल पर क्या गुजरेगी इस बात की किसी को चिंता नहीं थी। जब भी इस कड़वे सच का अभी इस दुनिया में नहीं आ पाए शिशु को पता चलेगा तब उसे अपने पिता की कथित हत्या की आरोपी मां की कोख में रहने का मलाल होगा या फिर खुशी इस बात का तो आने वाले समय ही पता लगेगा। अपने जवान बेटे को खो चुकी मां को इस गोद भराई के तमाशे से सबसे बड़ा झटका लगा क्योकि उसके बेटे को उसकी बहू एवं समधन ने आत्महत्या के लिए मजबुर कर दिया था। प्रदेश में पहली बार लीक से हट कर हुए तमाशे के पीछे का कड़वा सच कुछ इस प्रकार है कि बैतूल जिला जेल में जामगांव की 21 वर्षिय विचाराधीण गर्भवति महिला बंदी की गोद भराई का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। जेल परिसर में मीडिया में कथित सुर्खिया बटोरने के लिए उस महिला की गोद भराई हुई जिसके नवजात शीशु के पिता को उसकी नानी एवं मां ने आत्महत्या के प्रेरित कर उसकी जान ले ली थी। जामगांव के कृष्णा सूर्यवंशी को बीते वर्ष 2010 में उसकी पत्नि एवं सास ने साजीश रच कर आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया था। अपने ही पति की आत्महत्या का संगीन आरोप है। मात्र 21 वर्ष की इस महिला प्रियंका उर्फ राधा सूर्यवंशी निवासी जामगांव की जब गोद भराई जिला जेल में चल रही थी तब उसकी आंखो से कथित आंसू झलक उठे लेकिन पत्थर की कथित ममता की मूर्ति बनी मां ने कभी जीवन में यह नहीं सोचा कि जिस बच्चे की आज उसकी गोदी भरी हुई है उसे कल जब यह पता चलेगा कि उसके पिता की हत्या उसकी मां और नानी ने एक षडय़ंत्र रच की की थी तब उसके दिल पर क्या गुजरेगी। जिला जेल बैतूल की इस कथित सराहनीय पहल का समाज में क्या संदेश जाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन संगीन आरोप में जेल में बंदी महिला की गोद भराई का जश्र कहीं गलत संदेश समाज तक न पहुंच जाए। बैतूल न्यायालय में चल धारा 306 के मामले में मां अपनी जवान बेटी के साथ वर्तमान में जेल में बंदी है। ऐसे में जेल के अंदर की सकारात्मक पहल लोगो के बीच गलत संदेश न पहुंचा दे इस बात की कानून के जानकारों एवं समाजशास्त्रियों को चिंता सता रही है। मात्र प्रचार – प्रचार के लिए कार्यक्रम को श्रेय लूटने का जरीया बनाने पर कई प्रकार क्रिया एवं प्रतिक्रया सामने आ रही है। बैतूल जिले के भीमपुर ब्लाक में दर्जनो आगंनवाड़ी महिला कार्यकत्र्ताओं जिसमें कई गर्भवति भी होगी जिन्हे पिछले चार महिने से वेतन तक के लाले पड़ रहे है। आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के दुरस्थ ग्रामो एवं शहरी क्षेत्रो में आज भी कुपोषण से कई बच्चे काल के गाल में समा रहे है। मात्र दो सालो में जिले में एक हजार से अधिक बच्चों की मौतों के लिए जवाबदेही महिला बाल विकास विभाग अपने मूल कार्यक्रम में तो पूर्णत: फेल सिद्ध हुआ हैं। ऐसे में महिला बाल विकास विभाग द्वारा अपनी पीठ थपथपाने के लिए आत्महत्या जैसे संगीन मामले की कथित आरोपी महिला की ही क्यों गोद भराई का जश्र मनाया जाना कहीं अपने चेहरे पर लगी कालिख को साफ करने का प्रयास तो नहीं है। बैतूल जिला जेल में महिला बाल विकास विभाग के ढोल ढमाके के साथ संपादित करवाये गए गोद भराई के कार्यक्रम के पीछे की मंशा आज तक समझ के बाहर की बात है। वैसे भी पूरे प्रदेश में जेल की गतिविधियां लोगो से छुपी नहीं है। उज्जैन से सिमी कार्यकत्र्ताओं की कथित रिहाई के बाद जिला जेल बैतूल में दर्जनो लोगो की उपस्थिति वह भी बाजे – गाजे के साथ कहीं न कहीं जेल रेगुलेशन के विरूद्ध संपादित कार्य का इशारा करते है। पूरे घटनाक्रम के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है कि बैतूल जिला महिला एवं बाल विकास विभाग को जिला जेल बैतूल से चाही गई जानकारी पर पता चला कि जामगांव की प्रियंका उर्फ राधा सूर्यवंशी नामक महिला गर्भवती है। महिला बंदी की बाजे गाजे के साथ गोद भराई की रस्म निभाई गई। सांसद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे व जिला पंचायत अध्यक्ष लता राजू महस्की, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शामिल हुई। मीडिया से जुड़े चुनिंदा लोगो को प्रचार – प्रसार के लिए बुलवाया गया ताकि इस तमाशे को लेकर वाहवाही लूटी जा सके। शासन की ओर से कहा जा रहा है कि मध्यप्रदेश की बैतूल जिला जेल मेें इस को परंपरा को निभाने का यह पहला मौका था, जो महिला बाल विकास विभाग और जिला जेल अधीक्षक के प्रयासों से सफल हो सका था। मुलताई के जाम गांव की रहने वाली प्रिंयका उर्फ राधा पति कृष्णा सूर्यवंशी धारा 306 के मामले अपनी मां के साथ बैतूल जिला जेल में विचाराधीन बंदी है। महिला एवं बाल विकास विभाग के बहुचर्चित विवादो से घिरे जिला अधिकारी प्रदीप राय ने बताया कि जिला जेल से महिला बंदी व बच्चों की जानकारी मांगी गई थी। उन्होंने 21 महिला और बच्चों सहित गर्भवती प्रियंका के बारे में बताया था। विभाग ने जेल अधीक्षक सुश्री शैफाली तिवारी से संपर्क कर आंगनबाड़ी में होने वाले कार्यक्रम की तरह विचाराधीन बंदी महिला की गोद भराई की इच्छा जताई थी। उन्होंने अनुमति दी और इस कार्यक्रम को पूरी रस्मों के साथ निभाया। महिला बाल विकास अधिकारी प्रदीप राय ने  बताया कि गर्भवती महिला को उचित मार्गदर्शन देने की जिम्मेदारी गांधी वार्ड की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सलमा खान को सौंपी गई है। जिले की महिला सासंद श्रीमती ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे ने गोद भराई की रस्म निभाते हुए प्रियंका को आर्शीवाद देते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम की नींव रखने वाले व अनूठी परंपरा की शुरुआत करने वाले बधाई के पात्र हैं। जेल अधीक्षक सुश्री शैफाली तिवारी ने कहा कि बैतूल प्रदेश की पहली जेल होगी, जहां इस तरह की गोद भराई का कार्यक्रम रखा और विचाराधीन महिला बंदी के साथ खुशियां बांटी गईं।

गाढ़ी कमाई के बाद बन गए है मुन्नाभाई
बैतूल, रामकिशोर पंवार: संजू बाबा की फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस की तर्ज पर बैतूल जिले के एक आयुवैदिक कालेज द्वारा फर्जी तरीके से फर्जी डाक्टर बनाने के एक गोरखधंधे का बीते दिनो खुलासा हो गया। मेडिकल कालेज की मान्यता निरस्त होने के बाद मेडिकल के छात्रो को मीरिंडा का छटका जोर से लगा। अपने उज्जवल भविष्य के सुखद सपनो एवं अपने अभिभावकों की गाढ़ी कमाई का लाखों रूपया खर्च कर डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने आए अनेक छात्रों ने कालेज प्रबंधन की पोल खुलने के बाद अपना उग्र रूप दिखा दिया। छात्रों के उग्र रूप के आगे कॉलेज प्रबंधन छात्रों के सवालो का जवाब देने के बजाय बगले झांकते नज़र आ रहा है। अब कालेज की अव्यवस्थाएं देखते हुए उनका यह सपना कभी न पूरा होने की मनोस्थिति में छात्रों का उग्र रूप लेना स्वभाविक है जो किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं। नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले का एक मात्र तथाकथित ओम आयुर्वेदिक कॉलेज के छात्रों आरोप है कि कालेज प्रबंधन हमें भी मुन्नाभाई की तरह फर्जी डाक्टर बना रहा है। उनका कहना है कि यहां से पढ़कर निकलने के बाद उनके पास डिग्री जरूर होगी लेकिन उनके द्वारा किया जाने वाला इलाज किसी भी किसी बंगाली या फिर नीम हकीम डाक्टर की तरह ही होगा। सबसे विचित्र बात यह हैं कि जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर चल रहे इस फर्जीवाड़े में बैतूल जिले के कई नामचीन लोग शामिल है। ओम आर्यर्वेदिक कालेज की मौजूदा स्थिति यह हैं के यहां पढ़ाने के लिए एक शिक्षक भी नहीं है। आन्दोलित कॉलेज के छात्रों के अनुसार यह स्थिति हमेशा से ही रही है। इन छात्रों को हर साल मेडिकल से जुड़े हुए दस सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए कम से कम दो-दो शिक्षक हर सब्जेक्ट में एमडी विशेषज्ञ के रूप में होना चाहिए। मौजूदा परिस्थिति में छात्रों के द्वारा किताबों से रट्टा मारकर परीक्षाएं तो पास कर ली जाती हैं लेकिन पास बेसिक ज्ञान न होने की वज़ह से उनकी तुलना भी आगे चल कर मुन्ना भाई की तरह ही होगी। मेडिकल कालेज के तृतीय वर्ष एक छात्र ने बताया कि पिछले तीन साल में मेडिकल कॉलेज के अंदर महज एक दिन प्रेक्टिकल हुआ और उसमें भी कहीं कुछ भी नहीं बताया गया। जबकि हर सब्जेक्ट में मेडिकल में प्रेक्टिकल का होना अनिवार्य है। सफेद हाथी साबित हो रहे मेडिकल कालेज परिसर के अस्पताल में कुछ भी नहीं होता है। स्थिति तो यहां पर यह हैं कि इस अस्पताल में आज तक कभी कोई मरीज भर्ती नहीं हुआ हैं। इंटरशिप तो कभी किसी छात्र को कॉलेज में नहीं करवाई गई। यहां पर पढ़ाई जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। फीस जरूर पूरी ली जाती है। परीक्षा और प्रेक्टिकल फीस की रसीद तक नहीं दी गई।  डॉ. जीडी राठी, सचिव प्रबंध समिति ओम आयुर्वेदिक कॉलेज
का कहना हैं कि उनके पैसे की कमी की वजह से शिक्षकों और व्यवस्थाओं को पूरी नहीं कर पा रहे हैं, उसके बाद भी हमारा रिजल्ट सबसे अच्छा रहता है।

फिर आ धमकी सीबीआई: नेताओं की धकडऩे बढ़ी
पारधियों के पुन: लिए जा रहे अंगूठे के निशान
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में जब -जब सीबीआई चौथिया पारधी कांड को लेकर आ धमकती हैं तब- तब पारधीकांड को लेकर आरोपो के घेरे में आ चुके कांग्रेस , भाजपा , सपा के नेताओं की दिल की धड़कने बढऩे लगती हैं। । अचानक बैतूल आई सीबीआई की टीम ने मुलताई तहसील की ग्राम पंचायत चौथिया के सचिव विजय सराठकर और पटवारी गुलटकर को तलब किया। इन दोनों के बयान भी रिकॉर्ड कर जिला मुख्यालय में शरणार्थी का जीवन जी रहे पारधियों के अंगूठे के निशानों को दोबारा लिया गया हैं। ग्राम पंचायत चौथिया में पारधी कांड के पहले ग्राम पंचायत चौथिया द्वारा अतिक्रमण में बसे पारधियों को हटाए जाने के लिए नोटिस जारी किए गए थे। करीब 51 पारधी परिवारों को यह नोटिस दिए थे। पारधियो का कहना था कि फर्जी अंगूठों के निशान थे और बच्चों तक के नाम से नोटिस जारी किए गए थे। उनके मकान भी बिना पूर्व सूचना के सुनियोजित तरीके से तोड़े गए हैं। अतिक्रमण हटाने के पूर्व लिए गए अंगूठो की जांच करने के लिए एक बार फिर से दिल्ली से आए सीबीआई अधिकारी गुप्ता के साथ आई टीम ने पिछले दो दिनों से पारधियों के दोनों डेरों से पारधियों को तलब कर नए सिरे से अंगूठे लगवाने का काम किया है, ताकि दोनों निशानों के बीच तुलनात्मक पड़ताल की जा सके।पूरे अंगूठे गलत तरीके से लगाए गए थे। पारधियों के अंगूठे के निशान नहीं थे और अब अचानक नए – नए फण्डे के साथ आ धमकी सीबीआई ने पुन: बुलाकर अंगूठे लगवा रही है ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। पारधी सरगना अलस्या पारधी के अनुसार जांच के परिणाम कब तक आएगें हमें नहीं मालूम लेकिन इस तरह सीबीआई के आ धमकने से हमें रोज एक नई सुबह का इंतजार रहता हैं। उस सुबह के चक्कर में अभी तक 28 पारधियों की मौते भी हो चुकी हैं। बैतूल जिला मुख्यालय पर बने अस्थाई सीबीआई के कार्यालय के सामने जब भी वाहनो का जमावड़ा होने को लगता हैं जिले की मीडिया और राजनीति में उथल – पुथल शुरू हो जाती हैं। जिले के पूर्व एवं वर्तमान विधायक , पूर्व सासंद ,सहित आधा दर्जन नेता तथा लगभग आधा दर्जन अधिकारी पारधी कांड को लेकर सीबीआई के द्वारा दर्ज अपराध में आरोपी बनाए जा चुके हैं। पूरे मामले में पिछले कई सालों से सिर्फ जांच चल रही हैं जिसके चलते सीबीआई की गिरफ्त से बाहर जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों की दिल की धड़कने बढऩे लग जाती हैं।

पीआरओ बन जन सम्पर्क कार्यालय चला रहा है चतुर्थश्रेणी कर्मचारी
कलैक्टर को कटींग भिजवाने की आड़ में होता है ब्लेकमेलिंग सौदेबाजी का खेल
बैतूल,रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का जन सम्पर्क कार्यालय में भले ही सहायक सूचना अधिकारी की पदस्थापना हो जाती हैं लेकिन पूरा जन सम्पर्क कार्यालय एवं जिले में पीआरओ बन कर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही अवैध चौथ वसूली का कार्य एक दो नहीं बल्कि पूरे एक दशक से अधिक समय से कर रहा है। भोपाल में बैठे जन सम्पर्क विभाग के आला अफसरो का कथित मुंह लगा जन सम्पर्क विभाग का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अपने आप को कर्मचारी संघ का नेता बता कर जहां एक ओर प्रशासन पर अपनी कथित पहुंच का दबाव बना कर उन्हे ब्लेकमेल कर रहा हैं वही दुसरी ओर वह यह तय करता हैं कि जिले में किस पत्रकार की $खबर की कतरन कलैक्टर तक पहुंचाई जाए या नहीं। सबसे शर्मनाक बात तो यह हैं कि जन सम्पर्क विभाग के अभी तक के अधिकारी उसके सामने पानी भरते है और जो उसकी बात नहीं मानता हैं तो उसे वह पत्रकारो से आपस में लड़वा देता है या फिर जिला प्रशासन से उसे उलझा देता हैं। दो पूर्व जन सम्पर्क अधिकारियों का हश्र भी इसी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की नीति और रीति के चलते हुआ था। बैतूल में पदस्थ रहे सहायक संचालक जन सम्पर्क श्री धौलपुरिया का पूर्व कलैक्टर चन्द्रहास दुबे एवं अरूण भटट से विवाद के पीछे का षडय़ंत्र भी इसी कर्मचारी की ही देन है। पत्रकार गगनदीप खरे एवं रजत परिहार के बीच कथित वाद विवाद को हवा देकर इसी कर्मचारी रूपी नेता ने दोनो को लड़वा दिया। इस घटना का दुखद पहलू यह रहा कि श्री धौलपुरिया के कहने पर एक कर्मचारी की शिकायत पर दोनो पत्रकारो के खिलाफ शासकीय कार्य में बाधा एवं अनुसूचित जाति जन जाति प्रताडऩा अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज करवाया गया। कलैक्टर से विवा के चलते श्री धौलपुरिया की जल्दी से बिदाई हो गई। इसी कड़ी में बीते दो वर्षो से प्रशासन एवं पत्रकारों के बीच मध्यस्थता कर रहे सहायक सूचना अधिकारी गुलाब सिंह मर्सकोले एवं बैतूल कलैक्टर के बीच विवाद का बीज बोने में इसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की कथित भूमिका रही। बताया जाता हैं कि जन सम्पर्क कार्यालय में लिपीक के अभाव में कार्यालय की लेखा शाखा का कार्य एपीआरओ श्री मर्सकोले ने इस कर्मचारी नेता को न देकर एक अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को दे रखा था जिसके चलते विभाग की आतंरिक कलह बाजार में आने लगी। लाल बंगले को खाली करवाने की कलैक्टर की तथाकथित एपीआरओ से बातचीत को भी इसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी द्वारा सार्वजनिक कर पत्रकारो को आपस में ही एक दुसरे से उलझा कर लाल बंगले को खाली करवाने को लेकर हुई कथित सौदेबाजी की कहानी गढ़ कर प्रशासन और पत्रकारों के बीच एक लम्बी चौड़ी दिवार खीच कर दोनो को आपस में लड़वा कर एपीआरओं को मोहरा बना कर उसे कलैक्टर के विवाद में बलि का बकरा बना दिया गया। सूत्रो का तो यहां तक कहना हैं कि पिछले छै माह से बैतूल आने का लालयीत वर्तमान एपीआरओ एवं इस कर्मचारी नेता के बीच हुई कथित सौदेबाजी के चलते सोची समझी  साजिश के तहत एक षडय़ंत्र रचा गया। जिसके लिए कलैक्टर को मोहरा बना कर जानबुझ का लाल हवेली का मामला उछाला गया। अपने विभाग की गोपनीयता से लेकर एसडीएम और कलैक्टर के द्वारा लाल बंगले को खाली करवाने के गोपनीय शासकीय पत्रों को सार्वजनिक कर एक ओर कलैक्टर के कथित विरोधी पक्ष के पत्रकारो को भड़काने का काम किया गया वही दुसरी सवर्ण जाति के कुछ पत्रकारों के साथ मिल कर कलैक्टर को आदिवासी एपीआरओ मर्सकोले के खिलाफ इस कदर भड़काया गया कि कलैक्टर और एपीआरओं के बीच हुए विवाद ने सवर्ण जाति के एपीआरओं के रास्ते का कांटा बना आदिवासी एपीआरओं को बलि का बकरा बनना पड़ा। पूरे मामले के कुछ रोचक तथ्य यह सामने आए थे कि एपीआरओं को पता चल चुका था कि चर्तुथ श्रेणी कर्मचारी जन सम्पर्क कार्यालय से प्रतिदिन होने वाली कंटिगो को कलैक्टर के कार्यालय भेजने के पूर्व संबधित विभाग के कर्मचारियों को फोन लगा कर डराता एवं धमकाता था कि यदि उनके खिलाफ छपी कतरने कलैक्टर तक पहुंचा दी गई तो उनकी नौकरी पर आफत आ जाएगी। कलैक्टर तक वे ही कतरने भेजी जाती थी जिसमें कुछ मिला न हो। समय – समय पर कलैक्टर एवं एपीआरओं के बीच चले शीतयुद्ध का इस चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने भरपुर फायदा उठाया और आज भी वहीं कार्य कर रहा हैं। अब बैतूल जन सम्पर्क कार्यालय का वर्तमान सवर्ण जाति के एपीआरओं के आने के बाद एक बार फिर दलित एवं आदिवासी तथा पिछड़े वर्ग के पत्रकारो के साथ वहीं होगा जो अभी तक नहीं हुआ था। अब बैतूल जन सम्पर्क कार्यालय में अधिमान्यता से लेकर विज्ञापन तक की दुकाने लगेगी और चपरासी से लेकर अधिकारी तक मिल बाट कर माल कमायेंगें।

‘दोस्त दोस्त ना रहा प्यार ,प्यार ना रहा ……..”
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
कहना नहीं चाहिए लेकिन सच को आखिर कब तक छुपाया जा सकता हैं। आप लोगो को सुन कर बेहद आश्चर्य होगा कि वैसे तो मेरे कई दोस्त और कई दुश्मन रहे हैं। एक बात सोलह कटु सत्य हैं कि मैंने किसी से भी जानी दुश्मनी न तो मैनें की हैं और न करने में विश्वास रखता हूं। मैने दोस्तो में दुश्मनो की और दुश्मनो में दोस्तो की झलक को देखा है। एक बात कहूं कि आज के समय न तो आपको सच्चा दोस्त मिल सकता हैं और न इमानदार दुश्मन हर कोई आस्तीन का सांप निकलने लगा हैं। दुश्मनी के बारे में किसी शायर ने ने खुब कहा हंै कि ”दुश्मनी जम कर करो ,लेकिन इतनी गुंजाइश रहे कि जब कभी मिले तो शर्मींदा न हो….” मैने हमेशा दोस्तो से ही धोखा खाया हैं। दुश्मनो से मुझे हमेशा दोस्त जैसा सहयोग मिला हैं इसलिए मैं आज तक समझ नहीं सका हंू कि दोस्त और दुश्मन में कौन अपना और कौन पराया….? काका की एक फिल्म का एक गीत मुझे अकसर दोस्त और दुश्मन की परिभाषा को समझने में सहायक सिद्ध होता हैं। मुमताज एक गीत गाती हैं कि ”एक दुश्मन जो दोस्तो से भी प्यारा है..” मैने जिन लोगो की ऊंगली पकड़ कर पत्रकारिता की पहली सीढ़ी पर कदम रखा है उन चंद लोगो में मेरे बड़े भाई समान दो मित्रों में हारून भाई अजय वर्मा को मैं अपने जीवन में कभी भूल नहीं सकता। मैं उनके छोटे भाई के रूप में स्वंय को समझता रहा हूं लेकिन दोनो ने मेरे भाई से हट कर एक सच्चे दोस्तो की तरह दोस्ती निभाई हैं। उनकी बेमिसाल दोस्ती वह भी बिना स्वार्थ की जो आज देखने को तक नहीं मिलती हैं। मैने अपने परिवार के अलावा यदि कुछ गिने चुने लोगो के साथ अपना वक्त बैतूल और बैतूल के बाहर बीताया है तो उनमें एक नाम हारून भाई का हैं। मैं इस व्यक्ति को आज तक समझ नहीं सका हूं। लोगो को अकसर कहते सुना हैं कि लोग आस्तीन में सांप पालते हैं लेकिन मैं तो हारून भाई के कुर्ते में सापों को पलते देखा हूं। यदि मैं यह कहूं कि काले विषधर , भुजंग , कोबरा सांप हारून भाई की आस्तीन में नहीं बल्कि गले में , जेब में कालर में , बाह में यहां तक की उनके कुर्ते के बटन तक में देखा हूं। आज हारून भाई के इस हाल के लिए वे ही सांप जिम्मेदार है जिन्हे हारून भाई ने जाने – अजाने में पाल रखा था। आज मैं जब भी हारून भाई को अपने दोस्तो को बुरा – भलां कहते सुनता हूं तो मुझे उन पर गुस्सा आता हैं वह इसलिए कि आखिर उन्होने ऐसे दोगले काले नागो को पाल कर क्यों रखा था? हारून भाई को उनकी जाति – बिरादरी और उसके बाहर के लोगो ने भी जो धोखा दिया है उसे देख कर तो ऐसा लगता हैं कि मुझे मिला धोखा कई गुणा कम है। कल का वह हारून भाई जिसकी जेब नोटो से भरी होती थी आज की उसकी जेब मे कागजो के टुकड़े मिलेगें जिनमें गुजराती भाषा में क्या लिखा रहता है यह लिखने वाला ही जानता हैं। पहले लोग हारून भाई के पीछे लोग सम्मान लेकर भागते थे आज वहीं हारून भाई सम्मान को तरस रहा हैं। सम्मान कोई प्रमाण पत्र का या मैडल का नहीं बल्कि अपनत्व एवं भाईचारे के दो शब्दो का हैं। आज भी मैं हारून भाई और अजय वर्मा एक दुसरे को गालियां देते मिल जाएगें लेकिन दोनो की दोस्ती में दरार नहीं आई जिसके पीछे हारून भाई का बड़प्पन एवं अजय वर्मा का अपनत्व है। दोनो एक दुसरे के बिना न तो पहले रहे है और न आज रह रहें हैं। हारून भाई और अजय वर्मा दोनो की हालत किसी से छुपी नहीं है। दोनो के पास धन से बड़ा दिल है। आज उनके पास सबसे बड़ी दौलत एक दुसरे के प्रति दिल से जुड़ा रिश्ता हैं। आज भी अजय वर्मा और हारून भाई से पहले जैसा अपनी मांग के अनुसार खाना बनवा कर खाते हैं। आज मुर्गा खाना है या फिर बिरयानी या फिर अण्डाकरी हारून भाई अपने भाई समान दोस्त के लिए कभी भी मना नहीं कर पायें है। यही कारण हैं कि आज भी हारून भाई और अजय वर्मा को फोन करके खाना खाने के लिए बुलाते हैं। अजय भैया ने जब अपनी कार ली तो वह सीधे हारून भाई के पास पहुंचा और फिर मेरे घर की ओर निकल पड़े यह सोच कर आज एक बार फिर तीनो दोस्त मिल कर कहीं घुमने निकल पड़ते है। मैं उनसे नहीं मिला लेकिन उनका संदेश जरूर मिल गया। आज के समय मक्कारो की लम्बी फौज में सच्चा दोस्त को खोज निकालना आसमान में तारे गिनने के समान काम हैं। बैतूल बाजार के ही श्री प्रहलाद कुमार वर्मा का जिक्र भी इस लेख के माध्यम से करना चाहूंगा क्योकि उनमें भी कहीं न कहीं दोस्ती को निभाने की अपार क्षमता थी। उनके गिने चुने दोस्तो में स्वर्गीय बाबूजी रामस्वरूप सिंह चौधरी का प्रमुख नाम था। मालवीय प्रेस पर घंटो बैठे गप्पे लड़ाते नवभारत की टीम के दो प्लेयर बैतूलवी पत्रकारिता से लेकर राजनीति तक पर चर्चा करते रहते थे। उनके साथ चर्चा में कभी कभार स्वर्गीय भवरचंद गर्ग और बड़े वकील साहब राधाकृष्ण गर्ग भी साथ हो जाते थे। वकालत की शिक्षा लेने के बाद प्रहलाद भैया ने काला कोट पहनने के बजाय कलमसे कागज को काला करके लोगो को ”काला अक्षर भैस बराबरÓÓ वाली कहावत का अर्थ समझाने का प्रयास किया। उनकी लेखनी के चलते उनका भी मेरा जैसा हाल था। उनका सीधा – सीधा लिखना लोगो को हज़म नहीं होता था। मैंने उस समय भी गुटो में बटी पत्रकारिता में स्वंय को बाट रखा था। मैं भले ही हारून भाई के साथ था लेकिन मेरी दुआ सलाम और कुछ सीखने एवं समझने की जिज्ञासा प्रहलाद भैया से बनी रही। यह भी हो सकता हैं कि उन्होने मेरे में अपनी लेखन छबि देख हो इसलिए वे भी मेरी लेखनी की तारीफे किया करते थे। कलम का पैनापन जो प्रहलाद वर्मा में था आज वह कमल वर्मा या विनय वर्मा में देखने को नहीं मिल सकता क्योकि आज की पत्रकारिता धंधे से शुरू होती है और धंधे में बंद हो जाती हैं। बरसो तक एक ही अखबार में जमें रहने का रिकार्ड केवल बैतूलवी पत्रकारिता में प्रहलाद वर्मा के नाम पर ही दर्ज हैं। केवल प्रहलाद भैया ही एक मात्र पत्रकार है जिन्होने नवभारत से आखरी समय तक अपना रिश्ता निभा रखा था। यदि मैं कुछ इस प्रकार से कहूं कि वे नवभारत परिवार के ही सदस्य थे तो अतिश्योक्ति नहीं होगीं। उनकी भी दोस्ती कम सुर्खियों में नहीं रहीं। श्रद्धेय प्रहलाद भैया और सीहोर के शंकर लाल साबू , विजयदत्त श्रीधर की तिकड़ी ने ही मध्यप्रदेश आंचलिक पत्रकार संघ की नींव रखी थी।  आज इस तीन मित्रों को मिले बरसो हो गया होगा। आज की पत्रकारिता में दोस्त बनाना कठीन काम हैं। यदि हम कुछ इस प्रकार दोस्ती को गीत में गुणगुनाए कि ”तेरे जैसा यार कहां , कहां ऐसा याराना याद करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना …… दोस्ती के अफसाने लोग कम सुनाते हैं क्योकि दोस्ती के लिए सुग्रीव जैसी इमानदारी और विभिषण जैसी निष्ठा चाहिए। वैसे दोस्ती तो कृष्ण और सुदामा की भी थी लेकिन वह कृष्ण कहां खो गया जो अपने दोस्त के एक मुटठ्ी चावल के लिए अपना सब कुछ दोस्त पर न्यौछावर कर चुके  थे। आज की दोस्ती की इस कथा में यदि हम जय और वीरू का जिक्र करे तो हमें जय की तरह समपर्ण और वीरू की तरह बड़े दिल वाला दोस्त कहां मिलेगा….? आज जो गठबंधन की दोस्ती का जमाना हैं। हर कोई किश्तो और शर्तो तथा ट्रम्स आफ कंडीशन पर दोस्ती करने का एग्रीमेंट करने से नहीं चुकते हैं। दोस्ती एक प्रकार का अनुबंध पत्र हो गया हैं। दोस्ती में भी टाइम लीमिट जैसे शब्दो का प्रयोग होने लगा हैं। दोस्ती को समर्पित इस लेख को मैं यही समाप्त करता हूं क्योकि दोस्ती और दुश्मनी एक ही नाम राशी के शब्द हैं। राम और रावण एक ही नाम राशी के थे लेकिन दोनो में दोस्ती नहीं हो सकी और दुश्मनी हो गई क्योकि दुश्मनी और दोस्ती भी एक ही नाम राशी के हैं। मेरा ऐसा मानना हैं कि दोस्ती और दुश्मनी तुला राशि की तरह एक ही तराजू के दो पल्ले है जो कभी भी एक समान नहीं हो सकते हैं। एक न एक पल्ले को ऊपर और नीचे होना पडेगा क्योकि समान रहने से दोनो का समीकरण बिगड़ जाएगा।

इति
लेखक
रामकिशोर पंवार
दैनिक पंजाब केसरी दिल्ली के
बैतूल प्रतिनिधि हैं।

खुले आम बेची जा रही है कुत्तामार ज़हरीली अवैध कच्ची शराब
शराब ठेकेदार के मैनेजर के संरक्षण में चल रहा है औद्योगिक क्षेत्र में अवैध कारोबार
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बउ़ी नगर पालिका सारनी में बीते एक दशक में अवैध कच्ची कुत्तामार ज़हरीली शराब से तीन सौ से अधिक लोगो की मौतो के बाद भी सबक नहीं सीख पाए आबकारी एवं पुलिस विभाग की मिली भगत से बड़े पैमाने पर गली – गली में बिक रही यूरिया , नौसादर , सल्फर , एसीड़ , खटमल मार दवा एवं चुहामार दवा के कथित उपयोग से तेज एवं नशीली शराब बना कर बेचने का गोरखधंधा किसी दिन किसी बड़े हादसे को जनम दे सकता है। बैतूल जिले के संवेदनशील औद्योगिक क्षेत्र सारनी एवं पाथाखेड़ा की गलियों में लगातार बड़े पैमाने पर बिकने वाली कच्ची अवैध , ज़हरीली कुत्तामार के नाम से पहचानी जाने वाली शराब अब नकली पेंकिग करके शासकीय देशी एवं विदेशी मदिरा की दुकानो से भी बेचने वाले बड़े गिरोह का खुलासा किया है। बताया जाता हैं कि भोपाल की बहुचर्चित सोम डिस्लरी के एक निकटवर्ती मेसर्स बाना सिंह के नाम पर लिए गए शासकीय देशी एवं विदेशी मदिरा के ठेके का मैनेजमेंट देखने वाले हरियाणी मनोज शर्मा के कथित संरक्षण में उक्त अवैध कारोबार चल रहा है। शासकीय शर्तो पर कथित घाटे के बाद भी ठेका लेने का बहाना बनाने वाले शासकीय ठेकेदार के मैनेजर ने कथित घाटे से ऊबरने के लिए हजारो लोगो को मौत के मुंह में धकेलने का बीड़ा उठा लिया हैं। बड़े पैमाने पर औद्योगिक क्षेत्र सारनी – पाथाखेड़ा – बगडोना एवं सलैया तक चल रहा अवैध कारोबार किसी दिन किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं इस बात से बेपरवाह शराब माफिया को सत्ताधारी दल के नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों का संरक्षण भी मिला हुआ हैं। वैसे भी वेस्टर्न कोल फिल्ड लिमीटेड पाथाखेड़ा एवं एमपीइबी सारनी के 36 वार्डो में सस्ती अवैध कच्ची शराब का कारोबार कोई आज की बात नहीं हैं। लेकिन इस बार तो सारी हदे पार करके शराब ठेकेदारो की आपसी लड़ाई का फायदा उठा कर स्वंय की दुकानो को घाटे में दिखा कर हरियाणी शर्मा जी ने तो दोनो हाथो से माल बटोरने का मूलमंत्र अपना लिया हैं। भोपाल की बहुचर्चित सोम डिस्लरी कंपनी के हरियाणी मैनेजर मनोज शर्मा के संरक्षण में पुलिस एवं आबकारी विभाग की मिली भगत से बड़े पैमाने पर चल रहा यह धंधा कब रूक सकेगा कहना असंभव हैं। अवैध कच्ची शराब के चलते बीते दस वर्षो में तीन सौ से ज्यादा लोगो की अकाल मौते हो चुकी है जिसमें दो दर्जन से अधिक वेकोलि के कामगार है। सल्फर और एसीड के मिश्रण से बनने वाली कुत्तामार देशी शराब की लागत प्रति बाटल पांच रूपए आती हैं लेकिन वहीं शराब बोतलो में सिलबंद करके बीस रूपए में बेची जा रही हैं। वैसे शासकीय देशी मदिरा वर्तमान में 25 रूपए से 30 रूपए तथा विदेशी मदिरा 70 से 80 के बीच में बिकती है लेकिन पेकिंग मशीन से ज़हरीली कुत्तामार अवैध शराब सरकारी लेबल लगा कर बेचने से शराब ठेकेदार एवं राज्य सरकार के आबकारी विभाग को भी भारी नुकसान हो रहा हैं। हालाकि पूरे बैतूल जिले में शराब माफिया और सरकारी शराब ठेकेदारो के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा के चलते आमला , बैतूल , शाहपुर , मुलताई , जमाई क्षेत्र की देशी – विदेशी शराब के अवैध कारोबार को रोकने में असफल सिद्ध हुआ पुलिस एवं आबकारी विभाग बड़े पैमाने पर सारनी नगर पालिका क्षेत्र के 36 वार्डो में अवैध कारोबार को संचालित करवा रहा हैं। सारनी नगर पालिका क्षेत्र में अभी तक आबकारी विभाग एवं पुलिस विभाग की कथित छापामारी का पंचनामा एवं जप्ती रिकार्ड का अवलोकन करे तो पता चलता हैं कि सोम कंपनी एवं मेसर्स बानासिंह की आड़ में सोम में चल रहे इस अवैध कारोबार की एक मोटी रकम कपंनी के हरियाणी मैनेजर मनोज शर्मा की जेब में जा रही हैं। इसके पूर्व सारनी की शासकीय एवं विदेशी शराब का ठेका ग्वालियर की शिवहरे कंपनी के पास था लेकिन पिछले दो साल से लगातार कथित घाटे में चल रही सोम एवं बानासिंह की कंपनी को होने वाला कथित घाटा उनके ही लोगो द्वारा पहुंचाया जा रहा हैं। कुल मिला कर अपने ही लोगो के द्वारा अपनी कब्र को खुदवाने का काम सारनी पाथाखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में हो रहा हैं। वैसे एक बात तो सच हैं कि भोपाल की सोम डिस्लरी अपने गुर्गो की आड़ में ही शराब के ठेके लेती तो जरूर है लेकिन उनके ही कर्मचारी उन्हे गर्त में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

शिवराज भैया की बहनो की मोबाइल टार्ज की रोशनी में होने लगी है डिलेवरी
बैतूल, रामकिशोर पंवार: भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष स्वास्थ एवं परिवार कल्याण के लिए मध्यप्रदेश सरकार को भेजे जाने वाले करोड़ो – अरबो रूपए के अनुदान के बाद भी प्रदेश की भाजपा सरकार बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में हमेशा ही सुरक्षित प्रसव को लेकर सुर्खियों में रही हैं। सुरक्षित प्रसव के लिए जननी सुरक्षा योजना शुरू होने के बाद भी रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मोबाइल टार्च की रोशनी में डिलेवरी हुई। इस घटना से नाराज ग्रामीणों ने रात में ही अस्पताल में प्रदर्शन कर पंचनामा तैयार किया। अब ग्रामीण यहां पदस्थ महिला डॉक्टर को हटाने की मांग कर रहे हैं। बीती रात को लोहारढाना निवासी आशा पत्नी मंटू आदिवासी को डिलेवरी के लिए रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया। पहले तो यहां डॉक्टर नहीं होने से परेशानी हुई, बाद में अस्पताल में बिजली गुल होने से दिक्कतें बढ़ गईं। सरपंच इंदिरा धुर्वे, प्रदीप मालवीय, पूरन सराठे, जगराम, धीरेंद्र ठाकुर, अरविंद साहू, उमेश बाघ, सुभाष पांडे, राजेश श्रीवास, फुलंता बाई, अभिषेक सैनी किशोर पांडे समेत अन्य लोगों ने बताया कि पूरे गांव में बिजली थी, लेकिन अस्पताल की बिजली गुल थी। आशा की तकलीफ बढऩे के कारण यहां पदस्थ संगीता चौधरी प्रसव कराने के लिए तैयार हुई। इसके बाद लोगों ने दो मोबाइल टार्च की सहायता से प्रसव कराया। ग्रामीणों ने बताया कि यहां पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पासिंह ने खुद के घर अस्पताल के बैटरी लगा रखी है। इसके अलावा उक्त डॉक्टर ने पानी गर्म करने के लिए लाए गए गैस चूल्हे को भी अपने घर में लगा रखा है। ग्रामीणों ने बताया कि अस्पताल में पिछले तीन महीने से बिजली नहीं है। इसके अलावा दवाओं का भी टोटा है। ग्रामीणों ने बीएमओ को आवेदन सौंपकर महिला डॉक्टर पुष्पा सिंह को हटाने की मांग की है। अभी कुछ दिन पहले रानीपुर में ही एक महिला की खुले आसमान के नीचे प्रसव करने को विवश होना पड़ा। ग्रामीणों ने पहले भी इस मामले की शिकायत की थी। डॉक्टर के रानीपुर में न रहकर पाथाखेड़ा रहने संबंधी शिकायत की थी उसके बाद भी डाक्टर के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस बार भी मोबाइल टार्च में डिलेवरी की गई है तो यह गंभीर बात है। इस संबंध में कब जांच होगी कहना मुश्कील हैं। बैतूल। रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक महिला की मोबाइल फोन की लाइट से डिलेवरी के मामले का खुलासा होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने संबंधित डॉक्टर के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। साथ ही इस पूरे घटनाक्रम में डॉक्टर को नोटिस दिए जाने की बात भी कही। सीएमएचओ डॉ. दिनेश कौशल ने बताया कि रानीपुर में मोबाइल से डिलेवरी के मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं।

नर्मदा की तरह ताप्ती कुंभ के आयोजन को लेकर मंथन
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बीते दिनो सम्पन्न हुए नर्मदा कुंभ की तर्ज पर मां सूर्यपुत्री ताप्ती के जन्मोत्सव पर बैतूल जिले में भी व्यापक स्तर ताप्ती कुंंभ के आयोजन को लेकर मां ताप्ती जागृति मंच का विचार मंथन कार्यक्रम शुरू हो गया है। इस कार्यक्रम के तहत ताप्ती से जुड़े संगठनो एवं संस्थाओं तथा ताप्ती श्रद्धालु भक्तों से विचार मंथन कार्य किया जा रहा हैं। मुुलताई से लेकर रहटगांव तक बैतूल जिले की सीमा में लगभग 250 किलोमीटर बहने वाली मां सूर्यपुत्री ताप्ती के तटो पर उक्त कुंभ का आयोजन किया जाएगा। मां ताप्ती जागृति मंच इस प्रयास में है कि ताप्ती महाकुंभ का आयोजन शिवधाम बारहलिंग पर हों जिसके लिए सभी राजनैतिक , सामाजिक ,धार्मिक संगठनो तथा स्वंयसेवी संगठनो को मिला एक आयोजन समिति का गठन किया जाएगा। समिति जन सहयोग से महाकुंभ में साझेदारी के लिए लोगो को प्रेरित करेगी। मंच के संस्थापक रामकिशोर पंवार के अनुसार बैतूल जिले में अषाठ शुक्ल की सप्तमी को आयोजित होने वाले एक दिवसीय महाकुंभ में देश भर से ताप्ती महिमा के जानकारों के अलावा बारह ज्योतिलिंगो के प्रमुख पुजारियों को भी शिवधाम बारहलिंग में लाने का प्रयास किया जाएगा। महाकुंंभ में तीन राज्यों मध्यप्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र के राज्यपालो एवं मुख्यमंत्रियों को भी लाने का प्रयास किया जाएगा। मंच की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार महाकुंभ में देश – विदेश में चार से पांच लाख लोगो को लाने के लिए पहल की जाएगी।

रामकिशोर पंवार
आइसना के जिलाध्यक्ष नियुक्त
बैतूल। जिले से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र हिन्दी पाक्षिक हमसे कुछ छुपाया नहीं जा सकता के प्रकाशक एवं संपादक रामकिशोर पंवार को आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एशोसिएशन के प्रांतीय महामंत्री विनय जी डेविड ने बैतूल जिला इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया है। बैतूलवी पत्रकारिता के क्षेत्र में बीते 27 वर्षो से कार्यरत रामकिशोर पंवार इसके पूर्व भी कई संगठनो के जिलाध्यक्ष एवं प्रांतीय कार्यसमिति तथा राष्ट्रीय कार्यसमिति के भी पदाधिकारी एवं सदस्य रह चुके है। हाल ही में बैतूल विश्रामगृह में सम्पन्न हुई आलसना की बैठक में प्रदेश महामंत्री विनय जी डेविड ने रामकिशोर पंवार को इकाई का जिलाध्यक्ष नियुक्त करते हुए जिला कार्यकारिणी घोषित करने के लिए अधिकृत किया है। रामकिशोर पंवार ने जिले भर से प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्रो के प्रकशको , संपादको , रिर्पोटरो से आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एशोसिएशन की सदस्यता लेकर संगठन से जुडऩे की अपील की है। श्री पंवार के अनुसार बैतूल जिले में जल्द ही आइसना का जिला स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जायेगा जिसमें प्रदेश के कई ख्याति प्राप्त पत्रकार एवं चिंतक भाग लेगें। सम्मेलन मई माह में प्रस्तावित किया गया है। विश्रामगृह मे सम्मेलन की रूप रेखा एवं संगठन के गठन को लेकर आयोजित बैठक में भोपाल से आए आइसना के पदाधिकारियों ने भाग लिया। रामकिशोर पंवार को आइसना का जिलाध्यक्ष बनने पर जिले भर के उनके पत्रकार मित्रो ने बधाई दी। वर्ष 1982 से पंजीकृत आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एशोसिएशन के पूरे देश भर में जिला एवं तहसील तथा विकासखण्ड स्तर पर संगठन कार्य कर रहे है। पौने दो लाख सदस्यता वाला आइसना देश का एक मात्र पत्रकारो का संगठन है जिससे छोटे एवं लघु समाचार पत्रों के प्रकाशक से लेकर रिर्पोटर तक जुड़े हुए है।

बंद हो जाएगी सौ साल पुरानी बैतूल बाजार की प्रायवेट गुड़ मंडी
बैतूल, रामकिशोर पंवार: कभी देश और दुनियां में जाना – पहचाना जाने वाला बैतूलबाजार का शुद्ध देशी गुढ़ अब बैतूल बाजार की प्रायवेट मंडी और दलालों के चुंगल से मुक्त होकर सरकारी कृषि उपज मंडी में बिकना शुरू हो जाएगा। राजपत्र में प्रकाशित एक संशोधन के अनुसार गुड़ को कृषि उत्पाद मान लिया गया हैं इसलिए अब सरकारी कृषि उपज मंडी के माध्यम से ही किसानो द्वारा इसे बेचा जा सकेगा। सरकारी संशोधन के बाद से मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के बैतूल बाजार की सौ साल पुरानी गुड़ मंडी को बंद कर गुड़ खरीदी का काम अब बैतूल कृषि उपज मंडी से किया जाएगा। इस नई व्यवस्था को लेकर कृषि उपज मंडी बैतूल ने गुड़ व्यापारियों को नोटिस भी जारी कर दिए हैं कि वे विधिवत खरीदी के लिए लाइसेंस बनवा लें। मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 की धारा 60 के तहत किए गए संसोधन में गुड़ को कृषि जींस में शामिल कर लिया गया है और इसी के तहत कृषि उपज मंडी ने गुड़ खरीदी के लिए मंडी प्रांगण में व्यवस्थाएं बनाना शुरू कर दी है। बडोरा स्थित कृषि उपज मंडी मे गुड़ की खरीदी भी शुरू होने से किसानों में हर्ष है। भारतीय किसान संघ के नगर अध्यक्ष नरेंद्र गोठी ने बताया कि इससे किसानों को काफी फायदा मिलेगा। किसान अब अपना गुड़ औने-पौने दाम में बेचने से बच सकेंगे। किसान संघ द्वारा लंबे समय से इसकी मांग की जा रही थी। अपनी गुड़ मंडी के लिए प्रसिद्ध बैतूल बाजार की पहचान ही इस मंडी के खत्म हो जाने से संकट में आ गई है। साथ ही यहां पर आढ़ैत का काम करने वाले व्यापारियों की दलाली का काम भी बंद हो जाएगा। उन्हें अब विधिवत लाइसेंस लेकर खरीदी करना होगी। मंडी के बंद होने की स्थिति को देखकर बैतूलबाजार में अभी से आक्रोश नजर आने लगा है। आरके अग्रवाल, मंडी सचिव बडोरा के अनुसार जल्द ही बडोरा कृषि उपज मंडी में गुड़ की खरीदी भी शुरू की जाएगी। इसके लिए लाइसेंस की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।

किसी को चिंता नहीं है सुप्रीम कोर्ट के निर्देशो की
टीवी चैनल के लिए स्कूली बच्चों की कलेक्ट्रेट में लगवाई कथित क्लास
बैतूल, रामकिशोर पंवार: भारत की सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के बार – बार दिए जाने वाले निर्देशो की अवहेलना किस तरह होती हैं यदि वह देखनए हैं तो किसी भी दिन बैतूल जिला मुख्यालय पर चले आइए। बैतूल जिले में जुलूस , धरना , प्रदर्शन , रैली , की शक्ल में स्कूलों में पढऩे वाले छात्र – छात्राओं को मोहरा बना कर उनकी आड़ में राजनीति करने वालों की कोई कमी नहीं हैं। जिले के एवं क्षेत्रिय जनप्रतिनिधि जिस काम को आसानी से कर सकते हैं उसके लिए जीपो में ठूंस – ठूंस कर स्कूली बच्चों को लाकर उनसे संविधान के विरूद्ध कलैक्टर परिसर में क्लास लगवाने की घटना ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना कर डाली हैं। कथित परीक्षा सेंटर बदले जाने की मांग को लेकर आए निश्चिंतपुर के छात्रों ने अचानक अपनी मांग को मनवाने के लिए कलेक्ट्रेट परिसर में ही क्लास लगाई और अपनी मांग को पुरजोर तरीके से रखा। सबसे शर्मसार बात तो यह रही कि जिन छात्रों को आत्महत्या का अर्थ और उसके परिणामों का भी ज्ञान नहीं हैं उन छात्रों के द्वारा कथित सामूहिक आत्महत्या करने की चेतावनी देकर लोगो को सकते में डाल दिया। छात्रों ने अपना आक्रोश जताने के लिए परीक्षा का बहिष्कार करने की भी धमकी दे डाली। जिन स्कूली बच्चों को परीक्षा के सामुहिक बहिष्कार एवं कथित सामुहिक आत्महत्या के अर्थ और परिणामों का ज्ञान न हो उनके द्वारा इस तरह का हंगामा खड़ा कर देना कम नाटकीय नहीं हैं। नाटकीय घटनाक्रम को यूं मुकाम नहीं मिलता यदि कुछ न्यूज चैनल वाले अपने लिए स्पेशल स्टोरी के चक्कर में स्कूली बच्चों को लाने वाले भाजपा सरकार से पेशंन पाने वाले पूर्व जनसंघी एवं मीसाबंदी गुलाब पंडाग्रें से वार्तालाप नहीं करते। मीसाबंदी गुलाब पंडाग्रे को जब यह बताया गया कि उनकी $खबर पूरे देश में सुर्खियों में छा जाएगी यदि स्कूल बच्चे जैसा वो चाहते यदि वैसा करेगें। अपनी ही प्रदेश सरकार के जिला प्रशासन पर स्कूल के बच्चे से लेकर मीसाबंदी गुलाब पंडाग्रे ने वहीं तरीका अपनाया जो कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशो के ठीक विपरीत जाता हैं।
स्कूली बच्चों की नौंटकी देख टीवी चैनल वालों एवं मीडिया से पूरे मामले को करने के लिए जिला प्रशासन ने सेंटर बदलने की मांग तो स्वीकार नहीं की लेकिन छात्रों की समस्या को ध्यान में रखते हुए उन्हें परीक्षा के दौरान बस की विशेष सुविधा उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। उल्लेखनीय हैं कि इसी शिक्षा सत्र में निश्ंिचतपुर में हाईस्कूल खोला गया है। इस हाईस्कूल में निश्चतपुर सहित आसपास के ग्रामों के छात्र अध्ययनरत है। इस हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा में परीक्षा केंद्र सारणी को बनाया गया है। निश्चतपुर से सारणी की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है। जबकि करीब में ही चोपना में भी परीक्षा सेंटर है जिसकी दूरी मात्र पांच किमी है। निश्चतपुर से सारणी के लिए सुबह के समय आवागमन का कोई साधन भी उपलब्ध नहीं है। चोपना पुनर्वास क्षेत्र से आए अभिभावकों और 92 छात्र-छात्राओं से जिला कलेक्टर की नामौजूदगी में एडीएम योगेंद्र सिंह से अपनी समस्या को लेकर चर्चा की लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला तो सभी छात्र कलेक्टर चेम्बर के गेट पर धरना देकर बैठ गए। इसके बाद यहां पर छात्रों ने प्रार्थना सभा का आयोजन किया। जिसमें जन..गण..मन राष्ट्रीय गीत का गान हुआ। इसके बाद जय श्री नाम एक छात्रा ने शिक्षिका की भूमिका अदा करते हुए छात्रों को विज्ञान विषय पढ़ाना शुरू कर दिया। इसको देख एडीएम मीडिया पर बरस पड़े। एडीएम का कहना था कि केवल $खबर के लिए नौंटकी करवाने की क्या जरूरत थी। कलैक्टर परिसर प्रतिबंधित क्षेत्र हैं जहां पर किसी भी प्रकार का धरना – प्रदर्शन – सभा आदि का आयोजन करना धारा 144 का उल्लघंन हैं। तकरीबन 20 मिनट तक इस क्लास के बाद मीडिया की क्लास लेते हुए एडीएम श्री सिंह ने भी जमकर खरी खोटी सुनाने में करसर नहीं छोड़ी। प्रशासन का तर्क था कि किसी भी प्रकार से स्कूली बच्चों को उकसाना कानून की नज़र में अपराध हैं। प्रशासन ने इन छात्रों के द्वाराकी जाने वाली नारेबाजी एवं सामूहिक रूप से आत्महत्या की धमकी को लेकर अपना रौद्र रूप दिखाया तब जाकर मामला शांत पड़ा। इसी दौरान मीसाबंदी गुलाब पंडाग्रे और प्रशासनिक अधिकारियों में तीखी नोंकझोक भी हो गई। तमाम कवायद के बाद एडीएम योगेंद्र सिंह ने जिला शिक्षा अधिकारी बीके पटेल को कलेक्ट्रेट तलब किया। डीईओ से चर्चा के बाद एडीएम ने छात्रों से मुलाकात की और उन्हें बताया कि सेंटर बदला जाना अब संभव नहीं है। छात्रों की समस्या को देखते हुए परीक्षा के लिए निश्ंिचतपुर से सारणी आने जाने के लिए दो बसें उपलब्ध कराई जाएगी। इसके साथ ही यदि बस की वजह से लेटलतीफी होती है तो जितने समय लेट होंगे उतना समय परीक्षा के लिए अतिरिक्त दिलाया जाएगा। बस में सुरक्षा के लिए पुलिस के साथ-साथ स्कूल के टीचर भी रहेंगे।

अपने ममेरे ससुर शिवराज सिंह चौहान पर लगाया दहेज न देने का आरोप हैं
कन्यादान योजना के पात्रों को ही नहीं मिल रहा दान
बैतूल, रामकिशोर पंवार: प्रदेश की लाड़लियों के लोकप्रिय जगत मामा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अति महात्वाकांक्षी कन्यादान योजना अब विवादो में घिर गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों के अनुसार दहेज लेना एवं देना कानून की नज़र में अपराध हैं तब बैतूल जिले की उस युवक का क्या होगा जो अपनी पत्नि के साथ अपने ममेरे ससुद शिवराज सिंह के सुशासन में कुछ बैतूल जिले के अधिकारी उसे दहेज नहीं दे रहे हैं। इस सनसनी खेज आरोप का अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है कि शादी के नौ माह बाद भी कन्या को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत मिलने वाला दान – दहेज नहीं मिल सका है। महिला ने इसकी शिकायत जिला कलैक्टर की जनसुनवाई के दौरान करते हुए आरोप लगाया कि मामा के राज्य में उसके साथ उसे दान – दहेज का वादा करने के बाद भी वादा खिलाफी हो रही हैं। प्रभारी जिला कलैक्टर से अपना दान दहेज , उपहार सामग्री दिलाने की मांग की करने वाली दंपति ग्राम बरेठा झल्लार थाना क्षेत्र की रहने वाली हैं। श्रीमति अनिता इवने ने बताया कि उसका विवाह ग्राम चौकी निवासी समाज के प्रेम उइके से मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत ग्राम हरदू मे 12 मई 2010 को हुआ। योजना के तहत शादी रचाने वाली महिला को उपहार में सामग्री प्रदान की जाती है। अनीता ने बताया कि शादी होने को अब नौ महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन अभी तक उपहार में कुछ नहीं दिया गया है। अनिता ने बताया कि हरदू में कन्यादान योजना के तहत शादी करने वाली और भी महिलाएं है, जिन्हें योजना के उपहार में मिलने वाली सामग्री नहीं मिली है। महिलाएं सामग्री के लिए अधिकारियों के चक्कर काट काट कर थक गई हैं।

शिवराज भैया की बहनो की मोबाइल टार्ज की रोशनी में होने लगी है डिलेवरी
भगवान भरोसे हो गई बैतूल जिले की स्वास्थ सेवा
बैतूल, रामकिशोर पंवार: भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष स्वास्थ एवं परिवार कल्याण के लिए मध्यप्रदेश सरकार को भेजे जाने वाले करोड़ो – अरबो रूपए के अनुदान के बाद भी प्रदेश की भाजपा सरकार बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में हमेशा ही सुरक्षित प्रसव को लेकर सुर्खियों में रही हैं। सुरक्षित प्रसव के लिए जननी सुरक्षा योजना शुरू होने के बाद भी रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मोबाइल टार्च की रोशनी में डिलेवरी हुई। इस घटना से नाराज ग्रामीणों ने रात में ही अस्पताल में प्रदर्शन कर पंचनामा तैयार किया। अब ग्रामीण यहां पदस्थ महिला डॉक्टर को हटाने की मांग कर रहे हैं। बीती रात को लोहारढाना निवासी आशा पत्नी मंटू आदिवासी को डिलेवरी के लिए रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया। पहले तो यहां डॉक्टर नहीं होने से परेशानी हुई, बाद में अस्पताल में बिजली गुल होने से दिक्कतें बढ़ गईं। सरपंच इंदिरा धुर्वे, प्रदीप मालवीय, पूरन सराठे, जगराम, धीरेंद्र ठाकुर, अरविंद साहू, उमेश बाघ, सुभाष पांडे, राजेश श्रीवास, फुलंता बाई, अभिषेक सैनी किशोर पांडे समेत अन्य लोगों ने बताया कि पूरे गांव में बिजली थी, लेकिन अस्पताल की बिजली गुल थी। आशा की तकलीफ बढऩे के कारण यहां पदस्थ संगीता चौधरी प्रसव कराने के लिए तैयार हुई। इसके बाद लोगों ने दो मोबाइल टार्च की सहायता से प्रसव कराया। ग्रामीणों ने बताया कि यहां पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पासिंह ने खुद के घर अस्पताल के बैटरी लगा रखी है। इसके अलावा उक्त डॉक्टर ने पानी गर्म करने के लिए लाए गए गैस चूल्हे को भी अपने घर में लगा रखा है। ग्रामीणों ने बताया कि अस्पताल में पिछले तीन महीने से बिजली नहीं है। इसके अलावा दवाओं का भी टोटा है। ग्रामीणों ने बीएमओ को आवेदन सौंपकर महिला डॉक्टर पुष्पा सिंह को हटाने की मांग की है। अभी कुछ दिन पहले रानीपुर में ही एक महिला की खुले आसमान के नीचे प्रसव करने को विवश होना पड़ा। ग्रामीणों ने पहले भी इस मामले की शिकायत की थी। डॉक्टर के रानीपुर में न रहकर पाथाखेड़ा रहने संबंधी शिकायत की थी उसके बाद भी डाक्टर के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस बार भी मोबाइल टार्च में डिलेवरी की गई है तो यह गंभीर बात है। इस संबंध में कब जांच होगी कहना मुश्कील हैं। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आमला तहसील के ग्राम बोरदेही के सरकारी अस्पताल में बीते करीब छ: महीनों से जननी एक्सप्रेस नहीं है। यह वाहन नहीं होने से डिलेवरी करवाने अस्पताल तक पहुचने में महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।वहीं अब सप्ताह में 2 दिन डॉक्टर पहुंचनें से लोगों ने थोड़ी राहत महसूस की है। यहां करीब छ: माह पहले तक वाहन उपलब्ध था, लेकिन कुछ कारणों से वाहन की सेवाएं बंद हो गई है।लिहाजा अब महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचना है तो आशा कार्यकर्ता का मुंंह ताकना पड़ता है या फिर किराए का वाहन लेकर अस्पताल पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि वाहन नहीं होने से उन्हें जहां अक्सर अधिक खर्च उठाना पड़ता है तो कई बार वाहन नहीं मिलने पर जिंदगी और मौत से जूझने जैसी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। जानकारी के मुताबिक करीब 6 माह पहले तक अस्पताल में जननी एक्सप्रेस की सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन कुछ समय बाद इसे बंद कर दिया गया। तब से यह समस्या बढ़ गई है। जानकारी के मुताबिक पर्याप्त प्रकरण नहीं मिलने के कारण संबंधित ने यहां वाहन की सेवा देना बंद कर दिया है। इटावा सरपंच उमा प्रमोद सोनी, हथनोरा की संध्याबाई राजेंद्र सिंह, बामला के भवानी सूर्यवंशी, बोरदेही के संजय सूर्यवंशी, हथनोरा के भगवत पटेल, घाटावाड़ी के हरिराम पटेल का कहना है कि प्राइवेट वाहन बंद भी हो गया है तो शासन अस्पताल में स्थाई वाहन का इंतजाम किया जाना था। ग्राम पंचायत की शिकायतों से कई ज्यादा गंभरी हैं बैतूल जिला मुख्यालय के मुख्य अस्पताल की जहां पर ओपीडी में डाक्टरों के बैठने के समय में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। प्रतिदिन जिला चिकित्सालय में सभी डयूटी पर पदस्थ डाक्टर अपने कक्षों से नदारद रहते हैं। इससे मरीजों को देर तक इंतजार करना पड़ा। कतार लगाकर खड़े मरीज कहने को मजबूर हो गए कि, डॉक्टर साहब कब आएंगें…..? जिला अस्पताल में सुबह 8 से 1 बजे तक डॉक्टरों की ड्यूटी रहती है। वैसे तो जिला चिकित्सालय में मरीजों की हमेशा लम्बी कतार लगी रहती हैं। सुबह से मरीज ओपीडी में बैठकर डॉक्टरों का इंतजार करते रहे। कई बार तो सुबह से देर शाम तक डॉक्टरों के नहीं आने पर कई लोग तो बिना उपचार कराए ही वापस चले जातें हैं। गौठान से डॉक्टर को स्वास्थ्य दिखाने आई युवती कमलती ने बताया कि वह साढ़े 9 बजे से डॉक्टर के आने का इंतजार कर रही है। कक्ष में डॉक्टर नहीं है तो फिर किसे दिखाऊं…? अस्पताल में अक्सर ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। बच्चे को इंजेक्शन लगवाने वाले भी अकसर सुबह 9 बजे से आकर डाक्टरों को ताकते रहते हैं। डाक्टरों के कक्ष में बैठने का इंतजार करते रहे। बीते दिनो मोबाइल टार्ज में हुई महिला की डिलेवरी की घटना को लेकर हुई अपने विभाग की फजी़हत के बाद जिला चिकित्सालय बैतूल अधिक्षक द्वारा रानीपुर अस्पताल में एक महिला के प्रसव में लापरवाही के मामले में पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पारानी को तलब किया है। सीएमएचओ डॉ. डीके कौशल ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र रानीपुर में पदस्थ चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीमती पुष्पारानी सिंह को निर्धारित मुख्यालय पर नियमित न रहने, स्वास्थ्य केंद्र में रात में दरवाजे पर हुए एक प्रसव में लापरवाही के मामले में कारण बताओ नोटिस दिया है। सीएमएचओ ने नोटिस में डॉ. पुष्पारानी को निर्धारित मुख्यालय पर निवास कर मरीजों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने तथा अधीनस्थ कर्मचारियों का मुख्यालय पर निवास सुनिश्चित करने के लिए भी पाबंद किया है। परिवार कल्याण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में उदासीनता एवं लापरवाही बरतने के मामले में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र प्रभातपट्टन में पदस्थ एलएचवी रेणुका कातलकर तथा महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सत्यफुला देशमुख को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। सीएचएमओ डॉ. डीके कौशल ने बताया कि निलंबन अवधि में दोनों कर्मचारियों का मुख्यालय जिला अस्पताल बैतूल होगा।  इतना सब कुछ होने के बाद भी हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी तो बैठे मिले, लेकिन डॉक्टर नहीं आए। समय में परिवर्तन के बावजूद डॉक्टरों ने अपनी सीटों पर बैठकर ही आवेदनोंं पर हस्ताक्षर किए और टाइम पर निकल गए। हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड के बैठने के समय में प्रभारी मंत्री के निर्देश पर परिवर्तन कर दिया गया है। इससे अब बोर्ड सुबह 9 से 1 बजे की जगह 4 बजे तक लगेगा। यह परिवर्तन मेडिकल व विकलांग सर्टिफिकेट बनाने आने वाले लोगों की सुविधा के लिए किया गया था। इस मंगलवार को लगे मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी बैठकर सील-सिक्के लगाते रहे, लेकिन डॉक्टर नहीं बैठे। दूर-दराज से आने वाले लोगों को प्रमाण पत्रों पर सील-सिक्के लगाने के बाद डाक्टरों को ढूंढते रहना पड़ा। डाक्टरों ने ओपीडी में बैठकर प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षकर करने का काम निपटाया और एक बजे राइट टाइम पर घर रवाना हो गए। मेडिकल बोर्ड के नियम के मुताबिक डॉक्टरों को बोर्ड में बैठना चाहिए, लेकिन वे बोर्ड में न बैठकर ओपीडी में हस्ताक्षर करते रहे। जिन व्यक्तियों को डॉक्टर मिल गए तो उनके प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षर हो गए, लेकिन जिन्हें नहीं मिले उन्हें भटकते रहना पड़ा। मुलताई चूनाभट्टी गांव के रमेश अपनी विकलांग बेटी का प्रमाण पत्र बनाने आए थे। उनके प्रमाण पत्रों पर सील सिक्के तो लग गए थे, लेकिन डाक्टरों के हस्ताक्षर कराने उन्हें कक्षों में परेशान होते रहना पड़ा। मेडिकल बोर्ड में सिविल सर्जन डॉ. डब्ल्यूए नागले, डॉ. ओपी माहोर, डॉ. पीके कुमरा, डॉ. डीटी गजभिए, डॉ. के बाजपेयी, डॉ. श्रीमती आर गोहिया, आरएमओ डॉ. एके पांडे सदस्य हैं। मंगलवार की शाम 4 बजे बोर्ड कक्ष में डॉ. बाजपेयी और अस्पताल परिसर में डॉ. नागले नजर आए। इनके अलावा कोई डॉक्टर नहीं था। मेडिकल बोर्ड की दीवार पर प्रमाण पत्र बनाने की सूचना के संबंध में चस्पा पर्चें में टाइम टेबल नहीं बदला गया। इस पर्चे पर सुबह 9 से 1 बजे का टाइम लिखा हुआ था। इससे लोग भ्रमित होते नजर आए। जबकि टाइम सुबह 9 से 4 बजे तक का हो चुका है। इसे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। मेडिकल बोर्ड के सदस्य डॉक्टरों ने ओपीडी में पहुंचने वाले लोगोंं के प्रमाण पत्रों के बनाने का काम निपटाया। दोपहर 1 बजे तक 35 विकलांग और 28 मेडिकल प्रमाण पत्र बनाए। इसके बाद कोई प्रमाण पत्र नहीं बन सके। क्योंकि 1 बजे ओपीडी बंद हो जाती है। बोर्ड का समय 4 बजे का होने के बावजूद डॉक्टर नहीं आए। इससे 1 बजे के बाद आने वाले लोगों को परेशान होना पड़ा। वे डाक्टरों के बैठने का इंतजार करते रहे। विकलांगता श्रेणी में मिलने वाली छूट एवं फायदों के लिए अब अपात्र भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। यही कारण है कि अस्पताल के आसपास दलालों की सक्रियता भी बढ़ गई है। 40 प्रतिशत विकलांगता की पात्रता के लिए लोग जहां बार-बार अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। वहीं इनकी हर सप्ताह बढ़ती संख्या से जिला मेडिकल बोर्ड भी खासा चितिंत है। विकलांगता प्रमाण-पत्र से मिलने वाले लाभ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब प्रमाण-पत्र बनाने की कतार में फै्रक्चर और मामूली विकलांगता वाले भी खड़े नजर आ रहे हैं। जिला मेडिकल बोर्ड का कहना था कि अधिकांश लोग लाभ के लिए प्रमाण-पत्र बनवाना चाहते हैं। यहीं कारण है कि एक बार अपात्र घोषित कर दिए जाने के बाद भी वे दोबारा यहां आ रहे हैं। जिससे ?से लोगों की संख्या बढ़ रही है। विकलांगता प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए हर मंगलवार को करीब एक सैकड़ा से अधिक लोग जिला अस्पताल के चक्कर काटते हैं। जबकि नियमानुसार जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा 40 प्रतिशत से ऊपर विकलांगता होने पर ही प्रमाण-पत्र जारी किए जाते हैं, लेकिन कुछ लोग विकलांगता प्रमाण-पत्र का लाभ लेने अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। देखने में आ रहा है कि अपात्र लोग भी विकलांगता प्रमाण-पत्र बनाने के लिए आ रहे हैं। बार-बार इनके आने से अस्पताल में भीड़ बढ़ जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए अब जिला चिकित्सालय बैतूल में कम्प्यूटर फिडिंग के संबंध में भी विचार किया जा रहा है ताकि ?से लोग आसानी से पकड़े जा सके।

खुले आम बेची जा रही है कुत्तामार ज़हरीली अवैध कच्ची शराब
शराब ठेकेदार के मैनेजर के संरक्षण में चल रहा है औद्योगिक क्षेत्र में अवैध कारोबार
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बड़ नगर पालिका सारनी में बीते एक दशक में अवैध कच्ची कुत्तामार ज़हरीली शराब से तीन सौ से अधिक लोगो की मौतो के बाद भी सबक नहीं सीख पाए आबकारी एवं पुलिस विभाग की मिली भगत से बड़े पैमाने पर गली – गली में बिक रही यूरिया , नौसादर , सल्फर , एसीड़ , खटमल मार दवा एवं चुहामार दवा के कथित उपयोग से तेज एवं नशीली शराब बना कर बेचने का गोरखधंधा किसी दिन किसी बड़े हादसे को जनम दे सकता है। बैतूल जिले के संवेदनशील औद्योगिक क्षेत्र सारनी एवं पाथाखेड़ा की गलियों में लगातार बड़े पैमाने पर बिकने वाली कच्ची अवैध , ज़हरीली कुत्तामार के नाम से पहचानी जाने वाली शराब अब नकली पेंकिग करके शासकीय देशी एवं विदेशी मदिरा की दुकानो से भी बेचने वाले बड़े गिरोह का खुलासा किया है। बताया जाता हैं कि भोपाल की बहुचर्चित सोम डिस्लरी के एक निकटवर्ती मेसर्स बाना सिंह के नाम पर लिए गए शासकीय देशी एवं विदेशी मदिरा के ठेके का मैनेजमेंट देखने वाले हरियाणी मनोज शर्मा के कथित संरक्षण में उक्त अवैध कारोबार चल रहा है। शासकीय शर्तो पर कथित घाटे के बाद भी ठेका लेने का बहाना बनाने वाले शासकीय ठेकेदार के मैनेजर ने कथित घाटे से ऊबरने के लिए हजारो लोगो को मौत के मुंह में धकेलने का बीड़ा उठा लिया हैं। बड़े पैमाने पर औद्योगिक क्षेत्र सारनी – पाथाखेड़ा – बगडोना एवं सलैया तक चल रहा अवैध कारोबार किसी दिन किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं इस बात से बेपरवाह शराब माफिया को सत्ताधारी दल के नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों का संरक्षण भी मिला हुआ हैं। वैसे भी वेस्टर्न कोल फिल्ड लिमीटेड पाथाखेड़ा एवं एमपीइबी सारनी के 36 वार्डो में सस्ती अवैध कच्ची शराब का कारोबार कोई आज की बात नहीं हैं। लेकिन इस बार तो सारी हदे पार करके शराब ठेकेदारो की आपसी लड़ाई का फायदा उठा कर स्वंय की दुकानो को घाटे में दिखा कर हरियाणी शर्मा जी ने तो दोनो हाथो से माल बटोरने का मूलमंत्र अपना लिया हैं। भोपाल की बहुचर्चित सोम डिस्लरी कंपनी के हरियाणी मैनेजर मनोज शर्मा के संरक्षण में पुलिस एवं आबकारी विभाग की मिली भगत से बड़े पैमाने पर चल रहा यह धंधा कब रूक सकेगा कहना असंभव हैं। अवैध कच्ची शराब के चलते बीते दस वर्षो में तीन सौ से ज्यादा लोगो की अकाल मौते हो चुकी है जिसमें दो दर्जन से अधिक वेकोलि के कामगार है। सल्फर और एसीड के मिश्रण से बनने वाली कुत्तामार देशी शराब की लागत प्रति बाटल पांच रूपए आती हैं लेकिन वहीं शराब बोतलो में सिलबंद करके बीस रूपए में बेची जा रही हैं। वैसे शासकीय देशी मदिरा वर्तमान में 25 रूपए से 30 रूपए तथा विदेशी मदिरा 70 से 80 के बीच में बिकती है लेकिन पेकिंग मशीन से ज़हरीली कुत्तामार अवैध शराब सरकारी लेबल लगा कर बेचने से शराब ठेकेदार एवं राज्य सरकार के आबकारी विभाग को भी भारी नुकसान हो रहा हैं। हालाकि पूरे बैतूल जिले में शराब माफिया और सरकारी शराब ठेकेदारो के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा के चलते आमला , बैतूल , शाहपुर , मुलताई , जमाई क्षेत्र की देशी – विदेशी शराब के अवैध कारोबार को रोकने में असफल सिद्ध हुआ पुलिस एवं आबकारी विभाग बड़े पैमाने पर सारनी नगर पालिका क्षेत्र के 36 वार्डो में अवैध कारोबार को संचालित करवा रहा हैं। सारनी नगर पालिका क्षेत्र में अभी तक आबकारी विभाग एवं पुलिस विभाग की कथित छापामारी का पंचनामा एवं जप्ती रिकार्ड का अवलोकन करे तो पता चलता हैं कि सोम कंपनी एवं मेसर्स बानासिंह की आड़ में सोम में चल रहे इस अवैध कारोबार की एक मोटी रकम कपंनी के हरियाणी मैनेजर मनोज शर्मा की जेब में जा रही हैं। इसके पूर्व सारनी की शासकीय एवं विदेशी शराब का ठेका ग्वालियर की शिवहरे कंपनी के पास था लेकिन पिछले दो साल से लगातार कथित घाटे में चल रही सोम एवं बानासिंह की कंपनी को होने वाला कथित घाटा उनके ही लोगो द्वारा पहुंचाया जा रहा हैं। कुल मिला कर अपने ही लोगो के द्वारा अपनी कब्र को खुदवाने का काम सारनी पाथाखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में हो रहा हैं। वैसे एक बात तो सच हैं कि भोपाल की सोम डिस्लरी अपने गुर्गो की आड़ में ही शराब के ठेके लेती तो जरूर है लेकिन उनके ही कर्मचारी उन्हे गर्त में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

गाढ़ी कमाई के बाद बन गए है मुन्नाभाई
बैतूल, रामकिशोर पंवार: संजू बाबा की फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस की तर्ज पर बैतूल जिले के एक आयुवैदिक कालेज द्वारा फर्जी तरीके से फर्जी डाक्टर बनाने के एक गोरखधंधे का बीते दिनो खुलासा हो गया। मेडिकल कालेज की मान्यता निरस्त होने के बाद मेडिकल के छात्रो को मीरिंडा का छटका जोर से लगा। अपने उज्जवल भविष्य के सुखद सपनो एवं अपने अभिभावकों की गाढ़ी कमाई का लाखों रूपया खर्च कर डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने आए अनेक छात्रों ने कालेज प्रबंधन की पोल खुलने के बाद अपना उग्र रूप दिखा दिया। छात्रों के उग्र रूप के आगे कॉलेज प्रबंधन छात्रों के सवालो का जवाब देने के बजाय बगले झांकते नज़र आ रहा है। अब कालेज की अव्यवस्थाएं देखते हुए उनका यह सपना कभी न पूरा होने की मनोस्थिति में छात्रों का उग्र रूप लेना स्वभाविक है जो किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं। नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले का एक मात्र तथाकथित ओम आयुर्वेदिक कॉलेज के छात्रों आरोप है कि कालेज प्रबंधन हमें भी मुन्नाभाई की तरह फर्जी डाक्टर बना रहा है। उनका कहना है कि यहां से पढ़कर निकलने के बाद उनके पास डिग्री जरूर होगी लेकिन उनके द्वारा किया जाने वाला इलाज किसी भी किसी बंगाली या फिर नीम हकीम डाक्टर की तरह ही होगा। सबसे विचित्र बात यह हैं कि जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर चल रहे इस फर्जीवाड़े में बैतूल जिले के कई नामचीन लोग शामिल है। ओम आर्यर्वेदिक कालेज की मौजूदा स्थिति यह हैं के यहां पढ़ाने के लिए एक शिक्षक भी नहीं है। आन्दोलित कॉलेज के छात्रों के अनुसार यह स्थिति हमेशा से ही रही है। इन छात्रों को हर साल मेडिकल से जुड़े हुए दस सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए कम से कम दो-दो शिक्षक हर सब्जेक्ट में एमडी विशेषज्ञ के रूप में होना चाहिए। मौजूदा परिस्थिति में छात्रों के द्वारा किताबों से रट्टा मारकर परीक्षाएं तो पास कर ली जाती हैं लेकिन पास बेसिक ज्ञान न होने की वज़ह से उनकी तुलना भी आगे चल कर मुन्ना भाई की तरह ही होगी। मेडिकल कालेज के तृतीय वर्ष एक छात्र ने बताया कि पिछले तीन साल में मेडिकल कॉलेज के अंदर महज एक दिन प्रेक्टिकल हुआ और उसमें भी कहीं कुछ भी नहीं बताया गया। जबकि हर सब्जेक्ट में मेडिकल में प्रेक्टिकल का होना अनिवार्य है। सफेद हाथी साबित हो रहे मेडिकल कालेज परिसर के अस्पताल में कुछ भी नहीं होता है। स्थिति तो यहां पर यह हैं कि इस अस्पताल में आज तक कभी कोई मरीज भर्ती नहीं हुआ हैं। इंटरशिप तो कभी किसी छात्र को कॉलेज में नहीं करवाई गई। यहां पर पढ़ाई जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। फीस जरूर पूरी ली जाती है। परीक्षा और प्रेक्टिकल फीस की रसीद तक नहीं दी गई।  डॉ. जीडी राठी, सचिव प्रबंध समिति ओम आयुर्वेदिक कॉलेज
का कहना हैं कि उनके पैसे की कमी की वजह से शिक्षकों और व्यवस्थाओं को पूरी नहीं कर पा रहे हैं, उसके बाद भी हमारा रिजल्ट सबसे अच्छा रहता है।

सारणी ताप बिजली घर की जहरीली राख से नर्मदा , तवा , देनवा प्रदूषित
राख से खाक हो गई दर्जनों गांवों की आबादी
बैतूल  (रामकिशोर पंवार) अगर आपको परम पूज्यनीय सलिला माँ नर्मदा के स्नान के बाद खुजली होने लगे तो समझ लीजिये कि सारणी ताप बिजली घर की राख ने कमाल कर दिया .विचारणीय प्रश्र है कि सारणी ताप बिजली घर की राख से होशंगाबाद जिले का बहुचर्चित तवा नगर स्थित तवा जलाशय दिन – प्रति दिन तवा नदी में मिल रही राख के कारण वह आने वाले कल में अगर राख का दल-दल बन जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी . बैतूल जिले में स्थित सतपुड़ा ताप बिजली घर सारणी के जिम्मेदार अधिकारियों को कई बार नदी के बहते जल में राख ना बहाने की चेतावनी तक तवा जलाशय की ओर से दी जा चुकी है लेकिन आज भी राख का हजारों टन का बहाव जारी है. बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के जिला संयोजक पर्याविद एवं बैतूल जिला पर्यावरण वाहिणी के जिला सदस्य ने शासन को देनवा नदी के संरक्षण के लिए 1 करोड़ 35 लाख की एक योजना भेजी थी जिसमें नदी की साफ सफाई तथा निकाली गई राख से रोजगार केन्द्र खोल कर बेरोजगारी को दूर करने का सुझाव भेजा जा चुका है लेकिन पर्यावरण मंत्री बदल गये लेकिन सुझाव पर आज तक किसी प्रकार का अमल नही हो सका . पूर्व वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री सुश्री मेनका से लेकर कमलनाथ तक को सारनी ताप बिजली घर क राख से अपना स्वरूप खो चुकी देनवा नदी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट कई बार भेजी जा चुकी है लेकिन राख से खाक हो रहे जल जीवन पर आज तक कोई भी सरकार इस दिशा में ठोस कारगर योजना नहीं बन सकी है . सारणी बिजली घर की चिमनियों से निकलने वाली राख से सारनी के आस पास के दर्जनों गांव प्रभावित है. राख में खाक हो रहा जन जीवन दिन प्रतिदिन मौत की आगोश में समा रहा है. मीलों दूर तक खेतों में जमी राख ने गरीब आदिवासी मजदूर किसानो की फसल के साथ साथ जानवरों का चारा-पानी तक को जहरीला बना दिया है.जब इस ताप बिजली घर की स्थापना हुई थी तब उन आदिवासियों को भरोसा दिलाया गया था कि यह पावर हाउस उनकी जिंदगी में उजाला ला देगा लेकिन उजाला तो दूर रहा इन आदिवासियों की जिंदगी में काला अंधकार छा गया है. इस क्षेत्र के रहवासियो के दुधारू और खेती में उपयोगी जानवर राख युक्त पानी तथा चारा खाकर घुट-घुट कर मर रहे है. वहीं दूसरी ओर उन्हें फसल के उत्पादन के प्रतिशत में लगातार आ रही गिरावट के साथ साथ उनके जीवन यापन पर भी भारी संकट आ खड़ा है. राख ने मानव के शरीर से लेकर जानवरों तक के शरीर में घुस कर उसके फेफड़ों एवं आतों तक में बारीक छेद कर डाले है. एक जानकारी के अनुसार सारणी ताप बिजली घर से प्रति दिन हजारों टन राख पानी के साथ पाईप लाइनों के जरिये बांध में बहा दी जाती है. इससे बांध एक प्रकार से दल-दल बन गया है. जिसमें जानवर धंस कर मर रहे है. राख बांध की लागत करोड़ों में आंकी जाती है लेकिन मजेदार तथ्य यह ह कि इस बांध में इतना पैसा खर्च हो चुका है कि इतनी लागत से कम से कम चार-पांच इस जैसे राख बांध बनाये जा सकते थे.हर साल बरसात में राख बांध तोड़ जाता है ताकि, ओवर फोलो राख का बहाव बांध को ही बहाकर ना ले जाये. जानकार सूत्रों ने बताया कि देनवा, फोपस, तवा एवं नर्मदा तक इस राख से प्रभावित होकर राख युक्त सफेद पानी तथा जहरीले रासायनिक पदार्थो के कारण यह नदियां जहरीली बन रही है. अब अगर आपको नर्मदा के स्नान के बाद खुजली होने लगे तो समझ लीजिये कि सारणी की राख ने कमाल कर दिया. सारणी की राख से तवा नगर का जलाशय राख का दल-दल बनते जा रहा है. सारणी बिजली घर के अधिकारियों को कई बार राख न बहाने की चेतावनी तवा जलाशय की ओर से दी जा चुकी है लेकिन हजारों टन राख का बहाव जारी है. सारणी ताप बिजली घर की राख ने मोरडोंगरी, विक्रमपुरी, धसेड़, सलैया, सीताकामथ, चोर कई गांवों को अपनी आगोश में जकड़ लिया है. सारणी ताप बिजली घर की राख के कारण प्रदूषित नदियों का मामला प्रदेश की विधानसभा में उठाया जा चुका है. बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति तथा देनवा बचाओं समिति के द्वारा की गई पहल पर इटारसी के भाजपा के तत्कालिन विधायक डाक्टर सीताशरण शर्मा ने विधानसभा में जब देनवा नदी के मामले पर शासन को गलत जानकारी देने के लिये लताड़ते हुए देनवा नदी की एक वीडियो कैसेट दी तब जाकर उस समय के राज्य सरकार के पर्यावरण मंत्री को यह स्वीकार करना पड़ा कि प्रदेश की 10 प्रदूषित नदियों में देनवा भी शामिल है. देनवा बचाओं अभियान से जुड़े पर्याविद का कहना है कि शासन ने आज तक दस प्रदूषित नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये कोई खास कारगार योजना नहीं बनाई है. सारणी की राख से प्रभावित नदियों के लिये महामहिम राष्टï्रपति को हजारों पोस्टकार्ड लिख चुकी बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति ने शासन को देनवा नदी के संरक्षण के लिये 1 करोड़-35 लाख की एक योजना भेजी थी जिसमें नदी की साफ सफाई तथा निकाली गई राख से रोजगार केन्द्र खोल कर बेरोजगारी को दूर करने का सुझाव भेजा था. पूर्व में तत्कालिन वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री सुश्री मेनका से लेकर वर्तमान केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को तक देनवा नदी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भेजी जा चुकी है लेकिन राख से खाक हो रहे जल जीवन पर आज तक कोई ठोस कारगर योजना नहीं बन सकी है. सारणी की राख को लेकर सतपुड़ा ताप बिजली घर भी चिंतित है लेकिन मंडल के पास ठेकेदारों के राख निकासी के फर्जी बिलों के भुगतान करने के अलावा कोई योजना नहीं है. मंडल प्रतिवर्ष तवा जलाशय एवं राख नाले में राख के निकालने तथा राख बांध के रख-रखाव के साथ साथ बांध की ऊंचाई बढ़ाने के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च करता है. राख बांध के पानी की रिसायक्लीन योजना भी फेल हो गई है. अब सारणी ताप बिजली की राख से प्रभावित ग्रामवासी राख से नष्टï हो रहे जल जीवन से दुखी होकर पलायन करते जा रहे है.अपने पूर्वजो की अनमोल धरोहर को छोड़कर भविष्य को बचाने के लिये गांवों को छोड़कर जाने से इन गांवों में चीखता सन्नाटा इस बात का संकेत देता है कि गांवों में मौत का कहर शुरू हो चुका है यही कारण कि यहां के ग्रामीण पलायन कर चुके ह

एक ही स्थान बरसने वाला पानी दो अलग – अलग सागरो में मिलता है
बैतूल  (रामकिशोर पंवार) अगर हम देश – दुनिया की बात करे तो यह कोई दावा नहीं कर सकता है कि वहां पर ऐसा भी स्थान होगा जहां पर गिरने वाला बरसाती पानी दो अलग – अलग सागरो में गिरता होगा। अखंड भारत का केन्द्र बिन्दु कहे जाने वाला बैतूल जिला का बरसाली सेन्र पाइंट से नागपुर की ओर जाने वाले रेल मार्ग पर बरसाली – आमला – जौलखेड़ा और उसके बाद मुलतार्ई रेल्वे स्टेशन के करीब में बना सरकारी सर्किट हाऊस की छत पर गिरने वाला बरसाती पानी दो अलग – अलग सागर में ताप्ती और महानदी के माध्यम से मिलता है। इस सर्किट हाऊस की छत के एक छोर का पानी ताप्ती सरोवर होता हुआ ताप्ती नदी के माध्यम से अरब सागर तथा दुसरे छोर का पानी मोंगया नाले से होता हुआ वर्धा नदी और वर्धा से होता हुआ महानदी में मिलता है जो बाद में महानदी के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में जा मिलता है। यह स्थान सतपुड़ा पठार कहा जाता है जो कि उत्तर में 21 अंक्षाश 48 अक्षंाश पूर्व में 78 अंक्षाश एवं 48 अंक्षाश में स्थित 790 मीटर ऊँची पहाड़ी है जिसे प्राचिनकाल में ऋषिगिरी पर्वत कहा जाता था जो बाद में नारद टेकड़ी कहा जाने लगा। इस स्थान पर बना सर्किट हाऊस समुद्री सतह से 2526 फीट की ऊंचाई पर है।

बैतूल जिले में सिमी का नेटवर्क: सारनी ताप बिजली घर और आमला एयर फोर्स
स्टेशन निशाने पर कटट्र पंथी मुस्लीम युवको प्रेस कार्ड को बनाया बचाव का जरीया
बैतूल  (रामकिशोर पंवार) मध्यप्रदेश में सिमी के बढ़ते नेटवर्क के दायरे में बैतूल जिले के वे शिक्षित – अनपढ़ कटट्रपंथी अपराधिक छबि के युवको को शामिल किये जाने की $खबर है जिनका काम दिन भर कालेज और शहर में गटरमस्ती करना होता हैै। ऐसे खर्चिले नवयुवको को जिनका अपराधिक रिकार्ड काफी खराब है इन लोगो को प्रेस का कार्ड बनवा कर सिमी के लोग बैतूल जिले में अपना सूचना तंत्र स्थापित कर चुके हैै। बैतूल जिले के विभिन्न पुलिस थानो के दर्ज अपराधो पर गौर करे तो पता चला है कि जिन मोटर साइकिलो को बम के धमाको में शामिल किया जाता है ऐसी मोटर साइकिलो की चोरी की वारदाते बैतूल जिले में बीते पांच माह में तीन दर्जन से अधिक हो चुकी हैै। कई बार पुलिस को संदिग्ध परिस्थितियों में मोटर साइकिले मिल चुकी हैै। बैतूल जिले में भलें ही अभी तक बम के धमाको की गूंज जिले की पुलिस को जागरूक करने के लिए नहीं सुनाई पड़ी हो लेकिन सच्चाई से नकारा भी नहीं जा सकता कि बैतूल जिले से होने वाली इंटरनेशनल कालो में बैतूल जिले के कई क्षेत्रो का उल्लेख हुआ हैै। जिले से उज्जैन एवं इंदौर को होने वाली हर दुसरी – तीसरी काल से ज्यादा महत्वपूर्ण है । जिले से बंगलादेश को होने वाली इंटरनेशनल काले जो कि कहीं न कहीं संदेह को जन्म देती हैै। बैतूल जिला प्रशासन को इस बात की पूर्व में जानकारी है कि जिले के  36 शरणार्थी केम्पो में बसे शरणार्थी बंगाली परिवारो की आड़ में जिले में कई बंगलादेशी मुसलमान चोरी – छीपे नाम और शक्ल बदल कर बसे हुये हैै। बैतूल जिले में सुरक्षा की दृष्टिï से अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील क्षेत्र सारनी ताप बिजली घर एवं आमला स्थित बोडख़ी एयरफोर्स स्टेशन में आज भी लोगो का बेरोक – टोक आना – जाना बरकरार है। पूर्व में भी बैतूल जिले के अल्पसंख्यक परिवार के कबाडिय़ो ने दोनो ही संवेदलशील क्षेत्र से कबाड़ा के चक्कर में ऐसे सामानो को चुरा लिया था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। बैतूल जिले की पुलिस के कई आला अफ सरो से जिले में कार्यरत सिमी के  नेटवर्क से जुड़े लोग सम्पर्क बनाये हुये हैै। मध्यप्रदेश पुलिस को उज्जैन एवं इन्दौर मेें पकड़ाये एक सदस्य से बैतूल जिले में कार्यरत उनके नेटवर्क के बारे में जानकारी मिली थी जिसकी सूचना कई बार राज्य शासन की गुप्तचर शाखा भी दे चुकी है लेकिन बेपरवाह – लापरवाह पुलिस को बैतूल जिले मेे ऐसे हादसो को रोकने से कोई मतलब नही। बैतूल के पूर्व नगर निरीक्षक आरपी अग्रवाल ने जिला मुख्यालय के एक अल्पसंख्यक परिवार के आदतन अपराधी के जिला बदर की कार्यवाही शुरू की लेकिन बाद वही अपराधी भोपाल के किसी समाचासर पत्र का पत्रकार बन कर उसने अपने अपराधी पत्रकार पिता एवं उसके दोस्तो से कलैक्टर एवं पुलिस अधिक्षक पर दबाव बना कर जिला बदर की कार्यवाही की पूरी नस्ती बंद फाइल ही गायब करवा दी। बैतूल जिले की पुलिस को सिमी के नेटवर्क पर तथा दोनो महत्वपूर्ण क्षेत्रो की सुरक्षा के प्रति सजग रहना चाहिये। इसके पूर्व भी मुस्तफा नामक युवक के बारे में पुलिस को गुप्तचर शाखा से जानकारी मिली थी जिसको राजनैतिक एवं कुछ स्थानीय अफसरो के दबाव के चलते ठंडे बस्ते में प्रकरण को डाल दिया गया। अनेको अपराधो में लिप्त इस युवक के परिवार के सदस्य कुछ साल पहले तक वन विभाग के एक कार्यालय के सामने चाय बेचा करते थे लेकिन अचानक इस परिवार की माली हालत में सुधार तथा दिन भर आवारा लड़को के साथ कालेज रोड़ पर गटरमस्ती तथा अनाप – शनाप खर्च के बारे में पूर्व जिला पुलिस अधिक्षको को बैतूल गंज पुलिस चौकी एवं बैतूल थाना में पदस्थ कर्मचारियो ने बकायदा सूचित किया था लेकिन पुलिस विभाग के अफसर किसी बड़ी अप्रिय घटना के इंतजार में सारे मामले को दर किनार किये हुये है।

मधुमक्खियों के दोस्त बने पातालकोट ग्रामीण
पातालकोट छिन्दवाड़ा  (रामकिशोर पंवार) . जहाँ पर सूर्य की किरण भी सूर्यास्त के समय पहँुचती हों वहाँ पर आम आदमी का पहँुच पाना असंभव था आज उसी छिन्दवाड़ा जिले के पातालकोट क्षेत्र के दर्जनो गांवों में रहने वाले आदिवासी परिवार के कई लोगो ने अपनी तकदीर को बदलने के लिए मधुमक्खियों से दोस्ती कर ली है . ऐसा करने से उन्हे रोजी – रोटी के साथ – साथ उनके जन – जीवन में आई मिठास का भी अहसास होना शुरू हो गया है . बीते कल तक जिस शहद के कारण इन आदिवासियो को मधुमक्खियों की जान लेनी पड़ती थी आज उन्ही मधुमक्खियों से दोस्ती करके छिन्दवाड़ा जिले की परासिया तहसील के तामिया विकासखण्ड के पातालकोट क्षेत्र के दूर दराज के  कई गांवो में आदिवासी परिवारो की मेहनत रंग लाई है जिसके चलते इस क्षेत्र में मधुमक्खियों की संख्या भी दिनोदिन बढ़ती जा रही है . घने जंगलों के बीच रहने वाले पातालकोट क्षेत्र के आदिवासियों की प्रमुख जीविका के साधनों में शहद तोडऩा और बेचना प्रमुख है . शहद को तोडऩे के लिए जहाँ एक ओर मधुमक्खियों के झुण्ड को भगाने के चक्कर में कई बार मधुमक्खियों के हमले और उसके डंक से जान तक के लाले पड़ जाते है वहीं दुसरी ओर इन ज़हरीली मधुमक्खियों के झुण्ड के नीचे आग लगा कर धुआँ करके उन्हे मार – भगा कर ही शहद तोड़ा जा सकता था . कुछ जागरूक संगठनो एवं विज्ञान की नई तकनीक से शहद तोडऩे के तौर – तरीके में आये अमूल- चूल बदलाव के कारण आदिवासियों का मधुमक्खियों से चली आ रही बरसो पुरानी दुश्मनी अब मित्रता में बदल गई है . आदिवासी हनी हंटर्स गु्रप ने पचमढ़ी, पातालकोट क्षेत्र में मधुमक्खियों की संख्या बढ़ा दी है. पातालकोट के गैलडुब्बा निवासी सुंदरलाल भारती कहते है कि बासन घाटी में पहले जहां तीन छत्ते लगते थे अब इनकी संख्या बढ़कर 16 हो गई है. पातालकोट जैसी स्थिति सांगाखेड़ा और बोदलकछार गांव की भी है. परंपरागत शहद तोडऩे की विधि में छत्ते को मधुमक्खियों सहित जला दिया जाता था. जले हुए छत्ते में मधुमक्खियां दोबारा नहीं आती है. जलाने से अंडे और मक्खियां नष्टï हो जाते है. विज्ञान सभा ने इस क्षेत्र में नई तकनीक की जानकारी आदिवासियों को देकर हनी हंटर्स नाम के 15 गु्रप बनाए है.
नई तकनीक से शहद निकालने की विधि में छत्ते का शहद वाला भाग काट लिया जाता है. इससे छत्ते और मधुमक्खी के साथ उनके अंडे बच जाते है. इस काम को अंजाम देने वाले लोग विशेष ड्रेस पहनते है वे पहले छत्ते को इसलिए जलाते है कि मधुक्खियां उन पर हमला न करेें. पातालकोट में शहद तोडऩे का काम करने वाले सुखपाल बुनकर कहते है कि पहले एक च्ंिटल शहद नहीं मिलता था. अब पहली ही खेप में मधुमक्खियां की बढ़ी संख्या के कारण छह च्ंिटल शहद इक_ïा हुआ है . एक जानकारी के मुताबिक मधुमक्खियों की प्रजातियों में भंवर मक्खियां उग्र होती है. शहद तोडऩे में कई लोगों ने मक्खियों के डंक से जान गंवाई है. हनी हंटर्स गु्रप बनाकर नई तकनीक से आदिवासी जब से काम कर रहे है तब से एक भी जान नहीं गई है. आल्मोद गांव के बुधमान कहते है कि मधुमक्खियों को दोस्त बनाने से हमें लाभ हुआ है

सूर्यपुत्री माँ ताप्ती की घाटियो में छुपी प्राचिन सभ्यताओं का प्रतीक है ग्राम डोहलन
सचित्र रिर्पोट :- रामकिशोर पंवार
मुलताई (बैतूल)। विश्व पटल पर देखने से पता चलता है कि अनेक सभ्याताओं का उदय और विनाश नदियों के किनारे हुआ है। विश्व की अनेक प्राचिन सभ्यता चाहे सिंधु घटी की सभ्यता हो या फिर किसी अन्य की प्राचिन सभ्यता इन सब की पोषक नदियाँ रही है। नदियो के किनारे जन्मी अनेक सभ्यताओं से जुड़े किस्से कहानियों में भारत की सबसे प्राचिन नदी सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का भी नाम आता है। आज यही कारण है कि ताप्ती तटों पर प्राचीन समृद्ध सभ्यताओं के अवशेष अकसर बिना किसी खुदाई या खोज के अकसर लोगो का मिलते है। वास्तुकला के अमुल्य खजानों से ओत- प्रोत सूर्यपुत्री माँ ताप्ती के तटो पर मिलने वाले प्राचिन मठ – मंदिर एवं अवशेषो को देखते ही उसके प्राचिन इतिहास की फिलम इआँखो के सामने चलने लगती है। भारतीय पौराणिक एवं प्राचीन संस्कृति की अमोल धरोहर कही जाने वाली वास्तुकला एवं शिल्प कला की बेजोड़ मिशालें कहलाने वाली इन अद्धितीय कला कृतियों के निमार्ण के साथ – साथ इनके आज तक नष्ट न हुये सौंदर्य को देखते ही इस बात का अंदाजा उन अमीट साक्ष्यो से लगाया जा सकता है सदियों के बाद भी इन कला कृतियों का वैभव पूर्ण रूप से नष्ट होने की कगार पर आ जाने के बाद भी ए आज भी ज्यो – के त्यो खड़े अपने इतिहास के पन्नो में छपी कहानी – किस्सो को बयाँ करते है। कई बार समाचार पत्रो एवं जागरूक संगठनो की उलाहना के बाद हाल हीं में मध्य प्रदेश सरकार के पुरातत्व विभाग ने इनकी सुध लेने की दिशा में पहल करने का मन बनाया। वह इन प्राचिन भारत की अनमोल धरोहर की सुध लेने एवं इन्हें सहजने के लिए भोपाल से आदिवाससी बैतूल जिले की ओर निकल पड़ा है। भोपाल – नागपुर नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले की मुलताई तहसील मुख्यालय के दक्षिण में लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम डोहलन में स्थित प्राचीन ऋषि महाराज के मंदिर माता माई मंदिर का जीर्णोद्वार की सुगबगाहट में जुटा मध्यप्रदेश सरकार का पुरात्व महकमा ने इस गांव पहँुचने के बाद कुछ सार्थक कार्य प्रारंभ किया है। पुरातत्व विभाग द्वारा धार्मिक आस्था के प्रतीक और प्राचीन वास्तुकला की धरोहर को सहजनें का प्रयास किया जा रहा है। ऋषि महाराज का मंदिर अत्यंत प्राचीन है और मंदिर के चारों और पत्थर पर बनी कलाकृतियों आज भी सहज ही मन मोह लेती है। इस मंदिर पर दत्तात्र भगवान राम नटराज और मॉ काली की पत्थर की बनी प्रतिमाएॅ है साथ ही अनेक कलाकृतियों में युद्ध का वृतांत एवं नृत्य के भाव-भगीमा को दिखाया गया है। वहीं माता माई के मंदिर के समक्ष लगा द्वार पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियों का बेजोड़ नमूना है इस कलाकृती को देखकर प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की समृद्धि का भान होता है। ग्राम डोहलन में जगह-जगह बिखरी पड़ी कलाकृतियों के रूप में सौंदर्य की प्रतिमाएॅं उत्कृष्ट कल्पनाओं का ऐसा संसार दिखाती है जिसे देख सहज ही मन विभोर हो जाता है। इस प्राचीन मंदिर को लेकर अनेक किस्से, कहानी और दंत कथाएॅं प्रचलित है।  ग्राम में जब भी कोई आपदा आती है तो ग्रामीण इस मंदिर में शरण लेते है और भक्ति भाव से की गई प्रार्थना के बाद लोगों का यह विश्वास है कि सभी आपदाएॅं टल जाती है। ग्रामिणो की आस्थायें कहती है कि गांव में चाहें कोई भी बीमारी का प्रकोप हो या अवर्षा की समस्या, ग्रामीण अपनी सभी समस्याओं का हल इसी मंदिर में खोजते है, लोगों का विश्वास है कि वर्षा ने होने पर ताप्ती का जल इस मंदिर में चढ़ाने से वर्षा हो जाती है। डोलहन ग्राम के लोगो की ऐसी मान्यता है कि इस गांव के प्राचिन इन मंदिरो का रिश्ता भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के वनवास काल से जुडा है। इस गांव के मंदिर के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालते हुए ग्रामिण बताते है कि यह मुनि विश्राम एवं रमण मुनि की तपों भूमि रही है। यहॉं मुनि मंदिर में विद्यमान शिव लिंग की पुजा किया करते थें, राजस्थान से आए उनके कुल भाटों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास आठ सौ सालों से भी अधिक पुराना है इस मंदिर से कभी कलांतर में पत्थरों की ही एक सीढ़ी हुआ करती थी, जो कि ताप्ती नदी के मध्य तक जाती थी, जिसके अवशेष आज भी ताप्ती तट पर देखे जा सकते है। ग्राम डोहलन वासियों का मानना है कि प्राचीन काल में यहाँ विशाल मंदिर रहा होगा। अनेक ग्रामीण कहते है वर्तमान में जो मंदिर दिखाई देता है इसके निचले भाग में विशाल मंदिर हो सकता है। जगह-जगह खड़े पत्थरों के आकर्षक खंबे इस विश्वास को पुख्ता करते है। ताप्ती नदी के मध्य बना चबूतरा सीढिय़ों के अवशेष एवं बावड़ी का अस्तित्व यह बताता है कि यहाँ कभी समृद्ध सभ्यता रही है, जिसें खोजे जाने की आवश्यक्ता है। बैतूल जिलें में पहली बार पुरातत्व विभाग भोपाल द्वारा प्राचीन संस्कृति की धरोहर का प्रयास किया जा रहा है। ऋषि महाराज मंदिर के चारों ओर पत्थरों का परकोटा बनाया जा रहा है। बेश किमती कलाकृतियों को सहज कर उचित स्थान पर लगाया जा रहें है। पुरातत्व विभाग से जुड़े लोगो का मानना है कि इस स्थान को संग्रहित एवं सुरक्षित रखने की ठोस कार्य योजना है, जिसका शीघ्र ही उदय होगा। फि लहाल पत्थरों का प्लेट-फार्म बनाया जा रहा है, एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक पत्थरों का ही मार्ग निर्माण किया जा रहा है

बैतूल से गुजरे थे श्री राम ..?
– रामकिशोर पंवार
बहुचर्चित रामसेतु परियोजना को लेकर उपजे विवाद की कड़ी में मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने भी उस रामपथ को खोजने की शुरूआत की है जो अयोध्या से चित्रकुट होता हुआ दण्डकारण क्षेत्र से पंचवटी होते हुआ रामेश्वरम जाता है . भगवान श्री राम जिस दण्डकारण क्षेत्र से होते हुये श्री लंका तक पहँुचे थे उस पथ में आने वाले क्षेत्रो में सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का बारह लिंग क्षेत्र भी आता है ..? इसी तथ्य को दावे के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है बैतूल जिले के उन चंद ताप्ती भक्तो ने जिनका दावा है कि भगवान श्री राम बैतूल जिले के जंगलो से होते हुये माँ ताप्ती को पार कर ही पंचवटी पहँुचे थे . अब यह प्रश्र उठता है कि क्या भगवान श्री राम बैतूल से गुजरे थे..? बैतूल के इतिहास से भली भांती परिचित कुछ जानकारो का दावा है कि श्री पंचवटी से लंका तक पहँुचने वाले उस रामपथ का बैतूल जिले से भी नाता है क्योकि  सतपुड़ा पर्वत की हरी-भरी सुरम्य वादियों में ऊंची-ऊंची शिखर श्रेणियों के मध्य से कल – कल कर बहती सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच धारा में बने बारह लिंगो की स्थापना के पीछे जो आम प्रचलित कथाये एवं किवदंतियाँ तथा उससे मेल खाती एतिहासिक पुरात्तवीक अवशेषो के अनुसार भगवान श्री राम ने इस रावण के पुत्र मेघनाथ के द्रविड़ राज्य में राक्षसो से रक्षार्थ हेतू अपने अराध्य देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आकाश गंगा सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के किनारे रात्री विश्राम कर दुसरे दिन प्रात: सुर्योदय के पहले ताप्ती नदी में के बीचो – बीच बहती जल धारा में डूबे पत्थरो पर बारह लिंगो की आकृति को जन्म देकर उनका विधिवत पूजन एवं स्थापना की थी . भगवान श्री राम के साथ इस पूजन कार्य के पूर्व माता सीता ने जिस स्थान पर ताप्ती नदी के पवित्र जल से स्नान किया था वह आज भी सुरक्षित है तथा लोग उसे सीता स्नानागार के रूप में पूजन करते है . महाभारत की एक कथा के अनुसार मृत्युपरांत कर्ण से भगवान श्री कृष्ण ने कुछ मांगने को कहा लेकिन दानवीर कर्ण का कहना था कि भलां मैं आपसे क्यूँ कुछ माँगु मैने तो अभी तक लोगो को दिया ही है तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पूर्णस्वरूप दानवीर कर्ण को दिखा कर कहा अब तो कुछ मांग लो . कर्ण ने कहा कि यदि प्रभु आप मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मेरी अंतिम इच्छा को पूर्ण कर दो जो यह है कि मेरा अंतिम संस्कार उस पवित्र नदी के किनारे हो जहाँ पर आज तक को शव न जला हो .. तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टिï से ताप्ती जी के किनारे अपने अंगुठे के बराबर ऐसी जगह देख जहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ने पैरो के एक अंगुठे पर खड़े रह कर अपनी हथेली पर दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार किया. रामयुग में जटायु तथा कृष्ण युग में कर्ण दो ही ऐसे जीव रहे जिन्होने भगवान राम और श्याम की बाँहो में दम तोड़ा. प्रस्तुत कथा से इस बात का पता चलता है कि ताप्ती कितनी पवित्र नदी थी . दुसरी दृष्टिï से देखा जाये तो पता चलता है कि महाभारत की इस घटना के अनुसार सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार भी उसकी अपनी बहन ताप्ती के किनारे सम्पन्न हुआ. सूर्य पुत्री ताप्ती का महत्व इस क्षेत्र कि जनता एवं पुराणो में गंगा – नर्मदा के समकक्ष है . पुराणो में इस बात का जिक्र है कि गंगा जी में स्नान का , नर्मदा जी के दर्शन का तथा सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का नाम मात्र स्मरण करने से उनके समकक्ष पूर्ण  लाभ मिलता है. जनश्रुत्रि एवं जानकारो तथा इतिहास के विशेषज्ञो के अनुसार इस द्रविड़ राज्य में असुरी शक्ति का जबरदस्त आंतक रहता था वे किसी भी ऋषि – मुनियो के पूजा पाठ यहाँ तक की उनके द्घारा करवाये जाने वाले यज्ञो तक में व्यवधान पैदा कर देते थे. असुरो के अराध्य देवाधिदेव महादेव को भगवान श्री राम ने अपने द्घारा चौदह वर्ष के वनवास के दौरान वनगमण के दौरान स्वंय तथा अनुज लक्ष्मण एवं जीवन संगनी सीता की रक्षा के लिए देवाधिदेव महादेव की जहाँ – तहाँ पूजा अर्चना की. असुर केवल भोलनाथ भगवान जटाशंकर महादेव के पूजन कार्य में व्यवधान नहीं डालते थे इसी मंशा के तहत मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने राम पथ के दौरान शिव लिंगो का पूजन किया. ताप्ती नदी की बीच धारा में पाषण शीला पर बारह शिव लिंगो की स्थापना की. वैसे आमतौर पर रामायण में श्री राम युग में श्रीराम द्घारा मात्र रामेश्वरम में ही शिव लिंग की स्थापना का जिक्र सुनने एवं पढऩे को मिलता है लेकिन पूरे विश्व के बारह ज्योर्तिलिंगो को एक ही स्थान पर वह भी सूर्यपुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच तेज बहती धार में मौजूद पाषण शीलाओं पर ऊकेरा जाना तथा उनका आज भी मूल स्वरूप में बने रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है . वैसे आम तौर पर कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने शिवलिंगो की स्थापना करके यह संदेश दिया कि देवाधिदेव शिव ही राम के ईश्वर है जबकि शिव भगवान ने ही कहा कि राम ही ईश्वर है . बरहाल बात रामेश्वरम के ज्योर्तिलिंग की हो या ताप्ती नदी बीच तेज बहती धारा के मध्य पाषणशीलाओं पर स्थापित बारह लिंगो की भगवान श्री राम ने अपने अराध्य देवाधिदेव जटाशंकर उमापति महादेव के प्रति अपने अगाह प्रेम को जग जाहिर कर डाला .
ताप्ती नदी के बारे में पौराणिक कथाओं में उल्लेखित कथा के बारे में पता चला कि एक समय वह था जब कपिल मुनि से शापित जलकर नष्टï हो पाषाण बने अपने पूर्वजों का उद्धार करने इस पृथ्वी लोक पर, गंगा जी को लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की थी. उसके फलस्वरूप गंगा ने ब्रम्ह कमण्डल (ब्रम्हलोक से) धरती पर, भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया परंतु वसुन्धरा पर उस सदी में मात्र ताप्ती नदी की ही सर्वत्र महिमा फैली हुई थी . ताप्ती नदी का महत्व समझकर श्री गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोउपरांत प्रजापिता ब्रम्हा विष्णु तथा कैलाश पति शंकर भगवान की सूझ से देव ऋषि परमपिता ब्रम्हा के पुत्र नारद ने ताप्ती महिमा के सारे ग्रंथ चोरी कर लिये जिसके चलते उन्हे पूरे शरीर में कोढ़ हो गई थी जिससे उन्हे मुक्ति भी सूर्यपुत्री करी जन्म स्थली मुलताई के नारद कुण्ड में स्नान उपरांत मिली थी. आज भी ताप्ती जल में एक विशेष प्रकार का वैज्ञानिक असर पड़ा है, जिसे प्रत्यक्ष रूप से स्वंय भी आजमाईश कर सकते है. ताप्ती जल में मनुष्य की अस्थियां एक सप्ताह के भीतर घुल जाती है. इस नदी में प्रतिदिन ब्रम्हामुहुर्त में स्नान करने से समस्त रोग एवं पापो का नाश होता है. तभी तो राजा रघु ने इस जल के प्रताप से कोढ़ जैसे चर्म रोग से मुक्ति पाई थी. ग्राम खेड़ी सांवलीगढ़ से ग्यारह किलोमीटर दूर त्रिवेणी भारती बाबा की तपोभूमि ताप्ती घाट जो इस क्षेत्र में तो क्या संपूर्ण बैतूल जिले में बहुधा जानी पहचानी जगह है. विकासखंड भैंसदेही के अंतर्गत आने वाले इस स्थान से पूर्व दिशा की ओर यहां से लगभग चार किलोमीटर पैदल चलकर या फिर मोटर वाहनों से भी पहुंचा जा सकता है. बारहलिंग नामक स्थान पर जो ताप्ती नदी के तट पर स्थित है, यहां कि प्राकृतिक छठा सुन्दर मनमोहक दृश्य आने-जाने वाले यात्रियों का मन मोह लेते है. घने हरियाले जंगलो से आच्छादित प्रकृति की अनुपम छटा बिखरेती हुई ताप्ती नदी शांत स्वरों में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है . चौदह वर्ष के वनवास के दौरान बारह लिंग नामक इस स्थान पर ठहरे हुए भगवान श्री राम ने  स्वंय अपने अराध्य देवाधिदेव महादेव के बारह लिंगो की कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन पाषण शीला पर आकृति ऊकेरी थी जो आज भी ज्यों – की त्यों है. राम निर्मित उक्त बारह शिवलिंगो तथा सीता स्नानागार आज भी लोगो की आस्था के केन्द्र है राज्य सरकार को चाहिए कि जब वह रामपथ को खोज रही है तब इन .शुशुप्त रूप से आज भी विद्यमान है इन बारह लिंगो एवं सीता स्नानागार की उपेक्षा क्यो ..? कथाओ एवं पुराणो के अनुसार श्री राम ने वनो में उगने वाले फलो में से एक को जब माता सीता को दिया तो उन्होने इसका नाम जानना चाहा तब भगवान श्री राम ने कहा कि हे सीते अगर तुम्हे यह फल यदि अति प्रिय है तो आज से यह सीताफल कहलायेगा. आज बैतूल जिले के जंगलो एवं आसपास की आबादी वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक संख्या में सीताफल पाया जाता है.

पानी को लेकर मतदान के बहिष्कार के फैसलो को विवश दर्जनो गांव के वाशिंदे
आखिर कब बुझेगी मेरे गांव की प्यास , माँ ताप्ती के पावन जल की है सभी को आस……..!
रामकिशोर पंवार
बैतूल। चुनाव के समय अचानक जब मैने एक न्यूज चैनल पर अपने के लोगो को नारे लगाते बैनर थामें देखा तो मैं कुछ पल के लिए सकपका गया। आखिर ऐसा क्या हो गया मेरे गांव में जिसके चलते टी वी चैनलो पर मेरे गांव को लेकर एंकर लम्बे – चौड़े कसीदे पढ़ रहा है। न्यूज चैनल पर चल रही खबर से मुझे पता चला कि मेरे गांव के लोगो को उनके सुखे कुयें और खेत – खलिहान की बेबसी आन्दोलित कर गई। अकसर चुनाव के समय मेरे गांव के लोगो को नेताओं के समक्ष अपना दुखड़ा रोते देख मुझे शर्म आती हैं। मेरे गांव की इस बदहाली के लिए मैं भी कुछ न कुछ जिम्मेदार हूं क्योकि मैने अपनी पत्रकारिता हमेशा दुसरो के लिए की यदि मैं शुरू से अपने गांव के दुख दर्द को भोपाल – दिल्ली तक पहुंचाता तो संभव था कि मेरे गांव की समस्या का कुछ तो निराकरण हो जाता। मैं जब गांव के करीब अया तो मुझे गांव के दर्द का एहसास हुआ लेकिन ऐसा एहसास किस काम जो उसका निदान न निकाल सके। मेरे अपने पैतृक गांव में पानी को लेकर उस समय से गांव के लोग नेताओं के चक्कर पर चक्कर लगा कर घनचक्कर हो गये जब बात चली थी कि जगदर पर बड़ा डैम बनेगा और उसकी नहरे रोढ़ा – बाबई – सेलगांव तक पहँुचेगी लेकिन आज लगभग चालिस साल होने जा रहे हैं रोंढ़ा की तड़पती और तरसती धरती पर सूखी नहरे तक नहीं बन सकी हैं। यदि नहरे खुद जाती तो हम बरसात का पानी ही रोक सकते थे। जगधर का बांध बैतूल जिले के उन धन्नासेठो ने नहीं बनने दिया जिसकी जमीन बांध और नहरे में जा रही थी। आज जगधर का बांध तो जरूर बन गया लेकिन उसकी नहरे तो बैतूल बाजार तक आते – आते ही सूखने लगती है। गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ – बहने – बहु – बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें में पानी ही नहीं बचा है। पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ – तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है। कल तक मेरे गांव की कोसामाली और जामावली पूरे गांव की प्यास बुझाती थी लेकिन कोसामाली और जामावली के बुढ़े हो चुके कुओं के हालातो पर तो मुझे भी रोना आता है। जिस कोसामाली पर सुबह से लेकर शाम तक पनहारी पानी के मटको और बर्तनो के साथ पानी भरने आया करती थी आज वहीं पनहारी अपने गांव की गलियों में गांव की पंचायत के द्वारा लगवाई गई नल योजना नल और बिजली पर आश्रित हो चुकी है। पूरे गांव को एक साथ पानी की सप्लाई तो दूर एक मोहल्ले को भी पूरा पानी पिलाने का आज उस नलकूप योजना पर भरोसा करना याने सुबह से शाम तक प्यासे मर जाने के समान है। मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है। बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया – गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है। गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा – तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। इधर परसोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है। खेड़ी – सेलगांव – बावई  होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। गांव को आने एवं जाने के लिए जितनी पंगडंडी है वह आज भी वैसी ही है जैसे कभी मेरे बचपन में हुआ करती थी। गांव के समग्र विकास की बाते करने वालो को आज मेरे गांव के युवा वर्ग ने अगर बहिष्कार का जूता दिखाया है तो नि:सदेंह इस काम के लिए मैं और मेरा पूरा गांव उस युवा पीढ़ी को बधाई देता है। आखिर कोई तो माई का लाल इस गांव को मिला जो गांव आकर आजादी के लगभग 64 सालो में मेरे गांव के भोले – भाले मतदाताओं को लालीपाप देकर वोट मांगने के बहाने झुठी तसल्ली देकर ठगता चला आ रहा था उन ठगो को जूता दिखा कर डराना गांव में आई जन जागृति का प्रतीक है। दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है। लोग आते है , चले जाते है। कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है। जहाँ  पर लोग केवल घुमने के लिए आते है । जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है। थोड़ी से भूल – चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया…. ऐसे  में सब कुछ खो जाने का डर रहता है। इसलिए लोग संभल – संभल कर चलने लगे है। गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के रितब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है। मेरे गांव के लोग बम्बई – दिल्ली – कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है । जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ”बच्चो का भविष्य देखना है …..!ÓÓ  ”आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या…. ?ÓÓ अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि …. वैसे देखा जाए तो रोंढ़ा मेरा गांव तो नही रहा यह बात अलग है कि वह हमारा गांव हैै क्योकि इस गांव से मेरे पापा का बचपन जुड़ा हैै। रोंढ़ा मेरे पापा की जन्मभूमि होने के कारण उन्होने ही मुझे अपने इस गांव से जोड़े रखा। आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ पापा के बचपन की एक ऐसी निशानी है आज पूरे गांव के साथ प्यासा है। पहले लोग माता मैया के चबुतरे पर हर रोज पानी चढ़ाने आया करते थे। सुबह स्नान के बाद कुओं से लाया गया शुद्ध पानी का एक हिस्सा माता मैया के ऊपर अर्पित किया जाता था जिसके चलते उस चम्पा के पेड को भी पानी मिल जाता था और लहलहा उठता था लेकिन अब तो गांव के लोगो को यह तक पता नहीं रहता कि गांव के नल से पानी आयेगा या नहीं ……यही हाल गांव के कुओ का है जो गांव के कुयें कभी पूरे गांव को बरसात तक पानी पूराते थे आज वहीं कुओं का पानी दिवाली के बाद समाप्त होने लगता है। कहना नहीं चाहिये लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जाता। आजादी के 61 सालो में मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है। बैतूल जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी सर्वोदयी नेता भुदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है। आज गांव के आसपास लगी जना जागृति की आग की लपेट में सूरगांव – नयेगांव – सेहरा – सावंगा आ चुके है। अब गांव से लगी गांव से गांव के सुखे पड़े खेतो के भूसे जलने के बजाय गांव वालो के दिल दिमाग दहक रहे है। गांव का बचचा और बुढ़ा दोनो ही गांव के आसपास सूखे खेत – खलिहान को देकर आन्दोलित हो उठा है। अब मेरे गांव को माँ सूर्य पुत्री ताप्ती का जल ही तृप्त कर सकता है। मेरा माँ ताप्ती जन जागृति मंच के द्धारा लोगो को माँ ताप्ती से जोडऩे का सिलसिला अब मुझे अपने गांव को भविष्य में माँ सूर्य पुत्री ताप्ती से जुड़ता दिखाई देने लगा है। मेरे गांव के सूर में सूर मिलाने के जब सूरगांव आ गया है तब मैं कल्पना कर सकता हँू कि आने वाले कल में जब माँ ताप्ती का जल दुसरे प्रदेशो को मिलने के बजाये मेरे गांव और खेत खलिहानो तक पहँुचेगा तो आसपास के गांव को भी माँ ताप्ती का तपते आसमान के समय भी जल मिलने लगेगा। जब भोपाल तक भोपाली नेताओं के लिए माँ नर्मदा पहँुच सकती है तब मेरे गांव के लिए मेरी अराध्य माँ ताप्ती क्यों नहीं पहँुच सकती…..? अब हमें और हमारे गांव वालो को अपने साथ आसपास के दर्जनो को गांवो के लोगो को खड़ा करके मेघा पाटकर की तर्ज पर ताप्ती रोको आन्दोलन करना होगा। जब हमारी माँ के आँचल से हमारी प्यास नहीं बुढ सकती तो हम पड़ौसी दुसरे राज्यो की प्यास को भी नहीं बुझने देगें। आज शर्मनाक बात है कि बैतूल जिले के जिस माँ ताप्ती के पावन जल में अनेको साधु संतो – मुनियो एवं स्वंय भगवान श्री राम के पूर्वजो को मुक्ति मिली उसके लिए हमें जीते जी और मरने के बाद भी तरसना पड़े ऐसा नहीं होने दिया जायेगा। गांव के लिए गंवार के लिए सही लेकिन अब ताप्ती का जल पूरे बैतूल जिले के खेंत – खलिहानो और सुखे कुओ तथा बावलियों के अलावा प्यासे कंठो को मिलना चाहिये। ऐसे काम के लिए नेताओं और उनके दलो को आँखे दिखाना या उनकी वादाखिलाफी को गिनाना कोई संगीन अपराध नहीं है। गांव के आन्दोलन में मेरा पूरा तन – मन गांव को समर्पित है क्योकि आज मुझे हर मंगलवार और शनिवार माँ ताप्ती के पावन जन में स्नान – ध्यान करने के लिए जाना पड़ता है लेकिन यदि मेरे गांव को या आसपास के लोगो के पास माँ स्वंय कल – कल करती यदि आयेगी तो उनकी कई पीढिय़ो का कल्याण हो जायेगा। एक बार सारे मिल कर बोलो जय माँ ताप्ती की जिसकी राह देख रहे है रोंढा एवं आसपास के गांवो के लोग……

छत विहीन – खण्डहर बने – शिक्षक विहीन
स्कूलो में आखिर बच्चो को लेकर स्कूल क्यों चले हम
बैतूल (रामकिशोर पंवार )। मध्यप्रदेश के सतपुड़ाचंल में बसा आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला 1007800 हेक्टर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिले में 1303 राजस्व तथा 92 वनग्राम है। इस जिले में 63 ऐसे भी गांव जो कि पूर्णत: विरान हो चुके है। बैतूल जिले 30 गोकुल ग्राम भी है जिनकी परिकल्पना राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में राज्य सरकार के केबिनेट मंत्री तथा बैतूल जिले के पालक मंत्री बाबूलाल गौर ने की थी। नये शिक्षा सत्र से बैतूल जिले में सर्व शिक्षा अभियान के तहत 40 हजार छात्रो को स्कूल में प्रवेश दिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। सर्व शिक्षा अभियान के मूल सिद्घांत स्कूल चले हम के तहत बैतूल जिले में 2 हजार 756 स्कूलो में 15 जुलाई से 30 सितम्बर तक उक्त लक्ष्य की पूर्ति करने के लिए प्रत्येक शिक्षको को 25 घरो में जाकर ऐसे बच्चो को ढुंढ निकालना है जो कि स्कूल नहीं जा रहा है। जिले में वर्तमान समय में दुरस्थ ग्रामिण क्षेत्रो के बच्चो को सीधे सेटेलाइट से जोड़ कर पढ़ाया जाना है। इन 71 स्थानो पर भले ही मिटटï्ी का तेल भी दिया जलाने को नसीब न होता हो पर पर वहां सेटेलाइट से बच्चो को अ अनार का नहीं बल्कि ए फार एप्पल पढ़ाया जाना है। प्रारंभिक शिक्षा सत्र में गुणात्मक उन्नयन के परिपे्रक्षय में प्रदेश में गतिविधि आधारित शिक्षण एबीएल (एक्टिव बेस लर्निंग) कोर्स को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया जा रहा है।  पहली से लेकर आठवी तक के 2 हजार 756 स्कूलो के लिए 1290 संविदा शिक्षको के पद स्वीकृत किये गये थे जिसमें 5 सौ 94 संविदा शिक्षको की भर्ती होने के बाद भी 5 सौ शिक्षको कमी है। इस समय जो शिक्षक है वे पर्याप्त लक्ष्य एवं स्कूलो में आने वाले बच्चो के लिए ऊँट के मुँह में जीरा साबित होगें।  गैर शैक्षणिक कार्यो में लगे शिक्षको को नवीन शिक्षा सत्र के दौरान अपने बच्चो की पढ़ाई के साथ राज्य सरकार की अनेक योजनाओं का प्रचार – प्रसार भी करना है साथ – साथ कुछ ऐसे बिगार के काम भी ऐसी स्थिति में शिक्षा सत्र का स्कूल चलो अभियान छात्रो के पालको के सामने एक सवाल उठाता है कि वे अपने बच्चो को सरकारी स्कूलो में पढ़ाने के लिए क्यों लेकर चले……?
बैतूल जिले की दस जनपदो एवं 2 नगर पालिकाओं , 4 नगर पंचायतो तथा 545 ग्राम पंचायतो में सर्व शिक्षा अभियान का बीते वर्ष का हश्र सबके सामने है। शिक्षा सत्र की पुस्तके कबाड़ी के पास मिलने के बाद से तथा स्कूली बच्चो को भूसे की रोटी खिलाने के मामलो को लेकर चर्चा का केन्द्र बना बैतूल जिला का राजीव गांधी शिक्षा मिशन अभियान अब लोगो की न$जर में इतना गिर चुका है कि लोग अब भी इस बात की शंका – कुशंका बनी है कि जब स्कूलो में पढ़ाई ढंग से नहीं हो पा रही है तब 71 केन्द्रो पर सेटेलाइट से क्या खाक पढ़ाई हो पायेगी। पहली जुलाई से बच्चो को तिलक लगा कर स्कूलो में प्रवेश दिलाने वाले कितने शिक्षक ऐसी परिस्थिति में बच्चो को पढ़ा पायेंगें जहां तक बरसात के मौसम में ऊफनती नदीयों एवं नालो में आई बाढ़ बारह – बारह घंटे नहीं उतरती हो….? बैतूल जिले में सरकारी दस्तावेजो पर आधारित जानकारी की ही बात करे तो पता चलता है कि जिले में 658 ऐसे स्कूल है जिनकी छते या तो टपकती है या फिर खस्ता हालत में है। जिले में ही 345 ऐसे स्कूल है जो कि छत विहीन है या फिर उनकी छते हवा में उड़ गई। पहली से लेकर बारहवी तक के स्कूलो की मनो व्यथा इतनी दयनीय है कि कई स्कूलो तक पहँुचने के लिए स्कूल के आमने – सामने बन गये पोखरो को पार करना पड़ता है। कीचड़ से सने पांव और बैठने को कुर्सी बेंच तक नहीं। पहली से आठवी तक के बच्चे आज भी अपने घरो से स्कूल का बस्ता और बैठने के लिए चादर का टुकड़ा लेकर आते है। अखबारो और न्यूज चैनलो पर स्कूल चलो का प्रचार- प्रसार करने वालो को स्कूलो की दशा पर भी ध्यान देना चाहिये। बैतूल जिले में 92 ऐसे वन ग्राम है जहां पर आज तक बिजली तक नहीं पहँुच सकी है ऐसे में इन गांवो में सेटेलाइट शिक्षा प्रणाली की कल्पना करना  आसमान को छुने से कम नहीं है। वर्तमान समय में राजीव गांधी शिक्षा मिशन द्घारा 202 जन शिक्षा केन्द्रो के लिए भवनो के निमार्ण कार्य के लिए ग्राम पंचायतो को राशी आवंटन किया गया है। जब तक भवन बन कर तैयार होगे तब तक सभी स्कूली बच्चो को टपकती छतो के नीचे ही बैठने के लिए मजबुर होना पडेगा।

अब जननी सुरक्षा योजना की आड़ में जन संख्या
पर नियंत्रण करने के लिए गर्भपात का सहारा
बैतूल  (रामकिशोर पंवार ) बैतूल जिले में जिला मुख्य चिकित्सालय के अधिनस्थ कार्यरत आरसीएच शाखा के प्रबंधक अतुल सवटकर के अनुसार बैतूल जिले में तीन प्रायवेट चिकित्सालयो को राज्य सरकार की स्वास्थ सेवाओं के प्रचार – प्रसार एवं उनके क्रियाव्यन के लिए अधिकृत किया गया है। बैतूल जिला मुख्यालय पर स्वास्थ विभाग की प्रचार – प्रसार जवाबदेही का निर्वाहण करने वाली आरसीएच शाखा प्रमुख के अनुसार जननी सुरक्षा योजना के तहत जिले के इन प्रायवेट चिकित्सालयो से सौ रूपये के स्टाम्प पेपर पर यह अनुबंध किया गया है कि वे लोगो को गर्भपात के लिए प्रेरित करने के लिए अपने स्तर प्रचार – प्रसार कर सकते है।  इस बारे में जानकार लोगो एवं इन अनुबंधित चिकित्सालयो के प्रमुखो का कहना है कि प्रदेश की बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण लगाने के लिए सरकारी योजनाये नसबंदी और सुरक्षित यौन संबधो के लिए नि:शुल्क बाटे जाने वाले कंडोम के फेल हो जाने पर अब सुरक्षित तथा कथित चिकित्सीय गर्भपात करवाने के लिए जिले के नीम हकीम डाक्टरो के पास नहीं जाना पड़े इसलिए यह सुविधा सरकार उपलब्ध करवा रही है। बैतूल जिले में स्वास्थ विभाग की ओर से लगाये गये प्लेक्स बोर्ड एवं स्थानीय न्यूज चैनलो तथा सरकारी दुरदर्शन पर बैतूल जिले के इन अनुबंधित प्रायवेट चिकित्सालयो के द्घारा करवाये जाने वाले गर्भपात के लाभ को लेकर बवाल बच गया है। सुभ्रदा चिकित्सालय के संचालक विनय सिंह चौहान के अनुसार उन्हे आरसीएच प्रबंधक द्घारा ऐसा करने को कहा है। जननी सुरक्षा की आड़ में वैध – अवैध गर्भपात का इस तरह प्रचार – प्रसार होने से लोगो में गर्भपात के प्रति रूझान बढ़ेगा साथ ही भ्रूण हत्यायें भी बढ़ेगी। गर्भपात करने वाला चिकित्सक या चिकित्सालय अपने आरसीएच सेें हुये अनुबंध का सहारा लेकर साफ बच निकलेगा। विधिवेता संजय शुक्ला के अनुसार कोई भी प्रायवेट चिकित्सक या चिकित्सालय स्वंय के लाभ के लिए लोगो को इस तरह गर्भपात के लिए उकसाता या उत्प्रेरित करता है तो वह कानून की न$जर में संगीन अपराध का सहभागी है। जननी सुरक्षा योजना का मतलब या जनसंख्या नियंत्रण के लिए अगर स्वास्थ विभाग इस तरह के अनुबंध करता है तो वह भी उस संगीन अपराध में सहभागी है। जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी श्री दीक्षित ने इस तरह की सूचनाओं और समाचार पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया। श्री दीक्षित का कहना था कि अनुबंध जिसने किया हो वहीं जवाब दे…? बरहाल जो भी हो लेकिन चौक – चौराहे पर अब आम चर्चा होने लगी है कि एक तरफ सरकार गर्भपात की सूचना देने वालो को एक लाख रूपये देने का दावा करती है वहीं दुसरी ओर सरकार स्वंय जननी सुरक्षा की आड़ में प्रायवेट चिकित्सालयों को गर्भपात के लिए अनुबंधित करती है।

निर्वस्त्र होकर की गई दैत्य बाबाओं की पूजा अर्चना
बैतूल (रामकिशोर पंवार) . यूँ तो मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में बरसो से चली आ रही तात्रिंक विद्या के जानकार कुछ न कुछ साधना करके सिद्घी प्राप्त करते है . इन्ही सिद्घियों में एक सिद्घी को प्राप्त करने के लिए पाँच साल तक इंतजार करना पड़ता है. पाँच वर्षों में एक बार होने वाली तांत्रिक क्रिया ठोका कहते है जिसे पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है . बैतूल जिले के कई दूर दराज के ग्रामिण अँचलो से लेकर बैतूल , मुलताई , सारनी , आमला , भैसदेंही जैसे नगरीय क्षेत्रों में भी इस विद्या के जानकार अपनी साधना करते है . मुलताई नगर के मेघनाथ मोहल्ले में भीमसेन बाबा दरबार में प्रारंभ होकर मरघट एवं क्षेत्र के समस्त दैत्य बाबाओं के पूजन के साथ संपन्न करवाई इस ठोका तांत्रिक क्रिया के जानकार राठीढाना निवासी नामचीन ओझा रामा उइके एवं उनकी पत्नी तथा पुत्र विजय उइके के द्घारा करवाये गये अनुष्ठïान में नगर के लगभग 40 लोगों ने भाग लिया . तांत्रिक क्रिया की विधि अनुसार रात्रि 12 बजे के उपरांत बाबा भीमसेन की पूजा की गई. 20 व्यक्तियों की टोली शमशान की ओर रवाना हुई शामिल लोगो ने निर्वस्त्र होकर तांत्रिक क्रिया में भाग लिया. इस क्रिया हेतु 5 टोलियां बनाई गई थी. एक टोली जीप द्वारा बेल नदी की ओर काली बिल्ली, काला बकरा एवं काला मुर्गा लेकर रवाना हुई. जहां इन्होंने पशुओं को मटके में भरकर जिंदा गाड दिया. बेल नदी की ओर गई इस टीम ने चिखली एवं सांडिया स्थित दैत्य बाबा का भी पूजन किया. भोर होते ही यह टीम भीमसेन बाबा के दरबार लौटी. एक अन्य टीम तांत्रिक ओझा रामा उइके के नेतृत्व में नगर भ्रमण पर निकली. तांत्रिक अपने सिर पर जलता हुआ खप्पर लिए आगे चल रहे थे. उनके पीछे लोग झंडी लिए हुए उनका अनुसरण कर रहे थे. इन लोगों के पास नारियल, अण्डे, काले मुर्गे एवं गागड़े थे. ये लोग शंख बजाते हुए मोंगिया बाबा के पास पूजा अर्चना हेतु पहुंचे. इसके उपरांत तांत्रिक ने ताप्ती एवं थाने के पास स्थित काली माई की पूजा की. सुबह जेल के निकट शिव मेड़ा पर नगर के सभी पशुओं को जमा किया गया, जिन्हें सिद्ध धागे से गुजारा गया एवं सिद्ध की हुई रेत एवं बेड़ली से भारा गया. मान्यता है कि इस तंत्र क्रिया से पशुओं की सभी बीमारियों और कष्टïों का निवारण होता है. विश्व में जहाँ पुरानी मान्यताएँ समाप्त होकर नये अविष्कारों और विचारों का जन्म हो रहा है वहीं भारत आज भी एक ऐसा देश है जो अपनी परंपराओं और अंंधविश्वासों के बल पर मरघट जिसे शमशान भी कहा जाता है उसमें ऐसी तांत्रिक – मांत्रिक क्रिया होती है जिससे मानव को मानव से जोडऩे का तथा मानव के द्घारा मानव को मार डालने तक का प्रयास होता है .

पहले सरकार से वाहवाही बटोरी फिर लिया इनाम
बैतूल जिले में कुपोषित बच्चो की मिली लम्बी – चौड़ी जमात
बैतूल (रामकिशोर पंवार) बीते वर्ष बाल संजीवनी अभियान में सबसे कम कुपोषित बच्चो के लिए बैतूल जिले को राज्य प्रथम आने के लिए पुरूस्कृत किया गया था जबकि उसी वर्ष बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के दो गांवो में कुपोषण से खतरनाक पोलियो के दो बच्चे मिले थे। $खबर न्यूज चैनलो पर चलने के बाद भी सरकारी वाहवाही लूटने और इनाम बटोरने के षडय़ंत्रो में कोई कमी नहीं आई। इस बार बाल संजीवनी अभियान करोड़ो रूपयो के देशी एवं विदेशी सहायता के शुरू हुआ। सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनो की सीधी कमाई का जरीया बने इस कार्यक्रम के तहत चले अभियान में पूरे जिले में 50 से अधिक बच्चे कुपोषित मिले।  एक माह के इस अभियान में जिले की दो नगर पालिकाओं 4 नगर पंचातयो एवं 10 जनपदो की 545 ग्राम पंचायतो में से मात्र 1 लाख 64 हजार 428 बच्चो का परिक्षण करने के बाद उनकी स्थिति को देख कर उनका वजन लिया गया।   इन बच्चो को भी श्रेणी वार प्राथमिकता देकर उनकी जांच पड़ताल की गई जिसके अनुसार सामान्य श्रेणी के 81 हजार 460, प्रथम श्रेणी के 59 हजार 714, द्घितीय श्रेणी के 22 हजार 425 तृतीय श्रेणी के 592 तथा चतुर्थ श्रेणी के 57 बच्चे कुपोषित मिले। बीते वर्ष के जिस 11 वे बाल संजीवनी अभियान के लिए बैतूल जिले को पहला पुरूस्कार मिला था उस वर्ष भी 1 लाख 61 हजार 964 बच्चो का वजन लिया गया लेकिन जब श्रेणी बार सूचि बनी तो कुपोषित बच्चो को भी सामान्य दर्शा कर सरकार से अपनी पीठ थपथपा ली गई। जब 1 लाख 22 हजार 522 बच्चो को विटामीन की गोलिया और दवाईयां पिलाई गई तो 57 कुपोषित बच्चे कहां से आ टपके। जब हर माह गर्भवति एवं गर्भधात्री महिलाओं एवं नवजात शीशुओ से लेकर 3 से 6 माह के बच्चो का टीकाकरण एवं उन्हे कुपोषित आहार दिया जाता है तब बच्चो में कुपोषण की मार कहां से पड़ गई। इन आकंडो से तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि आंगनवाड़ी केन्द्रो पर कुपोषण को रोकने वाले न तो टीका लगे है और न दवाईया बटी है। यहां तक स्थिति समझी जा सकती है कि गर्भवति एवं गर्भधात्री महिलाओं तथा बच्चो को आंगनवाड़ी केन्द्रो पर आहार भी नहीं मिला होगा। जिला महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी को प्रथम पुरूस्कार मिलने पर उसी सप्ताह जिला मुख्यालय पर एक प्रायवेट संस्था ने एक दिन के शिविर में 52 कुपोषित बच्चे खोज निकाले। इस शिविर में जिला मुख्य चिकित्सालय के चिकित्सको की उपस्थिति में किया गया जांच अभियान में अकेले रामनगर पटवारी कालोनी क्षेत्र में 52 बच्चो का कुपोषित मिलना शर्मसार घटना है। ब्लाक स्तर पर 12 वे बाल संजीवनी अभियान में जो तथ्य सामने आये है वह भी काफी चौकान्ने वाले है। आदिवासी दुरस्थ भीमपुर विकास खण्ड में सामान्य श्रेणी के 8 हजार 203 , प्रथम श्रेणी के 7  हजार 952 , द्घितीय श्रेणी के 4 हजार 65 , तृतीय श्रेणी के 95 तथा चतुर्थ श्रेणी के 10 बच्चेे कुपोषित मिले। इस दुरस्थ विकास खण्ड में 20 हजार 325 बच्चो का वजन लिया गया एवं 16 हजार 539 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। अभियान के तहत अनुसूचित जाति बाहुल्य आमला ब्लाक में सामान्य श्रेणी के 10 हजार 168 , प्रथम श्रेणी के 6 हजार 71  , द्घितीय श्रेणी के 2 हजार 151  , तृतीय श्रेणी के 16 तथा चतुर्थ श्रेणी के 9 बच्चेे कुपोषित मिले।  इस विकास खण्ड में 18 हजार 409 बच्चो का वजन लिया गया और 15 हजार 692 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड भैसदेही में सामान्य श्रेणी के 5 हजार 721 , प्रथम श्रेणी के 5  हजार 603 , द्घितीय श्रेणी के 2 हजार 150 , तृतीय श्रेणी के 47 तथा चतुर्थ श्रेणी के 7 बच्चेे कुपोषित मिले। इस विकास खण्ड में 13 हजार 518 बच्चो का वजन लिया गया एवं 10 हजार 478 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड चिचोली में सामान्य श्रेणी के 6 हजार 199 , प्रथम श्रेणी के 3 हजार 11 , द्घितीय श्रेणी के 892 , तृतीय श्रेणी के 18 तथा चतुर्थ श्रेणी का 1 मात्र कुपोषित बच्चा मिला। इस विकास खण्ड में 10 हजार 121 बच्चो का वजन लिया गया एवं 8 हजार 816 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया।  विकास खण्ड बैतूल के ग्रामिण क्षेत्र में सामान्य श्रेणी के 3 हजार 403 , प्रथम श्रेणी के 3 हजार 132  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 239 , तृतीय श्रेणी के 55 तथा चतुर्थ श्रेणी के 3 मात्र कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 15 हजार 906 बच्चो का वजन लिया गया एवं 11 हजार 738 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड घोडाडोंगरी में सामान्य श्रेणी के 4 हजार 115 , प्रथम श्रेणी के 3 हजार 428  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 206 , तृतीय श्रेणी के 54 तथा चतुर्थ श्रेणी के 6 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 17 हजार 725 बच्चो का वजन लिया गया एवं 15 हजार 410 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड आठनेर में सामान्य श्रेणी के 5 हजार 465 , प्रथम श्रेणी के 4 हजार 343  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 818 , तृतीय श्रेणी के 46 तथा चतुर्थ श्रेणी के 3 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 11 हजार 675 बच्चो का वजन लिया गया एवं 9 हजार 110 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड मुलताई में सामान्य श्रेणी के 8 हजार 410 , प्रथम श्रेणी के 5 हजार 55  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 510 , तृतीय श्रेणी के 42 तथा चतुर्थ श्रेणी के 2 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 1 हजार 547 बच्चो का वजन लिया गया एवं 9 हजार 614 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड  प्रभात पटट्न में सामान्य श्रेणी के 3 हजार 901 , प्रथम श्रेणी के 2 हजार 532  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 191 , तृतीय श्रेणी के 37 तथा चतुर्थ श्रेणी के 2 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 13 हजार 603 बच्चो का वजन लिया गया एवं 9 हजार  201 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड शाहपुर में सामान्य श्रेणी के 3 हजार 340 , प्रथम श्रेणी के 2 हजार 658  , द्घितीय श्रेणी के 932 , तृतीय श्रेणी के 34 तथा चतुर्थ श्रेणी के 5 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 13 हजार 988 बच्चो का वजन लिया गया एवं 10 हजार 965 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड बैतूल के शहरी क्षेत्र में सामान्य श्रेणी के 1 हजार 956 , प्रथम श्रेणी के 1 हजार 299  , द्घितीय श्रेणी के 383 , तृतीय श्रेणी के 14 तथा चतुर्थ श्रेणी का मात्र 1 कुपोषित बच्चे मिले। इस क्षेत्र में 7 हजार 387 बच्चो का वजन लिया गया एवं 5 हजार 151 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड घोडाडोंगरी के सारनी नगरीय क्षेत्र में सामान्य श्रेणी के 1 हजार 954 , प्रथम श्रेणी के 906 , द्घितीय श्रेणी के 323 , तृतीय श्रेणी के 15 तथा चतुर्थ श्रेणी का एक भी कुपोषित बच्चा नही मिला। इस क्षेत्र में 6 हजार 544 बच्चो का वजन लिया गया एवं 5 हजार 422 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया।
सरकारी रिर्पोट का यदि पोस्टमार्टम किया जाये तो चौकान्ने वाले तथ्य सामने आयेगें। मसलन जिला चिकित्सालय की टीम को बैतूल जिला मुख्यालय पर एक दिन में 52 कुपोषित बच्चे मिले लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग के बाल संजीवनी टीम को ढुंढे से मात्र एक ही बच्चा कुपोषित मिला। मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी तीसरी नगर पालिका क्षेत्र के 36 वार्डो में बाल संजीवनी कार्यक्रम के तहत एक भी बच्चा कुपोषित नहीं मिला। जबकि चित्र में कुपोषित बच्चो के शरीर उसके कुपोषण होने के जीवित प्रमाण है। महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी राजेश मेहरा के पास जिला जन सम्पर्क कार्यालय का भी प्रभार होने की व$जह से कोई भी मीडिया उसके अधिनस्थ इस विभाग की कटु सच्चाई को सामने लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है। स्वंय राजेश मेहरा अपने विभाग की इस कटु सच्चाई पर कहते है कि मेरे हाथ में कोई जादु की छड़ी तो नहीं है जो कि घुमाने से कुपोषण दूर हो जायेगा लेकिन वे इस बात का भ्री जवाब नहीं दे पा रहे है कि बीते 11 वे बाल संजीवनी कार्यक्रम में प्रथम आने के लिए उन्होने कौन सी जादुई छड़ी घुमाई थी। बैतूल जिले में करोड़ो के बजट वाले इस विभाग में आज यह आलम है कि जिले की 2045 आंगनवाड़ी केन्द्रो में से अधिकांश छतविहीन मकानो और खण्डहरो में लग रही है। सरकारी कागजो पर लाखो का प्रति वर्ष आवंटन पाने वाली इन आंगनवाड़ी केन्द्रो में खीर पुड़ी भी बच्चो को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकी। समस्या इस बात की है कि अब तो इन केन्द्रो पर खीर पुड़ी की जगह बेस्वादी पंजीरी खाने को मिलेगी जिसमें अभी से बदबू आने की $खबरे मिलना शुरू हो गई है।

अखंड भारत का केन्द्र बिन्दु बरसाली
बैतूल (रामकिशोर पंवार ) सेन्टर पांइट के नाम से जाना पहचाना जाने वाला बरसाली दर असल में जम्मू – चेन्नई रेल मार्ग पर स्थित मल्कापुर एवं बरसाली रेल्वे स्टेशन के पास स्थित है. बरसाली को मल्कापुर के नाम से ही जाना जाता है. आज यही कारण है कि कई लोग सेन्टर पाइंट जो कि बरसाली रेल्वे स्टेशन के पास है वे भूलवश मल्कापुर ही उतर जाते है. राजा टोडरमल द्वारा अखंड भारत के सेन्टर पाइंट का सर्वे करवाया गया था उस समय बरसाली के पास एक नाले के पास की जगह को चिन्हित कर वहां पर एक पत्थर की शिला को जमीन में गाडा गया था. अरबी भाषा में इस पत्थर पर लिखा गया शब्द अब मिटता जा रहा है लेकिन लोगो की इस स्थान  पर आवाजाही आज भी बरकरार है. अक्षय कुमार अभिनित फिल्म  भूल भूलैया में भी इस स्थान का उल्लेख सेन्टर पांइट मल्कापुर  के नाम से किया गया है. अखंड भारत का सेन्टर पाइंट कहे जाने वाले इस स्थान से चेन्नई एवं जम्मू की दूरी भी लगभग समान बताई जाती है. बरहाल सेन्टर पांइट बरसाली अपनी पहचान खोता जा रहा है. सतपुड़ा के जंगलो से घिरे बैतूल जिले के इतिहास में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि जिले का इतिहास ईसा से कई हजारो साल पुराना है. जिले में रामयुग – द्वापरयुग के भी साथ – साथ राजा नल एवं दम्यंती के भी तालाब और मछली से जुड़े साक्ष्य मिलते है.

महाशिवरात्री पर शिवधाम बारहलिंग पर आस्था
एवं श्रद्धा का विशाल मेला ताप्ती जागृति मंच द्वारा आयोजित
बैतूल (रामकिशोर पंवार ) महाशिवरात्री के पर्व पर सूर्यपुत्री मां ताप्ती के तट पर स्थित शिवधाम बारहलिंग में आस्था एवं श्रद्धा का विशाल मेला आयोजित किया जा रहा है. लगातार तीसरे वर्ष आयोजित अनोखे इस आस्था एवं श्रद्धा के मेले में पड़ौसी राज्य महाराष्ट्र – मध्यप्रदेश – गुजरात – सहित अन्य राज्यो से शिव उपासक आते है. इस स्थान पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित उन बारहलिंगो का ताप्ती जल से जलाभिषेक किया जाता है. बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित शिवधाम में मेले का आयोजन करने वाली संस्था मां ताप्ती जागृति मंच के अनुसार बीते साल इस मेले में एक लाख से अधिक श्रद्धालु भक्तो ने भाग लिया था. सूर्य पुत्री मां ताप्ती के तट पर इस तरह के मेले में आस्था एवं श्रद्धा का जन सैलाब देखने को मिलता है. सुबह से ताप्ती स्नान के बाद से ही ताप्ती जल से उन सदियो से पत्थरो पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा श्री राम के आग्रह पर ऊकेरे गये बारहलिंगो पर जलाभिषेक का कार्य होता है. इस मेले के पीछे अधिक से अधिक लोगो को शिवधाम से जोडऩा है. मंच के सदस्य बज्रकिशोर पंवार डब्बू का कहना है कि जिले में यूं तो रानीपुर के पास छोटा महादेव भोपाली , सालबर्डी में मेला का आयोजन होता है. शिवधाम बारहलिंग में बिना किसी दुकान – झुले – खेल तमाशो के बिना आस्था एवं श्रद्धा का मेला आयोजन गणेश भाई चादर वाले द्वारा शुरू किया गया है. इस बार भी बड़ी संख्या मे लोग आने की संभावना है.

”यदि चाहो तो रण के रणवीर के बदले रणछोड़ मिलेगें ……!ÓÓ
रामकिशोर पंवार  ”रोंढ़ा वालाÓÓ
पहली बार इलेक्ट्रानिक मीडिया का सच सामने आया वह भी उसका जो कि सबसे पहले और सबसे तेज $खबर देने का दंभ भरता है. इस मीडिया का नाम यदि शार्टकट में इल्ली मीडिया रख दे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिये. इल्ली कई प्रकार की होती है कुछ काटती है तो कुछ खाती है. अब यह बात अलग है कि कुछ इल्ली शरद जोशी के व्यंग की तरह जीप पर भी सवार हो जाती है. आजकल की इल्ली जीप पर नहीं हेलीकाप्टर में सवार होकर इल्ली करती है. मीडिया को इल्लीबाज बनाने वाले प्रायोजित $खबरो के बल पर जिंदा लोगो की बैतूल में कमी नहीं है. प्रिंट मीडिया और इल्ली मीडिया में एक ही फर्क है वह इस बात का कि सच का सामना करने की शक्ति किसमे है. प्रिंट मीडिया पर मानहानी के दावे इसलिए होते है क्योकि छपा कभी मिटता नहीं. सदियो तक लोग उस सच को या $खबर को संभाल कर रखते है. अपने बारे में अच्छा छपा हो या फिर बुरा दोनो ही व्यक्ति के अलावा तीसरा वह व्यक्ति $खबर को संभाल कर रखता है जिससे आपकी पटरी नहीं बैठती हो. टीवी में किसी को भी गु – गुड – गोबर सब कुछ खाता दिखा सकते हो क्योकि आधा घंटे का विशेष दुबारा टेलिकास्ट नहीं होता लेकिन समाचार पत्र में ऐसी किसी भी $खबर या फोटो पर उस संवाददाता की ही नहीं संपादक तक की बैण्ड बज जाती है. पत्रकारिता के आदर्श रहे बिल्टज साप्ताहिक समाचार पत्र के प्रकाशक एवं संपादक आर के उर्फ रूसी करंजिया की एक बात मुझे अच्छी तरह से याद है कि वह पत्रकार किस काम का जिसकी लेखनी उसे कोर्ट – कचहरी और जेल की हवा न खिलाये. रूसी करंजिया के ऊपर पूरे देश में ढाई सौ से अधिक मामले चल रहे थे. एक बार एक न्यायालय ने उनकी अनुउपस्थिति के आवेदन को अस्वीकार करते हुये उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया.  उस समय अपने ही समाचार पत्र में न्यायालय के उक्त फैसले पर करंजिया ने अपनी संपादकीय में लिखा था कि मैं कोई बहरूपिया नहीं हूँ कि हर अदालत में मौजूद रहूं. हम लिखते ही ऐसा है कि लोग की पोल खुल जाती है ऐसे में हर कोई हमारे विरूद्ध मानहानी का मामला दर्ज करने लगेेगा और हम उसमें उलझ कर रह जायेगें तो फिर समाचार पत्र कब निकालेगें. इमरजेंसी के समय जब सारा देश पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहा था तक ब्लिटज ही एक मात्र ऐसा समाचार पत्र था जो खुल कर इंदिरा जी के पक्ष में आया और उसने इमरजेंसी की वकालत की थी. देश की किसी भी भाषाई समाचार पत्रो की पत्रकारिता में जो दंभ – खंभ होता था कि मंत्री से लेकर संत्री तक की बोलती बंद हो जाती थी लेकिन आज भी की इस इल्ली मीडिया ने उनको इतना महिमा मंडिता कर दिया है कि वे हमेशा ब्रेकिंग न्यूज में बना रहना चाहते है. मुझे अच्छी तरह से याद है दैनिक भास्कर की भास्कर समाचार सेवा के संपादक बने महेश श्रीवास्तव जी ने अर्जून सिंह को पंजाब का राज्यपाल तक बनवाने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोड़ा. अर्जूनसिंह ने दैनिक भास्कर की ग्वालियर प्रेस में ताला डलवा दिया. झांसी और भोपाल भास्कर के बीच झगड़ा करवा दिया स्थिति तो यह आ गई थी कि दैनिक भास्कर अब बंद हुआ कि तब लेकिन भास्कर को रमेश जी ने इतनी आफतो के बाद भी संभाले रखा और महेश जी की लेखनी के तांडव नृत्य को भी बंद नहीं होने दिया. उस समय मैं दैनिक भास्कर से जुड़ा था. मुझे अच्छी तरह से याद है कि महेश श्रीवास्तव जी के वे लेख जिन्हे छपने के बाद सभी को उस पर रियेक्शन का सभी को इंतजार रहता था. अर्जुन सिंह और महेश श्रीवास्तव के बीच ऐसी कलम की और राजनीति की जंग छिड़ी थी कि आखिर में महेश के लेखनी के तांडव नृत्य के आगे अर्जुन सिंह का मध्यप्रदेश की राजनीति से पुरा सफाया ही हो गया. आज लोग या तो उस पत्रकारिता को भूल गये जो कि आजादी के पहले और बाद में थी. आज पत्रकारिता के क्षेत्र में होटल से लेकर टोटल तक आ गये है. जिसके कारण पत्रकारिता एक प्रकार से रांड का कोठा हो गई है जहां पर पत्रकारिता में शामिल भांड – चारण – चाटुकार – भाट लोगो ने उसे अपनी रोजी – रोटी का माध्यम बना रखा है. मुझे याद है जब मैने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया था उस समय मैं समाचार पत्र के आपके पत्र संपादक के नाम कालम में अपने क्षेत्र की समस्या को भेजा करता था. उस समय आपके पत्र का इतना प्रभाव था कि अफसर भागे – भागे उस समस्या का निदान करने आते थे. आज पहले पेज की स्टोरी का मतलब पेज भरो रह गया है. आज तक बैतूल के अफसरो को पहले पेज की किसी ख़बर पर पसीना तक नहीं आया क्योकि उन्हे मालूम है कि बैतूल – भोपाल का पहला पन्ना भी बदल जाता है. बैतूल की पत्रकारिता की औकात भौरा – घार के बाद समाप्त हो जाती है. इधर डहुआ के बाद कोई भी पेपर में बैतूल का नामो निशान तक गायब रहता है. जबसे लोकल एडीशन छपने लगे है तबसे अधिकारियों की चंादी हो गई है. इन सबसे हट कर मैं अपनी कलम की बात जरूर करूंगा क्योकि कलम की ताकत का एहसास मैने बैतूल के पूर्व कलैक्टर अरूण भटट् को करा कर उनकी नानी याद दिला दी थी जब पंजाब केसरी दिल्ली के पहले पन्ने पर बैतूल से खबर छपी थी कि बैतूल के चिटनीस बंगले को खाली करवाने की बैतूल कलैक्टर ने ली सुपारी ……. ख़बर क्या थी एटम बम थी दिन भर फोन लाइन पर बैतूल कलैक्टर अपनी सफाई देते रहे और जाने के बाद भी बैतूल का बहुचर्चित चिटनीस बंगला तक खाली नहीं करवा पाये. जिले के पत्रकारो को अपनी नाक की इसलिए परवाह नही है कि उनकी नाक तो पहले से कटी हुई है. जो व्यक्ति अपने मान – सम्मान को गिरवी रख कर अधिकारियो और नेताओं के बंगले पर सुबह – शाम हाजरी लगाता हो उससे तो कलैक्टर कार्यालय का लखन काका लाख गुना अच्छा है क्योकि कलैक्टर से मिलने आने वाला हर कोई काका को पहले नमस्कार करता है और फिर पता करता है कि काका साहब कहाँ है…..? बैतूल के पत्रकारो को चाहिये कि वे पत्रकारिता के साथ – साथ जानीवाकर की एक फिल्म की सीख पर तेल मालिश और बुटपालिश तथा तलवा चटाई का भी काम साइड बिजनेस की तरह शुरू कर दे. खबर लिखना आता नहीं और संपादक बन गये. कभी कैमरा चलाया नहीं और कैमरामेन हो गये. एन जी ओ के पालतु कुत्ते बने पत्रकारिता को बदनाम कर रहे ऐसे लोगो पर तो रासुका और मासुका दोनो ही लगाना चाहिये क्योकि बैतूल में जल – जमीन – जंगल की आड में भोले – भाले आदिवासिायो को बरगलाने वाले और उसे $खबर बता कर चैनल पर दिखाने वाले दोनो ही देशद्रोही – आंतकवादी – नक्सलवादी है. ऐसे लोगो को बार – बार उकसा कर प्रशासन के लिए फजीहत पैदा करना और फिर उसे ब्रेकिंग न्यूज बनाना भी देश – प्रदेश के साथ विश्वासघात है क्योकि वे ही ढाई सौ लोग , एक ही गांव के लोग , पिछले बीस सालो से जल – जमीन – जंगल का नारा लगा रहे है आखिर उन्हे उनके गांव से बैतूल लाने का और उनसे शासन के खिलाफ धरना – प्रदर्शन करवाने का और फिर उनकी $खबरो को प्रकाशित एवं प्रसारित करने का बैतूल के केवल चार – पांच पत्रकारो ने ही टेण्डर ले रखा है क्या…? यह बात बैतूल के कलैक्टर साहब कैसे जान एवं समझ पायेगें क्योकि उन्हे इतना समय मिलता ही क्योकि काव्य प्रेमी सुबह – शाम आ जाते है काव्य पाठ सुनने के लिए…. इसी तरह हनुमान भक्त पुलिस अधिक्षक महोदय को भी बगले झांकने की आदत नहीं है. उन्हे तो बस सुंदर कांड और हनुमान चालिसा से समय ही नहीं मिलता….? यदि समय मिलता तो अपने बगल में बैठ कर चालिसा पढऩे वाले जालसाज पत्रकार भाईयो को वे जेल की हवा कबके खिला दिये होते लेकिन दिल के भोले साहब प्रजापति नहीं बल्कि प्रजापालक है इसलिए सब पर कृपा का अमृत बरसाते रहते है. रण फिल्म की पत्रकारिता भी पुलिस अधिक्षक एवं कलैक्टर साहब को विवेक की टाकीज में अकेले बैठ कर देखनी चाहिये …… यदि वो ऐसा करते है तो उन्हे पता लग जायेगा कि बैतूल की पत्रकारिता में कितने रणवीर और कितने रणछोड़ है. झुठी ख़बरो को प्रसारित करवाने वाले महारथ हासिल किये है. सेहरा के कुंजीलाल की मरने की ख़बर हो या फिर बिरजू के नमक खाने की , हर झुठ को सच दिखाने वाले लोगो ने तो एक महिला से एक साथ नौ बच्चे को जन्म दिलवा दिया. झुठे – मक्कार – दगाबाज पत्रकारो ने तो जिले की खबरो को ऐसे परोसा किया कि वे सब कुछ के जानकार है. रेल बजट पर एक प्रतिक्रिया स्टेशन सलाहकार समिति के सदस्य के नाम से प्रकाशित हुई जबकि स्टेशन सलाहकार समितियां पिछले दो साल से भंग है और बैतूल जिले में ही नहीं पूरे देश के किसी भी स्टेशन की सलाहकार समिति नहीं है. मेरी बात पर यकीन न आये तो नागपुर डी आर एम के पी आर ओ से पता किया जा सकता है. अब झुठ बोलने वाले और लिखने वालो को जबसे कौवे ने काटना बंद कर दिया है तबसे लोग – झुठ पर झुठ बोले जा रहे है. सच बोलो और सच लिखो ऐसा तो कोई करता नहीं क्योकि करेगा तो फिर पिटेगा या फिर समाचार पत्र से लात मार कर निकाला जायेगा. सच कडुवा होता है यह बात अभिताभ बच्चन उर्फ विजय मलिक जानते थे तभी तो उन्होने अपने बेटे के झुठ को सबके सामने लाने से पहले यह तक नहीं सोचा कि इस कदम से उसके बेटे को अतनी आत्मग्लानि होगी कि वह आत्महत्या कर लेगा लेकिन बैतूल के पत्रकारो में ऐसा दम कहां कि वे आत्महत्या की स्थिति लाये. अपनी झुठी ख़बर पर भी पर्दा डालने में एक्सपर्ट रहते है. कई बार मेरा मन करता है कि ऐसी बदहाली भी जिल्लत भरी जिंदगी जीने से तो अच्छा है कि कहीं चाय की दुकान खोल लू क्योकि शहर की चाय की दुकान वालो के आजकल पत्रकार बन जाने से चाय की दुकाने कम हो गई है. चलते – चलते जिले की बदनाम पत्रकारिता को एक फिर लाल सलाम ……

”कोई तो मुझे रामूदेव बाबा बनाओं ……!ÓÓ
लेख:- रामकिशोर पंवार  ”रोंढ़ा वालाÓÓ
मुझे अब पता लग रहा है कि बाबा बनने का कितना फायदा होता है. टी वी चैनलो पर  बाबा के प्रवचन – भजन – कीर्तन – दर्शन के फायदे इतने होते कि बाबा लोगो की चांदी हो जाती है. कल का चोर – उच्चका – डाकु – लूटेरा – बलात्कारी – दुराचारी अपनी पति द्धारा कभी स्वामी के रूप में नहीं स्वीकारा गया व्यक्ति थोड़े से रास्ते परिवर्तन के बाद जगत स्वामी हो जाता है. नेशनल से लेकर वह इंटरनेशनल हो जाता है. ओशो की तरह महान और स्वामी इच्छाधारी की तरह पहचान बना लेता है. योग से भोग और फिर संभोग से समाधी तक का शार्टकट रास्ता दिखाने वाला महान दार्शनिक ओशो की तरह वह भी अमेरिका जैसे शहरो में स्वंय का शहर – नगर – महानगर बसा सकता है. बस करना क्या है यह कोई नहीं बताता लेकिन सभी बाबाओं के जलवे देख कर मन में यही तराना गुंजने लगता है कि  ”हर तरफ मेरा ही जलवा ……!ÓÓ अब बाबा बनने का एक फायदा यह होता है कि मोदी से लेकर लेकर शिवराज तक पैरो के नीचे बैठे कहते रहते है कि ”बाबा जी हमारे लायक कोई सेवा हो तो एक बार हमें भी आपकी सेवा का मौका तो दीजिए……!ÓÓ मुख्यमंत्री से लेकर संत्री तक के साथ फोटो छपने के बाद यदि कोई स्कैण्डल में फंस भी गये तो मंत्री से लेकर संत्री तक स्वंय अपने को बचाने के चक्कर में आपको झुठा फंसाने का तराना तो जरूर गायेगें. देश में बाबा बनने की तरकीब अच्छी है. इससे आपके पचास फायदे है लेकिन जो पक्के है उनमे पहला नाई का खर्चा बचेगा. दुसरा साबुन और शैम्पू से नहाने का खर्च बचेगा. तीसरा मंहगे कपड़ो का खर्चा बचेगा. चौथा आने – जाने के किराये का खर्चा बचेगा. पांचवा खाने और पीने का भी खर्चा बचेगा. गोबर की या फिर शमशान की राख को शरीर में लगाने से बाबा बनने की पहली राह आसान हो जायेगी. मैने एक पुस्तक में पढ़ा था कि सफल ज्योतिषी कैसे बने…? उस किताब की तरकीब बाबा बनने पर अचमाई जा सकती है. जैसे कोई भक्त आपके पास आकर सवाल करता है कि ”बाबा मेरे घर लड़का होगा की लड़की ……!उसे यदि लड़का बताया तो अपने पास की डायरी में लड़की लिखो यदि वह आकर कहता है कि ”बाबा आपने झुठ बोला था , मेरे घर तो लड़की हुई है ……!तब उसे गालियां देकर दुत्कार कर – फटकार कर यह कहो कि ”मूर्ख बाबा को झुठा साबित करता है , देख मैने अपने चेले से इस डायरी में तेरे नाम के आगे क्या लिखा था…..! कुछ दिनो बाद तो आप कहो कुछ और लिखो कुछ के चलते इतनी प्रसिद्धी पा जाओगें कि लोगो की आपके दरबार में कतारे लगना शुरू हो जायेगी. पहले पैदलछाप आया करते थे कुछ दिनो और महिनो बाद हवाई जहाज आना शुरू हो जायेगा. बाबा बनने का एक यह भी है कि बाबा के पास खाने और पीने की कोई कमी नहीं रहेगी. पीने के पानी को तरसने वाले बाबा के पास मिनरल वाटर होगी साथ में फलो का और फूलो का जुस भी जिसको पीने के बाद बाबा में वह ताकत और फूर्ति आ जायेगी कि वह रामदेव से लेकर कामदेव से भी अधिक कलाबाजी दिखा पायेगा. मुझे हर हाल में बाबा बनना है. बाबा बनने से परिवार की जवाबदारी से भी छुटकारा मिल जायेगा. बीबी से लेकर टी वी तक की वहीं घिसी – पिटी किस्से कहानियों से भी छुटकारा मिल जायेगा. बाबा बनने के लिए मैने सोचा है कि मैं अपने शहर के बाहर से चार – पांच मेरी तरह के चतुर – चालक लोगो को अनुबंध पर लेकर आ जाऊ ताकि वे शहर और गांव में जाकर मेरी कीर्ति और यश का गान कर सके. दो चार टुर्चे टाइप के भूखे – नंगे पत्रकारो और टी वी चैनलो के रिर्पोटरो और कैमरामेनो को भी अपनी गिरोटी में शामिल करने से एक फायदा मिलेगा कि वे लोग मुझे भी कुंजीलाल और बिरजू की तरह हाईलाइट कर देगें. ऐसा करने से मेरी लोकप्रियता की टी आर पी भी बढ़ेगी और मैं भी सफेद उल्लू की तरह भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन गरूड़ महाराज की तरह पूजा जाऊंगा. जिस रामू को अब तक कोई घास नहीं डालता था उसके पास तक पहुंचने वालो की आस ही मुझे श्री श्री एक हजार चार सौ बीस रामूदेव बाबा का दर्जा दिला देगी. जिस देश में आज भी असली की जगह नकली को पूला जाता है. स्थिति तो यह तक है कि इस देश में जगतगुरू शंकराचार्य तक नकली हो सकते है तब मेरे रामूदेव बाबा बनने की राह में कौन हरामी की लाल रोड़ा अटका पायेगा. बाबा बनने के फायदे को देख कर मै सोच रहा हँू कि वन विभाग की किसी पहाड़ी पर अतिक्रमण करके एक आश्रम बना लेता हँू. आश्रम ऐसी जगह पर हो कि लोगो को आने और जाने में आसानी हो इसलिए मैं सोचता हँू कि सेन्टर पाइंट बरसाली की पहाड़ी सबसे अच्दी रहेगी. इसका आगे चल कर फायदा यह होगा कि सेन्टर पाइंट बरसाली रेल्वे स्टेशन माडल स्टेशन बन जायेगा और फिर राजधानी से लेकर शताब्दी एक्सप्रेस तक रूका करेगा. बाबा होने के कारण मेरे चेले चपाटो में ऐसे हाई – फाई लोग जुड़ जायेगे कि उनके हवाई जहाजो की लेडिंग के लिए एक हाई प्रोफाइल हवाई पटट्ी भी बन जायेगी. कुछ दिनो तक लोकल चैनल पर चाचा से मिल कर अपना लाइव टेलिकास्ट करवाने के बाद खुद का ही रामूदेव बाबा चैनल शुरू कर देगें. दिन भर अपने उल्टे – सीधे आलेखो व्यंग को ही अपने प्रवचनो का आधार बना कर लोगो को नित्य नई अपनी काल्पनिक कथाओं के गहरे सागर में गोते लगवायेगें. वैसे भी मेरी बीबी से लेकर बच्चे तक मुझे मेरे यार – दोस्तो की तरह फेकोलाजी का मास्टर मान चुके है.मै फेकने में इतना मास्टर मांइड हँू कि मेरे सामने कोई भी बाबा और बाबी टिक नहीं पायेगें. मेरे बाबा बनने की राह मेरी टांग टुटने के बाद और भी आसान हो गई है क्योकि अब तो घुमना – फिरना – मोटर साइकिल चलाना संभव नहीं है ऐसे में कमाई का सबसे अच्छा तरीका रामू बाबा बनने से कोई दुसरा दिखाई नहीं देता. बाबा बनने के बाद मेरे जिले के कलैक्टर कार्यालय का लखन काका मुझे भाव नहीं देता उसी  लखन काका से बड़े कई लोग अपने आला अफसरो के साथ कतार में खड़े होकर मुझे भाव देने के लिए मरे जायेगें. मेरा दिन प्रतिदिन भाव भी बढ़ता जायेगा. मेरे फिर कोठी बाजार से लेकर रिलायंस के बिग बाजार में तक में आसमान को छुते भाव स्क्रीन पर नज़र आयेगें. उन बाजारो में मेरी फोटो से लेकर चरण पादुका तक बेभाव बिकेगी . इस तरह मैं रातो रात महान बन जाऊंगा क्योकि बुर्जग लोग कहते है कि राई के भाव रात में ही बढ़ते है. मैं भी तो राई नहीं रामू भाई हँू इस बात में कोई दो मत नहीं लेकिन मुझे कोई रामूदेव बाबा न बनाये . आज नहीं तो कल मैं अपने गांव से लेकर वाशिंगटन तक का सर्वाधिक खुलने वाली बेवसाइट की तरह लोकप्रिय – जनप्रिय बाबा बन जाऊंगा लेकिन कोई तो मुझे भी आसाराम – रामदेव – कामदेव की तरह बाबा बनाये.  भैया लोग याद रखना कहीं गलती से मुझे शैलेन्द्र बाबा ना बना देना …? वरणा मुझे लोग भाजपा का मीडिया प्रभारी समझ कर मुझे ही नोचने – खरोचने लग जायेगें. वह तो भला हो शैलेन्द्र बाबा की हिम्मत का जिसकी दाद देनी चाहिये कि वह इतने सारे अपनी बिरादरी के लोगो को झेल पाते है. मेरा इस समय बाबा बनने का टाइम भी सही है क्योकि गर्मी पडऩे के बाद लोग ठंडे स्थान पर चले जाते है. ऐसे में बरसाली की पहाडिय़ा सबसे ठंडी है. बरसात में उस स्थान पर शानदार झरना है इसलिए पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान सबसे बढिय़ा स्थान रहेगा. मैं अपने लोगो से बार – बार यही कहता हँू कि मुझे बाबा बनाओ , मुझे बाबा बनाओ ….?  बाबा बनने से मकान मालिक का किराया देने का , बिजली के बिल भरने का , पेपर छपवाने का , पेपर के लिए विज्ञापन मांगने का , होली – दशहरा साहब लोगो से भीख मांगने का , लिफापा मांगने का चक्कर बच जायेगा. मेरे बाबा बनने से भाई लोगो का सबसे ज्यादा फायदा होगा क्योकि वे मेरे टेंशन में दिन प्रतिदिन और भी काले होते चले जा रहे है. उन्हे फिर किसी तंत्र – मंत्र क्रिया की जरूरत नहीं पड़ेगी और तो और उनके कोर्ट – कचहरी के चक्कर में जेल जाने का डर भी नही रहेगा. कोई यदि आगे नहीं आता है तो भाई लोगो को ही मुझे बाबा बनवा की तरकीब सोचना चाहिये. वैसे भी भाई लोग किसी को भी बाबा और दादा बनाने में एक्सपर्ट है. बाबा बनने के इतने सारे फायदे गिनाने के बाद कहीं ऐसा न हो कि मेरे से पहले भाई लोग ही बाबा बन जायें. वैसे देखा जाये तो बाबा बनने से जो मान – सम्मान मिलता है वहीं भीख मांगने से भी नहीं मिलता. बाबा बनने का एक सबसे बढिय़ा फायदा यह है कि अपनी भी सीडी वाले और इच्छाधारी बाबा की तरह लाटरी लग जायेगी. पांच सौ तो नहीं पर चार – पांच तो अपनी भी सेवा चाकरी में लगी रहेगी लेकिन बाबा बनने से पहले मुझे बार – बार इस बात का डर सता रहा है कि कहीं मेरी उन बाबाओं की तरह पुलिस और जनता ने कंबल कुटाई और सार्वजनिक धुलाई कर दी तो मेरी तो अभी एक टांग टूटी है बाद मे पता चला कि मैं जगह – जगह से टूट – फूट जाऊंगा और लोग मुझे टूटे – फूटे – खुब पिटे बाबा जी की तरह जानने – पहचानने लग जायेगें. बाबा बन कि नहीं यह सोच कर मन बार – बार कांप जाता है कि क्या करू क्या न करू…..? मेरी अंतरआत्मा से जब मैने इस बारे में सवाल किया तो उसने मुझे दुत्कार और बुरी तरह फटकारा वह कहने लगी कि ”जवाबदेही और जिम्मेदारी से मुँह मोड़ कर भागने वाला बाबा नहीं कायर – डरपोक इंसान होता है , परिवार और संघर्ष के साथ लडऩे वाला ही महान होता है. कई लोगो की जब हिम्मत टूट जाती है तो वे आत्महत्या कर लेते है. लेकिन तेरी टूटी टांग फिर जुड़ जायेगी लेकिन एक बार टूटी हिम्मत कभी नही जुड़ पायेगी. सहीं इंसान बनना है तो अपने परिवार – बीबी – बच्चो की जिम्मेदारी का वहन करो और अच्छे आदर्श पति -पिता बनने की कोशिस करो ताकि लोग आने वाले कल में तुम्हारी तारीफ कर सके कि इतने संघर्ष के बाद भी यह इंसान टूटा नहीं बल्कि सारे बवडंरो को झेलने के बाद भी आज भी पत्थर रूपी शिला की तरह टिका है. बाबा बनने से लोग यही कहेगें कि देखो बीबी – बच्चे पाल नहीं सका और बाबा बन गया डरपोक कही का ……..!ÓÓ अंतरआत्मा की आवाज को सुनने के बाद मैने सोचा कि भगवान ने दो हाथ दिये है इसी से ऐसा कुछ लिखा जाये कि समाज में मेरी तरह कोई दुसरा बाबा बनने की हिमाकत न कर सके.

भस्मासुर से बचने के लिए छोटा महादेव की गुफाओं में छुप गए थे भोलेनाथ
लखपति – करोड़ पति व्यक्ति भी भीख मांगते हुए गाता हैं ”महादेव जाने को पैसे दे ओ ना ..
बैतूल (रामकिशोर पंवार ) भगवान जटाशंकर , बाबा भोलेनाथ , देवाधिदेव महादेव आदि असंख्य नामों से जाने पहचाने वाले उमापति महादेव के दर्शन के लिए गांवों से श्रद्धालु भक्तो का जन सैलाब अब शिवधाम पचमढ़ी के लिए निकल पड़ा हैं। नंगे पांव पैरो में घुंघरू बांधे सौ किलो से लेकर डेढ़ सौ किलो तक का त्रिशुल लेकर अपनी मन्नत पूरा होने पर बाबा के स्थान पर चढ़ावा चढ़ाने के लिए निकले भक्तों की भीड़ महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों के सम्पन्न किसान जो कि लखपति करोड़पति तक होते है वे अपने घर से लेकर पचमढ़ी तक नंगे पांव रास्ते भर भीख मांगते और  ” महादेव जाने को पैसा दे ओ ना , अजी दे ओ ना ÓÓ गीत गाते मदमस्त होकर नाचते हुए जाते हैं। लगभग एक पखवाड़े की इस पैदल यात्रा के लिए लोगो का अपने गांवो और घरो से निकलना शुरू हो गया है। बैतूल जिले की सीमा से प्रवेश करते भक्तगण जिले की सीमा से लगे छिन्दवाड़ा जिले के जुन्नारदेव नामक स्थान पर पहली सीढ़ी से पहाड़ी रास्ता तय करते हुए पचमढ़ी पहुंचते है। इस दौरान वे रास्ते में मुकाम करते हैं लेकिन अपने साथ लाए त्रिशुल को जमीन पर नहीं रखते हैं। बैतूल जिले में पचमढ़ी की तरह शिव गुफा है जिसे छोटा महोदव कहा जाता हैं। इस धार्मिक आस्था एवं जनश्रद्घा के पवित्र स्थल भोपाली का छोटा महादेव का अपना विशिष्ट स्थान हैं। यूं तो भारत की पावन भूमि पर अनेक तीर्थस्थल जन आस्था के केन्द्र बने हुए है। बैतूल जिले में भी धार्मिक आस्था व श्रद्घा के केन्द्र युगाधिपति महाकाल की असीम अनुकम्पा से स्थापित है। ऐसा ही पावन स्थल बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी विकासखंड में भोपाली नामक स्थान पर ‘छोटा महादेवÓ पावन तीर्थस्थल है। सतपुड़ा के सुरम्य वादियों में बसा यह पवित्र स्थल जागृत व लाखों, करोड़ों शिवभक्तों की तपस्थली हैं इसके दर्शन से सभी की मनोकामना, बाधाएं, कष्टï कठिनाईयां दूर होती है। इस स्थान के बारे में बताया जाता है कि भगवान शंकर का पीछा भस्मासुर के द्वारा किया जा रहा था तब भगवान शंकर इस घमासान जंगल में आकर छुप गए व अपनी तपस्या में लीन हो गए थे। यहां परआज भी जन आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र बनी बहुत सी गुफाएं है। इस गुफा में भगवान शंकर का शिवलिंग हैं। इसके ऊपर गाय कोठा नामक प्राकृतिक स्थान है। इसके ऊपर चौरागढ़ हैं वहां पर मंदिर भी है। इस स्थान पर खड़े रहकर पचमढ़ी के चौरागढ़ का आभास होता हैं। चौरागढ़ सतपुड़ा की सबसे ऊंची चोटी है। इस स्थान पर खड़े होकर प्रकृति के विराट स्वरूप के दर्शन होते हैं। इस पर्वत शिखर पर 3-4 एकड़ समतल भूमि हैं वहां पर एक मठ है वहां फलों का बगीचा भी है जो यहां का पवित्र सिद्घस्थल कहा जाता हैं। यहां पर सिद्घ महापुरूष आज भी लोगो को मिलते रहते थे। बताया जाता है कि इस स्थान पर ‘संस्कृत विद्यापीठÓ था, जहां से संस्कृति की शिक्षा प्रदान की जाती थी।
भोपाली में भगवान शंकर का मेला प्रतिवर्ष शिवरात्रि को लगता हैं। हजारों श्रद्घालु इस मेले में आते हैं वे अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस मेले में सुदूर ग्रामीण अंचलों से भक्तगण बैलगाडिय़ों से, ट्रेक्टरो से, बसों से, साइकिलों से व पैदल हजारों की तादाद में आते हैं। प्रत्येक यात्री ‘हर बोला हर-हर महादेवÓ का जयघोष करते चलते हैं। राह चलते भक्तगण एक दूसरे से मिलने पर ‘सेवा भगतÓ कहकर अभिवादन करते हैं। बड़े व छोटे महादेव जाने वाले भक्त गण हाथ-पांव में हल्दी एवं माथे पर आड़ा टीका लगाते हैं व गले में चावल (पीले करके) की पोटली टांगते हैं। यह पहचान शिवभक्तों की हैं। भगवान भोलेनाथ को भेंट चढ़ाने के लिए भक्तगण भारी वजनदार त्रिशूल भी लेकर चौरागढ़ पर भेंट करते हैं। महादेव जाते समय श्रद्घालु नाचते गाते वाद्य यंत्र बजाते भगवान भोलेनाथ के दरबार में पहुंचते है। भक्तगण सामूहिक रूप से मराठी भाषा में ‘पोवाड़ाÓ गाते हैं। जो कुछ इस प्रकार हैं कि ”महादेवा चा वाटन गा देवा रे माझापेरला लसून गा, पेरला लसून, पोहा निघाला गसून…।  हर बोला-हर-हर महादेव॥ सोडल्या महल माडय़ा रे, देवा रे माझा , सोडल्या महल माडय़ा गा, पाप्या नाही सोड़े तन्या चा झोपडय़ा…।  हर बोला-हर-हर महादेव॥ महादेवा चा वाट न हो, देवा रे माझा , म्या पेरला जवस गा, म्या पेरला जवस जोडय़ा घोडय़ा चा नवस गा भोले नाथा…।  इसी प्रकार आदिवासी अंचल से हजारों शिवभक्त भगवान के दर्शनार्थ सपरिवार आते है व अपनी लोक भाषा गोंडी में गाते बजाते हुए कहते है- महादेव पार्वती दिन पसीता , तेदा-तेदा महादेव सर्री उड़ीता भोपाली की तराई में ‘अम्बा माई का भव्य मंदिर है। यहां पर श्रद्घालुओं के रूकने के लिए सराय बनी हुई हैं। भगवान भोलेनाथ के दर्शन हेतू जाने के लिए भी शासन ने सीढिय़ों का निर्माण कर दिया है। भक्तगण सरलतापूर्वक भगवान भोलेनाथ के दर्शन करते है। पूजा अर्चना करते हैं. यहां पर स्थापित शिवलिंग के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है. यही पर एक जल का स्त्रोत है जिसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ होता है. इस जल के अभिसिंचन से खेतों को बचाया जा सकता हैं. पशुओं को खुरी रोग से भी मुक्ति मिलती है. भोपाली छोटा महादेव पहुंचने से पूर्व देनवा नदी पार करना पड़ता है. यहां पर स्नान, ध्यान, पूजा अर्चना कर आगे बढ़ते है. कहा जाता है कि देनवा नदी में शंकर जटा का पानी प्रवाहित होता है. इस नदी की विशेषता है कि जब भी मेले का समय आता है तब जल स्तर बढ़ जाता है. भोपाली मेला 10 दिनों तक लगता है. जहां पर दुकानें लगती हैं उस स्थान को ‘भुवानÓ कहते है. इस मेले से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को अपनी अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति जैसे कृषि का सामान अनाज की कोठियां रंग-बिरंगे परिधान व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति इस मेले से होती है. इस मेले में शिवरात्रि के अवसर पर अखंड रामसत्ता, रामायण आदि को प्रतियोगिताएं होती है जिससे भक्तों का मनोरंजन भी होता हैं. भगवान भोलेनाथ के दरबार में शिवभक्तों को भोजन कराने की परंपरा कई वर्षो से चली आ रही है इसलिए यहां पर क्षेत्रवासियों द्वारा भोजन भंडारा की व्यवस्था की जाती है. अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए एक बार छोटा महादेव भोपाली के दर्शन कर जीवन को धन्य बनाएं.

गाढ़ी कमाई के बाद बन गए है मुन्नाभाई
बैतूल, रामकिशोर पंवार: संजू बाबा की फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस की तर्ज पर बैतूल जिले के एक आयुवैदिक कालेज द्वारा फर्जी तरीके से फर्जी डाक्टर बनाने के एक गोरखधंधे का बीते दिनो खुलासा हो गया। मेउिकल कालेज की मान्यता निरस्त होने के बाद मेउिकल के छात्रो को मीरिंडा का छटका जोर से लगा। अपने उज्जवल भविष्य के सुखद सपनो एवं अपने अभिभावकों की गाढ़ी कमाई का लाखों रूपया खर्च कर डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने आए अनेक छात्रों ने कालेज प्रबंधन की पोल खुलने के बाद अपना उग्र रूप दिखा दिया। छात्रों के उग्र रूप के आगे कॉलेज प्रबंधन छात्रों के सवालो का जवाब देने के बजाय बगले झांकते नज़र आ रहा है। अब कालेज की अव्यवस्थाएं देखते हुए उनका यह सपना कभी न पूरा होने की मनोस्थिति में छात्रों का उग्र रूप लेना स्वभाविक है जो किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं। नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले का एक मात्र तथाकथित ओम आयुर्वेदिक कॉलेज के छात्रों आरोप है कि कालेज प्रबंधन हमें भी मुन्नाभाई की तरह फर्जी डाक्टर बना रहा है। उनका कहना है कि यहां से पढ़कर निकलने के बाद उनके पास डिग्री जरूर होगी लेकिन उनके द्वारा किया जाने वाला इलाज किसी भी किसी बंगाली या फिर नीम हकीम डाक्टर की तरह ही होगा। सबसे विचित्र बात यह हैं कि जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर चल रहे इस फर्जीवाड़े में बैतूल जिले के कई नामचीन लोग शामिल है। ओम आर्यर्वेदिक कालेज की मौजूदा स्थिति यह हैं के यहां पढ़ाने के लिए एक शिक्षक भी नहीं है। आन्दोलित कॉलेज के छात्रों के अनुसार यह स्थिति हमेशा से ही रही है। इन छात्रों को हर साल मेडिकल से जुड़े हुए दस सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए कम से कम दो-दो शिक्षक हर सब्जेक्ट में एमडी विशेषज्ञ के रूप में होना चाहिए। मौजूदा परिस्थिति में छात्रों के द्वारा किताबों से रट्टा मारकर परीक्षाएं तो पास कर ली जाती हैं लेकिन पास बेसिक ज्ञान न होने की वज़ह से उनकी तुलना भी आगे चल कर मुन्ना भाई की तरह ही होगी। मेडिकल कालेज के तृतीय वर्ष एक छात्र ने बताया कि पिछले तीन साल में मेडिकल कॉलेज के अंदर महज एक दिन प्रेक्टिकल हुआ और उसमें भी कहीं कुछ भी नहीं बताया गया। जबकि हर सब्जेक्ट में मेडिकल में प्रेक्टिकल का होना अनिवार्य है। सफेद हाथी साबित हो रहे मेडिकल कालेज परिसर के अस्पताल में कुछ भी नहीं होता है। स्थिति तो यहां पर यह हैं कि इस अस्पताल में आज तक कभी कोई मरीज भर्ती नहीं हुआ हैं। इंटरशिप तो कभी किसी छात्र को कॉलेज में नहीं करवाई गई। यहां पर पढ़ाई जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। फीस जरूर पूरी ली जाती है। परीक्षा और प्रेक्टिकल फीस की रसीद तक नहीं दी गई।  डॉ. जीडी राठी, सचिव प्रबंध समिति ओम आयुर्वेदिक कॉलेज
का कहना हैं कि उनके पैसे की कमी की वजह से शिक्षकों और व्यवस्थाओं को पूरी नहीं कर पा रहे हैं, उसके बाद भी हमारा रिजल्ट सबसे अच्छा रहता है।

क्या मिल गया सरकार तुम्हे इमरजेंसी लगा के हमारी नसबंदी करा के……! ”लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुंवारे की ही कर डाली नसबंदी
बैतूल, रामकिशोर पंवार: स्वर्गीय श्रीमति इंदिरा गांधी के शासनकाल में नसबंदी को लेकर हुई हाय:तौबा के बाद आई एस जौहर की बहुचर्चित फिल्म ”इमरजेंसी”    का बहुचर्चित गाना ”क्या मिल गया सरकार तुम्हे इंमरजेंसी लगा के हमारी नसबंदी करा के हमारी बंशी बजा के …..! ” आमला तहसील मुख्यालय की ताजी घटना के बाद लोगो की जुबां पर बरबस गुनगुनाने लगा हैं। बैतूल जिले में एक बार फिर जबरिया नसबंदी करवाने के सरकारी प्रयासो की पोल खोल कर रख दी इस घटना का मुख्यपात्र बीस साल का वह युवक हंै जो सरदर्द के लिए डाक्टर के पास आया था। वीरेन्द्र उर्फ मोनू आत्मज रामकिशोर मालवीय निवासी बढ़ई मोहल्ला आमला ने बताया कि उसे एक गोली दी गई थी जिसके बाद वह बेहोश हो गया। मोनू के साथ गया उसका मित्र जब मोनू के डाक्टर के पास से दस मिनट तक वापस न आने पर उसने पुछताछ की तो पता चला कि आपरेशन थियेटर में उसकी नसबंदी की जा रही है। इस घटना की जानकारी मोनू की मां श्रीमति विमला मालवीय को मिली तो उसने चिकित्सालय आकर हंगामा खड़ा कर दिया। अपने पुत्र को घर ले जाकर महिला एवं उसके पति रामकिशोर मालवीय ने आमला पुलिस थाना में इस बारे में रिर्पोट दर्ज करवाई। आमला थाना प्रभारी श्री घनघोरिया ने बताया कि इस संदर्भ में रिर्पोट दर्ज कर ली गई तथा जांच उपरांत दोषियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया जायेगा। इधर आमला के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डां बी .पी . चौरिया ने स्वीकार किया कि इस तरह की घटना हुई लेकिन युवक स्वेच्छा से आया था तथा उसने अपना नाम रजिस्ट्रर में वीरेन्द्र के स्थान पर मोनू सोनी लिखवाया था। इधर घटना के 48 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तथाकथित परिवारीक सदस्य श्रीमति सीमा चौरिया के पति डां बी पी चौरिया एवं अन्य दोषियो के खिलाफ कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया है। शहरी क्षेत्र की इस प्रकार की घटनाओं के सामने आने के बाद सरकारी जनसंख्या नियंत्रण के आकड़ो पर भी शंका होने लगी है। मात्र लक्ष्यपूर्ति के लिए शासन के प्रयासों पर पानी फेरने के जब शहरी क्षेत्र आमला में कुंवारे युवक की नसबंदी कर दी जाती है तब दूरस्थ ग्रामीण अंचलो में क्या कुछ नहीं होता होगा। सवाल तो अब उन सरकारी दावों पर भी होने लगा है जिसमें कहा गया है कि बैतूल जिले में इस समय कालापानी के नाम से मशहूर आदिवासी ब्लॉक भीमपुर में आदिवासियों ने परिवार नियोजन को अपनाकर लक्ष्य हासिल करने ब्लॉक को अव्वल नम्बर पर हंै। ब्लॉक में 31 मार्च 2011 के लिए निर्धारित नसबंदी ऑपरेशन का लक्ष्य 20 जनवरी को पूरा हो चुका है। भीमपुर सहित प्रदेश के सिर्फ दो ब्लॉक ही इस अवधी में सौ फीसदी लक्ष्य हासिल कर पाए है। विकास और भौगोलिक संरचना की विषमताओं की वजह से आदिवासी ब्लॉक भीमपुर को कालापानी के नाम से जाना जाता है। बावजूद इसके क्षेत्र के आदिवासी अब जागरूक हो रहे है। बीएमओ डॉ रजनीश शर्मा ने बताया कि परिवार नियोजन के लिए शासन ने वर्ष 2010-2011 को परिवार कल्याण वर्ष घोषित किया था जिसके तहत भीमपुर ब्लॉक को एक अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2011 तक 1430 नसबंदी ऑपरेशन कराने का लक्ष्य मिला था। आदिवासी अंचल ने इस लक्ष्य को ढाई माह पहले ही हासिल कर लिया है। ब्लॉक में 20 जनवरी तक आयोजित 37 शिविरों में कुल 1448 नसबंदी ऑपरेशन हुए है। जिनमें 1391 महिलाएं एवं 57 पुरूष शांिमल है। परिवार नियोजन भोपाल एवं नर्मदापुरम् संभाग में अव्वल आने पर भीमपुर ब्लॉक को पुरस्कार और प्रशस्तिपत्र से नवाजा गया है। बैतूल जिले के ग्रामीण अचंलो में गरीब – लाचार  लोगो के साथ क्या प्रलोभन देकर या जबरिया नसबंदी नहीं करवाई जा रही होगी। जबसे ग्राम पंचायतो के सचिवो को एक माह में अनिवार्य रूप से दो लोगो की नसबंदी करवाने के लिए बाध्य किया जा रहा है वहां पर अन्य शासकीय कर्मचारियों के क्या हाल होगें। अपनी नौकरी बचाने के लिए पूरे जिले में ऐसे कई लाचार बेबस लोग मिल जायेगें जो कि स्वेच्छा से नसबंदी नहीं करवाये होगें।

आजतक के स्ट्रींग आपरेशन ने पसारा गांव में खौफ का सन्नाटा
निरगुड़ में अंध श्रद्धा समिति ने दो हजार लोगो के बीच कथित दहशत की खबर की पोल खोली
बैतूल जिले की मुलताई तहसील की ग्राम पंचायत निरगुड में किसी भी प्रकार के खौफ – भूत प्रेत – बाधा या सन्नाटा पसर जाने की आजतक न्यूज चैनल पर प्रसारित $खबर का अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति और उससे जुड़े लोगो ने खंडन किया है। ग्राम पंचायत की महिला सरपंच श्रीमति पूनम एवं सचिव नकुल भी इस तरह की अफवाहों को नकारते हुये ग्राम में दो हजार लोगो के बीच कथित खौफ एवं सन्नाटे को झुठ का पुलिंदा बताते है। ग्राम के सचिव नकुल के अनुसार कुछ लोगो द्वारा गांव की एक जमीन को लेकर होने वाले सौदे के अचानक निरस्त हो जाने के बाद से उक्त जमीन को लेकर ऐसी अफवाह टीवी चैनल एवं न्यूज पेपर के माध्यम से प्रसारित एवं प्रकाशित करके गांव के सीधे – साधे ग्रामिणो में अंधविश्वास को पैदा कर रहे है। सचिव नकुल का तो सीधा आरोप है कि ग्राम के बारे में प्रसाति आजतक की खबर प्रायोजित एवं किसी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए प्रसारित की गई है। नकुल ने आजतक न्यूज चैनल के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने की बात करते हुए कहा कि गांव का शांतप्रिय माहौल मे भूत – प्रेत – किसी प्रकार बाधा की आड़ में खौफ पैदा किया गया है। सचिव के अनुसार वह स्वंय अपने गांव के खेत में प्रतिदिन रात्री नौ बजे जाता रहता है। देर रात्री तक खेतो सब्जी – भाजी तथा गेहूं की फसल को पानी देने के बाद वह देर रात्री तक लौटता है लेकिन गांव में किसी भी प्रकार का कोई डर या खौफ का सन्नाटा नहीं है। आजतक पर खबर प्रसातिर होने के बाद पडौसी राज्य महाराष्ट्र मे कार्यरत अनिस संस्था के पदाधिकारियो ने भी देर रात्री तक डेरा डाल कर लोगो को किसी भी प्रकार से गुमराह न होने एवं प्रेत बाधा के खौफ न डरने की सलाह भी दी। अंध श्रद्धा र्निमूलन समिति के पदाधिकारियों के साथ गांव की महिला सरपंच एवं सचिव ने भी लोगो को इस फर्जीवाड़े से जागृत करवाया। बैतूल जिले में इसके पूर्व भी आजतक पर ऐसी कई प्रायोजित ख़बरे प्रसारित हुई जिससे जिले की छबि धुमिल हुई है। अनिस का दावा है कि बैतूल जिले में महज सनसनी और डर पैदा करने के लिए कुछ लोगो की कमाई का माध्यम बने आजतक न्यूज चैनल के रिर्पोटर द्वारा बिरजू के नमक खाने से लेकर दर्जनो ऐसी खबरे मात्र सनसनी फैलाने की नीयत से प्रसारित की है। गांव के सरपंच एवं सचिव ने दावा किया है कि कोई भी गांव में आकर सच्चाई को जान सकता है कि गांव के दो हजार लोगो में किस प्रकार का खौफ है।

एक रूपए के 85 पैसे गायब करने वाले एक अफसर के खिलाफ मामला दर्ज पूरे प्रदेश में 5 सौ ज्यादा मामले दर्ज लेकिन दोषियो को नहीं मिली सजा
बैतूल, केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेरा ) तहत भेजे गये रूपए का किस तरह उपयोग किया जाता है…..?  यदि वह देखना है तो एक बार मध्यप्रदेश के माडल बने बैतूल जिले में एक जरूर आइए ……! 2 फरवरी 2009 को यूपीए की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेरा ) के सफल क्रियाव्यन का प्रथम पुरूस्कार पाने वाली टीम के एक सदस्य के खिलाफ हाल ही में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने  मामला दर्ज किया है। पुरूस्कार पाने वाले मुखिया के खिलाफ पूर्व में ही राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) मामला दर्ज कर चुकी है। वैसे तो ब्यूरो प्रदेश के हर दुसरे या तीसरे अफसर के खिलाफ अभी तक पांच सौ से अधिक मामले दर्ज कर चुकी है। राज्य सरकार के अधिन कार्य करने के कारण एक भी अधिकारी को सजा भले न मिली हो पर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) के द्वारा अपराध दर्ज करने से लोगो में यह विश्वास बना रहता है कि शायद इससे अधिकारियों की अवैध काली कमाई पर लगाम लग सके। केन्द्र में दो बार सरकार बनवा चुकी यूपीए की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी भले ही आज तक अपने स्वर्गीय पति राजीव गांधी द्वारा कहे गये एक रूपए में से 85 पैसे गायब होने का सच स्वीकार कर चुके है लेकिन बैतूल की इस इस ताजा घटना के बाद उन्हे पता लग जायेगा कि वह 85 पैसा कहां जाता है। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा गांवो एवं ग्रामीणो के तथाकथित समग्र विकास के लिए भेजा जाने वाले एक रूपए के गांव तक नहीं पहुंचे पाने के पीछे कहानी का हाल ही में खुलासा हुआ। बैतूल जिले में पदस्थ रहे जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) बाबू सिंह जामोद पर शिकंजा कस गया है। राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और पद के दुरुपयोग का मामला दर्ज किया है। यह कार्रवाई ईओडब्ल्यू की भोपाल ईकाई ने की है। बाबू सिंह जामोद करीब डेढ़ महीने से सीहोर में पदस्थ हैं। जिला पंचायत सीईओ.. इससे पहले वे तीन साल तक बैतूल में जिला पंचायत सीईओ के पद पर पदस्थ थे। ईओडब्ल्यू को शिकायत मिली थी कि बैतूल में पदस्थापना के दौरान उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार किया है और लाखों रुपए की अनुपातहीन संपत्ति अर्जित की है। ईओडब्ल्यू ने शिकायत की जांच के बाद सीईओ के खिलाफ मामला दर्ज किया है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। शिकायत में कहा गया था कि बैतूल जिले का चालीस फीसदी हिस्सा आदिवासी बहुल है। जिले के कई ब्लाक आदिवासी बहुल घोषित हैं। उनके लिए केंद्र सरकार से काफी राशि मुहैया कराई जाती है। श्री जामोद ने अपने तीन साल के कार्यकाल में जिले के दस जनपदो पंचायतो एवं ग्राम पंचायतो तक में उन्ही लोगो की पदस्थापना करवाई जो उनके अनुसार कार्य करते थे। ग्राम पंचायत से लेकर जनपदो तक से वे हर माह एक मोटी किश्त लिया करते थे। कमोबेश यही स्थिति प्रोजेक्ट अफसर की थी। उनके माध्यम से तकरीबन सभी सरकारी योजनाओं में खेल करते थे। जिले में जितनी सरकारी योजनाएं संचालित होती हैं, उनका भुगतान जिला पंचायत के माध्यम से होता है। बैतूल जिले में कपिलधारा कूप योजना में जिले की आधे से ज्यादा ग्राम पंचायतो के सचिवो के खिलाफ 22 करोड़ रूपए की वसूली के आदेश होने के बाद भी उनसे श्री जामोद ने कोई वसूली नहीं करवाई। जिले की 558 ग्राम पंचायतो के सचिवो एवं सरपंचो के खिलाफ आर्थिक अपराध एवं सभी योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार करने के बाद भी उन्हे कारण बताओ नोटिस जारी करके अवैध ऊगाही भी की गई। धारा 40 के तहत उन्ही संरपचो एवं सचिवो को कार्यमुक्त किया गया जिनके द्वारा लेने – देन नहीं किया गया। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि बैतूल में पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी रहे अरूण भटट् और बाबू सिंह जामोद की पूरी टीम ने पंचायती राज्य का सत्यानाश करने मेें कोई कसर नहीं छोड़ी। जिला कलैक्टर एवं जिला पंचायत की सफल क्रियाव्यन टीम के मुखिया होने के नाते अरूण भटट ने बैतूल जिले में सर्वश्रेष्ठ क्रियाव्यन के लिए यूपीए अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से पुरूस्कार प्राप्त किया था। उस समय श्री जामोद भी श्री भटट् के साथ ही दिल्ली पहुंचे थे। इस साल भी बैतूल को सर्वश्रेष्ठ कार्य योजना का पुरूस्कार मिलना था लेकिन सेटिंग नहीं जम सकी और श्री जामोद के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने अपराध दर्ज कर लिया। बैतूल के पूर्व कलैक्टर श्री अरूण भटट् एवं वर्तमान कलैक्टर श्री विजय आनंद कुरूील के खिलाफ भी राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) द्वारा पूर्व में कुछ इसी प्रकार का मामला दर्ज किया है। बाबूसिंह जामोद ने दो साल अरूण भटट् तथा एक साल विजय आनंद कुरूील की कप्तानी में पारी खेली जिसमें वे बैतूल से जाने के बाद वे ईओडब्ल्यू के हत्थे शिकंजे में चढ़ गये। श्री जामोद ने अपनी तीन साल की पदस्थापना के दौरान सबसे ज्यादा गड़बड़ी नरेगा और वाटरशेड मिशन में की गई है। फोटोकापी मशीन, कंप्यूटर और प्रिंटर की खरीदी में भी भारी गड़बड़ी की गई है। इधर बैतूल जिले मेें श्री जामोद पर शिंकजा कसने के बाद जिले में पदस्थ रहे जनपद पंचायतो के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों की बैचेनी बढऩे लगी है। जिला पंचायत बैतूल के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता का कहना है कि पूरे प्रदेश में ऐसे कई मामले आइ एस अधिकारियो के खिलाफ दर्ज होते रहते है लेकिन कार्यवाही किसी पर भी नहीं होती है। श्री गुप्ता का मानना है कि कार्यवाही न होने से अधिकारियों में रूपए कमाने की चाहत बढ़ जाती है और यही रूपए बाद में ऐसी जांचो एवं मामलो को प्रभावित करता है। बैतूल जिले में पदस्थ रहे पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री जामोद के खिलाफ दर्ज मामले के बाद बैतूल जिले के राजनैतिक एवं प्रशासनिक गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।

शिवराज का आखिर कैसा आया सुराज
जनसुनवाई में हाथ जोड़ कर खड़े हैं विधायक आज
बैतूल, मध्यप्रदेश में भाजपा के सुराज में भाजपा के विधायको की हालत दिन – प्रतिदिन बद से बदतर होती चली जा रही हैं। सत्ता पक्ष के नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों की आपसी गुटबाजी का जिले के प्रशासनिक अफसर खुल कर फायदा उठाने से नहीं चुक रहे हैं। दाने डाल कर मुर्गो को लड़ाने की बैतूल जिले के प्रशासनिक अफसरो के बीच जैसे प्रतियोगिता चल रही है। पहले संगठन की ओर से प्रशासन को सूचित किया गया था कि पहले जनप्रतिनिधि बाद में विधायक की बातों को प्राथमिकता दे लेकिन कुछ दिनो बाद पार्टी संगठन की ओर से इस बात के संकेत दिए गये क विधायक को बाद में पहले संगठन की बातों को प्राथमिकता दी जाए। अचानक नई गाइड लाइन आ गई कि संगठन से पहले प्रभारी मंत्री की बातों को महत्व दिया जाए। अब भोपाल से मिली नई तथाकथित गाइड लाइन ने तो जनप्रतिनिधि , संगठन , विधायक ,प्रभारी मंत्री सबको दरकिनार कर दिया है। सीएम हाऊस का नाम लेकर कहा जा रहा है कि जिले के अफसरो को यह निर्देश मिल गए कि सीएम हाऊस से पुछे बिना कोई भी कार्य न करे। इस गाइड लाइन का यह नतीजा निकला कि अब जिले के सत्ता पक्ष के विधायको को भी आम आदमी की तरह कलैक्टर के दरबार में प्रत्येक मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में हुई हाथ जोड़ कर आवेदन लेकर खड़ा रहना पड़ रहा हैं। सत्ता पक्ष के विधायकों की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका जिले के अफसरो पर कितना शिंकजा कसा हुआ हंै। अभी तक जिले के ग्रामीण क्षेत्रो से आम जनता की समस्याओं को लेकर आती थी तथा घंटो खड़े रहने के बाद केवल आश्वासन का रसगुल्ला लेकर बैरंग लौट जाते हंै। इस बार हुई कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में आयोजित जनसुनवाई के दौरान विभिन्न विभागों के अधिकारियों के अलावा सत्तापक्ष के दो विधायक भी मौजूद थे। जनसुनवाई में लोगों की समस्याओं को लेकर पहुंचे बैतूल विधायक अलकेश आर्य एवं आमला विधायक चैतराम मानेकर को भी लाइन में खड़े रहने के साथ – साथ समस्या के समाधान के अर्जी लगाना पड़ी। बैतूल विधानसभा क्षेत्र के विधायक अलकेश आर्य अपने विधानसभा क्षेत्र के आठनेर विकासखंड के ग्राम जामपाठी में पीने के पानी के संकट का दर्द लेकर से आए ग्रामीणों के साथ पहुंचे। विधायक आर्य ने बताया कि गांव में पेयजल का भीषण संकट उत्पन्न हो गया हैं। मजबूरी में लोगों को झिरी का पानी पीना पड़ रहा है। विधायक ने ग्रामीणों की समस्या को पीएचई अधिकारी खान के समक्ष रखा और जल्द से जल्द हैंडपंप खनन कराए जाने का अनुरोध किया। इसी कड़ी में आमला से भाजपा विधायक चैतराम मानेकर ने भी अनाथ बच्चों को सहायता राशि दिलाए जाने की मांग रखी। जिला कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अधिवक्ता प्रशांत गर्ग ने इस शर्मसार स्थिति पर कहा कि कांग्रेस के राज में पार्टी के एक  छोटे से कार्यकत्र्ता की इतनी पहुंच थी कि अधिकारी उठ खड़े होते थे। अब तो विधायकों को जनसुनवाई में खड़ा होना पड़ रहा हैं। ऐसे में जिले के दुरस्थ ग्रामीण अचंलो से आने वाले आम आदमी क्या होता होगा।

गांवो के गरीबो तक नहीं पहुंच सकी बिजली विभाग की समाधान योजना
बैतूल, गरीबों के घर रोशन रखने के लिए मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की लेकिन जब इसका क्रियाव्यन का समय आया तो यह योजना मैदानी स्तर पर बिजली के टूयुब लाइट की तरह फ्यूज हो गई। बिजली विभाग के अधिकारी अपनी खामिया छुपाने के लिए इस स्थिति के लिए ग्रामीणो को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। राज्य सरकार की इस योजना जिसका लाभ हजारों लोगों को मिलना था वह कुछ ही लोग तक ही पहुंच पाया। यह स्थिति है विद्युत कंपनी की समाधान योजना की जो कि अपना मूल लक्ष्य ही हासिल नहीं कर पाई। सरकारी जानकारी के अनुसार मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले घरेलू उपभोक्ताओं के लिए समाधान योजना लागू की थी। जिसमें बिजली बिल बकाया होने पर भी बिजली सप्लाई यथावत रखने के लिए गरीब उपभोक्ताओं को यह मौका दिया गया था कि वे बकाया राशि में से 25 प्रतिशत राशि जमा कर दें। शेष 75 प्रतिशत राशि सरचार्ज सहित माफ कर दी जाएगी। 30 सितंबर 2010 से 31 मार्च 2011 तक यह योजना रहेगी। इस योजना के लिए पूरे जिले भर में मात्र 1600 ही गरीब परिवार मिल सके। बीते वर्ष 30 सितंबर 2010 से लागू इस योजना में तीन माह गुजर जाने के बाद भी महज 1656 उपभोक्ताओं को ही योजना का लाभ ले रहे है उनकी जानकारी बैतूल उत्तर 585,बैतूल दक्षिण 743,मुलताई 328 बताई गई।  इस बारे में सच कुछ इस प्रकार है कि आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में जिले में बीपीएल उपभोक्ताओं की संख्या 98756 है और इन पर मूल बकाया राशि 443.15 लाख, सरचार्ज 57.96 लाख रूपए है। इस स्थिति में 1656 उपभोक्ताओं को लाभ देते हुए 8.91 लाख मूल राशि और 0.81 लाख सरचार्ज विद्युत वितरण कंपनी वसूल कर पाई है। इतना ही नहीं सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि मात्र 26 लाख रूपए माफ किया गया है। इस महत्वपूर्ण योजना का सही प्रचार-प्रसार नहीं होने से यह गरीब उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पाई।

माया ने आखिर दिखा दी अपनी माया
रामकिशोर पंवार ” रोंढ़ावाला”
माया के बारे में अकसर लोग कहते है कि माया मिली न राम फंस गये सीतराम……. यूपी में माया राज में एक अधिकारी वह भी राष्ट्रपति पुरूस्कार प्राप्त ने माया की जूतियां साफ क्या कर दी बवाल मच गया। अरे भाई कल तक दलितो से सवर्ण अपने जूते ,चप्पल साफ करवाते थे। जब भी कोई दलित किसी सामंतवादी मुखिया के घर के सामने से निकलता था तो उसे उस समय अपने जूतों को सिर पर रख कर निकलना पड़ता था। ऐसे में यदि किसी दलित की बेटी का दलित प्रेम जाग गया और उसने अपने अधिनस्थ सुरक्षा कर्मचारी से जूतियां क्या साफ करवा ली सामंतवादी व्यवस्था में भूचाल आ गया। ऐसा लग रहा कि मानो माया ने कोई बड़ा गुनाह कर डाला हैं। जब भी कथा या पुराण के समय कोई ज्ञानी – अज्ञानी पंडित भी अपने तथाकथित ज्ञान को बाटने के बाद जब वह दक्षिणा मांगने के बाद स्वंय के पैर पड़वाता है तब कोई क्यों नहीं कहता कि यह व्यवस्था सामंतवादी है। मैने अपनी इस उम्र में ऐसे कई तथाकथित फर्जी महात्मा एवं संत तथा पोंगा पंडित देखे है जो कि अपने चरणों की पादुका तक के पैर पड़वाने के नाम पर दक्षिणा मांगते रहते हैं। ढोंग और पाखंड के इस माहौल में जहां पर कई दुराचारी स्वंय को भगवान बना कर लोगो को ठग रहे हैं ऐसे में एक राज्य की मुखिया ने यदि अपने स्वर्गीय गुरू जी काशीराम के सपनो को साकार करने के लिए अपने पुराने नारे को संपादित कर दिया तो कौन सा विपदा का पहांड़ टूट गया। वैसे भी बीएसपी शुरू से कहती चली आ रही थी कि तिलक तराजू और तलवार , इनको मारो जूते चार  यह जानने के बाद भी सत्ता के लोभी तिलक तराजू और तलवार  प्रतिक बने यूपी के कई सामंतवादी नेता अपनी सगी बहन को बहन न कह कर मायवती की मोह माया में फस कर उसकी चरण वंदना तक कर रहे हैं। बहन जी माया ने अपने संस्थापक काशीराम के इस मूलमंत्र को संपादित करते हुए अपनी माया क्या दिखा दी लोगो के पेट मरोड़ मार कर दर्द होने लगा। मै संकट की इस घड़ी में बहन जी मायावति के साथ हँू क्योकि जातिवाद का ज़हर बोने वालो को यदि सबक नहीं सिखाया तो मेरा देश पूरी तरह से बट जाएगा। भारत को बचाना है तो जाति – धर्म -रंग- रूप के बंधन से हमें ऊपर डइ कर सोचना होगा। आज मैं यदि स्वंय को पंवार समाज   का कहता हँू तो लोगो को मुझे बताना पड़ता है कि मैं कौन सा पंवार हँू…..कोई मुझसे सवाल करता है कि शरद पंवार के रिश्तेदार हो या फिर ललीता पंवार के…….. मैं तो आज तक यह समझ नहीं सका हंू कि मैं धार का पंवार हूं या मझधार का पंवार …..  जाति के चक्कर में मैं हीं नहीं बल्कि हर व्यक्ति घनचक्कर बन गया हैं। किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री या देश के प्रधानमंत्री की सेवा में लगे अफसर यदि यह सोच लेकर चले कि वह उच्च जाति का है तो फिर उन्हे नीच जाति के लोगो के पास नौकरी करनी ही नहीं चाहिए। काम से कोई भी व्यक्ति नीच नहीं होता है बल्कि उसके कार्यो से वह नीच कहलाता है। ऐसे में कबीर को भले ही लोग आज तक बुरा – भला कहें लेकिन कबीर की वाणी में सच का दम हैं। कबीर साफ कहते थे कि पाथरी पूजे हरि मिले , तो क्यों न पूजू पहांड़  इसी तरह भक्त रैदास का यह कहना भी सार्थक है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा  आज के समय में मन और तन दोनो ही भूखा और नंगा है। जहां एक ओर तन कपड़ो और गहनो की लालसा में भूखा हैं, वहीं दुसरी ओर मन वासना, भोग ,विलासता के चक्कर में नंगा हो चुका हंै। नंगो से तो खुदा को भी डर लगता है। लोग कहते भी है कि क्यों नंगे के मुंह लग रहा है… यूपी के किस्से लोग चटखारे लेकर सुनते एंव देखते है लेकिन उन लोगो को यह नहीं मालूम कि जय ललीता जब मुख्यमंत्री थी तब आइएस और आइपीएस अधिकारी उनके दरबार में क्या नहीं करते थे। मैं तो इस बात को स्वीकार करता हँू कि सत्ता के सामने सियासत नहीं चलती लोगो की मानसिकता को बदलने मे समय जरूर लगेगा लेकिन बदलेगी जरूर। आज श्रीमति सोनिया गांधी के दरबार में या श्रीमति सुषमा स्वराज के दरबार में क्या चाटुकार लोगो की या अर्दली लोगो की कमी नहीं हैं। श्रीमति सुषमा जी या श्रीमति सोनिया जी को चाय या खाना खिलाने वाला या उनकी कारो के दरवाजे को खोलने बंद करने वाला भी तो कोई न कोई अधिकारी सवर्ण समाज का होगा …. यदि ऐसा है तो क्या उसका या उसकी जाति का अपमान हो गया…? यदि उसे ऐसा लगता है तो वह फिर नौकरी क्यों कर रहा हैं। ऐसे अधिकारी को तो गांव में अपनी जमींदारी संभालनी चाहिए लेकिन जमींदारी बची हुई कहां हंै…? मैं पैर पड़वाने की संस्कृति का घोर विरोधी हँू लेकिन इस देश की पूरी राजनीति पैरो से शुरू होती है और पैरो पर ही खत्म हो जाती हैं। मैने मेरे से बाद में आने वाले पत्रकारों को स्वंय की चमचमाती कारो में घुमते देखा हैं लेकिन कोई अपना जमीर ही बेच डाले तो फिर ऐसे लोगो से कथित मान ,सम्मान को बचाए रखने की अभिलाषा रखना बेमानी होगा। आजकल पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पत्रकार कम भड़वे ज्यादा आ गए है। स्वर्गीय माखन लाल चतुर्वेदी और स्वर्गीय श्रीमति इंदिरा गांधी विश्वविद्यालयों से कथित पत्रकारिता का डिप्लोमा लेने वाले प्रशिक्षु पत्रकारो को पत्रकारिता की एबीसीड़ी तक नहीं आती लेकिन बाते ऐसी करेगें कि उनसे बड़ा ज्ञानचंद कोई दुसरा इस शहर में हैं ही नहीं। ऐसे लोग न्यूयार्क टाइम्स से लेकर न्यूजवीक की संपादकीय पर चर्चा करते मिल जाएगें लेकिन इन लोगो को जरा कहो कि पानी के संकट का हल कैसे निकाला जाए इस विषय पर कुछ नया लीक से हट कर लिखने को कह दिया जाए तो ए महाशय बगले झाकंते नज़र आयेगें ……… कुछ भी नया विषय से हट कर लिखने की स्थिति में ऐसे लोगो को अपनी नानी और छठी का दुध याद आ जाएगा। बहन मायावति यूपी में जो कर रही है ठीक ही हैं ,क्योकि जैसे को तैसा  मिलना भी चाहिए। जाति व्यवस्था और धर्म के नाम पर देश को बाटने वाले लोगो के खिलाफ इसी तरह की कारवाई होते रहनी चाहिए। ऐसे लोगो से जूते ही नहीं बल्कि अण्डर गारमेंट तक धुलवाने चाहिए क्योकि जब कोई व्यक्ति मूछें रखता हो और मूछें नीचे रखने का काम नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता भी हैं तो ऐसे लोगो की मूछों को ही कटवा देना कोई गलत बात नहीं हैं। इस देश मे आज भी ऐसे कई मंदिर मठ है जहां पर मठाधीशो के पैर पडऩे के लिए रूपए पैसें देने पड़ते है। भगवान यदि रूपए पैसे से दर्शन देने लगे तो फिर वह भगवान कहां से हुआ….? ऐसा व्यक्ति या मूर्ति भगवान न होकर धनवान होगा या फिर भाग्यवान होगा। यूपी की घटना ने आज मन में टीस पैदा कर रहे विचारों को नया मुकाम दिया है। मेरा ऐसा मानना है कि यदि वह अधिकारी मायावति की जूतियां साफ करने से मना कर देता तो क्या उसे माया खा जाती लेकिन कुछ न कुछ नस तो उस अधिकारी की भी दबी होगी जो सार्वजनिक रूप से जूतियां साफ कर रहा हंै। वह तो भलां हो बहन मायावति का जो उसने उक्त अधिकारी से यह नहीं कहा कि अपनी जीभ से चाट – चाट कर मेरी जूतियां साफ कर ..  मान लो यदि वह ऐसा करवा भी लेती तो क्या मायवति के खिलाफ कोई प्रकरण बन जाता। यह तो ठीक उसी प्रकार की बात हुई कि बड़े वाहन से छोटा वाहन टकरा गया लेकिन केस बना बड़े वाहन के चालक के खिलाफ ही बनाया जाता हैं……… बाबा साहब अम्बेड़कर लोगो को भारत का संविधान पढ़ा कर गए या नहीं मुझे नहीं पता लेकिन बाबा साहब ने लोगो को इतना जरूर ज्ञान बाट दिया हैं कि हमारे देश में छुआछुत अधिनियम क्या है …? और उसमें कितने साल की सजा है…..? माया के राज में यदि वह अधिकारी मना करता तो वह कानून की नज़र में गुनाहगार हैं क्योकि उसने अनुसूचित जाति ,जनजाति अधिनियम की धारा 3 , 1 , 10 के तहत दण्डनीय अपराध किया हैं। कानून की नज़र में एक दलित महिला के साथ छुआछुत का आचरण अपनाना और उस महिला की जूतियां इसलिए साफ नहीं कि क्योकि वह सवर्ण है तथा महिला दलित समाज की हंै। पहले भले ही दलित के घर मे जन्म लेना पाप था लेकिन अब तो ऐसा लगने लगा हैं कि सवर्ण के घर पर जन्म लेकर उसने सबसे बड़ा गुनाह की लिया हंै। मैं अकसर इन सब बातों से व्यथित होकर अपने बारे में यह बाते कहता हूं कि मेरे जाति से यदि पवा को चमा कर देने से सरकार का क्या चला जाएगा। क्योकि आज के समय में राजा भोज के वंशज गंगू तेली की लाइन मे आ गए हैं। अब तो राजा भोज और गंगू तेली दोनो ही पिछड़ी जाति में आ चुके है। मध्यप्रदेश की सरकार ने धार के अग्रिवंशी पंवारो को कहीं का नहीं छोड़ा है तभी लोग आज भी इन धारवंशी पंवारो को कभी भोयर कहते हैं तो कभी लंका का धेड़ कह कर ताना मारते हैं। हद तो तब और भी शर्मनाक हो जाती है जब कोई कहता है कि तुम कहीं सुअर पालने वाला डुक्कर पोसू पंवार तो नहीं हैं।  आज लोगों के तानों पर प्रदेश की कोई भी सरकार आज तक तय नहीं कर पा रही हैं कि बैतूल सहित मध्यप्रदेश के बालाघाट – सिवनी – छिन्दवाड़ा – भोपाल सहित अनेक क्षेत्रो के पंवार आखिर है क्या….? पंवार राजपूत है तो फिर पिछड़े कैसे …? बहन मायावति के राज में यदि उनकी माया के खेल करतब रोज देखने को मिल रहे हंै तो उनसे कुछ सीखा जा सकता है। अजा कांग्रेस और भाजपा दोनो ही यूपी के गुण्डराज के सामने डरपोक एवं कायर बनी हुई हैं। कोई भी सीधे – सीधे आरपार की लड़ाई लडऩे के मुंंड़ में नहीं हैं। अंत में इस लेख के माध्यम से मायावति को मैं यह संदेश दिलाना चाहता हँू कि पुरूष प्रधान समाज को आज उसने अपने कदमो के नीचे ला रखा है वह तारीफे काबिल है उसे ऐसा कई वर्षो तक करना चाहिए ताकि वर्ण व्यवस्था में सुधार आ सके।
रामकिशोर पंवार ” रोंढ़ावाला ”
लेखक
दैनिक पंजाब केसरी नई दिल्ली के बैतूल जिला प्रतिनिधि
एवं यू एफ टी न्यूज डाट काम के सीइओ एवं एडीटर भी हैं

वसंत के पहले ही बौराया यौवन ,  हत्या – आत्महत्या – अपहरण
बैतूल कहते है कि ऋतुराज वसंत में मस्ती छा जाती है जिसके पीछे की कहानी ऋतु परिवर्तन से शुरू होती है। वसंत ऋतु में पांच तत्व अपना प्रकोप छोड़ कर सुहावने रूप में प्रकट होते है। जल , वायु , धरती , आकाश , अग्रि सभी अपने रूप में अमूल परिर्वतन लाते है, जिसके कारण स्वच्छ आकाश , सुहावनी पवन , अग्रि का तेज भी कम हो जाता है।  जहां एक ओर बहता जल पीयूष के समान होता है। वही दुसरी ओर इन सबसे हट कर यदि किसी में बदलावा आता है तो वह धरती होती है। खेतो मे लहलहाती फसलों में सरसो के फूल और पलाश पर भी धीरे – धीरे मस्ती छाने लगती है। सब कुछ होता है समय पर , उससे न तो पहले और न बाद में लेकिन वंसत के आने से पहले ही यदि यौवन मदमस्त होकर बौरा जाए तो क्या होगा…? बैतूल जिले में पिछले डेढ़ माह पूर्व ही जिले के युवक – युवतियों यहां तक पौढ़ यौवन पर जुनून का वसंत छा जाने से कई घटनाओं ने जन्म ले लिया। वसंत के पहले एवं वसंत के दिन तक पूरे जिले में एक दर्जन से अधिक बहुचर्चित घटनाए जिसमें प्यार – तकरार – नफरत के चलते हत्या , आत्महत्या , अपहरण जैसी संगीन वारदातों को अजंाम दे दिया गया। आज वसंत पंचमी के दिन भरी दोपहर के ठीक पहले फिल्मी स्टाइल से एक आदिवासी व्यस्क महिला का अपहरण हो गया जिसमें शामिल लोगो में उसका तथाकथित पति के नाम की भी चर्चाओं का बाजार गर्म है। वैसे भी कहा जाता है कि आदिवासी बाला वसंत के मौसम में पलाश के फूलो पर छाने वाली मस्ती में मदमस्त हो जाती है लेकिन बैतूल में तो कुछ उल्टा ही होना था। इस बार आदिवासी बाला के बदले एक शादीशुदा तीन बच्चों की मां के प्यार ,तकरार, नफरत और तिस्कार ने एक ऐसी वारदात को जन्म दे दियया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। मंगलवार को लगभग 11 बजे जिला पंचायत कार्यालय बैतूल पहुंचते ही महिला लेखाधिकारी श्रीमति हीरावती उइके का फिल्मी स्टाइल से अपहरण हो गया। उसे एक मारूति वैन में सवार चार – पांच लोग बलात पूर्वक बैठाल कर ले जाने लगते है ऐसे में कुछ लोग बीच – बचाव करने आते उसके पहले ही मारूति वैन जाने लगती है। इस बीच एक युवक पत्थर फेक कर मारता है और वैन के कांच टूट जाते है। पूरे दिन पुलिस उस वैन और महिला अधिकारी को तलाशती है लेकिन सुराग कुछ भी नहीं मिलता है। पुलिस महिला के कथित प्रेमी प्रकाश खातरकर नामक युवक जो कि स्वंय को दैनिक जागरण का पत्रकार बताता है उससे भी पुछताछ करती है लेकिन नतीजा शुन्य रहता है। दिन दहाड़े वह भी जिला पंचायत कार्यालय परिसर से सेकण्ड क्लास महिला अधिकारी का अपहरण हो जाता है। अपहरणकत्र्ता कलैक्टर एवं पुलिस अधिक्षक कार्यालय से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित कार्यालय में इस घटना को अजंाम देने के बाद गधे के सिंग की तरह लापता हो जाते है। वसंत के दिन यह फिल्मी ड्रामा लोगो को देखने को कम सुनने को ज्यादा मिला। राज्य वित्त सेवा से आई जिला पंचायत बैतूल में लेखाधिकारी के पद पर कार्यरत श्रीमति हीरावति उइके का अपने शिक्षक पति मारूति उइके से कुछ महिने से अनबन चल रही थी। तीन बच्चो की मां हीरावति बीते चार माह में कई बार अपने कार्यस्थल से अनुउपस्थित भी रही। जिसको लेकर महिला का प्रभुढाना में पदस्थ शिक्षक पति शिकवा – शिकायते करने जिला पंचायत से लेकर सभी दरवाजो पर दस्तक देने गया। अपने तीन बच्चों का पालन पोषण करने वाले इस आदिवासी शिक्षक को अपनी अपनी पत्नि की कथित बेवफाई कुछ रास नहीं आई और आज घटना के दिन अपने कार्यस्थल शिक्षण संस्थान से एक दिन की छुटट्ी लेकर वह भी लापता गंज की तरह लापता हो जाता है। महिला अधिकारी के शिक्षक पति मारूति उइके कई बार अपनी पत्नि और उसके कथित प्रेमी को लेकर जिला पंचायत से लेकर सरेराह भी उन दोनो से उलझ चुका है। इस बार भी जब आदिवासी महिला अधिकारी का अचानक फिल्मी स्टाइल से अपहरण हो जाता है तो सभी से पुछताछ होती है लेकिन महिला अधिकारी के पति से पुछताछ नहीं हो पाती है।
बैतूल जिले में वसंत के बौराने के इस बहुचर्चित मामले से पहले दो दिन पूर्व पत्नि पर शक करने वाले शंकालु पति को अपनी पत्नि की अग्रि परीक्षा लेने के पूर्व ही पूरे परिवार का मरा मुंह देखना पड़ा। पाढऱ की महिला कलावति ने अपने चार बच्चों के साथ अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी। घटना के कुछ दिन पहले रोहित पंवार ने अपने एक तरफा प्यार के लिए अपनी प्रेमिका की जान लेनी चाही और साथ ही स्वंय की भी जान दे दी। प्रेमिका जिदंगी और मौत के बीच की लड़ाई तो जीत गई लेकिन रोहित जिदंगी से हार गया और मौत जीत गई। बिन्देश्वरी उर्फ बिन्दु के प्यार में ”ओ मेरी प्यारी बिंदू  ……!  के अफसाने गाने वाले रोहित के एक तरफा प्यार के इंकार ने सभी को झकझोर कर डाला। अपनी प्रियतमा के परिजनो के इंकार के बाद रोहित का इस तरह से बदला लेने की किसी को सपने में भी उम्मीद नहीं थी। झल्लार के पास तामसार गांव के एक युवक ने रोहित की तरह एक तरफा प्रेम में खुद की बलि देनी की कोशिस की थी। संजू नामक युवक ढोंढ़वाड़ा के मंदिर की दिवारो से सिर पटक – पटक कर जान देनी की कोशिस की साथ ही अपना गला भी मंदिर में देवी के साथ धारधर हथियार से रेत कर बलि देने का प्रयास किया। 25 साल के संजू का यह दिवाना पन भी वसंत के पूर्व यौवन के बौराए जाने का प्रतिक है।    घोड़ाडोंगरी बस स्टैण्ड पर मिली गर्भवति युवती की लाश के पीछे की कहानी भी कुछ कम दर्दनाक नहीं है। युवती के प्रेमी ने ही अपनी प्रेमिका की जान ले ली। इस घटना के कुछ सप्ताह पहले ही पिंकी यादव और बब्बू के आनर कीलिंग के मामले की स्याही सुख भी नहीं पाई है। इस बहुचर्चित आनर कीलिंग के मामले में पिंकी यादव के भाई का बदला कम चौकान्ने वाला नहीं है। अपनी बहन पिंकी के द्वारा जाति समाज से बाहर किसी अन्य युवक से बैतूल आकर शादी कर लेने के बाद विक्की यादव ने बहन और उसके प्रेमी की बेरहमी से हत्या कर दी। इंतकाम की आग की बलि चढ़े दोनो युगल प्रेमी की कहानी आज भी बैतूल के जनमानस में कई सवालों को पैदा करती हैं। बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में वैसे तो कोई भी एतिहासिक या पौराणिक प्रेमी – प्रेमिका के किस्से नहीं है लेकिन इस जिले में नफरत , घृणा , तिस्कार ,अपमान , एक तरफा प्यार , इंकार , बदले की भावना और हताशा में डूबे प्रेमी और प्रेमिकाओं की सदिंग्ध मौतों के किस्से कहानियंा अकसर सुनने को मिलती रहती हैं।

नगर पंचायत भैसदेहीं के सीएमओ को अवैध सागौन की तस्करी में जाना पड़ा जिला जेल
बैतूल के सागौन के मोह ने कहीं का न छोड़ा: इंडिका कार भी होगी राजसात
बैतूल, अपने भोपाल में बन रहे आलीशान बंगले के लिए विश्व प्रसिद्ध बैतूल के सागौन की लकडिय़ो का मोह भैसदेहीं के मुख्य नगर पंचायत अधिकारी को बैतूल जिला जेल की चार दिवारी के बीच ले गया। बैतूल जिले में कई वर्षो से पदस्थ रहे सीएल चौरे नामक उक्त अधिकारी ने बैतूल जिले की सभी नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतो में कार्य किया है। भोपाल में बन रहे करोड़ो के आलीशान बंगलो को बैतूल के सागौन से सजाने के चक्कर में श्री चौरे एवं नगर पंचायत के एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी इंडिया कार के चालक लल्लू आर्य तथा श्री राम नरवरे नामक व्यक्ति को बैतूल न्यायालय के विद्धवान न्यायाधीश श्री आदेश मालवीय ने प्रथम दृष्टा दोषी मानते हुए उनकी जमानत याचिका को खारिज कर जेल भिजवा दिया। अवैध रूप से सागौन चिरान की तस्करी कर भोपाल ले जा रहे नगर पंचायत भैंसदेही के प्रभारी सीएमओ सीएल चौरे एवं उनके ड्राइवर लल्लू आर्य को वन अमले द्वारा खेड़ी बेरियर के पास पकड़ा गया। उनकी टाटा इंडिगो कार से 99 नग सागौन चिरान जब्त की गई है। सीएमओ के भैंसदेही स्थित निवास पर भी छापामार कार्रवाई की गई। वहीं हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले एक अन्य व्यक्ति के चिचोलीढाना स्थित मकान की भी तलाशी लगी गई। जहां से एक अनकम्पलीट सोफा सेट बरामद किया गया है। कार में कुल 99 नग चिरान थे जो 0.220 घन मीटर थे। जिसका बाजार मूल्य 15 से 20 हजार रूपए बताया जाता है। जहां कार की डिक्की में सागौन चिरान भरी हुई थी। वहीं कार की पिछली सीट में पिसी हुई लाल मिर्च थैली में भरकर रखी हुई थी। संदिग्ध हालत में पकड़े गए भैंसदेही नगर पंचायत के प्रभारी सीएमओ सीएल चौरे के भैंसदेही स्थित निवास पर भी वन अमले ने छापामार कार्रवाई की। मुखबिर से सूचना मिली थी कि एक सफेद रंग की कार में अवैध रूप से सागौन की तस्करी की जा रही है। सूचना के आधार पर खेड़ी में घेराबंदी कर तलाशी ली गई तो यह गाड़ी हाथ लगी है। जिसमें भैंसदेही नपं सीएमओ और नपं ड्राइवर मौजूद थे। इनके पास से सागौन चिरान खरीदे जाने का कोई बिल भी नहीं मिला। नगरपंचायत के प्रभारी सीएमओ सीएल चौरे से चर्चा की गई तो उन्होंने लकड़ी की चोरी से इंकार किया और कहा कि वे भोपाल जाने के लिए इस कार में यात्री के तौर पर बैठे थे। बताया जा रहा है कि कार सीएमओ के एक रिश्तेदार की है जिसे वनविभाग द्वारा राजसात करने की कारवाई की जा रही है। सूत्रो का कहना है कि श्री चौरे अकसर भोपाल मिटिंग के बहाने जाते रहते है और इसी कार से सागौन की चरपट ले जाते रहे है। श्री चौरे के कार के मालिक या लकड़ी की चोरी में भाग लेने से इंकार करने पर नपं के ड्राइवर लल्ली पे नलटवार किया और बताया कि यह सागौन श्रीराम नरवरे के यहां से खरीदी थी। मुखबीर की सूचना भैसदेहीं से वन विभाग का एक अमला सीसीएफ आरबी सिन्हा के निर्देश पर कार का पीछा करते हुए चल रहा था। खेड़ी इन्दौर जोड़ पर वन कर्मचारियों ने नाकाबंदी कर भैंसदेही की ओर से आ रही इंडिगो कार क्र.एमपी-04 सीएस 9591 की जांच में 99 नग सागौन की लकड़ी के चौखट जब्त की है। सीसीएफ सिन्हा ने बताया कि उन्हे मिली जानकारी के बाद ही धरपकड़ की कार्यवाही की गई।  पुलिस ने नपं सीएमओ सीएल चौरे,लखन आर्य और श्रीराम नरवरे के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें कोर्ट भेजा गया। जज श्री आदेश मालवीय ने तीनों की जमानत खारिज कर उन्हें जेल भेज दिया है।इसके बाद विभागीय अमले द्वारा की गई कार्रवाई से हड़कंप की स्थिति बनी रही। भैंसदेही नपं सीएमओ सीएल चौरे के वाहन से सागौन की कीमती लकड़ी जब्त होने के बाद वन अमले ने चिचोलाढाना में छापामार कार्रवाई कर सागौन की लकड़ी से बन रहे फर्नीचर जब्त किए हैं। इसके अलावा ट्रेडर्स के संचालक को भी हिरासत में लिया है। भाजपा समर्थित नगर पंचायत के सीएमओ सीएल चौरे एवं श्रीराम नरवरे दोनो ही स्वजाति है। दोनो अपने आप को किराड़ समाज का बताते हुए बरसो से सागौन की तस्करी में शामिल थे। सूत्रो का यहां तक आरोप है कि अपने आप को प्रदेश के सीएम के स्वजाति बताने वाले सीएल चौरे के पास करोड़ो रूपए की अवैध सम्पत्ति है। बैतूल में हाऊसिंग बोर्ड कालोनी में श्री चौरे के पहले से ही दो भव्य आलीशान बंगले बने हुए है।

मां तो ऐसी नहीं होती
पंचायत के डर से उसने अपने चार बच्चों के साथ तालाब में कूद कर दे दी जान
बैतूल, रामकिशोर पंवार : मां की ममता के कई उदाहरण देखने को मिले है। किसी ने मां को ममता की मूर्ति कहा है तो किसी ने ममता की छांव। अपने बच्चों जरा सी खरोंच भी आ जाए तो वह शेरनी बन कर कूद पड़ती है। जिन आंखों में आंसू होते हैं, वह आंखे अचानक कैसे पथरा गई। एक मां अपने बेगुनाह मासूमों को लेकर डेम में कैसे कूद गई? उसने यह कदम क्यों उठाया? मां का ममतामयी चेहरा क्या इतना वीभत्स भी हो सकता है ? यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। यह तमाम सवाल अब लोगों के मन में उठने लगे हैं। उस मां ने इस सब बातों की चिंता तक नहीं की और एक ऐसी दर्दनाक घटना को जन्म दे दिया जिसको देख कर यह सवाल मन में उठने लगे हैं कि मां तो ऐसी नहीं होती है। कथित अनैतिक संबंध के आरोपो से दुखी एक मां ने ग्राम पंचायत में अपनी बदनामी के डर से पंचायत बैठने के पूर्व ही अपनी कोख से जन्मे चार बच्चों को लेकर तालाब में छलांग लगा ली। शराब ने एक बार फिर असर दिखाया और एक ही परिवार के पांच सदस्य उसकी बलि चढ़ गए। जब लाशे निकाली गई तो लोगो की आंखे फटी की फटी रह गई। रानी लक्ष्मी बाई की तरह कमर में अपने बेटो को बांध कर तालाब में कुद पड़ी महिला के साथ उसके मृत बच्चें भी लिपटे हुए थे। नेशनल हाइवे 69 के पास इंदिरा कॉलोनी निवासी दलित परिवार के सदस्य धांधू कोगे (40) ने बताया कि शनिवार को वह दोपहर बाद घर खाना खाने गया हुआ था। घर पर उसकी पत्नी कलावती कोगे (36) और गांव के ही एक आदमी के साथ कथित आपत्तिजनक स्थिति में दिखाई दी। जिसे देख बौखलाए धांधू ने दोनों की पिटाई कर दी। बाद में, रात को पूरे परिवार ने एक साथ भोजन किया और सो गए। धांधू की जब नींद खुली तो पत्नी और बच्चे बिस्तर पर नहीं थे। उसने गांव में उनकी तलाश की लेकिन कुछ पता नहीं चला। उसे लकड़ी बेचने वालों ने उसे बताया पाटानदी डेम के पास उन्होंने कुछ चप्पलें पड़ी देखीं। खबर मिलने पर धांधू कोगे भी बांध पर पहुंचा तो उसने अपनी बच्ची को पहचान लिया। धांधू ने किनारे पर तीन जोड़ी चप्पलें पड़ी देखा तो पत्नी कलावती और तीन बच्चों के पानी में डूबे होने की आशंका जताई। पुलिस ने स्थानीय लोगों की मदद से कलावती सहित तीनों बच्चों के शव भी पानी से निकलवाए। इस सूचना पर जब गांव के लोग बांध पर आए तो धांधू की लड़की साधना का शव तैरता दिखा। पत्नि  कलावती,अर्चना (12), साधना (12), प्रकाश (11) और आकाश (6) का शव पानी से निकाला। तालाब से निकाली गई महिला ने छोटे पुत्र आकाश को शाल से कमर में बांध रखा था। शवों को पोस्टमार्टम कर उन्हें परिजनों के हवाले कर दिया गया है। धांधू के बयान के आधार पर महिला के साथ संबंध बनाने वाले युवक पर मामला दर्ज किया जाएगा। मोहल्ले वालों ने बताया कि पत्नी के अवैध संबंधों से धांधू काफी नाराज था। वह इस पूरे मामले को लेकर पंचायत बैठाना चाहता था। उसने विवाद के दौरान उसने यही बात पत्नी से की थी। गांववालों का कहना है कि इसी डर से कलावती ने यह कदम उठाया। घटना का कारण पति-पत्नी में विवाद नजर आ रहा है। धांधू के बताए अनुसार गांव के ही अखिलेश के साथ उसने अपनी पत्नी को आपत्तिजनक स्थिति में देखा था। मृतका कलावती छोटी बहन कला बाई के अनुसार इनकी शादी को 18 वर्ष हो चुके हैं। इतने वर्षों में अवैध संबंधों वाली कोई बात सामने नहीं आई। यह तो सरासर बदनाम करने वाना आरोप है। जिसके चलते ही उसकी बहन ने उक्त दर्दनाक घटना को अजंाम दिया। कला बाई ने बताया कि उसकी बहन कला बाई अपने पति के साथ मजदूरी करती थी। यदि वह ऐसा करती तो पति को कब का छोड़ दी देती। धांधू के चारों बच्चे गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। परिजनों ने बताया कि धांधू और कलावती की जुड़वा बेटियां अर्चना और साधना गांव के मिडिल स्कूल में कक्षा छठवीं में पढ़ती थीं। जबकि प्रकाश 5 वीं और आकाश दूसरी कक्षा में पढ़ता था। धांधू के परिजन रविवार देर शाम पांचो शव आने के बाद गांव में लकडिय़ां लेने निकले तो कहीं एक ट्राली लकड़ी के 5 हजार तो कहीं 10 हजार रुपए की मांग की गई। परिवार के बसंत आठोले ने बताया कि उन्हें रात तक कोई मदद नहीं मिली थी। सप्ताह के पहले दिन आज सोमवार को सभी का अंतिम संस्कार किया गया। जिले में पहली बार हुई घटना ने सभी को सोचने पर विवश कर दिया कि पंचायत के डर से ऐसा भी हो सकता है…? इंदिरा कालोनी निवासी धांधू कोगे भी इस बात को स्वीकार करता है कि उसकी शादी हुए 18 साल हो गए हैं। दोनों पति-पत्नी मिलकर मजदूरी करते और घर चलाते थे। अभी तक उसकी पत्नि के किसी भी गैर व्यक्ति से अवैध संबंधों की उसे कोई जानकारी नहीं मिली थी। वह उस रोज ईंट बनाने का काम करने के लिए भट्टे पर गया था। दोपहर बाद जब वह घर आया तब उसने पत्नी और गांव के युवक को आपत्तिजनक स्थिति में देखा। उसने बताया कि शराब के नशे में उसने पत्नी को लाठी से पीटा। उक्त युवक को भी उसने लाठी से पीटा, इस दौरान वह भाग गया। इसके बाद काफी देर तक पत्नी से उसका विवाद होते रहा। रात को सभी ने पकवान बनाकर भी खाए थे। धांधू ने रोते हुए बताया कि उसे नहीं पता था कि पत्नी कलावती ऐसा भी कदम उठा लेगी। धांधू की पिटाई से घायल कलावती का सिर फूट गया था। शाम को धांधू ने पाढर के एक निजी डॉक्टर के पास उसका इलाज भी कराया था। बैतूल से लगभग 20 किलोमीटर दूर ग्राम पाढर के पास रविवार को पाठानदी बांध में गांव की एक महिला और उसके चार बच्चों के साथ सामूहिक आत्महत्या का मामला मानते हुए विवेचना शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार घटना के पीछे अवैध संबंध की बात सामने आ रही है।  कलावती और चार बच्चों की मौत के बाद पड़ोस में रहने वाले दुखी है।

बसंत्तोसव पर विशेष
जब राजा भोज को सम्मान के लिए लग गये एक हजार साल
गये तब वागदेवी को लाने में लगेगें कितने हजार साल
रामकिशोर पंवार की विशेष रिर्पोट
मध्यप्रदेश का गुजराज एवं राजस्थान से लगा सीमावर्ती जिला धार जिला किसी जमाने में कला एंव संस्कृति का केन्द्र था. महान पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य के वशंज राजा भोज ने अपने पुरखों की तरह कला एंव संस्कृति को एक नया आयाम दिया. राजा भोज द्धारा अपनी अपनी अराध्य देवी वाग्देवी की पूजा अर्चना के लिए स्थापित भोजशाला आज भी कला संस्कृति की बेजोड मिसाल है. राजा भोज ने जो ताल बनवाया था उस झील के शहर में राजा भोज को मिलने वाले कथित सम्मान के लिए उन्हे एक दो नहीं बल्कि पूरे एक हजार साल लग गये। प्रदेश सरकार को अचानक राजा भोज याद आ गये। गंगू तेली की घानी में राजा भोज के मान – सम्मान को रौदंती भाजपा को ही राजा को उसके ही राज्य में मान सम्मान दिलाने के बरसो इंतजार करना पडा। जिस राजा भोजपुर – भोजपाल जो बाद में भोपाल कहलाया उसके बडे तालाब के बीचो – बीच खडे रहने के लिए इतना इंतजार करना पडा कर राजा की प्रतिमा के आंखो से झर – झर कर आंसु बहने लगे लेकिन भगवा सरकार को पत्थरो से आंसुओ का बहना – मुर्तियो का दुध पीना अधंविश्वास सा लगता है और लगे भी क्यों न जो सरकार राम के नाम पर सत्ता हासिल करती है वह सत्ता में आने के बाद राम को ही भूल जाती है। ऐसे में कल तक ब्रिट्रेन के म्यूजियम में पडी राजा भोज की कुलदेवी मां सरस्वती की मूर्ति स्वदेश लाने की वकालत करने वाली भाजपा के मुख्यमंत्री ब्रिट्रेन जाने के बाद मूर्ति को देखना तक भूल गये। राजा भोज के राज में स्थित भाईचारे की मिसाल बना भोजपाल आज का भोपाल से कई गुणा कला संस्कृति का केन्द्र रही धार नगरी है जो राजा भोज की पहचान है। राजा भोज की भोजशाला में आज भी स्वर्गीय इकबाल की पंक्तियां सटीक बैठती है कि मजहब नहीं सीखता आपस में बैर रखना। आज भी धार की इस एतिहासिक भोजशालाा बनाम कमाल मौला मस्जी़द का में पुनः स्थापित होने के लिए राजा भोज की कुलदेवी को प्रदेश सरकार की राह देखते – देखते बरसो गुजर गये है। अग्रेंजो द्वारा धार से ले गई राजा भोज की कुलदेवी की प्रतिमा को स्वदेश लाने का जितनी बार भाजपा वादा करती आई है वह उतनी ही बार राजा भोज की कुलदेवी को भूली है। आज भले राजा भोज की भोजशाला सियासी विवाद का हिस्सा बनी हुई है लेकिन राजा भोज की कुलदेवी मां वाग्यदेवी सरस्वती के स्वदेश लाने पर किसी को विवाद नहीं है। वैसे देखा जाये तो भोजशाला के स्थान का विवाद आज का नहीं है. करीब छह सौ साल से भी अधिक पुराना एक ताबूत में दफन किया गया हुआ जिन्न है। जिसे हर कोई मजहब की आड में ताबूत से बाहर निकाल कर अपना उल्लू साधने में लग जाता है। इस भोजशाला के लिए मां बाग्देवी के उपासक उसके संरक्षण तथा आधिपत्य के लिए कानूनी दांवपेचों की लड़ाई लड रहे है। यह विवाद उस समय पैदा हुआ जब तत्कालीन दीवान नाड़कर ने यह तस्दीक की थी कि भोजशाला में तथा कथित नमाज पढ़ी जाती थी एंव इस स्थान पर किसी कमाल मौला नामक फकीर की तथा कथित कब्र है। इन बातों की तथाकथित पुष्टि होने पर वर्षो पुराने इस विवाद को पुनः हवा मिली थी लेकिन कोई भी भोजशाला की राम कहानी लेकर बैठ जाता है पर वह बाग्यदेवी को हर बार भूल जाता है।
अयोध्य में विवादित ढंाचा ढहाए जाने के बाद बीते कई दशक से तो यहंा प्रतिवर्ष बसंत पंचमी का दिन दहशत में बीतता है। कब हिन्दु – मुस्लिम सौहार्द साम्प्रदायिकता का रंग ले ले इस बात की शंका – कुशंका हमेशा बनी रहती है। प्रदेश भाजपा सरकार रहने पर राजा भोज की धारा नगरी वर्तमान धार शहर में राजा भोजशाला की तथा कथित मुक्ति को लेकर कई बार हिन्दुवादी संगठनो की यहां पर रीति – नीति बनती है लेकिन कोई भी हिन्दु नेता उस मूर्ति के लिए कभी कोई नीति – रीति नहीं बनाता है। राजा भोज की बसाई धारा नगरी में कई बार इस बात को लेकर प्रयास भी हुये कि इस नगरी में सम्प्रदायिकता की आग को भडकाने वाली धारा को बहाया जाय लेकिन वह आज तक नहीं बह सकी है। कोई माने या न माने लेकिन सच आइने की तरह साफ है कि धार नगरी में राजा भोज की नीति – रीति आज भी राज पाट करती है।
इतिहास के पन्नो को यदि हम पलटते है तो हमे पता चलता है कि पंवार राजपूतों के शीर्ष राजा भोज द्वारा बसाई धारा नगरी में इस वंशज के महान सम्राट राजा भोज ने 11 वीं शताब्दी में भोजशाला का निर्माण करवाया था। राजा भोज का राज भोजपाल वर्तमान भोपाल एवं भोजपुर तक फैला हुआ था। धार गजेटियर में यह उल्लेख मिलता है कि इस भोजशाला का निर्माण सन् 1034 में हुआ था। 1334 में जब मुस्लिम शासक यहां की सत्ता पर काबिज थे। उस दौर में कमाल मौला नामक संत ने इसे मस्जिद में तब्दील करने का प्रयास किया था। राजा भोज के कार्यकाल में उनके अवसान के बाद उनके कुल के पंवार राजपूतो का काफिला धर्मपरिवर्तन के डर से धार छोड कर निकल पडा जो नर्मदा को पार करके पंवारखेडा में बसा । यहां से पंवारो का काफिला बैतूल – छिन्दवाडा – बालाघाट – सिवनी – गोंदिया – नागपुर होते हुये कर्नाटक तक जा पहुंचा। कुछ पंवार राजपूतो द्वारा धार छोड कर जाने के बाद भी पंवारो का धार – देवास पर राज्य कायम रहा। बीती सदी में सन् 1904 में इसे राज्य संरक्षित पुरातत्वीय स्मारक घोषित किया गया। इसके बाद सन् 1935 में जब धार में आनंद राव पवार राजा थे, तब उनके दीवान नाड़कर ने एक गजट प्रकाशित कर इस बात की तस्दीक की कि यहां जिस तरह नमाज पढ़ी जा रही है वह जारी रहेगी। दरअसल उस समय राज्य के लोक निमार्ण विभाग ने भोजशाला मस्जिद कमाल मौला और कमाल मौला के मकबरे के बाहर भोजशाला को तख्ती लगा दी थी। इस पर मुस्लिम समुदाय ने आपत्ति की थी। तब 24 अगस्त 1935 को गजट प्रकाशित किया गया था। इस गजट के बिन्दु क्रमांक 973 में इस बात का उल्लेख है कि जो नमाज पढ़ी जा रही है वह जारी रहेगी और यह मस्जिद है और आइंदा भी मस्जिद रहेगी। दीवान नाड़कर के इस तरह के गजट प्रकाशन से दोनों समुदाय खफा हो गयें। हिन्दु समुदाय का मानना है कि उन्होने अपने अधिकारों का अतिक्रमण कर कतिपय मुस्लिमों के दबाव में वह गजट प्रकाशित किया उन्हें गजट प्रकाशन का अधिकार नही था क्योकि उस समय धार के राजा आनंद राव पवार अवयस्क थे और उनकी मदद के लिए कैबिनेट बनी थी। इस तरह का कोई भी फैसला कैबिनेट को लेना था , दूसरी ओर मुस्लिम समाज की आपत्ति है कि दीवान नाड़कर ने ही यहां भोजशाला के नाम की तख्ती लगाकर मस्जिद को भोजशाला बताया। इसके बाद बड़ी मुश्कील से इस विवाद को अग्रेंजी हुकुमत ने इस विवाद को शांत करवाया लेकिन यह तभी सभंव हुआ जब राजा दरबार में दोनो मजहब के लोगो के बीच सुलह हुई। अग्रेंजी हुकुमत के बदलते ही सन् 1951 में राजा भोज की इस भोजशाला को पुरातन और ऐतिहासिक स्मारक और पुरातत्व अधिनियम के दायरें में लाकर इस अधिनियम के क्रम 90 पर यह इमारत भोजशाला एवं कमाल मौला मस्जिद के नाम से अंकित की गई। इसके बाद सन् 1962 में धार के प्रथम अतिरक्त न्यायाधीश के समक्ष मुस्लिम समाज की ओर से अमीरूदीन वल्द जबीरूदीन ठेकेदार ने एक वाद दायर किया इसमें प्रतिवादी केन्द्र व राज्य सरकार को बनाया गया। इसमें मुस्लिम समाज ने दावा किया कि उक्त इमारत मस्जिद है यहां रोजाना नमाज पढ़ी जा रही हैं इसे 1307 में अलाउदीन खिलजी के जमाने में बनाया गया था इस वाद के सिलसिले में केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से भी दावा को नकारते हुए कहा गया था कि भोजशाला राजा भोज के समय थी। यहां संस्कृत का अध्ययन होता था व्याकरण के सूत्र अभी भी खंभों पर अंकित है। यह शासन की सम्पति थी। यहां लगी मां बाग् देवी सरस्वती की प्रतिमा वर्तमान में लंदन के केन्द्रीय संग्रहालय में मौजूद है। उसे स्वदेश लाने के लिए आज तक किसी ने भी न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया। भोजशाला के पास ही एक मकबरा भी है जो कमाल मौला की कब्र मकबरा के नाम से जाना जाता हैं। इस भोजशाला का अधिग्रहण केन्द्र सरकार ने सन् 1904 में किया था। यह मामला सन् 1965 तक चलता रहा बाद में वादी की लगातार अनुपस्थिति के कारण मामला खारिज कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में भोज उत्सव की शुरूआत हुई। उस समय स्थानीय विधायक विक्रम वर्मा प्रदेश मंत्रिमंडल के सदस्य थे। उन्होंने संस्कृत अकादमी के बैनर तले यहां विचार गोष्ठी आयोजित करवाई थी। सबसे आश्चर्य जनक तथ्य को दोनो प़ा नकारते चले आ रहे है वह यह है कि राजा भोज के द्वारा स्थापित भोजशाला को बनाने वाले पंवार राजवंश को आज तक इस विवाद से परे रखा जाना। उस समय तत्कालिन महाराजा आनंदराव जी पंवार के नाबालिग होने की स्थिति में जब केबिनेट कोई हल नहीं कर पाई तब उसके पूरखों द्वारा स्थापित भोजशाला को अगर अग्रेंजी हुकुमत चाहती जो राजा साहब की पैतृक सम्पति मान कर उन्हे ही सौप देती तब भले ही राजा स्व विवेक से जिसे चाहे उसे देते क्योकि दान में दी गई किसी भी प्रकार की सम्पति का जब हस्तांतरण हो जाता है तब वह विवाद का केन्द्र नहीं रहती। आज भी इस बरसों पुराने विवाद का एक सूत्रिय हल है वह यह कि पंवार राजवंश मौला कमाल के पहले भी स्थापित था तथा बाद में भी तब इस बात पर बेमतलब की बहस करने से क्या फायदा……! राजा भोज की इस पाठशाला को पंवार राजवंश की पैतृक सम्पति मान कर उसे राजवंश के उत्तराधिकारी युवराज डा. करण सिंह राजे को सौप कर उसमें लंदन से मां बाग्देवी की प्रतिमा को स्थापित करवा कर उसे मां कालिका देवी ट्रस्ट  की तरह पंजीकृत करवा कर उसे सभी आम जनता के दर्शनार्थ के लिए सौप दी जायें. मध्यप्रदेश के रामभक्त एवं स्वंय को हिन्दुवादी नेता समझने वाले संघ की विचारधारा से जुडे प्रदेश के मुखिया अपने मुख्यमंत्री काल में लंदन जाने के बाद भी राजा भोज की कुलदेवी मां बाग देवी की प्रतिमा को उस संग्राहलय से नहीं ला पायें जहां पर वह आज भी अपने वतन को आने को पलके पावडे बिछाये इंतजार कर रही है। कहने को हर कोई शेख चिल्ली बन जाता है लकिन जब बारी आती है तो वहीं भिगी बिल्ली बन जाता है। पंवारो के इतिहास की सबसे बडी प्रमाणिक धरोहर राजा भोज की कुलदेवी की प्रतिमा कब धार में तथा धार से धर्मान्तरण के डर से भागे पवंार वापस अपने वतन को लौटेगंे यह सब कह पाना अतीत के घेरे में है। अब यदि प्रदेश की भाजपा सरकार राजा भोज को मान सम्मान देने के लिए आगे आई है तो उसका स्वागत करना चाहिये क्योकि देर सबेर आखिर अक्ल आई तो सही। अब प्रदेश सरकार को धार का भी मान – सम्मान को लौटाने के लिए आगे आना चाहिये। आज जरूरत इस बात की है कि धार को कला एवं संस्कृति का केन्द्र बना कर उसे पुनः उस शिखर पर पहंुचाये जहां पर वह थी और इसके लिए सबसे जरूरी है कि मां वाग्यदेवी की मूर्ति को स्वदेश वापस लाने का इमानदारी पूर्वक प्रयास किया जाये।

सतपुड़ा के घने जंगल , ऊंघते अनमने जंगल ,
इन वनो के खुब भतीर चार मुर्गे – चार तीतर
मध्यप्रदेश की पाठ पुस्तको में पढऩे को मिलती थी। अब उक्त पंक्तियां पढऩे को आज भले ही मिल जाएगी लेकिन सतपुड़ा के जंगलो में अब संरक्षित वन्य पक्षी तीतर – बटेर देखने को भी नहीं मिलेगें। संरक्षित वन्य पक्षियों की तस्करी एवं बिक्री रोकने के वन विभाग के अमले ने जब उत्कृष्ट मैदान के समीप वन्यप्राणियों की खरीद-फरोख्त कर रहे पारधियों को पकडऩे पहुंचे वन अमले पर पारधियों ने अचानक हमला बोल दिया। जिसमें एक महिला वनकर्मी को चोट आई है और फॉरेस्ट के वाहन का कांच भी टूट गया है। बीती शाम हुई इस घटना में पारधी वन विभाग द्वारा पकड़े गए आरोपी को छुड़ाने में सफल रहे। घटना में वन विभाग ने हमले को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। स्थिति यह थी कि लालबहादुर शास्त्री स्टेडियम के दर्शक हॉकी का फाइनल मैच देखना छोड़कर घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े। रोचक तथ्य यह है कि स्टेडियम में वन विभाग के मुखिया सीसीएफ आरबी सिन्हा भी मौजूद थे, लेकिन उन्होंने इतनी बड़ी घटना में मौका स्थल पहुंचकर वस्तु स्थिति की जानकारी लेना भी मुनासिब नहीं समझा।बैतूल रेंज अफसर को यह सूचना मिली कि पारधियों द्वारा वन्य पक्षी तीतर-बटेर अभिनंदन सरोवर के किनारे मछली बाजार में बेचे जा रहे हैं। लगातार तीन दिनों तक निगरानी करने के बाद वन विभाग के तीन कर्मचारी सामान्य कपड़ों में ग्राहक बनकर तीतर-बटेर खरीदने पहुंचे। जिससे कि शिकारी वर्दी में देखकर भागने में सफल न हो सके। ग्राहक बनकर पहुंचे वनकर्मियों ने अपने सार्थियों को दूरभाष पर सूचना दी तो उडऩदस्ते का वाहन मौका स्थल पहुंचा और उन्होंने वन्यप्राणियों को बेच रही महिलाओं को पकड़ लिया। करीब चार थैलियों में वन्य प्राणियों को लेकर बैठी महिला को जैसे ही वन विभाग के उडऩदस्ते ने पहुंचकर दबोचा और उसे पकड़कर वाहन में बैठालने लगे तो समीप के ही पारधी डेरे से 100-150 लोग एक साथ लाठी और पत्थर लेकर इस दल पर दौड़ पड़े। अचानक हुए इस हल्लाबोल को देखकर फॉरेस्टकर्मियों के हाथ-पैर फूल गए। जिसको जहां समझ में आया वह उसी ओर भाग खड़ा हुआ। बाद में जब पुलिस को सूचना मिली तो पुलिस दल मौके पर पहुंचा, लेकिन पारधियों में घटना को लेकर जरा भी खौफ नजर नहीं आ रहा था। वनकर्मी अचानक हुए इस हमले से घबराकर भाग खड़े हुए। गनीमत यह रही कि वहां के अन्य दुकानदारों ने पारधियों और इनके बीच ढालका काम करते हुए इन्हें भागने में सहयोग दिया। स्थिति यह थी कि वनकर्मी दूसरों के वाहन से वहां से भागे हैं। पारधियों ने उनका पीछा पेट्रोल पंप तक किया। इस हमले में महिला वनकर्मी सुनंदा के हाथों में चोट आई हैं और फॉरेस्ट के वाहन का साइड ग्लास टूट गया है। इस कार्रवाई में रेंजर एलपी गौतक, डिप्टी रेंजर डीएस ठाकुर, एनआर बारस्कर, चंद्रशेखर और संजय धोटे सहित एक दर्जन वनकर्मी थे।अपनी जान बचाकर कोतवाली पहुंचे रेंजर एलपी गौतम ने रिपोर्ट दर्ज कराई और इसके बाद रेंज ऑफिस पहुंचकर उन्होंने पारधियों से जब्त किए गए थैलों को खोलकर देखा तो तीन थैलियों में तकरीबन दो दर्जन से अधिक तीतर थे और एक थैली में दो जंगली खरगोश भी मौजूद थे। पारधी इन्हें बेचने की कोशिश कर रहे थे। वन विभाग ने वन्य प्राणियों को तो छुड़ा लिया लेकिन वे आरोपी को पकडऩे में सफल नहीं हो पाए। रेंजर गौतम ने बताया कि गनीमत यह रही कि हम लोग भागने में सफल रहे अन्यथा आज वनकर्मियों के साथ बड़ा हादसा हो जाता। क्योंकि जिस तरह से हम पर हमला बोला था वह जानलेवा था। हमले की मुझे जानकारी मिली है। वनकर्मी आरोपी महिला को पहचानते हैं और नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। मैं स्टेडियम में जरूर मौजूद था पर मुझे तो डीएफओ द्वारा मामले की जानकारी दी गई थी। इधर पारधियों के सरगना एवं नेता अलस्या ने आरोप लगाया कि देश भर में धुमुन्तु जनजातियों में शामिल पारधियों द्वारा बरसो से वे तीतर – बटेर को पकड़ कर अपना जीविका पार्जन करते चले आ रहे है। ऐसे में हमारा पूरा परिवार आज भी शरणार्थी का जीवन यापन कर रहा है। हमारे पास जीविका पार्जन का कोई दुसरा रास्ता नहीं है। हमारे खेत खलिहान तक सुखे पड़े है। हमारे परिवार के लोग भीख मांगते है। उसके बाद भी सरकार का दमन हम लोगो पर होता चला आ रहा है। सब कुछ इसलिए हो रहा है क्योकि हम लोग चौथिया कांड के आरोपियों में शामिल भाजपा के नेताओं के नाम हटाने के लिए तैयार नहीं है। अलस्या पारधी के अनुसार संरक्षित वन्य पक्षी तीतर – बटेर पर प्रतिबंध लग सकता है तो फिर मुर्गो एवं मदलियों पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

गोलमाल है सब गोलमाल है
बैतूल जिले की ग्राम पंचायतो के सचिव की करोड़पतियों में गिनती
बैतूल,रामकिशोर पंवार:  बैतूल के जिले के पूर्व मुख्य कार्यपालन जिला पंचायत बाबूसिंह जामोद के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अनुवेषण ने प्रकरण दर्ज किया है तबसे लेकर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक बैतूल जिले की ग्राम पंचायतो से भ्रष्ट्राचार की $खबरे गांव तक पहुंचने लगी हैं। बैतूल की दसों जनपदों के अंतर्गत आने वाली 558 पंचायतों की आडिट रिपोर्ट तो यह बता रही है कि या तो आडिट सही तरीके से नहीं हुआ है या फिर सभी पंचायतों में पूरा काम ही गोलमाल है। एक जैसी आडिट रिपोर्ट पर आडिट प्रक्रिया को जानने वाले भी हैरत में है।बैतूल जिले में 10 जनपदें हैं और इन जनपदों के अंतर्गत 558 पंचायतें आती हैं। बैतूल जनपद की 77 पंचायतों में ऑडिट करने वाली कम्पनी अग्रवाल एंड मित्तल कंपनी भोपाल ने जो ऑडिट आपत्ति का प्रपत्र जनपदों को दिया है उसमें सभी जनपदों में एक जैसी आपत्ति बताई गई है। यह किसी भी हालत में संभव नहीं है कि सभी पंचायतों में एक जैसी गलतियां की जा रही है या एक जैसा गोलमाल हो रहा हो। कंपनी द्वारा आडिट आपत्तियों के साथ यह भी दावा किया गया है गोलमाल छोटा नहीं बल्कि करोड़ो का है। वैसे भी बैतूल जिले के दस जनपदो की आधे से ज्यादा ग्राम पंचायतो पर 57 करोड़ रूपए की वसूली के आदेश जारी होने के बाद भी सरपंच और सचिव राजनैतिक संरक्षण की छांव में है। ग्राम पंचायतो का आडिट करने वाली कम्पनी ने करीब 16 आपत्तियां अपनी आडिट रिपोर्ट में लगाई है। वर्ष 2009-10 के लिए किए गए इस आडिट में यह भी कहा गया है कि इस प्रतिवेदन में उल्लेखित तुलन पत्रक, आय-व्यय पत्रक एवं प्राप्ति तथा भुगतान पत्रक लेखा पुस्तकों से मेल नहीं खाते है। आडिट रिपोर्ट में जो आपित्तयां ली गई है उसमें साफ कहा गया है कि कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र जांचने के लिए पंचायतों में प्रस्तुत नहीं किया। पांच हजार से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीद नहीं लगाई गई है। यहां तक कि मस्टर रोल के प्रपत्र दो और तीन उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए। साथ ही जनपदों ने भी मस्टर रोल में कार्य का नाम और जारी करने की तिथि भी नहीं दशाई गई है। यह तमाम चीजें नियमों के खिलाफ और बड़े गोलमाल की ओर खुला इशारा कर रही है। स्थिति यह है कि भुगतान देयकों पर सरपंचों के अधिकृत हस्ताक्षर भी नहीं है। रोकड़ अवशेष एवं ग्राम पंचायत द्वारा किए गए कार्यो का भौतिक सत्यापन हमारे द्वारा नहीं किया गया है। अंकेक्षण कार्य हेतू हमारे समक्ष सिर्फ कैश बुक, पास बुक और खर्च से संबंधित प्रमाणक ही उपलब्ध कराए गए। कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र को जांचने हेतू प्रस्तुत नहीं किया गया।ग्राम पंचायत द्वारा माप पुस्तिका प्रस्तुत न करने के कारण उससे संबंधित मस्टर रोल अन्य खर्च का मिलान संभव नहीं था।अधिकांशत: पांच हजार रूपए से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीदी टिकट नहीं लगाए गए।ग्राम पंचायत द्वारा योजनान्तर्गत फंड से किसी भी प्रकार की निश्चित अवधि जमा नहीं बनवाई गई।बैंक खातों में जमा दर्शाई गई मजदूरी वापसी से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं की गई।पूर्ण जानकारी के अभाव में अंकेक्षण का मूलभूत आधार रोकड़ खाते को माना गया है। पंकज अग्रवाल, अग्रवाल मित्तल एंड कंपनी ने बताया कि यह बता पाना संभव नहीं है कि किसी भी कार्य या सामग्री क्रय हेतु किया गया भुगतान अग्रिम है या नहीं। इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा रोकड़ खाता एवं उपलब्ध प्रमाणकों के आधार पर किया गया अग्रिम भुगतान अलग से दर्शाया गया है। ग्राम पंचायत द्वारा अचल सम्पत्ति का रजिस्टर संधारित नहीं किया गया है। पंचायत कार्यालय से प्राप्त रजिस्टरों के अतिरिक्त सामान्यत संधारित रजिस्टर के पृष्ठ पूर्व मशीनीकृत नहीं थे। सामान्यत: सभी मस्टर रोल के प्रपत्र 2 व 3 उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए है। जनपद पंचायत द्वारा मस्टर रोल में कार्य का नाम व जारी किये जाने की तिथि अंहिकत नहीं की गई है। सामान्यत: ग्राम पंचायत द्वारा निर्माण हेतु सामग्री क्रय करने के दौरान शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। इसी तरह सामग्री क्रय के व अन्य बिल कच्चे के लिये गये है। भुगतान देयकों पर सरपंच द्वारा अधिकृत हस्ताक्षर नहीं किये गये है। ग्राम पंचायत के अंकेक्षण हेतु कुछ प्रमाणक प्रस्तुत नहीं किए गए। सबसे ज्यादा घोटाले बाज भीमपुर जनपद की स्थिति तो काफी भयाववह है। इस जनपद में तो अधिकांश सचिवो की गिनती करोड़पति एवं लखपतियों में होती है। इन सभी दुरस्थ ग्राम पंचायतो के सचिवो ने उक्त माल कमाने के लिए अपनो को ही लाभ पहुंचाया है। रमेश येवले नामक एक सचिव के पास आज करोड़ो की सम्पत्ति जमा हो गई है। रमेश के द्वारा अपने सचिव कार्यकाल में तथा पूरी जनपदो के की ग्राम पंचायतो में सबसे अधिक भुगतान रमेश येवले सचिव के परिवार के सदस्यों के नाम पर किया गया है। रमेश येवले को टे्रक्टर ट्राली एवं ब्लास्टींग के नाम पर भुगतान किया गया है। आज मौजूदा समय में रमेश येवले सहित दो दर्जन से अधिक सचिवो पर कंसा शिकंजा अब ठीला पड़ता जा जा रहा है। अभी हाल ही में भीमपुर ब्लॉक में आयोजित जनपद पंचायत की समीक्षा बैठक में उपस्थित नहीं होने वाले एडीईओ (विकास विस्तार अधिकारी) को जिला पंचायत सीईओ द्वारा निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा मिटिंग में शामिल नहीं होने वाले सचिवों एवं अन्य कर्मचारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। यदि वह नोटिस का संतुष्ठ जवाब नहीं देते है तो उनका 15 दिन का वेतन काट लिया जाएगा। जिला पंचायत सीईओ एसएन चौहान ने बताया कि उन्हे शिकायते मिल रही थी जिसके चलते उक्त कार्यवाही की गई। श्री चौहान के अनुसार बैठक में एडीईओ कृष्णा गुजरे सहित सचिव एवं अन्य कर्मचारी उपस्थित नहीं हुए थे। जिस पर उनके एडीईओ गुजरे को निलंबित कर दिया है। वहीं सचिव सहित अन्य कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। सीईओ चौहान ने बताया कि एडीईओ द्वारा विभिन्न कार्यो के टारगेट को भी समय पर पूर्ण नहीं किया गया था। मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत बन रही ग्रेवल सड़कों को लेकर अभी से सवाल खड़े होना शुरू हो गए है। बताया जा रहा है कि विगत दिनों जो जिला पंचायत अध्यक्ष का गुस्सा योजना मंडल की बैठक में आरईएस पर फूटा था उसकी वजह भी यही सड़कें थीं। सड़कें जिस रफ्तार से बन रही है उसको लेकर संदेह जाहिर किया जा रहा है।लम्बाई कम और दर अधिक बैतूल जनपद अंतर्गत बोरीकास से सालार्जुन तक बन रही 2.80 किलोमीटर लम्बी ग्रेवल सड़क की लागत जहां 51.95 लाख रूपये है। वहीं भरकवाड़ी से खानापुर तक बनने वाली तीन किलोमीटर लम्बी सड़क की लागत महज 33.94 लाख है। लागत में इस अंतर को लेकर पंचायती राज के जनप्रतिनिधी अब सवाल खड़े कर रहे है।एक महीने में 40 प्रतिशतबोथी सियार से मांडवा 1.3 किमी, बोरीकास से सालार्जुन 2.80 किमी, आरूल से खाटापुर 2.2 किमी, भकरवाड़ी से खानापुर तीन किमी और बारवी से डोडरामऊ 3.75 किमी की जब जनपद पंचायत बैतूल अध्यक्ष ने समीक्षा की थी तो दिसम्बर में काम प्रारंभ ही हुआ था और अब निर्माण एजेंसी आरईएस 40 प्रतिशत तक काम हो जाना बता रही है।

अब अपनी बहन के घर में रहेगें शनिदेव
शनिदूज के दिन शनिदेव एवं मां ताप्ती के मंदिर का भूमिपूजन
बैतूल, वैसे तो कहा जाता है कि भाई दूज के दिन ही भाई अपनी बहन के घर जाते है। शनि महाराज हर वर्ष भाई दूज को अपनी बहन मां सूर्यपुत्री ताप्ती के घर जाते है, लेकिन शनिदेव के भक्तो को उनका यह एक दिन के लिए आना और चले जाना गवारा नहीं लगा और उन्होने बहन – भाई दोनो को साथ – साथ एक ही मंदिर में प्राण प्रतिष्ठत करने का निर्णय ले लिया। बैतूल अमरावती मार्ग पर स्थित ताप्ती घाट पर ताप्ती सेवा समिति ने एक सादे कार्यक्रम में शनिदूज के दिन शनिदेव एवं मां ताप्ती के मंदिर का भूमिपूजन किया। कुछ साल पूर्व ही ताप्ती नदी के दुसरे छोर पर सिमोरी मार्ग पर भगवान भास्कर भव्य प्रतिमा को स्थापित किया गया था। अब ताप्ती जी के दुसरे छोर पर शनिदेव एवं ताप्ती जी की एक ही छत के अंदर अलग – अलग प्रतिमा को स्थापित किया जा रहा है। ताप्ती जन्मोत्सव तक उक्त मंदिर के निमार्ण एवं प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सम्पन्न हो जायेगा। ताप्ती सेवा समिति से जुड़े मनोहर अग्रवाल के अनुसार भगवान भास्कर की पहली पत्नि की दो संताने यमुना के तट पर यमराज एवं यमुना की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। भारत में यह दुसरा स्थान होगा जहां पर सूर्य नारायण की दुसरी पत्नि की दुसरी दोनो संतानो का एक भव्य मंदिर बनेगा। मां ताप्ती जागृति मंच ने पूरे देश – प्रदेश से लोगो को ताप्ती जागृति अभियान से जुडऩे की अपील की है।

एक रूपए के 85 पैसे गायब करने वाले एक अफसर के खिलाफ मामला दर्ज पूरे प्रदेश में 5 सौ ज्यादा मामले दर्ज लेकिन दोषियो को नहीं मिली सजा
बैतूल, केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेरा ) तहत भेजे गये रूपए का किस तरह उपयोग किया जाता है…..?  यदि वह देखना है तो एक बार मध्यप्रदेश के माडल बने बैतूल जिले में एक जरूर आइए ……! 2 फरवरी 2009 को यूपीए की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेरा ) के सफल क्रियाव्यन का प्रथम पुरूस्कार पाने वाली टीम के एक सदस्य के खिलाफ हाल ही में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने  मामला दर्ज किया है। पुरूस्कार पाने वाले मुखिया के खिलाफ पूर्व में ही राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) मामला दर्ज कर चुकी है। वैसे तो ब्यूरो प्रदेश के हर दुसरे या तीसरे अफसर के खिलाफ अभी तक पांच सौ से अधिक मामले दर्ज कर चुकी है। राज्य सरकार के अधिन कार्य करने के कारण एक भी अधिकारी को सजा भले न मिली हो पर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) के द्वारा अपराध दर्ज करने से लोगो में यह विश्वास बना रहता है कि शायद इससे अधिकारियों की अवैध काली कमाई पर लगाम लग सके। केन्द्र में दो बार सरकार बनवा चुकी यूपीए की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी भले ही आज तक अपने स्वर्गीय पति राजीव गांधी द्वारा कहे गये एक रूपए में से 85 पैसे गायब होने का सच स्वीकार कर चुके है लेकिन बैतूल की इस इस ताजा घटना के बाद उन्हे पता लग जायेगा कि वह 85 पैसा कहां जाता है। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा गांवो एवं ग्रामीणो के तथाकथित समग्र विकास के लिए भेजा जाने वाले एक रूपए के गांव तक नहीं पहुंचे पाने के पीछे कहानी का हाल ही में खुलासा हुआ। बैतूल जिले में पदस्थ रहे जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) बाबू सिंह जामोद पर शिकंजा कस गया है। राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और पद के दुरुपयोग का मामला दर्ज किया है। यह कार्रवाई ईओडब्ल्यू की भोपाल ईकाई ने की है। बाबू सिंह जामोद करीब डेढ़ महीने से सीहोर में पदस्थ हैं। जिला पंचायत सीईओ.. इससे पहले वे तीन साल तक बैतूल में जिला पंचायत सीईओ के पद पर पदस्थ थे। ईओडब्ल्यू को शिकायत मिली थी कि बैतूल में पदस्थापना के दौरान उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार किया है और लाखों रुपए की अनुपातहीन संपत्ति अर्जित की है। ईओडब्ल्यू ने शिकायत की जांच के बाद सीईओ के खिलाफ मामला दर्ज किया है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। शिकायत में कहा गया था कि बैतूल जिले का चालीस फीसदी हिस्सा आदिवासी बहुल है। जिले के कई ब्लाक आदिवासी बहुल घोषित हैं। उनके लिए केंद्र सरकार से काफी राशि मुहैया कराई जाती है। श्री जामोद ने अपने तीन साल के कार्यकाल में जिले के दस जनपदो पंचायतो एवं ग्राम पंचायतो तक में उन्ही लोगो की पदस्थापना करवाई जो उनके अनुसार कार्य करते थे। ग्राम पंचायत से लेकर जनपदो तक से वे हर माह एक मोटी किश्त लिया करते थे। कमोबेश यही स्थिति प्रोजेक्ट अफसर की थी। उनके माध्यम से तकरीबन सभी सरकारी योजनाओं में खेल करते थे। जिले में जितनी सरकारी योजनाएं संचालित होती हैं, उनका भुगतान जिला पंचायत के माध्यम से होता है। बैतूल जिले में कपिलधारा कूप योजना में जिले की आधे से ज्यादा ग्राम पंचायतो के सचिवो के खिलाफ 22 करोड़ रूपए की वसूली के आदेश होने के बाद भी उनसे श्री जामोद ने कोई वसूली नहीं करवाई। जिले की 558 ग्राम पंचायतो के सचिवो एवं सरपंचो के खिलाफ आर्थिक अपराध एवं सभी योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार करने के बाद भी उन्हे कारण बताओ नोटिस जारी करके अवैध ऊगाही भी की गई। धारा 40 के तहत उन्ही संरपचो एवं सचिवो को कार्यमुक्त किया गया जिनके द्वारा लेने – देन नहीं किया गया। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि बैतूल में पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी रहे अरूण भटट् और बाबू सिंह जामोद की पूरी टीम ने पंचायती राज्य का सत्यानाश करने मेें कोई कसर नहीं छोड़ी। जिला कलैक्टर एवं जिला पंचायत की सफल क्रियाव्यन टीम के मुखिया होने के नाते अरूण भटट ने बैतूल जिले में सर्वश्रेष्ठ क्रियाव्यन के लिए यूपीए अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से पुरूस्कार प्राप्त किया था। उस समय श्री जामोद भी श्री भटट् के साथ ही दिल्ली पहुंचे थे। इस साल भी बैतूल को सर्वश्रेष्ठ कार्य योजना का पुरूस्कार मिलना था लेकिन सेटिंग नहीं जम सकी और श्री जामोद के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने अपराध दर्ज कर लिया। बैतूल के पूर्व कलैक्टर श्री अरूण भटट् एवं वर्तमान कलैक्टर श्री विजय आनंद कुरूील के खिलाफ भी राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) द्वारा पूर्व में कुछ इसी प्रकार का मामला दर्ज किया है। बाबूसिंह जामोद ने दो साल अरूण भटट् तथा एक साल विजय आनंद कुरूील की कप्तानी में पारी खेली जिसमें वे बैतूल से जाने के बाद वे ईओडब्ल्यू के हत्थे शिकंजे में चढ़ गये। श्री जामोद ने अपनी तीन साल की पदस्थापना के दौरान सबसे ज्यादा गड़बड़ी नरेगा और वाटरशेड मिशन में की गई है। फोटोकापी मशीन, कंप्यूटर और प्रिंटर की खरीदी में भी भारी गड़बड़ी की गई है। इधर बैतूल जिले मेें श्री जामोद पर शिंकजा कसने के बाद जिले में पदस्थ रहे जनपद पंचायतो के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों की बैचेनी बढऩे लगी है। जिला पंचायत बैतूल के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता का कहना है कि पूरे प्रदेश में ऐसे कई मामले आइ एस अधिकारियो के खिलाफ दर्ज होते रहते है लेकिन कार्यवाही किसी पर भी नहीं होती है। श्री गुप्ता का मानना है कि कार्यवाही न होने से अधिकारियों में रूपए कमाने की चाहत बढ़ जाती है और यही रूपए बाद में ऐसी जांचो एवं मामलो को प्रभावित करता है। बैतूल जिले में पदस्थ रहे पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री जामोद के खिलाफ दर्ज मामले के बाद बैतूल जिले के राजनैतिक एवं प्रशासनिक गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।

जात न पुछो ज्योति की , पुछ लीजिए ज्ञान
बैतूल से रामकिशोर पंवार की खास रिर्पोट
आजकल भाजपा की दो मात्र आदिवासी महिला सासंदो में से एक बैतूल की श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे अपने भाषणो में कुछ जरूरत से ज्यादा ज्ञान भरी बातो को ऐसे कह रही है जैसा कोई ज्ञानी संत , पहुंचा हुआ सिद्ध महात्मा और सन्यासी कहता है। मैडम ज्ञान की गंगा बहा रही हैं उस आदिवासी जिले में जहां पर आधे से ज्यादा आबादी आज भी कथित अज्ञानी हैं। पहले स्लो और फिर तेज मोशन में मैडम गुदगांव से सीधे न्यूजर्सी पहुंच जाती हैं। ऐसा हो भी क्यों नहीं क्योकि बैतूल की भाजपा सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे की जाति भले ही शंका – कुशंका के बीच में उलझी पड़ी है , लेकिन उनकी शिक्षा की डिग्री असली है। महादेव आत्मज दशरथ के घर 2 जून 1966 को जन्मी सुश्री ज्योति किरण ठाकुर ने छत्तिसगढ़ की राजधानी रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ल महाविद्यालय सत्र 1984 – 85 एवं दुर्गा महाविद्याल सत्र 1987 – 88 से स्नातक शिक्षा प्राप्त की है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे अब बैतूल से सासंद चुने जाने के इतने दिन बीत जाने के बाद ज्ञान की ज्योति जलाने का काम शुरू कर दिया है। अकसर शांत एवं चिंतित रहने वाली श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे आजकल अपने रौद्र रूप में राजनैतिक भाषणो एवं ससंद में विभिन्न विषयो पर व्यख्यान भी दे रही है। पिछले कुछ दिनो से टेंशन फ्री मेडम को अब पूरा यकीन हो गया है कि उनकी जाति का मामला कम से कम पांच तक कथित पेंडिग ही पड़ा रहेगा। सासंद महोदया को अपने राजनैतिक आकाओं एवं संरक्षको की ओर से पूर्ण विश्वास दिलाने के बाद से वे अब जात – पात के विवाद से कोसो दूर अपने आप को सेफ जोन में महसुस कर रही है। बताया जाता है कि कांग्रेस एवं भाजपा के नेताओं के बीच कथित समझौते के बाद से सारा मामला पलट सा गया है। बीते लोकसभा चुनाव में गर्मजोशी के साथ उछले भाजपा सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे की जाति का शांत पडा मामला इन दिनो एक बार फिर चौक – चौराहो पर चर्चा एवं सुखिर्यो में है। जिले के कुछ जागरूक संगठनो एवं राजनैतिक दलो ने इस बात पर सवाल उठाया है कि जबलपुर हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका के संदर्भ में अब कांग्रेस और संगठन और उसके कथित शीर्ष नेता – कार्यकत्र्ता मौन क्यों है? कहीं यह बैतूल जिले की वर्तमान सासंद के साथ कथित सौदेबाजी का परिणाम तो नहीं..? इस समय भाजपा एवं कांग्रेस के नेताओंं के बीच  चल रही कथित सेंटिग के- चलते जबलपुर हाईकोर्ट में दायर एक जनहीत याचिका का अभी तक निपटारा नहीं हो सका है। इसलिए उक्त मामले पर किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी नहीं की जा सकती हैं। बैतूल भाजपा के नेताओं एवं सरकार में बैठे मंत्री – मुख्यमंत्री तथा भारतीय संसद के भाजपाई सदस्यों ने कांग्रेस के दिल्ली में बैठे नेताओं को पता नहीं कौन सी घुटी पिला दी है कि वे बालाघाट जिले की कंटगी तहसील के पुरानी तिरोड़ी गांव के मूल निवासी महादेव आत्मज दशरथ की बिटिया ज्योति किरण जाति पंवार पिछड़ा वर्ग – सुश्री ज्योति किरण ठाकुर  – ज्योति बेवा प्रेम की जाति का मामला ही लगभग भूल चुके है। जिस जनहीत याचिका का निर्णय सुरक्षित था वह अभी तक बाहर नहीं आ सका है। उसके बारे में लोग अब दंभ खंभ के साथ कहने लगे है कि कथित बडी मोटी रकम में उक्त सौदा कांग्रेस एवं भाजपा के बीच न्यायालय के बाहर तय हो चुका है। इस कारण कांग्रेस समुचे प्रकरण में अभी तक हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है। बैतूल जिले से पहली बार नहीं दुसरी बार किसी जनप्रतिनिधि की जाति पर सवाल और बवाल उठा है। पूर्व में जाति की जांच को लेकर इतना बवाल नही पैदा हुआ था जितना इस बार ज्योति धुर्वे को लेकर उठा था। बैतूल के अधिवक्ता शंकर प्रेंदाम जो कि भाजपा के विधि प्रकोष्ठ के प्रदेश महामंत्री भी रहे है। श्री प्रेंदाम पार्टी से लोकसभा की टिकट न मिलने पर बागी प्रत्याशी के रूप में श्रीमति ज्योति धुर्वे के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके है। इस प्रकरण में एक जनहित याचिका जबलपुर हाईकोर्ट में दायर करेचुके है। शंकर प्रेंदाम का आरोप है कि एस डी एम भैसदेही ने जिस प्रकरण क्रंमाक 152 बी 121 दिनांक 31 जनवरी 2001 के आधार पर को जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया था उसका मूल रिकार्ड गायब हो चुका है। भैसदेही एस डी एम ने मध्यप्रदेश के डिण्डोरी जिले के मूलवासी स्वर्गीय प्रेम धुर्वे 50 साल की बेवा श्रीमति ज्योति धुर्वे के बैतूल जिले के 50 साल के निवास प्रमाण पत्र के बिना प्रमाण के ही बैतूल जिले की भैसदेही तहसील के गुदगांव की मूल निवासी मान लिया जबकि गुदगांव ज्योति धुर्वे या स्वर्गीय प्रेम धुर्वे के 50 साल के रहने का कोई मकान – ठिकाना – रहवास का साक्ष्य नहीं है। मात्र एक प्रेट्रोल पम्प के गुदगांव में ज्योति धुर्वे का कुछ भी नही है। वह भी श्रीमति मीरा धुर्वे के गैस कांड के बाद कांग्रेस की टिकट पर विधायक बनने के बाद उनके निज सहायक होने के नाते स्वर्गीय प्रेम धुर्वे को मिला था। स्वर्गीय प्रेम धुर्वे श्रीमति ज्योति धुर्वे , श्रीमति मीरा धुर्वे तीनो ही बैतूल जिले के मूल निवासी नही है। इन सब दस्तावेजो के बाद भी उसे बैतूल जिले से आदिवासी होने का जाति पहचान पत्र मिल गया और वे सासंद तक बन गई। नकली आदिवासी का यह पहला मामला नही है। इसके पूर्व भी डाक्टर मोहन बाबरू की जाति को लेकर सवाल उठाये गये थे और मामला न्यायालय में चल रहा है। डाक्टर बाबरू अपना जिला पंचायत अध्यक्ष का पूरा पांच साल पूरा कर लिये लेकिन न्यायालय से कोई रिजल्ट नहीं आया। इसाई समुदाय से परिवर्तित आदिवासी कहे जाने वाले डाक्टर मोहन बाबरू हालाकि बैतूल जिले की मूल निवासी है लेकिन जिस वर्तमान भाजपा सासंद की जाति को लेकर सवाल उठाये गये है उसका बैतूल जिले से कोई लेना – देना नहीं है। बालाघाट के कंटगी तहसील की पुरानी तिरोड़ी गांव में 7 सितम्बर 1938 को जन्मे महादेव आत्मज दशरथ पारधी जाति पंवार की तथाकथित बेटी सुश्री ज्योति उर्फ किरण पिछड़ी पंवार जाति की है। उसके पिता महादेव भारतीय रेल्वे में वर्तमान छत्तिसगढ़ राज्य के बिलासपुर शहर में भारतीय रेल्वे के बी एन रेल्वे बिलासपुर में नौकरी करते थे. मां के आदिवासी होने की वज़ह से सुश्री ज्योति किरण के जाति प्रमाण पत्र भ्रम एवं शंका – कुशंका को जन्म देते है। बैतूल जिले की आधी से ज्यादा आबादी ने अब इस विवाद पर कुछ भी बात करने से चुप्पी साध ली है। जनता अब दबे स्वर में कहने लगी है कि सभी एक ही थाली के चटटे – बटटे है। वैसे तो जिले में इस बात को लेकर हैरान एवं परेशान लोगो की कमी नही है कि उनकी भाजपा प्रत्याशी की जाति कौन सी है..?  बैतूल से लेकर भोपाल – दिल्ली तक की भाजपा आज भी किसी कोने में डरी – सहमी सी है कि ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे की जाति क्या है..? यदि वह भी अपनी मां की तरह इंटर कास्ट मैरिज कर चुकी है तो फिर उसका डिफाल्ट घोषित होना पक्का है। इसी शंका – कुशंका – आशंका को लेकर कहीं वह रात – दिन परेशान है कि कहीं जबलपुर हाईकोर्ट से जाति को लेकर कोई ऐसी आपत्ति न लग जायें कि लेने के देने पड़ जाये। जहां एक ओर पार्टी सड़क छाप लीगल एडवाइजरो से लेकर प्रदेश एवं देश के जाने – माने कानून के ज्ञाताओं एवं अज्ञाताओं से राय शुमारी में जुटी हुई है , वही दुसरी ओर जनहित याचिका दायर करने वालो और उनके आकाओं से भी से भी भाजपाईयों की मीटिंग – सेंटिग का दौर जारी है। भाजपा के नेता एक दुसरे के नाम से फोन करके जानने को इच्छुक है कि आपत्ति लगाने वालो के पास कौन – कौन से प्रमाण पत्र या दस्तावेज है। कभी भाजपा के विधिक सलाहकार एवं नेता फोन पर यह जानने की कोशिस में है कि आखिर बहन जी के प्रमाण पत्रो एवं दस्तावेजो में फाल्ट कहाँ पर है..? हैरान एवं परेशान नेताओं को एक राज की बात बता देते है वह इसलिए कि  सरकार उनकी है कि पंगा लेना अच्छी बात नहीं है। भाजपा प्रत्याशी का जाति प्रमाण पत्रों में रायपुर छत्तिसगढ एवं भैसदेही मध्यप्रदेश के एस डी एम का बना हुआ है और दस्तावेज कार्यालय में जाति से सबंधित मैडम के द्वारा कथित प्रस्तुत किये गये है वो कहीं से कही तक सिद्ध नहीं करते है कि छत्तीसगढ़ की ज्योति किरण वहीं है जो कि बैतूल से भाजपा की वर्तमान सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे है। मौजूद रिकार्ड के अनुसार डिण्डोरी जिले के रह वासी स्वर्गीय प्रेम धुर्वे 50 साल के या ज्योति धुर्वे के 50 साल के आदिवासी होने के दोनो दस्तावेज मैडम के पास जो मौजूद है उसमें गोण्ड जाति का उल्लेख किया गया है जबकि देश की संसद और कोर्ट 1977 के बाद से 2005 तब बने सभी गोण्ड जाति लिखे जाति प्रमाण पत्रो को निरस्त कर चुकी है। इस बारे में विधिवत आदेश भी जारी किये जा चुके है। छत्तिसगढ़ में जन्मी मैडम ज्योति बेवा प्रेमधुर्वे एवं सुश्री ज्योति किरण गोण्ड के कथित जाति प्रमाण पत्रो को दो अलग – अलग प्रदेशो के अलग – अलग जिलो के एस डी एम कार्यालयों द्वारा जारी किया जाना ही सबसे पहले संदेह की ऊंगली उठाता है। भाजपा सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे ने अपने पति और पिता के नाम पर रायपुर एवं भैसदेही दोनो एसडीएम कार्यालयों से अपने कथित जाति प्रमाण पत्रो को बनवा तो लिया लेकिन जब शोरगुल मचा तो दोनो एस डी एम कार्यालयों जहाँ पर भाजपा की राज्य सरकारे है वहाँ पर इस ज्योति किरण और ज्योति प्रेम धुर्वे का जाति प्रमाण पत्र का मूल रिकार्ड ही गायब हो चुका है। दो मार्च 2007 को लगाये गये सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्रस्तुत आवेदनकत्र्ता को दोनो एस डी एम कार्यालयों से लिखित में जानकारी दी गई कि दोनो जाति प्रमाण पत्रो के साथ प्रस्तुत कथित मूल दस्तावेज रिकार्ड से गायब हो चुके है। उनके पास कोई भी प्रमाण पत्र या दस्तावेज नहीं है अत: आवेदन निरस्त किया जाता है। अब कहीं राजनीति की उठा पटक में बेचारे एस डी एम की नौकरी और पेंशन के लाल  न पड़ जाये। बैतूल जिले के मूल निवासी को चाहे वह किसी जाति या धर्म का क्यों न हो उसे अपने पचास साल के रिकार्ड के आधर पर ही जाति प्रमाण पत्र मिलता है। जाति प्रमाणपत्र को लेकर उलझन में फंसी भाजपा सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे के जबलपुर हाईकोर्ट में पेश होने वाले कथित माफीनामे को लेकर मध्यप्रदेश की पूरी भाजपा में हडकंप मच गई है। इधर बैतूल जिला मुख्यालय पर भाजपा का कोई भी छोटा – बड़ा नेता किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर रहा है। वही दुसरी ओर  आयुक्त आदिवासी विकास एवं सदस्य सचिव अनुसूचित जनजाति प्रमाण छानबीन समिति मध्यप्रदेश द्वारा बैतूल जिला पुलिस अधिक्षक को 25 अगस्त 2009 को जारी शासकीय पत्र में 6 बिन्दुओ पर श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे के जाति प्रमाण पत्र पर गोपनीय जानकारी मांगी गई थी। उक्त  गोपनीय जानकारी के बाद से श्रीमति ज्योति धुर्वे की बेचैनी बढ़ती चली जा रही है और वे जबलपुर हाईकोर्ट में अपनी पेशी पर कोर्ट के फैसले के पूर्व ही कथित माफीनामा प्रस्तुत करने का मन बना चुकी थी। श्रीमति ज्योति धुर्वे ने इस बीच अपने पिता महादेव एवं माता तथा भाई विजय ठाकुर से भी सारे मामले में चर्चा की जिसकी स्वंय श्रीमति ज्योति धुर्वे के पिता महादेव ने पुष्टि करते हुये बताया कि उनकी बेटी पिछड़ा वर्ग  की है तथा उसने आदिवासी युवक से शादी की थी। अपनी एकलौती बेटी को मुसीबतो में फंसा देख आखिर महादेव ने पहली बार इस बात का सार्वजनिक खुलासा किया कि उनकी बेटी को भाजपा ने मोहरा बना कर बुरी तरह कानूनी चक्करो में उलझा दिया। इधर भाजपा के विधि प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश महामंत्री अधिवक्ता एवं हाईकोर्ट में श्रीमति जेति धुर्वे के खिलाफ याचिका प्रस्तुत कत्र्ता शंकर प्रेंदाम ने बताया कि यदि श्रीमति ज्योति धुर्वे अपना कथित माफीनामा प्रस्तुत करती है तो हो सकता है हाईकोर्ट उस पर श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे को कुछ राहत प्रदान कर दे लेकिन श्रीमति धुर्वे यदि आदिवासी नहीं है तो फिर उनका चुनाव निरस्त करके पुन: चुनाव होना चाहिये तथा उसके जाति प्रमाण पत्र मामले में दोषियो के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिये। भले ही विश्व महिला दिवस पर भाजपा कांग्रेस के साथ महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में मतदान करने चुके हो लेकिन उसी पार्टी की एक महिला आदिवासी सदस्य की सदस्यता पर मंडरा रहे खतरे के बादल छटने का नाम नहीं ले रहे है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में इस समय लोकसभा में मात्र तीन ही आदिवासी महिला लोकसभा सदस्य है। जिसमे बैतूल की भाजपा लोकसभा सदस्य श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे की जाति को लेकर हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका का फैसला आना बाकी है लेकिन राजनैतिक हल्को में अभी से बैचेनी महसुस की जा रही है कि यदि भाजपा की लोकसभा सदस्यता खतरे में पड़ गई तो फिर दो ही आदिवासी लोकसभा सदस्य शेष रह जायेगी। इस तरह पुरी लोकसभा में आदिवासी महिला का प्रतिशत मात्र दो रह जायेगा। लोकसभा एवं विधानसभा में लम्बे – चौड़े भाषण देने वाली राजनैतिक पार्टियो के नेताओं के द्वारा भाषण दिये जाते है लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। लोकसभा में यदि महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण मिल भी गया तो आदिवासियो को कितना लाभ मिलेगा कहना दिल्ली की तरह दुर है। भाजपा के सासंद का लगता है किसी न किसी विवाद से नाम जुड जाता है। मैडम इन दिनो अपने उस सनसनी खेज दावे के बाद हमेशा सुर्खियों में रही है।

जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमति लता राजू महस्की की पोल खुली
प्रमाण तो सिर्फ बहाना था , चार लाख के विज्ञापन जो छपवाना था
बैतूल,रामकिशोर पंवार: जिस ढंग से बैतूल जिले की पहली महिला जिला पंचायत अध्यक्ष एवं राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त श्रीमति लता राजू महस्की ने बीते पखवाड़े सम्पन्न हुई जिला पंचायत की बैठक में आर इ एस के इंजीनियरो को खुले आम धमकी दी थी कि यदि वह सोच लेगी तो जिस भी चाहेगी जिले के तथाकथित भ्रष्ट्राचारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामले के दस्तावेजो को लेकर एफआईआर करवा देगी तो आर इ एस प्रभारी बानिया और मेघवाल दोनों आज ही जेल चले जाओगे। बैतूल जिले की प्रथम महिला जनप्रतिनिधि की इस सिंह गर्जना का जिले भर में स्वागत हुआ लेकिन इस तथाकथित धमकी की पोल उस समय खुल गई जब महिला जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमति लता राजू महस्की ने जिले भर के सभी प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों में पूरे पेज के अपने महिमा मंडित कार्यकाल के एक साल पूरे हो जाने की खुशी में लगभग चार लाख रूपए के विज्ञापन छपवा डाले। सभी समाचार पत्रों के पत्रकारों को आर इ एस प्रभारी श्री बानिया का नाम एवं पता तथा मोबाइल नम्बर देकर महिला जनप्रतिनिधि ने अपने आप को बैतूल के विकास पुरूष कहे जाने वाले स्वर्गीय विजय कुमार खण्डेलवाल के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया। बैतूल जिले के पिछड़े समाज से आने वाली एक छोटे से गांव के कटट्र इमानदार भाजपा नेता स्वर्गीय मानिकराव महस्की की पुत्रवधु ने अपने ससुर के निधन के मात्र डेढ़ साल भी पूरे नहीं हो सके समय के भीतर ही वह कार्य कर डाला कि लोग सन्न रह गए। इमानदार जनप्रतिनिधि के बदले एक ब्लेकमेलर जनप्रतिनिधि के रूप में ख्याति पाने वाली इस महिला जनप्रतिनिधि ने अपने पास मौजूद कथित दस्तावेजो का खुले आम सौदा करके आरईएस के कार्यपालन यंत्री केएस वानिया एवं पूर्व कार्यपालन यंत्री आर एस मेघवाल के खिलाफ आज दिनांक तक कोई शिकायत नहीं की और न ही किसी भी अधिकारी को जेल भिजवाया। महिला जनप्रतिनिधि द्वारा सार्वजनिक रूप से किसी दो जवाबदेह प्रशासनिक अधिकारियों को अपमानित करने के बजाय सीधे उनके खिलाफ लोकायुक्त या राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान में रिर्पोट दर्ज करवानी चाहिये थी ताकि हकीगत में दोनो उक्त अधिकारी जेल जा सके। विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस पार्टी ने भाजपा की महिला जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमति लता राजू महस्की को चुनौती दी है कि यदि वे दोनो अधिकारियों को ब्लेकमेल नहीं कर रही है तो एक जागरूक नागरिक एवं प्रतिनिधि के नाते पुलिस में या लोकायुक्त में रिर्पोट दर्ज करवा कर अपनी नैतिक जवाबदेही का निर्वाहण करे। इन सब बातों को दरकिनार कर महिला जनप्रतिनिधि ने अपने पूरे एक साल के कार्यक्रम का पूरा पेज का रंगीन महिमा मंडित बखान छपवा कर अपनी कथनी और करनी में भिन्नता को सिद्ध कर दिया। कुछ चुनिंदा पत्रकारों के समक्ष अपना दुखड़ा बाटते हुए श्री केएस वानिया ने बातो ही बातो में जिला पंचायत अध्यक्ष के आरोपो की पोल खोल कर रख दी। श्री वानिया से हुई बातचीत के टेप के अनुसार पूरे विज्ञापनों का भुगतान पूर्व में ही कर दिया गया तब जाकर जान बची हुई है। श्री वानिया की तरह अनेक अधिकारियों से भी एक साल के पूरे हो जाने की खुशी में अध्यक्ष मैडम के निज सहायक गायकवाड़ ने घुम – घुम कर चंदा जमा किया। उल्लेखनीय है कि हाल ही में बैतूल जिला मुख्यालय पर जिला योजना मंडल की बैठक में आरईएस विभाग की समीक्षा के दौरान आरईएस के कार्यपालन यंत्री केएस वानिया पर भड़कते हुए उक्त धमकी दी थी । थोड़ी देर के लिए तो बैठक में सन्नाटा ही छा गया लेकिन इसके बाद तो आरईएस को लेकर भाजपा के जनप्रतिनिधियों ने ही आरोपों की झड़ी लगा दी। हाल ही में बैतूल से सीहोर तबादला होकर गए सीईओ बीएस जामोद को लेकर भी उन्हीं जनप्रतिनिधियों ने जमकर आरोप लगाए, जिनसे जामोद के बेहतर संबंध बताए जाते थे। जिले के अधिकांश निर्माण कार्यों के मूल्यांकन में सब इंजीनियर लापरवाही बरत रहे हैं। बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं हो रहा है। अधिकारी दफ्तरों से ही काम कर रहे हैं। फील्ड में कभी कोई सुध नहीं लेता। ऐसे कई आरोप भाजपा नेताओं ने जिला योजना समिति की बैठक में मध्यप्रदेश के वन मंत्री एवं बैतूल जिले के प्रभारी मंत्री सरताज सिंह के सामने अपनी ही सरकार के आला अफसरों पर लगाए। जिला पंचायत के सभा कक्ष में जिला योजना समिति की बैठक अधिकारियों के लिए परेशानी भरी साबित हुई। प्रभारी मंत्री सरताज सिंह ठीक 11 बजे सभाकक्ष में पहुंच गए थे, इस समय तक अधिकांश विभाग प्रमुख सभा कक्ष में नहीं पहुंच पाए थे। अधिकारियों का इंतजार करने के लिए प्रभारी मंत्री सीईओ के चैंबर में जाकर बैठ गए। मौजूद अधिकारियों ने अन्य अधिकारियों को फोन पर बुलावा भेजा। भागते-दौड़ते अधिकारी साढ़े 11 बजे तक सभाकक्ष में पहुंचे, तब कहीं जाकर बैठक शुरू हो पाई। पाले से प्रभावित फसलों के सर्वे और मुआवजे की समीक्षा के दौरान उस वक्त माहौल गर्मा गया जब नेताओं ने कहा कि किसानों को सर्वे की जानकारी नहीं मिल रही है। चेक देते समय उसे यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि कितने क्षेत्र की फसल को सर्वे में शामिल किया गया है और किस आधार पर मुआवजा तय हुआ है। किसी भी अधिकारी ने क्षेत्र में जाकर सर्वे की मॉनिटरिंग नहीं की। यही कारण है कि किसानों की फसल का आधा-अधूरा मूल्यांकन हो रहा है। इस पर प्रभारी मंत्री ने नाराजगी जताई। जिला पंचायत उपाध्यक्ष राजा पवार ने आरोप लगाए कि ग्राम पंचायत क्षेत्रों में हो रहे निर्माण कार्यों की मॉनिटरिंग और मूल्यांकन के लिए सबइंजीनियर नहीं पहुंचते। अधिकांश सबइंजीनियर टूर के नाम पर गायब रहते हैं। भाजपा के ही जिला पंचायत उपाध्यक्ष राजा पंवार ने तो महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में सब इंजीनियर और एसडीओ द्वारा कमीशन लिए जाने का आरोप लगाते हुए बताया कि बघोली बुजुर्ग से मालेगांव ग्रेवल सड़क निर्माण में रोलर चलाया ही नहीं और राशि निकाल ली गई। बैठक में मौजूद पूर्व सांसद हेमंत खंडेलवाल ने यह कहा कि भ्रष्टाचार इंजीनियर, सब इंजीनियर, एसडीओ करते हैं और वसूली गरीब सरपंचों पर होती है। जबकि गड़बड़ी के लिए पूरी तरह से यह तकनीकी अधिकारी ही जिम्मेदार है। पिछले तीन साल में आरईएस द्वारा करवाए गए कार्यो की जांच को लेकर भी भाजपा के विधायक अलकेश आर्य और गीता उइके ने आवाज उठाई तो बाकी सभी ने इसका समर्थन किया। इस पर पालक मंत्री सरताज सिंह ने यह कहा कि आगामी 17 फरवरी को आरईएस को लेकर ही फिर बैठक में सभी जनप्रतिनिधि क्षेत्र की दो-दो सड़कों की जानकारी देंगे।इ सकी जांच भोपाल के दल द्वारा की जाएगी। बैठक में भाजपा के जनप्रतिनिधियों ने विद्युत कंपनी की कार्यप्रणाली पर भी जमकर आक्रोश जाहिर किया। जिसमें शार्टेज के आधार पर किसानों से जबरन वसूली की बात भी कहीं गई। वहीं 14 नए सब स्टेशनों का काम धीमी गति से चलने पर भी नाराजगी जाहिर की।इस पर जिला भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने टिप्पणी की कि यहां जो कमाई हो रही है उससे भोपाल में बंगले बन रहे हैं। आरईएस और पीडब्ल्यूडी के सबइंजीनियरों की कार्यशैली को लेकर विधायकों ने भी जमकर खिंचाई की।पीएचई और पीडब्ल्यूडी के निर्माण कार्यों को लेकर जनप्रतिनिधियों के आक्रोश को देखकर प्रभारी मंत्री सरताजसिंह ने कहा कि प्रत्येक ब्लाक की दो-दो सड़कों की जांच कराई जाएगी। निर्माण कार्यों की समीक्षा के लिए जनप्रतिनिधियों की बैठक शीघ्र ही होगी। बैठक में जिला पंचायत अध्यक्ष लता राजू महस्की, विधायक अलकेश आर्य, चैतराम मानेकर, गीता उइके, सहकारी बैंक अध्यक्ष बसंत माकोड़े, ग्रामीण कृषि विकास बैंक अध्यक्ष सदन आर्य समेत अन्य जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारी मौजूद थे।

पंचायती राज में दिन प्रतिदिन करोड़पति
बनते जा रहे सचिवो की सीबीआई को शिकायत
बैतूल, रामकिशोर पंवार:  मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में पंचायती राज्य में सरपंच सचिवो की मनमर्जी के आगे सरकारी योजनाओं को हश्र हो रहा है वह किसी से छुपा नहीं है। इस समय बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के आधे से ज्यादा के सरपंच सचिवो के नीजी एवं परिजनो के वाहनो को नरेरा के तहत मिलने वाली राशी से भुगतान किया जा रहा हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले की ग्राम पंचायतो से सबसे अधिक भुगतान उन कृषि कार्यो के लिए पंजीकृत टे्क्टर ट्रालियों को हुआ हैं जो व्यवसायिक कार्यो के लिए प्रतिबंधित हैं। जिले में इसी तरह पानी के टैंकरो , रोड रोलरो , जेसीबी मशीनो , ब्लास्टींग मशीनो आदि को किया गया भुगतान भी नियम विरूद्ध किया गया है। बैतूल जिले की प्राय: सभी ग्राम पंचायतो के सरपंच एवं सचिवो से नियम विरूद्ध कार्य करके अतिरिक्त भुगतान करने पर रिकवरी के आदेश के जारी होने के तीन माह बाद भी एक भी सरपंच एवं सचिव से रिकवरी नहीं हो सकी हैं। पूरे जिले में साठ करोड़ के लगभग राशी की रिकवरी होना हैं। राजनैतिक संरक्षण एवं अधिकारियों की कथित मिली भगत के चलते आडिट आपत्तियों के चलते की जाने वाली रिकवरी शासन के खाते में नहीं जा सकी है। बीती पंचवर्षिय योजना में बैतूल जिले के प्राय: सभी सरपंच एवं सचिवो की सम्पत्ति में काफी इजाफा हुआ हैं। गांव के विकास के नाम पर जारी हुआ एक रूपैया का नब्बे पैसा सरपंच सचिवों की आलीशान कोठियों , चौपहिया वाहनो एवं बैंक बैलेंसो को बढ़ाने में उपयोगी साबित हुआ हैं। जिले के करोड़पति सचिवों में भीमपुर विकास खण्ड के यादव समाज के सचिवों का नाम सबसे ऊपर हैं। लोकायुक्त एवं राज्य आर्थिक अपराध अनुवेषण के कार्यालय तक भेजी गई सैकड़ो शिकवा , शिकायते आज भी फाइलों में बंद पड़ी हुई हैं। बैतूल जिले के पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी बाबू सिंह जामोद के खिलाफ बीते माह ही आर्थिक अपराध अनुवेषण द्वारा बैतूल जिले में उनके तीन साल में नरेरा , कपिलधारा के कूप निमार्ण कार्यो के अलावा एक दर्जन से अधिक कार्यो में हुए भ्रष्ट्राचार को लेकर प्रकरण दर्ज हुआ हैं लेकिन प्रकरण के संदर्भ में इस भ्रष्ट्राचार की जड़ कहे जाने वाले सरपंच एवं सचिवों के गिरेबान तक किसी के भी हाथ नहीं पहुंच सके हैं। आय से अधिक सम्पत्ति जमा करने वाले करोड़पति बने रमेश येवले , महेश उर्फ बंडू बाबा , जगदीश शिवहरे, सहित सवा सौ सचिवों को लोकायुक्त से लेकर सीबीआई तक की जांच के दायरे में शामिल करने का प्रयास किया गया है। एक स्वंयसेवी द्वारा भेजी गई शिकायती पुलिंदा में सीबीआई को विशेष से इसकी जांच का निवेदन किया है जिसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि केन्द्र सरकार से भेजे गए अरबो – खरबो के अनुदान से कई सचिवो की माली हालत में जबरदस्त इजाफा हुआ है। जांच में इन बातो का भी उल्लेख किया गया हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में निलम्बित सचिवो को पुन: बहाल कर उसी स्थान पर क्यों पदस्थ किया गया हैं। बैतूल जिले को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा भेजी गई अरबो – खरबो की राशी का नरेरा में उपयोग कितना हुआ है और कितना नहीं हुआ हैं।
बैतूल की दसों जनपदों के अंतर्गत आने वाली 558 पंचायतों की आडिट रिपोर्ट तो यह बता रही है कि या तो आडिट सही तरीके से नहीं हुआ है या फिर सभी पंचायतों में पूरा काम ही गोलमाल है। एक जैसी आडिट रिपोर्ट पर आडिट प्रक्रिया को जानने वाले भी हैरत में है।बैतूल जिले में 10 जनपदें हैं और इन जनपदों के अंतर्गत 558 पंचायतें आती हैं। बैतूल जनपद की 77 पंचायतों में ऑडिट करने वाली कम्पनी अग्रवाल एंड मित्तल कंपनी भोपाल ने जो ऑडिट आपत्ति का प्रपत्र जनपदों को दिया है उसमें सभी जनपदों में एक जैसी आपत्ति बताई गई है। यह किसी भी हालत में संभव नहीं है कि सभी पंचायतों में एक जैसी गलतियां की जा रही है या एक जैसा गोलमाल हो रहा हो। कंपनी द्वारा आडिट आपत्तियों के साथ यह भी दावा किया गया है गोलमाल छोटा नहीं बल्कि करोड़ो का है। वैसे भी बैतूल जिले के दस जनपदो की आधे से ज्यादा ग्राम पंचायतो पर 57 करोड़ रूपए की वसूली के आदेश जारी होने के बाद भी सरपंच और सचिव राजनैतिक संरक्षण की छांव में है। ग्राम पंचायतो का आडिट करने वाली कम्पनी ने करीब 16 आपत्तियां अपनी आडिट रिपोर्ट में लगाई है। वर्ष 2009-10 के लिए किए गए इस आडिट में यह भी कहा गया है कि इस प्रतिवेदन में उल्लेखित तुलन पत्रक, आय-व्यय पत्रक एवं प्राप्ति तथा भुगतान पत्रक लेखा पुस्तकों से मेल नहीं खाते है। आडिट रिपोर्ट में जो आपित्तयां ली गई है उसमें साफ कहा गया है कि कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र जांचने के लिए पंचायतों में प्रस्तुत नहीं किया। पांच हजार से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीद नहीं लगाई गई है। यहां तक कि मस्टर रोल के प्रपत्र दो और तीन उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए। साथ ही जनपदों ने भी मस्टर रोल में कार्य का नाम और जारी करने की तिथि भी नहीं दशाई गई है। यह तमाम चीजें नियमों के खिलाफ और बड़े गोलमाल की ओर खुला इशारा कर रही है। स्थिति यह है कि भुगतान देयकों पर सरपंचों के अधिकृत हस्ताक्षर भी नहीं है। रोकड़ अवशेष एवं ग्राम पंचायत द्वारा किए गए कार्यो का भौतिक सत्यापन हमारे द्वारा नहीं किया गया है। अंकेक्षण कार्य हेतू हमारे समक्ष सिर्फ कैश बुक, पास बुक और खर्च से संबंधित प्रमाणक ही उपलब्ध कराए गए। कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र को जांचने हेतू प्रस्तुत नहीं किया गया।ग्राम पंचायत द्वारा माप पुस्तिका प्रस्तुत न करने के कारण उससे संबंधित मस्टर रोल अन्य खर्च का मिलान संभव नहीं था।अधिकांशत: पांच हजार रूपए से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीदी टिकट नहीं लगाए गए।ग्राम पंचायत द्वारा योजनान्तर्गत फंड से किसी भी प्रकार की निश्चित अवधि जमा नहीं बनवाई गई।बैंक खातों में जमा दर्शाई गई मजदूरी वापसी से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं की गई।पूर्ण जानकारी के अभाव में अंकेक्षण का मूलभूत आधार रोकड़ खाते को माना गया है। पंकज अग्रवाल, अग्रवाल मित्तल एंड कंपनी ने बताया कि यह बता पाना संभव नहीं है कि किसी भी कार्य या सामग्री क्रय हेतु किया गया भुगतान अग्रिम है या नहीं। इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा रोकड़ खाता एवं उपलब्ध प्रमाणकों के आधार पर किया गया अग्रिम भुगतान अलग से दर्शाया गया है। ग्राम पंचायत द्वारा अचल सम्पत्ति का रजिस्टर संधारित नहीं किया गया है। पंचायत कार्यालय से प्राप्त रजिस्टरों के अतिरिक्त सामान्यत संधारित रजिस्टर के पृष्ठ पूर्व मशीनीकृत नहीं थे। सामान्यत: सभी मस्टर रोल के प्रपत्र 2 व 3 उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए है। जनपद पंचायत द्वारा मस्टर रोल में कार्य का नाम व जारी किये जाने की तिथि अंहिकत नहीं की गई है। सामान्यत: ग्राम पंचायत द्वारा निर्माण हेतु सामग्री क्रय करने के दौरान शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। इसी तरह सामग्री क्रय के व अन्य बिल कच्चे के लिये गये है। भुगतान देयकों पर सरपंच द्वारा अधिकृत हस्ताक्षर नहीं किये गये है। ग्राम पंचायत के अंकेक्षण हेतु कुछ प्रमाणक प्रस्तुत नहीं किए गए। सबसे ज्यादा घोटाले बाज भीमपुर जनपद की स्थिति तो काफी भयाववह है। इस जनपद में तो अधिकांश सचिवो की गिनती करोड़पति एवं लखपतियों में होती है। इन सभी दुरस्थ ग्राम पंचायतो के सचिवो ने उक्त माल कमाने के लिए अपनो को ही लाभ पहुंचाया है। रमेश येवले नामक एक सचिव के पास आज करोड़ो की सम्पत्ति जमा हो गई है। रमेश के द्वारा अपने सचिव कार्यकाल में तथा पूरी जनपदो के की ग्राम पंचायतो में सबसे अधिक भुगतान रमेश येवले सचिव के परिवार के सदस्यों के नाम पर किया गया है। रमेश येवले को टे्रक्टर ट्राली एवं ब्लास्टींग के नाम पर भुगतान किया गया है। आज मौजूदा समय में रमेश येवले सहित दो दर्जन से अधिक सचिवो पर कंसा शिकंजा अब ठीला पड़ता जा जा रहा है। अभी हाल ही में भीमपुर ब्लॉक में आयोजित जनपद पंचायत की समीक्षा बैठक में उपस्थित नहीं होने वाले एडीईओ (विकास विस्तार अधिकारी) को जिला पंचायत सीईओ द्वारा निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा मिटिंग में शामिल नहीं होने वाले सचिवों एवं अन्य कर्मचारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। यदि वह नोटिस का संतुष्ठ जवाब नहीं देते है तो उनका 15 दिन का वेतन काट लिया जाएगा। जिला पंचायत सीईओ एसएन चौहान ने बताया कि उन्हे शिकायते मिल रही थी जिसके चलते उक्त कार्यवाही की गई। श्री चौहान के अनुसार बैठक में एडीईओ कृष्णा गुजरे सहित सचिव एवं अन्य कर्मचारी उपस्थित नहीं हुए थे। जिस पर उनके एडीईओ गुजरे को निलंबित कर दिया है। वहीं सचिव सहित अन्य कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। सीईओ चौहान ने बताया कि एडीईओ द्वारा विभिन्न कार्यो के टारगेट को भी समय पर पूर्ण नहीं किया गया था। मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत बन रही ग्रेवल सड़कों को लेकर अभी से सवाल खड़े होना शुरू हो गए है। बताया जा रहा है कि विगत दिनों जो जिला पंचायत अध्यक्ष का गुस्सा योजना मंडल की बैठक में आरईएस पर फूटा था उसकी वजह भी यही सड़कें थीं। सड़कें जिस रफ्तार से बन रही है उसको लेकर संदेह जाहिर किया जा रहा है।लम्बाई कम और दर अधिक बैतूल जनपद अंतर्गत बोरीकास से सालार्जुन तक बन रही 2.80 किलोमीटर लम्बी ग्रेवल सड़क की लागत जहां 51.95 लाख रूपये है। वहीं भरकवाड़ी से खानापुर तक बनने वाली तीन किलोमीटर लम्बी सड़क की लागत महज 33.94 लाख है। लागत में इस अंतर को लेकर पंचायती राज के जनप्रतिनिधी अब सवाल खड़े कर रहे है।एक महीने में 40 प्रतिशतबोथी सियार से मांडवा 1.3 किमी, बोरीकास से सालार्जुन 2.80 किमी, आरूल से खाटापुर 2.2 किमी, भकरवाड़ी से खानापुर तीन किमी और बारवी से डोडरामऊ 3.75 किमी की जब जनपद पंचायत बैतूल अध्यक्ष ने समीक्षा की थी तो दिसम्बर में काम प्रारंभ ही हुआ था और अब निर्माण एजेंसी आरईएस 40 प्रतिशत तक काम हो जाना बता रही है।

शिवराज के सुराज की कैसी देश भक्ति जनसेवा…..?
पुलिस से परेशान लोगो ने बैतूल कलैक्टर कार्यालय को बनाया
जहर खाने का सुरक्षित स्थान : एक बार फिर हुई जहर खाने की घटना
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में दलित , आदिवासी के बाद अब पिछड़े और खासकर प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के स्वजाति बंधु ने ही पुलिस से परेशान होकर कलैक्टर कार्यालय में जहर खाने लिया। अपने गांव के दबंगो की दबंगाई के चलते बैतूल जिले की बहुचर्चित मुलताई तहसील के मुलताई थाना क्षेत्र के ग्राम सर्रा निवासी एक युवक ने पुलिस द्वारा कार्रवाई नहीं किए जाने से परेशान होकर जिला कलेक्ट्रेट में जहर खा लिया। युवक को गंभीर हालत में जिला अस्पताल मे भर्ती किया है। ग्राम सर्रा निवासी दिनेश पिता तिलक किराड़ ने बताया कि ग्राम के ही पूर्व सरंपच के पुत्र गणेश द्वारा उसके साथ दो-तीन बार मारपीट की। गणेश द्वारा हर बार जान से मारने की धमकी दी जाती है और कहा जाता कि पुलिस उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इसकी रिपोर्ट लिखाने थाने मे कई में भी गया, लेकिन पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। कार्रावाई की मांग को लेकर जिला कलैथ्टर की तथाकथित जन सनुवाई में पांच , छै बार वह आ चुका है। घटना के दिन भी वह बैतूल जिला मुख्यालय स्थित कलेक्ट्रेट आया था, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। दिनेश ने बताया कि इससे परेशान होकर शाम छह बजे सल्फास की गोली खा लिया। पुलिस द्वारा दिनेश को आनन-फानन में जिला अस्पताल में गंभीर हालत में भर्ती किया है। दिनेश के परिजनो ने बताया कि मारपीट करने वाले पर कार्रवाई की मांग को लेकर पांच-छह बार जनसुनवाई और पुलिस अधिक्षक कार्यालय में भी पहुंचा था लेकिन इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके पूर्व में मुलताई तहसील की दलित महिला पंच श्रीमति उर्मिला एवं आदिवासी महिला श्रीमति फुलिया बाई ने भी कलैक्टर कार्यालय में जहर खा लिया था जिसमें दलित महिला पंच श्रीमति उर्मिला बाई की मौत हो चुकी है। उक्त तीनो घटनाएं शिवराज सरकार के सुराज एवु देश भक्ति जनसेवा की पोल खोल कर रख देती है। सबसे शर्मनाक घटना तो यह हैं कि तीनो घटनाक्रम के पीछे गांव के दबंगो की दबंगाई है जो कि नीचता और नंगाई के रूप में सामने आई है। दोनो महिलाए बलात्कार की त्रासदी की शिकार हुई थी। बैतूल जिले में भाजपा के शासन काल में जन सामान्य का पुलिस और प्रशासन पर से विश्वास उठता चला जा रहा है और बैतूल जिले के भाजपाई नेता अपने स्वार्थ के लिए जिले के आला अफसरो के बार – बार होते तबादलो को रूकवा कर करोड़ो के न्यारे – व्यारे करने में लगे है। बैतूल जिले में पीडि़त लोगों द्वारा की जाने वाली जहर खाने की घटना पर जिला पुलिस अधिक्षक रामलाल प्रजापति का वही रटा रटाया जवाब हैं कि पुलिस मामले की जांच करेगी लेकिन कब करेगी कह नहीं सकते। फुलिया बाई के मामले में अपनी चौतरफा बदनामी झेल चुकी पुलिस को इस बार शिवराज सिंह चौहान के स्वजाति युवक द्वारा दिए गए जोर के छटके से शायद कुछ नसीहत मिल जाए।

बैतूल की भाजपा सांसद श्रीमति ज्योति धुर्वे ने दो केन्द्रीय मंत्रियों
से मिली लेकिन सासंद से लेकर मंत्री तक के पीए को पता नहीं
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले की भाजपा की पूरी राजनीति प्रेस नोट पर आधारित होती है। हाल ही में भाजपा कार्यालय की ओर से एक प्रेस नोट आया जिसमें कहा गया कि क्षेत्रीय सांसद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे ने तीन मार्च को संसद भवन में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख से मुलाकात कर उनसे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्यारहवें चरण में प्रस्तावित जिले के 77 मार्गो को स्वीकृति देने का अनुरोध किया। सांसद ने केन्द्रीय मंत्री से कहा कि बैतूल जिले में योजना के तहत पिछले 8-9 वर्षो में 15 सौ किमी सड़को का निर्माण हुआ है। उन्होने कहा कि बैतूल एक पिछड़ा और आदिवासी बाहुल्य जिला है। मार्गों की स्वीकृती हो जाने से ग्रामों का विकास होगा। सांसद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे ने केंद्रीय मंत्री को सौपें पत्र में आमला ब्लॉक के आठ मार्ग, चिचोली दो, शाहपुर आठ, आठनेर 11, भैसदेही सात, मुलताई छह, प्रभातपटटन छह, बैतूल छह, घोड़ाडोंगरी 15 और भीमपुर ब्लॉक के आठ मार्गों का आग्रह किया है। जब खबर के बारे में मैडम के पीए एवं मंत्री जी के पीए से जानकारी चाही गई तो उनके द्वारा बताया गया कि उन्हे इस बारे में कोई जानकारी नहीं हैं। इधर सांसद श्रीमति ज्योति धुर्वे की ओर से यह भी बताया गया कि केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री सलमान खुर्शीद से बैतूल जिले की प्रस्तावित लघु सिंचाई योजनाओं को शीघ्र स्वीकृती देने की मांग की है। खुर्शीद ने स्वीकृति का आश्वासन दिया है। दोनो मंत्री से मिलने के कोई फोटो एवं ज्ञापन की प्रतिया पत्रकारो से न मिलने की वजह से भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि मैडम मिली भी या नहीं क्योकि बैतूल जिले की राजनीति में हवा हवाई ज्यादा होती है। इधर कांग्रेस ने भी अपने मंत्रियों से बैतूल जिले के लिए बहुंत कुछ मांगा है लेकिन क्या मांगा और क्या मिला किसी को पता नहीं है।

टेण्डर माफिया द्वारा नगरपालिका को लगाया चालीस लाख का चुना
कांग्रेस – भाजपा के ठेकेदारो की दादागिरी के चलते नगरपालिका के अधिकारियों ने घुटने टेके
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले की सभी नगरपालिकाओं एवं नगर पंचायतो में जहां पर ककांग्रेस एवं भाजपा के अध्यक्ष है वहां पर कांग्रेस और भाजपा के नेता आपसी गठबंधन बना कर ऐसे कार्यो का टेण्डर लेते है जिससे दोनो को फायदा मिल सके। भाजपा एवं काग्रेंसी ठेकेदार नेताओं के गुट को पूरे जिले में टेण्डर माफिया का नाम दिया गया है। चोर – चोर मौसरे भाई वाली तर्ज पर काम करने वाले इस गठबंधन द्वारा मिल बाट कर माल कमाने की चाहत के चलते जिले की नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों को लाखो में नहीं बल्कि करोड़ो में चुना लग रहा है। हाल ही में उजागर एक बहुचर्चित मामले में पता चला कि कांग्रेस अध्यक्ष एवं भाजपा उपाध्यक्ष वाली जिला मुख्यालय की बैतूल नगरपालिका में करीब दो करोड़ 75 लाख रूपए के जो निर्माण कार्य के टेंडरों को स्वीकृति दी गई है उससे नगरपालिका को कम से कम 40 लाख रूपए की चपत सीधे-सीधे लगती हुई नजर आ रही है। हालत यह है कि परिषद ने भी आंख मूंदकर इन टेंडरों पर स्वीकृति की मोहर लगा दी।जब इन टेंडरों की पड़ताल की तो यह सामने आया कि ठेकेदारों ने रिंग बनाकर एबो(दर अनुसूची) का यह खेल खेला है। जिसमें नपा की भूमिका भी संदिग्ध नजर आती है। बैतूल नगर पालिका में इसके पहले जो भी टेंडर स्वीकृत हुए हैं वे सभी बिलो (एसओआर से कम) दर पर हुए हैं पर इस बार नपा ने 23 निर्माण कार्यो को परिषद में स्वीकृति दी है। करीब 44 लाख की लागत से बनने वाली आठ आंगनबाडियों में भी चार प्रतिशत एबो दर स्वीकृत की गई। लगभग 80 लाख की लागत से बनने वाला ट्रेचिंग ग्राउंड भी करीब तीन प्रतिशत एबो पर स्वीकृत किया गया है। सबसे ज्यादा एबो दर पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष आनंद प्रजापति के चुनाव क्षेत्र रहे मालवीय वार्ड में पांच लाख में बनने वाली स्टोन में से वॉल में करीब आठ प्रतिशत दी गई है। इन टेंडरों में प्रतिस्पर्घा नहीं हुई। ठेकेदारों ने बाहर ही रिंग बनाकर एबो रेट पर काम हासिल कर लिया है। बताया गया कि 23 काम के लिए 155 टेंडर फार्म उठे थे, लेकिन महज 70 फार्म ही डले। एक काम के लिए तीन टेंडर फार्म डाला जाना जरूरी है इसलिए यह 70 फार्म भी डाल गए। इसी तरह आठ आंगनबाडियों के काम के लिए करीब आधा सैकड़ा फार्म उठे, लेकिन डाले गए सिर्फ 24 फार्म। पीडब्ल्यूडी के जिस सीएसआर अप्रैल 2009 के आधार पर नगरपालिका निर्माण कार्य कराती है यदि उसी पीडब्ल्यूडी विभाग के हाल ही के टेंडरों के रेट का जब नगरपालिका के इन टेंडरों के रेट से तुलना करे तो हकीकत सामने आ जाती है। ई-टेडरिंग के माध्यम से पीडब्ल्यूडी में टेंडर होने पर 16 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक रेट बिलो में जा रहे हैं तो फिर उसी एसओआर पर काम कराने वाली नगरपालिका के टेंडर एबो में कैसे जा सकते हैं। नगर पालिका की ओर से तर्क दिया गया कि एबो में टेंडर डाले जाने को लेकर परिषद की बैठक के पहले प्रस्ताव में उल्लेख भी किया था। यह सही है कि पहली बार एबो रेट में नपा में टेंडर हो रहे हैं। इसके बावजूद स्वीकृति पर सीएमओ साहब ही सही प्रकाश डाल सकते हैं। सारे मामले में एई नगरपालिका बैतूल अनिल पिप्पल के अनुसार हम क्या करे बैतूल के ठेकेदारों ने बाहर रिंग बना ली तो हम इस मामले में कुछ भी करते है तो दोनो दलो के ठेकेदार रूपी नेता हमें डराते एवं धमकाते है ऐसे में हम आखिर क्या कर सकते हैं। पालिका के तर्क भी कम हास्यापद नहीं है। पालिका के एक जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं किअधिक फार्म उठना और कम फार्म डलना हमारे हाथ में बिल्कुल नहीं है। बिलो रेट पर काम होने की बात है तो हरदा में तो 22 प्रतिशत बिलो पर कार्य स्वीकृत हुए हैं हर जगह अलग-अलग होता है। नगर पालिका के सीएमओ श्री जी के यादव कुछ और ही कहते हैं। श्री यादव का कहना है कि एसओआर का मतलब शेडयूल ऑफ रेट या दर अनुसूची कहा जाता है। जब टेंडर के रेट इस दर अनुसूची से ऊपर होते हैं तो एबो रेट कहा जाता है और जब नीचे होते हैं तो बिलो कहा जाता है। जब ठेकेदार आपस में तय कर टेंडर डालते हैं तो उसे रिंग बनाना कहते हैं। श्री यादव के अनुसार हम नौकरी करने आए है ऐसे में क्या खाक नौकरी करेगें जब एक ओर से कांग्रेसी और दुसरी ओर भाजपा के ठेकेदार , नेता ,पार्षद हमारी कालर पकड़ कर दादागिरी से काम ले लेते है। हमारी कोई नहीं सुनता है। हर कोई सड़क छाप नौकरी खाने एवं जेल भिजवाने की धमकी देकर चला जाता है। ऐसे में काम करना याने समझौता एक्सप्रेस में सफर करना जैसा है।

अप-डाउन में जला चार लाख का डीजल
बैतूल, रामकिशोर पंवार: आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में लगातार बच्चों की अज्ञात कारणो से हो रही मौते तथा कुपोषण के बढ़ते खतरे के बाद भी महिला बाल विकास परियोजना अधिकारियों की मनमर्जी पूरे जिले में महिला बाल विकास परियोजनाओं को पलीता लगाने के लिए काफी है। बैतूल जिले में वैसे तो महिला बाल विकास विभाग के पास लम्बा चौड़ा मोहकमा है जिसमें 12 परियोजना , 75 सुपरवाइजर , 5 हजार आंगनबाडी कार्यकत्र्ता एवं सहायिकाओं का जिले की 558 ग्राम पंचायतो में पदस्थापना है लेकिन उनके कार्य कैसे हो रही यह बताने के लिए एक उदाहरण ही काफी है। बैतूल जिले के कोठी बाजार स्थित जिला मुख्यालय के महिला एवं बाल विकास विभाग की चिचोली जनपद परियोजना कार्यालय में पदस्थ एक परियोजना अधिकारी श्रीमति मनोरमा गढ़वाल द्वारा अपनी पदस्थापना स्थल महिला बाल विकास परियोजना कार्यालय चिचोली में उपस्थित न रह कर शासकीय वाहन कं्रमाक एम पी 05 5315 का नियम विरूद्ध दुरूप्रयोग किया जा रहा है। पिछले एक साल से अधिक समय से उक्त महिला परियोजना अधिकारी द्वारा नियम विरूद्ध जिला मुख्यालय पर जेएच कालेज रोड के पीछे अवस्थी कालेनी सिविल लाइन बैतूल में किराए के मकान में निवास किया जा रहा है। महिला अधिकारी को प्रदत शासकीय वाहन बैतूल जिला मुख्यालय पर महिला अधिकारी के घर पर रात्री में खड़ा रहता है तथा यही से महिला अधिकारी द्वारा उक्त वाहन से आना जाना किया जाता है। अपने वाहन की लाग बुक को शासकीय विजीट कर पूर्ति की जा रही है। चिचोली के एक जागरूक नागरिक नवीन कुमार आर्य की सुझबुझ से उक्त बेहद गंभीर मामला जन प्रकाश में आया है। उक्त महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी चिचोली ने ऐसे समय में शासकीय वाहन का नीजी कार्यो में उपयोग किया है जब उनके जनपद क्षेत्र की 34 ग्राम पंचायतों में उन्हे निरीक्षण किया जाना था कि शासकीय योजनाएं सांझा चुल्हा , सबला परियोजना , किशोर बालिका परियोजना संचालित हो रही हैं। अभी हाल ही में पाढऱ में मध्यान भोजन सांझा कार्यक्रम के तहत छिपकली युक्त भोजन बनने का गंभीर मामला प्रकाश में आने के बाद भी परियोजना अधिकारियों का इस तरह का लापरवाही पूर्ण कार्य किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं। उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पर निवास करने के नियम को तोडऩे के साथ-साथ बिना कारण शासन के पिछले तीन साल में करीब चार लाख रूपए अपव्यय करवाए हैं। परियोजना अधिकारी मनोरमा गढ़वाल पिछले तीन वर्ष से चिचोली में पदस्थ है लेकिन वह चिचोली में निवास न करते हुए जिला मुख्यालय बैतूल में रहती है। प्रतिदिन वे सरकारी वाहन से चिचोली अप-डाउन कर रही है। यदि उनके आने-जाने में खर्च होने वाले डीजल का हिसाब लगाया जाए तो प्रतिदिन करीब 320 रूपए का डीजल जलता है। शासन द्वारा अधिकारियों को गाड़ी सरकारी कार्यो के लिए दी जाती है लेकिन अधिकारियों द्वारा इस तरह का दुरूपयोग कर शासन को चपत लगाई जाती है। उक्त अधिकारी द्वारा भी डीजल का खर्च विभिन्न निरीक्षण दौरे में दर्शाकर लागबुक भरे जाने की बात सामने आ रही है। चिचोली के नवीन आर्य के अनुसार कोई कार्यालय का फोन भी नहीं उठा रहा था। इधर पूरे मामले में श्रीमति मनोरमा गढ़वाल जैसी कई परियोजना अधिकारी है जिनके द्वारा उक्त नियम विरूद्ध कार्य संपादित किए जा रहे है। पूरे मामले में प्रदीप राय, जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास विभाग कहते है कि यदि परियोजना अधिकारी यह कर रही है तो निश्चित रूप से नियम विरूद्ध है। उन्हें जिला मुख्यालय में न होकर अपने कार्य क्षेत्र में होना चाहिए था। मामले की जांच कर नियमानुसार जो भी कार्रवाई की जाएगी।

प्रियनंदनी पारधी के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने दी 15 दिन की मोहलत
तीतर बटेर के बहाने उठा ले गए किशोरी बालिका को वन विभाग के कर्मचारी
बैतूल, रामकिशोर पंवार:  बैतूल जिला मुख्यालय पर स्थित शरणार्थी का जीवन जी रहे बहुचर्चित चौथिया कांड के पारधी ढाने से गायब हुई एक किशोरी बालिका को पेश करने के लिए प्रशासन को जबलपुर हाइकोर्ट ने 15 दिन का समय दिया है। पारधियों के वकील राघवेन्द्र झा ने बताया कि पुलिस प्रशासन ने जो अपना जवाब प्रस्तुत किया है वह संतोष जनक नहीं है। हाईकोर्ट ने पुलिस प्रशासन को चेताया है कि वह हर हाल में रहस्यमय ढंग से गायब किशोरी बालिका प्रियनंदनी के मामले में ताजा जानकारी को 15 मार्च को हर हाल में पेश करने करे। उल्लेखनीय है कि बीते माह बैतूल जिले में धुमन्तु जनजातियों में शामिल पारधियों के कैम्प में सरंक्षित वन्य पक्षियों में शामिल तितर-बटेर को बेचे जाने की शिकायत मिलने पर उन्हे पकडऩे गए वन विभाग के अमले एवं पारधियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ था। वन विभाग ने पारिधयों पर मारपीट एवं शासकीय कार्यो में बाधा डालने का आरोप लगाया तो उपलटवार करते हुए पारधियों ने भी अपने समाज की एक किशोर बालिका प्रियनंदनी के कथित अपहरण को लेकर बैतूल थाने में रिर्पोट दर्ज करवाई लेकिन पुलिस द्वारा उक्त रिर्पोट पर कोई कार्यवाही न किए जएाने पर पारधियों ने इस संवेदनशील मामले में हाईकोर्ट जबलपुर में एक जनहित याचिका दायर कर वन विभाग पर उक्त किशोरी बालिका के बलात पूर्वक अपहरण करने का संगीन आरोप लगाया है। जिस पर पुलिस को फटकार लगाते हुए जबलपुर हाईकोर्ट ने पुलिस को तलब किया है।

मां सूर्य पुत्री ताप्ती की महिमा
बैतूल। बैतूल जिले के इतिहास के बारे में जिले की आधी से ज्यादा आबादी को पता नहीं है कि जिले का सबंध किस युग- काल – समय से कब – कब रहा है। जिले में घटित मान्यताओं को लेकर कुछ जानकार एवं इतिहासकार तथा पुरात्तव विभाग के विशेषज्ञ अब इस बात पर भी चिंतन मनन करने में जुट गये है कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का प्राचिन एवं पुरात्तव तथा पौराणिक इतिहास क्या है। बैतूल जिले के काफी प्राचिन इतिहास से सूर्यवंश का रिश्ता भी किस तरह जुडा हुआ है। बैतूल जिले में बहने वाली ताप्ती नदी जिसे आदिगंगा – भद्रा – तापी – तपती – तापती सहित दर्जनो नामो से पुकारा जाता है उसका जन्म स्थान मुलतापी  – मुलताई बैतूल जिले में ही स्थित है। जिले का प्राचिन इतिहास बताने के लिए हम कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर रहे है। जिले में रहने वाली जनजातियों का सबंध किसी न किसी युग एवं काल से मिलता -जुलता है। सतयुग के समय विदर्भ की राजकुमारी दमयंती के साथ विवाह के बाद उसके त्याग के बाद जंगलो में भटकने वाले राजा नल ने जिले के मासोद ग्राम के पास स्थित तालाब की मछली को भूनने का प्रयास किया था लेकिन मछली उछल कर तालाब में जा गिरी। इस क्षेत्र में प्रचलित कथाओं में नल – दमयंती के संदर्भ में यह कहा जाता है कि   ऊंचा खेडा पर पटटन गांव , मंगलराजा मोती – दमोती रानी बरूवा बामन कहे कहानी , हमसे कहती उनसे सुनती सोलह बोल की एक कहानी , सुनो  महालक्ष्मी रानी , विदर्भ का यह क्षेत्र जिसे महाभारत में चीचकदरा जो वर्तमान में खिचलदरा कहलाता है इस क्षेत्र का राजा कीचक था जो कि विराट के राजा का साला था । कीचक अखडा का नाम कीचकधरा जो वर्तमान में बैतूल एवं पडोसी राज्य महाराष्ट्र के अमरावती जिले के परतवाडा क्षेत्र से लगा हुआ चीखलदरा कहलाता है। राजा कीचक की कुल देवी वेराट देवी का स्थान बैतूल जिले के प्रभात पटट्न गांव में था जो प्राचिन में परपटटन गांव के रूप में जाना जाता था। महाभारत के पूर्व अज्ञातवास के दौरान में पांचो पाडंव राजा कीचक के राज्य में स्थित सालबर्डी की गुफाओं में भी रहे जो कि अभी भी मौजूद है। पांडव पुत्र जीवन संगनी पर बुरी नज़र रखने के कारण ही पांडव पुत्र भीम ने कीचक को मारा था। बैतूल जिले में त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने ही मां सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के किनारे शिवधाम बारहलिंग में बारह शिवलिंगो की स्थापना ताप्ती के तट पर पत्थरो पर भगवान विश्वकर्मा की मदद से की थी जो अभी भी मौजूद है। इस स्थान पर सीता स्न्नानागार भी मौजूद है जहां पर माता सीता ताप्ती के तट पर स्नान करती थी। इस क्षेत्र में वनो में सीताफल पाये जाते है जिनका उल्लेख रामायण में भी है। रामायण की चौपाई में कहा गया है कि माता सीता पुछती है कि प्रभु अति प्रिय फल  मोरा तब भगवान ने इसका नाम सीता जी के नाम पर सीताफल दिया था। कुरूवंश के संस्थापक राजा कुरू की माता ताप्ती का बैतूल जिले में जन्मस्थान के कई प्रमाण है जैसे नारद टेकडी , नारद कुण्ड , सूर्य कुण्ड , धर्मकुण्ड , पाप कुण्ड , शनिकुण्ड , सात कुण्ड बैतूल जिले में ताप्ती जन्मस्थली में मौजूद है। बैतूल जिले में आज भी सबसे अधिक शिवलिंग तापती नदी के किनारे है जो कि इस बात के प्रमाण है कि रावण पुत्र मेघनाथ ने तापती के किनारे कठीन तपस्या की थी। यह क्षेत्र रावण के बलाशाली पुत्र मेघनाथ का राज्य का हिस्सा रहा है इसलिए यहां के मूल निवासी आज भी गांवो में मेघनाथ – रावण – कुंभकरण की पूजा करते है। ताप्ती नदी के किनारे देवलघाट नामक स्थान भी है जहां से देवता बीच नदी में स्थित सुरंग से स्वर्ग को प्रस्थान किये थे। इस जिले में चन्द्र पुत्री पूर्णा का भी जन्मस्थान  पुष्पकरणी है जो कि भैसदेही के पास है। बैतूल जिले का प्राचिन इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है कि सूर्य एवं चन्द्रवंश की दो देव कन्याओं का इस जिले में उदगम स्थान है तथा इस जिले से ही वे निकल कर भुसावल के पास मिलती है। बैतूल जिले में कई प्राचिन अवशेष भी है जिन्हे आज जरूरत है समझने एवं परखने की ।
मां ताप्ती जागृति मंच जिला बैतूल मां सूर्य पुत्री ताप्ती की महिमा को जन – जन तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है। कोई भी जिझासु व्यक्ति कभी भी सम्पर्क कर मिल कर जानकारी प्राप्त कर सकता है। नेट पर भी ताप्ती महिमा के नाम से एवं ताप्ती जी के नाम पर कई कथायें दे चुका है।
सम्पर्क करे
रामकिशोर पंवार संस्थापक मां ताप्ती जागृति मंच बैतूल
+91- 9993162080 +91-9406535572

”हे अर्जून जो इस संसार में आया है , उसे एक न एक दिन जाना ही पड़ता हैं …….!”
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला ”
महाभारत में जब अपने सामने अपने पूरे रिश्तेदारों को देख कर दुखी हुए अर्जून को श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता का संदेश सुनाते हुए ”हे अर्जून जो इस संसार में आया है , एक न एक दिन जाना पड़ता है……! ”, इसलिए तुम केवल कर्म करों फल की इच्छा मत करों  ।”  मध्यप्रदेश की राजनीति के चाणक्य और देश की राजनीति के महापंडित चाणक्य कहलाने वाले अर्जून सिंह ने जब अपने जीवन की अंतिम सांस ली तो उनके कानों में शायद यही शब्द गुंज रहे होगें। आज प्रदेश की राजनीति का एक और सूर्य अस्त हो गया। अपने निधन से मात्र तीन घंटे पहले ही गांधी परिवार के सबसे बड़े वफादार रहे अर्जून सिंह को कांग्रेस की कार्य समिति के स्थायी सदस्य के रूप में नियुक्त किये जाने की घोषणा की गई थी। अर्जून सिंह मध्यप्रदेश के सबसे लोकप्रिय एवं सुर्खियों में छाये राजनेता रहे। अर्जून सिंह को हमेशा कांग्रेस ने अपने लिए एक ऐसे योद्धा के रूप में मैदान में उतारा जब हर कोई पछाड़ खा चुका था। मुझे अच्छी तरह से याद हैं  वह घटना जब अर्जून सिंह की मध्यप्रदेश से बिदाई हुई थी। दैनिक भास्कर के पत्रकार के रूप में मैं सारनी -पाथाखेड़ा में कार्य करता था। अर्जून सिंह को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया था तब मैंने उसने सारनी में पुछा था कि उनकी क्या प्रतिक्रिया है। अर्जून सिंह जब भी अज्ञातवाश में कहीं जाते थे तो उनमें से एक स्थान बैतूल जिले के सारनी थर्मल पावर स्टेशन का सर्किट हाऊस होता था। अर्जून सिंह अकसर अमरकंटक  एवं सारनी के सर्किट हाऊस में ही रूकते थे। उस शाम वे सारनी में थे जब उन्हे पंजाब का राज्यपाल बनाया गया था। मैं दैनिक भास्कर भोपाल से आए फोन पर उनकी प्रतिक्रिया लेने पहुंचा था। रात्री के लगभग 9 बजे जब मैं उनसे मिलने के लिए अपनी साइकिल से ऊपर टेकड़ी पर बने एम पी इ बी सारनी के सर्किट हाऊस पहुंचा था।  मुझे अपने सवाल के साथ देख कर वे हस पड़े और मुझसे ही सवाल करने लगे कि ”यह बताओं की मेरे राज्यपाल बनने एवं यहां पर होने की खबर तुम्हे कैसे मिली…..! ÓÓ उस दौर में आज सुबह छै बजे मिलने वाला दैनिक शाम को छै बजे मिलता था। ऐसे समय में उनकी प्रतिक्रिया पर ही दैनिक भास्कर समाचार सेवा के संपादक महेश श्रीवास्तव की विशेष संपादकीय छपी थी जिसमें ऊपर दिये गये शीर्षक को पहले पन्ने पर छापा गया था। देर रात्री तक पूरे प्रदेश को इस बात की खबर नहीं थी कि प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से अर्जून सिंह की छुटट्ी हो गई और वे पंजाब के राज्यपाल बनाए गए। अर्जून सिंह ऐसे समय में पंजाब के राज्यपाल बने जब पूरा प्रदेश आतंकवाद की आग में जल रहस था। लोगेंवाल से समझौता और पंजाब में शांती का मार्ग बनाने में अर्जून सिंह की कुटनीति ही काम आई। अर्जून सिंह कांग्रेस के ही नहीं बल्कि गांधी परिवार के सबसे वफादारों में से एक थे। यूपीए की चेयरपरसन श्रीमति सोनिया गांधी कल तक भी अर्जून सिंह की राय लेना नही भूलती थी। स्वास्थ खराब हो जाने के बाद भी उन्हे मंत्रीमंडल तथा बाद में राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। वे आखिर समय भी कांग्रेसी की कार्यसमिति के ऐसे स्थायी सदस्य बने कि अब उन्हे कोई नहीं हटा सकेगा। एक दबंग कूटनीति एवं महापंउित चाणक्य के गुणो से भरपूर अर्जून सिंह कांग्रेस में अपनी विरासत के रूप में अपने बेटे अजय सिंह ”राहुल भैया ÓÓ को छोड़ कर चले गए। अर्जून सिंह की विद्याचरण एवं श्यामा चरण से भले ही पटरी नहीं बैठी लेकिन अर्जून सिंह ने अपने राजनैतिक गुरू डी पी मिश्रा की सीख पर प्रदेश में कांग्रेस का एक तरफा साम्राज्य स्थापित किया जिसे आखिर के दस साल तक दिग्यविजय सिंह ने संभाला रखा था। मध्यप्रदेश से अर्जून सिंह एवं दिग्यविजय सिंह के जाने के बाद कांग्रेस जो सत्ता से बाहर हुई कि वह पुन: सत्ता संभाल नहीं पा सकी। अर्जून सिंह चाहते थे कि उनके पुत्र की प्रदेश में ताजापोशी हो लेकिन वे आखिर समय तक अपने बेटे को मुख्यमंत्री तो दूर नेता प्रतिपक्ष भी नहीं बनवा सके। आज हमारे बीच अर्जून सिंह नहीं हैं लेकिन मानव संसाधन जैसे गुमनाम मंत्रालय को ख्याति भी अर्जून सिंह ने ही दिलवाई थी। अर्जून सिंह ने पूरे प्रदेश और बाद में पिछड़ा वर्ग का ट्राम कार्ड फेका था जो पहली बार दलित , आदिवासी , अल्पसंख्यक के बाद वेकवर्ड के रूप में उभर कर आया। अर्जून सिंह की ही राजनैतिक देन रही है जिसके चलते कई पिछड़े वर्ग के नेता राजनीति में ऊंचे मुकाम तक पहुंचे। अर्जून सिंह ने कांग्रेस संगठन को सत्ता में भागीदार बनाया। कांग्रेस सेवादल की पुछ – परख भी अर्जून सिंह के संगठन में आने के बाद हुई। अर्जून सिंह इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक के विश्वास पात्रों में से एक रहे। भोपाल गैस कांड एवं बोफर्स मामले में अर्जूून सिंह की भुमिका कांग्रेस के प्रति सच्चे वफादार के रूप में रही। वे आखिर समय तक राजीव गांधी को भोपाल गैस कांड मामले के आरोपी एडरसंन को लेकर उठे विवादो से सेफ करते रहे। अर्जून सिंह को अपनी बेटी को टिकट न मिलने का दुख था लेकिन वे खुल कर पार्टी के खिलाफ नहीं गए। अयोध्या – बाबरी मस्जिद प्रकरण में नरसिंह राव की भुमिका को लेकर अर्जून सिंह ने मंत्रीमंडल से स्तीफा तक दे दिया। वे कांग्रेस से नारायण दत्त तिवारी के साथ अलग होकर तिवारी कांग्रेस तक बना डाले। देश के अल्पसंख्यको और खासकर सिख्खों के बीच अर्जून सिंह की अच्छी पकड़ ही उन्हे दक्षिण दिल्ली से लोकसभा के गलियारे तक पहुंचा सकी। अर्जून सिंह को लेकर आरएसएस और हिन्दुवादी संगठनो ने जमकर प्रहार किए लेकिन अर्जून सिंह अपने गाडिंव को लेकर अपने तरकश से तीर निकाल कर अपने दुश्मनो को चारों खाने चित कर अंत समय तक अपराजीत योद्धा के रूप में सदा – सदा के लिए अजर अमर हो गए। बैतूल जिले से अर्जूनसिंह का दिल का रिश्ता था। अर्जून सिंह ने बैतूल जैसे छोटे आदिवासी बाहुल्य जिले से पिछड़ा वर्ग का एक ऐसा नेता दिया जिसको लेकर आज कांग्रेस का वेकवर्ड वोट बैंक बना हुआ है। स्वर्गीय रामजी महाजन बैतूल जिले से एक मात्र ऐसे नेता थे जो कि अर्जून सिंह की भरोसे की टीम के सदस्य थे। रामजी महाजन पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन के बाद अगलो के आगे पिछड़ो को लाने वाले अर्जून सिंह और रामजी महाजन आज दोनो हमारे बीच नहीं रहे। मैने अपनी शुरूआत की पत्रकार वार्ता में अर्जूनसिंह का सामना किया था। आज जैसे मेरे सवालों को लेकर नेताओं और मंत्रियों की भौंहे तन जाती है वैसी अर्जून सिंह जी की भी तन जाती थी लेकिन मेरी पत्रकारिता के वे कायल भी थे। सारनी में जब भी उनसे मुलाकात हुई वे मुझे देख कर पुरानी यादों को याद कर वे मंद – मंद मुस्कारा पड़तें थे। बैतूल आने के बाद भी अर्जून सिंह से एक बार हल्की सी मुलाकात हुई थी। अर्जून सिंह जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपने विरोधियों को चारो खाने चित किया। दैनिक भास्कर और खासकर महेश श्रीवास्तव से उनकी कभी पटरी नहीं बैठी। यदि आज के श्रद्धाजंलि लेख के समय यह बात कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगीं कि अर्जून ङ्क्षसह ने दैनिक भास्कर को लोकप्रियता और महेश श्रीवास्तव को सफल नामचीन संपादक के रूप में पचहान दी। अर्जून सिंह से पंगा लेने पर दैनिक भास्कर को भी बहुंत कुछ खोना पड़ा लेकिन आज कर दैनिक भास्कर बीते जमाने में केवल अर्जूनसिंह को लेकर ही पढ़ा जाता था। महेश श्रीवास्तव को भाजपा सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा सिर्फ इसलिए दिया था कि महेश जी ने अपने कलम रूपी नेत्रो से कई बार अर्जून सिहं पर ज्वाला बरसा कर उन्हे जलाने का प्रयास किया लेकिन अर्जूनसिंह तो हर बार जलने के बाद लंका के सोने की तरह दमक उठते थे। अर्जून सिंह की राजनीति का हर कोई लोहा मानते थे। लालकृष्ण आड़वानी जैसे नेताओं को अर्जून सिंह ने कई बार राजनैतिक धूल चटाई थी। अर्जूनसिंह संसद से लेकर जनता तक में एक सर्वमान्य लोकप्रिय नेता के रूप में चर्चित रहे है। अर्जून सिंह जी आज सदा – सदा के लिए सो जरूर गए लेकिन उनके वे तरकश हमेशा याद रखे जायेगें जिनसे कई भीष्म पितामह सैया पर लेट गए।
सुर्खियों में बन गया परिवार नियोजन का लक्ष्य
चाहो तो हमारी टीवी और नई नवेली बीबी देने की लगी होड़
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में परिवार नियोजन का 70 प्रतिशत लक्ष्य पूरा करने में कर्मचारियों को अब पसीना छूटने लगा है जबकि शासन की ओर से उन्हे बतौर इनाम में रंगीन टीवी का भी लालच दिया गया है। लक्ष्य पूर्ति के लिए अपने को मिलने वाले रंगीन टीवी को भी लोग देने को तैयार है यदि कोई उनकी मदद करे। पहले कर्मचारियों को रंगीन टीवी विभाग की ओर से दिया जाला है लेकिन अब उन लोगो द्वारा गांव के नवयुवको को नई नवेली बीबी और रंगीन टीवी का आफर फासना पड़ रहा हैं। कुछ गांवों में तो ऐसे भी प्रसंग सुनने को मिल रहे हैं कि लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुंवारों की नसबंदी की जा रही हैं। आमला तहसील मुख्यालय में एक कुंवारे युवक की नसबंदी की स्याही अभी सुख भी नहीं पाई हैं। जहां एक ओर ऐसे बदनामी के दौर में खासकर ऐसे आदिवासी युवको की जिन्हे रूपए – पैसे की जरूरत हैं तथा किन्ही कारणो से अविवाहीत भी है ऐसे गांव के युवको को कहा जा रहा हैं कि उन्हे अच्छी सुंदर बीबी भी दिलवा देगें यदि वे नसबंदी करवाते हैं। गांव के युवको को अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह भी समझाने का प्रयास किया जा रहा हैं कि उनकी शादी हो जाने के बाद उनकी सेहत एवं सेक्स क्षमता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा वे जब चाहे तब उस नसबंदी को पुन: जुड़वा भी सकते हैं। वही दुसरी ओर आदिवासी परिवार की कुंवारी लड़कियों के परिवार जनो को इस बात के लिए तैयार किया जा रहा हैं कि वे उनकी लड़की का मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत नि:शुल्क विवाह के अलावा उनके लिए दान -दहेज की भी व्यवस्था करवा देगें। किसी भी तरह से लोभ – लालच में आकर ग्राम पंचायत के सरपंच , सचिव से लेकर फील्ड वर्क कर रहे शासकीय कर्मचारियों को नौकरी बचाने के लिए कुंवारे और बुढ़े बुर्जग तक को मोहरा बनाया जा रहा हैं। गांवो में जहां उन्हें लोगों की खरी-खोटी सुनना पड़ रही हैं, वहीं अपनों की रूसवाई ने उनका मनोबल तोड़ कर रख दिया है। ऊपर से वेतन रोके जाने से कर्मचारियों की हालत और भी दयनीय हो गई है। ऐसे में भयाक्रांत शासकीय कर्मचारियों को शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करना भी किसी मुसीबत से कम नजर नहीं आ रहा है। हम दो हमारे दो के स्लोगन ने शासकीय कर्मचारी को कहीं का नहीं छोड़ा हैं। परिवार नियोजन के कार्य में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों को स्वास्थ्य विभाग से लेकर सभी शासकीय विभाग जिसमें ग्राम पंचायत , स्कूली शिक्षा विभाग , महिला बाल विकास विभाग सजा की धमकी देने से भी नहीं चूक रहा है। जिले भर के शासकीय विभगो के प्रमुखो को जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए निर्देशो में शासन की मंशा का ख्याल रखने को कहा हैं। अभी हाल ही में स्वास्थ विभाग द्वारा परिवार नियोजन कार्य में 70 प्रतिशत से कम लक्ष्य हासिल करने वाले आधा सैकड़ा कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया है। साथ ही यह निर्देश दिए गए है कि यदि वे 70 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य पूर्ण नहीं करते हैं तो उन्हें वेतन नहीं दिया जाएगा। इस साल परिवार नियोजन कार्य को स्वास्थ्य विभाग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा गया है। यही कारण है कि इस कार्य की हर माह समीक्षा भी की जा रही है। फरवरी माह की समीक्षा जल्द की जाना है। यदि समीक्षा के दौरान किसी कर्मचारी की उपलब्घि कम पाई जाती है तो उसके खिलाफ दो वेतन रोकने की कार्रवाई भी विभाग द्वारा सुनिश्चित की गई है। साथ ही कठोर कार्रवाई की बात भी कही जा रही है। नसबंदी कार्यक्रम के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग को 16 हजार 300 का लक्ष्य निर्घारित किया गया है। जिसके तहत अभी तक 13 हजार 52 नसबंदी ऑपरेशन किए जा चुके है। लक्ष्य हासिल करने के लिए विभाग द्वारा आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहित पंच एवं सचिवों की भी मदद ली जा रही है। वहीं कार्य में शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने हितग्राहियों के लिए इनाम भी रखा गया है। नसबंदी कार्यक्रम में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों का वेतन रोका गया है। यदि वे 70 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य हासिल कर लेते हैं तो उन्हें वेतन दे दिया जाएगा।
डिफाल्टर अमेरिकी नागरिक के बालाजी पूरम में तथाकथित मैनेजर की हत्या
परिवार जनो ने लगाया हत्या का आरोप , शक के दायरे में कई लोगो के नाम
बैतूल, रामकिशोर पंवार: एक सप्ताह पहले अमेरिकी नागरिक को लायंस क्लब बैतूल सिटी ने बैतूल का गौरव बता कर सम्मानित की थी आज उसी अमेरिकी नागरिक को हत्या एवं आत्हत्या को लेकर उठे सवालो एवं घटना स्थल से साक्ष्य को मिटाने के आरोपो के चलते आरोपो के कटघरे में खड़ा होना पड़ा। अपनी स्वर्गीय मां की याद में बने रूक्मिणी बालाजी मंदिर में परिसर में मंदिर के तथाकथित मैनेजर कहे जाने वाले कृष्ण कुमार उर्फ गुडडू पिंजारे जाति पंवार उम्र 40 वर्ष निवासी बैतूल बाजार की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो जाती हैं और किसी को पता भी नहीं चलता हैं। मंदिर परिसर की धर्मशाला के कमरा नम्बर 8 में पिछले पूरे दिन और रात भर से अपना मोबाइल बंद रखे गुडडू पंवार को मंदिर के संस्थापक के छोटे भाई राम वर्मा के कहने पर मंदिर के सुरक्षा गार्ड गोलू द्वारा कमरे नम्बर 8 का दरवाजा एवं ताला तोड़ कर बाहर निकाला जाता हैं और उसे सीधे उसके परिजनो एवं पुलिस को जानकारी दिये बिना ही जिला चिकित्सालय पहुंचाया जाता हैं। जहां पर पहले से मौजूद बैतूल का दैनिक समाचार पत्र का ब्यूरो एवं मंदिर की बालाजी सेवा समिति का संयोजक मिलता हैं और फिर आनन – फानन में पीएम की कार्यवाही शुरू हो जाती हैं इस बीच मृतक के परिजनो का लावा लश्कर पहुंच जाता हैं और फिर मामला गरमाने लगता हैं। बीते लगभग चालिस घंटे से सम्पर्क से बाहर मृतक को उसके परिजनो की बिना मौजूदगी के ही उस स्थान से हटाना भी कम चौकान्ने वाला मामला नहीं रहता हैं पर पुलिस और प्रबंधन की मिली भगत से पूरे मामले को निपटाने का ताना – बाना उस समय काम नहीं आता हैं जब मृतक के परिजन गदर करने पर उतारू हो जाते हैं। मृतक के परिजन और पुलिस को खबर उसके जिला मुख्य चिकित्सालय पहुंचने के बाद मृतक को डाक्टरो द्वारा मृत घोषित करने के उपरांत मिलती हैं। घटना स्थल पर जब एफएसएल टीम पहुंचती हैं उसके पहले ही धर्मशाला के रूम नम्बर 8 की फिनाइल से धुलाई कर दी जाती हैं। घटना स्थल पर एफएसएल टीम को दरवाजे के तोडऩे के निशान के अलावा साक्ष्य के रूप में कुछ भी नहीं मिलता हैं। रविवार के दिन अपने बच्चे का स्कूल से रिजल्ट लेने निकले कृष्ण कुमार उर्फ गुडडू पिंजारे जाति पंवार निवासी बैतूल बाजार का मोबाइल जो बंद होता हैं कि वह फिर शुरू नहीं हो पाता हैं। मृतक के जेब से एफएसएल टीम को मात्र साढ़े तीन सौ रूपये नगद मिलते हैं। मोबाइल और किसी भी प्रकार के सुसाइट नोट मिलने से इंकार करते हुए श्री एस बी बाथम वरिष्ठ अधिकारी एफएसएल बैतूल कहते हैं कि मृतक के परिजनो के आक्रोष के चलते पूरे पीएम की वीडियो रिकाडिंग करवाई गई तथा तीन डाक्टरो की टीम से पीएम करवाया जाता हैं। सवाल यह उठता हैं कि रूक्मिणी बालाजी मंदिर परिसर से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित बैतूल बाजार की पुलिस थाना और मृतक का निवास हैं लेकिन दोनो को घटना की जानकारी उसकी तथाकथित मौत के बाद मिलती हैं। सवाल यह उठता हैं कि मंदिर परिसर के रूम नम्बर आठ में ही मृतक के होने की भनक मंदिर के सुरक्षा गार्ड को कैसे लगी…? रूम का ताला तोडऩे या दरवाजा तोडऩे के पहले मृतक के परिजनो एवं पुलिस को क्यों नहीं मौजूद रखा गया। मृतक अभी तक कितनी बार मंदिर की धर्मशाला में रूका था…? और जब घर पास में ही हैं तब वह अपने परिवार बीबी – बच्चो को छोड़ कर अकेला रूम नम्बर आठ में क्यों रूका रहा…? पुलिस को घटना की सूचना देने के पूर्व ही घटना स्थल की वह भी फिनाइल से साफ सफाई करवाने की क्या जरूरत थी …? जबकि उस कमरे में मृतक की हत्या या आत्महत्या हुई थी….? सबसे शर्मनाक बात तो यह हैं कि ठीक व्ही आई पी गेस्ट हाऊस के पीछे मौजूद बैतूल बाजार के पुलिस थाने की पुलिस को उस समय घटना की जानकारी या भनक तक नहीं होती हैं जब तक की पूरी एफएसएल टीम और पत्रकार तथा कुछ कैमरामेन नहीं पहुंच जाते हैं। पुलिस नींद से जागी उबासी लेते हुए स्थल पर पहुंचती तो हैं लेकिन अनजान बनी फिरती हैं। पूरे मामलो को लेकर बैतूल से घटना स्थल पर पहुंची एफएसएल की टीम और पत्रकार ही सवाल जवाब करते हैं लेकिन पुलिस मौन साधे चुपचाप देखती रहती हैं। घटना स्थल पर पुलिस और टीम के हाथ कुछ भी नहीं लगता और वह बैरंग लौट जाती हैं। मंदिर का सुरक्षा गार्ड गोलू बताता हैं कि किसी सुनील भैया , साहब , और भैया को मृतक की घटना के पहले मुलाकात होती हैं। उसके रात में तथाकथित कमरा नम्बर आठ में रूकने की जानकारी केवल मृतक के परिजनो को नहीं थी बाकी मंदिर से जुड़े मंदिर संस्थापक और उसके भाई राम वर्मा तथा किसी सुनील एवं बल्लू नामक व्यक्ति को पूरी जानकारी थी। सूत्रो का तो यहां तक कहना हैं कि रविवार को पौने नौ बजे के लगभग सुनील की पुलिस विभाग के एक आला अफसर से काफी देर तक चर्चा होती हैं। सुबह – सुबह भी उसी व्यक्ति का पुलिस विभाग के आला अफसर से मोबाइल पर वार्तालाप होती हैं। बैतूल जिले के उक्त तथाकथित संदेह के दायरे में आए पुलिस विभाग के आला अफसर के बीच फोन एवं मोबाइल की काल डिटेल निकलवाई जाती हैं तो इस सनसनी खेज मामले का कुछ नया रूप सामने आ सकता हैं। वैसे भी पूरे बैतूल जिले का आम जनमानस जानता हैं उक्त पुलिस विभाग का आला अफसर कौन हैं और उसकी मित्र मंडली के अभिन्न सदस्य एवं बैतूल नगर की शांती समिति के प्रमुख दो सदस्यो कौन हैं …? जिन पर पर इस तथाकथित हत्या कांड को आत्महत्या कांड में बदलने का आरोप लगाने वाले मृतको के परिजनो ने लगाए हैं। मृतक के परिजन सीधे पुलिस विभाग के आला अफसरो से ही सवाल करते हैं कि यदि कृष्ण कुमार उर्फ गुडडू पंवार की हत्या नहीं हुई हैं तो फिर धर्मशाला के आठ नम्बर कमरे की फिनाइल से धुलाई क्यों की जाती हैं …? आखिर मंदिर में ऐसा क्या साक्ष्य मौजूद रहता हैं जिसे मिटाया जाता हैं…..? यदि पुलिस पूरे मामले में निष्पक्ष हैं तो उनके द्वारा साक्ष्य मिटाने का मंदिर प्रबंधन या मंदिर के किसी कर्मचारी या अन्य लोगो के खिलाफ धारा 411 के तहत अपराध क्यों दर्ज नहीं किया जाता हैं। गुडडू पंवार की संदिग्ध मौत से उपजे पूरे मामले को लेकर पुलिस शक के दायरे में आ जाती हैं। मृतक गुडडू पंवार निवासी बैतूल बाजार के भांजे का खुला आरोप था कि उसके मामा की हत्या की गई हैं। इस हत्या कांड में किसी सैम , सुनील  के शामिल होने एवं घटना स्थल के साक्ष्यों को भी मिटाने का आरोप मृतक के परिजन लगाते हैं। बताया जाता हैं कि गुडडू पिंजारे और उसके तीन भाई मंदिर की 2001 में हुई स्थापना के समय से मंदिर से जुड़े हुए थे। मृतक अमेरिकी नागरिक का बायां हाथ होने के साथ – साथ सबसे विश्वसनीय एवं करीबी व्यक्ति था। पिछले तीन दिनो से कथित दस लाख रूपयों के गबन को लेकर सीए द्वारा करवाई जा रही जांच से परेशान था। उस पर दस लाख रूपए के गबन के आरोप लगने के बाद से वह मानसिक रूप से पेरशान जरूर था लेकिन वह आत्महत्या नहीं कर सकता। मृतक के साले दिलीप हजारे का खुला आरोप हैं कि उसके जीजा बुजदील नही था और न ही कायर था वह किसी भी सूरत में आत्महत्या नहीं कर सकता हैं। उसकी हत्या की गई है और हत्या में ऐसे लोग शामिल हैं जिनको पुलिस बचा रही हैं। मृतक लगभग चालिस घंटे से मंदिर परिसर में तथाकथित बंधक बना हुआ था इसलिए उसके मोबाइल पर किसी से बात नहीं हो पा रही थी। उसके मंदिर परिसर की धर्मशाला में रूकने की जानकारी मंदिर प्रबंधन द्वारा छुपाया जाना ही संदेह के घेरे में आता हैं। तथा उससे अमेरिकी नागरिक , मंदिर के पुजारी , बालाजी सेवा समिति के तथाकथित संयोजक सुनिल एवं उसके साथी व्यक्ति द्वारा दस लाख रूपयो को लेकर दबाव बनाया जा रहा था कि वह उक्त तथाकथित गबन के रूपयो को जमा करे अन्यथा उसे मरवा किसी भी मामले में जेल भिजवा देगें या फिर वह उसे मरवा डालेगे..? पुलिस को इस पूरे मामले में किसी भी प्रकार का सोसाइट नोट का नाम मिलना, घटना स्थल से साक्ष्यो को साफ करके घटना स्थल की पुलिस एवं एफएसएल टीम आने के पहले साफ सफाई कर देना , मृतक का मंदिर परिसर में ही तथाकथित आत्महत्या करना , तथाकथित मंदिर का आडिट एवं सीए से जांच करवाना और जांच में दस लाख रूपये के गबन का सिद्ध होने के बाद भी पुलिस को मामले की सूचना न देना, मृतक की मौत की सूचना उसके मंदिर परिसर में दुकान लगाने वाले अन्य रिश्तेदारो को न देकर सीधे जिला चिकित्सालय लाना किसी बड़े षडय़ंत्र का आभास कराता हैं।  मृतक के परिजनो के आक्रोष के चलते उसकी लाश का तीन डाक्टरो एवं एफएसएल टीम की मौजूदगी में पोस्टमार्टम तो हो गया हैं लेकिन जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी कौशल की उसी बहुचर्चित सुनील से मित्रता भी पीएम रिर्पोट को प्रभावित कर सकती हैं। अनेको प्रकार की आशंका एवं कुशंका के चलते मृतक के परिजनो के द्वारा मृतक गुडडू पंवार की लाश को लेकर नेशनल हाइवे 69 पर चक्का जाम करना तथा मंदिर प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी करना किसी बड़े षडय़ंत्र का आभास दिलाता हैं।
बैतूल जिले के बैतूल बाजार में नेशनल हाइवे पर जब से रूक्मिणी बालाजी मंदिर बना हैं तबसे लेकर आज तक मंदिर प्रबंधन और मंदिर अकसर किसी न किसी विवादो को जन्म देते रहे हैं। विवादो से मंदिर के तथाकथित संस्थापक बैतूल बाजार के मूल निवासी रहे इस अमेरिकी नागरिक भी बैतूल जिले में आने के बाद से कम सुर्खियो में नहीं रहे। वे तिहाड़ जेल से भी सैर करके आ चुके हैं। बैतूल जिले की ही नहीं देश भर की एक दर्जन बैंको से स्वंय और अपनी कंपनी को डिफाल्टर घोषित करवा चुके इस विदेशी नागरिक ने पिछले एक साल से भारत की दोहरी नागरिकता भी छोड़ दी हैं वे 6 -6 माह के टूृरिस्ट वीजा परमीट पर बैतूल आकर रहते हैं और फिर वीजा समाप्त होने के एक दिन पहले अमेरिका चले जाते हैं फिर एक सप्ताह बाद पुन: टुरिस्ट वीजा लेकर बैतूल बाजार के व्ही आई पी गेस्ट हाऊस में रूक कर पूरे जिले की प्रशासनिक एवं राजनैतिक कार्यप्रणाली में दंखलदाजी करते चले आ रहे हैं। इनके बारे में एक बात यह भी कहीं जाती हैं कि उनके द्वारा उनके कथित जालसाजी एवं मंदिर की आड़ में चल रही दुकानदारी को लेकर उनके एक पूर्व राजदार बर्डे नामक व्यक्ति को भी इतना मानसिक रूप से टार्चर किया गया कि उसे मानसिक रोगी बता कर अब मंदिर प्रबंधन से निकाल बाहर कर दिया गया। मंदिर के ट्रस्टी तक को बाहर का रास्ता दिखा कर पूरे मंदिर को अपने परिवार की प्रायवेट कंपनी बना डाला हैं। मंदिर कभी पायलट बाबा को लेकर तो कभी वेदंाती महाराज को लेकर सुर्खियों में रहा हैं। मंदिर संस्थान एवं टायर फैक्टरी से कई लोगो को निकाल बाहर करने के चलते भी कई बार मंदिर और प्रबंधन तथा फैक्अरी प्रबंधन विवादो से घिरा रहा हैं। इस समय मंदिर के संचालक कहे जाने वाले मैनेजर कृष्ण कुमार उर्फ गुडडू पंवार की मौत को लेकर जन आन्दोलन का केन्द्र बन गया हैं। देखना यह बाकी हैं कि पुलिस पूरे मामले में प्रबंधन एवं उन संदिग्ध लोगो पर क्या नकेल कसती हैं।

सास बहू के साथ भेदभाव कर रही हैं भाजपा सरकार
सूर्यपुत्री मां ताप्ती की उपेक्षा पूर्णा का होगा उद्धार
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार लगता हैं कि एकता कपूर के स्ट्रार प्लस एवं उत्सव पर आने वाले टीवी धारावाहिको ज्यादा देखती हैं या फिर वह फिल्मी दुनिया की बहुचर्चित स्वर्गीय ललीता पंवार की आत्मा को अपने शरीर में प्रवेश कर चुकी हैं। हाल ही में ऐसा तब देखने को मिला जब प्रदेश सरकार ने बैतूल जिले की दो देव कन्याओं ताप्ती एवं पूर्णा के साथ अपनी घटिया मानसिकता का परिचय दिया। पुराणो में उल्लेखीत कथा के अनुसार सूर्यवंशी में जन्मी मां ताप्ती का विवाह चन्द्रवंशी राजा सवरण के साथ हुआ था। दस नाते चन्द्रपुत्री मां पूर्णा भले ही ताप्ती की सहेली हो लेकिन रिश्तो में वह ताप्ती जी की बुआ सास कहलाती हैं। वैसे भी देखा जाता रहा हैं कि चन्द्र एवं सूर्य की आपस में पटरी नहीं बैठने के बाद भी ताप्ती एवं पूर्णा का बैतूल जिले से अलग – अलग दिशा में बहता जल प्रवाह भुसावल के पास इन दोनो सहेलियों के मिलन का हुआ हैं। प्रदेश सूर्यवंश में जन्मे प्रतापी राजा राम की रामभक्त भाजपा अब इस जिले में बहने वाली दो प्रमुख धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नदियो के साथ भेदभाव करके अपनी अलग पहचान बनाने में लग हैं। बैतूल जिले की भैसदेही तहसील मुख्यालय स्थित काशी तालाब पुष्पकरणी से निकलने वाली चन्द्रपुत्री मां पूर्णा नदी जिसमें कभी वर्षभर पानी कल-कल कर बहते पानी को सहेज कर रखने के लिए एक मास्टर प्लान को लागू करने जा रही हैं। वैसे तो बैतूल जिले की सभी प्रमुख नदियों में अक्टुम्बर माह के समाप्त होते ही जल का प्रवाह दम तोडऩे लगता है। बैतूल जिले में ताप्ती 250 किलोमीटर तथा पूर्णा 90 किलोमीटर बहती हैं। इस समय जिले में करीब 90 किमी बहने वाली पूर्णा नदी के पुनर्जीवन के लिए प्रयास शुरू किए गए हैं। जिसमें करीब 67 करोड़ रूपए का प्लान तैयार किया गया है। तीन साल की अवधि में यदि इस प्लान पर सही तरीके से काम हुआ तो पूर्णा फिर से दुध की धारा के रूप में बहना शुरू हो लाएगी। सप्तऋषियों की प्यास बुझाने धरती पर आई पूर्णा सप्त ऋषियों के मन में आई खोट के चलते गाय के रूप में प्रगट होकर दुध की धारा बहाती हुई बैतूल जिले की सीमा से बाहर होकर भुसावल में ताप्ती से मिल गई। सरकारी मास्टर प्लान के तहत नदी के उपचार के लिए चुनने का कारण यह है कि नदी में बेस फ्लो स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। जलग्रहण क्षेत्र में उच्च रिसन क्षमता है। इसलिए कंटूर ट्रेंच, कंटूर बोल्डर वॉल, गली प्लग संख्या, कंटूर बंड मेढ़ बंधान, सोक पिट, खेत-तालाब, चेकडैम, स्टापडैम, ड्राप स्पिल वे, बोरीबंधान, तालाब, परकोलेशन टेंक, पुराने चेकडैम सुधार, पुराने तालाबों का सुधार, रिचार्ज साफ्ट, डाइक सहित अन्य तरीकों से यह उपचार का काम किया जाएगा। नदी के उपचार के लिए जिस फार्मूले को तैयार किया गया है उसमें आधारभूत जानकारी का संकलन किया जाएगा। इसके साथ ही परियोजना क्रियान्वयन दल द्वारा संपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र एवं नदी पथ का भ्रमण व सर्वेक्षण, ग्रामीण सहभागी समीक्षा के माध्यम से उपलब्ध संसाधनों एवं प्रस्तावित कार्यो की आयोजना, वाटर बजट एवं जल संरक्षण बजट तैयार करना, परिवार सर्वेक्षण एवं नेट प्लानिंग के माध्यम से प्रति खसराबार जल संरक्षण एवं जल संवर्घन संरचनाओं गतिविधियों का चयन, तकनीकी सर्वेक्षण एवं कम्प्यूटर के माध्यम से नक्शों एवं मानचित्रों का डिजीटलाईजेशन तकनीकी प्राक्कलन एवं स्वीकृति प्राप्त करना एवं डीपीआर तैयार कर ग्राम जनपद व जिला पंचायत से अनुमोदन कर तकनीकी स्वीकृति प्राप्त करना शामिल है। क्षेत्र के भौगोलिक स्थिति एवं भूमिप्रकार को ध्यान में रखकर जो रणनीति बनाई गई है। उसमें भूू जलस्तर में वृद्धि के लिए ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में अधिक से अधिक मृदा एवं जलसंरक्षण के काम किए जाएंगे। वहीं बेस फ्लो का स्तर ऊपर उठाने के लिए मध्य क्षेत्र में जलसंरक्षण एवं संग्रहण संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा। पूर्णा नदी के जलसंग्रहण और भूजल रिचार्ज संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा। पूर्णा नदी के उपचार के लिए मनरेगा से 1033.150, आदिम जाति कल्याण विभाग से 450, जलसंसाधन विभाग से 950, आईटीडीपी भैंसदेही से 480, बीआरजीएफ बैतूल से 250, जन सहभागिता से 152 और राजीव गांधी जलग्रहण मिशन से 15 लाख रूपए की राशि की व्यवस्था की जा रही है। जिसमें उपचार का कार्य किया जाएगा। नदी उपचार के लिए विभिन्न स्तर पर समितियों का गठन और उनके प्रशिक्षण के लिए भी अलग-अलग व्यवस्थाएं प्लान में शामिल है।पूर्णा नदी के तमाम उपचार के बाद यह माना जा रहा है कि 31 मार्च 2013 की स्थिति में चयनित जलग्रहण क्षेत्र के उभयनिष्ठ बिंदू पर पर्याप्त जलप्रवाह के रूप में निश्चित रूप से पूर्णा नदी को पुर्नजीवन मिलेगा। जिससे करीब सात हजार हेक्टेयर सिंचाई के रकबे में वृद्धि होने से 800 हेक्टेयर कृषि का रकबा बढ़ेगा। वहीं 28 ग्रामों में भूजलस्तर में वृद्धि होगी। क्षेत्र में जैव विविधता का संरक्षण होगा।इस प्लान की प्रस्तुति मुख्यमंत्री के समक्ष हो चुकी है और उन्हें भी यह प्लान बेहद पसंद आया है और इस पर काम भी शुरू हो चुका है।कुछ इसी तरह कह महत्वाकांक्षी योजना ताप्ती को लेकर जल संसाधन विभाग एवं आरइएस विभाग ने भी बनाई थी जिसके तहत ताप्ती नदी के 250 किलोमीटर के बहाव क्षेत्र में 25 छोटे स्टाप डेप एवं 250 से अधिक ओव्हरफ्लो रपटो के निमार्ण की महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी लेकिन योजना को मूर्त रूप मिलता उसके पहले ही योजना ठंडे बस्ते में चली गई। बैतूल जिले के राजनेताओं एवं जनप्रतिनिधियों के सूर्यपुत्री मां ताप्ती के प्रति उपेक्षाजनक व्यवहार के चलते बैतूल जिले में अपार जल क्षमता वाली ताप्ती में भले ही ऊपरी जल प्रवाह बंद हो जाता हैं लेकिन 250 किलोमीटर के क्षेत्र में करीब साढे चार सौ से अधिक ऐसे डोह एवं गहरे गडडे हैं जो कि दो सौ से ढाई सौ फिट गहरे हो सकते हैं जिसमें साल भर पानी भरा रहता हैं। यह कोई साधारण बात नही हैं कि हर आधा किलोमीटर पर ताप्ती में कोई न कोई जल सग्रंह के सैकड़ो विशाल भंडार हैं , जहां पर बारहमास पानी की कमी नहीं होती हैं। भले ही ताप्ती नदी ऊपरी तह पर बह नही पाती हैं लेकिन पूरी की पूरी नदी सुखी नहीं पाती हैं। नदी का आंतरिक बहाव मई जून मास में भी देखने को मिलता हैं जअ कोई नदी के बीचो- बीच पोखर या गडड खोदता हैं। ताप्ती के जल संग्रहण के पीछे की कहानी भले ही पिता एवं पुत्री के स्नेह का प्रतिक हो लेकिन बैतूल जिले में यदि ताप्ती का जल प्रवाह यदि छोटे – छोटे रपटे डेमो या ओव्हर फ्लो डेमो को बना कर किया जाता हैं तो ताप्ती नदी के किनारे बसे सैकड़ो गांवो एवं हजारो हैक्टर भूमि का उद्धार हो सकता हैं लेकिन जिस प्रदेश सरकार को ताप्ती के नाम मात्र से चिढ़ हो वह भलां उस नदी को क्यों महत्व देगी जिसके महात्म के आगे गंगा – यमुना तक नतमस्तक हैं। प्रदेश गान में अपनी उपेक्षा के बाद अब नदी के जल संग्रहण के प्रति उपेक्षित बहन के प्रति शनि महाराज की नज़रे कहीं शिवराज सरकार के पतन का कारण न बन जाए। वैसे भी शनि महाराज लोहे के रूप में प्रदेश सरकार के मुखिया के डम्पर कांड पर अपनी नज़र केन्द्रीत करने वाले हैं।

मध्यप्रदेश के भाजपाई पंचायती राज का एक कड़वा सच
सरपंच , सचिव, पंचायत इंस्पेक्टर , जनपद सीइओ तक बने करोड़पति
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का ग्राम स्वराज , सूराज तथा सरकारी कागजी पंचायती राज यदि किसी जिले में सार्थक सिद्ध हुआ हैं तो निश्चीत तौर पर मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का नाम अव्वल आता हैं। बैतूल जिले में पंचायती राज के सफल सिद्ध होने में रीढ़ की हडड्ी बने ग्राम पंचायतो के सरपंच , सचिव और पंचायत इंस्पेक्टर जो कि इस समय बैतूल जिले के सबसे तेजी बनने वाले करोडपतियों में शामिल हैं। बैतूल जिले के एक पंचायत इंस्पेक्टर को पंचायती राज ने महज 17 सालों में साइकिल से हेलीकाप्टर खरीदनें की स्थिति में ला दिया हैं। यूं तो बैतूल जिले की 558 पंचायतो को दस जनपदो के अधिनस्थ रखा हैं। लेकिन दो जनपदो का एक मालिक बने हैं जिले के मात्र 5 पंचायत इंस्पेक्टर जिनकी माली हालत आज की स्थिति में बैतूल के मामाजी ज्वेलर्स और विनोद डागा की स्थिति में लाकर कर खडा कर दिया हैं। बैतूल जिले में इस समय 5 ग्राम पंचायत इंस्पेक्टर के पास औसतन प्रति इंस्पेक्टर सवा सौ पंचायते हैं। जबकि एकसीइओ के पास बमुश्कील 80 भी ग्राम पंचायते नहीं हैं। मिली जानकारी के अनुसार बैतूल जिले के भीमपुर विकासखण्ड के रतनपुर ग्राम के रहने वाले ग्राम पंचायत सहायक के रूप में 17 साल पहले भर्ती हुए पंचायत कर्मी के पास एक टूटी – फूटी साइकिल थी। आज के समय इस पंचायत इंस्पेक्टर के तथाकथित परीश्रम के चलते उनके पास जेसीबी मशीनो , रोड रोलरो , टेक्ट्रर ट्रालियां , जीपे , कारे और न जाने कितने वाहनो का भंडार हैं। पंचायत इंस्पेक्टर के पुत्र की अपनी प्रायवेट कंस्टे्रक्शन कपंनी भी हैं। यह आरोप कोई और लगता तब तो ठीक था लेकिन भाजपा समर्थक जनपद पंचायत की उपाध्यक्ष श्रीमति परवती बड़ोदे एवं उनके पुत्र भाजपा नेता संतोष बड़ोदे ने उक्त सनसनी खेज मामले को सामने लाकर सनसनी पैदा कर दी हैं। कांग्रेस समर्थक जनपद अध्यक्ष सुनील भलवाी का कहना हैं कि पूरी जनपद में बीस करोड़पति तथा पचास लखपति सचिव मिल जाएगें जिन्होने आज तक अपनी चल एवं अचल सम्पत्ति घोषित नहीं की हैं। जिले की इस कोरकू बाहुल्य जनपद क्षेत्र में सचिवो एवं पंचायत इंस्पेक्टरो की अपनी एक तरफा दादागिरी चलती हैं। जनपद की अधिकांश ग्राम पंचायतो से अपने लिए विभिन्न मदो के फर्जी कार्यो के अपने परिजनो के नाम पर डंके की चोट भुगतान  पर पा रहे इन लोगो का कोई बालबांका नहीं कर पा रहा हैं। अधिकांश सचिवो एवं पंचायत इंस्पेक्टरो की की एक जेब में पंचायती मंत्री गोपाल भार्गव है तो दुसरी जेब में बैतूल से लेकर भोपाल तक की राजनीति हैं। इन सभी पंचायत कर्मियों का जलजला यह हैं कि वे किसी भी नेता , मंत्री , संत्री , अधिकारी का दो मिनट में काम लगा देते हैं। इन सभी धनाढय़ पंचायत कर्मियों की दाद देनी चाहिए कि उनके पास जो कुछ भी हैं वह उनका कुछ भी नहीं हैं सब कुछ उनके बेटे परिवार के सदस्यों एवं अन्य का हैं।

चार सौ रूपए किलो के देशी शुद्ध घी के साथ
चालिस रूपए किलो कोदो – कुटकी की रोटी खाना पड़ा महंगा
बैतूल, रामकिशोर पंवार: कौन कहता कि भारत गरीब है या भूखा हैं…? आप माने या न माने लेकिन सच हमेशा कड़वा होता हैं। बैतूल जिले के एक आदिवासी मनोहर के परिवार के तीन सदस्यों को गर्मी के दिनों में चार सौ रूपए किलो के शुद्ध देशी घी को चालिस रूपए किलो के कोदो – कुटकी की रोटी के साथ नमक और मिर्च लगा कर खाना इतना मंहगा पड़ा की जान पर आ पड़ी। बैतूल जिले के रानीपुर थाना के एक छोटे से गांव हीरावाड़ी के एक ही परिवार के तीन सदस्य इस समय जीवन और मृत्यु  के बीच झूल रहे हैं। लजीज खाने के शौक में विजय आत्मज मनोहर , किरण बाई जौजे दिलीप एवं अनुसईया जौजे मनोहर ने कोदी की रोटी पर घी लगा कर लाल मिर्च और नमक लगा कर खा तो लिया लेकिन बाद में जब विषाक्त बने खाने के चक्कर में जिला चिकित्सालय में भर्ती हुए तीन लोगो के स्वास्थ में कोई सुधार नहीं आ सका हैं। वैसे तो पूरे परिवार के छै सदस्यों ने भोन किया था। अपने खाने-पीने के मामले में थोड़ी सी लापरवाही जान की दुश्मन बन जाती है। इस समय बैतूल जिले में दूषित भोजन की वजह से बीमार होकर ग्रामीणो का जिले के विभिन्न अस्पतालों में आना शुरू हो गया हैं। हाल ही में झल्लार थाना क्षेत्र के ग्राम हथनानिझरी में दही और गोभी की सब्जी खाने से रात एक ही परिवार के दस लोग बीमार हो गए। वहीं एक अन्य घटना में रानीपुर थाना क्षेत्र के ग्राम हीरावाड़ी में कोदो की रोटी खाने से छह लोगों की तबीयत बिगड़ गई जिसमें तीन की हालत ज्यादा खराब बनी हुई है। ग्राम हथनाझिरी निवासी झिंगू पिता संतू ने बताया कि रात में दही और गोभी की सब्जी के साथ भोजन किया था। भोजन करने के कुछ देर बाद परिवार के सभी सदस्यों की हालत बिगडऩे लगी। एक के बाद एक सभी दस सदस्यों को उल्टी शुरू हो गई। उल्टी होने से दो बच्चे बेहोश भी हो गए। परिवार के सदस्यों की तबीयत बिगडऩे की खबर गांव में लगी तो ग्रामीण घर आ गए। ग्रामीणों ने ही तत्काल इसकी जिला अस्पताल में सूचना दी। एम्बुलेंस की सहायता से सभी को अस्पताल में भर्ती कराया है। पीडि़तों के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। परिवार के मुखिया झिंगू ने बताया कि बताया कि पड़ोस में एक व्यक्ति के घर से दही लाया था और खुद के घर में भी चार दिन पहले दही जमाया। रात में दोनों ही दही मिलाकर गोभी की सब्जी के साथ परिवार के सदस्यों ने खाया था। दही में ही खराबी के कारण परिवार के सदस्य बीमार हुए हैं। वहीं दही नहीं खाने के कारण बड़ी बहू की तबीयत ठीक है। वहीं जिस घर से दही लाया था उनके परिवार के सदस्यों की भी तबीयत ठीक है। दही खाने से दस वर्षीय गायत्री, आठ वर्षीय नितेश, छह वर्षीय कृष्णा, उन्नीस वर्षीय संध्या, सोलह वर्षीय दीपक, उन्नीस वर्षीय वंदना, बारह वर्षीय वर्षाय, 48 वर्षीय झिंगू, 45 वर्षीय बाया, 18 वर्षीय तुलाराम बीमार हो गए। गर्मी का मौसम आते ही जिले में फुड पाइजनिंग की घटनाओं में बढ़ोतरी हो गई है। इसके पहले भी पाढर के प्राथमिक स्कूल में बच्चों को दिए जाने वाले भोजन को चखने के बाद रसोइया बीमार हो गई थी। वहीं घोड़ाडोंगरी में भी आधा सैकड़ा आशा कार्यकर्ता भोजन से बीमार हो चुकी हैं। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह हैं कि दोनो ही आदिवासी परिवार के 13 सदस्यों के इस संवेदशनील मामले में प्रशासन का नकारात्मक रवैया सामने आया हैं। पूरे मामले में कहीं न कहीं स्वास्थ विभाग की लापरवाही भी कम नहीं रही। बरहाल जिले में विषाक्त भोजन के मामले न हो इसलिए लोगो में जागरूकता लाने की जरूरत हैं।
आंधप्रदेश के बाद अब तमिलनाडु से मां सूर्यपुत्री ताप्ती के पावन जल के लिए आया श्रद्धालु भक्त
दक्षिण भारत में देश की पवित्र नदियों में मध्यप्रदेश से केवल ताप्ती , नर्मदा को मिला महत्व
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश की भगवा भाजपाई सरकार भले ही सूर्यपुत्री मां ताप्ती को मध्यप्रदेश गान में स्थान नहीं दिलवा सकी लेकिन ताप्ती का गान और सम्मान अब दक्षिण भारत में जोर शोर से होने लगा हैं। कुछ दिनो पूर्व आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले से ताप्ती जन्मस्थली मुलताई आए श्रद्धालु भक्तो के दल के बाद अब एक श्रद्धालु तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से बैतूल आया। अपने गुरू की इच्छानुसार उनकी 81 वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम के पूजन एवं जलाभिषेक के लिए देश भर की 13 पवित्र नदियों के जल को संग्रहित करने निकले आर बालासुब्रमण्यम् ने बताया कि उनके एक मित्र ने उन्हे इंटरनेट पर ताप्ती महिमा को लेकर बने ब्लाग एवं वेबसाइट पर मां ताप्ती जागृति मंच बैतूल द्वारा शिवधाम बारहलिंग का धार्मिक महत्व जो बताया है उसे पढऩे के बाद उनकी इच्छा हुई कि वे एक बार इस पावन तीर्थ स्थल पर जरूर आए। इस बीच उनके गुरू स्वामी काशीवासी श्री काशी मुत्थु स्वामी की 81 वर्षगांठ पर देश की सभी पवित्र नदियों के जल संग्रहण की जवाबदारी मिलने पर उनके बाद मां ताप्ती जागृति मंच के संस्थापक रामकिशोर पंवार के मोबाइल नम्बर पर चर्चा की एवं अपनी इच्छा से उन्हे अवगत कराया। मंच की ओर उन्हे पूर्ण सहयोग मिलने के आश्वासन पर वे आज बैतूल आए हैं। आर बालासुब्रमण्यम के अनुसार ताप्ती महिमा का महत्व मध्यप्रदेश की सीमा के बाहर दक्षिण भारत में भी दिखाई देने लगा हैं। चार सौ साल पुराने बनारस वाराणासी के मठ श्री काशीवासी मुत्थुकुमार स्वामी थम्बीरम सोगंल मानथा मठ के महंत श्री कुमार स्वामी मुत्थ की 81 वी वर्षगांव पर 6 से अपे्रल 2011 को तिरूपनडल जिला थन्जाऊर तमिलनाडु में आयोजित जलाभिषेक कार्यक्रम में जिन भारत की 13 पवित्र नदियों के जल को शामिल किया हैं उनमें मां सूर्यपुत्री ताप्ती जी का भी नाम शामिल हैं। चेन्नई निवासी आर बालासुब्रमण्यम् पहुंचे तो मंच की ओर मंच के संस्थापक रामकिशोर पंवार , वरिष्ठ पत्रकार हारूण भाई , गुरूसिंद्य सभा बैतूल के सरदार सुखदर्शन सिंह वालिया बंटी भैया, अधिवक्ता भरतसेन सहित दर्जनो मंच से जुड़े लोगो ने कार्यकत्र्ताओं ने आर बालासुब्रमण्यम् का भव्य स्वागत किया। बैतूल से पूरे दल के साथ ताप्ती नदी स्थित शिवधाम बारहलिंग पहुंचे आर बालासुब्रमण्यम ने शिवधाम बारहलिंग में मां ताप्ती के दिव्य दर्शन कर पुण्य सलिला मां ताप्ती के जल में स्नान ध्यान किया तथा भगवान श्री राम द्वारा स्थापित मूल बारहलिंग का पूजन करने के बाद ताप्ती जल को संग्रहित किया। लगभग तीन घंटे मां सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे ताप्ती महिमा को सुन कर भाव विभोर हुए आर बालासुब्रमण्यम् ने बताया कि उनके गुरू जी काशी वासी श्री काशी मुत्थु स्वामी की 81 वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में देश भर की पवित्र नदियों के जल संग्रहित करने का निर्णय लिया था उसमें ताप्ती का नाम नहीं था लेकिन जब उन्हे ताप्ती महात्म के बारे में पता चला तो वे ताप्ती जल लेने के लिए पहुंचे। बालासुब्रमण्यम के अनुसार ताप्ती के अलावा मां नर्मदा, कावेरी , गोदावरी, बम्हपुत्र, गंगा , सहित अन्य नदियो का भी पावन जल लेकर तमिलनाडु अप्रेल माह के प्रथम सप्ताह में पहुंच रहे हैं। जल संग्रहण के लिए देशाटन पर निकले आर बालासुब्रमण्यम् के अनुसार वे अकेले ही पूरी 13 पवित्र नदियों का जल सग्रंह कर ले जा रहे हैं। बैतूल में शिवधाम बारहलिंग की महिमा से भाव विभोर होने के बाद वे बोले कि अगली बार वे अपने गुरू काशीवासी श्री काशी मुत्थु स्वामी के साथ शिवधाम बारहलिंग आएगें। सूर्यपुत्री मां ताप्ती की महिमा एवं चमत्कारो की कथा का श्रवण करने के बाद आर बाल बालासुब्रमण्यम् ने विश्वास जताया कि वे ताप्ती महिमा को अपने स्वामी के मठ के माध्यम से बनारस एवं तमिलनाडु में जन – जन तक पहुंचाने का काम करेगें। श्री बालासुब्रमण्यम् के अनुसार वे तमिलनाडु के सभी तमिल भाषी समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओं में ताप्ती महिमा का प्रकाशन कर जन – जन को ताप्ती से जोडऩे के लिए सेतू का काम करेगें। आर बालासुब्रमण्यम् के अनुसार उनके गुरू महंत जी बनारस में भी रहते हैं और अकसर बैतूल होकर ही बनारस जाते हैं। अगली बार से हमारे लिए बैतूल एक जागृत तीर्थटन हो जाएगा जहां पर दक्षिण भारत से लोगो का आना शुरू हो जाएगा।  इधर मां ताप्ती जागृति मंच ने बैतूल के जनप्रतिनिधियों से बालासुब्रमण्यम् के ताप्ती प्रेम से कुछ सीख लेने की सलाद देते हुए प्रदेश सरकार से मां ताप्ती के मान – सम्मान को ठेस न पहुंचाने का आग्रह किया हैं। मंच की ओर से जारी ब्यान में कहा गया हैं कि प्रदेश सरकार ताप्ती की उपेक्षा करके शनि के प्रकोप से नहीं बच सकती हैं।  इस देश में आज भी बड़े भाई को अपनी छोटी बहन के मान सम्मान के लिए बदला लेते देखा जा सकता हैं और ऐसे में शनि महाराज भलां कैसे चुपचाप रह सकते हैं जब प्रदेश सरकार को मां ताप्ती के मान – सम्मान का रत्ती भर ख्याल नहीं हैं।

जहां आज भी लालटेन और चिमनी का दीया ही टीम टीमाता है
गुलाम भारत की तरह जी रहे आजाद भारत के बिजली विहीन 92 गांव
बैतूल  ( रामकिशोर पंवार ) नारो और भाषणो को देने वाले सपनो के सौदागरो से कोई यह सवाल पुछे कि आखिर क्या व$जह है कि आजाद भारत में बैतूल जिले के 92 गांवो में आज भी मिटटी का तेल नसीब नहीं होने के बाद भी गांव के लोग किसी तरह लालटेन और चिमनी का दीया जला कर अपना गुजर बस करने को म$जबुर है। वीबीआईपी जोन में शामिल बैतूल जिले के 92 गांवो में आजादी के 60 दशक पूर्ण हो जाने के बाद भी बिजली का आना – जाना तो दूर उसके दिव्य दर्शन तक नहीं हो सके है। एक आकड़ो की बाजीगरी देखे तो पता चलता है कि वर्ष 2001 की जनसंख्या के अनुसार जिले में 1343 आबाद गांव है जिसमें से मात्र 1251 गांवो में ही लुका छिपी का खेल खेलने वाली बिजली के खम्बे पहँुच सके है। सबसे अधिक 40 कालापानी कहे जाने वाले आदिवासी बाहुल्य गांव आदिवासी विधानसभा क्षेत्र भैसदेही के भीमपुर विकास खण्ड के है। चिचोली विकासखण्ड के 12 गांवो के अलावा बैतूल जिला मुख्यालय के बैतूल 4 तथा घोड़ाडोंगरी विकास खण्ड के 13 गांव शामिल है। शाहपुर विकासखण्ड के 7 आमला विकासखण्ड के 8 भैसदेही विकास खण्ड के 6 तथा आठनेर विकास खण्ड के 3 गांव है। जिले में स्थित सतपुड़ा ताप बिजली घर से लगे कई गांवो में आज भी दिया तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ है। सारनी से लगे कई गांवो को पावर हाऊस की बिजली तो नहीं मिली अलबत्ता उन्हे पावर हाऊस की प्रदुषित जलरीली राख जरूर आसमान से और बहते पानी में पीने को मिल जाती है। सबसे आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि जिले के 1108 मजरे – टोलो में से मात्र 644 में बिजली पहँुच सकी है। इन सब से हट कर कोई प्रदेश के ऊर्जा मंत्री से सवाल करे तो उनके पास रटा – रटाया जवाब है कि वन ग्रामो में बिजली पहँुचाने के लिए वन विभाग की अनुमति चाहिए जो उन्हे नहीं मिल रही है। अब कोई ऊर्जा मंत्री से पलटवार कर सवाल करे के महाशय वन विभाग का अनुमति पाने वाला कार्यालय लंदन में या है वाशिंगटन में ..? जहां से अनुमति मिलने में सात समुद्रो को पार करना पड़ रहा है…..? इस पर ऊर्जा मंत्री का भी रटा – रटाया जवाब है कि हमने प्रदेश की तकदीर और तस्वीर बदल दी है अब थोड़ी – बहँुत कमी तो रही जाती है ……? सबका हमने ठेका थोड़े ले रखा है …? हम तो अभी आये है कांग्रेस तो चालिस साल तक शासन में थी उसने क्या काम किया….?  देश के जाने – माने अर्थशास्त्री डाँ मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्री काल में 20 मार्च 2005 में सभी जिला कलैक्टरो से कहा था कि वर्ष 2009 तक देश के हर गांव तक बिजली पहँुचाने के प्रयास हो ताकि भारत का निमार्ण हो सके। कलैक्टरो ने प्रधानमंत्री की हिदायत इस कान से सुनी और दुसरे कान से निकाल दी क्योकि उन्हे भी मालूम है कि मनमोहन सिंह क्या स्वंय महामहिम राष्टï्रपति महोदया भी उन्हे एक ही जिले में वर्ष 2009 तक भारत के नवनिमार्ण करवाने के लिए स्थायी रूप से पदस्थ नहीं रख सकती। ऐसे में सरकारी योजनाये भाषणो और नारो तक सीमट कर रह गई है। देश का पहला गैसी फायर से बिजली उत्पादित करने वाले कसई गांव का गैसी फायर युनिट तक आज बंद पड़ा है। भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय (एम.एम.ई.एस) द्घारा शुरू की गई इस अभिनव योजना को किसी बैरी की न$जर लग गई। जिले के इस गांव पर आनन – फानन में बिजली पहँुचाने वाले दुबारा उस चौपाल पर नहीं पहँुचे। सौर ऊर्जा से बिजली जलाने वाले कई गांवो के सौर ऊर्जा उपकरण देख – रेख के अभाव में बंद हो गये। इसी तरह पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन का केन्द्र बना पर्यटक स्थल कुकरू खामला भी सिर्फ शो पीस बना हुआ है। सबसे आश्चर्य जनक बात तो यह है कि 92 गांवो में मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग के मंत्री रहे स्वर्गीय रामजी महाजन का गृह विकास खण्ड प्रभात पटटï्न एवं सपा के विधायक डाँ सुनीलमï् का कार्य क्षेत्र एक भी ऐसा गांव नहीं है।
जहाँ बिजली का छटका जोर से नहीं लगता
-: भीमपुर विकास खण्ड :-
कोल्हू ढ़ाना , कल्याणपुर , चीवल , रोहणी , केकड्या , कलां , झाकस , रहतिया , बाटला कंला , हरडाडाडू , पाली , हिड़ली , उमर घाट , मेलोर , बीरपुर , बेहड़ा , बाटला खुर्द , डेसली , धावड़ा रैयत , केकड्यिा $खुर्द , कीडिंग रैयत , राबड़ा रैयत , डेगना , पाढऱ , घोड़पढ़ रैयत , बेहड़ा , तकझीरी, पालंगा , हर्रा, झमली डोह , डुलिया, जोगली , पालंगा , पोटला , दाबिदा रैयत , खैरा , उत्तरी , डोडा जाम , बिजोरी , टिगरिया , कारिदा ,
-: चिचोली विकास खण्ड :-
जाम नगरी , टोकरा , पंक्षी , कनारी , देवठान , मोहनपुरा , बरखेड़ा , बाला डोंगरी , खोकरा खेड़ा ,गवांसेन , दारियागंज ,
:- जिला मुख्यालय बैतूल विकास खण्ड:- गुवाड़ी , धाराखोह , पहावाड़ी , साजपुर
-: घोड़ाडोंगरी विकासखण्ड :-
ब्राहमणवाड़ा , फोपस , निशाना , डगडगा, सीतल खेड़ा , सुयाघुड़ी , रोझड़ा , भतौड़ी , रामपुर , झंमलीखेड़ा , बीजादेही, जुआंझर, अर्जूनगोंदी ,
-: शाहपुर विकासखण्ड :-
कांजी तालाब , खपरावाड़ी ,   माटीगढ़ , पाट , सांवरिदा , बोड़ , मेड़ाखेड़ा ,
-: आमला विकास खण्ड :-
सरण्डई , सावरियां , चिचारा , बुण्डाला , खैरी गयावानी रैयत , कुण्डारा , टूटामा , भालदेही ,
-: भैसदेही विकास खण्ड :-
कसई , जामूखेड़ा , लोकलदरी , भोण्डयाकुंड , घोगल , बुराहनपुर
-: आठनेर विकासखण्ड :-
ताकी , भुसकुंम , माटका

पूरे देश – दुनिया में नहीं होगा मेरे गांव जैसा कोई दुसरा गांव …….!
श्रीमति रूक्मिणी रामकिशोर पंवार
गांव हमारी कल्पना से परे होता हैै. हर आदमी का गांव होता है वह इसलिए कि जो आज शहर कहे जाते है , वे कभी गांव हुआ करते थे. गांव से शहर बना , शहर से नगर , नगर से महानगर , आने वाले कल में महानगर क्या बनेगें कहां नहीं जा सकता. मेरा भी गांव पूरे देश और दुनिया में सबसे अलग – थलग एवं निराला हैै. मैं अपने आप को उस गांव में जन्म लेने पर अपने आप को सौभाग्यशाली समझती हँू. 199.11 हैैक्टर क्षेत्र में 77. 56 उतर 21.52 पूर्व माध्य समुद्र सतह से 650 मीटर की ऊँचाई पर बसा मेरा गांव बैतूल बाजार बैतूल जिले के सबसे प्राचिन गांवो में से एक हैै. ब्रिट्रिस शासन काल में 1822 तक जिला मुख्यालय एवं परगना मुख्यालय कहे जाने वाले मेरे इस गांव में 390 गांव आते थे . वर्तमान जिला मुख्यालय से मात्र 5 किलो मीटर की दूरी पर भोपाल – नागपुर नेशनल हाइवे 69 पर बसा मेरा गांव आज गांव में ही जन्मे एक अप्रवासी भारतीय सैम वर्मा के द्घारा अपनी स्वर्गीय माताजी श्रीमति रूक्मिणी वर्मा की याद में बनवाये गये भगवान रूक्मिणी बालाजी के मंदिर की व$जह से भारत का पांचवा धाम भी कहा जाने लगा हैै. आज भले ही लोग मेरे गांव को किसी भी व$जह से जानते हो लेकिन पूरे और दुनिया में बैतूल बाजार एक मात्र ऐसा गांव है जो कि मंदिरो , कुओं बावलियो के गांव के रूप में जाना पहचाना जाता हैै. जबसे यह गांव बना है तबसे लोगो का ऐसा मानना है कि इस गांव के प्रत्येक मकान में एक भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग स्थापित मंदिर बने मिलेगें. गांव के हर मकान में एक कोने में मंदिर तथा दुसरे कोने में पीने के पानी के लिए खोदा गया कुआं या बावली अवश्य मिलेगी. सबसे विचित्र बात तो यह है कि मेरे इस गांव को सापना नदी तीन ओर से घेरा बना कर बहती हैै. गांव के लोगो की भगवान भोलेनाथ के प्रति अगाह श्रद्घा का ही कारण है कि मैं बचपन से लेकर आज तक सोमवार का वृत करती चली आ रही हँू. इस शिव भक्त ग्राम में यदि किसी मकान में मंदिर नही बन सका तो उस मकान मालिक ने अपने खेत और खलिहान में मंदिर बनवा कर भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग की स्थापना की हैै. मुझे आज भी याद है कि हमारे संयुक्त परिवार के लिए बनवाये गये मकान में जगह नही होने के कारण मेरे परदादा ने अपने खेत में मंदिर बनवाया था जो आज भी खण्हर की शक्ल में हैै. बैतूल बाजार में मेरा पैतृक घर सापना नदी के इस छोर से लगा हुआ हैै. नदी के दुसरे छोर से लगा खेत और खलिहान हैै. आज साझा परिवार एक न रहने से सब कुछ बट गया. मकान खेत यहां तक कि खेत वाला मंदिर भी बट गया. सब कुछ बट जाने क बाद भी मंदिर वाले खेत का नाम कोई नहीं बाट सका. मैं बचपन से सुनती चली आ रही थी कि ब्रिट्रिश शासन काल में मेरे गांव में गुड की मण्डी में आने वाला गुड सात समुंद्र पार जाता था. आज सौ दो सौ साल पहले पुश्तैनी खेती में प्राचिन खेती के साधनो से मेरे गांव के खेतो में जो उपज होती थी आज उसका प्रतिशत भले ही बढ़ गया हो पर मेरे गांव के गुड की मिठास कम हो गई . आज गुड के स्वाद के लिए सरहद पार तक पहचाने जाने वाले मेरे इस गांव के गुड की स्थिति में गोबर से भी बदतर हो गई हैै. हम भले ही आसमान को छू लेने का प्रयास करे लेकिन वह बेचारा किसान आधुनिक तरीके से रात दिन मेहनत करने के बाद भी अपने परिवार का पेट पालने की स्थिति में नहीं हैै. बिजली की आँख मिचौली ने उस किसान के साथ ऐसा छल किया है कि वह अब चाह कर भी अपने खेत के कुओ से मोट के माध्यम से पानी निकाल सके. इस त्रासदी के पीछे उसकी कुआं को बुझ कर टुयुबवेल करवाने की भूल जिम्मेदार है . बिजली आएगी तब ही खेत में पानी का इंतजार कर रही फसल लहलहा पाएगी….?
मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का कृषि प्रधान मेरा गांव आज की स्थिति में सवा सौ से अधिक कुओ और मंदिरो का गांव हैै. आज के इस दौर में इस गांव के भी कई कुओ को आपसी बटवारे की मारामारी की व$जह से उत्पन्न समस्या के नागपाश ने  निगल लिया. जगह की कमी के कारण गांव के कई कुओ को और मंदिरो को अपना मूल स्वरूप खोना पड़ा . लोगो ने अपने लिए ठौर – ठिकाने बनाने के चक्कर में मंदिरो और कुओ को नही छोड़ा . जिस गांव में रोज शाम हर घर से मंदिरो में घंटी बजा करती थी आज उस गांव की में न तो घंटी बजती है और न पूजा पाठ होती हैै. ऐसा भी नहीं कि पूरा गांव नास्तिक हो गया हैै. कहने का मतलब यह है कि गांव के आदमी ने खुद को इतना उलझा रखा है कि उसे घर के मंदिर की घंटी से ज्यादा खाद – बिजली – पानी की चिंता सताने लगी हैै. आज भी मेरे इस गांव के  अप्रवासी भारतीय व्यक्ति द्घारा बनवाये गये मंदिर में भगवान रूक्मिणी बालाजी को देखने उनकी पूजा आरधना करने के लिए देश भर से रोज सैकड़ो लोगो का आना – जाना बना हुआ है लेकिन इसे मैं अपना ही दुर्रभाग्य मानूगी की मेरे इस गांव के मंदिरो की कोई देख – रेख करने वाले न होने के कारण कई मंदिर खण्हर बनते जा रहे हैै. भगवान भोले शंकर स्वंय लीलाधर नटवर श्री कृष्ण की भक्ति में झुमने बालाजी मंदिर में आने वाले भक्तो को देख कर अपने ही उन भक्तो को अपने तीसरे नेत्र से ढुढंने का प्रयास करे रहे है जिन्होने कभी उन्हे नाचते – गाते मेरे इस गांव के मंदिरो में बिठाया था . ऐसा कहा जाता है कि भारत की आत्मा गांवो में बसती है तभी तो भारत को गांवो का देश कहा जाता हैै.पूरी दुनिया में जितने शहर नहीं होगें उसके अधिक भारत में गांव हैै. मेरे देश की आत्मा में बसे मेरे इस गांव में मेरा बचपन बीता , शादी हुई ससुराल गई  , लेकिन यह एक अजीब बात है कि मैं आज तक अपने गांव को नहीं भूल पाई हँू . जिसके पीछे एक कारण यह है कि इस गांव की गलियो में मेरी उछल कुद और चहल कदमी की थाप मुझे आज भी सुनाई देती हैै.
इति,

लगभग एक शताब्दी पुराने चम्पा के पेड के प्रति ग्रामिणो की बेमिसाल आस्था
बैतूल  (रामकिशोर पंवार) जहाँ एक ओर लोग सड़को और मकानो तथा दुकानो के लिए हरे भरे पेड़ो को बेरहमी से काटते चले आ रहे है वहीं पर बैतूल जिला मुख्यालय से महज़ मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रोंढ़ा में एक चम्पा का पेड लोगो की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। ग्राम पंचायत रोंढा में सेवानिवृत वनपाल श्री दयराम पंवार के पैतृक मकान से लगे इस पेड की छांव के नीचे विराजमान गांव की चमत्कारी खेडापति माता मैया के चबतुरे पर लगे इस पेड की उम्र लगभग सौ साल से ऊपर बताई जाती है। ग्राम रोंढा की 74 वर्षिय श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार उसके जन्म के पहले से इस स्थान पर उक्त चम्पा का पेड है। श्रीमति देवासे के अनुसार गांव के इस मोहल्ले की उस गली के मोड पर स्थित चम्पा के पेड के नीचे से कभी हाथी आया – जाया करता था लेकिन चम्पा के पेड की एक डाली इस तरह झुक गई कि आदमी अगर उस पेड के नीचे से निकलते समय झुक कर ना चले तो उसका सिर टकरा जाता है। गांव की सर्वाधिक लोकप्रिय बिजासन माई – माता मैया कहलाने वाली इस खेडापति माता माँ के चबुतरे पर लगे इस पेड को कुछ लोगो के द्धारा काटने का भी प्रयास किया लेकिन पूरे दिन भर तीन लोग मिल कर भी पेड की एक डाली काट नहीं पाये। चम्पा के पेड को काटने वालो में स्वंय के बेटे के भी याामिल होने की बात कहने वाली श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार शाम को पेड काटने वाले इस तरह बिमार हुये कि छै माह तक उनका इलाज चलता रहा। जब दवा -दारू से लोग ठीक नहीं हुये तब दुआ ही काम आती है अंत में गांव के उन तीनो युवको ने माता माँ से एवं उस चम्पा के पेड के पास माफी मांगी और पूजा – अर्चना की तब जाकर वे ठीक हो सके। गांव के एक ही परिवार के दो मुखिया इसी पेड की डाली को काटने के चक्कर में अकाल मौत के शिकार हो चुके है। ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस तरह की घटना के बाद से उस गली से चौपहिया वाहनो एवं बैलगाडी का निकलना तक बंद हो गया। गांव के लोग उस चम्पा के पेड के लिए गांव की गली को सड़क तक बनाने के लिए सहमत नहीं हो पा रहे है। गांव की उस गली को पक्की सीमेंट रोड बनाये जाने का प्रस्ताव पास होकर पडा है लेकिन सभी के सामने समस्या यह है कि उस पेड को आँच न आये और सड़क बन जाये। ग्राम पंचायत रोंढा के उस वार्ड के मेम्बर भगवान दास देवासे के अनुसार ग्राम के लोगो की आस्था के केन्द्र बने इस चम्पा के पेड से लगे माता मंदिर का चबुतरा भी बनाया जाना है जिसके लिए गांव के ही मूल निवासी सेवानिवृत वनपाल श्री दयाराम पंवार के पुत्रो द्धारा गांव के अपने पैतृक मकान की भूमि माता माँ के मंदिर व चबुतरे के लिए दान में दी जा चुकी है। श्री देवासे के अनुसार लोगो की आस्था का एवं विश्वास का केन्द्र बने चम्पा के पेड के प्रति पूरे गांव का प्रेम ही उसकी सुरक्षा करेगा। अब गांव का कोई भी व्यक्ति उस पेड को काटने या उसकी डाली को छाटने की बात नहीं करता। बैतूल जिले के छोटे से सर्वोदयी गांव रहे रोंढा में संत टुकडो जी महराज एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के कभी पांव पडे थे। बैतूल जिले के इस ग्राम पंचायत रोंढा के उस सौ साल से अधिक उम्र के चम्पा के पेड को देखने के लिए लोग दूर – दूर से आते रहते है। वैसे भी जब – जब चमेली के फूलो की बाते चलेगी तो चम्पा के फूलो का जिक्र होना स्वभाविक है क्योकि चम्पा के पेड के तीन गुण विशेष है पहला रंग – दुसरा रूप – तीसरा यह कि इस फूल की सुगंध नहीं आती है। इस फूल पर कभी भवंरा नही मडराता। गांव के लोगो के अनुसार गांव में चम्पा का एक मात्र पेड है जो कि अपनी उम्र के सौ साल पूरे कर चुका है। पेडो से इंान का रिश्ता नकारा नहीं जा सकता शायद यही कारण है कि लोगो की आस्था एवं विश्वास  तथा श्रद्धा के इस त्रिवेणी संगम कहे जाने वाले पेड में कड़वी नीम के पेड की एक नई फसल उगने के बाद पेड बनती जा रही है इसके बाद भी कड़वी नीम की कड़वाहट इस चम्पा के पेड के फूलों में न आने वाली सुगंध में पर कोई असर कर पाई है। बैतूल जिले के ग्राम रोंढा के इस चम्पा के पेड़ के लिए अपना पैतृक खण्डहर हो चुके मकान के ध्वस्त हो जाने के बाद भी उस स्थान पर कोई मकान आदि का निमार्ण न करने वाले सेवाविनृत वनपाल श्री पवांर के पुत्रो ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एवं माता रानी के चबुतरे के लिए अपनी स्वेच्छा भूमि दान करके  लोगो को एक संदेश देना चाहा है कि लोग इंच भर की जमीन के लिए एक दुसरे की जान के दुश्मन बने हुये है लेकिन उक्त जमीन को दान में देने से उनका गांव के प्रति प्यार और स्नेह और अधिक हो जायेगा। किसी ने कहाँ भी है कि जननी से बड़ी होती है जन्मभूमि …… हो सकता है कि शायद अपने बच्चो के एवं अपने जन्म से जुड़े अपने गांव से अपना रिश्ता बरकरार रखने के लिए जो 30 साल तक वन विभाग में वनो की सुरक्षा का दायित्व निभाने के बाद उम्र के उस ठहराव पर श्री पंवार का यह अभिनव प्रयास उन लोगो के लिए एक उदाहरण बनेगा जो कि अपने घरो – दुकानो – मकानो – सड़को और गलियों के नाम पर हरे – भरे पेड़ो को बेरहमी से काट डालते है।
संलग्र छायाचित्र

हमारे गांव को भी कोई भरतवंशी मिल जाए……..!
रोहित रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने आऊटलुक पत्रिका देखी तो उसमें छपा एक कालम ”मेरा गांव ….! मुझे अपने बचपन की ओर ले गया . मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है. बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया – गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है. गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा – तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. इधर परासोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है. खेड़ी – सेलगांव – बावई  होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. पंगडंडी जितनी है मेरे गांव को जाने के लिए उतनी गांव को जाने वाली सड़के नही है. दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है. लोग आते है , चले जाते है. कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है. जहाँ  पर लोग केवल घुमने के लिए आते है . जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है. थोड़ी से भूल – चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया…. ऐसे में सब कुछ खो जाने का डर रहता है. इसलिए लोग संभल – संभल कर चलने लगे है . गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के रितब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है . मेरे गांव के लोग बम्बई – दिल्ली – कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है . जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ”बच्चो का भविष्य देखना है …..! ”आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या…. ? अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि …. वैसे देखा जाए तो रोंढ़ा मेरा गांव तो नही रहा यह बात अलग है कि वह हमारा गांव हैै क्योकि इस गांव से मेरे पापा का बचपन जुड़ा हैै. रोंढ़ा मेरे पापा की जन्मभूमि होने के कारण उन्होने ही मुझे अपने इस गांव से जोड़े रखा. आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ पापा के बचपन की एक ऐसी निशानी है जिसके बारे में सुन कर मेरे नटखट बचपन में मैं अपने पापा को देखता हँू . गांव के विकास बारे में क्या लिखूँ क्योकि मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है. मेरे दादा के पिता याने मेरे परदादा ने उस गांव के आसपास के खेतो और खलिहानो में तीस साल अपनी भुजाओं के बल पर तीस साल तक कुआँ खोदा लेकिन आज मैं गांव तक आने वाले 3 किलोमीटर का फासला तक पैदल नही तय नही कर सकता. पहले गांव की सड़क को जोड़ती पगडंडी ठीक थी कम से कम पैदल तो चला जा सकता था लेकिन अब तो उबड़ – खाबड़ सड़क पर मोटर साइकिल लेकर चलना तक मुश्कील हो गया है. हमेशा इस बात का डर सताता है कि कही टायर में कोई कट न लग जाये. गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ – बहने – बहु – बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें का पानी गर्मी आने के पहले ही सुखने लगा है.पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ – तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है.
मैं जब तीन साल का था तब मेरे परदादा का निधन हो गया.  तीस साल तक कुआँ खोदने वाले मेरे दादा तीन बार मौत के मँुह से वापस लौटे शायद इसलिए कि उन्हे वे अपने मूलधन का ब्याज और उसका ब्याज देखना चाहते थे. अपने वंश के वृटवृक्ष की डालियो में खिले फूलो और फलो को देखने वाले मेरे परदादा संत तुकड़ो जी महाराज के अन्यन्न भक्त वे खंजरी की थाप पर मराठी भाषी भजनो को गाने के साथ वे लावणी के अच्छे गायक थे. जिस गांव में रोज सुबह – शाम संत तुकड़ो जी महाराज के भजनो पर खंजरी की थाप गुंजा करती थी आज उसी गांव में बात – बात पर खंजर निकलने से लोग घरो में दुबके रहते थे. मेरे गांव को जैसे किसी की न$जर लग गई हो. आज मेरा गांव पुलिस की प्रोफाइल में झगड़ालू गांव के रूप में जाना जाता है. पिछले एक दशक से मेरे गांव में होने वाली हत्याओं ने गांव की छबि का विकृत स्वरूप पेश किया है. जंगल विभाग में नौकरी करने के बाद सेवानिवृत हुये मेरे दादा बताया करते है कि मेरे पूरे गांव को दुध और दही की धार से बांधा गया है वह इसालिए कि गांव में कोई बिमारी या अकाल मौत से नहीं मरे लेकिन अब तो सा लगता है कि किसी ने मेरे पूरे गांव को खून की धार से बांध रखा हो इस कारण ही मेरा गांव हत्यारा गांव कहलाने लगा है . दादा बताते है कि मेरे गांव की जनसंख्या न तो बढ़ी है और न घटी है. एक दशक पहले तक तो पूरा गांव चारो ओर लहलहाते खेतो से घिरा था लेकिन अब लोगो ने भी गांव छोड़ कर खेत में अपना मकान बना कर रहना शुरू कर दिया है जिससे पूरे गांव की आबादी लगभग चौदह सौ रह गई है . कई साल पहले भी इतनी ही आबादी थी . आज मेरे गांव मे लोग आते कम जाते ज्यादा है . पापा के बचपन का साक्षी चम्पा का पेड़ की झुकी डालिया ही बताती है कि जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी सर्वोदयी नेता भुदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है. गांव का प्राचिन शिव मंदिर हो या भुवानी माँ की दरबार सभी अपने स्थानो को छोड़ कर रास्ते में आ गये लेकिन किसी की इस बारे में सोच नही कि उन्हे एक ठौर ठिकाना दे दे . हमारा पुश्तैनी घर भी ढह चुका है उस घर से लगा माता मंदिर का चबुतरा और चम्पा का पेड़ इस बात का अहसास दिलाता है कि भारत गांवो में बसता है लेकिन
कोई भी इस गांव को आज तक कोई भी ऐसा भरत की तरह प्रतिज्ञा करने वाला भरतवंशी नहीं मिल सका जो कि मेरे गांव की तस्वीर को बदल सके.

मात्र परिक्रमा लगाने से ठीक हो जाता है लकवा
बैतूल   (रामकिशोर पंवार ) भारत चमत्कारो का देश है तभी तो इस देश को दुनिया सलाम करती है। लोगो को जानकार आश्चर्य होगा कि मुम्बई – दिल्ली – कलकत्ता मद्रास जैसे महानगरो से लकवा जैसी बिमारी का व्यक्ति मृत्यु  सैया पर लेटा आता है और मात्र सवा माह तक परहेज कर हर मंगलवार – शनिवार  कुल पाँच बार हनुमान जी की सात बार परिक्रमा लगाने भर से वह व्यक्ति जो चल नही सकता , वह जो बोल नही सकता , जिसने जीने की आस छोड़ रखी हो वह यहाँ एक बार आने के बाद ठीक होने लगता है। उसकी जीने की अभिलाषा दिन ब दिन बढ़ती जाती है तथा वह दुसरो के सहारे नहीं बल्कि स्वंय दो कदम नहीं बल्कि दो कोस दूर चलने लगता है। यह कोई फिल्म या किसी काल्पनिक कथा का कोई वृतांत न होकर एक ऐसी सच्चाई है जिसके एक नहीं पचास हजार गवाह है जो कि इस बात को दावे के साथ कहते है कि मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के चिचोली विकास खण्ड मुख्यालय चिचोली से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम मण्डई  (फोगरया) में एक ऐसी पवनपुत्र बजरंग बली की प्रतिमा है जिसके चारो ओर लकवा और तड़कपडना जैसी लाइलाज बिमारी के मरीज को प्रति शनिवार या मंगलवार सात बार सवा महिने तक परिक्रमा लगाने तथा छुआछुत से दूर रह कर नियम धरम से रहने से उन दोनो बिमारी से छुटकारा मिलता है। यादव जाति के मुुुन्नी भगत को सौ साल पहले स्वपन (सपने) में स्वंय केसरी नंदन महाबली रामदुत हनुमान ने कहा था कि ”मैं गांव के समीप एक नाले के पास पत्थरो के ढेर में पड़ा हँू , मुझे बाहर लाकर मेरी पूजा – अर्चना करो और लोगो से कहो कि ऐसे लोगो से मेरी परिक्रमा लगवाये जो कि लकवा जैसी लाइलाज बिमारी के चपेट में दुसरो पर बोझ बने हुये है। ÓÓ मण्डई ग्राम के मुन्नी भगत के परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य एवं वर्तमान में मंदिर के पुजारी रामप्रसाद यादव बताते है कि बीते सौ साल से आज तक इस मंदिर से पचास हजार से अधिक लोगो को लकवा जैसी बिमारी से छुटकारा मिला है। मंदिर पुजारी के अनुसार यहाँ पर आने वाला रोगी को बजरंग बली की प्रतिमा के सामने अपनी बिमारी को बता कर मन्नत मांगनी पड़ती है साथ ही वचन लेना पड़ता है कि वह नियम – धरम से सवा महिने रहेगा तथा सवा महिने बाद यहाँ पर आकर उसे बांधा गया बंधन से मुक्त होकर अपनी इच्छा अनुरूप हनुमान जी को श्रद्घा के दो फूल से लेकर जो भी वह संकल्प लेगा उसका उसे समपर्ण करेगा। इस मंदिर में पेशाब में जलन होने या खून बहने की बिमारी से भी छुटकारा मिलता है। नेशनल हाइवे 69 भोपाल – नागपुर से पाढऱ हास्पीटल के पास से तथा इसी मार्ग पर आठवा मिल से भी मलाजपुर होते हुये फोगरया मण्डई को पहँुचा जा सकता है। इसी तरह बैतूल – हरदा – इन्दौर नेशनल हाइवे पर स्थित चिचोली ग्राम से भी यहाँ पहँुचा जा सकता है। नागपुर – भोपाल रेल मार्ग पर बैतूल रेल्वे स्टेशन से चिचोली बस मार्ग से होते हुये इस ग्राम तक पहँुचा जा सकता है।  अपनी तीन पीढिय़ो से पवनपुत्र बजरंग बली की सेवा में जूटे यादव परिवार के सदस्य श्री रामप्रसाद यादव का कहना है कि यहाँ पर आने वाले लकवा पीडि़त व्यक्ति और उसके परिजन को चाहियें कि वह यहाँ आने के बाद मांस – मदिरा – रजस्वला नारी की परछाई / छाया से दूर रहे तथा सवा महिने तक किसी के घर आना – जाना खाना – पीना न करे। श्री यादव के अनुसार जो व्यक्ति सच्चे मन और क्रम तथा वचन से पवनपुत्र हनुमान के प्रति समर्पित रहेगा उसे इस घोर कलयुग के एक मात्र चमत्कारी भगवान के चमत्कारो का प्रतिफल जल्दी मिलेगा।

ऊँजाले को तरसता भारत का पहला गांव
उस दिन कसई गाँव को देश की सारी मीडिया ने सर पर बैठाल रखा था क्योकि वह भारत का पहला गाँव कहलाया जहाँ पर भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय एवं मध्यप्रदेश की राज्य सरकार के सौजन्य से विद्युत विहीन ग्राम कसई के 55 घरो में वैकल्पीक ऊर्जा के पहँुचाने के लिए केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्री विलास मुत्तेमवार इस गाँव में पहँुचे थे लेकिन आज इस गांव में 16 लाख 18 हजार रूपये की लगात से बना उक्त वैकल्पीक ऊर्जा उत्पादन के प्रोजेक्ट को किसी की न$जर लग गई ……… यूँ तो ऐसा कहा जाता है कि भारत गांवो में बसता है . इन्ही गाँवो में आज भी घन्टो लाइन में लग कर कई दिनो बाद मिलने वाले मिटटïï््ी के तेल से रोशनी जलाने की म$जबुरी में जी रहे ग्रामिणो के चेहरे पर मुस्कान लाकर अपनी तस्वीरो को छपवाने वाले जनप्रतिनिधियो ने दुबारा कसई गांव जाकर उन लोगो की पीड़ा जानने का प्रयास नहीं किया है जहाँ पर 55 घरो में बिजली का प्रकाश पहँुचाने के लिए केन्द्रीय सरकार से अनुदान प्राप्त राज्य सरकार 16 लाख 18 हजार रूपये खर्च कर वैकल्पीक ऊर्जा उत्पादन प्रोजेक्ट लगाया था . इससे बड़ा इन लोगो के साथ और मज़ाक क्या होगा कि इन्हे अंधरे से ऊँजाले की ओर चलने के लिए उत्प्रेरित करने के बाद उत्प्रेरक ही नौ – दो – ग्यारह हो जाये ……..अंधकार भरा जीवन जी रहे गांवो के लिए बिजली का ऊँजियारा महज एक काल्पनिक सुखद सपना जैसा है . जिसका केवल अहसास किया जा सकता है . ऐसे सपने के पूरे होने की कोई समय सीमा नहीं है फिर भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के 21 वी सदी के सुखद सपने को साकार करने की मंशा के साथ भारत के उन गांवो में रोशनी पहँुचाने का बीड़ा उठाया था जिसके लिए कसई गांव को पहली प्राथमिकता मिली लेकिन आज इस गांव की यह हालत है तो आने वाले कल के बारे में क्या कहा जा सकता है . जिन गांवो तक जाने के लिए रास्ता तक नहीं है. भारत सरकार की इस अति महत्वाकांक्षी अभिनव योजना को मूर्त रूप देने के लिए भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय ने देश के अत्यंत अंदरूनी ऐसे ग्रामों में जहंा सामान्य विद्युत ग्रिड से बिजली देना निकट भविष्य में संभव नहीं है, वहाँ पर वैकल्पिक संवहनीय साधनों से ऊर्जा प्राप्ति का प्रयास किया है मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट की सीमा से लगे बैतूल जिले के सुदूरवर्ती एकांकी स्थल पर स्थित ग्राम कसई में इस समय 55 परिवार जिनमें से 54 कोरकू जनजाति के एवं एक घर अनुसूचित जाति का है . इस ग्राम में वैकल्पीक ऊर्जा का उत्पादक प्रोजेक्ट की स्थापना के साथ इसी ग्राम के 3 युवकों एवं वन विभाग के कर्मचारियों को गैसीफायर संचालन हेतु प्रशिक्षण दिया गया है. गैसी फायर के उपयोगी जलाऊ लकड़ी स्थानीय ग्रामीणों द्वारा एकत्रित की जाती है तथा इस लकड़ी का गैसी फायर संयंत्र में उपयोग कर बिजली उत्पादन किया जाता है. कसई ग्राम में सभी 55 परिवारों को वैकल्पीक ऊर्जा से उत्पन्न बिजली के कनेक्शन दिए गए हैं तथा एक आटा चक्की संचालन के लिए भी बिजली की आपूर्ति की जा रही है. अभी वर्तमान में कसई ग्राम के सभी ग्रामीण परिवारो द्वारा स्वयं के द्वारा उत्पादित वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन की इस व्यवस्था का सफलता से उपयोग किया जा रहा. यह योजना आने वाले कई दिनो तक सुचारू रूप से चले इस कार्य के लिए कसई ग्राम ऊर्जा समिति को पंजीकृत कर उसे पूरी जवाबदेही सौपी गई है. इस समिति द्वारा ग्राम ऊर्जा  सुरक्षा योजना का प्रोजेक्ट के सुचारू रूप से क्रियान्वयन के लिए ग्रामसभा/ग्राम पंचायत कसई द्वारा चयनित ग्राम ऊर्जा समिति के द्वारा 2 खाते खोले गए . ग्राम ऊर्जा फण्ड खाता नामक इस खाते से योजना का क्रियान्वयन किया जाना था लेकिन गांव के लोगो को घर के लिए जलाऊ लकड़ी तक तो लाले पड़ रहे है ऐसे में इस प्रोजेक्ट के लिए लकड़ी लाकर उन्हे कौन काटेगा ……ï? सबसे बड़ी समस्या यह सामने आई कि जिन गांव के लोगो को काम धंधे की तलाश में पलायन करने को म$जबुर होना पड़ रहा हो वे हर महिने बिजली का बिल कहाँ से भरेगे ……..? सरकार की मंशा यह थी कि ग्राम परिवार स्वेच्छा से इस खाते में योगदान करे साथ ही विभिन्न शासकीय विभागों की अनुदान योजनाओं से भी कुछ सहयोग राशि इस खाते में जमा हो लेकिन जहाँ शासकीय योजनाओं को अफसर , बाबू तथा राजनीतिज्ञ दीमक की तरह खा रहे हो वहाँ पर रूपये – पैसे की अपेक्षा करना बेमानी होगा . 55 घरो का कसई गांव के ग्रामीणों के पास मौजूदा परिस्थिति 20 रूपये नहीं सरकारी अनाज और खाने का तेल लाने के लिए वे भला हर महिने घर में बिजली के बल्ब जलाने का 120/-रूपये कहाँ दे देगें उन्हे तो पचास रूपये का पाँच लीटर मिटटïी का तेल इस बिजली से सस्ता पड़ता है . हालाकि भारत सरकार द्वारा प्रोजेक्ट की लागत की 90 प्रतिशत राशि उपलब्ध कराई गई  शेष 10 प्रतिशत राशि ग्रामीण स्वयं योगदान करके अथवा अन्य शासकीय विभागों की मदद से प्राप्त होना था लेकिन मौजूदा परिस्थित में कसई गांव का अधंकार शासन की मंशा पर कालिख पोत गया है .
भारत सरकार की ग्राम ऊर्जा सुरक्षा योजना का लाभ मध्यप्रदेश के वनक्षेत्रों में बसे अविद्युतीकृत ग्रामों को लाभ देने के लिए वन विभाग द्वारा प्रयास किया जा रहा है. मध्यप्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा 1300 ग्रामों की सूची जारी की गई है जिनमें अभी  विद्युतीकरण नहीं हुआ है तथा अगले कई वर्षो तक होने की संभावना भी नहीं है. ऐसे सभी ग्राम पहुंचविहीन हैं तथा इनमें से बहुत से ग्राम वनक्षेत्रों के अंदर या उसके आसपास हैं. प्रथम चरण में वन विभाग द्वारा 26 ग्रामों का चयन कर उनका प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया था. अपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इनमें से निम्रानुसार 11 ग्रामों के प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए है:-
क्रमांक          जिले का नाम                         ग्राम का नाम         स्वीकृत राशि (रूपए लाख में)
01        झाबुआ                              भाजीदुनसरा                 18.18
02        होशंगाबाद                      सुपलई                19.89
03               होशंगाबाद                              माना                  17.56
04        होशंगाबाद                बारासेल                        19.05
05        हरदा                             देबराबंदी                     17.61
06        मण्डला                             सुरंगवानी                    19.30
07        सिवनी                  खुबी रायत                     19.26
08        बैतूल                                  कसई                    16.18
09        छिंदवाड़ा                              खुनाझिर                     8.77
10        धार                           बडख़ोदरा                       9.90
11        धार                              बावड़ीखोदरा                 10.82
कुल       1 करोड़ 76 लाख 52 हजार की यह अति महत्वाकंाक्षी योजना आने वाले दिनो के लिए बनी है लेकिन कसई गांव से सरकार को सबक सीखना चाहिये वरणा सरकार करोड़ो ही नही बल्कि अरबो – खरबो रूपये खर्च कर डाले लेकिन गांवो को निगल रहा अंधियारा किसी अमावस्या और पूर्णिमा के ग्रहण की तरह भारत शासन के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय की इस अति महत्वाकांक्षी योजना को ही न निगल जाये.
इति,

एक गांव में 89 साल से नही बढ़ी आबादी
कांग्रेसी होने का या फिर बा के सिद्घांत पर अटल रहने का श्राप
सचित्र आलेख- रामकिशोर पंवार
जब स्वर्गीय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी उस समय उन्होने एक बार फिर पूरे देश को  ” हम दो हमारे दो”  – ” छोटा परिवार सुखी परिवार” के सिद्धांत को अपनाने का आग्रह किया था। सरकारी अति महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने या उसमें शाबासी पाने के चक्कर में लोगो ने नसबंदी एवं नशाबंदी दोनो में से एक को जबरिया करवाना शुरू कर दिया। इमरजेंसी के समय जबरिया नसबंदी के कारण लोगो को फजीहत या मुसीबतो का सामना करना पड़ा उससे पीडि़त लोगो के दुखती नस को मरहम लगाने के लिए एक फिल्म में एक गाना जानीकवाकर पर फिल्माया गया था कि  ”क्या मिल गया सरकार तुम्हे नसबंदी करा के हमारी बंशी बजा के ”  लेकिन इस बीत के ठीक विपरीत बैतूल जिले में इंदिरा गांधी के बाल्यकाल में ही बैतूल जिले के एक छोटे से गांव ने  ” हम दो हमारे दो ” – ” छोटा परिवार सुखी परिवार ”  का सिद्धांत बिना किसी दबाव के स्वेच्छा से अपनाया था। आज इस गांव को यही सिद्धांत गले की फास बनता नज़र आ रहा है। इस गांव तक आने वाली सारी सरकारी योजनायें गांव तक आने से पहले ही गांव की आबादी का आकड़ा देख कर बोतल के जिन्न की तरह गायब हो जाती है। आज इस गांव को शायद इस बात पर जरूर अफसोस होगा कि वह क्यो  ” उसने अपने गांव के लोगो की नसाबंदी करवा के अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मार ली……”  स्वर्गीय दुष्यंत कुमार के शब्दो में  ” यहां तक आते – आते सुख जाती है सभी नदियां , हमें मालूम है पानी कहां ठहरा होगा…” गांव की युवा पीढ़ी को अपने गांव का परिवार नियोजन अपनाने का सिद्घांत बेहद अफसोस जनक लग रहा होगा क्योकि गांव तक आने वाली विकास की गंगा अवरूद्घ हो गई है। कांग्रेसी होने का तथा स्वर्गीय कस्तुरबा गांधी का कटटर समर्थक रहने वाले इस अद्घितीय गांव में 89 साल से कोई आबादी का आकड़ा दो हजार से ऊपर नही गया। आज शायद इसी त्रासदी का शिकार बना यह गांव विकास के दावो से अछुता रहा है। इस गांव के सरपंच रघु जीवने का कहना है कि हमे तो कांग्रेसी होने की सजा मिल रही है। पूरे गांव को प्रताडि़त करने के लिए सत्ताधारी भाजपाई ओछी से ओछी हरकतो पर उतर जाते है। सत्तापक्ष के लोगो की यातना के शिकार बन रहे गांव के आदिवासी पूर्व सरपंच रघु जीवने एवं सचिव के खिलाफ पहले तो सर्पदंश के मामले में हत्या का मामला दर्ज करवाना चाहा लेकिन जब मामला नहीं बना तो उसके खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव लाया गया लेकिन जब अविश्वास का प्रस्ताव गिर गया तो अब सचिव को ही बर्खास्त करने का ताना – बाना बुना जा रहा है। देश दुनिया में ऐसा गांव और कहीं देखने या सुनने को नहीं मिलेगा जो कि  ” हम दो हमारे दो ” – ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” के मूलमंत्र पर शत- प्रतिशत खरा उतरा हो। बीते 89 साल से इस नियम का पालन करने वाला गांव कांग्रेस धनोरा में आजादी के पूर्व 1922 में सूर्य पुत्री मां ताप्ती नदी के किनारे बसे धनोरा गांव में राष्टपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी कस्तुरबा गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस का दुसरा प्रांतीय अधिवेशन हुआ था। जिस चबुतरे पर श्रीमति कस्तुरबा गांधी ने मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल , सेठ गोविंद दास जी , जमना लाल बजाज , राष्टकवि माखन लाल चतुर्वेदी , सुभद्रा कुमारी चौहान , पंडित सुन्दरलाल के आतिथ्य एवं बा की अध्यक्षता में सम्पन्न सम्मेलन में गांव के लोगो के बीच बा ने एक नारा दिया था ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” हरिजन उद्घार के लिए निकली कस्तूरबा गांधी के ग्राम धनोरा में आने को आज पूरे 89 साल हो गये भी इस गांव के लोग अपनी नेत्री कस्तूरबा गांधी की सीख पर कायम है। इसी गांव के स्वर्गीय भिलाजी धोटे उस समय इस गांव के प्रमुख कांग्रेसी कार्यकत्र्ता थे जिनके जिम्मे कांग्रेस का पूरा आन्दोलन संचालित था। स्वर्गीय धोटे की तीसरी पीढ़ी में उनके सदस्या श्रीमति कल्पना धोटे को आज भी इस बात का गर्व है कि उसके घर के सामने मैदान में कांग्रेस का वह सम्मेलन हुआ था तथा बा उनके घर आई थी। हैदराबाद के चिकित्सालय में अपनी सर्जरी करवाने गये भद्या जी धोटे की पत्नि श्रीमति यमुना बाई बताती है कि उसके सास – ससुर ने कांग्रेस के सिपाही के रूप में देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी की जीवन संगनी श्रीमति कस्तूरबा गांधी के साथ भाग लिया था। सबसे पहले भिलाजी धोटे ने परिवार नियोजन का सिद्घांत अपनाया उसके बाद उसके बेटे भद्या जी धोटे तथा अब उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी की सदस्या श्रीमति कल्पना धोटे ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” को अपनाने जा रही है। अभी कुछ माह पूर्व शादी के बंधन में बंधी कल्पना अपनी सास के समक्ष गर्व के साथ कहती है कि आज हमारा पूरा गांव कांग्रेस धनोरा के नाम से जाना जाता है जिसके पीछे सिर्फ एक ही कारण है कि मध्यप्रदेश के इस निर्मल गांव में आज भी छुआछुत का चक्कर नहीं है तथा अनपढ़ अशिक्षित गवार लोग से लेकर एम ए एल एल बी पास लोग भी आजाद भारत के लगभग 64 साल के बाद भी ” छोटा परिवार सुखी परिवार 89 के मूल सिद्घांत से रत्ती भर भी भटका नहीं है। आजाद भारत देश के इतिहास में सिर्फ  सरकारी मिशनरी कागजो पर ही देश की अरबो – खरबो जनता को ” हम दो हमारे दो ” – ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” का संदेश गांव – गांव तक पहँुचाने के लिए अरबो – खरबो की राशी को पानी की तरह बहा चुकी है। इतना सब करने के बाद भी कोई भी केन्द्र एवं राज्यो में शासन करने वाली किसी भी दल की सरकार ताल ठोक कर ऐसा गांव को जनता के सामने उदाहरण के लिए प्रस्तुत नहीं कर सके जो कि कांग्रेस धनोरा के समकक्ष हो।
आज मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में है . कांग्रेस धनोरा जिसे आदर्श के रूप में पुकारा जाता है . इस गांव में हर परिवार ने  ” हम दो हमारे दो ” – ” छोटा परिवार सुखीपरिवार  का नियम अपना रखा है। यूँ तो हमारे देश में अब तक के 64 सालो में विभिन्न राजनैतिक दलो की केन्द्र एंव राज्य सरकारो शासन तो किया लेकिन किसी ने भी आज तक एक भी गांव को पूर्ण रूप से परिवार नियोजन का सिद्घांत अपनाने के लिए उत्प्रेरित नही किया होगा । बैतूल जिले का इतिहास आने वाले कल में भी स्वर्ण अक्षरो से लिखा जाएगा सिर्फ इस बात के लिए कि राष्टपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी कस्तूरबा गांधी के मात्र कहने भर से बैतूल जिले का कांग्रेस धनोरा गांव पिछले 89 साल से परिवार नियोजन के सिद्घंात पर चला आ रहा है । इस गांव ने आज तक उसकी जनसंख्या को बढऩे नही दिया जिसका दुष:परिणाम यह निकाला जो कि यह गांव आजादी के बाद से आज भी ज्यो का त्यो पिछड़ा एवं अविकसित है। आठनेर से इस गांव के करीब ठानी तक पक्की सड़क आती है लेकिन जिस गांव तक कस्तूरबा गांधी ने पैदल चल कर गांव के लोगो को ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” का सिद्घांत दिया था आज भी उस गांव तक सड़क नहीं बन सकी है। धूल ध्वसरीत गांव की ओर जाने वो रास्तो पर चलने के बाद वास्तव में आत्मग्लानी इस बात की होती है कि देश – दुनिया में मिसाल – बेमिसाल कहा जाने वाला गांव कांग्रेस धनोरा को आखिर क्या मिला….?  परिवार नियोजन के मूल मंत्र को सार्थक साबित करने वाला देश – दुनिया का एकलौता गांव आज के दौर में विकास से कोसो दूर इसलिए भी है क्योकि सरकारी योजनाएँ गांव की आबादी पर बनती और बिगड़ती है। अब इस गांव के लिए अभिश्राप माने कि  गांव की जनसंख्या बढोत्तरी में बाधक बने उसके ” हम दो हमारे दो ” – ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” के सिद्घांत के चलते उसे यह सब भोगना पड़ रहा है। इस गांव तक आने वाली शासन की अति महत्वाकांक्षी विभिन्न योजनाओं के गले की हडडी बनी छोटा परिवार सुखी परिवार की सीख से इस गांव को कुछ नहीं मिल पाया। शायद यह भी हो सकता कि यहाँ तक विकास की गंगा आते – आते सुख जाती हो…….? देश की आजादी के पहले बैतूल जिले के आठनेर विकास खण्ड के इस गांव को धनोरा कहा जाता था लेकिन जब इस गांव में राष्टपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी स्वर्गीय कस्तूरबा गांधी के चरण कमल पडऩे के बाद से यह गांव कांग्रेस धनोरा कहा जाने लगा है। आज भी पूरा गांव अपने आप को कांग्रेस का कटट्र समर्थक मानने के साथ -साथ ”हम दो हमारे दो” – ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” के मूलमंत्र को अपनाकर पूरी दुनिया में एक अदभूत मिसाल कायम कर रखा है । इस गांव के प्रत्येक घर ने परिवार नियोजन को अपनाया है जिसके चलते इस गांव के प्रत्येक घर में एक या दो बच्चे हैं, लेकिन यह परिवार नियोजन ही आज के इस दौर में इस गांव के लिए अभिशाप साबित हो जाएगा … इस बात की किसी ने भी कल्पना तक नहीं की थी।  जहाँ एक ओर इस गांव के ग्रामीणों ने परिवार नियोजन अपनाकर गांव की आबादी नहीं बढऩे दी वही दुसरी ओर आबादी नहीं बढऩे से यह गांव कई सरकारी योजनाओं से अछूता रह गया है।
बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 35 किमी दूर स्थित ग्राम कांग्रेस-धनोरा के रहवासी लड़का हो या लड़की दोनो को एक समान समझते चले आ रहे हैं। इस गांव के 80 वर्षिय मायवाड़ दादा कहते है कि जब मैं पैदा भी नही हुआ था तब मेरे इस गांव में बा आई थी। मेरे पिताजी ने उनके दर्शन किये । मायवाड़ दादा अपने घर के चरखे को लाकर दिखाते है और कहते है कि मेरे माता – पिता को बा ने ही चरखा चला कर सूत बनाने की सीख दी थी। आज जो भी कारण हो इस गांव के हर घर के उन स्कूल जाने को इच्छुक बच्चो के भविष्य के साथ ऐसा खिलवाड़ है कि गांव में स्कूल में आज तक उच्चपाठ शाला ही नहीं खुल सकी है। गांव में कई परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने एक लड़की होने पर या दो लड़की होने पर भी परिवार नियोजन को अपना लिया। इसी वजह से पिछले 64 वर्षो में इस गांव में कुल 712 लोगों की वृद्घि हुई है। जिला योजना एवं सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो सन् 1950 में ग्राम धनोरा की कुल आबादी 1118 थी, जो 64 साल बाद बढ़कर 1830 हो गई. वहीं आसपास के गांवों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ग्राम कांग्रेस धनोरा के पास ही बसे गांव जावरा 1950  में जो थी आज वही आबादी दोगुनी हो गई। ग्राम जावरा की 1950 की कुल आबादी 1166 थी, जो अब बढ़कर 2332 हो चुकी है। समीप बसे ग्राम के ही ऐसे हालात है। जहां 1950 में आबादी 1001 थी जो बढ़कर 3032 हो गई, जो लगभग तीन गुना है। धनोरा ग्राम के ग्रामीणों द्वारा परिवार नियोजन को अपना लेने के पीछे मानना है कि 1922 में कस्तूरबा गांधी ने ग्रामीणों को परिवार नियोजन के फायदे बताए और हमेशा परिवार नियोजन को अपनाने और उस पर अमल करने की अपील की थी। उस अपील समय से ही पूरे गांव पर बा का हुआ जबरदस्त असर आज भी देखने को मिलता है। स्वर्गीय कस्तूरबा गांधी के बाद कई नेता आए और चले गए लेकिन ग्रामीणों ने परिवार नियोजन वाली बात को गांठ बांध ली और तब से ही ग्रामीण परिवार नियोजन को अपनाते चले आ रहे। ग्राम के सरपंच रघु जीवने के अनुसार गांव वालों द्वारा परिवार नियोजन को अपनाने से गांव की आबादी नहीं बढ़ी। आबादी नहीं बढऩे की वजह से कई ऐसी सरकारी योजनाएं जो कि गांव की आबादी के अनुसार गांव को मिलती है। ऐसी कई योजनाएं गांव की आबादी कम होने की वजह से गांव में नहीं आ पाई। आबादी कम होने की वजह से कई सरकारी योजनाएं गांव तक आकर वापस हो गई. उन्होंने बताया कि आबादी की कमी की वजह से गांव तक पहुंचने के लिए आज तक पक्की सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है। आज भी ग्रामीणों को गांव तक पहुंचने के लिए पैदल चलकर आना पड़ता है और बारिश के दिनों में तो हालात और बद से बदतर हो जाते हैं। ग्रामीणों का पैदल चलना तक मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बताया कि आज तक गांव में कम जनसंख्या की वजह से 10 वीं से आगे पढऩे के लिए हायर सेकण्डरी स्कूल का निर्माण नहीं हो पाया है। आज भी गांव के कई बच्चे स्कूल न होने की वजह से पढ़ाई छोड़ चुके है। लड़के तो फिर भी पढऩे के लिए बाहर चले जाते हैं, लेकिन लड़कियां तो 10 वीं के आगे पढ़ ही नहीं पाती हैं। एक लड़की के बाद ही परिवार नियोजन को अपना लेने वाले गांव के जगदीश भाऊ कहते है कि मेरी सिर्फ एक ही लड़की है तो क्या हुआ जरूर मेरी लाड़ली एक दिन यह साबित कर देगी कि लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं होता है। गांव के विकास के बारे में वे भी मानते है कि कई सरकारी योजनाएं गांव में कम आबादी की वजह से नहीं आ पाई है। गांव के रहवासी बलवंत भैया कहते है कि परिवार नियोजन से परिवारों को मिलने वाले ग्रीन कार्ड भी वक्त पडऩे पर काम नहीं आते है  कई बार चिकित्सालयों में ग्रीन कार्ड दिखाने पर डाक्टर इस कार्ड का कोई फायदा नहीं देते उल्टे इसे फेंक देने की सलाह देते है। ऐसे में परिवार नियोजित इस गांव को अन्य लाभ मिलना तो दूर की बात है। ग्राम कांग्रेस धनोरा में पिछले 64 वर्षो में मात्र 600 लोगों की वृद्घि होना और इतने ही समय में आसपास के गांवों में दोगुनी-तिगुनी वृद्घि होना यह साबित करती है कि ग्राम कांग्रेस धनोरा एक आदर्श और परिवार नियोजित गांव है। अधोसंरचना और तमाम मूलभूत सुविधाओं से जूझते हुए इस गांव ने परिवार नियोजन को अपनाकर एक मिसाल तो कायम कर ली। वहीं अपने आप को विकास से कोसो दूर कर लिया। परिवार नियोजन को अपनाते हुए अपने बच्चों को भी परिवार नियोजन की सलाह देते हुए गांव के बुजुर्गो ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि परिवार नियोजन को अपना कर देश की तरक्की और विकास में साथ देने की ऐसी भी कोई सजा मिल सकती है।  आज भी गांव की जन संख्या 1 हजार 642 है जिसमें 110 अनुसूचित जाति तथा 139 अनुसूचित जनजाति के है। गांव की सामान्य जाति की आबादी मात्र 1 हजार 393 है। सरकारी योजनाओं का बनना एवं बिगडना उस गांव की आबादी पर निर्भर करता है। गांव के सरपंच को भाजपा शासन काल में सबसे अधिक गांव तक योजनाये लाने में बाधा आ रही है जिसके पीछे गांव का प्रचलित नाम कांग्रेस धनोरा होना बताया गया। चर्चा के दौरान इस गांव के लोगों के मुंह से बरबस ही निकल पड़ता है कि इस गांव के लिए परिवार नियोजन विकास नहीं अभिशाप बन गया है।
इति,

जीने का रंग ………. !
रामकिशोर पंवार की विशेष रिर्पोट
पश्चिमी से आई शहरी आधुनिकता का भारत के ग्रामिण अँचलो में इस कदर असर हुआ है कि लोगो को रहन – सहन  उसकी चाल-ढाल तथा रंग- रूप तक बदलने लगा है. गांव के लोग जिन्हे अनपढ़ , गोंड , गवार कह कर उलाहना दी जाती थी आज वही लोग अपने आप को किसी से कम नहींसमझ रहे है. तन से नंगे पेट से भूखे लोगो को अपने आगोश में पूर्ण रूप से जकड़ती आधुनिकता के प्रभाव का सबसे ज्यादा असर आदिवासी समाज पर पड़ा है. मध्यप्रदेश के बैतूल जैसे पिछड़े आदिवासी बाहुल्य जिले के साप्ताहिक बाजारो में आने वाली आदिवासी बालाओं को देखने के बाद उनके रंग-ढंग में आए अमूल चूल परिवर्तन ने व्यापारियो की चंादी कर दी है. साप्ताहिक बाजारो में नकली और घटिया सामग्री को मंहगे दामो वाली बता कर इस समाज की अशिक्षा का भरपूर फायदा उठा कर जहाँ एक ओर लोग मालामाल हो रहे है वही दुसरी ओर नकली मेहनतकश अशिक्षित समाज उपभोक्ता अधिनियमो को न जानने की वजह से ठगी का शिकार बन रहा है. साप्ताहिक बाजारो में अकसर देखने को मिलता है कि हर दुसरी – तीसरी दुकान नकली माल से भरी रहती है. नकली माल का इन लोगो के तन से लेकर मन तक बुरा असर पड़ा रहा है. सौंदर्य विशेषज्ञ जुही अग्रवाल कहती है कि बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारो में बिकने वाली इन्दौर मेड सौंदर्य क्रीम एवं अन्य सामग्री चेहरे से लेकर शरीर के विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालती है. घटिया किस्म की लिपीस्टीक से होठो पर दाग पड़ जाते है. कई बार तो यह देखने में आया हे कि चेहरो पर भी सफेद दाग दिखाई पडऩे लगते है. सुश्री जुही मानती है कि आदिवासी समाज की युवतियाँ अपने सौंदर्य पर आजकल कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी. आज के आदिवासी बालाए भले ही विश्व सुदंरी एश्वर्या राय को नहीं जानती हो पर वे अपने आप को एश्वर्या से कम भी नही समझती है. आज यही वजह है कि इन युवतियों के अपने रूप सौदंर्य के प्रति बढ़ते शौक ने उन्हे आज अपनी पारम्परीक वेशभुषा और संस्कृति से कोसो दूर कर दिया है. ग्रामिण अंचलो में बसे आदिवासी परिवार के नौजवान लड़के व लड़कियां दोनों ही कम उम्र से ही हाथ मजदूरी पर ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाने लगते है. मेहनतकश इस समाज की काम के प्रति बढ़ती लगन ने उन्हे हर मोर्चे पर लाकर खड़ा किया है.
सदियो से आदिवासी समाज की युवतियो एवं महिलाओं ने सोने के जेवर के स्थान पर चांदी के जेवरो को सबसे उपयोग में लाया है. चांदी एवं गीलट  (खोटी चांदी) के ही सबसे अधिक जेवर खरीदने वाली इन युवतीयो के शरीर पर गले से लेकर पंव तक दस हजार रूपये तक के जेवर लदे रहते है. उक्त जेवरो को केवल साप्ताहिक बाजारो एवं किसी कार्यक्रम में पहन कर आने वाली इन युवतीयो का शौक भी बदलता जा रहा है. बाजारो में अब तो कई युवतीयो को कोका कोली और पेप्सी पता देख आप भी हैरत में पड़ जाएगें कि दुसरो का अनुसरण करने वाली ए युवतियाँ आखिर किस ओर भागी जा रही है. आदिवासी समाज की युवतियाँ शादी के पहले भी नाक में नथ और कान में चांदी की बाली पहन लेती है. इन युवतियो को देखने के बाद आप एक पल में यह पता नही लगा सकते कि कौन शादी शुदा है और कौन कुवारी ! वे भले ही तन -मन और धन से गरीब है पर उनके शौक ने उन्हे कहीं का नही छोड़ा है. इनके द्वारा पहने गए आभुषणो के बारे में पगारिया ज्वेलर्स के संचालक नीतिन कहते है कि यह समाज सबसे इमानदार और वादे का पक्का है. उनका यह कहना था कि इस समाज की अज्ञानता का लोग भले ही फायदा उठा ले पर आज सबसे अधिक ग्राहक इसी समाज के साप्ताहिक बाजारो एवं तीज त्यौहार पर खरीदी- बिक्री कने के लिए आते है. अब समय की कहिए या आधुनिकता का असर अब इस समाज की महिलाओ का हमेल  (जिसके सिक्को की माला भी कहते है . ) हस , पैर पटटी, शादी की कड़ी, पायल, बाखडिय़ा, सरी, सहित कई प्रकार आभुषण को पहन कर साप्ताहिक बाजारो एवं शादी विवाह के कार्यक्रम में जाती है. राजश्री से लेकर पान पराग तक खाने वाली इन युवतियो ने सप्ताह में एक बार दोमट मिटटी से नहाने के बजाय लक्स और रेक्सोना से नहाना शुरू कर दिया है. गोदना आज भी इनकी संस्कृति का अंग है जिसे वह नहीं छोड़ सकी है.
बैतूल जिले में रोजगार के सबसे बड़े केन्द्र पाथाखेड़ा कोयला खदान हो या सारनी ताप बिजली घर या फिर बहार की. इन खदानों से निकलने वाले कोयले को ट्रकों में भरना और खाली करने का काम करने वाली रेजा (आदिवासी युवतीयां) माली, जिस्मानी व दिमागी शोषण का शिकार होती है. अपनी मेहनत की मजदूरी लेने वह साप्ताहिक बाजारों के दिनों में जाती हैं. अकसर कई ठेकेदार भी इन को आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजारों के दिनों में जाती हैं. अकसर कई ठेकेदार भी इन को आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजार के दिनों में ही मजदूरी का रूपया देते हैं.  दिन भर काम करने वाली आदिवासी युवतीयो को जब हाथ में मजदूरी मिलती है तो उन का चेहरा खिल उठता है . हफ्ते के आखिरी दिन जिस गांव, शहर में बाजार लगता है, वहां पर टोलियों में नाचती गाती ये आदिवासी औरतें खाना – पीना छोड़ कर अपने रूप श्रंगार एवं पहनावे की चीजों पर टूट पड़ती हैं . शहरी चकाचौंध में रच बस जाने की शौकीन ये आदिवासी युवतीयाँ अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को लिपिस्टक , नेलपालिश, पाऊडर, बिंदिया, क्रीम पर खर्च करती हैं . कभी पोण्डस का पाऊडर खरीदने वाली युवतीयाँ आजकल क्रीम  की मांग करने लगी है. साप्ताहिक बाजारो में अकसर देखने को मिलता है कि हर दुसरी – तीसरी दुकान नकली और मिलते – जुलते नाम और माल से भरी रहती है. नकली माल का इन लोगो के तन से लेकर मन तक बुरा असर पड़ा रहा है. सौंदर्य विशेषज्ञ जुही अग्रवाल कहती है कि बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारो में बिकने वाली इन्दौर मेड सौंदर्य क्रीम एवं अन्य सामग्री चेहरे से लेकर शरीर के विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालती है. घटिया किस्म की लिपीस्टीक से होठो पर दाग पड़ जाते है. कई बार तो यह देखने में आया हे कि चेहरो पर भी सफेद दाग दिखाई पडऩे लगते है. सुश्री जुही मानती है कि आदिवासी समाज की युवतियाँ अपने सौंदर्य पर आजकल कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी. आज के आदिवासी बालाए भले ही विश्व सुदंरी एश्वर्या राय को नहीं जानती हो पर वे अपने आप को एश्वर्या से कम भी नही समझती है. आज यही वजह है कि इन युवतियों के अपने रूप सौदंर्य के प्रति बढ़ते शौक ने उन्हे आज अपनी पारम्परीक वेशभुषा और संस्कृति से कोसो दूर कर दिया है.
बैतूल जिले के एक प्रमुख प्रेस फोटोग्राफर और पत्रकार हारून भाई के शब्दो में इन आदिवासी बालाओं का शौक फोटो  खिंचवाना और हफ्ते में एक दिन आस पड़ोस में पडऩे वाले साप्ताहिक बाजार के दिनों में अच्छे कपड़े पहन कर मद मस्त होकर नाचना – गाना होता है . इस दिन ए युवतियाँ खूब रूप श्रंगार करने के साथ – साथ अपनी सखी सहेली को उत्प्रेरित भी करती है . नए समाज और नई क्रांति का आदिवासी समाज पर काफी असर पड़ा है. आज भी उन्मुक्त सेक्स के मामले अन्य समाज से दो कदम आगे रहे इस समाज के परिवारों में सेक्स को लेकर कोई बंदिश नही है. परिवार की ओर से मिली छूट का आदिवासी समाज की लड़कियां अपनी जात के युवकों के साथ भरपूर फायदा उठाती हैं . यह एक कटू सत्य अपनी जगह काफी मायने रखता है कि इन युवतीयो के फोटोग्राफी के शौक के चलते कई घरो के चुल्हे जलते है.
कुछ साल पहले तक देशी काटन के लुगड़े और फड़की से अपने शरीर को ढ़कनी वाली युवतीयाँ अब अपने गांव के आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में अपने लिए ब्रा और पैन्टी की मांग करने लगी है. बैतूल जिले के विभिन्न साप्ताहिक बाजारो में कपड़े की दुकान लगाने वाले कन्हैया के अनुसार बाजारो में अब देशी सूती – काटन के लुगड़ो और फड़की के स्थान अब उन्हे पोलीस्टर की साडिय़ो के शौक ने घेर रखा है. आज यही वजह है कि गोंडवाना क्षेत्रो के साप्ताहिक बाजारो से सूती- काटन के कपड़ो की मांग कम होती जा रही है. अपने ऊपरी तन पर ओढऩे वाली फड़की के प्रति इन आदिवासी बालाओं की मांग में आई कमी के कारण इन फड़की को बनानें वाले कई छीपा जाति के लोग बेरोजगार हो गए है तथा उनका पुश्तैनी व्यवसाय भी लगभग बंद होने की कगार पर है. बैतूलबाजार के छीपा जाति के परमानंद दुनसुआ कहते है कि एक जमाना था जब हमारे घर के बुढ़े से लेकर बच्चे तब तक हर दिन कहीं न कही लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में आने वाली मांग की पूर्ति के लिए काम करके थक जाते थे लेकिन आज हमे अपने पुश्तैनी व्यवसाय के बंद होने की स्थिति में दुसरो के घरो पर काम करना पड़ रहा है
फिल्मी संस्कृति का इन आदिवासी आलाओं पर इतना जबरदस्त असर पड़ा है कि ए टाकीजो में फिल्मे देखने के बजाए आजकल अपने घरो के लिए वी.सी.डी. पर दिखने वाली फिल्मो की सी.डी. खरीदने लगी है. आजकल गांवो में भी हजार दो हजार में बिकने वाले सी.डी. प्लेयरो ने गांव के लोगो को टाकिजो से दूर कर रखा है. मुलताई की कृष्णा टाकिज के संचालक कहते है कि पहले हर रविवार एवं गुरूवार साप्ताहिक बाजारो के दिन हमारी टाकिजो में शहरी दर्शको के स्थान पर गांव के ग्रामिण लोग ज्यादा आते थे. इनमें आदिवासी युवतीयो की संख्या सबसे अधिक होती थी लेकिन अब तो हमें खाली टाकीज में भी मजबुरी वश शो करने पड़ रहें है. ग्रामिण क्षेत्रो में आदिवासी समाज में आए बदलाव पर शोध करने वाली अनुराधा के अनुसार घर में दो वक्त की रोटी को मोहताज इन आदिवासी युवतीयो को पश्चिमी स़स्कृति ने अपने आगोश में ले लिया है. वे मानती है कि जिनके शरीर पर पहनने के लिए ढंग के कपड़ें नही होते थे वे ही आजकल भड़किले कपड़ो को पहनने लगी है. आदिवासी समाज में आ रहे बदलवा का ही नतीजा है कि ए किसी के भी चक्कर में पड़ जाती है.आदिवासी महिलाओं के साथ होने वाले यौन प्रताडऩा सबंधी अत्याचार पर अधिवक्ता अजय दुबे की राय यह है कि न्यायालय तक आने वाले मामले की तह तक जाने के बाद यह कहा जा सकता है कि लोभ और लालच की शिकार बनने वाली युवतीयाँ अपने केस के फैसले के समय भी लोभ लालच का शिकार बन जाती है. पैसो के बढ़ती भूख और उन पैसो से केवल अपने रूप श्रंगार तथा एश्वर्या से कम न दिखने की चाहत ही इन आदिवासी युवतीयो के जीवन में अमूल चूल परिवर्तन ला रही है.  सेवानिवृत वनपाल दयाराम भोभाट के अनुसार मैने अपने वन विभाग की पूरी नौकरी इस समाज के बीच बिताई है इस कारण मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हँू कि इस समाज में आए बदलाव के पीछे गांव – गांव तक पहँुच चुकी टी.वी. और फिल्मी संस्कृति काफी हद तक जवाबदेह है. इन लोगो को फिर से उनकी संस्कृति के से जोडऩा होगा. अन्यथा हमें भी किताबों में ही पढऩे को मिलेगा कि आदिवासी ऐसे होते थे.
इति,

गांधी से लेकर नेहरू तक बिकाऊ हैं, बस खरीददार चाहिए
महापुरूषो की आड़ में चल रहा डिग्री डिप्लोमा का गोरखधंधा
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में इस समय कम्प्यूटर एज्युकेशन के नाम पर देश के महापुरूषो को बने को गोरखधंधा पुलिस और प्रशासन की मिली भगत से बडे पैमाने पर चल रहा हैं। कथित जाब दिलवाने का दंभ भरने वाले विभिन्न महाविद्यालयो एवं संस्थाने से मान्यता प्राप्त होने का लालच देकर  कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर संचालक द्वारा धोखाधड़ी किए जाने के दर्जनो मामले जनप्रकाश में आने के बाद दर्जनो नए  कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर खुल जाते हैं। बैतूल जिले की बात यदि हम छोड़ कर जिला मुख्यालय की बात करे तो जिला मुख्यालय पर इस समय सौ के लगभग  कम्प्यूटर एज्युकेशन  सेंटर चल रहे हैं। इन सेंटरो में गांधी , नेहरू, परिवार को बेचा जा रहा हैं वह भी खुले आम लेकिन कोई पुछने या कार्यवाही करने वाला नहीं हैं। राजनैतिक एवं प्रशासनिक संरक्षण के चलते बैतूल जिला मुख्यालय पर कुकुर मुत्ते की तरह ऊग आए कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटरो के द्वारा विभिन्न प्रकार के डिग्री डिप्लोमा पांच से पचास हजार रूपए में घर बैठे उपलब्ध करवा दिए जाते हैं। मजेदार बात तो यह हैं कि आपको कहीं और जाने की जरूरत भी नहीं है और घर बैठे आप डी सी ए पीजीडीसीए से लेकर कई प्रकार के मास्ट माइंड डिप्लोमा , डिग्री प्राप्त कर सकते हैं। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह हैं कि जिले में इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय इग्रो भोपाल से मात्र 3 , माखनलाल चतुर्वेदी विश्च विद्यालय से 4 , महेश योगी से 1 सेंटर को अधिकृत किया गया हैं लेकिन क्षेत्र में इन सबसे हट कर सौ होर्डिंग बैनर विभिन्न  कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटरो के लगे हुए रोजगार की तलाश में दर – दर की ठोकरे खा रहे युवक – युवतियों को ठगी का शिकार बना रहे हैं। जिले में इस समय नीफा से लेकर पीफा तक भारत सरकार की रोजगार ग्यारंटी योजना के तहत रोजगार देने की ग्यारंटी के लिए  20 हजार से लेकर 50 हजार रूपए तक वसूल रहे हैं। रोजगार के नाम पर इन्दौर , भोपाल जैसे महानगरो में तीन हजार रूपए मासिक भुगतान पर जाब तो देते हैं जहां पर काम करने के एक महिने के अंदर ही वहां से लोग तथाकथित सुन्योजित प्रताडना एवं मानसिक यातना के चलते भाग जाने को मजबुर हो जाते हैं। सबसे ज्यादा ऐसे लोगो पर आरोप लगे हैं जिन्होने रोजगा दिलवाने के नाम पर एक मोटी किस्त वसूलती हैं। जिला मुख्यालय पर हाल ही में कुछ पीडि़त छात्रों ने पुलिस और प्रशासन दोनों से शिकायत की है। जिसके चलते बैतूल एसडीएम संजीव श्रीवास्तव ने कम्प्यूटर सेंटर संचालक को एसडीएम कोर्ट में तलब किया। सेंटर के संचालक सभी तथाकथित दस्तावेजो के साथ और चला गया। कार्यवाही क्या हुई भगवान ही जाने। गुरूद्वारे के समीप पिछले दो साल से संचालित हो रहे डियू साफ्ट कम्प्यूटर एजुकेशन सेंटर द्वारा छात्र-छात्राओं को टेली, बेसिक, पीजीडीसीए, डीसीए आदि कोर्स करवाए जा रहे हैं। कोर्स के बाद जो डिप्लोमा दिया जा रहा है वह शासन की भर्तियों में मान्य नहीं किया जा रहा है। शिकायत करने वाली छात्रा हेमलता पंवार ने बताया कि उक्त संचालक द्वारा कहा गया था कि पढ़ाई करने के साथ-साथ चेन सिस्टम में एडमिशन कराएंगे तो आप लोगों को हर महीने तीन हजार रूपए मिलेंगे। इस तरह उसने करीब दो-ढ़ाई सौ एडमिशन सात-सात हजार रूपए के हिसाब से किए हैं लेकिन किसी को भी तीन हजार रूपए महीने नहीं दिए। हाल ही में रेलवे की भर्ती में सेंटर द्वारा दिया गया डिप्लोमा भी खारिज कर दिया गया। जब उन लोगों ने सेंटर संचालक से अपने पैसे वापस मांगें तो वह कहने लगा कि उन्हें माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय का डिप्लोमा दिलवा देगा जो सभी जगह मान्य है। उक्त छात्रा ने बताया कि उसके परिवार में चार लोगों ने यहां पर 21 हजार रूपए जमा किए थे। इसकी शिकायत गंज चौकी में भी एक महीने पहले की गई थी लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की है।  कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर के संचालक का तो यह आरोप हैं कि यदि मैं चोर हूं तो बाकी कौन से साहुकार हैं…? संचालक के अनुसार जिस तरह शहर में अन्य कम्प्यूटर सेंटर चल रहे हैं उसी तरह संचालित किया जा रहा है। इस पूरे प्रकरण में बताया गया कि जो दस्तावेज हैं उसके अनुसार  कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर को शासन से मान्यता नहीं है और ऐसी स्थिति में उसके सर्टिफिकेट किसी भी भर्ती में उपयोग ही नहीं होंगे। बैतूल जिले में कोई भी  कम्प्यूटर एज्युकेशन संचालक द्वारा अपने बोर्ड पर यह लिखा रहता हैं कि उसके सेंटर को मान्यता प्राप्त है। इधर पूरे प्रकरण में बैतूल जिले में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किसी भी सेंटर के खिलाफ जालसाजी या धोखाधड़ी की शिकायत नहीं की गई हैं। बैतूल जिला मुख्यालय पर बेव डिजाईनींग का कोर्स सिखाने वाले  कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर की संचालिका का कहना था कि उन्हे वेब पेज डिजाइनींग नहीं आती हैं…? उक्त कोर्स को सिखाने वाली मुम्बई में हैं। लोगो को भ्रमित करने के लिए लोग अपने बोर्ड पर क्या कुछ नहीं लिख लेते हैं। अनुभव प्रमाण पत्र देने वाले कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर यदि डिग्री – डिप्लोमा देने लगे हैं तो सबसे शर्मनाक बात होगी। जिले में ऐसे सेंटरो में बहुचर्चित नामों में जीटी , आइसीए , नीफा , जैसे कई सेंटरो पर कम्प्यूटर हार्ड वेयर एण्ड साफट वेयर का तथाकथित अधकचरा ज्ञान परोसा जा रहा हैं और बदले में मोटी रकम वसूली जा रही हैं। सबसे शर्मनाक स्थिति तो यह हैं कि ऐसे सेंटरो से पास लड़को को मोनीटर का और सीपीयू का आंतरीक ज्ञान तक नहीं होता हैं। कई बार ऐसे लड़के – लड़किया जो कि इंजीनियर बनने के चक्कर में घनचक्कर बन जाते हैं वे न तो घर के रहते हैं और न घाट के…..? बैतूल जिले के युवक – युवतियों को ठगी के शिकार बनने से बचाने का दंभ भरने वाले दुसरे तथाकथित मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर उन्हे सही डिग्री – डिप्लोमा देने के नाम पर लूटने से बाज नहीं आते हैं। बैतूल जिले में  कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर के नाम पर लम्बी चौड़ी दुकान लगाने वाले सेंटर संचालको की कुछ पत्रकारो से भी यारी – दोस्ती हैं तो कुछ पत्रकार भी बने बैठे हैं ताकि उनकी आड़ में दुकानदारी चलती रहे। बैतूल जिले की यदि हम बात करे तो जिले के हर प्रमुख शहरो में कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर खुलते जा रहे हैं। सारनी में तो बकायदा ऐसे फर्जी विद्यालयो एवं संस्थान के संचालक के खिलाफ मुकदमा तक दर्ज हुआ लेकिन अन्य लोगो पर कार्यवाही के नाम पर पुलिस ने जम कर वसूली कर ली। बैतूल जिला मुख्यालय के बारे में बकायदा यह प्रमाण के साथ कहा जाता हैं कि एक नामचीन कम्प्यूटर एज्युकेशन सेंटर के संचालक द्वारा पुलिस और प्रशासन के अलावा जिला मुख्यालय के कुछ चुनिंदा पत्रकारो को साल भर समाचार पत्रों में विज्ञापन छापने एवं कम्प्यूटर एज्युकेशन के खिलाफ किसी भी प्रकार के समाचार न छापने के नाम पर वसूली करके बाटी जाती हैं। ऐसे दलालो में वे लोग शामिल हैं जो कि खुद पिछले छै सात सालों से कम्प्यूटर एज्युकेशन के नाम फर्जीवाड़ा करते चले आ रहे हैं। एक छोटे से कमरे में दिन भर और देर रात तक कम्प्यूटर एज्युकेशन की क्लास की आड़ में लोगो को मात्र दो व्यक्ति द्वारा ज्ञान बाटा जाता हैं बाकी उन्हे पुस्तको से पढ़ कर समझ लेने की सलाह देकर परीक्षा में अव्वल नम्बर से पास करवा देने की भी ग्यारंटी तक दी जाती हैं। बैतूल जिले में पता नहीं तक उक्त कम्प्यूटर एज्युकेशन की आड़ में जालसाजी का गोरखधंधा चलता रहेगा।

पाकीस्तान की दाऊद मेनन की डी कंपनी तो नहीं कर रही हैं
कपीलधारा के कूप निमार्ण कार्य के लिए ब्लास्टींग की सप्लाई
बैतूल, रामकिशोर पंवार: पाकीस्तान में छुप कर बैठा दाऊद की डी कंपनी मध्यप्रदेश के पंचायती राज में बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो में कपीलधारा कूप योजना के तहत ब्लास्टींग एवं सुरंग के लिए बारूद , डिटोनेटर्स , जिलेटीन , ब्लास्टींग मशीन की सप्लाई करके करोड़ो रूपए कमा कर ले गई और किसी को पता भी नहीं चला। कपीलधारा कूप योजना के इस सनसनी खेज मामले का खुलासा बैतूल जिले के एक मात्र वेब न्यूज एण्ड व्यू पोर्टल  यूएफटी न्यूज डाट काम द्वारा किया गया हैं। विकीलीक्स की तरह सनसनी खेज खुलासे में बताया गया कि बैतूल के एक जागरूक पत्रकार द्वारा दिसम्बर माह में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी को चार माह बाद भी बैतूल जिले की किसी भी ग्राम पंचायत द्वारा आवेदनक कत्र्ता को नहीं दी गई जबकि जिला मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं जनपद मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा आवेदक को नि:शुल्क जानकारी उपलब्ध करवाने के विभागीय फरमान जारी होने के बाद भी जिले के सचिवो के सर पर जू तक नहीं रेंगी हैं। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य पड़ौसी राज्य महाराष्ट्र से लगे बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो में 17 हजार 147 कपीलधारा के कूपो के निमार्ण कार्य में उपयोग में लाई गई ब्लास्टींग सामग्री के कोई प्रमाणिक बिल किसी भी ग्राम पंचायत में मौजूद नहीं हैं। कपीलधारा के प्रत्येक कूप में ग्राम पंचायत द्वारा पांच से दस से बारह हजार रूपए ब्लास्टींग के नाम पर खर्च होना बताया हैं। बैतूल जिले में कपीलधारा के कूपो की ब्लास्टींग की जांच को लेकर सपा के प्रवक्ता अनिल सोनी ने तो बकायदा राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान भोपाल में शिकायत तक दर्ज करवाई हैं लेकिन बैतूल जिले के सचिवो का गठबंधन इतना मजबुत हैं कि कोई भी माई का लाल उनसे बारूद के मामले में किसी भी प्रकार की पुछताछ नहीं कर सकता। माफिसा डान की डी कपंनी एवं तालीबान द्वारा बैतूल जिले में भेजी गई ब्लास्टींग सामग्री के फर्जी बिलो में टीन नम्बर तथा कई में विस्फोटक सामग्री के लायसेंस तक का जिक्र नहीं हैं। जिसके पास फटाखे का भी लायसेंस नहीं है वह व्यक्ति पूरे जिले भर में कपीलधारा कूप योजना का ब्लास्टींग सप्लायर बना बैठा हुआ हैं। कई ग्राम पंचायतो में तो सचिवो ने अपने चचेरे – ममेरे भाई – भतीजो के नाम पर ही चेक जारी कर दिये हैं।ण्क जानकारी के अनुसार बैतूल जिले में बीते दो वर्षो में 33 हजार मैट्रिक टन विस्फोटक सामग्री की आपूर्ति की गई लेकिन ग्राम पंचायतो में 63 हजार मैंट्रिक टन विस्फोटक सामग्री की सप्लाई हो चुकी हैं। बैतूल जिले में पाथाखेड़ा की कोयला खदानो एवं क्रेशर संचालको की पत्थर की खदानो के लिए उसी 33 हजार मैट्रिक टन विस्फोटक सामग्री में से सप्लाई की गई। जिले में विस्फोटक सामग्री गोदिंया महाराष्ट्र से होती हैं लेकिन दो नम्बर की सामग्री का सप्लाई भी दो नम्बर तरीके से हो रही हैं। कपीलधारा को लेकर सवाल यूं नहीं उठते दरअसल पूरे मामले में तब अचानक भूचाल आ गया जब जिले की जनपदो एवं ग्राम पंचायतो ने ब्लास्टींग को लेकर टेण्डर प्रक्रिया शुरू कर दी। इसके पहले कभी भी टेण्डर तो दूर किसी से भी कोटेशन तक नहीं मंगवाये गए थे। जिला कलैक्टर कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार बैतूल जिले में जिन ब्लास्टींग के ठेकेदारो के लायसेंस है उनके पास उतनी बारूद आई ही नहीं है कि वे फर्जी सप्लाई के बिल लगा सके। ग्राम पंचायत के सचिवो एवं जनपद पंचायतो के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों की मिलीभगत से बिना नियम के , बिना पंजीयन के , बिना टीन नम्बर के बिलो पर करोड़ो रूपयों के बिलो का भुगतान हो गया। मजेदार बात तो यह रही कि बिल भी ऐसे लोगो को मिला जिसके पास माचिस से लेकर पटाखा तक का लायसेंस तक नहीं हैं। बैतूल जिले में कपीलधारा कूपो की तथाकथित सफलता की कहानी बताने वाला जिला पंचायत का मीडिया विभाग भी विस्फोटक सामग्री की सप्लाई एवं उसके बिलो के भुगतान के आकड़ो की कारगुजारी पर अपनी ओर से किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से बच रहा हैं। इधर सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पूरे मामले को उजागर करने वाले जागरूक पत्रकार द्वारा अपने आवेदन पर जानकारी न मिलने पर जिला पंचायत बैतूल में पदस्थ लोक सूचना प्रथम अपीलीय अधिकारी श्री चौहान भी सचिवो को जानकारी देने के लिए बाध्य करने के बजाय आवेदक को ही राज्य सूचना आयोग का रास्ता दिखा रहे हैं क्योकि उन्हे मालूम हैं कि राज्य सूचना आयोग में पांच हजार से अधिक मामले विचाराधीण हैं। ऐसे में साल दो साल के लिए बारूद कांड ठंडे बस्ते में पड़ सकता हैं। मध्यप्रदेश के इस आदिवासी बाहुल्य जिले की कुल आबादी 13 लाख 95 हजार 175 है।  इन आकडो की सच्चाई को जानने के लिए कपिलधारा योजना के तहत खुदवाये गये कूपो के कथित निमार्ण कार्य में बडे पैमाने पर भ्रष्ट्राचार एवं निमार्ण कार्य की गुणवत्ता के चलते बासपानी की एक युवती की जान तब चली गई जब एक बार धंस चुके कूपो को पुन: बनवाया जा रहा था। बासपुर ग्राम पंचायत द्वारा बीते वर्ष 2008 में ग्राम पंचायत के एक कपिलधारा योजना के लाभार्थी रमेश का कुआ पिछली बरसात के बाद पूरी तरह धस गया। उक्त कूप को बिना स्वीकृति के पुरानी तीथी में निमार्णधीन दर्शा कर उसका निमार्ण कार्य किया जा रहा था लेकिन ग्राम पंचायत के एक पंच तुलसीराम सहित 5 अन्य मजदुर गंभीर रूप से घायल हो गये तथा एक युवती सनिया की जान चली गई। कपीलधारा के कूप के धसक जाने से अपनी जान गंवा चुकी सनिया को उसके काम की मजदुरी भी पूरी नहीं मिल सकी और वह कपिलधारा योजना के तहत निमार्णधीन घटिया कार्यो की बेदी पर चढा दी गई।  बैतूल जिले में जिला मुख्यालय पर जिले की किसी न किसी ग्राम पंचायत में कपिलधारा योजना के तहत निमार्णधीन कूपो के निमार्ण कार्य एवं मजदुरी का मामला लेकर दर्जनो ग्रामिणो का जमावड़ा आम बात है। बैतूल जिले के जिन कपिलधारा के कूपो को किसानो के लिए वरदान बताया जा रहा है उन कूपो के निमार्ण कार्य में जिन लोगो को लाभार्थी दर्शाया गया है उनमें से कई ऐसे हितग्राही है जिनके पुराने कूपो को नया बता कर कूपो के लिए स्वीकृत राशी को सरपंच – सचिव – इंजीनियर एवं सबंधित योजना के अधिकारी आपस में बाट कर खा गये। हितग्राही को सरकारी कागजो पर उसके कूप के बदले में कुल स्वीकृत राशी का दस प्रतिशत भी नहीं मिल पाया है। बैतूल जिले के सैकडो हितग्राहियो के नाम ऊंगली पर गिनाये जा सकते है जिनके पुराने कूपो को सरकारी कागजो में नया बता कर फजी रोजगार उन जाबकाड़ो में दर्शाया गया है जिन्हे साल में निर्धारित दिवस का रोजगार तक वास्तवीक रूप में नहीं मिल सका है।
बैतूल जिले की अधिकांश ग्राम पंचायतो के सरपंच एवं सचिव कल तक भले ही सड़क छाप थे लेकिन पंचायती राज की मालामाल लाटरी के हाथ लगते ही वे अब टाटा इंडिका में घुमने लगे है। भाजपा शासन काल में शुरू की गई कपिल धारा कूप निमार्ण योजना को हर साल बरसात में श्राप लगता है लेकिन अब तो गर्मी और कड़ाके ठंड में भी कूपो के धसंने की घटनाये सुनने को मिलने लगी है। केन्द्र सरकार द्वारा दिये गये रोजगार ग्यारंटी योजना के तहत दिये गये अनुदान से मध्यप्रदेश में शुरू की गई कपिल कूप योजना के तहत बैतूल जिले की दस जनपदो एवं 558 ग्राम पंचायतो में बनने वाले कूपे में से अधिकांश पहली ही बरसात में धंसक चुके है। राज्य शासन द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के ग्रामिण किसानो की 5 एकड़ भूमि पर 91 हजार रूपये की लागत से खुदवाये जाने वाले कुओं के लिए बैतूल जिला पंचायत एनआरजीपी योजना के तहत मोटे तौर पर देखा जाये तो 91 हजार रूपये के हिसाब से करोड़ो रूपयो का अनुदान केन्द्र सरकार से मिला। ग्राम पंचायत स्तर पर सरपंच एवं सचिव को कपिल धारा कूप निमार्ण की एजेंसी नियुक्त कर जिला पंचायत ने ग्राम के सरंपचो एवं सचिवो की बदहाली को दूर कर उन्हे मालामाल कर दिया है। एक – एक ग्राम पंचायत में 20 से 25 से कपिल धारा के कूपो का निमार्ण कार्य करवाया गया। 24 हजार 75 हजार रूपये जिस भी ग्राम पंचायत को मिले है उन ग्राम पंचायतो के सरपंचो एवं सचिवो ने एनआरजीपी योजना के तहत कार्य करवाने के बजाय कई कुओं का निमार्ण कार्य जेसीबी मशीनो से ही करवाया डाला। आनन – फानन कहीं सरकारी योजना की राशी लेप्स न हो जाये इसलिए सरपंचो ने बैतूल जिले में 545 ग्राम पंचायतो में इस वर्ष 2 हजार 477 कुओं का निमार्ण कार्य पूर्ण बता कर अपने खाते में आई राशी को निकाल कर उसे खर्च कर डाली। हर रोज जिला मुख्यालय पर कोई न कोई ग्राम पंचायत से दर्जनो मजदुर अपनी कपिल धारा योजना के तहत कूपो के निमार्ण की मजदुरी का रोना लेकर आता जा रहा है। अभी तक जिला प्रशासन के पास सरकारी रिकार्ड में दर्ज के अनुसार 337 ग्राम पंचायतो की शिकायते उन्हे अलग – अगल माध्यमो से मिली है। इन शिकायतो में मुख्यमंत्री से लेकर जिला कलैक्टर का जनता तथा सासंद का दरबार भी शामिल है। आये दिन किसी न किसी ग्राम पंचायत की कपिल धारा कूप निमार्ण योजना में भ्रष्टïचार धारा के बहने से प्रभावित लोगो की त्रासदी की $खबरे पढऩें को मिल रही है। अभी तक 9 हजार 411 कुओं  का निमार्ण कार्य हो रहा है जिसमें से 6 हजार 934 कुओं के मालिको का कहना है कि उनके खेतो में खुदवाये गये कुएं इस बरसात में पूरी तरह धंस जायेगें। मई 2008 तक की स्थिति में जिन कुओं का निमार्ण हो रहा है उनमें से अधिकांश के मालिको ने आकर अपनी मनोव्यथा जिला कलैक्टर को व्यक्त कर चुके है। सबसे ज्यादा चौकान्ने वाली जानकारी तो यह सामने आई है कि बैतूल जिले के अधिकांश सरपंचो ने अपने नाते -रिश्तेदारो के नामों पर कपिल धारा के कुओं का निमार्ण कार्य स्वीकृत करवाने के साथ – साथ पुराने कुओं को नया बता कर उसकी निमार्ण राशी हड़प डाली। जिले के कई गांवो में तो इन पंक्तियो के लिखे जाने तक पहली बरसात के पहले चरण मे ही कई कुओं के धसक जाने की सूचनायें ग्रामिणो द्घारा जिला पंचायत से लेकर कलैक्टर कार्यालय तक पहँुचाई जा रही है। हाथो में आवेदन लेकर कुओं के धसक जाने , कुओं के निमार्ण एवं स्वीकृति में पक्षपात पूर्ण तरीका बरतने तथा कुओं के निमार्ण कार्य लगे मजदुरो को समय पर मजदुरी नहीं मिलने की शिकायते लेकर रोज किसी न किसी गांव का समुह नेताओं और अधिकारियों के आगे पीछे घुमता दिखाई पड़ ही जाता है। ग्रामिण क्षेत्रो में खुदवाये गये कपिल धारा के कुओं को डबल रींग की जुड़ाई की जाना है लेकिन कुओं की बांधने के लिए आवश्क्य फाड़ी के पत्थरो के प्रभाव नदी नालो के बोल्डरो से ही काम करवा कर इति श्री कर ली जा रही है। कुओं की बंधाई का काम करने वाले कारीगरो की कमी के चलते भी कई कुओं का निमार्ण तो हो गया लेकिन उसकी चौड़ाई और गहराई निर्धारीत मापदण्ड पर खरी न उतरने के बाद भी सरपंच एवं सचिवो ने सारी रकम का बैंको से आहरण कर सारा का सारा माल ह$जम कर लिया। जिले में एनआरजीपी योजना का सबसे बड़ा भ्रष्टï्राचार का केन्द्र बना है कपिल धारा का कुआं निमार्ण कार्य जिसमें सरपंच और सचिव से लेकर जिला पंचायत तक के अधिकारी – कर्मचारी जमकर माल सूतने में लगे हुये है। भीमपुर जनपद के ग्राम बोरकुण्ड के सुखा वल्द लाखा जी कामडवा वल्द हीरा जी  तुलसी जौजे दयाराम , रमा जौजे सोमा , नवलू वल्द जीवन , तुलसीराम की मां श्रीमति बायलो बाई जौजे बाबूलाल , चम्पालाल वल्द मन्नू के कुओं का निमार्ण कार्य तो हुआ लेकिन सभी इस बरसात में धंसक गये। बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलो मीटर की दूरी पर स्थित दुरस्थ आदिवासी ग्राम पंचायत बोरकुण्ड के लगभग सौ सवा सौ ग्रामिणो ने बैतूल जिला मुख्यालय पर आकर में आकर दर्जनो आवेदन पत्र जहां – तहां देकर बताया कि ग्राम पंचायत में इस सत्र में बने सभी 24 कुओं के निमार्ण कार्य की उन्हे आज दिनांक तक मजदुरी नहीं मिली। बैतूल जिले की साई खण्डारा ग्राम पंचायत निवासी रमेश कुमरे के परतापुर ग्राम पंचायत में बनने वाले कपिलधारा के कुओं का निमार्ण बीते वर्ष में किया गया। जिस कुये का निमार्ण वर्ष 2007 में पूर्ण बताया गया जिसकी लागत 44 हजार आंकी गई उस कुये का निमार्ण पूर्ण भी नहीं हो पाया और बीते वर्ष बरसात में धंस गया। दो साल से बन रहे इस कुये का इन पंक्तियो के लिखे जाने तक बंधाई का काम चल रहा है लेकिन न तो कुआं पूर्ण से बंध पाया है और न उसकी निर्धारित मापदण्ड अनुरूप खुदाई हो पाई है। इस बार भी बरसात में इस कुये के धसकने की संभावनायें दिखाई दे रही है। रमेश कुमरे को यह तक पता नहीं कि उसके कुआ निमार्ण के लिए ग्राम पंचायत को कितनी राशी स्वीकृत की गई है तथा पंचायत ने अभी तक कितने रूपयो का बैंक से आहरण किया है। ग्राम पंचायत के कपिलधारा के कुओ के निमार्ण कार्य में किसी भी प्रकार की ठेकेदारी वर्जित रहने के बाद भी कुओं की बंधाई का काम ठेके पर चल रहा है।
ग्राम पंचायत झीटापाटी के पूर्व सरपंच जौहरी वाडिया के अनुसार ग्राम पंचायत झीटापाटी में 32 कुओ का निमार्ण कार्य स्वीकृत हुआ है लेकिन पूर्व सरपंच ने कुओ के निमार्ण के आई राशी का उपयोग अन्य कार्यो में कर लिया। गांव के ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस ग्राम पंचायत में मात्र 16 ही कुओ का निमार्ण कार्य हुआ। पूर्व सरपंच जौहरी वाडिया और सचिव गुलाब राव पण्डागरे ने इन 16 कुओ के निमार्ण कार्य में मात्र 6 लाख रूपये की राशी खर्च कर शेष राशी का आपसी बटवारा कर लिया। आर्दश ग्राम पंचायत कही जाने वाली आमला जनपद की इस ग्राम पंचायत में आज भी 16 कुओ का कोई अता – पता नहीं है। पहाड़ी क्षेत्र की पत्थरो की चटटïनो की खदानो का यह क्षेत्र जहां पर 16 कुओ जिस मापदण्ड पर खुदने चाहिये थे नहीं खुदे और जनपद से लेकर सरपंच तक ने 16 कुओ की खुदाई सरकारी रिकार्ड में होना बता कर पूरे पैसे खर्च कर डाले। सवाल यह उठता है कि जहाँ पर पत्थरो की चटटनो को तोडऩे के लिए बारूद और डिटोनेटर्स का उपयोग करना पड़ता है वहां पर कुओ का निमार्ण कार्य उसकी चौड़ाई – गहराई अनरूप कैसे संभव हो गया..? कई ग्रामवासियो का तो यहां तक कहना है कि सरपंच और सचिव ने उनके कुओ की बंधाई इसलिए नहीं करवाई क्योकि पहाड़ी पत्थरो की चटटनी क्षेत्र के है इसलिए इनके धसकने के कोई चांस नहीं है। भले ही इन सभी कुओ की बंधाई सीमेंट और लोहे से न हुई हो पर बिल तो सरकारी रिकार्ड में सभी के लगे हुये है। इस समय पूरे जिले में पहली ही रिमझीम बरसात से कुओं का धसकना जारी है साथ ही अपने कुओ पर उनके परिजनो द्घारा किये गये कार्य की मजदुरी तक उन्हे नहीं मिली। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार की अति महत्वाकांक्षी कपिलधारा कूप योजना का एक कडवा सच भी सामने आया है कि प्रत्येक कूपो में उपयोग में लाई गई विस्फोटक सामग्री का उपयोग अब सी बी आई के लिए अनुसंधान का केन्द्र बना हुआ है। जिले की 558 पंचायतो में से आधे से अधिक ग्राम पंचायतो द्वारा कूपो के निमार्ण के लिए जिस विस्फोटक सामग्री उपयोगकत्र्ता एवं सप्लायर को भुगतान किया गया है वह राजस्थान का मूल निवासी है तथा वर्तमान समय में उसका बैतूल जिले के खोमई गांव में मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र की सीमा पर बारूद संग्रहण भंडार भी है। जिले की प्रत्येक ग्राम पंचायतो ने औसतन 20 कपिलधारा योजना के कूपो के लिए पांच हजार रूपये प्रति कूप के हिसाब से जिस शेखावत परिवार को भुगतान किया गया है उसने स्वंय को बचाने एवं राजनैतिक संरक्षण आने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। कभी वह अपने आप को भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरोसिंह शेखावत का तो कभी वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभादेवी सिंह शेखावत के करीबी बता कर बैतूल जिले में बडे पैमाने पर फर्जी एवं अवैध रूप से बारूद – जिलेटीन – डिटोनेटर्स – अन्य विस्फोटक सामग्री गोरखधंधा कर रहा है। बैतूल जिले के भैसदेही – आठनेर – भीमपुर – मुलताई – बैतूल के भाजपा  नेताओं के संरक्षण में अभी तक सैकड़ो ट्रको की सप्लाई वह जिले की सैकड़ो ग्राम पंचायतो के हजारो कपिलधारा योजना के कूपो के लिए कर चुका यह सप्लायर को उतनी मात्रा में सपलाई हुई नहीं जितनी की वह खपत का ग्राम पंचायतो से भुगतान पा चुका है। जबसे सागर से लापता हुये बारूद के ट्रको का मामला सामने आया तबसे बैतूल जिले का सबसे बड़ा विस्फोटक सप्लायर एवं उपयोगकत्र्ता खोमई का शेखावत परिवार भाजपा नेताओं के संरक्षण में है। बैतूल जिले में अभी तक उपयोग में लाई गई विस्फोटक सामग्री की खफत आवक से 70 गुण ज्यादा बताई जा रही है। बैतूल जिले में जिन लोगो के पास विस्फोटक सामग्री के संग्रहण एवं उपयोग के लायसेंस एवं पंजीयन प्रमाण पत्र है उनमें से मात्र दस प्रतिशत लोगो के लिए बिल ग्राम पंचायतो में लगे है शेष सभी 90 प्रतिशत से अधिक के बिल खोमई – गुदगांव के बब्बू शेखावत की कपंनी के लगे हुये है। ग्रामिणो का सीधा आरोप है कि महिला अशिक्षित एवं आदिवासी होने के कारण उसका लड़का ही गांव की सरपंची करता रहता है।

बैतूल जिले की ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत में चोर – चोर मौसेरे भाई
मनरेगा बनी काली कमाई का जरीया: करोड़ो की रिक्वरी बाकी
बैतूल, रामकिशोर पंवार: सुप्रीम कोर्ट जांच का निर्देश करे या सीबीआई करे जांच नतीजा सिर्फ यही निकलना हैं कि पूरी मनरेगा ही भ्रष्ट्राचार की गंगा बन चुकी हैं। बैतूल जिले की हर दुसरी ग्राम पंचायत की जांच होने के बाद भ्रष्ट्राचार सिद्ध हो जाने के बाद भी सरपंच से लेकर सचिव तक साफ बच निकल जाते है क्योकि पूरी ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक में चेार – चोर मौसेरे भाई बन चुके हैं। बैतूल जिले की हर दुसरी ग्राम पंचायत पर कम से कम 4 लाख और अधिक से अधिक 40 लाख की रिक्वरी होना हैं लेकिन आज तक किसी के भी गिरेबान में किसी ने झांकने या उसे पकड़ कर जेल में डालने की कोशिस तक नहीं हुई है। सबसे आश्चर्य जनक तथ्य तो यह हैं कि जांच के बहाने भोपाल से लेकर दिल्ली तक के अधिकारी कर्मचारी ,एनजीओ बैतूल जिले की ग्राम पंचायत आते हैं लेकिन सुरा और सुन्दरी के चक्कर में क्लीन चीट देकर चले जाते हैं। जिले में 245 ग्राम पंचायतो के सचिवो को वर्ष 2005 से लेकर 15 मार्च 2011 सस्पैंड करने के बाद बहाल किया जा चुका हैं। सवा सौ से अधिक ऐसे सचिव हैं जिनके पास दो से अधिक ग्राम पंचायतो के प्रभार हैं। स्थिति तो बैतूल जिले की यह हैं कि जिले का पूरा पंचायती राज अटैचमेंट पर चल रहा हैं। इंजीनियर से लेकर मुख्य कार्यपालन अधिकारी और क्लर्क से लेकर चपरासी तक दुसरे विभाग से अटैचमेंट पर आकर गुलाब जामुन खा रहे हैं। जिले की स्थिति यह हैं कि जिले के अधिकांश इंजीनियरों पर गंभीर भ्रष्ट्राचार के मामले तक चल रहे हैं लेकिन पंचायती राज में अंधेर नगरी चौपट राजा का खेल चल रहा हैं। सबसे अधिक मनरेगा की निमार्ण एजेंसी आरइएस भी भ्रष्ट्रचार की अडड बनी हुई हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष से लेकर ग्राम पंचायत तक के सरपंच को अच्छी तरह मालूम हैं कौन कहां पर क्या खेल कर रहा हैं लेकिन सब एक दुसरे को डरा धमका कर माल कमाने में लगे हुए हैं। आइएस के कार्यपालन यंत्री आरएल मेघवाल से लेकर प्रभारी कार्यपानल यंत्री एस के वानिया तक सर से लेकर पांव तक भ्रष्टाचार के गर्त में समा चुके हैं। बैतूल जिले में पंचायत एवं आरइएस में पोस्टींग के लिए बोली लगती हैं। यही कारण हैं कि जिले में सब इंजीनियर से लेकर एसडीओ एवं कार्यपान यंत्री तक बरसो से बैतूल जिले में अंगद के पंाव की तरह जमे हुए हैं। ताजा मामला काफी चौकान्ने वाला हैं। बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी ब्लाक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सरदार त्रिलोक सिंह के द्वारा की गई शिकायत के अनुसार घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के अंतर्गत वर्ष 2007 में पुनर्वास क्षेत्र चोपना में मनरेगा के तहत चारगांव से खकरा कोयलारी तक 2.5 किमी लंबा ग्रेवल मार्ग 19.54 लाख में और महेंद्रगढ़ से रतनपुर तक 2.5 किमी लंबा ग्रेवल मार्ग 19.72 लाख रूपए में निर्माण एजेंसी आरईएस ने पूर्ण होना बताया। इस मामले में लगातार दो वर्ष तक घोड़ाडोंगरी के त्रिलोक सिंह खनूजा ने जिला स्तर पर सड़कों के नाम पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाते हुए बिंदुवार शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने लोकायुक्त भोपाल को पूरे मामले की शिकायत की। जिसमें लोकायुक्त द्वारा कलेक्टर बैतूल से 12 अप्रैल 2010 को पूरे मामले की जांच कर प्रतिवेदन मांगा। इस मामले में कलेक्टर ने डिप्टी कलेक्टर प्रियंका पालीवाल के नेतृत्व में जांच दल बनाया। जिसमें जिला पंचायत के एपीओ शरद जैन, जलसंसाधन विभाग के पीएन गौर और पीडब्ल्यूडी विभाग के कार्यपालन यंत्री को तकनीकी अधिकारी के रूप में शामिल किया गया। इस दल ने मस्टर रोल, बाउचर और एमबी के आधार पर 19 मई 2010 तथा 20 जुलाई 2010 को मौका स्थल जाकर जांच की। इसके बाद 28 अगस्त को अपनी जांच रिपोर्ट जिला प्रशासन को सौंप दी। इस बहुचर्चित जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा था कि शिकायत पत्र में अंकित सभी बिंदुओं पर शिकायत प्रथम दृष्टया सही पाई गई है। जांच में पाया गया कि करीब 40 लाख रूपए की लागत से निर्मित उक्त मार्ग निर्माण में फर्जी मस्टर रोल एवं एमबी तैयार कर शासन की राशि का गबन किया जाना प्रथम दृष्टया प्रमाणित होता है। इस जांच रिपोर्ट में तत्कालीन आरईएस के कार्यपालन यंत्री पर अंगुलियां उठ रही थीं। जांच के उपरांत दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों एवं ठेकेदार पर कोई कार्यवाही होती अचानक पूरी जांच की रिर्पोट का मानचित्र ही बदल गया। पूरी जांच रिर्पोट को अचानक दरकिनार कर उसे पूरी तरह खारिज करते हुए एक नई जांच शुरू हो गई। उक्त जांच बैतूल के एडीएम योगेंद्र सिंह के नेतृत्व में कार्य को मूर्त रूप देती उसके पहले ही जांच के लिए गठित जांच दल कुंभकरणी निंद्रा में चला गया। पांच महीने गुजरने के बाद भी जांच दल अपनी कुंभकरणी निंद्रा से नहीं जाग सका हैं। जिसके चलते जांच दल दो कदम आगे तक नही चल सका और उसे लकवा मार गया। कांग्रेस नेता द्वारा जन प्रकाश में लाया गया उक्त मामला अपने आप में हैरान एवं परेशान कर देने वाला हैं क्योकि जिस तथाकथित अधिकारी की अनुशंसा पर पूर्व में सिद्ध पाई गई जांच रिर्पोट को खारिज किया गया था वह स्वयं कहीं न कहीं इस मामले में जिम्मेदार था। कांग्रेस के नेता श्री त्रिलोक सिंह खनुजा का यह आरोप हैं कि जांच रिपोर्ट बिल्कुल सही थी और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होना चाहिए थी, लेकिन अचानक ही एक नया जांच दल बना दिया और मामला पांच महीने से ठंडे बस्ते में डाल दिया है। बताया जाता हैं कि मार्च 2007 में स्वीकृत इन दोनों मार्गो में 19.54 लाख और 19.72 लाख खर्च किया जाकर अभिलेख में कार्य पूर्ण बताया जा रहा है, लेकिन आज तक सीसी जारी नहीं हुई है जो कि कार्यपालन यंत्री आरईएस की कार्यप्रणाली को संदिग्ध बनाती है। चारगांव से खखरा कोयलारी वाले मार्ग में रेलवे फाटक से खखरा कोयलारी तक 200 मीटर सड़क का काम पूर्व में पंचायत द्वारा कराया गया। जिसमें निर्माण एजेंसी ने बिना काम किए फर्जी देयक व मस्टर रोल के माध्यम से 1.54 लाख का गबन स्पष्टता पाया गया।महेंद्रगढ़ से रतनपुर मार्ग में निर्माण एजेंसी द्वारा तकनीकी स्वीकृति के मापदंडों के विपरित जाकर 400 मीटर मार्ग बनाया गया। जिसमें तीन लाख रूपए की राशि वसूली योग है।उक्त दोनों मार्गो के निर्माण में मस्टर रोल और जॉब कार्ड गलत रूप से भरे पाए गए। लगभग 25 मजदूर ?से भी अंकित है जिन्होंने ने कभी मजदूरी काम नहीं किया और भुगतान भी नहीं लिया।उक्त दोनों मार्ग के निर्माण में संबंधित एमबी में अंकित माप से संबंधित स्थल पर कोई भी खंती मौका स्थल पर उपलब्ध नहीं है। संपूर्ण एमबी फर्जी तरीके से बिना मौका स्थिति पर कार्य कराए भरी गई है।उक्त दोनों मार्ग निर्माण में मुरम की गहराई औसत दस सेंटीमीटर पाई गई। जबकि निर्घारित मापदंड एवं टीएस के अनुसार 15 सेंटीमीटर गहराई होना चाहिए थी, जो कि बहुत कम है।जंगल सफाई के नाम पर चारगांव सड़क पर 21 हजार 270 रूपए एवं महेंद्रगढ़ मार्ग पर 42 हजार 570 रूपए खर्च एमबी में अंकित किया गया है जो कि अनावश्य है। अत: यह राशि वसूलने योग है।क्त दोनों मार्ग पर ग्राम पंचायत द्वारा भी मार्ग निर्माण कराया गया था। इस प्रकार आरईएस द्वारा मात्र मुरम डालकर बिना पानी के मात्र एक बार रोलर चलाकर मार्ग का निर्माण किया जाना पाया गया। पूरे मामले में तब और भी आश्चर्यचकित होना पड़ जाता हैं जब पूरी निमार्ण एजेंसी और घोड़ाडोंगरी की भाजपा का पूर्व ससंदीय सचिव एवं वर्तमान भाजपा विधायक श्रीमति गीता उइके से निकटता बता कर पूरी जांच को ही प्रभावित करने के लिए बकायदा भोपाल से तथाकथित फोन आता हैं और पूरा जिला प्रशासन हरकत में आकर आनन – फानन में पूरी जांच रिर्पोट को रदद्ी की टोकड़ी में डाल देता हैं जिसे बैतूल जिले की बहुचर्चित एसडीएम सुश्री प्रियंका पालीवार द्वारा बिन्दुवार जांच कर शिकायत की परत – दर परत खोल कर पूरी शिकायत को सही साबित कर दी गई। इन सबसे हट कर एक मामला जिला पंचायत का भी सामने आता हैं जिसके अनुसार मनरेगा के तहत होने वाले कार्यो में भारी भ्रष्ट्राचार के आरोप कोई विपक्षी दल के नेता न लगा कर जिला पंचायत की एक सत्ताधारी दल की सदस्या ने लगाते हुए अपनी ही सरकार के मनरेगा के कार्यो को लेकर मची धांधली पर सवाल उठा डाले। शाहपुर एवं घोडड़ोंगरी जनपद की कुछ ग्राम पंचायतो के निमार्ण कार्यो पर भी सवालिया निशान उठा कर अधिकारियों की फजीहत को बढ़ा डाला।
इधर ग्राम पंचायतो का आडिट करने वाली कम्पनी ने करीब 16 आपत्तियां अपनी आडिट रिपोर्ट में लगाई है। वर्ष 2009-10 के लिए किए गए इस आडिट में यह भी कहा गया है कि इस प्रतिवेदन में उल्लेखित तुलन पत्रक, आय-व्यय पत्रक एवं प्राप्ति तथा भुगतान पत्रक लेखा पुस्तकों से मेल नहीं खाते है। आडिट रिपोर्ट में जो आपित्तयां ली गई है उसमें साफ कहा गया है कि कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र जांचने के लिए पंचायतों में प्रस्तुत नहीं किया। पांच हजार से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीद नहीं लगाई गई है। यहां तक कि मस्टर रोल के प्रपत्र दो और तीन उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए। साथ ही जनपदों ने भी मस्टर रोल में कार्य का नाम और जारी करने की तिथि भी नहीं दशाई गई है। यह तमाम चीजें नियमों के खिलाफ और बड़े गोलमाल की ओर खुला इशारा कर रही है। स्थिति यह है कि भुगतान देयकों पर सरपंचों के अधिकृत हस्ताक्षर भी नहीं है। रोकड़ अवशेष एवं ग्राम पंचायत द्वारा किए गए कार्यो का भौतिक सत्यापन हमारे द्वारा नहीं किया गया है। अंकेक्षण कार्य हेतू हमारे समक्ष सिर्फ कैश बुक, पास बुक और खर्च से संबंधित प्रमाणक ही उपलब्ध कराए गए। कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र को जांचने हेतू प्रस्तुत नहीं किया गया।ग्राम पंचायत द्वारा माप पुस्तिका प्रस्तुत न करने के कारण उससे संबंधित मस्टर रोल अन्य खर्च का मिलान संभव नहीं था।अधिकांशत: पांच हजार रूपए से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीदी टिकट नहीं लगाए गए।ग्राम पंचायत द्वारा योजनान्तर्गत फंड से किसी भी प्रकार की निश्चित अवधि जमा नहीं बनवाई गई।बैंक खातों में जमा दर्शाई गई मजदूरी वापसी से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं की गई। पूर्ण जानकारी के अभाव में अंकेक्षण का मूलभूत आधार रोकड़ खाते को माना गया है। पंकज अग्रवाल, अग्रवाल मित्तल एंड कंपनी ने बताया कि यह बता पाना संभव नहीं है कि किसी भी कार्य या सामग्री क्रय हेतु किया गया भुगतान अग्रिम है या नहीं। इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा रोकड़ खाता एवं उपलब्ध प्रमाणकों के आधार पर किया गया अग्रिम भुगतान अलग से दर्शाया गया है। ग्राम पंचायत द्वारा अचल सम्पत्ति का रजिस्टर संधारित नहीं किया गया है। पंचायत कार्यालय से प्राप्त रजिस्टरों के अतिरिक्त सामान्यत संधारित रजिस्टर के पृष्ठ पूर्व मशीनीकृत नहीं थे। सामान्यत: सभी मस्टर रोल के प्रपत्र 2 व 3 उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए है। जनपद पंचायत द्वारा मस्टर रोल में कार्य का नाम व जारी किये जाने की तिथि अंहिकत नहीं की गई है। सामान्यत: ग्राम पंचायत द्वारा निर्माण हेतु सामग्री क्रय करने के दौरान शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। इसी तरह सामग्री क्रय के व अन्य बिल कच्चे के लिये गये है। भुगतान देयकों पर सरपंच द्वारा अधिकृत हस्ताक्षर नहीं किये गये है। ग्राम पंचायत के अंकेक्षण हेतु कुछ प्रमाणक प्रस्तुत नहीं किए गए। सबसे ज्यादा घोटाले बाज भीमपुर जनपद की स्थिति तो काफी भयाववह है। इस जनपद में तो अधिकांश सचिवो की गिनती करोड़पति एवं लखपतियों में होती है। इन सभी दुरस्थ ग्राम पंचायतो के सचिवो ने उक्त माल कमाने के लिए अपनो को ही लाभ पहुंचाया है। रमेश येवले नामक एक सचिव के पास आज करोड़ो की सम्पत्ति जमा हो गई है। रमेश के द्वारा अपने सचिव कार्यकाल में तथा पूरी जनपदो के की ग्राम पंचायतो में सबसे अधिक भुगतान रमेश येवले सचिव के परिवार के सदस्यों के नाम पर किया गया है। रमेश येवले को टे्रक्टर ट्राली एवं ब्लास्टींग के नाम पर भुगतान किया गया है। आज मौजूदा समय में रमेश येवले सहित दो दर्जन से अधिक सचिवो पर कंसा शिकंजा अब ठीला पड़ता जा जा रहा है। अभी हाल ही में भीमपुर ब्लॉक में आयोजित जनपद पंचायत की समीक्षा बैठक में उपस्थित नहीं होने वाले एडीईओ (विकास विस्तार अधिकारी) को जिला पंचायत सीईओ द्वारा निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा मिटिंग में शामिल नहीं होने वाले सचिवों एवं अन्य कर्मचारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। यदि वह नोटिस का संतुष्ठ जवाब नहीं देते है तो उनका 15 दिन का वेतन काट लिया जाएगा। जिला पंचायत सीईओ एसएन चौहान ने बताया कि उन्हे शिकायते मिल रही थी जिसके चलते उक्त कार्यवाही की गई। श्री चौहान के अनुसार बैठक में एडीईओ कृष्णा गुजरे सहित सचिव एवं अन्य कर्मचारी उपस्थित नहीं हुए थे। जिस पर उनके एडीईओ गुजरे को निलंबित कर दिया है। वहीं सचिव सहित अन्य कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। सीईओ चौहान ने बताया कि एडीईओ द्वारा विभिन्न कार्यो के टारगेट को भी समय पर पूर्ण नहीं किया गया था। मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत बन रही ग्रेवल सड़कों को लेकर अभी से सवाल खड़े होना शुरू हो गए है। बताया जा रहा है कि विगत दिनों जो जिला पंचायत अध्यक्ष का गुस्सा योजना मंडल की बैठक में आरईएस पर फूटा था उसकी वजह भी यही सड़कें थीं। सड़कें जिस रफ्तार से बन रही है उसको लेकर संदेह जाहिर किया जा रहा है।लम्बाई कम और दर अधिक बैतूल जनपद अंतर्गत बोरीकास से सालार्जुन तक बन रही 2.80 किलोमीटर लम्बी ग्रेवल सड़क की लागत जहां 51.95 लाख रूपये है। वहीं भरकवाड़ी से खानापुर तक बनने वाली तीन किलोमीटर लम्बी सड़क की लागत महज 33.94 लाख है। लागत में इस अंतर को लेकर पंचायती राज के जनप्रतिनिधी अब सवाल खड़े कर रहे है।एक महीने में 40 प्रतिशतबोथी सियार से मांडवा 1.3 किमी, बोरीकास से सालार्जुन 2.80 किमी, आरूल से खाटापुर 2.2 किमी, भकरवाड़ी से खानापुर तीन किमी और बारवी से डोडरामऊ 3.75 किमी की जब जनपद पंचायत बैतूल अध्यक्ष ने समीक्षा की थी तो दिसम्बर में काम प्रारंभ ही हुआ था और अब निर्माण एजेंसी आरईएस 40 प्रतिशत तक काम हो जाना बता रही है।
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में पंचायती राज्य में सरपंच सचिवो की मनमर्जी के आगे सरकारी योजनाओं को हश्र हो रहा है वह किसी से छुपा नहीं है। इस समय बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के आधे से ज्यादा के सरपंच सचिवो के नीजी एवं परिजनो के वाहनो को नरेरा के तहत मिलने वाली राशी से भुगतान किया जा रहा हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले की ग्राम पंचायतो से सबसे अधिक भुगतान उन कृषि कार्यो के लिए पंजीकृत टे्रक्टर ट्रालियों को हुआ हैं जो व्यवसायिक कार्यो के लिए प्रतिबंधित हैं। जिले में इसी तरह पानी के टैंकरो , रोड रोलरो , जेसीबी मशीनो , ब्लास्टींग मशीनो आदि को किया गया भुगतान भी नियम विरूद्ध किया गया है। बैतूल जिले की प्राय: सभी ग्राम पंचायतो के सरपंच एवं सचिवो से नियम विरूद्ध कार्य करके अतिरिक्त भुगतान करने पर रिकवरी के आदेश के जारी होने के तीन माह बाद भी एक भी सरपंच एवं सचिव से रिकवरी नहीं हो सकी हैं। पूरे जिले में साठ करोड़ के लगभग राशी की रिकवरी होना हैं। राजनैतिक संरक्षण एवं अधिकारियों की कथित मिली भगत के चलते आडिट आपत्तियों के चलते की जाने वाली रिकवरी शासन के खाते में नहीं जा सकी है। बीती पंचवर्षिय योजना में बैतूल जिले के प्राय: सभी सरपंच एवं सचिवो की सम्पत्ति में काफी इजाफा हुआ हैं। गांव के विकास के नाम पर जारी हुआ एक रूपैया का नब्बे पैसा सरपंच सचिवों की आलीशान कोठियों , चौपहिया वाहनो एवं बैंक बैलेंसो को बढ़ाने में उपयोगी साबित हुआ हैं। जिले के करोड़पति सचिवों में भीमपुर विकास खण्ड के यादव समाज के सचिवों का नाम सबसे ऊपर हैं। लोकायुक्त एवं राज्य आर्थिक अपराध अनुवेषण के कार्यालय तक भेजी गई सैकड़ो शिकवा , शिकायते आज भी फाइलों में बंद पड़ी हुई हैं। बैतूल जिले के पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी बाबू सिंह जामोद के खिलाफ बीते माह ही आर्थिक अपराध अनुवेषण द्वारा बैतूल जिले में उनके तीन साल में नरेरा , कपिलधारा के कूप निमार्ण कार्यो के अलावा एक दर्जन से अधिक कार्यो में हुए भ्रष्ट्राचार को लेकर प्रकरण दर्ज हुआ हैं लेकिन प्रकरण के संदर्भ में इस भ्रष्ट्राचार की जड़ कहे जाने वाले सरपंच एवं सचिवों के गिरेबान तक किसी के भी हाथ नहीं पहुंच सके हैं। आय से अधिक सम्पत्ति जमा करने वाले करोड़पति बने रमेश येवले , महेश उर्फ बंडू बाबा , जगदीश शिवहरे, सहित सवा सौ सचिवों को लोकायुक्त से लेकर सीबीआई तक की जांच के दायरे में शामिल करने का प्रयास किया गया है। एक स्वंयसेवी द्वारा भेजी गई शिकायती पुलिंदा में सीबीआई को विशेष से इसकी जांच का निवेदन किया है जिसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि केन्द्र सरकार से भेजे गए अरबो – खरबो के अनुदान से कई सचिवो की माली हालत में जबरदस्त इजाफा हुआ है। जांच में इन बातो का भी उल्लेख किया गया हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में निलम्बित सचिवो को पुन: बहाल कर उसी स्थान पर क्यों पदस्थ किया गया हैं। जांच में इस बात को ध्यान में रखा जाए कि आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा भेजी गई अरबो – खरबो की राशि का नरेरा में उपयोग कितना हुआ है और कितना नहीं हुआ हैं।
बैतूल जिले में रोज सामने आ रही मनरेगा के कार्यो की गुणवत्ता एवं भ्रष्ट्राचार की शिकवा शिकायतों की यदि सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक जांच शुरू करेगी तो उन्हे छै महिने के बदले छै दिनो में ही हाईपरटेंशन की बीमारी हो जाए। सप्ताह में हर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में आने वाली हर दुसरी – तीसरी शिकायते मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर होती हैं। उक्त शिकायतों पर कार्यवाही क्या होती है या क्या हो चुकी हैं इस बात की किसी को पता नहीं लेकिन शिकायतों के बाद पैसे हल्का होने वाला सरपंच – सचिव जब आप खोकर गांव के लोगो को गंदी – गंदी गालियां देते हुए धमकाने लगते हैं तब शायद गांव वाले ही खबर का असर समझ कर फूले नहीं समाते हैं। मनरेगा को लेकर गांव से जिला मुख्यालय तक शिकायतों की आड़ में होने वाली सौदेबाजी का खेल चलता है। शिकायतों को लेकर गांव वालो के कथित ब्यानो एवं सच का पता लगने वाला मीडिया से लेकर जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी तक गांव तक पहुंचने के बाद मैनेज हो जाता हैं और गांव का गरीब जाबकार्ड धारक बार – बार जेब का पैसा खर्च करके जिला कलैक्टर से यह तक सवाल नहीं कर पाता हैं कि उसकी शिकायतें पर कोई सुनवाई क्यों नहीं हुई। आज यही कारण हैं कि गांव में भी ब्लेकमेलरो की दिन प्रतिदिन संख्या में इजाफा होते जा रहा हैं। गांव में ही सरपंच एवं सचिवो को पहले चरण में कथित शिकायतों को लेकर ब्लेकमेल करने के बाद सौपा न पटने की स्थिति में शिकायत करता स्वंय के रूपए – पैसे खर्च करके गांव वालों की भीड़ मंगलवार की जन सुनवाई में लाने से लेकर मीडिया तक को मैनजे करके मनरेगा के कार्यो को लेकर पेपरबाजी करवाता हैं। जितनी ज्यादा पेपरबाजी होती हैं उसके हिसाब से ब्लेकमेलर एवं सरपंच – सचिव के बीच सौदेबाजी होती हैं। कई बार तो दलाली के काम में जनपद के मुख्यकार्यपालन अधिकारी से लेकर राजनैतिक पार्टी के जनप्रतिनिधि तक अहम भूमिका निभाते हैं। आज का पंचायती राज कुल मिला कर रेवड़ी बन गया है जिसे हर कोई बाट का छीन कर खाना चाहता हैं। एक सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार बैतूल जिले में 6 जनवरी दिन मंगलवार वर्ष 2009 के बाद आज दिनांक तक हर मंगलवार याने दो साल पौने दो माह में लगभग 104  मंगलवार को लगे बैतूल जिले के जनसुनवाई शिविर में कुल तीस हजार पांच चालिस शिकायते दर्ज हुई है जिसमें से सोलह हजार नौ सौ तीस शिकायते बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के गांवो से मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर आई है। प्रशासन के पास $खबर लिखे जाने तक इस बात की कोई भी जानकारी नहीं है कि कितनी शिकायतों का निराकरण हो चुका हैं। मनरेगा के कार्यो की जांच एवं भुगतान को लेकर की गई शिकायतों की न तो जांच रिर्पोट लगी हैं और भुगतान पाने वालों के भुगतान मिलने सबंधी को प्रमाणिक दस्तावेज जिसके चलते कई शिकवा – शिकायते तो लगातार होने के बाद भी मनरेगा का भुगतान न तो हो सका हैं और न इन प्रकरणों की जांच हो सकी हैं। जिला प्रशासन द्वारा सीधे तौर पर मनरेगा के कार्यो की शिकवा शिकायतों की जांच सबंधित विभाग या फिर शाखा को भेज दी जाती हैं। उक्त विभाग या शाखा द्वारा जिला प्रशासन को इस बात की कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं भेजी जाती हैं कि शिकायत यदि सहीं हैं उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई हैं। वैसे देखा जाए तो 2 लाख 48 जाबकार्ड धारक है। जिसमें 1 लाख 78 हजार जाबकार्ड धारक परिवारों के एक सदस्य को एक साल में सौ दिन का रोजगार देने के प्रावधान हैं। जिले में जाबकार्ड धारको को हर बार भुगतान को लेकर प्रशासन की ओर से कई पहल की गई लेकिन हर बार शिकवा – शिकायते सुनने को मिली हैं। इस बार बैतूल जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा चलित मोबाइल बैंक की शुरूआज एच डी एफ सी बैंक के माध्यम से की जाने वली हैं। बैतूल जिले में वर्तमान में कुल 80 बैंक है जिनके माध्यम से जाबकार्ड धारको को भुगतान उनके खातों के माध्यम से किया जाता हैं। बैंक के पास वर्कलोड़ की वज़ह से वह मनरेगा के भुगतान कार्यो के प्रति उतनी दिलचस्पी भी नहीं लेती क्योकि बैंको को कोई विशेष लाभ नहीं मिलता हैं। वैसे भी सरकारी बैंको की ऋण देने एवं ब्याज पाने में ज्यादा रूचि रहती हैं। बैतूल जिले में लगातार ग्राम पंचायत स्तर के भ्रष्ट्राचार में कई बार बैंक भी लपेटे में आ चुकी हैं इसलिए बैंको का इस कार्यो के प्रति नकारात्मक रूख रहा हैं। बैंक से भुगतान पाने के लिए गांव से बैंको तक धक्के खाने वाला ग्रामीण आखिर विवश होकर शिकवा – शिकायते करने लगता हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता के अनुसार बैतूल जिले में सेन्ट्रल बैंक के साथ मोबाइल बैंक की एक योजना शुरू की थी लेकिन बैंक ही पीछे हट गई। अब प्रदेश में अनूपपुर की तरह एटीएम से भुगतान की जगह नगद भुगतान के लिए एच डी एफ सी बैंक से एक अनुबंधन किया जा रहा हैं। बैंक को मोबाइल बैंको के लिए जिला पंचायत वाहन तक उपलब्ध करवाने के लिए तैयार हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी भुगतान एवं कार्यो को लेकर होने वाली शिकायतों पर कार्यवाही होने की बाते तो करते है लेकिन उनके पास आकड़े नहीं हैं। श्री गुप्ता का तो यहां तक कहना हैं कि ग्राम पंचायत स्तर तक के कार्यो में भ्रष्ट्राचार के मामले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को भेजे गए है लेकिन उनके नाम उन्हे नहीं मालूम हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो एवं 10 जनपदो में आज तक कोई भी ऐसर रिकार्ड पंजी उपलब्ध नहीं है जिसमें ग्राम पंचायत सबंधी शिकायतों एवं उनके समाधान का जिक्र हो ऐसी स्थिति में बैतूल जिले का ग्राम पंचायती राज अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत पर खरा उतरता हैं।  एक कड़वा सच यह भी हैं कि बैतूल जिले में पदस्थ रहे मुख्यकार्यपालन अधिकारी एवं जिला कलैक्टरों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में कई प्रकरण चल रहे हैं लेकिन खबर लिखे जाने तक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)  द्वारा किसी भी बड़ी मछली को अपने फंदे में नहीं फंसाया जा सका है तब छोटी मछली के फंदे बाहर निकले की संभावना तो बरकरार रहेगी। बैतूल जिले के बारे में कहा जाता हैं कि मध्यप्रदेश का कमाऊपूत जिला हैं जहां पर हर कोई अपना देश है बड़ा विशाल लूटो खाओं है बाप का माल के मूल सिद्धांत पर कार्य कर रहा हैं। बैतूल जिले का पंचायती राज कब सार्थक एवं सफल सिद्ध होगा सयह कह पाना अतित के गर्भ में हैं।

गधे के सिंग की तरह लापता हो गई नहरे
बैतूल से रामकिशोर पंवार
बैतूल.  विश्व के सबसे लोकतंत्र भारत में हाई प्रोफाइल मामलो के अलावा कुख्यात आंतकवादियो – अपराधियों – शासकीय विभागो के भ्रष्ट्र अधिकारियो एवं कर्मचारियो – देशद्रोहियो तथा बहुचर्चित साक्ष्य विहिन संगीन मामलो के अपराधियों को खोज निकालने तथा घोटाले बाज नेताओं एवं अफसरो की नाक में नकेल डालने में महारथ हासील करने वाली केन्द्रीय अनुवेषण जांच ब्यूरो सीबीआई पर भी अब संदेह की ऊंगलियां उठनी षुरू हो गई हैं। बैतूल जिले की दो लापता नहरो की खोज का जिम्मा एक जागरूक नागरिक ने सीबीआई को सौपा था। सापना बांध से बैतूल की ओर निकली एक नहर की दो उप नहरे नेषनल हाइवे 69 ए के दोनो छोरो से गधे के सिंग की तरह लापता हो गई है। सीबीआई तक मामले के पहुंचने के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि अब सीबीआई लापता उप नहरो को खोज निकालेगी लेकिन ऐसा आज तक नहीं हुआ। बैतूल जिले में ‘‘ हवन करके हाथ जला लेने की’’ कहावत उस समय चरितार्थ हुई जब उसने भी आम लोगो से बैतूल में राज्य सरकार की तर्ज पर जन सुनवाई कार्यक्रम आयोजित करके सप्रमाण के साथ शिकायते जांच के लिए मंगवाई थी। सीबीआई की इस अनुठी पहल पर पिछले कई सालो से अपनी शिकायतो पर न्याय न मिलने पर आखीर में बैतूल जिला मुख्यालय के कोठी बाजार माता मंदिर दुर्गा वार्ड निवासी आनंद कुमार स्वर्गीय श्री प्रेम नारायण सोनी ने 29 सितम्बर 2009 को भारत सरकार की एक मात्र स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच एजेंसी केन्द्रीय अनुवेषण जांच ब्यूरो सीबीआई. द्वारा बैतूल जिला मुख्यालय पर आयोजित जन सुनवाई शिविर में राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग की एक उप नहर ‘‘ टेल ’’ के लापता होने की शिकायत दर्ज करवाई थी. सीबीआई ने आवदेक की उक्त् षिकायत के साथ अपनी ओर जांच पत्र के साथ जिला कलैक्टर को पत्र लिखा। सीबीआई का नाम सुन कर अधिकारियों को पसीना तो छुटा लेकिन रूपए की ठंडी हवा ने पूरे मामले की हवा निकाल दी। सीबीआई ने शासकीय दस्तावेजो मे दर्ज उस बटामा उप नहर ‘‘ टेल ’’ को ढुढ़ने के लिए 23 अक्टुम्बर 2009 को बैतूल कलैक्टर आनंद कुरील को पत्र लिख कर बीते कई वर्षो से लापता बटामा उप नहर के मामले की पूरी जानकारी मय दस्तावेजो के साथ उपलब्ध करवाने का निर्देश पत्र जारी कर चुका है। बैतूल जिला कलैक्टर आनंद कुरील ने जल संसाधन विभाग को सीबीआई के उक्त पत्र का उल्लेख करते हुये 26 अक्टुम्बर 2009 को पत्र लिख कर 15 दिनो के भीतर पूरी जानकारी मय दस्तावेजो के साथ उपलब्ध करवाने के लिए आदेश जारी किया था. आज पूरे मामले को सी बी आई के समक्ष लाये पूरे 46 दिन बीत जाने के बाद भी सी बी आई के लिए सिरदर्द बनी लापता बटामा उप नहर ‘‘ टेल ’’ के मामले में जिला प्रशासन अपनी स्थिति को स्पष्ट नही कर सका है कि पूर्व में भी इस उप नहर के लापता होने की शिकायते मिलने के बाद भी उक्त लापता नहर को क्यों नहीं खोज गया था….? अब यहां यह सवाल बार – बार उठता है कि 120 फीट चौड़ी लगभग दो से ढाई किलोमीटर लम्बी बटामा उप नहर ‘‘ टेल ’’ जो कि लगभग 50 से 60 एकड़ शासकीय भूमि से लापता है.यहां पर यह उल्लेखनीय है कि बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र बारह किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाइवे 69 के समीप से गुजरने वाली सांपना जलाशय की मुख्य नहर से निकली बटामा उप नहर के लापता होने की शिकायत मय प्रमाण के साथ आनंद कुमार सोनी बीते कई वर्षो से जिला प्रशासन से लेकर राज्य शासन तक कर चुके है. श्री सोनी द्धारा प्रस्तुत की गई शिकायत का केन्द्र बिन्दु रही बटामा उप नहर बैतूल जिले में जल संसाधन विभाग द्धारा बैतूल जिले की बैतूल तहसील में ग्राम खापा के पास 1959 में 48.78 लाख रूपये की क्षमता से सांपना नदी पर सांपना बांध से निकाली गई थी. वर्ष 59 में निर्मित सांपना बांध जो बाद में जलाशय में परिवर्तित किया गया इस जलाशय में वर्षाकाल के दौरान संग्रहित जलक्षमता कहीं बांध को बहा न ले जाये इसलिए सांपना जलाशय की मुख्य नहर से बटमा माइनर नामक उप नहर का निमार्ण कार्य बैतूल अनुविभागीय राजस्व पटवारी हल्का नम्बर 57 के खसरा नम्बर 268 पर किया गया था. इस उप नहर के लिए जल संसाधन ने राजस्व विभाग की मदद से शासकीय मूल्य पर दर्जनो किसानो की भूमि अधिग्रहित कर उन्हे उसका शासकीय मूल्य पर आधारित क्षतिपूर्ति राशी का भुगतान भी किया था. 1959 से इस बनी यह नहर सोहागपुर से लेकर बैतूल बाजार तक आई मुख्य नहर से निकली बटामा उप नहर बैतूल जिला मुख्यालय के द्धारका नगर के पास स्थित माचना नदी से लेकर लगभग दो किलोमीटर तक पूरी तरह लापता है. नहर का गुम हो गई है या उसका अपहरण हो गया है….? इस बात से आशंकित शिकायतकर्त्ता आनंद कुमार सोनी ने उस कथित लापता बटामा उप नहर को खोज निकालने के लिए सी बी आई का दरवाजा खटखटाया. बैतूल में डेरा डाली सी बी आई के लिए लापता नहर की खोज से किसी बडे़ षड़यंत्र के उजागर होने की संभावनायें नजर आने लगी है. इस सारे मामले की दिलचस्प बात यह सामने आई है कि बटामा उप नहर की पुछ जिसे शासकीय दस्तावेजो में ‘‘ टेल ’’ के नाम से रेखाकिंत किया गया है वह सबसे व्यस्तम नेशनल हाइवे 59 से महज 50 से 60 फुट की दूरी से ही अदृश्य है. लापता उप नहर के पास ही बैतूल बाजार पुलिस थाने की बडोरा पुलिस चौकी स्थित है. सोहागपुर – मिलानपुर – आरूल – बैतूल बाजार – बडोरा की कृषि योग्य भूमि की सिंचाई के लिए सांपना जलाशय की मुख्य नहर से निकली इस बटामा उप नहर ‘‘ टेल ’’ की शासकीय भूमि पर 20 से 25 किसानो ने अतिक्रमण ही नहीं किया बल्कि जल संसाधन विभाग की 5 से 7 हेक्टर भूमि को बेच तक डाला. बेची गई तथा अतिक्रमित भूमि पर पक्के भवन – बंगले – मकान – दुकान – माल गोदाम – प्रेट्रोल पम्प लोर मिल तक का निमार्ण कार्य करवा डाला है. बैतूल जिले के इस बहुचर्चित लापता उपनहर ‘‘ टेल ’’ के मामले में अपर कलैक्टर योगेन्द्र सिंह जिला कलैक्टर की ओर से जांच अधिकारी नियुक्त किये जाने के बाद करोड़ो रूपयो की बेशकीमती शासकीय भूमि के मामले में अभी तक राज्य सरकार के राजस्व एवं जल संसाधन विभाग एक दुसरे पर दोषारोपण कर अपनी सासंत में पड़ी जान को बचाने में लगे हुये है. बैतूल जिले में जबसे सी बी आई ने मुलताई तहसील के ग्राम चौथिया के पारधी कांड के दो हजार ज्ञात एवं अज्ञात आरोपियो के खिलाफ अपराधिक मामला दर्ज किया है तबसे सी बी आई के प्रति जागे लोगो के आत्मविश्वास की कड़ी में जिले में अभी तक हो चुके करोड़ो – अरबो – खरबो के घोटालो को लेकर स्वंय सेवी संगठन एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता तथा जागरूक नागरिक एवं पत्रकार कई संगीन मामलो के मय प्रमाण के साथ सी बी आई के पास उचित न्याय के लिए दस्तक देने लगे हुये है. पूरे मामले का कडवा सच यह हैं कि नेषनल हाइवे के दोनो ओर बनाई गई उप नहरो पर सत्ताधारी दल के नेताओ सहित कई छुटभैया लोगो ने अवैध अतिक्रमण करके पक्का निमार्ण कर रखा हैं। आज के समय नहर पर ही करोडो की लागत से भवनो एवं वेयहर हाऊसो का निमार्ण कार्य हो चुका हैं। ऐसे में अब सीबीआई को मैनेज करके पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल कर 2008 से लेकर आज दिनांक तक पूरा जिला प्रषासन चैन की बंसी बजा रहा हैं।

चैत नवरात्र पर विषेश
दिन भर में तीन रूप बदलती हैं छावल की रेणुका मां
चार सौ साल से भी अधिक पुराना है मातारानी रेणुका का दरबार
बैतूल। आमला से 9 कि.मी. दूरी पर आम की अमराई के बीचों बीच पहाड़ो पर बसी मॉ रेणुका छावल वाली का धाम आज आस्था का धाम बन चुका है मॉ के दरबार के समक्ष भैरव बाबा, हनुमान मंदिर अपनी आस्था के प्रांगण को और  अधिक आस्थावान बनाने में कोई कोर-कसर नही छोड़ रहे है। मंदिरो से घिरे छावल धाम में जो भी जाता है वह निहाल हो जाता है। छावल के गिरी परिवार ही यहॉ पर इस धाम की बाग डोर एंव जिम्मेदारी सम्भाले हुये है। छावलधाम के पुजारी किसन गिर महाराज का कहना है कि इस धाम का इतिहास लगभग 404 साल पुराना है हमारे वंश के लोगो ने ही यहॉ पर पूजा अर्चना करना प्रारंभ कि है लगभग 4 पीढ़ी हो गई है। पहले यहॉ पर घना जंगल था, ऋषिकुल से यह धाम अस्तित्व में आया है। यह एक आस्था का जीता जागता केन्द्र है, जो भी यहॉ मन्नत करेगा उसकी पूरी होती है। दूर-दराज से भक्तगण आते है और अपनी मनोकामना पूरी कर जाते ह। भैरव मंदिर के पुजारी हरिराम नारे कहते है कि मैं लगभग 45 साल से यहॉ बैठता हॅू, छावल धाम में जो भी भक्त आता है वह अपनी मुरादे पूरी पाता है यह एक आस्था का संगम है। नवरात्र में यहॉ मेला सा लगा रहता है, अष्टमी को भंडारा आदि होता है। एंव इस दिन यहॉ पर भक्तों का जन सैलाब उमड़ता है। मॉ रेणका धाम के समक्ष दुकान लगा रहे कोमल गिर गोस्वामी का कहना है कि इस पवित्र धाम के दर्शन हेतु नागपुर भोपाल बैतूल के अलावा दूसरे प्रान्तो से भी भक्त अपनी मुरादे लेकर आते है और पूरी पाते है चेत्र माह में यहॉ एक माह का मेला लगता है जो क्षेत्र में चर्चा का एंव आस्था का केन्द्र बिन्दु बन जाता है। यहॉ कल-कल करती एक नदी बहती है जो अलग ही सौंदर्य का प्रतिपादित करती है। शांताबाई गोस्वामी एंव देवकी सुरे बोरदेही ने बताया कि मॉ के इस पावन धाम में महिलाओं की आस्था देखते ही बनती है गांवो एंव घरो मे सुख शांती के लिए खुले बालो के साथ पानी चढ़ाने आती है। नीलम, किरण,पूनम, तोरनवाड़ा छात्रा पैदल चलकर उपवास रखकर मॉ रेणुका के धाम पहुॅची और संवाददाता को बताया कि हमे माता रेणुका पर विश्वास है कि हमारे सारे दुःख दर्द दूर कर शिक्षा में ज्ञान में वृद्धि करेगी एंव कष्टो को दूर करेगी। नरेश सरनेकर, भूरा निर्मल, हीरालाल गायकीः पुजारीयों का कहना है माता के इस धाम में सौंदर्य की अनुठी सी बिखरी हुई है दूर दराज से आये भक्त यहॉ पर आस्था की त्रिवेणी बहाते है।  माता के दरबार में हाजरी लगाने नन्हा बालक कुणाल गाव्हाडे़ भी छावल अपने पापा के साथ पहुचा और रेणुका धाम को वैष्णव धाम बताकर जय कारा लगाते हुये मॉ की पूजा की।  राहुल अम्बेडकर शिक्षक  ने बताया कि इस धाम पर वास्तव में भक्तो का सैलाब उमड़ता है जयकारो के बीच माता के प्रति श्रद्धा से दर्शन दर्शन होते है। मुरादे पुरी होती है। छबीराम यादव वकील बोरी  कहते है कि नवरात्र में विशेषकर महिलाओं की आस्था का उदाहरण छावल धाम में दिखाई देता है सुबह 5 बजे से सुबह 8 बजे तक माता के भक्तो का डेरा जमा रहता है। भजन कीर्तन से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

अपना देश हैं बड़ा विशाल ,लूटो खाओं हैं बाप का माल
कम उत्पादन बता कर सरकारी कृषि उपयोगी भूमि का गेहूं व्यापारियों को बेच डाला
बैतूल बाजार , रामकिशोर पंवार : किसी ने सही कहा हैं कि अपना देश हैं बड़ा विशाल , इसलिए लूट खाओं हैं बाप का माल…? सरकारी कार्यो में व्याप्त भ्रष्ट्राचार एवं लूट खसोट का ताजा मामला बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाइवे 69 के से लगे बैतूल बाजार स्थित शासकीय कृषि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के एक शिक्षक द्वारा गेहंू की हेराफेरी करने की शिकायत के बाद एसडीएम ने संजीव श्रीवास्तव ने स्कूल पहुंच कर इसकी जांच की। प्रथम दृष्टया गेहंू में हेराफेरी की बात सामने आई है। शिकायत में बताया गया कि शासकीय कृषि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैतूलबाजार के शिक्षक एसके वर्मा द्वारा स्कूल परिसर में उगाए गए गेहूं में हेराफेरी की गई हैं। एसडीएम ने स्कूल में पदस्थ शिक्षकों से पूछताछ कर रिकार्डों की जांच की। जांच में 22 एकड़ जमीन में 171 क्विंटल गेहंू और इतने ही रकबे में 52 क्विंटल सोयाबीन होना पाया गया है। 22 एकड़ के हिसाब से बहुत कम उत्पादन होना बताया जा रहा है। एसडीएम गेहंू की जांच करने सुजीत वर्मा के गोडाउन भी पहुंचे। यहां पर 1 हजार 60 रूपए प्रति क्विंटल के हिसाब से 150 क्विंटल गेहंू बेचा जाना पाया गया है। इसके बाद एसडीएम उमेश राठौर के गोदाम भी पहुंचे। राठौर ने अजय पटेल से गेहंू खरीदना बताया है। गेहंू में हेराफेरी की शिकायत पर जांच के लिए गए थे। जांच में प्रथम दृष्टया गेहंू की हेराफेरी नजर आ रही है। बैतूल बाजार के कृषि हायर सेकंडरी स्कूल में शिक्षकों ने स्कूल की जमीन में उगाए गेहूं में हेराफेरी का प्रयास किया। स्कूल के ही कुछ शिक्षकों ने इस की सूचना एसडीएम को दी। एसडीएम ने तत्काल स्कूल में जाकर प्राचार्य और खेती का काम देखने वाले शिक्षक को तलब किया। उन्होंने स्कूल का रिकार्ड जांच के लिए जब्त कर लिया। बैतूलबाजार कृषि हायर सेकंडरी स्कूल के खेत से निकाले गए गेहूं को प्राचार्य और एक शिक्षक की मिलीभगत से रातोंरात बेच दिया गया। स्कूल परिसर में पिछले कई वर्षो से होने वाले अनाज उत्पादन और बिक्री को लेकर समय – समय पर शिकवा – शिकायतें होती रही लेकिन बेचने वाले से लेकर खरीदने वाले तक बैतूल बाजार के स्थानीय निवासी होने की वजह से हर बार मामला तो उठता लेकिन हर बार दबा दिया जाता रहा हैं। इस बार भी दो व्यापारियों के बीच गेहूं की खरीदी को लेकर हुई प्रतिस्पर्धा के चलते उक्त मामला खुल कर सामने आ गया। शिकचा – शिकायतों के संदर्भ में बैतूल एसडीएम ने घटना स्थल पहुंच कर घटना संबंधी दस्तावेजों की जांच की। प्राथमिक जांच में धांधली के साफ संकेत मिले हैं। एसडीएम ने कहा कि मामले में कुछ लोगों से पूछताछ की गई है। यह भी प्रतीत हो रहा है कि गेहूं का उत्पादन बेहद कम दर्शाया गया है। स्कूल परिसर की 22 एकड़ जमीन में इस बार गेहूं बोया गया था। जिसकी थ्रेसिंग हार्वेस्टर से कराई गई। सूत्रों के मुताबिक हार्वेस्टर से 25 टब गेहूं निकाला गया। एक टब में 15 से 16 क्विंटल गेहूं निकलता है। इस हिसाब से गेहूं का उत्पादन 375 से 400 क्विंटल होना था। जबकि स्कूल के रिकार्ड में महज 171 क्विंटल उत्पादन होना बताया गया। इसमें 150 क्विंटल गेहूं भी एक व्यापारी को बेच दिया गया। शिकायत कर्ताओं ने बताया कि थ्रेसिंग के दिन ही 4 ट्राली गेहूं स्थानीय व्यापारियों को बेचा गया। इसमें एक व्यापारी से एसडीएम ने पूछताछ की। एसडीएम ने शनिवार को स्कूल के आय व्यय और अन्य दस्तावेजों का अवलोकन किया तो उन्हें अनियमितताओं की आशंका नजर आई। सूक्ष्म जांच के लिए उन्होंने सभी दस्तावेज जब्त कर लिए। लगभग एक घंटे तक स्कूल के प्राचार्य बीएल सरेयाम व शिक्षक एसके वर्मा से सवाल – जवाब किए। बताया जा रहा है कि स्कूल की जमीन पर इस साल 18 से 20 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हुआ है लेकिन रातोंरात हुई धांधली से यह उत्पादन लगभग 8 क्विंटल पर आ गया। सूचना के आधार पर जांच की जा रही है। रिपोर्ट के आधार पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई तय की जाएगी। बताया जाता हैं कि उक्त गोरखधंधा बरसो से चला आ रहा हैं। जिले में ऐसे कई शासकीय विभाग हैं जिनके पास खाली पड़ी जमीन पर खेती कार्य होता तो हैं लेकिन उत्पादित अनाज को आपस में बाट लेने या बेच डालने की परम्परा चली आ रही हैं। ऐसा अनाज के उत्पादन में ही नहीं बल्कि फल और फूलो के उत्पादन में भी हो रहा हैं। जिले के कई विभागो के कार्यालयों एवं प्रभार वाले परिसर में मौसमी फलो का उत्पादन तो होता हैं लेकिन उसकी बिक्री नहीं बताई जाती हैं।

बालाजी पूरम के मैनेजर की मौत को लेकर गरमाने लगी राजनीति
युवक कांग्रेस की सीबीआई जांच की मांग बैतूल पुलिस प्रशासन पर नही रहा भरोसा
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में अमेरिकी नागरिक की मां की स्मृति में बनवाये गए रूक्मिणी बालाजी मंदिर के मैनेजर की मौत को लेकर बैतूल जिले की राजनीति गरमाने लगी हैं। बताया जाता हैं कि पड़ौसी छिन्दवाडा के सासंद एवं केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के कथित निर्देश के बाद बैतूल जिले के इस बहुचर्चित मामले को विधानसभा सत्र में न उठाए जाने को लेकर विपक्षी कांग्रेसी विधायक की बैतूल जिले में छबि पर कालिख पूत गई हैं। कांग्रेस के बड़े नेताओं के पूरे मामले में मौन साधने के बाद भी जिला मुख्यालय पर युवक कांग्रेसियों ने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन कर बालाजीपुरम के मैनेजर की संदिग्ध मौत के मामले में पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर संदेह जाहिर किया है। इस हाई-प्रोफाइल मामले में सीबीआई या सीआईडी से जांच कराए जाने की मांग की है। युवक कांग्रेसियों ने इसके लिए राज्यपाल के नाम ज्ञापन जिला कलैक्टर को देना चाहा लेकिन बैतूल कलैक्टर बैठक का बहाना करके नहीं आए और फिर बैतूल एसडीएम संजीव श्रीवास्तव को एक ज्ञापन भी सौंपा है। इधर समाजवादी जनपरिषद ने भी कलेक्टर को दिए ज्ञापन में मैनेजर की मौत के मामले में न्यायिक जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की है। राज्यपाल के नाम एसडीएम संजीव श्रीवास्तव को सौंपे गए ज्ञापन में कांग्रेसियों ने बताया कि 28 मार्च को बालाजीपुरम के मैनेजर कृष्णकुमार पंवार उर्फ गुडडू की संदिग्ध हालत में मौत हो गई थी। मंदिर प्रबंधन द्वारा घटना स्थल से साक्ष्य मिटाने के लिए पूरे कमरे को फिनाइल से धो डाला। युवक कांग्रेसियों ने मामले की स्थिति को देखकर मैनेजर की हत्या की आशंका जताई है। उन्होंने बताया कि इस मामले में स्थानीय पुलिस से जांच कराने से बेहतर होगा कि जांच सीबीआई या सीआईडी जैसी एजेंसी से करवाई जाए। कांग्रेसियों ने बताया कि यह एक हाईप्रोफाइल मामला है। जिसमें स्थानीय पुलिस अधिकारियों का रवैया निष्पक्ष नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेसियों ने बालाजीपुरम प्रबंधन से मृतक के परिजनों को दस लाख रूपए की आर्थिक सहायता भी दिलवाई जाने की मांग की है। समाजवादी जनपरिषद के राजेंद्र गड़वाल का कहना है कि यदि जांच निष्पक्ष नहीं हुई और मृतक के परिजनों को आर्थिक सहायता नहीं दी गई तो जनपरिषद सड़क पर उतरकर जनआंदोलन करेगी। कांग्रेसियों ने ज्ञापन मे बताया कि जांच में संदेह होने का कारण यह है कि पिछले दिनो जिले के मुखिया के बेटे की शादी के लिए स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी हवाई यात्राओं में उपकृत हो चुके हैं। और अभी भी उपकृत होते जा रहे हैं। इसके अलावा लाइजनिंग करने वाले तथाकथित लोगों ने जिले के मुखिया के बेटे की शादी के लिए अमेरिकी नागरिक के नीजी प्लेन की सुविधा उपलब्ध करवाई थी। उनका इस पूरे प्रकरण में अमेरिकी नागरिक को सहयोग मिलने से जिले की पुलिस और प्रशासन से आम आदमी का पूरी तरह से विश्वास उठ गया हैं जो कि निष्पक्ष जांच को प्रभावित कर सकता हैं। लाइजनिंग करने वाले लोगो की पुलिस अधिकारियों से मेल मुलाकात को देखते हुए उक्त युवक की मौत में सीबीआई या सीआईडी से जांच कराना उचित होगा। तभी परिवार के लोगों को न्याय मिल सकेगा। ऐसा न होने पर जिला स्तर पर बड़े पैमाने पर जन आन्दोलन किया जाएगा। इधर बैतूल बाजार पुलिस ने घटना स्थल से पूरी तरह साक्ष्य मिटाने वालो संदिग्ध लोगो में से किसी के भी खिलाफ भादवि के तहत प्रकरण दर्ज नहीं किया गया हैं। पुलिस के संरक्षण में मंदिर प्रबंधन एवं लाइजनिंग करने वाले मृतक के परिजनो को डरा धमका रहे हैं।

पुलिस के कहर से गुरूग्रंथी ने छोड़ा गुरूद्वारा , टीआई की प्रताडऩा जारी.
नाबालिग बच्चो व महिला पर बनाया झूठा पुलिस केस , प्रभारी मंत्री का आदेश मानने से इंकार
बैतूल, सरदार सुखदर्शन सिंह, : समाज मे पुलिस की व्यवस्था शायद इसलिए की गई है कि समाज में बढ़ रही अपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके और सभ्य नागरिक चैन से जी सके लेकिन इन दिनों दबंग पुलिस ने समाज में रहने वाले आम नागरिक का ही जीना मुहाल कर दिया है। आमला के स्थानीय नागरिकों ने पुलिस द्वारा हर वो काम जो अवैध है उसमें लिप्त होना बताया। आज आमला ब्लाक गुंडागर्दी, जुंआ, सट्टा, पेट्रोलियम पदार्थ की सरेआम कालाबाजारी, महुए की शराब, थाने में बलात्कार जैसे कामो में अब तक तो नंबर वन पर है किंतु आमला पुलिस की नंबर वन की श्रृंखला से भी उपर जाने की होड़ दिखाई देने लगी है। जिले में ब्लाक का नाम रोशन करने वाली आमला पुलिस अब मजलूम महिलाओं को डराने धमकाने व अपशब्द कहने से भी बाज नहीं आ रही है। अनावश्यक रूप से रसुकदार लोगों की चमचागिरी कर अपने धनदाता के कहने पर गरीब महिला की शिकायत को दरकिनार कर उल्टा उसी पर रौब जमाने वाले पुलिस अधिकारी का ऐसा ही एक मामला सामने आया है।  जब रक्षक ही भक्षक बन बैठे आम नागरिक किसकी शरण में खुद की सुरक्षा की गुहार लगाए ऐसी ही विकट समस्या से इन दिनों आमला नगर का एक परिवार जूझ रहा है। जो बहरहाल पुलिस और कुछ समाज के दबंगों के आंतक के बीच खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। आमला पुलिस के मुखिया की धमकियों से तंग परिवार ने एसपी से शिकायत कर सुरक्षा और दोषियों पर कार्यवाही की मांग की है। तीस साल से आमला गुरुद्वारे में ग्रंथी की ईमानदारी से नौकरी करने वाले गुरुचरण के लिए उसकी यही नौकरी जान की दुश्मन बन गई है। यह नौकरी ही उसके परिवार के भरण पोषण का एकमात्र सहारा भी है अब उसकी स्थिति यह हो गई है कि वह नौकरी छोड़ भी नहीं सकता और कर भी नहीं सकता। आमला गुरुद्वारे के पूर्व अध्यक्ष द्वारा उसके और उसके परिवार के साथ की जा रही ज्यादती से हलाकान गुरुचरण की मदद आमला पुलिस प्रशासन भी नहीं कर रहा उल्टे आमला टीआई द्वारा उसे ही धमकाया जा रहा है कि वह जल्दी से यह नौकरी छोड़ दे नहीं तो उसे थाने में बंद कर दिया जाएगा। परेशान एवं हृदय रोग से पीडि़त गुरुचरण सिंघ कौर की पत्नी सुरिन्दर कौर ने एसपी आरएल प्रजापति से आरोपियों की लिखित शिकायत कर अपने परिवार के लिए अभयदान मांगा है। सुरिन्दर कौर(45) ने एक लिखित शिकायत में बताया कि उसके पति गुरुचरण सिंघ कौर तीस वर्षों से गुरुद्वारा भवन में ग्रंथी के पद पर कार्यरत है और वे हृदय रोग से पीडि़त है, जिनकी शल्य चिकित्सा समुदाय के लोगों के सहयोग से कराई गई है। हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, भरण पोषण का एकमात्र सहारा गुरूद्वार ही है। उन्होंने बताया कि मेरे पति गुरूद्वारा में ग्रंथी (पंडित) है जिन्हें गुरूद्वारा संस्था से भरण पोषण के लिए मासिक भुगतान के रूप में तीन हजार रूपये प्रतिमाह मिलता है, लेकिन गुरूद्वारा के पूर्व अध्यक्ष चाहते है कि हम गुरूद्वारा छोड़ कर चले जाए इसलिए वे हमे अन्य लोगों के साथ मिलकर प्रताडि़त कर रहे है वहीं उन्होंने पिछले पांच माह से संस्था द्वारा किया जाने वाला मासिक भुगतान भी रोक रखा है। और आए दिन कुछ लोगों को लेकर आते है और हमारे परिवार वालों को गालियां देते व डराते धमकाते है। जिस पर मेरे द्वारा आमला थाने में चरणजीत सिंह, बलजीत पाल, उमेश कुमार बक्षानी के खिलाफ 15 जनवरी 2011 को शिकायत दर्ज कराई लेकिन श्री घनघोरिया टीआई आमला द्वारा शिकायत दर्ज नहीं की गई। उल्टे इसकी शिकायत चरणजित पर 16 जनवरी को ये लोग शाम करीब 8-9 बजे गुरूद्वारा आए। मैं अपने घर का काम कर रही थी किं बंटी अरोरा नामक एक युवक आया और उसने मुझे यह कहकर बाहर बुलाया कि आपसे कुछ बाते करना है। गुरूद्वारे के बाहर सड़क पर लोग मौजूद थे कि मुझे घेर लिया और अपशब्द व गंदी-गंदी गालियां देते हुए मेरे साथ अश£ील हरकते करने लगे। इतने में मेरे पति वहां पर पहुंचे और हाथ जोड़ कर सभी से बोले कि गुरूद्वारे के सामने झगड़ा मत करो हम सब कुछ छोड़कर जैसा आप लोग चाहते है चले जाएंगे। इस पर चरणजीत सिंह पूर्व अध्यक्ष ने गाली गलौच करते हुए जोर का धक्का दिया जिससे मेरे पति नीचे गिर गए और उनके सीने में जोर का दर्द उठा तथा घबराहट शुरू हो गई। जिस पर मेरा लड़का रूपेन्द्रजीत सिंघ ने आकर उनको उठाया और घर ले जाने लगा। सभी लोग गाली गलौच करके जान से मार डालने की धमकी देकर जा रहे थे कि पुलिस थाना आमला प्रभारी श्री घनघोरिया जीप से मौके पर पहुंचे और मुझे रोककर बोले कि तुम तीन हजार रूपये महीने की नौकरी करते हो नौकर हो, गुरूद्वारा तुम्हारे बाप का है जिस पर कब्जा किए बैठे हो जल्दी से खाली कर दो नहीं तो रात में थाने में बंद करके मारेंगे। ऐसा आमला टीआई का कहना सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए शर्मसार बात है कि उनके धर्मगुरू को धर्मस्थल छोडऩे के लिए विवश किया जा रहा है वहीं सिक्ख समुदाय के गुरू को टीआई द्वारा नौकर कहकर संबोधित करने का यह मामला धार्मिक तुल पकडऩे लगा है। जिस पर बैतूल के सिक्ख समूदाय के लोगों ने भत्र्सना की है। टीआई के इस रवैया से खासी नाराजगी भी जताई है। यह तो वह बात हुई कि पंडित से कहे कि तुम मंदिर जाना छोड़ दो, मुल्ला से मस्जिद व पादरी को चर्च जाने से मना करने की बात है इस प्रकार धार्मिक भावना व धर्म संप्रदाय के मामले में तथा एक महिला से अभद्र व्यवहार करने पर आमला टीआई के खिलाफ बैतूल सिक्ख समुदाय के लोगों में रोष है उन्होंने पुलिस अधीक्षक से इस मामले में सख्त कार्रवाई कर मामले की जांच की अपील की है। श्रीमति कौर ने बताया कि 30 साल से आमला गुरूद्वारे में ज्ञानी के पद पर कार्य संभाल रहे ज्ञानी गुरूचरण सिंह को डायबिटीज की बिमारी की वजह से उनकी आँखो में ब्लड उतर जाने की वजह से दिखाई देना बंद हो गया था। जिसके बाद उन्हें चैन्नई लेजाया गया जहां वे चैन्नई के गुरूद्वारे में ठहरे तथा तामिलनाडू के राज्यपाल सरदार सुरजितसिंग बरनाला इनके गांव के होने के नाते इन्होंने उनसे अपनी आर्थिक स्थिति का जिक्र किया तब चैन्नई में इनकी ऑखो का इलाज लगभग 2 लाख रूपये का खर्च के करवाया गया। वापस आमला आने के एक माह बाद ज्ञानी गुरूचरण सिंह को हार्ट अटैक आया जिस पर इन्हें उपचार के लिए बैतूल लाया गया। बैतूल में डॉ पंडाग्रे प्रायवेट क्लिीनिक में इन्हें भर्ती किया गया। जिसकी देखरेख बैतूल के सिक्ख संगत के सरदार सुखदर्शन सिंह, मंजीत सिंह, ज्ञानी प्रेमसिंह, ज्ञानी दीलीप सिंह ने की। वहीं डॉक्टर पंडाग्रे द्वारा इन्हें नागपुर रिफर किया जहां उनके इलाज का खर्च नागपुर-बैतूल के सिक्ख समुदाय द्वारा किया गया। जो आमला के तथाकथित प्रधान सरदार चरणजित सिंग अरोरा को नागवार गुजरी यहीं से ज्ञानी गुरूचरण सिंग की आफत शुरू हो गई। पहले तो इनकी गुरूद्वारा से मिलने वाली सैलेरी रोक ली गई। उसके बाद इन्हें गुरूद्वारा के काम से निकाल दिया गया। और फिर गुरूद्वारा भी इनसे खाली करवा लिया गया। अब किराए के मकान में यह परिवार रह रहा है वहां भी आमला के टीआई को इनके पीछे लगाकर परेशान करवाया जा रहा है। टीआई द्वारा इनके दोनो नाबालिग 10 वीं और 12 में पढऩे वाले बच्चो के नाम पर झूठे केस बना दिए गए है। और इनकी गिरफ्तारी को लेकर इन्हें ढूढा जा रहा है वहीं यह परिवार अपनी जान की सुरक्षा एवं टीआई के कहर से बचने 29 मार्च को पुलिस अधीक्षक के सामने जनसुनवाई में गुहार लगाने बैतूल आया था कि उनके द्वारा 15 जनवरी 11 को दी गई शिकायत टीआई द्वारा दर्ज न कर उल्टे इनके खिलाफ 16 जनवरी 11 को झूठा प्रकरण दर्ज कर लिया है। जिस पर एसपी द्वारा इस मामले की एसडीओपी जांच करवाने का आश्वासन भी दिया गया है। इस घटना के बार मेरे पति के सीने में दर्द उठ गया जिसे लेकर मै बैतूल जिला चिकित्सालय में उनका इलाज करवा रही हूॅ वहीं मुझे भी शुगर व बीपी की शिकायत है ऐसे में मुझे व मेरे पति के लिए मानसिक प्रताडऩा जानलेवा हो सकती है। साथ ही श्रीमति कौर द्वारा यह भी बताया गया कि मेरी शिकायत को आमला टीआई श्री घनघोरिया द्वारा दरकिनार कर उल्टा मुझे ही दोषी करार दे दिया गया है। वहीं आमला टीआई की प्रताडऩा दिन ब दिन बढ़ते जा रही है उन्होंने कहा कि यदि तुम यहां से जगह खाली करके नहीं गए तो किसी भी झूठे केस में तुम्हारे बच्चो को फसा दूंगा। और आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं करूंगा आमला छोड़कर तो तुम्हे जाना ही पड़ेगा क्योंकि मै तुम्हे यहां चैन से रहने नहीं दूंगा। इसके इस बात की शिकायत श्रीमति कौर द्वारा जिले के प्रवास पर आए प्रभारी मंत्री से भी की तब प्रभारी मंत्री सरताज सिंह ने टीआई को कहा कि क्यों परेशान कर रहे इन्हें परेशान करना बंद करो इसके बावजूद टीआई घनघोरिया द्वारा वहीं उक्त मामले की शिकायत पीडि़ता सुरिन्द्र कौर द्वारा महिला आयोग भोपाल, बैतूल एसपी सहित अन्य कई जगहों पर इस बारे में आवेदन भी दिया किंतु इसका कोई भी प्रतिसाद दिखाई नहीं दे रहा है।  श्रीमति सुरिन्दर कौर ने बताया कि हम लोग 30 सालो से पुजारी का काम कर रहे है मेरे पति बैतूल एवं छिंदवाड़ा जिले के धर्मप्रचारक भी है एवं हम गरीब लोग हमारा गुजारा व निवास गुरूद्वारा ही है लेकिन कुछ लोग जबरदस्ती हमें यहां से निकालना चाहते है। कारण पूछने पर वे लोग कुछ नहीं बताते है वहीं जिले के आला पुलिस अधिकारी से निवेदन भी किया है कि आमला थाना प्रभारी के इस रवैये से मुक्ति दिलाए व मामले की जांच कराकर दोषी पुलिस अधिकारी पर कार्रवाई की जाए।

तुम मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं,
तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्कील होगी
बैतूल , स्वर्गीय राजकपूर अभिनीत फिल्म के लिए स्वर्गीय मुकेश चन्द्र माथुर का उक्त गीत एक स्कूली छात्र मोहित को इतना भा गया कि उसने अपने एक तरफा प्यार के लिए अपनी जान दे देनी चाही। बैतूल जिला मुख्यालय गुरूद्वारा रोड स्थित उत्कृष्ट छात्रावास के छात्र ने बीती रात एक लड़की के प्यार में जहर खाकर जान देने की कोशिश की। छात्र ने अपने हाथ की नस काटने का प्रयास भी किया। उसके पास से सुसाइड नोट मिला है। मोहित को जब अपनी मोहनी से एक तरफा प्यार हुआ लेकिन प्यार को इंकार को लेकर जन्मी इस प्रेम कहानी के हश्र पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही बयां करती हैं। मोहित द्वारा पिछले एक सप्ताह से किसी लड़की से मोबाइल पर बात की जा रही थी। जब लड़की ने प्यार की बात पर उससे किसी भी प्रकार के प्यार करने से मना कर दिया तो छात्र ने सबसे पहले अपने हाथ की नस काटने का प्रयास किया। इसके के बाद जहर खा लिया। एक तरफा प्यार के शिकार बने छात्र से जिला चिकित्सालय मिलने पहुंचे बैतूल एसडीएम संजीव श्रीवास्तव ने बताया कि छात्र को गंभीर हालत में जिला अस्पताल में भर्ती किया गया है। मुलताई तहसील के ग्राम दुनावा निवासी उत्कृष्ट छात्रावास एवं उत्कृष्ट स्कूल कक्षा नवमीं के छात्र मोहित निरापूरे ने बीती रात में एक लड़की के प्यार में जहर खाकर जान देने की कोशिश की। मोहित ने पहले हाथ की नस काटने का प्रयास भी किया। जब स्कूली छात्र ने जहर खाया तो साथी छात्रों ने इसकी सूचना तत्काल अधीक्षक को दी। अधीक्षक ने छात्र को रात में ही जिला अस्पताल में भर्ती कराया। एसडीएम संजीव श्रीवास्तव ने जिला अस्पताल पहुंचकर छात्र से मुलाकात की है। अधीक्षक राजेश दीक्षित ने बताया कि मोहित द्वारा पिछले एक सप्ताह से किसी लड़की से मोबाइल पर बात की जा रही थी। जब लड़की ने बात करने से मना कर दिया तो छात्र ने पहले अपने हाथ की नस काटने का प्रयास किया। इसके के बाद जहर खा लिया। छात्र से मिलने उसके पिता दुनावा निवासी शिक्षक काशीनाथ निरापूरे भी पहुंच गए थे। वहीं पुलिस द्वारा अभी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। अधीक्षक ने बताया कि मोहित के पास से एक सुसाइट नोट भी मिला है। जिसमें लिखा है कि मैने सल्फास खा ली है। इसमें किसी की गलती नहीं है। किसा को कुछ मत करना। पुलिस ने आत्महत्या के प्रयास करने वाले छात्र द्वारा प्यार में जहर खाने की सूचना मिलने पर बताया कि मामले की जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।

शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली लक्ष्मी योजना फेल
मध्यप्रदेश में दिन – प्रतिदिन कम होती जा रही लाड़ो ……?
भोपाल से यूएफटी के लिए राजधानी ब्यूरो की खास रिर्पोट
भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजनाओं के बाद भी प्रदेश में दिन प्रतिदिन लाड़ली लक्ष्मी योजना पूरी तरह से फेल सिद्ध हुई हैं। सरकार द्वारा करोड़ो रूपए पानी की तरह बहाने के बाद भी राज्य में 2001 में जनगणना में प्रति हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या 932 थी, जो इस वर्ष 2011 में मात्र 912 रह गई यानी इसमें 20 अंकों की गिरावट दर्ज हुई है। राज्य में तेजी से घटती बालिकाओं की जन्मदर ने एक बार पूरे प्रदेश को चिंता की चिता में जला डालने को विवश कर दिया हैं। ताजा सरकारी आकड़ो की महिमा को देखने के बाद पता चलता हैं कि मप्र की जनसंख्या दस सालों में करीब 6 करोड़ 3 लाख से बढ़कर अब सात करोड़ 25 लाख से अधिक हो गई है। इसमें तीन करोड़ 76 लाख से अधिक पुरुष और तीन करोड़ 49 लाख से अधिक महिलाएं हैं। 2011 की जनगणना के अंतरिम आंकड़ों के मुताबिक मप्र साक्षरता और स्त्री-पुरुष अनुपात में पिछली बार से बेहतर स्थिति में हैं। जनसंख्या वृद्धि दर में भी कमी आई है, लेकिन छह वर्ष तक के बच्चों में बालिकाओं का लिंगानुपात और कम हुआ है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि रीवा संभाग में बीते एक दशक में बालिकाओं का अनुपात तेजी से नीचे आया है। जनगणना कार्य निदेशालय मप्र के निदेशक सचिन सिन्हा ने राजधानी में पत्रकारों से चर्चा में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जनगणना के अंतिम आंकड़े एक-दो माह में जारी कर दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि 2001 से तुलना करने पर प्रदेश की आबादी में 20.3 प्रतिशत यानी एक करोड़ 22 लाख से अधिक की वृद्धि हुई है। 2011 2001 कुल आबादी 23,68,145 थी जिसमें 18,43,510 पुरुष तथा 12,39,378 9,72,649 महिला हैं। प्रदेश में 11,28,767 8,70,861 (0 – 6 वर्ष तक के शिशुओं की संख्या) कुल 2,93,294 2,88,916 बालक 1,53,101 1,50,098 बालिका 1,40,193 1,38,818 लिंगानुपात में बढ़ोतरी(प्रति हजार पुरुषों पर) 2001 में 919 महिलाएं 2011 में 930 महिलाएं(बालाघाट में सर्वाधिक 1021 जबकि भिंड में 838)जनसंख्या वृद्धि दर में कमी 2001 में 24.3 प्रतिशत2011 में 20.3 प्रतिशत साक्षरता दर 6.9 फीसदी बढ़ी 2001 में 63.7 2011 में 70.6(जबलपुर प्रदेश में 82.5 साक्षरता के साथ शीर्ष पर, अलीराजपुर 37.2त्न साक्षरता के साथ सबसे पीछे है।) पुरुष साक्षरता दर में 2001 में 76.1 2011 में 80.5 महिला साक्षरता दर में  2001 में 50.3 2011 में 60जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग किमी में रहने वालों की संख्या) 2001 में 196 2011 में 236(भोपाल सर्वाधिक घनत्व वाला जिला (854), सबसे कम घनत्व डिंडोरी में 94।) हर दस साल में एक ग्रीस में पिछले दस साल में प्रदेश की आबादी में जितनी वृद्धि (1.22 करोड़) हुई वो ग्रीस की कुल आबादी (1.13 करोड़) से अधिक है। निराशा की बात 2001 में जनगणना में प्रति हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या 932 थी, जो इस बार 912 रह गई यानी इसमें 20 अंकों की गिरावट दर्ज हुई है। इन सभी आकड़ो को देखने के बाद पता चलता हैं कि प्रदेश में भ्रूण हत्या भी बालिका दर को कम होने के प्रमुख कारणो में से एक हैं। राज्य में इसी तरह सब कुछ चलता रहा तो प्रदेश में लाड़ली लक्ष्मी योजना पर होने वाले सरकारी खर्चो की पुन: समीक्षा करनी पड़ेगी।

चिचोली जनपद का बोरगांव अज्ञात बीमारी का शिकार
बैतूल, बैतूल जिले के आदिवासी बाहुल्य चिचोली जनपद के ग्राम बोरगांव में ग्रामीणों के बीमार होने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। डॉक्टरों की टीम द्वारा इलाज करने के बाद भी मरीजों को पूरा आराम नहीं मिल पाया है। जिसके चलते ग्राम बोरगांव के एक दर्जन से अधिक मरीजों को जिला अस्पताल में भर्ती किया गया है। जिला अस्पताल में ग्राम बोरगांव के एक दर्जन से अधिक मरीजों को हाथ, पैर में जोड़ों की जकडऩ से बीमार होने के चलते भर्ती किया गया है। मरीजों ने बताया कि उनके हाथ, पैर के जोड़ों में जकडऩ बंद नहीं हो रही है। जकडऩ के साथ ही बुखार आ रहा है। मरीजों को चक्कर भी आ रहा है। पिछले एक पखवाडे से ग्रामीण अज्ञात बीमारी से परेशान है। वहीं ग्रामीणों द्वारा चिकनगुनिया की आशंका जताई जा रही है। डॉक्टरों के इलाज करने के बाद भी मरीजों को आराम नहीं लग पा रहा है। ग्राम में डॉक्टरों की टीम को भेजकर मरीजों का इलाज किया जा रहा हैं उसके बाद भी ग्रामीणों के फिर से बीमार होने की वजह से पूरे गांव में दहशत का माहौल बना हुआ हैं। जिले के सरकारी डाक्टरो के अनुसार चिकनगुनिया जैसी कोई बात
नहीं है।

विलुप्त कोरकू जनजाति की लक्ष्य पूर्ति के लिए धड़ल्ले से हो रही नसबंदी
कोरकू बाहुल्य भीमपुर ब्लाक में पूरे नर्मदापूरम संभाग में नम्बर वन
बैतूल,रामकिशोर पंवार: भारत की विलुप्त होती अनुसूचित जनजातियों में कोरकू जाति का भी उल्लेख किया गया है। कोरकू अनुसूचित जनजाति समुदाय मुख्य रूप से महाराष्ट्र के मेलघाट इलाके में पूर्व (खंडवा और बुरहानपुर) निमाड़, बैतूल और मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती हैं। यह महान मुंडा जनजाति की एक शाखा हैं। महान जनजाति-गोंड शुरू में नदी तापती के दोनों किनारों पर सतपुड़ा पर्वतमाला के जंगलों में एक शिकारी समुदाय के रूप में निवास करती है। घास और लकड़ी की बनी झोपडिय़ों के छोटे समूहों में जनजाति सदियो से रहती चली आ रही है। वर्ष 1981 की जनगणना के अनुसार पूरे प्रदेश में मात्र 66 हजार 781 कोरकू जनजाति के लोग शेष बचे थे जिसमें 46.42 प्रतिशत कार्यकर्ता हैं. इनमें से 48.38 प्रतिशत किसान हैं, 46.47 प्रतिशत कृषि, 2.30 प्रतिशत पशुओं, मछली पकडऩे के वानिकी, पालन, आदि शेष 2.85 प्रतिशत में लगे हुए हैं मजदूर हैं खनन और उत्खनन, घरेलू उद्योगों, निर्माण, व्यापार के रूप में विभिन्न अन्य व्यवसायों में लगे हुए हैं और वाणिज्य, आदि वे केवल 6.54 प्रतिशत की साक्षरता दर हासिल कर पाई हैं। साक्षरता का प्रतिशत भी कम चौकान्ने वाला नहीं हैं। इस समाज के मात्र 11.68 प्रतिशत पुरूष तथा 1.24 प्रतिशत महिला साक्षर है। अशिक्षा के अभाव के कारण इस भोली भाली अनुसूचित जनजाति के लोगो की बैतूल जिला प्रशासन के स्वास्थ विभाग द्वारा मात्र लक्ष्य पूर्ति के लिए धड़ल्ले से नसबंदी की जा रही है। कोरकू जनजाति बाहुल्य बैतूल जिले में इस समय कालापानी के नाम से मशहूर आदिवासी ब्लॉक भीमपुर में परिवार नियोजन को अपनाकर लक्ष्य हासिल करने ब्लॉक को अव्वल नम्बर पर हंै। ब्लॉक में 31 मार्च 2011 के लिए निर्धारित नसबंदी ऑपरेशन का लक्ष्य 20 जनवरी को पूरा हो चुका है। भीमपुर सहित प्रदेश के सिर्फ दो ब्लॉक ही इस अवधी में सौ फीसदी लक्ष्य हासिल कर पाए है। विकास और भौगोलिक संरचना की विषमताओं की वजह से आदिवासी ब्लॉक भीमपुर को कालापानी के नाम से जाना जाता है। बावजूद इसके क्षेत्र के तथाकथित आदिवासी अब जागरूक हो रहे है। बीएमओ डॉ रजनीश शर्मा ने बताया कि परिवार नियोजन के लिए शासन ने वर्ष 2010-2011 को परिवार कल्याण वर्ष घोषित किया था जिसके तहत भीमपुर ब्लॉक को एक अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2011 तक 1430 नसबंदी ऑपरेशन कराने का लक्ष्य मिला था। कोरकू बाहुल्य आदिवासी अंचल ने इस तथाकथित लक्ष्य को ढाई माह पहले ही हासिल कर लिया है। ब्लॉक में 20 जनवरी तक आयोजित 37 शिविरों में कुल 1448 नसबंदी ऑपरेशन हुए है। जिनमें 1391 महिलाएं एवं 57 पुरूष शामिल है। परिवार नियोजन भोपाल एवं नर्मदापुरम् संभाग में अव्वल आने पर भीमपुर ब्लॉक को पुरस्कार और प्रशस्तिपत्र से नवाजा गया है। सवाल यह उठता हैं कि पूरे संभाग में प्रथम आने वाले कोरकू अनुसूचित जनजाति बाहुल्य बैतूल जिले के भीमपुर विकास खण्ड में कोरकू को छोड़ कर अन्य आदिवासी का प्रतिशत नगण्य हैं। ऐसे में ग्रामीण अचंलो में गरीब – लाचार  लोगो के साथ क्या प्रलोभन देकर या जबरिया नसबंदी नहीं करवाई गई ताकि लक्ष्य की खानापूर्ति कीह जा सके। जबसे ग्राम पंचायतो के सचिवो को एक माह में अनिवार्य रूप से दो लोगो की नसबंदी करवाने के लिए बाध्य किया जा रहा है वहां पर अन्य शासकीय कर्मचारियों के क्या हाल होगें। अपनी नौकरी बचाने के लिए पूरे जिले में ऐसे कई लाचार बेबस लोग मिल जायेगें जो कि स्वेच्छा से नसबंदी नहीं करवाये होगें।
सतपुड़ा की श्रेणी के पश्चिम भाग में विशेष रूप से महादेव पहाडिय़ों पर बसती है। बैतूल एवं छिन्दवाड़ा जिले में पाई जाने वाली इस विलुप्त होती जा रही जनजाति को कोरकू , मुण्डा , कोलेरियन जनजाति के नाम से भी जाना जाता हैं जो कोरबा की सजातीय हैं। 1901 की जनगणना में इसे कोरबा के साथ ही रख गया था। कोरकू का मतलब केवल पुरूष या आदिवासी पुरूष हैं। बैतूल जिले की भैसदेहीं एवं बैतूल तहसील में पाई जाने वाली इस जनजाति को भारत सरकार के आदिवासी जनजाित अनुसंधान विभाग द्वारा विलुप्त जनजाती की श्रेणी में रखा गया है। इस प्रकार की विलुप्त होती जा रही जनजाति के बैतूल जिले में बिना कलैक्टर की अनुमति के धड़ल्ले से नसबंदी आपरेशन होने से इस जनजाति के समाप्त होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वैसे भी इस जनजाित में पुरूषों की संख्या कम होने के कारण  अविवाहित युवक अपनी ससुराल में लमझेना बन कर जाता हैं। तथा अपने ससुराल में रह कर अपने ससुर का दिल जीतने के बाद भी विवाह करता है। कसी भी तरह से लोभ – लालच में आकर ग्राम पंचायत के सरपंच , सचिव से लेकर फील्ड वर्क कर रहे शासकीय कर्मचारियों को नौकरी बचाने के लिए कुंवारे और बुढ़े बुर्जग तक को मोहरा बनाया जा रहा हैं। वेतन रोके जाने से शासकीय कर्मचारियों के द्वारा विलुप्त हो रही जनजाति को ही टारगेट में शामिल करके उनकी जबरिया नसबंदी किए जाने से पूरी जनजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडरा गया है। भारत सरकार की ओर स्पष्ट निर्देश जारी किए जा चुके है कि ऐसी जनजाति की नसबंदी किसी स्ी सूरत में न की जाए लेकिन मात्र टारगेट के लिए टारगेट बनी कोरकू जनजाति कुछ साल बाद किताबों के पन्नो पर ही दिखाई देगी। जानकार सूत्रो ने बताया कि जिला प्रशासन से भयाक्रांत शासकीय कर्मचारियों को शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने के लिए हर प्रकार का लोभ – लालच दिया जा रहा है। इस काम में अब कोरकू बाहुल्य ग्राम पंचायतों के सरपंच , सचिव से लेकर फील्ड वर्क कर रहे शासकीय कर्मचारियों को नौकरी बचाने के लिए कुंवारे और बुढ़े बुर्जग तक को मोहरा बनाया जा रहा हैं। हम दो हमारे दो के स्लोगन ने शासकीय कर्मचारी को कहीं का नहीं छोड़ा हैं। परिवार नियोजन के कार्य में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों को स्वास्थ्य विभाग से लेकर सभी शासकीय विभाग जिसमें ग्राम पंचायत , स्कूली शिक्षा विभाग , महिला बाल विकास विभाग सजा की धमकी देने से भी नहीं चूक रहा है। जिले भर के शासकीय विभगो के प्रमुखो को जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए निर्देशो में शासन की मंशा का ख्याल रखने को कहा हैं। अभी हाल ही में स्वास्थ विभाग द्वारा परिवार नियोजन कार्य में 70 प्रतिशत से कम लक्ष्य हासिल करने वाले आधा सैकड़ा कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया है। साथ ही यह निर्देश दिए गए है कि यदि वे 70 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य पूर्ण नहीं करते हैं तो उन्हें वेतन नहीं दिया जाएगा। इस साल परिवार नियोजन कार्य को स्वास्थ्य विभाग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा गया है। यही कारण है कि इस कार्य की हर माह समीक्षा भी की जा रही है। फरवरी माह की समीक्षा जल्द की जाना है। यदि समीक्षा के दौरान किसी कर्मचारी की उपलब्घि कम पाई जाती है तो उसके खिलाफ दो वेतन रोकने की कार्रवाई भी विभाग द्वारा सुनिश्चित की गई है। साथ ही कठोर कार्रवाई की बात भी कही जा रही है। नसबंदी कार्यक्रम के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग को 16 हजार 300 का लक्ष्य निर्घारित किया गया है। जिसके तहत अभी तक 13 हजार 52 नसबंदी ऑपरेशन किए जा चुके है। लक्ष्य हासिल करने के लिए विभाग द्वारा आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहित पंच एवं सचिवों की भी मदद ली जा रही है। वहीं कार्य में शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने हितग्राहियों के लिए इनाम भी रखा गया है। लक्ष्य पूर्ति के लिए अपने को मिलने वाले रंगीन टीवी को भी लोग देने को तैयार है यदि कोई उनकी मदद करे। पहले कर्मचारियों को रंगीन टीवी विभाग की ओर से दिया जाला है लेकिन अब उन लोगो द्वारा गांव के नवयुवको को नई नवेली बीबी और रंगीन टीवी का आफर फासना पड़ रहा हैं। कुछ गांवों में तो ऐसे भी प्रसंग सुनने को मिल रहे हैं कि लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुंवारों की नसबंदी की जा रही हैं। आमला तहसील मुख्यालय में एक कुंवारे युवक की नसबंदी की स्याही अभी सुख भी नहीं पाई हैं। जहां एक ओर ऐसे बदनामी के दौर में खासकर ऐसे आदिवासी युवको की जिन्हे रूपए – पैसे की जरूरत हैं तथा किन्ही कारणो से अविवाहीत भी है ऐसे गांव के युवको को कहा जा रहा हैं कि उन्हे अच्छी सुंदर बीबी भी दिलवा देगें यदि वे नसबंदी करवाते हैं। गांव के युवको को अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह भी समझाने का प्रयास किया जा रहा हैं कि उनकी शादी हो जाने के बाद उनकी सेहत एवं सेक्स क्षमता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा वे जब चाहे तब उस नसबंदी को पुन: जुड़वा भी सकते हैं। वही दुसरी ओर आदिवासी परिवार की कुंवारी लड़कियों के परिवार जनो को इस बात के लिए तैयार किया जा रहा हैं कि वे उनकी लड़की का मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत नि:शुल्क विवाह के अलावा उनके लिए दान -दहेज की भी व्यवस्था करवा देगें।

चिंतन – मनन
गुण्डे – मवाली – जालसाज और चीड़ीबाज के
जिम्मे शहर की शांती का ठेका……….?
रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला
आज पूरे शहर की शांती का ठेका शहर के उन लोगो के हाथो में सौपना आप लोगो को भले ही अटपटा लगा पर खबर कहीं न कहीं सच के आसपास मंडराती हुई दिखाई दे रही है . जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन की सांझा पहल पर बनी जिले की शांती समिति में कुछ ऐसे लोगो का समावेश चौक चौराहो पर चर्चा का केन्द्र बना हुआ है. सभी जाति – धर्मो – सम्प्रदायों – वर्गो -बुद्धिजीवियों – समाजसेवको – राजनैतिक दलो – स्वंयसेवी संगठनो के प्रतिनिधियो को दर किनार कर ऐसे चाटुकारो एवं भाट चारणो को मौका दिया गया है जिनका स्वंय का जीवन विवादो से भरा हुआ है. पुलिस रिकार्ड एवं समाज में हुई कुछ गतिविधियों को देखने के बाद पता चलता है कि शांती समिति में तथाकथित गुण्डे – जालसाज – चीड़ीबाज को मौका मिला है जिन्हे मोहल्ले पड़ौस के लोगो ने इश्क – नैन लड़ाने के चक्कर में बुरी तरह पीटते देखा है .  कहना नहीं चाहिये पर लोगो के मुँह से कही सुनी बातो को झुठलाना भी न्याय संगत नहीं होगा कि पूर्व में कलैक्टर साहब के कार्यकाल में स्वंय सवर्ण समाज के नाम पर दलित एवं पिछड़े तथा शोषित – प्रताडि़त समाज पर अत्याचार करने वाले सवर्ण समाज के पत्रकारिता के पेशे को बदनाम करने वाले चाटुकारो ने जिले के बड़े साहब के बंगले पर होने वाली हनुमान चालिसा में अपनी बिन बुलाई उपस्थिति का भरपूर फायदा अपने कुकर्मो को छुपाने के लिए शांती समिति में पिछले दरवाजे से सेंध मारकर कर पा लिया है . अब शहर के दो जिम्मेदार मुखिया जो कि अलग – अलग वर्गो का प्रतिनिधित्व आज भले ही जवाबदेही पदो पर होने के कारण नहीं कर पा रहे है लेकिन उन्हे इस बात का तो जरूर सोच – विचार करना चाहिये कि यदि चोरो के हाथो ही तिजोरी की चाबी या गुण्डे – मवालियो को ही शांती का ठेका देना क्या न्याय संगत है ….? सवाल यहां पर किसी जाति या वर्ग विशेष के बीच दरार डालने का कदापि नहीं है, सवाल तो सिर्फ इस बात का है कि जो लोग कल तक पूरे जिले में पूर्व कलैक्टर की आड़ में स्वंय को उनकी जाति का बता कर लूट – खसोट मचाये हुये थे उन पर नकेल कसने के बजाय आज जिले का पूरा प्रशासन या तो उनकी चाटुकारिता या भाटगिरी के आगे नत मस्तक होकर उन्हे एक बार फिर वही कुकर्म के लिए प्रोत्साहित कर रहा है जिसके चलते पुलिस और प्रशासन के नाम पर दलाली होती है . आज जिले में दवा काण्ड एवं रवा काण्ड को दबाने के लिए सक्रिय दलालो को यदि जिला प्रशासन जिले की शांती व्यवस्था का ठेकेदार बनता है तो इस बात में कोई संदेह नहीं कि जिले में अंधेर नगरी चौपट राजा वाली कहावत अपने मूल स्वरूप में आ जायेगी. जिले के आला अफसरो को सरकारी कार्यालयो एवं आवासीय बंगलो पर रोज हाजरी लगाने वाले इन लोगो की नीति और नियती पर ध्यान तो देना चाहिये क्योकि वे जिले के सरकारी तौर पर माई – बाप है तथा पूरा जिला उनकी अपनी औलाद जिसकी हर प्रकार की दुख – तकलीफ पर उन्हे ध्यान देना आवश्क्य है . पता नहीं क्यों मुझे अब यह लगने लगा है कि जिले में इमानदार और न बिकने वाले अफसरो की पूरी पौध या तो दबाव की आग में या प्रताडऩा की लपटो में झुलस गई है . जिले के एक मात्र अफसर ने खुल कर अपनी दवा काण्ड को दबाने की लगी बोली को ठुकरा कर उन लोगो का पर्दाफाश करने का जोखिम भरा काम किया. इस काम में कहीं न कहीं जिले के वर्तमान कलैक्टर की भूमिका भी सराहनीय कहीं जा सकती है क्योकि जो अनुशंसा नोटशीट भोपाल तक पहँुची है उसमें साहब का रोल तारीफे काबिल है . हम अपनी बात को कहने के लिए मूल विषय से भटक गये थे जो कि शहर की शांती के ठेके से जुड़ा हुआ था. यदि शहर की शांती समिति में बस स्टैण्ड के पान दुकान संचालक भरत चौरसिया को शामील कर लिया जाता तो किसी को आपत्ति नहीं होती …….. लेकिन जिला प्रशासन  एवं पुलिस प्रशासन की साझा पहल पर बनी शांती समिति में ऐसे लोगो को शामील करना जिनका न तो चाल है और न चरित्र ……….?  सरासर पक्षपातपूर्ण मनमानी करना जैसा फैसला है . हमारा इरादा जिले की शांती समिति के शेष अन्य लोगो के मान – सम्मान को ठेस पहँुचाना कादपि नहीं बल्कि उन्हे इस बात के लिए जागृत करना है कि वे शेर की खाल ओढ़े सियारो से सर्तक रहे .

शिवराज बनायें जोडी एक अंधा एक कोढी ……….!
व्यंग्य लेख:- रामकिशोर पंवार रोंढावाला
लोग अकसर कहा करते है कि राम बनायें जोडी एक अंधा एक कोढी ………! ईश्वर किसी को भी उक्त दोनो न बनायें लेकिन कर्म प्रधान समाज में जहां पर संत गोस्वामी तुलसीदास के शब्दो में होगा वही जो प्रभु श्री राम ने रचा है. कोढी को समाज सदियो से धिक्कारा – तिस्कार करता चला आ रहा है. कोढ एक कर्मो का फल है तो दुसरे शब्दो उप पापो का दण्ड जो कि किसी जन्म में या इस जन्म में जाने – अनजाने में हो जाते है. वैसे अनजाने मेें हुये पापो को प्रभु श्री राम क्षमा भी करते है लेकिन जानबुझ कर तथा सुन्योजित तरीके से छल – बल से किये गये कर्मो की सजा मिलना लगभग तय है. इस समय मध्यप्रदेश सरकार की रामभक्त शिवराज सरकार ने भी राज्य की स्थापना के 53 सालगिरह के अवसर पर जों प्रदेश का गीत प्रसारित एवं प्रसारित किया है उसमें सूर्यपुत्री एवं न्याय के देवता शनिदेव की छोटी बहना तापी – ताप्ती – तपती का उल्लेख न करके ऐसा ऐसा पाप किया है कि उसे दण्ड मिलने से कोई भी ईश्वरीय ताकत नहीं रोक सकती. शिवराज सरकार ने उस मां सूर्यपुत्री ताप्ती के महात्म की उपेक्षा करके अक्षेम अपराध किया है जिससे मां ताप्ती के करोडो – अरबो भक्तो की भावनायें आहत हुई है. जब धरती पर गंगा – नर्मदा जैसी कोई भी पवित्र नदिया नहीं थी तब सूर्य देव ने स्वंय के तप से ग्रसित अनेको जीव – जन्तुओ के प्यासे कंठो की व्याकुलता को शांत करने के लिए अपने पुत्री तापी – तपती – ताप्ती को धरती पर अवतरीत होने का आर्शिवाद दिया था इसलिए मां ताप्ती आदि गंगा भी कहलाई जाती है. सत्ता के नशे में मदमस्त उत्पाती गजराज – हाथी का अभिनय कर रही प्रदेश की भगवा रंग में रंगी शिवराज सरकार ने चम्बल – क्षिप्रा – नर्मदा का तो अपने राजकीय गीत में यशगान तो किया है लेकिन वह उस सूर्य पुत्री मां ताप्ती का नाम तक लेना उचित नहीं समझी जबकि वेदो एवं पुराणो में कहा यह गया है कि भगवान शिव की साली हिमालय पुत्री मां गंगा में स्नान करने , शिवपुत्री मां नर्मदा के दर्शन का जो लाभ मिलता है वह मां ताप्ती के स्मरण भर कर लेने से प्राप्त होता है. राज्य सरकार ने मां ताप्ती की घोर उपेक्षा करके अपनी ओझी – घटिया मानसिकता का परिचय दे दिया है.  हिन्दुओं के सभी प्राचिन वेदो – पुराणो – ग्रंथो – धर्म शास्त्रो में उल्लेख मिलता है कि सूर्यपुत्री मां ताप्ती के किनारे अनेको साधु – संतो – ऋषि – मुनियों ने तप बल की प्राप्ति की है. आज भी इस पावन सलिला के किनारे सैकडो समाधिया एवं मठ इस बात के संकेत है  िकइस नदी का धार्मिक महत्व क्या है. रावण पुत्र मेघनाथ ने भी अपने दण्डकारण राज्य में बहने वाली इस नदी के किनारे ही अपने अराध्य देव शिव को प्रसन्न कर असीम बाहुबल प्राप्त किया था. लोककथाओं के अनुसार ताप्ती नदी का धार्मिक महत्व अन्य नदियो से सर्वोच्च इसलिए है क्योकि यह पूरी दुनिया की एक मात्र ऐसी नदी है जिसमें कोढी को काया मिलती है. नारद मुनि ने जब ताप्ती पुराण की चोरी करने का अपराध के बाद उन्हे हुई कोढ की पीडा से मुक्ति पाई थी. मुलताई – मुलतापी में आज भी नारद की टेकडी है जिस पर बैठ कर नारद जी ने मां ताप्ती को अपने कोढी हुये शरीर की पीडा से मुक्ति दिलाने के लिए तपस्या की थी तथा ताप्ती सरोवर स्थित नारद कुण्ड में स्नान किया था. आज उसी ताप्ती के धार्मिक महात्म को राज्य की शिवराज सरकार एवं उनके नौकरशाहो ने नजरअंदाज करने का अक्षेम अपराध किया है. अपने राज्य के पहले यशगान मां ताप्ती के नाम एवं महत्व का उल्लेख न करके शिवराज सरकार ने उस ताप्ती की महिमा को एक बार फिर नारद मुनि की तरह विलोपीत करने का र्दुःसाहस किया है. बैतूल जिले के मुलताई – मुलतापी से निकली प्राचिन आदिगंगा कहलाने वाली पुण्य सलिला मां ताप्ती के धार्मिक महत्व को नजर अंदाज करने का आज नही तो कल प्रदेश की शिवराज सरकार को खामीयाजा भुगतना पड सकता है क्योकि भाई सगा हो या फिर सौतेला कोई भी

ताप्ती मैया तेरी सदा जय – जय हो , वही शनि भैया आपका भय हो……..!
व्यंग्य:- रामकिशोर पंवार ‘‘ रोंढावाला ’’
किसी ने क्या खुब कहा है कि ‘‘ भय बिना प्रीत न हो गोपाला……!’’ इस समय मध्यप्रदेश की राज्य सरकार भयाक्रांत है. राज्य सरकार के मुखिया से लेकर नौकरशाहो का कथित अपनापन उनके अपने क्षेत्र एवं लोगो तथा रिश्तेदारो को उपकृत होते देखा जा सकता है. हर कोई अपने – अपनो को धोने में लगा है. इस समय ऐसा लगता है कि प्रदेश की राज्य सरकार एवं नौकरशाहो तथा राजनीतिज्ञो की भीड में आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का अपना कोई नहीं है इसलिए इस जिले की चौतरफा अनदेखी हो रही है. जिले में इस समय ऐसा कोई ताकतवर नेता नहीं है जो कि शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष से यह सवाल पुछ सके कि ‘‘ हुजूर माई बाप आप लोगो ने अपनी – अपनी क्षेत्र की नदियों को अपनी ढपली – अपना राग मे शामिल कर लिया , लेकिन हमसे क्या भूल हो गई कि आप हमारे क्षेत्र पवित्र आदिगंगा को ही भूल गये……!’’ बैतूल जिले में स्थित सूर्यपुत्री ताप्ती देश की एक मात्र ऐसी नदी है जिसे न्याय के देवता शनि महाराज की सगी छोटी बहन होने का सौभाग्य एवं भाई दुज के दिन अपने भाई से उनकी वक्रदृष्टि – दशा – यातना से मुक्ति दिलाने का आर्शिवाद प्राप्त है. आज उसी शनिदेव की एकलौती बहन मां ताप्ती की अनदेखी – उपेक्षा – महात्म को कम करने का राज्य की सरकार ने अपराध तो कर डाला है लेकिन राज्य सरकार को इस बात का डर नहीं है कि यदि शनिदेव ने अपनी बहन के अपमान से क्रोधित होकर अपनी वक्रदष्टि डाल दी तो पूरी शिवराज सरकार को राजा से रंक बनने में देर नहीं लगेगी……!  राज्य सरकार इस बात को भूल गई कि ताप्ती की अनदेखी करने से उसका कोई क्या बिगाड लेगा क्योकि चम्बल के सारे डाकु उसके साथ है……! राज्य सरकार की इस हिमाकत पर तो बस यही कहा जा सकता है कि ‘‘ भय बिना प्रीत न हो गोपाला……! ’’ अब वह समय आ गया है जब मां को अपने ऐसे कपूतो को बताना पडेगा कि वह करूणा – वात्सल की मूर्ति होने के साथ – साथ उसे अपनी कोख को लज्जीत करने वालो को दण्ड देना भी आता है. सूर्यपुत्री ताप्ती की महिमा और उनका अपने भक्तो के प्रति अपनापन को लोग गंभीरतापूर्वक नहीं ले रहे है तभी तो वे बार – बार नारदमुनि की तरह ताप्ती महात्म को कभी चुराने का तो कभी विलोपित करने का अपराध करते चले आ रहे है. ऐसे कई उदाहरण बताये जा सकते है जिसके अनुसार बिना भय के प्रीत नहीं होती है. एक लोक कथा के अनुसार ‘‘ सांप यदि काटना छोड दे तो लोग उसका जीना दुभर कर देगंे…..!’’ सांप काटने के बाद उसके जहर से होने वाली मौत के डर के कारण ही लोग नागपंचमी पर सांपो को दुध पिलाते चले आ रहे है. इस देश में कुछ राजनीति एवं नौकशाह रूपी सपेरे तो अपनी आस्तिनो में ही सांप पालने लगे है क्योकि उन्हे यकीन हो गया है कि सांप का जहर निकालने के बाद उसके काटने से मौत नहीं होती. लोग यह भलां यह क्यो भूल जाते है कि ‘‘ सपेरे की मौत ही सांप के काटने से होती है…..!’’ आज राज्य सरकार को बने 53 साल बीत गये लेकिन राज्य सरकार के नक्शे में किसी भी पर्यटन एवं धार्मिक तीर्थाटन के रूप में भगवान शिव के धाम बारहंिलंग , भोपाली की छोटा महादेव की गुफायें , सूर्यपुत्री मां ताप्ती की जन्म स्थली मुलतापी – मुलताई , चन्द्रपुत्री मां पूर्णा की जन्म स्थली भैसदेही , मलाजपुर के गुरू साहेब महाराज की समाधी स्थली , सारनी के बाबा मठारदेव , गोधना की मां चण्डी के दरबार , जैन मुनियो की तपोभूमि मुक्तागिरी , छावल का मां रेणुका धाम , बरसाली का अखंड भारत का केन्द्र बिन्दु , सालबर्डी की गुफाये , ताप्ती नदी का पारसडोह , केरपानी के हनुमान जी , आमला की पंचवटी , सूरगांव का एतिहासिक शिव मंदिर , सातबड के समीप स्थित जंगलो में मौजूद शंखलिपी , प्रदेश का एक मात्र काफी उत्पादक स्थत कुकरू खामला , मंदिरो एवं कुओ का गांव बैतूल बाजार , चिचोली स्थित दीयादेव की टेकडी , तपश्री बाबा का आश्रम , हनुमान डोल , सतपुडा तवा जलाशय , ग्राम रोंढा का विशाल नंदी , गुप्त कालीन मुर्तियो का केन्द्र काजली – कनौजिया तक को भूल चुकी है. आज अपनी स्वंय की पहचान को मोहताज इस बैतूल की भूमि को अपने ही कपूतो पर रोना आ रहा है क्योकि वे अपनी जन्मभूमि – मातृभूमि को वह मान – सम्मान नहीं दिलवा सके है.
इति,

बैतूल जिले के लोगो जरा आंखो में भर लो ताप्ती माई पानी ……….!
रामकिशोर पंवार ‘‘ रोंढावाला ’’
इस समय बैतूल जिले की अस्मीता का सवाल उठ रहा है क्योकि बैतूल जिले के सैकडो – हजारो – लाखो निवासी अपनी परमपूज्य पुण्य सलीला मां ताप्ती को यदि वे मान – सम्मान नहीं दिलवा सकते तो उन्हे मारे शर्म के चुल्लू भर पानी में डूब मर जाना बेहतर होगा क्योकि हिन्दी के एक जाने – माने कवि एवं गीतकार कहते है कि ‘‘ जो भरा नहीं है भाव से , जिसमें बहती नहीं रसधार है. वह हद्रय नहीं प्रत्थर जिसमें स्वदेश के प्रति प्यार नहीं है……’’! किसी भी देश एवं प्रदेश तथा जिले की पहचान उस क्षेत्र की नदियों एवं पहंाडियो तथा मिटट्ी से होती है. ‘‘ स्वदेश ’’ को यदि हम शाब्दिक अर्थो में देखे तो जल – जमीन – जंगल उस स्वदेश का अंग है जिसमें हम रहते है. जननी से बडी होती है जन्मभूमि और सही मायने में स्वदेश तो वही स्थान होता है जहां पर कोई भी व्यक्ति जन्म लेता है. हमारे उत्तर भारत के लोग जब अपने गांव को या जिले को जाते है तो अपने देसी अंदाज में तो यह कहते है कि ‘‘ बाबू जरा देशवा से होकर आइबा……..!’’  बैतूल जिले के लोगो के लिए मां ताप्ती का आंचल किसी दुसरे देश के परिवेश से कम है क्या…….! आज भी भी पूरी दुनिया में बैतूल जिले का एक मात्र गांव बैतूल बाजार ऐसा है जिसेे गांव के लोगो की जुबान में आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद देशी – परदेशी का समावेश है. इस गांव में तो एक कौम – जाति को परदेशी कहा जाता है. सालो से बैतूल जिले के इसी गांव में रहने वाली कुर्मी जाति के लोगो को गांव के लोग आज भी परदेशी ही कह की पुकराते है. हालाकि इस गांव के शिवनारायण उर्फ सैम वर्मा के अलावा कोई भी परदेशी याने दुसरे देश का रहवासी नही है. भारत का एकलौता मंदिरो एवं कुओ का गांव बैतूल बाजार आज भी वार्डो के नामो के विभाजन के बाद भी परदेशी मोहल्ला के नाम से लोगो की जुबान पर रटा हुआ है. मेरे ख्याल से यह अखंड भारत का पहला गांव होना चाहिये जहां पर बरसो पहले आई एक जाति को गांव के लोग आज तक परदेशी कह कर पुकराते है. यही कारण है कि गांव की राजनीति एवं सामाजिक गतिविधियों में अकसर देशी एवं परदेशी को लेकर कभी कभार टकराहट आ जाती है. इन सबके बाद भी बैतूल बाजार पूरे जिले में अपनी नौ दुर्गा की झांकियों के लिए आपपास के गांवो के लिए कौतूहल एवं जिज्ञासा तथा धार्मिक सदभावना का केन्द्र बना रहता है. आज यह सब इसलिए कहना पड रहा है  िकइस जिले के पानी में इतना अपनापन है कि इस जिले के लोगो ने सभी को गले लगा कर अपनाया है. आज भले ही बैतूल जिले में आजादी के इतने साल बाद भी विकास की गंगा इसलिए नहीं बह सकी है क्योकि गंगा को तो धरती पर आने से पहले से ही इस जिले में मौजूद आदिगंगा के चमत्कार एवं महात्म से भय था तभी तो उसने ही दबाव डलवा कर देवऋषि नारद को ताप्ती पुराण तक चुरा कर कोढ रोग की यातना को सहना पडा. आज बैतूल जिले में कई युगो एवं सदियो से बहती चली आ रही सूर्यपुत्री मां ताप्ती के नाम एवं महात्म से जलन एवं इर्षा रखने वाले गंगा के नाम पर दुकानदारी चलाने वालो की कमी नहीं है तभी तो ऐसे लोगो को डाकुओं की शरण स्थली बनी चम्बल नदी का महात्म ताप्ती से अधिक लगा और वे ‘‘ मध्यप्रदेश जय हो ’’ के गीत में सूर्यनारायण की पुत्री एवं शनिदेव की बहन मां ताप्ती को ही भूल गये और जब भूल का एहसास करवाया तो बशर्म के तरह तर्क देने लगे कि ‘‘ कोई बात नहीं 53 वी सालगिरह पर नम्बर नहीं लगा तो अगले साल 54 वी सालगिरह पर देख लेगें…….!’’ ईश्वर न करे कहीं ताप्ती मां कुपीत हो गई तो याद रहे कि बुराहनपुर के क्या हाल हुये किस तरह भूसावल का भूसा निकला और सूरत किस तरह बदसूरत हुआ……..! पश्चिम दिशा की ओर बहने वाली भारत की दो प्रमुख नदियों नर्मदा एवं ताप्ती में जहां एक ओर नर्मदा शांत मध्यम वेग से बहने वाली है वहीं दुसरी ओर ताप्ती अशांत एवं तेज वेग से बहने वाली है. ताप्ती में बहाव के समय अच्छा खासा तैराक भी नदी के इस पार से उस पार नहीं आना – जाना कर सकता क्योकि यह पहाडी नदी अपने जल में भंवरे बना कर चलती है तथा इस नदी में वहां तक गहरे गडडे एवं खाईयां तथा डोह है जहां तक वह समतल नहीं बहती. ताप्ती नदी का तेज अपने पिता एवं भाई के समान है. सूर्यवंशी मां ताप्ती के महात्म को स्वंय मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम ने अपने पूर्वजो से जाना था इसलिए उन्होने सबसे पहले अकाल मौत एवं श्रापित पिता राजा दशरथ सहित अपने पूर्वजो का इसी पावन सलिला के जल में तर्पण किया था. आज उसी ताप्ती नदी का महात्म उस ‘‘ मुंह में राम – बगल में छुरी ’’ वाली भगवा रंग में रंगी सरकार ने विलोपित करने का प्रयास किया है. कहीं ऐसा न हो कि देव देवऋषि नारद की तरह ताप्ती के महात्म को विलोपित करने या उसकी अनदेखी करने का पूरी प्रदेश की सरकार को खामीयाजा भुगतना पड जाये और शिवराज के सिर से ताज छिटक कर कोसो दूर फिका जाये……..! कुछ भी हो सकता है यदि प्रदेश की सरकार अभी भी समय रहते सोते से नहीं जागी तो फिर आने वाली विपदा के लिए वह स्वंय जवाबदेह होगी क्योकि जनभावनायें के साथ तब तक खिलवाड होता रहेगा जब तक कि लोग अंधे एवं बहरे तथा गुंगे रहेगें…….! बैतूल जिले के साथ इतना बडा मजाक एवं अपमान जनक बर्ताव के बाद भी जिले के राजनीतिज्ञो का एवं नागरिको का आंखो का पानी मर गया तो सिर्फ बैतूल जिले के आजादी के महासग्रंाम को लेकर कहे जाने वाले किस्सो को सुनने के बाद तो यही लगता है कि  ‘‘ यहां तो गुंगो – बहरो की बस्ती है, खुदा जाने कब जलसा हुआ होगा…….! ’’ इस लेख के माध्यम से किसी को भडकाने का या उकसाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है. सिर्फ लोगो को फर्क बतलाया जा रहा है कि हम सबकी तीर्थ स्थली मां सूर्यपुत्री ताप्ती के प्रति हमारी श्रद्धा एवं आस्था में तथा चम्बल नदी के बीहडो में पनाह लेते डाकुओ की सोच में प्रदेश की भगवा सरकार की क्या सोच है. सवाल यहां पर यह उठता है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को खुश करने के लिए चम्बल का जिक्र होता है क्योकि ग्वालियर स्टेट से ही चम्बल का प्रवाह क्षेत्र है. लेकिन अफसोस बैतूल जिले में एक भी ऐसा नेता या कार्यकर्त्ता नहीं है जो कि नरेन्द्र सिंह तोमर की तरह इस जिले की आस्था एवं पवित्र नगरी मुलताई से निकलने वाली सूर्यपुत्री मां ताप्ती के लिए कुछ कर सके. प्रश्न यहां यह उठता है कि इस जिले आखिर कब तक डाकुओ -लूटेरो – ठगो और शैतानो एवं उनके तथाकथित संरक्षको द्धारा साधु – संतो एवं तपस्वियों की तपोभूमि एवं करोडो श्रद्धालु भक्तो की भावनायें इस तरह आहत होती रहेगी.
इति,

मध्यप्रदेश जय हो के राजकीय गान में सूर्यपुत्री मां ताप्ती की महिमा को भूली…….!
बैतूल.मध्यप्रदेश सरकार ने अपनी 53 वी सालगिरह के अवसर पर जों प्रदेश का राजकीय गीत  मध्यप्रदेश जय हो  प्रसारित एवं प्रसारित किया है उसमें वह सूर्यपुत्री एवं न्याय के देवता शनिदेव की छोटी बहना तापी – ताप्ती – तपती का उल्लेख करना भूल गई. राज्य सरकार की इस भूल से मध्यप्रदेश – गुजरात की जीवन रेखा कहलाने वाली ताप्ती करोडो भक्तो की भावनायें आहत हुई है. मां ताप्ती जागृति मंच बैतूल ने इस बारे में राज्य के संस्कृति एवं जन सम्पर्क आयुक्त को अपना विरोध दर्ज करवाते हुये पूरे प्रदेश में जन आन्दोलन का शंखनाद करने की चेतावनी दी है. मंच से जुडे रामकिशोर पंवार ने मांग की है कि मध्यप्रदेश राज्य सरकार अपनी इस भूल को गंभीर अपराध स्वीकारते हुये उसे सुधार कर सूर्यपुत्री मां ताप्ती की महिमा की अनदेखी के प्रति खेद व्यक्त करे. मां ताप्ती जागृति मंच ने राज्य सरकार से अपने उस सवाल का जवाब मांगा है जिसमें राज्य सरकार अपने राज्यपत्र में सूर्यपुत्री मां ताप्ती के जन स्थान मुलताई – मुलतापी को आस्था एवं पवित्र नगरी घोषित किया था. राज्य सरकार जहां एक ओर डाकुओ की शरण स्थली बनी चम्बल नदी का जिक्र करना नहीं भूली वही दुसरी ओर साधु – संतो ऋषि – मुनियो जिसमें देवऋषि नारद – संत गुरूनानक देव की तपो भूमि रही मां ताप्ती के महात्म को भूल गई. सूर्यपुत्री मां ताप्ती का उल्लेख हिन्दुओं के सभी प्राचिन ग्रंथो एवं वेद तथा पुराणो में किया गया है. राज्य सरकार ने एक बार फिर सूर्यपुत्री मां ताप्ती की महिमा को एक बार फिर नारद मुनि की तरह विलोपीत करने का र्दुःसाहस किया है. वैस देखा जाये तो देश में ताप्ती एवं नर्मदा ही पश्चिमी मुखी पवित्र नदिया है.
राज्य सरकार ने अपनी स्थापना की 53 वी सालगिरह पर गीत – संगीत  में उस ताप्ती का नाम तक लेना उचित नहीं समझा जिस ताप्ती में आज भी अंतिम संस्कार या मरणोउपरांत मृतक की अस्थिया तीन दिन में गल जाती है. मां ताप्ती के मात्र नाम स्मरण करने से गंगा स्नान का लाभ मिलता है उसका नाम न लेकर प्रदेश की सरकार ने यह बताने का प्रयास किया कि गंगा घर के पास बहे तो पापो से क्या डर , सोचा था मरने से पहले डुबकी लगा लेगें………!  मध्यप्रदेश एवं गुजरात को अपने पावन निर्मल जल से सदियो से आंनदीत करने वाली सूर्यपुत्री मां ताप्ती की उपेक्षा पर राज्य सरकार भले ही कुछ बोले या न बोले लेकिन एक मां ताप्ती के भक्त – पुत्र – उपासक एवं उसे समर्पित व्यक्ति को जरूर मन में कहीं न कहीं कोई टीस जरूर होगी. एक गीत में पूरे प्रदेश की सभी नदियो का उल्लेख करने की चुनौती देकर अपनी गलती – भूल को छुपाने वाले प्रदेश के मंत्री – संत्री आखिर क्या बताना चाहते है कि बैतूल जिले में स्थित मां ताप्ती का धार्मिक महत्व क्या किसी से कम है या वे नहीं चाहते कि ताप्ती की महिमा जन – तन तक पहुंचे.

21 दिसम्बर 2012 महाप्रलय ची बुकिंग चालू आहे……….!
व्यंग्य लेख:- रामकिशोर पंवार ‘‘ रोंढ़ावाला ’’
इस बार एक साथ विश्व की एक दर्जन से भी अधिक भाषा में रीलिज हुई हालीवुड़ की सबसे अधिक मंहगे बजट की धमाकेदार फिल्म 2012 को देखने के बाद हर कोई डरा – सहमा एक दुसरे को देख रहा है. फिल्म 2012 को देखने के बाद आने वाले महाप्रलय के ट्रेलर ने हर किसी की पतलून गिली और पीली कर डाली है. मौत को धीरे – धीरे अपने करीब आता देख कर उस फिल्म को देखने और सुनने वाले हर किसी की घिग्गी बंध गई है.जब फिल्म रीलिज होकर दिखाई जाने लगी तो लोगो का हुजूम सिनेमा घरो एवं थियेटरो पर टूट पड़ा लेकिन जैसे – जैसे फिल्म आगे बढती गई तो थियेटर में बैठी गर्भवति मां की कोख में अकंुरित उस भ्रूण से लेकर बच्चे – जवान – बुढ़े स्त्री से लेकर पुरूष यहां तक की किन्नरो को भी सांप सुंघ गया हो. आंखे फाड़ कर मौत का ढाई घंटे का तमाशा देख कर लौटा हर शख्स उस फिल्म की कल्पना करने भर से सिहर उठता था वह सिर्फ इसलिए नहीं कि फिल्म बनाने वाले ने इतनी डरावनी भयावह फिल्म बनाई. फिल्म और हकीगत में अंतर कुछ भी पल – सेकण्ड – घंटो – दिन – महिनो – साल का रह गया है. 21 दिसम्बर 2012 को जब पूरी दुनिया मे महाप्रलय आ जायेगा तब क्या होगा वह तो बाद की बात है लेकिन हमारा – तुम्हारा – इसका – उसका क्या होगा इस बात को लेकर दिल की घड़कने उड़न परी पीटी उषा से भी तेज भागे जा रही है. इस तरह की महाप्रलय की अफवाह कोई पहली बार नहीं फैली है इससे पहले भी कई बार स्काईलैब जैसी आसमानी मौत के दूतो के आने की चेतावनी और भविष्यवाणी हो चुकी है. उस समय ज्ञान – विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की थी जब स्काईलैब – धुमकेतूओ के रूप में मौत के आने की बाते कहीं गई थी लेकिन अब तो महज टी आर पी का कमाल है या फिर सिनेमा की चकाचौंध एक्शन फिल्मी करिश्मा आज लोगो को मौत के उस खौफ के पास ले आया है जो कि दरवाजा फिल्म से भी डरावना एवं खौफनाक है.आर्कटिक की हिमशिखाओं के पिघलने के बाद आने वाली महाप्रलय की खौफनाक तस्वीर को देखने के बाद शायद ही कोई जीव – जन्तु बच पायेगा.पूरी दुनिया का उथल – पुथल याने की सब कुछ जल कर या तो स्वाह हो जायेगा या फिर सब कुछ जल मग्न ……..! बचेगा कुछ भी नहीं न जल …….! न थल ……….! न जीवन……….! माया कलैण्डर की माया का चमत्कार कहिये या फिर कमाने की – डराने की – धमकाने – मौत का डर बता कर घिग्गी बंधाने की…….! बरहाल जो भी होगा आने वाले तीन सालो के भीतर……! दुनिया बनाने वाले ने सभी जाति – धर्म – मजहब – कौम के विभिन्न रंग – रूप – आकार – प्रकार – विकार में बने जल – जीव – जन्तु – प्राणी – वायु – वनस्पति सभी को एक बात अच्छी तरह से एक नहीं दर्जनो – सैकड़ो – हजारो – लाखो – करोड़ो – अरबो – खरबो बार इस सच्चाई से अवगत कराया है कि दुनिया में जो भी आया है उसे एक न एक दिन जाना ही है. प्रकृति का नियम कहिये या फिर नियती का काल चक्र ‘‘ आने वाला जायेगा और जाने वाला आयेगा …….! ’’
जबसे इस बात का खुलासा हो चुका है कि इस महाप्रलय के पीछे किसी देशी या विदेशी ताकत का हाथ न होकर उस ताकत का हाथ है जिसका हम चाह कर भी टेटूवा नही दबा सकते क्योकि यदि उसके गले तक हाथ पूराया भी तो हमारा हाथ जल कर राख और खाक बन जायेगा. ऐसे में जब पूरी दुनिया के विनाश का कारण एवं कारक सूर्यदेव होगें तब तो उनकी तेज ज्वाला में जल कर मरने से तो अच्छा है कि ऐसी मौत मरे कि न तो जलने का डर हो और न मरने का…….. जब सृष्टि का निमार्ण हुआ था तब जीव – जन्तु – वनस्पति को जल रूपी अमृत देने के लिए स्वंय सूर्य नारायण ने स्वंय के ताप को कम करने के लिए अपने ही शरीर से उत्पन्न अपनी बेटी तापी – तपती – ताप्ती को आदिगंगा के रूप में अवतरीत होकर बहने का आर्शीवाद दिया था. अब जब पूरी दुनिया ही उस दिवाकर – भास्कर – रवि – दिनकर जैसे अनेको नामो से पुकारे जाने वाले दुनिया के एक मात्र सच सूर्यदेव की पुत्री के पावन जल या आंचल में यदि जीवन की आखरी सांस ली जाये तो आने वाली मौत का खौफ नहीं रहेगा. मैने सोचा कि पूरी लाइफ गुजर गई कलम से कागज को काला – नीला – पीला – हरा – लाल – बेहाल करते अब समय बचा है वह भी तीन साल क्यों कुछ जाते – जाते लपेट ले या फिर बटोर ले ताकि जाने के बाद जब कुछ खाने का न रहे तो यहां का कमाया वहां पर खाया जा सके. यदि महाप्रलय 21 दिसम्बर 2012 को निश्चीत है तो फिर अपनी भी मौत की एडंवास बुकिंग की दुकान ताप्ती तट पर खोल ली जाये और लोगो को मौत के उस महाप्रलय के खौफनाक मंजर से राहत दिलवाने के नाम पर कुछ कमा – धमा लिया जाये. जबसे सिनेमाघरो में महाप्रलय 2012 फिल्म के शो देखने की बुकिंग चालू आहे तब सीधे महाप्रलय की एडवांस बुकिग क्यो न शुरू कर दी जाये. इस काम के लिए पार्टनर रखने से या साझेदार रखने से अच्छा है कि बीबी – बच्चे – नाते – रिश्तेदार सबसे हट कर अलग – थलग दुकान शुरू करने से अपने हिस्से की कमाई पर किसी दुसरे का एकाधिकार नहीं रहेगा और माल भी अच्छा खासा बटोरा जा सकता है. मुलताई से लेकर सूरत तक सभी जगहो पर यदि लोगो ने अभी से मेरी तरह दुकानदारी लगा ली तो अपना तो धंधा चौपट हो जायेगा इसलिए इस व्यंग्य लेख के माध्यम से सभी पाठको एवं महाप्रलय के जानकारो के लिए निःशुल्क एडवांस बुकिंग शुरू की जा रही है. आज से ठीक तीन साल एक महिने बाद आने वाले महाप्रलय जिसमे होने वाली मौत की सुखद मंगलमयी यात्रा के इच्छुक सभी यात्रियो को बुकिंग के लिए अपना पूरा नाम एवं पता तथा मोबाइल नम्बर देना होगा. यात्रा के इच्छुक किसी भी यात्री को मेडिकल प्रमाण पत्र के बदले सूर्यनारायण की पुत्री मां ताप्ती के प्रति श्रद्धा – आस्था – विश्वास – समपर्ण का अपरी स्वंय की अंतर आत्मा द्धारा सत्यापित प्रमाण पत्र जमा करना होगा. इस बात का भूत – वर्तमान तथा भविष्य साक्षी रहेगा कि पूरी दुनिया में कोई भी इंसानी या रूहानी ताकत सूर्यदेव के तेज से स्वंय को नहीं बचा सकी है. पुराणो की कथा के अनुसार सूर्यदेव की जीवन संगनी भगवान विश्वकर्मा की पुत्री मां संध्या तक सूर्य देव के तप को सहन नहीं कर सकी और घोडी का रूप धारण कर तपस्या करने वन में जा पहुंची. ऐसे में मात्र मां ताप्ती की माता छाया ने ही सूर्य के तेज को सहन ही नहीं किया बल्कि वे उनके साथ कई सालो तक रही. इस दौरान सूर्यपुत्र शनिदेव एवं मां ताप्ती का जन्म हुआ. ऐसे में भगवान सूर्यदेव के तेज से ही उत्पन्न जल अमृत रूपी की धारा के रूप में आदिगंगा कहलाई मां ताप्ती के अलावा देश – दुनिया में ऐसी कोई भी नदी या नाले या पोखर नहीं है जो कि सुखे न हो. कई बार तो तालाब – बांध – झीले – सागर – महासागर तक का पानी सुख कर भांप बन कर पुनः बरस गया है लेकिन आज भी आदिगंगा मां ताप्ती सुख नहीं सकी है. आज भी सदियो की तरह सूर्यपुत्री के पोखरो एवं अंदर निरंतर बहता अथाल जल इस बात का प्रतीक है कि सूर्यदेव के तेज से मां ताप्ती के अलावा कोई भी मुक्ति नहीं दिला सकता. बैतूल जिले में या मध्यप्रदेश में हिमशिखाओं के पिघलकर बहने या उनसे उत्पन्न खतरे का कहीं से कही तक सीधा असर दिखाई नहीं देता लेकिन सूर्यदेव के तेज का सीधा प्रभाव मानवीय शरीर को राख का ढेर बना सकता है.ऐसे में जब मौत आहिस्ता – आहिस्ता पास आ रही हो तब ऐसे हिल स्टेशन पर जाने में भलाई है जहां पर गर्मी की ज्यादा मार न हो. वैसे भी विदर्भ से जुड़े रहने के कारण हम सब सूर्य के ताप को सहन करने को मजबुर है. अब ऐसे समय में जब मौत करीब हो तो सबसे अच्छा तरीका है कि सूर्य नारायण की पुत्री के आंचल में बने हिल स्टेशन जिसे धार्मिक तीर्थाटन भी कहना उपयुक्त होगा वहां पर एडवांस बुकिंग की एक अच्छी सोच लेकर मैं आगे आया हूं. मेरे इस काम में लोगो को खोट जरूर नजर आयेगी क्योकि जिनका काम ही मीनमेख निकालना होता है उन्हे आप कितनी बार पवनपुत्र हनुमान की तरह सीना फाड़ कर अपने दिल में बसे राम – श्याम – घनश्याम के दर्शन करवाओे सामने वाला आपको हर बार झुठा ही साबित करके दंभ लेगा. इन सब आक्षेपो – आरोपो – प्रत्यारोपो के बीच मैं एक सोच के साथ अपनी दुकान मां ताप्ती जागृति मंच के बैनर एवं माता रानी ताप्ती मैया के झण्डे तले आज से शुरू करने जा रहा हंू. जिस भी व्यक्ति को मेरी या हमारी सेवा का लाभ लेना हो वह व्यक्ति बिना किसी दलाल या बिचौलिये के पान या बेलपत्र से लेकर ताम्रपत्र में अपना एवं अपने परिवार का पूरा नाम पता एवं स्थान लिख कर बहती मां ताप्ती की जल धारा में आज से ही प्रवाहित करना शुरू कर दे हो सकता है कि आपका नम्बर जल्दी लग जाये और महाप्रलय के विनाश में जब सब कुछ चले जाना है ऐसे समय की शुभ घड़ी में पूरे परिवार के साथ मां ताप्ती के विशाल आंचल में एक साथ इस दुनिया से बिदा हो कुछ इस तरह से गुणगुण कर ‘‘ हम तो जाते अपने धाम सबको राम – राम ……..! ’’

साल्वेंट आइल के बाद ग्राम पंचायतो के ब्लासटींग के मामले को लेकर अब ग्राम पंचायतो के दरवाते पर दस्तक दे सकती हैं
विस्फोटक सामग्री के आतंकवादियों से सबंध को लेकर पुछ पकड़ती सीबीआई कभी भी मरोड़ सकती हैं गला
बैतूल, रामकिशोर पंवार: जब पूरा देश क्रिकेट के जोश में होश खो चुका था तब ऐसे में चुपके से बैतूल आ पहुंची सीबीआई दिल्ली की टीम ने बैतूल जिले में सप्लाई कथित विस्फोटक सामग्री जिसमें साल्वेंट आइल की खरीद – फरोख्त को लेकर विभिन्न कार्यालयों के कागजो को खगालने के बाद कुछ उद्योगपतियों से पुछताछ करने में जुट गई। सीबीआई के निशाने पर अमेरिकी नागरिक की पंखा स्थित बंद पड़ी टायर फैक्टरी रही जिसमें वर्ष 2001 से लेकर 2004 के बीच विदेशो से आयतीत बेहद ज्वलनशील साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक जो कि विस्फोटक की श्रेणी में आता हैं ,उसे बिना लायसेंस के कथित मंगवाया गया जो कि फैक्टरी तक पहुंचा ही नहीं..? और गायब हो गया। साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक की प्रकृति को ध्यान में रख कर इसका आम कारोबार नहीं किया जा सकता हैं। इसके लिए बकायदा एक्सप्लूसिव लायसेंस और जिला कलैक्टर की अनुज्ञप्ति लगती हैं। लेकिन अमेरिकी नागरिक द्वारा किसी प्रकार की अनुमति नही प्राप्त करके अपने पैसो एवं राजनैतिक प्रभाव के चलते बेहद ज्वलनशील विस्फोटक साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक को कागजो में ही मंगवा कर उसकी खपत तक दिखा दी गई लेकिन जब कागज उपलब्ध करवाने की बाते कहीं गई तो उक्त बैतूल वेयर वेल टायर फैक्टरी पंखा के बंद होने की कहानी सुना कर सीबीआई को गुमराह करने का प्रयास किया गया। बैतूल जिला प्रशासन ने मामले में सीबाीआई और महाराष्ट्र सरकार की सीआईडी के बैतूल पांव रखते ही यह कह कर अपने हाथ खड़े कर दिये कि हमारे पास कोई रिकार्ड नहीं हैं कि बैतूल जिले में किसी व्यक्ति या कंपनी द्वारा बीते दो दशक में साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक मंगवाया गया हैं। जिला प्रशासन के सूर में सूर मिलाते हुए बैतूल के भारत सरकार के सेलटैक्स विभाग एवं राज्य सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति तथा उद्योग विभाग ने उक्त विस्फोटक सामग्री के बैतूल आने के बारे में किसी भी प्रकार की कागजी कार्रवाही या पत्राचार से साफ इंकार कर दिया हैं। महाराष्ट्र के कोकण स्थित सोलाकी केमिकल कंपनी रत्नागिरी से कथित खरीदा गया साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक आइल बैतूल जिले के दोनो अंतराज्यीय चैक पोस्ट बेरियरो के रजिस्ट्ररो के पन्नो में भी दर्ज नहीं हैं। साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक के परिवहन के संदर्भ में उक्त प्रदार्थ को लेकर आने वाले वाहनो का बैतूल जिले की सीमा में स्थित गुदगांव , प्रभात पटट्न , चिचंडा तथा मुलताई के भी चेक पोस्ट बेरियरो के रजिस्ट्ररो को भी जांच में शामिल किया गया था लेकिन वहां पर भी कुछ भी हाथ नहीं लगा। पूरे मामले की जांच में महाराष्ट्र सीआईडी एवं दिल्ली सीबीआई की संयुक्त जांच टीम में बैतूल में दिन भर सैकड़ो दस्तावेजी कागजो के पन्नो को पलटती रही। दिल्ली सीबीआई के एक डीएसपी श्री बीएस झा ने विस्फोटक साल्वेंट ऑइल की खरीद-फरोख्त मामले की जांच करते हुए बैतूल पहुंचे। जहां उन्होंने तीन विभागों सहित एक उद्योगपति के प्रतिनिधि से जानकारी ली और ब्यान दर्ज किए। जिला खाद्य अधिकारी आरएस ठाकुर ने बताया कि विदेशों से आयतित साल्वेंट ऑइल नेफ्था, विनायक जो कि विस्फोटक की श्रेणी में आता है उसके संबंध में जानकारी मांगी गई। उन्होंने बताया कि बैतूल टॉयर द्वारा वर्ष 2001 से 04 तक उक्त आइल की खरीदी के लिए नियमानुसार कोई लाइसेंस नहीं लिया गया था और ऑइल के संबंध में क्या जानकारियां भी नही दी गई थी। इसके संबंध में घंटो तक दर्जनो लोगो से पूछताछ की गई। नई दिल्ली के सीबीआई डीएसपी बीएस झा को जिला प्रशासन एवं अन्य माध्यमो से प्राप्त जानकारी अनुसार बैतूल जिले में साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक जैसे ज्वलनशील प्रदार्थ के लिए किसी भी प्रकार का लाइसेंस या अनुमति पत्रक नहीं प्राप्त किया गया था। सीबीआई डीएसपी श्री झा ने सेलटैक्स विभाग और उद्योग विभाग में भी इसी संबंध में पड़ताल की है। बैतूल टॉयर फैक्ट्री के कथित संचालक अमेरिकी नागरिक ने सीबीआई को बताया कि सोलाकी कैमिकल महाराष्ट्र से की गई खरीदा गया था लेकिन जिला प्रशासन से उनके द्वारा कोई अनुमति पत्रक या लायसेंस प्राप्त करने के संदर्भ में कोई दस्तावेज या प्रमाण उपलब्ध नहीं करवाये गए। पूरे मामले की बरीकी से जांच करने बैतूल पहुंची सीबीआई द्वारा जिले के अन्य उद्योगपतियों से जानकारी एकत्र की है। जिसमें उन्हें भी जानकारी के लिए बुलाया था। उनके प्रतिनिधि ने बतौर गवाह उपस्थित होकर सोलाकी कैमिकल से की गई खरीदी की जानकारी व दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं लेकिन सबसे मजेदार बता तो यह हैं कि जिन तारीखो में बैतूल महाराष्ट्र की सोलाकी केमिकल कंपनी द्वारा बैतूल को कथित तौर पर भेजे गए विस्फोटक सामग्री को परिवहन करने वाले वाहनो की अंतरराज्यीय सीमा चौकी के परिवहन आवक – जावक पंजीयन रजिस्ट्रर में कोई जिक्र तक नहीं हैं और जिला प्रशासन भी अनुमति एवं लायसेंस तक नहीं लिया गया।  पूरे मामले का दिलचस्प पहलू यह रहा कि जिस साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक नामक अत्यंत ज्वलनशील प्रदार्थ का उपयोग विस्फोटक गतिविधियों में आतंकवादी और देश विरोधी ताकते करती रहती हैं। बैतूल जिले में वैसे भी 558 ग्राम पंचायतो में आई विस्फोटक सामग्री जिसका उपयोग कपिलधारा के कूप निमार्ण में ब्लास्टींग के कार्यो में किया गया हैं उसके भी दस्तावेज ग्राम पंचायतो के पास नहीं हैं। जिले की 558 ग्राम पंचायतो में करोड़ो रूपए की विस्फोटक सामग्री की भी अनुमति एवं लायसेंस के संदर्भ में जिला कलैक्टर द्वारा उपलब्ध करवाये गए दस्तावेजो से मेल नहीं खाते हैं। सीबीआई को बैतूल जिले की कपिलधारा के कूपो के निमार्ण में वर्ष 2006 से लेकर आज दिनांक तक की गई गई सप्लाई एवं सप्लायरो के पास आवक एवं खपत के मेल नहीं खाते दस्तावेजो को भी एक जागरूक पत्रकार एवं आरआईटी कार्यकत्र्ता द्वारा सौपे गए। सीबाीआई के नई दिल्ली स्थित पुलिस अधिक्षक ने इस संदर्भ में जानकारी दी कि बैतूल जिले में वर्ष 2001 से लेकर आज दिनांक तक कथित आपूर्ति की गई प्रत्येक विस्फोटक सामग्री को जांच के दायरे में लिया जाएगा। देश हित के साथ किसी भी प्रकार का सौदा और सौदेबाजो को बख्शा नहीं जाएगा। बैतूल जिले की विस्फोटक सामग्री के आतंकवादियो से कहीं तार तो नहीं जुड़ें हैं इस मामले को लेकर बैतूल आई सीबीआई अब ग्राम पंचायतो की दहलीज पर भी पांव रख सकती हैं। कभी भी ग्राम पंचायतो की दहलीज पर दस्तक देने वाली सीबीआई साल्वेंट आइल नेफ्था , विनायक जैसे विस्फोटक सामग्री के मामले में बेहद संवेदनशील हैं। अब बैतूल जिले के सरपंचो , सचिवो तथा विस्फोटक सामग्री के  सप्लायरों की गर्दन सीबीआई के हाथो में हो जाएगी क्योकि वह पुछ पकड़ चुकी हैं।

सऊदी अरब के संजय बंगाली ने शक्तिगढ़ ग्राम पंचायत
से प्राप्त की रोजगार ग्यारंटी योजना के तहत मजदूरी….
बैतूल , रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के सुराज , स्वराज ,पंचायती राज में बैतूल जिले में महात्मा गांधी रोजगार ग्यारंटी योजना के तहत जाबकार्ड पर सौ दिन का रोजगार किस तरह लोगो को मिल रहा हैं इसका प्रमाण भी कम चौकान्ने वाला नहीं हैं। प्रदेश की भाजपा सरकार बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो में रोजगार मूलक रोजगार ग्यारंटी योजना के तहत किस तरह लोगो को उपकृत करती हैं इसका मजेदार उदाहरण घोड़ाडोंगरी ब्लॉक की ग्राम पंचायत शक्तिगढ़ में देखने को मिला। ग्राम पंचायत शक्तिगढ़ के सरपंच सचिव एवं पंचों द्वारा उनको प्रद्धत शक्तियो का उपयोग करके सऊदी अरब में रहने वाले एक व्यक्ति को भुगतान दे दिया गया। उक्त मामले में तब नया मोड़ आया जब ग्रामीणो ने बताया कि पंचायत में विदेशी नागरिक के नाम सेे फर्जी मजदूरी भुगतान किया गया हैं। इतना ही नहीं पंचायत द्वारा कुछ पंचों, आशा कार्यकर्ता के नाम से भी रोजगार ग्यारंटी योजना के तहत मजदूरी का भुगतना करवा दिया गया है। इस मामले को लेकर ग्रामीणों ने को इसकी शिकायत जिला कलैक्टर बैतूल से कर जांच की मांग की है। ग्राम पंचायत शक्तिगढ़ से आए ग्रामीणों धीरज मंडल, कृष्ण कुमार मेहतो, देवदास राय, तपन मंडल आदि ने बताया कि ग्राम पंचायत के गांधीग्राम निवासी संजय पिता सन्यासी सऊदी अरब में कार्यरत है। संजय महाभारत के संजय की तरह सऊदी अरब से शक्तिगढ़ आकर काम किया और मजदूरी प्राप्त कर ली। संजय किसी दूर दर्शन की तरह गांव के लोगो के लिए इसलिए जिज्ञासा का कारण बना क्योकि संजय बीते कई वर्षो से ग्राम पंचायत शक्तिगढ़ आया ही नहीं तब ऐसी स्थिति में उसका काम करके भुगतान पाना जांच का विषय हैं। ग्रामीणो के अनुसार सऊदी अरब में रहने के बाद भी ग्राम पंचायत की सरंपच भागरती अवनीश ने फर्जी मस्टरोल भरवाकर उसके नाम से मजदूरी का भुगतान करवा दिया गया। अब यह बात अलग हैं कि काम का भुगतान किस संजय ने प्राप्त किया…?

हद्रयस्पशी मार्मिक कहानी
चम्पा का फूल
कहानी:- रामकिशोर पंवार ‘‘ रोंढ़ावाला’’
रोज की तरह आज भी काली अंधीयारी रात में खुले आसमान में तारो को निहारता वह चकोर की भांती एक टक उन तारो में सफेद कपड़ो में धरती पर उतरती परी को निहार रहा था. अचानक उसकी आंखो में नींद ने दस्तक दे दी और वह अपने आंगन में ही खुले आसमान के नीचे सो गया. आज जब उसकी नींद उड़ी तो उसने अपने आपको उसी परी के इर्द – गिर्द पाया. तारो में लिपटी खुशबो से महकी परी ने उसके सिर पर हाथ फेरा तभी उसकी नींद उड़ गई. अपने सपनो की परियो के बीच स्वंय राजकुमार के रूप में देख कर उसके दिलो की घड़कने चलना बंद हो रही थी. स्वंय को अपने हाथो से चिकोटी काटने के बाद वह यह तय नहीं कर पा रहा था कि वह सपना देख रहा है या फिर उसके सामने हकीगत है. गांव के उस छोर पर बने कच्चे मकान में चम्पा के पेड़ के नीचे रोज की तरह अपनी तार – तार हो चुकी गुदड़ी को को बिछा कर सोया जगन कहने को तो सो रहा था लेकिन उसे लग रहा था कि वह जाग रहा है. कुछ देर बाद परियो की रानी अपनी राजकुमारी के साथ जब जगन के सामने आई तो वह उसके रंग रूप को देख कर स्तबध सा रह गया. परियो की रानी ने उसे पुकारा ‘‘ जगन आओ मेरे पास आकर बैठो ………’’ अनजान परियो के बीच अपना नाम पुकराने के बाद जगन को ऐसे लगा कि जैसे उसे अपना कोई जानकार पुकार रहा हो. उसने हिम्मत करके उस स्थान पर पहुंचा जहां पर बड़ा सा आसन बिछा हुआ था. रंग – बिरंगे फूलो की मनमोहक सुगंधो के बीच जगन को सुझ नहीं रहा था कि वह करे भी तो क्या करे. इस बीच परियो की राजकुमारी ने उसे एक गिलास में भरा दुध पीने को दिया जिसके पीते ही उसके सोये शरीर में फूर्ति आ गई और वह तारो के बीच बसे उस परी लोक में परियो के संग – संग अठखेलियां करने लगा. उसे पता भी नहीं चला कि कब पूरी रात गुजर गई. भोर होते ही चिड़ियो की चहकने की आवाज ने उसे नींद से जगा दिया और उसने अपने आपको आसमान के उस परी लोक से स्वंय को अपनी फटी पुरानी गुदड़ी पर पाया. पिछले कई महिनो से रोज रात को परियो के बीच पाने वाले जगन ने आज पूरी हिम्मत करके परियो की रानी से सवाल कर ही डाला कि ‘‘ उसके साथ रोज रात को होने वाली घटना क्या हकीगत नहीं बन सकती ……….!’’  उसका सवाल सुनते ही रानी ने उसके सर पर हाथ फेरा और वह कहने लगी कि ‘‘ जगन हम केवल रातो में ही धरती आ सकती है. सुबह होते ही हमारी शक्तियां कम होने लगती है. इसलिए हम तुझे केवल रात में ही अपने पास लाकर सुबह होने के पहले छोड़ जाते है. मुझे तू सबसे प्यारा लड़का लगता है इसलिए मैं तुझे अपनी राजकुमारी के साथ खेलने के लिए लेकर आती हंू. राजकुमारी को तुम्हारी सूरत शक्ल इतनी पसंद है कि वह तुम्हारे बिना एक पल भी रह नहीं पाती है. मेरी राजकुमारी बिटिया की जिद के चलते हमें तुझे बार – बार हर रोज रात को अपने साथ परी लोक लाना पड़ता है. रात को कोई भूल से भी तुम्हे जगा न ले इसलिए हमें चार – पांच परियो को तुम्हारे बिस्तर के ईद – गिर्द चौकस रखना पड़ता है. कई बार ऐसा भी हो जाता है कि तुम्हारे करीब किसी को आता देख कर हमें तुम्हे वापस लाकर छोड़ना पड़ता है. ऐसा इसलिए करना पड़ता है क्योकि कई बार अचेतन शरीर में हलचल न होते देख लोग उस शरीर को कोई नुकसान न पहुंचा दे क्योकि शरीर से अचेतन शरीर को लाते समय उसे वापस करने के लिए जैसा शरीर पहले था वैसा ही चाहिये अन्यथा उस अचेतन शरीर में आत्मा प्रवेश करने से मना कर देती है. तेरे पिछले जन्म में ऐसा हो चुका है इसलिए जब तेरा पुर्नःजन्म हुआ तबसे लेकर आज तक हमें सर्तक एवं सजग रहना पड़ता है. तू इस बात पर यकीन कर या मत कर लेकिन सच्चाई सोलह आने सच है कि राजकुमारी से तेरा पिछले सात जन्मो से यूं ही प्रेम चलता आ रहा है. तू तो बार – बार जन्म ले लेता है लेकिन हम तो जन्म एवं मृत्यु के चक्र से कोसो दूर है इसलिए तेरे हर जन्म में हम तुझे जान – पहचानने के बाद तुझे परी लोक में लाना ले जाना करते चले आ रहे है.
परियो की रानी की बताई बातो को सुनने के बाद जगन की समझ में नहीं आ रहा था कि उसने बीती रात को जो सुना था वह सच भी है या फिर उसके दिमाग में घर कर गया वहम……..! आज जगन ने चम्पा के पेड़ के नीचे सोने के लिए जाने से पहले अपनी दादी से पुछा ‘‘ अम्मा क्या परियां होती है……..? ’’ दिन भर खेतो में मजदूरी करके लौटी जगन की दादी ने अपने पोते की जिज्ञासा को शांत करते हुये उसे परियो की एक कहानी सुनाने की बात कह कर वह भी अपनी गुदड़ी लेकर उसी चम्पा के पेड़ के नीचे बैठ गई. दादी की गोदी में अपना सर रख कर दादी से परियो की कहानी सुनने लगा जगन को एक बार फिर नींद ने अपनी आगोश में लेना चाहा लेकिन जगन की दादी उसे बार – बार जगा देती ताकि उसकी परियो की कहानी को वह पूरी तरह सुन सके. इधर जगन को लेने धरती पर उतरी परिया जगन को कहानी सुना रही दादी की कहानी में इस कदर डुब गई कि उन्हे पता तक नहीं चला कि जगन का इंतजार करते – करते थक गई राजकुमारी को ही परी लोक से धरती पर आना पड़ा. इधर दादी की कहानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी. जब तक दादी की गोदी में जगन का सर रखा हुआ है तब तक उसके शरीर से उसके अचेतन मन को अपने साथ परी लोक ले जाना असंभव था. रात का दुसरा प्रहर बीत चुका था. दादी की कहानी तो खत्म हो गई लेकिन दादी की गोदी में सोये जगन को जो कि गहरी निंद्रा में समा चुका था उसके इर्द – गिर्द भी किसी परी का पहुंचना असंभव था. समय का इंतजार करती है परियां आखिर अपनी पथराई आंखो के साथ अपनी राजकुमारी को लेकर वापस परी लोक लौट रही थी. परियो को वापस लौटता देख जगन नींद में ही बड़बड़ाने लगा ‘‘ देखो मुझे भी अपने साथ ले चलो……….!’’ जगन को इस तरह बड़बड़ाता देख दादी ने उसे हिलाया – डुलाया. दादी की आवाज सुन कर जगन तो जाग गया लेकिन अपने आसपास परियो को न पाकर वह किसी मुरझाये फूल की तरह लटक गया. दादी ने सोचा कि कहीं वह नींद में परियो के बीच तो नहीं पहुंच गया था. दादी ने सुबह उठने के बाद गांव के ओझा – फकीर से एक गंडा – ताबीज मंगवा कर उसे जगन के गले में बांध दिया. दादी ने उसे बार – बार चेताया था कि वह भूल कर भी उस गंडा – ताबीज को निकाल कर नहीं फेके नहीं तो अनर्थ हो जायेगा. दादी की सीख के बाद जगन डर गया उसने उस ताबीज की ओर देखा तक नहीं और उसे गले में ही पड़ा रहने दिया. रोज रात को आसमान से धरती पर उतरती परियां जगन के पास तो आती है लेकिन उसके गले में पड़े उस गंडे – ताबीज को देख कर वापस लौट जाती है. समय कब बीता इस बात का जगन को पता तक नहीं चला. इस बीच उसके माता – पिता और बुढी दादी तक भगवान के घर जा चुकी थी. आज जगन की गोद में उसका पोता उसे परियो की कहानी सुनाने की जब जिद करने लगा तो जगन को कुछ सुझ नहीं रहा था कि आखिर वह क्या करे……….?  अपने पोते को आज नहीं कल परियो की कहानी सुनाने का वादा करके जगन किसी तरह सो तो गया लेकिन उसे बार – बार अपने पोते की जिद पर सुनानी पड़ेगी उन परियो की कहानी से अभी तक किसी कोने में छुपे – दबक उन रहस्यो की चिंताये सताये जा रही थी जिसे आज तक घर परिवार का कोई भी सदस्य जान नहीं सका था. जगन क्या कल रात को अपने पोते को परियो की कहानी सुनाने की हिम्मत आखिर कहां से जुटा पायेगा. जिंदगी के आखरी पड़ाव में पहुंच चुके जगन के हाथ – पांव जवाब देने लगे थे. परियो की कहानी की हकीगत से पूरी तरह वाकीफ उसके बचपन का साक्षी बना वह चम्पा का पेड़ भी उसकी तरह अब बुढ़ा होने के साथ – साथ अपनी टहनियों को लेकर आसमान से धरती की ओर झुक गया था. गांव के उस छोर पर मौजूद खण्डहर बने घर के आंगन में लगे उस चम्पा के पेड़ के अलावा कोई भी उन परियो के बारे में नहीं जानता था जो कि आज भी जगन को लेने के लिए रोज रात को धरती पर उतरने के बाद खाली हाथ बैरंग वापस लौट जाती है. पिछली आठ – दस पीढ़ी से जगन के परिवार में केवल एक ही संतान जन्म लेती चली आ रही है. अपनी पत्नि और जवान बेटे एवं बहू को पिछले साल हुये एक दर्दनाक हादसे में गंवा चुके जगन के लिए उसका बारह साल का पोता ही उसका सब कुछ था. अब तो बचपन – जवानी और बुढ़ापे के इस पड़ाव के बाद जगन उस परी लोक और परियो की राजकुमारी को भूल चुका था लेकिन जगन को पाने की चाहत में आज भी परियो की राजकुमारी अपनी सहेलियो के साथ रात होते ही चम्पा के पेड़ के नीचे आकर जमा होकर इंतजार करती रहती है कि कब गले में पड़े उस काले धागे में लटके गण्डे – ताबीज को जाने – अनजाने में जगन उसके शरीर से निकाल बाहर फेके या खुद बखुद वे कहीं गिर जाये या खो जाये तो बंधन मुक्त जगन को वे किसी भी तरह से नींद की ग्रहरी निंद्रा में सुलाने के बाद अपने साथ ऐसा ले जाये कि वह दुबारा भूल कर भी इस जमीन पर न आ जाये. जगन को हर रात को उम्मीद का दीपक जला कर आने वाली परियो को उम्मीद है कि कभी न कभी तो ऐसा पल आयेगा कि उसका अपना जगन यदि इस बार बंधन मुक्त सो गया तो उसे वह अपने साथ ले जाकर ही दंभ लेगी. परियो की रानी कई बार अपनी राजकुमारी को इस हकीगत से वाकीफ करा चुकी है कि संसारीक बंधनो में बंधा जगन अपने जीवन के आखरी क्षण में ही बंधन मुक्त हो पायेगा लेकिन मृत देह से आत्मा को छुना भी उनके लिए संभव नहीं है क्योकि मृत शरीर से निकलने वाली आत्मा पर केवल यमदुतो का ही एकाधिकार रहता है. इंतजार में क्षण नहीं बल्कि दिन – महिने – साल गुजर गये लेकिन जगन को आज तक ऐसी नींद आई है जिसके चलते परियो की राजकुमारी उसे अपने साथ ले जा सके. आज भी परियो की राजकुमारी ने अपनी सखी सहेलियो के साथ रोज रात को इस लोक में उतरने का अंतहीन सिलसिला नहीं छोड़ा है. वे आज भी बड़ी उम्मीदो के साथ आती तो है लेकिन सुबह होने से पहले ही निराश मन के साथ वापस लौट जाती है. यहां पर आने की परियो आश नही छोड़ी है जिसके चलते उस गांव में रोज रात को परियो का झुण्ड उस चम्पा के पेड़ के नीचे जमा हो रहा है. गंाव के आखरी छोर पर मौजूद अपनी उम्र के साथ बुढ़ा हो चुका चम्पा पेड़ आज भी उन परियो की चहल कदमी का केन्द्र बना हुआ है लेकिन जगन है कि चम्पा के पेड़ के नीचे रोज बिछने वाली उस गुदड़ी पर अपने पोते को सुलाने के बाद खुद सोने का नाम ही नहीं ले रहा है. जिंदगी के आखरी पड़ाव पर आ पहुंचे जगन को अब इस बात का डर सताने लगा है कि यदि वह भूल से भी सो गया तो उसके इर्द – गिर्द मंडराने वाली परियां कही उसे परी लोक में न ले जाये. उसके परी लोक में चले जाने के बाद उसके पोते का क्या होगा….. ? पिछले कई सालो से रोज रातो को जागने वाला जगन आज भी दिन में कुछ पल सो लेने के बाद रात भर जगने के लिए तैयार रहता है. एक दुसरे को एकटक निहारते परियो की राजकुमारी और जगन का यह प्रेम का सिलसिला बद्दस्तुर जारी है. सदियो से चम्पा के पेड़ के बारे कहा जाता है कि चम्पा के फूल के तीन गुण होते है ‘‘ चम्पा तेरे तीन गुण रंग रूप और बाश, चम्पा तेरे इस गुण के चलते भंवरे न आये पास…..’’ चम्पा का फूल रंग के अनुरूप सबसे निराला है. उसका रूप भी सबसे अगल – थलग है. दुनिया का वह एक मात्र ऐसा फूल है जिसकी सुगंध नहीं होती जिसके चलते कैसा भी भंवरा उसके आसपास नहीं मंडराता लेकिन इन सबसे से हट कर देखा जाये तो पता चलता है कि जिन परियो के पीछे लोग मंडराते रहते है उन परियो की राजकुमारी आज भी चम्पा के नीचे रोज रात को महकने वाले जगन रूपी फूल के चलते मंडराती चली आ रही है.
इति,

आखिर गधे के सिंग की तरह कहां गुम हो गये ताप्ती को लेकर राजनीति करने वाले
बैतूल। मां सूर्य पुत्री ताप्ती को लेकर हर कोई राजनीति और दुकानदारी करने लगता है। हर कोई ताप्ती को लेकर भाषण देने एवं ज्ञान बाटने में पीछे नहीं है। मुलताई के पूर्व दस साल तक विधायक रहे सपा नेता डां सुनीलम् ने तो बकायदा अपने लेटर हेड पर विधायक के पते में मुलतापी बैतूल छपवा लिया था लेकिन दस साल में वे ताप्ती के लिए दस सराहनीह कार्य भी नही करवा सके। मुलताई में आज भी ताप्ती की पहली पुलिया और ताप्ती का जन स्थान गंदगी और अतिक्रमण की मार का शिकार है। लोगो को उपदेश में मजा आता है। दुसरे के फटे पेंट को देख कर ताने मारने वाले यह क्यो भूल जाते है कि उसकी तो अंदर की चडड्ी तक फटी हुई दिखती चली आ रही है। आज इस बात को दंभ और खंभ के साथ लोग कहते है कि मां ताप्ती जागृति मंच के बैनर तले बीते दो सालो में जितने लोगो ने मां सूर्य पुत्री ताप्ती के पावन जल स्नान किया है वह अपने आप में बीते दो दशक की सबसे बडी उपलब्धि है।  मां ताप्ती के जल – थल तथा दर्शन से जोडने के पीछे मां ताप्ती जागृति मंच ने अब ताप्ती महिमा को जन – जन तक पहुंचाने के लिए सार्थक पहल शुरू की है। आज के इस घोर कलयुग में किसी भी इंसान से आज नही कल तक ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इस तरह की सार्थक पहल करके अधिक – अधिक लोगो को मां ताप्ती से जोड रखे क्योकि लोगो के दिलो – दिमाग में आज तक इस महान पुण्य सलिला के प्रति वह श्रद्धा पैदा नहीं हो सकी है जो अन्य नदियों के प्रति है। इसके पीछे वही नारद जैसी मानसिकता है जो ताप्ती महात्म को चुराते समय थी। खासकर ऐसे लोग जिनकी दुकानदारी गंगा के नाम पर चल रही है वे कदापि नहीं चाहते कि लोग पास की आदि गंगा में अपना तर्पण करके मोक्ष पा ले क्योकि ऐसा हो गया तो वे पंडित भूखे मर जायेगें जो कि गंगा के नाम पर दुकानदारी लगायें हुये है। आज यही कारण है कि लोग दिल और दिमाग से से मां सूर्य पुत्री ताप्ती के प्रताप से नहीं जुड सके है।  ताप्ती का नीर घर – घर तक पहुचे लेकिन ताप्ती का नीर तब घर – घर तक पहुंच पायेगा जब लोगो के मन में ताप्ती के प्रति श्रद्धा – समपर्ण – अपनापन – लगाव – चाहत जन्म लेगी । ताप्ती के बहते और थमें पानी में लगी सिचाई की मोटरो को बंद करवाने वाले यदि ताप्ती के प्रति समपर्ण की थोडी सी भी अपनी नीयत को साफ रखे तो उनके लिए इससे बढिया क्या काम होगा। जाग2ति मंच के सदस्य हर शनिवार और मंगलवार ताप्ती नदी के किसी भी घाट पर जमा हो रही गंदगी – पन्नी – प्लास्टीक और कपडे – कागज – कुडा – करकट को जलाने का कार्य करते चले आ रहे है। बैतूल जिले में बहने वाली ताप्ती के किनारे आज सुखते जा रहे है। आज इस बात को हम सभी को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा कि हम ताप्ती के जल को गुजरात की जीवन रेखा बनने में सहायक होने से रोके क्योकि ‘‘ हम प्यासे मरे और लोग पानी से नहाते जाये……!’’ यह सब नहीं चलेगा और न चलने दिया जायेगा। हमारी मां के आंचल के दुध से हमारे बचपन की भूख और तृष्णा शांत हो हम दुसरो के बचपन को पालने की सोची जाये। अब ऐसा कदापि नहीं होगा और न होने दिया जाये। पहले हमारा पेट भरे बाद मे दुसरे की चिंता और चिता के बारे में सोचने की नसीहत पर हमें एक जुट होना पडेगा। बैतूल जिले में पूरी ताप्ती दिन – प्रतिदिन मुलताई से लेकर जिले की सीमा तक सुखती जा रही है। हमें ताप्ती के गहरीकरण के प्रति नहीं बल्कि उसके बहाव को स्टाप डेम और जल रोको अभियान के तहत जहां – तहां पर जल संग्रहण स्थलो का निमार्ण कार्य करना होगा। ताप्ती के प्रति हमें अब अपनी नीति और रीति दोनो ही बदलनी होगी। अब हमारे साथ कंधा से कंधा मिला कर मौनी बाबा से लेकर गणेश बाबा को भी ताप्ती के जल को रोकने का भागीरथी प्रयास करना होगा। अब आज आवश्क्यता इस बात की आ पडी है कि बैतूल जिले में ताप्ती नीर को घर – घर बोतलो एवं पन्नी में न पहुंचा कर ऐसा अद्धितीय कार्य करना होगा कि स्वर्ग से रंजनीकांत गुप्ता की आत्मा भी हमारे कार्यो पर फूल बरसा सके। ताप्ती को जगह – जगह पर इतनी रोको और उसको अन्य नदियो से भी जोडना होगा ताकि ताप्ती का जल बैतूल जिले के गांव – गांव तक पहुंच सके। अब इस बात को भी सोचना होगा कि जब भोपाल के लोगो के लिए नर्मदा मैया भोपाल जा सकती है तब बैतूल जिले के जनप्रतिनिधियो को कथित चुल्लु भर पानी में डूब मरना चाहिये क्योकि वे अपने कार्यकाल में ताप्ती को अपने गांव – गली तक नहीं ला पा रहे है। बैतूल जिले के लोगो को तो ताप्ती के बहते पानी को स्वंय के पैसो से ऐसे सतलज की तरी नहर बना देनी चाहिये कि हमारी मां हमारे गांव – खेत और खलिहान से गुजरे और हम रोज उसका पावन जल पी सके। हमारे खेतो की – कुओ की प्यास बुझ जाये इसके लिए हमें भागीरथी प्रयास करना होगा। हम सभी को चाहिये कि हर हाल में हम इस बार उसी को मत दे जो कि इस बात का भरोसा – यकीन दिला सके कि वह नर्मदा जिस तरह भोपाल पहुंची है ठीक उसी तर्ज पर हमारी तापी हमारे घर – गांव – गौठान तक भले न पहुंचे लेकिन उसका जल भी जिले के बाहर लोगो के उपयोग में बाद में आये पहले हमारे काम में आये। आज नहीं तो कल ताप्ती जाग2ति मंच की इस कोशिस से यदि चार विद्धवान की जगह यदि मूर्ख व्यक्ति भी अपनी मूर्खता के बाद भी जुडता है तो मंच की पहल सार्थक एवं सफल हुई।

भारत देश में सर्कस एक मजाक बन कर रह गई ……..!
बैतूल। भारत में 1879 से सर्कसों की परम्परा चली आ रही हैं। छत्रे, परशुराम माली, कार्लेकर, देवल इन्ही की इसी परम्परा को वालावलकर निभा रहे हैं। उनके द्धारा संचालित दि ग्रेट रॉयल सर्कस की स्थापना 1906 में हुई थी और अब यह सर्कस सौ साल पूरी कर चुकी है। दि ग्रेट रॉयल सर्कस 1962 से 1989 तक 24 देशो में अपने प्रदर्शन करने के बाद स्वदेश में अपने कार्यक्रम दे रही है। ढाई सौ कलाकारो एवं कर्मचारियो के सांझा परिवारों को पालने वाली इस सर्कस में इस समय लगभग प्रतिदिन का खर्च लगभग पचास हजार रूपये आता है। इतनी बडी राशी का संकलन करना आज के इस दौर में कठीन कार्य है। सर्कस के प्रति लोगो का मोह धीरे – धीरे कम होने से अब लोग सर्कस देखने आना छोडते चले जा रहे है। कभी सर्कस में आने वाली भीड को देख कर फूले नहीं समाते कलाकारो का घटता मनोबल दिन – दिन प्रतिदिन इन कलाकारो के सामने रोजी – रोटी का बडा संकट लाने वाला है। आत शहरी हो या फिर ग्रामिण दर्शको को टेलीविजन और किक्रेट के मैचो ने अपने घरो में बांध रखा है। कभी सिनेमा के चलते दोहरी मार का शिकार बनी सर्कस अब टेलीविजन एवं सीडी प्लेयरो की बलि चढती जा रही है। सर्कस से जुडी केरल की मोनिका बताती है कि उसके पापा इसी सर्कस मे रिंग मास्टर्स थे जिसकी प्रेरणा से वह सर्कस की प्रमुख कलाकार है जिसने सर्कस को ही अपना घर संसार बना लिया है। साल में एक बार अपने पूरे परिवार से मिलने जाने वाली मोनिका सर्कस की जिदंगी में ही अपना सब कुछ न्यौछावर कर चुकी है। सुश्री मोनिका कहती है कि लोग पहले सर्कस में जंगली जानवरो विशेष कर शेर – चीते – भालू को देखने जाते थे,लेकिन अब तो राजस्थान के जहाज कहलाने वाले रेगिस्तानी जानवर ऊट और पालतू हाथियो के अकसर गांव – गांव तक मिल जाने से इन जानवरो के प्रति भी लोगो का रूझान कम हो गया है। सर्कस का काम देख रहे राजस्थान के प्रेम सिंह राठौड कहते है कि जबसे पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमति मेनका गांधी ने वन्य प्राणियो के प्रदर्शन पर रोक लगाई है तबसे लेकर आज तक सर्कसो में दिखने वाले जंगली जानवर भी जंगल की तरह सर्कस से भी गधे के सिंग की तरह गायब हो गये है। श्री राठौड कहते है कि ऐसे में बीस रूपये से लेंकर साठ रूपये के टिकट लेकर तीन घंटे तक दर्शको को बैठाल रखना तेढी खीर है। श्री राठौड इसे दर्शको की सर्कस के प्रति अरूचि का कारण भी मानते है। सर्कस के मालिको की मजबुरी है कि वह दर्शको को अपनी सर्कस में तीन घंटे तक रोके रखने के लिए अपने पास मौजूद महिला कलाकारो को भी कम कपडे में पेश कर उनकी देह को प्रदर्शित कर उससे दर्शको को बांधे रखे। आज भारत में मात्र 18 सर्कस ही बची है। अक्षय कुमार की फिल्म हेराफेरी में अपने करतब दिखा चुकी इस सर्कस ने कुछ साल पूर्व तक फ्रांस, सोमालिया, इथओपिका, इजिप्त, इराक, टांझानिया, सिंगापुर,मलेशिया, सिरिया, जॉर्डन कुवैत, लेबोनान, केनिया, युएई, सौदी अरबिया, मॉरिशस, सुदान, इंडोनेशिया जैसे कई देश में अपने प्रदर्शन  को प्रदर्शित किया। आज सर्कस जोकरो एवं जैमनास्टीक जैसे खेलो के अलावा मौत के कुये में मोटर साइकिल की रेस तथा खुबसुरत बालाओं के लोचदार बदन को देखने के लिए जानी जाती है। भारत में सर्कस में काम करने के बाद कई कलाकारो ने अपनी स्वंय की सर्कस तो बना ली लेकिन वे उसे ज्यादा समय तक जीवित नहीं रख सके। आज इस देश में सर्कस के कलाकारो के पास कोई दुसरा काम नहीं होने की वजह से वे अपनी जान को जोखिम में डाल कर ऐसे प्रदर्शन कर रहे है जिससे उसकी जान भी जा सकती है। देश में ऐसे कई अवसर इन सर्कसो में देखने को मिले जब सर्कस में जान जोखिम में डालने वाले कलाकरो को मौत की गोद में सोना पडा। बैतूल आई इस सर्कस में भी एक कलाकार दुर्घटना का शिकार हो गई जिसका नागपुर में इलाज चल रहा है। सर्कस में जरा सी भूल जान को जोखिम में डाल सकती है। राजकपुर की फिल्म मेरा नाम जोकर में राजकपुर ने एक जोकर की पीडा को दर्शाया था लेकिन पूरी सर्कस पीडा का दुसरा नाम है। बैतूल में आई सर्कस में यू तो निना पेनकिना लासो, हंटर और पक्षियों की कला पेश करती हैं। विदेशी कलाकरो को अनुबंधन पर लाने के बाद उनसेजो काम प्रस्तुत किये जाते है वह भी अपने आप में तारीफे काबिल है। रूस की महिला कलाकार दियोरा रशियन रस्सी की बेहतरीन कलाकारी पेश करती हैं। और रमिल, शाहनोजा भी एक बेहतरीन कलाकारा हैं जो रिंग डांस, रिंग बैलेंस जैसी कला भी अपने अनोखे अंदाज में पेश करती हैं। साथ में भारतीय कलाकारों का भी अच्छा मेल दिखायी देता हैं। सर्कस पर यूं तो पूरे विश्व का कब्जा है। अरबी देशो को छोड कर प्रायः विश्व के सभी कोने में सभी देशो की सर्कसे है। भारम एशिया का सबसे बडा महाद्धीप है इसलिए सर्कस को आज भी दर्शक मिल जाते है लेकिन उनके भरोसे पूरे दो – ढाई सौ लोगो का पेट पालना संभव भी नहीं है। श्री एम प्रभाकर सर्कस के प्रबंधक है उनके अनुसार भारत में केरल को छोड कर कोई भी राज्य सरकार सर्कस के कलाकारो को पेंशन जैसी सुविधा नहीं दे रहा है। प्रभाकर मानते है कि सर्कस एक प्रकार से जोखिम भरा खेल है लेकिन जोखिम तो घर से लेकर बाहर तक हर जगह है। हमें अपना और अपने परिवार का पेट पालना है तो जोखिम तो उठाना पडेगा ही। सर्कस के जोकर रामबाबू का मानना है कि यदि वह बौना नहीं होता तो जोकर नहीं बनता। लोगो को हसंाने वाला जोकर खुद  अकेले कोने में बैठ कर सिसकी लेता है। वह कहता है कि जोकर मैं बना नहीं हूं ईश्वर ने मुझे जोकर लोगो को हसंाने के लिए बनाया है। घर परिवार से कोसो दूर सर्कस में मौत के कुयें में मोटर साइकिल चलाने वाले दो कलाकार बताते है कि जिदंगी हादसो से भरी है। सबसे बडा हादसा दोपहर और रात की भूख है जो सब कुछ करवाती है। बैतूल के न्यू बैतूल ग्राऊण्ड में आई सर्कस के कलाकारो के अनुसार सरकार को चाहिये कि लोगो के स्वस्थ मनोरंजन के इस साधन को जिंदा रखने के लिए कोई ऐसा जनहित कार्य करे ताकि सर्कस और जोकर बरसो तक जीवित रह सके।

दूरदर्शन एवं पीटीआई के पत्रकार के खिलाफ दर्ज धोखाधडी के अपराधिक
प्रकरणो में न्यायालय ने पुलिस के खात्मा प्रतिवेदन को ठुकराया
बैतूल ( रामकिशोर पंवार ) अकसर ऐसे प्रकरण न्यायालयों में देखने को मिलते है जब लोगो को लगता है कि न्यायपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप एवं पुलिस की मनमानी को न्यायालय अनसुनी करके ऐसे आदेश कर देता है कि लोगो का सर न्यायालय के प्रति ससम्मान झुक जाता है। प्रदेश में भाजपा सरकार के रहते समय भाजपा नेताओं के कथित दबाव एवं हस्तक्षेप के बाद भी बैतूल जिला मुख्यालय पर स्थित श्री आर एस ठाकुर की प्रथम श्रेणी न्यायालय ने तीन अलग – अलग प्रस्तुत धोखाधडी के परिवादो में न्यायालय द्धारा दर्ज करवाये गये प्रकरणो की पुलिस द्धारा जांच कर आरोपियो के विरूद्ध कार्यवाही के निर्देश के विपरीत पुलिस ने उन मामलो में दस्तावेजो का न मिलने एवं साक्ष्य के नष्ट होने का बहाना बना कर खात्मा प्रस्तुत कर दिया गया था। पुलिस द्धारा न्यायालय के आदेश पर दिनांक 25 जून 06 को तीन अलग – अलग मामलो में मयंक भार्गव संवाददाता पी टी आई एवं भाषा , मयूर भार्गव संवाददाता दूरदर्शन भोपाल , श्रीमति उर्मिला बेवा शिवशंकर भार्गव , ठाकुर विक्रमादित्य सिंह ठाकुर , वीरेन्द्र दुबे के विरूद्ध दर्ज तीन धारा 420 , 467, 468, 472 , 34 के मामलो में बैतूल पुलिस द्धारा दिनांक 3 मार्च 2008 को खात्मा प्रस्तुत किया गया था। न्यायालय ने वर्ष 2006 में दर्ज करवाये गये जालसाजी के मामलो में एक साल तक तार्किक बहस सुनने के बाद पुलिस के खात्मा के प्रतिवेदन को अस्वीकार करते हुये सभी आरोपियो के खिलाफ कुट चरित इस जालसाजी के प्रकरणो की जांच पुलिस अधिक्षक स्तर के अधिकारी से करवाने के साथ – साथ पूरे मामले में परिवारी अनावेदक द्धारा प्रस्तुत दस्तावेजो में अंकित हस्ताक्षरो एवं राइटिंग की राइटिंग विशेषज्ञ से जांच करवाने के निर्देश दिये। न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में निर्णय दिया कि न्याय दृष्टांत एफ आई आर 1985 एस सी 1285 का उल्लेख करते हुये भगवत सिंग विरूद्ध पुलिस कमिश्नर के मामले में सुप्रिम कोर्ट के अभिमत का उल्लेख करते हुये पुलिस के द्धारा प्रस्तुत खात्मा के प्रतिवेदन को अस्वीकार कर मामले की पुनः जांच के निर्देश जारी किये। बैतूल जिले के इतिहास में भाजपाई नेताओं के द्धारा समय – समय पर इन तीनो मामलो में आरोपी अधिकारी विक्रमादित्य सिंह ठाकुर एवं पत्रकार मयंक एवं मयूर भागर्व एवं अन्य को बचाने के लिए पूरे मामले को वर्ष 2006 से लेकर मामले के खात्मा पेश किये जाने तक दबाये रखा तथा मामले मेें पुलिस ने साक्ष्य के नष्ट होने एवं दस्तावेजो के न होने का बहाना बना कर पूरे मामले को शुन्य कर रखा था। आरोपियो द्धारा न्यायालीन कार्यवाही को भी समय – समय पर प्रभावित करने का प्रयास किया गया लेकिन अनावेदक एवं उसके अधिवक्ता द्धारा पूरे मामले में हार न मानते हुये पुलिस द्धारा प्रस्तुत खात्मा को चुनौती देकर न्यायालय से उसे अस्वीकार करने एवं मामले की उच्चस्तरीय जांच का निवेदन किया गया। पूरे मामले में लगभग एक वर्ष तक अनावेदक एवं उसके वकील द्धारा न्यायालय के सामने कई दस्तावेजो एवं न्यायालीन सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलो का उल्लेख कर पूरे मामलो के बारे में अपने पक्ष में तर्क प्रस्तुत किये गये जिस पर विद्धवान न्यायाधीश द्धारा अहम निर्णय सुनाते हुये पुलिस के प्रस्तुत खात्मा प्रतिवेदन को अस्वीकार कर मामले की पुनः पुलिस अधिक्षक के समकक्ष अधिकारी से जांच करवा कर जांच प्रतिवेदन रिर्पोट न्यायालय में समय सीमा मंे प्रस्तुत करने के निर्देश दिये गये। इस बहुचर्चित प्रकरण में भाजपा सरकार के कई मंत्री , सासंद , विधायक तथा स्थानीय नेता एवं मध्यप्रदेश शासन के भोपाल एवं बैतूल में बैठे अधिकारियों ने मामले को दबाने का भरपूर प्रयास किया गया। बैतूल पुलिस एवं जिला प्रशासन ने आरोपियो के बचाने के लिए अनावेदक एवं परिवादी को विभिन्न झुठे मामलो में फंसा कर उसे लगभग डेढ माह तक जेल में रखा ताकि वह परिवाद वापस ले ले लेकिन जब सब तरह के प्रयासो से पुलिस एवं प्रशासन हार गया तो उसने समुचे मामले में खात्मा पेश कर दिया। अब सारे मामले में जब पुलिस की कार्यवाही पर न्यायालय ने संदेह की ऊंगली उठा कर उसके खात्मा को दर किनार कर नया आदेश जारी करके बैतूल जिले में बहुचर्चित इस प्रकरण में सनसनी पैदा कर दी। लोग न्यायालय के इस आदेश पर खुशी से झुम उठे क्योकि लोगो को ऐसे समय में जब कहीं से न्याय न मिलने की उम्मीद होती है तब वह न्यायालय के ही दरवाजे खटखटाता है। समूचे प्रकरणो में सबसे आश्चर्य जनक तथ्य यह सामने आया कि बैतूल जिले के अधिकांश अधिवक्ता अनावेदक रामकिशोर आत्मज दयाराम पंवार निवासी बैतूल द्धारा दायर इन तीनो जालसाजी के प्रकरणो में आरोपियो की ओर से पैरवी कर रहे थे वहीं दुसरी ओर अनावेदक की ओर से प्रदेश के जाने – माने अधिवक्ता राधाकृष्ण गर्ग एवं मनीष गर्ग ने अपने जोरदार तार्किक तर्क प्रस्तुत किये। सबसे दिलचस्प एवं हैरानी वाली बात यह है कि बैतूल न्यायालय द्धारा बैतूल जिला पुलिस अधिक्षक को इस संगीन मामले की स्वंय जांच कर न्यायालय में अपनी जांच रिर्पोट प्रस्तुत करने के लिए चेतावनी भरे पत्र भी जारी किये गये लेकिन सवर्ण समाज के आरोपियो को बचाने के लिए पुलिस विभाग के आला अफसर जानबुझ कर न्यायालय को कोई न कोई बहाना बता कर गुमराह करते चले आ रहे है. इस मामले को लेकर परिवादी रामकिशोर पंवार द्धारा उच्च न्यायालय बैतूल में आवेदन पत्र प्रस्तुत कर मामले को लेकर एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर उक्त संगीन मामले को लेकर न्याय की गुहार की है.

जिसकी मौत का हुआ 24 घंटे लाइव
टेलिकास्ट वह आज भी जिंदा है
बैतूल. रामकिशोर पंवार . बीते वर्ष 2005 के अक्टुम्बर माह की 20 तारीख को जिस व्यक्ति का देश के एक दर्जन से अधिक टी वी चैनलो ने तथाकथित भविष्यवाणी पर आधारित मौत का लाइव टेलीकास्ट किया वह कुंजीलाल विश्वकर्मा आज भी जिंदा है. 85 साल का ग्राम सेहरा का चौसर के पासे ऊफेक कर लोगो का भविष्य बताने वाले कुंजीलाल को हीमजि टी आर पी बढ़ाने के चक्कर में देश भर के टी वी चैनलो ने अपने सारे कार्यक्रमो को दर किनार कर उसकी आने वाली मौत के लिए पलके पावडे बिछा कर उसका लाइव टेलीकास्ट किया वह भी पूरे 24 घंटे लेकिन मौत को ठेंगा दिखाने वाला कुंजीलाल बढ़ई अपनी ही मौत के लाइव टेलीकास्ट की घटना से इतना दुखी है कि  वह मीडिया वालो से बात तक करना पसंद नहीं करता. बैतूल आठनेर मार्ग पर सूरगांव से आगे सेहरा ग्राम पंचायत के लिए बायपास डामरीकृत मार्ग जाता है. इसी गांव में 20 अक्टुम्बर 1930 किशनलाल बढ़ई के घर पर जन्म लेने वाला कुंजीलाल तीसरी पास और चौथी फेल है. अपनी मौत का तमाशा देख कर वह आज भी दुखी है. उसका उन लोगो पर से विश्वास ही टुट गया जो कि कैमरा और लोगो लेकर आ धमकते है. ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव का अंक ज्योतिषी विद्या का जानकार कुंजीलाल बार – बार कहता है कि उसने भीष्म पितामह की तरह अपनी मौत की कोई पूर्व घोषणा नहीं की थी लेकिन टी वी चैनलो ने एस एम एस के माध्यम से करोड़ो रूपैया कमाने के बाद आज तक उसकी ओर पलट कर भी नहीं देखा. जिला मुख्यालय से मात्र 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम सेहरा के कुंजीलाल की आंखो का मोतियाङ्क्षबद पक चुका है. वह आज भी अपनी चौसर के पासे फेक कर लोगो को उनके घरो में होने वाले मांगलिक कार्यो एवं अन्य कार्यक्रमो के शुभमुर्हत का ज्ञान कराने वाला कुंजीलाल विश्वकर्मा आज भी गांव का सबसे भरोसेमंद ज्योतिषी है. आज यही कारण है कि उसके घर पर लोगो का जमावड़ा बना रहता है.

बैतूल जिले में मिली ईसा पूर्व
एक हजार साल प्राचिन दुर्लभ शंख लीपी
बैतूल  ( रामकिशोर पंवार ) । बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 18 किलो मीटर की दूरी पर एक दुर्लभ लिपी के प्रमाण मिले है.  ईसा से एक हजार पूर्व उपयोग मे लाई जाने वाली शंख लीपी को विश्व की अति प्राचिन चिन्हीत भाषा में लिया गया है. बैतूल जिले के घने जंगलो में एक बरसाती नाले में मौजूद एक पत्थरो की चटटïन पर उकेरी गई शंखाकार (आकृति) में अनेको शंख एवं भित्ती चित्र जो कि गोल आकृति में तथा शुन्याकार आकृति में आडे – तेड़े  तीरछे बने हुये है. इन चित्रो को देखने से ऐसा लगता है कि बार – बार इन पत्थरो पर से लोगो की एवं बैल गाडिय़ो की आवाजाही की व$जह से यह लीपी पूर्ण रूप से अपने मूल स्वरूप को खोती जा रही है. लोगो की आवाजाही बढऩे से भी क्षेत्र की कई प्राचिन एतिहासिक धरोहर अपना मूल स्वरूप खो रही है.बैतूल जिले के प्राचिन जयवंती हक्सर महाविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे सेवानिवृत इतिहास श्री आर जी पाण्डे के अनुसार शंख लीपी ईसा के एक हजार साल पूर्व की है. आपके अनुसार इस लीपी की पहचान भोपाल से किसी जानकार को बुलवा कर की जा सकती है। जिस प्रकार की आकृति का उल्लेख या वृतांत बताया जा रहा है उसके अनुसार यह लीपी शंख लीपी हो सकती है लेकिन इसकी पुष्टिï केवल भोपाल में मौजूद संबधित जानकार लोग ही कर पायेगें . जब शंख लीपी को जीवांश बताने की बात सामने आई तो जिले में बवाल मच गया था. जिले के जानकार लोगो ने प्रशासन पर पुरात्व दृष्टि से अति महत्वपूर्ण क्षेत्रो की अनदेखी करने एवं शासन को गुमराह करने का आरोप लगाया.

देह व्यापार पर आधारित सत्यकथा
देह बनी खेती
– रामकिशोर पंवार
अफीम की तस्करी के लिए अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नीमच शहर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर राष्टïरीय राजमार्ग पर बाछड़ा जाति की बस्ती बसी हुई है. सौ सवा सौ घरो की इस बदनाम बस्ती में पहँुचने वाले किसी भी आम आदमी से उस बस्ती का बच्चा हो या बुढ़ा बस एक ही सवाल करता है ”साहब फ्रेश माल चाहिए क्या………..?   बहू – बेटी – बहन के लिए ग्राहक तलाशते लोगो के लिए उक्त जिज्ञासा भरा प्रश्र उसकी रोजी -रोटी से जुड़ा होता है . या कुछ और मजबुरी या फिर उसके मौज मस्ती का जरीया यह तो वह ही जान सकता है लेकिन उसके चेहरे पर दिखने वाली छबि सामने वाले के मन में अनेको सवालों को जन्म दे देती है. जो आदमी मेरे पास उक्त सवाल करने आया वह सिर से पांव तक फटेहाल कपड़े से अपने जिस्म को ढ़कता पौढ़ अपनी बुझती बीड़ी को जलाने के लिए लम्बा कश लगाते हुये मुझसे से वही सवाल एक बार फिर करते हुए पुछता है कि ”साहब फ्रेश माल चाहिए क्या………..?   पहले तो मैने उसकी बात पर ध्यान नही दिया लेकिन वह मुझे शहरी मालदार आदमी समझ कर मेरे पीछे ही पड़ गया. मैने उससे अनको सवाल करने थे लेकिन मेरे सवालो का जवाब तो तब मिलता जब वह मुझसे उसकी बहू- बेटी से मिलवाता…………. !  आज मैं पहली बार उस पौढ़ व्यक्ति के सवालो को सुन कर हैरत में पड़ गया हँ. यूँ तो मैं कई बार देह व्यापार करने वाली महिलाओं की बस्ती में उन पर स्टोरी लिखने के लिए जा चुका हँू . मुझे पहली बार उस पौढ़ व्यक्ति का अपनी बहू-बेटी की उम्र की लड़कियों के लिए ग्राहक तलाशना अजीब सा लगा. मैं उस पौढ़ व्यक्ति से कुछ बोल पाता इसके पहले उस कच्चे मकान के भीतर से एक सजी संवरी युवती ने मुझे आँख मारते हुए अंदर आने का इशारा किया . मैं मकान के अंदर जानेे के लिए आगे बढ़ा . करीब आने पर मैने देखा कि उस मकान में कुल दो कमरे बने हुए थे . सामने के कमरे में एक पौढ़ महिला बैठी हुई थी . अंदर से इशारा करने वाली युवती ने मुझसे उस महिला को रूपये देने का इशारा किया . मैने अपने पर्स से सौ रूपये का नोट निकाल कर मैने जैसे ही उस महिला को दिया वह रूपयें लेकर कमरे से बाहर चली गई . उस महिला के कमरे से बाहर जाते ही उस युवती ने मुझे अंदर की ओर खीचा और उसने अपने जिस्म से कपड़े उतारने शुरू किये तो मैने उसे रोक लिया …….!  पहले ते मैने उससे पुछा कि  बाहर से कमरे का दरवाजा बंंंद क्यो ……..? मेरे इस प्रश्र पर वह बोली ”बाबू घबरा नहीं पुलिस वालो से बचने के लिए ऐसा करना पड़ता है . ÓÓ उस युवती ने अपना नाम निर्मला बताया . निर्मल मन की उस युवती की वेश्या बनने की त्रासदी किसी हिन्दी फिल्म की नायिका से काफी मिलती जुलती थी . जब मैने उसे सवालो से उसके जिस्म को कुरेदना चाहा तो वह सिसकती हुई बोली ”बाबू जिस काम के लिए आए हो वो करो और हमे भी अपना काम करने दो ………. !  क्यो नाहक हमारा टाइम खराब कर रहे हो …….?  आप मेरे पहले ग्राहक है ….?  मुझे और भी लोगो को खुश करना है….? मुझे कुछ कमाने दो ना ……?  उसकी यह मजबुरी मुझे अजीब उलझन में डाल गई . मेरा उसके बारे में जानना बहँुत जरूरी था मैने उससे कहा ” निर्मला अपने बारे में मुझे सब कुछ बताओं  मैं जितनी देर इस कमरे में रहँुगा उतनी देर का तुम्हे रूपैया दँुगा . काफी मिन्नत के बाद वह इस शर्त पर मानी कि उसकी इस कहानी में उसका नाम पता सब कुछ बदलना होगा. मैने उसे विश्वास दिलाया तो वह बताने लगी.
निर्मला आज अजीब उलझन में है. उसकी उलझन न तो पैसों को लेकर है और न ही किसी अन्य कारण से. पैसा उसके पास बहुत है, आधुनिक सुख-सुविधाएं भी उसने अपने पास काफी मात्रा में जुटा ली है. निर्मला की दिक्कत उसकी चार साल की बेटी ममता है. ममता अब सब कुछ समझने लगी है . ममता अब उससे सवाल करती है कि ” मम्मी मेरा बाप कौन है……..? वह मुझसे मिलने क्यो नहीं आता है…….? वह हमारे पास क्यो नहीं रहता………? ऐसे कई सवाल वह पूछती है. उसके हर सवाल ऐसे है जिसका जवाब वह खुद भी नहीं जानती .  निर्मला ने जबसे होश संभाला है तबसे अपने आपको देह व्यापार की मण्डी में बैठा पाया है . खुद निर्मला को यह नही मालूम कि वह किसकी बेटी है…….? उसके पास अब तक कितने पुरूष आए और अपनी रातें रंगीन कर चले गए . जब निर्मला को खुद नहीं मालूम कि वह किसकी बेटी है तब वह अपनी बेटी को कैसे बताए कि वह किसकी बेटी है……. ? उस रोज जब वह गर्भपात कराने अस्पताल गई थी तो डाक्टरो ने उसे यह कह कर मना कर दिया था कि अगर उसकी सेहत का ध्यान रखे बिना गर्भपात करा दिया गया तो उसकी जान जा सकती है . अपनी जान को बचाने के लालच में ममता ने जन्म ले लिया .जब ममता हुई तो उसने सोचा था कि वह अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनायेगी कि वह इस बदनाम बस्ती से कोसो दूर रहे . निर्मला ने अपनी बिटिया ममता को जयपुर के कान्वेट स्कूल में भर्ती कराते समय यही सोच कर अपनी बेटी को अपने से दूर रखने का निर्णय लिया था . चार साल की होते ही ममता ने स्कूल जाना शुरू कर दिया . बाछड़ा जाति के लोगों की इस बस्ती में  निर्मला  ही अकेली ऐसी औरत नहीं है, दर्जनों ऐसी औरतें है, जिनकी ममता जैसी बेटीया तो है पर वे स्कूल जाने के बजाए अपनी माँ को देह बेचते देखने के बाद उससे सवाल तक नहीं करती की वह ऐसा क्यो कर रही है…….?  आज भी और आने वाले कल भी सालो से हर रोज अपना जिस्म बेचती दर्जनो बाछड़ा जाति की युवतियाँ अपने-अपने घरों से सड़को पर निकल कर  ग्राहको की तलाश में खड़ी हो जाती है और जैसे ही कोई पुरूष उधर आता दिखाई देता है, उसे अश£ील इशारे करके उसे अपने पास बुलाती है. मध्यप्रदेश के नीमच, मंदसौर , रतलाम जिले के बागाखेड़ा, पयलिया, माननखेड़ा तथा ढोढर और मंदसौर जिले के चिकलाना, मोयार बेड़ा, हनुमंतिया पिपलियामण्डी, मल्हारगढ़, चल्हू इंगोरिया तथा शंकर ग्राम गांव में ऐसे दृश्य आम बात है. आज भी इन गांवों में देह-व्यापार का धंधा कई पीढिय़ो से होता चला आ रहा है. इन गांवो में आने वालों में अधिकतर ट्रक ड्रायवर तथा उधर से गुजरने वाले राहगीर होते है.सौदा तय हो जाने पर पेशेवर औरतें ग्राहक को अपने घर ले जाकर उसे शारीरिक सुख देती है. नीमच, रतलाम तथा मंदसौर में 67 गांव ऐसे है जहां जिस्म फरोशी का धंधा धड़ल्ले से होता है. बाछड़ा जाति में जिस्म-फरोशी के धंधो को बुरा नहीं माना जाता है बल्कि यही धंधा उनकी रोजी-रोटी का आधार है. इस जाति की पौढ़ महिलाए अपने परिवार की रजस्वला की उम्र पार करने वाली हर लड़की को जिस्म बेचने की विशेष ट्रेनिंग देती है .12 वर्ष की अवस्था में पहुंचते ही उसे जिस्म-फरोशी के धंधे में उतार दिया जाता है . आज भी देह व्यापार से जुड़ी बाछड़ा जाति में बेटी के पैदा होने पर उसके परिवार के लोग जश्र मनाते है. साथ ही जब परिवार में लड़का पैदा होता है तो मातम मनाया जाता है. बाछड़ा जाति के पुरूषों के बारे में आम धारण है कि ए लोग एक नम्बर के कामचोर, निकम्मे और आलसी होते है, घर बैठकर रोटी तोडऩे के अलावा अपनी बहू- बहन – बेटी के लिए ग्राहक तलाशना इनका काम रहता है. आज भी केवल इस जाति में परिवार की सबसे बड़ी महिला को ही परिवार का मुखिया स्वीकारा जाता है . पुरा परिवार उसी महिला के हुक्म पर चलता है . बीते कुछ साल पूर्व तक बाछड़ा जाति में पहली लड़की को ही धंधे पर बिठाने की परम्परा थी, लेकिन पैसे की हवस में जाति के लोगों ने इस परम्परा को तोड़कर परिवार की सभी लड़कियों को धंधे में बिठाने की नई परम्परा शुरू कर दी है. आज भी इस जाति की अधिकांश युवतियाँ छोटी सी उम्र से ही शराब, हीरोइन , अफीम ,चरस ,की आदी हो जाती ह ै.
वैसे देखा जाए तो इस जाति की महिलाओं का जिस्म फिरोशी का धंधा पुलिस के संरक्षण में ही चलता है . पुलिस यदा – कदा बदनामी से बचने के लिए इनके अडडे पर छापे मार देती है . ऐसा तब ही होता है कि जब क्षेत्र का कोई दरोगा या पुलिस का बड़ा अफसर बदल जाए . कुछ बाछड़ा जाति की महिलाओं को पुलिस छापे का भय सताते रहता है . पुलिस के डर से ए महिलाए अपने घरों में चारपाई और खाना बनाने के बर्तनों के अतिरिक्त कुछ भी सामान नहीं रखती है . हालाकि अधिकांश बाछड़ा जाति महिलाओं ने वेश्यावृत्ति से लाखों रूपए की कमाई करके नीमच एवं मंदसौर तथा रतलाम शहरों में अपने भव्य आलीशान मकान रखे है . अपने जिस्म के धंधे की मजबूरी को ध्यान में रखकर ए लोग आज भी कच्चे घरों में रहकर बेधड़क जिस्म फरोशी के धंधे को चलाये रखी है . बाछड़ा जाति में भी लड़की की नथ उतारने की परम्परा आजभी जारी है .नथ उतराने के लिए उस लड़की के परिवार को पाँंंच हजार रूपैया दिया जाता है . देह व्यापार के इन अड्डïों पर दिल बहलाने आने वालों के लिए हर तरह की शराब सहित अन्य नशो का भी इंतजाम करवाया जाता है . मटन मुर्गा खाने वाले ग्राहको को उनकी मांग के अनरूप भोजन पका कर उपलब्ध कराया जाता है.कम उम्र की लड़कियां 275 से 300 रूपए के बीच मिल जाती है . ऐसा नहीं कि बाछड़ा जाति की लड़कियां जिस्म-फरोशी के धंधे को स्वेच्छा से करती है . दरअसल उनके मां-बाप ही उन पर दबाव डालकर धंधा करने के लिए प्रेरित करते है . बहुत सी लड़कियां चाहती है कि उनकी भी शादी हो और वे भी अपना घर बसायें, लेकिन मां-बाप की पैसों की हवस ही उनके इस स्वप्र को खाक कर देती है .
सबसे बड़ा आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि बाछड़ा जाति की युवतियाँ जिस्म फिरोशी के धंधे आने के कारण कई बार समय पर गर्भनिरोधक सामग्री का उपयोग नही कर पाने के कारण बिना ब्याही माँ बन जाती है . ऐसी महिलाओं की संख्या काफी है . शायद यही वजह रही होगी कि इस जाति की महिलाओं में कोर्ट-कचहरी से लेकर बच्चे के दाखिले तक में पिता की जगह इनकी मां का नाम ही लिखने की परम्परा जन्मी है . महू-नीमच मार्ग के किनारे बसे बाछड़ा समाज के गांवों के आसपास कई ट्रक खड़े देखे जा सकते है . ये ट्रक ट्रको के ड्रायवर ही इन युवतियो के मुख्य ग्राहक होते है . अपने घर – परिवार से महिनो दूर ट्रक ड्रायवर अपनी मौज मस्ती के लिए इन युवतियो का खुब उपभोग करते है .स्थानीय लोग इन अड्डïों पर कम ही जाते है. जिस्म फिरोशी की इन बदनाम बस्तियों में पुलिस को कई बार कुख्यात अपराधी हाथ लगते है . देह-व्यापार के धंधे में लिप्त होने की वजह से यहां की ज्यादातर वैश्याएं भयानक यौन रोगों से पीडि़त होती है. कई बार अनेक चिकित्सा दलों द्वारा समय-समय पर किए गए सर्वेक्षण से चौकाने वाले निष्कर्ष सामने आए है . नीमच एवंंं रतलाम तथा मंदसौर जिलों की अधिकंाश बाछड़ा जाति की महिलाए एड्स जैसे भयानक रोग से पीडि़त मिली है . एड्स रोगी महिलाओं ने जागरूकता के अभाव के चलते इस बीमारी से निपटने के लिए न तो अस्पतालों की शरण ली है और न राज्य सरकार ने इन पीडि़त महिलाओं की सुध ली है .राज्य सरकार ने बाछड़ा समाज के बच्चों तथा महिलाओं के लिए स्कूल तथा वोकेशन ट्रेनिंग सेन्टर जरूर खोले है, लेकिन समाज में जागरूकता ला पाने के अभाव से ये योजनाएं विफल हो गई है . यहां के एक सरकारी स्कूल में इस समय केवल सात बच्चियां ही शिक्षा ग्रहण कर रही है . इसी तरह ढोढर सिलाई केन्द्र में केवल तीन लड़कियां सिलाई का प्रशिक्षण ले रही है . इन सब बात से पता चलता है कि बाछड़ा जाति की महिलाए अपने पुश्तैनी धंधे को छोडऩा नहीं चाहती है . मंदसौर जिले के 57 गांवो में बाछड़ा समाज के लगभग 5668 लोग रहते है. स्वास्थ्य विभाग ने एड्ïस की जांच के लिए बाछड़ा समुदाय की 12 से 35 वर्ष की लड़कियों एवं पुरूषों के 950 रक्त नमूने लिए. प्रारंभिक जांच में इनमें एड्स की संवेदनशीलता 99.9 प्रतिशत आंकी गई. सर्वे के अनुसार 756 महिलाओं की जांच की गई, जिसमें 50.6 प्रतिशत वीडीआरएल पाई गई. एचआईवी पॉजिटिव की प्रमाणिकता 1.93 प्रतिशत पाई गई है. बाछड़ा समुदाय के 765 पुरूषों में 46.4 प्रतिशत वीडीआरएल पॉजिटिव पाए गए है, इसमें 0.75 प्रतिशत एचआईवी पॉजिटिव पाए गए है . इसी सर्वेक्षण में 435 स्त्रियों में वीडीआरएल पॉजिटिव पाया गया. इतनी बड़ी संख्या में एचआईवी सिद्ध होना भयंकर खतरे की ओर संकेत करता है. रतलाम से लेकर मंदसौर जिले के मुख्य सड़क मार्ग जिसे महू-नसीराबाद राजमार्ग कहा जाता है, इस पर 24 घंटे में लगभग तीन-चार हजार भारी वाहन गुजरते है. इसी मार्ग पर बाछड़ाओं के डेरे है . इस सड़क पर स्थित ढाबो पर आपराधिक गतिविधियां, अफीम, ब्राउन शुगर तथा स्मेक जैसे नशीले पदार्थों की बिक्री तथा देह व्यापार संचालित होता है. स्वास्थ्य विभाग ने यहां से गुजरने वाले ट्रक ड्रायवरों एवं क्लीनरों के भी रक्त नमूने लिए. जांच करने पर 20.7 प्रतिशत वीडीआरएल पॉजिटिव पाए गए. इस जांच में पता चलता है कि बाछड़ा समुदाय की पेशेवर लड़कियों से इन ट्रक ड्रायवरों में एचआईवी का प्रतिशत काफी अधिक है। इस निष्कर्ष के अनुसार ट्रक ड्रायवर इन बीमारियों को ज्यादा फैला रहे है. क्योंकि ये ट्रक ड्राइवर तथा क्लीनर जिस तरह बाछड़ा जाति की लड़कियों के साथ जिस्मानी संबंध बनाते है उसी तरह अन्य जगहों पर भी संबंध बनाते है. बाछड़ा जाति की युवतियाँ कब इस दलदल से बाहर निकल पायेगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन निर्मला को आज भी यह उम्मीद है कि उसकी ममता भविष्य में कभी भी उसका स्थान नहीं लेगी.
गांवो में जिस्म बेचने की मजबुरी जानने के बाद लौटते समय जब प्रदेश की राजधानी पहँुचा तो वहाँ पर देह व्यापार की मण्डी तथा कुछ पेशेवर वेश्याओं और उनके दलालो से भी सामना हुआ . उस रात घड़ी में बड़ा काटा बारह पर तथा छोटा काटा दस पर आकर ठहरा तो घंटी बजने लगी. भोपाल बस स्टैंड पर रूके यात्रियो का ध्यान अचानक उस युवती की ओर ठहर सा गया. तीखे नाक नक्श वाली वह युवती किसी से शायद यह पुछ रही थी कि सारनी -पाथाखेड़ा वाली जब रात के दस बजे तो घंटी बजने लगी. दस बजते ही अब तो घर जाना चाहिए यह सोच कर थाना प्रभारी ने अपनी टेबल पर रखी पुरानी फाइलो को समेटा और उसे आलमारी में रख कर वे घर जाने के लिए जैसे ही थाना की चौखट को पार करने लगे कि एक दुबली पतली कमसीन सी युवती ने परेशान हाल में थाना परिसर में प्रवेश किया. युवती को करीब आता देख थाना प्रभारी ने उससे आने का कारण पुछा तो वह आजू – बाजू  अपनी न$जरो को घुमाते हुई कुछ कहना चाह रही थी. थाना प्रभारी को लगा कि शायद युवती जो कुछ बताना चाहती है! वह अकेले में तथा ऐसे कमरे में जहाँ पर उसके अलावा कोई और ना हो , जहाँ पर उस युवती की बातों को सुन जा सके ऐसे स्थान की ओर थाना प्रभारी ने उस युवती को इशारा किया तो वह भी थाना प्रभारी  के पीछे – पीछे चली आई . थाना प्रभारी ने युवती को अपने कक्ष में लेकर चले आये जहाँ पर उस डरी सहमी कुछ घबराई सी दिखने वाली इस युवती ने जो कुछ बताया वह काफी चौकान्ने वाला था! देह शोषण के भंवरजाल में फंसी इस नाबालिग युवती की दर्द भरी बातें सुन थाना प्रभारी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहँुचा. युवती ने बताया कि साहब, मेरा नाम माधुरी (काल्पनिक) है. मैं शिवाजी नगर में रहती हूं. पिछले लगभग एक माह से मैं कुछ ऐसी दुष्टï महिलाओं के चंगुल में फंस गई हूं , जो मुझे अपनी कैद में रखकर मेरा लगातार कई लोगों से दैहिक शोषण करवा रही है . पिछले कुछ दिनों से मैं बजरिया थानांतर्गत किसी ऊषा वर्मा नामक महिला के मकान में रहती थी . आज अशोका गार्डन निवासी मीना ठाकुर ऊषा के पास आई और मुझे अपने साथ ले जाने की जिद करने लगी. मुझे अपने साथ रखने की खींचतान में मीना व ऊषा में जमकर झगड़ा होने लगा. हो-हल्ला सुन जब कुछ मोहल्ले वाले भी वहां इक हो गए तो मौका देख मैं वहां से भाग निकली और आपके पास आ गई . घटना की जानकारी मिलते ही वरिष्ठï अधिकारी भी सक्रिय हो गए. तत्काल सौरभ कालोनी में दबिश डालकर उऊषा वर्मा एवं अशोका गार्डन से मीना ठाकुर को पुलिस ने अपनी हिरासत में ले लिया. इसके बाद माधुरी से दैहिक शोषण करवाने वाली अन्य महिलाएं प्रगति नगर, अशोक गार्डन निवासी श्रीमती संजू यादव, कोलार रोड़ निवासी श्रीमती अनिता और विजय नगर बजरिया निवासी श्रीमती सुनिता को भी गिरफ्तार कर लिया गया. अब माधुरी से दैहिक शोषण कराने वाली महिलाएं तो पुलिस के चंगुल में थी लेकिन उसका शोषण करने वाले पुरूष आजाद घूम रहे थे, लिहाजा पुलिस अधिकारियों ने एक योजना बनाई. माधुरी पुलिस को यह पहले ही बता चुकी थी कि वह उन पुरूषों को पहचान लेगी, जिन्होंने उसका दैहिक शोषण किया है. माधुरी को धंधा करने पर मजबूर करने वले औरतें उसे लेकर अधिकांशत: न्यू मार्केट स्थित न्यूटन रेस्टोरेंट एवं अन्य स्थानों का उपयोग करती थी .
पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण अब पुरे भारत में देह व्यापार एक कुटीर उद्योग का रूप लेने लगा है. अभी तक दिल्ली , मुम्बई , कलकत्ता, चेन्नई , हैदराबाद , नागपुर देह व्यापार की सबसे बड़ी मंडी के  रूप में जाने पहचान जाते थे लेकिन अब मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल भी अपनी नवाबी शान में एक नया इजाफा कर रही है. आज भोपाल के कई पॉश इलाको में वेश्यावृत्ति के अड्डï बड़े पैमाने पर पुलिसया सरंक्षण में बदस्तूर चल रहे है . इन वेश्यावृत्ति के अड्डों को संचालित करने में कई सभ्य घरों के लोगों के अलावा गरीब तकबे के लोग भी अपनी बहू- बेटी पत्नि को उतार कर प्रतिदिन हजारों की कमाई कर मालामाल हो रहे है . अपनी बदनामी से बचने के लिए पुलिस यदा कदा इन वेश्यावृत्ति के अड्डïों पर छापा मारती है लेकिन सौदा पटने पर कई लोग हवालात की हवा खाने से पहले ही बच निकलते है . इन अड्डो पर अपने जिस्म को बेचने वाली कमसीन युवतियाँ एवं अधेड़ महिलाए एक बार के सौदे के लिए तीन सौ रूपए से लेकर पांच हजार रूपए तक वसूल करती है . इस धंधे में शामिल पेशेवर कालगर्ल से लेकर पुश्तैनी धंधा करने वाली वेश्याए जिनकी उम्र 16 वर्ष से लेकर 45 वर्ष तक होती है . भोपाल के बारे में तो यह कहा जाता है कि यहाँ पर अनेक गल्र्स होस्टलों में रहने वाली कुछ महिलाएं भी इस धंधे से जुड़ी हुई है . भोपाल के कुछ इलाके जिनमें शक्तिनगर, साकेत नगर, अरेरा कालोनी, बीएचईएल टाऊनशीप, हमीदिया रोड, कोलार रोड, गुलमोहर कॉलोनी, त्रिलंगा कॉलोनी, राहुल नगर, भीमनगर, बाग मुगालिया, ऐशबाग, अशोका गार्डन, करोद, लक्ष्मी टॉकीज, कोटरा सुल्तानाबाद के आते है इन क्षेत्रों के कुछ ऐसे घर है जहां पर तलाकशुदा या विधवा महिलाए भी अपनी जरूरतों की र्पूित के लिए अपना जिस्म बेच रही है .  आधुनिक चकाचौंध की जिंदगी की ओर भागने वाली युवतिया तथा स्कूली कालेज बालाओं की देह व्यापार के धंधे में सबसे ज्यादा मांग होने की वजह से इनके रेट भी काफी हाई – पाई होते है. भोपाल पुलिस ने समय – समय पर देह व्यापार के कई रैकेटो का भंडाफोड़ करके चौकान्ने वाले तथ्यों का खुलासा किया है . मध्यप्रदेश की महिला पुलिस थाना प्रभारी बताती है कि पुलिस द्वारा दो वर्षों में कई ऐसी महिलाओं को बेनकाब किया है जो कि सभ्य परिवार से आती है. पुलिस को इस देह व्यापार के धंधे पर अकुंश लगाने में सबसे बड़ी बाधा राजनीति एवं प्रशासनिक क्षेत्र के जिम्मेदार लोगो के हस्तक्षेप के चलते आती है.
भोपाल पुलिस ने पिछले दिनों देहव्यापार के एक बड़े गिरोह का संचालन करने वाली शानू खान व सीमा श्रीवास्तव द्वारा चलाए जा रहे देह व्यापार के अड्डे प्रकाश में आने के बाद कई ऐसे लोग है जो सत्ता के गलियारों में केंद्र बिंदु बने रहे, वह अपना बचाव करते नजर आए है व कभी भी इस व्यापार में लिप्त लोगों पर कार्यवाही नहीं हुई और इन मामलों से वह साफतौर पर बच निकले . सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार हमीदिया रोड पर निचले स्तर की महिलाओं द्वारा खुलेआम देह व्यापार किया जाता है . किंतु पुलिस कभी भी इन्हें नहीं पकड़ती . देह व्यापार से जुड़ी एक महिला ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि 300 रूपए से लेकर 1,000 रूपए तक वह प्रति ग्राहक वसूलती है . दिन भर में तीन से चार ग्राहक आसानी से मिल जाते है . इस राशि में कुछ संबंधित थाना क्षेत्र के अधिकारियों को देना पड़ता है या उन्हें समय-समय पर अपना शरीर पेश करना पड़ता है . महिला बताती है कि उसके ग्राहको में बड़े घर के रईसजादे , व्यापारी वर्ग के लोग , विभिन्न कंपनियों के सेल्स प्रतिनिधी एवं अफसरों से काम निकलवाने वाले ठेकेदार वर्ग के लोग ज्यादा है . देह व्यापार से जुड़ी अनेक महिलाओं का कहना है कि कई प्रशासनिक अधिकारियों के साथ वह राते बिता चुकी है . ऐसी महिलाए अपनी रंगीन रातों को बताते हुए ना तो शर्माती है और ना घबराती है . कई महिलाए तो स्वीकार करती है कि वे अच्छे घरों से आती है . कुछ अपने जिस्म की भूख को शांत करने के लिए तो कुछ जिन्हें पैसा खर्च करने की बुरी आदत है और जो पश्चिमी चकाचौंध में लिप्त होने के साथ – साथ दिखावा पसंद करती है वे भी देह व्यापार कें क्षेत्र में उतर चुकी है . शकीला बानो कहती है कि वह एक ऐसे तलाकशुदा व्यक्ति की पत्नि थी जो खुद उससे अपने खर्चे के लिए धंधा करवाता था . शकीला ने सोचा कि ऐसे पति को छोड़ देना ही बेहतर है जब उसे धंधा ही करना है तो वह पति के खर्चे के लिए क्यो करे……?  आज शकीला ने इस धंधे के पीछे भोपाल में अच्छा खासा मकान बना रखा है जिसमें उसके जैसे और भी महिलाए समुह बना कर जिस्म फिरोशी का धंधा करती है . शकीला की तर्ज पर कुछ कालेज की कमसीन लड़कियां भी इस व्यापार से जुड़ती जा रही है . उक्त बात का खुलासा तब हुआ जब मोबाइल पर ग्राहक तलाशती कुछ कालेज की लड़किया भोपाल पुलिस के हाथ लग गई . इन युवतियो का कहना है कि वह अपने प्रेमी यार दोस्तो तथा बिगडैल सहेलियों के चलते इस धंधे में आ गई है . इस धंधें में शामिल शर्मिला (काल्पनिक) कहती है कि उसे अपने साथ जिस्म फरोशी कर रही कई लड़कियों के बारे में नाम , पते तो नहीं बताएगी लेकिन यह जरूर है कि कॉलेजो में पढऩे वाली लड़कियां तथा कामकाजी महिलाओं के होस्टल जो कि शिवाजी नगर , बीएचईएल व चार इमली में स्थित है , वहां से भी लड़कियों के देह व्यापार में जुडऩे का उसे पता है . सबसे मजेदार तथ्य तो यह है कि आजकल भोपाल में लिंक रोड , हबीबगंज रेल्वे स्टेशन के अलावा एम .पी . नगर के भीड़ भरे रास्ते पर कुछ फैशनेबल युवतिया जींस पेंट टी शर्ट पहनी  कुछ बालाये आंखों पर चश्मा लगाए अपने ग्राहको को तलाशती मिल जाएगी . कई बार तो देखा गया कि ऐसी युवतियाँ इन रास्तों पर दुपहिया या चार पहिया वाहनों से लिफ्ट मांग कर उसमे बैठ कर ग्राहक तलाशती रहती है . ऐसी युवतियाँ वाहन के भीतर ही सारा सौदा तय हो जाने के बाद सुरक्षित स्थान पर अपने जिस्म को बेचने के तैयार हो जाती है . एक बार तो ग्राहक समझ कर एक युवती ने राजधानी के एक जाने – माने चिकित्सक को अपने भंवरजाल में फंसा लिया था लेकिन अगले चौराहे पर अपनी इंतजार करती पत्नि के कारण उसे उस युवती को बीच रास्तें में ही उतारना पड़ा .
पुलिस विभाग के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि जिन थाना क्षेत्रों में इस प्रकार के जिस्म फिरोशी के अड्डïे चलते है, वहां के थाना प्रभारी का महीना तक बंधा होता है. राजधानी में कुकुरमुत्ते की तरह उग आये देह व्यापार के अड्डïों के संचालन पर पुलिस के आला अफसर भी यह मानते है कि देह व्यापार के मामले में कुछ लोग पुलिस पर ही ऊंगलियाँ उठाते है , लेकिन ऐसे सवेंदनशील मामलों पर वे महिला संगठन कहाँ मर जाते है जो कि महिला हितो के पक्षधर बने फिरते है.  महिला संगठन से जुड़ी एक महिला कौशल्या पंवार कहती है कि ऐसा बहँुत कम सुनने एवं देखने को मिला है कि किसी महिला संगठन ने देह व्यापार के अड्डे पर छापे पड़वाये हो…….? अकसर देखने को मिलता है कि पुलिस की इन अड्डो पर की गई  छापा मार कार्यवाही के बाद कुछ केवल  नाम के लिए ही कुछ तथा कथित फर्जी महिला संगठन इस प्रकार के अनैतिक देह व्यापार के धंधे मे लिप्त महिलाओं के मामलों को लेकर तथाकथित आवाज उठाते  है जो केवल समाचार पत्रों व टीवी चैनलों पर मात्र अपने प्रचार-प्रसार तक ही सिमट कर रह जाती है .सुश्री कौशल्या पंवार कहती है कि पुलिस को तब सबसे ज्यादा दिक्कत होती है जब उसे ऐसी महिलाओं के खिलाफ गवाह देने के लिए लोगो के हाथ पैर तक जोडऩे पड़ते है. प्रखर समाजसेवी एवं महिला संगठन रोहिणी की महासचिव सुश्री सुनिता गुप्ता कहती है कि पुलिस का यह कहना सरासर गलत है कि देह व्यापार के मामलों में महिला संगठन की भूमिका संदिग्ध रहती है. सुश्री गुप्ता कहती है कि कई मामलों में तो पुलिस ही गोपनियता भंग कर देती है. आपका यह कहना है कि एक मामले में तो इन्दौर पुलिस ने एक महिला संगठन की शिकायत पर देह व्यापार के अड्डे पर छापा मारना तो दूर उसकी  संचालिका को ही संगठन के खिलाफ भड़का दिया. जिसके चलते देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं ने महिला संगइन की प्रतिनिधियों के साथ मारपीट तक कर डाली. इसी तरह प्रखर पत्रकार रोहित कुमार का तर्क है कि देह व्यापार के मामलों पर पुलिस अगर थोड़ी सी अपनी भूमिका को अपने कत्वर्य के साथ जोड़ कर कार्य करे तो भोपाल में चल रही देह व्यापार की मंडी पर अंकुश लगाया जा सकता है .
”बाबू जी धीरे चलो बिजली खड़ी ……….. , या ” फिर  ”धुम मचा ले धुम ………… जैसे उत्तेजक सैक्सी मदमस्त कर देने वाले गानों पर अंध नंगी थिरकती नाईट क्लब की बालाओं को अपने ग्राहको को खुश करने के लिए अपना जिस्म तक बेचना पड़ता है . भोपाल के बाद नागपुर जैसे महानगर की बार बाला की मनोदशा जानने के लिए जब मैं नागपुर के एक नाईट क्लब में जा पहँुचा तो वहाँ पता चला कि आजकल बंद है लेकिन बार में नाचने वाली बार बालाए अब नाचने के बचाय अपना जिस्म बेचने लगी है . उसका नाम सरोज है वह कोल्हापुर की रहने वाली है . पिछले पाँच सालो से वह पहले मुम्बई फिर नागपुर के नाईट क्लब में डांस बाला के रूप में काम करती थी  तब उसे एक रात के हजार से पाँच हजार तक मिल जाते है लेकिन वह पुरे रूपयें की हकदार नहीं रहती थी . आज वह भले ही तीन हजार कमा रही है लेकिन उसे इस बात का संतोष है कि नाचने से तो जिस्म बेचना ठीक है . उसके अनुसार बार में आने वाले ग्राहक भी शरीर को पूरी तरह नोच डालते है . सरोज अब उसे मिलने वाले रूपयो में से केवल कुछ पैसे आने वाले कल के लिए जमा करके शेष से अपना गुजर बसर करती है . एक अन्य महिने भर में बारह हजार रूपये कमाने वाली डांस बाला ममता की एक छोटी अपाहिज बहन वंदना तथा बुढ़ी माँ भी है जिसका उसे भरण पोषण करना पड़ता है. महाराष्ट की उपराजधानी में चलने वाले तथाकथित सरकारमान्य ‘गोल्डन और ‘एकजीक्युटिव शबाब खाने में काम करने वाली इस बार डांसर ने पहले तो अपने बारे में कुछ भी बताने से इंकार कर दिया. काफी समझाने के बाद नाम नाम छापने की शर्त पर उसने जो कुछ बताया वह काफी शर्मनाक था.
महाराष्ट की उपराजधानी नागपुर अब सचमुच एक अंतर्राष्टरीय शहर के बनने की ओर उन्मुख हो चुकी है  . जब देश के प्रधानमंत्री महाराष्ट की राजधानी मुंबई को शंघाई बनाने का वादा कर चुके हैं, तो राज्य की उपराजधानी अगर ‘मुंबई जैसे महानगर बनने की राह पर चल पड़े, तो क्या गलत है………?  जहाँ एक ओर देश के प्रधानमंत्री की भावना का ख्याल रखते हुए महाराष्टï्र की उपराजधानी नागपुर के सांसद और केन्द्रीय मंत्री विलास मुत्तेमवार यहां अंतर्राष्ट्रीय कार्गो हब और गजराज प्रकल्प लाकर इस मरियल शहर का दर्जा ऊपर उठाना चाह रहे है वही दुसरी ओर राज्य की कांग्रेस और राष्टïवादी कांग्रेस की साझा सरकार के कुछ मंत्री, विधायक या नेतागण  नागपुर में मुंबई-शंघाई की बाकी बुराइयां ले आ रहे हैं. इन बुराइयों में वैसे तो शराब, अफीम-चरस, हेरोइन आदि न जाने कितने ‘नशे शामिल है, मगर सबसे बड़ा नशा मदहोश कर देने वाले नारी जिस्म की है जिसकी शुरूआत नाईट क्लबो के माध्यम से हो चुकी है. वैसे देखा जाये तो वर्ष 2001 के जनवरी माह में तत्कालीन कमिश्रर आरसी शर्मा ने नागपुर के डांस बारों (नाइट क्लाबो) पर धड़ाधड़ छापे मारे थे और इन जिस्मफरोशी गोरख धंधा बंद करवा दिया था लेकिन अब उसके फिर से पनपने से नागपुर के सामाजिक संगठन हैरान एवं परेशान है. पूर्व में महाराष्ट सरकार ने भी स्थानीय जनता के दबाव में नागपुर के आठ डांस बारों के लाइसेंस रद्द कर दिए थे लेकिन अब दो नाइट क्लब सीताबर्डी स्थित ‘गोल्डन स्पून और हिंगणा चौक स्थित ‘एक्जीक्युटिव क्लब में एक बार फिर डांस बालाओं ने फुलस्केप नंगाई परोंसनी शुरू कर दी है.
कहा तो यह जा रहा है कि अब नागपुर में भी मुंबई की तर्ज पर ‘योगी बार और ‘लाहोरी इन जैसे शुरूआती नाइट क्लब खुलने जा रहे है डांस बारों में नाचने वाली कामुक बार-बालाओं के जलवे से मोहित होने वाले लोगों की दिन प्रतिदिन  संख्या बढ़ती जा रही है.  इन नाईट क्लबो का विरोध करने वालों की मुट्ठी भर संख्या के चलते प्र्रशासन आज तक इन पर रोक नही लगा पा रहा है. पहले जहां नागपुर शहर में मात्र 2 लुंबा डांस वाले बार थे, वर्ष 2001 आते तक इन नंग-धड़ंग बारों की संख्या आठ तक पहुंच गई थी. प्रमुख डांस बारो में प्रमोद सोनारघरे के सोना बार (अब बंद) सरदारजी उर्फ पापाजी के शेरे पंजाब (अब बिना डांस के) शर्मा बंधुओं के लाहोरी-इन (अब डासिंग बार की अनुमति पाने पुन: प्रयासरत), नीडोज (पुरानी ऐशगाह आज भी उत्सुक) तथा एक्जीक्युटिव कलब (धड़ल्ले से अय्याशी शुरू) एवं मुन्ना जायसवाल सहित एक मंत्री के कृपापात्र ‘गोल्डन स्पून (जो हाल ही में 26 दिसंबर से पुन: शुरू हुआ) शामिल थे। 2001 में तत्कालीन कमिश्रर आरसी शर्मा (जो नागपुर से स्थानांतरित होकर पहले पुणे गए और वहां से मुंबई पहुंचते ही तेलगी कांड में फंस गए) ने पूरी हिम्मत से काम लिया और उक्त सभी डासिंग बारों पर छापा मारकर नागपुर महानगर की सांस्कृतिक सभ्यता को बरकरार रखने की कोशिश की. उनके इस कार्य में तत्कालीन गृहमंत्री (अब तेलगी-फेम) छगन भुजबल ने की भूमिका सराहनीय रही लेकिन नागपुर के वे पालकमंत्री जिन्होने 4 वर्ष पहले डांस बारों के खिलाफ मोर्चा संभाला था? उनका इन डांस बारों के प्रति नजरिया समझ के परे की बात है.
नागपुर मे खुल चुके नाइट क्लब में अर्धनग्न होकर नाचतीं-इठलातीं-मदमाती-ग्राहकों को मदहोश करती बार-बालाओं की थिरकन के बाद शुरू होता है जिसम फिरोशी का धंधा जिसके चलते नागपुर के इन बारों में ग्राहको की भरमार बनी रहती है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि  रसिक-दर्शकों और लार-टपकाए बैठे जवान-बूढे शौकीनों ने दिन में भी इन क्लबो के आसपास मंडराना शुरू कर दिया है.  इन बारो की युवा हसीन कमसिन लड़कियां की झलक को तरसते नाईट क्लब के शौकिनो  गर्मागर्म ‘मसाला आइटम इंतजार रहता है. जबसे नागपुर के डांस बारों के लायसेंस बीते वर्ष 2001 में रदद् हुए थे तबसे आज तक यहां के रंगीन मिजाज रईसजादों को नाइट क्लबों में रंगरेलियां मनाने का मौका नहीं मिल रहा था. वे इसी इंतजार में थे कि इन डान्सबारों का ‘लॉक कब खुलेगा? क्योंकि इनमें से कई रईसजादे तो अपने इस ‘लुंबा सुख के लिए रात की फ्लाइट से मुंबई जाते थे और रात में वहां ‘ऐश कर सुबह की फ्लाइट से नागपुर लौट आते थे. अब नागपुर में पुन: इनकी ‘व्यवस्था होने से ऐसे हवसखोरों की बांछें खिल गई है.
कहा जाता है कि 2 सरकारी शबाबखानों में से एक एक्जीक्यूटिव क्लब को आर्केस्ट्रा गाने-बजाने की परमिशन हाईकोर्ट से मिली हुई है, किन्तु उसने, अदालत के निर्देशों की धज्जियां उड़ाने में कोई कोताही नहीं बरती तथा वहां आर्केस्ट्रा के नाम पर वास्तवकि ‘नंगा नाच होने लगा है. बीते वर्ष जनवरी में महाराष्ट सरकार ने अपने ही लाइसेंसधारी नाइट क्लबों को बंद करने का ऐलान कर दिया था.  इससे पहले महाराष्ट पुलिस (नागपुर ब्रांच) ने इनके खिलाफ धड़ाधड़ छापामार कार्रवाई भी की, जहां से पचासों बार-बालाएं और सैकड़ा करीब ग्राहक भी गिरफ्तार किए गए. इनमें से कुछ जोड़ो को तो बेहद आपत्तिजनक अवस्था में पुलिस ने पकड़ा था. गौरतलब है कि पहली बार दो नाइट क्लबों से 37 नर्तकियों के साथ 137 रसिकों को और दूसरी बार 18 बार डांसरों सहित 43 मस्तानों को गिरफ्तार किया था. आज इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस संवाददाता ने उक्त दोनो शबाबखानों का रात में दौरा किया, तो पाया कि उक्त दोनों क्लब में  रोजाना 2 शो (आर्केस्ट्रा के नाम पर) हो रहे है. पहला शो रात साढ़े 7 बजे शुरू होकर साढ़े 9 बजे तक चलता है और दूसरा शो 9.45 बजे शुरू होकर 12 बजे तक चलता है . इस नाईट क्लब में 150 रू. की एंट्री फीस है.  इस बार मे 150 रू. में बीयर और 150 रूपये में ही विस्की या रम का पैग मिलता है. पहले यहां बार बालाएं अपने हाथों से ग्राहकों को जाम नहीं पिलाती थी, मगर अब तो ये बार डांसर खुद साकी  बनकर अपने अय्याश ग्राहकों के होंठों तक जाम ले जाती हैं और 100  या 500 के नोट की लालच में उनकी गोद में बैठकर ही उन्हें शराब पिलाती नजर आती हैं.
सबसे मजेदार बात तो यह है कि गोल्डन स्पून नाइट कलब में बाहर एन्टे्रस (प्रवेश) पर ही दो स्वचलित कैमरे लगे हैं . इन कैमरों से यह देखा जाता है कि आने वाला ग्राहक कितना मालदार है ? साथ ही पुलिस पर भी नजर रखी जाती है. लगभग 60 लोगों के बैठने की व्यवस्था वाले इस बार में सामने ही बार का काउंटर है . बीच में 22 से 25 अर्धनग्न बालाएं पूरी अश्लीलता के साथ अपनी मदहोश कर देने वाली कामुक अदाओं के साथ लगभग निर्वस्त्र होकर विभिन्न गानों पर नाचती रहती हैं . नागपुर में डांस बार की आड़ में कब तक देह व्यापार का बजार चलता रहेगा यह सब अतित के गर्भ में है हालाकि नागपुर की गंगा जमुना देह व्यापार की मंडी के रूप में दूर- दूर तक जानी जाती है. देह बेचने वाले इस शहर में मंडी के अलावा भी रंडी कही अपना जिस्म का धंधा करेगी यह तो किसी ने भी नही सोचा था.
इति,

पंडित जी मेरे मरने के बाद , इतना कृष्ट उठा लेना
मदिरा जल की जगह , ताप्ती का जल पिला देना
व्यंग्य :- रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला
कल रात जब मैं रायपुर से छत्तिसगढ एक्सप्रेस से बैतूल वापस लौटा तो रात के ढाई बज चुके थे। ऐसे समय जब रात आधी ज्यादा बीत जाये तब नींद कहाँ आती है। रात को चाय पीकर जब मैने टीवी चालू की तो मेरी पंसीदा फिल्म रोटी – कपडा और मकान आ रही थी। यह फिल्म उस दौर की है जब मेरी शादी भी नहीं हुई थी। इसलिए जवानी के दिनो की मनोज कुमार की इस फिल्म की अभिनेत्री जीनत अमान मेरे दिल के किसी कोने में भी हलचल मचाने लगी थी। उस समय का लोकप्रिय गाना मैं ना भूलूंगा — मैं ना भूलंूगी — इस गीत के आधी रात को बजने के बाद मुझे अपने सपनो की जीवन संगनी की परिकल्पना किसी चलचित्र की तरह मेरी आँखो के पटल के सामने चलने लगी। मैं उस फिल्म का दुसरा गीत को भी कभी नहीं भूल सकता क्योकि उस गीत ने आज के इस समय में मेरी सोच में जमीन आसमान का परिवर्तन ला दिया। उस समय के रामू में और आज के रामू जमीन आसमान का इसलिए फर्क आ गया क्योकि वह उम्र थी गंगाजल की जगह मदीरा पीने की लेकिन पता नहीं क्योकि उस न तो गंगा मिली न शराब और रह गये यूँ ही प्यासे के प्यासे—– आज जब लोग चाहते कि मैं गंगाजल की जगह शराब पीऊ तो शराब पीने की इच्छा न तब हुई और न अब—- आज तो ऐसा लगता है कि हम मरने से पहले ही अपनी वसीयत कर जाये  कि पंडित जी मेरे मरने के बाद मेरे मँुह में मदिरा जल की जगह ताप्ती जल पिला देना। आज लोग ताप्ती की जगह मदिरा को पीने में अपनी प्रतिष्ठा समझते है। पता नहीं लोगो को क्यूँ शराब – शबाब – कबाब का चस्का लग गया है जो कि मृत्यु की पहली सीढ़ी है।  जीवन एक चक्र है जिसमें लोगो का आना – जाना एक नियती का चक्र है जिसके तहत जो आया है उसे एक न एक दिन जाना है। मनोज कुमार की उस फिल्म की एक नायिका अरूणा ईरानी पर फिल्माया गया वह गाना आज के पंडित जी के ऊपर सटीक बैठता है क्योकि कहना नहीं चाहिये कि अधिकांश पंडित जी अपने मँुह मे गंगा जल कीह जबह मदीरा जल का ही सेवन करने लगे है। मेरे दोस्त तो दूर मेरे दुश्मन भी यही चाहत पाले है कि मैं भी किसी भी तरह से शराबी हो जाऊ और उनकी तरह यहाँ – वहाँ पर कटोरा लेकर दारू मांगता फिरू लेकिन मेरे लिए यह सब इसलिए मुनकीन नहीं क्योकि बचपन से ही मैने शराब से बिडगते परिवारो को और अपने नाते – रिश्तेदारो के हश्र को देखा है। मैं नहीं चाहता कि मेरे बारे में कम से कम लोग यह तो नहीं कहे कि वो देखो साला दारू कुटट दो पैग छाप पत्रकार जा रहा है जिससे अध्धी – पौवा देकर जो चाहे छपवा लो…… आज की पत्रकारिता में लोगो की भीड बढने का वज़ह भी कुछ हद तक फ्री की शराब और कबाव भी है। लोगो जब बिना हाथ पांव चलाये रोज कोई न कोई बकरा दारू पिलाने के लिए या फिर नरेन्द्र जैसा कथित छपास रोग की पीडा से ग्रसित व्यक्ति मिल जाये तब तो उसकी हर रात रंगीन होगी। आज बैतूल जिले के पत्रकारो को रोज ताप्ती जल पीने की या उसमें नहाने की नसीहत देना बेकुफी होगा क्योकि उसे तो सुबह – दोपहर – शाम को बस कोई भी मुज्जी चाहिये। बैतूल शहर में ही नहीं गांवो में भी पागलो की और मुर्खो की कमी नहीं है। एक ढुंढो – दस हजार मिलेेंगें। आज बैतूल जिले में ही नहीं दिल्ली – भोपाल और गांव – गांव में पेपर बेचने वाले हाकर पत्रकार बन गये स्थिति तो यह आने वाली है कि हम कैमरा पकडने वाला कैमरामेन की जगह न्यूज चैनल का पत्रकार मिलेगा जिसके एक सेकण्ड का पैसा नहीं बल्कि रूपैया होगा वह भी दस – पाच में न होकर हजारो में होगा। आज बैतूल जिले की पत्रकारिता को आवश्क्यता इस बात की है कि जिले भर के पत्रकारो को पहले खुब शराब पिला कर उन्हे ताप्ती में तब तक डुबाये रखना है जब तब की वे शराब और शबाब से तौबा न कर ले। मैं तो यही चाहता हँू पता नहीं कितने लोग मेरी नसीहत पर खरे उतरते है। अंत में माँ ताप्ती सबका भला करे पीने वाले का भी और पिलाने वाले का भी सबसे बाद मे मेरे जैसे नहीं पीने वाले का भला का जिससे की समाज का कथित सुधार हो सके। एक बार फिर उस रोटी – कपडा और मकान के दर्द को परिभाषित करने वाली फिल्म में व्यक्त की गई मनोज ऊर्फ भारत कुमार की पीडा को मैं अपनी पीडा समझ कर अपनी वसीसत करना चाहता हँू कि मरने के बाद उसके साथ लोग जो करना है वह करे लेकिन यदि संयोग से कोई पंडित उस अंतिम यात्रा में साथ रहे तो वह इतना कृष्ट जरूर करे कि मेरे मँुह में ताप्ती जल जरूर हो।

शादी के नाम पर कमसीन युवतियो की खरीदी बिक्री
आलेख – रामकिशोर पंवार
उस दिन अनिता कुछ परेशान थी. पुछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया . उसकी खास सहेली ने भी उससे कुछ पुछने की कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सकी. गांव का रामदीन काका जब हैरान- परेशान अनिता के पास आया तो वह उसे देख कर रो पड़ी. पुछने पर उसे पता चलाकि आखिर माजऱा क्या है . पिछले कई दिनो से उसके गांव से उसे बाहर काम दिलवाने के नाम पर कुछ लोग उसका शारीरिक शोषण कर रहे थे लेकिन उसने अभी तक बदनामी के डर से किसी को कुछ नहीं बताया  लेकिन जब जब बर्दास्त के बाहर की बात आ गई  तो फिर उसने अपना मुँह आखिर एक दिन खोल कर उन लोगो को बेनकाब कर ही डाला जो कि भेली – भाली युवतियो को काम के बहाने बाहर ले जाकर बेच दिया करते थे या फिर उनका शारीरिक , मानसिक , आर्थिक शोषण करते थे . बरसो से बैतूल जिले की सैकड़ो आदिवासी तथा गैर आदिवासी युवतियाँ ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाती है. अकसर सुनने को मिलता रहता है कि ऐसी कई युवतियों का ठेकेदार और उसके सुपरवाइजर शारीरिक , आर्थिक , मानसिक शोषण करते रहते है. बैतूल जिले मेें ऐसी घटनाए आम होती चली जा रही है. हाल ही में बैतूल जिले की दो विधानसभा क्षेत्र आमला एवं बैतूल के दो आदिवासी ग्रामीणों ने छह माह पूर्व से अपनी नाबालिग लड़कियों के अपहरण और उन्हें बेचने की शंका जाहिर करते हुए शपथ पत्र के साथ एसपी बैतूल को शिकायत की है. जिसमें उन्होंने स्थानीय एक आदमी और महिला के अलावा गुजरात के एक ठेकेदार पर शक जाहिर किया है. रंगलाल पुत्र सोमजी निवासी बघवाड़ थाना आमला और फूलेसिंह पुत्र मंगू निवासी कनारा थाना बैतूल ने एसपी को एक आवेदन देकर अपनी पुत्रियों इमरती उर्फ झब्बो आयु 15 वर्ष एवं सरस्वती आयु 13 वर्ष को मजदूरी करने के बहाने पाठा डेम  (गुजरात) ले जाने के बहाने उसके तथाकथित अपहरण करने की आशंका व्यक्त करते हुए एक शिकायत पत्र पुलिस अधिक्षक को शपथपत्र के साथ दिया है. शपथ पत्र के अनुसार गुजरात के किसी शर्मा ठेकेदार द्वारा वहां बन रहे पाठा डेम पर मजदूरी करने के नाम पर बघवाड़ से गुजरात ले जाई गई दो नाबालिग आदिवासी युवतियां संदिग्ध अवस्था में गायब हो गई है. जिसको लेकर उनके परिजनों ने जिला पुलिस अधीक्षक को आवेदन देकर कार्रवाई की मांग की है. प्राप्त जानकारी अनुसार थाना आमला के ग्राम बघवाड़ निवासी रंगलाल पिता सोमजी गोंड (45) एवं उसकी धर्मपत्नि बिस्सोबाई तथा थाना बैतूल के ग्राम कनारा निवासी फूलेसिंह पिता मंगू गायकी (35) तथा उसकी पत्नि असंतीबाई ने पुलिस अधीक्षक को शिकायत की कि ग्राम कनारा पिपलाढाना निवासी तिलक पिता जंगली शिवकली एवं गुजरात का कोई ठेकेदार शर्मा विगत दिनों सितंबर माह में गांव आया था और यहां से 60 रूपए प्रतिदिन मजदूरी देने के नाम पर कई नौजवान युवक युवतियों सहित इनका पुत्री इमरती उर्फ झब्बो (15) तथा सरस्वती (13) को भी ले गया. गत्ï सप्ताह में गांव की ही सगंती पत्नि गंगाराम जो इन्हीं के साथ काम पर गई थी. वापस आई उसने बताया कि इमरती और सरस्वती काम पर से लापता है. इस बारे में जब इन्हें गुजरात काम पर ले जानी वाली शिवकली एवं ठेकेदार शर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. अब एसपी को शिकायत करने आये दोनों परिवार वालों को शंका है कि तिलक शिवरती एवं शर्मा ठेकेदार ने दोनों नासमझ लड़कियों को कहीं बेच दिया है अथवा उनकी जान ले ली है. ग्राम बघवाड़ एवं कनारा के दोनों आदिवासी परिवारों ने संयुक्त रूप से एस .पी . विवेक शर्मा को दिए एक आवेदन में कार्रवाई करने की मांग की है. इस पत्र के अनुसार गणेश चतुर्थी के समय गुजरात का ठेकेदार शर्मा पाठा डेम  पर काम कराने के लिए मजदूर लेने गांव आया था. तथा गांव के बहुत सारे लड़के-लड़कियों को ले गया. चूंकि बहुत सारे लोग गए थे. इसलिए ये  दोनों भी अपनी लड़कियों को भेजकर निश्चिंत थे. आज से 8 दिन पहले इन्हीं के गांव की सगन्ती ने काम से लौटकर आकर बताया कि इमरती और सरस्वती वहां बांध स्थल पर नहीं है? उक्त खबर सुनने के बाद से दोनो युवतियों के माता- पिता काफी हैरान एवं परेशान है. इन लोगो ने अपने स्तर पर अपनी बेटी की खोज खबर ली पर जब कुछ भी पता नही चला तो दोनो शिकायतकर्ताओं ने गांव की ही शिवकली बाई नामक उक्त महिला से पूछताछ की, जिसने इन लड़कियों की जवाबदारी ली थी. उसके द्घारा बताई गई जानकारी के आधार पर दोनो युवतियों के परिजन गुजरात स्थित पुनासा बांध गए, लेकिन उन्हे उनकी बेटियाँ नही मिली और ना उनका कोई पता लगा. हताश -लाचार उक्त युवतियों के परिजन ने बैतूल आकर पुलिस का दरवाजा खटखटाया.
इन शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि उनकी नाबालिग लड़कियों को शर्मा ठेकेदार ने कहीं बेच दिया है ? या इनके साथ कुछ गलत काम करके उन्हें मार डाला होगा ?  उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले से हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है. काम का लोभ लालच देकर अकेले बैतूल जिले में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मध्यप्रदेश के दर्जनो आदिवासी जिलो से कमसीन नाबालिग युवतियों की खरीदी- बिक्री का अंतहीन सिलसिला इन पंक्तियो के लिखे जाने तक जारी है . जारी है. महाकौशल और सतपुड़ाचंल से दो दर्जन से भी अधिक युवतियों  के उनके तथाकथित कार्यस्थल से लापता होने तथा बाद में उनके बेचे जाने की शिकवा शिकायते  सुने बरसो बीत गए लेकिन पुलिस नहीं जागी जो भी लड़की दलालो के चुंगल से भाग कर आई है उन्होने अपनी जान को जोखिम में डाल कर उक्त साहस किया है. इतना सब कुछ होने के बाद भी आज भी बैतूल जिले की सैकड़ो आदिवासी तथा गैर आदिवासी युवतियाँ ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाती है. अकसर सुनने को मिलता रहता है कि ऐसी कई युवतियों का ठेकेदार और उसके सुपरवाइजर शारीरिक , आर्थिक , मानसिक शोषण करते रहते है. बैतूल जिले मेें ऐसी घटनाए आम होती चली जा रही है. हाल ही में बैतूल जिले की दो विधानसभा क्षेत्र आमला एवं बैतूल के दो आदिवासी ग्रामीणों ने छह माह पूर्व से अपनी नाबालिग लड़कियों के अपहरण और उन्हें बेचने की शंका जाहिर करते हुए शपथ पत्र के साथ एसपी बैतूल को शिकायत की है. जिसमें उन्होंने स्थानीय एक आदमी और महिला के अलावा गुजरात के एक ठेकेदार पर शक जाहिर किया है. रंगलाल पुत्र सोमजी निवासी बघवाड़ थाना आमला और फूलेसिंह पुत्र मंगू निवासी कनारा थाना बैतूल ने एसपी को एक आवेदन देकर अपनी पुत्रियों इमरती उर्फ झब्बो आयु 15 वर्ष एवं सरस्वती आयु 13 वर्ष को मजदूरी करने के बहाने पाठा डेम  (गुजरात) ले जाने के बहाने उसके तथाकथित अपहरण करने की आशंका व्यक्त करते हुए एक शिकायत पत्र पुलिस अधिक्षक को शपथपत्र के साथ दिया है. शपथ पत्र के अनुसार गुजरात के किसी शर्मा ठेकेदार द्वारा वहां बन रहे पाठा डेम पर मजदूरी करने के नाम पर बघवाड़ से गुजरात ले जाई गई दो नाबालिग आदिवासी युवतियां संदिग्ध अवस्था में गायब हो गई है. जिसको लेकर उनके परिजनों ने जिला पुलिस अधीक्षक को आवेदन देकर कार्रवाई की मांग की है. प्राप्त जानकारी अनुसार थाना आमला के ग्राम बघवाड़ निवासी रंगलाल पिता सोमजी गोंड (45) एवं उसकी धर्मपत्नि बिस्सोबाई तथा थाना बैतूल के ग्राम कनारा निवासी फूलेसिंह पिता मंगू गायकी (35) तथा उसकी पत्नि असंतीबाई ने पुलिस अधीक्षक को शिकायत की कि ग्राम कनारा पिपलाढाना निवासी तिलक पिता जंगली शिवकली एवं गुजरात का कोई ठेकेदार शर्मा विगत दिनों सितंबर माह में गांव आया था और यहां से 60 रूपए प्रतिदिन मजदूरी देने के नाम पर कई नौजवान युवक युवतियों सहित इनका पुत्री इमरती उर्फ झब्बो (15) तथा सरस्वती (13) तथा अनिता को भी ले गया. गत्ï सप्ताह में गांव की ही सगंती पत्नि गगाराम जो इन्हीं के साथ काम पर गई थी. वापस आई उसने बताया कि इमरती और सरस्वती काम पर से लापता है. इस बारे में जब इन्हें गुजरात काम पर ले जानी वाली शिवकली एवं ठेकेदार शर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. अब एस .पी को शिकायत करने आये दोनों परिवार वालों को शंका है कि तिलक शिवरती एवं शर्मा ठेकेदार ने दोनों ना समझ लड़कियों को कहीं बेच दिया है अथवा उनकी जान ले ली है. ग्राम बघवाड़ एवं कनारा के दोनों आदिवासी परिवारों ने संयुक्त रूप से तत्कालिन एस .पी . विवेक शर्मा को दिए एक आवेदन में कार्रवाई करने की मांग की है . इस पत्र के अनुसार गणेश चतुर्थी के समय गुजरात का ठेकेदार शर्मा पाठा डेम  पर काम कराने के लिए मजदूर लेने गांव आया था. तथा गांव के बहुत सारे लड़के-लड़कियों को ले गया.चूंकि बहुत सारे लोग गए थे. इसलिए ये  दोनों भी अपनी लड़कियों को भेजकर निश्चिंत थे. आज से 8 दिन पहले इन्हीं के गांव की सगन्ती ने काम से लौटकर आकर बताया कि इमरती और सरस्वती वहां बांध स्थल पर नहीं है? उक्त खबर सुनने के बाद से दोनो युवतियों के माता- पिता काफी हैरान एवं परेशान है. इन लोगो ने अपने स्तर पर अपनी बेटी की खोज खबर ली पर जब कुछ भी पता नही चला तो दोनो शिकायतकर्ताओं ने गांव की ही शिवकली बाई नामक उक्त महिला से पूछताछ की, जिसने इन लड़कियों की जवाबदारी ली थी. उसके द्घारा बताई गई जानकारी के आधार पर दोनो युवतियों के परिजन गुजरात स्थित पुनासा बांध गए, लेकिन उन्हे उनकी बेटियाँ नही मिली और ना उनका कोई पता लगा. हताश -लाचार उक्त युवतियों के परिजन ने बैतूल आकर पुलिस का दरवाजा खटखटाया . इन शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि उनकी नाबालिग लड़कियों को शर्मा ठेकेदार ने कहीं बेच दिया है ? या इनके साथ कुछ गलत काम करके उन्हें मार डाला होगा ? पूर्व जनपद सदस्य बिस्सो बाई के अथक प्रयासो से आखिर पुलिस कुछ दबाव में आई और उसने सबसे पहले अनिता को उन लोगो के  चुंगल से मुक्त करवाया जो कि उसका अब तक दैहिक एवं आर्थिक तथा अन्य शोषण कर रहे थे . काम के बहाने अनिता जैसी कई युवतियाँ जिसमें इमरती और सरस्वती भी शामिल है उनको खोज पाने में पुलिस आज तक अक्षम साबित रही है. उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले से हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है
स्टाम्प पेपर पर बिकी नाबालिग युवती
एक नाबालिग लड़की को बैतूल से देवास ले जाकर बेचने के सनसनीखेज मामले में बैतूल पुलिस ने एक महिला सहित पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है . इनमें तीन आरोपी लड़की को खरीदने वाले और दो बेचने वाले है .लड़की को बेचने वालों में एक महिला भी शामिल है .बेचे जाने के मामले में लड़की द्वारा पूर्व में अपने माता-पिता को दोषी बताने की शिकायत को बाद में लड़की ने खुद झूठा बताया और कहा कि माता पिता से नफरत होने के कारण उनका भी नाम रिपोर्ट में लिखा दिया था .बैतूल जिले के संवेदनशील एसपी विवेक शर्मा के मार्गदर्शन में शाहपुर थाना प्रभारी उपनिरीक्षक मोहनसिंग सिंगोरे ने 48 घंटे में बैतूल से मुलताई देवास तक मामले की तहकीकात करके पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है . घटनाक्रम का सबसे गंभीर पहलू यह है कि नाबालिग लड़की को खरीदने वाले आरोपियों ने बकायदा 100 रूपये के स्टाम्प पेपर पर खरीदी-बिक्री का अनुबंध करवाकर रखा था . जिसे पुलिस ने जप्त कर लिया है . बेचने के आरोप में गिरफ्तार बैतूल जिले के बडग़ांव निवासी नथियाबाई ने बेचने की बात स्वीकार करते हुए  बताया कि-वहीं लड़की को खरीदने वाले देवास निवासी संतोष ने कहा कि लिखा पढ़ी इसलिए की ताकि लड़की भागे नहीं .उसने कहा कि हमने लड़की को शादी करके घर में रखा था .वहीं समूचे घटनाक्रम में सक्रियता से कार्य करने वाले शाहपुर थाना प्रभारी मोहन सिंगोरे ने बताया कि नाबालिग अनामिका को बेचने के पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, शेष बचे आरोपियों को तलाशा जा रहा है .वहीं दूसरी ओर मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक विवेक शर्मा का मानना है कि मामला इतना ही नहीं माना जा सकता .उन्होंने कहा कि यह जांच भी कराई जाएगी कि क्या आरोपियों ने बैतूल जिले की और भी लड़कियों को बेचा है . देखना यह है कि नाबालिग लड़कियों की खरीद फरोख्त के मामले में और कितनी लड़कियों को बेचे जाने का खुलासा हो पाता है .
बीते वर्ष 21 जनवरी 2003 को जब इटारसी रेल्वे स्टेशन पर पेंचव्हली एक्सप्रेस से आमला आ रहे रामप्रसाद ने ‘ज्योत्सना सिस्टरÓ के साथ एक तीखे नाक नक्श वाली लड़की को देखा तो उसके कदम बरबस ज्योत्सना की ओर चल पड़े। पास आने पर ज्योत्सना से रामप्रसाद ने पूछा अरी सिस्टर आप कहां जा रही हो? और ये कौन है आपके साथ? पास खड़ी लड़की के बारे में उसने पूछा .ज्योत्सना बोली-अरे आपने इसे नहीं पहचाना यही तो आपकी भांजी रानी (काल्पनिक नाम) है, जो मेरे साथ आपके गांव में रहती थी .रामप्रसाद को याद आ गया बीता हुआ कल और फिर उसने रानी को पाने के लिए जो कहानी रची, उसी का परिणाम यह निकला कि शाहपुर पुलिस ने रानी जानसन आत्मज अजय जानसन उम्र 15 वर्ष की शिकायत पर आरोपी रामप्रसाद उम्र 25 वर्ष, सरवन आत्मज भैरूलाल 25 वर्ष, बाबूलाल (23), संतोष (25 वर्ष) निवासी फोफल्या देवास के विरूद्ध बलात्कार तथा श्रीमती नथिया बाई जौजे साबूलाल उम्र 40 वर्ष निवासी बडग़ांव, किशोर छगन आत्मज धन्नालाल के विरूद्ध 372, 373, 376, 34 का प्रकरण दर्ज कर पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की है .
इस प्रकरण का प्रमुख आरोपी रामप्रसाद ने आज से करीब एक वर्ष पूर्व इटारसी रेल्वे स्टेशन से शुरू होती है . ज्योत्सना जानसन ग्राम खल्ला में रामप्रसाद के मकान में रहती थी .ज्योत्सना इस गांव में नर्स थी, जिसकी वजह से लोग उसे सिस्टर कहकर पुकारते थे. रामप्रसाद भी ज्योत्सना को अपनी तथाकथित मुंहबोली बहन कहा करता था .जब ज्योत्सना ग्राम खल्ला में रहती थी उस समय रानी की उम्र पांच-छह साल की थी . इस बीच मुलताई से आमला तबादला हो जाने के कारण ज्योत्सना जानसन आमला आकर रहने लगी . इस बीच बीमार रहने के कारण अजय जानसन की अकाल मौत हो गई .पति के मरने के बाद ज्योत्सना जानसन ने मंडला निवासी रज्जाक से शादी कर ली और वह उसकी पत्नी बनकर उसके साथ रहने लगी . इस बीच रानी ने बचपन से जवानी की दहलीज में पांव रखा और यही से उसकी बर्बादी की कहानी ने नया रूप ले लिया .
दिल्ली ले जाते दलाल पकड़ाये
महाकौशल के जबलपुर जिले के भुवा बिद्दिया क्षेत्र की भोली-भाली आदिवासी लड़कियों को दिल्ली में बेचने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है. देह दलाल 18 लड़कियों को बेच चुके थे. 20 लड़कियों की दूसरी खेप ले जाते समय एसएएफ के एक सेवानिवृत्त सेनानी श्री भोला पोर्ते की पहल पर पकड़े गए. जबलपुर से सिर्फ सौ किलोमीटर दूर भुवा बिद्दिया के वनवासी आजादी के 58 वर्ष बाद भी नारकीय स्थिति में जीवन-यापन कर रहे हैं. उनकी इस स्थिति का लाभ दलाल लोग उठा रहे हैं. इन लड़कियों को नौकरी दिलाने का प्रलोभन देकर देह व्यापार में लगाने का षडय़ंत्र चल रहा है. नरहरगंज भुवा बिद्दिया के घने वनांचलों में स्थित दो सौ आदिवासी घरों की एक गुमसुम और गुमनाम-सी बस्ती है. इस पतित धंधे में लिप्त चार व्यक्तियों को मोतीताला पुलिस के हवाले किया गया, जहां मुक्त कराई गई लड़कियों को कड़ी सुरक्षा में रखा गया है. हिरासत शुदा व्यक्तियों में दो महिलाएं, बीस वर्षीय मुक्ता तथा पैंतीस साल की बिनिया और भूरा तथा एक शासकीय शिक्षक श्रीराम अहिरवार शामिल हैं. ये चारों धंधेबाज पंद्रह से अठारह वर्ष उम्र की बीस लड़कियों को जंगल के अलग-अलग रास्तों से पैदल काटीगहन मोटर मार्ग तक ला रहे थे, जहां से उन्हें दिल्ली ले जाया जाना था. दिल्ली में उन लड़कियों के सौदागर पहले ही भुवा बिद्दिया क्षेत्र की करीब अठारह लड़कियों को बेच चुके थे. ये बीस लड़कियां अगली खेप में बेची जानी थीं. आरोपियों ने इन अभागी लड़कियों को प्रलोभन दिया था कि दिल्ली में उनको बढिय़ा नौकरी दिलाई जाएगी जिससे वे अपने परिवार की गरीबी दूर कर सकने में मददगार साबित होगी. चूंकि अपहृत युवतियों में से अधिकांश के अभिभावक पेशे से मजदूर और लकड़हारे हैं अथवा महुआ बीनकर अपनी जिंदगी की गाड़ी आगे खींचते हैं, लिहाजा निर्धनता से मुक्ति पाने और हाथ में चार पैसे आने के प्रलोभवन ने नर्मदा नदी के किनारे बसे वनांचलों की इन दुर्भाग्यग्रस्त बेटियों को दिल्ली में नई रोशनी और नई जिंदगी की चमक नजर आई और वे जिस्म के इन दलालों के झांसे में आ गई. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ इन युवतियों के अपहरण का मामला दर्ज किया है. अपहृत युवतियों को उनके अभिभावकों के हवाले कर दिया है. भुवा बिद्दिया और डिंडोरी के वनांचल आदिवासी विकास के नाम पर सरकारी विभागों में चल रहे शोचनीय भ्रष्टïाचार का शर्मनाक आईना बन चुके है. श्री कमलनाथ के संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की दशा तो कदाचित सर्वाधिक बदतर है, जहां जमीन के नीचे बारह सौ फुट की गहराई में बसे पातालकोट में अनाज के अभाव में वहां के बाशिंदे जिंदा बंदरों और बैलों को मारकर अपनी भूख बुझा रहे हैं. पातालकोट और कुंडम जैसे दुर्गम स्थलों के वनवासी इन दिनों जबलपुर में रिक्शा चलाकर अपना पेट भर रहे हैं. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बैतूल सहित प्रदेश के अन्य जिलों से भी हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है.ये बीस लड़कियां अगली खेप में बेची जानी थीं. आरोपियों ने इन अभागी लड़कियों को प्रलोभन दिया था कि दिल्ली में उनको बढिय़ा नौकरी दिलाई जाएगी जिससे वे अपने परिवार की गरीबी दूर कर सकने में मददगार साबित होगी. चूंकि अपहृत युवतियों में से अधिकांश के अभिभावक पेशे से मजदूर और लकड़हारे हैं अथवा महुआ बीनकर अपनी जिंदगी की गाड़ी आगे खींचते हैं, लिहाजा निर्धनता से मुक्ति पाने और हाथ में चार पैसे आने के प्रलोभन ने नर्मदा नदी के किनारे बसे वनांचलों की इन दुर्भाग्यग्रस्त बेटियों को दिल्ली में नई रोशनी और नई जिंदगी की चमक नजर आई और वे जिस्म के इन दलालों के झांसे में आ गई. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ इन युवतियों के अपहरण का मामला दर्ज किया है.
गांव की शादीशुदा महिलाये भी नही बच रही दलालो से
बैतूल  (रामकिशोर पंवार) आपको सुन कर बड़ा ही आश्चर्य लगेगा कि बैतूल जिले की आदिवासी युवतियो के बेचे जाने के मामलो में हाल ही की एक घटना ने सनसनी पैदा कर दी। बैतूल जिले में सक्रिय महिलाओं और नवयुवतियो के दलालो के हाथो जब युवतियां नही चढ़ी तो उन्होने ने एक शादीशुदा महिला को ही चालिस हजार रूपये में बेच डाला। बैतूल जिले की मुलताई तहसील के बोरदेही थानांतगर्त ग्राम तरोड़ा बुर्जग की विवाहित महिला श्रीमति रामकला बाई को पास के सोनेगांव के दो युवक उसे मां की बीमारी का बहाना बना कर ग्वालियर ले गये जहां पर उन युवको ने हरियाणा की महिला को उसे चालिस हजार बेच दिया। बबलू पिता गुलाब महाराजे निवासी ग्राम सोनेगांव तथा तरोड़ा ग्राम निवासी अनिल पिता अनिल राव ने झुठी खबर देकर उसे बबलू की बहन जो कि ग्वालियर रहती है वहां ले जाकर उसे दो महिलाओं को बेच दिया जो उसे हरियाणा में किसी ठाकुर को बेच आई थी। हरियाणा से किसी तरह बच निकली इस महिला ने बैतूल पहँुचने पर अपनी आपबीती पुलिस को सुनाई जिस पर पुलिस ने फिलाहल मामला दर्ज न करते हुये उसे जांच में शामिल कर लिया है।
इति,
दहेज लाओ…दुल्हन ले जाओ!
बैतूूूल   (रामकिशोर पंवार )  दहेज के नाम पर कन्या पक्ष का आर्थिक शोषण करने की कुप्रथा भले ही शहरी संस्कृति में पनप रही हो, मगर बैतूल जिले में सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों में निवास करने वाली कोरकू आदिवासी जनजाति ने साबित कर दिया कि अभी वे इतने लाचार, मजबूर और भिखमंगे नहीं हुए कि कन्यापक्ष को दहेज के नाम पर गीले कपड़े की तरह निचोड़ डालें. कोरकू आदिवासी जनजाति में लड़का तो एक तयशुदा रकम ससुर के हाथ में रखता है तब उसकी बेटी से शादी करता है. यह रकम बाद में लड़की को दे दी जाती है. बैतूल जिले का जोडिय़ा गांव सतपुड़ा  पर्वत की श्रृंखलाओ में घने जंगलों के बीच बसा हुआ है. शहरी संस्कृति यहां भले ही पहुंच नहीं पायी मगर यहां  के कई युवा रोजगार की तलाश में शहरों में पहुंच गये हैं. 25 वर्षीय शिबू और बीस वर्षीया डाली, ऐसे ही नवदम्पत्ति हैं जो साथ साथ रहते हुए मेहनत मजदूरी तो कर रहे है मगर इनकी शादी को भी अभी तक समाज से वैधता नहीं मिली हैं, क्योंकि शिबू को अपने ससुर के पास 20 हजार रूपए जमा करना है. इसके पश्चात ही उसकी शादी को हरी झंडी मिलेगी. शिबू अपने दर्जनभर साथियों के साथ दिल्ली में पिछले तीन माह से पैसा कमाने आया हुआ है. दोनों दिल्ली में कहीं भवन निर्माण के काम में मजदूरी कर रहे हैं. शिबू और डाली पिछले छह माह से पति-पत्नि के रूप में रह रहे हैं मगर समाज ने उनकी शादी को अभी तक मान्यता नहीं दी है. शिबू इस बात से बेहद खुश है कि अभी तक वह 16 हजार रू. अपने ससुर को सौंप चुका है. अब उसे केवल 4 हजार रू. अदा करने है. कोरकू आदिवासी समाज को इस उपलब्धि पर गर्व है कि अभी तक उनके समाज में बहू को दहेज के लिए जिंदा नहीं जलाया गया. किसी की लाड़ली बेटी को घर लाकर उसकी हत्या नहीं की. इसके विपरीत दूल्हा बनने वाला लड़का ससुर को रकम कमाकर पहले यह दिखा देता है कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है. साथ ही उसकी बेटी (अपनी पत्नि) का पालन पोषण करने में भी सक्षम है. इस प्रथा को कोरकू आदिवासी लोग ‘लमझियानाÓ कहते हैं. इस प्रथा के अनुसार लड़का व लड़की शादी के लिए तैयार होने के बावजूद लड़के को विवाह किए बिना दामाद के रूप में ससुर के घर रहना पड़ता है. इस दौरान वह तयशुदा रकम अपने ससुर को कमाकर देता है. इस कमाई में लड़की भी लड़के का साथ देती है. यह रकम अदा करते ही दोनों की विधिवत रूप से शादी कराकर बिदाई दी जाती है. इस रकम को लड़की का पिता अपने पास ही रखता है. जरूरत पडऩे पर पिता बाद में इस पैसे को अपनी बेटी को लौटा भी देता ह

”रावण जी मरने का क्या लोगें……!
आजकल पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व में बस हर कोई किसी से बस यही सवाल करता है कि ”बोलो क्या लोगें….? लेने – देने का प्रचलन बैतूल की जनपद के पास की गंगा की होटल के गंगा से लेकर अमेरिका की सीनेट के सदस्य तक के पास चलता है। वह भी आपसे यही सवाल करेगा कि ”कहिये आप क्या लेना पंसद करोगे…..?  विहस्की हो या रम मिट जाये सबके गम लेकिन लेने – देने की इस संगत से कोई नहीं बच सका है। यह बात को आप कही पर भी किसी भी प्लेटफार्म पर देख सकते है । श्रीमान बुरा मत मानिये लेकिन सच्चाई जानने के बाद हैरान भी मत होईयें क्योकि यह सच है कि आप किसी को भी कुछ भी काम बता दीजिए वह आपासे यह जरूर कहेगा कि ”बोले क्या दोगे.. अब यह भी कडुवा सच है कि लेने – देने की प्रकिया आपको हर वक्त कहीं भी दिखाई पड़ जाती है। आपकी घरवाली हो या बाहरवाली – सगी हो या मँुहबोली साली वह भी यही सवाल करेगी जीजा जी क्या लोगें…? बगैर लिये – दिये तो कुछ भी काम – धाम नहीं होने वाला..? अब यह बात अलग है कि दाऊद मेमन के डर से उसकी चिटठ्ी पर बिना कुछ लिये दिये बैतूल आकाशवाणी का उद्घोषक भाई पंसीदा फिल्म पार्टनर का गाना उन्हे सुना दे..! लेन -देने के इस कलयुग में जब रामलीला चल रही थी तब रावण बना व्यक्ति राम से लगातार युद्ध करने के बाद मरने का नाम ही नहीं ले रहा था तब बेचारा राम हैरान और परेशान हो गया। जब रावण मरने को तैयार नहीं हुआ तो रामलीला का डायरेक्टर उसके हाथ – पैर जोडऩे के लिए तैयार हो गया कि वह मर जा लेकिन रावण बना व्यक्ति इस जिद पर अड़ा रहा कि पहले राम बने व्यक्ति की साली से उसकी सेटिंग करा दे…….! राम और रावण के युद्ध में राम की साली कहाँ से आ गई ..? कई बार अकसर होता है कि कई मामले सिर्फ लेन -देन के चक्कर में उलझ कर रह जाते है। जबसे त्रेतायुग के राम ने रावण को मारा है उसके बाद से आज तक कलयुग का रावण राम के हाथो मरने का तैयार ही नहीं हो रहा है। आज इस देश में कलयुग का रावण कभी साम्प्रदायिका का रूप लेकर गोधरा का काण्ड करा देता है तो कभी काशी की बाढ़ बन कर प्रलय ला देता है। इस देश का क्या होगा जहाँ पर रावण कभी सिमी का जुबान बोलता है तो कभी बजरंग दल के उप्रदवी तत्वो की शक्ल में उत्पात मचाता है। कभी वासना का रूप लेकर अपनी बहु की अस्मत को लूटने वाले ससुर के रूप में रावण की करतूत सामने आती है तो कभी वह साध्वर ऋतुम्भरा  की वाणी से वैमनस्ता का ज़हर उगलने लगता है। आज का राम उसके सामने घुटने टेक कर देश के अरबो – खरबो आबादी के रूप में विवश होकर उसकी जुल्म – यातना को सहन करने का मजबुर हो जाता है। कई युगो तक कोई रावण के समान विद्धवान महापंडित नहीं हुआ है उस रावण को पता नही इस घोर कलयुग में ऐसा क्या नशा चढ़ गया है कि वह अपनी प्रजा सहित इस सृष्टि पर निवास करने वाले सभी जलचर – नभचार – निसचर सहित आम जन मानस को भी ना- ना प्रकार की यातनो के साथ शारीरिक – मानसिक – बौद्धिक – आर्थिक प्रताडऩा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। रावण से हम सभी का बहँुत पुराना रिश्ता रहा है। अगर कोई कहे कि वह रावण सगा नहीं है या उसका रावण से कोई सबंध नहीं है तो मै इसे नहीं मानता क्योकि रावण तो हर व्यक्ति में निवास करता है। रावण को बुराई का प्रतिक माना गया है। हर इसंान में कोई न कोई बुराई जरूर होती है। असत्य पर सत्य की विजय का प्रतिक है विजय दशमी दशहरा पर्व जिसे सभी लोग मनाते है। भगवान राम ने जब रावण का वध किया था तब उस समय उन्होने अपने अनुज लक्ष्मण से कहा था कि लक्ष्मण जाओं रावण से कुछ ज्ञान हासिल करो। जब लक्ष्मण रावण के सिर के सामने खड़े हुये तो भगवान राम ने लक्ष्मण को समझाया कि अगर किसी से कुछ  सीखना चाहते हो तो उसके चरणो में जाकर सीखो….! आज यदि राम अपने अनुज लक्ष्मण से कहता कि ” जाओ रावण से कुछ सीखो ……! तो वह बसी सवाल करता कि ”भैया रावण क्या लेगा…! कलयुगी रावण भी लक्ष्मण को देख कर यही पुछता ”पहले तू यह तो बता कि तू मुझसे ज्ञान लेने के बदले में क्या देगा….? आज के इस दौर में हालात तो यह हो चुके है कि पहली हो या कालेज हर कोई स्कूल या कालेज जाने वाला बच्चा अपने बाप से लेकर मास्टर – प्रोफेसर से बस यही सवाल करेगा कि ” बोलो क्या लोगो….! आजकल इस समय समय का चक्कर कहिये या फिर आदमी के घन चक्कर बनने का असर हर कोई इतना – उलझ गया है कि इस देश में मंहगाई – दहेज – वैमनस्ता – भुखमरी – गरीबी – लाचारी – व्याभीचारी – चोरी – चकारी – गददरी – मक्कारी – रूपी रावण के दस सिरो को काटने का साहस नहीं कर पा रहा है उसे इन सब दस सिरो वाले संकट रूपी रावण को बार – बार – मोबाइल पर मैसेज भेज कर यही सवाल पुछना पड़ रहा है कि हे दशानन तुम मेरे देश में नासूर की तरह फैले हुये हो प्लीज अपने मरने की कीमत तो बता दो…..? एक बार तो अपनी मौत के लिए ली जाने वाली रकम तो बता दो….? आखिर हम सब तो जान सके कि आप मरने का क्या लोगें…..? यदि रावण जी आप नहीं मरे तो इस कलयुग की जनता तड़प – तड़प कर मर जायेगी। हम मर जायेगें तो फिर हर साल रामलीला करने का या दशहरा के मनाने का क्या औचित्य रह जायेगा…? रावण जी एक बात दिल से कहना चाहता हँू कि आप माने या न माने लेकिन दिल की बात कह रहा हँू अब तो हमे भी आपको जलाने और आपके झुठे मरने के नाटक करने से ऊब होने लगी है क्योकि मेरे बच्चे भी यह सवाल करते है कि पापा जब त्रेतायुग में रावण मर गया तो फिर बार – बार उसके मरने क्रा नाटक क्यों मंचित किया जाता है….? कहीं ऐसा तो नही कि पापा आज तक रावण मरा ही नहीं हो ….? कई बार अज्ञानी बेटा भी ज्ञानवर्धक बाते कह जाता है तब यह सोचा जा सकता है कि कौन किसका बाप है….? आज के समय में देश के ही नही विश्व के हालात बता रहे है कि रावण मरा नहीं जिंदा है। रावण का जगंलराज आज भी श्री लंका ही नहीं ्रबल्कि अमेरिका में भी चल रहा है। आज दुनिया की नम्बर वन पोजिशन पर सिरमौर बना अमेरिका स्वंय कोई निर्णय लेेने की स्थिति में नहीं है तभी तो उसके देश की जनता को सददाम हुसैन रावण के रूप में दिखाई पड़ा और उसने उसे तब तक फाँसी पर लटकाये रखा जब तक कि वह पूरी तरह मर नहीं गया। अमेरिका को अपनी सुरक्षा के लिए सैकड़ो रावणो का डर सताने लगा है तभी तो हर किसी से डरा सहमा रहता है। मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम भारत के साथ संधि करने में उसे राम की मर्यादा की जगह रावण की कुटनीति दिखाई पड़ती है और इसी वज़ह से वह राम को भी रावण की शक्ल में देख कर बार – बार उसके मरने के लिए षडयंत्र रच कर अनेका आंतकवादियो को प्रशिक्षित कर उन्हे हथियार और पैसे देकर भारत में आंतकवाद का साम्राज्य स्थापित करने में लगा है। आज की स्थिति में अगर यदि हमें अपने देश और देश की जनता को सलामत रखना है तो रावण के प्रतिक बने दशानन से एक ही प्रश्र करना चाहिये कि रावण जी मरने का क्या लोगें….?

पलाश टेसू के फूलो पर छाई मस्ती एवं फागुन के मेलो में बढऩे लगी है स्वच्छंद उन्मुक्ता
आदिवासी बालाओं के लिए प्रणय और मिलन का माह होता हैं फागुन
बैतूल , रामकिशोर पंवार: पलाश टेसू के फूलो पर छाने वाली मस्ती से मदमस्त होती आदिवासी बालाओं पर फागुन का रंग चढऩे को बेताब रहता हैं। पलाश टेसू के सूर्ख फूलो से निकला रंग और वह भी बांस की पिचकारी से पूरे तन और मन को रंगीन कर देता हैं। बैतूल जिले में फागुन के मेलो के करीब आते ही सूर्ख लाल होते जा रहे पलाश टेसू के फूलों से रंग बनाने का प्राचीन तौर – तरीका आज भी इस जिले के आदिवासियों को अपनी संस्कृति से जोड़ कर रखा हैं। बैतूल जिले में यूं तो हर गांवों में आदिवासी परिवार मिल जाएगें लेकिन सबसे अधिक शाहपुर ,घोड़ाडोंगरी, चिचोली, भैसदेही , आमला, जनपद क्षेत्रों में मिलेगें। वैसे तो कोरकू को भी आदिवासी समाज का अंग माना जाता हैं लेकिन कोरकू विलुप्त जनजाति हैं जिसमें लमझेना प्रथा आज भी प्रचलित हैं। फागुन के मास में ही कोरकू जनजाति के युवको के वैवाहिक सबंध स्थापित होते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार का युवक बारह साल तक अपनी ससुराल में लमझेना बर रहता हैं। इस दौरान वह अपने ससुराल वालों की जमकर सेवा चाकरी भी करता हैं। जवानी की दहलीज पर पांव रखते ही उसके अपनी भावी पत्नि से नैन मटका शुरू हो जाते हैं। फागुन के मेले के समय वह अपने भावी पति से मेला घुमाने के लिए कहती हैं और भी मेले के बहाने घर से निकले युवक – युवती भाग जाते हैं। जब दोनो के बीच शारीरिक सबंध हो जाते हैं या फिर अविवाहित युवती को गर्भ ठहर जाता है ऐसे में दोनो के परिवार के लोग एकत्र होकर पंचायत के समक्ष पहुंच जाते हैं जहां पर समर्थ परिवार युवती के माता पिता को एक किस्त मोटी रकम देकर उसे खरीद लेता हैं और फिर विवाह का खर्च वधु पक्ष को देकर दोनो का विवाह करा दिया जाता हैं। सबसे ज्यादा युवक – युवतियों के नैन मटका एवं भागने के प्रकरण फागुन के मेलो में ही होते हैं। मदमस्त पलाश के फूलो की पूरी मस्ती ही दोनो के बीच शारीरिक सबंधो को भी बढ़ावा देती हैं। अब तो गांव – गांव में युवक – युवतियों पर फिल्मी ग्लैमर और चायना के मोबाइल का इस कदर असर पड़ा हैं कि वे अपने प्रेमी को रिझाने के लिए तरह – तरह के फैशने बल कपड़ो , श्रंगार एवं आभुषणो का उपयोग करती हैं। अब फागुन के मेलो में आदिवासी एवं कोरकू समाज की युवतियां अपने शरीर के अंगो पर गोदना कराने से भी परहेज करने लगी हैं। हालाकि पहले फागुन के मेलो में सबसे अधिक भीड़ उन्ही लोगो के पास होती थी जो शरीर के विभिन्न अंगो पर गोदना करवाती थी। गोदना में अपने प्रेमी , पति , भाई , का नाम लिखवना आम बात होती थी। आज के समय टेटू भी उसी गोदना परम्परा के एक अंग हैं जो आदिवासी समाज की देखादेखी करने से फैशन एवं आकषर्ण के चलते चल पड़े हैं। बैतूल जिले की पूरी जनजाति में सबसे ज्यादा उन्मुक्त यौन सबंधो के पीछे भी फागुन के मेले का असर हैं। मेले के बहाने गांव से आसपास के मेलो में जाने की छुट का युवक युवतियां भरपूर फायदा उठाती हैं। मेले तो बहाने होते है दो जिस्म एक जान होने के लिए। सबसे ज्यादा व्याभिचार भी इन्ही मेले में देखने को मिलता हैं। रंग लगाने के बहाने आदिवासी बालाओं का यौन शोषण भी सबसे ज्यादा इसी माह में देखने को एवं सुनने को मिलते हैं। बैतूल जिले की पुलिस डायरी कहती हैं कि मार्च से लेकर मई तक सबसे अधिक यौनाचार के मामले दर्ज होते हैं। जिले में यौन शोषण खासकर उस जनजाति का आम बात हैं जो कि आर्थिक रूप से कमजोर होती हैं। वैसे पुलिस का यह कहना रहता हैं कि पुलिस तक मामले उस स्थिति में पहुंचते है जब कोई समझौता या लेन -देन नहीं हो पाता हैं। वैसे भी पूरे मध्यप्रदेश में बैतूल जिले को सबसे अधिक बलात्कार दर्ज करने वाले जिलो की श्रेणी में रखा गया हैं। पिछले चार साल से बैतूल जिले पूरे प्रदेश में शीर्ष स्थान पर है जिसके पीछे कहीं न कहीं फागुन के मेले एवं पलाश के फूलों से आने वाली सुगंध और देशी महुआ से बनी कच्ची शराब का नशा है जो कि उन्मुक्त देह व्यपार को बढ़ावा देता हैं। हालाकि बैतूल जिले में देह व्यापार करती या करवाती कोई भी आदिवासी बाला या महिलाएं नहीं पकड़ाई है लेकिन अकसर ऐसे मामले ले देकर ही तय हो जाते हैं। बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारों में आपको यह फर्क करना मुश्कील हो जाएगा कि इस जिले की आदिवासी बाला की आखें मदमस्त कर देने वाली है या बिपाशा बसु की नशीली आंखे….. कहने को तो बैतूल जिले में इस समय पूरे घटते जंगलो के पलाश के पेड़ो लगे टेसू के फूलो पर फागुन के बौराते ही आम के बौर और महुआ के फूलो से भी रस टपकने से अतृप्त यौन इच्छाएं स्वत: हिचकोले मारने लगती हैं। बैतूल जिले में हर गांव में होलिका दहन के बाद मेघनाथ की पूजा के साथ ही फागुन के मेलो का लगना शुरू हो जाता हैं। जिले की पहली गोण्डी फागुन की जतरा वैसे तो बैतूल जिला मुख्यालय के टिकारी कस्बे से शुरू होती हैं। दुसरे दिन बैतूल बाजार तथा तीसरे दिन रोंढ़ा में फागुन का मेला लगता हैं। हालाकि रोंढ़ा में एक भी आदिवासी नहीं है उसके बाद भी बरसो से गांव के लोग मेघनाथ की पूजा करते चले आ रहे हैं। अभी कुछ साल से एक दो आदिवासी परिवार यहां पर आकर बस गये हैं। बैतूल जिले में गोण्डी जतरा को फागुन के मेले के नाम से भी पुकारा जाता हैं। आदिवासियों एवं कोरकुओं में खासकर होली एवं दिवाली पूरे सवा महिने की होती हैं। दोनो ही समयकाल ऐसे होते है जब आदिवासी परिवार सारे कार्यो से फ्री हो जाता हैं। बैतूल जिले में सबसे अधिक बसने वाली आदिवासी एवं कोरकू जनजाति के परिवारों में होली के समय फाग के रूप में रूपए मांगने का रिवाज हैं। इस दौरान गांव में कोई भी अनजान व्यक्ति से फाग के रूपए में मांगे जाते हैं। रूपए न देने पर उन्हे अश£ील गालियां दी जाती हैं कई बार तो आदिवासी युवतियों से लेकर पौढ़ महिलाए तक शालीनता की सारी हदो को पार कर जाती हैं। डर सहमे लोगो से बलात् पूर्वक वसूले गए रूपए से सामुहिक भोज के रूप में मुर्गा – बकरा – दारू की दावते उड़ाई जाती हैं। पूरे सवा महिने तक धुप के तेज होते ही आदिवासी बालाओं के बीच मौज मस्ती की खुली स्पर्धा चल पड़ती हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतों मे से आधी से अधिक ग्राम पंचायते आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं। इस समय पूरे गांवो में फागुन के मेलो को लेकर पड़ौसी राज्यों से दुकानदार और झूले लगाने वाले आने शुरू हो जाते हैं। सावन के झूलो से कहीं अधिक मदमस्त करने वाले होते है फागुन के झूले जिन पर अपने प्रेमी के साथ गोल – गोल ऊपर से नीचे होती बालाएं इस दौरान रंगीन रूमालो को भी जमीन पर डाल कर उसे पकड़ती हैं। ऐसे मेले में आदिवासी बालाओं को पान और अब राजश्री जैसे गुटके देकर भी पटाया जाता हैं। यदि युवती को आपका प्रेम प्रणय स्वीकार हैं तो आपका दिया पान – गुटका वह स्वीकार कर लेगी। अब तो मेलो में फुहड़ता देखने को मिल रही हैं जो कहीं न कहीं पश्चिमी संस्कृति एवं फिल्मो का कुप्रभाव के कारण पैदा होने लगी हैं। सजी धजी बैल गाडिय़ों एवं साइकिलो और अब मोटर साइकिलो में बैठ कर जाने वाली आदिवासी बालाएं सभ्य समाज के लिए एक सबक है क्योकि जिस सभ्य समाज में पर्दे के पीछे अंधेरे में व्याभिचार होता हैं वह आदिवासी समाज के लिए स्वच्छंद उन्मुक्ता का एक रूप हैं।

दादी अम्मा मान जाओं, अनार आम को लिखना जान जाओं
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बीते जमाने में कभी स्कूल की सूरत मक नहीं देख सकी दादी को अब उसकी पोती अनार , आम लिखना एवं पढऩा सीखाने जा रही हैं। भारत सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना के तहत आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की सभी 558 ग्राम पंचायतो के ग्रामो से लेकर नगरीय निकायों में रहने वाली पचास साल की उम्र पार कर चुकी दादी अम्मा अपनी पोती से क ख ग लिखना , पढऩा शुरू करेगी तो उसे देख कर आपको आश्चर्यचकित होने की जरूरत नहीं, क्योकि भारत साक्षरता अभियान अब अपने नए स्वरूप में नए रंग , रूप में आ गया हैं। स्कूल चले अभियान की अपार सफलता के बाद गांवों के किसी कोने में दुबकी पड़ी दादी को भी उसकी पोती पढऩा लिखना सीखने के लिए प्रेरित करेगी। गरीब परिवार की यशोदा हो या फिर जशोदा सभी पौढ़ शिक्षा अभियान से जुड़े ऐसे प्रयास भारत एवं राज्य सरकार के सांझा कार्यक्रम के तहत किए जा रहे हैं। साक्षर भारत अभियान 2012 के तहत मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में जशोदा बाई जैसी सैकड़ों महिलाओं को साक्षर करने का अभियान शुरू किया गया है। देशव्यापी अभियान जिन 6 करोड़ निरक्षर महिलाओं को शामिल किया गया हैं उसमें मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की भी महिलाएं शामिल हैं। मध्यप्रदेश के इस अभियान में शामिल दस जिलों में शुरू की गई उनमें उन गांवों एवं निकायों का चयन किया गया हैं जहां पर महिला साक्षरता की दर 50 प्रतिशत से कम है। इस समय बैतूल जिले में महिला साक्षरता की दर 47 प्रतिशत है। साक्षर अभियान को लेकर जिलास्तर पर काम भी शुरू हो चुका है। साक्षर भारत अभियान के तहत पांच हजार की आबादी वाली ग्राम पंचायतों में लोक शिक्षा केंद्र खोले जाएंगे। यह ग्राम पंचायत द्वारा उपलब्ध भवन में प्रेरक के माध्यम से संचालित किए जाएंगे। यह लोक शिक्षा केंद्र बहुआयामी गतिविधियों के संचालन का केंद्र होगा। यहां पर पठन-पाठन, पुस्तकालय, सूचना तकनीकी, कौशल विकास प्रशिक्षण, कानूनी साक्षरता, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, विभागीय समन्वय, सूचना खिड़की, चर्चा मंडल, खेलकूद, मनोरंजक व सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा। यहां पर साक्षरता से संबंधित महत्वपूर्ण आंकड़ों का दस्तावेजीकरण भी किया जाएगा। इस कार्यक्रम के तहत निरक्षरों का क्षेत्रवार सर्वेक्षण कर उनकी साक्षरता आवश्यकताओं का आकलन किया जाएगा। निरक्षरों को तीन सौ घंटों में स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप अनुदेशक आधारित कार्यात्मक साक्षरता प्रदान की जाएगी। तीन सौ घंटों की पढ़ाई-लिखाई के बाद शिक्षार्थी पढऩा-लिखना व गणित सीख जाएंगे। मूल्यांकन के बाद उन्हें एक प्रमाण-पत्र भी प्रदान किया जाएगा। अभियान के तहत अस्थाई साक्षरता केंद्रों के माध्यम से एक स्वयंसेवी आठ से दस निरक्षरों को पढ़ाएगा। इसी प्रकार अगले तीन माह के सौ घंटों में दिशा निर्देश प्रदान किए जाएगें जिनके सौ घंटों के बाद शिक्षार्थी कक्षा तीसरी के स्तर तक पहुंच जाएंगे। इसके लिए उन्हें अलग से प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। जनशिक्षण संस्थान को संस्थागत रूप से प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों से जोड़कर नवसाक्षरों को रोजगारोन्मुखी कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। प्रशिक्षण के लिए वे अपना ही बजट उपयोग में लाएंगे। साथ ही सतत शिक्षा के तहत नवसाक्षरों को जीवनपर्यत शिक्षा के बेहतर अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे। जिले के निरक्षरों को साक्षर करने के लिए एक नया अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई है। जल्द ही साक्षरता अभियान शुरू कर किया जाएगा। फिलहाल जनपद एवं जिला स्तर पर खाते खोलने का काम किया जा रहा है। संजीव श्रीवास्तव साक्षर भारत अभियान जिला प्रभारी बैतूल के अनुसार बैतूल जिले में पूर्व में साक्षरता अभियान एवं स्कूल चले अभियान के तहत मिली सफलता के बाद अब पौढ़ शिक्षा को भी पहली प्राथमिकता के तहत लिया गया हैं। प्रदेश के अन्य नौ जिलों में श्योपुर , मुरैना, टीकमगढ़, दतिया, कठटनी, मंडला , मंदसौर , झाबुआ तथा खरगोन को शामिल किया गया हैं। हालाकि इस अभियान में अनुसूचित जाति , अनूसचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक तथा किशोरो को भी साक्षर करने की मुहीम उठाई जाएगी। इस अभियान में पूरी लगन से जूट कर साक्षर-निरक्षर की खाई को पाटने में सभी साक्षरता कॢमयों व जागरूक सज्जनों का योगदान भी लिया जाएगा।

Posted in Uncategorized | 1 Comment