हास्य – परिहास

हास्य – परिहास
सरकार को चाहिए कि वह साली को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करे या फिर क्रेडिट या डेबिट कार्ड पर उपलब्ध करवाएं
रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला
आज एक फिर साली के गम ने मुझे गमगीन कर दिया। पिछले बाइस वर्षो से साली न होने का श्राप भोग रहा मेरा मन एक बार नहीं हजारो बार बस यही सवाल करता था कि मुझे किस बाम की सजा मिल रही हैं। आज और न कल मैं चाह कर भी अपने माता – पिता से या ससुराल वालो से यह सवाल नहीं पुछ पाया हूं कि आखिर मुझे किस अपराध की सजा सुनाई गई..? साली गुड की जलेबी हो या रसमलाई लेकिन जिसकी साली नहीं होती हैं उसके लिए तो साली का शब्द एक प्रकार की गाली जैसा ही हैं। बांझ और नामर्द को कोई अगर ताना मारे तो वह कह सकता हैं कि इसमें हमारा क्या दोष यह तो ऊपर वालो की मर्जी हैं, लेकिन मैं ऊपर वालों को क्यों दोष दूं जब मेरी लुटिया नीचे वालों ने डुबाई हैं। साली के वियोग को मैं बार – बार भूलने की कोशिस करता हूं लेकिन कभी सपने में मल्ल्किा शेरावत और प्रियंका चोपड़ा जैसी अनजान सुरत आकर पुछ जाती हैं कि कैसे हो जीजा जीजा जी….? उसका यह पुछना था कि मैं नींद से जाग जाता हूं और आसपास में अपने सपनो की साली को खोजता हूं तो वह गधे के सिंग की तरह गायब हो जाती हैं। बगल में बेसुध होकर सोई घरवाली को जैसे ही मेरे नींद से उठने की भनक लगती हैं वह नींद में बड़बड़ाने लगती हैं कि कहीं तुम्हारे सपने में शकीरा तो मेरी बहन बन कर नहीं आ गई थी…..? ताने मारने में बाहर वाले तो दूर अब तो घर वाले भी कोई कसर नहीं छोडऩे लगे हैं। अब तो घरवाली भी ताक झांक करती निगाहें पर ही सवाल दाग देती हैं क्या मतलब आंखे फाड़ कर देखने से वह नहीं मिलने वाली…….? अब जवान बच्चों के बाप बन गए हो बहू लाने के दिन आ गए हैं क्यों साली के चक्कर में मरे जाते हो…..? अफसोस साल में एक बार हो तो उस दिन को काली अमावस की रात समझ कर चुपचाप सो जाए लेकिन यह तो हर पल की काली अमावस की तरह होता है जब कोई किसी से कहती हैं कैसे हो जीजा जी …..? अब उसे कौन बताएं कि तेरे अपने जीजा तो अच्छे है लेकिन हमारे तो हाल – बेहाल हैं…..? मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि किसी की एक ही बेटी हो वहां तक तो चल जाएगा लेकिन चार बेटी हैं और चौथी बेटी के पति की किस्मत में यदि साली नहीं हैं तो वह तो बेचारा उस दिन के लिए ही अपने सास – ससुर को कोसेगा कि बस मेरे ही टाइम पर क्या परिवार नियोजन लागू हुआ था….? मैं सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को नहीं कोसना रहा हूं लेकिन सरकार यदि जनता की भलाई चाहती हैं तो अनिवार्य करे कि दो बच्चे अच्छे लेकिन दोनो हो लड़के ही लड़के या लड़की ही लड़की क्योकि समान अधिकार का सिद्धांत सभी लागू होना चाहिए। साली का सुख सभी को मिलना चाहिए। साली की कमी को लेकर भारत सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय साली आयोग बनाना चाहिए। साली को मानवीय अधिकारों में शामिल करना चाहिए। सरकार को साली को विलुप्त प्रजाति एवं विलुप्त धरोहर में शामिल करना चाहिए। साली को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अनुसार बीपीएल , एपीएल , अंत्योदय , दीन दयाल के कार्ड धारको की श्रेणी में शामिल करना चाहिए। जब सरकार को पता हैं कि साली विस्फोटक , ज्वलनशील प्रदार्थ की श्रेणी में रख कर उसका भी कोटा आरक्षित एवं सुरक्षित करना चाहिए। साली का बिना सरकार की मर्जी के परिवहन , अधिग्रहण नहीं होना चाहिए। सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि साली का दुरूप्रयोग रोकने के लिए सरकार ने पूरे देश में साली पंजीयन केन्द्र स्थापित करके उसका सीमांकन , नामांकन करना चाहिए। भारत सरकार को इस बारे में यूएसए से मिल कर एक संधि प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि ऐसे लोग जिनकी साली नहीं हैं उसे सरकार अपने कोटे से देशी संभव नहीं हो सके तो विदेशी साली क्रेडिट या डेबिट कार्ड पर उपलब्ध करवाना चाहिए। किसी कुंवारे व्यक्ति या बाल बह्रमचारी व्यक्ति को राष्ट्रीय साली वितरण प्रणाली बोर्ड का चेयरमेन बनाना चाहिए। बोर्ड में ऐसे लोगो को शामिल किया जाना चाहिए जिनकी किस्मत में साली की कोई गुंजाइश नहीं हैं यदि सरकार ऐसा नहीं कर सकती हैं तो फिर सरकार को ऐसे लोगो को साली रखने की विशेष छुट का लाभ मिलना चाहिए। अब हमारी मांगो का भले ही लालू प्रसाद यादव या नरेन्द्र मोदी जी विरोध करे लेकिन नीतिगत मामलो में पूरे देश भर के साली सुख – सुविधा से वंचित लोगो को भी जाटो और गूजरो की तरह आन्दोलन करने को बाध्य होना पड़ सकता हैं। दरअसल में देखा जाए तो घरवाली वर्तमान है और साली आने वाला भविष्य हैं। सरकार भी कहती हैं कि हमे सुनहरे कल की ओर बढऩा चाहिए लेकिन इसमें भी किसी प्रकार का भेदभाव तो न बरता जाए इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए। मैं आज के इस रंगो के त्यौहार में अपनी सभी अनचाही और सपने में आने वाली सालियों को अपने शब्दों के रंगो से रंगीन करके अपनी बात को यही समाप्त करता हूं।

‘रामू की साली ……!
रामकिशोर पंवार

होली के आते ही होली के तरानो की गली – गली में गुंज सुनाई देने लगती है। होली के मस्ती भरे फागो के बीच फिल्मी तरानो में पिचकारी के साथ गीत -गाते टोलियो के एक दुसरे पर किये जाने वाले शब्दो के प्रहारो के बीच में आनंदीत होते छोटे – छोटे बच्चो से लेकर जवानो और बुढ़ापो की टोलियो में लोग एक दुसरे के बीच होली में अपनी प्रेमिका – पड़ौसन – साली – घरवाली – बाहरवाली – दिलवाली – मतवाली को रंगो में रंगन करने के किस्से कहानियाँ सुनाते – दिखाते और उसे करते दिखाई देते रहते है। कई ऐसे भी बदनसीब होते है जो कि रंगो से रंगीन होने से परहेज रखते है जिसके पीछे उनकी अपनी ढपली अपना राग है। कुछ ऐसे होते है जिन्हे कोई रंगीन नहीं करता तो कुछ ऐसा होते है जिन्हे कोई घास -भाव ही नहीं डालता है। ऐसे भी हाथ रहते है जिन्हे कोई गाल नही मिलता और कुछ ऐसे गाल होते है जिन्हे कोई रंगीन करने वाला नहीं मिलता। इन सबके बावजूद भी कई गाल और माल ऐसे भी होते है जिन्हे कोई रंगीने वाला ही नही मिलता। माल से मेरा कोई गलत अर्थ न निकाले क्योकि आज कल आम बोलचाल की भाषा में उक्त शब्द का प्रयोग होने लगा है। होली दरअसल में प्रतीक है इस बात का कि भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा और वंदावन मे गोपियो के साथ होली खेली थी इसलिए आज भी लोग मथुरा के पास बरसाने की लठमार होली को देखने के लिए देश – विदेश से दौड़े चले आते है। ऐसा नही कि मथुरा की होली ही देखने के लायक है। हमारे बैतूल जिले में चैत काटने गये चैतूये होली खेलने के लिए जब अपने गांव में लौट आते है तब उनकी एक पखवाड़े की होली देखने लायक होती है। आजकल तो हर आदिवासी क्षेत्रो में आदिवासी बालाओ पर चढ़ा पश्चिमी संस्कृति एवं बालीवुड – हालीवुड के भूत ने उन्हे गांव की आम बाला से जबरदस्त बला बना दिया है। हाथो में चायनीज मोबाइल – टज्ञइट जींस एवं टी शर्ट से कसा उसका यौवन किसी अनहोनी हादसे को आमत्रण देता दिखाई पड़ता है। प्रधानमंत्री ग्राग्रामिण सड़को से लेकर कपीलधारा के कुओ एवं ग्रेवल सड़को पर रोज किसी न किसी हवस के भूखे दंरीदे की शिकार बनती आदिवासी बालाये स्वंय को राखी सावंत और मल्लिका शेरावत – एश्ववर्या राय और प्रियंका चोपडा से कम नहीं समझती है आज यही कारण है कि इनके साथ रोज कहीं न कहीं किसी न किसी मोड पर कोई न कोई मस्ती के रंग में रंगीन होते रहता है। आज के इस दौर में सबसे ज्यादा उनमुक्त आदिवासी समाज की बालायें बैतूल जिले में बढऩे वाले बलात्कारो के प्रकरणो के लिए कहीं न कहीं स्वंय भी जिम्मेदार है। आप इसे अन्यथा न ले पर इस बात में भी सोलह आने सच्चाई है कि आप जब अपनी शहरी चकाचौंध से भरपूर साली की तुलना में गांव की इन बालाओं को जब गांवो के लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में देख लेगें तो उस मर मिटेगें यहाँ तक की दो – तीन आपके स्वपनो की सुदंरी की तरह रोज आपको परेशान कर डालेगी। होली पर तो इन बालाओ का यौवन पलाश के फूलो पर छाई रंगीन मस्ती से भी सौ गुण अधिक रंगीन हो जाता है। आज इसे विडम्बना कहे या फिर त्रासदी की बैतूल जिले की यौन शोषण की शिकार बनी बालाये दुसरे जिलो एवं प्रदेशो में भारी डिमांड पर बिकती चली जा रही है। आज यह विषय नहीं है इन सब बातो का लेकिन कहीं न कहीं होली की मस्ती से जुड़ी किस्से – कहानियों से मेल खाती है। होली के फिल्मी तरानो पर गांवो में टोलियो में नाचती – गाती फाग मांगती इन बालाओ जिसे यदि बला कहे तो अतिश्योक्ति नही होनी चाहिये क्योकि जो दुसरो को नीयत और चरित्र को डावा डोल कर दे वह बाला तो हो ही नही सकती। मैं भी कई बार लिखते – लिखते अपने मूल शीर्षक से भटक जाता हँू। बात करता हँू खेत की और पहँुच जाता हँू खिलहान हालाकि खेत को खिलहान से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।
मुझे उन फिल्म निर्मातो – गीतकारो – संगीतकारो – निर्देशको – नायक – नायिकाओ से जबरदस्त शिकायत है। आखिर वे जब भी कोई मस्ती भरा होली का गाना गायेगे या उसका संगीत तैयार करेगे या फिर उस फिल्मी नायक – नायिकाओ को नचवायेगे तब वे बार – बार होली के रंगीन तरानो में मस्ती में मस्त होने के बाद बार – बार ”रामू की साली ……! कह कर मेरा दिल तोड़ते रहते है। अब मैं किस – किस को बताते फिर कि भैया आप बार – बार ”रामू की साली ……! क्यों पुकारते है वह भी यह सब जानने के बाद की मेरी किस्मत में साली नहीं है। बार – बार मेरी दुखती नस पर हाथ रखने के बजाय पैर रख देतो हो और बाद मुझे तड़पता – किलपता देख कर हसते – खिलखिलाते दिखते हो…..! अब ऐसा भी नहीं है कि हर कोई किसी को भी रंगीन करे और उसे वह ”रामू की साली ……! कहे तो यह तो बर्दास्त न करने वाली बात होगी। हमारे भी मानवीय अधिकार है जिसको कोई इस तरह सरे आम ठेस पहँुचायेगा तो हमें भी प्रदेश से लेकर अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठनो तक अपील करना पड़ सकता है। एक प्रकार से देखा जाये तो यह यरा – सरा साक्ष्य के अभाव में झुठे साक्ष्श् बनाने या पैदा करने का मामला है क्योकि जब दुनिया जानती है कि ”मेरी याने रामू की कोई साली है नहीं तब किसी को भी मेरी साली बताना तो संगीन अपराध है……!यदि मेरी साली है तो फिर वह आपके पास क्या कर रही है….?  बीते लगभग बीस वर्षो से साली को तरसते और तड़पते मेरे दिल को चैन दिलवाने वाली साली यदि फिल्मी गायको – नायको – संगीतकारो – निर्देशको – निर्माताओं के पास मौजूद है तो फिर बैतूल से लेकर वाशिंगटन की कोर्ट तक में जाकर अपनी साली को मुक्त करवाने के लिए आर्डर लेना पडेगा। मेरा यह नजरिया आपके लिए भला बकवास भरा होगा लेकिन कोई क्यो किसी को भी अपनी साली को उसके पास इतने सालो तक रखने देगा। साली तो घर की तिजोरी की नहीं बल्कि दिल की तिजोरी की कुंंजी है लेकिन जब मैने शादी की थी तब से लेकर आज तक मुझे अपनी कोई साली नहीं मिली। मेरी स्थिति में भगवान श्री राम की तरह साली बिन उपवास – वनवास काटने की हो गई है। भगवान श्री राम की भी कोई सगी साली नहीं थी। लोग राम अनुज लक्ष्मण की जीवन संगनी उर्मिला के बारे में बताते है कि वह प्रभु श्री राम की भार्या माता सीता की सखी – सहेली थी। इसलिए प्रभु श्री राम के अलावा उनके तीनो भाई अपने लिए माता सीता की सखी – सहेलियो को उस सीता स्वंयवर के दौरान जीवन संगनी बना कर साथ ले आये थे। वैसे कोई माने या न माने पर पर मेरे साथ जो बीत रही है उसको देखकर मैं यह बात तो दावे के साथ कह सकता हँू कि राम नाम के साथ साली और पत्नि वियोग कही न कहीं जुड़ ही जाता है। पत्नि वियोग को कम किया जा सकता है यदि साली हो लेकिन हाय री किस्मत अपनी तो साली नहीं है बस चारोधाम घरवाली ही है। होली के मौसम में जब नेता से लेकर अभिनेता तक होली पर एक दुसरे पर आरोपो – प्रत्यरोपो की पिचकारी मारेगें ऐसे में दिल की भड़ास को शब्दो में पाठको तक पहँुचाने का एक अच्छा माध्यम है लेखन जिसके जरीये पीड़ा को बाटा जा सकता है। लिखना – बकना दोनो ही कला है पर लोग एक दुसरे की बक – बक सुन कर बोर हो जाते है लेकिन लेखन एक ऐसी शब्दो की विधा है जिसमेे पढऩे वालो को बोर न हो इसलिए शब्दो की घटनाओ की हसी – ठिठोली – फूलछड़ी छोड़ी जाती है। अब चलते – चलते अपनी बात को विराम देते हुये मैं उन लोगो से गुजारीश करना चाहूंगा कि भैया जब भी कोई गाना जिसमें मेरा और मेरी साली का जिक्र हो तो कम से कम मेरे को देख कर न बजाये क्योकि यह अच्छे नागरिक की सोच नहीं है कि वह उसकी दुखती नस को दबाये……..

हास्य परिहास
तुम अपने बंगलो में अपने विदेशी कुत्तो को नहलाने से बाज नहीं आये,

रामकिशोर पंवार
दरअसल में होली हमारी बरसो की संस्कृति का एक अंग है। होली के दिन दिल मिल जाते है , दुश्मन भी गले मिल जाते है लेकिन लगता है कि अब हमारी संस्कृति पर धीरे – धीरे कुछ विदेशी संस्कृति के नारू रोग के कीड़े अंदर ही अंदर उसे नष्ट करने में लगे हुये है। आज लोगो को पानी का दुरूप्रयोग का पाठ पढाने वाले 99 प्रतिशत लोगो के घरो में या तो देशी – कुत्ता है या फिर विदेशी ……. इन कुत्तो को नहलाने में साल भर में तो दूर एक दिन में जितना पानी बर्बादा होता है उतना पानी होली के रंग में एक दुसरे पर छिड़काव करने में नहीं लगता। अपने बंगलो में हरियाली रहे इसके लिए लाखो टन पानी को बर्बाद करने वाले यदि लोगो को पानी के उपयोग का पानी पढाये तो वहीं कहावत साबित होगी कि अंधा व्यक्ति आँख वाले को रास्ता दिखाये। पानी के उपयोग के लम्बे – चौड़े बैनरो एवं पोस्टरो तथा अखबारो में अपनी स्वंय की तस्वीरे छपवाने वाले नारू रोग के कीड़े उस समय कहाँ मर जाते है जब बैतूल जिले की सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का पूरा जल बह कर गुजरात चला जाता है। जिस व्यक्ति ताप्ती सरोवर की परिकल्पना करके वह पानी वाला बाबा कहलाया आज उसी व्यक्ति के द्धारा शुरू की गई ताप्ती सरोवरो की योजना तालाब से पोखर बन रही है। आज ताप्ती पर स्टाप डेम बनवाने की बैतूल जिले की पहाड़ी नदियो को एक दुसरे से जोडऩे का भागीरथी प्रयास करने के बजाय अपने मूल दायित्व से भागने वाले यदि लोगो को इस तरह की बेकुफी भरी बातो का ज्ञान बाटे तो इससे बड़ी शर्मनाम बात क्या होगी। आज हम अकेले बैतूल जिले के बात करे तो यह सबसे शर्मसार बात है कि अपने सगे बच्चो को कभी गोदी में लेकर घुमने वाले व्यक्ति विदेशी कुत्तो को अपनी कारो में घुमा कर उसे मंहगे साबुनो से नहला कर क्या पानी का सदुप्रयोग कर रहे है। गायत्री परिवार के संस्थापक परम पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री राम शर्मा का एक मात्र नारा था कि  ”हम सुधरेगें,युग सुधरेगा ,  ” हम बदलेगें ,युग बदलेगा । आज दुसरो को ज्ञान बाटने वाले ज्ञानचंदो एवं ज्ञानपांडो की कोई कमी नहीं है। जाने – माने शायर डाँ. राहत इन्दौरी कहा करते है कि  ”तुझे पता नहीं मेले में घुमने वाले , तेरी दुकान कोई दुसरा चलाता है ……! इन सब बातो को कहने का मतलब आज हमारी संस्कृति पर सीधे – सीधे कुठाराघात का एक उदाहरण है। लोगो ने अपनी दुकान जमाने के लिए लोगो को तरह – तरह के लोभ – लालच एवं प्रलोभन दिये। आज भी गुलाल से तिलक लगा कर सुखी होली मनाने का संदेश देने वाले शायद भूल गये कि जब कोई व्यक्ति की अंतिम यात्रा निकलती है जब भी गुलाल उसके ऊपर डाला जाता है उसका भी तिलक वंदन – चंदन किया जाता है। जीवित व्यक्ति को रंगा जाता है क्या किसी मुर्दे को रंगते या उसको होली खेलते देखा है। होली हमारी संस्कृति है मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के द्धारा खेली गई होली को क्या पानी के अभाव में बंद करवा दी जाये। बैतूल जिले की नदियो एवं ताालाबों तथा पोखरो में अभी इतना पानी है कि हमारी साल में एक दिन आने वाली बरसो की परम्परा का हम जीवित रख सकते है। पानी की बचत का यह कौन सा तरीका है कि सुखी होली खेली जाये और लोग भी पेपरो में फोटो छपवाने के लिए संकल्प ले रहे है शपथ खा रहे है कि हम सौंगध खाते है कि जो कहा है वहीं करेगे। अरे मेरे शपथ तो राम की उन लोगो ने भी खाई थी कि सौंगध राम की खाते है मंदिर वही बनायेगें लेकिन बनवाया क्या…..? यदि इस आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के बैतूल शहर के दस तथाकथित समाज सेवी – धन्नासेठ – मोटर कार मालिक – देशी – विदेशी कुत्तो के स्वामी – समाज सुधारक – ज्ञानपांडे यदि इस बात की सौंगध खाते है कि  ” आज के बाद वे अपने घरो में खुदवाये गये नीजी या सरकारी नलकुपो एवं सरकारी नल के पानी का उपयोग केवल पीने के लिए ही करेगें तथा इस पानी से वे या उनके परिवार का कोई सदस्य या नौकर उनकी मंहगी चमचमाती कारो एवं देशी – विदेशी – पालतू कुत्तो को धोने के लिए नही करेगें।  यदि ऐसा करते पायेगें गये तो उन्हे बैतूल शहर में सरे राह और मुख्य चौक चौराहो पर जलील किया जाये तथा उनके गले जूते की माला पहनाई जाये ….!ÓÓ  जिस दिन भी पानी के सदउपयोग – दुरूप्रयोग – सुखी होली – तिलक होली का संदेश देने वाले लोग यदि इस बात का शपथ पत्र देकर यदि लोगो को कहे कि वह तिलक होली की शुरूआत करे तो मैं पहला व्यक्ति रहूँगा जो कि आज के बाद कभी किसी के चेहरे पर या शरीर कोई रंग डालना तो दूर रंग को हाथ तक नहीं लगाऊंगा। हमारे देश में ज्ञानपांडो की दुसरो की बागुड लाघने वाले सांडो की कमी नहीं है। अपनी पत्नि से उम्मीद रखेगें कि वह सति सावित्री बनी रहे

हास्य – परिहास
‘जीजाजी मैं कब आपकी आधी से पूरी घरवाली बनूगी……!
रामकिशोर पंवार
आजकल टी वी चैनलो पर मनोरंजक हास्य – परिहास से ओत- पोत धारावाहिको के प्रसारण की भरमार है। इस समय सास – बहू के बीच तू – तू – मैं – मैं वाले धारावाहिको में एक है ”मैं कब सास बनूगी …..! इस धारावाहिक को देख कर मुझे एक चुटीले आलेख की पृष्ठभूमि मिल गई जिसका मैं शीर्षक यह बनाया कि ”जीजाजी मैं कब आपकी आधी से पूरी घरवाली बनूगी……! दर असल में यह किसी साली की पीड़ा या वेदना नहीं है कि वह कब अपने ”जीजाजी की आधी से पूरी घरवाली बनेगी……! दरअसल में यह दर्द उन जीजा लोगो का है जो कि समाज में मौजूद उस कथित मानसिकता का बोझ ढो रहे है जिसमें यह कहा जाता रहा है कि  ”साली तो आधी घरवाली होती है…….! अब उन लोगो की तो लाटरी लग जाती है जिन्हे एक के बदले आधा दर्जन साली ब्याज में मिल जाती है। ऐसे लोगो की तो आधा दर्जन साली आधी घरवाली हो जायेगी लेकिन उन लोगो का क्या होगा जिनकी घरवाली किसी की साली होने के साथ आधी घरवाली होगी……? ऐसे में शकीला पति तो किसी नदी नाले में डुबकी लगा लेगा या फिर कच्ची देशी ठर्रा पीकर किसी चौराहे पर लुढ़का हुआ मिलेगा। ईश्वर न करे किसी पति को शक के चलते किसी भी प्रकार के गम में या रम में डुबना पड़े। साली के बारे में अनेक किस्से कहानियां पढने को मिलती रहती है। साली रसमलाई भी है और वह हल्दीराम की नमकीन भी है। यदि साली को चाट और भेलपुड़ी कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हम सब की माँ – बहने – बहू – बेटी – मामी – फूफी – चाची – भाभी – यहाँ तक नानी और दादी भी किसी न किसी की साली रही है। ऐसे में उन लोगो के ससुराल में साली का न होना एक प्रकार का अभिश्राप होगा जिन्होने साली को लेकर लम्बी – चौड़ी अभिलाषा पाली रखी थी। साली के बिना जीवन किसी विधुर पुरूष की तरह या विधवा नारी की तरह होता है। साली के न होने का दर्द उस कहावत के समान है कि ”बांझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा….. अब ऐसे में उन लोगो का दर्द बाटने वाला कहां मिलता है जो कि ऐसे लोगो को साली की सुविधा उपलब्ध करवा सके। आजकल चुनावी आचार संहिता ्रलगी हुई है यदि चुनाव नहीं होता तो आने वाले फागुन के गुलाल और रंग के लिए किसी राखी सावंत जैसी साली के लिए नगरपालिका या सरकारी किसी मोहकमे से बोल – चाल कर निविदा या टेण्डर या कोटेशन मंगवा लेते लेकिन हाय री किस्मत इस बसंत बहार के मौसम में जब अंगना में उड़े  रे गुलाल और हम करते रहे साली न होने का मलाल…….!  आज के इस रंगीन मौसम में कोई कुछ भी कहे लेकिन हमारी तो आदत है बक – बक कहने की …… हमारी बक – बक का लोग भले ही अर्थ का अनर्थ निकाले पर यह बात तो सोलह आने सच है कि इस बार जब ससुराल में साली न हो , पडौसन मतवाली न हो तब हम जैसे लोग आखिर किससे कहे कि रंग – बरसे और बलम तरसे …….! किसी को यकीन हो न हो पर साली के लिए हर साल की तरह इस साल भी तरसे ……!  मुझे एक बात आज तक समझ में नहीं आती है कि लोग साली के बिना होली या रंग पंचमी कैसी होती है……? कुछ लोगो जब यह कहते कि साली फुलझड़ी है तो कुछ लोग उसे एटम बम बताते है। मैं साली को मिसाइल या तोप मानने के बजाय उसे दिल के किसी कोने में मचलती जीजा – साली के बीच तय सामाजिक रिश्तो में बधी उस मर्यादा मानता हँू जिसमें स्वस्थ मनोरंजन – हास्य – परिहास – हसी – ठिठोली कहा जाता रहा है। भारतीय समाज में साली को को जो दर्जा मिला है वह मर्यादा से बंधा है लेकिन जब – जब मर्यादा अपनी सीमा से बाहर होती है किसी न किसी प्रकार की अप्रिय घटना या वारदात किसी न किसी परिवार को ले डुबती है। जो लोग साली को आधी घरवाली मानते है वे लोग साले को आधा घरवाला क्यों नहीं मानते…..? साले बारे में हमारे समाज की मानसिकता में अलग प्रकार की धारणा है। लोग कहते है कि खेत में नाला नहीं चाहिये , ससुराल में साला नहीं चाहिये , घर में आला नहीं चाहिये , फसल के लिए पाला नहीं चाहिये…..! जिस समाज में लोग खेत के बहने के लिए नाले को – बेड़ा गर्क होने पर साले को – घर के गिरने पर आले को – फसल के ठीक से न उग पाने के लिए पाले को जवाबदार मानते है ऐसे लोगो को चाहिये कि वे अपनी साली और साले के प्रति धारणाओं को बदले। मेरा मतलब यह कदापि यह नही है कि मेरी साली नहीं है तो मैं लोगो की साली के साथ उनके इंटर टीटमेंट में किसी खलनायक की भूमिका निभाऊ……! सामाजिक रिश्तो में तो यह कहा गया है कि छोटी साली बहन और बेटी की तरह होती है लेकिन ऐसा मानने वाले या समझने वाले बहँुत कम होगें। मेरे एक मित्र ने मुझे एक नया अनुभव बताया उसका कहना है कि कोई भी व्यक्ति किसी राह चलती युवती या महिला को आखिर किस रिश्ते में देखे……!  यदि वह उसे माँ समझे तो उसके बाप का चरित्र पर कीचड़ उछलेगा। बहन समझे तो जीजा की इमेज खराब होगी। भाभी समझे तो भैया पर मुसीबत आयेगी। मामी समझे तो बेचारा मामा ब्याज में जूते खायेगा। चाची समझेगा तो चाचा का हाल का बेहाल हो जायेगा। ऐसे में उसके सामने सामने वाली को कुछ और समझने और दुसरो के चरित्र पर लालछन लगे इससे अच्छा है कि वह खुद ही बदनामी का ठीकरा अपने सर पर फोड़ ले ……! सामाजिक रिश्तो में वैसे देखा जाये तो साली आधी की जगह पूरी घरवाली तो कई लोगो की बनी है लेकिन उन बहनो का भी बसा – बसाया घर संसार लंका की तरह जल कर राख हो गया जिसे सोने की कहा जाता रहा है।  सुखी परिवार तब तक सुखी रहता है जब तक की उस कोई आफत न आ आये लेकिन साली तो चलती फिरती आफत होती है। इसी तरह साला भी ज़हर के प्याले की तरह होता है जब तारक मेहता के उल्टा चश्मा की दया भाभी के भाई सुदंर की तरह साला मिल जाये…..!
कभी – कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि हमारे जैसे लोगो के साथ उनके ससुराल वालो ने इतना बड़ा अन्याय क्यो किया। यदि हमारे ससुराल वाले बता देते कि भैया तुम्हे अपनी बीबी के साथ में इनाम के रूप में कोई साली या आधी घरवाली की स्कीम नहीं मिलेगी…..! यदि वो पहले ही दुत्कार- फटकार – लताड़ देते तो हम उसी समय कोई दुसरा घर या ठौर ठिकाना ढुंढ लेते…..! कम से कम आज की इस उम्र की पीड़ा से पींड तो छुट जाता। अब उन लोगो को तो मेरे साथ मिल कर एक साली की डिमांड को लेकर युनियन बना लेनी चाहिये और हमें भी साली दिलाओ बैनर के तले सास – ससुर के द्धारा किये गये अन्याय के खिलाफ दस जनपथ पर गुहार लगानी चाहिये। सरकार सबके लिए कोई न कोई योजना – पैकेज – लालीपाप लेकर आ जाती है लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी किसी भी सरकार ने साली विहीन जीजा लोगो के लिए कोई विशेष पैकेज नहीं लाया और न दिया। ऐसे में हमें उन नारी शक्तियो की भी जरूरत पड़ सकती है जिनके कोई जीजा नहीं है। साझा प्रदर्शन से हो सकता है कि सरकार हम दोनो पीडि़त पक्षो के बीच कोई सुलहनाम या समझौता करवा दे जिसके चहते बिना जीजा वाली नारी को जीजा और बिना साली वाले जीजा को साली मिल जाये। सरकार को ऐसी अति महत्वाकांक्षी योजनाओ को सरकारी मोहर लगानी चाहिये लेकिन सरकार को ऐसे लोगो के बारे में सोचने के बजाय वह बिना वजह के पाकीस्तान और अमेरिका के पीछे पड़ी रहती है। अब देश के राजनैतिक दलो का भी हाल इस अहम मुद्दे पर संतोषप्रद नहीं है। अब नेतओ की बात करे तो उनकी तो सेके्रटी साली की तरह ही होती है जो कि उनके हर परसनल फाइलो को निकालती और संभालती रहती है। ऐसे में राजनैतिक पाटी के नेता भी इस अहम अंतराष्ट्रीय सवाल पर क्यों आ गले पड़ जा की तरह महत्व दे। इस देश में साली के बिना चांद पर जाने की या चांद हो जाने की परिकल्पना नही की जा सकती। अथ श्री साली पीड़ा अध्यात्म को अब मैं यह पर समाप्त करता हँू क्योकि मुझे किसी ने बताया कि इंटरनेट की गुगल बेव साइट पर सर्च इंजीन में डब्लयू – डब्लयू साली डाट काम लिख कर सर्च करने से साली मिल सकती है। अब आप लोगो से मैने साली के न होने की जो पीडा बाटी है उसे किसी से मत कहना वरना मैं समाज में किसी को मँुह दिखाने के लायक नहीं रहँूगा क्योकि जिसकी भी साली होगी वह मुझे तिस्कार की दृष्टि से देखेगा तथा हर राह चलती वह नारी भी मुझे देख कर ताने मारती फिरेगी और अपनी सखी – सहेली से कहती फिरेगी देखो बेचारा कितना बदनसीब है उसके साली भी उसके करीब नहीं है। अब मैं इन सब बातो को यही पर विराम देते हुये उस ईश्वर से सिर्फ यही कह सकता हँू कि हे भगवान तेरा क्या चला जाता यदि तू मुझे घरवाली के साथ – साथ एक साली दे जाता……!

पंडित जी मेरे मरने के बाद , इतना कृष्ट उठा लेना
मदिरा जल की जगह , ताप्ती का जल पिला देना
व्यंग्य :- रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला
कल रात जब मैं रायपुर से छत्तिसगढ एक्सप्रेस से बैतूल वापस लौटा तो रात के ढाई बज चुके थे। ऐसे समय जब रात आधी ज्यादा बीत जाये तब नींद कहाँ आती है। रात को चाय पीकर जब मैने टीवी चालू की तो मेरी पंसीदा फिल्म रोटी – कपडा और मकान आ रही थी। यह फिल्म उस दौर की है जब मेरी शादी भी नहीं हुई थी। इसलिए जवानी के दिनो की मनोज कुमार की इस फिल्म की अभिनेत्री जीनत अमान मेरे दिल के किसी कोने में भी हलचल मचाने लगी थी। उस समय का लोकप्रिय गाना मैं ना भूलूंगा — मैं ना भूलंूगी — इस गीत के आधी रात को बजने के बाद मुझे अपने सपनो की जीवन संगनी की परिकल्पना किसी चलचित्र की तरह मेरी आँखो के पटल के सामने चलने लगी। मैं उस फिल्म का दुसरा गीत को भी कभी नहीं भूल सकता क्योकि उस गीत ने आज के इस समय में मेरी सोच में जमीन आसमान का परिवर्तन ला दिया। उस समय के रामू में और आज के रामू जमीन आसमान का इसलिए फर्क आ गया क्योकि वह उम्र थी गंगाजल की जगह मदीरा पीने की लेकिन पता नहीं क्योकि उस न तो गंगा मिली न शराब और रह गये यूँ ही प्यासे के प्यासे—– आज जब लोग चाहते कि मैं गंगाजल की जगह शराब पीऊ तो शराब पीने की इच्छा न तब हुई और न अब—- आज तो ऐसा लगता है कि हम मरने से पहले ही अपनी वसीयत कर जाये  कि पंडित जी मेरे मरने के बाद मेरे मँुह में मदिरा जल की जगह ताप्ती जल पिला देना। आज लोग ताप्ती की जगह मदिरा को पीने में अपनी प्रतिष्ठा समझते है। पता नहीं लोगो को क्यूँ शराब – शबाब – कबाब का चस्का लग गया है जो कि मृत्यु की पहली सीढ़ी है।  जीवन एक चक्र है जिसमें लोगो का आना – जाना एक नियती का चक्र है जिसके तहत जो आया है उसे एक न एक दिन जाना है। मनोज कुमार की उस फिल्म की एक नायिका अरूणा ईरानी पर फिल्माया गया वह गाना आज के पंडित जी के ऊपर सटीक बैठता है क्योकि कहना नहीं चाहिये कि अधिकांश पंडित जी अपने मँुह मे गंगा जल कीह जबह मदीरा जल का ही सेवन करने लगे है। मेरे दोस्त तो दूर मेरे दुश्मन भी यही चाहत पाले है कि मैं भी किसी भी तरह से शराबी हो जाऊ और उनकी तरह यहाँ – वहाँ पर कटोरा लेकर दारू मांगता फिरू लेकिन मेरे लिए यह सब इसलिए मुनकीन नहीं क्योकि बचपन से ही मैने शराब से बिडगते परिवारो को और अपने नाते – रिश्तेदारो के हश्र को देखा है। मैं नहीं चाहता कि मेरे बारे में कम से कम लोग यह तो नहीं कहे कि वो देखो साला दारू कुटट दो पैग छाप पत्रकार जा रहा है जिससे अध्धी – पौवा देकर जो चाहे छपवा लो…… आज की पत्रकारिता में लोगो की भीड बढने का वज़ह भी कुछ हद तक फ्री की शराब और कबाव भी है। लोगो जब बिना हाथ पांव चलाये रोज कोई न कोई बकरा दारू पिलाने के लिए या फिर नरेन्द्र जैसा कथित छपास रोग की पीडा से ग्रसित व्यक्ति मिल जाये तब तो उसकी हर रात रंगीन होगी। आज बैतूल जिले के पत्रकारो को रोज ताप्ती जल पीने की या उसमें नहाने की नसीहत देना बेकुफी होगा क्योकि उसे तो सुबह – दोपहर – शाम को बस कोई भी मुज्जी चाहिये। बैतूल शहर में ही नहीं गांवो में भी पागलो की और मुर्खो की कमी नहीं है। एक ढुंढो – दस हजार मिलेगें। आज बैतूल जिले में ही नहीं दिल्ली – भोपाल और गांव – गांव में पेपर बेचने वाले हाकर पत्रकार बन गये स्थिति तो यह आने वाली है कि हम कैमरा पकडने वाला कैमरामेन की जगह न्यूज चैनल का पत्रकार मिलेगा जिसके एक सेकण्ड का पैसा नहीं बल्कि रूपैया होगा वह भी दस – पाच में न होकर हजारो में होगा। आज बैतूल जिले की पत्रकारिता को आवश्क्यता इस बात की है कि जिले भर के पत्रकारो को पहले खुब शराब पिला कर उन्हे ताप्ती में तब तक डुबाये रखना है जब तब की वे शराब और शबाब से तौबा न कर ले। मैं तो यही चाहता हँू पता नहीं कितने लोग मेरी नसीहत पर खरे उतरते है। अंत में माँ ताप्ती सबका भला करे पीने वाले का भी और पिलाने वाले का भी सबसे बाद मे मेरे जैसे नहीं पीने वाले का भला का जिससे की समाज का कथित सुधार हो सके। एक बार फिर उस रोटी – कपडा और मकान के दर्द को परिभाषित करने वाली फिल्म में व्यक्त की गई मनोज ऊर्फ भारत कुमार की पीडा को मैं अपनी पीडा समझ कर अपनी वसीसत करना चाहता हँू कि मरने के बाद उसके साथ लोग जो करना है वह करे लेकिन यदि संयोग से कोई पंडित उस अंतिम यात्रा में साथ रहे तो वह इतना कृष्ट जरूर करे कि मेरे मँुह में ताप्ती जल जरूर हो।

शादी के नाम पर कमसीन युवतियो की खरीदी बिक्री
आलेख – रामकिशोर पंवार
उस दिन अनिता कुछ परेशान थी. पुछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया . उसकी खास सहेली ने भी उससे कुछ पुछने की कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सकी. गांव का रामदीन काका जब हैरान- परेशान अनिता के पास आया तो वह उसे देख कर रो पड़ी. पुछने पर उसे पता चलाकि आखिर माजऱा क्या है . पिछले कई दिनो से उसके गांव से उसे बाहर काम दिलवाने के नाम पर कुछ लोग उसका शारीरिक शोषण कर रहे थे लेकिन उसने अभी तक बदनामी के डर से किसी को कुछ नहीं बताया  लेकिन जब जब बर्दास्त के बाहर की बात आ गई  तो फिर उसने अपना मुँह आखिर एक दिन खोल कर उन लोगो को बेनकाब कर ही डाला जो कि भेली – भाली युवतियो को काम के बहाने बाहर ले जाकर बेच दिया करते थे या फिर उनका शारीरिक , मानसिक , आर्थिक शोषण करते थे . बरसो से बैतूल जिले की सैकड़ो आदिवासी तथा गैर आदिवासी युवतियाँ ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाती है. अकसर सुनने को मिलता रहता है कि ऐसी कई युवतियों का ठेकेदार और उसके सुपरवाइजर शारीरिक , आर्थिक , मानसिक शोषण करते रहते है. बैतूल जिले मेें ऐसी घटनाए आम होती चली जा रही है. हाल ही में बैतूल जिले की दो विधानसभा क्षेत्र आमला एवं बैतूल के दो आदिवासी ग्रामीणों ने छह माह पूर्व से अपनी नाबालिग लड़कियों के अपहरण और उन्हें बेचने की शंका जाहिर करते हुए शपथ पत्र के साथ एसपी बैतूल को शिकायत की है. जिसमें उन्होंने स्थानीय एक आदमी और महिला के अलावा गुजरात के एक ठेकेदार पर शक जाहिर किया है. रंगलाल पुत्र सोमजी निवासी बघवाड़ थाना आमला और फूलेसिंह पुत्र मंगू निवासी कनारा थाना बैतूल ने एसपी को एक आवेदन देकर अपनी पुत्रियों इमरती उर्फ झब्बो आयु 15 वर्ष एवं सरस्वती आयु 13 वर्ष को मजदूरी करने के बहाने पाठा डेम  (गुजरात) ले जाने के बहाने उसके तथाकथित अपहरण करने की आशंका व्यक्त करते हुए एक शिकायत पत्र पुलिस अधिक्षक को शपथपत्र के साथ दिया है. शपथ पत्र के अनुसार गुजरात के किसी शर्मा ठेकेदार द्वारा वहां बन रहे पाठा डेम पर मजदूरी करने के नाम पर बघवाड़ से गुजरात ले जाई गई दो नाबालिग आदिवासी युवतियां संदिग्ध अवस्था में गायब हो गई है. जिसको लेकर उनके परिजनों ने जिला पुलिस अधीक्षक को आवेदन देकर कार्रवाई की मांग की है. प्राप्त जानकारी अनुसार थाना आमला के ग्राम बघवाड़ निवासी रंगलाल पिता सोमजी गोंड (45) एवं उसकी धर्मपत्नि बिस्सोबाई तथा थाना बैतूल के ग्राम कनारा निवासी फूलेसिंह पिता मंगू गायकी (35) तथा उसकी पत्नि असंतीबाई ने पुलिस अधीक्षक को शिकायत की कि ग्राम कनारा पिपलाढाना निवासी तिलक पिता जंगली शिवकली एवं गुजरात का कोई ठेकेदार शर्मा विगत दिनों सितंबर माह में गांव आया था और यहां से 60 रूपए प्रतिदिन मजदूरी देने के नाम पर कई नौजवान युवक युवतियों सहित इनका पुत्री इमरती उर्फ झब्बो (15) तथा सरस्वती (13) को भी ले गया. गत्ï सप्ताह में गांव की ही सगंती पत्नि गंगाराम जो इन्हीं के साथ काम पर गई थी. वापस आई उसने बताया कि इमरती और सरस्वती काम पर से लापता है. इस बारे में जब इन्हें गुजरात काम पर ले जानी वाली शिवकली एवं ठेकेदार शर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. अब एसपी को शिकायत करने आये दोनों परिवार वालों को शंका है कि तिलक शिवरती एवं शर्मा ठेकेदार ने दोनों नासमझ लड़कियों को कहीं बेच दिया है अथवा उनकी जान ले ली है. ग्राम बघवाड़ एवं कनारा के दोनों आदिवासी परिवारों ने संयुक्त रूप से एस .पी . विवेक शर्मा को दिए एक आवेदन में कार्रवाई करने की मांग की है. इस पत्र के अनुसार गणेश चतुर्थी के समय गुजरात का ठेकेदार शर्मा पाठा डेम  पर काम कराने के लिए मजदूर लेने गांव आया था. तथा गांव के बहुत सारे लड़के-लड़कियों को ले गया. चूंकि बहुत सारे लोग गए थे. इसलिए ये  दोनों भी अपनी लड़कियों को भेजकर निश्चिंत थे. आज से 8 दिन पहले इन्हीं के गांव की सगन्ती ने काम से लौटकर आकर बताया कि इमरती और सरस्वती वहां बांध स्थल पर नहीं है? उक्त खबर सुनने के बाद से दोनो युवतियों के माता- पिता काफी हैरान एवं परेशान है. इन लोगो ने अपने स्तर पर अपनी बेटी की खोज खबर ली पर जब कुछ भी पता नही चला तो दोनो शिकायतकर्ताओं ने गांव की ही शिवकली बाई नामक उक्त महिला से पूछताछ की, जिसने इन लड़कियों की जवाबदारी ली थी. उसके द्घारा बताई गई जानकारी के आधार पर दोनो युवतियों के परिजन गुजरात स्थित पुनासा बांध गए, लेकिन उन्हे उनकी बेटियाँ नही मिली और ना उनका कोई पता लगा. हताश -लाचार उक्त युवतियों के परिजन ने बैतूल आकर पुलिस का दरवाजा खटखटाया.
इन शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि उनकी नाबालिग लड़कियों को शर्मा ठेकेदार ने कहीं बेच दिया है ? या इनके साथ कुछ गलत काम करके उन्हें मार डाला होगा ?  उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले से हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है. काम का लोभ लालच देकर अकेले बैतूल जिले में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मध्यप्रदेश के दर्जनो आदिवासी जिलो से कमसीन नाबालिग युवतियों की खरीदी- बिक्री का अंतहीन सिलसिला इन पंक्तियो के लिखे जाने तक जारी है . जारी है. महाकौशल और सतपुड़ाचंल से दो दर्जन से भी अधिक युवतियों  के उनके तथाकथित कार्यस्थल से लापता होने तथा बाद में उनके बेचे जाने की शिकवा शिकायते  सुने बरसो बीत गए लेकिन पुलिस नहीं जागी जो भी लड़की दलालो के चुंगल से भाग कर आई है उन्होने अपनी जान को जोखिम में डाल कर उक्त साहस किया है. इतना सब कुछ होने के बाद भी आज भी बैतूल जिले की सैकड़ो आदिवासी तथा गैर आदिवासी युवतियाँ ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाती है. अकसर सुनने को मिलता रहता है कि ऐसी कई युवतियों का ठेकेदार और उसके सुपरवाइजर शारीरिक , आर्थिक , मानसिक शोषण करते रहते है. बैतूल जिले मेें ऐसी घटनाए आम होती चली जा रही है. हाल ही में बैतूल जिले की दो विधानसभा क्षेत्र आमला एवं बैतूल के दो आदिवासी ग्रामीणों ने छह माह पूर्व से अपनी नाबालिग लड़कियों के अपहरण और उन्हें बेचने की शंका जाहिर करते हुए शपथ पत्र के साथ एसपी बैतूल को शिकायत की है. जिसमें उन्होंने स्थानीय एक आदमी और महिला के अलावा गुजरात के एक ठेकेदार पर शक जाहिर किया है. रंगलाल पुत्र सोमजी निवासी बघवाड़ थाना आमला और फूलेसिंह पुत्र मंगू निवासी कनारा थाना बैतूल ने एसपी को एक आवेदन देकर अपनी पुत्रियों इमरती उर्फ झब्बो आयु 15 वर्ष एवं सरस्वती आयु 13 वर्ष को मजदूरी करने के बहाने पाठा डेम  (गुजरात) ले जाने के बहाने उसके तथाकथित अपहरण करने की आशंका व्यक्त करते हुए एक शिकायत पत्र पुलिस अधिक्षक को शपथपत्र के साथ दिया है. शपथ पत्र के अनुसार गुजरात के किसी शर्मा ठेकेदार द्वारा वहां बन रहे पाठा डेम पर मजदूरी करने के नाम पर बघवाड़ से गुजरात ले जाई गई दो नाबालिग आदिवासी युवतियां संदिग्ध अवस्था में गायब हो गई है. जिसको लेकर उनके परिजनों ने जिला पुलिस अधीक्षक को आवेदन देकर कार्रवाई की मांग की है. प्राप्त जानकारी अनुसार थाना आमला के ग्राम बघवाड़ निवासी रंगलाल पिता सोमजी गोंड (45) एवं उसकी धर्मपत्नि बिस्सोबाई तथा थाना बैतूल के ग्राम कनारा निवासी फूलेसिंह पिता मंगू गायकी (35) तथा उसकी पत्नि असंतीबाई ने पुलिस अधीक्षक को शिकायत की कि ग्राम कनारा पिपलाढाना निवासी तिलक पिता जंगली शिवकली एवं गुजरात का कोई ठेकेदार शर्मा विगत दिनों सितंबर माह में गांव आया था और यहां से 60 रूपए प्रतिदिन मजदूरी देने के नाम पर कई नौजवान युवक युवतियों सहित इनका पुत्री इमरती उर्फ झब्बो (15) तथा सरस्वती (13) तथा अनिता को भी ले गया. गत्ï सप्ताह में गांव की ही सगंती पत्नि गगाराम जो इन्हीं के साथ काम पर गई थी. वापस आई उसने बताया कि इमरती और सरस्वती काम पर से लापता है. इस बारे में जब इन्हें गुजरात काम पर ले जानी वाली शिवकली एवं ठेकेदार शर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. अब एस .पी को शिकायत करने आये दोनों परिवार वालों को शंका है कि तिलक शिवरती एवं शर्मा ठेकेदार ने दोनों ना समझ लड़कियों को कहीं बेच दिया है अथवा उनकी जान ले ली है. ग्राम बघवाड़ एवं कनारा के दोनों आदिवासी परिवारों ने संयुक्त रूप से तत्कालिन एस .पी . विवेक शर्मा को दिए एक आवेदन में कार्रवाई करने की मांग की है . इस पत्र के अनुसार गणेश चतुर्थी के समय गुजरात का ठेकेदार शर्मा पाठा डेम  पर काम कराने के लिए मजदूर लेने गांव आया था. तथा गांव के बहुत सारे लड़के-लड़कियों को ले गया.चूंकि बहुत सारे लोग गए थे. इसलिए ये  दोनों भी अपनी लड़कियों को भेजकर निश्चिंत थे. आज से 8 दिन पहले इन्हीं के गांव की सगन्ती ने काम से लौटकर आकर बताया कि इमरती और सरस्वती वहां बांध स्थल पर नहीं है? उक्त खबर सुनने के बाद से दोनो युवतियों के माता- पिता काफी हैरान एवं परेशान है. इन लोगो ने अपने स्तर पर अपनी बेटी की खोज खबर ली पर जब कुछ भी पता नही चला तो दोनो शिकायतकर्ताओं ने गांव की ही शिवकली बाई नामक उक्त महिला से पूछताछ की, जिसने इन लड़कियों की जवाबदारी ली थी. उसके द्घारा बताई गई जानकारी के आधार पर दोनो युवतियों के परिजन गुजरात स्थित पुनासा बांध गए, लेकिन उन्हे उनकी बेटियाँ नही मिली और ना उनका कोई पता लगा. हताश -लाचार उक्त युवतियों के परिजन ने बैतूल आकर पुलिस का दरवाजा खटखटाया . इन शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि उनकी नाबालिग लड़कियों को शर्मा ठेकेदार ने कहीं बेच दिया है ? या इनके साथ कुछ गलत काम करके उन्हें मार डाला होगा ? पूर्व जनपद सदस्य बिस्सो बाई के अथक प्रयासो से आखिर पुलिस कुछ दबाव में आई और उसने सबसे पहले अनिता को उन लोगो के  चुंगल से मुक्त करवाया जो कि उसका अब तक दैहिक एवं आर्थिक तथा अन्य शोषण कर रहे थे . काम के बहाने अनिता जैसी कई युवतियाँ जिसमें इमरती और सरस्वती भी शामिल है उनको खोज पाने में पुलिस आज तक अक्षम साबित रही है. उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले से हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है
स्टाम्प पेपर पर बिकी नाबालिग युवती
एक नाबालिग लड़की को बैतूल से देवास ले जाकर बेचने के सनसनीखेज मामले में बैतूल पुलिस ने एक महिला सहित पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है . इनमें तीन आरोपी लड़की को खरीदने वाले और दो बेचने वाले है .लड़की को बेचने वालों में एक महिला भी शामिल है .बेचे जाने के मामले में लड़की द्वारा पूर्व में अपने माता-पिता को दोषी बताने की शिकायत को बाद में लड़की ने खुद झूठा बताया और कहा कि माता पिता से नफरत होने के कारण उनका भी नाम रिपोर्ट में लिखा दिया था .बैतूल जिले के संवेदनशील एसपी विवेक शर्मा के मार्गदर्शन में शाहपुर थाना प्रभारी उपनिरीक्षक मोहनसिंग सिंगोरे ने 48 घंटे में बैतूल से मुलताई देवास तक मामले की तहकीकात करके पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है . घटनाक्रम का सबसे गंभीर पहलू यह है कि नाबालिग लड़की को खरीदने वाले आरोपियों ने बकायदा 100 रूपये के स्टाम्प पेपर पर खरीदी-बिक्री का अनुबंध करवाकर रखा था . जिसे पुलिस ने जप्त कर लिया है . बेचने के आरोप में गिरफ्तार बैतूल जिले के बडग़ांव निवासी नथियाबाई ने बेचने की बात स्वीकार करते हुए  बताया कि-वहीं लड़की को खरीदने वाले देवास निवासी संतोष ने कहा कि लिखा पढ़ी इसलिए की ताकि लड़की भागे नहीं .उसने कहा कि हमने लड़की को शादी करके घर में रखा था .वहीं समूचे घटनाक्रम में सक्रियता से कार्य करने वाले शाहपुर थाना प्रभारी मोहन सिंगोरे ने बताया कि नाबालिग अनामिका को बेचने के पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, शेष बचे आरोपियों को तलाशा जा रहा है .वहीं दूसरी ओर मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक विवेक शर्मा का मानना है कि मामला इतना ही नहीं माना जा सकता .उन्होंने कहा कि यह जांच भी कराई जाएगी कि क्या आरोपियों ने बैतूल जिले की और भी लड़कियों को बेचा है . देखना यह है कि नाबालिग लड़कियों की खरीद फरोख्त के मामले में और कितनी लड़कियों को बेचे जाने का खुलासा हो पाता है .
बीते वर्ष 21 जनवरी 2003 को जब इटारसी रेल्वे स्टेशन पर पेंचव्हली एक्सप्रेस से आमला आ रहे रामप्रसाद ने ‘ज्योत्सना सिस्टरÓ के साथ एक तीखे नाक नक्श वाली लड़की को देखा तो उसके कदम बरबस ज्योत्सना की ओर चल पड़े। पास आने पर ज्योत्सना से रामप्रसाद ने पूछा अरी सिस्टर आप कहां जा रही हो? और ये कौन है आपके साथ? पास खड़ी लड़की के बारे में उसने पूछा .ज्योत्सना बोली-अरे आपने इसे नहीं पहचाना यही तो आपकी भांजी रानी (काल्पनिक नाम) है, जो मेरे साथ आपके गांव में रहती थी .रामप्रसाद को याद आ गया बीता हुआ कल और फिर उसने रानी को पाने के लिए जो कहानी रची, उसी का परिणाम यह निकला कि शाहपुर पुलिस ने रानी जानसन आत्मज अजय जानसन उम्र 15 वर्ष की शिकायत पर आरोपी रामप्रसाद उम्र 25 वर्ष, सरवन आत्मज भैरूलाल 25 वर्ष, बाबूलाल (23), संतोष (25 वर्ष) निवासी फोफल्या देवास के विरूद्ध बलात्कार तथा श्रीमती नथिया बाई जौजे साबूलाल उम्र 40 वर्ष निवासी बडग़ांव, किशोर छगन आत्मज धन्नालाल के विरूद्ध 372, 373, 376, 34 का प्रकरण दर्ज कर पांच आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की है .
इस प्रकरण का प्रमुख आरोपी रामप्रसाद ने आज से करीब एक वर्ष पूर्व इटारसी रेल्वे स्टेशन से शुरू होती है . ज्योत्सना जानसन ग्राम खल्ला में रामप्रसाद के मकान में रहती थी .ज्योत्सना इस गांव में नर्स थी, जिसकी वजह से लोग उसे सिस्टर कहकर पुकारते थे. रामप्रसाद भी ज्योत्सना को अपनी तथाकथित मुंहबोली बहन कहा करता था .जब ज्योत्सना ग्राम खल्ला में रहती थी उस समय रानी की उम्र पांच-छह साल की थी . इस बीच मुलताई से आमला तबादला हो जाने के कारण ज्योत्सना जानसन आमला आकर रहने लगी . इस बीच बीमार रहने के कारण अजय जानसन की अकाल मौत हो गई .पति के मरने के बाद ज्योत्सना जानसन ने मंडला निवासी रज्जाक से शादी कर ली और वह उसकी पत्नी बनकर उसके साथ रहने लगी . इस बीच रानी ने बचपन से जवानी की दहलीज में पांव रखा और यही से उसकी बर्बादी की कहानी ने नया रूप ले लिया .
दिल्ली ले जाते दलाल पकड़ाये महाकौशल के जबलपुर जिले के भुवा बिद्दिया क्षेत्र की भोली-भाली आदिवासी लड़कियों को दिल्ली में बेचने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है. देह दलाल 18 लड़कियों को बेच चुके थे. 20 लड़कियों की दूसरी खेप ले जाते समय एसएएफ के एक सेवानिवृत्त सेनानी श्री भोला पोर्ते की पहल पर पकड़े गए. जबलपुर से सिर्फ सौ किलोमीटर दूर भुवा बिद्दिया के वनवासी आजादी के 58 वर्ष बाद भी नारकीय स्थिति में जीवन-यापन कर रहे हैं. उनकी इस स्थिति का लाभ दलाल लोग उठा रहे हैं. इन लड़कियों को नौकरी दिलाने का प्रलोभन देकर देह व्यापार में लगाने का षडय़ंत्र चल रहा है. नरहरगंज भुवा बिद्दिया के घने वनांचलों में स्थित दो सौ आदिवासी घरों की एक गुमसुम और गुमनाम-सी बस्ती है. इस पतित धंधे में लिप्त चार व्यक्तियों को मोतीताला पुलिस के हवाले किया गया, जहां मुक्त कराई गई लड़कियों को कड़ी सुरक्षा में रखा गया है. हिरासत शुदा व्यक्तियों में दो महिलाएं, बीस वर्षीय मुक्ता तथा पैंतीस साल की बिनिया और भूरा तथा एक शासकीय शिक्षक श्रीराम अहिरवार शामिल हैं. ये चारों धंधेबाज पंद्रह से अठारह वर्ष उम्र की बीस लड़कियों को जंगल के अलग-अलग रास्तों से पैदल काटीगहन मोटर मार्ग तक ला रहे थे, जहां से उन्हें दिल्ली ले जाया जाना था. दिल्ली में उन लड़कियों के सौदागर पहले ही भुवा बिद्दिया क्षेत्र की करीब अठारह लड़कियों को बेच चुके थे. ये बीस लड़कियां अगली खेप में बेची जानी थीं. आरोपियों ने इन अभागी लड़कियों को प्रलोभन दिया था कि दिल्ली में उनको बढिय़ा नौकरी दिलाई जाएगी जिससे वे अपने परिवार की गरीबी दूर कर सकने में मददगार साबित होगी. चूंकि अपहृत युवतियों में से अधिकांश के अभिभावक पेशे से मजदूर और लकड़हारे हैं अथवा महुआ बीनकर अपनी जिंदगी की गाड़ी आगे खींचते हैं, लिहाजा निर्धनता से मुक्ति पाने और हाथ में चार पैसे आने के प्रलोभवन ने नर्मदा नदी के किनारे बसे वनांचलों की इन दुर्भाग्यग्रस्त बेटियों को दिल्ली में नई रोशनी और नई जिंदगी की चमक नजर आई और वे जिस्म के इन दलालों के झांसे में आ गई. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ इन युवतियों के अपहरण का मामला दर्ज किया है. अपहृत युवतियों को उनके अभिभावकों के हवाले कर दिया है. भुवा बिद्दिया और डिंडोरी के वनांचल आदिवासी विकास के नाम पर सरकारी विभागों में चल रहे शोचनीय भ्रष्टïाचार का शर्मनाक आईना बन चुके है. श्री कमलनाथ के संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की दशा तो कदाचित सर्वाधिक बदतर है, जहां जमीन के नीचे बारह सौ फुट की गहराई में बसे पातालकोट में अनाज के अभाव में वहां के बाशिंदे जिंदा बंदरों और बैलों को मारकर अपनी भूख बुझा रहे हैं. पातालकोट और कुंडम जैसे दुर्गम स्थलों के वनवासी इन दिनों जबलपुर में रिक्शा चलाकर अपना पेट भर रहे हैं. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बैतूल सहित प्रदेश के अन्य जिलों से भी हर वर्ष हजारों युवा मजदूरों का पलायन होता है जो दूसरे जिलों में फसलें काटने जाते है या बांधों पर मजदूरी करने जाते हैं. पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कुछ लड़कियां लौटी ही नहीं है. इन्हें बड़े शहरों में बेचने के किस्से भी हुए है.ये बीस लड़कियां अगली खेप में बेची जानी थीं. आरोपियों ने इन अभागी लड़कियों को प्रलोभन दिया था कि दिल्ली में उनको बढिय़ा नौकरी दिलाई जाएगी जिससे वे अपने परिवार की गरीबी दूर कर सकने में मददगार साबित होगी. चूंकि अपहृत युवतियों में से अधिकांश के अभिभावक पेशे से मजदूर और लकड़हारे हैं अथवा महुआ बीनकर अपनी जिंदगी की गाड़ी आगे खींचते हैं, लिहाजा निर्धनता से मुक्ति पाने और हाथ में चार पैसे आने के प्रलोभन ने नर्मदा नदी के किनारे बसे वनांचलों की इन दुर्भाग्यग्रस्त बेटियों को दिल्ली में नई रोशनी और नई जिंदगी की चमक नजर आई और वे जिस्म के इन दलालों के झांसे में आ गई. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ इन युवतियों के अपहरण का मामला दर्ज किया है.
गांव की शादीशुदा महिलाये भी नही बच रही दलालो से
आपको सुन कर बड़ा ही आश्चर्य लगेगा कि बैतूल जिले की आदिवासी युवतियो के बेचे जाने के मामलो में हाल ही की एक घटना ने सनसनी पैदा कर दी। बैतूल जिले में सक्रिय महिलाओं और नवयुवतियो के दलालो के हाथो जब युवतियां नही चढ़ी तो उन्होने ने एक शादीशुदा महिला को ही चालिस हजार रूपये में बेच डाला। बैतूल जिले की मुलताई तहसील के बोरदेही थानांतगर्त ग्राम तरोड़ा बुर्जग की विवाहित महिला श्रीमति रामकला बाई को पास के सोनेगांव के दो युवक उसे मां की बीमारी का बहाना बना कर ग्वालियर ले गये जहां पर उन युवको ने हरियाणा की महिला को उसे चालिस हजार बेच दिया। बबलू पिता गुलाब महाराजे निवासी ग्राम सोनेगांव तथा तरोड़ा ग्राम निवासी अनिल पिता अनिल राव ने झुठी खबर देकर उसे बबलू की बहन जो कि ग्वालियर रहती है वहां ले जाकर उसे दो महिलाओं को बेच दिया जो उसे हरियाणा में किसी ठाकुर को बेच आई थी। हरियाणा से किसी तरह बच निकली इस महिला ने बैतूल पहँुचने पर अपनी आपबीती पुलिस को सुनाई जिस पर पुलिस ने फिलाहल मामला दर्ज न करते हुये उसे जांच में शामिल कर लिया है।
,दहेज लाओ…दुल्हन ले जाओ!
दहेज के नाम पर कन्या पक्ष का आर्थिक शोषण करने की कुप्रथा भले ही शहरी संस्कृति में पनप रही हो, मगर बैतूल जिले में सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों में निवास करने वाली कोरकू आदिवासी जनजाति ने साबित कर दिया कि अभी वे इतने लाचार, मजबूर और भिखमंगे नहीं हुए कि कन्यापक्ष को दहेज के नाम पर गीले कपड़े की तरह निचोड़ डालें. कोरकू आदिवासी जनजाति में लड़का तो एक तयशुदा रकम ससुर के हाथ में रखता है तब उसकी बेटी से शादी करता है. यह रकम बाद में लड़की को दे दी जाती है. बैतूल जिले का जोडिय़ा गांव सतपुड़ा  पर्वत की श्रृंखलाओ में घने जंगलों के बीच बसा हुआ है. शहरी संस्कृति यहां भले ही पहुंच नहीं पायी मगर यहां  के कई युवा रोजगार की तलाश में शहरों में पहुंच गये हैं. 25 वर्षीय शिबू और बीस वर्षीया डाली, ऐसे ही नवदम्पत्ति हैं जो साथ साथ रहते हुए मेहनत मजदूरी तो कर रहे है मगर इनकी शादी को भी अभी तक समाज से वैधता नहीं मिली हैं, क्योंकि शिबू को अपने ससुर के पास 20 हजार रूपए जमा करना है. इसके पश्चात ही उसकी शादी को हरी झंडी मिलेगी. शिबू अपने दर्जनभर साथियों के साथ दिल्ली में पिछले तीन माह से पैसा कमाने आया हुआ है. दोनों दिल्ली में कहीं भवन निर्माण के काम में मजदूरी कर रहे हैं. शिबू और डाली पिछले छह माह से पति-पत्नि के रूप में रह रहे हैं मगर समाज ने उनकी शादी को अभी तक मान्यता नहीं दी है. शिबू इस बात से बेहद खुश है कि अभी तक वह 16 हजार रू. अपने ससुर को सौंप चुका है. अब उसे केवल 4 हजार रू. अदा करने है. कोरकू आदिवासी समाज को इस उपलब्धि पर गर्व है कि अभी तक उनके समाज में बहू को दहेज के लिए जिंदा नहीं जलाया गया. किसी की लाड़ली बेटी को घर लाकर उसकी हत्या नहीं की. इसके विपरीत दूल्हा बनने वाला लड़का ससुर को रकम कमाकर पहले यह दिखा देता है कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है. साथ ही उसकी बेटी (अपनी पत्नि) का पालन पोषण करने में भी सक्षम है. इस प्रथा को कोरकू आदिवासी लोग ‘लमझियानाÓ कहते हैं. इस प्रथा के अनुसार लड़का व लड़की शादी के लिए तैयार होने के बावजूद लड़के को विवाह किए बिना दामाद के रूप में ससुर के घर रहना पड़ता है. इस दौरान वह तयशुदा रकम अपने ससुर को कमाकर देता है. इस कमाई में लड़की भी लड़के का साथ देती है. यह रकम अदा करते ही दोनों की विधिवत रूप से शादी कराकर बिदाई दी जाती है. इस रकम को लड़की का पिता अपने पास ही रखता है. जरूरत पडऩे पर पिता बाद में इस पैसे को अपनी बेटी को लौटा भी देता है।

”रावण जी मरने का क्या लोगें……!
आजकल पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व में बस हर कोई किसी से बस यही सवाल करता है कि ”बोलो क्या लोगें….? लेने – देने का प्रचलन बैतूल की जनपद के पास की गंगा की होटल के गंगा से लेकर अमेरिका की सीनेट के सदस्य तक के पास चलता है। वह भी आपसे यही सवाल करेगा कि ”कहिये आप क्या लेना पंसद करोगे…..?  विहस्की हो या रम मिट जाये सबके गम लेकिन लेने – देने की इस संगत से कोई नहीं बच सका है। यह बात को आप कही पर भी किसी भी प्लेटफार्म पर देख सकते है । श्रीमान बुरा मत मानिये लेकिन सच्चाई जानने के बाद हैरान भी मत होईयें क्योकि यह सच है कि आप किसी को भी कुछ भी काम बता दीजिए वह आपासे यह जरूर कहेगा कि ”बोले क्या दोगे.. अब यह भी कडुवा सच है कि लेने – देने की प्रकिया आपको हर वक्त कहीं भी दिखाई पड़ जाती है। आपकी घरवाली हो या बाहरवाली – सगी हो या मँुहबोली साली वह भी यही सवाल करेगी जीजा जी क्या लोगें…? बगैर लिये – दिये तो कुछ भी काम – धाम नहीं होने वाला..? अब यह बात अलग है कि दाऊद मेमन के डर से उसकी चिटठ्ी पर बिना कुछ लिये दिये बैतूल आकाशवाणी का उद्घोषक भाई पंसीदा फिल्म पार्टनर का गाना उन्हे सुना दे..! लेन -देने के इस कलयुग में जब रामलीला चल रही थी तब रावण बना व्यक्ति राम से लगातार युद्ध करने के बाद मरने का नाम ही नहीं ले रहा था तब बेचारा राम हैरान और परेशान हो गया। जब रावण मरने को तैयार नहीं हुआ तो रामलीला का डायरेक्टर उसके हाथ – पैर जोडऩे के लिए तैयार हो गया कि वह मर जा लेकिन रावण बना व्यक्ति इस जिद पर अड़ा रहा कि पहले राम बने व्यक्ति की साली से उसकी सेटिंग करा दे…….! राम और रावण के युद्ध में राम की साली कहाँ से आ गई ..? कई बार अकसर होता है कि कई मामले सिर्फ लेन -देन के चक्कर में उलझ कर रह जाते है। जबसे त्रेतायुग के राम ने रावण को मारा है उसके बाद से आज तक कलयुग का रावण राम के हाथो मरने का तैयार ही नहीं हो रहा है। आज इस देश में कलयुग का रावण कभी साम्प्रदायिका का रूप लेकर गोधरा का काण्ड करा देता है तो कभी काशी की बाढ़ बन कर प्रलय ला देता है। इस देश का क्या होगा जहाँ पर रावण कभी सिमी का जुबान बोलता है तो कभी बजरंग दल के उप्रदवी तत्वो की शक्ल में उत्पात मचाता है। कभी वासना का रूप लेकर अपनी बहु की अस्मत को लूटने वाले ससुर के रूप में रावण की करतूत सामने आती है तो कभी वह साध्वर ऋतुम्भरा  की वाणी से वैमनस्ता का ज़हर उगलने लगता है। आज का राम उसके सामने घुटने टेक कर देश के अरबो – खरबो आबादी के रूप में विवश होकर उसकी जुल्म – यातना को सहन करने का मजबुर हो जाता है। कई युगो तक कोई रावण के समान विद्धवान महापंडित नहीं हुआ है उस रावण को पता नही इस घोर कलयुग में ऐसा क्या नशा चढ़ गया है कि वह अपनी प्रजा सहित इस सृष्टि पर निवास करने वाले सभी जलचर – नभचार – निसचर सहित आम जन मानस को भी ना- ना प्रकार की यातनो के साथ शारीरिक – मानसिक – बौद्धिक – आर्थिक प्रताडऩा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। रावण से हम सभी का बहँुत पुराना रिश्ता रहा है। अगर कोई कहे कि वह रावण सगा नहीं है या उसका रावण से कोई सबंध नहीं है तो मै इसे नहीं मानता क्योकि रावण तो हर व्यक्ति में निवास करता है। रावण को बुराई का प्रतिक माना गया है। हर इसंान में कोई न कोई बुराई जरूर होती है। असत्य पर सत्य की विजय का प्रतिक है विजय दशमी दशहरा पर्व जिसे सभी लोग मनाते है। भगवान राम ने जब रावण का वध किया था तब उस समय उन्होने अपने अनुज लक्ष्मण से कहा था कि लक्ष्मण जाओं रावण से कुछ ज्ञान हासिल करो। जब लक्ष्मण रावण के सिर के सामने खड़े हुये तो भगवान राम ने लक्ष्मण को समझाया कि अगर किसी से कुछ  सीखना चाहते हो तो उसके चरणो में जाकर सीखो….! आज यदि राम अपने अनुज लक्ष्मण से कहता कि ” जाओ रावण से कुछ सीखो ……! तो वह बसी सवाल करता कि ”भैया रावण क्या लेगा…! कलयुगी रावण भी लक्ष्मण को देख कर यही पुछता ”पहले तू यह तो बता कि तू मुझसे ज्ञान लेने के बदले में क्या देगा….? आज के इस दौर में हालात तो यह हो चुके है कि पहली हो या कालेज हर कोई स्कूल या कालेज जाने वाला बच्चा अपने बाप से लेकर मास्टर – प्रोफेसर से बस यही सवाल करेगा कि ” बोलो क्या लोगो….! आजकल इस समय समय का चक्कर कहिये या फिर आदमी के घन चक्कर बनने का असर हर कोई इतना – उलझ गया है कि इस देश में मंहगाई – दहेज – वैमनस्ता – भुखमरी – गरीबी – लाचारी – व्याभीचारी – चोरी – चकारी – गददरी – मक्कारी – रूपी रावण के दस सिरो को काटने का साहस नहीं कर पा रहा है उसे इन सब दस सिरो वाले संकट रूपी रावण को बार – बार – मोबाइल पर मैसेज भेज कर यही सवाल पुछना पड़ रहा है कि हे दशानन तुम मेरे देश में नासूर की तरह फैले हुये हो प्लीज अपने मरने की कीमत तो बता दो…..? एक बार तो अपनी मौत के लिए ली जाने वाली रकम तो बता दो….? आखिर हम सब तो जान सके कि आप मरने का क्या लोगें…..? यदि रावण जी आप नहीं मरे तो इस कलयुग की जनता तड़प – तड़प कर मर जायेगी। हम मर जायेगें तो फिर हर साल रामलीला करने का या दशहरा के मनाने का क्या औचित्य रह जायेगा…? रावण जी एक बात दिल से कहना चाहता हँू कि आप माने या न माने लेकिन दिल की बात कह रहा हँू अब तो हमे भी आपको जलाने और आपके झुठे मरने के नाटक करने से ऊब होने लगी है क्योकि मेरे बच्चे भी यह सवाल करते है कि पापा जब त्रेतायुग में रावण मर गया तो फिर बार – बार उसके मरने क्रा नाटक क्यों मंचित किया जाता है….? कहीं ऐसा तो नही कि पापा आज तक रावण मरा ही नहीं हो ….? कई बार अज्ञानी बेटा भी ज्ञानवर्धक बाते कह जाता है तब यह सोचा जा सकता है कि कौन किसका बाप है….? आज के समय में देश के ही नही विश्व के हालात बता रहे है कि रावण मरा नहीं जिंदा है। रावण का जगंलराज आज भी श्री लंका ही नहीं ्रबल्कि अमेरिका में भी चल रहा है। आज दुनिया की नम्बर वन पोजिशन पर सिरमौर बना अमेरिका स्वंय कोई निर्णय लेेने की स्थिति में नहीं है तभी तो उसके देश की जनता को सददाम हुसैन रावण के रूप में दिखाई पड़ा और उसने उसे तब तक फाँसी पर लटकाये रखा जब तक कि वह पूरी तरह मर नहीं गया। अमेरिका को अपनी सुरक्षा के लिए सैकड़ो रावणो का डर सताने लगा है तभी तो हर किसी से डरा सहमा रहता है। मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम भारत के साथ संधि करने में उसे राम की मर्यादा की जगह रावण की कुटनीति दिखाई पड़ती है और इसी वज़ह से वह राम को भी रावण की शक्ल में देख कर बार – बार उसके मरने के लिए षडयंत्र रच कर अनेका आंतकवादियो को प्रशिक्षित कर उन्हे हथियार और पैसे देकर भारत में आंतकवाद का साम्राज्य स्थापित करने में लगा है। आज की स्थिति में अगर यदि हमें अपने देश और देश की जनता को सलामत रखना है तो रावण के प्रतिक बने दशानन से एक ही प्रश्र करना चाहिये कि रावण जी मरने का क्या लोगें….?

‘लाख छुपाओं छुप न सकेगा , राज है इतना गहरा ,
दिल की बता देता है असली – नकली चेहरा ……..!
रामकिशोर पंवार
बहुँत दिनो की बात है मैं कहीं जा रहा था। रास्ते में मुझे एक व्यक्ति मिला उसने मेरी ओर देखा कुछ पल के लिए वह सोचने लगा और फिर मुझसे कहने लगा कि ” क्यों भाई एक बात बताओगें क्या तुम कुछ दिनो से कोर्ट – कचहरी के मामलो को लेकर परेशान हो …….!   अनजान व्यक्ति से अपनी परेशानी के बारे में जानने के बाद मैं एक दम घबरा गया….. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैने उस अनजान व्यक्ति की ओर देखा और उसके पैरो पर गिर गया। उसने मुझे रोकना चाहा लेकिन तब तक मैंने उसके पांवो को पकड़ चुका था। वह व्यक्ति मुझसे बोला ”देख बेटा जैसा कह रहा हँू वैसा कर कोई तेरा बाल बांका भी नहीं कर पायेगा। उस व्यक्ति की सलाह मेरे काम में आई और मैं उसकी बताई सीख से आज भी कई प्रकार की मुसीबतो के बाद भी दुश्मनो के – दोस्तो के – वार – प्रतिवार से विचलीत नहीं हँू। उस व्यक्ति ने अपने बारे में बताया कि उसने चेहरा को पढऩे की विद्या अपने गुरू जी से सीखी थी। उसके अनुसार वह दिन में केवल एक ही बार किसी का चेहरा देख कर उसका भविष्य बता सकता है। चेहरा ही हर आदमी के सुख – दुख – आपदा – विपदा – उसके मन के मैल और उसके अच्छे कर्म का पता बता देता है। हर कोई किसी का चेहरा देख कर उसका भविष्य नहीं बता सकता। किसी फिल्मी गीतकार ने अपने तराने में ठीक ही लिखा है कि ”लाख छुपाओं छुन प सकेगा राज है कितना गहरा , दिल की बात बता देता है असली – नकली चेहरा …..!  ÓÓ पता नहीं क्यो लोग आज भी अपने चेहरे पर नकली मुखौटा लगाये घुमते – फिरते रहते है। आज बैतूल जिले की राजनीति में असली – नकली चेहरो की चर्चा जोरो पर चल रही है। एक गाना मैं जरूर आज के इस दौर पर गुण गुनाना चाहता कि ”चेहरा न देखो – चेहरे ने लाखो को लूटा , दिल सच्चा और चेहरा छुठा ……!  एक बात मैं अपने अनुभव के आधार पर नहीं बल्कि लोगो के अनुभवो के आधार पर बतौर सीख देश – दुनिया को बताना चाहता हँू कि इस भरी दुनिया मे ऐसे एक खोजो दस हजार मिलेगें जिन्हे चेहरो ने ही लूटा…..!   कोई किसी के चेहरे पर लूट जाता है कोई किसी के मोहरे पर …… लूट – खसोट का गोरखधंधा बरसो से चला आ रहा है। इस देश में प्यार में और दोस्ती में बेवफाई की एक वज़ह चेहरा भी रहती है क्योकि लोग अकसर कहते है कि उसके चेहरे के रंग – रूप पर न जा……! चेहरो के प्रति लोगो की दिन प्रतिदिन बदलती सोच पर किसी ने सही कहा है कि ”हम नहीं लूटते यदि चेहरा खुबसूरत न होता ……!   अब चेहरे की खुबसूरती पर लूटे लोग या फिर शहर के गुण्डे मवाली के हाथो पीटे लोग हर किसी को दर्द की पीड़ा यही सबक देती है कि ”अगर बेवफा तुझको पहचान जाते – खुदा की कसम हम मुहब्बत नहीं करते…..!   इस समय बैतूल जिले की राजनीति में भी कुछ चेहरो की ही चर्चा चौक – चौराहो पर गली – मोहल्लो में चल रही है। हर कोई असली -नकली को लेकर बहस करने लगता है। कोई कुछ कहता – कोई कुछ ….. हर आदमी के पास केवल एक ही सवाल रहता कि आखिर सहीं क्या है……!   कोई तो बतायें कि उन उठे हुये बवण्डरो के आसमान में उठने के पीछे की त्रासदी ……!  मेरे पास एक दिन एक व्यक्ति मोबाइल पर काल आया वह मुझसे पुछने लगा कि ” रामू भैया ज्योति किसी जाति की है……!  मैने उसे जब बताया कि ज्योति पंवार है तो वह एक दम सकुचा गया और मुझसे बोला क्यों रामू भैया सुबह से कोई और नहीं मिला क्या ……!   मैने जब उसे बताया कि ज्योति वास्तव में पंवार है क्योकि वह मेरे साथ तीन साल पढी है इसलिए मैं उसे जानता हँू……!  मेरे जवाब से वह जब संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने दुसरे व्यक्ति से मोबाइल पर मुझसे एक बार फिर वहीं सवाल किया। मैने भी उसे वही जवाब दिया तो वे दोनो सीधे मेरे घर आ धमके…… ज्योति की जाति को लेकर जिज्ञासु दोनो व्यक्तियों ने मुझसे तीसरी बार एक साथ वहीं सवाल किया कि रामू भैया सच बताओं न कि ज्योति किस जाति की है…..!  इस बार मुझसे रहा नहीं गया। मैने उन लोगो से ही सवाल किया कि आखिर तुम किस ज्योति की बात कर रहे हो…..! जब उन्होने मुझसे भाजपा की सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे की जाति को लेकर उठे असली – नकली के बारे में उनके दिलो – दिमाग में मची उथल – पुथल के बारे में बताया तो मैने उन्हे समझाया कि मुझे उस ज्योति की जाति से क्या लेना – देना ….. इस बारे में किसी को कुछ जानना है तो वह ज्योति से सीधे सवाल क्यों नहीं कर लेते कि वह किस जाति की है या फिर उसकी जाति को लेकर मचे बवाल की सच्चाई क्या है…..!  मैं जिस ज्योति के बारे में जानता हँू वह मेरे साथ पढ़ती थी। इसलिए मैं उसे अच्छी तरह से जानता था। एक ही समाज और जाति के होने के कारण हम उम्र और सहपाठी के बीच तो थोड़ी – बहुँत जान – पहचान का होना स्वभाविक रहता है। तब तो और भी घनिष्ठता रहती है जब दोनो सहपाठी एक साथ आगे – पीछे बैंचो पर बैठ कर स्कूल में 11 से 5 बजे तक का समय बीताते है। अब मेरे पास आयें व्यक्ति जिस ज्योति की बात कर रहे है उसे तो अच्छी तरह से जानता भी नहीं हँू…….!  लेकिन एक बात भी अपनी जगह सही है कि भाजपा की सासंद महोदया श्रीमति ज्योति धुर्वे के पति स्वर्गीय प्रेम धुर्वे मेरे अच्छे परिचितो में से थे क्योकि वह घोड़ाडोंगरी की कांग्रेसी विधायिका श्रीमति मीरा बाई धुर्वे के रिश्तेदार एवं निज सहायक थे। पाथाखेडा – सारनी में पाँच साल तक श्रीमति मीरा बाई धुर्वे और मैं एक ही पार्टी के साथ एक ही मंच पर अकसर मिलते – जुलते थे तब उस दौरान प्रेम भाई से दो चार प्रेम भरी बाते हो जाया करती थी। अब उस समय के काफी अरसे बाद मुझे तो प्रेम की शक्ल तक ठीक से याद नहीं ऐसे में कोई उसकी पत्नि की जाति के बारे में अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए मुझे मोहरा बनाये ऐसा तो नहीं हो सकता। भाजपा की लोकसभा सदस्या श्रीमति ज्योति धुर्वे के असली – नकली का फैसला उसकी जाति के लोग ही करेगें। लोगो को बिलकुल इस बात को नहीं भूलना चाहिये कि कोई इंसान हो या पक्षी ज्यादा दिन आसमान में नहीं रह सकता उसे एक न एक बार जमीन पर तो आना ही पड़ेगा। एक पल के लिए मान भी लिया जाये या प्रमाण भी प्रस्तुत कर दिये जाये कि इसकी या उसकी जाति यह या वह है तो कौन उसे चुनाव लडऩे से मना कर सकता है। हमने बैतूल में मोहन बाबरू का और छत्तिसगढ में अजीत जोगी का जाति को लेकर उठे बवाल का हश्र देखा है। जनता और उसका समाज सबसे बड़ा निर्णायक है इसलिए असली – नकली के लाख दस्तावेजो को यदि उनका समाज नकार कर श्रीमति ज्योति धुर्वे को जीता चुका हैं। अब अदालत तय करेगी कि वह किस जाति या बिरादरी की है…? अदालत के सामने हम क्या कर सकते ….? यह सब काम है अदालत का है…कोर्ट के सामने किसी की नहीं चलती हैं। जनता को तो सिर्फ राजेश खन्ना की स्टाइल में यह गाना गाना है और नाचती है कि ए जो पब्लिक है सब जानती है……..! आज के समय में जरूरी है कि जनता को ही निर्णय लेने दिया जाये कि वह कैसा – कैसी प्रतिनिधि चुनना चाहती है।  आज की जनता को आप पैसे और लालच देकर खरीद नहीं सकते यदि ऐसा होता तो अपने सेठ जी चुनाव ही नही हारते……!  चलते – चलते एक बात और कह दू तो अच्छा रहेगा कि लोग किसी बारे में किसी भी प्रकार की गलत फहमी सबूत और साक्ष्य रहने के बाद भी न पाले क्योकि कानून अंधा और लाचार तथा बेबस नहीं रहा है। इस देश का कानून धन्ना सेठ की तिजोरी बंद लक्ष्मी की तरह नहीं  है। जिसे केवल साल में एक बार लक्ष्मी पूजा पर बाहर निकाला जाए। भगवान से बड़ा कोई न्यायाधीश नहीं है इसलिए सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दो वहीं सही निर्णय सुना देगा कि कौन कितने पानी में है या नही है। आज के इस सशंय के युग में वही बता पायेगा कि कौन किसकी माँ और बाप है……! जात से लेकर पात तक का पता उसे ही मालूम है इसलिए मेरे भाई एक बार फिर सब कुछ उसी पर छोड़ दो वहीं सर्वोपरी है।

जिले में दर्जनो बेरोक टोक चल रही कोयला खदाने
बैतूल। बैतूल जिले में शाहपुर एवं घोड़ाडोंगरी विकास खण्ड में राष्ट्रीय खनीज संपदा का खुले आम दोहण हो रहा है। खनीज विभाग से लेकर भारत सरकार का कोयला मंत्रालय तक इस बारे में मौन साधे हुये है क्योकि सबको घर बैठे पैसा – रूपैया दाना – पानी मिल रहा है। बैतूल जिला खनीज अधिकारी अधिकारी शिन्दे की दरिया दिली इस बात से देखी जा सकती है कि उसका आप पूरा सरकारी बंगला खोद डालो वह ऊफ तक नहीं करेगा लेकिन साहब आपको पैसा तो देना पड़ेगा। इतने दिनो से टिकने की वज़ह भी यही है। बैतूल जिले के सरकारी अफसरो के लिए चारागाह बना हुआ है। कलैक्टर का स्टेनो सोहाने अपने बार – बार तबादले के बाद भी नहीं बदला तब लखन काका के पीछे हाथ धोकर बैठना नाइंसाफी होगी। लोग बैतूल में चौकीदार करते थे आज वहीं बैतूल जिले में बार – बार आकर अफसर बने लोगो को अपना रूतबा दिखा रहे है। शिन्दे भी उन्ही एक अफसरो में से है। बार – बार बैतूल का उनका मोह उनकी नौकरी के बाद भी छुटेगा या नहीं कहा नहीं जा सकता क्योकि हो सकता है वे भी शाहपुर – घोडाडोंगरी में कोई कोयला खदाने शुरू कर दे। कांग्रेस के केन्द्र में रहने के बाद भाजपा के नेताओं की दर्जनो कोयला खदाने बे रोक टोक चल रही है। इस संगीन अपराध को रोकने के लिए वह लाल पैदा ही नही हुआ है जिसने वास्तव में अपनी माँ का दुध पीया है। ऐसा लगता है कि बैतूल जिले के अधिकारियो से लेकर नेताओ तक ने या तो दुध का पैकेट पीया है या फिर बंद डिब्बा का दुध तभी तो उनकी कमजोरी इतने बड़े संगीन अपराधो को बे रोक टोक चलने दे रहे है। कहना नहीं चाहिये पर सच्चाई इन अधिकारियों के कार्यालयों से पता चलती है कि यदि खनीज विभाग कोई कोयला परिवहन की गाड़ी को पकड़े तो कलैक्टर के नाम पर सेंटिग होती है और कलैक्टर पकड़े तो नेताजी के नाम पर सेटिंग होती है। अब तो जिले में खनीज विभाग के आसपास कोयला के परिवहन और अवैध उत्खनन के मामलो की सेंटिग के मामले अकसर ले देकर छुटते देखे जा सकते है। जिले का एक बड़ा अफसर अपने कुछ चहेतो मित्रो को ओबलाइज करने के लिए कोयले की दलाली का हिस्सा भी देने लगा है। साहब के परसनल मोबाइल से आने वाली काले अकसर किसी न किसी मामले की दलाली के हिस्से के लिए होती है। इस लिस्ट में बैतूल जिले के कई नेता एवं पत्रकार तथा ऐसे लोग भी है जिनका काम केवल दलाली करना है। बीते दिनो कोयला के परिवहन एवं अवैध उत्खनन कर दो बिल्टी पर जा रही शोभापुर कालोनी स्थित काली माई के पास के ट्रांसपोटरो की गाडिय़ो को शाहपुर एवं पाढऱ के पास पकडऩे के दो दिन बाद पूरा मामला 70 हजार में सूलटा जिसमें के आधे पैसे जिले के एक बडे अफसर के मुँह लगे उनके मित्र को दलाली के रूप में मिले। खनीज विभाग में रात दिन कोयला – रेत – गिटट्ी के अवैध उत्खनन एवं परिवहन के दर्जनो फोन काल आने  के बाद भी पूरा विभाग अपने मराठी आपला मानूस की सेटिंग और वेटिंग के पास सुलझ जाता है। जिले के मामलो में मध्यप्रदेश सरकार के खनीज विभाग के मंत्री तक के नाम पर इंदौर की एक पार्टी से पैसा लेने के बाद जब इंदौर के एक मंत्री ने हस्तक्षेप किया तो फिर खनीज विभाग का अफसर चोरी – चुपके रूपैया वापस लौटने इंदौर गया और वहाँ पर कान पकड़ कर उठक बैठक भी की लेकिन आने के बाद फिर वहीं उगाही चालू हो गई।  ,

”ए मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर तुम नाराज न होना ………..!
रामकिशोर पंवार ”रोंढावाला
प्यार -लव -प्रेम – मोहब्बत और न जाने कितने नामो से पहचाने एवं पुकारने जाने वाला यह ढाई अक्षर का शब्द दरअसल में किसी अफसाने – तराने से कम नही है। प्यार जिदंगी में हर किसी को होता और छोड़ता रहता है। अकसर लोग कहते है कि ”ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित हो….! प्यार दरअसल में भूले बिसरे गीतो की तरह होता है जब बजता है तो याद आ जाता है गुजरा जमाना। हर व्यक्ति का अपनी इस मौजूदा जिदंगी में किसी न किसी से प्रेम जरूर होता है। जिसका किसी से प्रेम न हो वह व्यक्ति अनजाने में प्रेम कर बैठता है इस बात का उसे भी अदंाज नहीं होता है। वैसे कोई माने या न माने लेकिन सच तो कड़वा होता है बिलकुल नीम और करेले की तरह जिसको पीने से पहले उसकी गंध ही जी को मचला देती है। दरअसल में होता यह है कि हर किसी को अपने जीवन में कभी न कभी किसी अनजान एवं पहचान के मेल – फिमेल से प्यार – लव हो जाता है। वैसे लव की पूरी परिभाषा की जाये तो उसे भी शार्टकट में लफड़ा वाला या वाली कह सकते है। आजकल लव के चक्कर भी इतने जबरदस्त हो जाते है कि कई बार उसका जुनून किसी भी हद – सीमा को पार कर लेता है। लव के चक्कर में कई लोग निपट गये और कई को लोगो ने निपटा दिया। आजकल कलर्स और कलर टीवी पर कई लव के लफड़े बाज धारावाहिक आ रहे है। लोगो का ऐसा पागलपन लव के लफड़े को गांव की गलियो तक ले जा चुका है। आजकल गांवो में भी हीर – रांझा और लैला मजनू के कलयुगी किस्से सुनने को मिलते है जिसमें धोखेबाजी और चालबाजी देखने को सामने आती है। बैतूल के कुछ समाचार पत्रो में आजकल आन किलिंग का मामला रोज छप रहा है।   विक्रम और बेताल की तरह रोज नये सवालो के साथ इस तरह के किस्से सुनने को मिल रहे है। हाल ही में लव के लफडे के चक्कर में सारनी के एक अधिकारी की उसकी पत्नि ने पोल खोल दी। सारनी थर्मल पावर स्टेशन की राख से गर्म हो चुके अधिकारी ने जब अपनी वासना को ठंडा और शीतल करने के लिए किसी शीतल की जगह चीतल का उपयोग कर लिया तो अधिकारी महोदय की श्रीमति घायल शेरनी की तरह दहाड़ कर उस चीतल पर झपटा मार कर उसे घायल कर दिया। शर्मसार अधिकारी इसे प्यार का तराना तो बता रहा है लेकिन गीदड़ की तरह दुम दबा कर भागे अधिकारी को उसकी बीबी ने इस तरह बेनकाब कर दिया कि बेचारे ने शर्म के मारे घर में ताला लगा कर कुछ दिनो के लिए घर छोड़ कर वन टू का फोर हो जाने में ही अपनी भलाई समझी। अब मीडिया उसे खोज रही है तभी तो रहमान को रहम नहीं आई और उसने अधिकारी को सार्वजनिक पोस्टर बना डाला। आजकल इंसान अपने अंदर छुपे वासना के जानवर को भी प्यार का नाम देकर उसे बदनाम करने में लगा हुआ है। बैतूल जिला मुख्यालय पर आजकल लव के लफड़े में क्या कुछ नहीं हो रहा है। सर्व शिक्षा अभियान के एक कर्मचारी ने अपने प्यार के लिए उसे कम्प्यूटर्स तक भेट कर दिया। उसके लिए मकान तक विभाग के इंजीनियरो की मदद से बनवाने के बाद भी वह लव के लिए कुछ भी करेगा की स्थिति में है। बैतूल जिले में लव के लफड़े आजकल हर कहीं सुनने को मिलने लगे है अब इन लफड़ो से तो बेचारा जिला पंचायत भी नहीं बच सका है। यहां पर भी लव का पंचायती राज चल रहा है। लव का लफड़ा पुलिस से लेकर प्रेस तक में देखने को मिलता रहता है। लव के लिए कुछ भी करेगा कि स्थिति में शाहपुर का एक थानेदार अपनी बेटी समान बाला को लेकर वन टू का फोर हो चुका है। लव के चक्कर में एक वरिष्ठ समाजसेवी पत्रकार भी बुरी तरह से पीट चुका है। लव के चक्कर में बैतूल जिले में जबदस्त बहार चल रही है। हर किसी पर लव के चक्कर में फागुन की मस्ती छा गई है। लड़के – लड़की भागे रहे है वहां तक तो ठीक है लेकिन अब तो लव के लफड़े में अधेड़ भी गधे के सिंग की तरह गायब होने लगे है। किस्सा अभी कुछ दिन पुराना ही है जिले के एक गांव के सबके प्यारे दादाजी जी पोता – पोती के रहते हुये नौ दो ग्यारह हो गये अब उनका नाम और लोकेशन इसलिए नहीं बता सकते क्योकि कुछ भी कहे भैया मामला ससुरी इज्जत का जो आ गया है। किसी ने ठीक ही कहा है कि प्यार जात – पात नहीं देखता …. प्यार में आदमी अंधा हो जाता है लेकिन यदि कोई अंधा व्यक्ति ही प्यार करके उसकी आंखो में अपनी जीवन की दुनिया देखने लगे तब आप क्या कहेगें…..? इस अवसर पर तो बस यही शायराना अदंाज कुछ इस तरह से गाया जा सकता है कि तराना गाया जा सकता है कि ”तेरी आंखो में डूब जाऊंगा , कोई अंधा न कहे इसलिए चश्मा लगाते रहूंगा…..!ÓÓ  वैसे भी प्यार को लेकर लोगो ने इतना कुछ कहा एवं लिखा तथा गाया है और इसके आगे कुछ कहने को मन नहीं करता लेकिन प्यार के किस्से रोज जो सुनने को मिलते है उसे देख कर चुप रहा भी नहीं जा सकता। प्यार में एकरार और तकरार तो होना स्वभाविक है लेकिन कई बार तो एक तरफा प्यार में एकरार – तकरार के अलावा भी बहुंत कुछ हो जाता है। वैसे मुझे यह कहने या स्वीकार करने में कोई एतराज नहीं कि मुझे भी ज्योति से प्यार हो गया था…..? मैं कितना भी कुछ कहूं इस प्रेम के बारे में लेकिन पाथाखेडा के स्कूल से तो मुझे निकाला ही गया था अपनी कथित प्रेमिका ज्योति को प्रेम पत्र लिखने के चक्कर में…….! हालाकि उस समय मैं प्रेम के सहीं अर्थो को समझ नहीं सका था । आज जब उस बीते पल को याद करता हँू तो मेरे दिल के किसी कोने से आहट आती है कि उस पर कटी बालो वाली कजरारी आंखो से कह दूं कि ”ज्योति आइ लव यू…… हालाकि बरसो पहले के उस कथित प्रेम पत्र को लेकर यह कहना कि ”ए मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर तुम नाराज न होना की तुम मेरी जिदंगी हो की तुम मेरी बदंगी हो …………!  अब इतने दिनो बाद उससे यह कहना कि ”मुझको तुम से प्यार है…….! बेमानी होगा क्योकि अब वह दुसरे की अमानत हो चुकी है। अब जब उसके और मेरे बच्चो के प्रेम करने के दिन आ गये तब मेरा यह कहना न्याय संगत नहीं होगा कि ”तुझे मैं चांद कहता था मगर उसमें भी दाग है, तुझे मैं सूरज कहता था उसमें भी आग है……! मेरा ऐसा कहना दो परिवारो को जला कर राख कर सकता है। अब केवल इतना ही कहा जा सकता है कि ”तुझे गंगा मैं समझुंगा – तुझे जमुना समझुंगा , तू दिल के पास है इतनी है कि तुझे अपना मैं समझुंगा …….! आज भी मेरे तरह ऐसे लाखो – करोड़ो लोग होगें जो कि ”अजीब – प्रेम की गजब कहानी  के शिकार बने हुये है। ऐसे में उससे मेरा यह कहना कि ”ज्योति आई लव यू ……! सही नहीं होगा लेकिन प्रेम के अर्थ कई प्रकार के भी हो सकते है। कोई जरूरी नहीं है कि प्यार का मतलब पति – पत्नि के रूप में ही देखे जाये क्योकि हर किसी की किस्मत में एश्वर्या राय नहीं होती है इसलिए किसी को ललीता पंवार से भी काम चलाना पड़ता है। प्रेम के अर्थ का तब भी गलत अर्थ निकाला है तब – तब प्रेम बदनाम हुआ है।  प्रेम ज़हर भी है और संजीवनी भी लेकिन यह तो पीने वाले की तासीर पर निर्भर करता है कि उसे वह किस रूप में स्वीकार करे। प्रेम के लिए चक्कर में घर तबाह हो चुके है। प्रेम को वफा और बेवफा दोनो प्रकार से देखा एवं परखा जा सकता है। बचपन का प्रेम और वह गुडडा – गुडडी का खेल जवानी के दहलीज तक नये रूप में सामने आता है तब भी कई बार घुट – घुट कर मरना पड़ता है। प्रेम राधा और मीरा की तरह हर कोई नहीं कर सकता है लेकिन प्रेम तो आजकल राखी सावंत की तरह हो गया है जो कि मुन्नी की तरह बदनाम होता चला आ रहा है और न जाने कब तक वह मुन्नी की तरह बदनाम होता रहेगा…….! अंत में चलते – चलते यही कहना चाहता हँू कि ”भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहां जाये ……!

बदला जीने का रंग और ढंग
यहाँ भी है राखी सावंत और मल्लिका शेरावत…….. !
लेख – रामकिशोर पंवार
पश्चिमी से आई शहरी आधुनिकता का भारत के अँचलो में इस कदर असर हुआ है कि लोगो को रहन – सहन  उसकी चाल-ढाल तथा रंग- रूप तक बदलने लगा है. गांव के लोग जिन्हे अनपढ़ , गोंड , गवार कह कर उलाहना दी जाती थी आज वही लोग अपने आप को किसी से कम नहीं समझ रहे है. तन से नंगे पेट से भूखे लोगो को अपने आगोश में पूर्ण रूप से जकड़ती आधुनिकता के प्रभाव का सबसे ज्यादा असर आदिवासी समाज पर पड़ा है. मध्यप्रदेश के बैतूल जैसे पिछड़े आदिवासी बाहुल्य जिले के साप्ताहिक बाजारो में आने वाली आदिवासी बालाओं को देखने के बाद उनके रंग-ढंग में आए अमूल चूल परिवर्तन ने व्यापारियो की चांदी कर दी है. साप्ताहिक बाजारो में नकली और घटिया सामग्री को मंहगे दामो वाली बता कर इस समाज की अशिक्षा का भरपूर फायदा उठा कर जहाँ एक ओर लोग मालामाल हो रहे है वही दुसरी ओर नकली मेहनतकश अशिक्षित समाज उपभोक्ता अधिनियमो को न जानने की वजह से ठगी का शिकार बन रहा है. साप्ताहिक बाजारो में अकसर देखने को मिलता है कि हर दुसरी – तीसरी दुकान नकली माल से भरी रहती है. नकली माल का इन लोगो के तन से लेकर मन तक बुरा असर पड़ा रहा है. सौंदर्य विशेषज्ञ जुही अग्रवाल कहती है कि बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारो में बिकने वाली इन्दौर मेड सौंदर्य क्रीम एवं अन्य सामग्री चेहरे से लेकर शरीर के विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालती है. घटिया किस्म की लिपीस्टीक से होठो पर दाग पड़ जाते है. कई बार तो यह देखने में आया हे कि चेहरो पर भी सफेद दाग दिखाई पडऩे लगते है. सुश्री जुही मानती है कि आदिवासी समाज की युवतियाँ अपने सौंदर्य पर आजकल कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी. आज के आदिवासी बालाए भले ही विश्व सुदंरी एश्वर्या राय को नहीं जानती हो पर वे अपने आप को एश्वर्या से कम भी नही समझती है. आज यही वजह है कि इन युवतियों के अपने रूप सौदंर्य के प्रति बढ़ते शौक ने उन्हे आज अपनी पारम्परीक वेशभुषा और संस्कृति से कोसो दूर कर दिया है. ग्रामिण अंचलो में बसे आदिवासी परिवार के नौजवान लड़के व लड़कियां दोनों ही कम उम्र से ही हाथ मजदूरी पर ठेकेदारों के पास काम करने के लिए जाने लगते है. मेहनतकश इस समाज की काम के प्रति बढ़ती लगन ने उन्हे हर मोर्चे पर लाकर खड़ा किया है.
सदियो से आदिवासी समाज की युवतियो एवं महिलाओं ने सोने के जेवर के स्थान पर चांदी के जेवरो को सबसे उपयोग में लाया है. चांदी एवं गीलट  (खोटी चांदी) के ही सबसे अधिक जेवर खरीदने वाली इन युवतीयो के शरीर पर गले से लेकर पंाव तक दस हजार रूपये तक के जेवर लदे रहते है. उक्त जेवरो को केवल साप्ताहिक बाजारो एवं किसी कार्यक्रम में पहन कर आने वाली इन युवतीयो का शौक भी बदलता जा रहा है. बाजारो में अब तो कई युवतीयो को कोका कोली और पेप्सी पता देख आप भी हैरत में पड़ जाएगें कि दुसरो का अनुसरण करने वाली ए युवतियाँ आखिर किस ओर भागी जा रही है. आदिवासी समाज की युवतियाँ शादी के पहले भी नाक में नथ और कान में चांदी की बाली पहन लेती है. इन युवतियो को देखने के बाद आप एक पल में यह पता नही लगा सकते कि कौन शादी शुदा है और कौन कुवारी ! वे भले ही तन -मन और धन से गरीब है पर उनके शौक ने उन्हे कहीं का नही छोड़ा है. इनके द्वारा पहने गए आभुषणो के बारे में पगारिया ज्वेलर्स के संचालक नीतिन कहते है कि यह समाज सबसे इमानदार और वादे का पक्का है. उनका यह कहना था कि इस समाज की अज्ञानता का लोग भले ही फायदा उठा ले पर आज सबसे अधिक ग्राहक इसी समाज के साप्ताहिक बाजारो एवं तीज त्यौहार पर खरीदी- बिक्री कने के लिए आते है. अब समय की कहिए या आधुनिकता का असर अब इस समाज की महिलाओ का हमेल  (जिसके सिक्को की माला भी कहते है . ) हस , पैर पटटी, शादी की कड़ी, पायल, बाखडिय़ा, सरी, सहित कई प्रकार आभुषण को पहन कर साप्ताहिक बाजारो एवं शादी विवाह के कार्यक्रम में जाती है. राजश्री से लेकर पान पराग तक खाने वाली इन युवतियो ने सप्ताह में एक बार दोमट मिटटी से नहाने के बजाय लक्स और रेक्सोना से नहाना शुरू कर दिया है. गोदना आज भी इनकी संस्कृति का अंग है जिसे वह नहीं छोड़ सकी है.
बैतूल जिले में रोजगार के सबसे बड़े केन्द्र पाथाखेड़ा कोयला खदान हो या सारनी ताप बिजली घर या फिर बहार की. इन खदानों से निकलने वाले कोयले को ट्रकों में भरना और खाली करने का काम करने वाली रेजा (आदिवासी युवतीयां) माली, जिस्मानी व दिमागी शोषण का शिकार होती है. अपनी मेहनत की मजदूरी लेने वह साप्ताहिक बाजारों के दिनों में जाती हैं. अकसर कई ठेकेदार भी इन को आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजारों के दिनों में जाती हैं. अकसर कई ठेकेदार भी इन को आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजार के दिनों में ही मजदूरी का रूपया देते हैं.  दिन भर काम करने वाली आदिवासी युवतीयो को जब हाथ में मजदूरी मिलती है तो उन का चेहरा खिल उठता है . हफ्ते के आखिरी दिन जिस गांव, शहर में बाजार लगता है, वहां पर टोलियों में नाचती गाती ये आदिवासी औरतें खाना – पीना छोड़ कर अपने रूप श्रंगार एवं पहनावे की चीजों पर टूट पड़ती हैं . शहरी चकाचौंध में रच बस जाने की शौकीन ये आदिवासी युवतीयाँ अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को लिपिस्टक , नेलपालिश, पाऊडर, बिंदिया, क्रीम पर खर्च करती हैं . कभी पोण्डस का पाऊडर खरीदने वाली युवतीयाँ आजकल क्रीम  की मांग करने लगी है. साप्ताहिक बाजारो में अकसर देखने को मिलता है कि हर दुसरी – तीसरी दुकान नकली और मिलते – जुलते नाम और माल से भरी रहती है. नकली माल का इन लोगो के तन से लेकर मन तक बुरा असर पड़ा रहा है. सौंदर्य विशेषज्ञ जुही अग्रवाल कहती है कि बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारो में बिकने वाली इन्दौर मेड सौंदर्य क्रीम एवं अन्य सामग्री चेहरे से लेकर शरीर के विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालती है. घटिया किस्म की लिपीस्टीक से होठो पर दाग पड़ जाते है. कई बार तो यह देखने में आया हे कि चेहरो पर भी सफेद दाग दिखाई पडऩे लगते है. सुश्री जुही मानती है कि आदिवासी समाज की युवतियाँ अपने सौंदर्य पर आजकल कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी. आज के आदिवासी बालाए भले ही विश्व सुदंरी एश्वर्या राय को नहीं जानती हो पर वे अपने आप को एश्वर्या से कम भी नही समझती है. आज यही वजह है कि इन युवतियों के अपने रूप सौदंर्य के प्रति बढ़ते शौक ने उन्हे आज अपनी पारम्परीक वेशभुषा और संस्कृति से कोसो दूर कर दिया है.
बैतूल जिले के एक प्रमुख प्रेस फोटोग्राफर और पत्रकार हारून भाई के शब्दो में इन आदिवासी बालाओं का शौक फोटो  खिंचवाना और हफ्ते में एक दिन आस पड़ोस में पडऩे वाले साप्ताहिक बाजार के दिनों में अच्छे कपड़े पहन कर मद मस्त होकर नाचना – गाना होता है . इस दिन ए युवतियाँ खूब रूप श्रंगार करने के साथ – साथ अपनी सखी सहेली को उत्प्रेरित भी करती है . नए समाज और नई क्रांति का आदिवासी समाज पर काफी असर पड़ा है. आज भी उन्मुक्त सेक्स के मामले अन्य समाज से दो कदम आगे रहे इस समाज के परिवारों में सेक्स को लेकर कोई बंदिश नही है. परिवार की ओर से मिली छूट का आदिवासी समाज की लड़कियां अपनी जात के युवकों के साथ भरपूर फायदा उठाती हैं . यह एक कटू सत्य अपनी जगह काफी मायने रखता है कि इन युवतीयो के फोटोग्राफी के शौक के चलते कई घरो के चुल्हे जलते है.
कुछ साल पहले तक देशी काटन के लुगड़े और फड़की से अपने शरीर को ढ़कनी वाली युवतीयाँ अब अपने गांव के आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में अपने लिए ब्रा और पैन्टी की मांग करने लगी है. बैतूल जिले के विभिन्न साप्ताहिक बाजारो में कपड़े की दुकान लगाने वाले कन्हैया के अनुसार बाजारो में अब देशी सूती – काटन के लुगड़ो और फड़की के स्थान अब उन्हे पोलीस्टर की साडिय़ो के शौक ने घेर रखा है. आज यही वजह है कि गोंडवाना क्षेत्रो के साप्ताहिक बाजारो से सूती- काटन के कपड़ो की मांग कम होती जा रही है. अपने ऊपरी तन पर ओढऩे वाली फड़की के प्रति इन आदिवासी बालाओं की मांग में आई कमी के कारण इन फड़की को बनानें वाले कई छीपा जाति के लोग बेरोजगार हो गए है तथा उनका पुश्तैनी व्यवसाय भी लगभग बंद होने की कगार पर है. बैतूलबाजार के छीपा जाति के परमानंद दुनसुआ कहते है कि एक जमाना था जब हमारे घर के बुढ़े से लेकर बच्चे तब तक हर दिन कहीं न कही लगने वाले साप्ताहिक बाजारो में आने वाली मांग की पूर्ति के लिए काम करके थक जाते थे लेकिन आज हमे अपने पुश्तैनी व्यवसाय के बंद होने की स्थिति में दुसरो के घरो पर काम करना पड़ रहा है
फिल्मी संस्कृति का इन आदिवासी आलाओं पर इतना जबरदस्त असर पड़ा है कि ए टाकीजो में फिल्मे देखने के बजाए आजकल अपने घरो के लिए वी.सी.डी. पर दिखने वाली फिल्मो की सी.डी. खरीदने लगी है. आजकल गांवो में भी हजार दो हजार में बिकने वाले सी.डी. प्लेयरो ने गांव के लोगो को टाकिजो से दूर कर रखा है. मुलताई की कृष्णा टाकिज के संचालक कहते है कि पहले हर रविवार एवं गुरूवार साप्ताहिक बाजारो के दिन हमारी टाकिजो में शहरी दर्शको के स्थान पर गांव के ग्रामिण लोग ज्यादा आते थे. इनमें आदिवासी युवतीयो की संख्या सबसे अधिक होती थी लेकिन अब तो हमें खाली टाकीज में भी मजबुरी वश शो करने पड़ रहें है. ग्रामिण क्षेत्रो में आदिवासी समाज में आए बदलाव पर शोध करने वाली अनुराधा के अनुसार घर में दो वक्त की रोटी को मोहताज इन आदिवासी युवतीयो को पश्चिमी स़स्कृति ने अपने आगोश में ले लिया है. वे मानती है कि जिनके शरीर पर पहनने के लिए ढंग के कपड़ें नही होते थे वे ही आजकल भड़किले कपड़ो को पहनने लगी है. आदिवासी समाज में आ रहे बदलवा का ही नतीजा है कि ए किसी के भी चक्कर में पड़ जाती है.आदिवासी महिलाओं के साथ होने वाले यौन प्रताडऩा सबंधी अत्याचार पर अधिवक्ता अजय दुबे की राय यह है कि न्यायालय तक आने वाले मामले की तह तक जाने के बाद यह कहा जा सकता है कि लोभ और लालच की शिकार बनने वाली युवतीयाँ अपने केस के फैसले के समय भी लोभ लालच का शिकार बन जाती है. पैसो के बढ़ती भूख और उन पैसो से केवल अपने रूप श्रंगार तथा एश्वर्या से कम न दिखने की चाहत ही इन आदिवासी युवतीयो के जीवन में अमूल चूल परिवर्तन ला रही है.  सेवानिवृत वनपाल दयाराम भोभाट के अनुसार मैने अपने वन विभाग की पूरी नौकरी इस समाज के बीच बिताई है इस कारण मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हँू कि इस समाज में आए बदलाव के पीछे गांव – गांव तक पहँुच चुकी टी.वी. और फिल्मी संस्कृति काफी हद तक जवाबदेह है. आपके अुनसार इन लोगो को फिर से उनकी संस्कृति के से जोडऩा होगा. अन्यथा हमें भी किताबों में ही पढऩे को मिलेगा कि आदिवासी ऐसे होते थे.
इति,

प्याले से गायब हुई काफी.. …. …. …. …. …. !
रामकिशोर पंवार
काफी भारत की मूल्यवान फसल होने के साथ -साथ देश के लिए बहुँत महत्वपूर्ण है . काफी केवल 2500 फुट से 5000 फुट की ऊँचाई वाले क्षेत्र में अच्छी तरह से ऊगाई जा सकती है .बैतूल जिले के कुकुरू – खामला वन परिक्षेत्र की ऊँची पहाँडिय़ो पर आज से ठीक 89 साल पहले सेंट विल्फोर्ड द्घारा 208 एकड़ का रकबा काफी प्लांट के लिए आरक्षित कर काफी के उत्पादन की संभावनाओं को मूर्त रूप दिया गया था .हालाकि शुरूआती दौर में 110 एकड़ में काफी के उत्पादन को शुरू किया गया था . 5 – 7  फीट के अंतर लगाये जाने वाले काफी के पौधे सामान्यत: पाँच या छै साल के बाद फसल देना शुरू कर देते है . औसतन काफी का उत्पादन प्रति एकड़ दो हंडरवेट होता है . बैतूल जिले में काफी की इन्ही संभावनाओं को सबसे पहले 1907 में आज से ठीक सौ साल पहले ब्रिट्रिस हुकुमत के समय बैतूल जिले में पदस्थ एक ब्रिट्रिश नागरिक सेंट विल्फोर्ड ने अपने परिवार के सदस्यो एवं मित्रो को घुमाने के बहाने इस स्थान पर एक व्ही . आई .पी . सर्किट हाऊस की नींव रखी थी . जिसके पीछे यहाँ की प्राकृतिक सुन्दता एवं मौसमी वातावरण था . इस दौरान सेंट विल्फोर्ड को ऐसा लगा कि इतली ऊँचाई वाले क्षेत्र में काफी के उत्पादन की काफी संभावनाए है तब उसके द्घारा पेय प्रदार्थ काफी के उत्पादन की शुरूआत भी कुछ काफी के पौधो को रोपित करके की थी . उसकी दोनो अभिलाषा जब पूर्ण हुई तब तक वह इस जिले से जा चुका था . आज 1907 में बने इस सर्किट हाऊस के सौ साल तो पूरे हो गए . देश छोड़ कर अग्रेंज चले गए लेकिन हमे दे गए दो अनमोल सामान जिसकी हम देश आजादी के 60 साल बाद हिफाजत नही कर पाये . मध्यप्रदेश का एकलौता काफी उत्पादक क्षेत्र कुकुरू खामला में बना वह सर्किट हाऊस अपने मूल स्वरूप को खोते जा रहा है साथ ही वन विभाग अपने पूर्व दक्षिण वन मण्डल के वन मण्डलाधिकारी श्री मान द्घारा उस अग्रेंज सेंट विल्फोर्ड के सपनो को साकार करने के लिए काफी अथक प्रयास करके काफी के बीजो का उत्पादन का कार्य कुछ ग्रामिणो की मदद से वन सुरक्षा समिति बैनर तले शुरू किया प्रयास को संरक्षित एवं सुरक्षित नहीं रख पाए . अब दिन प्रतिदिन देश का जाना पहचाना काफी उत्पादक क्षेत्र जहाँ पर पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गांधी से लेकर न जाने कितने अनगिनत लोग आकर यहाँ की काफी की चुस्की का स्वाद लेकर चले गए आज वही काफी उत्पादक क्षेत्र कुकुरू खामला जाने वाले पर्यटको के प्याले से काफी गायब होती काफी दूर चली जा रही है . बैतूल जिले के वर्तमान वन संरक्षक श्री ए.के. भटटाचार्य एवं दक्षिण वन मण्डल के वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज अग्रवाल द्घारा पत्रकारो को इस भैसदेहीं तहसील मुख्यालय से लगभग पैतीस किमी दूर सतपुड़ा अंचल की गोद मे सबसे ऊंचाई वाला क्षेत्र कुकुर खामला की काफी उत्पादक नर्सरी को दिखाने के लिए ले जाया गया . जहाँ एक ओर काफी प्लांट में इस बरसात में काफी के पौधे सुख कर डंढ़ल जेसे दिखाई पड़ रहे है . समुद्र सतह से लगभग चार घन फीट ऊंचाई पर सीना ताने हुए भैसदेहीं तहसील के इस वन ग्राम को ऊंची पहाड़ी के नाम से जाना एवं पहचाना जाता है . यही व$जह भी है कि मध्यप्रदेश में सिर्फ इसी स्थान पर काफी बीजो का उत्पादन कार्य शुरू किया गया था . इस स्थान की काफी के बीजो को खरीदने के लिए देश की जाने – मानी काफी बनाने वाली कंपनियाँ के अलावा अन्य लोग भी आया करते थे . बैतूल जिला मुख्यालय से रिमझीम बरसात के दिनों में पत्रकारो को इस पर्यटक स्थल की प्राकृतिक सौंदर्यता का दर्शन कराने ले गए वन विभाग . को लगा कि पत्रकार लोग उनकी भाटगिरी – चाटुकारिता करके इस काफी उत्पादक क्षेत्र की कम$जोरीयो को उजागर नही कर पायेंगे लेकिन राज्य एवं केन्द्र सरकार से काफी उत्पादक नर्सरी को बचाने के लिए उत्पादित काफी के मूल्य से अधिके रूपयो को खर्च करने के बाद भी काफी उत्पादक की इस नर्सरी को वन विभाग के अफसरो एवं कर्मचारियो की लापरवाही रूपी दीमक ने चाट खाया है . जिसके कारण आज इस क्षेत्र की मूल पहचान उससे छीनती चली गई .. …. …. …. …. …. !   अँकड़ो पर गौर किया जाए तो वन विभाग के कई अफसरो को घर बैठना पड़ सकता है क्योकि इस काफी के पीने वालो ने काफी के बदले पूरा – का पूरा पैसा जो कि लाखो एवं करोड़ो रूपयो में आता है . वन सुरक्षा समिति को अपनी लापरवाही एवं भ्रष्टï्राचार की ढ़ाल बनाने वाले अफसरो ने कभी सपने मे भी नही सोचा था कि ग्रीष्मकाल में तपती धूप से बचने इस शांत एवं ठंडकपूर्ण स्थान का काफी उत्पादन इतने नीचे गिर जाएगा . कितनी शर्मसार बात है कि देश एवं प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रो के हजारों की संख्या में आने वाले पर्यटको को जब पता चलता है कि अब उन्हे यहाँ के सर्किट हाऊस में वन विभाग की इस नर्सरी से उत्पादित काफी के प्याले की चुस्की का म$जा नही मिल पाएगा …. …. …. …. …. !  इस खबऱ को सुनने के बाद हर कोई काफी आश्चर्यचकित हो जाता है . मंदसौर से कुकुरू खामला की सुन्दरता निहारने आए मनमोहन दुबे कहते है कि यहाँ आने के लिए उनके एक बैतूल जिले में पदस्थ रह चुके स्वास्थ विभाग में कार्यरत जीजाजी ने काफी आग्रह किया था , लेकिन यहाँ पर काफी का प्याला चाहने पर भी नही मिल सकता…. …. …. …. …. ….! अपने आप में प्राकृतिक सौंदर्यता का अनमोल खजाना समेटे हुए है कुकुरू खामला ग्राम से लगे हुए दुर्ग में पहाडिय़ों की मेखलाकार सौंदर्यता देखते बनती है. इस रमणीय स्थल पर देश – प्रदेश से वर्ष भर हजारों की संख्या में पर्यटक अनुपम प्रकृति की सुंदरता को अपने सजल नयनों से निहारने आते है.वन सुरक्षा समिति के पदाधिकारी ने पत्रकारो को इस रमणीय क्षेत्र के बारे में बताया कि इस पर्यटन स्थल को बुच पाइंट के नाम से जाना जाता है क्योंकि अपने ही जिले के पूर्व कलेक्टर एवं जाने – माने पर्याविद एम .एन . बुच ने अपने प्रवासी दौरे पर इस स्थल को पर्यटन स्थल बनाने का निश्चत किया था, तभी से यह प्राकृतिक सौंदर्यता का अनमोल खजाना बुच पाइंट कहलाने लगा . इस पर्यटन पाइंट के लिए जाने वाले 30 किमी के रास्ते में ऐसे अनेकानेक रमनीय एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत स्थान देखने मिलते है जिसे देखकर ह्दय प्रफुल्लित हो उठता है. यहां भैसदेही तहसील मुख्यालय से उतर – पश्चिम दिशा में 3 किमी दूरी पर स्थित ग्राम बगदरा में 25 से 40 ऊंचे दो मौसमी झरने है, जिनका पानी एक दूसरे के विपरीत दिशा में गिरता हुआ पहाडिय़ों से होकर बहता है, जिसका बलखाते हुए अंगडाईयां मारना मचलना देखते ही बनता है. यह स्थान अंधूरा देव बाबा के खोरे के नाम से जिले में विख्यात है. इस स्थान के कुछ आगे चले तो एक विशाल जलाशय मिलता है जिसका जल निर्मल एवं स्वच्छ दर्पण सा प्रतीत होता है जो अपने जल से आसपास के क्षेत्र को सदा लहलहाने में मदद करता है. वर्तमान समय में अंचल में व्याप्त जल संकट का भी एकमात्र विकल्प यह कुर्सी जलाशय ही है. इन दृश्यों को देखते हुए जब हम पहुंचते है जिले के विख्यात पर्यटन स्थल कुकुरू खामला तो मानो आत्मा आनंद विभोर हो जाती है. यहां काफी प्लांट के प्लाप हो जाने के बाद से बरसते पानी के मौसम और कड़कती ठंड में होठो की चुस्की से दूरे हुए काफी के प्याले पर आश्रित वन सुरक्षा समिति कुकुरू खामला के गरीब आदिवासी को यह नहीं पता कि अब उनकी नर्सरी में काफी के बीज क्यो नहीं उत्पादित हो पा रहे है . पूर्व वन मण्डलाधिकारी श्री मान ने वन सुरक्षा समिति का गठन करके इस काफी प्लांट के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार से काफी बड़ा अनुदान प्राप्त कर इसे काफी ख्याति दिलवाई थी लेकिन आज वही काफी उत्पादक नर्सरी के सदस्य अपनी रोजी – रोटी के छीन जाने से काफी मुसीबत में है . वन विभाग के इस सरकारी रेस्ट हाउस के ठीेक सामने पत्रकारो से चर्चा करते वन विभाग के अफसरो के साथ नाश्ता एवं रात्री भोज के पूर्व पत्रकारो का दल सूर्य का उदय एवं अस्त खुले आसमान में होता देख इस क्षेत्र की प्रशंसा करते ही मनमोहित हो गये . समीर के झोको का दिशा ज्ञान कराती रेस्ट हाऊस के पास ही लगी पवन चक्की, समीप बसा ग्राम कुकुरू ऊँची पहाडिय़ां ऐसे अनेक प्राकृतिक स्थल जो सुंदरता की रश्मियों को बिखेरता हुआ पर्यटको का मन मोह लेता है. ऐसे प्रकृति के अनुपम अनमोल खजाने की जितनी सराहना की जाए कम है. इस अनमोल एवं रमणीय से सराबोर प्राकृतिक सौंदर्य के धनी वन ग्राम कुकुरू खामला से लुप्त काफी के प्रति अगर राज्य सरकार का वन विभाग लापरवाह एवं भ्रष्टï्राचार के अजगर की तरह इसे निगलता गया तो कोई भी कुकुरू खामला नही पहँुच सकेगा क्योकि उन्हे नही मिल सकेगी काफी की चुस्की……..!
इति,

जहाँ हर रोज होती है केसर की वर्षा
रामकिशोर पंवार
बैतूल यूँ तो सतपुड़ाचंल का बैतूल जिला धार्मिक महत्व की दृष्टिï से काफी विशिष्ठï स्थान रखता है. जहाँ एक ओर बैतूल जिले में सूर्यपुत्री ताप्ती की जन्मस्थली मुलताई है तो वही दुसरी ओर दक्षिण भारत का शिखरजी कहलाने वाला ै जैन समुदाय का पवित्र तीर्थस्थल मुक्तागिरी भी है. सतपुड़ाचलं की सुगम मनमोहक रमणीय पहाडिय़ों में बसे 52 चैत्यालयों का करिश्माई नजारा आज भी इस स्थान पर सैकड़ो पर्यटको और धर्मालु भक्तो को खीच लाता है. ऐसी आम धारणा के साथ मान्यता भी है कि जैन धर्म के अनुयायियों के लिये श्री दिगंबर जैन सिद्घक्षेत्र मुक्तागिरी के देव दुर्लभ दर्शन करने से उन्हे परमपिता परमेश्वर से मिलने का सुअवसर मिल जाता है.ऐसा व्यक्ति यहाँ पर आने के बाद परमेश्वर से अपनी अंतरआत्मा के साथ साक्षात्कार करने में सफल हो जाता है. ऐसे व्यक्ति को आंतरिक अनुभूति होती है कि उसने परम पिता परेश्वर से रूबरू बातचीत कर ली हो. वैसे तो साल के चारो माह मुक्तागिरी का दृश्य मनभावन होता है पर वर्षाकाल में चातुर्मास के समय मुक्तागिरी की शांत प्रकृति यहाँ पर आने वाले हर व्यक्ति को अपनी ओर बार-बार आने को लालायित करती है. इस पवित्र तीर्थस्थल के बारे कहा तो यह तक गया है कि यहाँ आने वाले की अंतरआत्मा उसे सशरीर अध्यात्म से जुडऩे का बाध्य करती है. ईश्वर प्रदत्त वास्तुकला का अद्ïभूत, अनूठा जीवंत संसार है मुक्तागिरी, जहां प्रकृति यहाँ आने वाले हर व्यक्ति से रूबरू बातें करती महसुस होती है. इस स्थल के कलकल करते झरने ऐसे लगते है जैसे वे कोई मध्ुार गीत की तान छेड़ हुए कुछ गुणगुणा रहे है.  हरे भरे पल्लवित वृक्ष राग मेघ मल्हार की रचना प्रस्तुति करते आल्हादित कर देते हैं. यूँ तो मुक्तागिरी से लौटकर जाने वाला यर कोई श्रद्घालू कोई न कोई चमत्कार के किस्से कहानियाँ सुनाता है , पर परतवाड़ा में कॉटन फेडरेशन के सामने वैद्य ब्रदर्स का एक प्रतिष्ठïान है. उनके रिश्तेदार की युवा लड़की बरसों से गूंगी थी. एक चातुर्मास के दौरान लड़की का मुक्तागिरी से साक्षात्कार होने के बाद से वह गुंगी लड़की ने बोलना शुरू कर दिया. उक्त लड़की अब धारा प्रवाह बोलते हुये नमो अरिहंताण का रोजाना जाप करती है.
मुक्तागिरी क्षेत्र भारत के मध्य में महाराष्टï्र तथा मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है, वैसे मूलत: मुक्तागिरी  मध्यप्रदेश के बैतूल जिले अंतर्गत भैंसदेही तहसील में आता है. किंतु मुक्तागिरी का ज्यादातर व्यवहार महाराष्टï्र के परतवाड़ शहर से ही चलता रहता है. परतवाड़ा से यह मात्र 15 किमी की दूरी पर है. परतवाड़ा-बैतूल मार्ग पर खरपी ग्राम से सात किमी दूरी पर सतपुड़ा पर्वत की रमणीय पहाडिय़ों के बीच मुक्तागिरी बसा है. भोपाल से 240 किमी, आकोट से 75 किमी, अमरावती से 65 किमी एवं बैतूल से 100 किमी दूरी पर स्थित मुक्तागिरी के लिये ट्रेन, बस के द्वारा सहजता से पहुंचा जा सकता. परतवाड़ा से आटो रिक्शा-मेटाडोर वाजबी दाम में यात्रियों को मुक्तागिरी तक पहुंचा देते हैं. मुक्तागिरी ट्रस्ट द्वारा सिद्घिक्षेत्र परिसर में भक्तगणों की बढिय़ा व्यवस्था की जाती है. आज की तारीख में मुक्तागिरी यहां बिजली, पोस्ट व अन्य जरूरी सेवाओं की भी व्यवस्था की जा चुकी है.
अचलपुर की दिशा ईशान, तहां मेंढागिरी नाम प्रधान, साढ़े तीन कोटी मुनीराय, तिनके चरण नमंू चितलाय. जैन धर्म की परंपरा में तीर्थ क्षेत्र दो प्रकार के होते हैं एक सिद्घक्षेत्र और दूसरा अतिशय क्षेत्र. जिस जगह से मुनिश्वर तीर्थकरदिक, महान साधकों ने विशेष आत्मसाधना की और सब कर्मबंधन से छूटकर मुक्ति लक्ष्मी की प्राप्ति की, उसी स्थान को सिद्घ भूमि कहते हैं. जिनेन्द्रदायिक के जन्म से, तप साधना से या चमत्कारादिक से जिस जगह को पवित्रता आई, उन्हें अतिशय तीर्थक्षेत्र कहा जाता. मुक्तागिरी में साढ़ें तीन करोड़ मुनिश्वरों को मोक्ष प्राप्ति हुई है. अत: यह पवित्र सिद्घ क्षेत्र है. मुक्तागिरी क्षेत्र का नाम मेंढागिरी भी है. जिसका उल्लेख निर्वाण कांड में देखने को मिलता है. इस पर्वत पर जो दस क्रमांक का मंदिर है इसके विषय में कहा जाता है कि लगभग एक सहस्त्र वर्ष पूर्व ऊपर से एक मेंढा ध्यानमग्र मुनिराज के सामने गिरा. तत्पश्चात ध्यान के बाद उन्होंने मेंढे के कान में नमोकर मंत्र सुनाया. फलस्वरूप मेंढा मर कर स्वर्ग में देव हुआ. देव होने पर उसे जाति स्मरण हुआ सो वह अपने उपकारक मुनिराज के दर्शन के लिये आया और उसने मुनि महाराजे से उपदेश के लिये प्रार्थना की. तभी से पर्वत का यह पूरा क्षेत्र मेंढागिरी कहलाता है. तब से मंदिर में अष्टïमी, चौदस व पूनम के दिन केशर की वर्षा होती है. इसी चैत्यालय को अकृत्रिम चैत्यालय कहते हैं. चैत्यालय में 72 जिनबिंब विराजमान है. इस संदर्भ में यह भी कहा जाता है कि क्रमांक दस का निर्माण एलिचपुर के राजा एैल ने किया था.
मुक्तागिरी मुक्ता बरसे, शीतलनाथ का डोरा उक्त पंक्ति इस तीर्थ के विषय से सुप्रचलित है. इन पंक्तियों में दसवें तीर्थकर शीतलनाथ भगवान के समवशरण का उल्लेख है. इस पर्वत पर जब उनका समवशरण आया था तब मोतियों की वर्षा हुयी थी. इसी वजह से इस क्षेत्र का नाम मुक्तागिरी पड़ा है, सतपुड़ा की इस पर्वत श्रृंखला पर मानव निर्मित 52 चैत्यालय है. इन मंदिरों में कुछ अति प्राचीन हैं और शेष 16 वीं शताब्दी के बताये जाते है. यहां से प्राप्त एक ताम्रपट के विवरण से इस क्षेत्र का संबंध सम्प्रट श्रेणिक बिंबसार के साथ बताया गया है. भगवान पाश्र्वनाथ का यह मंदिर जिसमें केशर की वर्षा होती है, यह प्रतिमा शिल्पकला का दर्शनीय नमूना है. प्रतिवर्ष कार्तिक शुद्घ पूर्णिमा और चातुर्दशी कार्तिक शुद्घ पूर्णिमा मुक्तागिरी में मेला लगता हैं इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण रथ यात्रा हुआ करती थी. सागौन लकड़ी से बने उक्त भव्य रथ को सने 56 में राजाराम सावे काटोलकर ने मंदिर को दान किया था. रथ पर सारथी बन बैठने के लिये बोली लगाई जाती थी.
पिछले 50 वर्षो से मप्र खेड़ी (सांवलीगढ़) के वेकौबाजी सरोदे ही रथ के सारथी रहे. अब इसे ईश्वर का अजीब संयोग ही कहना होगा कि सन्ï 95 में एक दिन पहाड़ से करीब दस मन वजनी एक पत्थर अचानक लुढ़कता हुआ रथ पर जा गिरा. जिसमें रथ जगह पर चकनाचूर हो गया. इधर रथ गया, उधर वेकौबाजी के भी प्राण पखेरू उड़ गये. इसी अजीबो-गरीब संयोग के लिये वेकौंबाजी आज भी याद किया जाते हैं. मुक्तागिरी को ऐतिहासिक पृष्ठïभूमि के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करने पर मालूम पड़ा कि यह समूची पर्वत श्रृंखला अमरावती निवासी बाबा साहब खापड़े ने की थी, ब्रिटिश हुकूमत ने बाबा साहब को निंभोरा, पलासखेड़ी, थापोड़ा, मालनी, जामूलनी और पुंडी का जहांगिरदार बनाया था. उस समय खापडेजी ने अंग्रेजों से मुक्तागिरी पर्वत दस हजार रूपये में खरीदा था. गाहे-बगाहे अंग्रेज अफसर बाबा साहब के साथ शिकार के लिये इस पर्वत पर आते रहते थे. शिकार को ले जाने के लिये मंदिर से होकर जाना पड़ता था. यह बात उस वक्त के मंदिर व्यवस्थापक नत्थूसा पात्थ्ूासा कलमकर (अचलपुर) इन्हें अच्छी नहीं लगती थी. मंदिर से होकर ये घटनाएं ना हो, पवित्र उद्देश्य से नत्थूसा ने खापडेजी से 40 हजार रूपये में मुक्तागिरी सौदा तय कर लिया. इसके लिये उन्हें परतवाड़ा से सेठ हीरालाल चंपालाल बडज़ात्या, राय साहब मोती संगई, अंजनगांव इन दो मान्यवरों ने अर्थ सहयोग उपलब्ध करवाया था. सन्ï 32 से 58 तक इन तीनों व्यक्तियों ने मंदिर व्यवस्थापन की जिम्मेदारी निभायी पश्चात 58 में विधिवत दिगंबर जैन सिद्घ क्षेत्र ट्रस्ट मुक्तागिरी की स्थापना कर दी गयी. यही ट्रस्ट आज भी मंदिर के सभी कार्यो का संचालन करता है. नत्थूसा के परिवार से विजय बाबू हिरासा कलमकर ने कई वर्षो तक ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभाली. मार्च 2004 में उनका भी निधन हो गया. अब ताजा स्थिति में अतुल विजय कलमकर यह व्यवस्थापक ट्रस्टी का दायित्व संभाल रहे हंै. अन्य ट्रस्टियों में रविन्द्र गेंदालाल बडजात्या, परतवाड़ा, अरूण संघई, अंजनगांव, देवकुमारसिंह, कासलीवाल, इंदौर तथा अशोक चवरे, कारंजा लाड इनका समावेश है. मैनेजर के रूप में नेमीचंद जैन (महरहरज) तथा अरविंद मोहनलाल खंडारे यहां बरसों से कार्यरत हैं. मुक्तागिरी में 350 पायरिया है जिसके माध्यम से 52 मंदिरों के दर्शन किये जा सकते हैं 1986 में इस सिद्घक्षेत्र को 24 तीर्थकरों का सान्नि आतंकवादियां को नरसंहारों को अंजाम देने से आज तक कभी रोकने में कामयाबी नहीं मिली है. प्रत्येक नरसंहार के बाद हालांकि सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने की बात तो कही जाती रही है लेकिन वह सब कागजों में ही होता था. कभी धरातल पर वह सुरक्षा व्यवस्था नहीं दिखी जिसके प्रति लंबे चौड़े दावे किए जाते रहे हैं. प्राप्त हुआ था. करीब एक सौ वर्ष पूर्व जब संपूर्ण अमरावती जिला सूखे की चपेट में था, तब यहां 108 आचार्य शांति सागर महाराज का आगमन हुआ. मुनिराज ने अपनी तपस्या के बलबूते पर यहां पानी (कुआं) की व्यवस्था कर दिखाई थी. यह कुआं आज भी यहां देखा जा सकता है. 26 जनवरी को जब गुजरात में भूकंप आया तभी से मुक्तागिरी के गोमुख से निकलती जलधारा अप्रत्याशित तरीके से दोगुनी होकर निकलने लगी. अंतरर्राष्टï्रीय ख्याति प्राप्त आचार्य विद्यासागरजी महाराज सन्ï 90-91 में मुक्तागिरी में चातुर्मास तक स्थानापन्न थे. सन 84 में आचार्य देशभूषण महाराज ने यहां सत्संग प्रवचन किया. बैनेट एण्ड कोलमैन के निदेशक अशोक बाबू जैन, संगीतकार रविन्द्र जैन, कविवर्य विट्ïठलभाई पटेल, आयएएस अधिकारी सुरेश जैन, जैन, महासभा के अध्यक्ष निर्मलकुमार सेठी आदि मान्यवरगण अपनी बैचेनियों को ईश्वर चरणों में रख योग्य मार्ग की तलाश करने मुक्तागिरी में ध्यानमग्र हो चुके है. मुक्तागिरी परिसर में प्रवेश करते ही एक महाद्वार तथा मानस्तंभ नजर आता है. मानस्तंभ के दर्शन होते ही तमाम व्यस्तताओं से मुक्त होने का सुखद अनुभव होने लगता. पर्वत की तलहटी में भगवान आदिनाथ का मंदिर है. समीप में ही नवनिर्मित भगवान महावीर का मंदिर है, जिसकी मूर्तियां भव्य व मनोरम हैं. इसके पश्चात ही शुरू होती है पर्वत पर निर्मित 52 मंदिरों के दर्शन की शारीरिक व मानसिक यात्रा. भावुक लोग दूर-दूर से इस पवित्र क्षेत्र के दर्शन लिये पधारते हैं. इसे दक्षिण भारत का शिखरजी भी कहते हैं प्राय: भक्तगण प्रात: व सायंकाल इस पर्वत की वंदना करते हैं. पर्वत पर पहुंचते ही चारों ओर घना जंगल दिखायी देता. जंगल की हरियाली और जल प्रपात का संगीत यहाँ पर आने वाले प्रत्येक तीर्थयात्रीयो के मन में शांति भर उल्लास की अनुभूति कराती है. मुक्तागिरी की प्राकृतिक सुन्दरता मन को प्रफुल्लित कर देती है. सबसे निारली बात तो यह है कि इन पहाडिय़ो पर चढ़ाई की थकान महसुस तक न होने के पीछे की वजह भी शायद यही है. चारो ओर घना घोर जंगल है जिसमें विचरीत करते हिंसक जंगली जानवरो के बीच अहिंसा परमोधर्म का पाठ पढ़ाते जैन समुदाय के लोग  जिन्हे यहाँ पर आते- जाते आज तक किसी भी जंगली जानवर से किसी भी प्रकार का खतरा न होना अपने आप में सबसे बड़ा चमत्कार है.  40 क्रमांक का मंदिर पर्वत के गर्भ में खुदा है. यह भगवान शांतिनाथ का प्राचीन मंदिर है. मंदिर की नक्काशी का काम अत्याधिक सुंदर है. उसी प्रकार स्तंभ व छत की रचना भी प्रत्येक को आकर्षित करती रहती. शांतिनाथ की प्रतिमा अतिभव्य एवं दर्शनीय है. मंदिर के समीप ही 250 फिट ऊंचाई से पानी की धारा गिरती, जिससे रमणीय जल प्रपात निर्मित हुआ है. निर्वाचन क्षेत्र (सिद्घ क्षेत्र) होते हुये भी मुक्तागिरी अनेक अतिशयों से युक्त है. मूलनायक भगवान पाश्र्वनाथ के मंदिर में अनेक भावुक भक्तों ने विविध प्रकार की बाधाओं, सांसारिक रोगों से मुक्ति पायी है. मुक्तागिरी के बारे यह भी कहा जाता है कि यहाँ पर जैन धर्म के अनेक महात्माओं एवं प्रवचको ने मुक्ति पाई है जिसके चलते ऐसी महान पूण्यत्माओं की समाधी स्थलो पर प्रतिदिन प्रकृति केसर की वर्शा करके उनका अभिनंदन करती है. मध्यप्रदेश सरकार के गैजेट बैतूल में इसका उल्लेख देखा जा सकता. अपनी क्रुद्घ मनोवृत्ति को शांत करने के लिये आप भी वीतराग के चरणों में बैठने का लाभ उठा सकते हंै. इसी मुक्तागिरी में, जहां परमात्मा और सेवक के बीच की तमाम दूरियां क्षणभर में मटियामेट हो जाती है. हो, मनुष्य को एक नई उर्जा प्रदान करती है. चातुर्मास में मुक्तागिरी जरूर आइये, आचार्य विधानसागरजी ने लिखा है सतत सातपुड़ा कह रहा, असत त्याग संतधार, मुक्तागिरी आ देख लो, दिखता शिवपुर द्वार.गमन चूमते शिखर है, रहे एक में एक युवा मेद्य ही जल भरें करते है अभिषेक.
इति,

ऊँजाले को तरसता भारत का पहला गांव
उस दिन कसई गाँव को देश की सारी मीडिया ने सर पर बैठाल रखा था क्योकि वह भारत का पहला गाँव कहलाया जहाँ पर भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय एवं मध्यप्रदेश की राज्य सरकार के सौजन्य से विद्युत विहीन ग्राम कसई के 55 घरो में वैकल्पीक ऊर्जा के पहँुचाने के लिए केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्री विलास मुत्तेमवार इस गाँव में पहँुचे थे लेकिन आज इस गांव में 16 लाख 18 हजार रूपये की लगात से बना उक्त वैकल्पीक ऊर्जा उत्पादन के प्रोजेक्ट को किसी की न$जर लग गई ……… यूँ तो ऐसा कहा जाता है कि भारत गांवो में बसता है . इन्ही गाँवो में आज भी घन्टो लाइन में लग कर कई दिनो बाद मिलने वाले मिटटïï््ी के तेल से रोशनी जलाने की म$जबुरी में जी रहे ग्रामिणो के चेहरे पर मुस्कान लाकर अपनी तस्वीरो को छपवाने वाले जनप्रतिनिधियो ने दुबारा कसई गांव जाकर उन लोगो की पीड़ा जानने का प्रयास नहीं किया है जहाँ पर 55 घरो में बिजली का प्रकाश पहँुचाने के लिए केन्द्रीय सरकार से अनुदान प्राप्त राज्य सरकार 16 लाख 18 हजार रूपये खर्च कर वैकल्पीक ऊर्जा उत्पादन प्रोजेक्ट लगाया था . इससे बड़ा इन लोगो के साथ और मज़ाक क्या होगा कि इन्हे अंधरे से ऊँजाले की ओर चलने के लिए उत्प्रेरित करने के बाद उत्प्रेरक ही नौ – दो – ग्यारह हो जाये ……..
अंधकार भरा जीवन जी रहे गांवो के लिए बिजली का ऊँजियारा महज एक काल्पनिक सुखद सपना जैसा है . जिसका केवल अहसास किया जा सकता है . ऐसे सपने के पूरे होने की कोई समय सीमा नहीं है फिर भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के 21 वी सदी के सुखद सपने को साकार करने की मंशा के साथ भारत के उन गांवो में रोशनी पहँुचाने का बीड़ा उठाया था जिसके लिए कसई गांव को पहली प्राथमिकता मिली लेकिन आज इस गांव की यह हालत है तो आने वाले कल के बारे में क्या कहा जा सकता है . जिन गांवो तक जाने के लिए रास्ता तक नहीं है. भारत सरकार की इस अति महत्वाकांक्षी अभिनव योजना को मूर्त रूप देने के लिए भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय ने देश के अत्यंत अंदरूनी ऐसे ग्रामों में जहंा सामान्य विद्युत ग्रिड से बिजली देना निकट भविष्य में संभव नहीं है, वहाँ पर वैकल्पिक संवहनीय साधनों से ऊर्जा प्राप्ति का प्रयास किया है
मध्यप्रदेश एवं महाराष्टï्र की सीमा से लगे बैतूल जिले के सुदूरवर्ती एकांकी स्थल पर स्थित ग्राम कसई में इस समय 55 परिवार जिनमें से 54 कोरकू जनजाति के एवं एक घर अनुसूचित जाति का है . इस ग्राम में वैकल्पीक ऊर्जा का उत्पादक प्रोजेक्ट की स्थापना के साथ इसी ग्राम के 3 युवकों एवं वन विभाग के कर्मचारियों को गैसीफायर संचालन हेतु प्रशिक्षण दिया गया है. गैसी फायर के उपयोगी जलाऊ लकड़ी स्थानीय ग्रामीणों द्वारा एकत्रित की जाती है तथा इस लकड़ी का गैसी फायर संयंत्र में उपयोग कर बिजली उत्पादन किया जाता है. कसई ग्राम में सभी 55 परिवारों को वैकल्पीक ऊर्जा से उत्पन्न बिजली के कनेक्शन दिए गए हैं तथा एक आटा चक्की संचालन के लिए भी बिजली की आपूर्ति की जा रही है. अभी वर्तमान में कसई ग्राम के सभी ग्रामीण परिवारो द्वारा स्वयं के द्वारा उत्पादित वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन की इस व्यवस्था का सफलता से उपयोग किया जा रहा. यह योजना आने वाले कई दिनो तक सुचारू रूप से चले इस कार्य के लिए कसई ग्राम ऊर्जा समिति को पंजीकृत कर उसे पूरी जवाबदेही सौपी गई है. इस समिति द्वारा ग्राम ऊर्जा  सुरक्षा योजना का प्रोजेक्ट के सुचारू रूप से क्रियान्वयन के लिए ग्रामसभा/ग्राम पंचायत कसई द्वारा चयनित ग्राम ऊर्जा समिति के द्वारा 2 खाते खोले गए . ग्राम ऊर्जा फण्ड खाता नामक इस खाते से योजना का क्रियान्वयन किया जाना था लेकिन गांव के लोगो को घर के लिए जलाऊ लकड़ी तक तो लाले पड़ रहे है ऐसे में इस प्रोजेक्ट के लिए लकड़ी लाकर उन्हे कौन काटेगा ……ï? सबसे बड़ी समस्या यह सामने आई कि जिन गांव के लोगो को काम धंधे की तलाश में पलायन करने को म$जबुर होना पड़ रहा हो वे हर महिने बिजली का बिल कहाँ से भरेगे ……..? सरकार की मंशा यह थी कि ग्राम परिवार स्वेच्छा से इस खाते में योगदान करे साथ ही विभिन्न शासकीय विभागों की अनुदान योजनाओं से भी कुछ सहयोग राशि इस खाते में जमा हो लेकिन जहाँ शासकीय योजनाओं को अफसर , बाबू तथा राजनीतिज्ञ दीमक की तरह खा रहे हो वहाँ पर रूपये – पैसे की अपेक्षा करना बेमानी होगा . 55 घरो का कसई गांव के ग्रामीणों के पास मौजूदा परिस्थिति 20 रूपये नहीं सरकारी अनाज और खाने का तेल लाने के लिए वे भला हर महिने घर में बिजली के बल्ब जलाने का 120/-रूपये कहाँ दे देगें उन्हे तो पचास रूपये का पाँच लीटर मिटटïी का तेल इस बिजली से सस्ता पड़ता है . हालाकि भारत सरकार द्वारा प्रोजेक्ट की लागत की 90 प्रतिशत राशि उपलब्ध कराई गई  शेष 10 प्रतिशत राशि ग्रामीण स्वयं योगदान करके अथवा अन्य शासकीय विभागों की मदद से प्राप्त होना था लेकिन मौजूदा परिस्थित में कसई गांव का अधंकार शासन की मंशा पर कालिख पोत गया है .
भारत सरकार की ग्राम ऊर्जा सुरक्षा योजना का लाभ मध्यप्रदेश के वनक्षेत्रों में बसे अविद्युतीकृत ग्रामों को लाभ देने के लिए वन विभाग द्वारा प्रयास किया जा रहा है. मध्यप्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा 1300 ग्रामों की सूची जारी की गई है जिनमें अभी  विद्युतीकरण नहीं हुआ है तथा अगले कई वर्षो तक होने की संभावना भी नहीं है. ऐसे सभी ग्राम पहुंचविहीन हैं तथा इनमें से बहुत से ग्राम वनक्षेत्रों के अंदर या उसके आसपास हैं. प्रथम चरण में वन विभाग द्वारा 26 ग्रामों का चयन कर उनका प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया था. अपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इनमें से निम्रानुसार 11 ग्रामों के प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए है:-
क्रमांक          जिले का नाम              ग्राम का नाम  स्वीकृत राशि (रूपए लाख में)
01        झाबुआ                  भाजीदुनसरा                 18.18
02                          होशंगाबाद          सुपलई                            19.89
03        होशंगाबाद             माना                          17.56
04        होशंगाबाद                बारासेल                        19.05
05        हरदा                देबराबंदी                        17.61
06        मण्डला                सुरंगवानी                        19.30
07        सिवनी                  खुबी रायत                        19.26
08        बैतूल          कसई                        16.18
09        छिंदवाड़ा             खुनाझिर                             8.77
10        धार             बडख़ोदरा                             9.90
11        धार               बावड़ीखोदरा                       10.82
कुल       1 करोड़ 76 लाख 52 हजार की यह अति महत्वाकंाक्षी योजना आने वाले दिनो के लिए बनी है लेकिन कसई गांव से सरकार को सबक सीखना चाहिये वरणा सरकार करोड़ो ही नही बल्कि अरबो – खरबो रूपये खर्च कर डाले लेकिन गांवो को निगल रहा अंधियारा किसी अमावस्या और पूर्णिमा के ग्रहण की तरह भारत शासन के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय की इस अति महत्वाकांक्षी योजना को ही न निगल जाये.
इति,

कही ऐसा तो नही कि मेरे गांव को किसी की नजर लग गई ……..!
रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने एक पत्रिका देखी तो उसमें छपा एक कालम ”मेरा गांव ….! मुझे अपने बचपन की ओर ले गया . मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है. बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया – गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है. गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा – तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. इधर परासोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है. खेड़ी – सेलगांव – बावई  होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. पंगडंडी जितनी है मेरे गांव को जाने के लिए उतनी गांव को जाने वाली सड़के नही है. दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है. लोग आते है , चले जाते है. कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है. जहाँ  पर लोग केवल घुमने के लिए आते है . जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है. थोड़ी से भूल – चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया…. ऐसे में सब कुछ खो जाने का डर रहता है. इसलिए लोग संभल – संभल कर चलने लगे है . गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के करतब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है . मेरे पापा बताते थे कि गांव के बुढे – बजुर्ग लोग विशेषकर महिलाये गांव से लड़को को बाहर जाने नहीं देती थी . पापा के एक जीजाजी राणा थानेदार खंडवा के रहने वाले थे वे उनसे कई बार कह चुके थे कि तू गांव को छोड़ कर बंबई चला जा लेकिन मेरे पापा की दादी लंगड़ी थी वह काफी नियम – कानून कायदे वाली थी. गांव में उस समय छुआछुत को काफी माना जाता था. गांव से दो – चार दिन लड़का बाहर क्या रहा उसे पुराने जमाने के पुराने रिवाजो को मानने वाले लोग गोबर – गौमुत्र – तुलसी के पत्तो से नहलाते थे उसके बाद भी उसे घर के अंदर आने देते थे . वन विभाग में नाकेदार के पद पर रहे पापा की नौकरी पंक्षी – टोकरा  कनारी – पाट में रही . उस समय शुटिंग ब्लाक होने की व$जह से कई लोग जानवरो का शिकार करने आते थे . जानीवाकर खंडवा के रहने वाले थे इसलिए उन्हे बैतूल – होशंगाबाद के जंगलो में शिकार का बड़ा शौक था. जानीवाकर मेरे पापा से इतने प्रभावित हो गये थे कि वे उन्हे बंबई चलने का कह चुके थे . उस जमाने की मशहुर अदाकार मीना कुमारी के पास काम करने के लिए बबंई चलने का जानीवकार का प्रस्ताव शायद हम लोगो की तकदीर और तस्वीर बदल सकता था लेकिन मेरे पापा की दादी की $िजद के चलते वे बैतूल जिले से बाहर कहीं नही जा सके . कुछ लोग बड़े – बुर्जगो की $िजद को दर किनार कर गांव से बाहर गये तो दुबारा फिर वापस नही लौटे . आज भी मेरे गांव के लोग बम्बई – दिल्ली – कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है . जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ”बच्चो का भविष्य देखना है …..! ”आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या…. ? अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि ……!  मेरा जन्म गांव माता माँ की गली वाले चम्पा के पेड़ के पास बने पुश्तैनी मकान में ही हुआ जिसके चलते मेरा बचपन और उससे जुड़ी अमिट यादे आज भी मेरा मेरे गांव से पीछा नही छोड़ती. रोंढ़ा आज भले ही कुछ भी हो लेकिन मेरी जन्मभूमि होने के कारण वह मुझे अपने से जोड़ रखी है . आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ मेरे नटखट बचपन की एक ऐसी निशानी है जिसे बरबस याद करते ही मुझे मेरा बचपन किसी फिल्मी चलचित्र की तरह दिखाई पडऩे लगता है. काफी पुराना मेरे गांव के विकास बारे में क्या लिखूँ क्योकि मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है. मेरे दादा ने उस गांव के आसपास के खेतो और खलिहानो में तीस साल अपनी भुजाओं के बल पर तीस साल तक कुआँ खोदा लेकिन आज मैं गांव तक आने वाले 3 किलोमीटर का फासला तक पैदल नही तय नही कर सकता. पहले गांव की सड़क को जोड़ती पगडंडी ठीक थी कम से कम पैदल तो चला जा सकता था लेकिन अब तो उबड़ – खाबड़ सड़क पर मोटर साइकिल लेकर चलना तक मुश्कील हो गया है. हमेशा इस बात का डर सताता है कि कही टायर में कोई कट न लग जाये. गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ – बहने – बहु – बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें का पानी गर्मी आने के पहले ही सुखने लगा है.पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ – तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है.
जब मेरा बेटा रोहित तीन साल का था तब मेरे दादा का निधन हो गया.  तीस साल तक कुआँ खोदने वाले मेरे दादा तीन बार मौत के मँुह से वापस लौटे शायद इसलिए कि उन्हे वे अपने मूलधन का ब्याज और उसका ब्याज देखना चाहते थे. अपने वंश के वृटवृक्ष की डालियो में खिले फूलो और फलो को देखने वाले मेरे दादा संत तुकड़ो जी महाराज के अन्यन्न भक्त वे खंजरी की थाप पर मराठी भाषी भजनो को गाने के साथ वे लावणी के अच्छे गायक थे. जिस गांव में रोज सुबह – शाम संत तुकड़ो जी महाराज के भजनो पर खंजरी की थाप गुंजा करती थी आज उसी गांव में बात – बात पर खंजर निकलने से लोग घरो में दुबके रहते थे. मेरे गांव को जैसे किसी की न$जर लग गई हो. आज मेरा गांव पुलिस की प्रोफाइल में झगड़ालू गांव के रूप में जाना जाता है. पिछले एक दशक से मेरे गांव में होने वाली हत्याओं ने गांव की छबि का विकृत स्वरूप पेश किया है. जंगल विभाग में नौकरी करने के बाद सेवानिवृत हुये मेरे पापा बताया करते है कि मेरे पूरे गांव को दुध और दही की धार से बांधा गया है वह इसालिए कि गांव में कोई बीमारी या अकाल मौत से कोई इंसान या जानवर नहीं मरे ……… लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि किसी ने मेरे पूरे गांव को उन्माद – नफरत – हिंसा – िजद और बदले की भावना से निकाले गये खून की धार से बांध रखा हो जिसके कारण मेरा गांव आज पुलिस की न$जर में हत्यारा गांव कहलाने लगा है . पापा बताते है कि पिछले कई वर्षो से मेरे गांव की जनसंख्या न तो बढ़ी है और न घटी है. एक दशक पहले तक तो पूरा गांव चारो ओर लहलहाते खेतो से घिरा था लेकिन अब लोगो ने भी गांव छोड़ कर खेत में अपना मकान बना कर रहना शुरू कर दिया है जिससे पूरे गांव की आबादी लगभग चौदह सौ रह गई है . कई साल पहले भी इतनी ही आबादी थी . आज मेरे गांव मे लोग आते कम जाते ज्यादा है . मेरे बचपन का साक्षी चम्पा का पेड़ की झुकी डालिया ही बताती है कि जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी संत तुकड़ो जी महाराज के तो कभी सर्वोदयी नेता एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे . आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है . अब तो इस गांव में भूदान करना तो दूर रहा दो गज जमीन के लिए ही लोगो को जान देनी पड़ रही है . गांव का प्राचिन शिव मंदिर हो या भुवानी माँ की दरबार सभी अपने स्थानो को छोड़ कर गांव की गलियो में आ गये है . अपने लिए घर बार बनाने वालो को पता नही क्यो उनके लिए घर – बार बनाने की चिंता नही रही जिनके दरवाजे पर जाकर जो मन्नते मांगते रहे है. एक प्रकार से देखा जाये तो जबसे हमारा पुश्तैनी घर ढहा है तबसे उससे लगा माता मंदिर का चबुतरा और चम्पा का पेड़ मुझे बार – बार इस बात के लिए कटोचता रहता है कि मैं एक बार फिर वापस आकर अपने लिए और अपने बचपन के साक्षी चम्पा के पेड़ और माता माँ के लिए एक ठौर ठिकाना बना लूँ …. लेकिन मैं जब भी यह बात अपनी बीबी और बच्चो के बीच करता हँू तो मेरा ही उपहास करते है कि गांव जाकर क्या करेगे ….? बच्चो के भविष्य के नाम पर मेरा बचपन मुझसे कोसो दूर होता जा रहा है . लोग कहते है कि भारत गांवो में बसता है लेकिन कोई भी इस गांव को आज तक भरत की तरह प्रतिज्ञा करने वाला भरतवंशी नहीं मिल सका जो कि मेरे इस गांव की तस्वीर को बदल सके .
इति,
प्रस्तुति – रामकिशोर पंवार पत्रकार
कहानी एवं सत्यकथा लेखक
मो. 9406535572

लेख
कल के तुकाराम आज के आशाराम
सच्चा सदगुरू वही जो अपने साधक से बिना कुछ लिए उसे ज्ञान दे लेकिन आधुनिकता के इस दौर में गुरू से लेकर साधक भी मार्डन होते चले जा रहे है. गुफाओं – कंदराओं – नदियो और ऊँची – ऊँची पहाडिय़ो पर वर्षो से बिना कुछ खाये – पीये तपस्या करने वाले साधु – संतो की जगह अब बाबाओं और ने ले ली है . आज के इस भौतिकवादी युग में किसी भी चाइल्ड से लेकर एडल्ट वेब साइट पर ही अपना तथाकथित दिव्य ज्ञान की वर्षा करने वाले बाबाओं की एक – एक बुंदो की पल्स रेट तक तय है . जितनी देर आपको ज्ञान चाहिए उतनी देर तक कोई भी प्रशिक्षु साधक को एडवांस में डी.डी. या अपने ए टी एम कार्ड से बाबा से लेकर वेब साइट को आन करने वाले वेबसाइट को भुगतान करना पड़ता है . किसी बाबा से मिलना हो तो उसके लिए नम्बर लगेगा और उसके लिए भी बुकिंग करवाना पडेगा . बाबा की निर्धारित तारीख पर उनसे मिलने के बाद बाबा के दर्शन से लेकर उनके चरण स्पर्श या उन्हे माला पहनाने या उनसे अपने सिर पर हाथ रखवाने तक के रेट निर्धारित है . इन सबके पीछे कहीं न कहीं भारतीय प्राचिन सभ्यता और संस्कृति को नष्टï करने की अतंरराष्टï्रीय साजिश है जिसने गुरू से लेकर चेले तक की सोच में में अमूल- चूल परिवर्तन ला दिया है. बाबा के हाई – फाई होने का असर छोटे – मंझोले बाबाओं पर भी पडऩे लगा है तभी तो लेपटाप बाबा , वेबसाइट बाबा जैसे कई नाम सुनने को मिल रहे है. कुछ साल पहले तक भारत के बाबाओं के पास तन ढकने को कपड़े नही रहते थे तो वे पेड़ो के पत्तो से अपना तन ढक लेते थे लेकिन अब तो बाबा स्वंय के चार्टर प्लेन से आने – जाने लगे है. करोड़ो – अरबो – खरबो की बेनामी  सम्पति के मालिक बने बाबाओं में कुछ ही ऐसे बाबा है जिसने लोगो को कुछ ऐसा संदेश दिया है जिससे उसके जीवन की दिनचर्या बदली है . साई इतना दीजिए जा में कुटंब समाय लेकिन अब तो भाई इतना दीजिए कि तुम कंगाल हो जाये ….?
संतो की भूमि महाराष्टï्र के महान संतो में तुकाराम जी महाराज का नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है. कल के तुकाराम जी महाराज और आज के आशाराम जी के रहन – सहन में परिवर्तन से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सच्चा सदगुरू कौन है….? सच्चाई सोलह दुनी बत्तीस आने सही है कि साई बाबा , संत ज्ञानेश्वर , गजानंद महाराज , दादा धुनी वाले , ताज वाले बाबा , संत तुकड़ो जी महाराज , के समकालिन इन महान दिव्य आत्माओं के शिष्यो की लम्बी चौड़ी जमात है. इनके प्रवचनो को सुनने का न तो कोई पैसा लगता था न किसी प्रकार का दान. साई बाबा तो अपने लिए भीक्षा मांग कर स्वंय अपना भोजन पकाते और खाते थे उसमें का एक हिस्सा वे किसी न किसी पशु को अवश्य खिलाते थे लेकिन आज के बाबा के लिए खाना भी किसी फाइव स्ट्रार  होटल से आता है . आज के मार्डन बाबा चार घर भीक्षा मांगने के बजाय बाबा चार धन्नासेठो और राजनीतिझो को ही मुर्गा बना कर अपने लिए एक दिन के खर्चे का बंदोबस्त कर लेते है. बीते दिनो बैतूल जैसे पिछड़े जिले में आये आशराम बापू के दो दिवसीय प्रवचन के दौरान हजारो साधको के लिए भोजन से लेकर भजन तक की दुकाने लगी थी जो किसी स्थानीय व्यक्ति या दुकानदार की न होकर स्वंय योग वेदांत समिति के बैनर तले संचालित थी. लोगो की आस्था का पागल पन कहिए या फिर इन तथाकथित मार्डन युग के बाबाओं का सम्मोहन जाल की लोग आंख होते हुए भी अंधे कुये में डुबने को तैयार है . आशाराम बापू के करीबी दर्शन से लेकर उनके चरण स्पर्श के नाम पर लोगो का लूटना या लूटा जाना अपने आप में घिनौना मजाक है . यह अपने आप में कड़वी सच्चाई भी है कि जहाँ एक ओर अंधश्रद्घा में डूबे लोग अपने बुढ़े – लाचार माता – पिता को घर से निकाल रहे है और उन जैसे जीवित बाबाओं के फोटो जो पुलिस थानो में लगने चाहिए उन्हे अपने घरो में लगा कर उस पर जूतो की बजाय फूलो माला लगा कर उनके नाम पर भंडारा चला रहे . बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में दो दिन रहे संत आशाराम ने अपनी जेब से चार आने किसी गरीब – बेसहारा – विकलांग या जरूरतमंद व्यक्ति को न देकर स्वंय ही लाखो रूपैया बटोर कर ले गये. इसमें किसी को किसी प्रकार का गिला या शिकवा नही क्योकि दु़कानदार का काम तो अपना माल बेचना है लोग जब स्वेच्छा से उसे खरीद रहे है तब किसी प्रकार की जालसाजी या धोखाधड़ी या चिटिंग नही …. पर इस बात पर भी अमल करना चाहिए कि पड़ौसी भूखा हो और हम गिद्घ भोज करवाये क्या यही सच्चा धर्म है…?
जिस देश में नदियो को देवी के रूप में पूजा जाता है उस नदी ने कभी किसी से नही कहा कि वह उसमें नहाने से पहले एडंवास बुकिंग की रसीद दिखाये लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा हो रहा है. हर चीज बिकाऊ हो रही है जिसके चलते बाबाओं के बैंक बैलेंस बढ़ते जा रहे है. कभी कभार लुढकन बाबा जैसे पाखंडियो का पर्दाफाश तब होता है जब कोई नाबालिग युवती का बाप अपनी इज्जत की परवाह किये बिना इन बाबाओं की काली करतूतो को उजागर करने के लिए पुलिस की शरण ले. इस देश में कई संत – फकीर बाबाओं को रंगरैली मनाते रासलीला मनाते देश के छोटे से गांव से लेकर समुन्द्र के उस पार तक लोगो ने पकड़ा है लेकिन बाहुबल और धनबल के दम पर बाबा आज भी दम मारो दम   मिट जाए गम का संदेश देते लोगो को चरस से लेकर हीरोइन तक का आदी बना चुके है . आज जरूरत इस बात की है कि इस देश का हर नागरिक इस बात पर चिंतन – मनन करे कि उसे कैसा गुरू चाहिए…?
इति,

दांत पीले है इसलिए , हाथ पीले नहीं हो पायेंगें …!
– रामकिशोर पंवार
शादी – विवाह का मौसम आया और चला भी गया…….  इस बार भी सीवनपाट नामक उस गांव में एक बार फिर भी न तो ढोल बजे और न कोई शहनाई गुंजी ……. इसके पीछे जो भी कारण हो पर सच्चाई सोलह आने सच है कि इस गांव की लड़कियो के दंातो पर छाए पीलेपन को  कोलेगेट से लेकर सिबाका ……. यहाँ तक की डाबर लाल दंत मंजन तक दूर नहीं कर पाया है . यह अपने आप में कम आश्चर्य जनक घटना नही है कि देश – दुनिया की कोई दंत मंजन कंपनी सीवन पाट गांव की उन युवतियों के चेहरो पर मुस्कान नहीं ला सकी है जिनके दांत पीले होने की वज़ह से उनके हाथ पीले नहीं हो पा रहे है . दंातो की समस्या पर आधारित उस गांव के हेडपम्प से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ता मीरा पत्नि शिवजी इवने एक हाथ से विकलंाग बन चुकी है . एक हाथ से काम ही नहीं हो पाने के कारण मीरा अपने पीड़ा को अपने गिरधर गोपाल को भी गाकर – बजा कर नहीं सुना सकती है . अपने एक कम$जोर हाथ को दिखाती मीरा इवने रो पड़ती है वह कहती है कि साहब जब हाथ ही काम नहीं कर पा रहा है तब दांत के बारे में क्या करू……. ! काफी शिकवा – शिकायते करने के बाद लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के द्घारा बंद किये गये बैतूल से आठनेर जाते समय ताप्ती नदी के उस पार बसे सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य गांव मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के अन्तगर्त आता है. इस गांव के बंद किये गये हेडपम्प के पानी पीने से के पानी की व$जह से अकेली मीरा ही विकलांग नहीं है उसकी तरह कक्षा 9 वी में गांव से 6 किलो मीटर दुर बसे कोलगांव में पढऩे जाने वाली गांव कोटवार हृदयराम आत्मज राधेलाल की बेटी रेखा आज भी बैसा$खी के सहारे गांव से पैदल ताप्ती मोड़ तक आना- जाना करती है. प्रतिदिन बस से किराया लगा कर  स्कूल पढऩे जाने वाली रेखा की हिम्मत को दांद देनी चाहिये क्योकि उसने विकलांगता को चुनौती देकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा . अनुसूचित जाति की कक्षा 9 वी की इस विकलांग छात्रा कुमारी रेखा के पिता हृदयराम अपनी पीड़ा को व्यक्त करते समय रो पड़ता है वह बताता है कि  ” साहब मेरी बेटी कन्या छात्रावास बैतूल में पढ़ती थी लेकिन वह इस पानी के चलते विकलांग बन गई और बीमार रहने लगी जिसके चलते वह एक साल फेल क्या हो गई उसे छात्रावास से छात्रावास अधिक्षका ने निकाल बाहर कर दिया मैंने काफी मन्नते मांगी लेकिन मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई …… !  ÓÓ हालाकि दांत के पीले होने की त्रासदी से रेखा भी नहीं बच पाई है. गांव में यूँ तो फ्लोराइड़ युक्त पानी ने कई लोगो को शारीरिक रूप में कम$जोर बना रखा है. 34 साल की देवला पत्नि राजू भी अपने पीले दांतो को दिखाती हुई कहती है कि मेरी शादी को 20 साल हो गये उस समय से मेरे दांत पीले है आज मैं हाथ – पैर से कम$जोर हँू आज मेरे पास कोई काम धंधा नही है….! गांव के स्कूल के पास रहने वाली इस आदिवासी महिला के 4 बच्चे है जिसमें एक बड़ी लड़की की वह बमुश्कील शादी करवा सकी है……! पथरी का आपरेशन करवा चुकी देवला और उसके सभी बच्चो के दांत पीले है.
उस गांव की युवतियाँ अपने भावी पति के साथ सात जन्मो का साथ निभाने के लिए दिन – प्रति दिन अपने यौवन को खोकर बुढ़ापे की ओर कदम रख रही है लेकिन इन पंक्तियो के लिखे जाने तक कोई भी इन युवतियों से शादी करने को तैयार नहीं है. इस गांव की फुलवा अपनी बेटी की दुखभरी दांस्ता सुनाते रो पड़ती है वह कहती है कि ”साहब इसमें हमारा क्या दोष ……… ! इस गांव के पानी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है . मेरी ही नहीं बल्कि इस गांव की हर दुसरी – तीसरी लड़की के हाथ सिर्फ इसलिए पीले नहीं हो पा रहे है क्योकि उनके दांत पीले है…….!   माँ सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का जब यह हेड पम्प नहीं खुदा था तब तक पानी पीने वाले गांव के भूतपूर्व पंच 57 वर्षिय बिरजू आत्मज ओझा धुर्वे कहता है कि ”साहब उस समय हमें कोई बीमारी नहीं हुई न दांत पीले हुये न हाथ – पैर कमज़ोर हुये ……..! पता नहीं इस गांव को इस हेड पम्प से क्या दुश्मनी थी कि इसने हमारे पूरे गांव को ही बीमार कर डाला…… .!  मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के इस गांव में बने स्कूल में पहली से लेकर पाँचवी तक कक्षाये लगती है . सीवनपाट के स्कूल में पहली कक्षा पढऩे वाली पांच वर्षिय मनीषा आत्मज लालजी के दांत पीले क्यो है उसे पता तक नहीं ….. मँुह से बदबू आने वाली बात कहने वाली शिवकला आत्मज रामचारण कक्षा दुसरी तथा कंचन आत्मज शिवदयाल दोनो ही कक्षा दुसरी में पढ़ती है इनके भी दांत पीले पड़ चुके है. 6 वर्षिय प्रियंका आत्मज पंजाब कक्षा दुसरी , 7 वर्षिय योगिता आत्मज रियालाल कक्षा तीसरी की छात्रा है. इसी की उम्र की सरिता आत्मज मानक भी कक्षा तीसरी में पढ़ रही है उसके पीले दांत आने वाले कल के लिए समस्या बन सकते है. गांव की कविता आत्मज लालजी सवाल करते है कि ”साहब कल मेरी बेटी शादी लायक होगी तब उसे देखने वाले आदमी को जब पता चलेगा कि इसके दांत पीले है तथा उसके मँुह से बदबू आती है तब क्या वह उससे शादी करेगा….ï?  विनिता आत्मज सुखराम कक्षा तीसरी की तथा कक्षा पांचवी की प्रमिला चैतराम भी अपने दांत दिखाते समय डरी – सहमी से सामने आती है . लगभग तीन घंन्टे तक इस गांव की पीड़ा को परखने गए इस संवाददाता को ग्रामिणो ने बताया कि 290 जनसंख्या वाले इस गांव में सबसे अधिक महिलायें 151 है. 139 पुरूष वाले लगभग 60 से 65 मकान वाले इस गांव में जुलाई 2006 को स्कूली मास्टरो से करवाये गये सर्वे के अनुसार इस गांव में 54 बालिकायें 44 बालक है जिनकी आयु 1 से 14 वर्ष के बीच है. इन 54 बालिकाओं में 49 के दांत पूरी तरह पीले पड़ चुके है. इसी तरह गांव की 151 महिलाओं में से 99 महिलाओं के दांत पीले है. शेष 52 महिलाओं की उम्र 45 से अधिक है जिनके दांतो पर उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी कोई असार नहीं कर सका है. जिला प्रशासन द्घारा लगभग 5 साल पहले ही उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी वाले हेड पम्प को बंद करवा कर उसके बदले में दो फ्लांग की दूरी पर एक हेड पम्प तो खुदवा दिया लेकिन उस हेडपम्प से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी का निकलना जारी है क्योकि जिन लड़कियो की उम्र पाँच साल है जिनके दँुध के दांत टूट कर नये दांत उग आये है वे भी पीले पड़ चुके है . आंगनवाड़ी पढऩे वाली अधिकांश बालिकाओं के पीले दांत इस बात का जीता – जागता उदाहरण है कि गांव में टुयुबवेल से दिलवाये चार नल कनेक्शन से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी निकल रहा है. दस वर्षिय सीमा आत्मज रमेश की माँ रामकला कहती है कि ”आज – नही तो कल जब मेरी लड़की को देखने को कोई युवक आयेगा तक क्या वह उसके पीले दांतो को देखने के बाद उससे शादी करने को तैयार हो जाएगा…..? ÓÓ   गांव की मालती आत्मज जुगराम कक्षा दसवी तथा कविता आत्मज बिन्देलाल कक्षा 9 वी में पढऩे के प्रतिदिन कोलगांव आना – जाना करती है. इसी तरह सरिता कक्षा 7 वी में पढऩे के लिए बोरपानी गांव जाती है .
गांव के कृष्णा आत्मज तुलाराम तथा गजानंद आत्मज राधेलाल की शिकायत पर वर्ष 2004 में बंद किये गये इस हेडपम्प के पानीे से जहाँ एक ओर राजू आत्मज तोताराम भी विकलांगता की पीड़ा को भोग रहा है. वही दुसरी ओर गांव की फूलवंती आत्मज झुमरू , कला आत्मज चैतू तथा संगीता आत्मज गोररी की भी समस्या दांत के पीले पन से है. उन्हे इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनका भावी पति उनके दांतो के पीलेपन तथा मँुह से आने वाली बदबू की व$जह से उनसे शादी करने से मना न कर दे . जब प्रदेश की विधानसभा तक मेें फ्लोराइड युक्त पानी पर बवाल मचा तो बैतूल जिला कलेक्टर भी दौड़े – दौड़े उन गांवो की ओर भागे जिनके हेडपम्पो से फ्लोराइड युक्त पानी निकलता था. बमुश्कील आधा घन्टा भी इस की दहली$ज तक पहँुचे जिला कलेक्टर ने यहाँ – वहाँ की ढेर सारी बाते की लेकिन जब गांव कोटवार ने ही अपनी बेटी की विकलांगता की बात कहीं तो उसके इलाज की बात कह कर कलेक्टर महोदय चले गये .
गांव के पंच संतराम , सुरतलाल , जुगराम , यहाँ तक की महिला पंच  रामकली बाई भी कहती है कि ”साहब हमें नेता – अफसर नही चाहिये हमें तो ऐसा आदमी चाहिये जो कि हमारे दांतो का पीला पन दुर कर सके ताकि हम अपनी गांव की लड़कियो के हाथ आसानी से पीले कर सके……..! ÓÓ  गांव के हेडपम्प और टुयुबवेल से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी की
व$जह सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य इस गांव की दुखभरी त्रासदी को सबसे पहले पत्रकारो ने ही जनप्रकाश में लाया लेकिन जिला प्रशासन की दिलचस्पी केवल उन्ही कामो में रही जिनसे कुछ माल मिल सके और यही माल कमाने की अभिलाषा जिले के तीन अफसरो को विधानसभा सत्र के दौरान सस्पैंड करवा चुकी है. लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के अफसरो का अपना तर्क है कि वह इस गांव के बारे में कई बार अपनी रिर्पोट जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार तक भिजवा चुका है लेकिन इस गांव की समस्या से उसे कोई निज़ात नहीं दिलवा सका है. अब जब इस गांव की लड़की अपने हाथ पीले होने के इंतजार में बुढ़ापे की दहलीज पर पहँुच रही है तब जाकर मध्यप्रदेश की वर्तमान राज्य सरकार ने यह स्वीकार किया है कि बैतूल जिले के कुछ गांवो में पोलियो की वजह इन गांवो के लोगो द्घारा पीया जाने वाला फ्लोराइड़ युक्त पानी है.
राज्य की भगवा रंग में रंगी खाकी हाफपैन्ट छाप भाजपाई सरकार का प्रदेश की जनता के स्वास्थ के प्रति कितन सजग एंव कत्वर्यनिष्ठï है इस बात का पता आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला मुख्यालय की नगरपालिका बात की कार्यप्रणाली से लग सकता है. लोगो को बिमारियो की आगोश में समा देने वाली भाजपाई अध्यक्ष के नेतृत्व में कार्य कर रही इस नगरपालिका को इस बात का पता चल गया था कि बैतूल की जमीन से निकलने  वाले पानी को पीने से कई प्रकार की गंभीर बिमारियाँ लग सकती है इसके बाद भी नगर पालिका ने अपने अंधे और बहरे होने का प्रमाण देकर बैतूल की जनता के स्वास्थ के साथ खिलवाड़ किया है. वैसे तो आमला एवं भैसदेही को छोड़ कर जिले की सभी नगरपालिका एवं नगर पंचायतो पर भाजपा का शासन है. जिला मुख्यालय पर श्रीमति पार्वती बाई बारस्कर की अध्यक्षता वाली भाजपा शासित बैतूल नगरपालिका परिषद की काफी बड़ी आबादी बीते डेढ़ महिने से शरीर के लिए निर्धारित मापदण्ड से दुगनी मात्रा वाले फ्लोराइड का पानी बगैर फिल्टर के पी रहे है. जबकि कार्यपालन यंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय खंड बैतूल ने मुख्य नगरपालिका अधिकारी बैतूल को देड़ माह पूर्व दी जांच रिपोर्ट में साफ कहा है कि संबंधित नलकूपों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित मापदंड से दुगनी है अत: इस पानी का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाए. फिर भी नगरपालिका द्वारा शहरवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर उन्हें फ्लोराइड युक्त पानी पिलाया जा रहा है. लेकिन न तो जनप्रतिनिधियों और न ही नपा के अफसरों का ध्यान इस ओर है. हालात इतने बदतर हो गए हैं कि नगरपालिका का भगवान ही मालिक है. नपा द्वारा डेढ़ माह से पिलाए जा रहे अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पानी के संबंध में डाक्टरों का कहना है कि अधिक मात्रा में फ्लोराइड वाले पानी के लगातार सेवन से हड्ïिडयों और दांतों पर दूरगामी असर पडऩा तय है.
दातो के पीले पन के लिए जिस फ्लोराइड को जिम्मेदार बताया जा रहा हन्ै वह तो जिला मुख्यालयो भी कई हेड़ पम्पो से लोगो को पिलाया गया. जिला मुख्यालय पर बीती ग्रीष्म ऋतु में नगरपालिका बैतूल द्वारा फिल्टर प्लांट स्थित माचना नदी का पानी पूरी तरह सूख जाने पर केन्द्रीय भूजल विभाग की मशीन से फिल्टर प्लांट परिसर में किए गए बोर का पानी नगर में सप्लाई करवा दिया. एक हजार और पांच सौ फीट के इन बोर का पानी विवेकानंद वार्ड, विकास नगर, शंकर नगर, कोठीबाजार, शिवाजी वार्ड, आर्यपुरा, टिकारी, मोतीवार्ड, दुर्गा वार्ड, में आज भी इस बोर का पानी दिया जा रहा है. नपा के जवाबदार अधिकारियों ने पेयजल सप्लाई के पहले इस पानी की केमिकल जांच किए बिना, फिल्टर किए जल प्रदाय किया गया व आज भी माचना नदी का फिल्टर किया हुआ पानी बोर का पानी साथ साथ सप्लाई कर आपूर्ति की जा रही है. नपा द्वारा उक्त बोर के पानी की केमिकल रिपोर्ट लाने स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से मांगी गई थी जो कि पानी का परीक्षण करने के बाद 6 जुलाई 05 को नपा को सौपी गई थी जिससे एक हजार फीट के इस बोर के पानी में फ्लोराइड  की मात्रा 3.19 मिग्राम प्रति लीटर बताई गयी है. जो कि निर्धारित आईएसआई मापदंड 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है. अत: नलकूप के जल का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाना चाहिए बावजूद इसके बैतूल नगरपालिका परिषद द्वारा दुगना फ्लोराइड मिला पानी शहर की जनता को पिलाया जा रहा है वहीं उक्त जल का डीफाउंडेशन भी नहीं किया गया. जब फिल्टर प्लांट जाकर वस्तुस्थिति की जानकारी लेनी चाही गई तो अभी भी यहां से स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग की रिपोर्ट के बाद भी फ्लोराइड  मिला पानी वितरित किया जा रहा है. फिल्टर प्लांट में लगे उत्फालवन पंखे भी विगत दो वर्षो से खराब पड़े हुए है जबकि पानी को साफ करने हेतु  उसमें मिलाया जाने वाला सोडियम हाइड्रोक्लोराइड की 38 लीटर पानी वाली केनो पर भी पर्चियों में जानकारी नहीं लिखी गई है. साथ ही जिस कुएं में पानी स्टोर कर साफ किया जाता है वहां लोग वाहन धो रहे है. जिससे पानी दूषित हो रहा है. इस संबंध में बैतूलनगरपालिका परिषद से संपर्क करना चाहा गया तो वहां पर संबंधित अधिकारी मौजूद नहीं थे.
निर्धारित मापदण्ड से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड के पानी का पेयजल के रूप में लगातार सेवन करना बच्चों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं सहित सभी के लिए अत्यधिक नुकसानदायक है और इसके दुरगामी परिणाम शरीर पर होते है जिसके चलते दात, हड्डïी, पर्वस सिस्टम और किडनी पर असर पड़ता है. यह बात प्रसिद्घ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ.योगेश गढ़ेकर से विशेष चर्चा में कही. उन्होंने बताया कि फ्लोराइड की अधिक मात्रा वाले पानी को पीने से फ्लोरोसिस नामक बीमारी होती है. इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है अन्य लोगों पर भी दूरगामी नतीजे नजर आते है. फ्लोराइड युक्त पानी पीने से दांतो, हड्डïी, नर्व सिस्टम और किडनी कमजोर होना शुरू हो जाती है. अधिक मात्रा में हड्डïी का बनना शुरू हो जाता है. गर्दन, पीठ, जोड़ों, एड़ी में दर्द शुरू हो जाता है. हड्डïी बढऩे से सवाईकल रेडिकूलो पेथी, लंबर रेडिकूलो पेथी नामक बीमारी शुरू हो जाती है. किडनी में यूरिया लेबल बढऩा शुरू हो जाता है. डॉ गढ़ेकर ने कहा कि बचाव का सबसे बेहतर उपाय यही है कि फ्लोराइड युक्त पानी का सेवन तत्काल रोका जाये और यदि किसी की उपरोक्त लक्षण नजर आते है तो ऐसे लोगो को तत्काल डाक्टर के पास जाकर अपना स्वास्थ परीक्षण करवाना चाहिए.राज्य सरकार से दूर रखे इस गांव में पोलियो के मरीज मिलना तो आम बात है लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से गांव की युवतियों के दांत पीले है जिसके चलते उन्हे देखने वाला युवक पहली ही बार में उसे अस्वीकार कर देता है . इस गांव को फ्लोराइड़ युक्त पानी से छुटकारा दिलवाने का भरोसा दिलवाने वाला व्यक्ति के रंग – ढंग से बेहद खफा इस गांव में के लोग कहीं इसी समस्या के चलते इस गांव में पहँुचने वाले उस हर व्यक्ति का हाल का बेहाल न कर दे बस इसी डर से वह दुबारा इस गांव में इसलिए नहीं आ रहा है. बरहाल दांत पीले से हाथ के पीले न होने की समस्या का हल कब निकल पायेगा यह कहना अतित के गर्भ में है

शनि दोस्त या दुश्मन
अपनी बहन के घर शनिदेव की वसूली ठेके पर ….
रामकिशोर पंवार
ग्रहो मे शनि के बारे में यह आम धारणा है कि वह अपने बाप का भी नहीं है . जब उसे आना होता है तो या उसका प्रकोप जिस पर आने को होता है तो वह हर हाल में आता है . शनि के प्रकोप उसे सूर्यपुत्री ताप्ती और पवन पुत्र हनुमान के अलावा आज तक कोई नहीं बच पाया है. महाकाल स्वंय भगवान भोलेनाथ को भी शनि से बचने के लिए एक बार हाथी बन कर जंगल – जंगल घुमना पड़ा था . शनि के प्रकोप से शांती का एक मात्र माध्यम है वह उसकी सबसे प्यारी लाड़ली बहन ताप्ती जिस पर शनि देव की कृपा ऐसी है कि जो भी माँ ताप्ती की शरण मे गया है शनिदेव ने उसकी ओर फिर कभी मुड़ कर नहीं देखा है . कई बार यह सवाल उठता है कि क्या शनि हर किसी का शत्रु ही होता है ऐसा भी नही है . शनि अगर किसी पर मेहरबान हो जाए तो उसे मालामाल कर देता है . गुण एवं दोष एक सिक्के के दो पहलू होते है . शनि में भी दोष की अपेक्षा गुण अधिक है लेकिन शनि का नाम सुन कर अच्छे खासे की पतलून ढीली पड़ जाती है बरसो से लोगो के दिलो – दिमाग में बैठा शनि का डर इसके दोष को देखता चला आ रहा है लेकिन शनि के गुण को नजर अंदाज करने से यह पता नही चल पाता है कि शनि दोस्त है या दुश्मन ….
शनि को लगड़ा ग्रह भी कहते हैं, क्योंकि यह बहुत ही धीमी गति से चलता है .  इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि मेघनाथ के जन्म के समय में रावण ने हर ग्रह को आदेश दिया था कि वे सबके सब एकादश भाव में रहे . इससे जातक की हर इच्छा की पूर्ति होती है . शनि भी एकादश भाव में बहुत बढिय़ा प्रभाव देता है, उतना ही बुरा प्रभाव द्वादश में देता है .  शनि, मोक्ष का कारक ग्रह, मोक्षकारक द्वादश में हो, तो इससे बुरा फल और क्या हो सकता है? देवताओं के इशारे पर शनि ने मेघनाथ के जन्म समय में अपना एक पैर द्वादश भाव में बढ़ा दिया, जिसे देख रावण का क्रोध सीमा को पार कर गया एवं शनि के एक पैर को काट कर उसको लंगड़ा ग्रह बना दिया . एक अन्य कथा के मुताबिक रावण ने अपने बंदी ग्रह में शनि को उल्टा लटका रखा था जब पवन पुत्र हनुमान लंका को जला कर जाने लगे तो उस दौरान उनकी नजर शनि पर पड़ ई पवन पुत्र हनुमान ने रावण के बंधन से शनि को मुक्त कराया जिसके चलते शनि ने पवन पुत्र को यह वचन दिया कि मैं आपकी शरण में आने वाले किसी भी प्राणी को अपने कोप से मुक्त रखूँगा . आज भी अधिकांश लोग शनि के कोप से बचने के लिए पवन पुत्र हनुमान की शरण में जाते है.
शनि का सूर्य एवं चंदा के प्रति मित्रता का भाव नहीं होता है . सूर्य तो पिता होने के बाद भी शनि की अपने पिता ने कभी नहीं पटी . शनि का आचरण सूर्य-चंद्र के आचरण के विरूद्घ होता है . यही वजह है कि सूर्य-चंद्र की राशियों-सिंह एवं कर्क के विपरीत इसकी राशियां मकर एवं कुंभ है . वैसे आम तौर यह कहा जाता है कि चंदा किसी काम को जल्दी में अंजाम देना चाहता तो है, पर शनि और चंदा का किसी तरह आमना – सामना हो गया, तो एक तो काम जल्दी नहीं होगा, दूसरे उसी काम के लिए अनेको बार प्रयास करने होगें . सूर्य भले ही आग का गोला हो लेकिन उसका हृदय संवेदनशील है इसलिए उसे आम तौर पर  हृदय कारक ग्रह कहते है . अगर शनि का अपने पिता सूर्य से आमना – सामना होता है तो हृदय रोग से जुड़ी बिमारीयाँ इस इंसान का तब तक पीछा करती है जब तक की उसकी शनि की शांती न हो जाए .
यूँ तो शनि के अनेको अवगुण स्पष्टï नजर आते हैं, लेकिन शनि जितना बुरा है उससे लाख गुणा अच्छा भी है . इसमें गुणों की भी कमी नहीं है . शनि के बारे में कहा जाता है कि वह जनतंत्र कारक ग्रह है . राजनीति के क्षेत्र में ज्योतिषी विद्या के जानकारो की न$जर में शनि विश्वास पात्र ग्रह है . मान लो किसी नेता जी की जन्म कुंडली में शनि महाराज की स्थिति ठीक नहीं रहने पर उसके क्षेत्र की का नेताजी पर विश्वास डगमगाने लगता हैै . शनि के दोस्त ग्रहों में बुध एवं शुक्र के नाम आते है . जहाँ एक ओर वैसे देखा जाए तो शनि वृष एवं तुला लग्न वालो के लिए हमेशा ही लाभदायक साबित हुआ है वही दुसरी ओर मिथुन एवं कन्या लग्न वालो पर लागू शनि का प्रभाव विपरीत साबित हुआ है . एक बात विचारणीय है कि अगर शनि अपनी भाव स्थिति के अनुसार शुभ है तो उसे स्वयं की राशि पर उगा राशि में या वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए . अगर कही भूल – चूक से ऐसा हुआ तो योग कारक शनि के समय मंत्री को संत्री और सेठ को नौकर तथा राजा को भिखारी बनने में देर नहीं लगेगी. वैसे शनि देव का डर इतना आम जन मानस में भरा गया है कि हर शनिवार लोहे के पात्र में शनि के नाम पर भिक्षावृति इस कदर बढ़ गई है कि लोग शनि भगवान की वसूली का ठेक भी लेने लगे हैै. बैतूल जिले में आने वाली एक विशेष प्रकार घुमन्तु जन जाति काल बेलिए का प्रमुख व्यवसाय शनिवार के दिन शनि वसूली हो गया है . शनि के नाम पर ज्यादातर कोर्ट कचहरी के पास लोगो का जमघट लगा रहता है जो कि कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाने वालो को शनि की शांती की नाम पर जम कर ठगने से नही चुकते. वैसे इस बात में कोई अतिश्योक्ति नही है कि अपनी छोटी एवं लाड़ली बहन ताप्ती की जन्मस्थली कहे जाने वाले बैतूल जिले में शनि भगवान ठेके पर चल रहे है……!
इति,

सब कुछ बदला लेकिन हम नही बदले
उसके पांव अंगद के पांव से भी अधिक भारी है तभी तो आज तक उसके पांव को कोई नही हिला सका . भले ही यह बात आपको अटपटी लगे पर सच्चाई सोलह आने सच है उस आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले जहाँ बैतूल जिले का कलेक्टर कार्यालय है . जिला प्रशासन की प्रमुख जन सम्पर्क इकाई इस कार्यालय में अगंद के पांव से भी भारी हो चुका फर्जी स्टोनो की डिग्री प्राप्त बैतूल जिला निवासी अरूण सोहाने से पूरा जिला हैरान एवं परेशान है जिसकी वज़ह यह है कि वह जिस पद पर पर पदस्थ है वह जिला कलेक्टर से सम्पर्क की पहली सीढ़ी है . भले ही कलेक्टर साहब अपने चेम्बर में हो पर कलेक्टर के स्टोनो ने आपको कह दिया कि साहब आऊट आफ स्टेशन है या फिर साहब आज किसी से नहीं मिल सकते ……… ! अगर आपने किसी प्रकार की जोर जबऱदस्ती की तो आपका भी वहीं हाल होगा जो अभी कुछ दिन पहले आठनेर के भाजपाई जनपद उपाध्यक्ष गुलाब सोलंकी का हुआ था . ऐसा कोई पहली बार नही हुआ है , गुलाब सोलंकी जैसे दर्जनो लोग रोज कलेक्टर से मिलने आते लोगो के साथ होता चला आ रहा है ……. !  पहले दुत्कार फिर फटकार ……… !  उसके बाद गाली – गलौच और इसके बाद भी नही माने तो पुलिस से इतने डण्डे पडेंगे कि तबीयत हरी हो जाएगी…… .. !  इस बेलाग हो चुके कलेक्टर के स्टोनो के आऊट आफ कंट्रोल होने के पीछे की एक व$जह  है कि कोई भी इस स्टोनो को बैतूल से स्थायी तौर पर दुसरे जिले का रास्ता नही दिखा सका है …..! एक झणीक प्रयास बमुश्कील जिले की एक मात्र दंबग महिला कलेक्टर श्रीमति सुधा चौधरी ने किया था . श्रीमति चौधरी ने अपने आने से पहले ही इसके जाने का बंदोबस्त किया था लेकिन श्रीमति सुधा चौधरी के जाते ही पुन:स्टोनो की अपनी पुश्तैनी कुर्सी पर आ  बैठे इस तथाकथित फर्जी स्टोनो ने अपनी सर्विस काल में एक दो नही बल्कि 22 कलेक्टरो को बैतूल से ऐसा बाहर का रास्ता दिखाया कि वे दुबारा बैतूल की ओर वापस नही लौट सके…..!  जिले के पूर्व दबंग कलेक्टर मुक्तेश्वर सिंह के पहले से इस कुर्सी पर डटे इस स्टोनो की पुरी जन्म कुण्डली इसके पूर्व मात्र एक साल भी नही रहे पाए स्टोनो विनोद जैन ने उपलब्ध करवाते हुए एक सनसनी खबऱ दी जिसके अनुसार राज्य सरकार की तबादला नीति को ठेंगा दिखाते यह स्टोनो उसी पद पर दुबारा पदस्थ होने के साथ अभी तक 22 कलेक्टरो के बाद भी इस कुर्सी पर अगंद के पांव से भारी हो गया है जिसके चलते बैतूल की किसी भी राजनैतिक पार्टी के सूरमा उसका बालबांका नही कर सके ….!  एक अधिकारिक कार्यालीन सूत्र के अनुसार जिला कलेक्टरो के सबंधो को जन प्रतिनिधियो एवं आम जन मानस से बिगाडऩे में इस स्टोनो की अहम भूमिका रही है……!  कलेक्टर कार्यालय की गोपनीयता भंग करने के साथ – साथ उनके आधार लोगो के साथ ब्लेकमेलिंग और सौदेबाजी के चलते जिले के पूर्व कलेक्टर बैतूल जिले से काफी बदनाम हुए . इसी बात का अंदेशा होने पर जिले के पूर्व कलेक्टर स्वर्गीय रजनीकांत गुप्ता ने अपने तबादले के पूर्व ही इसके तबादले की अनुशंसा करके उसे बैतूल से हटाने का अद्घितीय कार्य किया है जिसे अपने पदभार ग्रहण करने के साथ ही उसे जिले से रिलीव करके श्रीमति सुधा चौधरी ने इस स्टोनो को ऐसा छटका दिया था कि वह यहाँ से हटने के बाद भी पूरे समयकाल के दौरान अपनी वापसी के लिए जी – तोड़ प्रयास करता रहा . सूत्र बताते है कि बैतूल कलेक्टर के इस स्टोनो के द्घारा अभी हाल ही में सत्ताधारी  पार्टी के आठनेर जनपद के उपाध्यक्ष एवं सदस्य जो कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के स्वजाति जन प्रतिनिधियों को अपने चेम्बर दुत्कार ही नही बल्कि जेल भिजवाने देने की धमकी एवं अभ्रदता पूर्ण व्यवहार को लेकर द्रवित जनपद उपाध्यक्ष गुलाब सोलंकी ने तो अपने ऊपरी कपड़े उतार फेके ….!  बेचारा जनपद उपाध्यक्ष अपनी इस अपमान जनक बेइज्जती के लिए भाजपा के हर छोटे – बड़े नेताओं को फोन लगा कर बुलाता रहा लेकिन कोई भी शीर्ष से लेकर छुटभैया सत्ताधारी पार्टी का नेता या कार्यकत्र्ता उस अगंद के पांव की तरह जमें कलेक्टर के स्टोनो के खिलाफ खुल कर या लुक – छीप कर भी  या प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से गुलाब सोलंकी के पक्ष में न तो आकर खड़ा हुआ और न उसने इस घटना के प्रति कोई टीका – टिप्पणी की जिसके पीछे की व$जह कुछ इस प्रकार की है कि कलेक्टर का स्टोनो सत्ता और विपक्ष के नेताओं के बहुँत काम का आदमी है   ……….!  ऐसी स्थिति में गुलाब सोलंकी जैसे आदमी के लिए कलेक्टर के स्टोनो से पंगा लेना याने अपनी बंद फाइले खुलवा कर मुसीबतो का पहाँड़ खड़ा करना जैसा है……..! दिन प्रतिदिन बेलगाम हो जा रहे इस कलेक्टर के स्टोनो पर अगर वर्तमान
ने करूणा दिखलाई तो वे भी बैतूल से निपट जायेगें लेकिन यह अगंद का पांव जैसा का वैसा ही भरी रहेगा…….?

द्ररिद्र नारायण की सेवा का सुख
बैतूल (रामकिशोर पंवार )यूँ तो भारत भूमि में दयावानों की कमी नही है. जिस धरती पर  आज तक कर्ण से बड़ा कोई दानी नहीं जन्मा हो वहाँ पर छोटा मोटा अंकुरित आहार का दान कर देना कोई बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात तो सिर्फ यह है कि इस काम को पिछले सात सालों से आज तक विराम नहीं लगा है. देश में ऐसे किस्से बिरले ही सुनने को मिलेगें जब कोई संस्था और ना व्यक्ति इस काम को लगातार इतने वर्षो से कर रहा हो. रीमझीम बारिश हो या फिर तेज मूसलाधार बरसात हर सुबह कुछ लोगो का समुह निकल पड़ता है जिला चिकित्सालय बैतूल की ओर जहाँ पर  8.30 बजे अंकुरित आहार से भरे दोनो की भारी भरकम टे्र उठाये कुछ कर्तव्यनिष्ठï नागरिक अपने काम में जुट जाते है. साल भर बिना रूके उक्त अंकुरित आहार वितरीत करने वाले ए मानवतावादी कर्तव्यनिष्ठ लोग हैं जो मंदिर के पवित्र शंखनाद में, गुरू ग्रंथ साहब की शबद में या अल्लाहो अकबर वाली पवित्र आ$जान में ईश्वर को ढूंढने के पहले यथाशक्ति रोग से लड़ रहे रोगियों के दुख को कम करने का जटायु प्रयास करने का साहस करते हुए चिकित्सालय में पैर रखते ही प्रार्थना करते हैं कि- हे ईश्वर आपके आशीष से हमारे दिलों में जो प्रेम भाव जागृत हुआ है वह सदैव बना रहे ऐसी आपसे प्रार्थना है.
मध्यप्रदेश का आदीवासी बाहुल्य बैतूल जिला बैतूल शहर के द्वारा दिये गये मानव सेवा के नये आयाम आज पूरे मध्यप्रदेश में एक अनुकरणीय पहल के रूप में दस्तक दे चुके है. वैसे तो हर शहर में साधन संपन्न एवं दयालु प्रवृत्ति के बुद्घिजीवी विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से मानव सेवा कार्य में लगे हुए हैं किन्तु पूरे मध्यप्रदेश में शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहां बैतूल शहर के समान मध्यवर्गीय परिवारों की प्रचुर भागीदारी से शहर के शासकीय चिकित्सालय में बगैर एक भी दिन की चूक के लगातार छ: वर्षो से (01 जनवरी 99 से आज तक) एक निर्धारित समय प्रात: 8.30 से 8.45 बजे पर मात्र पंद्रह मिनट के अंतराल में सभी जनरल वार्डो में रोग से लड़ रहे रोगियों एवं उनके परिजनों को बड़े प्रेम पूर्वक एवं आग्रहपूर्ण तहजीब के साथ अंकुरित आहार से भरा हुआ एक दोना देकर न केवल उनके एक लोटा पानी की व्यवस्था की जाती है, अपितु साथ-साथ अंकुरित आहार योजना की दूसरी विशेषता यह है कि इसके संचालन के लिए न तो कोई समिति बनी है और ना भविष्य मेें बनाने का इरादा है. बैतूल शहर के चुनिंदा 25-30 नागरिकों ने इस कार्य से शहर के सभी वर्ग समुदायों को जोडऩे का अद्घितिय कार्य किया है और करते वले आ रहे है. मध्यवर्गीय परिवार की इतनी बड़ी जन भागीदारी जिला बैतूल को पुरे मध्यप्रदेश में सर्वोच्च स्थान पर ला खड़ी की है क्योकि इस जिले में द्ररिद्र नारायण की सहायतार्थ जनभागीदारी का उल्लेखनीय प्रयास अंकित किया जा रहा है.अंकुरित आहार वितरण का श्री गणेश परिवार के सदस्यों द्वारा उस समय से माना जाना चाहिये जब वे अपनी रोजी रोटी के अर्थ उपार्जन की दिनचर्या के साथ मिलने वाले नागरिकों को इस योजना की जानकारी देते हुये प्रेरित करते हैं कि वे अपने बच्चों को जन्म दिन पर अथवा अपनी शादी की वर्षगांठ पर या अपने प्यारों की पुण्यतिथि पर मात्र 250 रूपये अथवा 10 किलो अंकुरित आहार चाहे वो चना, मूंग हो अथवा कोई भी अनाज को गीले कपड़े में बांधकर दो दिन पूर्व से अंकुरित किये हुये अनाज को शासकीय चिकित्सालय में प्रात: 8.15 बजे लाने का कष्टï करें जहां पर अंकुरित आहार परिवार आपके सहयोग के लिये प्रतिदिन उपलब्ध रहता है जो शीघ्र ही इस अंकुरित आहार वितरण की शुरूआत अंकुरित आहार को तैयार कराने से होती है जिसमें सुगनचंद जी तातेड़ जयंतीलाल गोठी, इंदरचंदजी तातेड़, प्रवीण दोषी, धनराज पगारिया, सुरेश जैन अपने सामने अंकुरित आहार को गुजराती काका के होटल में जांच कर सायकिल से अस्पताल की ओर अंकुरित आहार को रवाना करते है . अंकुरित आहार वितरण करने परिवार के सदस्य चाहते है कि बच्चों की सालगिरह पर आयोजित की जाने वाली केक, कैंडल पार्टियों में कटौती कर जीवन के वास्तविक सुख ‘दान की गरिमा से अपने नौनिहालों को नवाजें, इसके अलावा अपने बुजुर्गो की पुण्यतिथि पर अथवा शादी की वर्षगांठ की खुशियों में रोगियों को भी शामिल कर पुण्य लाभ अर्जित करें. उक्त सभी योजना की विस्तृत जानकारी देते हुये सुगनचंद जैन बताते हैं कि 120 बेडयुक्त अस्पताल में 120 मरीजों के अतिरिक्त इतने ही इनके परिजनों एवं भर्ती हुये अन्य मरीजों की कुल संख्या 350 से लेकर 400 के लगभग होती है . इन सभी को 75-100 ग्राम अंकुरित आहार देने के लिये लगभग 10 किलो मूंग अथवा कोई भी अंकुरित किया जाने वाला अनाज जैसे चना, मोठ, बरबटी दो दिन पूर्व अंकुरित है जिससे उस आहार में दाने अंकुरित होकर सफेद-सफेद जड़ें निकल जाती है तत्पश्चात उसमें नमक डालकर उसे और पौष्टिïक करने हेतु पालक के पत्ते, टमाटर, धनिया डाल दिया जाता है तथा दो विभिन्न बर्तनों में डालकर चिकित्सालय ले आया जाता है . वर्तमान में प्रचलित दरों के अनुसार 200 रूपये का अंकुरित आहार व 400 दोने 40 रूपये के इस प्रकार मात्र 250 रूपये के अंदर एक व्यक्ति का बजट बनता है जिससे पूरा चिकित्सालय लाभंावित हो जाता है.

दहेज लाओ… दुल्हन ले जाओ!
बैतूल (रामकिशोर पंवार ) वे भले ही शहरी लोगो की न$जर में अनपढ़ – गोंड – गवार हो सकते है लेकिन भारतीय समाज के लिए वे आज के इस युग में जीती जागृति आदर्श एवं नैतिकता की मिसाल है जिससे कुछ सीखा जाता सकता है . आज पूरे देश में फिल्मी दुनिया की अपने अभिनय के चलते बेमिसाल बनी स्वर्गीय ललीता पंवार जैसे क्रूर – अत्याचारी – बहुओं का जीना दुभर करने वाली सास (पति की मां) की कमी नही है . दहेज रूपी दानव के मुख से दहकने वाली आगों में जलाने एवं दहेज के नाम पर कन्या पक्ष का आर्थिक शोषण करने की कुप्रथा भले ही शहरी संस्कृति में पनप रही हो, मगर बैतूल जिले में सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों में निवास करने वाली कोरकू आदिवासी जनजाति ने साबित कर दिया कि अभी वे इतने लाचार, मजबूर और भीखमंगे नहीं हुए है कि कन्यापक्ष को दहेज के नाम पर गीले कपड़े की तरह निचोड़ डालें. कोरकू आदिवासी जनजाति में लड़का तो एक तयशुदा रकम ससुर के हाथ में रखता है तब उसकी बेटी से शादी करता है. यह रकम बाद में लड़की को दे दी जाती है . बैतूल जिले का जोडिय़ा गांव सतपुड़ा  पर्वत की श्रृंखलाओ में घने जंगलों के बीच बसा हुआ है . यह गांव आज भी शहरी दहेज रूपी कुसंस्कृति के प्रकोप से सुरक्षित रहने के कारण इस गांव के वे लोग जिन्हे अपने घर बसाने है वे आज भी गांवो से कोसो दूर बैतूल – भोपाल – इन्दौर – नागपुर जैसे महानगरो में काम की तलाश में जा पहँुचे है जिसके पीछे की व$जह यह है कि उन्हे अगर ”दुल्हन वहीं जो पिया मन भाए चाहिए …..! ÓÓ तो काम -धाम करके 20 हजार रूपये कमा कर अपने ससुर को देना होगा ताकि वह यह जान सके कि उसका दामाद कमाऊपूत है तथा उसकी बेटी का पेट पाल सकता है……! लोगो को सुनने मेें यह बात भली ही अटपटी लगी हो पर सच्चाई सोलह आने सच है . बैतूल में एक प्रायवेट ट्रक पर कन्डेक्ट्ररी करने वाला गबरू की यही आपबीती है . उसके जैसे वे हर नौजवान काम की तलाश में 20 हजार रूपये जमा करने के लिए शहरो में अपना पसीना बहा रहे है ताकि उनके सपनो की राखी सावंत उन्हे भी मिल सके . इस जाति ने शहरी संस्कृति से ऊपर उठ कर शादी के पूर्व ही तय शुदा नवदम्पत्ति हैं को साथ – साथ मेहनत मजदूरी करने के लिए गांव छोड़ कर शहर जाने तथा साथ – साथ रह कर 20 हजार रूपये कमाने की छुट दे रखी है जिनकी शादी को भी अभी तक समाज से वैधता नहीं मिली हैं, क्योंकि इन नव दम्पति ने अपने ससुर के पास 20 हजार रूपए जमा नही किया है  उक्त रूपये जमा होने के पश्चात ही उसकी शादी को हरी झंडी मिलेगी.
मंगल अपनी पत्नि मझोली के साथ पाथाखेड़ा की कोयला खदानो में ट्रको में कोयला भरने का काम करता था . पिछले सात महिने दोनो पति – पत्नि ने कड़ी मेहनत करने के बाद मंगल ने 18 हजार रूपये कमा कर अपने ससुर के पास जमा तो कर दिये लेकिन इस बीच एक हादसे में मझोली की मौत हो गई . मंगल के ससुर ने अपने दामाद को इस हादसे से उबारने के लिए अपनी छोटी बेटी की शादी मंगल से करवा कर उसे अपने घर लमझेना (घर जवाई) ले आया . इसी तरह मकालू और सुकाली पिछले छह माह से पति-पत्नि के रूप में रह रहे हैं , मगर समाज ने उनकी शादी को अभी तक मान्यता नहीं दी है. क्योकि मकालू ने अभी तक तय शुदा रकम अपने ससुर को नही सौंपी है . बैतूल जिले के कई ग्रामिण अंचलो में रहने वाली मेहनत कश कोरकू आदिवासी समाज को इस बात पर ना$ज है कि अभी तक उसके अनपढ़ समाज में बहू को दहेज के लिए जिंदा जलाने का कोई भी हादसा न तो हुआ है और न हो पाएगा . किसी की लाड़ली बेटी को घर लाकर उसकी हत्या करना महापाप समझने वाली इस जाति में लड़का लड़की समान है . इस समाज के लिए दुसरे का लड़का खुद का दामाद जो कि लमझेना (घर जवाई) कहलाता है वह बेटे के समान होता है . इसके विपरीत दूल्हा बनने वाला लड़का ससुर को पहले रकम कमाकर इस बात का यकीन दिला देता है कि वह अपने पैरों पर खड़ा होकर उसकी बेटी (अपनी पत्नि) और बाल – बच्चो को पाल सकता है . कोरकू आदिवासी समाज में इस प्रथा को लोग ‘लमझियानाÓ कहते हैं.
इस प्रथा के अनुसार लड़का व लड़की शादी के लिए तैयार होने के बावजूद लड़के को विवाह किए बिना दामाद के रूप में ससुर के घर रहना पड़ता है. इस दौरान वह तयशुदा रकम अपने ससुर को कमाकर देता है. इस कमाई में लड़की भी लड़के का साथ देती है. यह रकम अदा करते ही दोनों की विधिवत रूप से शादी कराकर बिदाई दी जाती है. इस रकम को लड़की का पिता अपने पास ही रखता है. जरूरत पडऩे पर पिता बाद में इस पैसे को अपनी बेटी को लौटा भी देता है.

लावारिश लाशों का वारिस बदरूद्दीन पठान
हरदा  (रामकिशोर पंवार ) इस बेहरम दुनिया में फरिश्ते कहाँ मिलते है…….! 57 वर्षिय आटो चलाने वाला बदरूद्दीन उन मृत आत्माओं के लिए किसी फरिश्ते से कम नही है . अकाल मौत के आगोश में आए ऐसे अज्ञात एवं ज्ञात शवो को मुक्तिधाम पहँुचाने के लिए हमेशा मदद के लिए उत्सुक रहने वाला शख्स बदरूद्दीन कहने को तो आटो ड्राइवर है, लेकिन उनका काम शहर के यात्रियों के अलावा जिदंगी का सफर पूरा कर चुके बेनाम यात्रियों को भी मंजिल तक पहुंचाना है . कोई उसे बदरूद्घीन ‘पठान चाचा कहता है तो कोई भाई जान ……..!  इन सब से हट कर वह उन लोगो के लिए उनके परिवार का कोई बड़ा बुर्जग व्यक्ति से कम नहीं है जो अपने बड़े होने का दायित्व निभाते चला आ रहा है . हरदा शहर इंसानियत के कलयुगी फरिश्ते बदरूद्दीन को पता भर चलना चाहिए कि कहीं लावारिस लाश मिली है . वह तुरंत वहां पहुंच जाते हैं अब तो स्थिति यह है कि लावारिस लाश मिलने पर पुलिस या जीआरपी के लोग ही पठान को बुलवा लेते है . अद्घितीय अनोखी समाजसेवा में जुटा पठान लावारिस लाशों को उसके धर्म और संस्कार के तहत अंतिम क्रियाकर्म करता है . स्वभाव से बेहद विनम्र बदरूद्दीन कहता है कि इससे, उसे सकून मिलता है . उसने इस कार्य की शुरूआत करीब 25 साल पहले एक मैकेनिक के यहां कार्य करने के दौरान यह भावना जागृत हुई. बदरूद्दीन बताता है कि वह करीब दो हजार लावारिस शवों का क्रियाकर्म स्वंय के खर्च पर कर चुका है साधनों के अभाव के बावजूद पठान कभी अपने काम से परेशान नहीं हुआ। कई बार अर्थी को कांधा देने के लिए 4 लोग नहीं मिलने पर पठान हाथ ठेले पर ही शव को मुक्तिधाम या कब्रगाह तक ले जाता है .

मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 लापता……..?
सचित्र रिर्पोट :- रामकिशोर पंवार
भारत में बाघों की संख्या को उजागर करने वाली ”भारतीय वन्य जीव संस्थान  देहरादुन की ताजा रिर्पोट में इस बात का खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती बैतूल तथा महाराष्टï्र के सीमावर्ती अमरावती जिले के वन्य जीव क्षेत्र में बनी मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 बाघो का कोई अता – पता नहीं है . भारत सरकार के नियत्रण में कार्यरत इस संस्थान ने मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट द्घारा उपलब्ध आकड़ो की पोल खोलते हुए चौकान्ने वाले तथ्यों को उजागर करके दावा किया है कि वर्तमान समय में मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के वन्य जीव क्षेत्र में 67 बाघो में से केवल 30 ही बाघ बचे है…! देश के प्रधानमंत्री डाँ मनमोहन सिंह ने स्वंय देश की जानी- मानी एवं अनुभवी वन्य जीव विशेषज्ञ श्रीमति सुनीता नारायण की अगुवाई में टाइगर टास्क फोर्स का गठन किया गया था . इस टाइगर टास्क फोर्स ने मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट में बाघो के शिकार के मामले में चिंतित होकर आई . एफ . एस . अधिकारियों को लेकर बनाई  ”भारतीय वन्य जीव संस्थान  देहरादुन से मदद मांगी थी जिसके बाद ही उक्त तथ्यों का खुलासा हो सका .  मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के वन क्षेत्र में बसे 22 गांवो में से इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मात्र दो ही गांवो का पुर्नवास हो सका है . शेष 20 गांव आज भी तलहटी एवं नदी – नालो तथा प्राकृतिक जल संग्रहित स्थानो के आसपास बसे होने के कारण इन गांवो के ग्रामिण जिनमें अधिकांश अनुसूचित जन जाति के लोग है वे ही वन्य प्राणियो के सबसे बड़े दुश्मन बने हुए है . बैतूल जिले की सीमा से लगे इस प्राजेक्ट में जिले का भी वन क्षेत्र तथा गांव आने से महाराष्टï्र सरकार के वन विभाग के पास एक रटा – रटाया जवाब रहता है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती बैतूल जिले के शिकारी और ग्रामिणो के कारण वन्य प्राणियो को जान के लाले पड़ रहे है लेकिन अब तो मध्यप्रदेश सरकार का वन मोहकमा भी महाराष्टï्र के अफसरो के सुर में सुर मिलाते हुए कहने लगा है कि जिले के वन्य प्राणियो का महाराष्टï्र के शिकारी एवं ग्रामिण शिकार कर रहे है . दोनो राज्यों के वन विभागो के आला अफसरो के लिए यह सबसे बड़ा शर्मनाक तथ्य है कि मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 बाघ न तो मध्यप्रदेश के वन क्षेत्र में है और न महाराष्टï्र के वन क्षेत्र में ऐसी परिस्थिति में अंतरराष्टï्रीय वन्य प्राणियो के अवयवो का कुख्यात तस्कर संसार चंद भले ही तिहाड़ जेल की चार दिवारी में कैद हो लेकिन उसका अच्छा खासा नेटवर्क आज भी मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट में फैला हुआ है . ”भारतीय वन्य जीव संस्थान  देहरादुन की रिर्पोट में इस बात को भी उजागर किया है कि 20 गांवो के लोगो को मोहरा बना कर वन्य प्राणियो अवयवो के तस्कर द्घारा पानी में $जहर मिलाने एवं अधखाई शिकार पर $जहर डालने तथा बिजली का कंरट लगा कर वन्य प्राणियो को मारने के तौर – तरीके अजमाए जा रहे है . दो राज्यो की सीमावर्ती वन क्षेत्र में मध्यप्रदेश के कटनी क्षेत्र की बहेरिया जाति के लोगो को भी संदेह की न$जर से देखा जा रहा है क्योकि यह जाति अपने तथाकथित जड़ी – बुटी से इलाज के नाम पर गाडिय़ो में पूरे साज और सामान के साथ आते है . इनके पास लोहे के बने फंदे होते है जिसमें वन्य प्राणी आसानी से फंस जाता है . बैतूल जिले के भैसदेही , आठनेर , भीमपुर तथा महाराष्टï्र के अजंनगांव , दर्यापुर , परतवाड़ा के आसपास के गांवो में अपना डेरा जमाने वाली इस बहेरिया जाति भी बरसो से वन्य प्राणियो की जानी दुश्मन बनी हुई है . बैतूल जिले के वन विभाग के अफसर तो साफ शब्दो में कहते है कि वर्तमान समय में बैतूल जिले में एक भी बाघ नही है . पड़ौसी सीमावर्ती राज्य के मेलघाट के टाइगर प्रोजेक्ट से 37 बाघो के लापता होने के लिए वे जिम्मेदार नहीं है …. भारत सरकार द्घारा बाघो के संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश एवं महाराष्टï्र के सीमावर्ती वन परिक्षेत्रो में स्थापित महाराष्टï्र जिले के अमरावती जिले के दो प्रमुख गुगामल राष्टï्रीय बाघ अभ्यारण और मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले दोनो राज्यो के भारतीय वन सेवा (आई . एफ . एस .) के अफसरो की एक साझा बैठक बुलवाने के बाद ही उक्त प्रोजेक्ट को मूर्त रूप दिया गया था . जिसमें दोनो राज्यो के वन विभाग के आला अफसरो को साफ तौर यह निर्देशित किया गया था कि दोनो ही पड़ौसी राज्यों बाघो के संरक्षण के लिए आपसी तालमेल के कार्य करेगें तथा दोनो ही अपने वन क्षेत्रो में इस प्रोजेक्ट के बाघो पर निगरानी से लेकर उनके संरक्षण के प्रति जवाबदेह होंगे . दोनो राज्यो के अफसरो की समय – समय पर होने वाली साझा बैठको की खानापूर्ति तो हुई लेकिन दोनो ने ही एक दुसरे पर जवाबदेही का आरोप – प्रत्यारोप लगा कर वे स्वंय इन आरोपो से बचते रहे कि इन बाघो के लापता होने के लिए वे स्वंय जवाबदेह है . आज यही कारण है कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले से लगे दो वन्य प्राणियो के प्रोजेक्ट जिसमें एक भोपाल – नागपुर राष्टï्रीय राजमार्ग 69 पर बैतूल एवं छिन्दवाड़ा जिले के सीमवर्ती वन परिक्षेत्रो में स्थापित है उस पर अंतराष्टï्रीय वन्य प्राणियो के तस्कर की न$जर लग गई है . आज भले मध्यप्रदेश राज्य सरकार का वन मोहकमा टाइगर प्रोजेक्ट की जवाबदेही से स्वंय को दूर कर रखा हो पर उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि बैतूल जिले में वन्य प्राणियो की संख्या दिन – प्रतिदिन क्यो घटते जा रही है . जब इस संवाददाता ने राज्य के वन सचिव से इस बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाही तो स्वंय संतोष जनक जवाब नहीं दे सके .  बैतूल जिले की एक मात्र पंजीकृत संस्था बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के संयोजक एवं भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्घारा गठित  जिला पर्यावरण वाहिणी के सदस्य के अनुसार अभी हाल ही में जिला मुख्यालय पर स्थित अिकारी क्षेत्र में पूरे मोहल्ले के लोगो ने सांभर का मांस खाया लेकिन वन विभाग के अफसरो से लेकर पुलिस मोहकमा तक के लोग के कानो में जँू तक नहीं रेगी . सबसे शर्मनाक बात तो यह रही कि जिस मोहल्ले में सांभर का मांस बटा इस मोहल्ले में बैतूल विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक शिवप्रसाद राठौर का भी निवास है साथ ही वन एवं पुलिस विभाग के कई कर्मचारी निवास करते है . समिति का आरोप है कि जिले में इस समय पूरा वन मोहकमा वन्यप्राणियो के संरक्षण तो दूर रहा वनो के संरक्षण तक के लिए अपनी जवाबदेही सही ढंग से नहीं निभा पा रहा है . आज जिले में लाखो की लकडिय़ा वन विभाग के उडऩदस्ते के सामने वन माफिया द्घारा जला दिया जाना तथा उसके बाद एक ही गांव से लाखो की लकड़ी वन्य प्राणियो की खाल तथा उन्हे पकडऩे के लिए उपयोग में आने वाले फंदो की बरामदी इस बात का प्रमाण है कि जिले का वन मोहकमा अपने कत्वर्य का किस ढंग से पालन कर रहा है .
इति,

सुर्खियों में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं बैतूल जिले के टीवी चैनल के रिर्पोटर …..?
कभी सफेद उल्लू को गरूड़ बतायेगें तो कभी बिरजू को नमक खाने वाला
बैतूल, रामकिशोर पंवार: सच कड़वा जरूर होता हैं लेकिन सच सामने भी एक न एक दिन आ ही जाता हैं। अपने स्वार्थ के लिए भूत का भय दिखाने वाले पांखडिय़ो ने जबसे उनकी पोल परत दर परत खुलने लगी हैं उस ओर मुड़ कर भी नहीं देखा हैं। सबसे पहले हमने ऐसे लोगो को बेनकाब किया था जो स्ट्रींग आपरेशन या प्रायोजित स्टोरी करके न्यूज चैनलो पर दहशतगर्दी का कारोबार चलाए हुए हैं। बैतूल जैसे छोटे से आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में ऐसे लोग कभी बिरजू को नमक खाने वाला बता देते हैं तो कभी एक स्कूल के 40 में से 39 बच्चों को शराब के नशे का आदी बता कर एक समाज सुधारक को महिमा मंडित कर उन बच्चों से कथित शराब पीकर आने की आदत को छोड़ देना बता देते हैं। ऐसे लोग बैतूलवी पत्रकारिता के लिए नासूर है लेकिन बड़े चैनल का तमगा लेने की वज़ह से ऐसे लोगो के झुठ का लोग सामना करने को लाचार हैं। जिस दिन बैतूल जिले के चिचोली उत्कृष्ट बालिका छात्रावास में कथित रहस्यमय परिस्थितियों से जूझ रही छात्राओं मे से तीन छात्राओं को जिला अस्पताल भेजा गया। उसी शाम एक छात्रा बेहोश हुई जिसे स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में प्राथमिक उपचार के बाद जिला अस्पताल भेज दिया गया। इस घटना के बाद छात्रावास में महज 8 छात्राएं बची हैं बाकी सभी छात्राएं छात्रावास छोड़कर घर चली गई। छात्रावास की छात्राओं के कथित बेहोश होने के घटनाक्रम के बाद जेएच कॉलेज से डॉ. पुष्पारानी आर्य और जीपी साहू काउंसलिंग के लिए पहुंचे। चर्चा में छात्राओं ने काउंसलर को बताया कि उन्हें न तो ढंग का भोजन मिलता है और न साबुन, तेल। छात्रावास में मनोरंजन के लिए कोई सामग्री नहीं है। छात्रावास अधीक्षिका का व्यवहार भी ठीक नहीं है। छात्राओं से चर्चा के बाद काउंसलर ने छात्राओं के बेहोश होने के लिए तनाव व छात्रावास की अव्यवस्थाओं को दोषी बताया। चर्चा के दौरान भूत – प्रेत की बाते सामने नहीं आई। छात्रावास में अव्यवस्था एवं परीक्षा के चलते मानसिक तनाव ग्रस्त छात्राएं भूत की खबरो के प्रसारण होने के बाद से और भी हैरान एवं परेशान हो गई हैं। छात्राओं के साथ राते बिताने के बाद प्रभारी छात्रावास अधिक्षक का यह कहना काफी चौकान्ने वाला था कि भ्रम का भूत इनके बीच दहशत का प्रमुख कारण था। अब इस खबर के साथ सलंग्र छायाचित्र को भी देख कर आप अंदाज लगा सकते हैं कि भूतो को लेकर दहशत में फंसी छात्रा कैसी मंद – मंद मुस्करा रही हैं। किसी एक भी छात्रा के चेहरे पर टेशंन के बजाय राहत की मंद – मंद मुस्कराहट थी।
यहां पर यह उल्लेखनीय हैं कि आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में जहां पर दुनियां का एक मात्र भूतो का मेला लगता हैं उसी क्षेत्र में भूत – प्रेतो के नाम पर डराने धमकाने का धंधा कुछ टीवी चैनल वालो के लिए सनसनी पैदा करने का जरीया बन गया हैं। जहां एक ओर बैतूल जिले की चिचोली जनपद क्षेत्र की मलाजपुर ग्राम पंचायत में गुरू साहेब बाबा की समाधी पर भूतो का मेला लगता हैं। यहां पर अच्छे – अच्छे लोगो के भूत उतर जाते हैं , वही दुसरी ओर चिचोली जनपद मुख्यालय पर स्थित उत्कृष्ट आदिवासी बालिका छात्रावास में इन दिनों के टीवी चैनल के रिर्पोटर तथाकथित स्ट्रींगर रिर्पोटरों के गठबंधन से बैतूल जिले में भूत,प्रेत का सहारा लेकर मासूम स्कूली छात्राओं में भय और अध्विश्वास के साथ – साथ दहशत का भी माहौल तैयार किया जा रहा हैं। टीवी चैनलों पर आने वाले तथाकथित सनसनी , आहट ,जी हारर शो की तर्ज पर गांवो और सुनसान पड़े स्थानो से भय के भूत को साकार रूप देकर परोसा जा रहा हैं। कुछ दिन पहले निरगुड़ में दो हजार लोगो के बीच दहशत की सनसनी खेज खबर का हमारे द्वारा किया गए खंडन से सबक न लेते हुए एक बार फिर बैतूल जिले से भूत – प्रेत बाधा पर प्रायोजित खबर दिखाई गई। प्रेत बाधा पर आधारित टीवी चैनल के रिर्पोटर खबर के बाद सच का सामना करने महाराष्ट्र के विभिन्न जिलो से आई अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के सदस्यों ने उत्कृष्ट बालिका छात्रावास की किसी भी छात्रा को तथाकथित भूत – प्रेत बाधा से पीडि़त होना नहीं पाया। समिति ने अपनी जांच के दौरान पाया कि नगर पंचायत मुख्यालय चिचोली में बैतूल से कुछ दिन पूर्व में आए एक टीवी चैनल के पत्रकार ने स्थानीय छुटभैया नेता की मदद से स्कूल की छात्राओं को टीवी चैनलो पर दिखाने का लालच देकर उनसे पूरी मनगढ़ंत कहानी बनाई। कहानी का द एण्ड तब हो गया जब कुछ छात्राओं ने बताया कि छात्रावास में ऐसी कोई भी आहट सुनाई नहीं दे रही थी। मजेदार बात तो यह हैं कि विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी आइ के बोडख़े बैतूल नगर के निवासी हैं तथा उनके परिवार की बैतूल में पिंजरकर स्टोर्स के नाम की दुकान हैं। जहां पर कुछ टीवी चैनलो के पत्रकारों की आवाजाही बनी रहती हैं। श्री बोडख़े एवं अत्कृष्ट स्कूल प्राचार्य श्री डी के केनकर तथा छात्रावास अधिक्षिक सुश्री पिंकी राठौर ने सोची समझी नीति एवं रीति के अनुसार पिछले 15 दिनो से स्कूली छात्राओं के बीच जानबुझ कर भूत – प्रेत को लेकर भ्रम फैलाने का प्रयास किया गया। एक पडय़ंत्र जो कि कुछ टी वी चैनलो द्वारा आयोजित था उसके लिए बकायदा तंत्र – मंत्र साधना , पूजा पाठ , हवन किया गया। बालिकाओं को बकायदा रामायण पाठ पढ़वाने के लिए छात्रावास में रामायण पहुंचाई गई। स्वंय आर के श्रोती सहायक परियोजना अधिकारी भी इस षडय़ंत्र में शामिल थे क्योकि उन्होने अपने भोपाल से आए आला अफसर श्री सेगंर की मौजूदगी में बेव न्यूज पोर्टल यू एफ टी न्यूज को बताया कि स्कूली छात्राए मानसिक रूप से पढ़ाई से भयक्रांत थी लेकिन वे रामायण पढ़ती थी। अब सवाल यह उठता हैं कि स्कूली छात्राओं से छात्रावास परिसर में रामायण का पाठ , मंदिर में पूजन , हवन आखिर क्यों करवाया गया। यदि छात्रावास में भूत था तो उन्हे पास में ही मलाजपुर क्यों नहीं ले जाया गया। अलग से तांत्रिक – मांत्रिक बुलवा कर टीवी चैनल वालों के सामने ड्रामा किसी अनुमति से हुआ। छात्रावास परिसर में पालक के अलावा बाहर के लोगो को खास कर टीवी चैनल वालों को घुसने एवं अंदर जाकर छात्राओं से बातचीत करके उनके दिलो दिमाग में भय का भूत डालने की क्या जरूरत थी। जब इटीवी पर उन चैनलों के मंशा के ठीक विपरीत $खबर प्रसाति की गई तब भी उक्त टीची चैनलों द्वारा अपने स्ट्रींगरों एवं रिर्पोटरों से $खबर की सच्चाई जानने का प्रयास क्यों नहीं किया गया। अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति का तो सीधा सीधा आरोप था कि जानबुझ कर दहशत का माहौल पैदा करके कुछ तांत्रिक – मांत्रिक टीवी चैनलो को माध्यम बना कर उन 50 स्कूली छात्राओं के पालको से मोटी रकम ठगना चाहते थे। मध्यप्रदेश में महाराष्ट्र सरकार की तरह अघोरी प्रेक्टीस एक्ट 2005 की तरह कोई कड़ा कानून नहीं है जिसके चलते आदिवासी बाहुल्य जिलों में इस तरह का गोरखधंधा फल फूल रहा हैं। देश के नॅबर वन का तमगा लेकर स्वंय भू टीवी चैनलों को ऐसी भ्रामक $खबरो को जो खास कर स्कूली छात्राओं के भविष्य से जुड़ सकती हैं को प्रसारित करने से पहले सोचना चाहिए। एक भी चैनल यदि चांद पर पहुंचने वाले युग में कोमल मानसिक पटल पर भ्रम का या अधंविश्वास के भूत को बढ़ावा देगा तो आने वाले कल में वह भयभीत होकर दहशत भरा जीवन जीने को बेबस हो जाएगी। चिचोली छात्रावास की घटना का पूरजोर खंडन करते हुए विद्धवान कानूनविद भरत सेन कहते हैं कि हमारे छात्रावासों में यदि तंत्र – मंत्र में शिक्षा अधिकारी , प्राचार्य , अधिक्षक आस्था रखेगें तो देश में आइंस्टीन , न्यूटन, एडीशन जैसे वैज्ञानिक कैसे पैदा होगें? और ऐसे में भारत की कोई भी कल्पना चावला जैसी अंतरीक्ष यात्री कभी नहीं मिलेगी। इस छात्रावास की बालिकाए इस समय गणित और विज्ञान जैसे विषयों से भटक कर भूत – प्रेतो के अस्तीव में खो जाएगीं तो इनके भीतर विज्ञान कैसे पैदा होगा। श्री सेन तर्क देते हैं कि प्रिंट एण्ड इलेक्ट्रानिक मीडिया तंत्र – मंत्र – यंत्र भूत – प्रेत – नजर बाधा निवारण के तांत्रिक प्रयोग तथा तथाकथित आलौकिक शक्तियों का प्रचार – प्रसार – प्रसारण करके अंधविश्वास को बढ़ावा देकर प्रेस एक्ट की मूल भावनाओं का हनन कर रही हैं।
इधर बैतूल जिले के चिचोली नगर पंचायत मुख्यालय पर स्थित आदिवासी बालिका छात्रावास की 50 छात्राओं से यू एफ टी न्यूज ने चर्चा की जिसमें सभी छात्राओं ने एक सिरे से उक्त खबर का खंडन किया। वही मनोवैज्ञानिक डाँ देवेन्द्र बलसारा कहते हैं कि अधिकांश छात्राए 10 एवं 12 की बोर्ड परीक्षा देने के चलते देर रात्री तक पढ़ाई करती हैं ऐसे में उनकी पढ़ाई के चलते पूरी नींद नहीं हो पाती हैं। यहां पर यह देखने को आ रहा हैं कि छात्रावास की अधिकांश आदिवासी छात्राएं बोर्ड परीक्षा में पास – फेल के चक्कर मानसिक तनाव में रहती हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ श्रीमति रश्मी पंवार कहती हैं कि आज के समय में चौदह साल में ही अधिकांश बालिकाओं को मासिक धर्म शुरू हो जाते हैं। ऐसे समय में बालिका कमजारे हो जाती हैं तथा उन्हे मानसिक तनाव भी कई बार उन्हे बहोशी एवं चक्कर आने लगते हैं। पचास में से मात्र तीन ही बालिकाओं को उक्त कथित प्रेत बाधा से पीडि़त बता कर पूरा माहौल को अंधविश्वास की बलि पर चढ़ाया जाना न्योचित नहीं हैं। घटना के पीछे की एक कहानी यह भी बताई जा रही हैं कि नेशनल हाइवे 59 ए बैतूल से इन्दौर पर स्थित इस छात्रावास को किसी सरकारी बैंक द्वारा बीते वर्ष ही किराये पर अनुबंधित कर लिया गया था। सरकारी बैंक इसी वर्ष जनवरी से अपनी शाखा खोलना चाहती थी लेकिन पिछले माह से जब मुख्य मार्ग चिचोली पर स्थित छात्रावास भवन खाली नहीं हुआ तो फिर उक्त कहानी को मूर्त रूप दिया गया था। बताया जाता हैं कि बीते आठ वर्षो से सरकारी दर पर किराये पर चल रहे भवन के मालिक द्वारा कई बार छात्रावास को खाली करवाने का प्रयास किया गया लेकिन जब बात नहीं बनी तो यह कुछ टीची चैनल वालों से मिल कर छात्रावास भवन में भूत – प्रेत होने की बाते फैलाई गई ताकि प्रशासन दबाव में आकर आनन – फानन में उक्त भवन को खाली कर नए छात्रावास भवन में स्थानांतरीत कर दे। हालाकि अब भी उक्त भवन को त्वीत खाली नहीं करवाया जा रहा हैं। परीक्षा सत्र पूर्ण हो जाने के बाद भी छात्रावास नए भवन में जाएगा। इधर सामाजिक कार्यकत्र्ता एवं अनिस से जुड़े श्री राम भलावी का कहना हैं कि उक्त तीनो चैनल पिछले तीन सालों से किसी को नमक खिलाते दिखा रहे हैं तो किसी कुंजीलाल के मरने की भविष्यवाणी करते दिखा रहे हैं। कभी किसी सुनसाने खण्डहर में मुजरा होते और पायल छनकते दिखाते हैं तो कभी किसी खण्डहर को अभिश्रप्त दिखा रहे हैं। श्री भलावी का कहना हैं कि मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र की सीमा से लगे बैतूल जिले में इन टीवी चैनलों द्वारा अभी तक दिखाई गई सनसनी खेज स्पेशल स्टोरी में से एक ने भी भूत – प्रेत के वजूद को सिद्ध नहीं कर दिखाया हैं।

पलाश पर छाई मस्ती एवं फागुन के मेलो में बढऩे लगी है स्वच्छंद उन्मुक्ता
आदिवासी बालाओं के लिए प्रणय और मिलन का माह होता हैं फागुन
बैतूल , रामकिशोर पंवार: पलाश के फूलो पर छाने वाली मस्ती से मदमस्त होती आदिवासी बालाओं पर फागुन का रंग चढऩे को बेताब रहता हैं। पलाश के सूर्ख फूलो से निकला रंग और वह भी बांस की पिचकारी से पूरे तन और मन को रंगीन कर देता हैं। बैतूल जिले में फागुन के मेलो के करीब आते ही सूर्ख लाल होते जा रहे पलाश के फूलों से रंग बनाने का प्राचिन तौर – तरीका आज भी इस जिले के आदिवासियों को अपनी संस्कृति से जोड़ कर रखा हैं। बैतूल जिले में यूं तो हर गांवों में आदिवासी परिवार मिल जाएगें लेकिन सबसे अधिक शाहपुर ,घोड़ाडोंगरी, चिचोली, भैसदेही , आमला, जनपद क्षेत्रों में मिलेगें। वैसे तो कोरकू को भी आदिवासी समाज का अंग माना जाता हैं लेकिन कोरकू विलुप्त जनजाति हैं जिसमें लमझेना प्रथा आज भी प्रचलित हैं। फागुन के मास में ही कोरकू जनजाति के युवको के वैवाहिक सबंध स्थापित होते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार का युवक बारह साल तक अपनी ससुराल में लमझेना बर रहता हैं। इस दौरान वह अपने ससुराल वालों की जमकर सेवा चाकरी भी करता हैं। जवानी की दहलीज पर पांव रखते ही उसके अपनी भावी पत्नि से नैन मटका शुरू हो जाते हैं। फागुन के मेले के समय वह अपने भावी पति से मेला घुमाने के लिए कहती हैं और भी मेले के बहाने घर से निकले युवक – युवती भाग जाते हैं। जब दोनो के बीच शारीरिक सबंध हो जाते हैं या फिर अविवाहित युवती को गर्भ ठहर जाता है ऐसे में दोनो के परिवार के लोग एकत्र होकर पंचायत के समक्ष पहुंच जाते हैं जहां पर समर्थ परिवार युवती के माता पिता को एक किस्त मोटी रकम देकर उसे खरीद लेता हैं और फिर विवाह का खर्च वधु पक्ष को देकर दोनो का विवाह करा दिया जाता हैं। सबसे ज्यादा युवक – युवतियों के नैन मटका एवं भागने के प्रकरण फागुन के मेलो में ही होते हैं। मदमस्त पलाश के फूलो की पूरी मस्ती ही दोनो के बीच शारीरिक सबंधो को भी बढ़ावा देती हैं। अब तो गांव – गांव में युवक – युवतियों पर फिल्मी ग्लैमर और चायना के मोबाइल का इस कदर असर पड़ा हैं कि वे अपने प्रेमी को रिझाने के लिए तरह – तरह के फैशने बल कपड़ो , श्रंगार एवं आभुषणो का उपयोग करती हैं। अब फागुन के मेलो में आदिवासी एवं कोरकू समाज की युवतियां अपने शरीर के अंगो पर गोदना कराने से भी परहेज करने लगी हैं। हालाकि पहले फागुन के मेलो में सबसे अधिक भीड़ उन्ही लोगो के पास होती थी जो शरीर के विभिन्न अंगो पर गोदना करवाती थी। गोदना में अपने प्रेमी , पति , भाई , का नाम लिखवना आम बात होती थी। आज के समय टेटू भी उसी गोदना परम्परा के एक अंग हैं जो आदिवासी समाज की देखादेखी करने से फैशन एवं आकषर्ण के चलते चल पड़े हैं। बैतूल जिले की पूरी जनजाति में सबसे ज्यादा उन्मुक्त यौन सबंधो के पीछे भी फागुन के मेले का असर हैं। मेले के बहाने गांव से आसपास के मेलो में जाने की छुट का युवक युवतियां भरपूर फायदा उठाती हैं। मेले तो बहाने होते है दो जिस्म एक जान होने के लिए। सबसे ज्यादा व्याभिचार भी इन्ही मेले में देखने को मिलता हैं। रंग लगाने के बहाने आदिवासी बालाओं का यौन शोषण भी सबसे ज्यादा इसी माह में देखने को एवं सुनने को मिलते हैं। बैतूल जिले की पुलिस डायरी कहती हैं कि मार्च से लेकर मई तक सबसे अधिक यौनाचार के मामले दर्ज होते हैं। जिले में यौन शोषण खासकर उस जनजाति का आम बात हैं जो कि आर्थिक रूप से कमजोर होती हैं। वैसे पुलिस का यह कहना रहता हैं कि पुलिस तक मामले उस स्थिति में पहुंचते है जब कोई समझौता या लेन -देन नहीं हो पाता हैं। वैसे भी पूरे मध्यप्रदेश में बैतूल जिले को सबसे अधिक बलात्कार दर्ज करने वाले जिलो की श्रेणी में रखा गया हैं। पिछले चार साल से बैतूल जिले पूरे प्रदेश में शीर्ष स्थान पर है जिसके पीछे कहीं न कहीं फागुन के मेले एवं पलाश के फूलों से आने वाली सुगंध और देशी महुआ से बनी कच्ची शराब का नशा है जो कि उन्मुक्त देह व्यपार को बढ़ावा देता हैं। हालाकि बैतूल जिले में देह व्यापार करती या करवाती कोई भी आदिवासी बाला या महिलाएं नहीं पकड़ाई है लेकिन अकसर ऐसे मामले ले देकर ही तय हो जाते हैं। बैतूल जिले के साप्ताहिक बाजारों में आपको यह फर्क करना मुश्कील हो जाएगा कि इस जिले की आदिवासी बाला की आखें मदमस्त कर देने वाली है या विपाशा बसु की नशीली आंखे….. कहने को तो बैतूल जिले में इस समय पूरे घटते जंगलो के पलाश के पेड़ो पर फागुन फूलों के रूप में बौरा गया हैं लेकिन आम के बौर और महुआ के फूलो से भी रस टपकने से यौन इच्छाएं स्वत: हिचकोले मारने लगती हैं। बैतूल जिले में हर गांव में होलिका दहन के बाद मेघनाथ की पूजा के साथ ही फागुन के मेलो का लगना शुरू हो जाता हैं। जिले की पहली गोण्डी फागुन की जतरा वैसे तो बैतूल जिला मुख्यालय के टिकारी कस्बे से शुरू होती हैं। दुसरे दिन बैतूल बाजार तथा तीसरे दिन रोंढ़ा में फागुन का मेला लगता हैं। हालाकि रोंढ़ा में एक भी आदिवासी नहीं है उसके बाद भी बरसो से गांव के लोग मेघनाथ की पूजा करते चले आ रहे हैं। अभी कुछ साल से एक दो आदिवासी परिवार यहां पर आकर बस गये हैं। बैतूल जिले में गोण्डी जतरा को फागुन के मेले के नाम से भी पुकारा जाता हैं। आदिवासियों एवं कोरकुओं में खासकर होली एवं दिवाली पूरे सवा महिने की होती हैं। दोनो ही समयकाल ऐसे होते है जब आदिवासी परिवार सारे कार्यो से फ्री हो जाता हैं। बैतूल जिले में सबसे अधिक बसने वाली आदिवासी एवं कोरकू जनजाति के परिवारों में होली के समय फाग के रूप में रूपए मांगने का रिवाज हैं। इस दौरान गांव में कोई भी अनजान व्यक्ति से फाग के रूपए में मांगे जाते हैं। रूपए न देने पर उन्हे अश£ील गालियां दी जाती हैं कई बार तो आदिवासी युवतियों से लेकर पौढ़ महिलाए तक शालीनता की सारी हदो को पार कर जाती हैं। डर सहमे लोगो से बलात् पूर्वक वसूले गए रूपए से सामुहिक भोज के रूप में मुर्गा – बकरा – दारू की दावते उड़ाई जाती हैं। पूरे सवा महिने तक धुप के तेज होते ही आदिवासी बालाओं के बीच मौज मस्ती की खुली स्पर्धा चल पड़ती हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतों मे से आधी से अधिक ग्राम पंचायते आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं। इस समय पूरे गांवो में फागुन के मेलो को लेकर पड़ौसी राज्यों से दुकानदार और झूले लगाने वाले आने शुरू हो जाते हैं। सावन के झूलो से कहीं अधिक मदमस्त करने वाले होते है फागुन के झूले जिन पर अपने प्रेमी के साथ गोल – गोल ऊपर से नीचे होती बालाएं इस दौरान रंगीन रूमालो को भी जमीन पर डाल कर उसे पकड़ती हैं। ऐसे मेले में आदिवासी बालाओं को पान और अब राजश्री जैसे गुटके देकर भी पटाया जाता हैं। यदि युवती को आपका प्रेम प्रणय स्वीकार हैं तो आपका दिया पान – गुटका वह स्वीकार कर लेगी। अब तो मेलो में फुहड़ता देखने को मिल रही हैं जो कहीं न कहीं पश्चिमी संस्कृति एवं फिल्मो का कुप्रभाव के कारण पैदा होने लगी हैं। सजी धजी बैल गाडिय़ों एवं साइकिलो और अब मोटर साइकिलो में बैठ कर जाने वाली आदिवासी बालाएं सभ्य समाज के लिए एक सबक है क्योकि जिस सभ्य समाज में पर्दे के पीछे अंधेरे में व्याभिचार होता हैं वह आदिवासी समाज के लिए स्वच्छंद उन्मुक्ता का एक रूप हैं।

ऐसे विश्व रिकार्ड बनाने का क्या औचित्य?
लेख :- रामकिशोर पंवार
हमारे देश में विश्व रिकार्ड बनाने का लोगों पर इस कदर भूत सवार है कि लोग विश्व रिकार्ड बनाने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल देते हैं . विचित्र हरकतों, हैरत अंगेज कारनामों तथा बे सिर पैर के रिकार्ड बनाने के चक्कर में लोग अपना तन – मन – धन ही नही बल्कि अपने अमूल्य तक को दाव पर लगा लेते है . तथा कथित गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवाने की महत्वकांक्षा सें ग्रसित ऐसे लोग न जाने कैसे – कैसे पापड़ बेलते है . अब इलाहाबाद के राजेन्द्र कुमार तिवारी उर्फ दुकानजी-मकानजी की हरकतों को ले लीजिए वे अपनी मूछों पर जलती हुई मोमबत्तियों को नचाकर एक नया विश्व रिकार्ड बनाया है . जरा सी असावधानी किसी अप्रिय घटना को जन्म दे सकती है पर रिकार्ड बनाने वालों को नाम की ऐसी भूख रहती है कि वे महज नाम के लिए अपनी जान को जोखिम में डाल देते हैं . हरियाणा के चण्डीगढ़ शहर स्थित रहने वाले गुप्ता बंधुओं ने सामग्रियों (उपभोक्ता) के साथ मिलने वाली मुफ्त की वस्तुओं को एकत्र करने का नया विश्व रिकार्ड बनाया है . गिफ्ट आइटमों को एकत्र करने वाले गुप्ता बंधुओं के पास मौजूदा स्थिति में एक लाख रूपये से ज्यादा के गिफ्ट आइटम पड़े हुए है .  इन गिफ्ट आइटमों को संकलन करने में विश्व गुप्ता एवं विजय गुप्ता नामक दोनों भाइयों ने अपनी नौकरी का अधिकांश वेतन अपने शौक में फूंक डाला  . गुप्ता बंधुओं ने गिफ्ट आइटमों को एकत्र करने में जो समय बर्बाद किया वह धन तो वापस आने से नहीं रहा और न ही गुप्ता बंधुओं को उनके इस शौक के चलते कुछ मिलने से रहा  . पर नाम छपवाने और रिकार्ड बनवाने की लालसा से पीडि़त गुप्ता बंधुओं  ने मुफ्त की सामग्री को कबाडऩे में जो रूपये बर्बाद किये उनसे कोई अच्छा कार्य किया जा सकता था .
अपनी विचित्र हरकतों के चलते नवा शहर के मोहल्ला सेरिया निवासी द्रविन्द्र भिण्डी ने अपने मुंह में सुई रखने का एक नया रिकार्ड बनाने का दावा किया है . द्रविन्द्र ने दावा किया है कि वह पचास से भी अधिक सुईयों को मुंह में हमेशा रखता है . खाना खाते, नहाते व सोते समय भी द्रविन्द्र के मुंह में सुईयां रहती है  . अब इस प्रकार के रिकार्ड बनाने से द्रविन्द्र को क्या मिलेगा  . यह तो कोई नहीं जानता पर कभी भी सुई पेट के अंदर जा सकती है और यह रिकार्ड का जुनून जानलेवा भी साबित हो सकता है . लोगों को ऐसे रिकार्ड बनाने से पहले होने वाले परिणामों के संदर्भ में सोचना चाहिए . अहमदाबाद के एक रेस्टारेंट के मालिक 25 फुट लम्बा डोसा बनाने का रिकार्ड बनाया है . 15 कुशल रसोईयों की मदद से 25 फुट डोसा बनाने वाले कैलाश गोयल का नाम गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज हो जाने से भारत को कौन सा मैडल मिल जाने से रहा  . देश तो दूर रहा कैलाश गोयंका ने 25 फुट लम्बा डोसा बनाकर लोगों से वाहवाही अवश्य लूट ली होगी . कुलक्षेत्र की एक नन्ही सी लड़की ने एक नया कारनामा किया मल्लिका सेठ नामक इस लड़की ने अपने शरीर को मधुमक्खियों के हवाले करके एक नया रिकार्ड बनाया है . मधुमक्खियां को शरीर पर बैठालकर रिकार्ड बनाना कहां तक उचित है . मधुमक्खियां मल्लिका सेठ को नुकसान भी पहुंचा सकती थी , लेकिन नाम की चाहत ने लोगों को इतना प्रेरित कर दिया है कि वे अपनी जान को जोखिम में डाल देते है .
जीने के लिए इंसान को रोटी कपड़ा और मकान के अलावा और क्या चाहिए  , पर नाम दुनिया भर में रोशन हो इसलिए लोग क्या क्या नहीं कर जाते . इनके द्वारा किये गये काम से देश को क्या मिला इस बात की कभी भी रिकार्ड बनाने वाले चिंता नहीं करते . अब बात संजय कुलकर्णी की ही ले लीजिए पूना के इस नाम के भूखे इंसान ने गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम अपनी विचित्र हरकतों के कारण शामिल करवा लिया है .संजय कुलकर्णी ने 2.6 किलोग्राम कांच खाकर विश्व रिकार्ड बनाया है . यह युवक मजे के साथ बल्ब बोतलें को ऐसे चबा जाता है जैसे वह लिज्जत पापड़ खा रहा हो . लिम्का बुक आफ रिकार्ड्ïस में दर्ज नामों में भी अधिकांश ऐसे लोग है जिन्होंने रिकार्ड बनाने के लिए तन – मन – धन बर्बाद करते है . मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पढ़े लिखे युवा अधिवक्ता महेन्द्र सिंह चौहान ने लगातार 18 घंटे तक सिक्का घुमाने का एक नया रिकार्ड बनाया है . अब भला आप ही सोचिए कि सिक्का घुमाने से देश या स्वंय महेन्द्र भाई को क्या मिलने वाला….?  आज यह सिक्का घुमाने वाला युवक खुद इस बात से हैरान है कि उसका नाम लिम्का बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में प्रकाशित होने के बाद भी उसे आज तक कुछ नहीं मिला . नाम कमाने के लालसा ने इस युवा अधिवक्ता को लगातार 18 घंटे तक सिक्का घुमाने के लिए विवश कर दिया था . उसे सिक्का घुमाने के बाद जब कुछ नहीं मिला तब यहां यह प्रश्न उठता है कि ऐसे विश्व रिकार्ड बनाने से क्या फायदा…….? कुछ लोगों को विश्व रिकार्ड बनाने का इस तरह भूत सवार हो जाता है कि वे लगातार रिकार्ड बनाते और तोड़ते  चले आते हैं . इन रिकार्डो को बनाने और तोडऩे के चक्कर में लोग अपना अधिकांश समय और पैसा बर्बाद कर देते है . मध्यप्रदेश के सागर जिले में रहने वाले गिरीश शर्मा ने 55 घंटे 35 मिनिट खड़े रहकर एक नया विश्व रिकार्ड बनाया है . रिकार्ड बनाने वाले इस युवक को रिकार्ड बनाने के बाद पता चला कि लगातार पचपन घंटे खड़े होने की वजह से उसके पैर की नस फट गई और खून बहने लगा . इसी प्रकार का एक रिकार्ड मंदसौर के राधेश्याम प्रजापति ने बनाया है . मंदसौर का यह युवक लगातार एक मुद्रा में 18 घटें तक खड़ा रहा जिसके चलते उसका नाम गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया . राधेश्याम प्रजापति ने इस विश्व रिकार्ड में धारक को जितना समय खड़े रहने लगा उतना समय वह अपनी नौकरी को ढूंढने में लगाता तो शायद उसके परिवार को दो वक्त की रोटी की व्यवस्था हो जाती . आज वह युवक विश्व रिकार्ड बनाने के बाद इस बात से खफा है कि उसे कोई नौकरी नहीं दे रहा है .
विश्व रिकार्ड बनाने के चक्कर में महाराष्टï्र की उप राजधानी नागपुर के एक बालक ने अपने दोनो हाथो में हथकड़ी लगा कर तैरने का विश्व रिकार्ड बना डाला . अब हाथो में हथकड़ी पहन कर तैरने से इस देश को क्या मैडल मिले वाला . इसी तरह की उसकी अभिलाषा उसके तैरते समय किसी प्रकार की अप्रिय घटना को जन्म दे सकती है . हाथो के बिना तैरना जान को जोखिम में डालने के बराबर है पर नाम कमाने और विश्व रिकार्ड बनाने की अभिलाषा दूरगामी परिनामो को नहीं देखती . अब इसी कड़ी में एक अनोखे कार्य के लिये पंजाब के फरीद कोट स्थित तैलिया मोहल्ला निवासी पी .के . सेठी का नाम भी दर्ज है . इस सज्जन के पास भारत सरकार के ऐसे दुर्लभ नोट हैं जिन्हें नियमानुसार बैंकों में जमा कर देना चाहिए परंतु ये सज्जन अपने रिकार्ड बनाने के चक्कर में भारत के उन नोटों को जमा करके रखा हुआ है जो गलत छपे हुए हैं  . अप्रचलित इन नोटों को रिजर्व बैंक में जमा करके नये नोट प्राप्त करके उन्हें प्रचलन में लाया जा सकता है लेकिन रिकार्ड के चक्कर में सेठी जी विगत 15 सालों से ऐसे नोटों को दबा कर बैठ जाते हैं जिनके मुद्रण में त्रुटियां हो जाती है . पंजाब के ही वीरेन्द्र सिंह बिरदी को गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में नाम शामिल करवाने का ऐसा चस्का लगा है कि यह युवक हर दो तीन साल के अंदर में एक न एक नया विश्व रिकार्ड बनाकर ही दम लेता है . विश्व में सबसे लंबा वजनी कैलेन्डर बनाने का रिकार्ड वीरेन्द्र सिंह बिरदी के नाम दर्ज है . वीरेन्द्र सिंह बिरदी ने इतना लंबा कलेण्डर बनाया है कि 40 हजार लोग एक साथ खड़े हो सकते है . लगभग 10475 मीटर लंबे इस कैलेण्डर को उठाने में 3 व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है . गायत्री मंत्र सहित 23 भाषाओं में लिखा गया वीरेन्द्र सिंह बिरदी का यह विश्व का सबसे लम्बा कैलेण्डर भारत के लिए क्या फायदा पहुंचा सकता है इस बात से तो वीरेन्द्र सिंह बिरदी भी अपरिचित है .महज नाम कमाने की लालसा में व्यतीत किया गया समय देश के किसी अच्छे काम के लिए अगर किया जाता तो देश और देश की जनता को कुछ राहत मिल सकती थी . इन विश्व रिकार्ड धारकों से अच्छे तो भोपाल के वे दो अपंग सायकल चालक है जो अपंगता होने के बावजूद भी बैंगलौर से दिल्ली, दिल्ली से कन्या कुमारी तक साढ़े तीन हजार किमी की यात्रा देश में साम्प्रदायिक एकता, भाईचारा को कायम करने के उद्देश्य से प्रेरित होकर निकले थे . विश्व रिकार्ड धारकों में डॉ. एमसी मोदी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने काम ही ऐसा किया था . डॉ. मोदी ने 833 मोतिया बिन्द के आपरेशन करके सैकड़ों लोगों को नेत्र ज्योति दी है . ऐसा कोई भी कार्य जो जनहित में हो वह सराहनीय है .अब इंदौर के ही अरविन्द्र कुमार आगार को ले लीजिए इन्होंने रक्तदान करके अपना विश्व रिकार्ड बनाया है . विश्व में सबसे अधिक बार लोगों को रक्त देकर उनकी जान बचाने वाले अरविन्द्र कुमार पर भारत को गर्व है . बिना उद्देश्य के रिकार्ड बनाना मूर्खता का काम तब हो सकता है जब इनका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकले .
बैतूल जिले के राम प्रसाद राठौर को बैल जोड़ी को पट पर सबसे तेज दौडाऩे वाला कहा जाता है . रामप्रसाद राठौर का यह कार्य भी किसी विश्व रिकार्ड से कम नहीं है . पिछले दस वर्षो से उससे तेज पट पर तेज गति से बैल जोड़ी आज तक कोई दौड़ा सका है . राम प्रसाद राठौर के पास मौजूद बैलो की कीमत एक लाख रूपये तक है . मध्यप्रदेश – महाराष्टï्र तथा अन्य राज्यो में उनकी बैल जोड़ी विश्व रिकार्ड बना पाई है . इस प्रकार के विश्व रिकार्ड बनाने का औचित्य कुछ भी नहीं है पर आन – बान – शान के लिए लोग कुछ भी कर जाते है . अब के.जी. हनुमंत रेडडïी को ही ले लीजिये इस महाशय ने आज तक सबसे अधिक भारत सरकार के विरूद्घ सर्वाधिक मुकदमे दर्ज करने का एक प्रकार से विचित्र विश्व रिकार्ड तो बना डाला पर रेडडïी के सरकार की कितनी परेशान हो रही है यह तो उस राज्य की सरकार ही बता सकती है जहाँ के रेडडï्ी साहब मूल निवासी है . सरकार के खिलाफ जनहित के मामले दर्ज करना तो अच्छी बात है पर सरकार को परेशान करने के लिए या फिर अपना नाम रिकार्ड बुक में दर्ज कराने के लिए ऐसे मुकदमे दर्ज करने से क्या हनुमंत रेड्ïडी ने कोई नया तीर मारा है . मिलिन्द देशमुख की चर्चा करते हैं तो हमें पता चलता है कि मिलिन्द ने पैंसठ किमी की दूरी अपने सर पर दूध की बाल्टी रखकर तय करके रिकार्ड बुक में नाम दर्ज करवाया है . जिनके पास कोई काम नहीं है वे सर के ऊपर बाल्टी क्या पूरा देश लेकर ही निकल जायें तो इससे क्या मिलने से रहा .मिलिन्द भाई की तरह एक सज्जन अरविन्द्र पण्डया भी है जिन्होंने लांस ऐन्जिल से न्यूयार्क तक की दूरी पीछे की ओर दौड़कर पूरी की है . पीछे भागने से रिकार्ड बनाने वाले अरविन्द्र भाई पता नही देश की जनता को क्या सबक देना चाहते है . यहां पर बाबा महेन्द्र पाल की प्रशंसा करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बाबा महेन्द्र पाल ने शारीरिक रूप से अपंग होने के बावजूद 7360 मीटर ऊंची माउण्ट आबू की गामिन चोटी पर चढ़ाई करके लोगों को प्रेरित  किया है कि अपंगता किसी भी कार्य में बाधक सिद्घ नहीं हो सकती .
जगदीश चन्द्र नामक व्यक्ति द्वारा 15 माह तक रेंगते हुए 1400 किमी की दूरी तय करके बनाया गया रिकार्ड समय की बर्बादी ही कहा जा सकता है . इसी तरह 9 साल के बालक चिराग शाह ने 72 घंटे तक 2 सीट वाले विमान को चलाकर अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करवा लिया पर चिराग शाह के पालकों ने कभी यह नहीं सोचा कि किसी दुर्घटना का शिकार हो सकता था पर बच्चों के ऊपर अपनी महत्वाकांक्षा लादना लोगों के लिए खेल बन गया है  . नागौर के महेश प्रसाद ने एक साधारण सायकल पर 21 छात्रों को 381 किमी की यात्रा कराकर विश्व रिकार्ड बनाया है . महेश प्रसाद का यह रिकार्ड उनके दोस्तों के लिए प्रेरणादायी हो सकता है पर इन रिकार्डो से देश की जनता को क्या मिला . यह कहना असंभव है, पश्चिम बंगाल निवासी सुकुमार दास ने रिकार्ड बनाने के लिए एक दिन में 50 कि ग्राम भोजन करने के दो दिन बाद 62 कि ग्राम सब्जियां खाकर अपना नाम शामिल करवाने के लिए दावा किया है . सुकुमार दास ईट, ट्ïयूब लाईट, नाई की दुकान से एकत्र बाल, फटे पुराने कपड़े तक खा जाते है . ऐसा शौक जिसके चलते लोगों को क्या क्या नहीं खाना पड़े किस काम का .किसी की जान बचाने के लिए या फिर देश हित में किया गया कार्य भले ही गिनीज बुक या लिमका बुक में न छपे पर ऐसा करना प्रशंसनीय है क्योंकि ऐसा करने से लोगों को फायदा होता है और देश को भी ऐसे लोगों पर गर्व होता है .ऐसे विश्व रिकार्ड बनाने वालो को रिकार्ड बनाने से पहले सोचना चाहिए कि वे ऐसे रिकार्ड बनाएं जिनमें तन मन धन की बर्बादी न हो तथा उसके द्वारा किया गया कार्य देशहित में हो .
इति,

रहस्यमय दिल को छु देने वाली काल्पनिक कहानी
”कबर बिज्जू”
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
उस रात को बड़े साहब के बंगले पर जग्गू दादा की डुयूटी थी। अपनी पूरी रौबदार मुछो एवं ड्रेस को लेकर पूरे जिले में जग्गू दादा की लोकप्रियता थी। जग्गू दादा को ही पता रहता था कि बड़े साहब कब कहां आते – जाते है। यदि दादा के बारे में यह कहा जाये कि दादा बड़े साहब की मास्टर चाबी है जिससे उनका पूरा जीवन का ताला खुलता और बंद होता है तो कहना गलत नहीं होगा। आज फिर काली अमावस्या की रात को बड़े साहब के बंगले में साहब नहीं थे। वे हर बार अमावस्य की रात को ही क्यों गधे के सिंग की तरह गायब हो जाते किसी को पता नहीं होत्रा। किसी ने एक दो बार जग्गू दादा से मजाक में भी कहा था कि ”दादा तेरा साहब कहीं कबर बिज्जू तो नहीं है कि अमावस्य की रात आते ही बिल में छुप जाता है ……” आज फिर वहीं रात की मनहुस घड़ी आ गई जिसमें पहली बार जग्गू दादा की रात डुयूटी लगी थी। वैसे तो जग्गू दादा ने अग्रेंजो के जमाने का शुद्ध देशी घी और माल पुड़ी खाया था।  उनकी रौबदार मुछो और शरीर के पीछे शायद वही खाया हुआ माल था। उनकी ढलती उम्र के इस पड़ाव में भी चाल और ढाल लोगो के लिए प्रेरणा बनी हुई थी। कोसो पैदल चलना और यदा – कदा साइकिल की सवारी कर लेना जग्गू दादा की दिनचर्या थी। दादा की पूरी सर्विस बड़े साहब के बंगले और आफिस के बीच ही कटती चली आ रही थी। आज रात के लिए दादा पहले तो मना करते रहे लेकिन रात डुयूटी करने वाले ने जब उनसे कहा कि ” यदि वह आज रात को डुयूटी कर लेगा तो वह उसके बदले में कल की दिन की डुयूटी कर लेगा………। ”  जग्गू दादा को कल और परसो दो दिन की छुटट्ी मिल जायेगी। दादा को दो दिन की छुटट्ी लिये महिनो बीत गये थे। इसलिए दादा इन दो दिनो के लिए अपने गांव रमोला जाना चाहता थे। दादा को अपने पहाडिय़ो पर बसे रमोला गांव गये बरसो बीत गये थे। उसके संगी – साथी सब एक – एक कर उसका साथ छोड़ कर जा चुके थे। जग्गू दादा अपने जमाने के संगी – साथियो के परिवार के लोगो से मिल कर उनके दुख को बाटना चाहते थे। दादा का अपने बचपन एवं जवानी के कुछ दोस्तो की आखरी यात्रा में न पहुंच पाना गांव के लोगो के बीच भी चर्चा का विषय बन चुका था। गांव वालो और अपने नाते – रिश्तेदारो के बीच दादा कई बार उन बातो को लेकर अपमान का घुट भी पी चुके थे। इस बार दादा ने पूरा मन बना लिया था कि वह चाहे कुछ भी हो जाये अपने गांव एक दिन के लिए जरूर जायेगा। जग्गू दादा ने अपने मन की बात किसी को नहीं बताई और उसे मन के किसी कोने में तब तक छुपा रखा जब तक कि वह पूरी न हो जाये। आज रात साहब के बंगले में दादा को अकेले ही पूरी रात काटना था। दादा ने पूरी रात काटने के लिए अपने घर से रामायण और हनुमान चालिसा भी साथ लेकर आये थे ताकि आज की पूरी रात वह रामकथा और हनुमान चालिसा का पाठ पढ़ सके। दादा घर से रामायण और हनुमान चालिसा लेकर तो आये लेकिन हडबड़ी में उसे कहां रख गये उन्हे पता नहीं चल रहा था। काली अमावस्या की रात अपने अगले पहर के लिए बढ़ती जा रही थी। अब रात में उल्लूओं की हरकतो के अलावा तरह – तरह की आवाजे आनी शुरू होने लगी थी। बड़े साहब के बंगलो के हरे भरे बरसो पुराने पेड़ो की डालियो के हिलने – डुलने शुरू हो गये थे।  बंगले के पूरे परिसर में दर्जनो पीपल – बरगद – नीम – आम के पेडो की पत्तियों से भी छन – छन करती आवाजे आने लगी थी। ज्यों – ज्यों रात आगे की ओर बढ़ती जा रही थी , त्यों – त्यों बंगले के चारो ओर चीखता सन्नाटा डराने लगता था। बंगले के आसपास लगी टयूब लाइटो के अचानक के बंद हो जाने का मतलब तो यही निकल रहा था कि पूरे बंगले की ही नहीं शहर की ही बिजली गुल हो गई है। यूं तो बडे साहब के बंगले में अभी तक सैकड़ो अफसर आये और चले गये। अग्रेंजो के जमाने के इस बंगले की शान की कुछ और थी। पूरे पांच एकड़ में शहर के बीचो बीच में बना यह बंगला उन अग्रेंजी अफसरो के जुल्मो की कहानी बयां करता है जिन्होने आजादी के कई दिवानो को मौत के घाट सुला दिया। इस बंगले में आज तक किसी भी अफसर के घर में न तो कोई शहनाई गुंंजी और न किलकारी …….. ऐसे में एक प्रकार से मनहुस कहा जाने वाला बंगला दर असल में अफसरो की मौज मस्ती एवं रंगरैलियो का केन्द्र रहा है। बिजली के चले जाने के बाद जग्गू दादा कुछ पल के लिए स्तब्ध सा रहा गया। उसने मोमबत्ती जलाने के लिए अपनी सफेद वर्दी की जेब में हाथ डाला तो बीड़ी का बंडल तो मिला लेकिन माचिस नहीं मिली। ऐसे हाल में दादा को आज राज कुछ अजीब सा लगने लगा। पता नहीं आज रात को क्या होने वाला है। अजीबो – गरीबो हरकतो एवं घटनाओं से जग्गू दादा का दिल भी घबराने लगा लेकिन बुढ़ी सांसो की ताकत उन्हे इस तरह से डर जाने से रोक रही थी। कुछ देर बाद अचानक बिजली आ गई और सामने टेबल पर दादा को वहीं माचिस भी मिल गई जो उनके जेब में होनी थी। कुछ पल तक माचिस को लेकर सोचते दादा को पता भी नहीं चला कि दिवाल पर लगी घड़ी में कब बारह बज गये। बारह बजते ही दिवार की घड़ी से आवाजे आने लगी। दादा ने टेबल पर पड़ी माचिस को लेकर अपने जेब से बीड़ी का बण्डल निकाला और एक बीड़ी निकाल कर जलाने वाले ही थे कि किसी ने उन्हे आवाज दी कि ”जग्गु दादा एक बीड़ी मेरे लिए भी जला देना…….  ” अनजान व्यक्ति की आवाज को सुन कर दादा के तो होश हवास उड़ गये। अचानक बंगले के मालगोदाम से निकली आवाज ने जब शक्ल का रूप लिया तो उसे देख कर दादा के मुख से चीख निकलने वाली थी…….. दादा ने अपने आप को संभाला और वे उसे देखने लगे जो बीड़ी के लिए आवाज दे रहा था। दादा के करीब आ चुकी उस आकृति को देख कर दादा को कुछ महिनो पहले की घटना याद आ गई। यह तो वहीं आदमी था जो उस रात बड़े साहब से मिलने के लिए आया था। उसके साथ उसकी जवान बेटी फुलवा भी थी जो फटेहाल कपड़ो में अपने तन को छुपाये हुई आई थी। कोसो दूर अपने गांव से न्याय मांगने आया वह बुढ़ा व्यक्ति साहब से मिलने के लिए उस रोज सुबह से लेकर शाम तक बैठा हुआ था। पांच बजने के कारण जग्गु दादा उस रोज अपने घर को निकल पड़े थे। उसने जाने से पनले उन दोनो पिता – पुत्री से कहा भी था कि ” साहब दौरे पर गये है हो सकता है देर रात तक लौटे …….”  लेकिन वह उसकी कही बातो को अनसुना करके साहब के बंगले के सामने बने आफिस में बड़े बाबू के पास बैठा रहा। बड़े बाबू अकसर देर रात तक आफिस में काम करने के लिए रूके रहते थे। इसलिए जग्गु दादा ने उन दोनो को बडे बाबू के हवाले करके वह अपने घर की ओर चला गया। आज कई दिनो बाद उस व्यक्ति को काली अमावस्या की रात में वह भी बंगले के मालगोदाम से बाहर निकलता देख जग्गू दादा को अजीबो – गरीब लगा। उस बुढ़े व्यक्ति को पास आने पर दादा ने पुछा कि ” बाबा तुम यहां पर कब आये…….? ” आने की बाम सुन कर वह खिलखिला कर हस पड़ा। उसकी हसी जग्गू दादा के लिए जानलेवा साबित हो जाती लेकिन दादा ने हिम्मत नहीं हारी। दादा को कड़ाके की ठंड में पसीने से नहाता देख कर वह बुढ़ा बोला ” तुम्हारे मना करने के बाद भी यहां पर रूका रहा न्याय पाने के लिए , लेकिन मुझे क्या मालूम था कि यहां पर भी मेरे साथ अन्याय ही होगा……” जग्गू दादा उससे कुछ और पुछता वह खुद ही बताने लगा कि ” उस रोज जब साहब देर शाम तक नहीं आये तो बड़े बाबू ने मुझे बड़े साहब के बंगले ले गया। मैं वहां पर पौन्रे बारह बजे तक अपनी जवान बेटी के साथ बाबू जी के साथ रूका रहा। दिन भर का भूखा – प्यासा थका हारा मैं न लाने कब वही दिवार के सहारे सर रख कर सो गया। मेरी नींद तब खुली जब बंद कमरे से मेरी फुलवा के चीखने – चिल्लाने की आवाजे आने लगी। मैने खुब जतन कर डाले लेकिन मैं दरवाजो को जब नहीं खुलवा सका तो मैने पास की कुल्हाड़ी उठा कर दरावाजे को काट डालना चाहा लेकिन पीछे से किसी ने मेरे सिर पर लाठी दे मारी जिसके चलते मैं धड़ाम से ऐसे गिरा की फिर दुबारा उठ नहीं सका। उस काली अमावस्या की रात को बड़े बाबू ने मुझे मालगोदाम में ऐसे छुपा रखा कि मेरा पूरा शरीर तार – तार हो गया। पूरी रात बड़े साहब ने मेरी फुलवा को कबर बिज्जू की तरह नोंच -नोंच कर खा लिया। आज भी मैं उस काली अमावस्य की रात मेे मेरी फुलवा को पूरे बंगले भर में खोजता फिर रहा हूं……… न जाने ऐसी किस कोने में मेरी फुलवा छुपा दी गई है कि वह मुझे बीते दो सालो से नहीं मिल रही है। ” जग्गू दादा को अचानक वह बात याद आ गई जब वह दो दिन की छुटट्ी से वापस लौटा तो पता चला था कि साहब पिछले शनिवार से जो गये है तो अभी तक वापस नहीं लौटे। जब आये तो मैने उन्हे चाय की प्याली दी और यूं ही पुछ लिया था कि ”साहब उस रोज फिर कितने बजे आना हुआ……? क्या वे दोनो बाप – बेटी आपसे मिले …..? साहब क्या आपने उनको न्याय दिलवा दिया…..?  ” जग्गु दादा को अब समझ में आने लगा कि साहब ने क्यों उसके मुँह पर चाय की प्याली फेक कर मारी थी। अपनी सर्विस के पूरे तीस – बत्तीस साल काटने के बाद पहली बार जग्गु दादा को किसी अफसर ने इस तरह से जलील किया था। इस सदमें मे वह ऐसा बीमार पड़ा कि उसे ठीक होने में पूरे आठ महिने से ज्यादा का समय लग गया। इस बीच बड़े बाबू एक दो बार हाल – चाल जानने के लिए आये लेकिन बड़े साहब नज़रे चुराने लगे थे। जब जग्गू दादा डुयूटी पर आये भी थे तो साहब ने उसे अपने से दूर ही रखा। अब उसके पास साहब की सेवा चाकरी के बदले दुसरे अन्य कामकाज आ गये थे। उस रोज साहब की हरकत पर मैने सोचा था कि काम के टेंशन की वज़ह से शयद साहब दुसरे का गुस्सा मेरे ऊपर ही निकाल दिये। अब सारा माजरा खुल जाने के बाद जग्गु दादा ने साहब को अपने मुंह पर गरम चाय की प्याली फेकने का बदला चुकाने का मौका आ गया था। वह विचारो में इतना खो गया कि वह अनजान व्यक्ति एक बार फिर वहां से गधे के सिंग की तरह आंखो से ओझल हो चुका था। जग्गू दादा को अब पता चल चुका था कि बड़े बाबू पर साहब की इतनी मेहरबानी क्यों है। साहब की गैर हाजरी में बडे बाबू साहब की आड़ में कैसे पैसे कमाने लगे है। जग्गु दादा के विचारो को उस समय विराम लग गया जब उन्होने सामने से एक सफेद साड़ी में लिपटी युवती को अपने करीब आते देखा। पास आते ही वह युवती जग्गु दादा को देख कर खिल खिला कर हस पड़ी। करीब आई उस युवती को देख कर दादा को लकवा मार गया। अचानक दादा के मुँह से आवाज आई ” अरे बाप रे यह तो वही युवती है जो उस रोज बड़े साहब के बंगले पर उस बुढ़े व्यक्ति के साथ आई थी। गांव के दबंगो के हाथो अपनी अस्मत को तार – तार करवा कर न्याय के लिए फटेहाल कपड़ो में आई उस युवती को सफेद साड़ी में देखते ही दादा के मन में तरह – तरह के सवालो ने उथल – पुथल मचाना शुरू कर दी। दादा को अचानक कुछ साल पहले की वह घटना याद आ गई जब वह अपने पिता के साथ बड़े साहब से मिलने के लिए आई थी। सुबह से शाम हो जाने तक जब बड़े साहब नहीं आये तो वह बेचारी मिलने के लिए शाम तक रूकी रही। उसके बाद क्या हुआ उसका पता उसे अभी कुछ देर पहले ही पता लगा था। उस घटना के बाद तो दादा की तबीयत खराब हो गई और वह लम्बे समय तक बिस्तर पर पड़ा रहा। आज अमावस्या की काली रात में पहले पिता को और बाद में इस युवती को अकेले साहब के बंगले के परिसर से बाहर निकलते देख दादा को कपकंपी छुटने लगी। ठंड के महीने में पसीने से लथपथ दादा की हालत देख कर वह युवती जैसे ही खिलखिला कर हसी तो आसपास का पूरा माहौल तरह – तरह की चीखो से गुंज गया। जग्गू दादा ने अपनी पूरी उम्र में पहली बार किसी सोलह साल की युवती को सफेद कपड़ो में लिपटी हुई देखा था। लम्बे -चौड़े क्षेत्रफल में बने साहब के बंगले में साहब पहले तो अकेले ही रहते थे उस रोज के बाद से साहब एक भी रात को इस बंगले में नहीं रूके। साहब अकसर सरकारी बंगले को छोड़ कर आसपास के सर्किट हाऊस – सरकारी डाक बंगले में रूक जाते थे। अपनी आयु और सर्विस के रिटायरमेंट की कगार पर आ खड़े बड़े साहब की अपनी बीबी और बच्चो से कभी भी पटरी नहीं बैठी। साहब का कई बार अपने बेटो और बीबी ने झगड़ा मारापीटी तक जा चुका था। बड़े लोगो के बड़े चौचले समझ कर दादा ने उन पुरानी बातो को अपने दिमागी पटल से कब का भूल चुके थे। काका को आज इस युवती के अस्त – व्यस्त हालत में कपड़ो के बाद दादा  को देख कर वह युवती बोली ”दादा क्यों परेशान हो रहे हो …….? मैं  तुम्हारा कुछ नहीं करूंगी…….. , लेकिन दादा देख लेना एक न एक दिन तेरे बड़े साहब का मैं वो हाल करूंगी कि वह फिर किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचेगा। उस कबर बिज्जू को मैं ऐसी मौत मारूंगी कि उसकी आने वाली सात पुश्ते भी कांप उठेगी। उस कबर बिज्जू को मैं ऐसी सजा दंूगी कि उसकी पीढ़ी में कोई मर्द या औरत पैदा नहीं होगी…… सब के सब हिजड़े पैदा होंगे वे भी दुसरे के दंभ पर ……..” उस युवती की इस तरह श्राप देते देख कर जग्गु दादा गश्त मार कर ऐसे गिरे की फिर उठ नहीं सके। रहस्यमय बनी जग्गु दादा की मौत पर से आज तक पर्दा नहीं उठ सका लेकिन कल शाम जब बंगले में बड़े साहब की टुकड़ो में मिली लाश के बाद समझ में नहीं आ रहा था कि इस प्रकार के प्रतिशोध के पीछे किसी का क्या हाथ होगा। साहब के बेमौत मरने की $खबर सुनने के बाद बड़े बाबू ने भी फांसी लगा ली। मरने से पहले बड़े बाबू ने अपने पुराने गुनाहो को उजागर करते हुये फुलवा की मौत पर से पर्दा हटा कर वह सब बता डाला जो कि बंगले में अकसर होता रहता था। आज भी उस बंगले से सड़क के किनारे के पीपल के पेड़ तक उस सफेद साड़ी में लिपटी युवती के मिलने की कहानी सुनने को मिलती है। जब मैं इस काहनी को लिख रहा था तो मुझे बरबस वह पीपल का पेड़ और सामने बड़े साहब का बंगला और उस कबर बिज्जू की मौत की कहानी घुमने लगी। कहानी को शब्दो में पिरो पाता इस बीच कोई न कोई आ टपकता और कहानी आधी – अधुरी रह जाती। इस बार मैने पूरे मन को स्थिर कर उस कहानी को पूरा करने का मन बना निया था जो किसी इंसान रूपी वासना के कबर बिज्जू से जुड़ी थी जो अपनी बेटी की उम्र की युवती को नोंच – नोंच कर खा चुका था। आज जब कहानी पूरी बन गई तो मन को शांती मिली लेकिन जब आंखे खुली तो मैने देखा कि कहानी के पीछे एक युवती की छाया उभर रही थी। फटेहाल में दिखने वाली वह देहाती युवती मुझसे कुछ कहना चाहती थी। मैं उसकी बातों को शब्दो में पिरो पाता इस बीच श्रीमति ने आकर मुझे झकझोर कर दिया कि ”चलिए तो अपने घर के पीछे बड़ा ही खतरनाक कबर बिज्जू निकला है , जल्दी चलो आकर देख लो…… ” अब मैं उसे कैसे बताऊ कि मैने जिस कबर बिज्जू को देखा है उससे खतरनाक कोई दुसरा भी कबर बिज्जू हो सकता है।
इति,
नोट :- प्रस्तुत कहानी के पात्रो एवं स्थानो का किसी से कोई लेना – देना नहीं है। यदि घटना और पात्र किसी से मिल भी गये तो इसे संयोग ही माने

”ज्योति आइ लव यू ”
रामकिशोर पंवार ” रोंढ़ावाला ”
आज के इस प्रेम दिवस पर यूं तो कई लोग अपने – अपने विचारो को शब्दो में पिरोने का काम करेगें। मेरे अपने जीवन में प्यार के कई अर्थ और अनर्थ निकले है। मैने जिससे भी प्यार किया उसी ने मुझे दगा दिया। मुझे वह दर्द भरा गीत काफी मन को कुदेरने वाला लगता है जिसमें स्वर्गीय मुकेश के स्वर कुछ इस प्रकार थे कि ”वफा जिनसे की वे बेवफा हो गए , ओ वादे के कहा खो गए …..” मैं स्वर्गीय मुकेश को प्रेम के लिए तरसते दिल के दर्द का प्रतीक मानता हूं क्योकि स्वर्गीय मुकेश के गीत कुछ इस प्रकार थे कि ” आज तुमसे दूर होकर ऐसा रोया मेरा प्यार ….. ” प्यार यदि रोता है तो उससे निकलने वाली पीड़ा भी कम कुछ नहीं होती। प्यार वे क्या जाने जो ” ढाई अक्षर प्रेम का ” भी नहीं समझ पाते है। मैं देखा है कि लोगो को किसी से भी किसी को प्यार होता देख कर मिर्ची लग जाती है। लोग किसी को प्रेम करते देखना पसंद नहीं करते है। मेरे साथ तो अकसर यही होता रहा है कि मैंने जिससे भी प्रेम किया उससे मुझे चोट ही मिली। प्रेम के मामले में मैं अपनी कहानी ” अजब प्रेम की गजब कहानी  ”से जोड़ कर देख लेता हूं। लोग अकसर यह गीत गुनगुनाया है कि  ” सौ साल पहले हमें तुमसे प्यार था आज भी है और कल भी रहेगा…… ”  मैं इस गीत को सुनने के बाद उक्त गीत काफी मजाकिया लगता है। सौ साल पहले का प्यार आज भी रहे सरासर आसमान मे सुराख करने जैसा है क्योकि हर मिनट तो इस इंटरनेट के युग में प्रेमी और प्रेमिका बदलते रहते है ऐसे में सौ सेकण्ड का कोई भरोसा नहीं कि फेस बुक पर आई प्रेयसी फेस टू फेस होने पर कहीं इंकार न कर दे। प्रेम में लोगो को क्या कुछ मिला मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझसे सिर्फ बेवफाई ही मिली। मैं तो कई बार इस ” ढाई अक्षर के प्रेम के चक्कर में ” घनचक्कर तक बना हंू। लोगो ने आज नहीं बरसो पहले भी भड़ास डाट काम की तरह मेरे से भड़ास निकाली थी। मुझे अपने छात्र जीवन में अपने कथित प्रेम के वलते स्कूल तक से निकलना पड़ा सिर्फ इसलिए कि मैं चाहता था किसी और को और कोई और चाहती थी मुझे ……. किसी दिल जले ने शार्टशर्किट करके मुझे प्रेम का ऐसा करंट लगाया कि मैं आज भी प्रेम के नाम पर झटका खा जाता हंू। प्रेम का मतलब आप कहीं प्रेम उइके या प्रेम कुमारी से मत जोड़ लेना नहीं तो मुझे जबरन एक और झुठे मुकदमें के लिए लम्बी छुटट्ी पर जाना पड़ सकता है। आज कल तो प्रेम जात पात से ऊपर हट कर उसकी औकात को देख कर करना चाहिए क्योकि प्रेक के चक्कर बहुंत बुरे नज़र आने लगे है। मैं अपने अजब – प्रेम की गजब कहानी के कुछ पन्नो को आज के इस प्रेम दिवस पर इसलिए खोलना चाहता हंू कि लोगो को पता चल सके कि प्रेम का चक्कर कितना बुरा होता है लेकिन उससे कई गुणा बुरा होता है किसी को प्रेम के चलते किसी झुठे षडय़त्र में फंसाना। छात्र जीवन में मुझे अपनी स्वजाति लड़की से कथित प्यार जरूर हुआ था लेकिन उसमें कहीं भी आज के दौर का उस दौर का प्यार नहीं था। स्वजाति होने की वज़ह से हुए लगाव और एक साथ एक ही छत के नीचे आगे – पीछे बैठने के चलते हुई जलन ने मुझे जो दाग दिया उसे मैं आज तक धो नहीं पा रहा हंू। उस एक तरफा कहूं या दो तरफा प्यार जिसका खामियाजा मैं और मेरा एक अजीज दोस्त ने जो भोगा था वह भुलाया नहीं जा सकता। शाला प्राचार्य स्कूली कुछ छात्र – छात्राओं के हम दोनो स्वजाति के प्रति नकरात्मक सोच एवं षडय़ंत्र ने हम दो दोस्तो का स्कूल से नाम ही नहीं कटवाया बल्कि उस हसमुख चेहरे वाली आज की एश्वर्या हमशक्ल मेरी अपनी स्वजाति लड़की को बदनाम भी कर डाला। उस हादसे के बाद मेरा दोस्त कोयला खदान का मजदूर बन गया और मैं कलम का …… न तो वह मुझसे मिला और न मैं उससे मिला। दोनो ने कभी एक दुसरे से मिल कर कह भी नहीं पाए कि ” ए क्या हुआ….?   क्यों हुआ  ….? कैसे हुआ……? किसने किया ……? और क्यों किया……? इस तरह के कई सवाल आज तक मेरे दिलो दिमाग में भूचाल मचाता है कि मैं ”न तो उसे प्रेम पत्र लिख और न उससे नाराज होने को कहा……  ” अचानक वह सिर्फ इस बात को लेकर मुझसे नाराज हुई कि मैं उसे प्रेम पत्र लिख डाला …..? या उसे किसी ने मेरे नाम से प्रेम पत्र लिख कर बदनाम कर डाला…..? आज तक मैं इस उलझन भरी पहेली को समझ नहीं सका हंू कि मामला क्या था……? वास्तव में पुछा जा तो मुझे स्कूल से निकाले जाने का आज तक दुख नहीं है लेकिन दुख इस बात का जरूर रहेगा कि मेरे कारण मेरे दोस्त को स्कूल से निकलना पड़ा। मैं उस अनसुलझी पहेली को एक बार फिर प्रेम दिवस पर याद करने की कोशिस कर रहा हंू कि मैं अपने छात्र जीवन मे अपनी ही स्वजाति लड़की से कभी भी यह तक नहीं कहा कि ”ज्योति आइ लव यू ” और आज भी दो बच्चो का पिता होने के बाद भी यही शब्द अपनी पत्नि से भी नहीं कह पाता हंू क्योकि अब हमारे बच्चे भी जवानी की दहलीज पर पांव रखने लगे है। जिसे मैं आई लव यू नहीं कह सका उसे मैने कैसे प्रेम पत्र लिख दिया होगा….? यह पहेली मेरे लिए आज भी अनसुलझी है। मैं आज भी जब हम दोनो का घर संसार अलग – अलग बस जाने के बाद भी उस एश्वर्या की ओरीजनल कापी से आज भी नज़रे तक नहीं मिला पा रहा हूं आखिर वह मेरे बारे में क्या सोचती होगी….? मेरे दिल के किसी कोने में ज्योति के प्रति प्रेम की धड़कन धड़कती होगी लेकिन जमाने के डर से आज ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है लेकिन ज्योति आइ लव यू नहीं कह पाया हंू। मेरा आज भी बीती बातों को याद करके उन जख्मों को हरा करने का कोई विचार नहीं है। मैं तो अपनी उस स्वजाति ज्योति से यह कहना चाहता हू कि ” चांद को क्या मालूम  चाहता है उसको ए चकोर ” प्रेम प्रतीक है दिल की भावनाओं का और उन धड़कनो का जो अपनो के प्रति धड़कती रहती है। आज जिदंगी के इस मुकाम पर जब हम दोनो के बच्चों के प्रेम प्रसंग करने के दिन आ गए ऐसे में पुरानी बातों को याद करने से होता तो कुछ नहीं पर ” भूली हुई यादें  मुझे इतना न सताओं …….”  मैं आज के इस अंतराष्ट्रीय प्रेम दिवस पर अपनी स्वजाति प्रियतमा तो नहीं कह सकता है पर एक अच्दी मित्र नहीं बन सकी ज्योति को यह लेख समर्पित करता हूं कुछ इस अंदाज में कि ” तुम यू मुझे न भूला पाओंगें , जब भी सुनोगें गीत मेरे संग – संग तुम भी गुनगुनाओगें……. ” प्रेम एक लगन है जो कि राधा को श्रीकृष्ण से और मीरा को घनश्याम से जोड़ रखी थी। प्रेम एक अभिलाषा है उस पुष्प की तरह जो कि कुछ इस प्रकार कहता है कि ” चाह नहीं मैं मधुबाला के गहनो में गुथा जाऊं…… ” प्रेम एक उन्माद है जो कि राम के रूप को देख कर रावण की बहन सुर्पनाखा के मन में जागा था जिसने राम को पति के रूप में पाने के लिए अपनी नाक तक कटवा डाली। प्रेम एक बेला है जिसके सहारे गोस्वामी तुलसीदास अपनी पत्नि रत्नावली के पास पहुंचने के लिए सर्प को ही बेला समझ कर उसके सहारे उस तक पहुंच गए थे लेकिन रत्नावली को तुलसी का प्रेम – समर्पण समझ में नहीं आया और उसने अपने प्रेम में अंधे पति को वह फटकार लगाई कि वे तुलसीदास बन गए। जीवन के परिर्वतन में भी प्रेम का बहुंत बड़ा रोल रहता है कई बार प्रेम के वश में लोगो का जीवन चक्र तक बदल जाता है। प्रेम चाहे   सलीम को हो या फिर लैला मजनू का या फिर हीर रांझा का प्रेम और प्यार दोनो ने ही दिल के बदले दर्द दिया है। किसी ने कहा भी है कि प्रेम और प्यार यदि ढाई अक्षर का है तो दर्द भी तो ढाई अक्षर का है लेकिन दर्द सहा नहीं जा सकता। प्यार के बारे में कई शायरो ने कुछ इस प्रकार भी कहा है कि ” प्यार और दिलदार नसीब वालो को मिलता है ”  आज के दौर में प्यार का रूप परिवर्तित होता जा रहा है। प्यार में समपर्ण कम स्वार्थपन और कमीनापन ज्यादा भरा हुआ है। प्यार में जिस – जिस ने भी धोखा खाया है उसने बस ही गीत गाया है कि ”वफा जिनसे की वे बेवफा हो गए , वो वादे मोहब्बत के न जाने कहां खो गए ….” एक तरफ तो यह भी कहा जाता है कि ” यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए , प्यार चाहिए कि पैसा चाहिए…… ” आज के समय दिलदार को सिर्फ पैसे की भूख है क्योकि उसे पता है कि पैसा रहेगा पास तो फिर मंदाकिनी के भी मिलने की रहेगी आस……. पैसा प्यार और इनसे पैदा हुई विकृत मानसिकता की वासना ने आज प्यार की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। मेरा ऐसा मानना है कि ” जिदंगी की न टूटे लड़ी , प्यार कर ले घड़ी – दो घड़ी…… ” वैसे कुछ लोग तो यहां तक कहते है कि ”प्यार करने वाले जीते है शान से मरते है शान से…..  ”  लेकिन मैं यह मानता हंू कि ” प्यार करने वाले न तो जी पाते है शान से और न मर पाते है जान से .. ”  अब मैं अपनी बकवास को यही समाप्त करता हूं। सभी को प्रेम दिवस पर अच्छी और अच्छा मनपसंद प्रेम करने वाला चकोर मिले बस यही कामना के साथ ……..

मनरेगा में इतना भ्रष्ट्राचार की सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध
अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को हो जाएगी हाईपरटेंशन की बीमारी
बैतूल,रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में रोज सामने आ रही मनरेगा के कार्यो की गुणवत्ता एवं भ्रष्ट्राचार की शिकवा शिकायतों की यदि सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक जांच शुरू करेगी तो उन्हे छै महिने के बदले छै दिनो में ही हाईपरटेंशन की बीमारी हो जाए। सप्ताह में हर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में आने वाली हर दुसरी – तीसरी शिकायते मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर होती हैं। उक्त शिकायतों पर कार्यवाही क्या होती है या क्या हो चुकी हैं इस बात की किसी को पता नहीं लेकिन शिकायतों के बाद पैसे हल्का होने वाला सरपंच – सचिव जब आप खोकर गांव के लोगो को गंदी – गंदी गालियां देते हुए धमकाने लगते हैं तब शायद गांव वाले ही खबर का असर समझ कर फूले नहीं समाते हैं। मनरेगा को लेकर गांव से जिला मुख्यालय तक शिकायतों की आड़ में होने वाली सौदेबाजी का खेल चलता है। शिकायतों को लेकर गांव वालो के कथित ब्यानो एवं सच का पता लगने वाला मीडिया से लेकर जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी तक गांव तक पहुंचने के बाद मैनेज हो जाता हैं और गांव का गरीब जाबकार्ड धारक बार – बार जेब का पैसा खर्च करके जिला कलैक्टर से यह तक सवाल नहीं कर पाता हैं कि उसकी शिकायतें पर कोई सुनवाई क्यों नहीं हुई। आज यही कारण हैं कि गांव में भी ब्लेकमेलरो की दिन प्रतिदिन संख्या में इजाफा होते जा रहा हैं। गांव में ही सरपंच एवं सचिवो को पहले चरण में कथित शिकायतों को लेकर ब्लेकमेल करने के बाद सौपा न पटने की स्थिति में शिकायत करता स्वंय के रूपए – पैसे खर्च करके गांव वालों की भीड़ मंगलवार की जन सुनवाई में लाने से लेकर मीडिया तक को मैनजे करके मनरेगा के कार्यो को लेकर पेपरबाजी करवाता हैं। जितनी ज्यादा पेपरबाजी होती हैं उसके हिसाब से ब्लेकमेलर एवं सरपंच – सचिव के बीच सौदेबाजी होती हैं। कई बार तो दलाली के काम में जनपद के मुख्यकार्यपालन अधिकारी से लेकर राजनैतिक पार्टी के जनप्रतिनिधि तक अहम भूमिका निभाते हैं। आज का पंचायती राज कुल मिला कर रेवड़ी बन गया है जिसे हर कोई बाट का छीन कर खाना चाहता हैं। एक सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार बैतूल जिले में 6 जनवरी दिन मंगलवार वर्ष 2009 के बाद आज दिनांक तक हर मंगलवार याने दो साल पौने दो माह में लगभग 104  मंगलवार को लगे बैतूल जिले के जनसुनवाई शिविर में कुल तीस हजार पांच चालिस शिकायते दर्ज हुई है जिसमें से सोलह हजार नौ सौ तीस शिकायते बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के गांवो से मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर आई है। प्रशासन के पास $खबर लिखे जाने तक इस बात की कोई भी जानकारी नहीं है कि कितनी शिकायतों का निराकरण हो चुका हैं। मनरेगा के कार्यो की जांच एवं भुगतान को लेकर की गई शिकायतों की न तो जांच रिर्पोट लगी हैं और भुगतान पाने वालों के भुगतान मिलने सबंधी को प्रमाणिक दस्तावेज जिसके चलते कई शिकवा – शिकायते तो लगातार होने के बाद भी मनरेगा का भुगतान न तो हो सका हैं और न इन प्रकरणों की जांच हो सकी हैं। जिला प्रशासन द्वारा सीधे तौर पर मनरेगा के कार्यो की शिकवा शिकायतों की जांच सबंधित विभाग या फिर शाखा को भेज दी जाती हैं। उक्त विभाग या शाखा द्वारा जिला प्रशासन को इस बात की कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं भेजी जाती हैं कि शिकायत यदि सहीं हैं उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई हैं। वैसे देखा जाए तो 2 लाख 48 जाबकार्ड धारक है। जिसमें 1 लाख 78 हजार जाबकार्ड धारक परिवारों के एक सदस्य को एक साल में सौ दिन का रोजगार देने के प्रावधान हैं। जिले में जाबकार्ड धारको को हर बार भुगतान को लेकर प्रशासन की ओर से कई पहल की गई लेकिन हर बार शिकवा – शिकायते सुनने को मिली हैं। इस बार बैतूल जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा चलित मोबाइल बैंक की शुरूआज एच डी एफ सी बैंक के माध्यम से की जाने वली हैं। बैतूल जिले में वर्तमान में कुल 80 बैंक है जिनके माध्यम से जाबकार्ड धारको को भुगतान उनके खातों के माध्यम से किया जाता हैं। बैंक के पास वर्कलोड़ की वज़ह से वह मनरेगा के भुगतान कार्यो के प्रति उतनी दिलचस्पी भी नहीं लेती क्योकि बैंको को कोई विशेष लाभ नहीं मिलता हैं। वैसे भी सरकारी बैंको की ऋण देने एवं ब्याज पाने में ज्यादा रूचि रहती हैं। बैतूल जिले में लगातार ग्राम पंचायत स्तर के भ्रष्ट्राचार में कई बार बैंक भी लपेटे में आ चुकी हैं इसलिए बैंको का इस कार्यो के प्रति नकारात्मक रूख रहा हैं। बैंक से भुगतान पाने के लिए गांव से बैंको तक धक्के खाने वाला ग्रामीण आखिर विवश होकर शिकवा – शिकायते करने लगता हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता के अनुसार बैतूल जिले में सेन्ट्रल बैंक के साथ मोबाइल बैंक की एक योजना शुरू की थी लेकिन बैंक ही पीछे हट गई। अब प्रदेश में अनूपपुर की तरह एटीएम से भुगतान की जगह नगद भुगतान के लिए एच डी एफ सी बैंक से एक अनुबंधन किया जा रहा हैं। बैंक को मोबाइल बैंको के लिए जिला पंचायत वाहन तक उपलब्ध करवाने के लिए तैयार हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी भुगतान एवं कार्यो को लेकर होने वाली शिकायतों पर कार्यवाही होने की बाते तो करते है लेकिन उनके पास आकड़े नहीं हैं। श्री गुप्ता का तो यहां तक कहना हैं कि ग्राम पंचायत स्तर तक के कार्यो में भ्रष्ट्राचार के मामले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को भेजे गए है लेकिन उनके नाम उन्हे नहीं मालूम हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो एवं 10 जनपदो में आज तक कोई भी ऐसर रिकार्ड पंजी उपलब्ध नहीं है जिसमें ग्राम पंचायत सबंधी शिकायतों एवं उनके समाधान का जिक्र हो ऐसी स्थिति में बैतूल जिले का ग्राम पंचायती राज अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत पर खरा उतरता हैं।
एक कड़वा सच यह भी हैं कि बैतूल जिले में पदस्थ रहे मुख्यकार्यपालन अधिकारी एवं जिला कलैक्टरों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में कई प्रकरण चल रहे हैं लेकिन खबर लिखे जाने तक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)  द्वारा किसी भी बड़ी मछली को अपने फंदे में नहीं फंसाया जा सका है तब छोटी मछली के फंदे बाहर निकले की संभावना तो बरकरार रहेगी। बैतूल जिले के बारे में कहा जाता हैं कि मध्यप्रदेश का कमाऊपूत जिला हैं जहां पर हर कोई अपना देश है बड़ा विशाल लूटो खाओं है बाप का माल के मूल सिद्धांत पर कार्य कर रहा हैं। बैतूल जिले का पंचायती राज कब सार्थक एवं सफल सिद्ध होगा सयह कह पाना अतित के गर्भ में हैं।

मां मेरा जीवन धन्य हो जाए , यदि आप रामूरथी मां सूर्य ताप्ती कहलाएं
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
धरती पर गंगा को लाने के लिए भागीरथ ऋषि की ग्यारह पीढ़ी को कठीन तप करना पड़ा। अपने पितरो के उद्धार के लिए भागीरथ को गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाना पड़ा। आज गंगा का अनेको नामों में एक नाम भागीरथी गंगा भी हैं। हर नदी के स्वर्ग से धरती पर आने के पीछे कोई न कोई साधु – महात्मा – संत ऋषि – युग पुरूष का नाम आता हैं। चन्द्रपुत्री मां पूर्णा भी राज गय के आमंत्रण पर धरती पर सफेद गाय के रूप में आई थी लेकिन दुग्ध पान के बाद जब सप्त ऋषियों की नीयत डोलने लगी तो मां पूर्णा नदी की धार बन कर बह निकली। इन सबसे हट कर धरती पर सबसे पहली अवतरीत होने वाली नदियों में सर्वश्रेष्ठ मां सूर्यपुत्री ताप्ती हैं जिसका एक नाम आदिगंगा भी हैं। ताप्ती स्वंय अपने पिता के तेज को कम करने एवं जल – जीव – जन्तु- वनस्पति , सहित मनुष्य की प्यास से व्याकुल कंठा को शांत करने के लिए अपने पिता के निर्देश पर आई थी। मां ताप्ती का महात्मा इतना अधिक था कि स्वंय गंगा ने धरती पर आने से मना कर दिया था। बाद में नारद ने ताप्ती महात्म को कम करने के लिए ताप्ती पुराण को विलुप्त कर दिया। इस चोरी के चलते उन्हे नारद टेकड़ी पर बारह वर्षो तक तप करना पड़ा। ताप्ती जन स्थली पर नारद कुण्ड में प्रतिदिन स्नान एवं ध्यान के बाद ही नारद को ताप्ती पुराण चुराने के श्राप के चलते हुई कोढ़ से मुक्ति मिली थी। ताप्ती की तीन धार हैं एक स्वर्ग में एक धरती पर तथा एक पाताल में जिसके कारण मां सूर्यपुत्री ताप्ती पाताल गंगा भी कहलाई जाती हैं। मानव लोक बनने से पूर्व धरती पर आई मां ताप्ती का विलुप्त महात्म को जन – जन तक पहुंचाने के लिए मैं मां सूर्य पुत्री ताप्ती जागृति मंच को एक रथ का रूप देकर उसका सारथी बना बैठा हुआ हूं। मेरी अभिलाषा हैं कि मेरी आरध्य मां सूर्य पुत्री ताप्ती इस रथ पर सवार होकर पूरी दुनिया पर अपनी करूणा एवं अमृत रूपी जल को बरसाने के लिए चले। ममता मयी हे मां आप कृपा कर मेरे प्रचारक रथ पर सवार होने की असीम कृपा करे। मैं आपके रथ को लेकर पूरी दुनिया और तीनो लोको में आपके दिव्य दर्शन एवं आपके जल को तरसते जीव – जन्तु – वनस्पति सहित उन सभी को जो आपके माहत्म को समझने की क्षमता – दक्षता रखते हैं उन्हे आपकी कथा को सुना कर अपने जीवन को सार्थक करना चाहता हँू। हे ममतामयी मां मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझुंगा यदि मैं अपने जीवन का एक अंश भी आपकी कीॢत एवं यश को जन – जन तक पहुंचाने में सफल हो सका। आपके यश को आपके पिता के प्रकाश की तरह चहूं ओर फैलाने की मेरी अभिलाषा को पूरा करने का कृष्ट करे। हे मां अपने इस बालक की अभिलाषाओं को मूर्त रूप देने में कृपा करें। मां आपके नाम के स्मरण से जब जीव जन्तु का जीवन तर – सफल – सार्थक सिद्ध हो जाता हैं तब मां मुझे आपकी ताप्ती कथा का वाचन करने का आर्शिवाद देने की कृपा करे। यदि मुझे हे जीवन दायनी , ममतामयी मां आपका स्नेह एवं प्यार मिला तथा कृपा बनी रही तो हो सकता हैं कि मैं भी आने वाले युगों में मां ताप्ती के महात्म को जन – जन तक पहुंचाने के अपने सुक्ष्म प्रयासों के चलते जाना पहचाना जाऊ। लोग मेरी अराध्य मां सूर्यपुत्री ताप्ती को रामूरथी गंगा कह कर पुकारे जिससे मेरे भी कुलो का भागीरथ की तरह उद्धार हो सके। मां ताप्ती आपके अतुल्य महात्म के प्रचार – प्रसार को जन – जन तक पहुंचाने के पीछे मेरी व्यक्तिगत मंशा बस यही रही हैं कि मां के नाम का रोज स्मरण हो ताकि मुझे भी मां के  नाम का स्मरण करने से गंगा के स्नान एवं मां रेवा के दर्शन के समान पुण्य लाभ मिल सके। मैं लव कुश की तरह तो नहीं पर उसी तर्ज पर मां आपके मानस पुत्र के रूप में कहलाने का सौभाग्य पाकर आपकी महिमा को श्री राम के दरबार की तरह हर घर बार तक पहुंचा सकूं। मां मैं लोगो को बता सकूं कि आपके पावन जल के शरीर को छुने के बाद किसी तरह लोगो के रोग – कृष्ट दूर हो जाते हैं। आपके जल में स्नान करने को तरसते 33 कोटी देवी – देवताओं की कथा लोगो को सुना कर हर माह की हर तीथी को आपके जल में स्नान – ध्यान – पूजा – कर्म – साधना एवं दर्शन का किस प्रकार लाभ एवं पुण्य मिलता हैं यह लोगो को समझा सकूं। जिस कुल में भगवान श्री राम और आपने जन्म लिया हैं उस सूर्यवंशी की महिमा की कथा लोगो को सुनाने के पीछे मेरी मंशा हैं कि दुनिया जान सके कि हमारे देश में नदियों को देवी के रूप में क्यों पूजा जाता रहा हैं। आपकी कथा और आपके भाईयों विशेषकर न्याय के देवता शनिदेव एवं दानवीर कर्ण की कथा भी आपके संग – संग सुनाने से लोगो को आपके पितृवंश का ज्ञान हो सके। मां मैं यह भी चाहता हंू कि आपकी और चन्द्र वंश के महान प्रताप राजी सवरण के संग आपके विवाह एवं आपके पुत्र महराजा कुरू के द्वारा स्थापित कुरूवंश का भी लोगो को ज्ञान मिल सके। मां लोग जान सके कि आपके तट कि किनारे शिव लिंगो की स्थापना के पीछे की कथा क्या हैं। लोग दुनिया एक मात्र एक ही स्थान पर स्थापित बारह ज्योर्तिलिंगों की अमरकथा का भी श्रवण कर आनंद ले सके। मां आपके किनारे किन – किन महात्माओं ने जप – तप किया हैं उसका भी लोगो का ज्ञान हो सके। आपके  पावन जल में किस प्रकार का चमत्कार हैं यह दुनिया जा सके ऐसी मैं कामना करता हूं। मां आज के आपके  महात्म में एक सत्य घटना को भी जोडऩा चाहता हूं जो मुझे गंज के जगदीश नामक गुजराती काका ने अपनी ने बताई थी। बैतूल गंज में एक होटल का संचालक जैन परिवार में जन्मा जगदीश गुजराती काका ने बताया कि वर्ष 1970 के दशक में चिचोली के सिद्ध महात्मा संत परम पूज्य तपश्री बाबा ताप्ती जी के खेड़ी घाट पर भण्डारा करवा रहे थे। भण्डारे के लिए पूरियां तलने का काम जगदीश काका कर रहे थे अचानक तेल कम पड़ गया। तपश्री बाबा ने कहा कि जाओं तेल का टीन लेकर ताप्ती माई से उधार चार – चार टीन तेल लेकर आ जाओं। काका बाबा के कहे अनुसार चार टीन ताप्ती जी का जल भर के ले आया और खौलती कढ़ाई में जैसी ताप्ती माई का पावन जल पड़ा पूरिया तलने लगी। दुसरे दिन उसे बाबा ने याद दिलाया कि वह ताप्ती माई से कुछ सामान उधार लाया हैं उसे वापस करके आ और मैं चार टीन तेल मां के पावन जल में छोडऩे लगा तो बैतूल के कई लोगो ने मेरी शिकायत पूज्य तपश्री बाबा से की तो वे हस कर बोले गलत क्या हैं उसने किसी से उधार सामान लाया था वह वापस लौटा रहा हैं। जगदीश काका मां ताप्ती के पावन जल का चमत्कार बताते – बताते  आत्मा से भाव विभोर हो जाते हैं। उनके नेत्रों से जल बहने लगता हैं। जगदीश काका कहते हैं कि मां का इससे बड़ा चमत्कार और क्या होगा। जगदीश काका जैसे सैकड़ो – हजारो – लाखो मां ताप्ती के भक्त होगें जो किसी न किसी चमत्कार की कथा को अपने दिल के किसी कोने में छुपा रखे हैं। वक्त और सत्संग आने पर कोइ न कोई मां ताप्ती का भक्त उनके चमत्कार की कथा लोगो को सुनाने से नहीं चुकता हैं। मैं हमेशा मां से बस यही कामना करता हूं कि हे मां जन्म से लेकर मृत्यु तक के सारे संस्कार आपके पावन जल में ही हो। मैं किसी नाले या गटर के किनारे जल कर भस्म होने दफन होने को कतई तैयार नहीं हूं। मां मेरी शरीर की हर हडड्ी और जल कर बनी राख आपके पावन में  समाहित होकर तृत्त होना चाहती हैं। मेरा बचपन आपके आंचल मुलताई में बीता हैं ऐसे में मां मैं चाहता हूं कि जीवन का अंतिम दौर भी आपके महात्म को जन – जन तक पहुंचाने में गुजरे और जीवन की आखरी सांस लेते समय में मेरी जुबान पर सिर्फ आपका ही नाम हो।

सुर्खियों में बन गया परिवार नियोजन का लक्ष्य
चाहो तो हमारी टीवी और नई नवेली बीबी देने की लगी होड़
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में परिवार नियोजन का 70 प्रतिशत लक्ष्य पूरा करने में कर्मचारियों को अब पसीना छूटने लगा है जबकि शासन की ओर से उन्हे बतौर इनाम में रंगीन टीवी का भी लालच दिया गया है। लक्ष्य पूर्ति के लिए अपने को मिलने वाले रंगीन टीवी को भी लोग देने को तैयार है यदि कोई उनकी मदद करे। पहले कर्मचारियों को रंगीन टीवी विभाग की ओर से दिया जाला है लेकिन अब उन लोगो द्वारा गांव के नवयुवको को नई नवेली बीबी और रंगीन टीवी का आफर फासना पड़ रहा हैं। कुछ गांवों में तो ऐसे भी प्रसंग सुनने को मिल रहे हैं कि लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुंवारों की नसबंदी की जा रही हैं। आमला तहसील मुख्यालय में एक कुंवारे युवक की नसबंदी की स्याही अभी सुख भी नहीं पाई हैं। जहां एक ओर ऐसे बदनामी के दौर में खासकर ऐसे आदिवासी युवको की जिन्हे रूपए – पैसे की जरूरत हैं तथा किन्ही कारणो से अविवाहीत भी है ऐसे गांव के युवको को कहा जा रहा हैं कि उन्हे अच्छी सुंदर बीबी भी दिलवा देगें यदि वे नसबंदी करवाते हैं। गांव के युवको को अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह भी समझाने का प्रयास किया जा रहा हैं कि उनकी शादी हो जाने के बाद उनकी सेहत एवं सेक्स क्षमता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा वे जब चाहे तब उस नसबंदी को पुन: जुड़वा भी सकते हैं। वही दुसरी ओर आदिवासी परिवार की कुंवारी लड़कियों के परिवार जनो को इस बात के लिए तैयार किया जा रहा हैं कि वे उनकी लड़की का मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत नि:शुल्क विवाह के अलावा उनके लिए दान -दहेज की भी व्यवस्था करवा देगें। किसी भी तरह से लोभ – लालच में आकर ग्राम पंचायत के सरपंच , सचिव से लेकर फील्ड वर्क कर रहे शासकीय कर्मचारियों को नौकरी बचाने के लिए कुंवारे और बुढ़े बुर्जग तक को मोहरा बनाया जा रहा हैं। गांवो में जहां उन्हें लोगों की खरी-खोटी सुनना पड़ रही हैं, वहीं अपनों की रूसवाई ने उनका मनोबल तोड़ कर रख दिया है। ऊपर से वेतन रोके जाने से कर्मचारियों की हालत और भी दयनीय हो गई है। ऐसे में भयाक्रांत शासकीय कर्मचारियों को शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करना भी किसी मुसीबत से कम नजर नहीं आ रहा है। हम दो हमारे दो के स्लोगन ने शासकीय कर्मचारी को कहीं का नहीं छोड़ा हैं। परिवार नियोजन के कार्य में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों को स्वास्थ्य विभाग से लेकर सभी शासकीय विभाग जिसमें ग्राम पंचायत , स्कूली शिक्षा विभाग , महिला बाल विकास विभाग सजा की धमकी देने से भी नहीं चूक रहा है। जिले भर के शासकीय विभगो के प्रमुखो को जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए निर्देशो में शासन की मंशा का ख्याल रखने को कहा हैं। अभी हाल ही में स्वास्थ विभाग द्वारा परिवार नियोजन कार्य में 70 प्रतिशत से कम लक्ष्य हासिल करने वाले आधा सैकड़ा कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया है। साथ ही यह निर्देश दिए गए है कि यदि वे 70 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य पूर्ण नहीं करते हैं तो उन्हें वेतन नहीं दिया जाएगा। इस साल परिवार नियोजन कार्य को स्वास्थ्य विभाग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा गया है। यही कारण है कि इस कार्य की हर माह समीक्षा भी की जा रही है। फरवरी माह की समीक्षा जल्द की जाना है। यदि समीक्षा के दौरान किसी कर्मचारी की उपलब्घि कम पाई जाती है तो उसके खिलाफ दो वेतन रोकने की कार्रवाई भी विभाग द्वारा सुनिश्चित की गई है। साथ ही कठोर कार्रवाई की बात भी कही जा रही है। नसबंदी कार्यक्रम के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग को 16 हजार 300 का लक्ष्य निर्घारित किया गया है। जिसके तहत अभी तक 13 हजार 52 नसबंदी ऑपरेशन किए जा चुके है। लक्ष्य हासिल करने के लिए विभाग द्वारा आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहित पंच एवं सचिवों की भी मदद ली जा रही है। वहीं कार्य में शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने हितग्राहियों के लिए इनाम भी रखा गया है। नसबंदी कार्यक्रम में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों का वेतन रोका गया है। यदि वे 70 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य हासिल कर लेते हैं तो उन्हें वेतन दे दिया जाएगा।

प्रदेश में दूरवर्ती शिक्षा की दशा खराब
बैतूल,रामकिशोर पंवार: महात्मा गाँधी चित्रकुट ग्रामोदय विश्वविद्यालय जिला सतना मध्यप्रदेश द्वारा संचालित के दूरवर्ती शिक्षा पाठयक्रम के छात्र परेशानी में पड़ गए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने वर्ष 2010 का परीक्षा परिणाम घोषित किए बिना ही वर्ष 2011 का परीक्षा कार्यक्रम को घोषित कर दिया हैं। विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन प्रस्तुत करने की अंतिम तारीख 25 फरवरी नियत कर दी गई थी। विलम्ब शुल्क के साथ आवेदन पत्र 15 मार्च तक विश्वविद्यालय पहुँच जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात भारी भरकम विलम्ब शुल्क 5000रू नियत किया गया हैं। विश्वविद्यालय ने कुछ पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क में बढ़ोत्तरी भी कर दी हैं। इसके साथ ही छात्रों के लिए व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए भारी कीमत अदाकरनी पड़ रही हैं। समाज के कमजोर वर्ग के लिए सरकारी विश्वविद्यालय के दूरवर्ती पाठ्क्रम सफेद हाथी साबित हो सकते हैं। अगर विश्वविद्यालय कम दरों पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था नही कर पाता हैं तो दूवर्ती शिक्षा प्रदान करने का उसका सामाजिक लक्ष्य ही समाप्त हो जाता हैं। विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की तुलना में बहुत ही ज्यादा हैं जबकि अध्ययन सामग्री की गुणवत्ता सवालों के दायरें में मालूम पड़ती हैं। अनुसूचित जाति जनजाति छात्र संगठन के अध्यक्ष भोजराम टिलरे सवाल करते हैं कि बीए प्रथम वर्ष की परीक्षा परिणाम को जाने बिना ही आगामी परीक्षा के लिए आवेदन आखिर कैसे किया जा सकता हैं? पुर्नगणना और पुर्नमूल्यांकन के लिए भी तो समयबद्ध कार्यक्रम होनी चाहिए। छात्र  माँग करते हैं कि वर्ष दो में बार परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए। अध्ययन सामग्री छात्रों के पोस्टल पते पर पहुँचानी चाहिए। अनुसूचित वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जानी चाहिए। परीक्षा परीणाम घोषित किए जाने के बाद ही नया परीक्षा कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाना चाहिए पर ऐसा न होने से शासन की मंशा का पलीता हो रहा हैं।

अब पुलिस वाले भी करने लगे इनाम से परहेज
बैतूल, रामकिशोर पंवार: सरकारी नौकरी में अपने आला अफसरों से इनाम पाना किसे अच्छा नहीं लगता लेकिन बैतूल जिले में ठीक इसके उलट काम हो रहा हैं। जिले के पुलिस विभाग के कर्मचारी अब अपने आला अफसरो से इनाम लेने से ही परहेज कर रहे हैं। यहां बात हो रही है परीक्षाओं के दौरान सेवाएं देने वाले पुलिस एवं होमगार्ड सैनिकों को बोर्ड द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार की राशि इतनी कम है कि इन्होंने इस इनाम को लेने में ही कोई रूचि नहीं दिखाई। लगभग एक महीने चलने वाली परीक्षाओं में सेवा देने वाले पुलिसकर्मियों और होमगार्ड सैनिकों को बोर्ड द्वारा उनकी सराहनी सेवाओं के लिए पुरस्कृत किया जाता है। जिसमें होमगार्ड सैनिकों को 15 रूपए, आरक्षक को 23 रूपए, प्रधान आरक्षक को 28 रूपए, एएसआई को 35 रूपए और एसआई को 50 रूपए दिए जाते हैं। इस राशि को लेकर पुलिसकर्मियों का मानना है कि एक महीने के लिए यह इनाम बहुत कम है और उनके सीआर में भी दर्ज नहीं होगा। विगत बोर्ड परीक्षाओं में सेवाएं देने वाले पुलिसकर्मियों के लिए अक्टूबर 2010 में पुरस्कार की राशि आई है। इसमें 119 पुलिसकर्मियों के लिए तीन हजार रूपए दिए गए हैं। स्थिति यह है कि अधिकांश लोगों ने यह पुरस्कार ही ग्रहण नहीं किया है। कुछ लोगों को तो इसकी जानकारी ही नहीं है कि उन्हें नगद इनाम से पुरस्कृत भी किया गया है। अन्य थानों में पदस्थ पुलिसकर्मियों का कहना है कि यह इनाम की राशि लेने बैतूल आना ही महंगा है। बहुत कम पुलिसकर्मी इनाम लेने आ रहे हैं। इनाम की राशि देना जरूरी है। राशि थानों में पहुंचा दी जाएगी

शिक्षा का लगा बाजार चौतरफा मची है लूट , लूट सके तो लूट
बैतूल जिले में मिशनरी स्कूलों में अर्थदंड का चल पड़ा दौर
बैतूल, रामकिशोर पंवार: लोगो के दिलो दिमाग पर छाई पश्चिमी सभ्यता और दुसरो से अच्छा बनने की चाहत कई बार अनजान मुसीबतों का पहाँड़ लेकर टूट पड़ती हैं। ऐसे में आदमी बन जाता हैं धोबी का कुत्ता जो न तो घर का रहता हैं और न घाट का …. बैतूल जिला मुख्यालय के कुछ हाई प्रोफाइल कहलाने वाले पालको को उस समझ तगड़ा छटका लगा जब ईएलसी कोठीबाजार प्रबंधन ने अपने स्कूल में पढऩे वाले छात्रों को प्रवेश पत्र देने से पहले अतिरिक्त रूपए की मांग रख दी और फीस के रूप में अर्थदण्ड वसूलने शुरू कर दिए। कुछ ने तो विरोध किया लेकिन अधिकांश अर्थदंड की भरपाई करके अपने बच्चों के प्रवेश पत्र लेकर चलते बने। क्षणिक विरोध की परवाह किए बिना स्कूल प्रबंधन ने अपना सुरसा जैसा मुंह फाडऩा शुरू किया तो भागे – भागे स्कूल के छात्र और उनके पालक पहुंच गए भाजपा एवं संघ के विचारक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद नामक संगठन के पास और फिर शुरू हो गई नेतागिरी। इसाई मिशनरी द्वारा संचालित स्कूली शिक्षा से वैसे ही नाराज संघ विचारक विद्यार्थी परिषद के हाथों में जैसे कोई ब्रहमास्त्र आ गया और उन्होने मिशनरी संचालित स्कूल पर धावा बोल दिया। भाजपा समर्थक संगठन के दबाव में तथाकथित शिकायत सहीं पाई गई और स्कूल प्रबंधन को फीस वापस करनी पड़ी। पूरी कहानी कुछ इस प्रकार से रही। पैसे मांगने और प्रवेश पत्र नहीं देने से नाराज स्कूल के छात्रों ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में प्रदर्शन किया।  अभाविप के आंदोलन प्रभारी सनी राठौर के नेतृत्व में अवैध फीस वसूली बंद करने के विरोध में प्रदर्शन किया। बिगड़ती हुई स्थिति को देखते हुए स्कूल प्रबंधन ने इसकी सूचना पुलिस को दी। पुलिस भी स्कूल पहुंच गई थी। पुलिस ने मामला शांत कराया। प्रदर्शन के बाद स्कूल प्रबंधन ने छात्रों को प्रवेश पत्र दिए। कलैक्टर कार्यालय रोड़ पर कोठीबाजार स्थित ईएलसी स्कूल के छात्रों ने प्राचार्य एवं शिक्षकों पर अवैध रूप से फीस के नाम पर पैसों वसूली करने एवं परिजनों से अभद्र व्यवहार करने की शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी बीके पटेल से भी की थी। छात्रों की शिकायत के बाद शिक्षा विभाग से स्कूल में जांच के लिए दो सदस्यीय दल पहुंचा। दल में शामिल कन्या गंज स्कूल के प्राचार्य केके वरवड़े, सिविल लाइन प्राथमिक स्कूल के प्रधानपाठक वीआर वाघमोड़े पहुंचे। जांच दल ने छात्रों को प्रवेश पत्र देने एवं फीस वापस करने के निर्देश स्कूल प्रबंधन को दिए हैं। जांच करके लौटे प्राचार्य केके वरवड़े को स्कूल के छात्रों ने बताया कि स्कूल प्रबंधन अनपुस्थित रहने पर एक छात्र से प्रतिदिन 10 रूपए के हिसाब से अर्थदंड से वसूल रहा है। रेडक्रास, स्काउट गाइड के नाम पर भी अर्थदंड लिए जा रहे हैं। छात्रों ने 500 रूपए से लेकर एक हजार रूपए तक लिए जा रहे हैं। इसकी कोई रसीद भी नहीं दी जा रही है।छात्रों ने जांच अधिकारी वरवड़े को बताया कि पैसे नहीं देने पर प्रवेश पत्र नहीं दिए जा रहे हैं। रिजल्ट खराब करने की धमकी दी जा रही है। श्री वरकड़े के कहे अनुसार स्कूल प्रबंधन परिजनों से भी अभद्र व्यवहार किया जा रहा है। प्रथम दृष्टया फीस वसूली में गड़बड़ी नजर आ रही है। छात्रों को प्रवेश पत्र देने एवं फीस वापस करने के प्रबंधन को निर्देश दिए हैं। जांच रिपोर्ट डीईओ को सौंप दी है। छात्र पालको ने कभी किसी से यह नहीं कहा कि उनके बच्चों से टाई , बैल्ट , जूते मौजे, होमवर्क न करके आने पर जबरिया अर्थदंड आरोपित कर वसूला जाता हैं। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि बैतूल जिले में सवा सौ से अधिक मिशनरी द्वारा संचालित हाई प्रोफाइल स्कूल हैं जहां पर क्लासवन से लेकर आम आदमी तक के बच्चे शोषण एवं यातना के शिकार बन रहे हैं लेकिन कथित बच्चों के भविष्य के चलते पालक सब कुछ सहन कर रहा हैं जिसके शोषण की गथा आमजन तक नहीं पहुंच पाती हैं। अकसर देखने में आया हैं कि धनबल – बाहुबल से समर्थ इन स्कूल प्रबंधनो द्वारा अनैतिक नियम विरूद्ध कानून के मंशा के खिलाफ ऐसे कार्य संपादित किए जाते हैं जो भादवि के अनुसार संगीन अपराध की श्रेणी में आते हैं।

शैफाली की जेल में सुरंग
कहीं गोद भराई करने वालों ने तो नहीं की……?
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के चुने हुए जिलों में से एक है आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जहां सुश्री शैफाली तिवारी नामक महिला जेल अधिक्षक पदस्थ हैं। सुश्री शैफाली यूं तो शोले की गब्बर सिंह या फूलनदेवी की तरह कोई डाकू नहीं है बल्कि चोर उच्चको को सुधारने वाली सुधारगृह की अधिक्षक हैं। महिला जेल अधिक्षक को इस बात के लिए चिंता सता रही हैं कि उनकी जेल में आखिर ऐसी कौन सी सुरंग खुद गई कि अकसर आलू चोर सुरंग से आकर आलू ही चोरी करके नौ – दो ग्यारह हो जाती हैं। दबंग छवि की यह महिला अधिक्षक वैसे तो सुदंरता में किसी से कम नहीं हैं लेकिन भोली सूरत पर इस समय इस बात को लेकर मायूसी हैं कि उनकी जेल की चार दिवारी को भलां कोई कैसे लांध सकता हैं। फिल्म शोले में जिस तरह अंग्रेजों के जमाने के जेलर के होश जेल में सुरंग खोदे जाने की खबर से उड़ गए थे। ठीक इसी तरह अंग्रेजों के जमाने की बैतूल जेल में जहां पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता वहां से कथित आलू खोदकर चोरी किए जाने से की घटना से सुश्री शैफाली तिवारी को गहरा धक्का लगा हैं। अभी कुछ दिन पहले ही मीडिया में सुर्खियों में छाई रही बैतूल जेल अधिक्षक सुश्री शैफाली तिवारी ने बाजे – गाजे के साथ जेल कैम्पस में अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने वाली एक महिला की गोद भरवाई का कार्यक्रम संपादित करवाया था। महिला बाल विकास विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों तथा भाजपा सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे की उपस्थिति में सम्पन्न हुए गोद भराई के कार्यक्रम की अपार पब्लिसिटी के बाद अचानक नींद से जाग उठी सुश्री शैफाली लगातार एक सप्ताह से जेल परिसर में विचारधीण कैदियों द्वारा लगाई गई आसू की फसल की निगरानी के बावजूद चोरी का खुलासा न होने से हैरान एवं परेशान हैं। सुश्री शैफाली तिवारी को समझ नहीं आ रहा कि उनकी जेल से आलू की चोरी करने वाले चोर को धरती खा गई या आसमान निगल गया है। वही दुसरी ओर बैतूल जिले में बंद 350 कैदियों में कई शातीर – चोर – उच्चके – गुण्डे – मवाली यहां तक कि लूटेरे तक हैं इन सब लोगो की मेहनत पर पानी फेर कर जाने वाले चोर का पता नहीं लगने से उनकी भी हालत पतली हो चुकी हैं। बैतूल जेल परिसर के अंदर कैदियों ने पहली बार आलू और गेहंू की खेती शुरू की। जिसमें करीब तीन एकड़ में आलू की फसल बोई थी और वर्तमान में आलू भी तैयार हो गए हैं। आलू की इस फसल को अज्ञात चोरों द्वारा रात के समय चुराकर ले जाने का काम चल रहा है। चोर आलू खोदकर निकाल लेते हैं और आलू के पौधे को वहीं छोड़ देते हैं। लगातार एक सप्ताह से धड़ल्ले से चल रही इस चोरी ने जेल प्रबंधन को शर्मसार कर दिया हैं उनकी समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर चोर आते कहां से हैं और जाते कहां है? बैतूल जेल जो कि सुरक्षा के लिहाज से बेहद मजबूत और अभेद किले की तरह मानी जाती है। हालाकि बहुंत कम लोगो को पता होगा कि खेड़ला के किले से जो सुरंग एलिजपुर आज के अचलपुर महाराष्ट्र तक जाती हैं। उस सुरंग का रास्ता जेल के अंदर से भी जाता हैं। सैकड़ो सालों से बंद सुरंग के अंदर कहीं कोई हलचल तो शुरू नहीं हो रही हैं इस बात से भी जेल प्रबंधन परेशान हैं। जिला जेल में इस तरह आलू की फसल चोरी होने से जेल के अधिकारियों को तो चिंता में डाल दिया हैं लेकिन पुलिस भी कम सकते में नहीं हैं कि आखिर यदि जेल प्रबंधन चोरी की रिर्पोट लिखवाता हैं तो उसे कैसे लिखे…..? वर्तमान में जिला जेल में 6 बैरक में 350 कैदी बंद है और इनकी सुरक्षा के लिए महज 17 सुरक्षा प्रहरी तैनात है। खाने के शौकिन कथित आलू चोरों ने जेल की सुरक्षा और अधिकारियों के अभेद जेल होने के दावे पर सवालिया निशान लगा दिया है। सबसे मजेदार बात यह हैं कि दिमाग में नम्बर वन कहे जाने वाले पंडितो जिसमें जेल अधिक्षक सुश्री शैफाली तिवारी एवं उप जेल अधिक्षक एस एन शुक्ला के पदस्थ हैं। हालाकि इस समय जेल अधिक्षक सुश्री शैफाली तिवारी दो दिन से छुटट्ी पर हैं इसलिए उनसे कोई घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी हैं।

अपने ममेरे ससुर पर लगाया दहेज न देने का आरोप हैं
शिवराज की कन्यादान योजना के पात्रों को ही नहीं मिल रहा दान
बैतूल, रामकिशोर पंवार: प्रदेश की लाड़लियों के लोकप्रिय जगत मामा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अति महात्वाकांक्षी कन्यादान योजना अब विवादो में घिर गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों के अनुसार दहेज लेना एवं देना कानून की नज़र में अपराध हैं तब बैतूल जिले की उस युवक का क्या होगा जो अपनी पत्नि के साथ अपने ममेरे ससुद शिवराज सिंह के सुशासन में कुछ बैतूल जिले के अधिकारी उसे दहेज नहीं दे रहे हैं। इस सनसनी खेज आरोप का अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है कि शादी के नौ माह बाद भी कन्या को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत मिलने वाला दान – दहेज नहीं मिल सका है। महिला ने इसकी शिकायत जिला कलैक्टर की जनसुनवाई के दौरान करते हुए आरोप लगाया कि मामा के राज्य में उसके साथ उसे दान – दहेज का वादा करने के बाद भी वादा खिलाफी हो रही हैं। प्रभारी जिला कलैक्टर से अपना दान दहेज , उपहार सामग्री दिलाने की मांग की करने वाली दंपति ग्राम बरेठा झल्लार थाना क्षेत्र की रहने वाली हैं। श्रीमति अनिता इवने ने बताया कि उसका विवाह ग्राम चौकी निवासी समाज के प्रेम उइके से मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत ग्राम हरदू मे 12 मई 2010 को हुआ। योजना के तहत शादी रचाने वाली महिला को उपहार में सामग्री प्रदान की जाती है। अनीता ने बताया कि शादी होने को अब नौ महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन अभी तक उपहार में कुछ नहीं दिया गया है। अनिता ने बताया कि हरदू में कन्यादान योजना के तहत शादी करने वाली और भी महिलाएं है, जिन्हें योजना के उपहार में मिलने वाली सामग्री नहीं मिली है। महिलाएं सामग्री के लिए अधिकारियों के चक्कर काट काट कर थक गई हैं।

बीकानेर की मिठाई का नमूना एक, जांच रिपोर्ट दो
बैतूल, रामकिशोर पंवार:  खाद्य वस्तुओं मे मिलावट की जांच के लिए सेम्पल जिस सरकारी प्रयोगशाला में भेजे जाते हैं उसकी रिपोर्ट पर सवालिया निशान लग रहा है। एक ही दिन, एक ही समय और एक ही मावे से दो अलग-अलग विभागों ने नमूने जांच के लिए भोपाल प्रयोगशाला में भेजे थे, लेकिन जब रिपोर्ट आई तो एक रिपोर्ट में सेम्पल फेल बताया गया जबकि दूसरी रिपोर्ट में सेम्पल पास कर दिया गया। दीपावली पर्व के समय बैतूल एसडीएम को यह सूचना मिली थी कि बीकानेर मिष्ठान भंडार में जो मावा बाहर से आ रहा है वह मिलावटी है। इस सूचना पर उन्होंने 29 अक्टूबर को शाम के समय छापा मारा और यहां पर आए हुए मावे की सेम्पलिंग करवाई। जिसमें एक सेम्पल स्वास्थ्य विभाग के खाद्य एवं औषधि अपमिश्रण शाखा ने लिया था। वहीं दूसरा सेम्पल नगरपालिका की स्वास्थ्य शाखा द्वारा लिया गया। दोनों ही सेम्पल जांच के लिए भोपाल प्रयोगशाला में भेजे गए थे। लगभग तीन महीने के बाद जब प्रयोगशाला से जांच की रिपोर्ट आई तो वह काफी चौकाने वाली थी। नगरपालिका के सेम्पल की जांच रिपोर्ट में मावे को शुद्ध बताया गया। वहीं खाद्य एवं औषधि अपमिश्रण शाखा के सेम्पल की रिपोर्ट में इस मावे में मिलावट बताई गई। जिसके आधार पर दुकानदार पर प्रकरण भी दर्ज किया गया। दो प्रकार की रिपोर्ट ने प्रयोगशाला की व्यवस्थाओं को संदेह के दायरे में ला दिया है। प्रयोगशाला जांच रिपोर्ट सचमुच हैरत में डालने वाली है। जब दोनों ही नमूने एक साथ लिए गए हैं तो रिपोर्ट भी एक जैसी आना चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
भगवान भरोसे हो गई बैतूल जिले की स्वास्थ सेवा

गांव से लेकर शहर तक हर जगह अव्यवस्था का ही आलम
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आमला तहसील के ग्राम बोरदेही के सरकारी अस्पताल में बीते करीब छ: महीनों से जननी एक्सप्रेस नहीं है। यह वाहन नहीं होने से डिलेवरी करवाने अस्पताल तक पहुचने में महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।वहीं अब सप्ताह में 2 दिन डॉक्टर पहुंचनें से लोगों ने थोड़ी राहत महसूस की है। यहां करीब छ: माह पहले तक वाहन उपलब्ध था, लेकिन कुछ कारणों से वाहन की सेवाएं बंद हो गई है।लिहाजा अब महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचना है तो आशा कार्यकर्ता का मुंंह ताकना पड़ता है या फिर किराए का वाहन लेकर अस्पताल पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि वाहन नहीं होने से उन्हें जहां अक्सर अधिक खर्च उठाना पड़ता है तो कई बार वाहन नहीं मिलने पर जिंदगी और मौत से जूझने जैसी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। जानकारी के मुताबिक करीब 6 माह पहले तक अस्पताल में जननी एक्सप्रेस की सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन कुछ समय बाद इसे बंद कर दिया गया। तब से यह समस्या बढ़ गई है। जानकारी के मुताबिक पर्याप्त प्रकरण नहीं मिलने के कारण संबंधित ने यहां वाहन की सेवा देना बंद कर दिया है। इटावा सरपंच उमा प्रमोद सोनी, हथनोरा की संध्याबाई राजेंद्र सिंह, बामला के भवानी सूर्यवंशी, बोरदेही के संजय सूर्यवंशी, हथनोरा के भगवत पटेल, घाटावाड़ी के हरिराम पटेल का कहना है कि प्राइवेट वाहन बंद भी हो गया है तो शासन अस्पताल में स्थाई वाहन का इंतजाम किया जाना था। ग्राम पंचायत की शिकायतों से कई ज्यादा गंभरी हैं बैतूल जिला मुख्यालय के मुख्य अस्पताल की जहां पर ओपीडी में डाक्टरों के बैठने के समय में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। प्रतिदिन जिला चिकित्सालय में सभी डयूटी पर पदस्थ डाक्टर अपने कक्षों से नदारद रहते हैं। इससे मरीजों को देर तक इंतजार करना पड़ा। कतार लगाकर खड़े मरीज कहने को मजबूर हो गए कि, डॉक्टर साहब कब आएंगें…..? जिला अस्पताल में सुबह 8 से 1 बजे तक डॉक्टरों की ड्यूटी रहती है। वैसे तो जिला चिकित्सालय में मरीजों की हमेशा लम्बी कतार लगी रहती हैं। सुबह से मरीज ओपीडी में बैठकर डॉक्टरों का इंतजार करते रहे। कई बार तो सुबह से देर शाम तक डॉक्टरों के नहीं आने पर कई लोग तो बिना उपचार कराए ही वापस चले जातें हैं। गौठान से डॉक्टर को स्वास्थ्य दिखाने आई युवती कमलती ने बताया कि वह साढ़े 9 बजे से डॉक्टर के आने का इंतजार कर रही है। कक्ष में डॉक्टर नहीं है तो फिर किसे दिखाऊं…? अस्पताल में अक्सर ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। बच्चे को इंजेक्शन लगवाने वाले भी अकसर सुबह 9 बजे से आकर डाक्टरों को ताकते रहते हैं। डाक्टरों के कक्ष में बैठने का इंतजार करते रहे। बीते दिनो मोबाइल टार्ज में हुई महिला की डिलेवरी की घटना को लेकर हुई अपने विभाग की फजी़हत के बाद जिला चिकित्सालय बैतूल अधिक्षक द्वारा रानीपुर अस्पताल में एक महिला के प्रसव में लापरवाही के मामले में पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पारानी को तलब किया है। सीएमएचओ डॉ. डीके कौशल ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र रानीपुर में पदस्थ चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीमती पुष्पारानी सिंह को निर्धारित मुख्यालय पर नियमित न रहने, स्वास्थ्य केंद्र में रात में दरवाजे पर हुए एक प्रसव में लापरवाही के मामले में कारण बताओ नोटिस दिया है। सीएमएचओ ने नोटिस में डॉ. पुष्पारानी को निर्धारित मुख्यालय पर निवास कर मरीजों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने तथा अधीनस्थ कर्मचारियों का मुख्यालय पर निवास सुनिश्चित करने के लिए भी पाबंद किया है। परिवार कल्याण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में उदासीनता एवं लापरवाही बरतने के मामले में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र प्रभातपट्टन में पदस्थ एलएचवी रेणुका कातलकर तथा महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सत्यफुला देशमुख को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। सीएचएमओ डॉ. डीके कौशल ने बताया कि निलंबन अवधि में दोनों कर्मचारियों का मुख्यालय जिला अस्पताल बैतूल होगा।  इतना सब कुछ होने के बाद भी हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी तो बैठे मिले, लेकिन डॉक्टर नहीं आए। समय में परिवर्तन के बावजूद डॉक्टरों ने अपनी सीटों पर बैठकर ही आवेदनोंं पर हस्ताक्षर किए और टाइम पर निकल गए। हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड के बैठने के समय में प्रभारी मंत्री के निर्देश पर परिवर्तन कर दिया गया है। इससे अब बोर्ड सुबह 9 से 1 बजे की जगह 4 बजे तक लगेगा। यह परिवर्तन मेडिकल व विकलांग सर्टिफिकेट बनाने आने वाले लोगों की सुविधा के लिए किया गया था। इस मंगलवार को लगे मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी बैठकर सील-सिक्के लगाते रहे, लेकिन डॉक्टर नहीं बैठे। दूर-दराज से आने वाले लोगों को प्रमाण पत्रों पर सील-सिक्के लगाने के बाद डाक्टरों को ढूंढते रहना पड़ा। डाक्टरों ने ओपीडी में बैठकर प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षकर करने का काम निपटाया और एक बजे राइट टाइम पर घर रवाना हो गए। मेडिकल बोर्ड के नियम के मुताबिक डॉक्टरों को बोर्ड में बैठना चाहिए, लेकिन वे बोर्ड में न बैठकर ओपीडी में हस्ताक्षर करते रहे। जिन व्यक्तियों को डॉक्टर मिल गए तो उनके प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षर हो गए, लेकिन जिन्हें नहीं मिले उन्हें भटकते रहना पड़ा। मुलताई चूनाभट्टी गांव के रमेश अपनी विकलांग बेटी का प्रमाण पत्र बनाने आए थे। उनके प्रमाण पत्रों पर सील सिक्के तो लग गए थे, लेकिन डाक्टरों के हस्ताक्षर कराने उन्हें कक्षों में परेशान होते रहना पड़ा। मेडिकल बोर्ड में सिविल सर्जन डॉ. डब्ल्यूए नागले, डॉ. ओपी माहोर, डॉ. पीके कुमरा, डॉ. डीटी गजभिए, डॉ. के बाजपेयी, डॉ. श्रीमती आर गोहिया, आरएमओ डॉ. एके पांडे सदस्य हैं। मंगलवार की शाम 4 बजे बोर्ड कक्ष में डॉ. बाजपेयी और अस्पताल परिसर में डॉ. नागले नजर आए। इनके अलावा कोई डॉक्टर नहीं था। मेडिकल बोर्ड की दीवार पर प्रमाण पत्र बनाने की सूचना के संबंध में चस्पा पर्चें में टाइम टेबल नहीं बदला गया। इस पर्चे पर सुबह 9 से 1 बजे का टाइम लिखा हुआ था। इससे लोग भ्रमित होते नजर आए। जबकि टाइम सुबह 9 से 4 बजे तक का हो चुका है। इसे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। मेडिकल बोर्ड के सदस्य डॉक्टरों ने ओपीडी में पहुंचने वाले लोगोंं के प्रमाण पत्रों के बनाने का काम निपटाया। दोपहर 1 बजे तक 35 विकलांग और 28 मेडिकल प्रमाण पत्र बनाए। इसके बाद कोई प्रमाण पत्र नहीं बन सके। क्योंकि 1 बजे ओपीडी बंद हो जाती है। बोर्ड का समय 4 बजे का होने के बावजूद डॉक्टर नहीं आए। इससे 1 बजे के बाद आने वाले लोगों को परेशान होना पड़ा। वे डाक्टरों के बैठने का इंतजार करते रहे। विकलांगता श्रेणी में मिलने वाली छूट एवं फायदों के लिए अब अपात्र भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। यही कारण है कि अस्पताल के आसपास दलालों की सक्रियता भी बढ़ गई है। 40 प्रतिशत विकलांगता की पात्रता के लिए लोग जहां बार-बार अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। वहीं इनकी हर सप्ताह बढ़ती संख्या से जिला मेडिकल बोर्ड भी खासा चितिंत है। विकलांगता प्रमाण-पत्र से मिलने वाले लाभ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब प्रमाण-पत्र बनाने की कतार में फै्रक्चर और मामूली विकलांगता वाले भी खड़े नजर आ रहे हैं। जिला मेडिकल बोर्ड का कहना था कि अधिकांश लोग लाभ के लिए प्रमाण-पत्र बनवाना चाहते हैं। यहीं कारण है कि एक बार अपात्र घोषित कर दिए जाने के बाद भी वे दोबारा यहां आ रहे हैं। जिससे ?से लोगों की संख्या बढ़ रही है। विकलांगता प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए हर मंगलवार को करीब एक सैकड़ा से अधिक लोग जिला अस्पताल के चक्कर काटते हैं। जबकि नियमानुसार जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा 40 प्रतिशत से ऊपर विकलांगता होने पर ही प्रमाण-पत्र जारी किए जाते हैं, लेकिन कुछ लोग विकलांगता प्रमाण-पत्र का लाभ लेने अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। देखने में आ रहा है कि अपात्र लोग भी विकलांगता प्रमाण-पत्र बनाने के लिए आ रहे हैं। बार-बार इनके आने से अस्पताल में भीड़ बढ़ जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए अब जिला चिकित्सालय बैतूल में कम्प्यूटर फिडिंग के संबंध में भी विचार किया जा रहा है ताकि ?से लोग आसानी से पकड़े जा सके।

मनरेगा में इतना भ्रष्ट्राचार की सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध
अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को हो जाएगी हाईपरटेंशन की बीमारी
बैतूल,रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में रोज सामने आ रही मनरेगा के कार्यो की गुणवत्ता एवं भ्रष्ट्राचार की शिकवा शिकायतों की यदि सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक जांच शुरू करेगी तो उन्हे छै महिने के बदले छै दिनो में ही हाईपरटेंशन की बीमारी हो जाए। सप्ताह में हर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में आने वाली हर दुसरी – तीसरी शिकायते मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर होती हैं। उक्त शिकायतों पर कार्यवाही क्या होती है या क्या हो चुकी हैं इस बात की किसी को पता नहीं लेकिन शिकायतों के बाद पैसे हल्का होने वाला सरपंच – सचिव जब आप खोकर गांव के लोगो को गंदी – गंदी गालियां देते हुए धमकाने लगते हैं तब शायद गांव वाले ही खबर का असर समझ कर फूले नहीं समाते हैं। मनरेगा को लेकर गांव से जिला मुख्यालय तक शिकायतों की आड़ में होने वाली सौदेबाजी का खेल चलता है। शिकायतों को लेकर गांव वालो के कथित ब्यानो एवं सच का पता लगने वाला मीडिया से लेकर जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी तक गांव तक पहुंचने के बाद मैनेज हो जाता हैं और गांव का गरीब जाबकार्ड धारक बार – बार जेब का पैसा खर्च करके जिला कलैक्टर से यह तक सवाल नहीं कर पाता हैं कि उसकी शिकायतें पर कोई सुनवाई क्यों नहीं हुई। आज यही कारण हैं कि गांव में भी ब्लेकमेलरो की दिन प्रतिदिन संख्या में इजाफा होते जा रहा हैं। गांव में ही सरपंच एवं सचिवो को पहले चरण में कथित शिकायतों को लेकर ब्लेकमेल करने के बाद सौपा न पटने की स्थिति में शिकायत करता स्वंय के रूपए – पैसे खर्च करके गांव वालों की भीड़ मंगलवार की जन सुनवाई में लाने से लेकर मीडिया तक को मैनजे करके मनरेगा के कार्यो को लेकर पेपरबाजी करवाता हैं। जितनी ज्यादा पेपरबाजी होती हैं उसके हिसाब से ब्लेकमेलर एवं सरपंच – सचिव के बीच सौदेबाजी होती हैं। कई बार तो दलाली के काम में जनपद के मुख्यकार्यपालन अधिकारी से लेकर राजनैतिक पार्टी के जनप्रतिनिधि तक अहम भूमिका निभाते हैं। आज का पंचायती राज कुल मिला कर रेवड़ी बन गया है जिसे हर कोई बाट का छीन कर खाना चाहता हैं। एक सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार बैतूल जिले में 6 जनवरी दिन मंगलवार वर्ष 2009 के बाद आज दिनांक तक हर मंगलवार याने दो साल पौने दो माह में लगभग 104  मंगलवार को लगे बैतूल जिले के जनसुनवाई शिविर में कुल तीस हजार पांच चालिस शिकायते दर्ज हुई है जिसमें से सोलह हजार नौ सौ तीस शिकायते बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के गांवो से मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर आई है। प्रशासन के पास $खबर लिखे जाने तक इस बात की कोई भी जानकारी नहीं है कि कितनी शिकायतों का निराकरण हो चुका हैं। मनरेगा के कार्यो की जांच एवं भुगतान को लेकर की गई शिकायतों की न तो जांच रिर्पोट लगी हैं और भुगतान पाने वालों के भुगतान मिलने सबंधी को प्रमाणिक दस्तावेज जिसके चलते कई शिकवा – शिकायते तो लगातार होने के बाद भी मनरेगा का भुगतान न तो हो सका हैं और न इन प्रकरणों की जांच हो सकी हैं। जिला प्रशासन द्वारा सीधे तौर पर मनरेगा के कार्यो की शिकवा शिकायतों की जांच सबंधित विभाग या फिर शाखा को भेज दी जाती हैं। उक्त विभाग या शाखा द्वारा जिला प्रशासन को इस बात की कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं भेजी जाती हैं कि शिकायत यदि सहीं हैं उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई हैं। वैसे देखा जाए तो 2 लाख 48 जाबकार्ड धारक है। जिसमें 1 लाख 78 हजार जाबकार्ड धारक परिवारों के एक सदस्य को एक साल में सौ दिन का रोजगार देने के प्रावधान हैं। जिले में जाबकार्ड धारको को हर बार भुगतान को लेकर प्रशासन की ओर से कई पहल की गई लेकिन हर बार शिकवा – शिकायते सुनने को मिली हैं। इस बार बैतूल जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा चलित मोबाइल बैंक की शुरूआज एच डी एफ सी बैंक के माध्यम से की जाने वली हैं। बैतूल जिले में वर्तमान में कुल 80 बैंक है जिनके माध्यम से जाबकार्ड धारको को भुगतान उनके खातों के माध्यम से किया जाता हैं। बैंक के पास वर्कलोड़ की वज़ह से वह मनरेगा के भुगतान कार्यो के प्रति उतनी दिलचस्पी भी नहीं लेती क्योकि बैंको को कोई विशेष लाभ नहीं मिलता हैं। वैसे भी सरकारी बैंको की ऋण देने एवं ब्याज पाने में ज्यादा रूचि रहती हैं। बैतूल जिले में लगातार ग्राम पंचायत स्तर के भ्रष्ट्राचार में कई बार बैंक भी लपेटे में आ चुकी हैं इसलिए बैंको का इस कार्यो के प्रति नकारात्मक रूख रहा हैं। बैंक से भुगतान पाने के लिए गांव से बैंको तक धक्के खाने वाला ग्रामीण आखिर विवश होकर शिकवा – शिकायते करने लगता हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता के अनुसार बैतूल जिले में सेन्ट्रल बैंक के साथ मोबाइल बैंक की एक योजना शुरू की थी लेकिन बैंक ही पीछे हट गई। अब प्रदेश में अनूपपुर की तरह एटीएम से भुगतान की जगह नगद भुगतान के लिए एच डी एफ सी बैंक से एक अनुबंधन किया जा रहा हैं। बैंक को मोबाइल बैंको के लिए जिला पंचायत वाहन तक उपलब्ध करवाने के लिए तैयार हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी भुगतान एवं कार्यो को लेकर होने वाली शिकायतों पर कार्यवाही होने की बाते तो करते है लेकिन उनके पास आकड़े नहीं हैं। श्री गुप्ता का तो यहां तक कहना हैं कि ग्राम पंचायत स्तर तक के कार्यो में भ्रष्ट्राचार के मामले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को भेजे गए है लेकिन उनके नाम उन्हे नहीं मालूम हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो एवं 10 जनपदो में आज तक कोई भी ऐसर रिकार्ड पंजी उपलब्ध नहीं है जिसमें ग्राम पंचायत सबंधी शिकायतों एवं उनके समाधान का जिक्र हो ऐसी स्थिति में बैतूल जिले का ग्राम पंचायती राज अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत पर खरा उतरता हैं।
एक कड़वा सच यह भी हैं कि बैतूल जिले में पदस्थ रहे मुख्यकार्यपालन अधिकारी एवं जिला कलैक्टरों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में कई प्रकरण चल रहे हैं लेकिन खबर लिखे जाने तक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)  द्वारा किसी भी बड़ी मछली को अपने फंदे में नहीं फंसाया जा सका है तब छोटी मछली के फंदे बाहर निकले की संभावना तो बरकरार रहेगी। बैतूल जिले के बारे में कहा जाता हैं कि मध्यप्रदेश का कमाऊपूत जिला हैं जहां पर हर कोई अपना देश है बड़ा विशाल लूटो खाओं है बाप का माल के मूल सिद्धांत पर कार्य कर रहा हैं। बैतूल जिले का पंचायती राज कब सार्थक एवं सफल सिद्ध होगा सयह कह पाना अतित के गर्भ में हैं।

पंचायती राज में दिन प्रतिदिन करोड़पति बनते जा रहे सचिवो की सीबीआई को शिकायत
बैतूल, रामकिशोर पंवार:  मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में पंचायती राज्य में सरपंच सचिवो की मनमर्जी के आगे सरकारी योजनाओं को हश्र हो रहा है वह किसी से छुपा नहीं है। इस समय बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के आधे से ज्यादा के सरपंच सचिवो के नीजी एवं परिजनो के वाहनो को नरेरा के तहत मिलने वाली राशी से भुगतान किया जा रहा हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले की ग्राम पंचायतो से सबसे अधिक भुगतान उन कृषि कार्यो के लिए पंजीकृत टे्क्टर ट्रालियों को हुआ हैं जो व्यवसायिक कार्यो के लिए प्रतिबंधित हैं। जिले में इसी तरह पानी के टैंकरो , रोड रोलरो , जेसीबी मशीनो , ब्लास्टींग मशीनो आदि को किया गया भुगतान भी नियम विरूद्ध किया गया है। बैतूल जिले की प्राय: सभी ग्राम पंचायतो के सरपंच एवं सचिवो से नियम विरूद्ध कार्य करके अतिरिक्त भुगतान करने पर रिकवरी के आदेश के जारी होने के तीन माह बाद भी एक भी सरपंच एवं सचिव से रिकवरी नहीं हो सकी हैं। पूरे जिले में साठ करोड़ के लगभग राशी की रिकवरी होना हैं। राजनैतिक संरक्षण एवं अधिकारियों की कथित मिली भगत के चलते आडिट आपत्तियों के चलते की जाने वाली रिकवरी शासन के खाते में नहीं जा सकी है। बीती पंचवर्षिय योजना में बैतूल जिले के प्राय: सभी सरपंच एवं सचिवो की सम्पत्ति में काफी इजाफा हुआ हैं। गांव के विकास के नाम पर जारी हुआ एक रूपैया का नब्बे पैसा सरपंच सचिवों की आलीशान कोठियों , चौपहिया वाहनो एवं बैंक बैलेंसो को बढ़ाने में उपयोगी साबित हुआ हैं। जिले के करोड़पति सचिवों में भीमपुर विकास खण्ड के यादव समाज के सचिवों का नाम सबसे ऊपर हैं। लोकायुक्त एवं राज्य आर्थिक अपराध अनुवेषण के कार्यालय तक भेजी गई सैकड़ो शिकवा , शिकायते आज भी फाइलों में बंद पड़ी हुई हैं। बैतूल जिले के पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी बाबू सिंह जामोद के खिलाफ बीते माह ही आर्थिक अपराध अनुवेषण द्वारा बैतूल जिले में उनके तीन साल में नरेरा , कपिलधारा के कूप निमार्ण कार्यो के अलावा एक दर्जन से अधिक कार्यो में हुए भ्रष्ट्राचार को लेकर प्रकरण दर्ज हुआ हैं लेकिन प्रकरण के संदर्भ में इस भ्रष्ट्राचार की जड़ कहे जाने वाले सरपंच एवं सचिवों के गिरेबान तक किसी के भी हाथ नहीं पहुंच सके हैं। आय से अधिक सम्पत्ति जमा करने वाले करोड़पति बने रमेश येवले , महेश उर्फ बंडू बाबा , जगदीश शिवहरे, सहित सवा सौ सचिवों को लोकायुक्त से लेकर सीबीआई तक की जांच के दायरे में शामिल करने का प्रयास किया गया है। एक स्वंयसेवी द्वारा भेजी गई शिकायती पुलिंदा में सीबीआई को विशेष से इसकी जांच का निवेदन किया है जिसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि केन्द्र सरकार से भेजे गए अरबो – खरबो के अनुदान से कई सचिवो की माली हालत में जबरदस्त इजाफा हुआ है। जांच में इन बातो का भी उल्लेख किया गया हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में निलम्बित सचिवो को पुन: बहाल कर उसी स्थान पर क्यों पदस्थ किया गया हैं। बैतूल जिले को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा भेजी गई अरबो – खरबो की राशी का नरेरा में उपयोग कितना हुआ है और कितना नहीं हुआ हैं।
बैतूल की दसों जनपदों के अंतर्गत आने वाली 558 पंचायतों की आडिट रिपोर्ट तो यह बता रही है कि या तो आडिट सही तरीके से नहीं हुआ है या फिर सभी पंचायतों में पूरा काम ही गोलमाल है। एक जैसी आडिट रिपोर्ट पर आडिट प्रक्रिया को जानने वाले भी हैरत में है।बैतूल जिले में 10 जनपदें हैं और इन जनपदों के अंतर्गत 558 पंचायतें आती हैं। बैतूल जनपद की 77 पंचायतों में ऑडिट करने वाली कम्पनी अग्रवाल एंड मित्तल कंपनी भोपाल ने जो ऑडिट आपत्ति का प्रपत्र जनपदों को दिया है उसमें सभी जनपदों में एक जैसी आपत्ति बताई गई है। यह किसी भी हालत में संभव नहीं है कि सभी पंचायतों में एक जैसी गलतियां की जा रही है या एक जैसा गोलमाल हो रहा हो। कंपनी द्वारा आडिट आपत्तियों के साथ यह भी दावा किया गया है गोलमाल छोटा नहीं बल्कि करोड़ो का है। वैसे भी बैतूल जिले के दस जनपदो की आधे से ज्यादा ग्राम पंचायतो पर 57 करोड़ रूपए की वसूली के आदेश जारी होने के बाद भी सरपंच और सचिव राजनैतिक संरक्षण की छांव में है। ग्राम पंचायतो का आडिट करने वाली कम्पनी ने करीब 16 आपत्तियां अपनी आडिट रिपोर्ट में लगाई है। वर्ष 2009-10 के लिए किए गए इस आडिट में यह भी कहा गया है कि इस प्रतिवेदन में उल्लेखित तुलन पत्रक, आय-व्यय पत्रक एवं प्राप्ति तथा भुगतान पत्रक लेखा पुस्तकों से मेल नहीं खाते है। आडिट रिपोर्ट में जो आपित्तयां ली गई है उसमें साफ कहा गया है कि कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र जांचने के लिए पंचायतों में प्रस्तुत नहीं किया। पांच हजार से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीद नहीं लगाई गई है। यहां तक कि मस्टर रोल के प्रपत्र दो और तीन उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए। साथ ही जनपदों ने भी मस्टर रोल में कार्य का नाम और जारी करने की तिथि भी नहीं दशाई गई है। यह तमाम चीजें नियमों के खिलाफ और बड़े गोलमाल की ओर खुला इशारा कर रही है। स्थिति यह है कि भुगतान देयकों पर सरपंचों के अधिकृत हस्ताक्षर भी नहीं है। रोकड़ अवशेष एवं ग्राम पंचायत द्वारा किए गए कार्यो का भौतिक सत्यापन हमारे द्वारा नहीं किया गया है। अंकेक्षण कार्य हेतू हमारे समक्ष सिर्फ कैश बुक, पास बुक और खर्च से संबंधित प्रमाणक ही उपलब्ध कराए गए। कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र को जांचने हेतू प्रस्तुत नहीं किया गया।ग्राम पंचायत द्वारा माप पुस्तिका प्रस्तुत न करने के कारण उससे संबंधित मस्टर रोल अन्य खर्च का मिलान संभव नहीं था।अधिकांशत: पांच हजार रूपए से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीदी टिकट नहीं लगाए गए।ग्राम पंचायत द्वारा योजनान्तर्गत फंड से किसी भी प्रकार की निश्चित अवधि जमा नहीं बनवाई गई।बैंक खातों में जमा दर्शाई गई मजदूरी वापसी से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं की गई।पूर्ण जानकारी के अभाव में अंकेक्षण का मूलभूत आधार रोकड़ खाते को माना गया है। पंकज अग्रवाल, अग्रवाल मित्तल एंड कंपनी ने बताया कि यह बता पाना संभव नहीं है कि किसी भी कार्य या सामग्री क्रय हेतु किया गया भुगतान अग्रिम है या नहीं। इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा रोकड़ खाता एवं उपलब्ध प्रमाणकों के आधार पर किया गया अग्रिम भुगतान अलग से दर्शाया गया है। ग्राम पंचायत द्वारा अचल सम्पत्ति का रजिस्टर संधारित नहीं किया गया है। पंचायत कार्यालय से प्राप्त रजिस्टरों के अतिरिक्त सामान्यत संधारित रजिस्टर के पृष्ठ पूर्व मशीनीकृत नहीं थे। सामान्यत: सभी मस्टर रोल के प्रपत्र 2 व 3 उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए है। जनपद पंचायत द्वारा मस्टर रोल में कार्य का नाम व जारी किये जाने की तिथि अंहिकत नहीं की गई है। सामान्यत: ग्राम पंचायत द्वारा निर्माण हेतु सामग्री क्रय करने के दौरान शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। इसी तरह सामग्री क्रय के व अन्य बिल कच्चे के लिये गये है। भुगतान देयकों पर सरपंच द्वारा अधिकृत हस्ताक्षर नहीं किये गये है। ग्राम पंचायत के अंकेक्षण हेतु कुछ प्रमाणक प्रस्तुत नहीं किए गए। सबसे ज्यादा घोटाले बाज भीमपुर जनपद की स्थिति तो काफी भयाववह है। इस जनपद में तो अधिकांश सचिवो की गिनती करोड़पति एवं लखपतियों में होती है। इन सभी दुरस्थ ग्राम पंचायतो के सचिवो ने उक्त माल कमाने के लिए अपनो को ही लाभ पहुंचाया है। रमेश येवले नामक एक सचिव के पास आज करोड़ो की सम्पत्ति जमा हो गई है। रमेश के द्वारा अपने सचिव कार्यकाल में तथा पूरी जनपदो के की ग्राम पंचायतो में सबसे अधिक भुगतान रमेश येवले सचिव के परिवार के सदस्यों के नाम पर किया गया है। रमेश येवले को टे्रक्टर ट्राली एवं ब्लास्टींग के नाम पर भुगतान किया गया है। आज मौजूदा समय में रमेश येवले सहित दो दर्जन से अधिक सचिवो पर कंसा शिकंजा अब ठीला पड़ता जा जा रहा है। अभी हाल ही में भीमपुर ब्लॉक में आयोजित जनपद पंचायत की समीक्षा बैठक में उपस्थित नहीं होने वाले एडीईओ (विकास विस्तार अधिकारी) को जिला पंचायत सीईओ द्वारा निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा मिटिंग में शामिल नहीं होने वाले सचिवों एवं अन्य कर्मचारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। यदि वह नोटिस का संतुष्ठ जवाब नहीं देते है तो उनका 15 दिन का वेतन काट लिया जाएगा। जिला पंचायत सीईओ एसएन चौहान ने बताया कि उन्हे शिकायते मिल रही थी जिसके चलते उक्त कार्यवाही की गई। श्री चौहान के अनुसार बैठक में एडीईओ कृष्णा गुजरे सहित सचिव एवं अन्य कर्मचारी उपस्थित नहीं हुए थे। जिस पर उनके एडीईओ गुजरे को निलंबित कर दिया है। वहीं सचिव सहित अन्य कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। सीईओ चौहान ने बताया कि एडीईओ द्वारा विभिन्न कार्यो के टारगेट को भी समय पर पूर्ण नहीं किया गया था। मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत बन रही ग्रेवल सड़कों को लेकर अभी से सवाल खड़े होना शुरू हो गए है। बताया जा रहा है कि विगत दिनों जो जिला पंचायत अध्यक्ष का गुस्सा योजना मंडल की बैठक में आरईएस पर फूटा था उसकी वजह भी यही सड़कें थीं। सड़कें जिस रफ्तार से बन रही है उसको लेकर संदेह जाहिर किया जा रहा है।लम्बाई कम और दर अधिक बैतूल जनपद अंतर्गत बोरीकास से सालार्जुन तक बन रही 2.80 किलोमीटर लम्बी ग्रेवल सड़क की लागत जहां 51.95 लाख रूपये है। वहीं भरकवाड़ी से खानापुर तक बनने वाली तीन किलोमीटर लम्बी सड़क की लागत महज 33.94 लाख है। लागत में इस अंतर को लेकर पंचायती राज के जनप्रतिनिधी अब सवाल खड़े कर रहे है।एक महीने में 40 प्रतिशतबोथी सियार से मांडवा 1.3 किमी, बोरीकास से सालार्जुन 2.80 किमी, आरूल से खाटापुर 2.2 किमी, भकरवाड़ी से खानापुर तीन किमी और बारवी से डोडरामऊ 3.75 किमी की जब जनपद पंचायत बैतूल अध्यक्ष ने समीक्षा की थी तो दिसम्बर में काम प्रारंभ ही हुआ था और अब निर्माण एजेंसी आरईएस 40 प्रतिशत तक काम हो जाना बता रही है।

दैहिक शोषण बनी खाण्डसारी मिले पुलिस की अवैध कमाई के धंधे बने
आदिवासी बालाओं के साथ रोज हो रहे दुराचार के मामले
बैतूल, रामकिशोर पंवार: आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आदिवासी बालाए आजकल जिले की आमला एवं मुलताई तहसील के कुछ क्षेत्रों में कार्यरत खाण्डसारी मिलों में दैहिक शोषण एवं दुराचार के मामलों की शिकार बन रही हैं। पुलिस के संरक्षण में रही पौने दो सौ से अधिक खाण्डसारी मिलो में कार्यरत आमला विधानसभा क्षेत्र की सैकड़ो आदिवासी बाला किसी ने किसी खाण्डसारी मिल पर रोज रात्री में किसी न किसी वासना के भूखे दंरिदे की यौन कुंठा का शिकार बन रही हैं। जिले की देश भक्ति जनसेवा का तमगा लगानी वाली पुलिस इन दुराचार एवं दैहिक शोषण की शिकार बनी आदिवासी बालाओं की आड़ में खाण्सरी मिलों के संचालको से चौथ वसूली करने में लगी हुई हैं। प्रतिमाह एक खाण्डसरी मिल से आमला एवं बोरदेही थाना प्रभारी के अलावा अजाक के थाना प्रभारी तक को एक मोटी रकम दी जाती हैं। इन सबके बाद भी पुलिस किसी न किसी आदिवासी बाला के नाम का सहारा लेकर किसी ने किसी मिल पर मिल ही जाती हैं। पुलिस को सूचना न देने पर पुलिस अपना गुस्सा सीधे – साधे आदिवासियों पर निकालती हैं। आमला से बोरदेही मार्ग पर चुटकी के पास उत्तर भारत के किसी राठौड़ के द्वारा एन आर आई हाजी साहब से खरीदी गई। खाण्डसारी मिल पर भाटिया नामक युवक द्वारा सारनी क्षेत्र की दो युवतियों के साथ किये गए दुराचार के मामले में घटना के प्रत्यक्षदर्शी युवक को पुलिस ने मल संचालक के इशारे पर देर रात में बेरहमी से पीटा। उस आदिवासी युवक की गलती मात्र इतनी थी कि वह अपने साथियों के साथ दुराचार की शिकार हो रही आदिवासी लड़कियों को बचाने के लिए दौड़ पड़ा था। मिल के संचालक ने रात्री में ही कुंभकरणी निंद्रा मेंं सोई पुलिस को जगा दिया और पुलिस ने उस युवक को ही बेरहमी से पीट डाला। दुराचार की शिकार बनी लड़कियों से घटना के संदर्भ में कुछ पुछताछ करना भी उचित नहीं समझा और उस युवक को बेरहमी से पीट डाला और विरोध करने पर उसके संगी साथियों पर डकैती एवं लूट का मामला तक दर्ज करने की धौंस दे डाली। आदिवासी नेता राजेश वटकी को जब इस बात की भनक लगी तो उसने अपने साथियों के साथ मीडिया के समक्ष पूरे मामले की जानकारी ली। श्री वटकी पूरे मामले को लेकर बैतूल जिला मुख्यालय पर धरना – प्रदर्शन करने जा रहे है। बैतूल जिले में कार्यरत पौने दो सौ मिलो मे एक समुदाय विशेष के लोगो की बड़ी संख्या में उपस्थिति का बैतूल जिले के बोरदेही एवं आमला थाने में कोई रिकार्ड एवं चरित्र सत्यापन दर्ज नहीं हैं। बैतूल जिले में यूपी के बदायूं जिले के चार सौ से लोग इस समय विभिन्न मिलों में कार्यरत है। अवैध खतरनाक हथियारों से लैस इन यूपी के अपराधिक चरित्र के एक समुदाय विशेष के लोगो के बैतूल जिले में मौजूदगी के बाद उनके द्वारा किये जाने वाले कृत्य भी सामने आने लगे हैं। आमला तहसील में अवैध रूप से संचालित इन खाण्डसारी में होने वाली गतिविधियों के प्रति पुलिस का ढुलमुल रवैया किसी दिन किसी भी बड़ी घटना को अजंाम दे सकता हैं। खाण्डसारी मिलों में उत्तर भारत के लोगो की मौजूदगी पर दोनो थाना क्षेत्रों की पुलिस संरक्षक के रूप में उभरती छबि के चलते आदिवासी एवं गरीब सीधे – साधे किसानो का आर्थिक एवं शारीरिक शोषण अब दैहिक शोषण में बदलने लगा हैं।
बैतूल जिले में बड़े पैमाने पर हो रहा है अवैध खांड़सारी मिलो के अनैतिक कारोबार पर जिले भर के सरकारी विभाग खामोश हैं। मध्यप्रदेश की भगवा सरकार के राज्य में किसानों के हमदर्द मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राज्य सरकार के अधिनस्थ कार्यपूरे सरकारी विभाग  की मौजूदगी में किसानो का हो रहा शोषण बैतूल प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के अधिनस्थ कार्यरत गुड़ उत्पादक विभाग एवं प्रदुषण विभाग की बिना अनुमति के एक नहीं पूरे 176 खांड़सारी एवं शक्कर की उत्पादक मिलो का अवैध कारोबार बैतूल जिले के आमला विकासखण्ड में धडल्ले से चल रहा है। बैतूल जिले की शासकीय एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के गरीब किसानो से किराये पर ली गई जमीन पर उत्तर प्रदेश के एक मात्र बदायु जिले से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के करीब पौने दौ सौ लोगो द्वारा संचालित इन खांड़सारी मिलो में सारे नियमों को ताक में रख कर बड़े पैमाने पर अध कच्चा गुड़ का जिसे खांड़सारी अथवा राब भी कहते है का उत्पादन कर उत्तर प्रदेश , बिहार , पश्चिम बंगाल को भेजा जा रहा है। औसतन प्रतिदिन दस से बारह ट्रको से छिन्दवाड़ा होते हुये परिवहन किये जाने वाले ट्रक मालिको एवं विके्त्रा द्वारा कृषि उपज मंडी तथा सेल टैक्स विभाग को कोई शासकीय शुल्क चुकाया जाता है।  जहां एक ओर राजनैतिक संरक्षण में चल रहे है इन खांड़सारी मिलो के संचालको द्वारा समय – समय पर किसानो के साथ कथित धोखाधड़ी किये जाने के भी मामले प्रकाश में आ रहे है वही दुसरी ओर इनके द्वारा हर साल नये स्थान पर नए नाम के साथ अपनी मिलो को स्थापित भी किया जा रहा है ताकि किसानो में भ्रम की स्थिति बनी रहे। बीते वर्ष 2010 में छिन्दवाड़ा जिले के एक ही ग्राम चांद के सौ से अधिक किसानो के साथ धोखाधड़ी का मामला भी प्रकाश में आया है। चांद गांव के किसी शैलू पटेल के कथित संरक्षण में चल रही एक खांड़सारी मिल के संचालक द्वारा करीब 25 लाख रूपये का गन्ने का भुगतान किये बिना ही नौ दो ग्यारह हो जाने से किसानो के परिवारो को भूखे मरने की स्थिति आ गई थी। उक्त खांड़सारी मिल के संचालक द्वारा इस बार बैतूल जिले के आमला विकासखड़ के जम्बाड़ा ग्राम में अपनी मिलो को स्थान परिर्वतन कर लगाया गया है। बैतूल जिले में चार से छै माह तक अस्थायी रूप से लगने वाली इन अवैध खांड़सारी मिलो द्वारा पूरा काला कारोबार ग्राम एवं तहसील तथा जिले के कुछ तथाकथित स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियो , वकीलो , पत्रकारो , राजनैतिक दलो के नेताओं, तथा शासकीय विभागो के आला अफसरो के संरक्षण में चल रहे इस अवैध कारोबार के चलते किसानो द्वारा अपने गन्ने से न तो गुड़ का उत्पादन किया जा रहा है और न उत्पादन करवा कर गुड़ को मुलताई एवं बैतूल बाजार की गुड़ मंडिय़ो में लाकर बेचा जा रहा है। बड़े पैमाने पर दबाव डाल कर या तरह – तरह के लोभ लालच देकर किसानो का खेतो में लगा गन्ना अपने लोगो से कटवा कर अवैध रूप से परिवहन में लगे बिना नम्बरो के टैक्टर ट्रालियो से लाकर मिलो में पहुंचाया जा रहा है। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि बैतूल जिले के अकेले आमला विकासखण्ड में पौने दो सौ अवैध खांड़सारी की मिलो में एक क्षेत्र विशेष के एक ही समुदाय के सैकड़ो लोग बोरदेही एवं आमला थाना में अपनी मुसाफिरी लिखवाये बिना ही रह रहे है। इन लोगो के पास अवैध रूप से हथियारो का जखीरा लोगो को डराने एवं धमकाने के अलावा अपने कारोबार की तथाकथित सुरक्षा के नाम पर एकत्र कर रखा है। अकसर कम दाम पर किसानो का गन्न अपनी – अपनी खांडसारी मिलो के लिए खरीदने के चलते इन लोगो के बीच गैंगवार की स्थिति भी अकसर बन जाती है। भाजपा शासन काल में प्राकृतिक आपदा के चलते किसानो की लगातार मौते के बीच किसानो का कम भाव में गुण्डागर्दी एवं डरा धमका कर खरीदे जाने वाले गन्ना एवं अवैध खांडसारी मिलो की जानाकारी राज्य एवं केन्द्र सरकार के बैतूल जिले के कार्यरत कृषि विभाग , कृषि उपज मंडियो , खाद्य विभाग विभाग , नापतौल विभाग , पुलिस विभाग , सेल टैक्स विभाग , इनकम टैक्स विभाग सहित पूरे सरकारी मोहकमे को रहने के बाद भी पूरा कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। अंतराज्यीय खांड़सारी , राब , शक्कर के परिवहन तथा व्यापार के बदले सभी को कुछ न कुछ इस अवैध काले कारोबार से मिलता है। बैतूल जिले के इस काले कारोबार में भारतीय लोगो की साझेदारी तो समझ में आती लेकिन अब तो इस कारोबार में अप्रवासी भारतीय भी कुद गये है। आमला – बोरदेही मार्ग पर चुटकी – खतेड़ा जोड़ में हाजी साहब नामक अप्रवासी भारतीय द्वारा पिछले तीन सालो से जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन को जानकारी दिये बिना ही कारोबार बिना किसी रोक – टोक के संचालित किया जा रहा है। इस वर्ष हाजी साहब द्वारा अपने कारोबार को बरेली के किसी बड़े करोड़पति को बेच कर पुन: अपनी नई खांड़सारी मिल को स्थापित किया जा रहा है। नजूल की जमीन पर कथित लीज लेकर स्थापित खांड़सारी मिल के स्थापना के पूर्व गन्ना उत्पादक विभाग एवं प्रदुषण विभाग की अनुमति के बिना चल रही इस प्रकार की मिलो से जिले के किसानो के गन्ने का गुड़ नहीं बन पा रहा है।

अपने ही पति को आत्महत्या के उकसाने वाली महिला बंदी की गोद भराई का मनाया जश्र
बैतूल, रामकिशोर पंवार: उस कोख में पल रहे शिशु की मां की गोद भराई का कार्यक्रम वह भी बाजे गाजे के साथ मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार सम्पन्न हुआ। जब कोख से बाहर निकलने वाले शिशु को यह पता चलेगा उसके सिर पर से बाप का साया छिनने वाली कोई और नहीं बल्कि उसकी अपनी सगी मां है। तब उसके दिल पर क्या गुजरेगी इस बात की किसी को चिंता नहीं थी। जब भी इस कड़वे सच का अभी इस दुनिया में नहीं आ पाए शिशु को पता चलेगा तब उसे अपने पिता की कथित हत्या की आरोपी मां की कोख में रहने का मलाल होगा या फिर खुशी इस बात का तो आने वाले समय ही पता लगेगा। अपने जवान बेटे को खो चुकी मां को इस गोद भराई के तमाशे से सबसे बड़ा झटका लगा क्योकि उसके बेटे को उसकी बहू एवं समधन ने आत्महत्या के लिए मजबुर कर दिया था। प्रदेश में पहली बार लीक से हट कर हुए तमाशे के पीछे का कड़वा सच कुछ इस प्रकार है कि बैतूल जिला जेल में जामगांव की 21 वर्षिय विचाराधीण गर्भवति महिला बंदी की गोद भराई का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। जेल परिसर में मीडिया में कथित सुर्खिया बटोरने के लिए उस महिला की गोद भराई हुई जिसके नवजात शीशु के पिता को उसकी नानी एवं मां ने आत्महत्या के प्रेरित कर उसकी जान ले ली थी। जामगांव के कृष्णा सूर्यवंशी को बीते वर्ष 2010 में उसकी पत्नि एवं सास ने साजीश रच कर आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया था। अपने ही पति की आत्महत्या का संगीन आरोप है। मात्र 21 वर्ष की इस महिला प्रियंका उर्फ राधा सूर्यवंशी निवासी जामगांव की जब गोद भराई जिला जेल में चल रही थी तब उसकी आंखो से कथित आंसू झलक उठे लेकिन पत्थर की कथित ममता की मूर्ति बनी मां ने कभी जीवन में यह नहीं सोचा कि जिस बच्चे की आज उसकी गोदी भरी हुई है उसे कल जब यह पता चलेगा कि उसके पिता की हत्या उसकी मां और नानी ने एक षडय़ंत्र रच की की थी तब उसके दिल पर क्या गुजरेगी। जिला जेल बैतूल की इस कथित सराहनीय पहल का समाज में क्या संदेश जाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन संगीन आरोप में जेल में बंदी महिला की गोद भराई का जश्र कहीं गलत संदेश समाज तक न पहुंच जाए। बैतूल न्यायालय में चल धारा 306 के मामले में मां अपनी जवान बेटी के साथ वर्तमान में जेल में बंदी है। ऐसे में जेल के अंदर की सकारात्मक पहल लोगो के बीच गलत संदेश न पहुंचा दे इस बात की कानून के जानकारों एवं समाजशास्त्रियों को चिंता सता रही है। मात्र प्रचार – प्रचार के लिए कार्यक्रम को श्रेय लूटने का जरीया बनाने पर कई प्रकार क्रिया एवं प्रतिक्रया सामने आ रही है। बैतूल जिले के भीमपुर ब्लाक में दर्जनो आगंनवाड़ी महिला कार्यकत्र्ताओं जिसमें कई गर्भवति भी होगी जिन्हे पिछले चार महिने से वेतन तक के लाले पड़ रहे है। आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के दुरस्थ ग्रामो एवं शहरी क्षेत्रो में आज भी कुपोषण से कई बच्चे काल के गाल में समा रहे है। मात्र दो सालो में जिले में एक हजार से अधिक बच्चों की मौतों के लिए जवाबदेही महिला बाल विकास विभाग अपने मूल कार्यक्रम में तो पूर्णत: फेल सिद्ध हुआ हैं। ऐसे में महिला बाल विकास विभाग द्वारा अपनी पीठ थपथपाने के लिए आत्महत्या जैसे संगीन मामले की कथित आरोपी महिला की ही क्यों गोद भराई का जश्र मनाया जाना कहीं अपने चेहरे पर लगी कालिख को साफ करने का प्रयास तो नहीं है। बैतूल जिला जेल में महिला बाल विकास विभाग के ढोल ढमाके के साथ संपादित करवाये गए गोद भराई के कार्यक्रम के पीछे की मंशा आज तक समझ के बाहर की बात है। वैसे भी पूरे प्रदेश में जेल की गतिविधियां लोगो से छुपी नहीं है। उज्जैन से सिमी कार्यकत्र्ताओं की कथित रिहाई के बाद जिला जेल बैतूल में दर्जनो लोगो की उपस्थिति वह भी बाजे – गाजे के साथ कहीं न कहीं जेल रेगुलेशन के विरूद्ध संपादित कार्य का इशारा करते है। पूरे घटनाक्रम के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है कि बैतूल जिला महिला एवं बाल विकास विभाग को जिला जेल बैतूल से चाही गई जानकारी पर पता चला कि जामगांव की प्रियंका उर्फ राधा सूर्यवंशी नामक महिला गर्भवती है। महिला बंदी की बाजे गाजे के साथ गोद भराई की रस्म निभाई गई। सांसद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे व जिला पंचायत अध्यक्ष लता राजू महस्की, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शामिल हुई। मीडिया से जुड़े चुनिंदा लोगो को प्रचार – प्रसार के लिए बुलवाया गया ताकि इस तमाशे को लेकर वाहवाही लूटी जा सके। शासन की ओर से कहा जा रहा है कि मध्यप्रदेश की बैतूल जिला जेल मेें इस को परंपरा को निभाने का यह पहला मौका था, जो महिला बाल विकास विभाग और जिला जेल अधीक्षक के प्रयासों से सफल हो सका था। मुलताई के जाम गांव की रहने वाली प्रिंयका उर्फ राधा पति कृष्णा सूर्यवंशी धारा 306 के मामले अपनी मां के साथ बैतूल जिला जेल में विचाराधीन बंदी है। महिला एवं बाल विकास विभाग के बहुचर्चित विवादो से घिरे जिला अधिकारी प्रदीप राय ने बताया कि जिला जेल से महिला बंदी व बच्चों की जानकारी मांगी गई थी। उन्होंने 21 महिला और बच्चों सहित गर्भवती प्रियंका के बारे में बताया था। विभाग ने जेल अधीक्षक सुश्री शैफाली तिवारी से संपर्क कर आंगनबाड़ी में होने वाले कार्यक्रम की तरह विचाराधीन बंदी महिला की गोद भराई की इच्छा जताई थी। उन्होंने अनुमति दी और इस कार्यक्रम को पूरी रस्मों के साथ निभाया। महिला बाल विकास अधिकारी प्रदीप राय ने  बताया कि गर्भवती महिला को उचित मार्गदर्शन देने की जिम्मेदारी गांधी वार्ड की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सलमा खान को सौंपी गई है। जिले की महिला सासंद श्रीमती ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे ने गोद भराई की रस्म निभाते हुए प्रियंका को आर्शीवाद देते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम की नींव रखने वाले व अनूठी परंपरा की शुरुआत करने वाले बधाई के पात्र हैं। जेल अधीक्षक सुश्री शैफाली तिवारी ने कहा कि बैतूल प्रदेश की पहली जेल होगी, जहां इस तरह की गोद भराई का कार्यक्रम रखा और विचाराधीन महिला बंदी के साथ खुशियां बांटी गईं।

गाढ़ी कमाई के बाद बन गए है मुन्नाभाई
बैतूल, रामकिशोर पंवार: संजू बाबा की फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस की तर्ज पर बैतूल जिले के एक आयुवैदिक कालेज द्वारा फर्जी तरीके से फर्जी डाक्टर बनाने के एक गोरखधंधे का बीते दिनो खुलासा हो गया। मेडिकल कालेज की मान्यता निरस्त होने के बाद मेडिकल के छात्रो को मीरिंडा का छटका जोर से लगा। अपने उज्जवल भविष्य के सुखद सपनो एवं अपने अभिभावकों की गाढ़ी कमाई का लाखों रूपया खर्च कर डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने आए अनेक छात्रों ने कालेज प्रबंधन की पोल खुलने के बाद अपना उग्र रूप दिखा दिया। छात्रों के उग्र रूप के आगे कॉलेज प्रबंधन छात्रों के सवालो का जवाब देने के बजाय बगले झांकते नज़र आ रहा है। अब कालेज की अव्यवस्थाएं देखते हुए उनका यह सपना कभी न पूरा होने की मनोस्थिति में छात्रों का उग्र रूप लेना स्वभाविक है जो किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं। नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले का एक मात्र तथाकथित ओम आयुर्वेदिक कॉलेज के छात्रों आरोप है कि कालेज प्रबंधन हमें भी मुन्नाभाई की तरह फर्जी डाक्टर बना रहा है। उनका कहना है कि यहां से पढ़कर निकलने के बाद उनके पास डिग्री जरूर होगी लेकिन उनके द्वारा किया जाने वाला इलाज किसी भी किसी बंगाली या फिर नीम हकीम डाक्टर की तरह ही होगा। सबसे विचित्र बात यह हैं कि जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर चल रहे इस फर्जीवाड़े में बैतूल जिले के कई नामचीन लोग शामिल है। ओम आर्यर्वेदिक कालेज की मौजूदा स्थिति यह हैं के यहां पढ़ाने के लिए एक शिक्षक भी नहीं है। आन्दोलित कॉलेज के छात्रों के अनुसार यह स्थिति हमेशा से ही रही है। इन छात्रों को हर साल मेडिकल से जुड़े हुए दस सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए कम से कम दो-दो शिक्षक हर सब्जेक्ट में एमडी विशेषज्ञ के रूप में होना चाहिए। मौजूदा परिस्थिति में छात्रों के द्वारा किताबों से रट्टा मारकर परीक्षाएं तो पास कर ली जाती हैं लेकिन पास बेसिक ज्ञान न होने की वज़ह से उनकी तुलना भी आगे चल कर मुन्ना भाई की तरह ही होगी। मेडिकल कालेज के तृतीय वर्ष एक छात्र ने बताया कि पिछले तीन साल में मेडिकल कॉलेज के अंदर महज एक दिन प्रेक्टिकल हुआ और उसमें भी कहीं कुछ भी नहीं बताया गया। जबकि हर सब्जेक्ट में मेडिकल में प्रेक्टिकल का होना अनिवार्य है। सफेद हाथी साबित हो रहे मेडिकल कालेज परिसर के अस्पताल में कुछ भी नहीं होता है। स्थिति तो यहां पर यह हैं कि इस अस्पताल में आज तक कभी कोई मरीज भर्ती नहीं हुआ हैं। इंटरशिप तो कभी किसी छात्र को कॉलेज में नहीं करवाई गई। यहां पर पढ़ाई जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। फीस जरूर पूरी ली जाती है। परीक्षा और प्रेक्टिकल फीस की रसीद तक नहीं दी गई।  डॉ. जीडी राठी, सचिव प्रबंध समिति ओम आयुर्वेदिक कॉलेज
का कहना हैं कि उनके पैसे की कमी की वजह से शिक्षकों और व्यवस्थाओं को पूरी नहीं कर पा रहे हैं, उसके बाद भी हमारा रिजल्ट सबसे अच्छा रहता है।

फिर आ धमकी सीबीआई: नेताओं की धकडऩे बढ़ी
पारधियों के पुन: लिए जा रहे अंगूठे के निशान
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बैतूल जिले में जब -जब सीबीआई चौथिया पारधी कांड को लेकर आ धमकती हैं तब- तब पारधीकांड को लेकर आरोपो के घेरे में आ चुके कांग्रेस , भाजपा , सपा के नेताओं की दिल की धड़कने बढऩे लगती हैं। । अचानक बैतूल आई सीबीआई की टीम ने मुलताई तहसील की ग्राम पंचायत चौथिया के सचिव विजय सराठकर और पटवारी गुलटकर को तलब किया। इन दोनों के बयान भी रिकॉर्ड कर जिला मुख्यालय में शरणार्थी का जीवन जी रहे पारधियों के अंगूठे के निशानों को दोबारा लिया गया हैं। ग्राम पंचायत चौथिया में पारधी कांड के पहले ग्राम पंचायत चौथिया द्वारा अतिक्रमण में बसे पारधियों को हटाए जाने के लिए नोटिस जारी किए गए थे। करीब 51 पारधी परिवारों को यह नोटिस दिए थे। पारधियो का कहना था कि फर्जी अंगूठों के निशान थे और बच्चों तक के नाम से नोटिस जारी किए गए थे। उनके मकान भी बिना पूर्व सूचना के सुनियोजित तरीके से तोड़े गए हैं। अतिक्रमण हटाने के पूर्व लिए गए अंगूठो की जांच करने के लिए एक बार फिर से दिल्ली से आए सीबीआई अधिकारी गुप्ता के साथ आई टीम ने पिछले दो दिनों से पारधियों के दोनों डेरों से पारधियों को तलब कर नए सिरे से अंगूठे लगवाने का काम किया है, ताकि दोनों निशानों के बीच तुलनात्मक पड़ताल की जा सके।पूरे अंगूठे गलत तरीके से लगाए गए थे। पारधियों के अंगूठे के निशान नहीं थे और अब अचानक नए – नए फण्डे के साथ आ धमकी सीबीआई ने पुन: बुलाकर अंगूठे लगवा रही है ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। पारधी सरगना अलस्या पारधी के अनुसार जांच के परिणाम कब तक आएगें हमें नहीं मालूम लेकिन इस तरह सीबीआई के आ धमकने से हमें रोज एक नई सुबह का इंतजार रहता हैं। उस सुबह के चक्कर में अभी तक 28 पारधियों की मौते भी हो चुकी हैं। बैतूल जिला मुख्यालय पर बने अस्थाई सीबीआई के कार्यालय के सामने जब भी वाहनो का जमावड़ा होने को लगता हैं जिले की मीडिया और राजनीति में उथल – पुथल शुरू हो जाती हैं। जिले के पूर्व एवं वर्तमान विधायक , पूर्व सासंद ,सहित आधा दर्जन नेता तथा लगभग आधा दर्जन अधिकारी पारधी कांड को लेकर सीबीआई के द्वारा दर्ज अपराध में आरोपी बनाए जा चुके हैं। पूरे मामले में पिछले कई सालों से सिर्फ जांच चल रही हैं जिसके चलते सीबीआई की गिरफ्त से बाहर जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों की दिल की धड़कने बढऩे लग जाती हैं।

पीआरओ बन जन सम्पर्क कार्यालय चला रहा है चतुर्थश्रेणी कर्मचारी
कलैक्टर को कटींग भिजवाने की आड़ में होता है ब्लेकमेलिंग सौदेबाजी का खेल
बैतूल,रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का जन सम्पर्क कार्यालय में भले ही सहायक सूचना अधिकारी की पदस्थापना हो जाती हैं लेकिन पूरा जन सम्पर्क कार्यालय एवं जिले में पीआरओ बन कर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही अवैध चौथ वसूली का कार्य एक दो नहीं बल्कि पूरे एक दशक से अधिक समय से कर रहा है। भोपाल में बैठे जन सम्पर्क विभाग के आला अफसरो का कथित मुंह लगा जन सम्पर्क विभाग का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अपने आप को कर्मचारी संघ का नेता बता कर जहां एक ओर प्रशासन पर अपनी कथित पहुंच का दबाव बना कर उन्हे ब्लेकमेल कर रहा हैं वही दुसरी ओर वह यह तय करता हैं कि जिले में किस पत्रकार की $खबर की कतरन कलैक्टर तक पहुंचाई जाए या नहीं। सबसे शर्मनाक बात तो यह हैं कि जन सम्पर्क विभाग के अभी तक के अधिकारी उसके सामने पानी भरते है और जो उसकी बात नहीं मानता हैं तो उसे वह पत्रकारो से आपस में लड़वा देता है या फिर जिला प्रशासन से उसे उलझा देता हैं। दो पूर्व जन सम्पर्क अधिकारियों का हश्र भी इसी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की नीति और रीति के चलते हुआ था। बैतूल में पदस्थ रहे सहायक संचालक जन सम्पर्क श्री धौलपुरिया का पूर्व कलैक्टर चन्द्रहास दुबे एवं अरूण भटट से विवाद के पीछे का षडय़ंत्र भी इसी कर्मचारी की ही देन है। पत्रकार गगनदीप खरे एवं रजत परिहार के बीच कथित वाद विवाद को हवा देकर इसी कर्मचारी रूपी नेता ने दोनो को लड़वा दिया। इस घटना का दुखद पहलू यह रहा कि श्री धौलपुरिया के कहने पर एक कर्मचारी की शिकायत पर दोनो पत्रकारो के खिलाफ शासकीय कार्य में बाधा एवं अनुसूचित जाति जन जाति प्रताडऩा अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज करवाया गया। कलैक्टर से विवा के चलते श्री धौलपुरिया की जल्दी से बिदाई हो गई। इसी कड़ी में बीते दो वर्षो से प्रशासन एवं पत्रकारों के बीच मध्यस्थता कर रहे सहायक सूचना अधिकारी गुलाब सिंह मर्सकोले एवं बैतूल कलैक्टर के बीच विवाद का बीज बोने में इसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की कथित भूमिका रही। बताया जाता हैं कि जन सम्पर्क कार्यालय में लिपीक के अभाव में कार्यालय की लेखा शाखा का कार्य एपीआरओ श्री मर्सकोले ने इस कर्मचारी नेता को न देकर एक अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को दे रखा था जिसके चलते विभाग की आतंरिक कलह बाजार में आने लगी। लाल बंगले को खाली करवाने की कलैक्टर की तथाकथित एपीआरओ से बातचीत को भी इसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी द्वारा सार्वजनिक कर पत्रकारो को आपस में ही एक दुसरे से उलझा कर लाल बंगले को खाली करवाने को लेकर हुई कथित सौदेबाजी की कहानी गढ़ कर प्रशासन और पत्रकारों के बीच एक लम्बी चौड़ी दिवार खीच कर दोनो को आपस में लड़वा कर एपीआरओं को मोहरा बना कर उसे कलैक्टर के विवाद में बलि का बकरा बना दिया गया। सूत्रो का तो यहां तक कहना हैं कि पिछले छै माह से बैतूल आने का लालयीत वर्तमान एपीआरओ एवं इस कर्मचारी नेता के बीच हुई कथित सौदेबाजी के चलते सोची समझी  साजिश के तहत एक षडय़ंत्र रचा गया। जिसके लिए कलैक्टर को मोहरा बना कर जानबुझ का लाल हवेली का मामला उछाला गया। अपने विभाग की गोपनीयता से लेकर एसडीएम और कलैक्टर के द्वारा लाल बंगले को खाली करवाने के गोपनीय शासकीय पत्रों को सार्वजनिक कर एक ओर कलैक्टर के कथित विरोधी पक्ष के पत्रकारो को भड़काने का काम किया गया वही दुसरी सवर्ण जाति के कुछ पत्रकारों के साथ मिल कर कलैक्टर को आदिवासी एपीआरओ मर्सकोले के खिलाफ इस कदर भड़काया गया कि कलैक्टर और एपीआरओं के बीच हुए विवाद ने सवर्ण जाति के एपीआरओं के रास्ते का कांटा बना आदिवासी एपीआरओं को बलि का बकरा बनना पड़ा। पूरे मामले के कुछ रोचक तथ्य यह सामने आए थे कि एपीआरओं को पता चल चुका था कि चर्तुथ श्रेणी कर्मचारी जन सम्पर्क कार्यालय से प्रतिदिन होने वाली कंटिगो को कलैक्टर के कार्यालय भेजने के पूर्व संबधित विभाग के कर्मचारियों को फोन लगा कर डराता एवं धमकाता था कि यदि उनके खिलाफ छपी कतरने कलैक्टर तक पहुंचा दी गई तो उनकी नौकरी पर आफत आ जाएगी। कलैक्टर तक वे ही कतरने भेजी जाती थी जिसमें कुछ मिला न हो। समय – समय पर कलैक्टर एवं एपीआरओं के बीच चले शीतयुद्ध का इस चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने भरपुर फायदा उठाया और आज भी वहीं कार्य कर रहा हैं। अब बैतूल जन सम्पर्क कार्यालय का वर्तमान सवर्ण जाति के एपीआरओं के आने के बाद एक बार फिर दलित एवं आदिवासी तथा पिछड़े वर्ग के पत्रकारो के साथ वहीं होगा जो अभी तक नहीं हुआ था। अब बैतूल जन सम्पर्क कार्यालय में अधिमान्यता से लेकर विज्ञापन तक की दुकाने लगेगी और चपरासी से लेकर अधिकारी तक मिल बाट कर माल कमायेंगें।

‘दोस्त दोस्त ना रहा प्यार ,प्यार ना रहा ……..”
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
कहना नहीं चाहिए लेकिन सच को आखिर कब तक छुपाया जा सकता हैं। आप लोगो को सुन कर बेहद आश्चर्य होगा कि वैसे तो मेरे कई दोस्त और कई दुश्मन रहे हैं। एक बात सोलह कटु सत्य हैं कि मैंने किसी से भी जानी दुश्मनी न तो मैनें की हैं और न करने में विश्वास रखता हूं। मैने दोस्तो में दुश्मनो की और दुश्मनो में दोस्तो की झलक को देखा है। एक बात कहूं कि आज के समय न तो आपको सच्चा दोस्त मिल सकता हैं और न इमानदार दुश्मन हर कोई आस्तीन का सांप निकलने लगा हैं। दुश्मनी के बारे में किसी शायर ने ने खुब कहा हंै कि ”दुश्मनी जम कर करो ,लेकिन इतनी गुंजाइश रहे कि जब कभी मिले तो शर्मींदा न हो….” मैने हमेशा दोस्तो से ही धोखा खाया हैं। दुश्मनो से मुझे हमेशा दोस्त जैसा सहयोग मिला हैं इसलिए मैं आज तक समझ नहीं सका हंू कि दोस्त और दुश्मन में कौन अपना और कौन पराया….? काका की एक फिल्म का एक गीत मुझे अकसर दोस्त और दुश्मन की परिभाषा को समझने में सहायक सिद्ध होता हैं। मुमताज एक गीत गाती हैं कि ”एक दुश्मन जो दोस्तो से भी प्यारा है..” मैने जिन लोगो की ऊंगली पकड़ कर पत्रकारिता की पहली सीढ़ी पर कदम रखा है उन चंद लोगो में मेरे बड़े भाई समान दो मित्रों में हारून भाई अजय वर्मा को मैं अपने जीवन में कभी भूल नहीं सकता। मैं उनके छोटे भाई के रूप में स्वंय को समझता रहा हूं लेकिन दोनो ने मेरे भाई से हट कर एक सच्चे दोस्तो की तरह दोस्ती निभाई हैं। उनकी बेमिसाल दोस्ती वह भी बिना स्वार्थ की जो आज देखने को तक नहीं मिलती हैं। मैने अपने परिवार के अलावा यदि कुछ गिने चुने लोगो के साथ अपना वक्त बैतूल और बैतूल के बाहर बीताया है तो उनमें एक नाम हारून भाई का हैं। मैं इस व्यक्ति को आज तक समझ नहीं सका हूं। लोगो को अकसर कहते सुना हैं कि लोग आस्तीन में सांप पालते हैं लेकिन मैं तो हारून भाई के कुर्ते में सापों को पलते देखा हूं। यदि मैं यह कहूं कि काले विषधर , भुजंग , कोबरा सांप हारून भाई की आस्तीन में नहीं बल्कि गले में , जेब में कालर में , बाह में यहां तक की उनके कुर्ते के बटन तक में देखा हूं। आज हारून भाई के इस हाल के लिए वे ही सांप जिम्मेदार है जिन्हे हारून भाई ने जाने – अजाने में पाल रखा था। आज मैं जब भी हारून भाई को अपने दोस्तो को बुरा – भलां कहते सुनता हूं तो मुझे उन पर गुस्सा आता हैं वह इसलिए कि आखिर उन्होने ऐसे दोगले काले नागो को पाल कर क्यों रखा था? हारून भाई को उनकी जाति – बिरादरी और उसके बाहर के लोगो ने भी जो धोखा दिया है उसे देख कर तो ऐसा लगता हैं कि मुझे मिला धोखा कई गुणा कम है। कल का वह हारून भाई जिसकी जेब नोटो से भरी होती थी आज की उसकी जेब मे कागजो के टुकड़े मिलेगें जिनमें गुजराती भाषा में क्या लिखा रहता है यह लिखने वाला ही जानता हैं। पहले लोग हारून भाई के पीछे लोग सम्मान लेकर भागते थे आज वहीं हारून भाई सम्मान को तरस रहा हैं। सम्मान कोई प्रमाण पत्र का या मैडल का नहीं बल्कि अपनत्व एवं भाईचारे के दो शब्दो का हैं। आज भी मैं हारून भाई और अजय वर्मा एक दुसरे को गालियां देते मिल जाएगें लेकिन दोनो की दोस्ती में दरार नहीं आई जिसके पीछे हारून भाई का बड़प्पन एवं अजय वर्मा का अपनत्व है। दोनो एक दुसरे के बिना न तो पहले रहे है और न आज रह रहें हैं। हारून भाई और अजय वर्मा दोनो की हालत किसी से छुपी नहीं है। दोनो के पास धन से बड़ा दिल है। आज उनके पास सबसे बड़ी दौलत एक दुसरे के प्रति दिल से जुड़ा रिश्ता हैं। आज भी अजय वर्मा और हारून भाई से पहले जैसा अपनी मांग के अनुसार खाना बनवा कर खाते हैं। आज मुर्गा खाना है या फिर बिरयानी या फिर अण्डाकरी हारून भाई अपने भाई समान दोस्त के लिए कभी भी मना नहीं कर पायें है। यही कारण हैं कि आज भी हारून भाई और अजय वर्मा को फोन करके खाना खाने के लिए बुलाते हैं। अजय भैया ने जब अपनी कार ली तो वह सीधे हारून भाई के पास पहुंचा और फिर मेरे घर की ओर निकल पड़े यह सोच कर आज एक बार फिर तीनो दोस्त मिल कर कहीं घुमने निकल पड़ते है। मैं उनसे नहीं मिला लेकिन उनका संदेश जरूर मिल गया। आज के समय मक्कारो की लम्बी फौज में सच्चा दोस्त को खोज निकालना आसमान में तारे गिनने के समान काम हैं। बैतूल बाजार के ही श्री प्रहलाद कुमार वर्मा का जिक्र भी इस लेख के माध्यम से करना चाहूंगा क्योकि उनमें भी कहीं न कहीं दोस्ती को निभाने की अपार क्षमता थी। उनके गिने चुने दोस्तो में स्वर्गीय बाबूजी रामस्वरूप सिंह चौधरी का प्रमुख नाम था। मालवीय प्रेस पर घंटो बैठे गप्पे लड़ाते नवभारत की टीम के दो प्लेयर बैतूलवी पत्रकारिता से लेकर राजनीति तक पर चर्चा करते रहते थे। उनके साथ चर्चा में कभी कभार स्वर्गीय भवरचंद गर्ग और बड़े वकील साहब राधाकृष्ण गर्ग भी साथ हो जाते थे। वकालत की शिक्षा लेने के बाद प्रहलाद भैया ने काला कोट पहनने के बजाय कलमसे कागज को काला करके लोगो को ”काला अक्षर भैस बराबरÓÓ वाली कहावत का अर्थ समझाने का प्रयास किया। उनकी लेखनी के चलते उनका भी मेरा जैसा हाल था। उनका सीधा – सीधा लिखना लोगो को हज़म नहीं होता था। मैंने उस समय भी गुटो में बटी पत्रकारिता में स्वंय को बाट रखा था। मैं भले ही हारून भाई के साथ था लेकिन मेरी दुआ सलाम और कुछ सीखने एवं समझने की जिज्ञासा प्रहलाद भैया से बनी रही। यह भी हो सकता हैं कि उन्होने मेरे में अपनी लेखन छबि देख हो इसलिए वे भी मेरी लेखनी की तारीफे किया करते थे। कलम का पैनापन जो प्रहलाद वर्मा में था आज वह कमल वर्मा या विनय वर्मा में देखने को नहीं मिल सकता क्योकि आज की पत्रकारिता धंधे से शुरू होती है और धंधे में बंद हो जाती हैं। बरसो तक एक ही अखबार में जमें रहने का रिकार्ड केवल बैतूलवी पत्रकारिता में प्रहलाद वर्मा के नाम पर ही दर्ज हैं। केवल प्रहलाद भैया ही एक मात्र पत्रकार है जिन्होने नवभारत से आखरी समय तक अपना रिश्ता निभा रखा था। यदि मैं कुछ इस प्रकार से कहूं कि वे नवभारत परिवार के ही सदस्य थे तो अतिश्योक्ति नहीं होगीं। उनकी भी दोस्ती कम सुर्खियों में नहीं रहीं। श्रद्धेय प्रहलाद भैया और सीहोर के शंकर लाल साबू , विजयदत्त श्रीधर की तिकड़ी ने ही मध्यप्रदेश आंचलिक पत्रकार संघ की नींव रखी थी।  आज इस तीन मित्रों को मिले बरसो हो गया होगा। आज की पत्रकारिता में दोस्त बनाना कठीन काम हैं। यदि हम कुछ इस प्रकार दोस्ती को गीत में गुणगुनाए कि ”तेरे जैसा यार कहां , कहां ऐसा याराना याद करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना …… दोस्ती के अफसाने लोग कम सुनाते हैं क्योकि दोस्ती के लिए सुग्रीव जैसी इमानदारी और विभिषण जैसी निष्ठा चाहिए। वैसे दोस्ती तो कृष्ण और सुदामा की भी थी लेकिन वह कृष्ण कहां खो गया जो अपने दोस्त के एक मुटठ्ी चावल के लिए अपना सब कुछ दोस्त पर न्यौछावर कर चुके  थे। आज की दोस्ती की इस कथा में यदि हम जय और वीरू का जिक्र करे तो हमें जय की तरह समपर्ण और वीरू की तरह बड़े दिल वाला दोस्त कहां मिलेगा….? आज जो गठबंधन की दोस्ती का जमाना हैं। हर कोई किश्तो और शर्तो तथा ट्रम्स आफ कंडीशन पर दोस्ती करने का एग्रीमेंट करने से नहीं चुकते हैं। दोस्ती एक प्रकार का अनुबंध पत्र हो गया हैं। दोस्ती में भी टाइम लीमिट जैसे शब्दो का प्रयोग होने लगा हैं। दोस्ती को समर्पित इस लेख को मैं यही समाप्त करता हूं क्योकि दोस्ती और दुश्मनी एक ही नाम राशी के शब्द हैं। राम और रावण एक ही नाम राशी के थे लेकिन दोनो में दोस्ती नहीं हो सकी और दुश्मनी हो गई क्योकि दुश्मनी और दोस्ती भी एक ही नाम राशी के हैं। मेरा ऐसा मानना हैं कि दोस्ती और दुश्मनी तुला राशि की तरह एक ही तराजू के दो पल्ले है जो कभी भी एक समान नहीं हो सकते हैं। एक न एक पल्ले को ऊपर और नीचे होना पडेगा क्योकि समान रहने से दोनो का समीकरण बिगड़ जाएगा।

इति
लेखक
रामकिशोर पंवार
दैनिक पंजाब केसरी दिल्ली के
बैतूल प्रतिनिधि हैं।

खुले आम बेची जा रही है कुत्तामार ज़हरीली अवैध कच्ची शराब
शराब ठेकेदार के मैनेजर के संरक्षण में चल रहा है औद्योगिक क्षेत्र में अवैध कारोबार
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बउ़ी नगर पालिका सारनी में बीते एक दशक में अवैध कच्ची कुत्तामार ज़हरीली शराब से तीन सौ से अधिक लोगो की मौतो के बाद भी सबक नहीं सीख पाए आबकारी एवं पुलिस विभाग की मिली भगत से बड़े पैमाने पर गली – गली में बिक रही यूरिया , नौसादर , सल्फर , एसीड़ , खटमल मार दवा एवं चुहामार दवा के कथित उपयोग से तेज एवं नशीली शराब बना कर बेचने का गोरखधंधा किसी दिन किसी बड़े हादसे को जनम दे सकता है। बैतूल जिले के संवेदनशील औद्योगिक क्षेत्र सारनी एवं पाथाखेड़ा की गलियों में लगातार बड़े पैमाने पर बिकने वाली कच्ची अवैध , ज़हरीली कुत्तामार के नाम से पहचानी जाने वाली शराब अब नकली पेंकिग करके शासकीय देशी एवं विदेशी मदिरा की दुकानो से भी बेचने वाले बड़े गिरोह का खुलासा किया है। बताया जाता हैं कि भोपाल की बहुचर्चित सोम डिस्लरी के एक निकटवर्ती मेसर्स बाना सिंह के नाम पर लिए गए शासकीय देशी एवं विदेशी मदिरा के ठेके का मैनेजमेंट देखने वाले हरियाणी मनोज शर्मा के कथित संरक्षण में उक्त अवैध कारोबार चल रहा है। शासकीय शर्तो पर कथित घाटे के बाद भी ठेका लेने का बहाना बनाने वाले शासकीय ठेकेदार के मैनेजर ने कथित घाटे से ऊबरने के लिए हजारो लोगो को मौत के मुंह में धकेलने का बीड़ा उठा लिया हैं। बड़े पैमाने पर औद्योगिक क्षेत्र सारनी – पाथाखेड़ा – बगडोना एवं सलैया तक चल रहा अवैध कारोबार किसी दिन किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं इस बात से बेपरवाह शराब माफिया को सत्ताधारी दल के नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों का संरक्षण भी मिला हुआ हैं। वैसे भी वेस्टर्न कोल फिल्ड लिमीटेड पाथाखेड़ा एवं एमपीइबी सारनी के 36 वार्डो में सस्ती अवैध कच्ची शराब का कारोबार कोई आज की बात नहीं हैं। लेकिन इस बार तो सारी हदे पार करके शराब ठेकेदारो की आपसी लड़ाई का फायदा उठा कर स्वंय की दुकानो को घाटे में दिखा कर हरियाणी शर्मा जी ने तो दोनो हाथो से माल बटोरने का मूलमंत्र अपना लिया हैं। भोपाल की बहुचर्चित सोम डिस्लरी कंपनी के हरियाणी मैनेजर मनोज शर्मा के संरक्षण में पुलिस एवं आबकारी विभाग की मिली भगत से बड़े पैमाने पर चल रहा यह धंधा कब रूक सकेगा कहना असंभव हैं। अवैध कच्ची शराब के चलते बीते दस वर्षो में तीन सौ से ज्यादा लोगो की अकाल मौते हो चुकी है जिसमें दो दर्जन से अधिक वेकोलि के कामगार है। सल्फर और एसीड के मिश्रण से बनने वाली कुत्तामार देशी शराब की लागत प्रति बाटल पांच रूपए आती हैं लेकिन वहीं शराब बोतलो में सिलबंद करके बीस रूपए में बेची जा रही हैं। वैसे शासकीय देशी मदिरा वर्तमान में 25 रूपए से 30 रूपए तथा विदेशी मदिरा 70 से 80 के बीच में बिकती है लेकिन पेकिंग मशीन से ज़हरीली कुत्तामार अवैध शराब सरकारी लेबल लगा कर बेचने से शराब ठेकेदार एवं राज्य सरकार के आबकारी विभाग को भी भारी नुकसान हो रहा हैं। हालाकि पूरे बैतूल जिले में शराब माफिया और सरकारी शराब ठेकेदारो के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा के चलते आमला , बैतूल , शाहपुर , मुलताई , जमाई क्षेत्र की देशी – विदेशी शराब के अवैध कारोबार को रोकने में असफल सिद्ध हुआ पुलिस एवं आबकारी विभाग बड़े पैमाने पर सारनी नगर पालिका क्षेत्र के 36 वार्डो में अवैध कारोबार को संचालित करवा रहा हैं। सारनी नगर पालिका क्षेत्र में अभी तक आबकारी विभाग एवं पुलिस विभाग की कथित छापामारी का पंचनामा एवं जप्ती रिकार्ड का अवलोकन करे तो पता चलता हैं कि सोम कंपनी एवं मेसर्स बानासिंह की आड़ में सोम में चल रहे इस अवैध कारोबार की एक मोटी रकम कपंनी के हरियाणी मैनेजर मनोज शर्मा की जेब में जा रही हैं। इसके पूर्व सारनी की शासकीय एवं विदेशी शराब का ठेका ग्वालियर की शिवहरे कंपनी के पास था लेकिन पिछले दो साल से लगातार कथित घाटे में चल रही सोम एवं बानासिंह की कंपनी को होने वाला कथित घाटा उनके ही लोगो द्वारा पहुंचाया जा रहा हैं। कुल मिला कर अपने ही लोगो के द्वारा अपनी कब्र को खुदवाने का काम सारनी पाथाखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में हो रहा हैं। वैसे एक बात तो सच हैं कि भोपाल की सोम डिस्लरी अपने गुर्गो की आड़ में ही शराब के ठेके लेती तो जरूर है लेकिन उनके ही कर्मचारी उन्हे गर्त में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

शिवराज भैया की बहनो की मोबाइल टार्ज की रोशनी में होने लगी है डिलेवरी
बैतूल, रामकिशोर पंवार: भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष स्वास्थ एवं परिवार कल्याण के लिए मध्यप्रदेश सरकार को भेजे जाने वाले करोड़ो – अरबो रूपए के अनुदान के बाद भी प्रदेश की भाजपा सरकार बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में हमेशा ही सुरक्षित प्रसव को लेकर सुर्खियों में रही हैं। सुरक्षित प्रसव के लिए जननी सुरक्षा योजना शुरू होने के बाद भी रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मोबाइल टार्च की रोशनी में डिलेवरी हुई। इस घटना से नाराज ग्रामीणों ने रात में ही अस्पताल में प्रदर्शन कर पंचनामा तैयार किया। अब ग्रामीण यहां पदस्थ महिला डॉक्टर को हटाने की मांग कर रहे हैं। बीती रात को लोहारढाना निवासी आशा पत्नी मंटू आदिवासी को डिलेवरी के लिए रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया। पहले तो यहां डॉक्टर नहीं होने से परेशानी हुई, बाद में अस्पताल में बिजली गुल होने से दिक्कतें बढ़ गईं। सरपंच इंदिरा धुर्वे, प्रदीप मालवीय, पूरन सराठे, जगराम, धीरेंद्र ठाकुर, अरविंद साहू, उमेश बाघ, सुभाष पांडे, राजेश श्रीवास, फुलंता बाई, अभिषेक सैनी किशोर पांडे समेत अन्य लोगों ने बताया कि पूरे गांव में बिजली थी, लेकिन अस्पताल की बिजली गुल थी। आशा की तकलीफ बढऩे के कारण यहां पदस्थ संगीता चौधरी प्रसव कराने के लिए तैयार हुई। इसके बाद लोगों ने दो मोबाइल टार्च की सहायता से प्रसव कराया। ग्रामीणों ने बताया कि यहां पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पासिंह ने खुद के घर अस्पताल के बैटरी लगा रखी है। इसके अलावा उक्त डॉक्टर ने पानी गर्म करने के लिए लाए गए गैस चूल्हे को भी अपने घर में लगा रखा है। ग्रामीणों ने बताया कि अस्पताल में पिछले तीन महीने से बिजली नहीं है। इसके अलावा दवाओं का भी टोटा है। ग्रामीणों ने बीएमओ को आवेदन सौंपकर महिला डॉक्टर पुष्पा सिंह को हटाने की मांग की है। अभी कुछ दिन पहले रानीपुर में ही एक महिला की खुले आसमान के नीचे प्रसव करने को विवश होना पड़ा। ग्रामीणों ने पहले भी इस मामले की शिकायत की थी। डॉक्टर के रानीपुर में न रहकर पाथाखेड़ा रहने संबंधी शिकायत की थी उसके बाद भी डाक्टर के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस बार भी मोबाइल टार्च में डिलेवरी की गई है तो यह गंभीर बात है। इस संबंध में कब जांच होगी कहना मुश्कील हैं। बैतूल। रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक महिला की मोबाइल फोन की लाइट से डिलेवरी के मामले का खुलासा होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने संबंधित डॉक्टर के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। साथ ही इस पूरे घटनाक्रम में डॉक्टर को नोटिस दिए जाने की बात भी कही। सीएमएचओ डॉ. दिनेश कौशल ने बताया कि रानीपुर में मोबाइल से डिलेवरी के मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं।

नर्मदा की तरह ताप्ती कुंभ के आयोजन को लेकर मंथन
बैतूल, रामकिशोर पंवार: बीते दिनो सम्पन्न हुए नर्मदा कुंभ की तर्ज पर मां सूर्यपुत्री ताप्ती के जन्मोत्सव पर बैतूल जिले में भी व्यापक स्तर ताप्ती कुंंभ के आयोजन को लेकर मां ताप्ती जागृति मंच का विचार मंथन कार्यक्रम शुरू हो गया है। इस कार्यक्रम के तहत ताप्ती से जुड़े संगठनो एवं संस्थाओं तथा ताप्ती श्रद्धालु भक्तों से विचार मंथन कार्य किया जा रहा हैं। मुुलताई से लेकर रहटगांव तक बैतूल जिले की सीमा में लगभग 250 किलोमीटर बहने वाली मां सूर्यपुत्री ताप्ती के तटो पर उक्त कुंभ का आयोजन किया जाएगा। मां ताप्ती जागृति मंच इस प्रयास में है कि ताप्ती महाकुंभ का आयोजन शिवधाम बारहलिंग पर हों जिसके लिए सभी राजनैतिक , सामाजिक ,धार्मिक संगठनो तथा स्वंयसेवी संगठनो को मिला एक आयोजन समिति का गठन किया जाएगा। समिति जन सहयोग से महाकुंभ में साझेदारी के लिए लोगो को प्रेरित करेगी। मंच के संस्थापक रामकिशोर पंवार के अनुसार बैतूल जिले में अषाठ शुक्ल की सप्तमी को आयोजित होने वाले एक दिवसीय महाकुंभ में देश भर से ताप्ती महिमा के जानकारों के अलावा बारह ज्योतिलिंगो के प्रमुख पुजारियों को भी शिवधाम बारहलिंग में लाने का प्रयास किया जाएगा। महाकुंंभ में तीन राज्यों मध्यप्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र के राज्यपालो एवं मुख्यमंत्रियों को भी लाने का प्रयास किया जाएगा। मंच की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार महाकुंभ में देश – विदेश में चार से पांच लाख लोगो को लाने के लिए पहल की जाएगी।

रामकिशोर पंवार
आइसना के जिलाध्यक्ष नियुक्त
बैतूल। जिले से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र हिन्दी पाक्षिक हमसे कुछ छुपाया नहीं जा सकता के प्रकाशक एवं संपादक रामकिशोर पंवार को आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एशोसिएशन के प्रांतीय महामंत्री विनय जी डेविड ने बैतूल जिला इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया है। बैतूलवी पत्रकारिता के क्षेत्र में बीते 27 वर्षो से कार्यरत रामकिशोर पंवार इसके पूर्व भी कई संगठनो के जिलाध्यक्ष एवं प्रांतीय कार्यसमिति तथा राष्ट्रीय कार्यसमिति के भी पदाधिकारी एवं सदस्य रह चुके है। हाल ही में बैतूल विश्रामगृह में सम्पन्न हुई आलसना की बैठक में प्रदेश महामंत्री विनय जी डेविड ने रामकिशोर पंवार को इकाई का जिलाध्यक्ष नियुक्त करते हुए जिला कार्यकारिणी घोषित करने के लिए अधिकृत किया है। रामकिशोर पंवार ने जिले भर से प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्रो के प्रकशको , संपादको , रिर्पोटरो से आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एशोसिएशन की सदस्यता लेकर संगठन से जुडऩे की अपील की है। श्री पंवार के अनुसार बैतूल जिले में जल्द ही आइसना का जिला स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जायेगा जिसमें प्रदेश के कई ख्याति प्राप्त पत्रकार एवं चिंतक भाग लेगें। सम्मेलन मई माह में प्रस्तावित किया गया है। विश्रामगृह मे सम्मेलन की रूप रेखा एवं संगठन के गठन को लेकर आयोजित बैठक में भोपाल से आए आइसना के पदाधिकारियों ने भाग लिया। रामकिशोर पंवार को आइसना का जिलाध्यक्ष बनने पर जिले भर के उनके पत्रकार मित्रो ने बधाई दी। वर्ष 1982 से पंजीकृत आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एशोसिएशन के पूरे देश भर में जिला एवं तहसील तथा विकासखण्ड स्तर पर संगठन कार्य कर रहे है। पौने दो लाख सदस्यता वाला आइसना देश का एक मात्र पत्रकारो का संगठन है जिससे छोटे एवं लघु समाचार पत्रों के प्रकाशक से लेकर रिर्पोटर तक जुड़े हुए है।

बंद हो जाएगी सौ साल पुरानी बैतूल बाजार की प्रायवेट गुड़ मंडी
बैतूल, रामकिशोर पंवार: कभी देश और दुनियां में जाना – पहचाना जाने वाला बैतूलबाजार का शुद्ध देशी गुढ़ अब बैतूल बाजार की प्रायवेट मंडी और दलालों के चुंगल से मुक्त होकर सरकारी कृषि उपज मंडी में बिकना शुरू हो जाएगा। राजपत्र में प्रकाशित एक संशोधन के अनुसार गुड़ को कृषि उत्पाद मान लिया गया हैं इसलिए अब सरकारी कृषि उपज मंडी के माध्यम से ही किसानो द्वारा इसे बेचा जा सकेगा। सरकारी संशोधन के बाद से मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के बैतूल बाजार की सौ साल पुरानी गुड़ मंडी को बंद कर गुड़ खरीदी का काम अब बैतूल कृषि उपज मंडी से किया जाएगा। इस नई व्यवस्था को लेकर कृषि उपज मंडी बैतूल ने गुड़ व्यापारियों को नोटिस भी जारी कर दिए हैं कि वे विधिवत खरीदी के लिए लाइसेंस बनवा लें। मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 की धारा 60 के तहत किए गए संसोधन में गुड़ को कृषि जींस में शामिल कर लिया गया है और इसी के तहत कृषि उपज मंडी ने गुड़ खरीदी के लिए मंडी प्रांगण में व्यवस्थाएं बनाना शुरू कर दी है। बडोरा स्थित कृषि उपज मंडी मे गुड़ की खरीदी भी शुरू होने से किसानों में हर्ष है। भारतीय किसान संघ के नगर अध्यक्ष नरेंद्र गोठी ने बताया कि इससे किसानों को काफी फायदा मिलेगा। किसान अब अपना गुड़ औने-पौने दाम में बेचने से बच सकेंगे। किसान संघ द्वारा लंबे समय से इसकी मांग की जा रही थी। अपनी गुड़ मंडी के लिए प्रसिद्ध बैतूल बाजार की पहचान ही इस मंडी के खत्म हो जाने से संकट में आ गई है। साथ ही यहां पर आढ़ैत का काम करने वाले व्यापारियों की दलाली का काम भी बंद हो जाएगा। उन्हें अब विधिवत लाइसेंस लेकर खरीदी करना होगी। मंडी के बंद होने की स्थिति को देखकर बैतूलबाजार में अभी से आक्रोश नजर आने लगा है। आरके अग्रवाल, मंडी सचिव बडोरा के अनुसार जल्द ही बडोरा कृषि उपज मंडी में गुड़ की खरीदी भी शुरू की जाएगी। इसके लिए लाइसेंस की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।

किसी को चिंता नहीं है सुप्रीम कोर्ट के निर्देशो की
टीवी चैनल के लिए स्कूली बच्चों की कलेक्ट्रेट में लगवाई कथित क्लास
बैतूल, रामकिशोर पंवार: भारत की सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के बार – बार दिए जाने वाले निर्देशो की अवहेलना किस तरह होती हैं यदि वह देखनए हैं तो किसी भी दिन बैतूल जिला मुख्यालय पर चले आइए। बैतूल जिले में जुलूस , धरना , प्रदर्शन , रैली , की शक्ल में स्कूलों में पढऩे वाले छात्र – छात्राओं को मोहरा बना कर उनकी आड़ में राजनीति करने वालों की कोई कमी नहीं हैं। जिले के एवं क्षेत्रिय जनप्रतिनिधि जिस काम को आसानी से कर सकते हैं उसके लिए जीपो में ठूंस – ठूंस कर स्कूली बच्चों को लाकर उनसे संविधान के विरूद्ध कलैक्टर परिसर में क्लास लगवाने की घटना ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना कर डाली हैं। कथित परीक्षा सेंटर बदले जाने की मांग को लेकर आए निश्चिंतपुर के छात्रों ने अचानक अपनी मांग को मनवाने के लिए कलेक्ट्रेट परिसर में ही क्लास लगाई और अपनी मांग को पुरजोर तरीके से रखा। सबसे शर्मसार बात तो यह रही कि जिन छात्रों को आत्महत्या का अर्थ और उसके परिणामों का भी ज्ञान नहीं हैं उन छात्रों के द्वारा कथित सामूहिक आत्महत्या करने की चेतावनी देकर लोगो को सकते में डाल दिया। छात्रों ने अपना आक्रोश जताने के लिए परीक्षा का बहिष्कार करने की भी धमकी दे डाली। जिन स्कूली बच्चों को परीक्षा के सामुहिक बहिष्कार एवं कथित सामुहिक आत्महत्या के अर्थ और परिणामों का ज्ञान न हो उनके द्वारा इस तरह का हंगामा खड़ा कर देना कम नाटकीय नहीं हैं। नाटकीय घटनाक्रम को यूं मुकाम नहीं मिलता यदि कुछ न्यूज चैनल वाले अपने लिए स्पेशल स्टोरी के चक्कर में स्कूली बच्चों को लाने वाले भाजपा सरकार से पेशंन पाने वाले पूर्व जनसंघी एवं मीसाबंदी गुलाब पंडाग्रें से वार्तालाप नहीं करते। मीसाबंदी गुलाब पंडाग्रे को जब यह बताया गया कि उनकी $खबर पूरे देश में सुर्खियों में छा जाएगी यदि स्कूल बच्चे जैसा वो चाहते यदि वैसा करेगें। अपनी ही प्रदेश सरकार के जिला प्रशासन पर स्कूल के बच्चे से लेकर मीसाबंदी गुलाब पंडाग्रे ने वहीं तरीका अपनाया जो कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशो के ठीक विपरीत जाता हैं।
स्कूली बच्चों की नौंटकी देख टीवी चैनल वालों एवं मीडिया से पूरे मामले को करने के लिए जिला प्रशासन ने सेंटर बदलने की मांग तो स्वीकार नहीं की लेकिन छात्रों की समस्या को ध्यान में रखते हुए उन्हें परीक्षा के दौरान बस की विशेष सुविधा उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। उल्लेखनीय हैं कि इसी शिक्षा सत्र में निश्ंिचतपुर में हाईस्कूल खोला गया है। इस हाईस्कूल में निश्चतपुर सहित आसपास के ग्रामों के छात्र अध्ययनरत है। इस हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा में परीक्षा केंद्र सारणी को बनाया गया है। निश्चतपुर से सारणी की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है। जबकि करीब में ही चोपना में भी परीक्षा सेंटर है जिसकी दूरी मात्र पांच किमी है। निश्चतपुर से सारणी के लिए सुबह के समय आवागमन का कोई साधन भी उपलब्ध नहीं है। चोपना पुनर्वास क्षेत्र से आए अभिभावकों और 92 छात्र-छात्राओं से जिला कलेक्टर की नामौजूदगी में एडीएम योगेंद्र सिंह से अपनी समस्या को लेकर चर्चा की लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला तो सभी छात्र कलेक्टर चेम्बर के गेट पर धरना देकर बैठ गए। इसके बाद यहां पर छात्रों ने प्रार्थना सभा का आयोजन किया। जिसमें जन..गण..मन राष्ट्रीय गीत का गान हुआ। इसके बाद जय श्री नाम एक छात्रा ने शिक्षिका की भूमिका अदा करते हुए छात्रों को विज्ञान विषय पढ़ाना शुरू कर दिया। इसको देख एडीएम मीडिया पर बरस पड़े। एडीएम का कहना था कि केवल $खबर के लिए नौंटकी करवाने की क्या जरूरत थी। कलैक्टर परिसर प्रतिबंधित क्षेत्र हैं जहां पर किसी भी प्रकार का धरना – प्रदर्शन – सभा आदि का आयोजन करना धारा 144 का उल्लघंन हैं। तकरीबन 20 मिनट तक इस क्लास के बाद मीडिया की क्लास लेते हुए एडीएम श्री सिंह ने भी जमकर खरी खोटी सुनाने में करसर नहीं छोड़ी। प्रशासन का तर्क था कि किसी भी प्रकार से स्कूली बच्चों को उकसाना कानून की नज़र में अपराध हैं। प्रशासन ने इन छात्रों के द्वाराकी जाने वाली नारेबाजी एवं सामूहिक रूप से आत्महत्या की धमकी को लेकर अपना रौद्र रूप दिखाया तब जाकर मामला शांत पड़ा। इसी दौरान मीसाबंदी गुलाब पंडाग्रे और प्रशासनिक अधिकारियों में तीखी नोंकझोक भी हो गई। तमाम कवायद के बाद एडीएम योगेंद्र सिंह ने जिला शिक्षा अधिकारी बीके पटेल को कलेक्ट्रेट तलब किया। डीईओ से चर्चा के बाद एडीएम ने छात्रों से मुलाकात की और उन्हें बताया कि सेंटर बदला जाना अब संभव नहीं है। छात्रों की समस्या को देखते हुए परीक्षा के लिए निश्ंिचतपुर से सारणी आने जाने के लिए दो बसें उपलब्ध कराई जाएगी। इसके साथ ही यदि बस की वजह से लेटलतीफी होती है तो जितने समय लेट होंगे उतना समय परीक्षा के लिए अतिरिक्त दिलाया जाएगा। बस में सुरक्षा के लिए पुलिस के साथ-साथ स्कूल के टीचर भी रहेंगे।

अपने ममेरे ससुर शिवराज सिंह चौहान पर लगाया दहेज न देने का आरोप हैं
कन्यादान योजना के पात्रों को ही नहीं मिल रहा दान
बैतूल, रामकिशोर पंवार: प्रदेश की लाड़लियों के लोकप्रिय जगत मामा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अति महात्वाकांक्षी कन्यादान योजना अब विवादो में घिर गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों के अनुसार दहेज लेना एवं देना कानून की नज़र में अपराध हैं तब बैतूल जिले की उस युवक का क्या होगा जो अपनी पत्नि के साथ अपने ममेरे ससुद शिवराज सिंह के सुशासन में कुछ बैतूल जिले के अधिकारी उसे दहेज नहीं दे रहे हैं। इस सनसनी खेज आरोप का अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है कि शादी के नौ माह बाद भी कन्या को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत मिलने वाला दान – दहेज नहीं मिल सका है। महिला ने इसकी शिकायत जिला कलैक्टर की जनसुनवाई के दौरान करते हुए आरोप लगाया कि मामा के राज्य में उसके साथ उसे दान – दहेज का वादा करने के बाद भी वादा खिलाफी हो रही हैं। प्रभारी जिला कलैक्टर से अपना दान दहेज , उपहार सामग्री दिलाने की मांग की करने वाली दंपति ग्राम बरेठा झल्लार थाना क्षेत्र की रहने वाली हैं। श्रीमति अनिता इवने ने बताया कि उसका विवाह ग्राम चौकी निवासी समाज के प्रेम उइके से मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत ग्राम हरदू मे 12 मई 2010 को हुआ। योजना के तहत शादी रचाने वाली महिला को उपहार में सामग्री प्रदान की जाती है। अनीता ने बताया कि शादी होने को अब नौ महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन अभी तक उपहार में कुछ नहीं दिया गया है। अनिता ने बताया कि हरदू में कन्यादान योजना के तहत शादी करने वाली और भी महिलाएं है, जिन्हें योजना के उपहार में मिलने वाली सामग्री नहीं मिली है। महिलाएं सामग्री के लिए अधिकारियों के चक्कर काट काट कर थक गई हैं।

शिवराज भैया की बहनो की मोबाइल टार्ज की रोशनी में होने लगी है डिलेवरी
भगवान भरोसे हो गई बैतूल जिले की स्वास्थ सेवा
बैतूल, रामकिशोर पंवार: भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष स्वास्थ एवं परिवार कल्याण के लिए मध्यप्रदेश सरकार को भेजे जाने वाले करोड़ो – अरबो रूपए के अनुदान के बाद भी प्रदेश की भाजपा सरकार बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में हमेशा ही सुरक्षित प्रसव को लेकर सुर्खियों में रही हैं। सुरक्षित प्रसव के लिए जननी सुरक्षा योजना शुरू होने के बाद भी रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मोबाइल टार्च की रोशनी में डिलेवरी हुई। इस घटना से नाराज ग्रामीणों ने रात में ही अस्पताल में प्रदर्शन कर पंचनामा तैयार किया। अब ग्रामीण यहां पदस्थ महिला डॉक्टर को हटाने की मांग कर रहे हैं। बीती रात को लोहारढाना निवासी आशा पत्नी मंटू आदिवासी को डिलेवरी के लिए रानीपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया। पहले तो यहां डॉक्टर नहीं होने से परेशानी हुई, बाद में अस्पताल में बिजली गुल होने से दिक्कतें बढ़ गईं। सरपंच इंदिरा धुर्वे, प्रदीप मालवीय, पूरन सराठे, जगराम, धीरेंद्र ठाकुर, अरविंद साहू, उमेश बाघ, सुभाष पांडे, राजेश श्रीवास, फुलंता बाई, अभिषेक सैनी किशोर पांडे समेत अन्य लोगों ने बताया कि पूरे गांव में बिजली थी, लेकिन अस्पताल की बिजली गुल थी। आशा की तकलीफ बढऩे के कारण यहां पदस्थ संगीता चौधरी प्रसव कराने के लिए तैयार हुई। इसके बाद लोगों ने दो मोबाइल टार्च की सहायता से प्रसव कराया। ग्रामीणों ने बताया कि यहां पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पासिंह ने खुद के घर अस्पताल के बैटरी लगा रखी है। इसके अलावा उक्त डॉक्टर ने पानी गर्म करने के लिए लाए गए गैस चूल्हे को भी अपने घर में लगा रखा है। ग्रामीणों ने बताया कि अस्पताल में पिछले तीन महीने से बिजली नहीं है। इसके अलावा दवाओं का भी टोटा है। ग्रामीणों ने बीएमओ को आवेदन सौंपकर महिला डॉक्टर पुष्पा सिंह को हटाने की मांग की है। अभी कुछ दिन पहले रानीपुर में ही एक महिला की खुले आसमान के नीचे प्रसव करने को विवश होना पड़ा। ग्रामीणों ने पहले भी इस मामले की शिकायत की थी। डॉक्टर के रानीपुर में न रहकर पाथाखेड़ा रहने संबंधी शिकायत की थी उसके बाद भी डाक्टर के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस बार भी मोबाइल टार्च में डिलेवरी की गई है तो यह गंभीर बात है। इस संबंध में कब जांच होगी कहना मुश्कील हैं। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आमला तहसील के ग्राम बोरदेही के सरकारी अस्पताल में बीते करीब छ: महीनों से जननी एक्सप्रेस नहीं है। यह वाहन नहीं होने से डिलेवरी करवाने अस्पताल तक पहुचने में महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।वहीं अब सप्ताह में 2 दिन डॉक्टर पहुंचनें से लोगों ने थोड़ी राहत महसूस की है। यहां करीब छ: माह पहले तक वाहन उपलब्ध था, लेकिन कुछ कारणों से वाहन की सेवाएं बंद हो गई है।लिहाजा अब महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचना है तो आशा कार्यकर्ता का मुंंह ताकना पड़ता है या फिर किराए का वाहन लेकर अस्पताल पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि वाहन नहीं होने से उन्हें जहां अक्सर अधिक खर्च उठाना पड़ता है तो कई बार वाहन नहीं मिलने पर जिंदगी और मौत से जूझने जैसी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। जानकारी के मुताबिक करीब 6 माह पहले तक अस्पताल में जननी एक्सप्रेस की सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन कुछ समय बाद इसे बंद कर दिया गया। तब से यह समस्या बढ़ गई है। जानकारी के मुताबिक पर्याप्त प्रकरण नहीं मिलने के कारण संबंधित ने यहां वाहन की सेवा देना बंद कर दिया है। इटावा सरपंच उमा प्रमोद सोनी, हथनोरा की संध्याबाई राजेंद्र सिंह, बामला के भवानी सूर्यवंशी, बोरदेही के संजय सूर्यवंशी, हथनोरा के भगवत पटेल, घाटावाड़ी के हरिराम पटेल का कहना है कि प्राइवेट वाहन बंद भी हो गया है तो शासन अस्पताल में स्थाई वाहन का इंतजाम किया जाना था। ग्राम पंचायत की शिकायतों से कई ज्यादा गंभरी हैं बैतूल जिला मुख्यालय के मुख्य अस्पताल की जहां पर ओपीडी में डाक्टरों के बैठने के समय में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। प्रतिदिन जिला चिकित्सालय में सभी डयूटी पर पदस्थ डाक्टर अपने कक्षों से नदारद रहते हैं। इससे मरीजों को देर तक इंतजार करना पड़ा। कतार लगाकर खड़े मरीज कहने को मजबूर हो गए कि, डॉक्टर साहब कब आएंगें…..? जिला अस्पताल में सुबह 8 से 1 बजे तक डॉक्टरों की ड्यूटी रहती है। वैसे तो जिला चिकित्सालय में मरीजों की हमेशा लम्बी कतार लगी रहती हैं। सुबह से मरीज ओपीडी में बैठकर डॉक्टरों का इंतजार करते रहे। कई बार तो सुबह से देर शाम तक डॉक्टरों के नहीं आने पर कई लोग तो बिना उपचार कराए ही वापस चले जातें हैं। गौठान से डॉक्टर को स्वास्थ्य दिखाने आई युवती कमलती ने बताया कि वह साढ़े 9 बजे से डॉक्टर के आने का इंतजार कर रही है। कक्ष में डॉक्टर नहीं है तो फिर किसे दिखाऊं…? अस्पताल में अक्सर ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। बच्चे को इंजेक्शन लगवाने वाले भी अकसर सुबह 9 बजे से आकर डाक्टरों को ताकते रहते हैं। डाक्टरों के कक्ष में बैठने का इंतजार करते रहे। बीते दिनो मोबाइल टार्ज में हुई महिला की डिलेवरी की घटना को लेकर हुई अपने विभाग की फजी़हत के बाद जिला चिकित्सालय बैतूल अधिक्षक द्वारा रानीपुर अस्पताल में एक महिला के प्रसव में लापरवाही के मामले में पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पारानी को तलब किया है। सीएमएचओ डॉ. डीके कौशल ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र रानीपुर में पदस्थ चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीमती पुष्पारानी सिंह को निर्धारित मुख्यालय पर नियमित न रहने, स्वास्थ्य केंद्र में रात में दरवाजे पर हुए एक प्रसव में लापरवाही के मामले में कारण बताओ नोटिस दिया है। सीएमएचओ ने नोटिस में डॉ. पुष्पारानी को निर्धारित मुख्यालय पर निवास कर मरीजों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने तथा अधीनस्थ कर्मचारियों का मुख्यालय पर निवास सुनिश्चित करने के लिए भी पाबंद किया है। परिवार कल्याण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में उदासीनता एवं लापरवाही बरतने के मामले में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र प्रभातपट्टन में पदस्थ एलएचवी रेणुका कातलकर तथा महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सत्यफुला देशमुख को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। सीएचएमओ डॉ. डीके कौशल ने बताया कि निलंबन अवधि में दोनों कर्मचारियों का मुख्यालय जिला अस्पताल बैतूल होगा।  इतना सब कुछ होने के बाद भी हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी तो बैठे मिले, लेकिन डॉक्टर नहीं आए। समय में परिवर्तन के बावजूद डॉक्टरों ने अपनी सीटों पर बैठकर ही आवेदनोंं पर हस्ताक्षर किए और टाइम पर निकल गए। हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड के बैठने के समय में प्रभारी मंत्री के निर्देश पर परिवर्तन कर दिया गया है। इससे अब बोर्ड सुबह 9 से 1 बजे की जगह 4 बजे तक लगेगा। यह परिवर्तन मेडिकल व विकलांग सर्टिफिकेट बनाने आने वाले लोगों की सुविधा के लिए किया गया था। इस मंगलवार को लगे मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी बैठकर सील-सिक्के लगाते रहे, लेकिन डॉक्टर नहीं बैठे। दूर-दराज से आने वाले लोगों को प्रमाण पत्रों पर सील-सिक्के लगाने के बाद डाक्टरों को ढूंढते रहना पड़ा। डाक्टरों ने ओपीडी में बैठकर प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षकर करने का काम निपटाया और एक बजे राइट टाइम पर घर रवाना हो गए। मेडिकल बोर्ड के नियम के मुताबिक डॉक्टरों को बोर्ड में बैठना चाहिए, लेकिन वे बोर्ड में न बैठकर ओपीडी में हस्ताक्षर करते रहे। जिन व्यक्तियों को डॉक्टर मिल गए तो उनके प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षर हो गए, लेकिन जिन्हें नहीं मिले उन्हें भटकते रहना पड़ा। मुलताई चूनाभट्टी गांव के रमेश अपनी विकलांग बेटी का प्रमाण पत्र बनाने आए थे। उनके प्रमाण पत्रों पर सील सिक्के तो लग गए थे, लेकिन डाक्टरों के हस्ताक्षर कराने उन्हें कक्षों में परेशान होते रहना पड़ा। मेडिकल बोर्ड में सिविल सर्जन डॉ. डब्ल्यूए नागले, डॉ. ओपी माहोर, डॉ. पीके कुमरा, डॉ. डीटी गजभिए, डॉ. के बाजपेयी, डॉ. श्रीमती आर गोहिया, आरएमओ डॉ. एके पांडे सदस्य हैं। मंगलवार की शाम 4 बजे बोर्ड कक्ष में डॉ. बाजपेयी और अस्पताल परिसर में डॉ. नागले नजर आए। इनके अलावा कोई डॉक्टर नहीं था। मेडिकल बोर्ड की दीवार पर प्रमाण पत्र बनाने की सूचना के संबंध में चस्पा पर्चें में टाइम टेबल नहीं बदला गया। इस पर्चे पर सुबह 9 से 1 बजे का टाइम लिखा हुआ था। इससे लोग भ्रमित होते नजर आए। जबकि टाइम सुबह 9 से 4 बजे तक का हो चुका है। इसे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। मेडिकल बोर्ड के सदस्य डॉक्टरों ने ओपीडी में पहुंचने वाले लोगोंं के प्रमाण पत्रों के बनाने का काम निपटाया। दोपहर 1 बजे तक 35 विकलांग और 28 मेडिकल प्रमाण पत्र बनाए। इसके बाद कोई प्रमाण पत्र नहीं बन सके। क्योंकि 1 बजे ओपीडी बंद हो जाती है। बोर्ड का समय 4 बजे का होने के बावजूद डॉक्टर नहीं आए। इससे 1 बजे के बाद आने वाले लोगों को परेशान होना पड़ा। वे डाक्टरों के बैठने का इंतजार करते रहे। विकलांगता श्रेणी में मिलने वाली छूट एवं फायदों के लिए अब अपात्र भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। यही कारण है कि अस्पताल के आसपास दलालों की सक्रियता भी बढ़ गई है। 40 प्रतिशत विकलांगता की पात्रता के लिए लोग जहां बार-बार अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। वहीं इनकी हर सप्ताह बढ़ती संख्या से जिला मेडिकल बोर्ड भी खासा चितिंत है। विकलांगता प्रमाण-पत्र से मिलने वाले लाभ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब प्रमाण-पत्र बनाने की कतार में फै्रक्चर और मामूली विकलांगता वाले भी खड़े नजर आ रहे हैं। जिला मेडिकल बोर्ड का कहना था कि अधिकांश लोग लाभ के लिए प्रमाण-पत्र बनवाना चाहते हैं। यहीं कारण है कि एक बार अपात्र घोषित कर दिए जाने के बाद भी वे दोबारा यहां आ रहे हैं। जिससे ?से लोगों की संख्या बढ़ रही है। विकलांगता प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए हर मंगलवार को करीब एक सैकड़ा से अधिक लोग जिला अस्पताल के चक्कर काटते हैं। जबकि नियमानुसार जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा 40 प्रतिशत से ऊपर विकलांगता होने पर ही प्रमाण-पत्र जारी किए जाते हैं, लेकिन कुछ लोग विकलांगता प्रमाण-पत्र का लाभ लेने अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। देखने में आ रहा है कि अपात्र लोग भी विकलांगता प्रमाण-पत्र बनाने के लिए आ रहे हैं। बार-बार इनके आने से अस्पताल में भीड़ बढ़ जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए अब जिला चिकित्सालय बैतूल में कम्प्यूटर फिडिंग के संबंध में भी विचार किया जा रहा है ताकि ?से लोग आसानी से पकड़े जा सके।

खुले आम बेची जा रही है कुत्तामार ज़हरीली अवैध कच्ची शराब
शराब ठेकेदार के मैनेजर के संरक्षण में चल रहा है औद्योगिक क्षेत्र में अवैध कारोबार
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बड़ नगर पालिका सारनी में बीते एक दशक में अवैध कच्ची कुत्तामार ज़हरीली शराब से तीन सौ से अधिक लोगो की मौतो के बाद भी सबक नहीं सीख पाए आबकारी एवं पुलिस विभाग की मिली भगत से बड़े पैमाने पर गली – गली में बिक रही यूरिया , नौसादर , सल्फर , एसीड़ , खटमल मार दवा एवं चुहामार दवा के कथित उपयोग से तेज एवं नशीली शराब बना कर बेचने का गोरखधंधा किसी दिन किसी बड़े हादसे को जनम दे सकता है। बैतूल जिले के संवेदनशील औद्योगिक क्षेत्र सारनी एवं पाथाखेड़ा की गलियों में लगातार बड़े पैमाने पर बिकने वाली कच्ची अवैध , ज़हरीली कुत्तामार के नाम से पहचानी जाने वाली शराब अब नकली पेंकिग करके शासकीय देशी एवं विदेशी मदिरा की दुकानो से भी बेचने वाले बड़े गिरोह का खुलासा किया है। बताया जाता हैं कि भोपाल की बहुचर्चित सोम डिस्लरी के एक निकटवर्ती मेसर्स बाना सिंह के नाम पर लिए गए शासकीय देशी एवं विदेशी मदिरा के ठेके का मैनेजमेंट देखने वाले हरियाणी मनोज शर्मा के कथित संरक्षण में उक्त अवैध कारोबार चल रहा है। शासकीय शर्तो पर कथित घाटे के बाद भी ठेका लेने का बहाना बनाने वाले शासकीय ठेकेदार के मैनेजर ने कथित घाटे से ऊबरने के लिए हजारो लोगो को मौत के मुंह में धकेलने का बीड़ा उठा लिया हैं। बड़े पैमाने पर औद्योगिक क्षेत्र सारनी – पाथाखेड़ा – बगडोना एवं सलैया तक चल रहा अवैध कारोबार किसी दिन किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं इस बात से बेपरवाह शराब माफिया को सत्ताधारी दल के नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों का संरक्षण भी मिला हुआ हैं। वैसे भी वेस्टर्न कोल फिल्ड लिमीटेड पाथाखेड़ा एवं एमपीइबी सारनी के 36 वार्डो में सस्ती अवैध कच्ची शराब का कारोबार कोई आज की बात नहीं हैं। लेकिन इस बार तो सारी हदे पार करके शराब ठेकेदारो की आपसी लड़ाई का फायदा उठा कर स्वंय की दुकानो को घाटे में दिखा कर हरियाणी शर्मा जी ने तो दोनो हाथो से माल बटोरने का मूलमंत्र अपना लिया हैं। भोपाल की बहुचर्चित सोम डिस्लरी कंपनी के हरियाणी मैनेजर मनोज शर्मा के संरक्षण में पुलिस एवं आबकारी विभाग की मिली भगत से बड़े पैमाने पर चल रहा यह धंधा कब रूक सकेगा कहना असंभव हैं। अवैध कच्ची शराब के चलते बीते दस वर्षो में तीन सौ से ज्यादा लोगो की अकाल मौते हो चुकी है जिसमें दो दर्जन से अधिक वेकोलि के कामगार है। सल्फर और एसीड के मिश्रण से बनने वाली कुत्तामार देशी शराब की लागत प्रति बाटल पांच रूपए आती हैं लेकिन वहीं शराब बोतलो में सिलबंद करके बीस रूपए में बेची जा रही हैं। वैसे शासकीय देशी मदिरा वर्तमान में 25 रूपए से 30 रूपए तथा विदेशी मदिरा 70 से 80 के बीच में बिकती है लेकिन पेकिंग मशीन से ज़हरीली कुत्तामार अवैध शराब सरकारी लेबल लगा कर बेचने से शराब ठेकेदार एवं राज्य सरकार के आबकारी विभाग को भी भारी नुकसान हो रहा हैं। हालाकि पूरे बैतूल जिले में शराब माफिया और सरकारी शराब ठेकेदारो के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा के चलते आमला , बैतूल , शाहपुर , मुलताई , जमाई क्षेत्र की देशी – विदेशी शराब के अवैध कारोबार को रोकने में असफल सिद्ध हुआ पुलिस एवं आबकारी विभाग बड़े पैमाने पर सारनी नगर पालिका क्षेत्र के 36 वार्डो में अवैध कारोबार को संचालित करवा रहा हैं। सारनी नगर पालिका क्षेत्र में अभी तक आबकारी विभाग एवं पुलिस विभाग की कथित छापामारी का पंचनामा एवं जप्ती रिकार्ड का अवलोकन करे तो पता चलता हैं कि सोम कंपनी एवं मेसर्स बानासिंह की आड़ में सोम में चल रहे इस अवैध कारोबार की एक मोटी रकम कपंनी के हरियाणी मैनेजर मनोज शर्मा की जेब में जा रही हैं। इसके पूर्व सारनी की शासकीय एवं विदेशी शराब का ठेका ग्वालियर की शिवहरे कंपनी के पास था लेकिन पिछले दो साल से लगातार कथित घाटे में चल रही सोम एवं बानासिंह की कंपनी को होने वाला कथित घाटा उनके ही लोगो द्वारा पहुंचाया जा रहा हैं। कुल मिला कर अपने ही लोगो के द्वारा अपनी कब्र को खुदवाने का काम सारनी पाथाखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में हो रहा हैं। वैसे एक बात तो सच हैं कि भोपाल की सोम डिस्लरी अपने गुर्गो की आड़ में ही शराब के ठेके लेती तो जरूर है लेकिन उनके ही कर्मचारी उन्हे गर्त में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

गाढ़ी कमाई के बाद बन गए है मुन्नाभाई
बैतूल, रामकिशोर पंवार: संजू बाबा की फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस की तर्ज पर बैतूल जिले के एक आयुवैदिक कालेज द्वारा फर्जी तरीके से फर्जी डाक्टर बनाने के एक गोरखधंधे का बीते दिनो खुलासा हो गया। मेडिकल कालेज की मान्यता निरस्त होने के बाद मेडिकल के छात्रो को मीरिंडा का छटका जोर से लगा। अपने उज्जवल भविष्य के सुखद सपनो एवं अपने अभिभावकों की गाढ़ी कमाई का लाखों रूपया खर्च कर डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने आए अनेक छात्रों ने कालेज प्रबंधन की पोल खुलने के बाद अपना उग्र रूप दिखा दिया। छात्रों के उग्र रूप के आगे कॉलेज प्रबंधन छात्रों के सवालो का जवाब देने के बजाय बगले झांकते नज़र आ रहा है। अब कालेज की अव्यवस्थाएं देखते हुए उनका यह सपना कभी न पूरा होने की मनोस्थिति में छात्रों का उग्र रूप लेना स्वभाविक है जो किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं। नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले का एक मात्र तथाकथित ओम आयुर्वेदिक कॉलेज के छात्रों आरोप है कि कालेज प्रबंधन हमें भी मुन्नाभाई की तरह फर्जी डाक्टर बना रहा है। उनका कहना है कि यहां से पढ़कर निकलने के बाद उनके पास डिग्री जरूर होगी लेकिन उनके द्वारा किया जाने वाला इलाज किसी भी किसी बंगाली या फिर नीम हकीम डाक्टर की तरह ही होगा। सबसे विचित्र बात यह हैं कि जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर चल रहे इस फर्जीवाड़े में बैतूल जिले के कई नामचीन लोग शामिल है। ओम आर्यर्वेदिक कालेज की मौजूदा स्थिति यह हैं के यहां पढ़ाने के लिए एक शिक्षक भी नहीं है। आन्दोलित कॉलेज के छात्रों के अनुसार यह स्थिति हमेशा से ही रही है। इन छात्रों को हर साल मेडिकल से जुड़े हुए दस सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए कम से कम दो-दो शिक्षक हर सब्जेक्ट में एमडी विशेषज्ञ के रूप में होना चाहिए। मौजूदा परिस्थिति में छात्रों के द्वारा किताबों से रट्टा मारकर परीक्षाएं तो पास कर ली जाती हैं लेकिन पास बेसिक ज्ञान न होने की वज़ह से उनकी तुलना भी आगे चल कर मुन्ना भाई की तरह ही होगी। मेडिकल कालेज के तृतीय वर्ष एक छात्र ने बताया कि पिछले तीन साल में मेडिकल कॉलेज के अंदर महज एक दिन प्रेक्टिकल हुआ और उसमें भी कहीं कुछ भी नहीं बताया गया। जबकि हर सब्जेक्ट में मेडिकल में प्रेक्टिकल का होना अनिवार्य है। सफेद हाथी साबित हो रहे मेडिकल कालेज परिसर के अस्पताल में कुछ भी नहीं होता है। स्थिति तो यहां पर यह हैं कि इस अस्पताल में आज तक कभी कोई मरीज भर्ती नहीं हुआ हैं। इंटरशिप तो कभी किसी छात्र को कॉलेज में नहीं करवाई गई। यहां पर पढ़ाई जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। फीस जरूर पूरी ली जाती है। परीक्षा और प्रेक्टिकल फीस की रसीद तक नहीं दी गई।  डॉ. जीडी राठी, सचिव प्रबंध समिति ओम आयुर्वेदिक कॉलेज
का कहना हैं कि उनके पैसे की कमी की वजह से शिक्षकों और व्यवस्थाओं को पूरी नहीं कर पा रहे हैं, उसके बाद भी हमारा रिजल्ट सबसे अच्छा रहता है।

सारणी ताप बिजली घर की जहरीली राख से नर्मदा , तवा , देनवा प्रदूषित
राख से खाक हो गई दर्जनों गांवों की आबादी
बैतूल  (रामकिशोर पंवार) अगर आपको परम पूज्यनीय सलिला माँ नर्मदा के स्नान के बाद खुजली होने लगे तो समझ लीजिये कि सारणी ताप बिजली घर की राख ने कमाल कर दिया .विचारणीय प्रश्र है कि सारणी ताप बिजली घर की राख से होशंगाबाद जिले का बहुचर्चित तवा नगर स्थित तवा जलाशय दिन – प्रति दिन तवा नदी में मिल रही राख के कारण वह आने वाले कल में अगर राख का दल-दल बन जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी . बैतूल जिले में स्थित सतपुड़ा ताप बिजली घर सारणी के जिम्मेदार अधिकारियों को कई बार नदी के बहते जल में राख ना बहाने की चेतावनी तक तवा जलाशय की ओर से दी जा चुकी है लेकिन आज भी राख का हजारों टन का बहाव जारी है. बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के जिला संयोजक पर्याविद एवं बैतूल जिला पर्यावरण वाहिणी के जिला सदस्य ने शासन को देनवा नदी के संरक्षण के लिए 1 करोड़ 35 लाख की एक योजना भेजी थी जिसमें नदी की साफ सफाई तथा निकाली गई राख से रोजगार केन्द्र खोल कर बेरोजगारी को दूर करने का सुझाव भेजा जा चुका है लेकिन पर्यावरण मंत्री बदल गये लेकिन सुझाव पर आज तक किसी प्रकार का अमल नही हो सका . पूर्व वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री सुश्री मेनका से लेकर कमलनाथ तक को सारनी ताप बिजली घर क राख से अपना स्वरूप खो चुकी देनवा नदी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट कई बार भेजी जा चुकी है लेकिन राख से खाक हो रहे जल जीवन पर आज तक कोई भी सरकार इस दिशा में ठोस कारगर योजना नहीं बन सकी है . सारणी बिजली घर की चिमनियों से निकलने वाली राख से सारनी के आस पास के दर्जनों गांव प्रभावित है. राख में खाक हो रहा जन जीवन दिन प्रतिदिन मौत की आगोश में समा रहा है. मीलों दूर तक खेतों में जमी राख ने गरीब आदिवासी मजदूर किसानो की फसल के साथ साथ जानवरों का चारा-पानी तक को जहरीला बना दिया है.जब इस ताप बिजली घर की स्थापना हुई थी तब उन आदिवासियों को भरोसा दिलाया गया था कि यह पावर हाउस उनकी जिंदगी में उजाला ला देगा लेकिन उजाला तो दूर रहा इन आदिवासियों की जिंदगी में काला अंधकार छा गया है. इस क्षेत्र के रहवासियो के दुधारू और खेती में उपयोगी जानवर राख युक्त पानी तथा चारा खाकर घुट-घुट कर मर रहे है. वहीं दूसरी ओर उन्हें फसल के उत्पादन के प्रतिशत में लगातार आ रही गिरावट के साथ साथ उनके जीवन यापन पर भी भारी संकट आ खड़ा है. राख ने मानव के शरीर से लेकर जानवरों तक के शरीर में घुस कर उसके फेफड़ों एवं आतों तक में बारीक छेद कर डाले है. एक जानकारी के अनुसार सारणी ताप बिजली घर से प्रति दिन हजारों टन राख पानी के साथ पाईप लाइनों के जरिये बांध में बहा दी जाती है. इससे बांध एक प्रकार से दल-दल बन गया है. जिसमें जानवर धंस कर मर रहे है. राख बांध की लागत करोड़ों में आंकी जाती है लेकिन मजेदार तथ्य यह ह कि इस बांध में इतना पैसा खर्च हो चुका है कि इतनी लागत से कम से कम चार-पांच इस जैसे राख बांध बनाये जा सकते थे.हर साल बरसात में राख बांध तोड़ जाता है ताकि, ओवर फोलो राख का बहाव बांध को ही बहाकर ना ले जाये. जानकार सूत्रों ने बताया कि देनवा, फोपस, तवा एवं नर्मदा तक इस राख से प्रभावित होकर राख युक्त सफेद पानी तथा जहरीले रासायनिक पदार्थो के कारण यह नदियां जहरीली बन रही है. अब अगर आपको नर्मदा के स्नान के बाद खुजली होने लगे तो समझ लीजिये कि सारणी की राख ने कमाल कर दिया. सारणी की राख से तवा नगर का जलाशय राख का दल-दल बनते जा रहा है. सारणी बिजली घर के अधिकारियों को कई बार राख न बहाने की चेतावनी तवा जलाशय की ओर से दी जा चुकी है लेकिन हजारों टन राख का बहाव जारी है. सारणी ताप बिजली घर की राख ने मोरडोंगरी, विक्रमपुरी, धसेड़, सलैया, सीताकामथ, चोर कई गांवों को अपनी आगोश में जकड़ लिया है. सारणी ताप बिजली घर की राख के कारण प्रदूषित नदियों का मामला प्रदेश की विधानसभा में उठाया जा चुका है. बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति तथा देनवा बचाओं समिति के द्वारा की गई पहल पर इटारसी के भाजपा के तत्कालिन विधायक डाक्टर सीताशरण शर्मा ने विधानसभा में जब देनवा नदी के मामले पर शासन को गलत जानकारी देने के लिये लताड़ते हुए देनवा नदी की एक वीडियो कैसेट दी तब जाकर उस समय के राज्य सरकार के पर्यावरण मंत्री को यह स्वीकार करना पड़ा कि प्रदेश की 10 प्रदूषित नदियों में देनवा भी शामिल है. देनवा बचाओं अभियान से जुड़े पर्याविद का कहना है कि शासन ने आज तक दस प्रदूषित नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये कोई खास कारगार योजना नहीं बनाई है. सारणी की राख से प्रभावित नदियों के लिये महामहिम राष्टï्रपति को हजारों पोस्टकार्ड लिख चुकी बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति ने शासन को देनवा नदी के संरक्षण के लिये 1 करोड़-35 लाख की एक योजना भेजी थी जिसमें नदी की साफ सफाई तथा निकाली गई राख से रोजगार केन्द्र खोल कर बेरोजगारी को दूर करने का सुझाव भेजा था. पूर्व में तत्कालिन वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री सुश्री मेनका से लेकर वर्तमान केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को तक देनवा नदी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भेजी जा चुकी है लेकिन राख से खाक हो रहे जल जीवन पर आज तक कोई ठोस कारगर योजना नहीं बन सकी है. सारणी की राख को लेकर सतपुड़ा ताप बिजली घर भी चिंतित है लेकिन मंडल के पास ठेकेदारों के राख निकासी के फर्जी बिलों के भुगतान करने के अलावा कोई योजना नहीं है. मंडल प्रतिवर्ष तवा जलाशय एवं राख नाले में राख के निकालने तथा राख बांध के रख-रखाव के साथ साथ बांध की ऊंचाई बढ़ाने के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च करता है. राख बांध के पानी की रिसायक्लीन योजना भी फेल हो गई है. अब सारणी ताप बिजली की राख से प्रभावित ग्रामवासी राख से नष्टï हो रहे जल जीवन से दुखी होकर पलायन करते जा रहे है.अपने पूर्वजो की अनमोल धरोहर को छोड़कर भविष्य को बचाने के लिये गांवों को छोड़कर जाने से इन गांवों में चीखता सन्नाटा इस बात का संकेत देता है कि गांवों में मौत का कहर शुरू हो चुका है यही कारण कि यहां के ग्रामीण पलायन कर चुके ह

एक ही स्थान बरसने वाला पानी दो अलग – अलग सागरो में मिलता है
बैतूल  (रामकिशोर पंवार) अगर हम देश – दुनिया की बात करे तो यह कोई दावा नहीं कर सकता है कि वहां पर ऐसा भी स्थान होगा जहां पर गिरने वाला बरसाती पानी दो अलग – अलग सागरो में गिरता होगा। अखंड भारत का केन्द्र बिन्दु कहे जाने वाला बैतूल जिला का बरसाली सेन्र पाइंट से नागपुर की ओर जाने वाले रेल मार्ग पर बरसाली – आमला – जौलखेड़ा और उसके बाद मुलतार्ई रेल्वे स्टेशन के करीब में बना सरकारी सर्किट हाऊस की छत पर गिरने वाला बरसाती पानी दो अलग – अलग सागर में ताप्ती और महानदी के माध्यम से मिलता है। इस सर्किट हाऊस की छत के एक छोर का पानी ताप्ती सरोवर होता हुआ ताप्ती नदी के माध्यम से अरब सागर तथा दुसरे छोर का पानी मोंगया नाले से होता हुआ वर्धा नदी और वर्धा से होता हुआ महानदी में मिलता है जो बाद में महानदी के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में जा मिलता है। यह स्थान सतपुड़ा पठार कहा जाता है जो कि उत्तर में 21 अंक्षाश 48 अक्षंाश पूर्व में 78 अंक्षाश एवं 48 अंक्षाश में स्थित 790 मीटर ऊँची पहाड़ी है जिसे प्राचिनकाल में ऋषिगिरी पर्वत कहा जाता था जो बाद में नारद टेकड़ी कहा जाने लगा। इस स्थान पर बना सर्किट हाऊस समुद्री सतह से 2526 फीट की ऊंचाई पर है।

बैतूल जिले में सिमी का नेटवर्क: सारनी ताप बिजली घर और आमला एयर फोर्स
स्टेशन निशाने पर कटट्र पंथी मुस्लीम युवको प्रेस कार्ड को बनाया बचाव का जरीया
बैतूल  (रामकिशोर पंवार) मध्यप्रदेश में सिमी के बढ़ते नेटवर्क के दायरे में बैतूल जिले के वे शिक्षित – अनपढ़ कटट्रपंथी अपराधिक छबि के युवको को शामिल किये जाने की $खबर है जिनका काम दिन भर कालेज और शहर में गटरमस्ती करना होता हैै। ऐसे खर्चिले नवयुवको को जिनका अपराधिक रिकार्ड काफी खराब है इन लोगो को प्रेस का कार्ड बनवा कर सिमी के लोग बैतूल जिले में अपना सूचना तंत्र स्थापित कर चुके हैै। बैतूल जिले के विभिन्न पुलिस थानो के दर्ज अपराधो पर गौर करे तो पता चला है कि जिन मोटर साइकिलो को बम के धमाको में शामिल किया जाता है ऐसी मोटर साइकिलो की चोरी की वारदाते बैतूल जिले में बीते पांच माह में तीन दर्जन से अधिक हो चुकी हैै। कई बार पुलिस को संदिग्ध परिस्थितियों में मोटर साइकिले मिल चुकी हैै। बैतूल जिले में भलें ही अभी तक बम के धमाको की गूंज जिले की पुलिस को जागरूक करने के लिए नहीं सुनाई पड़ी हो लेकिन सच्चाई से नकारा भी नहीं जा सकता कि बैतूल जिले से होने वाली इंटरनेशनल कालो में बैतूल जिले के कई क्षेत्रो का उल्लेख हुआ हैै। जिले से उज्जैन एवं इंदौर को होने वाली हर दुसरी – तीसरी काल से ज्यादा महत्वपूर्ण है । जिले से बंगलादेश को होने वाली इंटरनेशनल काले जो कि कहीं न कहीं संदेह को जन्म देती हैै। बैतूल जिला प्रशासन को इस बात की पूर्व में जानकारी है कि जिले के  36 शरणार्थी केम्पो में बसे शरणार्थी बंगाली परिवारो की आड़ में जिले में कई बंगलादेशी मुसलमान चोरी – छीपे नाम और शक्ल बदल कर बसे हुये हैै। बैतूल जिले में सुरक्षा की दृष्टिï से अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील क्षेत्र सारनी ताप बिजली घर एवं आमला स्थित बोडख़ी एयरफोर्स स्टेशन में आज भी लोगो का बेरोक – टोक आना – जाना बरकरार है। पूर्व में भी बैतूल जिले के अल्पसंख्यक परिवार के कबाडिय़ो ने दोनो ही संवेदलशील क्षेत्र से कबाड़ा के चक्कर में ऐसे सामानो को चुरा लिया था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। बैतूल जिले की पुलिस के कई आला अफ सरो से जिले में कार्यरत सिमी के  नेटवर्क से जुड़े लोग सम्पर्क बनाये हुये हैै। मध्यप्रदेश पुलिस को उज्जैन एवं इन्दौर मेें पकड़ाये एक सदस्य से बैतूल जिले में कार्यरत उनके नेटवर्क के बारे में जानकारी मिली थी जिसकी सूचना कई बार राज्य शासन की गुप्तचर शाखा भी दे चुकी है लेकिन बेपरवाह – लापरवाह पुलिस को बैतूल जिले मेे ऐसे हादसो को रोकने से कोई मतलब नही। बैतूल के पूर्व नगर निरीक्षक आरपी अग्रवाल ने जिला मुख्यालय के एक अल्पसंख्यक परिवार के आदतन अपराधी के जिला बदर की कार्यवाही शुरू की लेकिन बाद वही अपराधी भोपाल के किसी समाचासर पत्र का पत्रकार बन कर उसने अपने अपराधी पत्रकार पिता एवं उसके दोस्तो से कलैक्टर एवं पुलिस अधिक्षक पर दबाव बना कर जिला बदर की कार्यवाही की पूरी नस्ती बंद फाइल ही गायब करवा दी। बैतूल जिले की पुलिस को सिमी के नेटवर्क पर तथा दोनो महत्वपूर्ण क्षेत्रो की सुरक्षा के प्रति सजग रहना चाहिये। इसके पूर्व भी मुस्तफा नामक युवक के बारे में पुलिस को गुप्तचर शाखा से जानकारी मिली थी जिसको राजनैतिक एवं कुछ स्थानीय अफसरो के दबाव के चलते ठंडे बस्ते में प्रकरण को डाल दिया गया। अनेको अपराधो में लिप्त इस युवक के परिवार के सदस्य कुछ साल पहले तक वन विभाग के एक कार्यालय के सामने चाय बेचा करते थे लेकिन अचानक इस परिवार की माली हालत में सुधार तथा दिन भर आवारा लड़को के साथ कालेज रोड़ पर गटरमस्ती तथा अनाप – शनाप खर्च के बारे में पूर्व जिला पुलिस अधिक्षको को बैतूल गंज पुलिस चौकी एवं बैतूल थाना में पदस्थ कर्मचारियो ने बकायदा सूचित किया था लेकिन पुलिस विभाग के अफसर किसी बड़ी अप्रिय घटना के इंतजार में सारे मामले को दर किनार किये हुये है।

मधुमक्खियों के दोस्त बने पातालकोट ग्रामीण
पातालकोट छिन्दवाड़ा  (रामकिशोर पंवार) . जहाँ पर सूर्य की किरण भी सूर्यास्त के समय पहँुचती हों वहाँ पर आम आदमी का पहँुच पाना असंभव था आज उसी छिन्दवाड़ा जिले के पातालकोट क्षेत्र के दर्जनो गांवों में रहने वाले आदिवासी परिवार के कई लोगो ने अपनी तकदीर को बदलने के लिए मधुमक्खियों से दोस्ती कर ली है . ऐसा करने से उन्हे रोजी – रोटी के साथ – साथ उनके जन – जीवन में आई मिठास का भी अहसास होना शुरू हो गया है . बीते कल तक जिस शहद के कारण इन आदिवासियो को मधुमक्खियों की जान लेनी पड़ती थी आज उन्ही मधुमक्खियों से दोस्ती करके छिन्दवाड़ा जिले की परासिया तहसील के तामिया विकासखण्ड के पातालकोट क्षेत्र के दूर दराज के  कई गांवो में आदिवासी परिवारो की मेहनत रंग लाई है जिसके चलते इस क्षेत्र में मधुमक्खियों की संख्या भी दिनोदिन बढ़ती जा रही है . घने जंगलों के बीच रहने वाले पातालकोट क्षेत्र के आदिवासियों की प्रमुख जीविका के साधनों में शहद तोडऩा और बेचना प्रमुख है . शहद को तोडऩे के लिए जहाँ एक ओर मधुमक्खियों के झुण्ड को भगाने के चक्कर में कई बार मधुमक्खियों के हमले और उसके डंक से जान तक के लाले पड़ जाते है वहीं दुसरी ओर इन ज़हरीली मधुमक्खियों के झुण्ड के नीचे आग लगा कर धुआँ करके उन्हे मार – भगा कर ही शहद तोड़ा जा सकता था . कुछ जागरूक संगठनो एवं विज्ञान की नई तकनीक से शहद तोडऩे के तौर – तरीके में आये अमूल- चूल बदलाव के कारण आदिवासियों का मधुमक्खियों से चली आ रही बरसो पुरानी दुश्मनी अब मित्रता में बदल गई है . आदिवासी हनी हंटर्स गु्रप ने पचमढ़ी, पातालकोट क्षेत्र में मधुमक्खियों की संख्या बढ़ा दी है. पातालकोट के गैलडुब्बा निवासी सुंदरलाल भारती कहते है कि बासन घाटी में पहले जहां तीन छत्ते लगते थे अब इनकी संख्या बढ़कर 16 हो गई है. पातालकोट जैसी स्थिति सांगाखेड़ा और बोदलकछार गांव की भी है. परंपरागत शहद तोडऩे की विधि में छत्ते को मधुमक्खियों सहित जला दिया जाता था. जले हुए छत्ते में मधुमक्खियां दोबारा नहीं आती है. जलाने से अंडे और मक्खियां नष्टï हो जाते है. विज्ञान सभा ने इस क्षेत्र में नई तकनीक की जानकारी आदिवासियों को देकर हनी हंटर्स नाम के 15 गु्रप बनाए है.
नई तकनीक से शहद निकालने की विधि में छत्ते का शहद वाला भाग काट लिया जाता है. इससे छत्ते और मधुमक्खी के साथ उनके अंडे बच जाते है. इस काम को अंजाम देने वाले लोग विशेष ड्रेस पहनते है वे पहले छत्ते को इसलिए जलाते है कि मधुक्खियां उन पर हमला न करेें. पातालकोट में शहद तोडऩे का काम करने वाले सुखपाल बुनकर कहते है कि पहले एक च्ंिटल शहद नहीं मिलता था. अब पहली ही खेप में मधुमक्खियां की बढ़ी संख्या के कारण छह च्ंिटल शहद इक_ïा हुआ है . एक जानकारी के मुताबिक मधुमक्खियों की प्रजातियों में भंवर मक्खियां उग्र होती है. शहद तोडऩे में कई लोगों ने मक्खियों के डंक से जान गंवाई है. हनी हंटर्स गु्रप बनाकर नई तकनीक से आदिवासी जब से काम कर रहे है तब से एक भी जान नहीं गई है. आल्मोद गांव के बुधमान कहते है कि मधुमक्खियों को दोस्त बनाने से हमें लाभ हुआ है

सूर्यपुत्री माँ ताप्ती की घाटियो में छुपी प्राचिन सभ्यताओं का प्रतीक है ग्राम डोहलन
सचित्र रिर्पोट :- रामकिशोर पंवार
मुलताई (बैतूल)। विश्व पटल पर देखने से पता चलता है कि अनेक सभ्याताओं का उदय और विनाश नदियों के किनारे हुआ है। विश्व की अनेक प्राचिन सभ्यता चाहे सिंधु घटी की सभ्यता हो या फिर किसी अन्य की प्राचिन सभ्यता इन सब की पोषक नदियाँ रही है। नदियो के किनारे जन्मी अनेक सभ्यताओं से जुड़े किस्से कहानियों में भारत की सबसे प्राचिन नदी सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का भी नाम आता है। आज यही कारण है कि ताप्ती तटों पर प्राचीन समृद्ध सभ्यताओं के अवशेष अकसर बिना किसी खुदाई या खोज के अकसर लोगो का मिलते है। वास्तुकला के अमुल्य खजानों से ओत- प्रोत सूर्यपुत्री माँ ताप्ती के तटो पर मिलने वाले प्राचिन मठ – मंदिर एवं अवशेषो को देखते ही उसके प्राचिन इतिहास की फिलम इआँखो के सामने चलने लगती है। भारतीय पौराणिक एवं प्राचीन संस्कृति की अमोल धरोहर कही जाने वाली वास्तुकला एवं शिल्प कला की बेजोड़ मिशालें कहलाने वाली इन अद्धितीय कला कृतियों के निमार्ण के साथ – साथ इनके आज तक नष्ट न हुये सौंदर्य को देखते ही इस बात का अंदाजा उन अमीट साक्ष्यो से लगाया जा सकता है सदियों के बाद भी इन कला कृतियों का वैभव पूर्ण रूप से नष्ट होने की कगार पर आ जाने के बाद भी ए आज भी ज्यो – के त्यो खड़े अपने इतिहास के पन्नो में छपी कहानी – किस्सो को बयाँ करते है। कई बार समाचार पत्रो एवं जागरूक संगठनो की उलाहना के बाद हाल हीं में मध्य प्रदेश सरकार के पुरातत्व विभाग ने इनकी सुध लेने की दिशा में पहल करने का मन बनाया। वह इन प्राचिन भारत की अनमोल धरोहर की सुध लेने एवं इन्हें सहजने के लिए भोपाल से आदिवाससी बैतूल जिले की ओर निकल पड़ा है। भोपाल – नागपुर नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले की मुलताई तहसील मुख्यालय के दक्षिण में लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम डोहलन में स्थित प्राचीन ऋषि महाराज के मंदिर माता माई मंदिर का जीर्णोद्वार की सुगबगाहट में जुटा मध्यप्रदेश सरकार का पुरात्व महकमा ने इस गांव पहँुचने के बाद कुछ सार्थक कार्य प्रारंभ किया है। पुरातत्व विभाग द्वारा धार्मिक आस्था के प्रतीक और प्राचीन वास्तुकला की धरोहर को सहजनें का प्रयास किया जा रहा है। ऋषि महाराज का मंदिर अत्यंत प्राचीन है और मंदिर के चारों और पत्थर पर बनी कलाकृतियों आज भी सहज ही मन मोह लेती है। इस मंदिर पर दत्तात्र भगवान राम नटराज और मॉ काली की पत्थर की बनी प्रतिमाएॅ है साथ ही अनेक कलाकृतियों में युद्ध का वृतांत एवं नृत्य के भाव-भगीमा को दिखाया गया है। वहीं माता माई के मंदिर के समक्ष लगा द्वार पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियों का बेजोड़ नमूना है इस कलाकृती को देखकर प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की समृद्धि का भान होता है। ग्राम डोहलन में जगह-जगह बिखरी पड़ी कलाकृतियों के रूप में सौंदर्य की प्रतिमाएॅं उत्कृष्ट कल्पनाओं का ऐसा संसार दिखाती है जिसे देख सहज ही मन विभोर हो जाता है। इस प्राचीन मंदिर को लेकर अनेक किस्से, कहानी और दंत कथाएॅं प्रचलित है।  ग्राम में जब भी कोई आपदा आती है तो ग्रामीण इस मंदिर में शरण लेते है और भक्ति भाव से की गई प्रार्थना के बाद लोगों का यह विश्वास है कि सभी आपदाएॅं टल जाती है। ग्रामिणो की आस्थायें कहती है कि गांव में चाहें कोई भी बीमारी का प्रकोप हो या अवर्षा की समस्या, ग्रामीण अपनी सभी समस्याओं का हल इसी मंदिर में खोजते है, लोगों का विश्वास है कि वर्षा ने होने पर ताप्ती का जल इस मंदिर में चढ़ाने से वर्षा हो जाती है। डोलहन ग्राम के लोगो की ऐसी मान्यता है कि इस गांव के प्राचिन इन मंदिरो का रिश्ता भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के वनवास काल से जुडा है। इस गांव के मंदिर के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालते हुए ग्रामिण बताते है कि यह मुनि विश्राम एवं रमण मुनि की तपों भूमि रही है। यहॉं मुनि मंदिर में विद्यमान शिव लिंग की पुजा किया करते थें, राजस्थान से आए उनके कुल भाटों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास आठ सौ सालों से भी अधिक पुराना है इस मंदिर से कभी कलांतर में पत्थरों की ही एक सीढ़ी हुआ करती थी, जो कि ताप्ती नदी के मध्य तक जाती थी, जिसके अवशेष आज भी ताप्ती तट पर देखे जा सकते है। ग्राम डोहलन वासियों का मानना है कि प्राचीन काल में यहाँ विशाल मंदिर रहा होगा। अनेक ग्रामीण कहते है वर्तमान में जो मंदिर दिखाई देता है इसके निचले भाग में विशाल मंदिर हो सकता है। जगह-जगह खड़े पत्थरों के आकर्षक खंबे इस विश्वास को पुख्ता करते है। ताप्ती नदी के मध्य बना चबूतरा सीढिय़ों के अवशेष एवं बावड़ी का अस्तित्व यह बताता है कि यहाँ कभी समृद्ध सभ्यता रही है, जिसें खोजे जाने की आवश्यक्ता है। बैतूल जिलें में पहली बार पुरातत्व विभाग भोपाल द्वारा प्राचीन संस्कृति की धरोहर का प्रयास किया जा रहा है। ऋषि महाराज मंदिर के चारों ओर पत्थरों का परकोटा बनाया जा रहा है। बेश किमती कलाकृतियों को सहज कर उचित स्थान पर लगाया जा रहें है। पुरातत्व विभाग से जुड़े लोगो का मानना है कि इस स्थान को संग्रहित एवं सुरक्षित रखने की ठोस कार्य योजना है, जिसका शीघ्र ही उदय होगा। फि लहाल पत्थरों का प्लेट-फार्म बनाया जा रहा है, एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक पत्थरों का ही मार्ग निर्माण किया जा रहा है

बैतूल से गुजरे थे श्री राम ..?
– रामकिशोर पंवार
बहुचर्चित रामसेतु परियोजना को लेकर उपजे विवाद की कड़ी में मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने भी उस रामपथ को खोजने की शुरूआत की है जो अयोध्या से चित्रकुट होता हुआ दण्डकारण क्षेत्र से पंचवटी होते हुआ रामेश्वरम जाता है . भगवान श्री राम जिस दण्डकारण क्षेत्र से होते हुये श्री लंका तक पहँुचे थे उस पथ में आने वाले क्षेत्रो में सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का बारह लिंग क्षेत्र भी आता है ..? इसी तथ्य को दावे के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है बैतूल जिले के उन चंद ताप्ती भक्तो ने जिनका दावा है कि भगवान श्री राम बैतूल जिले के जंगलो से होते हुये माँ ताप्ती को पार कर ही पंचवटी पहँुचे थे . अब यह प्रश्र उठता है कि क्या भगवान श्री राम बैतूल से गुजरे थे..? बैतूल के इतिहास से भली भांती परिचित कुछ जानकारो का दावा है कि श्री पंचवटी से लंका तक पहँुचने वाले उस रामपथ का बैतूल जिले से भी नाता है क्योकि  सतपुड़ा पर्वत की हरी-भरी सुरम्य वादियों में ऊंची-ऊंची शिखर श्रेणियों के मध्य से कल – कल कर बहती सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच धारा में बने बारह लिंगो की स्थापना के पीछे जो आम प्रचलित कथाये एवं किवदंतियाँ तथा उससे मेल खाती एतिहासिक पुरात्तवीक अवशेषो के अनुसार भगवान श्री राम ने इस रावण के पुत्र मेघनाथ के द्रविड़ राज्य में राक्षसो से रक्षार्थ हेतू अपने अराध्य देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आकाश गंगा सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के किनारे रात्री विश्राम कर दुसरे दिन प्रात: सुर्योदय के पहले ताप्ती नदी में के बीचो – बीच बहती जल धारा में डूबे पत्थरो पर बारह लिंगो की आकृति को जन्म देकर उनका विधिवत पूजन एवं स्थापना की थी . भगवान श्री राम के साथ इस पूजन कार्य के पूर्व माता सीता ने जिस स्थान पर ताप्ती नदी के पवित्र जल से स्नान किया था वह आज भी सुरक्षित है तथा लोग उसे सीता स्नानागार के रूप में पूजन करते है . महाभारत की एक कथा के अनुसार मृत्युपरांत कर्ण से भगवान श्री कृष्ण ने कुछ मांगने को कहा लेकिन दानवीर कर्ण का कहना था कि भलां मैं आपसे क्यूँ कुछ माँगु मैने तो अभी तक लोगो को दिया ही है तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पूर्णस्वरूप दानवीर कर्ण को दिखा कर कहा अब तो कुछ मांग लो . कर्ण ने कहा कि यदि प्रभु आप मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मेरी अंतिम इच्छा को पूर्ण कर दो जो यह है कि मेरा अंतिम संस्कार उस पवित्र नदी के किनारे हो जहाँ पर आज तक को शव न जला हो .. तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टिï से ताप्ती जी के किनारे अपने अंगुठे के बराबर ऐसी जगह देख जहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ने पैरो के एक अंगुठे पर खड़े रह कर अपनी हथेली पर दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार किया. रामयुग में जटायु तथा कृष्ण युग में कर्ण दो ही ऐसे जीव रहे जिन्होने भगवान राम और श्याम की बाँहो में दम तोड़ा. प्रस्तुत कथा से इस बात का पता चलता है कि ताप्ती कितनी पवित्र नदी थी . दुसरी दृष्टिï से देखा जाये तो पता चलता है कि महाभारत की इस घटना के अनुसार सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार भी उसकी अपनी बहन ताप्ती के किनारे सम्पन्न हुआ. सूर्य पुत्री ताप्ती का महत्व इस क्षेत्र कि जनता एवं पुराणो में गंगा – नर्मदा के समकक्ष है . पुराणो में इस बात का जिक्र है कि गंगा जी में स्नान का , नर्मदा जी के दर्शन का तथा सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का नाम मात्र स्मरण करने से उनके समकक्ष पूर्ण  लाभ मिलता है. जनश्रुत्रि एवं जानकारो तथा इतिहास के विशेषज्ञो के अनुसार इस द्रविड़ राज्य में असुरी शक्ति का जबरदस्त आंतक रहता था वे किसी भी ऋषि – मुनियो के पूजा पाठ यहाँ तक की उनके द्घारा करवाये जाने वाले यज्ञो तक में व्यवधान पैदा कर देते थे. असुरो के अराध्य देवाधिदेव महादेव को भगवान श्री राम ने अपने द्घारा चौदह वर्ष के वनवास के दौरान वनगमण के दौरान स्वंय तथा अनुज लक्ष्मण एवं जीवन संगनी सीता की रक्षा के लिए देवाधिदेव महादेव की जहाँ – तहाँ पूजा अर्चना की. असुर केवल भोलनाथ भगवान जटाशंकर महादेव के पूजन कार्य में व्यवधान नहीं डालते थे इसी मंशा के तहत मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने राम पथ के दौरान शिव लिंगो का पूजन किया. ताप्ती नदी की बीच धारा में पाषण शीला पर बारह शिव लिंगो की स्थापना की. वैसे आमतौर पर रामायण में श्री राम युग में श्रीराम द्घारा मात्र रामेश्वरम में ही शिव लिंग की स्थापना का जिक्र सुनने एवं पढऩे को मिलता है लेकिन पूरे विश्व के बारह ज्योर्तिलिंगो को एक ही स्थान पर वह भी सूर्यपुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच तेज बहती धार में मौजूद पाषण शीलाओं पर ऊकेरा जाना तथा उनका आज भी मूल स्वरूप में बने रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है . वैसे आम तौर पर कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने शिवलिंगो की स्थापना करके यह संदेश दिया कि देवाधिदेव शिव ही राम के ईश्वर है जबकि शिव भगवान ने ही कहा कि राम ही ईश्वर है . बरहाल बात रामेश्वरम के ज्योर्तिलिंग की हो या ताप्ती नदी बीच तेज बहती धारा के मध्य पाषणशीलाओं पर स्थापित बारह लिंगो की भगवान श्री राम ने अपने अराध्य देवाधिदेव जटाशंकर उमापति महादेव के प्रति अपने अगाह प्रेम को जग जाहिर कर डाला .
ताप्ती नदी के बारे में पौराणिक कथाओं में उल्लेखित कथा के बारे में पता चला कि एक समय वह था जब कपिल मुनि से शापित जलकर नष्टï हो पाषाण बने अपने पूर्वजों का उद्धार करने इस पृथ्वी लोक पर, गंगा जी को लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की थी. उसके फलस्वरूप गंगा ने ब्रम्ह कमण्डल (ब्रम्हलोक से) धरती पर, भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया परंतु वसुन्धरा पर उस सदी में मात्र ताप्ती नदी की ही सर्वत्र महिमा फैली हुई थी . ताप्ती नदी का महत्व समझकर श्री गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोउपरांत प्रजापिता ब्रम्हा विष्णु तथा कैलाश पति शंकर भगवान की सूझ से देव ऋषि परमपिता ब्रम्हा के पुत्र नारद ने ताप्ती महिमा के सारे ग्रंथ चोरी कर लिये जिसके चलते उन्हे पूरे शरीर में कोढ़ हो गई थी जिससे उन्हे मुक्ति भी सूर्यपुत्री करी जन्म स्थली मुलताई के नारद कुण्ड में स्नान उपरांत मिली थी. आज भी ताप्ती जल में एक विशेष प्रकार का वैज्ञानिक असर पड़ा है, जिसे प्रत्यक्ष रूप से स्वंय भी आजमाईश कर सकते है. ताप्ती जल में मनुष्य की अस्थियां एक सप्ताह के भीतर घुल जाती है. इस नदी में प्रतिदिन ब्रम्हामुहुर्त में स्नान करने से समस्त रोग एवं पापो का नाश होता है. तभी तो राजा रघु ने इस जल के प्रताप से कोढ़ जैसे चर्म रोग से मुक्ति पाई थी. ग्राम खेड़ी सांवलीगढ़ से ग्यारह किलोमीटर दूर त्रिवेणी भारती बाबा की तपोभूमि ताप्ती घाट जो इस क्षेत्र में तो क्या संपूर्ण बैतूल जिले में बहुधा जानी पहचानी जगह है. विकासखंड भैंसदेही के अंतर्गत आने वाले इस स्थान से पूर्व दिशा की ओर यहां से लगभग चार किलोमीटर पैदल चलकर या फिर मोटर वाहनों से भी पहुंचा जा सकता है. बारहलिंग नामक स्थान पर जो ताप्ती नदी के तट पर स्थित है, यहां कि प्राकृतिक छठा सुन्दर मनमोहक दृश्य आने-जाने वाले यात्रियों का मन मोह लेते है. घने हरियाले जंगलो से आच्छादित प्रकृति की अनुपम छटा बिखरेती हुई ताप्ती नदी शांत स्वरों में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है . चौदह वर्ष के वनवास के दौरान बारह लिंग नामक इस स्थान पर ठहरे हुए भगवान श्री राम ने  स्वंय अपने अराध्य देवाधिदेव महादेव के बारह लिंगो की कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन पाषण शीला पर आकृति ऊकेरी थी जो आज भी ज्यों – की त्यों है. राम निर्मित उक्त बारह शिवलिंगो तथा सीता स्नानागार आज भी लोगो की आस्था के केन्द्र है राज्य सरकार को चाहिए कि जब वह रामपथ को खोज रही है तब इन .शुशुप्त रूप से आज भी विद्यमान है इन बारह लिंगो एवं सीता स्नानागार की उपेक्षा क्यो ..? कथाओ एवं पुराणो के अनुसार श्री राम ने वनो में उगने वाले फलो में से एक को जब माता सीता को दिया तो उन्होने इसका नाम जानना चाहा तब भगवान श्री राम ने कहा कि हे सीते अगर तुम्हे यह फल यदि अति प्रिय है तो आज से यह सीताफल कहलायेगा. आज बैतूल जिले के जंगलो एवं आसपास की आबादी वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक संख्या में सीताफल पाया जाता है.

पानी को लेकर मतदान के बहिष्कार के फैसलो को विवश दर्जनो गांव के वाशिंदे
आखिर कब बुझेगी मेरे गांव की प्यास , माँ ताप्ती के पावन जल की है सभी को आस……..!
रामकिशोर पंवार
बैतूल। चुनाव के समय अचानक जब मैने एक न्यूज चैनल पर अपने के लोगो को नारे लगाते बैनर थामें देखा तो मैं कुछ पल के लिए सकपका गया। आखिर ऐसा क्या हो गया मेरे गांव में जिसके चलते टी वी चैनलो पर मेरे गांव को लेकर एंकर लम्बे – चौड़े कसीदे पढ़ रहा है। न्यूज चैनल पर चल रही खबर से मुझे पता चला कि मेरे गांव के लोगो को उनके सुखे कुयें और खेत – खलिहान की बेबसी आन्दोलित कर गई। अकसर चुनाव के समय मेरे गांव के लोगो को नेताओं के समक्ष अपना दुखड़ा रोते देख मुझे शर्म आती हैं। मेरे गांव की इस बदहाली के लिए मैं भी कुछ न कुछ जिम्मेदार हूं क्योकि मैने अपनी पत्रकारिता हमेशा दुसरो के लिए की यदि मैं शुरू से अपने गांव के दुख दर्द को भोपाल – दिल्ली तक पहुंचाता तो संभव था कि मेरे गांव की समस्या का कुछ तो निराकरण हो जाता। मैं जब गांव के करीब अया तो मुझे गांव के दर्द का एहसास हुआ लेकिन ऐसा एहसास किस काम जो उसका निदान न निकाल सके। मेरे अपने पैतृक गांव में पानी को लेकर उस समय से गांव के लोग नेताओं के चक्कर पर चक्कर लगा कर घनचक्कर हो गये जब बात चली थी कि जगदर पर बड़ा डैम बनेगा और उसकी नहरे रोढ़ा – बाबई – सेलगांव तक पहँुचेगी लेकिन आज लगभग चालिस साल होने जा रहे हैं रोंढ़ा की तड़पती और तरसती धरती पर सूखी नहरे तक नहीं बन सकी हैं। यदि नहरे खुद जाती तो हम बरसात का पानी ही रोक सकते थे। जगधर का बांध बैतूल जिले के उन धन्नासेठो ने नहीं बनने दिया जिसकी जमीन बांध और नहरे में जा रही थी। आज जगधर का बांध तो जरूर बन गया लेकिन उसकी नहरे तो बैतूल बाजार तक आते – आते ही सूखने लगती है। गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ – बहने – बहु – बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें में पानी ही नहीं बचा है। पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ – तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है। कल तक मेरे गांव की कोसामाली और जामावली पूरे गांव की प्यास बुझाती थी लेकिन कोसामाली और जामावली के बुढ़े हो चुके कुओं के हालातो पर तो मुझे भी रोना आता है। जिस कोसामाली पर सुबह से लेकर शाम तक पनहारी पानी के मटको और बर्तनो के साथ पानी भरने आया करती थी आज वहीं पनहारी अपने गांव की गलियों में गांव की पंचायत के द्वारा लगवाई गई नल योजना नल और बिजली पर आश्रित हो चुकी है। पूरे गांव को एक साथ पानी की सप्लाई तो दूर एक मोहल्ले को भी पूरा पानी पिलाने का आज उस नलकूप योजना पर भरोसा करना याने सुबह से शाम तक प्यासे मर जाने के समान है। मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है। बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया – गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है। गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा – तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। इधर परसोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है। खेड़ी – सेलगांव – बावई  होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। गांव को आने एवं जाने के लिए जितनी पंगडंडी है वह आज भी वैसी ही है जैसे कभी मेरे बचपन में हुआ करती थी। गांव के समग्र विकास की बाते करने वालो को आज मेरे गांव के युवा वर्ग ने अगर बहिष्कार का जूता दिखाया है तो नि:सदेंह इस काम के लिए मैं और मेरा पूरा गांव उस युवा पीढ़ी को बधाई देता है। आखिर कोई तो माई का लाल इस गांव को मिला जो गांव आकर आजादी के लगभग 64 सालो में मेरे गांव के भोले – भाले मतदाताओं को लालीपाप देकर वोट मांगने के बहाने झुठी तसल्ली देकर ठगता चला आ रहा था उन ठगो को जूता दिखा कर डराना गांव में आई जन जागृति का प्रतीक है। दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है। लोग आते है , चले जाते है। कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है। जहाँ  पर लोग केवल घुमने के लिए आते है । जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है। थोड़ी से भूल – चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया…. ऐसे  में सब कुछ खो जाने का डर रहता है। इसलिए लोग संभल – संभल कर चलने लगे है। गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के रितब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है। मेरे गांव के लोग बम्बई – दिल्ली – कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है । जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ”बच्चो का भविष्य देखना है …..!ÓÓ  ”आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या…. ?ÓÓ अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि …. वैसे देखा जाए तो रोंढ़ा मेरा गांव तो नही रहा यह बात अलग है कि वह हमारा गांव हैै क्योकि इस गांव से मेरे पापा का बचपन जुड़ा हैै। रोंढ़ा मेरे पापा की जन्मभूमि होने के कारण उन्होने ही मुझे अपने इस गांव से जोड़े रखा। आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ पापा के बचपन की एक ऐसी निशानी है आज पूरे गांव के साथ प्यासा है। पहले लोग माता मैया के चबुतरे पर हर रोज पानी चढ़ाने आया करते थे। सुबह स्नान के बाद कुओं से लाया गया शुद्ध पानी का एक हिस्सा माता मैया के ऊपर अर्पित किया जाता था जिसके चलते उस चम्पा के पेड को भी पानी मिल जाता था और लहलहा उठता था लेकिन अब तो गांव के लोगो को यह तक पता नहीं रहता कि गांव के नल से पानी आयेगा या नहीं ……यही हाल गांव के कुओ का है जो गांव के कुयें कभी पूरे गांव को बरसात तक पानी पूराते थे आज वहीं कुओं का पानी दिवाली के बाद समाप्त होने लगता है। कहना नहीं चाहिये लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जाता। आजादी के 61 सालो में मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है। बैतूल जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी सर्वोदयी नेता भुदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है। आज गांव के आसपास लगी जना जागृति की आग की लपेट में सूरगांव – नयेगांव – सेहरा – सावंगा आ चुके है। अब गांव से लगी गांव से गांव के सुखे पड़े खेतो के भूसे जलने के बजाय गांव वालो के दिल दिमाग दहक रहे है। गांव का बचचा और बुढ़ा दोनो ही गांव के आसपास सूखे खेत – खलिहान को देकर आन्दोलित हो उठा है। अब मेरे गांव को माँ सूर्य पुत्री ताप्ती का जल ही तृप्त कर सकता है। मेरा माँ ताप्ती जन जागृति मंच के द्धारा लोगो को माँ ताप्ती से जोडऩे का सिलसिला अब मुझे अपने गांव को भविष्य में माँ सूर्य पुत्री ताप्ती से जुड़ता दिखाई देने लगा है। मेरे गांव के सूर में सूर मिलाने के जब सूरगांव आ गया है तब मैं कल्पना कर सकता हँू कि आने वाले कल में जब माँ ताप्ती का जल दुसरे प्रदेशो को मिलने के बजाये मेरे गांव और खेत खलिहानो तक पहँुचेगा तो आसपास के गांव को भी माँ ताप्ती का तपते आसमान के समय भी जल मिलने लगेगा। जब भोपाल तक भोपाली नेताओं के लिए माँ नर्मदा पहँुच सकती है तब मेरे गांव के लिए मेरी अराध्य माँ ताप्ती क्यों नहीं पहँुच सकती…..? अब हमें और हमारे गांव वालो को अपने साथ आसपास के दर्जनो को गांवो के लोगो को खड़ा करके मेघा पाटकर की तर्ज पर ताप्ती रोको आन्दोलन करना होगा। जब हमारी माँ के आँचल से हमारी प्यास नहीं बुढ सकती तो हम पड़ौसी दुसरे राज्यो की प्यास को भी नहीं बुझने देगें। आज शर्मनाक बात है कि बैतूल जिले के जिस माँ ताप्ती के पावन जल में अनेको साधु संतो – मुनियो एवं स्वंय भगवान श्री राम के पूर्वजो को मुक्ति मिली उसके लिए हमें जीते जी और मरने के बाद भी तरसना पड़े ऐसा नहीं होने दिया जायेगा। गांव के लिए गंवार के लिए सही लेकिन अब ताप्ती का जल पूरे बैतूल जिले के खेंत – खलिहानो और सुखे कुओ तथा बावलियों के अलावा प्यासे कंठो को मिलना चाहिये। ऐसे काम के लिए नेताओं और उनके दलो को आँखे दिखाना या उनकी वादाखिलाफी को गिनाना कोई संगीन अपराध नहीं है। गांव के आन्दोलन में मेरा पूरा तन – मन गांव को समर्पित है क्योकि आज मुझे हर मंगलवार और शनिवार माँ ताप्ती के पावन जन में स्नान – ध्यान करने के लिए जाना पड़ता है लेकिन यदि मेरे गांव को या आसपास के लोगो के पास माँ स्वंय कल – कल करती यदि आयेगी तो उनकी कई पीढिय़ो का कल्याण हो जायेगा। एक बार सारे मिल कर बोलो जय माँ ताप्ती की जिसकी राह देख रहे है रोंढा एवं आसपास के गांवो के लोग……

छत विहीन – खण्डहर बने – शिक्षक विहीन
स्कूलो में आखिर बच्चो को लेकर स्कूल क्यों चले हम
बैतूल (रामकिशोर पंवार )। मध्यप्रदेश के सतपुड़ाचंल में बसा आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला 1007800 हेक्टर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिले में 1303 राजस्व तथा 92 वनग्राम है। इस जिले में 63 ऐसे भी गांव जो कि पूर्णत: विरान हो चुके है। बैतूल जिले 30 गोकुल ग्राम भी है जिनकी परिकल्पना राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में राज्य सरकार के केबिनेट मंत्री तथा बैतूल जिले के पालक मंत्री बाबूलाल गौर ने की थी। नये शिक्षा सत्र से बैतूल जिले में सर्व शिक्षा अभियान के तहत 40 हजार छात्रो को स्कूल में प्रवेश दिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। सर्व शिक्षा अभियान के मूल सिद्घांत स्कूल चले हम के तहत बैतूल जिले में 2 हजार 756 स्कूलो में 15 जुलाई से 30 सितम्बर तक उक्त लक्ष्य की पूर्ति करने के लिए प्रत्येक शिक्षको को 25 घरो में जाकर ऐसे बच्चो को ढुंढ निकालना है जो कि स्कूल नहीं जा रहा है। जिले में वर्तमान समय में दुरस्थ ग्रामिण क्षेत्रो के बच्चो को सीधे सेटेलाइट से जोड़ कर पढ़ाया जाना है। इन 71 स्थानो पर भले ही मिटटï्ी का तेल भी दिया जलाने को नसीब न होता हो पर पर वहां सेटेलाइट से बच्चो को अ अनार का नहीं बल्कि ए फार एप्पल पढ़ाया जाना है। प्रारंभिक शिक्षा सत्र में गुणात्मक उन्नयन के परिपे्रक्षय में प्रदेश में गतिविधि आधारित शिक्षण एबीएल (एक्टिव बेस लर्निंग) कोर्स को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया जा रहा है।  पहली से लेकर आठवी तक के 2 हजार 756 स्कूलो के लिए 1290 संविदा शिक्षको के पद स्वीकृत किये गये थे जिसमें 5 सौ 94 संविदा शिक्षको की भर्ती होने के बाद भी 5 सौ शिक्षको कमी है। इस समय जो शिक्षक है वे पर्याप्त लक्ष्य एवं स्कूलो में आने वाले बच्चो के लिए ऊँट के मुँह में जीरा साबित होगें।  गैर शैक्षणिक कार्यो में लगे शिक्षको को नवीन शिक्षा सत्र के दौरान अपने बच्चो की पढ़ाई के साथ राज्य सरकार की अनेक योजनाओं का प्रचार – प्रसार भी करना है साथ – साथ कुछ ऐसे बिगार के काम भी ऐसी स्थिति में शिक्षा सत्र का स्कूल चलो अभियान छात्रो के पालको के सामने एक सवाल उठाता है कि वे अपने बच्चो को सरकारी स्कूलो में पढ़ाने के लिए क्यों लेकर चले……?
बैतूल जिले की दस जनपदो एवं 2 नगर पालिकाओं , 4 नगर पंचायतो तथा 545 ग्राम पंचायतो में सर्व शिक्षा अभियान का बीते वर्ष का हश्र सबके सामने है। शिक्षा सत्र की पुस्तके कबाड़ी के पास मिलने के बाद से तथा स्कूली बच्चो को भूसे की रोटी खिलाने के मामलो को लेकर चर्चा का केन्द्र बना बैतूल जिला का राजीव गांधी शिक्षा मिशन अभियान अब लोगो की न$जर में इतना गिर चुका है कि लोग अब भी इस बात की शंका – कुशंका बनी है कि जब स्कूलो में पढ़ाई ढंग से नहीं हो पा रही है तब 71 केन्द्रो पर सेटेलाइट से क्या खाक पढ़ाई हो पायेगी। पहली जुलाई से बच्चो को तिलक लगा कर स्कूलो में प्रवेश दिलाने वाले कितने शिक्षक ऐसी परिस्थिति में बच्चो को पढ़ा पायेंगें जहां तक बरसात के मौसम में ऊफनती नदीयों एवं नालो में आई बाढ़ बारह – बारह घंटे नहीं उतरती हो….? बैतूल जिले में सरकारी दस्तावेजो पर आधारित जानकारी की ही बात करे तो पता चलता है कि जिले में 658 ऐसे स्कूल है जिनकी छते या तो टपकती है या फिर खस्ता हालत में है। जिले में ही 345 ऐसे स्कूल है जो कि छत विहीन है या फिर उनकी छते हवा में उड़ गई। पहली से लेकर बारहवी तक के स्कूलो की मनो व्यथा इतनी दयनीय है कि कई स्कूलो तक पहँुचने के लिए स्कूल के आमने – सामने बन गये पोखरो को पार करना पड़ता है। कीचड़ से सने पांव और बैठने को कुर्सी बेंच तक नहीं। पहली से आठवी तक के बच्चे आज भी अपने घरो से स्कूल का बस्ता और बैठने के लिए चादर का टुकड़ा लेकर आते है। अखबारो और न्यूज चैनलो पर स्कूल चलो का प्रचार- प्रसार करने वालो को स्कूलो की दशा पर भी ध्यान देना चाहिये। बैतूल जिले में 92 ऐसे वन ग्राम है जहां पर आज तक बिजली तक नहीं पहँुच सकी है ऐसे में इन गांवो में सेटेलाइट शिक्षा प्रणाली की कल्पना करना  आसमान को छुने से कम नहीं है। वर्तमान समय में राजीव गांधी शिक्षा मिशन द्घारा 202 जन शिक्षा केन्द्रो के लिए भवनो के निमार्ण कार्य के लिए ग्राम पंचायतो को राशी आवंटन किया गया है। जब तक भवन बन कर तैयार होगे तब तक सभी स्कूली बच्चो को टपकती छतो के नीचे ही बैठने के लिए मजबुर होना पडेगा।

अब जननी सुरक्षा योजना की आड़ में जन संख्या
पर नियंत्रण करने के लिए गर्भपात का सहारा
बैतूल  (रामकिशोर पंवार ) बैतूल जिले में जिला मुख्य चिकित्सालय के अधिनस्थ कार्यरत आरसीएच शाखा के प्रबंधक अतुल सवटकर के अनुसार बैतूल जिले में तीन प्रायवेट चिकित्सालयो को राज्य सरकार की स्वास्थ सेवाओं के प्रचार – प्रसार एवं उनके क्रियाव्यन के लिए अधिकृत किया गया है। बैतूल जिला मुख्यालय पर स्वास्थ विभाग की प्रचार – प्रसार जवाबदेही का निर्वाहण करने वाली आरसीएच शाखा प्रमुख के अनुसार जननी सुरक्षा योजना के तहत जिले के इन प्रायवेट चिकित्सालयो से सौ रूपये के स्टाम्प पेपर पर यह अनुबंध किया गया है कि वे लोगो को गर्भपात के लिए प्रेरित करने के लिए अपने स्तर प्रचार – प्रसार कर सकते है।  इस बारे में जानकार लोगो एवं इन अनुबंधित चिकित्सालयो के प्रमुखो का कहना है कि प्रदेश की बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण लगाने के लिए सरकारी योजनाये नसबंदी और सुरक्षित यौन संबधो के लिए नि:शुल्क बाटे जाने वाले कंडोम के फेल हो जाने पर अब सुरक्षित तथा कथित चिकित्सीय गर्भपात करवाने के लिए जिले के नीम हकीम डाक्टरो के पास नहीं जाना पड़े इसलिए यह सुविधा सरकार उपलब्ध करवा रही है। बैतूल जिले में स्वास्थ विभाग की ओर से लगाये गये प्लेक्स बोर्ड एवं स्थानीय न्यूज चैनलो तथा सरकारी दुरदर्शन पर बैतूल जिले के इन अनुबंधित प्रायवेट चिकित्सालयो के द्घारा करवाये जाने वाले गर्भपात के लाभ को लेकर बवाल बच गया है। सुभ्रदा चिकित्सालय के संचालक विनय सिंह चौहान के अनुसार उन्हे आरसीएच प्रबंधक द्घारा ऐसा करने को कहा है। जननी सुरक्षा की आड़ में वैध – अवैध गर्भपात का इस तरह प्रचार – प्रसार होने से लोगो में गर्भपात के प्रति रूझान बढ़ेगा साथ ही भ्रूण हत्यायें भी बढ़ेगी। गर्भपात करने वाला चिकित्सक या चिकित्सालय अपने आरसीएच सेें हुये अनुबंध का सहारा लेकर साफ बच निकलेगा। विधिवेता संजय शुक्ला के अनुसार कोई भी प्रायवेट चिकित्सक या चिकित्सालय स्वंय के लाभ के लिए लोगो को इस तरह गर्भपात के लिए उकसाता या उत्प्रेरित करता है तो वह कानून की न$जर में संगीन अपराध का सहभागी है। जननी सुरक्षा योजना का मतलब या जनसंख्या नियंत्रण के लिए अगर स्वास्थ विभाग इस तरह के अनुबंध करता है तो वह भी उस संगीन अपराध में सहभागी है। जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी श्री दीक्षित ने इस तरह की सूचनाओं और समाचार पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया। श्री दीक्षित का कहना था कि अनुबंध जिसने किया हो वहीं जवाब दे…? बरहाल जो भी हो लेकिन चौक – चौराहे पर अब आम चर्चा होने लगी है कि एक तरफ सरकार गर्भपात की सूचना देने वालो को एक लाख रूपये देने का दावा करती है वहीं दुसरी ओर सरकार स्वंय जननी सुरक्षा की आड़ में प्रायवेट चिकित्सालयों को गर्भपात के लिए अनुबंधित करती है।

निर्वस्त्र होकर की गई दैत्य बाबाओं की पूजा अर्चना
बैतूल (रामकिशोर पंवार) . यूँ तो मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में बरसो से चली आ रही तात्रिंक विद्या के जानकार कुछ न कुछ साधना करके सिद्घी प्राप्त करते है . इन्ही सिद्घियों में एक सिद्घी को प्राप्त करने के लिए पाँच साल तक इंतजार करना पड़ता है. पाँच वर्षों में एक बार होने वाली तांत्रिक क्रिया ठोका कहते है जिसे पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है . बैतूल जिले के कई दूर दराज के ग्रामिण अँचलो से लेकर बैतूल , मुलताई , सारनी , आमला , भैसदेंही जैसे नगरीय क्षेत्रों में भी इस विद्या के जानकार अपनी साधना करते है . मुलताई नगर के मेघनाथ मोहल्ले में भीमसेन बाबा दरबार में प्रारंभ होकर मरघट एवं क्षेत्र के समस्त दैत्य बाबाओं के पूजन के साथ संपन्न करवाई इस ठोका तांत्रिक क्रिया के जानकार राठीढाना निवासी नामचीन ओझा रामा उइके एवं उनकी पत्नी तथा पुत्र विजय उइके के द्घारा करवाये गये अनुष्ठïान में नगर के लगभग 40 लोगों ने भाग लिया . तांत्रिक क्रिया की विधि अनुसार रात्रि 12 बजे के उपरांत बाबा भीमसेन की पूजा की गई. 20 व्यक्तियों की टोली शमशान की ओर रवाना हुई शामिल लोगो ने निर्वस्त्र होकर तांत्रिक क्रिया में भाग लिया. इस क्रिया हेतु 5 टोलियां बनाई गई थी. एक टोली जीप द्वारा बेल नदी की ओर काली बिल्ली, काला बकरा एवं काला मुर्गा लेकर रवाना हुई. जहां इन्होंने पशुओं को मटके में भरकर जिंदा गाड दिया. बेल नदी की ओर गई इस टीम ने चिखली एवं सांडिया स्थित दैत्य बाबा का भी पूजन किया. भोर होते ही यह टीम भीमसेन बाबा के दरबार लौटी. एक अन्य टीम तांत्रिक ओझा रामा उइके के नेतृत्व में नगर भ्रमण पर निकली. तांत्रिक अपने सिर पर जलता हुआ खप्पर लिए आगे चल रहे थे. उनके पीछे लोग झंडी लिए हुए उनका अनुसरण कर रहे थे. इन लोगों के पास नारियल, अण्डे, काले मुर्गे एवं गागड़े थे. ये लोग शंख बजाते हुए मोंगिया बाबा के पास पूजा अर्चना हेतु पहुंचे. इसके उपरांत तांत्रिक ने ताप्ती एवं थाने के पास स्थित काली माई की पूजा की. सुबह जेल के निकट शिव मेड़ा पर नगर के सभी पशुओं को जमा किया गया, जिन्हें सिद्ध धागे से गुजारा गया एवं सिद्ध की हुई रेत एवं बेड़ली से भारा गया. मान्यता है कि इस तंत्र क्रिया से पशुओं की सभी बीमारियों और कष्टïों का निवारण होता है. विश्व में जहाँ पुरानी मान्यताएँ समाप्त होकर नये अविष्कारों और विचारों का जन्म हो रहा है वहीं भारत आज भी एक ऐसा देश है जो अपनी परंपराओं और अंंधविश्वासों के बल पर मरघट जिसे शमशान भी कहा जाता है उसमें ऐसी तांत्रिक – मांत्रिक क्रिया होती है जिससे मानव को मानव से जोडऩे का तथा मानव के द्घारा मानव को मार डालने तक का प्रयास होता है .

पहले सरकार से वाहवाही बटोरी फिर लिया इनाम
बैतूल जिले में कुपोषित बच्चो की मिली लम्बी – चौड़ी जमात
बैतूल (रामकिशोर पंवार) बीते वर्ष बाल संजीवनी अभियान में सबसे कम कुपोषित बच्चो के लिए बैतूल जिले को राज्य प्रथम आने के लिए पुरूस्कृत किया गया था जबकि उसी वर्ष बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के दो गांवो में कुपोषण से खतरनाक पोलियो के दो बच्चे मिले थे। $खबर न्यूज चैनलो पर चलने के बाद भी सरकारी वाहवाही लूटने और इनाम बटोरने के षडय़ंत्रो में कोई कमी नहीं आई। इस बार बाल संजीवनी अभियान करोड़ो रूपयो के देशी एवं विदेशी सहायता के शुरू हुआ। सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनो की सीधी कमाई का जरीया बने इस कार्यक्रम के तहत चले अभियान में पूरे जिले में 50 से अधिक बच्चे कुपोषित मिले।  एक माह के इस अभियान में जिले की दो नगर पालिकाओं 4 नगर पंचातयो एवं 10 जनपदो की 545 ग्राम पंचायतो में से मात्र 1 लाख 64 हजार 428 बच्चो का परिक्षण करने के बाद उनकी स्थिति को देख कर उनका वजन लिया गया।   इन बच्चो को भी श्रेणी वार प्राथमिकता देकर उनकी जांच पड़ताल की गई जिसके अनुसार सामान्य श्रेणी के 81 हजार 460, प्रथम श्रेणी के 59 हजार 714, द्घितीय श्रेणी के 22 हजार 425 तृतीय श्रेणी के 592 तथा चतुर्थ श्रेणी के 57 बच्चे कुपोषित मिले। बीते वर्ष के जिस 11 वे बाल संजीवनी अभियान के लिए बैतूल जिले को पहला पुरूस्कार मिला था उस वर्ष भी 1 लाख 61 हजार 964 बच्चो का वजन लिया गया लेकिन जब श्रेणी बार सूचि बनी तो कुपोषित बच्चो को भी सामान्य दर्शा कर सरकार से अपनी पीठ थपथपा ली गई। जब 1 लाख 22 हजार 522 बच्चो को विटामीन की गोलिया और दवाईयां पिलाई गई तो 57 कुपोषित बच्चे कहां से आ टपके। जब हर माह गर्भवति एवं गर्भधात्री महिलाओं एवं नवजात शीशुओ से लेकर 3 से 6 माह के बच्चो का टीकाकरण एवं उन्हे कुपोषित आहार दिया जाता है तब बच्चो में कुपोषण की मार कहां से पड़ गई। इन आकंडो से तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि आंगनवाड़ी केन्द्रो पर कुपोषण को रोकने वाले न तो टीका लगे है और न दवाईया बटी है। यहां तक स्थिति समझी जा सकती है कि गर्भवति एवं गर्भधात्री महिलाओं तथा बच्चो को आंगनवाड़ी केन्द्रो पर आहार भी नहीं मिला होगा। जिला महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी को प्रथम पुरूस्कार मिलने पर उसी सप्ताह जिला मुख्यालय पर एक प्रायवेट संस्था ने एक दिन के शिविर में 52 कुपोषित बच्चे खोज निकाले। इस शिविर में जिला मुख्य चिकित्सालय के चिकित्सको की उपस्थिति में किया गया जांच अभियान में अकेले रामनगर पटवारी कालोनी क्षेत्र में 52 बच्चो का कुपोषित मिलना शर्मसार घटना है। ब्लाक स्तर पर 12 वे बाल संजीवनी अभियान में जो तथ्य सामने आये है वह भी काफी चौकान्ने वाले है। आदिवासी दुरस्थ भीमपुर विकास खण्ड में सामान्य श्रेणी के 8 हजार 203 , प्रथम श्रेणी के 7  हजार 952 , द्घितीय श्रेणी के 4 हजार 65 , तृतीय श्रेणी के 95 तथा चतुर्थ श्रेणी के 10 बच्चेे कुपोषित मिले। इस दुरस्थ विकास खण्ड में 20 हजार 325 बच्चो का वजन लिया गया एवं 16 हजार 539 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। अभियान के तहत अनुसूचित जाति बाहुल्य आमला ब्लाक में सामान्य श्रेणी के 10 हजार 168 , प्रथम श्रेणी के 6 हजार 71  , द्घितीय श्रेणी के 2 हजार 151  , तृतीय श्रेणी के 16 तथा चतुर्थ श्रेणी के 9 बच्चेे कुपोषित मिले।  इस विकास खण्ड में 18 हजार 409 बच्चो का वजन लिया गया और 15 हजार 692 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड भैसदेही में सामान्य श्रेणी के 5 हजार 721 , प्रथम श्रेणी के 5  हजार 603 , द्घितीय श्रेणी के 2 हजार 150 , तृतीय श्रेणी के 47 तथा चतुर्थ श्रेणी के 7 बच्चेे कुपोषित मिले। इस विकास खण्ड में 13 हजार 518 बच्चो का वजन लिया गया एवं 10 हजार 478 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड चिचोली में सामान्य श्रेणी के 6 हजार 199 , प्रथम श्रेणी के 3 हजार 11 , द्घितीय श्रेणी के 892 , तृतीय श्रेणी के 18 तथा चतुर्थ श्रेणी का 1 मात्र कुपोषित बच्चा मिला। इस विकास खण्ड में 10 हजार 121 बच्चो का वजन लिया गया एवं 8 हजार 816 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया।  विकास खण्ड बैतूल के ग्रामिण क्षेत्र में सामान्य श्रेणी के 3 हजार 403 , प्रथम श्रेणी के 3 हजार 132  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 239 , तृतीय श्रेणी के 55 तथा चतुर्थ श्रेणी के 3 मात्र कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 15 हजार 906 बच्चो का वजन लिया गया एवं 11 हजार 738 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड घोडाडोंगरी में सामान्य श्रेणी के 4 हजार 115 , प्रथम श्रेणी के 3 हजार 428  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 206 , तृतीय श्रेणी के 54 तथा चतुर्थ श्रेणी के 6 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 17 हजार 725 बच्चो का वजन लिया गया एवं 15 हजार 410 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड आठनेर में सामान्य श्रेणी के 5 हजार 465 , प्रथम श्रेणी के 4 हजार 343  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 818 , तृतीय श्रेणी के 46 तथा चतुर्थ श्रेणी के 3 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 11 हजार 675 बच्चो का वजन लिया गया एवं 9 हजार 110 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड मुलताई में सामान्य श्रेणी के 8 हजार 410 , प्रथम श्रेणी के 5 हजार 55  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 510 , तृतीय श्रेणी के 42 तथा चतुर्थ श्रेणी के 2 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 1 हजार 547 बच्चो का वजन लिया गया एवं 9 हजार 614 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड  प्रभात पटट्न में सामान्य श्रेणी के 3 हजार 901 , प्रथम श्रेणी के 2 हजार 532  , द्घितीय श्रेणी के 1 हजार 191 , तृतीय श्रेणी के 37 तथा चतुर्थ श्रेणी के 2 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 13 हजार 603 बच्चो का वजन लिया गया एवं 9 हजार  201 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड शाहपुर में सामान्य श्रेणी के 3 हजार 340 , प्रथम श्रेणी के 2 हजार 658  , द्घितीय श्रेणी के 932 , तृतीय श्रेणी के 34 तथा चतुर्थ श्रेणी के 5 कुपोषित बच्चे मिले। इस विकास खण्ड में 13 हजार 988 बच्चो का वजन लिया गया एवं 10 हजार 965 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड बैतूल के शहरी क्षेत्र में सामान्य श्रेणी के 1 हजार 956 , प्रथम श्रेणी के 1 हजार 299  , द्घितीय श्रेणी के 383 , तृतीय श्रेणी के 14 तथा चतुर्थ श्रेणी का मात्र 1 कुपोषित बच्चे मिले। इस क्षेत्र में 7 हजार 387 बच्चो का वजन लिया गया एवं 5 हजार 151 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया। विकास खण्ड घोडाडोंगरी के सारनी नगरीय क्षेत्र में सामान्य श्रेणी के 1 हजार 954 , प्रथम श्रेणी के 906 , द्घितीय श्रेणी के 323 , तृतीय श्रेणी के 15 तथा चतुर्थ श्रेणी का एक भी कुपोषित बच्चा नही मिला। इस क्षेत्र में 6 हजार 544 बच्चो का वजन लिया गया एवं 5 हजार 422 बच्चो को विटामीन ए पिलाया गया।
सरकारी रिर्पोट का यदि पोस्टमार्टम किया जाये तो चौकान्ने वाले तथ्य सामने आयेगें। मसलन जिला चिकित्सालय की टीम को बैतूल जिला मुख्यालय पर एक दिन में 52 कुपोषित बच्चे मिले लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग के बाल संजीवनी टीम को ढुंढे से मात्र एक ही बच्चा कुपोषित मिला। मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी तीसरी नगर पालिका क्षेत्र के 36 वार्डो में बाल संजीवनी कार्यक्रम के तहत एक भी बच्चा कुपोषित नहीं मिला। जबकि चित्र में कुपोषित बच्चो के शरीर उसके कुपोषण होने के जीवित प्रमाण है। महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी राजेश मेहरा के पास जिला जन सम्पर्क कार्यालय का भी प्रभार होने की व$जह से कोई भी मीडिया उसके अधिनस्थ इस विभाग की कटु सच्चाई को सामने लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है। स्वंय राजेश मेहरा अपने विभाग की इस कटु सच्चाई पर कहते है कि मेरे हाथ में कोई जादु की छड़ी तो नहीं है जो कि घुमाने से कुपोषण दूर हो जायेगा लेकिन वे इस बात का भ्री जवाब नहीं दे पा रहे है कि बीते 11 वे बाल संजीवनी कार्यक्रम में प्रथम आने के लिए उन्होने कौन सी जादुई छड़ी घुमाई थी। बैतूल जिले में करोड़ो के बजट वाले इस विभाग में आज यह आलम है कि जिले की 2045 आंगनवाड़ी केन्द्रो में से अधिकांश छतविहीन मकानो और खण्डहरो में लग रही है। सरकारी कागजो पर लाखो का प्रति वर्ष आवंटन पाने वाली इन आंगनवाड़ी केन्द्रो में खीर पुड़ी भी बच्चो को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकी। समस्या इस बात की है कि अब तो इन केन्द्रो पर खीर पुड़ी की जगह बेस्वादी पंजीरी खाने को मिलेगी जिसमें अभी से बदबू आने की $खबरे मिलना शुरू हो गई है।

अखंड भारत का केन्द्र बिन्दु बरसाली
बैतूल (रामकिशोर पंवार ) सेन्टर पांइट के नाम से जाना पहचाना जाने वाला बरसाली दर असल में जम्मू – चेन्नई रेल मार्ग पर स्थित मल्कापुर एवं बरसाली रेल्वे स्टेशन के पास स्थित है. बरसाली को मल्कापुर के नाम से ही जाना जाता है. आज यही कारण है कि कई लोग सेन्टर पाइंट जो कि बरसाली रेल्वे स्टेशन के पास है वे भूलवश मल्कापुर ही उतर जाते है. राजा टोडरमल द्वारा अखंड भारत के सेन्टर पाइंट का सर्वे करवाया गया था उस समय बरसाली के पास एक नाले के पास की जगह को चिन्हित कर वहां पर एक पत्थर की शिला को जमीन में गाडा गया था. अरबी भाषा में इस पत्थर पर लिखा गया शब्द अब मिटता जा रहा है लेकिन लोगो की इस स्थान  पर आवाजाही आज भी बरकरार है. अक्षय कुमार अभिनित फिल्म  भूल भूलैया में भी इस स्थान का उल्लेख सेन्टर पांइट मल्कापुर  के नाम से किया गया है. अखंड भारत का सेन्टर पाइंट कहे जाने वाले इस स्थान से चेन्नई एवं जम्मू की दूरी भी लगभग समान बताई जाती है. बरहाल सेन्टर पांइट बरसाली अपनी पहचान खोता जा रहा है. सतपुड़ा के जंगलो से घिरे बैतूल जिले के इतिहास में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि जिले का इतिहास ईसा से कई हजारो साल पुराना है. जिले में रामयुग – द्वापरयुग के भी साथ – साथ राजा नल एवं दम्यंती के भी तालाब और मछली से जुड़े साक्ष्य मिलते है.

महाशिवरात्री पर शिवधाम बारहलिंग पर आस्था
एवं श्रद्धा का विशाल मेला ताप्ती जागृति मंच द्वारा आयोजित
बैतूल (रामकिशोर पंवार ) महाशिवरात्री के पर्व पर सूर्यपुत्री मां ताप्ती के तट पर स्थित शिवधाम बारहलिंग में आस्था एवं श्रद्धा का विशाल मेला आयोजित किया जा रहा है. लगातार तीसरे वर्ष आयोजित अनोखे इस आस्था एवं श्रद्धा के मेले में पड़ौसी राज्य महाराष्ट्र – मध्यप्रदेश – गुजरात – सहित अन्य राज्यो से शिव उपासक आते है. इस स्थान पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित उन बारहलिंगो का ताप्ती जल से जलाभिषेक किया जाता है. बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित शिवधाम में मेले का आयोजन करने वाली संस्था मां ताप्ती जागृति मंच के अनुसार बीते साल इस मेले में एक लाख से अधिक श्रद्धालु भक्तो ने भाग लिया था. सूर्य पुत्री मां ताप्ती के तट पर इस तरह के मेले में आस्था एवं श्रद्धा का जन सैलाब देखने को मिलता है. सुबह से ताप्ती स्नान के बाद से ही ताप्ती जल से उन सदियो से पत्थरो पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा श्री राम के आग्रह पर ऊकेरे गये बारहलिंगो पर जलाभिषेक का कार्य होता है. इस मेले के पीछे अधिक से अधिक लोगो को शिवधाम से जोडऩा है. मंच के सदस्य बज्रकिशोर पंवार डब्बू का कहना है कि जिले में यूं तो रानीपुर के पास छोटा महादेव भोपाली , सालबर्डी में मेला का आयोजन होता है. शिवधाम बारहलिंग में बिना किसी दुकान – झुले – खेल तमाशो के बिना आस्था एवं श्रद्धा का मेला आयोजन गणेश भाई चादर वाले द्वारा शुरू किया गया है. इस बार भी बड़ी संख्या मे लोग आने की संभावना है.

”यदि चाहो तो रण के रणवीर के बदले रणछोड़ मिलेगें ……!ÓÓ
रामकिशोर पंवार  ”रोंढ़ा वालाÓÓ
पहली बार इलेक्ट्रानिक मीडिया का सच सामने आया वह भी उसका जो कि सबसे पहले और सबसे तेज $खबर देने का दंभ भरता है. इस मीडिया का नाम यदि शार्टकट में इल्ली मीडिया रख दे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिये. इल्ली कई प्रकार की होती है कुछ काटती है तो कुछ खाती है. अब यह बात अलग है कि कुछ इल्ली शरद जोशी के व्यंग की तरह जीप पर भी सवार हो जाती है. आजकल की इल्ली जीप पर नहीं हेलीकाप्टर में सवार होकर इल्ली करती है. मीडिया को इल्लीबाज बनाने वाले प्रायोजित $खबरो के बल पर जिंदा लोगो की बैतूल में कमी नहीं है. प्रिंट मीडिया और इल्ली मीडिया में एक ही फर्क है वह इस बात का कि सच का सामना करने की शक्ति किसमे है. प्रिंट मीडिया पर मानहानी के दावे इसलिए होते है क्योकि छपा कभी मिटता नहीं. सदियो तक लोग उस सच को या $खबर को संभाल कर रखते है. अपने बारे में अच्छा छपा हो या फिर बुरा दोनो ही व्यक्ति के अलावा तीसरा वह व्यक्ति $खबर को संभाल कर रखता है जिससे आपकी पटरी नहीं बैठती हो. टीवी में किसी को भी गु – गुड – गोबर सब कुछ खाता दिखा सकते हो क्योकि आधा घंटे का विशेष दुबारा टेलिकास्ट नहीं होता लेकिन समाचार पत्र में ऐसी किसी भी $खबर या फोटो पर उस संवाददाता की ही नहीं संपादक तक की बैण्ड बज जाती है. पत्रकारिता के आदर्श रहे बिल्टज साप्ताहिक समाचार पत्र के प्रकाशक एवं संपादक आर के उर्फ रूसी करंजिया की एक बात मुझे अच्छी तरह से याद है कि वह पत्रकार किस काम का जिसकी लेखनी उसे कोर्ट – कचहरी और जेल की हवा न खिलाये. रूसी करंजिया के ऊपर पूरे देश में ढाई सौ से अधिक मामले चल रहे थे. एक बार एक न्यायालय ने उनकी अनुउपस्थिति के आवेदन को अस्वीकार करते हुये उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया.  उस समय अपने ही समाचार पत्र में न्यायालय के उक्त फैसले पर करंजिया ने अपनी संपादकीय में लिखा था कि मैं कोई बहरूपिया नहीं हूँ कि हर अदालत में मौजूद रहूं. हम लिखते ही ऐसा है कि लोग की पोल खुल जाती है ऐसे में हर कोई हमारे विरूद्ध मानहानी का मामला दर्ज करने लगेेगा और हम उसमें उलझ कर रह जायेगें तो फिर समाचार पत्र कब निकालेगें. इमरजेंसी के समय जब सारा देश पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहा था तक ब्लिटज ही एक मात्र ऐसा समाचार पत्र था जो खुल कर इंदिरा जी के पक्ष में आया और उसने इमरजेंसी की वकालत की थी. देश की किसी भी भाषाई समाचार पत्रो की पत्रकारिता में जो दंभ – खंभ होता था कि मंत्री से लेकर संत्री तक की बोलती बंद हो जाती थी लेकिन आज भी की इस इल्ली मीडिया ने उनको इतना महिमा मंडिता कर दिया है कि वे हमेशा ब्रेकिंग न्यूज में बना रहना चाहते है. मुझे अच्छी तरह से याद है दैनिक भास्कर की भास्कर समाचार सेवा के संपादक बने महेश श्रीवास्तव जी ने अर्जून सिंह को पंजाब का राज्यपाल तक बनवाने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोड़ा. अर्जूनसिंह ने दैनिक भास्कर की ग्वालियर प्रेस में ताला डलवा दिया. झांसी और भोपाल भास्कर के बीच झगड़ा करवा दिया स्थिति तो यह आ गई थी कि दैनिक भास्कर अब बंद हुआ कि तब लेकिन भास्कर को रमेश जी ने इतनी आफतो के बाद भी संभाले रखा और महेश जी की लेखनी के तांडव नृत्य को भी बंद नहीं होने दिया. उस समय मैं दैनिक भास्कर से जुड़ा था. मुझे अच्छी तरह से याद है कि महेश श्रीवास्तव जी के वे लेख जिन्हे छपने के बाद सभी को उस पर रियेक्शन का सभी को इंतजार रहता था. अर्जुन सिंह और महेश श्रीवास्तव के बीच ऐसी कलम की और राजनीति की जंग छिड़ी थी कि आखिर में महेश के लेखनी के तांडव नृत्य के आगे अर्जुन सिंह का मध्यप्रदेश की राजनीति से पुरा सफाया ही हो गया. आज लोग या तो उस पत्रकारिता को भूल गये जो कि आजादी के पहले और बाद में थी. आज पत्रकारिता के क्षेत्र में होटल से लेकर टोटल तक आ गये है. जिसके कारण पत्रकारिता एक प्रकार से रांड का कोठा हो गई है जहां पर पत्रकारिता में शामिल भांड – चारण – चाटुकार – भाट लोगो ने उसे अपनी रोजी – रोटी का माध्यम बना रखा है. मुझे याद है जब मैने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया था उस समय मैं समाचार पत्र के आपके पत्र संपादक के नाम कालम में अपने क्षेत्र की समस्या को भेजा करता था. उस समय आपके पत्र का इतना प्रभाव था कि अफसर भागे – भागे उस समस्या का निदान करने आते थे. आज पहले पेज की स्टोरी का मतलब पेज भरो रह गया है. आज तक बैतूल के अफसरो को पहले पेज की किसी ख़बर पर पसीना तक नहीं आया क्योकि उन्हे मालूम है कि बैतूल – भोपाल का पहला पन्ना भी बदल जाता है. बैतूल की पत्रकारिता की औकात भौरा – घार के बाद समाप्त हो जाती है. इधर डहुआ के बाद कोई भी पेपर में बैतूल का नामो निशान तक गायब रहता है. जबसे लोकल एडीशन छपने लगे है तबसे अधिकारियों की चंादी हो गई है. इन सबसे हट कर मैं अपनी कलम की बात जरूर करूंगा क्योकि कलम की ताकत का एहसास मैने बैतूल के पूर्व कलैक्टर अरूण भटट् को करा कर उनकी नानी याद दिला दी थी जब पंजाब केसरी दिल्ली के पहले पन्ने पर बैतूल से खबर छपी थी कि बैतूल के चिटनीस बंगले को खाली करवाने की बैतूल कलैक्टर ने ली सुपारी ……. ख़बर क्या थी एटम बम थी दिन भर फोन लाइन पर बैतूल कलैक्टर अपनी सफाई देते रहे और जाने के बाद भी बैतूल का बहुचर्चित चिटनीस बंगला तक खाली नहीं करवा पाये. जिले के पत्रकारो को अपनी नाक की इसलिए परवाह नही है कि उनकी नाक तो पहले से कटी हुई है. जो व्यक्ति अपने मान – सम्मान को गिरवी रख कर अधिकारियो और नेताओं के बंगले पर सुबह – शाम हाजरी लगाता हो उससे तो कलैक्टर कार्यालय का लखन काका लाख गुना अच्छा है क्योकि कलैक्टर से मिलने आने वाला हर कोई काका को पहले नमस्कार करता है और फिर पता करता है कि काका साहब कहाँ है…..? बैतूल के पत्रकारो को चाहिये कि वे पत्रकारिता के साथ – साथ जानीवाकर की एक फिल्म की सीख पर तेल मालिश और बुटपालिश तथा तलवा चटाई का भी काम साइड बिजनेस की तरह शुरू कर दे. खबर लिखना आता नहीं और संपादक बन गये. कभी कैमरा चलाया नहीं और कैमरामेन हो गये. एन जी ओ के पालतु कुत्ते बने पत्रकारिता को बदनाम कर रहे ऐसे लोगो पर तो रासुका और मासुका दोनो ही लगाना चाहिये क्योकि बैतूल में जल – जमीन – जंगल की आड में भोले – भाले आदिवासिायो को बरगलाने वाले और उसे $खबर बता कर चैनल पर दिखाने वाले दोनो ही देशद्रोही – आंतकवादी – नक्सलवादी है. ऐसे लोगो को बार – बार उकसा कर प्रशासन के लिए फजीहत पैदा करना और फिर उसे ब्रेकिंग न्यूज बनाना भी देश – प्रदेश के साथ विश्वासघात है क्योकि वे ही ढाई सौ लोग , एक ही गांव के लोग , पिछले बीस सालो से जल – जमीन – जंगल का नारा लगा रहे है आखिर उन्हे उनके गांव से बैतूल लाने का और उनसे शासन के खिलाफ धरना – प्रदर्शन करवाने का और फिर उनकी $खबरो को प्रकाशित एवं प्रसारित करने का बैतूल के केवल चार – पांच पत्रकारो ने ही टेण्डर ले रखा है क्या…? यह बात बैतूल के कलैक्टर साहब कैसे जान एवं समझ पायेगें क्योकि उन्हे इतना समय मिलता ही क्योकि काव्य प्रेमी सुबह – शाम आ जाते है काव्य पाठ सुनने के लिए…. इसी तरह हनुमान भक्त पुलिस अधिक्षक महोदय को भी बगले झांकने की आदत नहीं है. उन्हे तो बस सुंदर कांड और हनुमान चालिसा से समय ही नहीं मिलता….? यदि समय मिलता तो अपने बगल में बैठ कर चालिसा पढऩे वाले जालसाज पत्रकार भाईयो को वे जेल की हवा कबके खिला दिये होते लेकिन दिल के भोले साहब प्रजापति नहीं बल्कि प्रजापालक है इसलिए सब पर कृपा का अमृत बरसाते रहते है. रण फिल्म की पत्रकारिता भी पुलिस अधिक्षक एवं कलैक्टर साहब को विवेक की टाकीज में अकेले बैठ कर देखनी चाहिये …… यदि वो ऐसा करते है तो उन्हे पता लग जायेगा कि बैतूल की पत्रकारिता में कितने रणवीर और कितने रणछोड़ है. झुठी ख़बरो को प्रसारित करवाने वाले महारथ हासिल किये है. सेहरा के कुंजीलाल की मरने की ख़बर हो या फिर बिरजू के नमक खाने की , हर झुठ को सच दिखाने वाले लोगो ने तो एक महिला से एक साथ नौ बच्चे को जन्म दिलवा दिया. झुठे – मक्कार – दगाबाज पत्रकारो ने तो जिले की खबरो को ऐसे परोसा किया कि वे सब कुछ के जानकार है. रेल बजट पर एक प्रतिक्रिया स्टेशन सलाहकार समिति के सदस्य के नाम से प्रकाशित हुई जबकि स्टेशन सलाहकार समितियां पिछले दो साल से भंग है और बैतूल जिले में ही नहीं पूरे देश के किसी भी स्टेशन की सलाहकार समिति नहीं है. मेरी बात पर यकीन न आये तो नागपुर डी आर एम के पी आर ओ से पता किया जा सकता है. अब झुठ बोलने वाले और लिखने वालो को जबसे कौवे ने काटना बंद कर दिया है तबसे लोग – झुठ पर झुठ बोले जा रहे है. सच बोलो और सच लिखो ऐसा तो कोई करता नहीं क्योकि करेगा तो फिर पिटेगा या फिर समाचार पत्र से लात मार कर निकाला जायेगा. सच कडुवा होता है यह बात अभिताभ बच्चन उर्फ विजय मलिक जानते थे तभी तो उन्होने अपने बेटे के झुठ को सबके सामने लाने से पहले यह तक नहीं सोचा कि इस कदम से उसके बेटे को अतनी आत्मग्लानि होगी कि वह आत्महत्या कर लेगा लेकिन बैतूल के पत्रकारो में ऐसा दम कहां कि वे आत्महत्या की स्थिति लाये. अपनी झुठी ख़बर पर भी पर्दा डालने में एक्सपर्ट रहते है. कई बार मेरा मन करता है कि ऐसी बदहाली भी जिल्लत भरी जिंदगी जीने से तो अच्छा है कि कहीं चाय की दुकान खोल लू क्योकि शहर की चाय की दुकान वालो के आजकल पत्रकार बन जाने से चाय की दुकाने कम हो गई है. चलते – चलते जिले की बदनाम पत्रकारिता को एक फिर लाल सलाम ……

”कोई तो मुझे रामूदेव बाबा बनाओं ……!ÓÓ
लेख:- रामकिशोर पंवार  ”रोंढ़ा वालाÓÓ
मुझे अब पता लग रहा है कि बाबा बनने का कितना फायदा होता है. टी वी चैनलो पर  बाबा के प्रवचन – भजन – कीर्तन – दर्शन के फायदे इतने होते कि बाबा लोगो की चांदी हो जाती है. कल का चोर – उच्चका – डाकु – लूटेरा – बलात्कारी – दुराचारी अपनी पति द्धारा कभी स्वामी के रूप में नहीं स्वीकारा गया व्यक्ति थोड़े से रास्ते परिवर्तन के बाद जगत स्वामी हो जाता है. नेशनल से लेकर वह इंटरनेशनल हो जाता है. ओशो की तरह महान और स्वामी इच्छाधारी की तरह पहचान बना लेता है. योग से भोग और फिर संभोग से समाधी तक का शार्टकट रास्ता दिखाने वाला महान दार्शनिक ओशो की तरह वह भी अमेरिका जैसे शहरो में स्वंय का शहर – नगर – महानगर बसा सकता है. बस करना क्या है यह कोई नहीं बताता लेकिन सभी बाबाओं के जलवे देख कर मन में यही तराना गुंजने लगता है कि  ”हर तरफ मेरा ही जलवा ……!ÓÓ अब बाबा बनने का एक फायदा यह होता है कि मोदी से लेकर लेकर शिवराज तक पैरो के नीचे बैठे कहते रहते है कि ”बाबा जी हमारे लायक कोई सेवा हो तो एक बार हमें भी आपकी सेवा का मौका तो दीजिए……!ÓÓ मुख्यमंत्री से लेकर संत्री तक के साथ फोटो छपने के बाद यदि कोई स्कैण्डल में फंस भी गये तो मंत्री से लेकर संत्री तक स्वंय अपने को बचाने के चक्कर में आपको झुठा फंसाने का तराना तो जरूर गायेगें. देश में बाबा बनने की तरकीब अच्छी है. इससे आपके पचास फायदे है लेकिन जो पक्के है उनमे पहला नाई का खर्चा बचेगा. दुसरा साबुन और शैम्पू से नहाने का खर्च बचेगा. तीसरा मंहगे कपड़ो का खर्चा बचेगा. चौथा आने – जाने के किराये का खर्चा बचेगा. पांचवा खाने और पीने का भी खर्चा बचेगा. गोबर की या फिर शमशान की राख को शरीर में लगाने से बाबा बनने की पहली राह आसान हो जायेगी. मैने एक पुस्तक में पढ़ा था कि सफल ज्योतिषी कैसे बने…? उस किताब की तरकीब बाबा बनने पर अचमाई जा सकती है. जैसे कोई भक्त आपके पास आकर सवाल करता है कि ”बाबा मेरे घर लड़का होगा की लड़की ……!उसे यदि लड़का बताया तो अपने पास की डायरी में लड़की लिखो यदि वह आकर कहता है कि ”बाबा आपने झुठ बोला था , मेरे घर तो लड़की हुई है ……!तब उसे गालियां देकर दुत्कार कर – फटकार कर यह कहो कि ”मूर्ख बाबा को झुठा साबित करता है , देख मैने अपने चेले से इस डायरी में तेरे नाम के आगे क्या लिखा था…..! कुछ दिनो बाद तो आप कहो कुछ और लिखो कुछ के चलते इतनी प्रसिद्धी पा जाओगें कि लोगो की आपके दरबार में कतारे लगना शुरू हो जायेगी. पहले पैदलछाप आया करते थे कुछ दिनो और महिनो बाद हवाई जहाज आना शुरू हो जायेगा. बाबा बनने का एक यह भी है कि बाबा के पास खाने और पीने की कोई कमी नहीं रहेगी. पीने के पानी को तरसने वाले बाबा के पास मिनरल वाटर होगी साथ में फलो का और फूलो का जुस भी जिसको पीने के बाद बाबा में वह ताकत और फूर्ति आ जायेगी कि वह रामदेव से लेकर कामदेव से भी अधिक कलाबाजी दिखा पायेगा. मुझे हर हाल में बाबा बनना है. बाबा बनने से परिवार की जवाबदारी से भी छुटकारा मिल जायेगा. बीबी से लेकर टी वी तक की वहीं घिसी – पिटी किस्से कहानियों से भी छुटकारा मिल जायेगा. बाबा बनने के लिए मैने सोचा है कि मैं अपने शहर के बाहर से चार – पांच मेरी तरह के चतुर – चालक लोगो को अनुबंध पर लेकर आ जाऊ ताकि वे शहर और गांव में जाकर मेरी कीर्ति और यश का गान कर सके. दो चार टुर्चे टाइप के भूखे – नंगे पत्रकारो और टी वी चैनलो के रिर्पोटरो और कैमरामेनो को भी अपनी गिरोटी में शामिल करने से एक फायदा मिलेगा कि वे लोग मुझे भी कुंजीलाल और बिरजू की तरह हाईलाइट कर देगें. ऐसा करने से मेरी लोकप्रियता की टी आर पी भी बढ़ेगी और मैं भी सफेद उल्लू की तरह भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन गरूड़ महाराज की तरह पूजा जाऊंगा. जिस रामू को अब तक कोई घास नहीं डालता था उसके पास तक पहुंचने वालो की आस ही मुझे श्री श्री एक हजार चार सौ बीस रामूदेव बाबा का दर्जा दिला देगी. जिस देश में आज भी असली की जगह नकली को पूला जाता है. स्थिति तो यह तक है कि इस देश में जगतगुरू शंकराचार्य तक नकली हो सकते है तब मेरे रामूदेव बाबा बनने की राह में कौन हरामी की लाल रोड़ा अटका पायेगा. बाबा बनने के फायदे को देख कर मै सोच रहा हँू कि वन विभाग की किसी पहाड़ी पर अतिक्रमण करके एक आश्रम बना लेता हँू. आश्रम ऐसी जगह पर हो कि लोगो को आने और जाने में आसानी हो इसलिए मैं सोचता हँू कि सेन्टर पाइंट बरसाली की पहाड़ी सबसे अच्दी रहेगी. इसका आगे चल कर फायदा यह होगा कि सेन्टर पाइंट बरसाली रेल्वे स्टेशन माडल स्टेशन बन जायेगा और फिर राजधानी से लेकर शताब्दी एक्सप्रेस तक रूका करेगा. बाबा होने के कारण मेरे चेले चपाटो में ऐसे हाई – फाई लोग जुड़ जायेगे कि उनके हवाई जहाजो की लेडिंग के लिए एक हाई प्रोफाइल हवाई पटट्ी भी बन जायेगी. कुछ दिनो तक लोकल चैनल पर चाचा से मिल कर अपना लाइव टेलिकास्ट करवाने के बाद खुद का ही रामूदेव बाबा चैनल शुरू कर देगें. दिन भर अपने उल्टे – सीधे आलेखो व्यंग को ही अपने प्रवचनो का आधार बना कर लोगो को नित्य नई अपनी काल्पनिक कथाओं के गहरे सागर में गोते लगवायेगें. वैसे भी मेरी बीबी से लेकर बच्चे तक मुझे मेरे यार – दोस्तो की तरह फेकोलाजी का मास्टर मान चुके है.मै फेकने में इतना मास्टर मांइड हँू कि मेरे सामने कोई भी बाबा और बाबी टिक नहीं पायेगें. मेरे बाबा बनने की राह मेरी टांग टुटने के बाद और भी आसान हो गई है क्योकि अब तो घुमना – फिरना – मोटर साइकिल चलाना संभव नहीं है ऐसे में कमाई का सबसे अच्छा तरीका रामू बाबा बनने से कोई दुसरा दिखाई नहीं देता. बाबा बनने के बाद मेरे जिले के कलैक्टर कार्यालय का लखन काका मुझे भाव नहीं देता उसी  लखन काका से बड़े कई लोग अपने आला अफसरो के साथ कतार में खड़े होकर मुझे भाव देने के लिए मरे जायेगें. मेरा दिन प्रतिदिन भाव भी बढ़ता जायेगा. मेरे फिर कोठी बाजार से लेकर रिलायंस के बिग बाजार में तक में आसमान को छुते भाव स्क्रीन पर नज़र आयेगें. उन बाजारो में मेरी फोटो से लेकर चरण पादुका तक बेभाव बिकेगी . इस तरह मैं रातो रात महान बन जाऊंगा क्योकि बुर्जग लोग कहते है कि राई के भाव रात में ही बढ़ते है. मैं भी तो राई नहीं रामू भाई हँू इस बात में कोई दो मत नहीं लेकिन मुझे कोई रामूदेव बाबा न बनाये . आज नहीं तो कल मैं अपने गांव से लेकर वाशिंगटन तक का सर्वाधिक खुलने वाली बेवसाइट की तरह लोकप्रिय – जनप्रिय बाबा बन जाऊंगा लेकिन कोई तो मुझे भी आसाराम – रामदेव – कामदेव की तरह बाबा बनाये.  भैया लोग याद रखना कहीं गलती से मुझे शैलेन्द्र बाबा ना बना देना …? वरणा मुझे लोग भाजपा का मीडिया प्रभारी समझ कर मुझे ही नोचने – खरोचने लग जायेगें. वह तो भला हो शैलेन्द्र बाबा की हिम्मत का जिसकी दाद देनी चाहिये कि वह इतने सारे अपनी बिरादरी के लोगो को झेल पाते है. मेरा इस समय बाबा बनने का टाइम भी सही है क्योकि गर्मी पडऩे के बाद लोग ठंडे स्थान पर चले जाते है. ऐसे में बरसाली की पहाडिय़ा सबसे ठंडी है. बरसात में उस स्थान पर शानदार झरना है इसलिए पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान सबसे बढिय़ा स्थान रहेगा. मैं अपने लोगो से बार – बार यही कहता हँू कि मुझे बाबा बनाओ , मुझे बाबा बनाओ ….?  बाबा बनने से मकान मालिक का किराया देने का , बिजली के बिल भरने का , पेपर छपवाने का , पेपर के लिए विज्ञापन मांगने का , होली – दशहरा साहब लोगो से भीख मांगने का , लिफापा मांगने का चक्कर बच जायेगा. मेरे बाबा बनने से भाई लोगो का सबसे ज्यादा फायदा होगा क्योकि वे मेरे टेंशन में दिन प्रतिदिन और भी काले होते चले जा रहे है. उन्हे फिर किसी तंत्र – मंत्र क्रिया की जरूरत नहीं पड़ेगी और तो और उनके कोर्ट – कचहरी के चक्कर में जेल जाने का डर भी नही रहेगा. कोई यदि आगे नहीं आता है तो भाई लोगो को ही मुझे बाबा बनवा की तरकीब सोचना चाहिये. वैसे भी भाई लोग किसी को भी बाबा और दादा बनाने में एक्सपर्ट है. बाबा बनने के इतने सारे फायदे गिनाने के बाद कहीं ऐसा न हो कि मेरे से पहले भाई लोग ही बाबा बन जायें. वैसे देखा जाये तो बाबा बनने से जो मान – सम्मान मिलता है वहीं भीख मांगने से भी नहीं मिलता. बाबा बनने का एक सबसे बढिय़ा फायदा यह है कि अपनी भी सीडी वाले और इच्छाधारी बाबा की तरह लाटरी लग जायेगी. पांच सौ तो नहीं पर चार – पांच तो अपनी भी सेवा चाकरी में लगी रहेगी लेकिन बाबा बनने से पहले मुझे बार – बार इस बात का डर सता रहा है कि कहीं मेरी उन बाबाओं की तरह पुलिस और जनता ने कंबल कुटाई और सार्वजनिक धुलाई कर दी तो मेरी तो अभी एक टांग टूटी है बाद मे पता चला कि मैं जगह – जगह से टूट – फूट जाऊंगा और लोग मुझे टूटे – फूटे – खुब पिटे बाबा जी की तरह जानने – पहचानने लग जायेगें. बाबा बन कि नहीं यह सोच कर मन बार – बार कांप जाता है कि क्या करू क्या न करू…..? मेरी अंतरआत्मा से जब मैने इस बारे में सवाल किया तो उसने मुझे दुत्कार और बुरी तरह फटकारा वह कहने लगी कि ”जवाबदेही और जिम्मेदारी से मुँह मोड़ कर भागने वाला बाबा नहीं कायर – डरपोक इंसान होता है , परिवार और संघर्ष के साथ लडऩे वाला ही महान होता है. कई लोगो की जब हिम्मत टूट जाती है तो वे आत्महत्या कर लेते है. लेकिन तेरी टूटी टांग फिर जुड़ जायेगी लेकिन एक बार टूटी हिम्मत कभी नही जुड़ पायेगी. सहीं इंसान बनना है तो अपने परिवार – बीबी – बच्चो की जिम्मेदारी का वहन करो और अच्छे आदर्श पति -पिता बनने की कोशिस करो ताकि लोग आने वाले कल में तुम्हारी तारीफ कर सके कि इतने संघर्ष के बाद भी यह इंसान टूटा नहीं बल्कि सारे बवडंरो को झेलने के बाद भी आज भी पत्थर रूपी शिला की तरह टिका है. बाबा बनने से लोग यही कहेगें कि देखो बीबी – बच्चे पाल नहीं सका और बाबा बन गया डरपोक कही का ……..!ÓÓ अंतरआत्मा की आवाज को सुनने के बाद मैने सोचा कि भगवान ने दो हाथ दिये है इसी से ऐसा कुछ लिखा जाये कि समाज में मेरी तरह कोई दुसरा बाबा बनने की हिमाकत न कर सके.

भस्मासुर से बचने के लिए छोटा महादेव की गुफाओं में छुप गए थे भोलेनाथ
लखपति – करोड़ पति व्यक्ति भी भीख मांगते हुए गाता हैं ”महादेव जाने को पैसे दे ओ ना ..
बैतूल (रामकिशोर पंवार ) भगवान जटाशंकर , बाबा भोलेनाथ , देवाधिदेव महादेव आदि असंख्य नामों से जाने पहचाने वाले उमापति महादेव के दर्शन के लिए गांवों से श्रद्धालु भक्तो का जन सैलाब अब शिवधाम पचमढ़ी के लिए निकल पड़ा हैं। नंगे पांव पैरो में घुंघरू बांधे सौ किलो से लेकर डेढ़ सौ किलो तक का त्रिशुल लेकर अपनी मन्नत पूरा होने पर बाबा के स्थान पर चढ़ावा चढ़ाने के लिए निकले भक्तों की भीड़ महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों के सम्पन्न किसान जो कि लखपति करोड़पति तक होते है वे अपने घर से लेकर पचमढ़ी तक नंगे पांव रास्ते भर भीख मांगते और  ” महादेव जाने को पैसा दे ओ ना , अजी दे ओ ना ÓÓ गीत गाते मदमस्त होकर नाचते हुए जाते हैं। लगभग एक पखवाड़े की इस पैदल यात्रा के लिए लोगो का अपने गांवो और घरो से निकलना शुरू हो गया है। बैतूल जिले की सीमा से प्रवेश करते भक्तगण जिले की सीमा से लगे छिन्दवाड़ा जिले के जुन्नारदेव नामक स्थान पर पहली सीढ़ी से पहाड़ी रास्ता तय करते हुए पचमढ़ी पहुंचते है। इस दौरान वे रास्ते में मुकाम करते हैं लेकिन अपने साथ लाए त्रिशुल को जमीन पर नहीं रखते हैं। बैतूल जिले में पचमढ़ी की तरह शिव गुफा है जिसे छोटा महोदव कहा जाता हैं। इस धार्मिक आस्था एवं जनश्रद्घा के पवित्र स्थल भोपाली का छोटा महादेव का अपना विशिष्ट स्थान हैं। यूं तो भारत की पावन भूमि पर अनेक तीर्थस्थल जन आस्था के केन्द्र बने हुए है। बैतूल जिले में भी धार्मिक आस्था व श्रद्घा के केन्द्र युगाधिपति महाकाल की असीम अनुकम्पा से स्थापित है। ऐसा ही पावन स्थल बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी विकासखंड में भोपाली नामक स्थान पर ‘छोटा महादेवÓ पावन तीर्थस्थल है। सतपुड़ा के सुरम्य वादियों में बसा यह पवित्र स्थल जागृत व लाखों, करोड़ों शिवभक्तों की तपस्थली हैं इसके दर्शन से सभी की मनोकामना, बाधाएं, कष्टï कठिनाईयां दूर होती है। इस स्थान के बारे में बताया जाता है कि भगवान शंकर का पीछा भस्मासुर के द्वारा किया जा रहा था तब भगवान शंकर इस घमासान जंगल में आकर छुप गए व अपनी तपस्या में लीन हो गए थे। यहां परआज भी जन आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र बनी बहुत सी गुफाएं है। इस गुफा में भगवान शंकर का शिवलिंग हैं। इसके ऊपर गाय कोठा नामक प्राकृतिक स्थान है। इसके ऊपर चौरागढ़ हैं वहां पर मंदिर भी है। इस स्थान पर खड़े रहकर पचमढ़ी के चौरागढ़ का आभास होता हैं। चौरागढ़ सतपुड़ा की सबसे ऊंची चोटी है। इस स्थान पर खड़े होकर प्रकृति के विराट स्वरूप के दर्शन होते हैं। इस पर्वत शिखर पर 3-4 एकड़ समतल भूमि हैं वहां पर एक मठ है वहां फलों का बगीचा भी है जो यहां का पवित्र सिद्घस्थल कहा जाता हैं। यहां पर सिद्घ महापुरूष आज भी लोगो को मिलते रहते थे। बताया जाता है कि इस स्थान पर ‘संस्कृत विद्यापीठÓ था, जहां से संस्कृति की शिक्षा प्रदान की जाती थी।
भोपाली में भगवान शंकर का मेला प्रतिवर्ष शिवरात्रि को लगता हैं। हजारों श्रद्घालु इस मेले में आते हैं वे अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस मेले में सुदूर ग्रामीण अंचलों से भक्तगण बैलगाडिय़ों से, ट्रेक्टरो से, बसों से, साइकिलों से व पैदल हजारों की तादाद में आते हैं। प्रत्येक यात्री ‘हर बोला हर-हर महादेवÓ का जयघोष करते चलते हैं। राह चलते भक्तगण एक दूसरे से मिलने पर ‘सेवा भगतÓ कहकर अभिवादन करते हैं। बड़े व छोटे महादेव जाने वाले भक्त गण हाथ-पांव में हल्दी एवं माथे पर आड़ा टीका लगाते हैं व गले में चावल (पीले करके) की पोटली टांगते हैं। यह पहचान शिवभक्तों की हैं। भगवान भोलेनाथ को भेंट चढ़ाने के लिए भक्तगण भारी वजनदार त्रिशूल भी लेकर चौरागढ़ पर भेंट करते हैं। महादेव जाते समय श्रद्घालु नाचते गाते वाद्य यंत्र बजाते भगवान भोलेनाथ के दरबार में पहुंचते है। भक्तगण सामूहिक रूप से मराठी भाषा में ‘पोवाड़ाÓ गाते हैं। जो कुछ इस प्रकार हैं कि ”महादेवा चा वाटन गा देवा रे माझापेरला लसून गा, पेरला लसून, पोहा निघाला गसून…।  हर बोला-हर-हर महादेव॥ सोडल्या महल माडय़ा रे, देवा रे माझा , सोडल्या महल माडय़ा गा, पाप्या नाही सोड़े तन्या चा झोपडय़ा…।  हर बोला-हर-हर महादेव॥ महादेवा चा वाट न हो, देवा रे माझा , म्या पेरला जवस गा, म्या पेरला जवस जोडय़ा घोडय़ा चा नवस गा भोले नाथा…।  इसी प्रकार आदिवासी अंचल से हजारों शिवभक्त भगवान के दर्शनार्थ सपरिवार आते है व अपनी लोक भाषा गोंडी में गाते बजाते हुए कहते है- महादेव पार्वती दिन पसीता , तेदा-तेदा महादेव सर्री उड़ीता भोपाली की तराई में ‘अम्बा माई का भव्य मंदिर है। यहां पर श्रद्घालुओं के रूकने के लिए सराय बनी हुई हैं। भगवान भोलेनाथ के दर्शन हेतू जाने के लिए भी शासन ने सीढिय़ों का निर्माण कर दिया है। भक्तगण सरलतापूर्वक भगवान भोलेनाथ के दर्शन करते है। पूजा अर्चना करते हैं. यहां पर स्थापित शिवलिंग के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है. यही पर एक जल का स्त्रोत है जिसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ होता है. इस जल के अभिसिंचन से खेतों को बचाया जा सकता हैं. पशुओं को खुरी रोग से भी मुक्ति मिलती है. भोपाली छोटा महादेव पहुंचने से पूर्व देनवा नदी पार करना पड़ता है. यहां पर स्नान, ध्यान, पूजा अर्चना कर आगे बढ़ते है. कहा जाता है कि देनवा नदी में शंकर जटा का पानी प्रवाहित होता है. इस नदी की विशेषता है कि जब भी मेले का समय आता है तब जल स्तर बढ़ जाता है. भोपाली मेला 10 दिनों तक लगता है. जहां पर दुकानें लगती हैं उस स्थान को ‘भुवानÓ कहते है. इस मेले से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को अपनी अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति जैसे कृषि का सामान अनाज की कोठियां रंग-बिरंगे परिधान व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति इस मेले से होती है. इस मेले में शिवरात्रि के अवसर पर अखंड रामसत्ता, रामायण आदि को प्रतियोगिताएं होती है जिससे भक्तों का मनोरंजन भी होता हैं. भगवान भोलेनाथ के दरबार में शिवभक्तों को भोजन कराने की परंपरा कई वर्षो से चली आ रही है इसलिए यहां पर क्षेत्रवासियों द्वारा भोजन भंडारा की व्यवस्था की जाती है. अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए एक बार छोटा महादेव भोपाली के दर्शन कर जीवन को धन्य बनाएं.

गाढ़ी कमाई के बाद बन गए है मुन्नाभाई
बैतूल, रामकिशोर पंवार: संजू बाबा की फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस की तर्ज पर बैतूल जिले के एक आयुवैदिक कालेज द्वारा फर्जी तरीके से फर्जी डाक्टर बनाने के एक गोरखधंधे का बीते दिनो खुलासा हो गया। मेउिकल कालेज की मान्यता निरस्त होने के बाद मेउिकल के छात्रो को मीरिंडा का छटका जोर से लगा। अपने उज्जवल भविष्य के सुखद सपनो एवं अपने अभिभावकों की गाढ़ी कमाई का लाखों रूपया खर्च कर डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने आए अनेक छात्रों ने कालेज प्रबंधन की पोल खुलने के बाद अपना उग्र रूप दिखा दिया। छात्रों के उग्र रूप के आगे कॉलेज प्रबंधन छात्रों के सवालो का जवाब देने के बजाय बगले झांकते नज़र आ रहा है। अब कालेज की अव्यवस्थाएं देखते हुए उनका यह सपना कभी न पूरा होने की मनोस्थिति में छात्रों का उग्र रूप लेना स्वभाविक है जो किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता हैं। नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले का एक मात्र तथाकथित ओम आयुर्वेदिक कॉलेज के छात्रों आरोप है कि कालेज प्रबंधन हमें भी मुन्नाभाई की तरह फर्जी डाक्टर बना रहा है। उनका कहना है कि यहां से पढ़कर निकलने के बाद उनके पास डिग्री जरूर होगी लेकिन उनके द्वारा किया जाने वाला इलाज किसी भी किसी बंगाली या फिर नीम हकीम डाक्टर की तरह ही होगा। सबसे विचित्र बात यह हैं कि जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर चल रहे इस फर्जीवाड़े में बैतूल जिले के कई नामचीन लोग शामिल है। ओम आर्यर्वेदिक कालेज की मौजूदा स्थिति यह हैं के यहां पढ़ाने के लिए एक शिक्षक भी नहीं है। आन्दोलित कॉलेज के छात्रों के अनुसार यह स्थिति हमेशा से ही रही है। इन छात्रों को हर साल मेडिकल से जुड़े हुए दस सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए कम से कम दो-दो शिक्षक हर सब्जेक्ट में एमडी विशेषज्ञ के रूप में होना चाहिए। मौजूदा परिस्थिति में छात्रों के द्वारा किताबों से रट्टा मारकर परीक्षाएं तो पास कर ली जाती हैं लेकिन पास बेसिक ज्ञान न होने की वज़ह से उनकी तुलना भी आगे चल कर मुन्ना भाई की तरह ही होगी। मेडिकल कालेज के तृतीय वर्ष एक छात्र ने बताया कि पिछले तीन साल में मेडिकल कॉलेज के अंदर महज एक दिन प्रेक्टिकल हुआ और उसमें भी कहीं कुछ भी नहीं बताया गया। जबकि हर सब्जेक्ट में मेडिकल में प्रेक्टिकल का होना अनिवार्य है। सफेद हाथी साबित हो रहे मेडिकल कालेज परिसर के अस्पताल में कुछ भी नहीं होता है। स्थिति तो यहां पर यह हैं कि इस अस्पताल में आज तक कभी कोई मरीज भर्ती नहीं हुआ हैं। इंटरशिप तो कभी किसी छात्र को कॉलेज में नहीं करवाई गई। यहां पर पढ़ाई जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। फीस जरूर पूरी ली जाती है। परीक्षा और प्रेक्टिकल फीस की रसीद तक नहीं दी गई।  डॉ. जीडी राठी, सचिव प्रबंध समिति ओम आयुर्वेदिक कॉलेज
का कहना हैं कि उनके पैसे की कमी की वजह से शिक्षकों और व्यवस्थाओं को पूरी नहीं कर पा रहे हैं, उसके बाद भी हमारा रिजल्ट सबसे अच्छा रहता है।

क्या मिल गया सरकार तुम्हे इमरजेंसी लगा के हमारी नसबंदी करा के……! ”लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुंवारे की ही कर डाली नसबंदी
बैतूल, रामकिशोर पंवार: स्वर्गीय श्रीमति इंदिरा गांधी के शासनकाल में नसबंदी को लेकर हुई हाय:तौबा के बाद आई एस जौहर की बहुचर्चित फिल्म ”इमरजेंसी”    का बहुचर्चित गाना ”क्या मिल गया सरकार तुम्हे इंमरजेंसी लगा के हमारी नसबंदी करा के हमारी बंशी बजा के …..! ” आमला तहसील मुख्यालय की ताजी घटना के बाद लोगो की जुबां पर बरबस गुनगुनाने लगा हैं। बैतूल जिले में एक बार फिर जबरिया नसबंदी करवाने के सरकारी प्रयासो की पोल खोल कर रख दी इस घटना का मुख्यपात्र बीस साल का वह युवक हंै जो सरदर्द के लिए डाक्टर के पास आया था। वीरेन्द्र उर्फ मोनू आत्मज रामकिशोर मालवीय निवासी बढ़ई मोहल्ला आमला ने बताया कि उसे एक गोली दी गई थी जिसके बाद वह बेहोश हो गया। मोनू के साथ गया उसका मित्र जब मोनू के डाक्टर के पास से दस मिनट तक वापस न आने पर उसने पुछताछ की तो पता चला कि आपरेशन थियेटर में उसकी नसबंदी की जा रही है। इस घटना की जानकारी मोनू की मां श्रीमति विमला मालवीय को मिली तो उसने चिकित्सालय आकर हंगामा खड़ा कर दिया। अपने पुत्र को घर ले जाकर महिला एवं उसके पति रामकिशोर मालवीय ने आमला पुलिस थाना में इस बारे में रिर्पोट दर्ज करवाई। आमला थाना प्रभारी श्री घनघोरिया ने बताया कि इस संदर्भ में रिर्पोट दर्ज कर ली गई तथा जांच उपरांत दोषियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया जायेगा। इधर आमला के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डां बी .पी . चौरिया ने स्वीकार किया कि इस तरह की घटना हुई लेकिन युवक स्वेच्छा से आया था तथा उसने अपना नाम रजिस्ट्रर में वीरेन्द्र के स्थान पर मोनू सोनी लिखवाया था। इधर घटना के 48 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तथाकथित परिवारीक सदस्य श्रीमति सीमा चौरिया के पति डां बी पी चौरिया एवं अन्य दोषियो के खिलाफ कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया है। शहरी क्षेत्र की इस प्रकार की घटनाओं के सामने आने के बाद सरकारी जनसंख्या नियंत्रण के आकड़ो पर भी शंका होने लगी है। मात्र लक्ष्यपूर्ति के लिए शासन के प्रयासों पर पानी फेरने के जब शहरी क्षेत्र आमला में कुंवारे युवक की नसबंदी कर दी जाती है तब दूरस्थ ग्रामीण अंचलो में क्या कुछ नहीं होता होगा। सवाल तो अब उन सरकारी दावों पर भी होने लगा है जिसमें कहा गया है कि बैतूल जिले में इस समय कालापानी के नाम से मशहूर आदिवासी ब्लॉक भीमपुर में आदिवासियों ने परिवार नियोजन को अपनाकर लक्ष्य हासिल करने ब्लॉक को अव्वल नम्बर पर हंै। ब्लॉक में 31 मार्च 2011 के लिए निर्धारित नसबंदी ऑपरेशन का लक्ष्य 20 जनवरी को पूरा हो चुका है। भीमपुर सहित प्रदेश के सिर्फ दो ब्लॉक ही इस अवधी में सौ फीसदी लक्ष्य हासिल कर पाए है। विकास और भौगोलिक संरचना की विषमताओं की वजह से आदिवासी ब्लॉक भीमपुर को कालापानी के नाम से जाना जाता है। बावजूद इसके क्षेत्र के आदिवासी अब जागरूक हो रहे है। बीएमओ डॉ रजनीश शर्मा ने बताया कि परिवार नियोजन के लिए शासन ने वर्ष 2010-2011 को परिवार कल्याण वर्ष घोषित किया था जिसके तहत भीमपुर ब्लॉक को एक अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2011 तक 1430 नसबंदी ऑपरेशन कराने का लक्ष्य मिला था। आदिवासी अंचल ने इस लक्ष्य को ढाई माह पहले ही हासिल कर लिया है। ब्लॉक में 20 जनवरी तक आयोजित 37 शिविरों में कुल 1448 नसबंदी ऑपरेशन हुए है। जिनमें 1391 महिलाएं एवं 57 पुरूष शांिमल है। परिवार नियोजन भोपाल एवं नर्मदापुरम् संभाग में अव्वल आने पर भीमपुर ब्लॉक को पुरस्कार और प्रशस्तिपत्र से नवाजा गया है। बैतूल जिले के ग्रामीण अचंलो में गरीब – लाचार  लोगो के साथ क्या प्रलोभन देकर या जबरिया नसबंदी नहीं करवाई जा रही होगी। जबसे ग्राम पंचायतो के सचिवो को एक माह में अनिवार्य रूप से दो लोगो की नसबंदी करवाने के लिए बाध्य किया जा रहा है वहां पर अन्य शासकीय कर्मचारियों के क्या हाल होगें। अपनी नौकरी बचाने के लिए पूरे जिले में ऐसे कई लाचार बेबस लोग मिल जायेगें जो कि स्वेच्छा से नसबंदी नहीं करवाये होगें।

आजतक के स्ट्रींग आपरेशन ने पसारा गांव में खौफ का सन्नाटा
निरगुड़ में अंध श्रद्धा समिति ने दो हजार लोगो के बीच कथित दहशत की खबर की पोल खोली
बैतूल जिले की मुलताई तहसील की ग्राम पंचायत निरगुड में किसी भी प्रकार के खौफ – भूत प्रेत – बाधा या सन्नाटा पसर जाने की आजतक न्यूज चैनल पर प्रसारित $खबर का अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति और उससे जुड़े लोगो ने खंडन किया है। ग्राम पंचायत की महिला सरपंच श्रीमति पूनम एवं सचिव नकुल भी इस तरह की अफवाहों को नकारते हुये ग्राम में दो हजार लोगो के बीच कथित खौफ एवं सन्नाटे को झुठ का पुलिंदा बताते है। ग्राम के सचिव नकुल के अनुसार कुछ लोगो द्वारा गांव की एक जमीन को लेकर होने वाले सौदे के अचानक निरस्त हो जाने के बाद से उक्त जमीन को लेकर ऐसी अफवाह टीवी चैनल एवं न्यूज पेपर के माध्यम से प्रसारित एवं प्रकाशित करके गांव के सीधे – साधे ग्रामिणो में अंधविश्वास को पैदा कर रहे है। सचिव नकुल का तो सीधा आरोप है कि ग्राम के बारे में प्रसाति आजतक की खबर प्रायोजित एवं किसी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए प्रसारित की गई है। नकुल ने आजतक न्यूज चैनल के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने की बात करते हुए कहा कि गांव का शांतप्रिय माहौल मे भूत – प्रेत – किसी प्रकार बाधा की आड़ में खौफ पैदा किया गया है। सचिव के अनुसार वह स्वंय अपने गांव के खेत में प्रतिदिन रात्री नौ बजे जाता रहता है। देर रात्री तक खेतो सब्जी – भाजी तथा गेहूं की फसल को पानी देने के बाद वह देर रात्री तक लौटता है लेकिन गांव में किसी भी प्रकार का कोई डर या खौफ का सन्नाटा नहीं है। आजतक पर खबर प्रसातिर होने के बाद पडौसी राज्य महाराष्ट्र मे कार्यरत अनिस संस्था के पदाधिकारियो ने भी देर रात्री तक डेरा डाल कर लोगो को किसी भी प्रकार से गुमराह न होने एवं प्रेत बाधा के खौफ न डरने की सलाह भी दी। अंध श्रद्धा र्निमूलन समिति के पदाधिकारियों के साथ गांव की महिला सरपंच एवं सचिव ने भी लोगो को इस फर्जीवाड़े से जागृत करवाया। बैतूल जिले में इसके पूर्व भी आजतक पर ऐसी कई प्रायोजित ख़बरे प्रसारित हुई जिससे जिले की छबि धुमिल हुई है। अनिस का दावा है कि बैतूल जिले में महज सनसनी और डर पैदा करने के लिए कुछ लोगो की कमाई का माध्यम बने आजतक न्यूज चैनल के रिर्पोटर द्वारा बिरजू के नमक खाने से लेकर दर्जनो ऐसी खबरे मात्र सनसनी फैलाने की नीयत से प्रसारित की है। गांव के सरपंच एवं सचिव ने दावा किया है कि कोई भी गांव में आकर सच्चाई को जान सकता है कि गांव के दो हजार लोगो में किस प्रकार का खौफ है।

एक रूपए के 85 पैसे गायब करने वाले एक अफसर के खिलाफ मामला दर्ज पूरे प्रदेश में 5 सौ ज्यादा मामले दर्ज लेकिन दोषियो को नहीं मिली सजा
बैतूल, केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेरा ) तहत भेजे गये रूपए का किस तरह उपयोग किया जाता है…..?  यदि वह देखना है तो एक बार मध्यप्रदेश के माडल बने बैतूल जिले में एक जरूर आइए ……! 2 फरवरी 2009 को यूपीए की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेरा ) के सफल क्रियाव्यन का प्रथम पुरूस्कार पाने वाली टीम के एक सदस्य के खिलाफ हाल ही में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने  मामला दर्ज किया है। पुरूस्कार पाने वाले मुखिया के खिलाफ पूर्व में ही राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) मामला दर्ज कर चुकी है। वैसे तो ब्यूरो प्रदेश के हर दुसरे या तीसरे अफसर के खिलाफ अभी तक पांच सौ से अधिक मामले दर्ज कर चुकी है। राज्य सरकार के अधिन कार्य करने के कारण एक भी अधिकारी को सजा भले न मिली हो पर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) के द्वारा अपराध दर्ज करने से लोगो में यह विश्वास बना रहता है कि शायद इससे अधिकारियों की अवैध काली कमाई पर लगाम लग सके। केन्द्र में दो बार सरकार बनवा चुकी यूपीए की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी भले ही आज तक अपने स्वर्गीय पति राजीव गांधी द्वारा कहे गये एक रूपए में से 85 पैसे गायब होने का सच स्वीकार कर चुके है लेकिन बैतूल की इस इस ताजा घटना के बाद उन्हे पता लग जायेगा कि वह 85 पैसा कहां जाता है। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा गांवो एवं ग्रामीणो के तथाकथित समग्र विकास के लिए भेजा जाने वाले एक रूपए के गांव तक नहीं पहुंचे पाने के पीछे कहानी का हाल ही में खुलासा हुआ। बैतूल जिले में पदस्थ रहे जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) बाबू सिंह जामोद पर शिकंजा कस गया है। राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और पद के दुरुपयोग का मामला दर्ज किया है। यह कार्रवाई ईओडब्ल्यू की भोपाल ईकाई ने की है। बाबू सिंह जामोद करीब डेढ़ महीने से सीहोर में पदस्थ हैं। जिला पंचायत सीईओ.. इससे पहले वे तीन साल तक बैतूल में जिला पंचायत सीईओ के पद पर पदस्थ थे। ईओडब्ल्यू को शिकायत मिली थी कि बैतूल में पदस्थापना के दौरान उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार किया है और लाखों रुपए की अनुपातहीन संपत्ति अर्जित की है। ईओडब्ल्यू ने शिकायत की जांच के बाद सीईओ के खिलाफ मामला दर्ज किया है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। शिकायत में कहा गया था कि बैतूल जिले का चालीस फीसदी हिस्सा आदिवासी बहुल है। जिले के कई ब्लाक आदिवासी बहुल घोषित हैं। उनके लिए केंद्र सरकार से काफी राशि मुहैया कराई जाती है। श्री जामोद ने अपने तीन साल के कार्यकाल में जिले के दस जनपदो पंचायतो एवं ग्राम पंचायतो तक में उन्ही लोगो की पदस्थापना करवाई जो उनके अनुसार कार्य करते थे। ग्राम पंचायत से लेकर जनपदो तक से वे हर माह एक मोटी किश्त लिया करते थे। कमोबेश यही स्थिति प्रोजेक्ट अफसर की थी। उनके माध्यम से तकरीबन सभी सरकारी योजनाओं में खेल करते थे। जिले में जितनी सरकारी योजनाएं संचालित होती हैं, उनका भुगतान जिला पंचायत के माध्यम से होता है। बैतूल जिले में कपिलधारा कूप योजना में जिले की आधे से ज्यादा ग्राम पंचायतो के सचिवो के खिलाफ 22 करोड़ रूपए की वसूली के आदेश होने के बाद भी उनसे श्री जामोद ने कोई वसूली नहीं करवाई। जिले की 558 ग्राम पंचायतो के सचिवो एवं सरपंचो के खिलाफ आर्थिक अपराध एवं सभी योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार करने के बाद भी उन्हे कारण बताओ नोटिस जारी करके अवैध ऊगाही भी की गई। धारा 40 के तहत उन्ही संरपचो एवं सचिवो को कार्यमुक्त किया गया जिनके द्वारा लेने – देन नहीं किया गया। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि बैतूल में पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी रहे अरूण भटट् और बाबू सिंह जामोद की पूरी टीम ने पंचायती राज्य का सत्यानाश करने मेें कोई कसर नहीं छोड़ी। जिला कलैक्टर एवं जिला पंचायत की सफल क्रियाव्यन टीम के मुखिया होने के नाते अरूण भटट ने बैतूल जिले में सर्वश्रेष्ठ क्रियाव्यन के लिए यूपीए अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से पुरूस्कार प्राप्त किया था। उस समय श्री जामोद भी श्री भटट् के साथ ही दिल्ली पहुंचे थे। इस साल भी बैतूल को सर्वश्रेष्ठ कार्य योजना का पुरूस्कार मिलना था लेकिन सेटिंग नहीं जम सकी और श्री जामोद के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने अपराध दर्ज कर लिया। बैतूल के पूर्व कलैक्टर श्री अरूण भटट् एवं वर्तमान कलैक्टर श्री विजय आनंद कुरूील के खिलाफ भी राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) द्वारा पूर्व में कुछ इसी प्रकार का मामला दर्ज किया है। बाबूसिंह जामोद ने दो साल अरूण भटट् तथा एक साल विजय आनंद कुरूील की कप्तानी में पारी खेली जिसमें वे बैतूल से जाने के बाद वे ईओडब्ल्यू के हत्थे शिकंजे में चढ़ गये। श्री जामोद ने अपनी तीन साल की पदस्थापना के दौरान सबसे ज्यादा गड़बड़ी नरेगा और वाटरशेड मिशन में की गई है। फोटोकापी मशीन, कंप्यूटर और प्रिंटर की खरीदी में भी भारी गड़बड़ी की गई है। इधर बैतूल जिले मेें श्री जामोद पर शिंकजा कसने के बाद जिले में पदस्थ रहे जनपद पंचायतो के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों की बैचेनी बढऩे लगी है। जिला पंचायत बैतूल के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता का कहना है कि पूरे प्रदेश में ऐसे कई मामले आइ एस अधिकारियो के खिलाफ दर्ज होते रहते है लेकिन कार्यवाही किसी पर भी नहीं होती है। श्री गुप्ता का मानना है कि कार्यवाही न होने से अधिकारियों में रूपए कमाने की चाहत बढ़ जाती है और यही रूपए बाद में ऐसी जांचो एवं मामलो को प्रभावित करता है। बैतूल जिले में पदस्थ रहे पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री जामोद के खिलाफ दर्ज मामले के बाद बैतूल जिले के राजनैतिक एवं प्रशासनिक गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।

शिवराज का आखिर कैसा आया सुराज
जनसुनवाई में हाथ जोड़ कर खड़े हैं विधायक आज
बैतूल, मध्यप्रदेश में भाजपा के सुराज में भाजपा के विधायको की हालत दिन – प्रतिदिन बद से बदतर होती चली जा रही हैं। सत्ता पक्ष के नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों की आपसी गुटबाजी का जिले के प्रशासनिक अफसर खुल कर फायदा उठाने से नहीं चुक रहे हैं। दाने डाल कर मुर्गो को लड़ाने की बैतूल जिले के प्रशासनिक अफसरो के बीच जैसे प्रतियोगिता चल रही है। पहले संगठन की ओर से प्रशासन को सूचित किया गया था कि पहले जनप्रतिनिधि बाद में विधायक की बातों को प्राथमिकता दे लेकिन कुछ दिनो बाद पार्टी संगठन की ओर से इस बात के संकेत दिए गये क विधायक को बाद में पहले संगठन की बातों को प्राथमिकता दी जाए। अचानक नई गाइड लाइन आ गई कि संगठन से पहले प्रभारी मंत्री की बातों को महत्व दिया जाए। अब भोपाल से मिली नई तथाकथित गाइड लाइन ने तो जनप्रतिनिधि , संगठन , विधायक ,प्रभारी मंत्री सबको दरकिनार कर दिया है। सीएम हाऊस का नाम लेकर कहा जा रहा है कि जिले के अफसरो को यह निर्देश मिल गए कि सीएम हाऊस से पुछे बिना कोई भी कार्य न करे। इस गाइड लाइन का यह नतीजा निकला कि अब जिले के सत्ता पक्ष के विधायको को भी आम आदमी की तरह कलैक्टर के दरबार में प्रत्येक मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में हुई हाथ जोड़ कर आवेदन लेकर खड़ा रहना पड़ रहा हैं। सत्ता पक्ष के विधायकों की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका जिले के अफसरो पर कितना शिंकजा कसा हुआ हंै। अभी तक जिले के ग्रामीण क्षेत्रो से आम जनता की समस्याओं को लेकर आती थी तथा घंटो खड़े रहने के बाद केवल आश्वासन का रसगुल्ला लेकर बैरंग लौट जाते हंै। इस बार हुई कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में आयोजित जनसुनवाई के दौरान विभिन्न विभागों के अधिकारियों के अलावा सत्तापक्ष के दो विधायक भी मौजूद थे। जनसुनवाई में लोगों की समस्याओं को लेकर पहुंचे बैतूल विधायक अलकेश आर्य एवं आमला विधायक चैतराम मानेकर को भी लाइन में खड़े रहने के साथ – साथ समस्या के समाधान के अर्जी लगाना पड़ी। बैतूल विधानसभा क्षेत्र के विधायक अलकेश आर्य अपने विधानसभा क्षेत्र के आठनेर विकासखंड के ग्राम जामपाठी में पीने के पानी के संकट का दर्द लेकर से आए ग्रामीणों के साथ पहुंचे। विधायक आर्य ने बताया कि गांव में पेयजल का भीषण संकट उत्पन्न हो गया हैं। मजबूरी में लोगों को झिरी का पानी पीना पड़ रहा है। विधायक ने ग्रामीणों की समस्या को पीएचई अधिकारी खान के समक्ष रखा और जल्द से जल्द हैंडपंप खनन कराए जाने का अनुरोध किया। इसी कड़ी में आमला से भाजपा विधायक चैतराम मानेकर ने भी अनाथ बच्चों को सहायता राशि दिलाए जाने की मांग रखी। जिला कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अधिवक्ता प्रशांत गर्ग ने इस शर्मसार स्थिति पर कहा कि कांग्रेस के राज में पार्टी के एक  छोटे से कार्यकत्र्ता की इतनी पहुंच थी कि अधिकारी उठ खड़े होते थे। अब तो विधायकों को जनसुनवाई में खड़ा होना पड़ रहा हैं। ऐसे में जिले के दुरस्थ ग्रामीण अचंलो से आने वाले आम आदमी क्या होता होगा।

गांवो के गरीबो तक नहीं पहुंच सकी बिजली विभाग की समाधान योजना
बैतूल, गरीबों के घर रोशन रखने के लिए मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की लेकिन जब इसका क्रियाव्यन का समय आया तो यह योजना मैदानी स्तर पर बिजली के टूयुब लाइट की तरह फ्यूज हो गई। बिजली विभाग के अधिकारी अपनी खामिया छुपाने के लिए इस स्थिति के लिए ग्रामीणो को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। राज्य सरकार की इस योजना जिसका लाभ हजारों लोगों को मिलना था वह कुछ ही लोग तक ही पहुंच पाया। यह स्थिति है विद्युत कंपनी की समाधान योजना की जो कि अपना मूल लक्ष्य ही हासिल नहीं कर पाई। सरकारी जानकारी के अनुसार मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले घरेलू उपभोक्ताओं के लिए समाधान योजना लागू की थी। जिसमें बिजली बिल बकाया होने पर भी बिजली सप्लाई यथावत रखने के लिए गरीब उपभोक्ताओं को यह मौका दिया गया था कि वे बकाया राशि में से 25 प्रतिशत राशि जमा कर दें। शेष 75 प्रतिशत राशि सरचार्ज सहित माफ कर दी जाएगी। 30 सितंबर 2010 से 31 मार्च 2011 तक यह योजना रहेगी। इस योजना के लिए पूरे जिले भर में मात्र 1600 ही गरीब परिवार मिल सके। बीते वर्ष 30 सितंबर 2010 से लागू इस योजना में तीन माह गुजर जाने के बाद भी महज 1656 उपभोक्ताओं को ही योजना का लाभ ले रहे है उनकी जानकारी बैतूल उत्तर 585,बैतूल दक्षिण 743,मुलताई 328 बताई गई।  इस बारे में सच कुछ इस प्रकार है कि आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में जिले में बीपीएल उपभोक्ताओं की संख्या 98756 है और इन पर मूल बकाया राशि 443.15 लाख, सरचार्ज 57.96 लाख रूपए है। इस स्थिति में 1656 उपभोक्ताओं को लाभ देते हुए 8.91 लाख मूल राशि और 0.81 लाख सरचार्ज विद्युत वितरण कंपनी वसूल कर पाई है। इतना ही नहीं सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि मात्र 26 लाख रूपए माफ किया गया है। इस महत्वपूर्ण योजना का सही प्रचार-प्रसार नहीं होने से यह गरीब उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पाई।

माया ने आखिर दिखा दी अपनी माया
रामकिशोर पंवार ” रोंढ़ावाला”
माया के बारे में अकसर लोग कहते है कि माया मिली न राम फंस गये सीतराम……. यूपी में माया राज में एक अधिकारी वह भी राष्ट्रपति पुरूस्कार प्राप्त ने माया की जूतियां साफ क्या कर दी बवाल मच गया। अरे भाई कल तक दलितो से सवर्ण अपने जूते ,चप्पल साफ करवाते थे। जब भी कोई दलित किसी सामंतवादी मुखिया के घर के सामने से निकलता था तो उसे उस समय अपने जूतों को सिर पर रख कर निकलना पड़ता था। ऐसे में यदि किसी दलित की बेटी का दलित प्रेम जाग गया और उसने अपने अधिनस्थ सुरक्षा कर्मचारी से जूतियां क्या साफ करवा ली सामंतवादी व्यवस्था में भूचाल आ गया। ऐसा लग रहा कि मानो माया ने कोई बड़ा गुनाह कर डाला हैं। जब भी कथा या पुराण के समय कोई ज्ञानी – अज्ञानी पंडित भी अपने तथाकथित ज्ञान को बाटने के बाद जब वह दक्षिणा मांगने के बाद स्वंय के पैर पड़वाता है तब कोई क्यों नहीं कहता कि यह व्यवस्था सामंतवादी है। मैने अपनी इस उम्र में ऐसे कई तथाकथित फर्जी महात्मा एवं संत तथा पोंगा पंडित देखे है जो कि अपने चरणों की पादुका तक के पैर पड़वाने के नाम पर दक्षिणा मांगते रहते हैं। ढोंग और पाखंड के इस माहौल में जहां पर कई दुराचारी स्वंय को भगवान बना कर लोगो को ठग रहे हैं ऐसे में एक राज्य की मुखिया ने यदि अपने स्वर्गीय गुरू जी काशीराम के सपनो को साकार करने के लिए अपने पुराने नारे को संपादित कर दिया तो कौन सा विपदा का पहांड़ टूट गया। वैसे भी बीएसपी शुरू से कहती चली आ रही थी कि तिलक तराजू और तलवार , इनको मारो जूते चार  यह जानने के बाद भी सत्ता के लोभी तिलक तराजू और तलवार  प्रतिक बने यूपी के कई सामंतवादी नेता अपनी सगी बहन को बहन न कह कर मायवती की मोह माया में फस कर उसकी चरण वंदना तक कर रहे हैं। बहन जी माया ने अपने संस्थापक काशीराम के इस मूलमंत्र को संपादित करते हुए अपनी माया क्या दिखा दी लोगो के पेट मरोड़ मार कर दर्द होने लगा। मै संकट की इस घड़ी में बहन जी मायावति के साथ हँू क्योकि जातिवाद का ज़हर बोने वालो को यदि सबक नहीं सिखाया तो मेरा देश पूरी तरह से बट जाएगा। भारत को बचाना है तो जाति – धर्म -रंग- रूप के बंधन से हमें ऊपर डइ कर सोचना होगा। आज मैं यदि स्वंय को पंवार समाज   का कहता हँू तो लोगो को मुझे बताना पड़ता है कि मैं कौन सा पंवार हँू…..कोई मुझसे सवाल करता है कि शरद पंवार के रिश्तेदार हो या फिर ललीता पंवार के…….. मैं तो आज तक यह समझ नहीं सका हंू कि मैं धार का पंवार हूं या मझधार का पंवार …..  जाति के चक्कर में मैं हीं नहीं बल्कि हर व्यक्ति घनचक्कर बन गया हैं। किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री या देश के प्रधानमंत्री की सेवा में लगे अफसर यदि यह सोच लेकर चले कि वह उच्च जाति का है तो फिर उन्हे नीच जाति के लोगो के पास नौकरी करनी ही नहीं चाहिए। काम से कोई भी व्यक्ति नीच नहीं होता है बल्कि उसके कार्यो से वह नीच कहलाता है। ऐसे में कबीर को भले ही लोग आज तक बुरा – भला कहें लेकिन कबीर की वाणी में सच का दम हैं। कबीर साफ कहते थे कि पाथरी पूजे हरि मिले , तो क्यों न पूजू पहांड़  इसी तरह भक्त रैदास का यह कहना भी सार्थक है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा  आज के समय में मन और तन दोनो ही भूखा और नंगा है। जहां एक ओर तन कपड़ो और गहनो की लालसा में भूखा हैं, वहीं दुसरी ओर मन वासना, भोग ,विलासता के चक्कर में नंगा हो चुका हंै। नंगो से तो खुदा को भी डर लगता है। लोग कहते भी है कि क्यों नंगे के मुंह लग रहा है… यूपी के किस्से लोग चटखारे लेकर सुनते एंव देखते है लेकिन उन लोगो को यह नहीं मालूम कि जय ललीता जब मुख्यमंत्री थी तब आइएस और आइपीएस अधिकारी उनके दरबार में क्या नहीं करते थे। मैं तो इस बात को स्वीकार करता हँू कि सत्ता के सामने सियासत नहीं चलती लोगो की मानसिकता को बदलने मे समय जरूर लगेगा लेकिन बदलेगी जरूर। आज श्रीमति सोनिया गांधी के दरबार में या श्रीमति सुषमा स्वराज के दरबार में क्या चाटुकार लोगो की या अर्दली लोगो की कमी नहीं हैं। श्रीमति सुषमा जी या श्रीमति सोनिया जी को चाय या खाना खिलाने वाला या उनकी कारो के दरवाजे को खोलने बंद करने वाला भी तो कोई न कोई अधिकारी सवर्ण समाज का होगा …. यदि ऐसा है तो क्या उसका या उसकी जाति का अपमान हो गया…? यदि उसे ऐसा लगता है तो वह फिर नौकरी क्यों कर रहा हैं। ऐसे अधिकारी को तो गांव में अपनी जमींदारी संभालनी चाहिए लेकिन जमींदारी बची हुई कहां हंै…? मैं पैर पड़वाने की संस्कृति का घोर विरोधी हँू लेकिन इस देश की पूरी राजनीति पैरो से शुरू होती है और पैरो पर ही खत्म हो जाती हैं। मैने मेरे से बाद में आने वाले पत्रकारों को स्वंय की चमचमाती कारो में घुमते देखा हैं लेकिन कोई अपना जमीर ही बेच डाले तो फिर ऐसे लोगो से कथित मान ,सम्मान को बचाए रखने की अभिलाषा रखना बेमानी होगा। आजकल पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पत्रकार कम भड़वे ज्यादा आ गए है। स्वर्गीय माखन लाल चतुर्वेदी और स्वर्गीय श्रीमति इंदिरा गांधी विश्वविद्यालयों से कथित पत्रकारिता का डिप्लोमा लेने वाले प्रशिक्षु पत्रकारो को पत्रकारिता की एबीसीड़ी तक नहीं आती लेकिन बाते ऐसी करेगें कि उनसे बड़ा ज्ञानचंद कोई दुसरा इस शहर में हैं ही नहीं। ऐसे लोग न्यूयार्क टाइम्स से लेकर न्यूजवीक की संपादकीय पर चर्चा करते मिल जाएगें लेकिन इन लोगो को जरा कहो कि पानी के संकट का हल कैसे निकाला जाए इस विषय पर कुछ नया लीक से हट कर लिखने को कह दिया जाए तो ए महाशय बगले झाकंते नज़र आयेगें ……… कुछ भी नया विषय से हट कर लिखने की स्थिति में ऐसे लोगो को अपनी नानी और छठी का दुध याद आ जाएगा। बहन मायावति यूपी में जो कर रही है ठीक ही हैं ,क्योकि जैसे को तैसा  मिलना भी चाहिए। जाति व्यवस्था और धर्म के नाम पर देश को बाटने वाले लोगो के खिलाफ इसी तरह की कारवाई होते रहनी चाहिए। ऐसे लोगो से जूते ही नहीं बल्कि अण्डर गारमेंट तक धुलवाने चाहिए क्योकि जब कोई व्यक्ति मूछें रखता हो और मूछें नीचे रखने का काम नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता भी हैं तो ऐसे लोगो की मूछों को ही कटवा देना कोई गलत बात नहीं हैं। इस देश मे आज भी ऐसे कई मंदिर मठ है जहां पर मठाधीशो के पैर पडऩे के लिए रूपए पैसें देने पड़ते है। भगवान यदि रूपए पैसे से दर्शन देने लगे तो फिर वह भगवान कहां से हुआ….? ऐसा व्यक्ति या मूर्ति भगवान न होकर धनवान होगा या फिर भाग्यवान होगा। यूपी की घटना ने आज मन में टीस पैदा कर रहे विचारों को नया मुकाम दिया है। मेरा ऐसा मानना है कि यदि वह अधिकारी मायावति की जूतियां साफ करने से मना कर देता तो क्या उसे माया खा जाती लेकिन कुछ न कुछ नस तो उस अधिकारी की भी दबी होगी जो सार्वजनिक रूप से जूतियां साफ कर रहा हंै। वह तो भलां हो बहन मायावति का जो उसने उक्त अधिकारी से यह नहीं कहा कि अपनी जीभ से चाट – चाट कर मेरी जूतियां साफ कर ..  मान लो यदि वह ऐसा करवा भी लेती तो क्या मायवति के खिलाफ कोई प्रकरण बन जाता। यह तो ठीक उसी प्रकार की बात हुई कि बड़े वाहन से छोटा वाहन टकरा गया लेकिन केस बना बड़े वाहन के चालक के खिलाफ ही बनाया जाता हैं……… बाबा साहब अम्बेड़कर लोगो को भारत का संविधान पढ़ा कर गए या नहीं मुझे नहीं पता लेकिन बाबा साहब ने लोगो को इतना जरूर ज्ञान बाट दिया हैं कि हमारे देश में छुआछुत अधिनियम क्या है …? और उसमें कितने साल की सजा है…..? माया के राज में यदि वह अधिकारी मना करता तो वह कानून की नज़र में गुनाहगार हैं क्योकि उसने अनुसूचित जाति ,जनजाति अधिनियम की धारा 3 , 1 , 10 के तहत दण्डनीय अपराध किया हैं। कानून की नज़र में एक दलित महिला के साथ छुआछुत का आचरण अपनाना और उस महिला की जूतियां इसलिए साफ नहीं कि क्योकि वह सवर्ण है तथा महिला दलित समाज की हंै। पहले भले ही दलित के घर मे जन्म लेना पाप था लेकिन अब तो ऐसा लगने लगा हैं कि सवर्ण के घर पर जन्म लेकर उसने सबसे बड़ा गुनाह की लिया हंै। मैं अकसर इन सब बातों से व्यथित होकर अपने बारे में यह बाते कहता हूं कि मेरे जाति से यदि पवा को चमा कर देने से सरकार का क्या चला जाएगा। क्योकि आज के समय में राजा भोज के वंशज गंगू तेली की लाइन मे आ गए हैं। अब तो राजा भोज और गंगू तेली दोनो ही पिछड़ी जाति में आ चुके है। मध्यप्रदेश की सरकार ने धार के अग्रिवंशी पंवारो को कहीं का नहीं छोड़ा है तभी लोग आज भी इन धारवंशी पंवारो को कभी भोयर कहते हैं तो कभी लंका का धेड़ कह कर ताना मारते हैं। हद तो तब और भी शर्मनाक हो जाती है जब कोई कहता है कि तुम कहीं सुअर पालने वाला डुक्कर पोसू पंवार तो नहीं हैं।  आज लोगों के तानों पर प्रदेश की कोई भी सरकार आज तक तय नहीं कर पा रही हैं कि बैतूल सहित मध्यप्रदेश के बालाघाट – सिवनी – छिन्दवाड़ा – भोपाल सहित अनेक क्षेत्रो के पंवार आखिर है क्या….? पंवार राजपूत है तो फिर पिछड़े कैसे …? बहन मायावति के राज में यदि उनकी माया के खेल करतब रोज देखने को मिल रहे हंै तो उनसे कुछ सीखा जा सकता है। अजा कांग्रेस और भाजपा दोनो ही यूपी के गुण्डराज के सामने डरपोक एवं कायर बनी हुई हैं। कोई भी सीधे – सीधे आरपार की लड़ाई लडऩे के मुंंड़ में नहीं हैं। अंत में इस लेख के माध्यम से मायावति को मैं यह संदेश दिलाना चाहता हँू कि पुरूष प्रधान समाज को आज उसने अपने कदमो के नीचे ला रखा है वह तारीफे काबिल है उसे ऐसा कई वर्षो तक करना चाहिए ताकि वर्ण व्यवस्था में सुधार आ सके।
रामकिशोर पंवार ” रोंढ़ावाला ”
लेखक
दैनिक पंजाब केसरी नई दिल्ली के बैतूल जिला प्रतिनिधि
एवं यू एफ टी न्यूज डाट काम के सीइओ एवं एडीटर भी हैं

वसंत के पहले ही बौ