रहस्य – रोमांच
रहस्य रोमांच से भरपूर एक दिल को दहला देने वाली कहानी
मुझसे शादी कीजिए…..
कहानी :- रामकिशोर पंवार
उस रोज शाम को घर से निकलते समय वह बार – बार अपनी घड़ी की ओर देख कर बैचेनी महसुस कर रहा था . उसकी मनोदशा को देख कर ऐसा लग रहा था कि वह बरसो से किसी का इंतजार कर रहा हो . उसने जैसे ही सामने वाले रास्ते की ओर मुडऩा चाहा इस बीच एक काली स्याह नागिन उसके रास्ते में आ खड़ी हो गई . एक पल के लिए पहले तो थर – थर कांपने लगा लेकिन कुछ ही पल में वहाँ पर उस नागिन के स्थान पर एक सुदंर सलोनी नाग कन्या खड़ी थी जो कि बार – बार राजेश की मनोंदशा को देख कर मुस्करा रही थी . उस नाग कन्या ने राजेश से कहा कि ”जब तक मेरा दिया मणी तेरे पास रहेगा कोई भी नाग – नागिन तेरे करीब से नहीं गुजर पाएयें ………………! राजेश के पास मणी रहने के बाद भी उसकी कंपकपी कम होने का नाम नहीं ले रही थी जब वह नागिन अपने अपने मूल रूप से नाग कन्या में आई तब जाकर राजेश की जान – में जान आई . यँू तो राजेश का नाग कन्याओं से पिछले छै माह से रोज मिलना – जुलना हो रहा है . हर रोज कोई न कोई नाग कन्या उसे अपने पास उस काली घटी पर बुला ही लेती है जहाँ पर उन नाग कन्याओ का राजेश से मिलन होता है . राजेश जब भी सोता है उसे सपने में नाग – नागिन ही दिखाई पड़ते है इस बात को कई बार अपने माँ – बाप से कह चुका है अनेक भगत – भुमका उसके सपने का इलाज नहीं कर सके है. राजेश अपने परिवार के किसी भ्ी सदस्य से नाग कन्याओं के मिलन के बीते छै माह की एक भी घटना को नहीं बता पाया है. एक बार उससे उसकी छोटी भाभी ने यह जरूर कहा था कि ”भैया आपके गले में पहना मणी बहँुत बढिय़ा है वह मुझे दे दो ……………….! लेकिन राजेश ने मना कर दिया तबसे छोटी भाभी ने मँुह फुला रखा है. इधर राजेश अपने यार दोस्तो को भी उनके पुछने पर उस मणी के बारे में कुछ नहीं बताता है . इस नाग मणी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह रात में काफी चमकता है किसी पैदल चलने वाले राहगीर को अंधेरे में रास्ते दिखाने के लिए नाग मणी काफी है . राजेश के पास का नाग मणी पूरे गांव के लिए कौतूहलका विषय बना हुआ था . हर कोई उस मणी के बारे में जानने को इच्छुक है . राजेश ने अपने मँुह पर ताला लगा रखा उसे मालूम है कि अगर उसने मणी के बारे में कुछ भी बताया तो मणी तो अपने आप फूट जाएगा लेकिन नाग- नागिन के आक्रमण से उसे कौंन बचाएगा . राजेश इस बात को कई बार महसुस कर चुका है कि जब उसके पास मणी नहीं रहता है तब उसके साथ क्या होता है…….? नाग कन्या ने मणी देते समय साफ कहा था कि इसे गले में ही बांधे रखो अगर यह नहीं रहेगा तो तुम्हारी सुंगध के चलते सारे – जहरीले – बिना जहरीले नाग- नागिन तुम्हारे आसपास आ जाएगें . मणी के रहने से ऐसा नहीं होगा यह मणी तुम्हारी रक्षा करने के साथ – साथ तुम्हारे हर कृष्टï – दुख – दर्द – पीड़ा को दूर करेगा . पहले तो राजेश को उस नाग कन्या की बात पर भरोसा नही हुआ लेकिन जब – उसने स्वंय महसुस किया तो वह यकीन करने लगा .
राजेश के परिवार में पाँच भाई तीन बहने थी . उसके अलावा सभी भाई – बहनो की शादी हो गई थी . छोटी भाभी कुछ लालची किस्म की थी तभी तो उसने एक रात राजेश के गले से वह मणी निकालने के लिए ज्यों ही हाथ बढ़ाया वह चीख मार कर बेहोश हो गई . उसकी चीख सुन कर पूरा परिवार इक्कठा हो चुका था . छोटी भाभी को होश में लाने के लिए सारे गांव के सारे – जादू – टोना वाले भगत – भुमका को बुला डाला लेकिन उसे होश नहीं आया . इधर सब लोग यह जानने को उतावले थे कि छोटी आखिर राजेश के कमरे मेें क्यो गई थी…….? राजेश का भी हाल – बेहाल था क्योकि सारे – घर के लोग उसे ही शक की न$जर से देख रहे थे कि कहीं उसने तो छोटी के साथ ऐसी – वैसी हरकत तो नहीं डाली जिसकी व$जह से छोटी बेहोश हो गई . कुछ देर गुमसुम रहने के बाद अचानक राजेश के मँुह से झंाग निकलने लगी तथा उसकी आँखो से अंगारे उगलने लगे पल भर में राजेश नाग – नागिन की तरह झुमने लगा. राजेश ने अपने परिवार के सदस्यो भीड़ – भाड़ के बीच यह कह कर सनसनी पैदा कर दी कि ” जो भी राजेश के करीब आने की कोशिस करेगा उसे मैं जिंदा नही छोडुंगी ………….! राजेश मेरा है और जन्म – जन्म तक रहेगा. राजेश की पूर्व जन्म में नाग था लेकिन अकाल मौत के कारण उसकी आयु पूरी नहीं हो सकी और वह मानव योनी मेें आया . हम पिछले छै महिने से इसी कमरे में पति – पत्नि की तरह रह रहे थे लेकिन इस औरत ने हमें पति – पत्नि की तरह लिपटे देख लिया उस समय मैं नागिन रूप मेें थी अपना रूप बदल रही थी इस बीच मुझे किसी का स्पर्श हुआ तो मैंने उसे डंस लिया इसे मेरा जहऱ चढ़ा है जो इततनी आसानी से नहीं उतरेगा.
राजेश के मँुह से नाग कन्या की आवाज सुन कर पूरा गांव स्तबध था. आसपास के गांव में ऐसा कोई भी जानकार नहीं था जो कि इस समस्या का निराकरण कर सके . राजेश के पूरे परिवार का रो – रोकर हाल का बेहाल था . इस बीच गांव से हाथी वाले बाबा – लोग भीक्षा मांगते निकल रहे थे जब उन्होने एक घर के सामने भीड़ – भाड़ देखी तो वे अपने आप को रोक नहीं सके और वे भी उस मकान की ओर चले गए. भीड़ – भाड़ को हटा कर हाथी वाले बाबा कमरे के अंदर गए तो उन्होनें देखा कि एक युवती बेहोश पड़ी है तथा दुसरा युवक की मनोदशा काफी विचित्र थी . हाथी वाले बाबा ने राजेश की माँ से कहा ” माई एक लोटा पानी दे मैं अभी सब ठीक करता हँू……………..! राजेश की माँ ने एक लोटा पानी लाकर हाथी वाले बाबा को दिया लेकिन हाथी वाले बाबा राजेश पर पानी के छीटे – मारते इसके पहले ही उस कमरे से आठ – दस काली स्याह नागिन फँुकारते हुई बाहर निकली और वे हाथी वाले बाबा पर आक्रमण करने वाली ही थी कि इस बीच हाथी वाले बाबा ने अपने झोले से एक जड़ी निकाल कर ज्यों ही उन नागिनो पर फेकी वे सारी की सारी वहाँ से गायब हो गई . बाबा और कुछ करते इसके पहले वह नाग कन्या बाबा के सामने आ गई और उससे बोली ”आखिर तू क्या चाहता है……..? हाथी वाले बाबा ने नाग कन्या से कहा कि ” पहले तो तू इस युवती का ज़हर चँूस ले उसके बाद इस युवक का साथ छोड़ दे ………….! ऐसा करने में ही तेरी भलाई है . लेकिन नाग कन्या नहीं मानी उसने हाथी वाले बाबा की लाख धमकी के बाद राजेश का साथ नहीं छोड़ा तो आखिर में इस बात पर समझौता हुआ कि उस युवती का $जहर चँुस ले अगर राजेश तेरा पिछले जन्म का प्रेमी या पति है तो हम तेरा कुछ नहीं करेगें लेकिन तुझे नाग कन्या से मानव योनी में आना होगा तथा अपने सारे – सारे नाते – वाते रिश्ते छोड़ कर पूरा जीवन काल मानव योनी में बीताना होगा. नाग कन्या इस प्रस्ताव पर सहमत तो हो गई लेकिन उसकी सखी – सहेली नाग कन्याओं को जब इस प्रस्ताव का पता तो उन्होने साफ मना कर दिया. जब नाग कन्याये मानव योनी में आने को तैयार नहीं हुई तो हाथी वाले बाबा ने अपनी झोली में से एक जड़ी निकाल उसे उस स्थान पर घीसना शुरू किया जहाँ पर सर्पदंश हुआ था . कुछ ही देर मेें स्ििाति के सामान्य होतें के बाबद जब हाथी वाले बाबा ने जाने का मन बनाया तो अचानक कहीं से सर्पो के झुण्ड के झुण्ड आक्रमण कर दिया . उस समय वहाँ मौजूद सारे लोग पल भर में नौ – दो ग्यारह हो गए लेकिन हाथी वाले बाबा ज्यों – के त्यों दोनो प्रेमियो के आसपास बैठे रहे .
एक बार फिर राजेश उसी रूप में आ गया जिस रूप में अभी कुछ देर पहले था . एक बार फिर हाथी वाले बाबा ने उस सर्पो के झुण्ड ओर मंत्र गुण्गुनाते हुए दाने फेके तो पल भर में वे सर्प जो कि झुण्ड की शक्ल में आए थे पल भर में अदृश्य हो गए . इस बार बाबा ने उस नागिन से कहा कि तुझे राजेश चाहिए तो तुझे मनुष्य योनी में आना होगा बगैर उसके तुम्हारा राजेश से मिलन संभव नही है . काफी जददे जहद के बाद यह तय हुआ कि नाग कन्या अपने शरीर को त्याग कर मनुष्य योनी मे जन्म लेगी हाथी वाले बाबा ने उसे आर्शीवाद दिया कि वह अपने आने वाले जन्म मे राजेश को यदि उसके विवाह के पूर्व पा लेगी तो राजेश उसका हो जाएगा अन्यथा राजेश को उस जन्म मेेंं पाना संभव नहीं है . हाथी वाले बाबा के वचन में बद्व नाग कन्या ने आखिर अपनी सहेलियो नाग कन्याओं की लाख समझाईश को ठुकरा कर अपनी देह त्याग दी …………….. इधर राजेश को इस बात की चिंता सता रही है कि वह एक साथ दो के साथ कैसे जीवन यापन करेगा. हालाकि उस नाग कन्या को मनुष्य योनी में जन्म लेने के उपरांत एक विवाह योग्य युवती बनने में 18 से 20 साल लग जाएगा .
इति,
भागो – भागो शेर खा गया……..
कहानी – रामकिशोर पंवार
दिसंबर का महिना था. आज दिन भर से कड़ाके की ठंड पड़ रही थी . इस बीच किसी ने कलेक्टर के बंगले पर आकर दस्तक दी. आने वाला किसी गांव का कोटवार जान पड़ता था. सुबह से लोगो को वैसे भी इस कड़ाके की ठंड ने आग के अलावे के सामने एकत्र कर रखा था . कलेक्टर का बंगला भी इस ठंड से अछुता नही था . सोमवार 21 दिसंबर 1931 की शाम कलेक्टर बंगले पर आने वाले उस व्यक्ति ने अपना परिचय धाराखोह ग्राम के कोटवार के रूप में देते हुए उसने अपने बुढ़े जिस्म को झुका वह वह बोला मुझे कलेक्टर साहब से मिलना है . धाराखोह गांव का वह बुढ़ा कोटवार आज कुछ ज्यादा ही परेशान दिखाई पड़ रहा था . गांव के आसपास एक तो घनघोर जंगल जिसमें से अकेले पैदल निकल पाना जान को जोखिम में डालने जैसा था फिर भी पिछले चार – पाँच दिनो से एक आदमखोर शेर के आतंक ने आसपास का पूरा माहौल कंप- कपा रखा था . इस समय शेर के आंतक से बुरी तरह थर्रा उठा धाराखोह का जंगल ता इस बार इस शेर के आंतक से कुछ ज्यादा ही हैरान एंव परेशान था. कई किसानो के जानवरो को खा चुका शेर कहीं नरभक्षी न बन जाए बस इसी बात की चिंता गांव कोटवार को धाराखोह से कलेक्टर के बंगले तक खींच लाई थी. वैसे भी उस जमाने में तो धाराखोह का जंगल और ऐसे में पैदल बदनूर तक आना हर किसी के बस की बात नही थी. अग्रेंजी हुकुमत के दौरान ग्रामिण लोग बैतूल को बदनूर के नाम से ही पुकारते थे . जब भी किसी गांव वाले को बदनूर आना होता था तो वह अपने चार पाँच साथियों के साथ हाथ में लाठियाँ , कुल्हाड़ी , तीर कमान , बलम्ब, तथा आते समय रात्री हो जाने पर आते समय के लिए मशाल साथ लेकर आते थे ताकि लौटते समय जला कर रास्ते से आ सके . गांव से मलाश जला कर निकले गांव कोटवार के साथ आये कलेक्टर बंगले के बाहर खड़े गांव वालो के हाफने और कापंने की मनो दशा साफ दिखाई दे रही थी. इस कड़ाके की ठंड में भी पसीने से लथ पथ गांव वालो ने कलेक्टर बंगले के चौकीदार को अपने आने की खबर देते हुए कलेक्टर साहब से मिलने की अपनी इच्छा जतलाई. बंगले के चौकीदार ने अंदर जाकर कलेक्टर साहब को $खबर दी कि सर धाराखोह गांव का कोटवार अपने कुछ साथियो के साथ आपसे मिलने के लिए आया है . नई उम्र का कलेक्टर बैतूल शायद पहला या दुसरा जिला रहा होगा ऐसे मेें कलेक्टरी की जवाबदेही वास्तव में जोखिम भरी होती है पर उत्साह में कोई कमी नहीं हमेशा चुस्त – दुरस्त रहने वाले इस खुबसूरत – हैंडसम कलेक्टर को देख कर नहीं लगता था कि वे एक अच्छे शिकारी और निशाने बाज भी होगें , लेकिन जबसे बैतूल आये उन्हाने कई बार जंगलो में अपनी जान कों जोखिम में डाल कर शिकार किये . इस बार भी उन्हे जब धाराखोह में शेर के आंतक की $खबर मिली तो वे अपने आप को रोक नहीं पायें उस रोज का मंगलवार बैतूल कलेक्टर के लिए उनकी जिदंगी का सूरज डूबा देगा यह उसने कभी सपने में नहीं सोचा था.
बैतूल कलेक्टर के जीवन का सूरज नही डूबता यदि मवे अपनी जवानी के प्रति इतने दिवाने नहीं होते हालाकि उन्हे बताया जा चुका था कि सर शेर आदमखोर हो चुका है उसने धाराखोह के जंगल में शेर ने एक गोंड कृषक पर हमला कर किया…गले पर दांत गड़ा… कर उसे कई मील दूर तक ऐसा घसीटा कर वह मर गया . कुछ देर बाद शेर ने पहाड़ी ढलान पर ले जाकर उसे ‘ बुरी- तरह नोंच – नोंच कर खाÓ गया…लहुलोहान उस गोंड़ किसान की धोती से मालूम कि पड़ता था कि शेर ने उसका क्या हाल का बेहाल किया होगा . सारा हाल- चाल जानने के बाद भी जवानी तो होती ही दीवानी है…कुछ करने की इच्छा ने बैतूल कलेक्टर को मौत की आगोश में धकेल ही दिया. कलेक्टर साहब का ‘दिल आखिर माना नह होगा इसलिए उन्होने उक्त दुस्साहस पूर्ण कार्य करने का दम भर होगा. कहना नहीं चाहिए पर सच्चाई है कि ऐसी ही लालसा – ललक…इस तरह के हादसों को जन्म देती है. बैतूल कलेक्टर मिस्टर बोर्न को धाराखोह गांव कोटवार से जैसे ही यह जानकारी मालूम हुई . मिस्टर बोर्न ने बैतूल के तहसीलदार को अपने दरबार में बुलवा भेजा . इसके अलावा उन्होने यह भी पता कि कि क्या बैतूल जिले में कुछ अच्छे निशानेबाज शिकार है…….? उनकी इस अभिलाषा के तहत कुछ स्थानीय शिकारियों को भी कलेक्टर ने अपने बंगले पर बुलवा भेजा . लगभग आधा दर्जन से भी अधिक लोगो की टीम को अपने साथ लेकर मिस्टर बोर्न गांव कोटवार और कुछ गामिणो तथा स्थानीय शिकारियो के दल को अपने साथ लेकर धाराखोह के जंगलो की ओर निकल पड़े . उस समय कलेक्टर के साथ ‘देश के जाने-माने शिकारी चिचोली ग्राम के पटेल स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, जमींदार स्व. शिवदीन पटेल जिन्होंने अनेक ‘आदम खोरÓ शेर का शिकार किया…अनेक मर्तबा शासन-प्रशासन ने उन्हे सम्मानित किया वे भी शामिल थे .
22 दिसंबर 1931 युवा कलेक्टर खूबसूरत हेण्डसम-गोरा चिट्ïटा उम्र यही कुछ 35-40 मिस्टर बोर्न जो पहले भी कुछेक शेर मार चुके थे… के लिए अवसर था कि धाराखोह के इस आदमखोर (आदमी को खाने वाले) शेर को वे मारे. उन्होंने 2 दिन पहले मुझसे कहा था… ‘पटेल साÓ बड़े दिन के त्यौहार पर अपन नांदा वनग्राम चलेंगे…आज भिनसारे उनकी खबर आ गई है कि आदमखोर शेर के शिकार पर धाराखोह चलना है… अनहोनी कौन टाल सकता था? मेरा जाना नहीं हो पाया. 8 बजे सुबह, तारीख 22 दिसंबर 1931 कलेक्टर साहब धाराखोह के जंगल पहुंच गए…शेर ने एक बैल का भी शिकार किया था. जिस स्थान पर शेर ने बैल को मारा था…जिसे शिकारियों की भाषा में ‘गालाÓ कहते है…उसी स्थान पर, एक पेड़ पर ‘साहब बहादुरÓ के लिए ‘मचानÓ (खटिया-पेड़ की साखो में बांधकर बनाया गया बैठने का स्थान) बनाया गया. बोर्न साहब के साथ तहसीलदार मचान पर बैठे. कोटवार भी उसी पेड़ की एक साख पर बैठा… हांका शुरू हुआ (हांके का मतलब…. संभावित शेर के स्थान वाले जंगल को दूर से…. बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा घेरकर चिल्लाते…. हल्ला करते, आगे बढऩा, जिससे शेर-आवाज शोर सुन, वहां से आगे की ओर बढ़े) और शेर उस ओर बढ़ा भी… जिस स्थान पर…उसने बैल का शिकार किया था…जैसे ही शेर शनै:शनै: चौकस निगाह से अधखाए बैल की ओर पहुंचा…. कलेक्टर भी दम साधे…निशाना साध ही रहे थे…जैसे शेर-उनकी एवं बंदूक की रेंज में आया…कलेक्टर सा ने ट्रिगर दबा दिया…धॉय…गोली चली… गोली लगी या नहीं, कुछ मालूम नहीं हो पाया…शेर आगे बढ़ गया…
कलेक्टर बोर्न साहब बोले गोली लग गई है…तहसीलदार-कोटवार बोले-‘सरÓ गोली नहीं लगी है. तय यह हुआ कि नीचे उतरकर देखा जाय कि गोली लगी या नहीं…अगर खून गिरा होगा… मतलब गोली लगी है… तीनों नीचे उतर गए…उन्हें खून भी दिखलाई दिया… बोर्न साहब पर जवानी का नशा चढ़ा था… वे खून देखते आगे बढ़ते गए…साथ में तहसीलदार एवं कोटवार भी…अचानक भयानक गर्जना के साथ शेर टूट पड़ा घायल शेर भयावह होता है… पहले उसकी पकड़ में कोटवार आ गया… उसने कोटवार का सीना चबा डाला… खून के फव्वारे छूट पड़े… साहब ने गोली चलाई…वह साहब बहादुर पर टूट पड़ा.
स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, जमींदार स्व. शिवदीन पटेल चिचोली की हस्तलिखित डायरी के पन्नो में अंकित इस सत्यकथा के अुनसार कलेक्टर साहब मिस्टर बोर्न ने अपने को, बचाने पहले हाथ आगे बढ़ाया…शेर ने हाथ चबा डाला, पैर आगे बढ़ा तो पैर ‘चकनाचूरÓ हो गया फिर शेर सीने पर टूट पड़ा…और बोर्न साहब को चबाता रहा… खून के डबरे भर गए… स्व. पटेल की डायरी आगे कहती है… तहसीलदार वहां से जो भागा… तो नजदीक एक झाड़ पर चढ़ गया बंदूक नीचे ही फेंक दी…कपड़े पूरे गंदे कर चुका था. दूर झाड़ पर बैठे एक आदिवासी शिकारी को कुछ आभास हुआ कि-बड़े साहब की तरफ कुछ गड़बड़ है…वह वहां पहुंचा…कोटवार एक ओर पड़ा था.
दूसरी ओर बोर्न सा पड़े थे. धरती खून से सनी थी…कुछ ही दूर ‘निढालÓ शेर पड़ा था, क्योंकि वह भी ‘कमरÓ में गोली लगने से घायल था. गोंड शिकारी ने पहले अपनी भरमार बंदूक से शेर पर गोली चलाई… वह वही ढेर हो गया. उक्तसारे हादसे को देख कर तो बैतूल तहसीलदार की सिटट्ी – पिटटï़्ी गुम हो गई . वह थर- थर कांपने लगा. जब उनकी घबराहट कुछ कम हुई… वे पेड़ से उतरे… ‘आनन-फानन में खटिया का इंतजाम किया गया…Ó एक पर कलेक्टर, एक पर कोटवार… बैतूल लाया गया…मुख्य चिकित्सालय टिकारी जो (जो अब नर्सेज हास्टल है) लाया गया .
दोनों की स्थिति बहुत नाजुक थी… कलेक्टर साहब होश आने पर बचाओ-दौड़ो शेर आया चिल्लाते रहे… उन्हें कलेक्टर बंगला ले जाना ही उचित समझा गया… नागपुर से भी डाक्टर आए…परंतु उन्हें नहीं बचाया जा सका… बीच-बीच में चिल्लाते थे-दौड़ो-दौड़ों शेर आया-शेर आया. और कलेक्टर बंगले में उनके प्राण पखेरू उड़ गए… शाम हो रही थी सूरज ढल रहा था… एक जवान युवा कलेक्टर-‘विवेकÓ के अभाव में मारा गया था. जब यह जानकारी घायल कोटवार तक पहुंची… तो वह भी ‘शाकÓ नहीं झेल पाया…उसकी भी मौत हो गई.
बोर्न सा की मेम साहब को विलायत उनके स्वदेश तार से बोर्न साहब की इस हादसे में हुई मौत की खबर दी गई लेकिन वे नहीं आई बलिक उनका जवाब आ गया वह भी एक ऐसा तार था जिसमें लिखे शब्दो ने पति – पत्नि के रिश्तो को तार – तार करके रख दिया . तार का जवाब था…उनका जो भी सामान हो नीलाम कर पैसा यहां भिजवा दो…
डायरी आगे कहती है… बोर्न सा को माचना नदी के किनारे कब्रस्तान में दफनाया गया. कलेक्टर बंगले में काफी दिनों तक बोर्न सा की आवाज दौड़ो-दौड़ों शेर आया शेर आया…. आती थी . अब वह आवाज तो लोगो को सुनाई नहीं देती पर माचना नदी के किनारे बने ईसाईयो के कब्रिस्तान से आज भी काली अंधीयारी अमावस्या की रात हो या फिर उजियारी पूर्णिमा की रात में एक पैतीस छत्तीस साल का विलायती स्मार्ट गोरा – नारा युवक जहाँ – तहाँ खून से सना उसके शरीर से खून की बूंद टपकती दिखाई पड़ती थी . वह अपने हाथो में बंदुक लिए बदहवास सा चीखता हर आने – जाने वाले राहगिरो से यह कहता है दिखाई पड़ता कि ” भागो नहीं तो शेर खा जाएगा ………………! परतवाड़ा रोड़ पर स्थित ईसाई कब्रिस्तान के पास अकसर कई लोगो को दिखाई पड़ा तथा अभी भी उसके दिखाई देने के किस्से सुनाई पड़ते है . यह विलायती युवक उस रास्ते से आनें – जाने वाले लोगो से कहता है कभी – कभी तो यह भी कहता है कि दौड़ो……………..! दौड़ों …………..! शेर आया …………..! शेर आया………………! मुझे बचाओ ……………! मुझे बचाओ…………….! भागो नहीं तो शेर खा जाएगा ……………….
इति,
दिल को छू लेने वाली रहस्य रोमांचक युवा दिलों की कहानी
काला गुलाब
कहानी – रामकिशोर पंवार
रात की घटना को याद कर तरह – तरह के विचारो में खोये मनोज को पता ही नहीं चला की कब अंजली उसके कमरे में आ गई. अचानक अंजली को पता नहीं क्या शरारत सुझी उसने चुपके से विचारो में खोये मनोज की आँखो को अपने दोनो हाथो की हथेली से दबाई तो मनोज ने जैसे ही अपनी आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह जोर से चीख पड़ा. अचानक मनोज के जोर से चीख कर बेहोश हो जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. बेहोश हुए मनोज की उससे हालत देखी नहीं गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांपने लगी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया…..? मनोज की चीख को सुन कर उसके पड़ौस में रहने वाली अनुराधा दौड़ी चली आई. मनोज की चीख इतनी जोर की थी कि आसपास के लोग भी घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये.बड़े दिन की छुट्टïी खत्म होने वाली थी. स्कूल-कालेज लगना शुरू होने वाले थे. इस बीच अपने गांव से जल्दी लौट आये मनोज को अब सर पर सवार परीक्षा की तैयारी में जुट जाना था. अर्ध वार्षिक परीक्षा के बाद होने वाली पढ़ाई में जरा सी भी बरती ढील पूरा साल बरबाद कर सकती थी. सुबह जल्दी न उठ पाने की आदत के कारण मनोज ने अपने मकान मालिक से कहा था कि अंकल आप जब भी मार्निंग वाक के लिये जाते हैं मुझे भी साथ लेते चलिये मैं भी साथ चलूंगा. पिछले कई सालों से मनोज के मकान मालिक कुंदन मैथ्यू मार्निंग वाक के लिये जाते थे. मनोज ने सोचा कि वह सुबह चार से साढ़े पांच बजे तक मार्निंग वाक के बहानें अपनी किताबें-कापियां लेकर शांति से खुले मैदान में बैठकर पढ़ लेगा. एक पंथ दो काज के बहाने से सुबह देर से जगने की परेशानी से भी मुक्ति मिल जाएगी. अपने कमरे में सोने जाने से पहले मनोज ने एक बार फिर याद दिलाते हुये कहा कि अंकल रात से मैं भी आपके साथ चलूंगा.
मनोज का कमरा ऊपर की मंजिल पर होने की वजह से तीन चार दोस्त साथ मिलकर रहा करते थे. मनोज के सहपाठी आज शाम तक वापस लौट कर आने का कह कर गये थे लेकिन जब वे नहीं आये तो आज शाम को ही अपने गांव से वापस लौटे मनोज को आज की रात अकेले ही काटनी थी. इसलिये वह ज्यादा देर तक जगने के बजाय सोने चला गया. 31दिसंबर की उस रात अपने कमरे में अकेले सोये मनोज ने उस रात को जोर की पडऩे वाली ठंड से बचने के लिए अपने सारे गर्म कपड़े पहनने के बाद अपने गांव से अबकी बार साथ लाई जयपुरी मखमली रजाई को अपने ऊपर डाल कर उसकी गर्माहट में दुबक कर सो गया. सपनों की दुनिया में खोये मनोज की अचानक हुई खटपट की आवाज से नींद खुल गई. उसने अपने कमरे का नाइट लैम्प जलाया तो उसे अचानक नाइट बल्ब की रोशनी में जो दिखाई दिया उससे वह बुरी तरह डर गया. उसे अपने कमरे में एक भयानक डरावनी सूरत वाली काली बिल्ली दिखाई दी. जिसकी आँखो से अंगारे बरस रहे थे. उस काली भयावह डरावनी सूरत वाली बिल्ली से वह कुछ पल के लिये डर गया लेकिन उसने हिम्मत से काम लेते हुए उस बिल्ली को भगाने के लिए डंडा तलाशना चाहा , लेकिन उसे जब कहीं भी डंडा दिखाई नहीं दिया इस बीच डंडा तलाशते समय उसकी न$जर अनायास सामने की ओर बने सेंट पाल चर्च की ओर गई तो उसका कलेजा कांप गया. उसने अपने ऊपर की मंजिल पर स्थित कमरे से देखा कि रात के समय आसमानी तारों की जगमग रोशनी में उस चर्च के सामने बनी बावली के भीतर से एक महिला निकल कर उसके मकान की ओर आती दिखाई दी. सफेद लिबास पहनी वह महिला उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू के कमरे की ओर आती दिखाई दी वह महिला आई महिला बिना कुछ बोले उसके मकान मालिक के कमरे में चली गई. उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि उसने अभी कुछ देर पहले क्या देखा. आखिर वह महिला कौन थी. उसका इस मकान मालिक से क्या नाता-रिश्ता है. वह यहां पर इतनी रात को क्या करने आई है……? और न जाने कितने प्रकार के विचारों में खोए मनोज का डर के मारे बुरा हाल था. अगर वह बिस्तर पर जाकर नहीं बैठता तो वह बुरी तरह लडख़ड़ा कर गिर जाता.
मनोज ने जैसे – तैसे पूरी रात को अपनी आँखे के सामने कांटा. उसका एक- एक पल उसे सालो की तरह लग रहा था. सुबह होते ही जब उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू ने उसे घूमने के लिये चलने को कहा तो उसने पेट दर्द का बहाना बना कर वह अपने बिस्तर में दुबक कर सो गया. उसकी आंखों की नींद उड़ गई थी वह बार-बार यही सोचता रहा कि उस बावली से निकलने वाली महिला कौन थी? उसका इस मकान मालिक से क्या संबंध है? सवालों में उलझे मनोज ने किसी तरह दिन निकलते तक का समय काट लिया पर वह रात की घटना से परेशान हो गया. दिन भर बेचैन मनोज जब आज कॉलेज भी नहीं आया तो उसके मकान मालिक ने उससे आखिर पूछ लिया-बेटा मनोज क्या बात है? तुम्हारा पेट दर्द क्या अब भी कम नहीं हुआ है? अगर तकलीफ अभी भी है तो डाक्टर के पास चलो मैं तुम्हें ले चलता हंू. नहीं अंकल ऐसी कोई बात नहीं है, बस यूं ही इच्छा नहीं हो रही है. आप चिंता न करें मैं ठीक हंू यह कह कर मनोज अपने कमरे से बाहर निकल कर आ गया. रात की घटना को याद करता विचारों में खोये मनोज की अचानक किसी ने आंखों पर हथेली रखकर उसकी आंखोंं को दबा दिया. मनोज ने जैसे ही आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह चीख पड़ा और वह कटे वृक्ष की भॉति जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा. मनोज के चीख कर बेहोश गिर जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांप रही थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को क्या हो गया. मनोज की चीख को सुनकर आसपास के लोग घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये. कुछ ही पल में पूरा मोहल्ला जमा हो गया. किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा था. अंजलि का तो हाल बेहाल था. कुछ लोग मनोज को उठाकर उसके कमरे में ले गये. इस बीच कुछ लोग डाक्टर को तो कुछ लोग झाडऩे-फूंकने वाले को लेकर आ गये. डाक्टरों के लाख प्रयास के बाद रात वाली घटना को याद करके सिहर उठता था. इस बीच जब अंजलि ने चुपके से आकर उसकी आँखे क्या दबाई वह चीख कर ऐसा बेहोश हुआ कि उसे अभी तक होश नहीं आया. जब काफी देर तक मनोज को होश नहीं आया तो फिर क्या था उसके आस – पडौस के लोगो ने ओझा फकीरो को बुलवा लिया. सुबह से लेकर शाम तक झाड़ – फुक जंतर-मंतर का दौर शुरू हो गया. चर्च के फादर राबिंसन इन बातों पर विश्वास नहीं करते थे. इस बीच कोई मौलाना साहब को लेकर आ गया. मौलाना साहब ने कुछ बुदबुदाते हुये मनोज के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो अचानक बड़ी-बड़ी आंखें खोलकर घूरता हुआ जनानी आवाज में बोला ”तुम सब भाग जाओं नहीं तो किसी एक को भी नहीं छोडूंगी. …………. मौलाना साहब ने बताया कि यह लड़का किसी जनानी प्रेत के चक्कर में पड़ गया है. इसे कुछ समय लगेगा. ऐसा करें आप आधा घंटे का मुझे समय दे दीजिये. मैं इसे ठीक कर दूंगा. हां एक बात और भी इस लड़के का कोई अगर अपना है तो वह ही इसके साथ रहे बाकी सब चले जायें. सभी लोग अंजलि को छोड़ जाने लगे तो अंजलि जो कि इन सब बातों से बुरी तरह घबरा गई थी. बोली-प्लीज मेरे पापा को फोन करके बुला दीजिये न. अंजलि के पापा इसी शहर के पुलिस कप्तान थे इसलिये उन तक खबर पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं थी. पुलिस कप्तान साहब की बिटिया की खबर कौन नहीं पहुंचाएगा. लोग खबर देने के लिये दौड़ पड़े.
पुलिस कप्तान ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह का पूरे जिले में दबदबा था. अपराधी तो उसके नाम से ही थर-थर कांपता था. अंजलि उनकी एकमात्र संतान थी. तेजतर्रार पुलिस कप्तान साहब की एकमात्र नस थी तो वह उनकी बिटिया अंजलि जिसे वे बेहद प्यार करते थे. अंजलि मनोज के साथ डेनियल कालेज कला की छात्रा थी. मनोज भी उसी कालेज में साइंस का छात्र था. दोनों एक-दूसरे के विपरीत कोर्स की पढ़ाई कर रहे थे. कालेज की केन्टीन से शुरू हुये अंजलि और मनोज के प्रेम प्रसंग ने उन्हें पूरे कालेज में चर्चित कर रखा था. पुलिस कप्तान की बिटिया होने की वजह से हर कोई उसके आसपास आने से डरता था. वह अक्सर मनोज से मिलने आती थी. पिछले चार-पांच माह से दोनों के बीच चल रहे प्रेम प्रसंग की पूरी कालोनी में चर्चा होती थी. लोग चर्च कालोनी के इन दोनों प्रेमियों की तुलना हिर-रांझा, लैला-मजनू, सोनी-महिवाल से करते थे. अंजलि शहर के पुलिस कप्तान की बिटिया थी इसलिये कोई भी उसके बारे में बुरा भला कह पाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. कई बार तो कप्तान की कार ही मनोज को लेने आती थी. पूरे मोहल्ले में मनोज का जलवा था. अंजलि की मम्मी को ब्लड कैंसर की बीमारी थी. जिसकी वजह से वह असमय ही काल के गाल में समा गई थी. अंजलि की मम्मी का जब निधन हुआ था उस समय वह छ: माह की थी, ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह पर परिवार के लोगों का काफी दबाव आया कि वे दूसरी शादी कर लें, पर कप्तान साहब अपनी जिंदगी में किसी दूसरी औरत को आज तक आने नहीं दिया. अंजलि ही उसके जीने का एक मात्र सहारा थी. जब अंजलि के बीच प्रेम प्रसंग की उन्हें खबर मिली तो सबसे पहले कप्तान साहब ने बिना किसी को कुछ बताये मनोज के पूरे परिवार की जन्म कुंडली अपने मित्र से मंगवा ली थी. मनोज के घर परिवार के तथा उसके आचार विचार ने पुलिस कप्तान का दिल जीत लिया था. पुलिस कप्तान ने मनोज को अपना भावी दामाद बनाने का फैसला कर लिया था. अगले वर्ष दोनों का विवाह कर उनका घर संसार बसा देने का फैसला ठाकुर महेन्द्र प्रतापसिंह तथा मनोज के पापा के बीच हो चुका था लेकिन दोनों के बीच की बातचीत को अभी गुप्त रखा था. इस बात का न अंजलि को पता था और ना ही मनोज को आभास था कि उसके पापा और अंजलि के डैडी के बीच कोई बातचीत भी हुई है.
अंजलि की खबर मिलते ही पुलिस कप्तान दौड़े चले आए. उनके साथ शहर का पुलिस विभाग भी आगे-पीछे दौड़ा चला आया. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह की बिटिया संकट में है यह खबर सुन कर भला कौन चुप बैठ सकता था. सबसे ज्यादा हैरान – परेशान अखबार और टी.वी. चैनल वाले थे क्येकि उन्हे आपस में इस बात का डर सता रहा था कि कहीं उनकी खबर आने के पहले ही कोई ब्रेकिंग न्यूज न चला दे. शहर में सनसनी खेज खबर के घट जाने के चलते सारे मीडिया कर्मी ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह को खोजते कुन्दन मैथ्यू के घर पर आ धमके. सेंट पाल चर्च कालोनी की इस घटना की चर्चा शहर के पान ठेलो एवं होटलो तथा चाक चौराहो पर होने लगी. कुन्दन मैथ्यू के घर पुलिस कप्तान के पहँुचते ही वहाँ पर जमी भीड़ छटने लगी. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह उस कमरे में चले गए जहाँ पर गुमसुम अंजलि और मौलवी साहब के अलावा मनोज के अलावा उनके आसपास के लोग बैठे हुए थे. पापा के आते ही अंजलि स्वंय को रोक नही सकी और दहाड़ मार कर रोने लगी. ”पापा देखा न मनोज का क्या हो गया…..? अपनी बेटी की आँखो में आँसू देख महेन्द्र प्रतापसिंह स्वंय को रोक नही सके वे कुछ पुछते इसके पहले ही मौलवी साहब ने उन्हे चुपचाप रहने का इशारा कर दिया. पुलिस कप्तान साहब कमरे के एक कोने में बैठ कर वहाँ पर होने वाली गतिविधियो को देखने लगे. इस बार फिर मौलवी साहब ने गेहूँ के दानो को मनोज पर फेका तो आँखो में अंगारे लिए मनोज सोते से जाग गया. उसने सामने के मौलवी से तू चला जा नहीं तो बात बिगड़ जायेगी…….. मौलवी ने इस बार फिर कुछ बुदबुदाया और मनोज के चेहरे पर वह अभिमंत्रित पानी फेका तो वह जनानी आवाज में बोला मुझे छोड़ दो………… मौलवी साहब बोलें पहले तू यह तो बता आखिर तू है कौन………? तूने इसे क्यो अपने जाल में फँसा रखा है………..? इस बार मनोज के शरीर में समाई प्रेतात्मा बोली………….. मैं मरीयम हँू…………..सिस्टर जूली की छोटी बहन हँू. फादर डिसूजा ने मेरी सिस्टर जूली से मैरिज की थी. मैं अपनी सिस्टर के पास ही रहती थी. आज से 45 साल पहले मेरी चर्च कालोनी की इस सामने वाली बावली में गिरने की वजह से मौत हो गई थी. मेरी मौत लोगो के बीच काफी समय तक चर्चा का विषय बनी क्योकि फादर डिसूजा ने मेरी मौत को आत्महत्या बताया था जिसे आसपास के लोग मानने को तैयार नही थे. उस समय मैं दसवी कक्षा में पढ़ती थी. कुंदन मैथ्यू फादर डिसूजा के घर पर ही रहता था इसलिए हम दोनो के बीच पता नही कब प्यार का बीज अंकुरित हो गया. कुंदन के बचपन मेरी माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गये थे . एक दिन फादर डिसूजा को भूखे से व्याकुल कुंदन एक होटल में चोरी करते मिला. फादर डिसूजा को कुंदन पर दया आ गई और उसने उसे पुलिस थाने से जमानत पर छुड़ा कर अपने पास ले आया. सात साल की उम्र से कुंदन फादर डिसूजा के पास ही रहता है. फादर डिसूजा ने कुंदन को ईसाई धर्म की दीक्षा देकर उसका नाम कुंदन मैथ्यू कर दिया. कुंदन ने भी फादर डसूजा को अपने माता- पिता की तरह चाह कर उसकी सेवा चाकरी में कोई कसर नही छोड़ी. फादर ने कुंदन का नाम सामने वाले चर्च स्कूल में लगा दिया. पढऩें में तेज कुंदन ने हर साल अव्वल नम्बर पर आकर पूरे शहर में अपने नाम की पहचान बना ली थी. इस बीच सिस्टर जूली ने चर्च स्कूल में बतौर टीचर के जब नियुक्त हुई तो वह भी कुंदन की पढ़ाई के प्रति लगन और क्लास तथा स्कूल में नम्बर वन आने की वजह से उस पर खास ध्यान देने लगी. सिस्टर जूली भी श्ुारूआती दिनो में चर्च कालानी में रहती थी लेकिन जब फादर डिसूजा से उसकी मैरीज हो गई तो वह अपनी छोटी बहन मरीयम के साथ रहने लगी. मरीयम भी कुंदन के साथ पढ़ती थी इसलिए दोनो साथ – साथ रहने और पढऩे के कारण एक दुसरे के हमजोली बन गये. सिस्टर जूली से मैरीज के बाद फादर डिसूजा का कुंदन के प्रति व्यवहार काफी बदल गया. कुंदन का स्कूल जाना बंद करवा दिया गया. उसे चर्च में चौकीदार की नौकरी पर रखवाने के बाद फादर डिसूजा ने मरीयम की कुंदन से बातचीत तक बंद करवा दी. फादर डिसूजा नहीं चाहतें थे कि मरीयम की मैरीज एक ऐसे लड़के से हो जिसके माता- पिता न हो…… जिसके पास न घर है न दो वक्त की दो का इंतजाम ऐसे लड़के से मैरीज न होने देने की वजह कुछ और ही थी. दर असल फादर मरीयम को पाना चाहते थे लेकिन सिस्टर जूली की वजह से उनकी दाल नही गल पा रही थी. एक दिन सिस्टर जूली और कुंदन किसी काम से दूर किसी शहर गये थे . उस रात को घर में अकेली देख फादर डिसूजा ने मरीयम की इज्जत लूटनी चाही तो वह अपनी जान बचाते समय ऐसी भागी की बावली में जा गिरी. मरीयम की अचानक मौत का सिस्टर जूली पर ऐसा सदमा पड़ा की वह अकसर बीमार पडऩे लगी और एक दिन चल बसी. फादर डिसूजा ने कई लोगो को मेरी मौत को आत्महत्या बताया लेकिन किसी ने भी उसकी बातो पर यकीन नही किया. मैने आखिर मेरी और मेरी सिस्टर जूली की मौत का बदला लेने के लिए मुझे मनोज का सहारा लेना पड़ा .
मैं मनोज को बस एक ही शर्त पर छोड़ सकती हँू यदि आप मेरी कब्र पर एक काला गुलाब वो भी मेरे और कुंदन के प्यार की निशानी बतौर लोगो के बीच लम्बे समय तक जाना – पहचाना जा सके. लोगो ने जूली की मनोज के माध्यम से कहीं बातो पर विश्वास करके एक काला गुलाब की कली की कहीं से व्यवस्था करके ज्यों ही उसकी कब्र पर गाड़ा इधर मनोज अपने – आप ठीक हो गया . आज भी कुंदन और जुली के प्यार का वह प्रतिक लोगो के लिए ऐसा सबक साबित हुआ है कि लोग कभी भी ऐसे प्रेमी के प्यार के बीच में खलनायक बनने का प्रयास नहीं करते जों एक दुसरे को जान से जयादा चाहते है. अभी कुछ दिनो पूर्व ही अंजली अपने पति मनोज और पापा डी .आई .जी . ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह के साथ जब नागपुर जा रही थी तो वह छिन्दवाड़ा होते हुए जूली की कब्रतक पहँुची यह जानने के लिए की उसके द्वाराा अकुंरित काला गुलाब कैसा है………!
इति,
कथा के पात्र काल्पनिक है इसका किसी भी
जीवित व्यक्ति से कोई लेना – देना नहीं है .
भूत भगाने का पाखण्ड?
सचित्र आलेख – रामकिशोर पंवार
” बता तू कौन है ? वरणा तुझे जला कर भस्म कर दँूगा……..? रामदीन भगत ने कलावति की चोटी को पकड़ उसे जब एक चक्कर घुमाते हुए पुछा तो वह दर्द के मारे चीख पड़ी. वह दया की भीख मांगती हुई दामदीन से कह रही थी ”बाबा मुझे छोड़ दो…………….! कलावति को दर्द से कराहते और दसा की भीख मांगते हुए गिड़गिड़ाता देख भगत बाबा ने उसकी पीठ पर एक बार फिर वही जानवरों के बालो से बना सोटा (हंटर) खींच कर दे मारा. कलवाति एक बार फिर वही मिन्नत करने लगी , लेकिन बाबा उस पर एक ,दो, तीन, चार गिन कर सोटा (हंटर) कस कर मारने लगा तो वह दर्द से कराहती हुई वही औंधे मुँह गिर पड़ी . उसे गितरा देख रामदीन बाबा ने उस पर पानी के दो चार छीटें मारे फिर भी वह जब लोगो द्घारा उठाने बाद भी नहीं उठी तो रामदीन बाबा घबरा गया. उसने अपनी जान बचाने के लिए लोगो से कहा ” घबराने की कोई बात नहीं ………….! ” कुछ देर बाद इसे होश आ जायेगा. इतना कह कर बाबा अभी आता हॅंू कह कर जो गया तो आया नही. इधर कलावति को काफी देर बाद भी होश नहीं आया तो उसके रिश्तेदारों ने उसे उठा कर बैलगाड़ी से सीधे शहर के डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने कलावति की नब्ज टटोली तो पता चला कि वह अब इस दुनिया में नहीं रही.डाक्टर द्घारा कलावति को मृत घोषित करते ही पुरे रिश्तेदारों के बीच कोहराम मच गया. कलावति की इस मौत की सूचना पुलिस को मिलते ही पुलिस ने मृतिका का शव का पंचनाम तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिर्पोट आने के पूर्व पुलिस ने कलावति के भाई की शिकायत पर आरोपी रामदीन भगत के विरूद्घ हत्या हत्या का प्रकरण दर्ज तो कर लिया लेकिन भूत भगाने वाला पांखडी रामदीन बाबा आज भी पुलिस पकड़ से कोसो दूर है. इस घटना के बाद भी आज भी कई कलावति तथाकथित भूत भगाने के चक्कर में ऐसे पाखंडी बाबाओं के द्घारा जान माल से हाथ धो रही है. एक घटना मध्यप्रदेश के सबसे बड़े सतपुड़ा ताप बिजली घर सारनी की है. सारनी मेें बीते दिनो सुनिता के परिजन उसके मानसिक रोग से छुटकारा दिलवाने के लिए एक ऐसे ही झाड़ फुक वाले रफीक बाबा के पास ले गए जो कि पिछले कई सालो से भूत भगाने का काम करता चला आ रहा था. सुनिता की आपबीती सुनने के बाद ऐसे बाबाओं के द्घारा रचित पाखंडो का पता चलता है. सुनिता की कहानी भी कलावति से मिलती जुलती है. 22 वर्षिय सुनिता का विवाह रमेश के साथ हुआ था. शादी को पांच साल बीत जाने के बाद भी जब उसे बच्चा नही हुआ तो उसकी सास उसे पड़ौस के रफीक बाबा के पास ले गई. रफीक बाबा ने जवान युवती को देखने के बाद अपनी कुटिल मुस्कान को छुपाते हुए सुनिता की सास से कहा कि ” इसे किसी ने कुछ कर दिया है. इसका अमावास्या की काली रात में शमशान में इलाज करना पड़ेगा………! वंश की चाह में सुनिता की सास उसे अमावस्या की रात एक बार फिर उसी रफीक बाबा के पास ले आई. जहाँ पर रफीक बाबा ने सुनिता की सास को प्रसाद खिला कर बेहोश करके उसी शमशान में अकेली सुनिता के साथ अमानवीय ढंग से बलात्कार कर अपनी हवस की प्यास बुझा डाली. सुनिता के साथ हुए इस अमानवीय कृत्य से वह बेहोश हो गई. उसे जब होश आया तो उसने अपने आपको अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उसके आसपास डाक्टर और नर्स तथा उसके तमाम रिश्तेदार खड़े हुए थे. बिस्तर पड़ी सुनिता को अभी वह अमावस्या की काली रात रह रह कर याद आ रही थी. उसके सभी सगी सबंधी रिश्तेदारों के बीच उसकी सास भी अपनी गर्दन झुकाये खड़ी थी. सुनिता जैसी कई महिलाए अपनी कोख ना भर पाने का मेडिकल कारण जाने बिना ऐसे पाखंडी बाबाओं के चक्कर में पड़ जाती है.
भूत भगाने के नाम पर पुरे देश में फैले पाखंड का हर धर्म -मजहब का व्यक्ति श्किार होता है. रेहाना बताती है कि उसकी अम्मी उसे एक ऐसे तथाकथित चमत्कारी रम्मू बाबा के पास ले गई जिसने उसके साथ पुरे छै महिने तक यौन शोषण किया. वह उस शैतान बाबा का चाहकर भी विरोध नहीं कर सकी क्योकि बाबा ने उसके पुरे परिवार को अपने वश में कर रखा था. एक दिन उसे अंघ श्रद्घा उन्मूलन समिति के कुछ सदस्य मिले जिसे उसने अपनी आपबीती सुनाई. रेहाना की आपबीती सुनने के बाद अंध श्रद्घा उन्मूलन समिति के लोगो रम्मू बाबा का भांडा ही नहीं फोड़ा बाबा के विरूद्घ रिर्पोट दर्ज करवा कर उसे जेल की हवा भी खिलवाई. ड्रग्स एण्ड मैजिक एक्ट के तहत ऐसे पांखडी बाबाओं के खिलाफ पुलिस कार्यवाही करती है. कानून के जानकार कहते है कि ”हमारे कानून में ऐसे ठगो के खिलाफ कठोर दण्ड का प्रावधन है पर शिकायत करने वाले व्यक्ति को अपने ब्कथन पर अडिग रहना चाहिए . महिला उत्थान के क्षेत्र से जुड़ी ‘मुक्तिÓ की संचालिका सुश्री कौशल्या पंवार कहती है कि ” महिलाओ के शरीर में अनेक प्रकार के रोगो के निदान के चिकित्सा विज्ञान का सहारा लेना चाहिए. बाबा और भगत के चक्कर में पडऩे से ऐसी महिलाए अनेक प्रकार के रोगो से ग्रसित हो जाती है. सुश्री कौशल्या ने एक ऐसी ही घटना के बारे में बताया. इन्दौर जैसे महानगर में ज्योति नामक महिला भी किसी भूत भगाने वाले बाबा के चक्कर में पड़ गई. उसे मिर्गी के दौरे पड़ते थे लेकिन परिवार के लोग उस प्रेतआत्माओं का प्रकोप बता कर उसका इलाज भगत भुमकाओं से करवाते चले आ रहे थे. भोपाल में दो सगी बहनो ने अपने पिता की भूत प्रेत के चलते जघन्य हत्या कर डाली. भोपाल की दो मुस्लिम समुदाय की उक्त दो बहनो द्घारा अपने पिता की हत्या के बाद की गई वहशीपन की हरकतों के कारण आसपास के लोग भी डरे सहमें हुए है. सूर्य पुत्री ताप्ती की जन्म स्थली बैतूल जिले के मुलताई नगर के मेघनाथ मोहल्ले में गुरूपूर्णिमा के अवासर पर रात भर आदीवासी समाज के ओझाराम उइके एवं उसकी पत्नि ने अपनी युवा पुत्र की मौजुदगी में निर्वस्त्र होकर अनुठा तांत्रिक अनुष्ठान किया. तथाकथित भूत भगाने के चलते की जाने वाली पूजा के लिए इस तरह का अनुष्ठïान करवा कर लोग अपना छर लोगो के बीच में पैदा करके उनके साथ ठगी करते है.
मनोरोग चिकित्सक सुश्री माधुरी भोभाटकर बताती है कि कई महिला पुरूष मानसिक रोगो के शिकार होते है. ऐसे लोगा इलाज संभव है लेकिन कुछ लोग बाबा भुमकाओं के चक्कर में पड़ कर इलाज के नाम पर फैले पांखड के जाल में फंस जाते है. सुश्री माधुरी कहती है कि मानसिक रोगो से पागल व्यक्तियों का इलाज पागल खाने में करवाने के बजाय कुछ लोग बदनामी के डर से रात अंधेरे में बाबा भुमकाओं के चक्कर में पड़ जाते है. प्रतिवर्ष बारहालिंग नामक स्थान पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर अनेक आदीवासी समाज के लोग भगत भुमकाओं के साथ ताप्ती नदी के किनारे भूत भगाने का काम करते चले आ रहे है. बालाघाट जिले के एक दूरस्थ गांव में पिछले दिनो गांव के कुछ जागरूक नवयुवको ने एक ऐसे ही बाबा को नंगा करके घुमाने का काम किया जो कि भूत भगाने की आड़ में एक विधवा महिला की अस्मत लूटने वाला था. सुखवन्ती (नाम बदला जा चुका है) नामक यह महिला अपने पति की मौत का सदमा बर्दास्त नहीं कर पाई और वह इस मानसिक रूप से जो बिमार हुई कि उसके परिजन उसे डाक्टरों को दिखाने के बजाए बाबा भुमकाओं के पास ले जाते रहे. जवान विधवा महिला की स्थिति देख कर जग्गू बाबा ने उसके परिजनों को बताया कि इसका पति अपने अधुरे तन के मिलन के लिए इसे परेशान कर रहा है. इसका इलाज यह हैेे कि किसी भी व्यक्ति के शरीर में इसके पति की आत्मा को प्रवेश दिला कर इस महिला के साथ एक बार उसके तन का मिलन करवा दिया जाए पर यह काम काफी जोखिम भरा है. जग्गू बाबा ने सुखवन्ती के परिवार वालो को इतना डराया कि वे सब बाबा के ऊपर छोड़ कर चले गए. जग्गू बाबा ने जब सुखवन्ती की अस्मत लूटनी चाही तो उसने प्रतिकार किया. उसकी चीख पुकार को सुन कर कुछ नवयुवको ने जग्गू बाबा को पकड़ दबोचा तथा बाद में उसे नंगा करके घुमाया. हालाकि इस घटना को गांव वालों ने सुखवन्ती की बदनामी के डर से उसे आज तक छुपाये रखा. चूकि इस घटना को यहाँ इसलिए उल्लेख किया जा रहा है ताकि लोग इस प्रकार की घटना से सबक ले सके. महिला मध्यप्रदेश साइंंस सेन्टर पिछले कई सालों से भूत -प्रेत के नाम पर होने वाले पाखण्डों का पर्दाफाश करता चला आ रहा है. इसी तरह का एक अभिनव प्रयाय बैतूल जिला अधं विश्वास उन्मूलन मंच कर रहा है. मंच के सदस्य हर महिने दूर दराज के गांवों में जाकर इस प्रकार के अंध विश्वास को वैज्ञानिक आधार पर चुनौती देकर बाबा भुमकाओं का पोल – खोल कार्यक्रम जारी रखे हुए है. मंंंच के प्रमुख पदाधिकारी सतीश भोभाटकर कहते है कि हमारे मंच के गांव – गांव तक पहँुच रहे सदस्यो एवं प्रशिक्षित स्वंय सेवको के कारण अनेक बाबा भुमका जेल की हवा खा चुके है. राष्टï्रीय हिन्दी दैनिक पंजाब केसरी के छिन्दवाड़ा एवं बैतूल स्थित संवाददाता के अनुसार भूत भगाने के नाम पर बाबाओं का गोरख धंधा को बंद किया जा सकता है अगर प्रदेश की सरकार दूर दराज के गांवों तक अंध श्रद्घा उन्मूलन समिति जैसे संगठनों के प्रशिक्षित सदस्यो को पहँुंंचाए ताकि वे लोगो को समझा सके कि भूत – प्रेत नाम की कोई चीज नहीं है. यह तो मात्र अंधविश्वासी लोगो के दिमाग से जन्मा वहम मात्र है.
इति,
भूतो का मेला
रामकिशोर पंवार
” बाबा मुझे माफ कर दो ……… ! मैं इसे छोड़ कर चला जाऊंगा……..! फिर कभी इसकी डगर नहीं जाऊँगा ! बाबा मुझ पर रहम करो……! गुरू साहेब बाबा की समाधी का चक्कर लगाती वह अस्त – व्यस्त हालत में बदहवास सी युवती की करूण वेदना को सुनने वाला एक पल के लिए स्तब्ध सा रह जाता है कि आखिर यहाँ पर हो क्या रहा है……! वह कौन है जो इस महिला के माध्यम से बाबा सें प्रार्थना कर रहा है….. रामकली नामक वह युवती मुलताई के पास के गांव की रहने वाली थी. उसके पीछे उसका परिवार भी बाबा की समाधी का चककर काट रहा था क्योकि वह युवती को जब भी वह अदृश्य आत्मा परेशान करती थी तो उसे होश तक नहीं रहता था. कई बार वह अपने शरीर के वस्त्रो को तार – तार कर चुकी थी. इस बार भी ऐसा कुछ न हो जाए इसलिए उसे संभालने के लिए उसके परिजन उसके साथ – साथ थे. उस दिन और रात भर मलाजपुर स्थित बंधारा नदी में कड़ाके की ठंड में नहा कर आने के बाद रामकली जैसी कई महिलाए, पुरूष , युवक , युवतियाँ , बच्चे और बुढ़े व्यक्ति गुरू साहेब बाबा की समाधी के चारो ओर एक दुसरे के पीछे रेल गाड़ी के डिब्बो की तरह चक्कर काटते बाबा से रहम की भीख मांगते चले जा रहे थे. किसी फिल्मी के दृश्य की तरह दिखने वाले उस सीन को देखने के बाद आँखे स्थिर हो जाती थी. पूरी दुनिया में इस तरह का विचित्र भूतो का मेला कही भी नहीं लगता है. मलाजपुर के इस बाबा के समाधी स्थल के आसपास के पेड़ो की झूकी पड़ी डालियो पर उल्टे लटके भूत – प्रेत विक्रम और बेताल की याद ताजा करते महसुस हो रहे थे. ऐसी आम धारणा है कि जिस भी प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति को छोडऩे के बाद उसके शरी में समाहित प्रेत बाबा की समाधी के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के किसी भी पेड़ पर उल्टा लटक जाता है. प्रतिवर्ष मकर संक्राति के बाद आने वाली पूर्णिमा को लगने वाले इस अजीबो – गरीब भूतो के मेले में आने वाले सैलानियो में देश – विदेश के लोगो की संख्या काफी मात्रा में होती है. मेले के दिन और रात में ”भूत राजा बहार आ जा ………..! वाली स्टाईल में भूत अपने आप भगने लगते है . इसे देखने वाले के लिए यह किसी हिन्दी रामसे ब्रदर्स की डरावनी भूतो पर आधारित फिल्म या फिर जी हारर शो के धारावाहिक के दृश्य से कम वीभत्स नही रहता. खुली नंगी आँखोंं के सामने दुनियाँ भर से आये लोगो की मौजुदगी मेें हर साल होने वाले इस शो में लोग डरे – सहमेे वहाँ पर होने वाले हर पल का आनंद उठाते है. गुरू साहेब बाबा की समाधी पर लगने वाले वाले विश्व एक मात्र भूतो के मेले में पूर्णिमा की रात का महत्व काफी होता है. हालाकि मेला एक माह तक चलता है. ग्राम पंचायत मलाजपुर इस मेले का आयोजन करती है . अपने देश या विदेश में तो लोग भूतो को लेकर अविश्वास व्यक्त करते है ऐसे लोगो और उनसे जुड़े संगठनो को एक बार मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में स्थित ग्राम मलाजपुर के इस विचित्र मेले में आकर सब कुछ देखना चाहिये कि क्या वास्तव में इस वैज्ञानिक युग में भूतो का भी कोई अस्तिव है भी या नही? वैसे आजादी के पहले कई अंग्रेज यहाँ पर आकर बाबा के चमत्कार को जान चुके है तथा उन्होने भी अपनी पुस्तको एवं उपन्यासों तथा स्मरणो में इस भूतो के मेले का जिक्र किया है. इन विदेशी लेखको की किस्से कहानियो के चलते ही हर वर्ष कोई ना कोई विदेशी बैतूल जिले मे स्थित मलाजपुर के गुरू साहेब बाबा के मेले में आता रहता है.
सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में मध्यप्रदेश के दक्षिण में बसे गोंडवाना क्षेत्र के अति महत्वपूर्ण जिलो में से एक बैतूल विभिन्न संस्कृतियों एवं भिन्न-भिन्न परंपराओं, को मानने वाली जातियो – जनजातियों सहित अनेकों धर्मो व संस्कृतियों के मानने वाले लोगो से भर पुरा है. इस क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ीयों से निवास करते चले आ रहे इन्ही लोगो की आस्था एंव अटुट विश्वास का केन्द्र कहा जाने वाला गुरू साहेब बाबा का यह समाधी स्थल पर आने – वाले लोगो की बताए किस्से कहानियाँ लोगो को बरबस इस स्थान पर खीच लाती है. क्षेत्र की जनजातियो एवं अन्य जाति, धर्म व समुदायों के बीच आपसी सदभाव के बीच इन लोगो के बीच चले आ रहे भूत-प्रेत, जादू-टोना, टोटका एवं झाड़-फूंक का विश्वास यहाँ के लोगो के बीच सदियो से प्रचलित मान्यताओं के कारण अमीट है. देवी – देवता – बाबा के प्रति यहाँ के लोगो की अटूट आस्था आज भी देखने को मिलती है . विशेषकर आदिवासी अंचल की गोंड, भील एवं कोरकू जनजातियों में जिसमें पीढ़ी – पीढ़ी से मौजूद टोटका, झाड़ फूंक एवं भूतप्रेत-चुड़ैल सहित अनेक ऐसे रीति -रिवाज निवारण प्रक्रिया आज भी पाई जाती है . आज के इस वैज्ञानिक युग में जब आदमी के कदम चन्द्रमा तक पहँुच रहे है तब का विज्ञान भले ही चाहे लोगो को कितना ही विश्वास दिलाने का प्रयास करे पर लोग इन सब बातो के प्रति अपनी अटूट श्रद्घा को दर किनार करने को हरगिज तैयार नहीं होगें . आज के चांद तक पहँुचने वाले वैज्ञानिक युग में भूत प्रेत व आत्माये भले न होती होगी पर गांव में आज भी भूत राजा का राज है . भूत प्रेत आदि मानव शरीर की अतृप्त आत्मायें होती है जो अपने पूर्व कर्मो का कर्ज नहीं चुका पाती तब तक भूलोक व पितृलोक के बीच भटकती रहती है . इन विक्षप्त अतृप्त भटकती अणगिणत आत्माओं की मानव शरीर प्राप्त करने की अभिलाषा ही अनेक प्रकार की घटनाओं को जन्म देती है. अकसर देखने को मिलता है कि कमजोर दिल वाले व्यक्तियों के शरीर के अंदर प्रवेशित होकर व्यक्ति को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीकों से मानसिक स्थिति असंतुलित करके कष्टï पहुंचाती है . इन्हीं परेशानियों व भूतप्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाले स्थानों में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के ग्राम मलाजपुर में स्थित गुरूसाहब बाबा का समाधि स्थल अब पूरी दुनिया में जाना- पहचाना जाने लगा है . अभी तक यहाँ पर केवल भारत के विभिन्नय गांवो में बसने वाले भारतीयो को जमावड़ा होता था लेकिन अब तो विदेशो से भी विदेशी सैलानी वीडियो कैमरो के साथ -साथ अन्य फिल्मी छायाकंन के लिए अपनी टीम के साथ पहँुचने लगे है . मलाजपुर के गुरूसाहेब बाबा के पौराणिक इतिहास के बारे में अनेक कथाए प्रचलित है. जनश्रुत्री है कि बैतूल जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर दूर विकासखंड चिचोली जो कि क्षेत्र में पायी जाने वाली वन उपजों के व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रख्यात हैं . इसी चिचोली विकासखंड से 8 किलोमीटर दूर से ग्राम मलाजपुर जहां स्थित हैं श्रद्घा और आस्थाओं का सर्वजातिमान्य श्री गुरू साहेब बाबा का समाधि स्थल .
उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस स्थल का पौराणिक इतिहास यह है कि विक्रम संवत 1700 के पश्चात आज से लगभग 348 वर्ष पूर्व ईसवी सन 1644 के समकालीन समय में गुरू साहब बाबा के पूर्वज मलाजपुर के पास स्थित ग्राम कटकुही में आकर बसे थे . बाबा के वंशज महाराणा प्रताप के शासनकाल में राजस्थान के आदमपुर नगर के निवासी थे . अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य छिड़े घमसान युद्घ के परिणामस्वरूप भटकते हुये बाबा के वंशज बैतूल जिले के इसरूरस्थ क्षेत्र में आकर बस गए . बाबा के परिवार के मुखिया का नाम रायसिंह तथा पत्नि का नाम चंद्रकुंवर बाई था जो बंजारा जाति के कुशवाहा वंश के थे . इनके चार पुत्र क्रमश: मोतीसिंह, दमनसिंह, देवजी (गुरूसाहब) और हरिदास थे . श्री देवजी संत (गुरू साहब बाबा) का जन्म विक्रम संवत 1727 फाल्गुन सुदी पूर्णिमा को कटकुही ग्राम में हुआ था . बाबा का बाल्यकाल से ही रहन सहन खाने पीने का ढंग अजीबो – गरीब था . बाल्यकाल से ही भगवान भक्ति में लीन श्री गुरू साहेब बाबा ने मध्यप्रदेश के हरदा जिले के अंतर्गत ग्राम खिड़किया के संत जयंता बाबा से गुरूमंत्र की दीक्षा ग्रहण कर वे तीर्थाटन करते हुये अमृतसर में अपने ईष्टïदेव की पूजा आराधना में कुछ दिनों तक रहें इस स्थान पर गुरू साहेब बाबा को ‘देवला बाबाÓ के नाम से लोग जानते पहचानते हैँ तथा आज भी वहाँ पर उनकी याद में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है . इस मेले में लाखों भूत – पेत बाधा से ग्रसित व्यक्तियो को भूत – प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है. गुरू साहेब बाबा उक्त स्थानों से चंद दिनों के लिये भगवान विश्वनाथ की पुण्य नगरी काशी प्रवास पर गये, जहां गायघाट के समीप निर्मित दरभंगा नरेश की कोठी के पास बाबा के मंदिर स्थित है .
बाबा के चमत्कारों व आशीर्वाद से लाभान्वित श्रद्घालु भक्तों व भूतप्रेतों बाधा निवारण प्रक्रिया के प्रति आस्था रखने वाले महाराष्ट भक्तों द्वारा शिवाजी पार्क पूना में बाबा का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया .श्री गुरू साहब बाबा की समाधि स्थल पर देखरेख हेतु पारिवारिक परंपरा के अनुरूप बाबा के उतराधिकारी के रूप में उनके ज्येष्ठï भ्राता महंत गप्पादास गुरू गादी के महंत हुये . तत्पश्चात यह भार उनके सुपुत्र परमसुख ने संभाला उनके पश्चात क्रमश: सूरतसिंह, नीलकंठ महंत हुये इनकी समाधि भी यही पर निर्मित है . वर्तमान में महंत चंद्रसिंह गुरू गादी पर महंत के रूप में सन 1967 से विराजित हुये . यहां पर विशेष उल्लेखनीय यह है कि वर्तमान महंत को छोड़कर शेष पूर्व में सभी बाबा के उत्तराधिकारियों ने बाबा का अनुसरण करते हुये जीवित समाधियां ली . भूत – प्रेत बाधा निवारण के लिये गुरूसाहब बाबा के मंदिर भारत भर में विशेष रूप से प्रसिद्घ है . इस घोर कलयुग में जब विज्ञान लोगो की धार्मिक आस्था पर हावी है उस समय में यह सत्य है कि भूत प्रेत बाधा और अनुभूति को झुठलाया नहीं जा सकता है . भूत – प्रेतों के बारे में पढ़ा लिखा तथाकथित शिक्षित तबका भले ही कुछ विशिष्टï परिस्थितियों से प्रभावित होकर इन सब पर अश्विास व्यक्त करे लेकिन बाबा की समाधी के चक्कर लगाते ही इस भूत- प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति स्वंय ही बकने लगता है कि वह क्या है ? तथा क्या चाहता है ? बाबा की समाधी के पूरे चक्कर लगाने के पहले ही बाबा कें हाथ – पैर जोड़ कर मिन्नत मांगने वाला व्यक्ति का सर पटकर कर माफी मांगने के लिए पेट के बल पर लोटने का सिलसिला तब तक चलता है जब तब की उसके शरीर से वह तथाकथित ‘भूत याने कि अदृश्य आत्मा निकल नहीं जाती . एक प्रकार से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि ‘भूत – ‘प्रेत से आशय छोटे बच्चो या विकलांग बच्चों की आत्मा होती है. ‘पिशाच अधिकांशत: पागल, दुराचारी या हिसंक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति या अत्यधिक क्रोधी व्यक्ति का भूत होता है. स्त्री की अतृप्त आत्माओं में चुड़ैल, दुखी, विधवा, निसंतान स्त्री अथवा उस महिला भूत होता है जिसके जीवन की अधिकांश इच्छायें या कामनायें पूर्ण नहीं हो पायी हो . ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले गुरूसाहब बाबा की समाधि के समीप से बहती बंधारा नदी पर स्नान करवाने के बाद पीडि़त व्यक्ति को गुरूसाहब बाबा की समाधि पर लाया जाता है . जहां अंकित गुरू साहब बाबा के श्री चरणों पर नमन करते ही पीडि़त व्यक्ति झूमने लगता है . उसकी सांसो में अचानक तेजी आ जाती है आंखे एक निश्चित दिशा की ओर स्थिर हो जाती है और उसके हाथ पैर ऐंठने लगते है. उस व्यक्ति में इतनी अधिक शक्ति आ जाती है कि आस-पास या साथ में लेकर आये व्यक्तियों को उसे संभालना पड़ता है . बाबा की पूजा अर्चना की प्रक्रिया शुरू होते ही प्रेत बाधा पीडि़त व्यक्ति के मुंह से अपने आप में परिचय देती है . पीडि़त व्यक्ति को छोड़ देने की प्रतिज्ञा करती है . इस अवस्था में पीडि़त आत्मा विभूषित हो जाती है और बाबा के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम कर क्षमा याचना मांगता है . एक बात तो यहाँ पर दावे के साथ कही जा सकती है कि प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति यहां आता है तो वह निश्चित ही यहां से प्रेत बाधा से मुक्त होकर ही जाता है . धार्मिक आस्था के केन्द्र मलाजपुर में श्रद्घालुओं की उमड़ती भीड़ में बाबा की महिमा और चमत्कार के चलते ही पौष पूर्णिमा से एक माह तक यहाँ पर लगने वाला मेला बाबा के प्रति लोगो के विश्वास को प्रदर्शित करता है .
यहां पर सबसे बड़ा जीवित चमत्कार यह है कि यहाँ पर अपनी अभिलाषा पूरी होने पर भक्तो द्वारा स्वयं के वजन भर गुड़ की चढ़ौती तुलादान कर बाबा के चरणों में अर्पित कर गरीबों में प्रसाद बांट दिया जाता है . बाबा के श्री चरणो में चढ़ौती किया गया गुड़ को एक गोदाम में रखा गया है . सबसेे आश्चर्य जनक बात यह है कि यहाँं पर हजारों टन गुड होने के बाद भी मख्खी के दर्शन तक नहीं है. यहाँ पर गुड पर मख्खी होने की कहावत भी झूठी साबित होती है . बाबा के इस मेले में सभी जाति व धर्म के लोग आते है जो बाबा के श्री चरणों में शीश नवाते है . दुनियाँ भर से अनेक लोग मध्यप्रदेश के आदीवासी बैतूल जिले के मलजापुर स्थित ग्राम में बरसो पहले पंजाब प्रांत के गुरूदास पुर जिले से आयें बाबा गुरू साहेब समाधी पर लगने वाले दुनियाँ के एकलौते भूतो के मेले में आते है. नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले के इसाई मिशनरी द्घारा विश्व प्रसिद्घ पाढऱ चिकित्सालय मार्ग से दस किलोमीटर दूर पर स्थित आठंवा मिल से मलाजपुर के लिए एक सड़क जाती है. मलाजपुर जाने के लिए बैतूल हरदा मार्ग पर स्थित ग्राम पंचायत चिचोली से भी एक सड़क जाती है. इस वर्ष भी पौष माह की आने वाली पूर्णिमा की रात को भारत के विभिन्न प्रांतो से प्रेतबाधा से पीडि़त लोग बाबा गुरू साहेब की समाधी पर आना शुरू हो गयें है. पिछले वर्ष जर्मनी की मीडिया टीम इस विश्व प्रसिद्घ गुरू साहेब बाबा के भूत मेले की रात भर के उस डरा देने वाले मंजर का छायाकंन एवं चित्राकंन करके जा चुकी है . महाराणा प्रताप के वंशज रहे बाबा के परिजन मुगलो के आक्रमण के शिकार हुये बाबा अपनेे छोटे भाई हरदास तथा बहन कसिया बाई के साथ आये थे. चिचोली में बाबा हरदास की तथा मलाजपुर में गुरू साहेब बाबा तथा उनकी बहन कसिया बाई की समाधी है . बाबा के भक्तो मेंंं अधिकांश यादव समाज के लोग है जो कि आसपास केे गांवों में सदियों से रहते चले आ रहे है. सबसेेे बड़ी विचित्रता यह है कि बाबा के भक्तो का अग्रि संस्कार नही होता है. बाबा के एक अनुयायी के अनुसार आज भी बाबा के समाधी वाले इस गांव मलाजपुर में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसके शव को जलाया नही जाता है चाहे वह किसी भी जाती या धर्म का क्यो ना हो. इस गांव के सभी मरने वालो को उन्ही के खेत या अन्य स्थान पर समाधी दी जाती है. बैतूूूल जिले के चिचोली जनपद की मलाजपुर ग्राम पंंंचायत में सदियो से हजारों की संख्या मेें बाबा के अनुुुयायी अनेक प्रकार की मन्नत मांगने साल भर आते है .
इति
पारस पत्थर की खोज मे …….!
कहानी :- रामकिशोर पंवार
मैं और कुन्जू बचपन के सहपाठी कम संग साथी ज्यादा थे . हम दोनो एक दुसरे के बिना रहते नहीं थे . साथ खेलने से लेकर पढऩे तक आना – जाना करने से हमारी जुगल जोड़ी को देख कर गांव का हर कोई हमे एक सिक्के के दो पहलू कह कर भी चिढ़ाया करते थे . वैसे देखा जाये तो मेरा एक प्रकार सें गांव का पूरा बचपन कुन्जू के साथ ही बीता . मैं जब अपने गांव को छोड़ कर जैसे शहर आया हम दोनो दोस्त एक दुसरे से ऐसे बिछड़े की सालो – साल बीत जाने के बाद एक दुसरे से नहीं मिल पाये. मुझे याद है कुन्जू के दादा जी जिसे पूरा गांव ”लोहार बाबा कहा करता था वह रोज शाम होते ही कोई न कोई किस्सा कहानी सुनाया करते थे . गांव में अपने घर के सामने ”लोहार बाबा आँगन में खाट पर या फिर टाट पर बैठ जाते थे . ”लोहार बाबा को घेरे आसपास के घरो के बच्चो का झुण्ड उनकी किस्से कहानी तक सुनते थे जब तक की उन्हे नींद नहीं आने लगे . गांवो में पाँच – छै साल की उम्र में अकसर बच्चे अपने दादा – दादी के पास किस्से कहानी सुनने के बहाने उन्हे घेरे रहते थे . नींद आने से पहले कहानी सुनते – सुनते सो जाना बचपन की एक आदत थी जो अब बच्चो में कहाँ रही . …..? मुझे अच्छी तरह से याद है कि ”लोहार बाबा जो कहानी बताया करते थे वह उनके परिवार से जुड़ी थी क्योकि कुन्जु के पुरखो ने ही खेड़ला के महाराजा जैतपाल लगान न चुकाने के बदले में उनके पास जितना लोहा था वह सब दे दिया था जिसे राजा जैतपाल ने पारस पत्थर से छुआँ कर उसे सोना बना दिया था . राजा जैतपाल के पास पारस पत्थर होने की जानकारी राज घराने तक को नहीं थी . राजा ने ही कुन्जू के पुरखो उनके राज्य की सीमा से निकाल बाहर किया था क्योकि उन्हे आशंका थी कि कहीं ए लोग पारस पत्थर होने का भेद न खोल दे .
उस जमाने में जब राजा जैतपाल के राज्य में आज का बैतूल बीते कल का बदनुर नामक कस्बा था जो कि खेड़ला के पास एक छोटी सी बस्ती के रूप बसा था . राज्य मेें रोंढ़ा नामक गांव में सबसे बड़ा बाजार लगता था . लोग दूर – दूर से दो दिन पहले ही बाजार करने आ जाया करते थे . जब कुछ महिने पहले कुन्जू ने यह बात बीरजू को बताई तो वह आश्चर्य चकित रह गया उसने कुन्जू से कहा कि ” भैया , आप भी क्या फालतू की बातें करते रहते हैं……………….! ” पूरी दुनिया में ऐसा कोई पत्थर है नहीं जिसके छुने से लोहा सोना बन जाये ……..! और न कोई धन गढ़ा हुआ है ……. अगर धन गड़ा हुआ होता तो वह आज तक किसी को कहीं तो मिलता है…….? जब खेड़ला के किले में गड़ा हुये धन की बात जब बीरजू ने गांव के कोटवार नौखेलाल को बताई तो वह हंस पड़ा . दुर्गेश के पिता बीरजू आसपास के जाने – माने भगत थे . नौखेलाल को हंसता देख पास खड़ा रामदीन बोला ” नौखे भैया अभी तूने कुछ देखा नही है इसलिए तू बीरजू भैया की कहीं बातो को हंसी में उड़ा रहा है. अगर तुझमे दम है तो आज हमारे साथ चल ………………….!, मैं तुझे बताता हँू कि कहाँ कौन सा खजाना छुपा है…………… ? अब रामदीन की बात सुन कर नौखे को मिर्ची लग गई वह तांव खाकर बोला रामदीन से बोला ”चलो जो होगा देखा जायेगा ………….? यह कह कर आज शाम को ही नौखे , रामदीन , बीरजू , बाबूलाल तथा गोपाल बंगाली के साथ खेड़ला की ओर निकल पड़े . उनके साथ नौखे का साला मोहन ने यह सोच कर निकल पड़ा कि चलो आज मैं भी जीजा कि साथ चल कर तो यह देखू ए लोग कैसे गड़ा धन खोदते है………? उसने भी बीरजू भगत और नौखे के साथ खेड़ला किला जाने के लिए निकल पड़ा.
सतपुड़ा के पठार पर स्थित भारत के दक्षिण जिलो में एक बैतूल को बदनूर के नाम से भी जाना जाता है जो कि कालान्तर से लेकर आज तक उत्तर में नर्मदा घाटी तथा दक्षिण बरार के मैदानो के बीच स्थित है . विवेक सिंधु के अनुसार ईसवी शताब्दी 997 में खेड़ला के राजा इल की राजधानी एलिजपुर भी थी . खेड़ला राजवंश का अंतिम राजा जैतपाल हुआ जिसके पास पारस पत्थर था . जैतपाल काफी सनकी टाइप का था . उसने अपने राज्य के सभी साधु , संतो , मौलवीयो , बाबाओं , सन्यासियो एवं फकीरो को आदेश देख रखा था कि वे जिसे भी मानते है उसका चमत्कार दिखाये ऐसा न करने पर वह उन्हे अपनी काल कोठरी में डाल देता था . उसकी काल कोठरी में लगभग तीन सौ की संख्या में साधु , संत , फकीर बंदी बनाये गये जिसे वह काफी यातना देकर प्रताडि़त किया करता था . इस दौरान उसकी भेट बनारस से आये मुकंदराज स्वामी हुई . मुकंदराज स्वामी ने सशर्त चमत्कार दिखाने की बात कहीं . मुकंद राज स्वामी की यह शर्त थी कि अगर वह चमत्कार दिखाने में सफल होगा तो उसकी काल कोठरी में बंदी सभी साधु – संतो को उसे छोडऩा होगा . राजा जैतपाल इस शर्त पर तैयार हो गया . मुकुंद राज स्वामी के स्पर्श मात्र से गैची , फावड़ा , कुल्हाड़ी , सब्ब्ल अपने आप चलने लगी . राजा जैतपाल इस चमत्कार देख कर चारो खाने चित हो गया और उसने मुकंदराज स्वामी को अपने दरबार में सर्वोच्च स्थान दिया . मुकंदराज स्वामी ने ही इस दौरान विवेक सिन्धु नामक गंथ की रचना की जिसके अनुसार ईसवी 1433 के बाद खेड़ला राजवंश के मालवा से जुड़ जाने की व$जह सें इसका प्रथम गोंड़ राजा नरसिंह राय एक अति महत्वाकांक्षी हिन्दु राजा होने के साथ – साथ उसने अपने राज्य में अपनी भक्ति भावना आस्था तथा क्रूरता के भी कई उदहरण प्रस्तुत किये . खेड़ला के राजा जैतपाल के बारे मेें यह भी जनश्ऱुति है कि वह राजपूत पिता तथा गोंड़ माता की संतान था . चण्डी उसकी ही माँ थी उसनें ही रहमान शाह दुल्हा का सिर उमरी में अपनी तलवार से उसके धड़ से अलग करके अपनी माँ को उसके समाधी स्थल जो कि चिचोली के पास चण्डी दरबार कहलाता है वहाँ पर ले जाकर उसे भेट किया था . जनश्रुति के अनुसार मुकंदराज स्वामी की मृत्यु के पश्चात दिल्ली के मुसलमान शासक के सेनापति रहमान शाह दुल्हा ने एक मुस्लीम फकीर की मौत का बदला लेने के लिए लगभग 12 वर्षो तक खेड़ला के किले को घेर को रखा इन बारह वर्षो के बाद हालकि राजपूत शासक की पराजय हुई लेकिन मुस्लीम सेनापति रहमान शाह दुल्हा को मौत भी हो गई कहा तो यह तक जाता है कि बिना सिर के रहमान शाह दुल्हा और जैतपाल एलिजपुर तक लड़ते गए लेकिन सुबह शौच के लिए जाने वालें महिला के द्वारा टोक देने पर वह वही पर ढेर हो गया आज भी एलिजपुर जो कि अचलपुर कहलाता है में रहमान शाह दुल्हा और जैतपाल की समाधी बनी हुई है . आज भी जिलें का चण्डी दरबार पूरे जिले में आस्था एवं विश्वास तथा श्रद्घा का केन्द्र है . बाबूलाल ने भी दस साल तक इसी चण्डी दरबार में रह कर तंत्र – मंत्र या जादु – टोना सीखा था . बाबूलाल इनके साथ आने के पहले अपने घर से चण्डी दरबार का नीबू और काला धागा साथ ले गया था . चलते – चलते उसने बिना किसी को बताये अपनी जेब में उस काली चुडैल को भी रख लिया था क्योकि वह जानता था कि राजा जैतपाल हो या इल इनका किला खेड़ला जरूर यंत्र – मंत्र – तंत्र से बंधा होगा .
असंख्य लोग खेड़ला के खजाने और पारस पत्थर की तलाश में यहाँ तक आने के बाद जो अनुभव अपने साथ लेकर गए है उन्हे सुनने के बाद कोई भी व्यक्ति यहाँ पर आने की हिम्मत नहीं करता लेकिन लालच के चलते आज भी कई लोग यहाँ पर आते हैं, कई बार तो लोग उस खजाने तक पहुंच भी जाते हैं. लेकिन आज तक उस खजाने से कोई चवन्नी लेकर जीवित वापस नहीं लौट सका है . बाबूलाल ने यह बात नौखे को बता दी थी लेकिन वह कहाँ मानने वाला . उसे अपने साथी गोपाल बंगाली पर पूरा भरोसा था क्योकि वह भी काफी बड़ा जानकार था . लोग पता नहीं क्यो इस सच्चाई को जानने के बाद भी खजाने और पारस पत्थर को पाने की लालसा में अभी भी यहाँ तक आने के बाद हाथ – पैर तुड़वा कर चले जाते हैं . आज कार्तिक-पूर्णिमा की रात थी ऐसे में रोंढ़ा गांव से एक ऐसी ही मित्र मंडली, जिसमें आठ-दस लोग शामिल थे वे खेड़ला की पहाड़ी पर चढ़े चले जा रहे थे. दल का मुखिया बाबूलाल यूं तो एक पैर से अपाहिज था, पर वह चलने और भागने में चीते जैसा फुर्तीला था . वह पहाड़ों पर ऐसे चलता था कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबा लिया करते थे. इस वक्त भी वह सबसे आगे चल रहा था. उसके पीछे था उसका खास आदमी रामदीन, बीरजू, नौखे के अलावा , फिर उसके पीछे थे बबलू व जवाहर. कुल मिलाकर आठ – नौ उस टोली में शामिल थे नौखे ने अपने साथ चोपना बंगाली कैम्प के गोपाल बंगाली को भी अपने साथ इसलिए लाया था . क्योकि गोपाल बंगाली कई बार अपनी तंत्र-मंत्र के द्वारा जहाँ- तहाँ छुपे हुए गड़े धन को खोज निकाला था. जब उसे खेड़ला के किले में मौजूद खजाने के रहस्य के बारे में पता चला तो वह उसे पाने के लिए आज रात में इस टोली में शामिल हो गया जो कि खेड़ला आ पहँुची थी. बाबूलाल खजाने की खोज में कई बार खेड़ला जैसे किलो में अमावस्या और पूर्णिमा की रातो को आ चुका है लेकिन वह हर बार खाली हाथ ही लौटता है वह भी जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर उल्टे पांव ………….! जब भी वह खाली हाथ लौटता है तो वह कसमें खाता है कि अबकी बार चाहे जाने चली जाए पर खाली हाथ वापस नही लौटूगंा लेकिन हर बार की तरह वही होता जो वह नही चाहता है .
‘आज का मुहूर्त अच्छा है…….. ! खेड़ला की पहाड़ी पर चढ़ता हुआ बीरजू भगत अपने साथी मंगल सिंह से बोला…….. ! ‘ मंगल आज रात को देखना हमें इस बार पहले की तरह कुछ ज्यादा गडढा नहीं खोदना पड़ेगा………….! बस बीस-बाईस फीट की खुदाई के बाद ही हमें छप्पर फाड़ कर खजाना मिल जाएगा……………! . ‘मंगल बीरजू की बात पर खुशी से उछल कर बोला ‘ बीरजू भैया तुम्हारे मुंह में घी-शक्कर……………..! मंगल और बीरजू की बातो को अनसुनी करते हुए रामदीन ने बीरजू भगत से कहा ,’ भैया हम तो तो कई बार इस तरह के प्रयास कर करके थक चुके है. देखते हैं, इस बार तुम्हारी वजह से किले में क्या गुल खिलता है……………… ? अपने संगी साथियो की बातो को सुन रहा मनोहर उस बार की घटना को आज तक नहीं भूल पाया था. उसे जब भी वह घटना याद आती तो उसका पूरा बदन सिहर उठता है. मनोहर ने अजीब सा मुँह बना कर बीरजू भगत से कहा ‘ काका पिछली बार तो हमारे साथ गये एक भगत ने हमसे उस रात खजाना अब निकलेगा – तब निकलेगा कह कर रात भर में जबरन तीस फिट का गहरा गड्ïढा खुदवा लिया …………….! और उस रात न तो हमे ‘खजाना मिला और न कुछ ……. , उल्टे और बबलू वगैर की जान के लाले पड़ गये थे……………..! वह तो भगवान की खैर मानो की उस रात हमारे साथ कुछ उल्टा नहीं हुआ वरणा बबलू का बाप हमारी जान ले लेता…………! मनोहर की बातो को सुन कर गोपाल बंगाली से रहा नहीं गया उसने आखिर मनोहर सें पुछ ही लिया कि उस रात ऐसा क्या हो गया था…………. .! मनोहर बोाला उस रात हुआ यूं कि उस रात तीस फिट गहरा गड्ïढा खोदने के बाद हमने खजाने की खोज में बबलू को उस गड्ïढे में नीचे उतारा ही था कि वह उसमें धंसने लगा. तब गहरे गडडे में स्वंय को धंसता देख बबलू जोर – जोर से चीखते हुए चिल्लायाने लगा , ‘मुझे बाहर खींचो, मैं धंसा जा रहा हंू…………………….! ‘ओह…. ‘तब चार-पांच लोगों ने बबलू को उस गडडे में से बाहर खींच निकाला …………! बाबूलाल ने गोपाल बंगाली को आगे बताया, ‘भैया अगर हम उस रात बबलू को बाहर खीचने में जरा-सी भी देर कर देते तो खजाने के चक्कर में बबलू की उस रात बलि चढ़ गयी होती. ‘मुझे तो बाद में पता था कि जिस जगह पर हमने गडड् खोदा था उसके नीचे से काफी गहरी और लम्बी सुरंग निकली हुई है……………!, मनोहर बोला कि गोपाल काका , ‘मैने उस रात उस भगत को यह बात बताई भी थी पर उसने मेरी एक न सुनी और हमसे जबरन तीस फिट गहरा गड्ïढा खुदवाकर समस्या पैदा कर दी थी……………..! ‘लेकिन आज की रात तुम लोगों के सामने कोई भी समस्या नहीं आयेगी ‘गोपाल बंगाली पूरे आत्मविश्वास के साथ मंडली के लोगों से बोला, क्योंकि, आज तुम्हारे साथ कोई साधारण भगत नहीं, बल्कि मैं चल रहा हंू. यूं तो पूर्णिमा की रात होने के कारण पहाड़ी पर चांद की दूधिया रोशनी चारों ओर फैल रही थी, फिर भी सुरक्षा की दृष्टिï से हर किसी के हाथ में एक टार्च थी लोग खेड़ला की पहाँडियो पर चले जा रहे थे.
कई बार मुगलो शासको के आक्रमण के बाद भी खेड़ला राजवंश का यह किला अपनी जगह से टस से मस नहीं हो सका . आज इस किले को पुरात्व विभाग की उपेक्षा एवं गड़े हुए धन की लालसा ने खण्डहर का रूप दे दिया है. विश्व के जाने- माने इतिहासकार टोलमी के अनुसार आज बैतूल बीते कल के अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दु था. इस बैतूल में ईसा पश्चात 13० से 161 कोण्डाली नामक राजा का कब्जा था जो कि गौंड़ जाति से अपने आप संबधित मानता था. इस अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दु कहा जाने वाला जिला बैतूल यँू तो गोंड राजा- महाराजाओं की कई सदियो तक से रियासत के अधिन रहा है. मुगलो के आक्रमण के पश्चात ही 35 परगनो वाले खेरला राजवंश के किले को मुगलो ने अपने अनिश्चीत हमलो के बाद हुए समझौते के तहत उसे खेडला से मेहमुदाबाद नाम दिया गया . बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग दस कि.मी. की दूर पर स्थित ऐतिहासिक महत्व की धरोहर कहलाने वाला खेड़ला किला आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मौजूद है . खण्डहर में तब्दील हो चुके इस किले की दीवारों के बेजान पत्थर आज भी अपने साथ किले में छुपे खजाने को हासिल करने की नीयत से हुए बर्बरता पूर्वक व्यवहार और दुराचार को चीख-चीखकर सुनाते है . गुजरे इतिहास की गाथा को ताजा करते खेड़ला के किलो के इन पत्थरो को जब भी यहाँ पर आने- जाने वालो ने एक पल के लिए छुने का प्रयास किया तो उसका स्पर्श मात्र ही आने- जाने वाले को एक पल के लिए स्तब्ध कर देता है.
बाबूलाल जो कि इस मंडली का मुखिया था,वह पास के रानीपुर गांव का रहने वाला था. उसकी आसपास के गांवो में भरने वाले साप्ताहिक बाजार में परचून की दुकान लगती है. अकसर उसकी परचून की दुकान पर आने – वाले ग्राहको में ऐसे लोगो की संख्या ज्यादा होती है जो कि गड़े हुए मुर्दे उखाडऩे में माहिर होते है. बाबूलाल के सलाहकारो एवं जानकारो में आसपास के गांव के वे आदिवासी हुआ करते थे, जो तंत्र-मंत्र वगैरह जानते है. बाबूलाल का अधिकांश समय इन लोगों के पास बैठकर, गड़ा हुआ धन खोजने व उसे निकालने की तरकीब में ही बीता करता था. इस बात को उसके साथ वाले व रिश्तेदार भी जानते थे. बबलू व उसकी अच्छी पटती थी. गड़े धन के चक्कर में अक्सर दोनों कई बार रात-रात भर गायब रहा करते थे . एक दिन बबलू के पिता रघुनंदन ने एक दिन समझाइश देते हुये बाबूलाल से कहा भी था, ‘अरे बाबूलाल, ये तुम लोग रात-रात भर कहां रहते हो…….? तुम लोग खजाना पाने का चक्कर छोड़ कर मेहनत मजदुरी करो…… ‘भैया, आप भी क्या फालतू की बातें करते हैं. बाबूलाल ने बबलू के पिता से कहा . बाबूलाल बोला ” अपनी झोपड़ी में चार आदमी के सोने की तो जगह है नहीं, इसलिए हम चाचा-भतीजा उधर माता मंदिर के पास बने चबूतरे पर सोते हैं, और कहीं नहीं जाते हैं ……….. तुम्हें यकीन नहीं है हमारी बात का तो तुम कभी भी माता मंदिर पर आकर देख सकते हो………………! आज भी बाबूलाल रघुनंदन से यही झूठ बोल कर बबलू को अपने साथ इस अभियान में लाया था. जब से बबलू ने पढ़ाई – लिखाई बंद करके वह दुकानदारी करने लगा था वह भी बाबूलाल की तरह हाट बाजार में अपनी दुकान लगाता था . खजाने की चाह उसे भी थी. इसीलिये बाबूलाल के हर बार के खजाना खोजो अभियान में वह उसके साथ रहता था . बबलू को पिछली बार की घटना अच्छी तरह याद है क्योकि उसके पीछे चले आ रहे मनोहर को पहाड़ी पर चढ़ते समय काली नागिन ने डस लिया था . वह तो अच्छा था कि उस वक्त साथ में डोमा था . उसने हिम्मत नहीं हारी . वह सांप का जहर उतारना जानता था . उसने अपनी मंत्र साधना के बल पर उस काली नागिन को बुलाया और उसे मनोहर का जहर चूसने के लिए मजबूर किया . इस तरह उस बार मनोहर चाचा की जान बच पाई थी.
इधर इस टीम में शामिल जवाहर मामू को किसी ने बता दिया था कि अगर वह खजाने की खोज में यदि चार बार बच गया तो उसे पांचवी बार वह खजाना मिल जायेगा . आज जवाहर मामू फूले नहीं समा रहा था क्योकि वह चार बार तो मरते – मरते बचा . वह इस बार इसलिए ही इस बार खजाने की खोज में जा रहा था, इसलिए इस बार उसके मन में विशेष उत्साह था. पहाड़ी पर कुछ देर बाद जब वे सब लोग पहुंच गये तो किले के बाहर खंडहर के पास बबलू ने ठंड दूर करने के उद्देश्य से सूखी लकड़ी व पत्ते जमा कर उसमें आग लगानी चाही तो मनोहर ने उसे रोका, ‘इतनी रात गये पहाड़ी पर आग जलाना ठीक नही होगा. ‘चाचा मैं तो ठंड से कांप रहा हँू, इसलिये मैं तो आग जलाकर ही रहूंगा. बबलू ठंड से कांपता हुआ कह उठा. वह माना नहीं, मना करने पर भी उसने आग जलाकर ही छोड़ी. आग जब जल ही गयी तो मंडली के सभी लोग आग के चारों ओर बैठकर उस पर हाथ तापने लगे.
उसी वक्त एक बूढ़ा न जाने कहां से वहां आ गया. वह कुछ देर तक उन लोगों के पास चुपचाप खड़ा रहा. वह लगातार बाबूलाल को घूरे जा रहा था. काफी देर बाद वह बाबूलाल के नजदीक आकर बोला, ‘क्यों तू हर बार अपनी मौत बुलाने चला आया करता है यहां……..? जाने की खैर मानता है तो भाग जा यहां से…………………! मैं आज पहली और आखिरी बार कहता हंू कि तू भाग जा अपनी मंडली के साथ यहां से. आज की रात तेरे और मंडली के लिये अच्छी नहीं है………………….! बूढ़े की बात सुनकर हर कोई चौंक पड़ा. बाबूलाल ने इशारे से गोपाल बंगाली से कुछ कहा. इस पर गोपाल बंगाली जोर से एक मंत्र गुनगुनाने लगा. मंत्र का प्रभाव कहिये या नियति का फेर, वह बूढ़ा पल भर में ही वहां से गायब हो गया. उसके गायब होते ही सभी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. गोपाल बंगाली मुस्कुराकर बाबूलाल से बोला ‘हम खजाने के रखवाले पहले शैतान को मारने में सफल हो गये हैं. अब केवल नौ रखवालों की तलाश और करनी है हमें. अब हमें यहां से आगे चल देना चाहिए, किसी भी प्रकार की देर हम सबकी जान जोखिम में डाल सकती है.
यह सुनकर सभी उठ खड़े हुए. हाथ में टार्च लेकर सभी बाबूलाल व बंगाली के पीछे-पीछे चलने लगे. वे किले के अंदर प्रवेश करने ही वाले थे, तभी मंत्रोच्चार करता गोपाल बंगाली अचानक चीख कर गिर पड़ा. बाबूलाल भगत भी खतरे को भांप चुका था उसने अपने साथ आये लोगो से चीखते हुये कहा ‘संभलो. वे संभल पाते इससे पहले ही किले के अंदर से सिर कटी लाशों का एक – एक करके बाहर की ओर गिरना शुरू हो गया. अचानक हुये हमले से बाबूलाल व उसकी मित्र मंडली सकपका गई क्योकि उन्हे पता ही नही था की वहाँ पर क्या – क्या हो सकता है. हालाकि बाबूलाल पूर्व से इन सब तमाम घटनाओं से परिचित था क्योकि उसका ऐसी घटनाओं से कई बार पाला पड़ चुका था. बाबूलाल भी थोड़ा तंत्र-मंत्र जादू – टोना क्रिया का जानकार था. उसने भी अपनी तंत्र -मंत्र शक्ति का प्रयोग करके लाशों को गायब करके गोपाल बंगाली को फिर से ठीक करके उसे उठा लिया . गोपाल बंगाली ने बाबूलाल को प्रशंसा भरी नजरों से आश्चर्य चकित होकर उसकी ओर देखते हुए कहा, ‘बाबूलाल भाऊ तू भी तंत्र-मंत्र जानता है ……? आज अगर तू नहीं होता तो मैं अपने घर नहीं जा पाता ………? बाबूलाल बोला काका ‘हां थोड़ी बहुत जानकारी तो रखनी ही पड़ती है.
रात काफी हो चुकी थी अब उन सबको किले के अंदर जाने से पहले लोहे के विशाल दरवाजे को खोलना था. सब लोगों ने ताकत लगाकर दरवाजे को धकेला तो वह ‘चर्र-चर्र की आवाज करता हुआ खुल गया. पास पड़े ढोल पर बाबूलाल ने थाप मारी तो किले के अंदर से मानव किलकारी व बच्चों की रोने और चीखने चिल्लाने की आवाजे आना शुरू हो गई . बाबूलाल ने फिर ढोल पर थाप मारी तो गरड़-गरड़ करती जमीन उनके पैरों के नीचे से खिसक गई. अब उन्हें सामने किले के अंदर एक सुरंग दिखाई दी. सुरंग के मुहाने पर दीवार पर कुछ लिखा हुआ था और एक रेखाचित्र बना हुआ था. बाबूलाल व उसके साथ यहां कई बार आ चुके थे . गोपाल बंगाली ने अपनी पोटली खोलकर उसमें से एक पुतले को निकाल कर उसे किले के अंदर फेंका तो जोरदार धमाके के साथ एक जिन्न ने प्रकट होकर सभी को हैरत में डाल दिया.’क्या हुक्म है, मेरे मालिक? जिन्न ने गोपाल बंगाली से पूछा. ‘मैं इस किले के अंदर छिपे करोड़ों के बहुमूल्य खजाने का पता जानना चाहता हंू. गोपाल बंगाली ने जिन्न से कहा. ‘मेरे मालिक, मैं आप लोगों को खजाने तक पहुंचा तो सकता हंू, पर उसे ला नहीं सकता. ‘अच्छा ठीक है, तू हम सब को वहां तक ले चल.पल भर बाद ही वे सब एक ऐसे स्थान पर थे, जिसकी कल्पना से ही बदन में कंपकंपी आ जाती है. उस वक्त वे करोड़ों के अनमोल खजाने को अपनी नंगी आंखों से देख रहे थे. बाबूलाल ने जब उस खजाने को छूना चाहा तो वह आगे खिसक गया. ज्यों-ज्यों कोई भी उस खजाने के पास पहुंचता, खजाना आगे की ओर खिसकता जाता. कई घंटे की मेहनत के बाद भी जब कोई भी उस खजाने को छू न सका तो गोपाल बंगाली ने एक बार फिर पोटली से एक पुतला निकाला और उसे खजाने की ओर फेंक दिया. उसी वक्त एक तेज प्रकाश हुआ, जिससे सभी की आंखें चकाचौंध हो उठीं. उस तेज प्रकाश से एक जिन्न प्रकट हुआ.
‘गुलाम जिन्न, सारा खजाना समेटकर ले चल. गोपाल बंगाली ने उस जिन्न को आदेश दिया.जिन्न ने उसके आदेश का पालन नहीं किया. वह चुपचाप खड़ा रहा. यह देखकर गोपाल बंगाली ने जिन्न से पुन: कहा, ‘गुलाम जिन्न, मेरा कहना मान, वरना मैं तुझे जलाकर राख कर दूंगा.जिन्न फिर भी नहीं हिला तो गोपाल बंगाली ने पोटली खोली और एक नींबू जिन्न की ओर फेंका. लेकिन जिन्न फिर भी किसी पुतले की तरह जमा खड़ा रहा. इससे खीझ कर गोपाल ने पूरी ताकत के साथ जिन्न के ऊपर मंत्रोच्चारण कर एक काले धागे से बंधी हड्डïी फेंकी तो वह चीखकर उससे बोला, ‘मेरे मालिक, मेरी जान फंस गई है. ऐसा लगता है कि कोई मुझसे बड़ी ताकत इस खजाने की रखवाली कर रही है. आप ऐसा करें कि अपने साथियों के साथ यहां से फौरन चले जाएं, वरना आप सबकी जान जा सकती है. आज पूर्णिमा है, उस ताकत को मुझसे बड़ी बलि चाहिए.
जिन्न की बात को अनसुनी कर गोपाल बंगाली उस अदृश्य शक्ति से भिड़ गया. कुछ देर की कोशिशों के बाद ही उसको लगने लगा कि उसके दांव उल्टे पड़ते जा रहे हैं. वह पसीने से तरबतर होकर बाबूलाल से कह उठा, ‘बाबूलाल जल्दी करो, मेरी शक्ति उल्टी होकर मुझ पर ही भारी पड़ रही है. कहीं मैं मर न जाऊं. इतना कहकर गोपाल किसी कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा. इस तरह गोपाल बंगाली ने इस अभियान के बारे में डींगे हांकी थी, वे धरी-की-धरी रह गई. यह देखकर एक बार फिर बाबूलाल ने बांस का वंश लोचन सिद्घ कर, उसे पूरी ताकत के साथ फेकने पर गोपाल की जान में जान आई .बाबूलाल सोचने लगा कि लोग पता नही क्यों बिच्छु का मंत्र मालूम नहीं और सांप के बिल में हाथ डाल बैठते है.
बाबूलाल को पता था कि राजा इल बहँुत बड़ा तंत्र – मंत्र विद्या का जानकार था . उसके किले से खजाना निकाल पाना इतना आसान नहीं है . आज का ग्राम दुधिया के पास स्थित अखंहर में परिवर्तित दुधिया गढ़ का किला किसी जमाने में आदिवासी राजा इल की राजधानी हुआ करती थी. राजा इल और उसकी पत्नि रानी चण्डी अपनी प्रजा को दर्शन देने के लिए दुधिया गढ़ के किले से गोधना के जंगलो में बने राजा – रानी के गुबंदो तक आना – जाना करते थे . गोधना के जंगलो में बने राजा इल और रानी के आराम करने वाले गुबंदो में रानी का गुबंद इस तकनीकी से बना था कि उसमें आवाज गुजंती थी तथा कम सुनाई देने वाले बहरे व्यक्ति को आज भी इस गुबंद में आवाज गुंजती हुई साफ सुनाई देती है. रानी चण्डी को कम सुनाई देता था इसलिए रानी का गुंबद इस तकनीकी पर आधारित बनाया गया था. किसी जमाने में राजा की रानी चण्डी का दरबार लगता था . राजा इल ने अपना सारा खजाना किले की सुरंग से बने तलघर में छुपा रखा था . उस समय दिल्ली की सल्तनत क्रूर मुगल शासक औंरगजेब के हाथों में थी. उस समय जब राजा इल अपनी तय शुदा वार्षिक लगान को मुगल शासक को नहीं चुका पाया तो मुगल शासक औंरगजेब ने राजा इल के किले पर हमला करवाने के लिए सेना भेज दी . जब हमलावार सेनापति ने अपनी सेना के साथ खेड़ला के किले को चारो ओर से घेर लिया . राजा इल अपने परिवार की जान को खतरे में देख कर उसने अपनी पत्नि चण्डी रानी छोटी बेटी छोटी चण्डी तथा अपने वफादार नौकर काल्या को लेकर सुरंग के रास्तो सें बाहर निकलने लगा तो इस बात की भनक मुगल सेना को पहँुच गई . मुगल सेना ने सुरंग के दोनो छोर पर सुर्ख लाल मिर्ची डाल उसमें आग लगा दी. जिसके चलते दम घुटने के कारण राजा इल का पूरा परिवार मर गया. गोपाल बंगाली को जब यह बात बाबूलाल ने बताई तो स्तब्ध सा रह गया. बाबूलाल बार – बार कह रहा था कि देखो जिद मत करो इतना आसान नहीं है इस किले से राजा इल का खजाना तथा राजा जैतपाल का वह पारस पत्थर हथियाना पर लोग नहीं माने और अपनी – अपनी साधना में भिड़ गये .
खेड़ला के राजा ने इल की रानी चण्डी ने अपने पति के जीवित रहते हुये स्वंय को सति साबित किया था . इसलिए हर कोई चण्डी माँ के रूप में उसे पूजता है . रानी चण्डी कई अवसरो पर ऐसे चमत्कारो को अपनी प्रजा को दिखा चुकी थी कि प्रजा उसे देवी की आज भी पूजती चली आ रही है . जानकार लोगो तथा कुछ इतिहासकारो का यह भी तर्क चण्डी माँ का प्रभाव पाढुर्णा के आसपास आज भी देखने को मिलता है . विश्व प्रसिद्ध पाढुर्णा के गोटमार मेला की शुरूआत से लेकर अंत तक चण्डी माता की जय जयकार और इस मेले के पीछे लोगो का पागलपन भी इस बात प्रमाणित उदाहरण है कि बैतूल , छिन्दवाड़ा सिवनी , सहित वे सभी जिले जो कि गोंड़ राजाओं के आधिपत्य में थे वे चण्डी को देवी माँ की तरह पूजते चले आ रहे है . पारस पत्थर को लेकर आज भी कई किस्से कहानियाँ इस किले और रावणवाड़ी के तालाब की के हिस्सो में खुदाई का कारण बनता चला आ रह है. बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र दस किलो मीटर की दूरी पर स्थित यह रहस्य राजा के मरने के बाद ही आम हो पाया था. इधर जिस स्थान पर रानी चण्डी की मौत हुई थी उसी स्थान पर एक शिला (पत्थर) के अंदर से ऊपर की ओर निकलने के बाद ग्रामिण लोगो ने उसे ही चण्डी देवी मान कर पूजना शुरू कर दिया. इस स्थान पर प्रगट चण्डी की शिला (पत्थर) को समीप के गांव सिंगार चावड़ी के यादवो अपने गांव ले जाकर उसका मंदिर बनाना चाहा लेकिन उक्त शिला (पत्थर) अपने स्थान से टस से मस तक नहीं हुई , जिससे नाराज यादवो ने छेनी – हत्थोड़ो से उस शिला (पत्थर) के उसके टुकड़े करके उसे बैलगाड़ी से ले जाना चाहा लेकिन वह आज भी अपने स्थान पर ज्यों की त्यों है . इस स्थान पर एक अन्य जमीन से निकली छोटी शिला (पत्थर) को रानी की बेटी छोटी चण्डी तथा समीप के एक पेड़ को राजा इल का वफादार नौकर काल्या जी मान कर पूजा जाता है.गोधना स्थित चण्डी दरबार तक जाते समय रास्ते में पडऩे वाली कुछ मजारो को राजा के परिजनो के रूप में पूजा जाता है उक्त परिजन राजा इल के किले पर हुये मुगल सेना के हमले में मारे गये थे .
मुगल शासको से 12 साल तक लड़तें रहे जैतपाल ने आखिर में सबसे पहले उस पारस पत्थर को इतनी ताकत से फेका कि वह किले के सामने मात्र 1.5 किलो मीटर की दूरी पर खुदे रावणवाड़ी के तालाब में जा गिरा. पारस पत्थर के चक्कर में रावणवाड़ी ऊर्फ खेडला ग्राम के पास स्थित खेडला के किले की कई बार खुदाई हो चुकी है. बाबूलाल को यह बात अच्छी तरह से पता थी कि वे लोग जिस पारस पत्थर की खोज में यहाँ आये है वह उन्हे इतनी आसानी से नहीं मिलने वाली क्योकि राजा इल को भी पारस पत्थर इतनी आसानी से नहीं मिला था . किले के सामने 22 हेक्टर की भूमि पर बना बैतूल जिले का सबसे बड़ा तालाब जिसमें एक सोने का सूर्य मंदिर धंसा हुआ है . इस मंदिर के लिए बाबूलाल कई बार खुदाई कर चुका है लेकिन वह हर बार बुरी तरह मुसीबतो के चक्कर में फँसा है इस बार भी नहीं आना चाहता था पर गोपाल बंगाली कहाँ मानने वाला था. उसने ही उसे जबरन घसीट कर ले आया था .
बीच तालाब में मंदिर के धंसे होने के कारण उसे चारो ओर से हजारो टन मिटट्ी के मलबे को आज तक कोई भी पूर्ण रूप से निकाल बाहर कर पाया है. इस मंदिर को लेकर आसपास के लोगो में प्रचलित एक अधंविश्वास के अनुसार मंदिर के लिए मंदिर की खुदाई करने वाले को उसके सपने में यह मांग की जाती है कि वह अगर मंदिर में छुपे खजाने को पाना चाहता है तो उसे सबसे पहलें अपने पहले पुत्र एवं पहली पुत्र वधु की नरबलि देनी होगी. आज यही कारण है कि मंदिर तक कोई भी पहँुच पाने में सफल नहीं हो सका है. बरसो पहले राजा इल की नगरी में एक बार बहुत जमकर अकाल पड़ा. सूखे व अकाल से प्रजा में त्राहि-त्राहि का आलम व्याप्त हो गया. तब कोई संत वहां से गुजरे . राजा जैतपाल ने उनकी आवभगत कर उनसे राज्य में फैले सूखे व अकाल के निदान का उपाय पूछा. राजा जैतपाल के आतिथ्य से प्रसन्न महात्मा ने राजा जैतपाल से कहा कि वह अपने किल के ठीक सामने 22 एकड़ की भूमि पर तालाब खुदवाये तथा उस तालाब की खुदाई के बाद उस तालाब के बीचो बीच भगवान भोलेनाथ के मंदिर का बनवा कर उसके परास शिवलिंग की स्थापना कर उसकी प्रथम पूजा अपने पहले पुत्र व पुत्र वधू से करवाये साथ ही सूर्य के ताप को कम करने के लिए उसे भगवान सूर्य का सोने का भव्य मंदिर बनवाना होगा अगर वह ऐसा करता है तो उसके राज्य में तथा इस तालाब में कभी पानी की कमी नहीं आएगी. महात्मा की सीख के अनुसार जब राजा ने अपने पुत्र व वधु मंदि स्थापना के बाद पूजन के लिए भेजा तब पुत्र व वधु का पूजन पूरा भी नहीं हुआ था कि वह स्थान पूरा का पूरा जलमग्न हो गया और राजा और उसके पुत्र एवं वधु उस जल में जल मग्र हो गए. राजा इल के पुत्र एवं वधु की जल समाधि के बाद से लेकर आज तक यहां कभी पानी की कमी लोगों को महसूस नहीं होती हैं. राजा जैतपाल के पास जो चमत्कारिक पारस पत्थर था जो उन्हें उसी महात्मा ने अपनी सेवा से प्रसन्न होकर दिया था. साथ ही इसके दुरूपयोग करने का मना किया था लेकिन राजा जैतपाल ने अपने राजपाट के दौरान लगान न चुकाने वाले किसानो से लगान के बदले उसके घर के सभी लोहे के सामान को हथियाना शुरू कर दिया . राजा जैतपाल ने अपने खजाने में किसानो से मिलने वाले लोहे के सामन पारस पत्थर से छुआ कर उसे सोना बना कर अपने किले के अंदर खुदवाये विशाल टाके में जमा कर रखा था. राजा जैतपाल इस चमत्कारिक पारस पत्थर से लोहा को छुआने का काम पूर्णत: गुप्त रूप से करते थे लेकिन कुन्जू के पुरखो को यह बात पता चल चुकी थी कि राजा जैतपाल ऐसा करता है क्योकि गांव के लोहार होने के कारण सबसे अधिक लोहा उन्ही के पास रहता था. राजा ने एक दिन उसके पास का पूरा लोहा बुलवा लिया और उसे भी पारस पत्थर से छुआ कर सोना बना दिया. अब लोहारो के सामने सबसे पहले संकट इसस बात का आया कि बिना लोहा के वे अपना पेट कैसे पालेगे…….? राजा जैतपाल ने उन्हे अपने राज्य से निकाल बाहर कर दिया. वे जैतपाल के मरने के बाद रोंढ़ा गांव में आकर बस गये तभी से इसी गांव के रहवासी हो गये .
रावणवाड़ी के इस तालाब में खेडला के राजा द्वारा मुगलो से आक्रमण के पश्चात उसके पास मौजूद अमूल्य पारस मणी को फेकने की इस कथा ने गोरे अग्रेंजो तक को विचलित कर दिया था. बताया जाता है कि चार हाथियो के पैरो में लोहे की मजबुत साकल बांध कर उन्हे तालाब के चारो ओर घुमाया गया था जिसमें से मात्र एक ही साकल के लोहे के होने की साकल के सोने के बन पाई थी . आज एक बार फिर अपनी किस्मत की साकाल को सोने का बनाने के चक्कर में रोंढ़ा गांव की पूरी टीम खेड़ला आई हुई थी. गोपाल बंगाली जब पूरी तरह हार गया तब बाबूलाल ने उसे सलाह दी कि क्यो बेवजह अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हो ……….? पारस पत्थर यूँ नही मिलने वाला…….? बाबूलाल भगत की बात मान कर गोपाल और उसकी पूरी टीम वापस बैंरग लौट आई क्योकि वे रात भर के अदृश्यो हमलो से वे यह जान सके थे कि दुनिया की कोई भी ताकत उस तालाब से पारस पत्थर को नहीं निकाल पायेगी. आज राजा इल का किला आज भी भले चारो ओर हरे भरे खेत और खलिहानो से घिरा हो लेकिन बीते कल वह जंगल और जंगली जानवरो से घिरा हुआ था. आदिवासी होने के कारण राजा ‘इलÓ के किले का प्रवेश द्वार 7० से 8० फीट ऊंचा होने के कारण वह किसी भी सीधे हमला का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था. लगभग दो ढ़ाई सौ बड़े मजबूत पत्थरों को कलात्मक रूप से तराशकर उनका उपयोग शानदार सीढिय़ों के निर्माण में किया गया था . प्रवेश द्वार से राजा के महल की दूरी साढ़ चार सौ गज की है. अधिक ऊंचाई पर बने राज इल के इस किले से पूरा आसपास का क्षेत्र दिखाई पड़ जाता है. किले तक पहँुचने वाली सभी संदिग्ध गतिविधियो पर पैनी नजर रखने के बाद भी इस किले पर अनेक बार आक्रमण हुए है वह सिर्फ इस महल में छुपे खजाने एवं पारस पत्थर के कारण जो इन पंक्तियो के लिखे जाने तक न तो मुगलो को मिला न आज के लालची इंसान को जिसने इसकी खोज में पूरे किले को खण्डहर का रूप दे दिया है.
इति,
रहस्य रोमांच से भरपूर एक सत्यकथा
बाबा कहा गया……….!
– रामकिशोर पंवार
सावन का महिना था बारीश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मोरखा गांव के करीब दो ढाई सौ लोग बेल नदी के उस पार खडे मंदिर में होने वाली रामायण को पढने एंव सुनने जाने के लिए बेल नदी में आई बाढ के उतरने का इंतजार कर रहे थ .गांव की ओर खडे इन दो ढाई सौ लोगो में शामिल भरत चौरसे ने तभी देखा कि नाग देव मंदिर में सावन के महीने में रामायण करवाने वाला बाबा लोगो से कह रहा था कि डरो मत नदी को पार करके आओ और जाओं ………..! कुछ लोंगो ने आखिर बाबा की बात मान कर बाढ आई बेल नदी में सोमवार की उस काली अंधीयारी रात को आखिर हिम्मत करके पांव डाला………..! नदी का पानी जो कि नदी के पाट के पर से ओव्हर फलो हो रहा था वह अचानक घुटने के नीचे आ गया लोग आश्चर्य चकित होकर नदी के इस पार से पार हो गए और उस पार के लोग नदी के इस पार हो गए. रात भर रामायण का पाठ होता रहा.लोगो रामायण का पाठ पढ जरूर रहे थे लेकिन उनका ध्यान ले देकर बस उस घटना की ओर जाकर सहम जाता था कि आखिर बेल नदी जिसमे बाढ आई थी उसका पानी घुटने के बराबर कैसे हो गया……! सुबह जब सब लोगो ने रामयण को समाप्तर कर पूजा अर्चना कर वापस अपने गांव की ओर जाने के लिए रूख किया तो बेल नदी किनारे आकर उनकी आंखे चकरा गई.रात की घटना को याद करके वे भौचक्के से रह गए जिस नदी को घटने के बराबर पानी के बीच पार किया था आज वह सुबह एक बार फिर अपने दोनो पाटो ओव्हर फलो चल रही थी. नाग मंदिर का बाबा भी लोगो की मनोदशा को देख कर मंद – मंद मुस्करा रहा था. सुबह से शाम हो गई लेकिन बेल नदी का पानी जो कि दोनो पाटो के ऊपर से ओव्हर फलो होकर बह रहा था वह कम नहीं हुआ. बाबा ने लोगो ने कहा कि ऐसा करो आगे जाकर नदी को तैर कर पार कर लो. जिसे तैरना नही आए वह नदी में नही जाना……..! लोगो को आखिर घर जाना था क्योकि घर के लोग भी इंतजार कर रहे थे कि रात को रामायण पढने गए अभी तक क्यो नहीं आए जबकि सुबह से शाम होनेे को चली थी. लोगो के सामनें सामस्या थी कि आखिर लबालब पानी से बह चली बेल को पार करना अपनी मौत को दावत देने के समान था. इससे पहले बायगांव के 50 लोगो ने बेल नदी को पार करने का साहस दिखलाया था जिसमें मात्र एक बच्चा और एक महिला ही बच सकी थी शेष की आज तक अस्थी क्या तन के कपडे तक नहीं ढुढे से मिले. आज इस घटना को चालिस साल से अघिक हो गए लेकिन न तो बेल नदी भूल पाई है और न बायगांव के लोग. मोरखा वालो को तो इस हादसे को याद करने के बाद पसीना टपकने लगता है. आखिर चालिस लोगो को नदी में बह जाना कोई छोटी – मोटी घटना नही थी. भरत ने अपने साथ आए साथी रामदीन से कहा यार जल्दी से घर चलो नहीं तो शााम हो जाएगी तो नदी पार करना भी मुश्कील हो जाएगा. लोग -जैसे – तैसे नदी पार करके जैसे नदी के दुसरे छोर पर आए कि बेल नदी का पानी एक बार फिर घुटने के बराबर कम हो गया और वे लोग नदी पार करके आ गए जो तैरना नही जानते थे.
मोरखा के पास से बहती बेल नदी के ठीक बीच में एक पत्थर गडा हुआ है. यह पत्थर ही दो जिलो की सीमा तय करता है नदी का एक छोर बैतूल तथाा दुसरा छोर छिन्दवाडा जिले की सीमा में आता है. सावन के महिने में पिछले दो – तीन सौ साल से लगातार नदी के उस पार दिन्दवाडा जिले की सीमा में बने नाग देव के मंदिर में रामायण पाठ होता चला आ रहा है. मोरखा बस्ती के लोग इस रामायण पाठ में कब से भाग ले है उन्हे भी कहलाता नही पता लेकिन नाग देव मंदिर आज भी सावन के महिने और महा शिवरात्री पर बडा महादेव जाने वाल शिव भक्तो की एक प्रकार से पहली सीढी है यही पूजा अर्चना करने के बाद ही बडा महादेव की ओर निकला जा सकता है. भरत जब अपने धर पहुंचा तो उसने आज की घटना अपने मात- पिता को बताई तो सभी आर्श्च चकित रह गए पुरा गांव एक बार फिर नदी के उस पार जाकर उस चमत्कारी बाबा के दिव्य दर्शन करना चाहता था जिसने यह चमत्कार दिखलया लेकिन यह क्या पिछले एक माह से नाग मंदिर में अनुष्ठान कर रहा वह बाबा आज दिख नही रहा है जो कि सावन महिने के हर सोमवार को अखंड रामायण का पाठ करवाता था. आज तो बल नदी में न तो बाढ थी और न वह खतरे के निशान को पार कर रही थी. मोरखा के पास स्थित नाग देव के इस मंदिर की इस अदभुत चमत्कारी घटना को देखने के बाद भरत चौरसे तो थर- थर कांपने लगा. उसे पता नहीं क्या हो गया उसने नाग देव मंदिर जाकर अपनी भूल चूक की माफी मांगी और नागदेव से प्रार्थना की एक बार फिर उस दिव्य आत्मा के दर्शन करवा दे लेकिन वह आत्मा ऐसे विलुप्त हुई की आज तक उस गांव वालो को नही दिख सकी. नागदेव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि सूरगांव का द्वादस शिव लिंग वाला एतिहासिक मंदिर एंव ग्राम ठेसका के पास बीच ताप्ती नदी में मौजूद पत्थरो पर बारह शिवलिंग के अलावा उसी मंदिर की तरह एक अन्य शिव लिंग मंदिर के साथ -साथ ग्राम मोरखा के पास होने बेल नदी के किनारे वर्तमान में छिन्दवाडा जिले की सीमा में नागदेव मंदिर का निमार्ण सूरगांव के पास स्थित एक अन्य ग्राम के मालगुजार सद्या पाटिल नें बनवाया था. सद््या पाटील द्वारा उक्त तीनो मंदिरो का निमार्ण कार्य एक ही कारीगीर से करवाया गया था . पिछले साल चंदोरा बांध के फूटने पर ठेसका का ग्राम का वह एतिहासिक बारह लिंग का मंदिर तो बह गया लेकिन बीच नदी की चटट्ान पर बनी बारह शिवलिंग आज भी लोगो क श्रद्वा का केन्द्र बने हुए है. नाग देव मंदिर से एक किलो मीटर पूर्व की आकर स्थित पुछ उोह में एक राजा की पूरी बारात डूब गई थी. मात्र दुन्हा दुल्हन के रूप में हाथी पर सवार राजा – रानी ही बख्े थे. वैसे तो हाथी भी डू ब रहा था लेकिन वह किसी तरह निकल आया. इस क्षेत्र में बसे बडा चमत्कार यह देखने को कमलता है कि आज भी यह क्षेत्र भले ही छिन्दवाडा जिलें में आत हो पर पर जाने का जो रास्ता है वह मोरखा के पास से बेल नदी को पार करके ही जाया जाता है. नाग देव मंदिर के आसपास के पेडो पर बंदर ,शेर , नाग , नागीन, अनेको प्रकार के जानवरो की आकृति उभरी हुई दिखाई पडती है. पिछली कई सदियो से इस नागदेव के मंदिर में विदर्भ के अनेको जिलो के नव विवाहित दम्पति नवस के नाम पर आते है और मंदिर में बलि देकर पूजा पाठ कर चले जाते है. एक माह तक चलने वाले इस नागदेव के मंदिर के किस्से कहानी तो ढेर सारे है पर लोगो के किस्से कहानी सुनते -सुनते पूरी रात बीत जाती है. विदर्भ और बैतूल , छिन्दवाडा तथा आसपास जिले का किसान अपनी सुख समद्वि के लिए नागदेव से मन्नत मांगता है और उस मन्नत को एक कुछ समय ाद पूरा करने के लिए वह पूरे परिवार के साथ घर के छोटे- बडे जानवर तक को नाग मंदिर लाकर अपना नवस पूरा करता है.
एक रात की बात है भरत अपने कमरे कीर चारपाई पर सोया हुआ था लेकिन उसे लगा कि कोई उसे पुकार रहा है. भरत ने दिश चलाने की कोशिस की लेकिन माचिस नही मिलने की वल?जह से वह एक बार फिर मन मार कर सो गया लेकिन यह क्या वह अभी एक नींद भी नही ले पाया था कि एक बार फिर उसे किसी ने पुकारा उसने सोचा कि माचिस तो मिल नहीं नही रही उठ कर क्या फायदा लेकिन यह क्या यह तो चमत्कार हो गया जो माचिस उसके ठीक के सिरहाने के पास काफी से नही मिली वह सिरहाने पास ही थी तथा उससे बडा ताजुब यह था कि दीया उसे जलते हुए मिला. भरत ने पहले तो यह सोचा कि घर के किसी लोगो ने दीया जलाया होगा तथा वह बुझाना भूल गया होगा लेकिन घर के सारे लोग तो गधे बेच कर सोये हुए थे तब ऐसे मेें दीया किसने जलाया होगा यह सोच कर भरत हैरान एंव परेशान था. विचारांे में खोए भरत को एक बार फिर किसी ने पुकारा तो अबकी बार वह सकपका गया. दीया को थामे भरत ने आखिर हिम्मत करके दरवाजा खोला तो सामने का नजारा देखकर वह चीख मार कर धडाम से चक्कर खाकर गिर गया. उसकी चीख सुन कर घर के सारे लोग जग गए आनन-फानन में घर के सारे दीया जला डाले. बेहोश भरत को घेर कर बैठ घर के लोग अभी तक नहीं जान सके थे कि वह किस कारण बेहोश हुआ था. रात भर से जग रहे भरत के परिवार के लोगो को भरत के होश में न आने पर अब चिंता सताने लगी. ओझा, फकीर , बाबा, भुमका , भगत, सबको बुला डाला लेकिन कोई भी उसे होश में नही ला सका. आखिर भर की मां ने नागदेव बाबा से मन्नत मांगी की बाबा मेरे भरत को होश में ला दे मुझसे जो बन सकेगा तेरी सेवा करूगी. उसके इतना बोलतें से यह क्या चमत्कार हो गया भरत उठ कर बैठ गया और उसने उठते से अपने को घेर कर रखे लोगो से बस एक ही सवाल किया कि मैं यहां कैसे आया और वह बाबा जी आखिर कहां गया…………..
इति,
भर आया आंचल
रामकिशोर ंपवार
मां रेवा का आंचल आज भी पहले की तरह फैला हुआ था. नर्मदा प्रसाद भागते हुयें आया और धड़ाम से जाकर उसके आंचल में जा गिरा. मां रेवा ने अपना ममतामयी हाथ जब उसके सिर पर फेरा तो वह रो पड़ा. वह कुछ पुछना चाहता था लेकिन उसे जोर की भुख लगी थी. मां रेवा समझ चुकी थी कि उसका लाड़ला भुख से व्याकुल हो रहा है उसने उसके लिए भोजन की थाल परोस दी. भरपेट खाना खाकर वह फिर सो गया. वह ऐसा सोया कि अपने साथ लायें अनेक सवालों को वह भूल गया. जैसे ही भोर होने को आई कि उसे एक बार फिर मां रेवा ने नींद से जगाते हुयें कहा ‘ बेटा नर्मदा जरा उठ तो देख बेटा भोर होने वाली है. जा अपने मालिक के घर वहां उसके कोठे में बंधी पड़े गाय के बछड़े उनके छुटने का इंतजार कर रहे होगें …….! अगर तू नहीं गया तो वे बेचारे भुखे रह जायेगें ……..! सुन बेटा नर्मदा उन्हे भी तेरी तरह उनकी मां से मिल कर अपनी भुख प्यास को शांत करना है……….. ! अधकचारी नीदं से अलसाय हुयें नर्मदा की बार तो इच्छा हुई कि वह मना कर दे ……… पर उसे तो जाना ही होगा क्योकि उसका मालिक बड़ा ही निर्दय और जालिम किस्म का है. वह जानता है कि एक दिन अगर कोठे से जानवर नहीं छुटेगें तो उसका मालिक उसे मार मार कर लहु लुहान कर देगा. वह डर के मारे उठ कर अपने मालिक के घर की ओर सरपट भागा. उसे आज इतनी जल्दी थी कि वह यह तक भूल गया कि वह यह तक भूल गया कि वह मां रेवा से आज क्या पुछने के लिए आया था.
पौराणिक कथाओं में सदियों से देवी देवताओं की आरध्य रही जगत तारणी पूण्य सलिला मां नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है. इसी जग कल्याणकारी मां रेवा के किनारे बसे एक छोेटे से गांव में रहने वाला नर्मदा प्रसाद करीब बीस साल पहले आई बाढ़ में अपने माता – पिता के साथ बहते हुयें इसी गांव के गोपाल मछुआरे को मिला था. नर्मदा प्रसाद के माता -पिता पहले ही दम तोड़ चुके थे. उनकी बहती लाश के साथ नर्मदा प्रसाद भी मछली की तलाश में जाल बिछायें गोपाल के जाल में आकर उलछ गया. गोपाल ने उसे बाहर निकाल कर फेकना चाहा लेकिन उसे उस नन्हे सी जान के शरीर में हलचल होती दिखाई दी. गोपाल अपने मछली के जाल को वही छोड़ कर उस बच्चे को लेकर गांव की ओर सरपट भागा. कुछ दिनो तक चले गांव के वैद्य के इलाज के चलते नर्मदा प्रसाद बच गया लेकिन वैद्य ने गोपाल को चेताया कि इस बच्चे को नदी के पानी से बचायें रखना. पानी देख कर इस बच्चे का शरीर अपने आप हिचकोले मारने लगेगा. इस रहस्य को गोपाल ने किसी को नही बताया. आज इस घटना को लगभग बीस साल हो गये. ना तो गोपाल उस रहस्य को जान पाया कि उसके बाबा उसे नदी के किनारे जाने से क्यो रोकते थे. नर्मदा कई बार अपने बाबा को बिना बताये एक रहस्य को आज तक छुपायें रखा था कि वह जब भी मां रेवा के किनारे बहती धारा को एकटक निहारता था तो उस बीच धार में एक महिला अपनी बांहे फैलाये उसे अपनी ओर बुलाती थी. जब वह उसकी ओर जाता था तो नदी में अपनी आप रास्ता बन कर निकल आता था. उसे वह महिला कई बार अपने हाथों से नाना प्रकार के पकवान खिलाती थी तथा अपने ही आंचल में सुलाती थी. उसे जब तक वह इस रहस्य को समझ नहीं सका तब तक ऐसा होता था. लेकिन एक दिन उसे नदी की ओर जाता उसके बाबा ने देख लिया तो उसके बाबा ने उसे बहुॅंत डाटा फटकारा तब से वह नदी के किनारे नही जाता था. नर्मदा यह नहीं जान सका था कि उसके बाबा उसे क्यों नदी की ओर जाने से रोकते थे तथा नदी कह बीच धारा में बाहे फैलाये उसको बुलाने वाली महिला कौन है. उस महिला से उसका क्या नाता है. नर्मदा के अपने माता – पिता कौन थे इस बारे में उसे कोई जानकारी नही थी. पर उसने गंाव वालों के मुह से सुना था कि बाबा उसके पिता नही है. आज उसके बाबा भी अब इस दुनिया में नहीं रहे. एक रात जब उसे अपने बाबा से जिद करके यह जानने की कोशिश की कि बाबा आप मुझे क्यों नदी के किनारे जाने से रोकते है. तब उसके बाबा ने कहा कि वह कल उसे उस राज को बता देगा जो कि बरसो से उसके दिल के किसी कोने मेे दबा पड़ा है. कल सुबहउठ कर वह अपने बाबा से उस रहस्य को जान पाता इसके पहले ही उसे सुबह उठ कर गंाव के जमींदार के कोठे पर जाकर गाय बछड़ो को छोडना था. अपने वादे के मुताबिक गोपाल उस राज को बताने के पूर्व ही उस दिन चल बसा.
गोपाल बाबा उसे नर्मदा प्रसाद कह कर पुकारते थे. अपने के नाम के पीछे बाबा कहा करते थे कि बेटा तू मां कौन है ……..! किस जाति का है ………….! किस गांव का है …………..! तेरेे कौन रिश्तेदार है ……………? मैं नहीं जानता. तू मुझे मां नर्मदा की साठ साल की सेवा के बदले में मिला प्रसाद है इसलिए तू मेरा नर्मदा प्रसाद है………! गोपाल के मरने के बाद गंाव वालों ने इस एक बार फिर अनाथ हुयें नर्मदा प्रसाद के बारे में जांच पड़ताल की पर किसी को यह तक नही मालुम कि बाढ ़में बहता मिला यह बच्चा किसका था……? लगभग बीस साल पहले भी गांव वालों ने आसपास के गांवों तक मुनादी करवा दी थी कि जिसके भी परिवार के लोग बाढ़ में बह गयें हो वे आकर इस बच्चे के बारे में जानकारी देकर उसे ले जाना चाहे तो ले जा सकते है. लेकिन कोई नही आया तो गोपाल मछुआरे ने उसे अपने बेटे की तरह पाल पोश कर बड़ा किया था. गोपाल बाबा के मरने के बाद नर्मदा प्रसाद ने जमीदार के घर की नौकरी छोड़ दी वह अपने बाबा के पुश्तैनी काम को करने का बीड़ा उठा कर वह नही की ओर चला गया.
आज एक बार फिर मां रेवा में बाढ़ आई थी. उसका पानी हिलांेरे मार कर इस किनारे से उस किनारे तक अठखेलिया कर रहा था. नर्मदा प्रसाद को ऐसा लगा कि नदी की बीच धारा कोई महिला बाहें फैला कर उसे आंखों के छलकते आंसुओं से पुकार रही है. काफी देर तक उस महिला को अपनी ओर बाहें फैला कर पुकारते देख नर्मदा प्रसाद का शरीर हिचकोले मारने लगा. वह ऊफनती रेवा की बीच धारा में उसे पुकार रही महिला की ओर सरपट भागा. उसे पानी में भागते देख उसके संगी साथी गांव की ओर बद्हवाश से भागे. कुछ ही पल में पुरा गांव मां रेवा के किनारे जमा हो गया. गांव वाले शाम तक रहे पर किसी को भी नर्मदा का अता पता नही मिला तो गंाव वाले खाली हाथ वापस लौट कर आ गयें. गांव वाले कहने लगे बेचारा नर्मदा जहॉ से आया वहीं चला गया. नर्मदा के इस तरह नदी में बह जाने से पुरे गंाव में आज रात किसी के घर पर चुल्हा नही जला. सबके सब उदास थे. लोगो की आंखों के आंसु झर झर कर बह रहे थे. सारे गंाव वाले को आज ऐसा लग रहा था कि उसके परिवार का कोई सदस्य बह गया हो. आज की रात लोगो को पहाडत्र जैसी लग रही थी. कई लोगो ने तो रात भर सोच सोच कर काट ली. हर कोई नर्मदा को लेकर परेशान था.
खुले आसमान के चांद तारों को देख कर रात के पहर कटने के इंतजार करने वाले लोगो को जैसे ही भोर के होने की आहट हुई लोग अपने घरों से बाहर की ओर निकल पडें. हर कोई एक दुसरे की आंखों में झांक कर एक दुसरे को बताना चाह रहा था कि उसने इस काली अमावस्या जैसी रात को कैसे काटा है. गांव वाले अपने घरों से बाहर निकल कर रेवा के किनारे जाकर नर्मदा को तलाशते इसके पहले ही उन्हे रेवा के तट की ओर गंाव को आते रास्ते एक युवक आता हुआ दिखाई दिया. पास आने पर ऐसा लगा कि आने वाला कोई नही अपना नर्मदा है तो सारा गांव खुशी के मारे उसकी ओर दौड़ पड़ा. नर्मदा को जिंदा देख कर गांव की महिलाआंे के अंाचल भर आयें. गांव वाले दिल धडकने लगे. नर्मदा को जिंदा देख कर सब के सब प्रसन्नचित थे वही हर छोटे बडें सबके चेहरे पर एक जिज्ञासा झलक रही थी कि नर्मदा तू रात भर कहॉ था………? वह मंा रेवा की ऊफनती धारा की ओर क्यों भागा था…..! उसके साथ क्या हुआ…….! नर्मदा ने इस तरह सारे गांव वालों को अपनी ओर जिज्ञासा भरी निगाहों से देख तो वह कुछ पल के लिए डर गया. उसने डरते डरते गंाव वालों से पुछा पुछा इतनी सुबह पुरा गंाव कहॉ जा रहा है……..? उसके सवालों को सुन कर केतकी आजी रो पड़ी उसने नर्मदा के सिर पर हाथ फेर कर कहा बेटा हम तुझे ही ढुढ़ने जा रहे थे…….! तू रात भर से घर नहीं आया था……..! कल तेरे साथ गयें कुछ लड़को ने तुझे ऊफनती रेवा की बीच धारा में भागते हुयें देखा तब से पुरा गांव परेशान है. केतकी आजी के बताने पर कुछ याद आया.उसने बताया कि कल जब वह रेवा के किनारे मछली का जाल बिछाने गया था तब उसने देख कि नदी में बाढ़ आई थी. नदी की बीच धार में कोई महिला मुझे बांहे फैला कर अपनी ओर बुला रही है ………! मैं उसकी ओर भागा……. उसके बाद मुझे पता नही कि क्या हुआ………..? मुझे जब होश तब मैंने अपने आप को नदी के दुसरे छोर पर पाया.मुझे आसपास चीखते सन्नाटे में समझ आया कि मैं जिस स्थान पर लेटा हू उसके आसपास कोई नदी बह रही है. दिमाग पर काफी जोर देने के बाद मुझे पता चला कि मैं जिस स्थान पर लेटा हुआ था उससे चार पांच फंलाग की दूरी पर मां रेवा बह रही है. मुझे डर लग रहा था मैं थर थर कर कांपते कांपते खुले आसमान में चन्द्रा के प्रकाश में उस भयावह चीखते सन्नाटे को चीरते हुयें नदी के किनारे आने के लिए निकल पड़ा . खुले आसमान में दिखने वाली चांदनी बता रही थी कि रात का तीसरा पहर बीत चुका है. चौथे पहर के शुरू होते ही मैंने अपने घर की ओर आने का मन बना कर मै जैसे नदी के किनारे आया तो मेरी सिटट्ी पिटट्ी गुम हो गई. कल की तरह आज भी मां रेवा पुरे उफान पर बह रही थी.चन्द्रमा के प्रकाश में साफ दिख रहा था कि मां रेवा नदी की धार में काफी बहाव था. नदी अपने अपने दोनो किनारों के उपर से बह रही थी. मुझे इस नदी पार करके गांव की ओर आना था. मुझे तो तैर कर नदी पार करना भी नहीं आता था. अब मेरे लिए नदी पार करके आना बड़ा ही कठीन काम था. मैं इसी उधेड़बुन में कुछ सोच रहा था कि मुझे ऐसे लगा कि कोई मेरा नाम लेकर पुकार रहा है. मैने आसपास चारों ओर चन्द्रमा के प्रकाश में अपनी निगाहे घुमा कर देखा तो मुझे कोई भी दिखाई नहीं दिया. सुनसान इलाके में जब किसी ने मेरा नाम लेकर एक बार फिर किसी ने मुझे पुकारा तो घबरा गया. इस बार की आवाज किसी महिला की थी. मैं उस अपरिचित महिला की आवाज को पहचानने की कोशिस कर रहा था कि इतने में वह आवाज एक बार फिर मुझे सुनाई दी. वह अपरिचित आवाज मुझसे कह रही थी बेटा ‘ नर्मदा तू उस पार जाना चाहता है तो , नदी की बीच धार को पार करके चले आ. ’ मैं नदी के किनारे को छुती उसकी धार तक आने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहा था. ऐसे में किसी ने मेरी किसी अदृश्य परछाई ने मेरी बांह पकड़ी और मुझे नदी की धार तक ले आया. मैंने जैसे नही नदी में पांव रखा कि चमत्कार हो गया . नदी के बीचो बीच में एक पगडंडी निकल आई जिस पर मैं चलकर नदी के इस छोर से दुसरे छोर तक चला आया. मैने जैसे पलटकर देखा तो मां रेवा उसी गति से शोर मचाती बह रही थी. मैं नदी पार कर सीधा चला आ रहा हूॅं. नर्मदा की बात को सुन कर गांव वालों का आश्चर्य का ठिकाना नही था. इतने साल से मां रेवा के किनारे रहते हो गयें लेकिन उन्हे आज तक मां रेवा ने कभी दर्शन तक नहीं दियें और इस लड़के की किस्मत तो देखियें कि यह उसकी गोद में खेल आया है. नर्मदा की बताई बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहे पुरे गांव को जैसे लकवा मार गया. गांव वालों के लिए नर्मदा की बताई बाते किसी अनहोनी घटना से कम नही थी. पुरा गंाव नर्मदा की बातों को सुन कर नर्मदा मैया की जय जय कार करते नदी के किनारे की ओर दौड़ पड़ा.आज इस घटना को बीते कई साल हो गयें लेकिन गांव में अब भी मां रेवा के किनारे एक घास फुस की झोपड़ी बना कर रह रहा नर्मदा को विश्वास है कि वह एक बार अपनी अंतिम सांस मां रेवा के आंचल में ही लेगा. उसे हर पल इंतजार है कि कब मां रेवा उसे एक बार फिर पुकार कर कहे बेटा नर्मदा आ अब विश्राम कर ले.
इति
रहस्यमय दिल को छु देने वाली काल्पनिक कहानी
”कबर बिज्जू”
रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
उस रात को बड़े साहब के बंगले पर जग्गू दादा की डुयूटी थी। अपनी पूरी रौबदार मुछो एवं ड्रेस को लेकर पूरे जिले में जग्गू दादा की लोकप्रियता थी। जग्गू दादा को ही पता रहता था कि बड़े साहब कब कहां आते – जाते है। यदि दादा के बारे में यह कहा जाये कि दादा बड़े साहब की मास्टर चाबी है जिससे उनका पूरा जीवन का ताला खुलता और बंद होता है तो कहना गलत नहीं होगा। आज फिर काली अमावस्या की रात को बड़े साहब के बंगले में साहब नहीं थे। वे हर बार अमावस्य की रात को ही क्यों गधे के सिंग की तरह गायब हो जाते किसी को पता नहीं होत्रा। किसी ने एक दो बार जग्गू दादा से मजाक में भी कहा था कि ”दादा तेरा साहब कहीं कबर बिज्जू तो नहीं है कि अमावस्य की रात आते ही बिल में छुप जाता है ……” आज फिर वहीं रात की मनहुस घड़ी आ गई जिसमें पहली बार जग्गू दादा की रात डुयूटी लगी थी। वैसे तो जग्गू दादा ने अग्रेंजो के जमाने का शुद्ध देशी घी और माल पुड़ी खाया था। उनकी रौबदार मुछो और शरीर के पीछे शायद वही खाया हुआ माल था। उनकी ढलती उम्र के इस पड़ाव में भी चाल और ढाल लोगो के लिए प्रेरणा बनी हुई थी। कोसो पैदल चलना और यदा – कदा साइकिल की सवारी कर लेना जग्गू दादा की दिनचर्या थी। दादा की पूरी सर्विस बड़े साहब के बंगले और आफिस के बीच ही कटती चली आ रही थी। आज रात के लिए दादा पहले तो मना करते रहे लेकिन रात डुयूटी करने वाले ने जब उनसे कहा कि ” यदि वह आज रात को डुयूटी कर लेगा तो वह उसके बदले में कल की दिन की डुयूटी कर लेगा………। ” जग्गू दादा को कल और परसो दो दिन की छुटट्ी मिल जायेगी। दादा को दो दिन की छुटट्ी लिये महिनो बीत गये थे। इसलिए दादा इन दो दिनो के लिए अपने गांव रमोला जाना चाहता थे। दादा को अपने पहाडिय़ो पर बसे रमोला गांव गये बरसो बीत गये थे। उसके संगी – साथी सब एक – एक कर उसका साथ छोड़ कर जा चुके थे। जग्गू दादा अपने जमाने के संगी – साथियो के परिवार के लोगो से मिल कर उनके दुख को बाटना चाहते थे। दादा का अपने बचपन एवं जवानी के कुछ दोस्तो की आखरी यात्रा में न पहुंच पाना गांव के लोगो के बीच भी चर्चा का विषय बन चुका था। गांव वालो और अपने नाते – रिश्तेदारो के बीच दादा कई बार उन बातो को लेकर अपमान का घुट भी पी चुके थे। इस बार दादा ने पूरा मन बना लिया था कि वह चाहे कुछ भी हो जाये अपने गांव एक दिन के लिए जरूर जायेगा। जग्गू दादा ने अपने मन की बात किसी को नहीं बताई और उसे मन के किसी कोने में तब तक छुपा रखा जब तक कि वह पूरी न हो जाये। आज रात साहब के बंगले में दादा को अकेले ही पूरी रात काटना था। दादा ने पूरी रात काटने के लिए अपने घर से रामायण और हनुमान चालिसा भी साथ लेकर आये थे ताकि आज की पूरी रात वह रामकथा और हनुमान चालिसा का पाठ पढ़ सके। दादा घर से रामायण और हनुमान चालिसा लेकर तो आये लेकिन हडबड़ी में उसे कहां रख गये उन्हे पता नहीं चल रहा था। काली अमावस्या की रात अपने अगले पहर के लिए बढ़ती जा रही थी। अब रात में उल्लूओं की हरकतो के अलावा तरह – तरह की आवाजे आनी शुरू होने लगी थी। बड़े साहब के बंगलो के हरे भरे बरसो पुराने पेड़ो की डालियो के हिलने – डुलने शुरू हो गये थे। बंगले के पूरे परिसर में दर्जनो पीपल – बरगद – नीम – आम के पेडो की पत्तियों से भी छन – छन करती आवाजे आने लगी थी। ज्यों – ज्यों रात आगे की ओर बढ़ती जा रही थी , त्यों – त्यों बंगले के चारो ओर चीखता सन्नाटा डराने लगता था। बंगले के आसपास लगी टयूब लाइटो के अचानक के बंद हो जाने का मतलब तो यही निकल रहा था कि पूरे बंगले की ही नहीं शहर की ही बिजली गुल हो गई है। यूं तो बडे साहब के बंगले में अभी तक सैकड़ो अफसर आये और चले गये। अग्रेंजो के जमाने के इस बंगले की शान की कुछ और थी। पूरे पांच एकड़ में शहर के बीचो बीच में बना यह बंगला उन अग्रेंजी अफसरो के जुल्मो की कहानी बयां करता है जिन्होने आजादी के कई दिवानो को मौत के घाट सुला दिया। इस बंगले में आज तक किसी भी अफसर के घर में न तो कोई शहनाई गुंंजी और न किलकारी …….. ऐसे में एक प्रकार से मनहुस कहा जाने वाला बंगला दर असल में अफसरो की मौज मस्ती एवं रंगरैलियो का केन्द्र रहा है। बिजली के चले जाने के बाद जग्गू दादा कुछ पल के लिए स्तब्ध सा रहा गया। उसने मोमबत्ती जलाने के लिए अपनी सफेद वर्दी की जेब में हाथ डाला तो बीड़ी का बंडल तो मिला लेकिन माचिस नहीं मिली। ऐसे हाल में दादा को आज राज कुछ अजीब सा लगने लगा। पता नहीं आज रात को क्या होने वाला है। अजीबो – गरीबो हरकतो एवं घटनाओं से जग्गू दादा का दिल भी घबराने लगा लेकिन बुढ़ी सांसो की ताकत उन्हे इस तरह से डर जाने से रोक रही थी। कुछ देर बाद अचानक बिजली आ गई और सामने टेबल पर दादा को वहीं माचिस भी मिल गई जो उनके जेब में होनी थी। कुछ पल तक माचिस को लेकर सोचते दादा को पता भी नहीं चला कि दिवाल पर लगी घड़ी में कब बारह बज गये। बारह बजते ही दिवार की घड़ी से आवाजे आने लगी। दादा ने टेबल पर पड़ी माचिस को लेकर अपने जेब से बीड़ी का बण्डल निकाला और एक बीड़ी निकाल कर जलाने वाले ही थे कि किसी ने उन्हे आवाज दी कि ”जग्गु दादा एक बीड़ी मेरे लिए भी जला देना……. ” अनजान व्यक्ति की आवाज को सुन कर दादा के तो होश हवास उड़ गये। अचानक बंगले के मालगोदाम से निकली आवाज ने जब शक्ल का रूप लिया तो उसे देख कर दादा के मुख से चीख निकलने वाली थी…….. दादा ने अपने आप को संभाला और वे उसे देखने लगे जो बीड़ी के लिए आवाज दे रहा था। दादा के करीब आ चुकी उस आकृति को देख कर दादा को कुछ महिनो पहले की घटना याद आ गई। यह तो वहीं आदमी था जो उस रात बड़े साहब से मिलने के लिए आया था। उसके साथ उसकी जवान बेटी फुलवा भी थी जो फटेहाल कपड़ो में अपने तन को छुपाये हुई आई थी। कोसो दूर अपने गांव से न्याय मांगने आया वह बुढ़ा व्यक्ति साहब से मिलने के लिए उस रोज सुबह से लेकर शाम तक बैठा हुआ था। पांच बजने के कारण जग्गु दादा उस रोज अपने घर को निकल पड़े थे। उसने जाने से पनले उन दोनो पिता – पुत्री से कहा भी था कि ” साहब दौरे पर गये है हो सकता है देर रात तक लौटे …….” लेकिन वह उसकी कही बातो को अनसुना करके साहब के बंगले के सामने बने आफिस में बड़े बाबू के पास बैठा रहा। बड़े बाबू अकसर देर रात तक आफिस में काम करने के लिए रूके रहते थे। इसलिए जग्गु दादा ने उन दोनो को बडे बाबू के हवाले करके वह अपने घर की ओर चला गया। आज कई दिनो बाद उस व्यक्ति को काली अमावस्या की रात में वह भी बंगले के मालगोदाम से बाहर निकलता देख जग्गू दादा को अजीबो – गरीब लगा। उस बुढ़े व्यक्ति को पास आने पर दादा ने पुछा कि ” बाबा तुम यहां पर कब आये…….? ” आने की बाम सुन कर वह खिलखिला कर हस पड़ा। उसकी हसी जग्गू दादा के लिए जानलेवा साबित हो जाती लेकिन दादा ने हिम्मत नहीं हारी। दादा को कड़ाके की ठंड में पसीने से नहाता देख कर वह बुढ़ा बोला ” तुम्हारे मना करने के बाद भी यहां पर रूका रहा न्याय पाने के लिए , लेकिन मुझे क्या मालूम था कि यहां पर भी मेरे साथ अन्याय ही होगा……” जग्गू दादा उससे कुछ और पुछता वह खुद ही बताने लगा कि ” उस रोज जब साहब देर शाम तक नहीं आये तो बड़े बाबू ने मुझे बड़े साहब के बंगले ले गया। मैं वहां पर पौन्रे बारह बजे तक अपनी जवान बेटी के साथ बाबू जी के साथ रूका रहा। दिन भर का भूखा – प्यासा थका हारा मैं न लाने कब वही दिवार के सहारे सर रख कर सो गया। मेरी नींद तब खुली जब बंद कमरे से मेरी फुलवा के चीखने – चिल्लाने की आवाजे आने लगी। मैने खुब जतन कर डाले लेकिन मैं दरवाजो को जब नहीं खुलवा सका तो मैने पास की कुल्हाड़ी उठा कर दरावाजे को काट डालना चाहा लेकिन पीछे से किसी ने मेरे सिर पर लाठी दे मारी जिसके चलते मैं धड़ाम से ऐसे गिरा की फिर दुबारा उठ नहीं सका। उस काली अमावस्या की रात को बड़े बाबू ने मुझे मालगोदाम में ऐसे छुपा रखा कि मेरा पूरा शरीर तार – तार हो गया। पूरी रात बड़े साहब ने मेरी फुलवा को कबर बिज्जू की तरह नोंच -नोंच कर खा लिया। आज भी मैं उस काली अमावस्य की रात मेे मेरी फुलवा को पूरे बंगले भर में खोजता फिर रहा हूं……… न जाने ऐसी किस कोने में मेरी फुलवा छुपा दी गई है कि वह मुझे बीते दो सालो से नहीं मिल रही है। ” जग्गू दादा को अचानक वह बात याद आ गई जब वह दो दिन की छुटट्ी से वापस लौटा तो पता चला था कि साहब पिछले शनिवार से जो गये है तो अभी तक वापस नहीं लौटे। जब आये तो मैने उन्हे चाय की प्याली दी और यूं ही पुछ लिया था कि ”साहब उस रोज फिर कितने बजे आना हुआ……? क्या वे दोनो बाप – बेटी आपसे मिले …..? साहब क्या आपने उनको न्याय दिलवा दिया…..? ” जग्गु दादा को अब समझ में आने लगा कि साहब ने क्यों उसके मुँह पर चाय की प्याली फेक कर मारी थी। अपनी सर्विस के पूरे तीस – बत्तीस साल काटने के बाद पहली बार जग्गु दादा को किसी अफसर ने इस तरह से जलील किया था। इस सदमें मे वह ऐसा बीमार पड़ा कि उसे ठीक होने में पूरे आठ महिने से ज्यादा का समय लग गया। इस बीच बड़े बाबू एक दो बार हाल – चाल जानने के लिए आये लेकिन बड़े साहब नज़रे चुराने लगे थे। जब जग्गू दादा डुयूटी पर आये भी थे तो साहब ने उसे अपने से दूर ही रखा। अब उसके पास साहब की सेवा चाकरी के बदले दुसरे अन्य कामकाज आ गये थे। उस रोज साहब की हरकत पर मैने सोचा था कि काम के टेंशन की वज़ह से शयद साहब दुसरे का गुस्सा मेरे ऊपर ही निकाल दिये। अब सारा माजरा खुल जाने के बाद जग्गु दादा ने साहब को अपने मुंह पर गरम चाय की प्याली फेकने का बदला चुकाने का मौका आ गया था। वह विचारो में इतना खो गया कि वह अनजान व्यक्ति एक बार फिर वहां से गधे के सिंग की तरह आंखो से ओझल हो चुका था। जग्गू दादा को अब पता चल चुका था कि बड़े बाबू पर साहब की इतनी मेहरबानी क्यों है। साहब की गैर हाजरी में बडे बाबू साहब की आड़ में कैसे पैसे कमाने लगे है। जग्गु दादा के विचारो को उस समय विराम लग गया जब उन्होने सामने से एक सफेद साड़ी में लिपटी युवती को अपने करीब आते देखा। पास आते ही वह युवती जग्गु दादा को देख कर खिल खिला कर हस पड़ी। करीब आई उस युवती को देख कर दादा को लकवा मार गया। अचानक दादा के मुँह से आवाज आई ” अरे बाप रे यह तो वही युवती है जो उस रोज बड़े साहब के बंगले पर उस बुढ़े व्यक्ति के साथ आई थी। गांव के दबंगो के हाथो अपनी अस्मत को तार – तार करवा कर न्याय के लिए फटेहाल कपड़ो में आई उस युवती को सफेद साड़ी में देखते ही दादा के मन में तरह – तरह के सवालो ने उथल – पुथल मचाना शुरू कर दी। दादा को अचानक कुछ साल पहले की वह घटना याद आ गई जब वह अपने पिता के साथ बड़े साहब से मिलने के लिए आई थी। सुबह से शाम हो जाने तक जब बड़े साहब नहीं आये तो वह बेचारी मिलने के लिए शाम तक रूकी रही। उसके बाद क्या हुआ उसका पता उसे अभी कुछ देर पहले ही पता लगा था। उस घटना के बाद तो दादा की तबीयत खराब हो गई और वह लम्बे समय तक बिस्तर पर पड़ा रहा। आज अमावस्या की काली रात में पहले पिता को और बाद में इस युवती को अकेले साहब के बंगले के परिसर से बाहर निकलते देख दादा को कपकंपी छुटने लगी। ठंड के महीने में पसीने से लथपथ दादा की हालत देख कर वह युवती जैसे ही खिलखिला कर हसी तो आसपास का पूरा माहौल तरह – तरह की चीखो से गुंज गया। जग्गू दादा ने अपनी पूरी उम्र में पहली बार किसी सोलह साल की युवती को सफेद कपड़ो में लिपटी हुई देखा था। लम्बे -चौड़े क्षेत्रफल में बने साहब के बंगले में साहब पहले तो अकेले ही रहते थे उस रोज के बाद से साहब एक भी रात को इस बंगले में नहीं रूके। साहब अकसर सरकारी बंगले को छोड़ कर आसपास के सर्किट हाऊस – सरकारी डाक बंगले में रूक जाते थे। अपनी आयु और सर्विस के रिटायरमेंट की कगार पर आ खड़े बड़े साहब की अपनी बीबी और बच्चो से कभी भी पटरी नहीं बैठी। साहब का कई बार अपने बेटो और बीबी ने झगड़ा मारापीटी तक जा चुका था। बड़े लोगो के बड़े चौचले समझ कर दादा ने उन पुरानी बातो को अपने दिमागी पटल से कब का भूल चुके थे। काका को आज इस युवती के अस्त – व्यस्त हालत में कपड़ो के बाद दादा को देख कर वह युवती बोली ”दादा क्यों परेशान हो रहे हो …….? मैं तुम्हारा कुछ नहीं करूंगी…….. , लेकिन दादा देख लेना एक न एक दिन तेरे बड़े साहब का मैं वो हाल करूंगी कि वह फिर किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचेगा। उस कबर बिज्जू को मैं ऐसी मौत मारूंगी कि उसकी आने वाली सात पुश्ते भी कांप उठेगी। उस कबर बिज्जू को मैं ऐसी सजा दंूगी कि उसकी पीढ़ी में कोई मर्द या औरत पैदा नहीं होगी…… सब के सब हिजड़े पैदा होंगे वे भी दुसरे के दंभ पर ……..” उस युवती की इस तरह श्राप देते देख कर जग्गु दादा गश्त मार कर ऐसे गिरे की फिर उठ नहीं सके। रहस्यमय बनी जग्गु दादा की मौत पर से आज तक पर्दा नहीं उठ सका लेकिन कल शाम जब बंगले में बड़े साहब की टुकड़ो में मिली लाश के बाद समझ में नहीं आ रहा था कि इस प्रकार के प्रतिशोध के पीछे किसी का क्या हाथ होगा। साहब के बेमौत मरने की $खबर सुनने के बाद बड़े बाबू ने भी फांसी लगा ली। मरने से पहले बड़े बाबू ने अपने पुराने गुनाहो को उजागर करते हुये फुलवा की मौत पर से पर्दा हटा कर वह सब बता डाला जो कि बंगले में अकसर होता रहता था। आज भी उस बंगले से सड़क के किनारे के पीपल के पेड़ तक उस सफेद साड़ी में लिपटी युवती के मिलने की कहानी सुनने को मिलती है। जब मैं इस काहनी को लिख रहा था तो मुझे बरबस वह पीपल का पेड़ और सामने बड़े साहब का बंगला और उस कबर बिज्जू की मौत की कहानी घुमने लगी। कहानी को शब्दो में पिरो पाता इस बीच कोई न कोई आ टपकता और कहानी आधी – अधुरी रह जाती। इस बार मैने पूरे मन को स्थिर कर उस कहानी को पूरा करने का मन बना निया था जो किसी इंसान रूपी वासना के कबर बिज्जू से जुड़ी थी जो अपनी बेटी की उम्र की युवती को नोंच – नोंच कर खा चुका था। आज जब कहानी पूरी बन गई तो मन को शांती मिली लेकिन जब आंखे खुली तो मैने देखा कि कहानी के पीछे एक युवती की छाया उभर रही थी। फटेहाल में दिखने वाली वह देहाती युवती मुझसे कुछ कहना चाहती थी। मैं उसकी बातों को शब्दो में पिरो पाता इस बीच श्रीमति ने आकर मुझे झकझोर कर दिया कि ”चलिए तो अपने घर के पीछे बड़ा ही खतरनाक कबर बिज्जू निकला है , जल्दी चलो आकर देख लो…… ” अब मैं उसे कैसे बताऊ कि मैने जिस कबर बिज्जू को देखा है उससे खतरनाक कोई दुसरा भी कबर बिज्जू हो सकता है।
इति,
नोट :- प्रस्तुत कहानी के पात्रो एवं स्थानो का किसी से कोई लेना – देना नहीं है। यदि घटना और पात्र किसी से मिल भी गये तो इसे संयोग ही माने
कहानी
”ज्योति आइ लव यू …..”
कहानी :- रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला ”
बात उन दिनो की है जब हर कोई अपनी बाल अवस्था जवानी की दहलीज पर पांव रखता है. गांव की टूटी – फूटी छत वाली पाठशाला हो या फिर शहर की कांक्रिट से बनी पाठशाला जहां पर बचपन पहली से लेकर दसवी तक ध्यान लगा कर पढ़ता है. ऐसा भी नहीं कि वह चौबिसो घंटे पढ़ता ही रहता है. कहने का अभिप्राय: यह रहता है कि उस दौर में न तो दिल किसी के लिए धड़कता है और न उसे दिल की धड़कने सुनाई या महसूस होती है. ऐसे दौर में किसी का किसी के प्रति लगाव को प्रेम या प्यार की तराजू में नहीं तौला जा सकता है. जब जवानी और चेहरे पर हल्की – हल्की से ऊगने लगती मुंछो से ही पता चलता है कि अब दिल भी इस शरीर में किसी कोने में किसी चहेती के लिए धड़कता है. आज से तीस साल पहलें उस दौर में लड़के – लड़कियो के अलग से स्कूल – पाठशाला नहीं हुआ करती थी. ऐसे समय में माता – पिता से लेकर शिक्षको को तक इन लड़के – लड़कियां एक ही कक्षा में साथ – साथ पढ़ाना अटपटा सा नहीं लगता था. इसे अब मजबुरी कहे या फिर उस समय का दौर लेकिन यकीन मानिए उस समय में गांव का जमीदार और गांव कोटवार का बच्चा सभी एक साथ बिना किसी भेदभाव के साथ – साथ पढ़ा करते थे. पाठशाला की फटी – मैली टाट पटटी पर एक के पीछे कौन सी जाति या धर्म का लड़का – लड़की बैठा पढ़ रहा है कोई नहीं जानता था. बस स्कूल के हाजरी रजिस्ट्रर से ही नाम पुकारते समय पता चलता था कि कौन किस जाति या धर्म का है. गांव की पाठशाला से लेकर शहर की पाठशाला तक में टाट पटटी पर बैठ कर पढऩे का रिवाज था. कुछ समय बाद गांव की पाठशाला तो नहीं शहर की पाठशाला स्कूल बन चुकी थी जिसमें टाट पटटी की जगह लकड़ी की बेंच डेस्क ले चुकी थी. उस समय में भी फैशन का तो नहीं पर स्कूल में सबसे सुंदर दिखने की चाहत हर किसी के मन में रहती थी. मुझे अच्छी तरह से याद है कि जवानी की दहलीज के दिनो में काका की फिल्मो का दौर उस समय ऊफान पर था. काका के रोमाटिक फिल्मी तरानो की गुंज में मुकेश के दर्द और रफी के तरानो को को लोग बखुबी समझते थे. युवा पीढ़ी पर तो प्रेम का रोग ऐसा लगा था कि हर कोई मो रफी के गीतो को गुनगुनाते हुये हवा में कागज के बने हवाई जहाज में अपनी – अपनी चहेती लड़कियो की ओर प्रेम पत्र भी लिख कर फेकने लगे थे. गर्मी की तपन के बाद जैसे ही स्कूलो के गेट खुले तो नई क्लास के लिए नई कापी – पुस्तकों को लेकर स्कूल जाने की शुरूआत हो गई. प्राथमिक पाठशाला अब माध्यमिक स्कूल में बदल चुकी थी. एक दिन क्लास में पहली बार किसी बेबीकट जुल्फो के साथ एक कजरारी आंखो वाली लड़की ने दाखिला लिया. वह इसके पहले उस शहर में किसी को नहीं दिखी तो सभी ने एक साथ अंदाज लगाया कि छोरी नई है लगता है किसी दुसरे शहर से आई है. उसकी हेयर स्टाइल को देख कर लगता था कि स्वर्ग से धरती पर उतरा यह चांद किसी बड़े घर की छोरी होगी या फिर किसी अफसर की साहबजादी…. उसके क्लास में आते ही युवा दिलो में धड़कन होना स्वभाविक था. आज की एश्वर्या राय यदि तीस साल पहले किसी को दिख जाये तो क्या हाल होगा यह तो वही जाने लेकिन सच्चाई अपनी जगह सोलह आने सच थी कि वह उस दौर की मुमताज – जीनत अमान – रेखा से कम भी नहीं थी. यदि मैं उसे मधुबाला या वैजयंती समझ लू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. क्लास का पहला दिन और वह उस डेस्क पर बैठ गई जिसके पीछे की डेस्क पर लड़के बैठा करते थे. कक्षा शिक्षक ने जब हाजरी ली तो पता चला कि उसका नाम ज्योति है. क्लास का पहला दिन उसे निहारते कब बीत गया पता ही नहीं चला. दुसरे दिन जब वह बालो की लटो को चेहरो पर से हटा कर इठलाती – बलखती आई तो पूरी क्लास सकते में आ गई. आज क्लास में मानीटर का चयन होना था जो क्लास टीचर की अनुउपस्थिति में क्लास को संभाल सके. बीस लड़को और आठ लड़कियो में से किसी एक को मानीटर बनना था. हर कोई दावेदारो की दौड़ में था लेकिन बना मैं जो इस दौड़ से बाहर था. मैं क्लास मानीटर नहीं बनना चाहता था लेकिन मेरे दोस्तो ने मुझे मानीटर बनने के लिए विवश कर दिया. अपने ठीक सामने की बेंच पर बैठी ज्योति उसकी स्वजाति थी. वह अपने जीजा के पास पढऩे के लिए अपने गांव से कोसो दूर आई तो थी लेकिन उसे गांव के माहौल से यहां का महौल अजीब सा लगा. अकसर गुमसुम रहने वाली इस लड़की से बात तो हर कोई करना चाहता था लेकिन हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता था. दिन – महिने बदलने लगे. तीमाही फिर छैमाही परीक्षा हो गई. अब वार्षिक परीक्षा सामने आ खड़ी थी इस बीच जब वह एक दो दिन स्कूल नहीं आई तो सामने खाली पड़ी बैंच को देख कर उसकी मुझे दिनभर बरबस याद आती रही. जब वह अपने गांव से वापस लौटी तो दो दिन का होमवर्क करने के लिए उसने मुझसे अपनी कापी मांगी तो पता चला कि वह अपने गांव में अपनी बीमार नानी से मिलने गई थी जो कुछ ही पल की मेहमान थी. वापस लौटी तो आंखे लाल थी जिससे ऐसा लग रहा था कि या तो वह रात भर सोई नहीं या फिर उसके रोने से उसकी आंखे लाल हो गई. अपनी पड़ौसी की सहेली शर्मिला से वह कह रही थी कि ”उसकी नानी अब इस दुनिया में नहीं रही……ÓÓ नानी के इस दुनिया से चले जाने से सबसे बड़ा सदमा उसे ही लगा क्योकि गांव में उसका पूरा बचपन नानी के आसपास ही बीत गया. गांव से आते समय ही नानी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुये कहा था कि ”देख बेटी तू गांव से शहर तो जा रही है लेकिन क्या करू मेरी मौत तेरे हाथ पीले होने तक ठहर भी पायेगी या नहीं …..” नानी की कहीं दर्द भरी बातो याद करके वह कई बार रूमाल से अपनी आंखो से झलक पड़ते आंसूओं की बुंदो को पोछ लेती लेकिन वह चाह कर भी अपनी चेहरे पर वह मुस्कान नहीं ला सकी जिसे देखे मुझे कई पहर हो गये थे. बातचीत के दौरान पता चला कि वह मेरी ही स्वजाति है. अब एक ही जाति और समाज के नाते दोनो के बीच बातचीत का दौर धड़कते युवा दिलो के किसी न किसी कोने में अपनी पैठ बनाने में कामयाब हो गया. ज्योति जिस दिन से स्कूल में पढऩे आई थी उस दिन से ही उसके पीछे की डेस्क पर बैठने के लिए लड़को के बीच झगड़ा होता रहता था. इस बीत की खबर न तो प्रिंसीपल को थी और न उसकी लड़की को जिसके पीछे उस क्लास के सभी लड़के दिवाने बन कर भंवरे की तरह मंडराते रहते थे. शर्मिला मेरी अच्छी दोस्त थी. वह अकसर मुझसे बातचीत करती रहती थी. हम दोनो कई बार स्कूल के वार्षिक उत्सव में साथ – साथ भाग ले चुके थे. हम उम्र होने के कारण शर्मिला का झुकाव मेरी प्रति कुछ लड़को एवं लड़कियो के बीच द्धेष – जलन – इष्र्षा का कारण बन चुका था. खासकर माला को यह बात पसंद नही थी कि मैं शर्मिला से बाते तो दूर तक उसकी ओर देखू तक नहीं. कई बार इसी बात को लेकर माला मुझसे लड़ चुकी थी. इस बीच ज्योति के आ जाने से त्रिकोणे घेरे में फंस चुका मैं किसी बड़े षडय़ंत्र का शिकार हो चुका था. शर्मिला को चाहने वाले महेन्द्र ने एक दिन माला के साथ मिल कर मेरे नाम से एक प्रेम पत्र ज्योति की ओर फेक दिया. वह पत्र पढ़ नहीं पाई कि क्लास टीचर ने आकर उसके हाथो से वह पत्र छीन लिया. पत्र में दिल को रेखाकिंत कर उसकेे बीचो – बीच लिखा था ”ज्योति आइ लव यू …..” उस पत्र ने मेरी जिंदगी में ऐसा तुफान ला दिया कि हम दोनो एक नदी के छोर न होकर सागर के दो छोर हो गये जिनका मिलना तो दूर एक दुसरे को देखना तक संभव नहीं था. मैं आज तक ज्योति से वह नहीं कहा जो उस पत्र में लिखा गया था. आज इस बात को लेकर दिन और कई साल बीत गये लेकिन मैं उसे आज तक ”ज्योति आइ लव यू नहीं कह पाया हूं …..” आज उम्र के इस दौर में उसे आइ लव यू कहने का मतलब दो परिवारो के बीच शंका – कुशंका का बीज बोना है. आज दोनो की हरी – भरी जिंदगी है. हसता – खेलता परिवार है यदि आज के इस दौर में जब हम दोनो के बच्चे आइ लव यू कहने के हो गये है ……ऐसे मे ज्योति से भलां कैसे कहूं ” ज्योति आइ लव यू….” .
नोट :- इस काल्पनिक कहानी का किसी भी जीवित सा मृत व्यक्ति से कोई सबंध नहीं है.
मां सूर्यपुत्री की महिमा को समर्पित एक मार्मिक कहानी
वह सुबह कभी तो आयेगी
कहानी :- रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला ”
पूरी रात वह अपने जाने की तैयारी में लगा रहा. देश छोड़ परदेश जाने वाला वह गांव का पहला व्यक्ति था इसलिए पूरा गांव उसकी बिदाई की तैयारी में लगा था. अमावस्या की काली अंधियारी रात को हर घर में मिटट्ी के तेल के लालटेन जल रहे थे. गांव के कुछ लोग चौपाल पर बैठ कर मंशाराम की किस्मत को लेकर चर्चा कर रहे थे. दुसरो के घर पर पूरी जिदंगी हाथ मज़दूरी करने वाले मंशाराम का इकलौता बेटा आज शहर से अपनी पढ़ाई पूरी करके अपनी एक खोज को पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए सरकारी खर्चे पर विदेश जा रहा था. उसे गांव का छोटा – बड़ा सभी दीनू कह कर पुकारते थे लेकिन आज तो गांव आई सरकारी लालबत्ती वाली कार से उतरे दीनू को उस कार में आये अफसर सर दीनदयाल कह कर पुकार रहे थे. दीनू ने गुजरात के कच्छ प्रदेश में भारतीय वैज्ञानिक संस्थान में विश्व समूचे विश्व को आश्चर्यचकित कर देने वाली एक ऐसी खोज कर ली थी जिसके चलते अब पानी को लेकर होने वाले तथाकथित तीसरे विश्व युद्ध के प्रकोप से बचा जा सकता है. उसे इसी माह की आने वाली 20 तारीख को अपनी उस खोज को दुनिया भर के वैज्ञानिको के न्यूयार्क में होने वाले सम्मेलन में रख कर उसका पैर्टन करवाना था. पूरी दुनिया को दीनू की इस खोज पर यकीन नहीं हो रहा था लेकिन सच्चाई भी सोलह आने सच थी कि कच्छ प्रदेश में सागर के खारे पानी को मीठा करने वाले इस देहाती छोरे ने पूरी दुनिया में भारत का झण्डा शान के साथ लहरा दिया था. देश भर के वैज्ञानिक एवं देश – प्रदेश की सरकार के मंत्री – संत्री तक उसे दिल्ली हवाई अडड्े से बिदाई देने के लिए कल जमा हो रहे थे. देश के महामहिम राष्ट्रपति इस गांव के होनहार छोरे के सम्मान में भोज देकर उसे सम्मानित कर चुके थे. दुनिया के पांच महासागर में से आधा पानी भी मीठा हो गया तो पूरी दुनिया को आने वाले हजारो सालो तक जल संकट से नहीं जुझना पड़ेगा. दीनू उर्फ दीनदयाल के इस काम से पूरा गांव भी झुम उठा था. भोर होने से पहले पनघट पर पानी की कतार में खड़ी मां को पानी के लिए तरसते देख दीनू ने पानी को लेकर कुछ करने का मन बना लिया था. उसके पाँव तब और डगमगा गये जब एक दिन भोर में पनघट पर पानी लेने गई उसकी मां के पाँव फिसल जाने से वह औंधे मुँह ऐसी गिरी की वह फिर दुबारा उठ नहीं सकी. मां की मौत की $खबर उसे इसलिए नहीं दी गई क्योकि उसकी खोज अंतिम चरण में थी. जब उसने अपनी खोज का नाम अपनी मां ताप्ती के नाम पर तृप्ति पर रखा गया तो उपस्थित सभागृह उस सच को ज्यादा दिन तक छुपा कर नहीं रख सके और दीनू को आखिर उस दर्दनाक हादसे और उसके बाद के हालातो के बारे में सब कुछ बता दिया गया. पिछले दो माह से गांव आया दीनू अपनी मां की याद में अपनी झोपड़ी के एक कोने में बैठा रोता रहता था. अपनी मां की अस्थियो को वह आते ही अपने सीने से लगा कर दुखी मन से मां सूर्य पुत्री तपती के शीतल जल में प्रवाहित कर चुका था. अब उसके पास सिर्फ मां की यादे ही शेष बची थी. गुमसुम ख्यालो में खोये दीनू को परसो ही इस बात की जानकारी मिली थी कि विश्व वैज्ञानिक सम्मेलन में उसकी खोज को रखने का भारत सरकार का प्रस्ताव मंजूर कर लिया गया है. अभी दीनू मां की दर्दनाक मौत के हादसे से उबर भी नहीं पाया था इस बीच उसे एक बार फिर अपने बुढ़े हो चुके पिता को अकेले छोड़ कर परदेश जाना था. जब गांव की पूरी पंचायत ने उसके पिता का ध्यान रखने की जवाबदेही ली तब वह गांव छोड़ कर जाने को तैयार हुआ. गांव को भी दीनू के दर्द की चिंता सताये जा रही थी. इसी सप्ताह के पहले दिन जब गांव में कारो का काफिया आया और सीधे दीनू की झोपड़ी के पास रूका तो पूरा गांव जिज्ञासु हो गया. गांव के मुखिया को कलेक्टर साहब बता रहे थे कि उनके गांव के सर दीन दयाल ने उनके गांव का ही नहीं अपने जिला – प्रदेश – देश का नाम रोशन कर दिया है. उसे कल दिल्ली से न्यूयार्क जाना है इसलिए उन्हे यह $खबर देने आये है. दीनू को कल सुबह भोर होते ही गांव के स्कूल के खाली मैदान में उतरने वाले हेलिकाप्टर से सीधे भोपाल और वहां से प्लेन से दिल्ली होते हुये न्यूयार्क जाना था. सुबह होते ही पूरा गांव बाजे – गाजे के साथ दीनू को बिदाई देने के लिए स्कूल मैदान में जमा हो चुका था. गांव के सभी मंदिरो में मत्था टेकने के बाद गांव के सभी बड़े – बुर्जगो के पाँव छुने के बाद जब उसने अपने पिता से गले मिलने के लिए कदम बढ़ाये तो उसके पाँव एक दम लडख़ड़ा पड़े. यदि उसका पिता उसे संभाल नहीं पाता तो शायद वह भी जमीन पर गिर जाता. अपने बेटे को बांहो में भरते ही मंशाराम की आंखे भर आई. उसने अपने दीनू के सिर पर हाथ फेरा और उसकी आंखो से झलकते आंसुओ को पोछते हुये कहा कि ”मुझे नहीं पूरे गांव को उस सुबह का इंतजार रहेगा जब गांव के पनघट पर पीने के पानी की न तो कतार होगी और न किसी बेटे की मां पानी के लिए बेमौत मरना पड़ेगा…..” पूरी दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचाने की दवा खोजने वाले दीनू को आज अपनी ही मां की मौम की दवा समय पर न खोज पाने का गम सता रहा था. जब सूरज आसमान पर पूरी तरह से बीचो – बीच आ चुका था इस बीच गांव पर मंडराते उडन खटोले को देखने को जमा हो चुकी भीड़ भी बेकाबू होती जा रही थी. दर्जनो लाल – पीली – नीली कारो के काफिले के चलते उस गांव की सड़क और खाली पड़ी जगह भर चुकी थी. हेलिकाप्टर में बैठने से पहले एक बार अपनी जन्मभूमि तथा पिता के पाँव छुने के बाद दीनू नीले आकाश में कहीं ओझल हो गया. पूरी दुनिया के पांच हजार से अधिक वैज्ञानिक मंत्रमुग्ध होकर दीन दयाल की बातो को सुन रहे थे. उसे न्यूयार्क के उस सभाकक्ष में कुछ देर पहले मंगवाये सागर के खारे पानी में एक प्रकार की मिटटी को मिलाने के बाद उसके खारेपन का परीक्षण करवाया. जब खारा पानी मीठा हो गया तो सबकी आंखे फटी की फटी रह गई. अब सब लोग उससे यह पता करना चाहते थे कि आखिर वह मिटटी कहां की है तथा उसमें ऐसा क्या मिलाया कि महासागर का खारा पानी मीठा हो गया. एक नहीं दस बार उस मिटटी एवं पानी का परीक्षण होने के बाद विश्व के पांचो अलग – अगल महासागरो के खारे पानी को मीठा करने वाली मिटट्ी में कहीं शक्कर जैसा कोई प्रदार्थ तो नहीं मिलाया गया. उस मिटटी को अच्छी तरह से जांचने एवं परखने के बाद उसे खाकर भी देखा गया लेकिन वह सिर्फ खारे पानी को ही मीठा कर पाई. उसे मीठे पानी में मिला कर भी देखा गया लेकिन उसके स्वाद में कोई फर्क नहीं दिखाई दिया. खारे पानी को मीठा करने वाली मिटटी का महासागरो के बीचो – बीच में जाकर भी परीक्षण किया गया लेकिन जितने क्षेत्र में मिटटी घुली उतने क्षेत्र का पानी मीठा हो चुका था. पूरे विश्व के वैज्ञानिको को दीन दयाल की एक और खोज को उजागर करने पर जोर का झटका लगा जब उसने यह कहा कि इस पानी को पीने के बाद सुगर की बीमारी तक ठीक हो जाती है. दो सप्ताह तक चली बहस के बाद आखिर पूरी दुनिया ने भारत के दीनदयाल के नाम पर उक्त खोज का पैर्टन तृप्ति के नाम से पंजीकृत कर लिया. स्वदेश आने पर दीनदयाल ने अपनी उस खोज के बारे में जब लोगो को बताया तो वे सभी आश्चर्यचकित रह गये. सूरत में अरब सागर की कच्छ की खाड़ी में मिलने वाली सूर्य पुत्री पुण्य सलिला मां ताप्ती नदी के बीच प्रवाह में उक्त मिटट्ी सदियो से बहती चली आ रही है जिसकी मारक क्षमता खारे पानी को मीठा में बदल सकती है. दीन दयाल की इस खोज पर उसे देश भर के कई विश्व विद्यालयो ने डी लिट की उपाधी से अलंकृत किया. अमेरिकी सरकार ने अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से अंलकृत किया. दीनू चाहता था कि भारत जो कि सदियो से गांवो का देश कहलाता चला आ रहा है उसके तीनो ओर विशाल सागर – महासागरो की लहरे उठती है. इन्ही लहरो का पानी यू टर्न करके गांवो की ओर यदि मोड़ दिया जाये तो कई प्यासे कंठो की प्यास बुझाई जा सकती है. खारे पानी को मीठा करने वाली मिटट्ी के 750 किलोमीटर लम्बे विशाल भण्डार से केवल ग्रीष्म ऋतु में ही संग्रहण किया जा सकता है तथा उस संग्रहित मिटट्ी को सागर के पानी में घोल कर उसे भी नहरो एवं नदियो की तरह गांवो की ओर बहाया जा सकता है. सागर के पानी के इस तरह से बहाव से बाढ़ जैसी आपदा होने का खतरा नहीं रहेगा. ढलान से ऊंचाई की ओर सागर के पानी को ले जाना उतना कठीन काम नहीं जितना आज पानी के संकट पर सरकारी पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है. गांव की गागर को सागर से भरने की इस अतिमहत्वाकांक्षा योजना को यदि मान लिया गया तो गांव की ही नही बल्कि जंगल – जमीन – पशु -पक्षी सभी के प्यासे कंठ तृप्त हो जायेगें लेकिन यह तभी संभव है तब तृप्ति को सरकार दिल और दिमाग से लेकर काम करे. पूरी दुनिया में अपने नाम का डंका बजा कर पूरे तीन माह बाद अपने गांव लौट आया दीनू अपने बुढ़े पिता के चरणो में अपने सिर को रख कर सो गया. आज वह अपने पिता के चरणो में चैन की नींद सोया कि वह फिर उठ नहीं सका. अपने पिता के चरणो में अपने प्राण छोडऩे वाले दीनू को लोग भले ही भूलते जा रहे हो लेकिन यदि फिर कभी पानी को लेकर तीसरा विश्च युद्ध नहीं हुआ तो फिर तब बरबस दीनू की याद आयेगी क्योकि उसे मरते समय तक उस सुबह का इंतजार था जब देश – प्रदेश की सरकार उसे पैर्टन तृप्ति को स्वीकार कर गावो से लेकर शहरो तक को समुद्र के खारे पानी को मीठा करके पहुंचा कर लोगो की प्यासी कंठा को तृप्त कर देगी. वह कहता था कि एक न एक दिन वह सुबह जरूर आयेगी…….
रहस्य रोमांच से भरपूर
माइकल अंकल
कहानी :- रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला”
रात को आसमान में तारे कहीं से कहीं तक दिखाई नहीं पड़ रहे थे. आज पूणम की रात थी इसलिए चांद भी अपनी पूरी जवानी पर चहक रहा था. उसके ऊजियारे में सब कुछ स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. करबला के पास की बस्ती के बच्चो को जब आंखो में नींद नहीं आ रही थी और गर्मी के मारे बुरा हाल था तो वे सब स्कूल के पास के कब्रिस्तान में एक बार फिर जमा हो गये. मोहन ने अपने साथी गोपाल से कहा ”यार चलो वहीं पर किक्रेट खेलते है…. ” आज हम अपना शाम का अधुरा मैच भी पूरा कर लेगें और साथ में डे नाईट मैच का मजा भी ले लेगे. गोपाल को मोहन की बात कुछ जमी उसने अपने सभी साथियो को बुलवा भेज दिया. खिलाड़ी तो पूरे हो गये लेकिन मंगल के न होने से उन्हे एम्पायर की कमी उन्हे खलने लगी. भलां एक एम्पायर से वह भी रात का मैच कैसे होगा. करबला के पास प्रायमरी स्कूल से सटे अग्रेंजो के जमाने के कब्रिस्तान की खाली पड़ी जमीन पर आसपास के बच्चे कई सालो से किक्रेट का मैच खेलते चले आ रहे है . आज भी पूणम की रात में डे नाइट का मैच होना था लेकिन क्या करे अपना मंगल तो आज अपने साथ है ही नहीं …. बिना मंगल के कैसे होगा किक्रेट का मैच यह सोच कर गोपाल और उसकी मित्र मण्डली पास की खाली जगह पर बैठ कर मंथन कर रही थी . इस बीच एक गोरा व्यक्ति सफेद कपड़े पहने उनके पास आया और
बोला ”क्या बात है बच्चो आज मैच नहीं हो रहा क्या…? ” रात के नौ बज रहे होगें ऐसे में करबला रोड़ पर चहल कदमी बरकरार थी. मोटर गाडिय़ा आ जा रही थी. इस शोर गुल के बीच उन्हे पता ही नहीं चला कि उनके पास आया व्यक्ति कहां से चला आ रहा था . बच्चो को गुमशुम देख वह गोरा व्यक्ति एक बार फिर वहीं सवाल करने लगा तो मोहन बोल पड़ा ”अंकल हमने आपको पहली बार देखा है…..? आप कौन है……? तथा कहां से चले आ रहे है…..? बच्चो के सवालो की झड़ी के बीच आने वाले व्यक्ति ने अपना परिचय दिया कि ”उसका नाम माइकल एंथोनी है तथा वह पास में रहता है. तुम्हारी आवाज को सुन कर वह इस ओर चला आया…. तुम्हे परेशानी क्या है ….?” माइकल की प्यार भरी बातो को सुन कर मोहन बोल पड़ा ”माइकल अंकल दर असल में आज मंगल नहीं है इसलिए हमें एक एम्पायर नहीं मिल पा रहा है , जिसके चलते हम आज का डे नाइट किक्रेट मैच नहीं हो पायेगा…..?” माइकल ने बच्चो से कहा कि ”यदि तुम चाहो तो मैं एम्पायर बन सकता हंू ….” बच्चो को उस अनजान व्यक्ति की बात पहले तो अजीब लगी फिर वे कुछ पल सोचने के बाद बोले ”ठीक है अंकल आप ही हमारे सेकण्ड एम्पायर होगें….” और फिर बच्चो ने अपनी पूरी टीम को मैदान में उतार कर किक्रेट मैच शुरू कर दिया. मैच के रोमांच के आगे बच्चे समय की घड़ी का काटा ही भूल गये. मैच के चक्कर में वे सब कुछ भूल कर उसमें इतना रम गये कि उन्हे पता ही नहीं चला कि कब सुबह होने लगी. जैसे ही सुबह होने को आई माइकल ने बच्चो से कहा कि ”भई दिन निकलने वाला है अब तुम सभी अपने – अपने घर जाकर आराम से सोओ और मुझे भी आराम करने दो…. ” . किक्रेट मैच खेल रहे सभी बच्चे माइकल अंकल की बातो में आकर मैच को वहीं समाप्त कर अपने – अपने घर को चले गये. अब बच्चो के लिए रात का मैच वह भी चांद के ऊजियारे में रोमांच भरा लगने लगा. बच्चो के हर मैच में माइकल एंथोनी मैच के शुरू होते ही आ जाता और फिर रात भर उनके मैच की एम्पायरिंग करने के बाद चिडिय़ो की चहकार गुंजने के पहले ही चला जाता. ऐसा कई महिनो तक चला. बच्चे उस व्यक्ति से ऐसा घुल – मिल गये कि उन्हे अब वह अपनी टीम का ही सदस्य लगने लगा. बच्चो के दिलो – दिमाग में छाये किक्रेट के भूत के आगे उनके माता – पिता सभी ने अपना माथा पीट लिया लेकिन बच्चे नहीं माने. रात दिन उसी कब्रिस्तान में मैच खेलते – खेलते उनका बचपना कब जवानी में बीत गया उन्हे पता भी नहीं चला. अब सभी कल के बच्चे आज के नौजवान युवक काम धंधे की तलाश में जाने लगे. दिन भर काम के बोझ से थके हारे होने के बाद भी यदि जब भी पूर्णमासी की रात आती है तो फिर क्या उनका डे नाइट मैच तो होना पक्का रहता है. काफी साल बाद जब एक दिन पूणम की रात को किक्रेट का मैच खेलन के लिए मोहल्ले के युवक नहीं आये तो उस गोरे एम्पायर माइकल एंथोनी को चिंता होने लगी. अपनी कब्र पर बैठा वह गोरा अग्रेंज माइकल एंथोनी तरह – तरह के विचार में खो गया. माइकल को इतने महिनो बाद अइ इस बात की चिंता लगी कि कहीं उसका राज तो उन लड़को के बीच फूट तो नहीं गया…..? हो सकता है कि शायद इसी डर के मारे वे सभी लड़के फिर कभी मैच खेलने ही न आये . चारो ओर फैले सन्नाटे एवं कड़ाकी ठंड के बीच विचारो में खोये माइकल से अब जब रहा नहीं गया तो वह कब्रिस्तान से बाहर सड़क पर आ गया. आज रात को सड़क भी सुनसान था. चारो ओर छाई खामोशी के बीच उसे एक घर के पास जाने पर कुछ लोगो के रोने की आवाज सुनाई दी. माइकल जानता था कि लोग उसे नहीं पहचानते लेकिन मोहल्ले के सभी लड़के तो उसे अच्छी तरह से पहचानते है. कच्चे मकान के सामने लोगो का हुजुम लगा था. एक युवक लेटा हुआ था और बाकी सब लोग रो रहे थे. किसी से पुछा तो पता चला कि मंगल अब इस दुनिया में नहीं रहा….. मंगल आज दोपहर को एक ट्रक के चपेटे में आ गया. माइकल एंथोनी भी आज ही के दिन इसी सड़क पर एक हादसे में आकर अपनी जान गवां बैठा था. माइकल एंथोनी के दादा ब्रिटेन से इंडिया आये थे. लगभग एक दशक तक यही रहने के बाद उसके सभी परिवार के सदस्य यही पर बस गये. जब ब्रिट्रीश हुकुमत का पतन हुआ तो सारे अगेंज लोग वापस जाने लगे लेकिन माइल के फादर यही रह गये. अपनी मौत की सौवी वर्षगांठ पर माइकल आज बेसुध होकर अपनी कब्र में दिन भर सोया रहा जिसके चलते उसे पास की सड़क पर मंगल की मौत की जरा भी आहट नहीं हुई. मंगल की असमय मौत के बाद से पूरी किक्रेट टीम का खेलना ही बंद हो गया. एक दिन सभी मंगल को याद करके उसी कब्रिस्तान में अपने दिन भर के काम काज की थकान को मिटाने के लिए जमा होकर गप्पे हांक रहे थे. इस बीच माइकल एंथोनी को अपने करीब आता देख सभी चौंक पड़े. पास आने पर मोहन ही कहने लगा कि ”सारी अंकल हम लोग आज मैच खेलने नहीं आये है….. अब आज क्या अब हम कभी भी मैच नहीं खेल पायेगे…..” कारण पुछने पर मोहन कहने लगा कि अंकल मंगल के न होने से मैच का मजा ही नहीं ….. कुछ देर बाद उन लड़को की खामोशी को तोड़ते हुये वह गोरा व्यक्ति बोला ”यदि मंगल भी तुम्हारे साथ आज मैच खेलेगा तब भी तुम मैच नहीं खेलोगें…?” उस गोरे अग्रेंज माइकल अंकल की बात को सुन कर सभी लड़के हस पड़े और कहने लगे ”क्या अंकल आप भी सठिया गये हो कभी आपने किसी मुर्दे को मैच खेलते देखा है….?” कुछ पल शांत रहने के बाद वह गोरा अग्रेंज एम्पायर माइकल कहने लगा ”देखो बेटे मेरी बातो को सुनने के बाद वादा करो कि तुम किसी से कुछ नहीं कहोगें और ना डरोगें भी नही…..” अब इन लड़को की सिटटी – पिटटी गुम हो गई. वे डर के मारे थर – थर कांप रहे थे लेकिन जब माइकल ने उनसे कहा कि ”मैं भी एक मुर्दा ही हँू. पास की कब्र से निकल कर आता हूं . बीते सोलह साल से तुम्हारे मैच की एम्पायरिंग करने वाला मैं एक अग्रेंजी शासन काल का अफसर माइकल एंथोनी हूं. पास ही डान बास्को में मेरा परिवार रहता था लेकिन मेरे मरने के बाद सभी अपने देश चले गये और मैं आज भी सामने वाली कब्र में पड़ा हँू. मुझे भी किक्रेट का बहुंत शौक है. मुझे मरे सौ सवा सौ साल हो गये लेकिन आज भी मैं अपनी कब्र से सिर्फ इसलिए बाहर निकल आता हंू क्योकि मुझे तुम्हारे साथ मैच में मजा आता है. ” अब उस सुनसान कब्रिस्तान में मौजूद सभी बारह लड़को को सांप सुघ गया था. उन्हे भयकांत देख कर माइकल ने उनसे कहा कि ”देखा मैं तुम्हारा पहले भी कोई नुकसान नहीं किया और न आगे करने वाला हँू. मेरी पूरी हकीगत जानने के बाद अब मुझे पूरा विश्वास है कि तुम लोग मुझसे फिर कभी नहीं डरोगें और रोजाना की तरह मेरे साथ मैच खेलने आया करोगें….” माइकल ने जब मंगल को आवाज लगाई तो करबला नदी के छोर से मंगल आत हुआ दिखाई दिया. मंगल को अपने करीब आता देख उसके सभी साथियो का डर के मारे बुरा हाल था. जैसे ही मंगल पास आया तो उसे देख कर सारे लड़के धड़ाम से जमीन पर गिर पड़े………अपनो को कब्रिस्तान के बाहर स्कूल के हाल में देख सभी लड़के भौचक्के रह गये. पुछने पर बताया कि वे सभी कब्रिस्तान में बेहोश पड़े थे. चारो ओर लोगो का मेला लगा हुआ था. लोग उनसे पुछ रहे थे कि वे इस पूर्णमासी की रात को कब्रिस्तान में क्या करने गये थे तथा उनके साथ क्या हुआ. वे उन लोगो को कुछ बताते इसके पहले उन्हे उस भीड़ में मंगल और माइकल एंथोनी दोनो दिखाई पड़े जो अपने हाथो को अपने मुँह पर रख कर उनसे चुप रहने का इशारा कर रहे थे. लोगो के सुबह से लेकर शाम तक पुछने पर भी जब सभी लड़के कुछ नहीं बता पाये तो मोहल्ले के लोग कल्लू बाबा को अपने साथ ले आये. कल्लू बाबा ने उन सभी लड़को को अपने साथ लाया पानी पीने को कहा. पानी पीते ही सभी लड़के उल्टे पाँव उस कब्रिस्तान की ओर भागने लगे. एक टूटी – फूटी कब्र के पास सभी खड़े होकर जोर – जोर से चिल्लाने लगे ”माइकल अंकल हमें बचा लो …….” कल्लू बाबा ने अपनी पोटली में से एक लोहे की किल निकाली और उस कब्र में जैसी ही गाड़ी की खून की तेज धार बाहर आकर बहने लगी. कल्लू बाबा कुछ देर तक बुदबुदाने के बाद उन सभी लड़को से कहने लगा कि ”अब तुम सभी ठीक हो , लेकिन याद रखना फिर कभी इधर आकर किक्रेट मैच मत खेलना…..”
इति,
प्रेम कहानी
पूर्णा
कहानी :- रामकिशोर पंवार ”रोंढ़ावाला ”
वह गोरी चंचल हिरणी जैसी मदमदस्त चाल वाली लड़की का नाम पूर्णा था. पूर्णा का मतलब कई प्रकार से निकाला जा सकता है. एक तो वह पूर्ण रूप से अपने मदमस्त यौवन की दहलीज पर आ खड़ी होने के कारण एक पूर्ण महिला बन चुकी थी. गरीबी और लाचारी यही शायद उसकी मज़बुरी रही होगी तभी तो वह अपने से कई साल बड़े उस पौढ़ व्यक्ति से शादी कर चुकी थी. जिस समाज मे ऐसे रिश्तो को जोडऩे की प्रक्रिया को गंधर्व विवाह कहा जाता है उसे आम बोलचाल की भाषा में पाट भी कहते है. पूर्ण की आखिर क्या मज़बुरी थी यह तो वही जाने लकिन लोगो को ऐसा कहते जरूर सुना था कि यह शादी नहीं बल्कि सौदा था. पूर्णा की शादी को लेकर उसके समाज के कथित समाज सुधारक लोग उसे उस व्यक्ति के चुंगल से बलात् पूर्वक छुड़ा कर अपने साथ तो लाये लेकिन पूर्णा का अब क्या होगा कोई नहीं जानता था. पूर्णा का मामला किसी दुसरी जाति के पौढ़ व्यक्ति के साथ कथित शादी – विवाह या उसकी खरीदी – बिक्री से जुड़ा हुआ प्रतीत होता था. एश्चवर्या राय की हमशक्ल कहलाने वाली इस कजरारी आंखो वाली पूर्णा पर हर किसी का दिल आना ठीक उसी प्रकार था जिस प्रकार जैसा
अकसर जलेबी को देखते ही मुंह से लार टपकने लगती है. उसे देख कर अगर कोई आंह न भरे तो उस हिरणी की बलखाती जवानी का एक प्रकार से निरादर
होगा. आज उसे समाज के ठेकेदार समाज के मान – सम्मान की दुहाई देकर जबरन विवाह मंडप से उठा कर तो लेकर आ गये लेकिन अब समस्या उठी की आखिर
वह रहेगी कहाँ…..? हर कोई पूर्णा को अब अपने घर रखने से इंकार कर रहा था. जवानी की दहलीज पर पांव रख चुकी पूर्णा के पांव में कब कोई गिर पड़े इस बात का हर किसी का अंदेशा था. शायद एक कारण यह भी रहा हो कि कोई भी परिवार वाल व्यक्ति उसे अपने साथ अपने घर ले जने से मुंह चुरा रहा था. पूर्णा इन सब बातो से बेखबर थी. उसका दुसरा विवाह न करने देने वाले समाज के ठेकेदार एक – एक करके खिसकने लगे. आखिर में उसे एक घर में कुछ समय के लिए ठहराने का वादा करके समाज की पंचायत में उसका फैसला कर देने की बात करके वे लोग भी नौ – दो ग्यारह हो गये जो कि समाज की बेटियो की दुहाई का दंभ भरते थे. जिस व्यक्ति के घर पूर्णा रूकी थी उस घर के लोगो ने बेसहारा – बेसहाय – गरीब – लाचार स्वजाति लड़की को यह सोच कर पनाह दी थी कि उसका दुख दर्द कम हो जाये. जब पूर्णा दर्द के रूप में नासूर बनने लबी तो अब उनके लिए भी पूर्णा बोझ सी लगने लगी. दो चार नहीं बल्कि जब पूरे एक पखवाड़ा बीत गया लेकिन न तो समाज की पंचायत बैठी और न लोग उसकी सुध लेने आये. ऐसे में अब पूर्णा को लेकर उस घर में भी कोहराम मचना स्वभाविक था. अब पूर्णा को पनाह देने वाले पर भी ऊंगलियां उठनी शुरू हो गई. पूर्णा को लेकर सबसे पहले शरणदाता की धर्मपत्नि ने ही बगावत का डंका बजा डाला. इधर उस महिला को भी चिंता सताने लगी थी कि कहीं उसका पति कोई दुसरी सौतन तो घर में नहीं ले आया. सौत की डाह बहुंत बुरी होती है. जवान बेटे को छोड़ अब पति पर ही शक का बीज अंकुरित होकर पौधा बन चुका था. पूर्णा और अपने जवान बेटे के बीच सिमटी दूरी से बेखबर मां को अपने पति की चिंता और सौत की आशंका ने बीमार बना डाला था. इधर अनाथ पूर्णा का जब भरा -पूरा परिवार एवं हम उम्र प्रेमी मिल गया तो दोनो की बीच की दूरियां सिमटने लगी. घर परिवार में अब पूर्णा को लेकर मची महाभारत से तंग आकर एक दिन उसका शरणदाता समाज के उन ठेकेदारो के पास जा पहुंचा जिन्होने उनके शांत – खुशहाल जीवन में भूचाल ला दिया था. पत्नि के रात -दिन ताने और बाने से तंग आकर उसने भी पूर्णा को अपने घर से बाहर निकालने का मन बना लिया. एक बार फिर पूर्णा सड़क पर आ गई. कल बाजार में बिक चुकी पूर्णा को आज फिर किसी नये खरीददार का इंतजार था क्योकि वह अपना पूरा जीवन आखिर काटे भी तो किसके सहारे…..
पूर्णा का जैसा नाम वैसा काम था. चंचल हिरणी और कलकल बहती नदी की तरह थी . उसका कोई ठहराव नहीं थी इसलिए उसे उस सागर की ओर बहना था जिससे उसका मिलन होगा. सागर की खोज में पूर्णा बह तो निकली लेकिन वह आखिर क्या सागर से मिली भी या नहीं किसी को कुछ पता नहीं. पूर्णा को पूरा यकीन था कि उसका वह हम उम्र पे्रमी हाथ जरूर थाम लेगा लेकिन माता – पिता पर आश्रित वह उसका हाथ थामना तो दूर उससे जाते वक्त आंख तक मिलाने को तैयार नहीं था. ऐसे में आंखो में उम्मीद और आसुंओ का समुन्दर लिये पूर्णा ने अपना सामान समेटा और उस घर को भी बिदा करके चली गई. उसे पता भी नहीं चला कि उसने कब सवा महिने उस घर में बीता दिये जहां पर उसको लेकर आये दिन लड़ाई – झगड़ा होता रहता था. पूर्णा कौन थी कोई नहीं जानता लेकिन जब उससकी एक पौढ़ व्यक्ति से शादी हो रही ी तो उसे रोकने के लिए पूरा कथित समाज लावालश्कर के साथ जमा हो गया था. ऐसे लग रहा था कि भीड़ की शक्ल में आये इन्ही लोगो में से किसी के परिवार की सदस्य है पूर्णा लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी जिसे छुपाने का प्रयास किया जा रहा था. आज पूर्णा को गये पच्चीस साल हो गये. वह जिंदा भी है या नहीं कोई नहीं जानता. पूर्णा की मदमस्त जवानी और उसका अल्हड़पन हर किसी को अपनी ओर मोहित कर देता था. काफी दिनो बाद आज जब दक्षिण भारत की आइटम गर्ल सेक्स बम कही जाने वाली अभिनेत्री स्वर्गीय सिल्क स्मिता की टीवी पर चल रही फिल्म में उसके चेहरे की झलक एवं आंखो में दिख रही अपील को देख कर उसे अपनी पूर्णा की बरबस याद आ गई. अपनी पूर्व प्रेमिका एवं पहले प्यार को याद कर जब उसकी आंखो से आंसु बहने लगे तो पास में बैठी पत्नि ने आखिर सवाल दाग ही दिया कि ”क्या हुआ आप रो क्यों रहे हो………! अपनी के द्वारा बहते आंखो के आंसुओ के पीछे की चोरी पकडने के बाद उसने बहाना बनाया कि ”कुछ नहीं आंख में कुछ चला गया ……!”
पत्नि ने देरी किये बिना अपने साड़ी के पल्लू से आंखो को पोछ कर आंखो से कुछ निकालना चाहा लेकिन जब आंखो से कुछ नहीं निकला तो पत्नि को भी आश्चर्यचकित रहना पड़ा. आखिर पति को रोता देख पत्नि ने एक बार फिर सवलो की तोप उसकी ओर दागी और वह बोल पड़ी ”कहीं उस सौतन की याद तो नहीं आ गई जिसके पीछे अभी तक अपना सब कुछ लुटाते चले आ रहे थे……!”
पत्नि के मुंह से कड़वे शब्दो को सुन कर वह अपने कमरे से बाहर की ओर निकल पड़ा. जब देर रात तक पति घर पर नहीं आया तो पत्नि को भी कुछ शक हुआ और उसने सभी जगह फोन काल खडख़ड़ा डाले.
रोमांच से भरपूर सत्यकथा
सातबड
रामकिशोर पंवार ”रोंढावाला”
रोढा सहित आसपास के दर्जनो गांव के लोग ताप्ती नदी पर स्थित बारहलिंग के मेले के लिए पैदल – बैलगाडी से सातबड होते हुये ही आना – जाना करते थे। आज पूरे दिन जम कर बरसात होने से पूरे गांव में अफरा – तफरी मची हुई थी। गांव का तलाब लबालब भर चुका था। मरघट वाला नाला पूरी तरह से ऊफान पर थ। गांव के कुछ चरवाहे जो कि बरसात में किसानो के जानवरों को ठेके पर चराने ले जाया करते थे उन्ही लोगो में से एक परिवार का सदस्य था वामन जिसके सातबड के पास किसी नदी – नाले में बह जाने की खबर सुनने के बाद पूरे गांव मे सन्नाटा छा गया था। वामन को खोजने के लिए गांव के आधा दर्जन युवको की टोली अपने साथ राशन – पानी का सामान लेकर बरसात से बचने के लिए कम्बल को ढक कर गांव से निकल चुके थे। हमारे गांव में गायकी समाज के लोग न होने के कारण गांव के जानवरो की बरसात के चार महिने की चरवाही का काम गांव के ही किसी भी गरीब परिवार के बेरोजगार युवक से लेकर पौढ व्यक्ति किया करते थे। ऐसे लोग समूह बना कर जानवरो को एकत्र कर ताप्ती के जंगलो में ले जाया करते थे। गांव से कोसो दूर इन जंगलो में एक झोपडा बन कर उसमें रह कर जानवरो के लिए बाडा बना कर उसमें उन्हे रात में बांध लिया करते थे। वामन – तुकाराम और दयालू तीनो संगी – साथी होने के कारण वे पिछले सात – आठ सालो से जंगलो में बरसात के समय जानवरो को ले जाया करते थे। ताप्ती के जंगलो में जानवरो को चरने ले जाने से पहले सभी चरवाहे और ग्रामिण सातबड के पास सातबड वाले बाबा के स्थान पर पूजा – अर्चना करने के बाद ही आगे की ओर प्रस्थान करते थे। सेलगांव और सावंगा के बीच में स्थित सातबड के बारे में अकसर नानी कहानी बताया करती थी कि इस स्थान पर सात बरगद के पेड है जिन्हे ग्रामिण अपनी भाषा में सातबड कहा करते थे। इस स्थान पर अकसर शेर – चीतो की दहाडे सुनने को मिलती थी। पालतू जानवरो को जंगलो में शेर -चीते न खा जाये इसलिए ग्रामिण और चरवाहे सातबड वाले बाबा की पूजा – अर्चना करते रहे थे। तुकराम को घर के लोग बंगा कह कर ही पुकारते थे। अकसर अपनी मनमर्जी के अनुसार रहन – सहन करने वाले बंगा की और वामन की अच्छी – खासी यारी – दोस्ती थी। पिछले कई सालो से वे जंगलो की खाक छानने के साथ – साथ एक दुसरे के पक्के दुख – सुख के साथी बन चुके थे। वामन के नदी – नाले में बह जाने की खबर भी गांव तक तुका ऊर्फ बंगा काका ही लेकर आया था। गांव के युवको की चार – पांच टोली अलग – अलग दिशा में वामन को खोजने को निकल चुकी थी। गांव के लोगो ने उन्हे बताया भी था कि जंगल में जाने से पहले सातबड वाले बाबा की पूजा – अर्चना कर लेना लेकिन वामन के गम में सभी लडके उस बात को भूल गयें और अपने – अपने रास्तो की ओर निकल पडे।
तुकाराम काका के साथ जो चार पांच लडके गये थे उसमें मैं भी शामिल था। मैने भी पता नहीं क्यों दादी की कहीं बातों को अनसुना करके बिना पूजा – अर्चना के ताप्ती के जंगलो में प्रवेश कर लिया। इधर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। किसी तरह गांव के आसपास के नालो को पार करके ताप्ती के जंगलो मे आ तों गये लेकिन जंगल में अंदर घुसने के बाद चारो ओर छाये घनघोर अंधेरे ने हमें पास के उस नाले तक पहुंचाने में पूरा दिन लगा दिया जिसमें वामन के बह जाने की खबरी मिली थी। पता नहीं क्यों हम उस नाले के आसपास होने के बाद भी उस तक पहुंच नही पा रहे थे। हम बार – बार घुम फिर कर उसी रास्ते पर आ जाते जहां से शुरू हुये थे। अब जब पूरी तरह पांवो ने जवाब दे दिया तो ऐसा लगने लगा कि हम किसी बडी मुसीबत में फंस चुके है। आसपास के आदिवासी गांवो के लोगो के बंजर पडे खेतो में बनाई बाडी यहां तक हमंे अपने जंगलो में चराने के लिए लाये गये जानवरो का बाडा तक नजर नहीं आ रहा था। अब हमें ऐसा लगने लगा था कि जंगल में वामन को खोजने के चक्कर में हम सब अपने दयालू को भी भूल चुके थे जिसे वामन के गुम हो जाने के बाद तुका काका ने जानवरो के साथ उस बाडे में रूकने को कहा था। शाम के ढलते ही जंगलो में बुरी तरह फंसने के बाद हम सभी सिर पर मौत का संकट मंडराने लगा था। घनघोर जंगलो में रास्ते तक भूलने के बाद किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर करे तो क्या…! जब हम सभी लडको को रोता देख अचानक तुका काका ने अपना मौन तोडा और वह जोर- जोर से ठहाको के साथ हसने लगा। उसे इस तरह हसता देख हम सभी यार – दोस्तो की सिटट्ी – पिटट्ी गुम हो चुकी थी। उस समय हम सभी दोस्तो की उमर कोई ज्यादा नही थी। गांव के ही मीडिल स्कूल में छटवी कक्षा में पढते थे। बरसात में स्कूल की छतो से पानी टपकता था इसलिए मास्टर लोग बरसात के चार महिने चार दिन भी सही ढंग से स्कूल नहीं लगाते थे। दो बार स्कूल की दिवार के गिर जाने तथा उसमें दो लडको के दब कर मर जाने के बाद भी जब स्कूल की दिवारो को नहीं सुधारा गया तो बच्चो की जान को जोखिम में डालने के बजाय मास्टर जी ने स्कूल ही लगाना बंद कर दिया था। गांव के मुखिया को इस बात की खबर थी लेकिन उसके लडके तो शहर में पढा करते थे इसलिए उसे कोई चिंता नहीं थी। गांव के लडके भी बरसात के महिनो में बस्तो मे बंद काफी – पुस्तको को पढने के बजाय किसी के खेत – खलिहान में मजूदरी करना पंसद करते थे। एक आना रोज से गांव में लडको को जानवर चराने से लेकर खेतो – खलिहानो में जागली – चौकीदारी का काम मिल जाता था।
हमारे गांव के मोहल्ले में तेरह – चौदह साल के हम चार – पांच लडको की टोली हुआ करती थी। गरीब परिस्थिति में जीवन यापन किसी यातना से कम नहीं होता है। दादा ठेके पर कुयें खोदने का काम करते थे। दादी और मां गांव में जमीदारो के खेतो में काम पर जाती थी। आज जब हम सभी हम उम्र के लडको की टोली गांव से की सरहद से बाहर निकली जिसमें तुका काका ही सबसे बडा था। गांव के लोगो ने हमें जंगल जाने से मना भी किया लेकिन वामन के घरवालो का रोता हाल देख कर कुंजू – गिरधारी – भगवान और गजानंद अपने घर वालो को बिना बतायें घर से मेरे कहने पर निकल चुके थे। सिर्फ मैं ही अपनी दादी वामन को ढुढने जाने की बात बता कर निकला था। मेरे सहपाठी कंुजू लोहार ने अपने घर में किसी को कुछ बताया भी नहीं जबकि उसके घर पर कल से गणेश जी बैठने वाले थे। हम सब संगी साथी कंुजू लोहार के घर पर गणेश जी को बैठालने की तैयारी में लगे हुये थे इस बीच वामन के नाले में बह जाने की खबर मिलने के बाद हम सभी लडके भी अन्य लोगो की तरह ताप्ती केे जंगलो की ओर तुका ऊर्फ बंगा काका के साथ निकल पडे थे। अब काली स्हाय रात को कैसे काटे इस चिंता से ज्यादा जानमाल की हो रही थी। पटोली में लाई रोटी नम मिर्ची के साथ खाने के बाद पेट का ज्वाला तो शांत हो गई लेकिन मन बार – बार होने वाले किसी अंदेशे को को लेकर सहम जाता था। अब हमारे पास अपनी उस अनजानी भूल को सुधारने के सिवाय कोई चारा नहीं था। सभी ने सातबड वाले बाबा को एक साथ पुकारा और हमें राह दिखाने की विनती की। इधर बरसात से हमारा कम्बल भी पूरी तरह भीग चुका था। ठंड से शरीर थर – थर कांपने लगा।
कल गणेश जी को कंुजू लोहार के घर पर कैसे बैठाल पायेगें इस बात को लेकर मन में तरह – तरह के सवाल उठने लगे थे। कुछ देर में बरसात के छीटे कम पडते देख हम सभी पेड की ओट में दुबके रहने के बाद एक बार फिर रास्ते को खोजने के लिए आगे बढने ही वाले थे कि किसी ने आवाज दी ‘‘ रामू बेटा कहां जा रहा है…….!’’ आवाज कुछ जानी – पहचानी लगी। इस विरान जंगल में हमें कुंजू के दादा जी लोहार बाबा की आकृति दिखाई दी। उस आकृति को देख कर हम सब भौचक्के रह गये क्योकि अभी दो महिने पहले ही कुंजू के दादा जी की मृत्यु हो चुकी थी। दादा जी का अंतिम संस्कार गांव के लोगो द्धारा ताप्ती नदी में किये जाने के लिए उन्हे सातबड वाले रास्ते ही ले गये थे। पास आने पर लोहार बाबा ने कुंजू के शरीर पर हाथ फेरा और बोले ‘‘ कंुजू तू बेटा नाराज है…..! मुझे अभी नहीं मरना था…….! तुम लोग चाहते थे कि गणेश जी विसर्जित होने के बाद ही मेरी मौत हो ताकि तुम लोग गणेश जी की अच्छे से पूजा – अर्चना कर सके। पर क्या करू बेटा मुझे तो ऊपर वाले का बुलावा आ गया था इसलिए जाना पडा……! ’’ इधर कुंजू सहित हम सबका डर के मारे बुरा हाल हो रहा था। अभी कुछ देर पहले तक लगने वाली ठंड के बाद भी हम पसीने से तर – बतर हो गयें थे। लोहार बाबा ने हमें बताया कि ‘‘ चिंता कि कोई बात नहीं वामन जिंदा है तथा वह अपने घर पहुंच चुका है। उसे भी बहता देख मैने ही बाहर निकाल कर उसे गांव जाने को कहा था……।’’ उस घनघोर जंगल में कुंजू के दादा जी हमें अपने गांव के जानवरो के बाडे के पास ले जाने के बाद पता नहीं कहां अदृश्य हो गये। अपने झोपडे में आग ताप रहा दयालू हमें देखने के बाद बोला ‘‘ इतनी रात को आने की क्या जरूरत थी , सबुह आ जाते…….!’’किसी तरह रात काटने के बाद सुबह उठते ही हम सभी लडके तुका ऊर्फ बंगा काका को वही छोड कर सीधे ताप्ती से सातबड वाले रास्ते से गांव की ओर निकल पडे। सातबड के आते ही हम सभी ने कान पकड कर अपनी अनजानी भूल के लिए माफी मांगी और सातबड वाले बाबा से कहा कि‘‘ बाबा हमें पता चल चुका है कि लोहार बाबा की शक्ल में आप ही हमें रात को संकट से बाहर निकालने के लिए आये थे, यदि रात को आप नहीं आते तो हम शायद आज की सुबह नही देख पाते…..!’’ हम सभी लडको ने उन सातो एक साथ आसपास लगे बरगद ‘‘ बड ’’ के पेडो की परिक्रमा लगाई और सीधे अपने गांव के रास्ते की ओर निकल पडे। गांव पहुंचने पर हमें अपने रिश्तेदारो की डाट – फटकार तो सुनने को मिली लेकिन जब हमने वामन से पुछा कि ‘‘ वह जब नाले में बह गया था तो उसे किसने बचाया……! ’’ वामन की बताई कहानी में भी काफी रहस्य एवं रोमांच था। उसके अनुसार वह नाले में बहते काफी दूर जा निकला था लेेकिन तैराना जानने के बाद भी वह नाले को पार कर इस पार या उस पार नहीं जा पा रहा था। ऐसे में वामन ने अपनी जान को संकट में देख सातबड वाले बाबा को आवाज लगाई लेकिन कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो उसने स्वंय को सातबड के पास बेहोश पाया। सातबड के पास एक आठ – नौ साल का बच्चा खडा था जो उससे कह रहा था कि ‘‘ वामन गांव जा पूरे गांव में तेरे बह जाने की खबर फैलने के बाद तेरे घर वालो का रो – रोकर बुरा हाल हो गया है। गांव वाले तुझे खोजने इस जंगल में आ चुके है। वामन तू जितनी जल्दी हो सके अपने घर जा क्योकि मुझे भी कहीं और जाना है……’’! इधर उस रात को हमंे लोहार बाबा तथा वामन को बच्चे के रूप मंे मिलने वाले सातबड वाले बाबा के चमत्कार से हम सभी उपकृत हो चुके थे लेकिन गांव का वामन को खोजने गई दुसरी टोली के न आने से पूरे गांव के लोग डरे सहमे दिखाई दे रहे थे । शाम के ढलते ही वे लोग भी आ चुके थे उनकी बताई कहानी में भी काफी रोमांच था। उन्हे भी भूलन बेल ने जब अपने चक्कर में डाल दिया तो वे लोग भी सारी रात जंगल – जंगल घुमते रहे लकिन जब सुबह हुई तो उन्हे वामन मिला और बोला कि ‘‘ तुम लोग गांव चलो , मैं बंगा भाऊ को लेकर गांव आ रहा हूं……..!’’ गांव तब वामन तो आ चुका था लेकिन बंगा काका अभी तक गांव नहीं पहुंचा। आज इस घटना को तीस साल से ऊपर हो चुके है लेकिन तुकाराम ऊर्फ बंगा काका का कोई अता – पता नहीं। गांव के जानवरो को चराने गये दयालू और वामन ने एक स्वर में एक ही बात बताई कि हमारे साथ बरसात के समय बंगा काका जानवर चराने गया ही नहीं था। अब पूरे गांव में बंगा काका के अचचानक गायब हो जाने की खबर चौकान्ने वाली थी। यदि बंगा काका वामन और दयालू के साथ गया नहीं था तो गांव आकर वामन के नाले में बह जाने की खबर लेकर आने वाला कौन था…….! कहीं ऐसा तो नहीं कि सातबड वाले बाबा ने हीं बंगा काका के रूप में आकर गांव वालो को वामन के बह जाने की खबर बताई हो………! हमारे साथ उस विरावान जंगल में जोर – जोर से ठहाके लगाने वाला यदि बंगा काका नहीं था तो कौन था………..! कहीं ऐसा तो नहीं कि सातबड वाले बाबा हम सबकी परीक्षा लेने के लिए उस रात जंगल में साथ – साथ रहे और फिर दयालू के पास रूकने का बहाना करके अदृश्य हो गये।
दादी को जब तुकाराम ऊर्फ बंगा काका के गुम हो जाने की खबर मिली तो वह बीमार पड गई। कुछ दिनो बाद कृष्ण जन्माष्टमी के दिन दादी का भी अचानक निधन हो गया। आज भी पूरे गांव वालो को यकीन नहीं हो रहा है कि वामन के नाले में बह जाने की खबर लाने वाला युवक तुकाराम ऊर्फ बंगा काका नहीं था…..! दादा – दादी के निधन के बाद गांव का एक घर बेचने के बाद हम लोग शहर आ गये। आज इस घटना को बीते कई दिन – साल हो चुके है। बंगा काका की तस्वीर भी आंखो से ओझल हो चुकी है। जब मैं अपने बच्चो को अपने बंगा काका की बाते बताता हूं तो उन्हे यकीन ही नहीं होता कि मेरे बाबू जी के पांच भाई थे। इस गर्मी में जब ननिहाल गया था तो अचानक मेरे कदम सातबड वाले बाबा के पास जा पहुंचे। उन सात बडो की परिक्रमा लगाते ही मुझे वह घटना याद आ जाती है जिसे याद करते ही पूरा बदन सिहर उठता है।
इति,
बहुचर्चित रहस्य रोमांच से जुडी कहानी
नागमणी
रामकिशोर पंवार रोंढावाला
सुबह के छै बजे जब जेल का घंटा बजा तो सारे कैदी अपने – अपने बैरको से बाहर निकल कर लाइन आकर खडे होने लगने शुरू हो गये । कैदियो की गिनती के समय जब मकलसिंह दिखाई में नहीं दिया तो जेल पहरी रामदीन को बडी चिंता होने लगी । उसने मकलसिंह को आवाज लगाई लेकिन अपने बिस्तर में सोया मकलसिंह जब बार – बार उसे पुकारे जाने पर भी जब नहीं आया तो पहरी गिनती अधुरी छोड कर मकलसिंह के बैरक में जा पहुंचा । उसने वहां पर देखा कि अपने बिस्तर में गहरी नींद में सोया हुआ था । जेल पहरी रामदीन ने मकलसिंह को जब हिलाया – डुलाया तब भी वह नहीं उठा तो वह घबराहट के मारे सीधे बैरक नम्बर 16 से जेलर साहब के बंगले पर जा पहुंचा । पसीने से लथपथ रामदीन ने जेलर शैतान सिंह के दरवाजे की कुण्डी को दो – तीन खटखटाया तो नींद से अलसाये जेलर शैतान सिंह ने सुबह – सुबह पहरी रामदीन के अचानक आने का कारण पुछा । जेल पहरी ने जब पूरी घटना जेलर शैतान सिंह को सुनाई तो उनके पांव के नीचे की जमीन खसक गई । क्योकि जिस मकलसिंह से वे अपने कमरे में रात के दो बजे तक उसकी कहानी को सुन रहे थे वह अचानक मर कैसे गया । वे अपनी नाइट ड्रेस में ही जेल के अंदर 16 नम्बर के बैरक में जा पहुंचे । जेलर शैतान सिंह के आते ही जेल में होने वाली कानफुसी बंद हो गई और लोगो को जैसे सांप सुंघ गया । इस बीच जेल कैम्पस से डाक्टर जौहर साहब भी अपने पूरे साजो – सामान के साथ आ चुके थे । हाथो की नब्ज टटोलने के बाद डाक्टर जौहरी ने मकलसिंह की मौत की खबर सुनाकर सभी को स्तब्ध कर दिया था।
पिछले चौदह सालो से जिला जेल में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मकलसिंह के अच्छे चाल – चलन की वजह से इस बार सरकार ने उसे आजादी की वर्षगांठ पर रिहा करने का कल ही फरमान सुनाया था । जेलर साहब स्वंय उसके बैरक में आकर उसकी बाकी की सजा की माफी की जानकारी उसे दे चुके थे। अपनी सजा की माफी की जानकारी मिलने के बाद से ही जब मकलंिसंह उदास रहने लगा तो उसके संगी -साथियो को बडा ही आश्चर्य हुआ । किसी तरह यह बात उडते – उडते जेलर शैतान सिंह के कानो तक पहुंची तो वे एक बार स्वंय शाम के ढलने से पहले मकल सिंह से मिलने गये थे ताकि वे उसके नाते – रिश्तेदारो की सही – सही जानकारी प्राप्त कर उन्हे मकलसिंह की रिहाई की जानकारी दे सके । पिछले चार महिने पहले ही शैतान सिंह रीवा से टंªासफर होकर बदनुर जेल आये थे। अभी जेलर साहब का परिवार नहीं आ पाया था। जेलर साहब की बिटिया कविता रीवा के इंजीनिरिंग कालेज में फायनल इयर में थी इसलिए वे अपने परिवाार को नहीं ला सके थे। बार – बार अपने नाते – रिश्तेदारो के नाम – पते पुछने के बाद भी जब मकलसिंह कुछ बताने को तैयार नहीं हुआ तो जेलर साहब को बडा ही अटपटा सा लगा । अपनी सजा माफी के बाद से हर समय हसंता – खिलखिलाता बुढा हो चुका मकलसिंह को इस तरह उदास देखकर जेलर शैतान सिंह को काफी हैरानी हुई । मकलसिंह से मिलने के बाद जेलर शैतान सिंह अपने जेल रिकार्ड में पडे उन पुराने रिकाडो के पन्नो से मकलसिंह के उस अपराध की तह में जाने का प्रयास किया जिसकी वह पिछले चौदह सालो से जेल में सजा काट रहा था । जेल रिकार्ड में मकलसिंह के गुनाहो की तह में जाने के बाद जेलर शैतान सिंह को पता चला कि मकलसिंह ने अपनी उस जान से प्यारी पत्नी और साले को ही मार डाला था। दो जघन्य हत्याओं के आरोपी मकलसिंह को चौदह साल पहले आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अपनी पत्नी और साले की हत्या के कारणो के पीछे की सच्चाई को जानने के लिए एक बार फिर जेलर शैतान सिंह ने देर रात को मकलसिंह को अपने कमरे में बुलावा भेजा । मकलसिंह आया तो जरूर पर वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं था। काफी कुदरने के बाद मकलसिंह ने जो हत्या की कहानी बताई उसको सुनने के बाद जेलर शैतान सिंह को यकीन नहीं हो रहा था। मकलसिंह की बताई कहानी सही भी है या काल्पनिक ।
महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश की सीमा से लगे आदिवासी बाहुल्य बदनूर जिला मुख्यालय की जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काटने वाला मकलसिंह दरअसल में नागपुर – भोपाल रेल एवं सडक मार्ग पर स्थित ढोढरा मोहर रेल्वे स्टेशन से बीस – बाइस कोस दूर पंक्षी – टोकरा नामक गांव का रहने वाला था। पंक्षी और टोकरा दो टोलो की मिली – जुली बस्ती में रहने वाले अधिकांश परिवारो में आदिवासी लोगो की संख्या सबसे अधिक थी। सौ सवा सौ घरो के इस वनग्राम पंक्षी – टोकरा में गरीब आदीवासी मकलसिंह की आजीविका जंगलो से निकलने वाली वनो उपज पर आश्रीत थी। वह दिन भर जंगलो से जडी – बुटी एकत्र करता रहता था। उसे जंगली – जुडी बुटियो का अच्छा – खासा ज्ञान था। उसके पास से लाइलाज बीमारियों के उपयोग मे आने वाली जडी – बुटियो को औन – पौने दामो में खरीदने के लिए महिने में एक दो बार हरदा और हरसुद के वैद्य – हकीम आया करते थे । महिने में सौ – सवा सौ रूपये कमा लेने वाले मकलसिंह के पास अपने पुरखो की सवा एकड जमीन थी। जिसमें महुआ के पड लगे थे। बंजर पडी जमीन में किसी तरह अपने हाड – मास को तोड कर बरसाती फसल निकाल पाता था। वैसे तो मकलसिंह का टोकरा टोले का रहने वाला था । इस बिरली आदिवासी बस्ती के एक छोर पर स्थित मिटट्ी का बना पुश्तैनी मकान में मकलसिंह अपने परिवार के साथ रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी सुगरती के अलावा उसकी बुढी मां भी थी। मकलसिंह के मकान के पिछवाडे में उसका छोटा सा पुश्तैनी बाडा । उस बाडे में बरसात के समय मक्का और ज्वार लगा लेने से वह अपने परिवार के लिए साल भर की रोटी का बंदोबस्त तो कर लेता था लेकिन कई बार तो फसल के धोखा देने पर उसे यहां – वहां मजदूरी करने के लिए भी जाना पडता था । मकल सिंह के बाडे में कई साल पुराना पीपल का पेड था। इस पेड के नीचे उसके पुश्तैनी कुल देवो की गादी बनाई हुई थी । कई पीढी से मकलसिंह और उसके पुरखे उस गादी की पूजा करते चले आ रहे थे।
साठ साल की आयु पार कर चुके मकलसिंह निःसंतान था । अपने माता – पिता की एक मात्र संतान के घर में जब किलकारी नहीं गुंजी तो उसकी मां ने उससे बहुंत कहा कि वह दुसरी शादी कर ले लेकिन अपनी घरवाली सुगरती से बेहद प्यार करने वाले मकलसिंह ने किसी एक भी बात नहीं मानी । यहां तक की उसकी पत्नी सुगरती तक ने उससे कई बार कहा कि वह उसकी छोटी साली कमलती को ही घरवाली बना ले लेेकिन वह नहीं माना। एक रोज जब अपने बिस्तर से बाहर जाने को उठी सुगरती ने अपने बाडे में किसी ऊजाले को देखा तो वह दंग रह गई। वह सरपट वापस दौडी आई और उसने अपने पति को सोते से जगा कर उसे वह बात बताई तो मकलसिंह के होश उड गये। अब मकलसिंह को पुरा यकीन हो गया था कि उसकी मां रमोला ने जो उसे अपने बाडे में नागमणी वाले नाग की जो बाते बताया करती थी दर असल में कहानी न होकर हकीगत थी । लोगो का ऐसा मानना था कि जिस नाग की आयु सौ पार कर जाती है उसके शरीर में एक ऐसा मणी आकार रूप ले लेता है जिसका प्रकाश में वह बुढा नाग काली अमावस्य स्हाय रात में विचरण कर सकता है । मकलसिंह ने जब अपने बाडे में नागमणी के ऊंजाले को देखा तो वह समझ चुका था कि उसके बाडे में ही नागमणी वाला नाग कहीं रह रहा है । मकलसिंह ने हर महिने को आने वाली काली अमावस्या के अंधकार में स्हाय अंधेरी रात को अपने बाडे में दिखने नागमणी के प्रकाश वाली आंखो देखी घटना पर चुप्पी साध ली तथा उसने अपनी पत्नी सुगरती को भी यह कह कर चुप करा दिया कि यदि वह किसी को यह बात बता देगी तो उसके घर परिवार में अनर्थ हो जायेगा।
पुरे दिन भर बैचन रहा मकलसिंह किसी भी तरह से उस नागमणी को पाना चाहता था लेकिन उसे मिलेगा कैसे……! शाम होने के पहले मकलसिंह ने अपने घर की घास – फंूस काटने वाली दरातियों की धार को और भी अधिक तेज करने के बाद तोता वाले पिंजरे के चारो ओर उसे इस तरह बांध दिया कि यदि नाग उस पर हमला करे तो वह कट जाये । मकलसिंह ने पिंजरे के नीचे का भाग खुला रखा था ताकि वह पेड के ऊपर से यदि पिंजरे को फेके तो वह मणी के चारो ओर घेरा बना डाले । ऐसा सब करने के बाद वह बिना किसी को कुछ बताये रात के होते ही अपने बाडे के उसी पीपल के पेड पर चढकर बैठ गया। इधर सुगरती ने मकलसिंह को काफी खोजने की कोशिसे की लेकिन थकी – हारी सुगरती निराश होकर घर आकर सो गई । जब सुगरती मकलसिंह को खोजने के लिए अपनी बस्ती की ओर निकली तो उसकी रमोला ने उसे कहा भी कि वह मकलसिंह की चिंता न करे वह कहीं पीकर पडा होगा , जब सुबह होगी तो वह खुद ब खुद घर आ जायेगा लेकिन सुगरती का दिल नहीं माना। इधर पीपल के पेड पर बैठे मकलसिंह को नींद सताने लगी थी। उसके नींद की झपकी बस आने वाली थी कि उसे पेड के नीचे उसी ऊंजाले ने चौका दिया। मकलसिंह को लगा कि अपने बिल से निकलने के बाद नागमणी वाले नाग ने अपने शरीर से मणी को निकाल कर रख दिया है और वे उसके प्रकाश में विचरण करने लगा । अपने मणी से कुछ दुरी पर नाग के पहुंचते ही मकलसिंह ने दरातियों की तेजधार से बंधे उस पिंजरे को ठीक उस स्थान पर ऊपर नीचें की ओर गिरा दिया , जहां से प्रकाश आ रहा था। अचानक अंधकार होता देख गुस्से से तमतमाये उस नागमणी वाले नाग ने उस पिंजरे पर अपनी फन से जैसे ही वार किया उसकी फन कट कर दूर जा गिरी । सब कुछ देखने के बाद जब मकलसिंह को इस बात का पूरा यकीन हो गया कि नाग मर चुका है तो वह धीरे – धीरे पेड से नीचे उतर कर पिंजरे के पास आया और उसने उस मणी को अपने पास रख कर वह चुपचाप पिंजरे को लेकर चला गया । सुबह होते ही मकलसिंह ने उस नाग को जमीन में गडडा खोद कर उसे दबा दिया।
इस घटना को बीते कई साल हो जाने के बाद एक दिन मकलसिंह ने अपनी पत्नी सुगरती को वह मणी वाली घटना बता दी । सुगरती को भरोसा दिलाने के लिए कमलसिंह ने एक रात उसे वह मणी भी दिखा दिया। मकलसिंह ने सुगरती को बार – बार चेताया था कि वह यह बात किसी को न बताये लेकिन नारी के स्वभाव के बारे में क्या कहा जाये कुछ कम है। सुगरती ने नागमणी वाली बात अपने छोटे भाई मकालू को बता दी । एक दिन अपने बहनोई के घर आ धमके मकालू ने कमलसिंह को उस मणी को दिखाने की जिद कर दी तो मकलसिंह भौचक्का रह गया। अब मकलसिंह को मणी की और स्वंय की चिंता सताने लगी। उसे लगा कि कहीं उसकी पत्नी नागमणी के चक्कर में कही उसके भाई के साथ मिल कर उसे मार न डाले इस डर से डरा – सहमा मकलसिंह ने पूरे दिन किसी से बातचीत नहीं । उस रात शराब के नशे मे धुत मकलसिंह ने अपनी कुल्हाडी से अपनी पत्नी और साले मकालू की जान ले ली । मकलसिंह को जब होश आया तब तक सब कुछ अनर्थ हो चुका था। गांव में दो हत्या होने की भनक मिलते ही पुलिस भी आ चुकी थी। मकलसिंह ने अपने अपराध को तो स्वीकार कर लिया पर उसने वह नागमणी वाली बात किसी को नहीं बताई । मकलसिंह के जेल जाते ही उसकी बुढी मां उस सदमे को बर्दास्त नहीं कर सकी और वह भी मर गई ।
अपनी रिहाई की खबर सुनाने आये जेलर शैतान सिंह को जब मकलसिंह अपनी आपबीती व्यथा सुना रहा था तो शैतानसिंह जैसे कुख्यात जालिम जेलर की भी आंखे पथरा गई। मकलसिंह कहने लगा कि साहब जिस मणी के चक्कर मंे उसने अपनी जान से प्यारी पत्नि को ही अपना सबसे बडा दुश्मन समझ कर मार डाला तब वह जेल से रिहा होने के बाद बाहर जाकर क्या करेगा । जेलर के बार – बार पुछने के बाद भी मकलसिंह ने उसे वह मणी के कहां छुपा कर रखने की बात नहीं बताई। आज जब मकलसिंह मर चुका था तब बार – बार जेलर शैतानसिंह को उसकी मौत पर और नागमणी के होने पर विश्वास नहीं हो रहा था । जेलर शैतान सिंह ने स्वंय आगे रह कर मकलसिंह का पोस्टमार्टम करवाने के बाद उसकी लाश को लेकर उसके गांव गया जहां पर गांव के अधिकांश लोग मकलसिंह और सुगरती को भूल चुके थे। एक खण्डहर हो चुके मिटट्ी के मकान के पीछे पुराने पीपल के पेड के पास जेलर शैतान सिंह ने गांव वालो की मदद से एक गडडा खुदवा कर वहीं मकलसिंह को दफन कर दिया। आज भी उसी पेड के नीचे काली अमावस्या की रात को गांव के लोगो को ऐसा लगता है कि कोई व्यक्ति अपने हाथो में ऊंजाले लिए उस बाडे में घुमता रहता है । जिस – जिस भी व्यक्ति को इस नागमणी के होने की खबर मिलती वही व्यक्ति उस काली अमावस्या की रात को उसे पाने के लिए मकलसिंह के बाडे में मौजूद पीपल के पेड की डाली पर पूरी रात बैठा रहता है ताकि वह उस मणी को पा सके । गांव के लोगो के लोगो की बातो पर यकीन करे तो पता चलता है कि हर अमावस्या की काली रात किसी ने किसी नागमणी को पाने वाले इंसान की बलि ले लेती है। ऐसा पिछले कई दशको से चला आ रहा है। गांव के लोगो को आज भी काली अमावस्या की रात को होने वाले हादसे की आहट स्तब्ध कर देती है ।
इति,
नोट:- इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना – देना नहीं है।
रहस्य रोमांच से भरपूर सत्यकथा
‘‘ डब्लयू डब्लयू डाट काम ’’ की वंदना……..!
रामकिशोर पंवार रोंढावाला
आज फिर अमावस्या की काली रात थी। शाम को अपने सहपाठी के साथ टूयुशन पढने घर से निकला डब्लयू जब देर रात तक घर नहीं आया तो घर के लोगो की चिंता बढना स्वभाविक थी। डब्लयू के दोस्तो के घर से निराश लौटी दोनो बहनो शर्मिला – निर्मला ने जब उसकी मम्मी को डब्लयू के उनके दोस्तो के घरो पर न होने की खबर सुनाई तो वह गश्त खाकर गिर गई। आज सुबह ही इन्दौर जाते समय डब्लयू के पापा ने उसे बार – बार चेताया था कि ‘‘ आज अमावस्या है , डब्लयू को टुयूशन पढने मत भेजना ……….! लेकिन पता नहीं कब डब्ल्यू अपने दोस्तो के साथ अपनी उसी क्लास टीचर के पास टुयूशन पढने चला गया जिसके पास वह पिछले दो सालो से आ रहा था। पिछले कई दिनो से डब्लयू सोते समय किसी वंदना का नाम लेकर उसे पुकारते हुये अचानक गहरी नींद से जाग उठता था। ऐसे समय उसका पूरा बदन पसीने से तर – बतर हो जाता था। पिछले एक साल से उसके घर परिवार के लोगो ने उसकी इस अजीबो – गरीबो बीमारी को लेकर डाक्टरो से लेकर तांत्रिक – मांत्रिको – ओझा – फकीरो के पास खाक छानने में कोई कसर नहीं छोडी लेकिन किसी की भी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिर यह वंदना है कौन….! इसका उस ग्यारह साल के डब्लयू से क्या रिश्ता – नाता है।
डब्लयू के माता – पिता तथा रिश्तेदारो एवं मित्रो ने उसके स्कूल में पढने वाली सभी लडकियो में वंदना नामक की लडकी की तलाश की लेकिन सबसे बडा आश्चर्य इस बता का रहा कि पूरे स्कूल में दो हजार लडकियो में किसी का भी नाम वंदना नहीं था। इस वंदना ने पूरे परिवार के साथ हर महिने की उस काली अमावस्या की पूरी रात मंे सभी का जीना दुभर कर दिया था। डब्लयू उसके परिवार में सबसे छोटा सदस्य होने के कारण सबका प्रिय था। उसने पिछले साल ही ग्यारह साल की उम्र में तीसरी क्लास पास की थी। भारत सरकार द्धारा संचालित बारहवी बोर्ड मान्यता प्राप्त सरकारी स्कूल में पढने वाला डब्लयू पूरी क्लास में अव्वल नम्बर पर पास होने वाला छात्र था इसलिए पूरी क्लास का वह चेहता था।
पिछले साल अप्रैल माह की अमावस्या के बाद से शुरू ही इस लाइलाज समस्या से पूरे परिवार की शारीरिक – मानसिक – आर्थिक स्थिति डावाडोल हो चुकी थी। आज फिर अमावस्या की इस काली स्हाय रात में डब्लयू का इस तरह गायब हो जाना पूरे परिवाद चैन को गायब कर चुका था। पुलिस को भी इस बारे में सूचना दे दी गई थी कि एक ग्यारह साल का लडका अपने घर से टुयुशन से जाने के बाद से गायब है। सिटी कोतवाली ने पूरे क्षेत्र को वायरलैस सेट पर इस बात की जानकारी भेज दी थी। इधर धनश्याम भी अचानक अपने छोटे बेटे के रहस्यमय ढंग से गायब होने की खबर से इंदौर से भागा – भागा दौडा भोपाल आ चुका था। अपने परिवार में दो भाई – दो बहनो में डब्लयू डब्लयू डाट सबसे छोटा था। उसके पिता मध्यप्रदेश शासन की सरकारी नौकरी में भोपाल पदस्थ थे। सरकारी काम – काज की वजह से उसे अकसर इंदौर – ग्वालियर – जबलपुर – आना – जाना पडता था।
उसका नाम डब्लयू नहीं था लेकिन जब उसका जन्म हुआ था उस दिन उसके पापा ने अपने घर पर इंटरनेट कनेक्शन लिया था। इसलिए वे नेट पर किसी साइड में कोई जानकारी सर्च कर रहे थे उसी समय उसके जन्म की खबर मिलने के बाद से ही उसके बडे पापा उसे ‘‘ डब्लयू डब्लयू डाट काम ’’ के नाम से ही उसे पुकारते थे। बडे पापा की देखा देखी घर के सभी लोग उसे या तो ‘‘ डब्लयू ’’ या फिर ‘‘ डाट काम ’’ के नाम से पुकारने लगे थे। झीलो के शहर भोपाल जिसे ताल – तलैयो का शहर भी कहा जाता है। भोपाल को लोग भले ही नवाबो के शहर के रूप में जानते हो लेकिन सच्चाई यह है कि भोपाल को बसाने वाले राजा भोज थे जिन्होने भोजपुर में विशाल एतिहासिक शिव मंदिर और इस शहर में ताल – तलैया खुदवायें। धार के राजा भोज के वंशजो की लम्बी चौडी श्रंखला है। मध्प्रदेश के सात जिलो की बहुसंख्यक पंवार जााित के लोग स्वंय को राजा भोज के वशंज मानते चले आ रहे है। इसी भोपाल शहर में पुरानी जेल के पास मध्यप्रदेश फायर पुलिस स्टेशन भी बना है। इसी स्थान के आसपास किसी कालोनी में डब्लयू अपने परिवार के साथ रहता था। जैसे – जैसे अमावस्या की काली रात कटने लगी तो घर परिवार की चिंता भी बढने लगी। सुबह होते ही अचानक अपने स्कूल का बैग लेकर डब्लयू को कालोनी कैम्पस में आता देख सभी लोग भौचक्के रह गये। उसे आता देख पूरी कालोनी में कोहराम मच गया। किसी को भी अपनी आंखो पर भरोसा नहीं था कि वे जो देख रहे है वह सच भी है या नहीं…..! डब्लयू की खबर मिलते ही दौडी आई उसकी मम्मी का रो – रोकर बुरा हाल था। उसे गोदी में लेकर जाने लगे तो डब्लयू ने पीछे मुड कर देखा और पुकारा ‘‘ वंदना तुम भी मेरे साथ मेरे घर पर चलो ना………!’’ सुबह – सुबह पहली बार डब्लयू को उस अदृश्य तथाकथित वंदना का नाम लेकर बडबडाते देख आसपास भीड का शक्ल में खडे लोगो का हाल बेहाल था। किसी तरह उसे घर लाने के बाद जब पास के ही किसी युवक ने सामने वाली गली से मौलवी साहब को बुला लिया लेकिन मौलवी साहब की आठ -दस घंटे की पूरी मेहनत पर जैसे पानी फिर गया। आखिर किसी ने सलाह दी कि क्यों न इसे मलाजपुर गुरूसाहब बाबा की समाधी पर लेकर चले हो सकता है कि बच्चा ठीक हो जाये। लोगो की सलाह को उचित मान कर पूरी कालोनी के गिने – चुने लोग एक किरायें की जीप लेकर सीधे चिचोली के पास स्थित गुरू साहेब बाबा की समाधी पर ले आये। पहले तो डब्लयू यहां आने को तैयार नहीं हुआ लेकिन उसे किसी तरह से सब लोगो ने अपी बाहों में जकड कर लाया। समाधधी पर लाने के पूर्व ही उसे सामने बह रही बंधारा नदी में नहलाया गया उसके बाद बाबा की समाधी के पास बैठे बाबा के सेवक ने उसके सिर पर पानी के छीटे मारे । पानी के छीटे पडते ही डब्लयू के शरीर में प्रवेश कर चुकी वंदना ने बताया कि दरअसल में यह बालक उसके पिछले जन्म का पति है। भोपाल के पास ही बखरिया गांव के रहने वाले रमेश की गांव की छोरी वंदना से बारह साल पहले शादी हुई थी। वंदना के हाथो की मेंहदी अभी सुखी भी नहीं थी कि वह एक दिन अपने पति रमेश के साथ भोपाल में झील में नाव पर बैठी सैर कर रही थी कि अचानक उनकी नाव पलट गई और दोनो पति – पत्नि की मौत हो गई। नाव का नावीक तैरना जानता था इसलिए वह बच निकला लेकिन मैं तो अपने पति के साथ ही इसी झील में डूब कर मर गई। पुलिस और गोताखोरो ने मेरे पति की लाश तो ढुंढ निकाली लेकिन मेरी लाश उन्हे आज तक नहीं मिली जिसकी चलते उसे अकाल मौत से प्रेतयोनी में जाना पडा। पिछले साल अमावस्या की रात की पूर्व संध्या पर डब्लयू को जब मैने देखा तो मुझे अपने पति रमेश की डब्लयू से हुबहू मिलती शक्ल के कारण मैं उसके पीछे पड गई। इन लोगो को याद होगा कि पिछले साल अप्रैल माह में डब्लयू भी नांव से अवानक नीचे झील में गिर गया था। दरअसल में मैने ही उसे गिराया था लेकिन जब मुझे पता चला कि यदि यह आज भी अकाल मौत मर जायेगा तो मुझे मुक्ति कौन दिलवायेगा……! इसलिए मैने ही डब्लयू को अवनक झील की गहराई से ऊपर की ओर फेका और ऐ लोग उसे तैराता देख बचा लाये। वंदना की कहीं बाते सुनने वालो को सौ प्रतिशत सही लग रही थी क्योकि उस शाम जो हादसा डब्लयू के साथ हुआ था उसके सभी प्रत्यक्षदर्शी भी आज यहां पर मौजूद थे। वंदना से बाबा ने डब्लयू को छोडने का संकल्प लेने को कहा लेकिन काफी ना – नुकर के बाद वह इस शर्त पर मानी की उसे गुरू साहेब बाबा प्रेत योनी से मुक्ति दिलवाये ताकि वह फिर जन्म लेकर अपने पति के रूप में डब्लयू को पा सके। वंदना की कहीं बातो पर सभी को सहमति थी क्योकि मात्र ग्यारह साल के इस युवक की अभी शादी तो होना है नहीं यदि उसकी शादी के बहाने किसी को प्रेत योनी से छटकारा मिल सकता है तो इससे बडी बात क्या होगी। आखिर वंदना को वचनबद्ध करने के बाद वंदना ने डब्लयू की देह से बाहर निकल कर अपने अन्यत्र स्थान की ओर प्रवेश कर लिया। आज डब्लयू की शादी की उम्र हो चुकी है लेकिन तीस साल के इस बांके युवक को इंतजार है कि उसकी वंदना उससे एक बार फिर शादी करेगी……!
इति,
बहू – बहन – बेटी के लिए ग्राहक तलाशते लोग
रामकिशोर पंवार की विशेष रिर्पोट
अफीम की तस्करी के लिए अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नीमच शहर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर राष्टरीय राजमार्ग पर बाछड़ा जाति की बस्ती बसी हुई है. सौ सवा सौ घरो की इस बदनाम बस्ती में पहँुचने वाले किसी भी आम आदमी से उस बस्ती का बच्चा हो या बुढ़ा बस एक ही सवाल करता है ”साहब फ्रेश माल चाहिए क्या………..? बहू – बेटी बहन के लिए ग्राहक तलाशते लोगो के लिए उक्त जिज्ञासा भरा प्रश्र उसकी रोजी -रोटी से जुड़ा होता है. वह सिर से पांव तक फटेहाल कपड़े से अपने जिस्म को ढ़कता पौढ़ अपनी बुझती बीड़ी को जलाने के लिए लम्बा कश लगाते हुये मुझसे से वही सवाल ”साहब फ्रेश माल चाहिए क्या………..? किया तो मैं उसकी बात को सुन कर हैरत में पड़ गया. यूँ तो मैं कई बार देह व्यापार करने वाली महिलाओं की बस्ती में उन पर स्टोरी लिखने के लिए जा चुका हँू. मुझे पहली बार उस पौढ़ व्यक्ति का अपनी बहू-बेटी की उम्र की लड़कियों के लिए ग्राहक तलाशना अजीब सा लगा. मैं उस पौढ़ व्यक्ति से कुछ बोल पाता इसके पहले उस कच्चे मकान के भीतर से एक सजी संवरी युवती ने मुझे आँख मारते हुए अंदर आने का इशारा किया. मैं मकान के अंदर जानेे के लिए आगे बढ़ा. करीब आने पर मैने देखा कि उस मकान में कुल दो कमरे बने हुए थे. सामने के कमरे में एक पौढ़ महिला बैठी हुई थी.अंदर से इशारा करने वाली युवती ने मुझसे उस महिला को रूपये देने का इशारा किया. पर्स से सौ रूपये का नोट निकाल कर मैने जैसे ही उस महिला को दिया वह रूपयें लेकर कमरे से बाहर चली गई. कमरे बाहर जाते ही उस महिला ने बाहर से कमरे का दरवाजा बंद किया तो मैं घबरा गया लेकिन वह युवती मेरा हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले जाते हुए बोली ”बाबू घबरा नहीं पुलिस वालो से बचने के लिए ऐसा करना पड़ता है. उस युवती ने अपना नाम निर्मला बताया. निर्मल मन की उस युवती की वेश्या बनने की त्रासदी किसी हिन्दी फिल्म की नायिका से काफी मिलती जुलती थी. जब मैने उसे सवालो से उसके जिस्म को कुरेदना चाहा तो वह सिसकती हुई बोली ”बाबू जिस काम के लिए आए हो वो करो और हमे भी अपना काम करने दो ना क्यो नाहक हमारा टाइम खराब कर रहे हो ? आप मेरे पहले ग्राहक है ? मुझे और भी लोगो को खुश करना है? मुझे कुछ कमाने दो ना ? उसकी यह मजबुरी मुझे अजीब उलझन में डाल गई. मेरा उसके बारे में जानना बहँत जरूरी था मैने उससे कहा ” निर्मला अपने बारे में मुझे सब कुछ बताओं मैं जितनी देर इस कमरे में रहँुगा उतनी देर का तुम्हे रूपैया दँुगा . काफी मिन्नत के बाद वह इस शर्त पर मानी कि उसकी इस कहानी में उसका नाम पता सब कुछ बदलना होगा. मैने उसे विश्वास दिलाया तो वह बताने लगी.
निर्मला आज अजीब उलझन में है. उसकी उलझन न तो पैसों को लेकर है और न ही किसी अन्य कारण से. पैसा उसके पास बहुत है, आधुनिक सुख-सुविधाएं भी उसने अपने पास काफी मात्रा में जुटा ली है. निर्मला की दिक्कत उसकी चार साल की बेटी ममता है. ममता अब सब कुछ समझने लगी है. ममता अब उससे सवाल करती है कि मम्मी मेरा बाप कौन है? वह मुझसे मिलने क्यो नहीं आता है? वह हमारे पास क्यो नहीं रहता? ऐसे कई सवाल वह पूछती है. उसके हर सवाल ऐसे है जिसका जवाब वह खुद भी नहीं जानती. निर्मला ने जबसे होश संभाला है तबसे अपने आपको देह व्यापार की मण्डी में बैठा पाया है. खुद निर्मला को यह नही मालूम कि वह किसकी बेटी है? उसके पास अब तक कितने पुरूष आए और अपनी रातें रंगीन कर चले गए . जब निर्मला को खुद नहीं मालूम कि वह किसकी बेटी है तब वह अपनी बेटी को कैसे बताए कि वह किसकी बेटी है? उस रोज जब वह गर्भपात कराने अस्पताल गई थी तो डाक्टरो ने उसे यह कह कर मना कर दिया था कि अगर उसकी सेहत का ध्यान रखे बिना गर्भपात करा दिया गया तो उसकी जान जा सकती है. अपनी जान को बचाने के लालच में ममता ने जन्म ले लिया.जब ममता हुई तो उसने सोचा था कि वह अपनी बेटी को पढ़ लिख कर इस काबिल बनायेगी कि वह इस बदनाम बस्ती से कोसो दूर रहे. शायद ममता को जयपुर के कान्वेट स्कूल में भर्ती कराते समय उसने यही सोचा भी था. चार साल की होते ही ममता ने स्कूल जाना शुरू कर दिया.बाछड़ा जाति के लोगों की इस बस्ती में निर्मला ही अकेली ऐसी औरत नहीं है, दर्जनों ऐसी औरतें है, जिनकी ममता जैसी बेटीया है. हर रोज दर्जनो बाछड़ा जाति की युवतियाँ अपने-अपने घरों से निकलकर सड़क पर खड़ी हो जाती है और जैसे ही कोई पुरूष उधर आता दिखाई देता है, उसे अश्लील इशारे करके उसे अपने पास बुलाती है. मध्यप्रदेश के नीमच, मंदसौर , रतलाम जिले के बागाखेड़ा, पयलिया, माननखेड़ा तथा ढोढर और मंदसौर जिले के चिकलाना, मोयार बेड़ा, हनुमंतिया पिपलियामण्डी, मल्हारगढ़, चल्हू इंगोरिया तथा शंकर ग्राम गांव में ऐसे दृश्य आम बात है. आज भी इन गांवों में देह-व्यापार का धंधा कई पीढिय़ो से होता चला आ रहा है. इन गांवो में आने वालों में अधिकतर ट्रक ड्रायवर तथा उधर से गुजरने वाले राहगीर होते है.सौदा तय हो जाने पर पेशेवर औरतें ग्राहक को अपने घर ले जाकर उसे शारीरिक सुख देती है. नीमच, रतलाम तथा मंदसौर में 67 गांव ऐसे है जहां जिस्म फरोशी का धंधा धड़ल्ले से होता है. बाछड़ा जाति में जिस्म-फरोशी के धंधो को बुरा नहीं माना जाता है बल्कि यही धंधा उनकी रोजी-रोटी का आधार है. इस जाति की पौढ़ महिलाए अपने परिवार की रजस्वला की उम्र पार करने वाली हर लड़की को जिस्म बेचने की विशेष ट्रेनिंग देती है.12 वर्ष की अवस्था में पहुंचते ही उसे जिस्म-फरोशी के धंधे में उतार दिया जाता है. आज भी देह व्यापार से जुड़ी बाछड़ा जाति में बेटी के पैदा होने पर उसके परिवार के लोग जश्र मनाते है. साथ ही जब परिवार में लड़का पैदा होता है तो मातम मनाया जाता है. बाछड़ा जाति के पुरूषों के बारे में आम धारण है कि ए लोग एक नम्बर के कामचोर, निकम्मे और आलसी होते है, घर बैठकर रोटी तोडऩे के अलावा अपनी बहू- बहन – बेटी के लिए ग्राहक तलाशना इनका काम रहता है. आज भी केवल इस जाति में परिवार की सबसे बड़ी महिला को ही परिवार का मुखिया स्वीकारा जाता है. पुरा परिवार उसी महिला के हुक्म पर चलता है. बीते कुछ साल पूर्व तक बाछड़ा जाति में पहली लड़की को ही धंधे पर बिठाने की परम्परा थी, लेकिन पैसे की हवस में जाति के लोगों ने इस परम्परा को तोड़कर परिवार की सभी लड़कियों को धंधे में बिठाने की नई परम्परा शुरू कर दी है. आज भी इस जाति की अधिकांश युवतियाँ छोटी सी उम्र से ही शराब, हीरोइन , अफीम ,चरस ,की आदी हो जाती है.
वैसे देखा जाए तो इस जाति की महिलाओं का जिस्मफिरोशी का धंधा पुलिस के संरक्षण में ही चलता है. पुलिस यदा – कदा बदनामी से बचने के लिए इनके अडडे पर छापे मार देती है. ऐसा तक ही होता है जब क्षेत्र का कोई दरोगा या पुलिस का बड़ा अफसर बदल जाए. कुछ बाछड़ा जाति की महिलाओं को पुलिस छापे का भय सताते रहता है. पुलिस के डर से ए महिलाए अपने घरों में चारपाई और खाना बनाने के बर्तनों के अतिरिक्त कुछ भी सामान नहीं रखती है. हालाकि अधिकांश बाछड़ा जाति महिलाओं ने वेश्यावृत्ति से लाखों रूपए की कमाई करके नीमच एवं मंदसौर तथा रतलाम शहरों में अपने भव्य आलीशान मकान रखे है. अपने जिस्म के धंधे की मजबूरी को ध्यान में रखकर ए लोग आज भी कच्चे घरों में रहकर बेधड़क जिस्म फरोशी के धंधे को चलाये रखी है. बाछड़ा जाति में भी लड़की की नथ उतारने की परम्परा आजभी जारी है.नथ उतराने के लिए उस लड़की के परिवार को पाँच हजार रूपैया दिया जाता है. देह व्यापार के इन अड्डï पर दिल बहलाने आने वालों के लिए हर तरह की शराब सहित अन्य नशो का भी इंतजाम करवाया जाता है. मटन मुर्गा खाने वाले ग्राहको को उनकी मांग के अनरूप भोजन पका कर उपलब्ध कराया जाता है.कम उम्र की लड़कियां 275 से 300 रूपए के बीच मिल जाती है. ऐसा नहीं कि बाछड़ा जाति की लड़कियां जिस्म-फरोशी के धंधे को स्वेच्छा से करती है. दरअसल उनके मां-बाप ही उन पर दबाव डालकर धंधा करने के लिए प्रेरित करते है. बहुत सी लड़कियां चाहती है कि उनकी भी शादी हो और वे भी अपना घर बसायें, लेकिन मां-बाप की पैसों की हवस ही उनके इस स्वप्र को खाक कर देती है.
सबसे बड़ा आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि बाछड़ा जाति की युवतियाँ जिस्मफिरोशी के धंधे आने के कारण कई बार समय पर गर्भनिरोधक सामग्री का उपयोग नही कर पाने के कारण बिना ब्याही माँ बन जाती है. ऐसी महिलाओं की संख्या काफी है. शायद यही वजह रही होगी कि इस जाति की महिलाओं में कोर्ट-कचहरी से लेकर बच्चे के दाखिले तक में पिता की जगह इनकी मां का नाम ही लिखने की परम्परा जन्मी है. महू-नीमच मार्ग के किनारे बसे बाछड़ा समाज के गांवों के आसपास कई ट्रक खड़े देखे जा सकते है. ये ट्रक ड्रायवर ही इन लोगों के मुख्य ग्राहक होते है. स्थानीय लोग इन अड्डïों पर कम ही जाते है. जिस्म फिरोशी की इन बदनाम बस्तियों में पुलिस को कई बार कुख्यात अपराधी हाथ लगते है. देह-व्यापार के धंधे में लिप्त होने की वजह से यहां की ज्यादातर वैश्याएं भयानक यौन रोगों से पीडि़त होती है. कई बार अनेक चिकित्सा दलों द्वारा समय-समय पर किए गए सर्वेक्षण से चौकाने वाले निष्कर्ष सामने आए है. नीमच एवंंं रतलाम तथा मंदसौर जिलों की अधिकंाश बाछड़ा जाति की महिलाए एड््ïस जैसे भयानक रोग से पीडि़त मिली है.एड््ïस रोगी महिलाओं ने जागरूकता के अभाव के चलते इस बीमारी से निपटने के लिए न तो अस्पतालों की शरण ली है और न राज्य सरकार ने इन पीडि़त महिलाओं की सुध ली है.राज्य सरकार ने बाछड़ा समाज के बच्चों तथा महिलाओं के लिए स्कूल तथा वोकेशन ट्रेनिंग सेन्टर जरूर खोले है, लेकिन समाज में जागरूकता ला पाने के अभाव से ये योजनाएं विफल हो गई है. यहां के एक सरकारी स्कूल में इस समय केवल सात बच्चियां ही शिक्षा ग्रहण कर रही है। इसी तरह ढोढर सिलाई केन्द्र में केवल तीन लड़कियां सिलाई का प्रशिक्षण ले रही है। इन सब बात से पता चलता है कि बाछड़ा जाति की महिलाए अपने पुश्तैनी धंधे को छोडऩा नहीं चाहती है. मंदसौर जिले के 57 गांवो में बाछड़ा समाज के लगभग 5668 लोग रहते है. स्वास्थ्य विभाग ने एड्ïस की जांच के लिए बाछड़ा समुदाय की 12 से 35 वर्ष की लड़कियों एवं पुरूषों के 950 रक्त नमूने लिए. प्रारंंभिक जांच में इनमें एड्स की संवेदनशीलता 99.9 प्रतिशत आंकी गई. सर्वे के अनुसार 756 महिलाओं की जांच की गई, जिसमें 50.6 प्रतिशत वीडीआरएल पाई गई. एचआईवी पॉजिटिव की प्रमाणिकता 1.93 प्रतिशत पाई गई है. बाछड़ा समुदाय के 765 पुरूषों में 46.4 प्रतिशत वीडीआरएल पॉजिटिव पाए गए है, इसमें 0.75 प्रतिशत एचआईवी पॉजिटिव पाए गए है. इसी सर्वेक्षण में 435 स्त्रियों में वीडीआरएल पॉजिटिव पाया गया. इतनी बड़ी संख्या में एचआईवी सिद्ध होना भयंकर खतरे की ओर संकेत करता है. रतलाम से लेकर मंदसौर जिले के मुख्य सड़क मार्ग जिसे महू-नसीराबाद राजमार्ग कहा जाता है, इस पर 24 घंटे में लगभग तीन-चार हजार भारी वाहन गुजरते है. इसी मार्ग पर बाछड़ाओं के डेरे है. इस सड़क पर स्थित ढाबो पर आपराधिक गतिविधियां, अफीम, ब्राउन शुगर तथा स्मेक जैसे नशीले पदार्थों की बिक्री तथा देह व्यापार संचालित होता है. स्वास्थ्य विभाग ने यहां से गुजरने वाले ट्रक ड्रायवरों एवं क्लीनरों के भी रक्त नमूने लिए. जांच करने पर 20.7 प्रतिशत वीडीआरएल पॉजिटिव पाए गए. इस जांच में पता चलता है कि बाछड़ा समुदाय की पेशेवर लड़कियों से इन ट्रक ड्रायवरों में एचआईवी का प्रतिशत काफी अधिक है। इस निष्कर्ष के अनुसार ट्रक ड्रायवर इन बीमारियों को ज्यादा फैला रहे है. क्योंकि ये ट्रक ड्राइवर तथा क्लीनर जिस तरह बाछड़ा जाति की लड़कियों के साथ जिस्मानी संबंध बनाते है उसी तरह अन्य जगहों पर भी संबंध बनाते है. बाछड़ा जाति की युवतियाँ कब इस दलदल से बाहर निकल पायेगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन निर्मला को आज भी यह उम्मीद है कि उसकी ममता भविष्य में कभी भी उसका स्थान नहीं लेगी.
इति,
नाच मेरी बुल बुल तुझे पैसा मिलेगा
रामकिशोर पंवार
भारतीय संस्कृति का लाबदा ओढे उसके तथाकथित संरक्षक होने का दावा करने वाली मध्यप्रदेश की भाजपा के शासनकाल में महाराष्ट एवं मध्यप्रदेश के करोड़ो रहवासियों की धार्मिक आस्था एवं श्रद्घा का केन्द्र कहे जाने वाले जग प्रसिद्घ पवित्र शिवधाम सालबर्डी मेले में पिछले कई सालो से वैराइटी जैसे दर्जनो तमाशो के रात्री शो की आड़ में बेहुदा उत्तेजक अश्लील नृत्यों एवं अवैध धंधो की धूम मची रहती है. महाराष्ट सीमा से सटे हुए शिवधाम सालबर्डी में शिवरात्रि के अवसर पर आयोजित जिले के सबसे बड़े मेले में पिछले कई वर्षो से पड़ौसी राज्य महाराष्ट की युवा कमसिन बार बालाओं द्वारा खुलेआम बेरोकटोक किया जा रहे अश्लील नृत्य के चलते जहाँ एक ओर असंख्य शिवभक्तों की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचती चली आ रही है. वही दूसरी ओर कई वर्षो से इस मेले में वैराइटी जैसे शो के संचालकों द्वारा अपनी लाखों रूपयों का जरीया बने इन तमाशो को बड़ी संख्या में लगाने के लिए तथा उन पर किसी तरह की पाबंदी न लगे इसके लिए अपनी ओर से तन-मन-धन से राजनैतिक – आर्थिक तथा अन्य तरह की बिसात बिछाने में लगे हुए है. मध्यप्रदेश शासन को एक मुश्त मनोरंजन कर ने देकर उसकी चोरी करने वाले इन देह दर्शन कराने वाले व्यापारियो द्वारा ऐसा प्रयास किया जा रहा है कि उनके भाग्य से हर बार की तरह इस बार भी शीका टूट जाए ! महाराष्ट एवं मध्यप्रदेश के ताकतवर एवं ऊंची पहुंच वाले देह दर्शन कराने वाले तमाशेबाज वैराइटी शो के संचालकों के सामने मेला संचालक जनपद पंचायत प्रभातपट्टïन के अधिकारी एवं मेले में सुरक्षा व्यवस्था सम्भाल रही आठनेर पुलिस उनके द्वारा हर साल फेके जाने वाले टुकड़ो चलते वह हर प्रकार से नतमस्तक बनी रहती है. सालबर्डी मेले में चल रहे अश्लील नृत्यों के मामले में जनपद प्रशासन एवं पुलिस द्वारा जिला कलेक्टर एवं एसपी को पूरी तरह गुमराह कर वैराइटी शो की अनुमति दी गई है. वर्षो बरस से चले आ रहे आस्था के प्रतीक इस धार्मिक मेले में खुलेआम बिकती अवैध शराब, जगह-जगह खेला जा रहा तीन पत्ती का जुआं और नाबालिग लड़कियों से कराये जा रहे अश्लील डांस की ओर आंखे मूंदे प्रशासन और पुलिस के कारिंदों के सामने यह सब खुलेआम होना क्या साबित करता है? इसे लिखने की आवश्यकता नहीं है.
इधर इस मामले में जनपद पंचायत प्रभातपट्टन के मुख्य कार्यपालन अधिकारी का कहना है कि यदि वैराइटी शो संचालन की अनुमति नहीं दी जाती तो सालबर्डी मेला सफल नहीं होता. जबकि वैराइटी शो की आड़ में चल रहे अश्लील नृत्यों को रोकने के सवाल पर मेले में सुरक्षा व्यवस्था की कमान सम्भाल रहे आठनेर थाना प्रभारी साफतौर पर कहते है कि मेले में चल रहे वैराइटी शो के लिए स्थान का आवंटन जनपद पंचायत प्रभातपट्टन द्वारा किया गया है. फलस्वरूप जब मेला आयोजक जनपद पंचायत की सहमति से वैराइटी शो चल रहे है तो हम इन्हें रोकने वाले कौन होते है?बैतूल जिले की प्रभात पटटन जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत सालबर्डी में पहाड़ी के ऊपर एक गुफा में शिवजी का पुरातन मंदिर है. वर्षो पूर्व से यह पुरातन मंदिर मध्यप्रदेश, महाराष्ट तथा गुजरात के लोगों की धार्मिक आस्था का केन्द्र बना हुआ है. प्रति शिवरात्रि के अवसर पर यहां भरने वाले जिले के सबसे बड़े धार्मिक मेले में लाखों लोग आते है. हॉलाकि इस वर्ष शिवरात्रि के समय खराब मौसम एवं बारिश के कारण पूर्व वर्षो की अपेक्षा लगभग 40 फीसदी कम श्रद्घालु मेला में आये। धार्मिक महत्व के इस मेले में वैराइटी शो की आड़ में अश्लील नृत्यो एवं अवैध धंधों की धूम मची है मेले में अश्लील नृत्यो के साथ अवैध शराब की जमकर बिक्री हो रही. मेला में जगह-जगह लगे तीन पत्ती तथा जुएं के फड़ों में जमकर जुआं खिलवाया जा रहा है. सालबर्डी मेला में खुलेआम बेरोकटोक चल रहे अवैध धंधों से जहां एक ओर अवैध धंधों में लगे लोग जमकर कमाई कर रहे है वहीं दूसरी ओर इन अवैध धंधों से मेले में आने वाले सैलानियों विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
सालबर्डी मेले में पूजा डांस क्लब धमाका, करिश्मा, पूनम व धूम वैराइटी शो सहित लगभग पांच डांस क्लब बीते लगभग एक सप्ताह से संचालित है. इन वैराइटी शो की आड़ में कमसिन लड़कियों से अश्लील नृत्य करवाये जा रहे है. दोपहर 2 बजे से सुबह चार बजे तक चलने वाले वैराइटी शो में फिल्मी गानों की धुनों पर कम कपड़ों में लड़कियों द्वारा अश्लील अदाओं वाले कैबरे नुमा नृत्य होते रहते है. वैराइटी शो में डांस करने वाली लड़कियों को भाड़े पर लाया जाता है. प्रत्येक डांस ग्रुप में लड़कियों के साथ कुछ लड़के भी शामिल होते है. प्रत्येक डांस ग्रुप को वैराइटी शो के संचालकों द्वारा दो हजार रूपए से लेकर पांच हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाता है. डांस ग्रुप के रूकने एवं भोजन की व्यवस्था वैराइटी शो के संचालकों द्वारा की जाती है. सालबर्डी मेला में महाराष्टï्र के अमरावती तथा बैतूल जिले के आमला क्षेत्र के लोगों द्वारा वैराइटी शो लगाये गये है. यहां उल्लेखनीय है कि एक डांस शो में लगभग बीस मिनट तक फिल्मी गानों पर लड़के एवं लड़कियों द्वारा बेहुदा उत्तेजक अश्लील भाव भंगिमा के नृत्य किये जाते है. डांस शो की शुरूआत दोपहर 2 बजे से हो जाती है जो प्रात: तीन-चार बजे तक बेरोकटोक चलते है. बताया जाता है कि जैसे-जैसे रात गहराती जाती है शो में अश्लीलता बढ़ती जाती है. इन वैराइटी शो को देखने के लिए दस रूपये शुल्क निर्धारित किया गया है. शो के टिकटों की बिक्री भी डांसरों द्वारा ही की जाती है. डांस पार्टियों की कुछ लड़कियों द्वारा गहरा मेकअप एवं बदन उघाड़ कपड़ों के साथ पंडाल के सामने अश्लील भवभंगिमा एवं इशारों से लोगों को आकर्षित किया जाता है. यदि वैराइटी शो में दर्शकों की संख्या कम होती है तब वैराइटी शो के निर्देश पर डांस पार्टी का कम उम्र की कमसिन लड़कियों द्वारा पंडाल के सामने रेलिंग पर बैठकर ऐसे दर्शकों को आकर्षित करने के लिए अपना ऊपरी बदन तक उघाड़ा जाता है. एक प्रकार अति उत्तेजित करने वाले अंग प्रदर्शन के माध्यम से बाद में देह परोसने तक की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. एक वैराइटी शो में लगभग 15 से 2० दर्शक एक बार में नाच गाने का मजा लूटते है. इस तरह बीस मिनट के एक शो में प्रत्येक वैराइटी संचालकों 15 से 2० रूपये की आमदनी होती है. दोपहर 2 बजे से सुबह तीन चार बजे तक बेरोकटोक चलने वाली वैराइटी शो में डांसरों द्वारा 25 से 3० कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते है. इस तरह एक दिन में प्रत्येक वैराइटी शो के संचालकों को चालीस से पाचास हजार रूपये की आमदनी हो जाती है. हॉलाकि इस मोटी आमदनी में से एक बड़ा हिस्सा आबकारी पुलिस, स्थानीय प्रशासन, कतिपय स्थानीय जनप्रतिनिधियों तथा एंट्री (चौथ) वसूलने वालो को चढ़ोतरी के रूप में वैराइटी शो के संचालकों द्वारा चढ़ाया जाता है. परंतु वैराइटी शो के संचालकों के मेले में प्रतिदिन मोटी रकम कमाकर देने वाली लड़कियों को 18 से बीस घंटे की कड़ी मेहनत के बावजूद चंद रूपयों देकर उनका दैहिक से लेकर आर्थिक शोषण तक किया जाता रहा है. मजबुरी में परिस्थितियो से समझौता करने वाले इन लड़कियो की आवाज आज भी शो से बाहर नहीं आ पाती है क्योंकि इस प्रकार के शो के संचालको द्वारा उन्हे चू चपट करने पर काफी यातना देने के बाद पुलिस तक से पताडि़त करवाया जाता है. एक रोचक तथ्य यह भी है कि सालबर्डी के मेले में लगने वाले तमाशो में नाचने वाली कमसिन बालाओ को वैराइटी शो के संचालकों द्वारा 2० से 5० रूपये प्रतिदिन के कान्ट्रेक्टर पर लाया जाता है. एक डांस ग्रुप में 8 से 1० महिला पुरूष सदस्य शामिल रहते है. इस हिसाब से 14 से 16 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद डांसरों के हिस्से में बमुश्किल तीन सौ से पांच सौ रूपये प्रतिदिन के हिसाब से आते है. इन डांस ग्रुपों में नाबालिक लड़कियों से भी डांस करवाये जाते है. सालबर्डी के धार्मिक मेले में मेला प्रबंधक द्वारा वैराइटी शो के संचालन की अनुमति दिये जाने से मेले में आये लोगों में खासी नाराजगी व्याप्त है. मोर्शी निवासी कृषक राजेश करमले के अनुसार मेले में वैराइटी शो के आयोजनों को गलत बताकर उन पर पाबंदी लगाने की मांग की. सालबर्डी मेले में वैराइटी शो के आसपास लगी चूडिय़ों, कपड़ों एवं महिलाओं के उपयोग की वस्तुओं की दुकानों में खरीददारी करने आ रही महिलाओं एवं युवतियों को वैराइटी शो के सामने डांसरों की अश्लील हरकतों को देखकर अपना सिर झुकाकर खरीददारी करना पड़ता है. मेले में आने वाले श्रद्घालुओं एवं सैलानियों की भावनाओं की परवाह न तो मेला संचालकों को है और न पुलिस को. सालबर्डी मेला के संचालन की जिम्मेदारी सम्भाल रहे जनपद पंचायत प्रभातपट्टïन के मुख्य कार्यपालन अधिकारी तो यहां तक कहते है कि यदि वैराइटी शो के संचालन की अनुमति नहीं दी जाती तो मेले में रौनक नहीं आती. इधर पुलिस तथा आबकारी विभाग के अधिकारी भी वैराइटी शो में हो रहे अश्लील नृत्यों को रोकने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे है.शो पर पाबंदी लगा कर बुरी नही बनना चाहती पुलिस सालबर्डी मेला में कानून व्यवस्था का जिम्मा सम्भाल रहे आठनेर थाना प्रभारी की पीड़ा यह र्है कि वे अकेले ही क्यो इस मेले में सबकी कमाई का जरीया बनने वाले तमाशो के आयोजन पर रोक लगवा कर बुरे बने. उनका कहना है कि मेला में वैराइटी शो की अनुमति जनपद पंचायत प्रभातपट्टïन द्वारा देकर उन्हें वैराइटी शो लगाने के लिए भूमि आवंटित करवाई जाती है. इसलिए वैराइटी शो पर पाबंदी लगाना पुलिस के बस में नहीं रहता है. धार्मिक स्थलों पर नाच गानों के अश्लील कार्यक्रमों के खुलेआम आयोजन से श्रद्घालुओं एवं सैलानियों की भावनाओं को ठेस पहुंचने एवं संस्कृति के दूषित होने के सवाल पर आठनेर थाना प्रभारी चुप्पी साध कर कर यह बात अपने ही स्टाफ के किसी कर्मचारी से कहलवाते है कि इस तरह के आयोजन आजकल सभी जगह देखने को मिल रहे है. इसलिए वैराइटी शो पर पाबंदी लगाने की आवश्यकता नही है.शो के बगैर मेला सफल नहीं होता सीईओ जनपद पंचायत प्रभातपट्टन द्वारा सालबर्डी धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है.मेला में संचालित वैराइटी शो की आड़ में अश्लील नाच गानो के प्रदर्शन के बारे में जनपद पंचायत प्रभातपट्टन के सीईओ का कहना है कि यदि सालबर्डी मेला में वैराइटी शो के संचालन की अनुमति प्रदान नहीं जाती तो मेले का सफल आयोजन नहीं हो पाता. प्रभात पटट्न के सीईओ ने इन तमाशो को लगवाने के पीछे का राज कुछ इस प्रकार बताया कि वैराइटी शो को अनुमति देने के लिए उन पर भारी दबाव था. इसी दबाव के चलते उन्होंने वैराइटी शो के संचालकों को मेले में जमीन आवंटित की. अश्लील नृत्यों के बारे में उनका कहना था कि यहां महाराष्ट्र का कल्चर है और मेला में ज्यादातर लोग महाराष्ट्र से ही आते है इसलिए महाराष्ट्र के सैलानियों की पसंद को ध्यान में रखते हुए वैराइटी शो के संचालन की अनुमति दी गई.
पापी पेट का सवाल है बाबू जी :स्वीटी
सालबर्डी मेले में लगे वैराइटी शो के पूनम डांस ग्रुप की डांसर स्वीटी का कहना था कि उसे केवल अपने और परिवार के पापी पेट के लिए इतना सब कुछ करना पड़ता है. स्वीटी कहती है कि अमरावती के युसुफ भाई ने उनके ग्रुप को पांच हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से नागपुर से मेला में डांस करने के लिए लाया है. उनके ग्रुप के रूकने एवं खाने पीने का इंतजाम आयोजकों द्वारा किया जाता है.
अपनी दिनचर्या के बारे में स्वीटी ने बताया कि वे सबुह पांच बजे तक कार्यक्रम में डांस पेश करती है. उसके बावजूद भी सुबह आठ बजे उठकर दोपहर 12 बजे तक तैयार होकर कार्यक्रम स्थल तक पहुंचना पड़ता है. इतनी कड़ी मेहनत के बाद इस काम को छोड़कर दूसरा काम करने के सवाल पर उनका कहना था कि 12 वीं कक्षा में फेल हो जाने के बाद वे नवरंग डांस ग्रुप नागपुर में शामिल हो गई थी. एक बार इस पेशे में शामिल होने के बाद यहां से निकलना बहुत मुश्किल होता है. नाबालिक लड़कियों द्वारा डांस ग्रुप में शामिल होने के सवाल पर भावना का कहना था कि अपनी-अपनी मजबूरी के कारण 15-16 साल की लड़कियों को भी डांस करना पड़ता है.
डांस देखने को उमड़ता जन समूह जैसे-जैसे सालबर्डी मेला के शुरू होने की तारीख करीब नजर आती नजर आ रही है ऐसे लोगो के दिलो की धड़कने बढऩें लगती है जो कि इस प्रकार के तमाशों में देह दर्शन को जाते है. अकसर देखने को यह मिलता है कि मेला लगने के बाद रविवार को अवकाश होने के चलते डांस शो में महाराष्ट एवं बैतूल जिले के सैलानियों का जन सैलाब बड़ी संख्या में उमड़ता है. कई बार वैराइटी शो में आने वालो के बीच लड़ाई झगड़े एवं डांसरों के साथ जोर जबरदस्ती व छेड़छाड़ की घटनायें घट जाता है. फलस्वरूप किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए वैराइटी शो संचालकों द्वारा अपने लठैतों एवं भाड़े के अपराधी छबि के लोगों को पंडाल के आसपास एवं अंदर मुस्तैदी से तैनात कर दिया जाता है. अब इस बार दिसम्बर महिने के अंत में लगने वाले इस धार्मिक मेले में क्षेत्रिय विधायक की बेहुदा उत्तेजक अश्लील नृत्यो के प्रदर्शनो पर रोक लगवाने की पहल कितनी रंग लाती है यह देखना बाकी है.
इति,
सत्यकथा
मुझे मत रोको ……………!
– रामकिशोर पंवार
कई दिनो से सूरज आग उगल रहा था. तपते सूरज ने सबके हाल के बेहाल कर रखे थे . उसके तेज के आगे तो उसकी सबसे प्यारी बेटी ताप्ती भी सुखने लगी थी . ताप्ती के पोखरों में केवल उतना ही पानी बचा था कि जानवर और इसंान अपनी प्यास बुझाने के साथ अमावस्या – पूर्णिमा नहाना धोना कर सके . बदनूर और आसपास के गांव के कुँओ से जब खाली बाल्टीयाँ आने लगी तो लोगो की धड़कने बढऩे लगी . पानी की ऐसी हा- हा कार पहले कभी देखने को नहीं मिल पा रही थी . इस बीच आसामान में कुछ बादलो के आने से सूरज का तेज कुछ कम हुआ लोगो ने आसमान की ओर की ताका . अब बरसे – कब बरसे के इंतजार में पूरा जून बीत गया जुलाई का महिना और श्रावन मास ने एक साथ जब दस्तक दी तो खुले आसमान से हल्की – हल्की बुन्दा बुंदी होने लगी . उस रात काफी तेज बरसात हुई . पिछले तीन महिने से जोरो की गर्मी ने लोगो के हाल के बेहाल करके रखे थे. जुलाई के महिने की दस तारीख हो जाने के बाद भी जब पानी नहीं गिरा तो चारो ओर हा- हा कार मच गया था. सभी लोगो पानी के गिरने की कामना कर रहे थे लेकिन मानसून का दूर तक अता पता तक नहीं था. पानी न गिरने से जल संसाधन विभाग की चांदी हो गई थी वह जोर – शोर के साथ उस नदी पर बांध बनवाने जा रहा था जिस पर उसे बांध बनवाने से कई लोगो ने मना किया था. अपने विभाग के मंत्री को खुश करने तथा करोड़ो की लागत सें बनने वाले बांध में दस- बीस लाख रूपये अपने लिए भी कमाने की धुम मेें पंडित सूर्यकंात त्रिपाठी को जुलाई महिने की पद्रंह तारीख तक हर हाल में बांध में पूरा करना था. जिस नदी पर जल संसाधन विभाग के द्वारा काफी बड़ा डेम बनवाने का काम चल रहा था. पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी की टीम में वैसे तो सभी धर्म – जाति के लोग थे लेकिन उसका जूनियर मुस्लिम होने के साथ- साथ पाँच वक्त का नमाजी भी था. वैसे तो पूरा का पूरा जल संसाधन विभाग रफीक खान को एक सच्चा देश भत्त मुसलमान ही मानता था. उसके मन में कभी भी हिन्दू – मुसलमान वाली बात नहीं आई वह सभी के तीज ज्यौहारो पर बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लेता था. सार्वजनिक गणेश और दुर्गा पूजा पर तो पूरे दिन बढ़ – चढ़ कर आरती और विर्सजन में भाग लेता था. उसकी इसी भक्ति -भावना को देख कर कोई भी उसे मुसलमान मानने को तैयार नही रहता था. इन सबके बवजूद भी उसने भगवान के प्रति अपनी आस्था को खुदा और अल्हा के समान रखा ताकि उसमें किसी प्रकार का भेद – भाव न हो सके.
एक रात उसने अपने सपने में किसी एक नदी जिस पर वह डेम बनवा रहा था उस डेम पर एक महिला आकर उससे बार – बार कह रही थी कि उसे और आगे जाने जाना है उसके किनारे अगर सुखे रह जाएगें तो संख्य लोग प्यासें मर जाएगें …………… उसके द्वारा बाहर जाने का रास्ता मांगे जाने की बात जब उसके सपने में बार- बार आने लगी तों आखिर एक दिन अपने वरिष्ठï अधिकारी सूर्यकात त्रिपाठी से किया तो वे हँस पड़े और रफीक खान से कहने लगे कि ”यार अगर उसे अपने लिए जाने का रास्ता ही मांगना था तो वह मुझसे मांगती …………..! ” तू …………. तो मुसलमान है वह तेरे सपने में क्यो आकर अपने लिए क्यो रास्ता मांगेगी…….? अपने वरिष्ठï अधिकारी से इस तरह के शब्दो को सुनने के बाद रफीक ने इस बात का जिक्र किसी ने नही किया और वह अपने काम में लग गया. बनवाने का काम वह कई बार लोगो को सपने में आकर कह चुकी थी कि ” देखो बांध बनवाओं वहाँ तक ठीक है पर मुझे रोकने का प्रयास करना ………………! ” क्योकि मेरे किनारे असंख्य जीव – जन्तु रहते है अगर मैं उन तक नहीं पहँुची तो वे बेचारे प्यासे मर जायेगें . इतना ही नहीं हर साल यम चतुर्थी पर मेरा भाई शनि मेरी राह देखेगा ………..! कितने लोग मेरे किनारे पर नहाने के लिए आयेगें अगर मैं सुखी रही …….मेरा ठंठल – गोपाल की तरह अगर में आँचल में पानी की एक बुंद भी नही ही तो वे बचारे क्या करेगे……? इसलिए मुझे मत रोकना. सपने में कहीं बातो को लोगो ने एक कान से सुना और दुसरे कान से निकाल दिया. आज जब बारीश हुई तो एक बार फिर वह सपने में आकर कई लोगो को बोली लेकिन लोगो ने इस बार भी उसकी बात को सुन कर टाल दिया. बार- बार लोगो को हिदायत देने के बाद भी लोगो उसकी बातो को अनसुनी करने लगे तो वह आखिर अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर पाई ………! आखिर वह थी भी तो शनि की बहन उसके माँ और बहन पुत्री के रूप को सात सौ बावन किलो मीटर के
मध्यप्रदेश एंव गुजरात के लोग देख चुके है.
उस रात काफी तेज बरसात हुई . पिछले तीन महिने से जोरो की गर्मी ने लोगो के हाल के बेहाल करके रखे थे. जुलाई के महिने की दस तारीख हो जाने के बाद भी जब पानी नहीं गिरा तो चारो ओर हा- हा कार मच गया था. सभी लोगो पानी के गिरने की कामना कर रहे थे लेकिन मानसून का दूर तक अता पता तक नहीं था. पानी न गिरने से जल संसाधन विभाग की चांदी हो गई थी वह जोर – शोर के साथ उस नदी पर बांध बनवाने जा रहा था जिस पर उसे बांध बनवाने से कई लोगो ने मना किया था. अपने विभाग के मंत्री को खुश करने तथा करोड़ो की लागत सें बनने वाले बांध में दस- बीस लाख रूपये अपने लिए भी कमाने की धुम मे पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी को जुलाई महिने की पद्रंह तारिख तक हर हाल में बांध में पूरा करना था. जिस नदी पर जल संसाधन विभाग के द्वारा काफी बड़ा डेम बनवाने का काम चल रहा था. पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी की टीम में वैसे तो सभी धर्म – जाति के लोग थे लेकिन उसका जूनियर मुस्लिम होने के साथ- साथ पाँच वक्त का नमाजी भी था. वैसे तो पूरा का पूरा जल संसाधन विभाग रफीक खान को एक सच्चा देश भत्त मुसलमान ही मानता था. उसके मन में कभी भी हिन्दू – मुसलमान वाली बात नहीं आई वह सभी के तीज ज्यौहारो पर बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लेता था. सार्वजनिक गणेश और दुर्गा पूजा पर तो पूरे दिन बढ़ – चढ़ कर आरती और विर्सजन में भाग लेता था. उसकी इसी भक्ति -भावना को देख कर कोई भी उसे मुसलमान मानने को तैयार नही रहता था.
एक रात उसने अपने सपने में किसी एक नदी जिस पर डेम बन रहा है उसे महिला के रूप मे सपने में आने और और उसे जाने का रास्ता देने की बात बार- बार कहने की बात का जिक्र जब अपने वरिष्ठï अधिकारी सूर्यकात त्रिपाठी से किया तो वे हँस पड़े और रफीक खान से कहने लगे कि ”यार अगर उसे अपने लिए जाने का रास्ता ही मांगना था तो वह मुझसे मांगती …………..! ” तू तो मुसलमान है वह तेरे सपने में क्यो आकर अपने लिए रास्ता मांगेगी…….? अपने वरिष्ठï अधिकारी से इस तरह के शब्दो को सुनने के बाद रफीक ने इस बात का जिक्र किसी ने नही किया और वह अपने काम में लग गया. बनवाने का काम वह कई बार लोगो को सपने में आकर कह चुकी थी कि ” देखो बांध बनवाओं वहाँ तक ठीक है पर मुझे रोकने का प्रयास करना ………………! ” क्योकि मेरे किनारे असंख्य जीव – जन्तु रहते है अगर मैं उन तक नहीं पहँुची तो वे बेचारे प्यासे मर जायेगें . इतना ही नहीं हर साल यम चतुर्थी पर मेरा भाई शनि मेरी राह देखेगा ………..! कितने लोग मेरे किनारे पर नहाने के लिए आयेगें अगर मैं सुखी रही …….! मेरा ठंठल …………….! गोपाल ……….! की तरह अगर में आँचल में पानी की एक बुंद भी नही ही तो वे बचारे क्या करेगे……? इसलिए मुझे मत रोकना. सपने में कहीं बातो को लोगो ने एक कान से सुना और दुसरे कान से निकाल दिया.
आज जब बारीश हुई तो एक बार फिर वह सपने में आकर कई लोगो को बोली लेकिन लोगो ने इस बार भी उसकी बात को सुन कर टाल दिया. बार- बार लोगो को हिदायत देने के बाद भी लोगो उसकी बातो को अनसुनी करने लगे तो वह आखिर अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर पाई ………! आखिर वह थी भी तो शनि की बहन उसके माँ और बहन पुत्री के रूप को सात सौ बावन किलो मीटर के मध्यप्रदेश एंव गुजरात के लोग देख चुके है. उस रात गुस्से से आग बबुला सूर्य पुत्री ने अपने लिए जाने का समुचित रास्ता न मिलने पर ऐसा विकराल रूप दिखाया कि जिन्हे सपने में चेतावनी मिली थी वे अपनी जान बचाने के लिए पेड़ो की डाल पर टंगे पड़े थे. आस-पास के दर्जनो गांवो की लाखो की चल – अचल सम्पति को बहा कर ले गई शनि की लाड़ली बहन के क्रोप के आगे कोई नही बच पाया . बले गांव का नौखेलाल भी उन लोगो में से एक था जिस का सब कुछ बह चुका था. उसके बुढ़े – माँ बाप उससे अकसर कहा करते थें कि देख बेटा तूझे कितनी भी तंगी आई लेकिन तू हमारा क्रिया क्रम ताप्ती माई के किनारे ही करना ……….! लेकिन नौखे को तो यह सपने में भी इस बात का यकीन नही था कि उएक दिन ऐसा भी आएगा कि ताप्ती माई उसके खुद अपने साथ उसके बुढ़े माँ – बाप को ऐसे बहा ले जाएगी कि उसकी उसकी अस्थियाँ उसे ढुढंने से भी नही मिलगी और वह अपने माँ – बाप का श्राद्घ के कार्यक्रम भी बिना अस्थियो के करने को मजबुर होगा ………….!
पूरी दुनिया में अगर देखा जाए तो नदियों का इंसान से काफी पुराना रिश्ता रहा है . आज कल और परसो तक जिसके चलते पूरी दुनिया में कई सभ्यताओं ने नदियों के किनारे ही समय-समय पर जन्म लेकर कल्पनीय घटनाओं एंव चमत्कारो तथा एतिहासिक दस्तावेजो को स्वरूप दिया है . नदियो के किनारे फली – फूली असंख्य सभ्यताओं मे से एक मिश्र की सभ्यता की बात करे या फिर सिंधु घाटी का हर किसी का किसी ने किसी नदी से उसकी आत्मीय रिश्तो से आम जन मानस को अवगत कराया है. प्राचिन एतिहासिक सभ्यताओं के जनक आर्य पुत्र (हिन्दू ) नदियों को देवियों के रूप में सदियों से पूजते चले आ रहे है. भारत की पवित्र नदियों में ताप्ती एवं पूर्णा का भी उल्लेख मिलता है . सूर्य पुत्री ताप्ती बैतूल जिले के मुलताई स्थित तालाब से निकलती है जो बैतूल जिले की ही नहीं बल्कि महाराष्टï्र एवं गुजरात के विभिन्न जिलों की पूज्य नदियों की श्रेणी में आती है . इसी तरह ताप्ती नदी की सहायक नदियों में पूर्णा का विशेष उल्लेख मिलता है. पूर्णा नदी भैंसदेही नगर के पश्चिम दिशा में स्थित काशी तालाब से निकलती हैं. प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्घालु लोग अमावस्या और पूर्णिमा के समय इन नदियों में नहा कर पूर्ण लाभ कमाते हैं . एक किवदंती कथाओं के अनुसार सूर्य और चन्द्र दोनों ही आपस में एक दूसरे के विरोधी रहे हैं , तथा दोनों एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते हैं. ऐसे में दोनों की पुत्रियों का अनोखा मिलन बैतूल जिले में आज भी लोगों की श्रद्घा का केन्द्र बना हुआ हैं . ताप्ती नदी के किनारे बसे सैकड़ो गांवो के लोग आज भी उसे देवी की तरह पूजते चले आ रहे है . उस रात को ताप्ती जी का रूद्र रूप रात के समय कोई नही देख सका जिसने देखा उसकी याददास्ता चली गई . चन्दोरा डेम को बहा ले गई ताप्ती ने अपने साथ कई गांवो और उसमें रहने वालो में किसी के साथ भेदभाव नही किया वह सबको एक साथ ले गई बचे वही जिसे तैरना और पेड़ो की डालियो पर चढऩा आता था. जिले के इतिहास में पहली बार ताप्ती जी ने अपना इतना बड़ा विकराल रूप दिखा वह कभी भी अपने आपे से बाहर नहीं हुई लेकिन जब उसे रोकने का प्रयास किया तो उसने लोगो को बार – बार चेताया कि उसे न रोके अन्यथा परिणाम बुरे हो सकते है लेकिन एक मुसलमान को ताप्ती माई की कहीं बातो पर यकीन था लेकिन एक पंडित हिन्दू ने अविश्वास दिखा उसके कहे वचनो का उपहास उठा कर एक ऐसा कहर बरपा दिया कि लोग आज तक नहीं भूल नहीं पाए है.
ठेसका का जंगली ताप्ती माई का भक्त था वह प्रतिदिन माता के दरबार में जाकर उसके जल से अपने आप को निवृत करता था. उसके जीवन में शायद ऐसा कोई दिन आया होगा जब वह माता के जल से नहा नही पाया होगा . साठ दशक पार कर चुका वह आज भी इस बात को मानता है कि माई के किनारे दर्जनो गांव बसे है लेकिन चन्दोरा बांध जैसी त्रासदी आज तक नही हो पाई…….? ताप्ती माई पर अटूट श्रद्घा एंव विश्वास रखने वाले इस आदिवासी का एक मात्र मूल मंत्र है कि ताप्ती माई की जितनी सेवा हो सके करो वह एक न एक दिन चमत्कार जरूर दिखाएगी .जंगली और उसका साथी एक दिन तो ताप्ती माई के दर्शन करने से चूक गए वजह यह रही कि वे जिसे नदी में बहती लाश समझ रहे थे दरअसल में वह लाश की शक्ल में ताप्ती माँ थी क्योकि लाश थोड़ी दूर जाने के बाद अचानक एक बुढिय़ा की शक्ल में परिवर्तित होकर उससे बिना कुछ कहे गायब हो गई . मुलताई से निकली ताप्ती माई ने दामजीपुरा – मोहटा तक के ग्रामवासियो को अपने निर्मल जल से आनंदित किया. ताप्ती माई ने बलेगांव सहित अनेक गांवो को बहा ले जाने से पहले गांव को चेताया था कि गांव के आसपास ढेर सारी गंदगी और लोगो के बीच अविश्वास तथा धर्म के प्रति नफरत जागी है लोगो ने भगवानो की पूजा पाठ बंद कर दी वे नास्तीक बनते जा रहे है . दुनिया में अगर इसी तरह पाप और पापी बढ़ते चले जाएगें तो इंसान का भगवान से रिश्ता – नाता टूट जाएगा.
ताप्ती जी के बारे में कहा जाता है कि वह स्ंवय अपने आचँल में लगभग 172 तीर्थस्थलो को समेटे हुए है. मुलताई के पास स्थित गो मुख और पंचधारा से लेकर मुनी दुर्वासा के आश्रम तक तप्ती के किनारे आने वाले सभी शहरो और गांवो को उस रात जल मग्र कर देने वाली ताप्ती उस दिन काफी खफा थी क्योकि चंदोरा बांध के सारे गेट बंद हो चुके थे ताप्ती का बुंद भर पानी भी जब रिस कर बाहर नहीं आया तो उसके गुस्से ने ऐसा कहर बरपाया कि बलेगांव ओर बाड़ेगांव सहित दर्जनो गांवो का सब कुछ बह गया हालाकि अभी ताप्ती जी ने उन्ही लोगो को पूर्वोतर स्थिति में ला खड़ा कर दिया है. आज भी इन पंक्त्यिो के लिखे जाने तक चंदोरा बांध के एक गेट से गर्मी हो या बारीश ताप्ती माई की एक जलधारा बिना किसी रोक – टोक के अविरल बहती चली जा रही है . बांध के इंजीनियरो ने उस गेट से बहने वाले ताप्ती के रिसाव को रोकने का भरपुर प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हो सके. ताप्ती माई के किनारे बरसो से तपस्या कर रहे मौनी बाबा भी माई के चमत्कारो से स्वंय को अलग – थलग नहीं कर सके है . वे तो कई बार माई के चमत्कारो को देख चुके है . माई का वह रौद्र रूप उस दिन पता नही कितनो को बहा कर ले जाता पर सैकड़ो लोग माई को अपने अपने ढंग से मनाने में लगे हुये थे . केरपानी के बजरंग बली भी ताप्ती माई के करीब बसे होने के कारण उनका माई के प्रति प्रेम जग जाहिर है . बजरंग बली के लाखो भक्त आज भी माई के निर्मल जल से स्वंय स्नान ध्यान करने करने के बाद बजरंग बली का जल अभिषेक करते है . दददू की प्रार्थना का ताप्ती माई पर असर हुआ इसलिए ही उसने बलेगांव के बाद कुछ ही गांव को अपने साथ बहा ले गई . ताप्ती पश्चिम भारत की सबसे बडी नदियो में से एक है . 242 किलोमीटर चौड़ी घाटियो में बहने वाली ताप्ती माई ने उस रात लोगो की अगर प्रार्थना , दुआ तथा अन्य प्रकार के अनुरोधो को नही सुना होता तो गजब हो जाता .मुलताई सें लेकर गुजरात के अरब सागर तक पता नही कितने जल मग्र हो जाते . आज ताप्ती माई की वह चमत्कारिक रहस्य रोमांच से भरपूर अदभुत सत्य घटना जिसके केवल पात्र बदले गए बरबस याद आ गई क्योकि इस बार फिर उसी तरह का पानी एक बार फिर बरसने लगा है .
इति,
रहस्य एवं रोमांच से भरी दिल
को दहला देने वाली कहानी
अला – बला
सत्यकथा :- रामकिशोर पंवार
उस समय रात के बारह बज रहे होगें . सही समय जानने के लिए मेरे मन में उठ रही जिज्ञासा की शांती के लिए जैसे ही मैने अपने बाये हाथ घड़ी की ओर देखना चाहा तो कुछ पल के लिए मेरी मोटर साइकिल लहरा गई . वह तो अच्छा हुआ कि आगे या पीछे से कोई गाड़ी नही आ रही थी , वरणा अपना तो राम – नाम सत्य हो जाता ?. मैने माँ काली को याद किया और फिर आगे की ओर निकल पड़ा . आज फिर वही काली अमावस्या की दिल को दहला देने वाली भयवाह डरावनी रात थी . ऐसी काली अमावस्या रात का जिक्र ही पूरे बदन में सिरहन पैदा कर देता है तब जब आदमी अकेला सफर कर रहा हो ………! आज एक बार फिर मैं अपने माँ – बाबू जी की हिदायतों को दर किनार कर अपने पैतृक घर से बदनूर जाने को निकल पड़ा था . आज की वही सुनसान चारो ओर चीखता सन्नाटा और उस काली डरावनी रात में बरेठा होते हुए बदनुर की ओर सुनसान रास्ते परमैं अपनी सी.डी.डान मोटर साइकिल पर जब घर से अकेला निकल रहा था तब मुझे लगा कि मैं आज भी सबसे बड़ी गलती कर रहा हँू पर क्या करू………..! लगता है आज मेरी बारी आ ही गई थी…..! मुझे रह- रह कर अपनी मुर्खता पर गुस्सा भी आ रहा था . अब जो होगा देखा जाएगा यह सोच कर मैं अपनी अराध्य देवी काली माँ के नाम को गुणगुनाता चला जा रहा था . हमारा परिवार बनदूर के पास बसे एक छोटे से गांव रोंढ़ा का मूल निवासी है लेकिन बाबू जी के जंगल विभाग में पदस्थ होने के कारण हम सब परिवार के लोग उनके पास एन.सी.डी.सी. में ही आकर रहने लगे थे . एन.सी.डी.सी. की कोयला खदाने और सतपुड़ा थर्मल पावर स्टेशन दो मात्र ऐसे रोजगार के क्षेत्र थे जहाँ पर पूरे भारतवर्ष के अलाव बदनूर के आसपास के लोग भी काम धंधे की तलाश में आकर बस गए थे . एन.सी.डी.सी. से बदनूर की दूरी लगभग साठ किलो मीटर रही होगी. बदनूर को अग्रेेंजो के जमाने में ही डिस्ट्रीक हेड क्वाटर बना दिया था . जंगल सत्याग्रह कह वजह से बदनूर उस जमाने का जान- माना डिस्ट्रीक हेड क्वाटर था . मुझे भी नई दिल्ली से छपने वाले एक राष्टï्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र के ब्यूरो चीफ बनने के बाद से पिछले डेढ़ – दो साल से मुझे बदनूर में पत्नि और एक छोटे बेटे मोहित के साथ किराये के मकान में रहना पड़ा . वैसे भी बदनूर के जिस मोहल्ले में मैं रहता था वहाँ से कत्तल ढाना जाने का रास्ता पड़ता था और इस रास्ते पर हमेशा गुण्डे मवाली अकसर उधम मचाते रहते थे . रात के समय में पत्नि और बच्चे को अकेला छोड़ कर आ जाने के कारण मुझें एन.सी.डी.सी. से देर रात को आना पड़ा रहा था . बदनूर जाने के लिए दो रास्ते है. एक बरेठा होकर दुसरा रानीपुर होकर जाता है. बरेठा वाले रास्ते में पक्की सड़क तथा रानीपुर वाले में कच्ची सड़क पड़ती है. रानीपुर वाले रास्ते में अकसर रात को हनुमान डोल के पास शेर -चीता के मिल जाने का डर बना रहता था. लोग तो कहते है कि कुछ मिले ना मिले लेकिन इस रास्ते में कोई ना कोई खतरनाक जंगली जानवर मिल ही जाता है. इसलिए यह रास्ता जोखिम भरा कहा जाता है. शायद यही वजह है कि कोई भी देर रात को इस रास्ते से आने – जाने की रिस्क नही लेता है. आज जब मैं घर से बदनूर के लिए अकेला निकल रहा था तो बाबू जी ने मुझे रोका लेकिन मैं जिद् करके घर से बदनूर के लिए निकल पड़ा. एन.सी.डी.सी. से निकलते समय रात के सवा दस बज रहे थे लेकिन बरेठा तक पहँुचते ही घड़ी का काटा पौने बारह को पार कर गया था. बरेठा आते ही जैसे ही मैने बदनूर जाने के लिए अपनी मोटर साइकिल मोड़ी तो मेरी गाड़ी का अचानक संतुलन बिगड़ गया और मैं स्लिप होते- होते बचा . एक पल के लिए तो मैं इस फिसलन के चलते सर से पांव तक कांप गया था इसके बावजुद मैने हिम्मत नही हारी और मैं चल पड़ा.
आज रात मैं अपने कुछ काम के चलते तथा आते समय माँ – बाबू जी से मिल कर आते समय काफी लेट हो गया था . वैसे भी आज मैं अकेला था. यूँ तो मुझे हर सप्ताह माँ – बाबू जी से मिलने जाना ही पड़ता है. आज जब मैं अपने घर से एन.सी.डी.सी. बाबू जी से मिलने जा रहा था तब मोहित की मम्मी ने मुझे कहा था सुनो जी आज फिर काली अमावस्या है……………? इसलिए देर मत करना और जल्दी से घर आ जाना……. लेकिन मैं क्या करू आज फिर लेट हो गया. माँ बाबू जी कह रहे थे कि तू इसको समझाती क्यो नही……………रात हो गई है इसे मत जाने दे………. माँ ने भी कहा बेटा तू मत जा पर मुझे जाने की जल्दी थी. अकसर अमावस्या – पूर्णिमा को मेरी तबियत बिगड़ जाती है. गले और हाथ में बाबा – फकीरो के ताबिज और धागे बांधे रहने के बाद भी मैं इन रातो को अचानक बेहोश हो जाता हँू. इसलिए घर के सब लोग मुझे रात – बिरात कही आने – जाने नही देते है . आज बाबू जी कह भी रहे थे कि रामू ……….. तू जिद मत कर अकेला मत जा अपने साथ छोटे भाई को ले जा पर मैं नहीं माना और अपनी मोटर साइकिल को स्टार्ट कर चला आया था . इधर मैं श्रीमति को बता कर आया था कि मैं हर हाल में देर रात को आ जाऊंगा क्योकि मुझे कल ही किसी काम से बाहर जाना था. नवम्बर का महिना था. आज एक बार फिर वही काली अमावस्या की रात मेरी जिदंगी में कोई न कोई हलचल लाने को आतुर थी तभी तो मैं सबकी बातो को दर किनार कर अकेला निकल पड़ा था . उस रात को मैने आने वाली घटना की परवाह किये बिना ही आगे निकलने का मन बना रखा था. बदनूर आते समय मुझे रास्ते में मिलने वाले सभी यार दोस्तो ने न जाने की बाते कही लेकिन मैं उनकी बातो को नजर अदांज करते आगे की ओर चला जा रहा था .
आज रात को ठंड काफी शबाब पर थी साथ ही ठंडी सर्द हवाए भी चल रही थी. यूँ तो मैने काफी गर्म कपड़े पहन रखे थे इसके बाद भी ठंड से मेरा पुरा शरीर कंपकपा रहा था. हाथों में पहने दास्ताने और कानो को ढ़ाकाती टोपी भी सुनसान रास्ते पर साठ सत्तर की स्पीड़ से दौड़ती मोटर साइकिल के चलते लगने वाली ठंडी हवाओं के थपेड़ो से मेरे शरीर को कंपकपाने से नहीं रोक पा रही थी. एक घड़ी तो मैने सेाचा कि मैने रात में आने की कहाँ मुसीबत मोल ले ली………….? घर में बाबू माँ के कहने पर रूक जाता तो ठीक था ? पर इधर श्रीमति और छोटे बेटे की चिंता ने मुझे रात को ही आने को आने को विवश कर दिया था. ख्यालो में खोने के कारण मुझे पता ही नही कि मेरे पीछे से कोई मोटर साइकिल भी आ रही है. इस बीच उस मोटर साइकिल वाले ने मुझे ओव्हरटैक किया और वह तेजी से मेरी आँखो के सामने से ओझल हो गया. मैं अभी कुछ दूर चला था कि मैने मोटर साइकिल के लार्ईट में देखा कि मोटर साइकिल को रूकने का इशारा कर रही है . इतनी रात को सुनसान रास्ते पर यह बुढ़ी महिला क्या कर रही है…… ? मेरे मन में उसके करीब पहँुचने तक अनेक सवाल कौंध रहे थे. मै उस महिला के पास आने पर एक पल के लिए डर गया . इतनी भयानक काली स्याह रात को सुनसान रास्ते पर जर्जर हो चुका जिस्म और तन पर फटे कपड़े होने के बाद भी उस पौढ़ महिला को न तो ठंड लग रही थी और न वह ठंड से कांप रही थी उसे इस हालत में देख कर मेरी बोलती बंद हो गई ………! उस महिला के व्यवहार से मुझे कपंकपी छुट गई थी . वह पौढ़ महिला कुछ बोलती इसके पहले ही मेरी मोटर साइकिल अचानक बंद हो गई जिसके चलते मुझे रूकना पड़ा . मेरी मोटर साइकिल के रूकते ही सबसे पहले उस वह पौढ़ महिला ने मेरी मोटर साइकिल को करीब से देखा . उसके बाद उसने मेरे पास आकर मेरा करीबी से मुआयना किया उसकी इन हरकतो से मेरा हाल – बेहाल था . मैने काफी हिम्मत करके जैसे – तैसे मोटर साइकिल स्टार्ट कर उस महिला का चेहरा देखना चाहा . मैं चाह कर भी उस पौढ़ महिला का चेहरा नही देख पा रहा था . मुझे उसके अब तक के रूख से मैं बेहद डर लग रहा था शायद अपना क्या कर लेगी . मैंने ही हिम्मत करके कहा अच्छा ठीक है माता जी आप पीछे की सीट पर बैठ जाइए . मैने काफी देर बाद एक बार फिर हिम्मत करके उस पौढ़ महिला से पुछा कि ”अम्मा आप इधर कहां सें आ रही है………? मेरे इस सवाल पर वह बताने लगी कि ” बेटा मैं बनारस की रहने वाली हँू………. मेरा नाम अला है….. ? उस महिला का अजीबो – गरीब नाम सुन कर एक पल के लिए तो मैं कांप गया क्योकि ऐसा नाम मैने पहली बार सुना था . इस अजीबो – गरीब नाम से तो यह पता नही चल पा रहा था कि मोटर साइकिल पर पीछे बैठी अम्मा जो कि अपना नाम अला बता रही है वह किस जाति या धर्म की होगी ……? मैं उस पौढ़ महिला से कुछ इस बारे में पुछता इसके पहले ही बताने लगी कि बेटा दर असर हम लोग बनारस के रहने वाले है . हमारा पुरा परिवार इस काली अमावस्या की रात को भोपाल से नागपुर जा रहा था कि जिस स्थान पर मैं तुम्हे मिली ठीक उसी स्थान पर ………….! वह इसके पहले कुछ बताती कि बरेठा बाबा का मंदिर आ गया . मैंने उसे पौढ़ महिला से कहा ”अम्मा बरेठा बाबा का मंदिर आ गया……………. लेकिन जब मैने पीछे मुड़ कर देखा तो वह महिला नहीं थी . मुझे कांटो तो खून नहीं था .
इस घटना के बाद तो मैं दिसम्बर महिने की इस कड़ाके ठंड में पसीने से नहा चुका था . मेरे साथ इतनी बड़ी घटना घट जाने के बाद भी पर मैंने हिम्मत नही हारी और हर बार की तरह अपनी मोटर साइकिल को रोक कर बरेठा बाबा के मंदिर में जाकर बाबा की चरण वंदना की साथ ही बाबा के मंदिर के पास ही बने अपनी आराध्य देवी माँ काली के मंदिर में जाकर उसके चरण स्पर्श किये और माँ काली के त्रिशूल से हरि और लाल रंग की चुडिय़ा निकाल ली और उसे अपनी मोटर साइकिल के हैंडि़ल के पास बांध ली . मैंने जब से मोटरसाइकिल खरीदी है तब से लेकर आज तक मैं अपनी मोटर साइकिल में माँ काली जी की चुडिय़ा बांधता चला आ रहा हँू जिसके चलते मैं अकसर आने वाली कई विपदाओं से माँ काली की कृपा से बच जाता हँू . बरेठा मंदिर से जाते समय जैसे ही मैने आगे की ओर रूख कर गाड़ी का हार्न बजाया . हार्न की आवाज को सुन कर मंदिर का पुजारी जाग गया . वह मुझे अच्छी तरह जानता पहचानता था . जैसे ही उसने झोपड़ी के अंदर से लाये दिया की रोशनी में मुझे झोपड़ी के अंदर से बाहर आकर देखा तो वह मुझे देख कर दंग रह गया . दिया लेकर झोपड़ी से मंदिर के पास आने लगे पुजारी ने मुझसे सवाल किया ”भैया आज इतनी रात को…………………….? मैं उसके सवाल का जवाब देता पर मैं अभी कुछ देर पहले की घटना से अभी भी थर- थर काँप रहा था . मंदिर के पुजारी ने पास आकर मुझे इस हालत में देखा तो उसने ही एक बार फिर मुझसे वही सवाल किया ”भैया आज इतनी रात को वो भी अकेले ……………? मैंने उसके सवालो का जवाब देकर उसे कुछ बताने के बजाय चुप रहने में अपनी भलाई समझी . मैनें अपकी बार अपने पास आए पुजारी के चरण स्पर्श कर अपनी मोटर साइकिल को स्टार्ट कर आगे की ओर निकल पड़ा .
इस बार मंदिर के ऊपर घाट सेक्सन होने की वजह से मैं बड़ी सावधानी से अपनी मोटर साइकिल को चलाते जा रहा था . मैं अभी मंदिर से बड़ी मुश्कील एक किलोमीटर भी आगे नही चल पाया था कि मुझे गाड़ी की रोशनी में एक सोलह सत्तह साल की कमसीन युवती मेरी मोटर सालकिल को रोकने के लिए हाथ देती दिखाई दी. मैं गाड़ी न रोक कर आगे बढऩा चाहा पर अचानक एक बार फिर मेरी गाड़ी आगे की ओर बढ़ ही नही पा रही थी . काली अंधीयारी रात में मेरी गाड़ी के सामने उसकी लाइट में अपने रूप सौंदर्य को प्रदर्शित कर अपनी ओर मुझे आकर्षित करनी वाली युवती ने मुझसे कहा कि ” देखिए मुझे पाढऱ तक जाना है , क्योकि मेरे सारे रिश्तेदार वहाँ पर भर्ती है…………..! क्या आप मुझे अपनी गाड़ी में पाढऱ तक चलने के लिए लिफ्ट देगे….. ? मैंने सोचा अगर इसे पाढऱ तक नही ले चला तो हो सकता है ए मेरा कोई अहित कर डाले इसलिए मैंने उससे बिना किसी प्रकार का पंगा लिए कहा कि ”ठीक है आप पीछे बैठ जाइए ………………. ! लेकिन वह मेरी गाड़ी के करीब आते ही एकदम दो कदम पीछे हट गई ……………..! उसका यह व्यवहार मेरे लिए काफी आश्चर्य जनक था . आखिर मैने ही उससे सवाल किया ” आप गाड़ी पर क्यो नही बैठ रही………….? वह बोली ”मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चल सकती हँू यदि आप आपकी गाड़ी में बंधी चुडिय़ो को निकाल कर बाहर फेक दे……………? ” मैने कहा ऐसा तो नही हो सकता………………. तब वह ” बोली ठीक है मैं चलती हँू …………… यह कह कर वह पल भी में गायब हो गई . अबकी बार मैं इस कमसीन युवती के साथ घटित घटना से भी बेहद डर गया . उस युवती के गायब होते ही जैसे ही मोटर साइकिल को आगे बढ़ाना चाह गाड़ी जो अचानक रूक गई थी वह आगे की ओर निकल पड़ी . जैसे – तैसे मैं रात के लगभग तीन सवा तीन बजे घर पहँुचा तो श्रीमति जी को मेरा इस तरह रात में आना बेहद आश्चर्यजनक लगा पहले तो वह मुझसे इसी बात पर काफी नाराज हो गई की मुझे बाबू माँ की बात को अनसुनी करके काली अमावस्या की सुनसान रात में अकेले नही आना था . श्रीमति के इस व्यवहार पर मैं उससे अपने साथ घटी किसी भी घटना को नही बताना चाहा क्योकि मुझे मालूम था कि जब मैं उसे उक्त सारी बात बताऊंगा तो वह तो डर जाएगी साथ में अगर उक्त बाते बाबू – माँ को भी बताएगी तो वे तो उन पर क्या बीतेगी……………?
इस घटना के एक सप्ताह बाद जब मैं बदनूर से एन .सी .डी .सी . बाबू – माँ से मिलने जा रहा था तो बरेठा बाबा के मंदिर पर मुझे वही पुजारी मिला . दिन का समय होने के कारण वह एक बार फिर उसने मुझसे वही सवाल करने लगा कि ” भैया उस रात को आप अकेले क्यो जा रहे थे ………..? और फिर जब मैने आपसे इसी सवाल को कई बार पुछा तो तो आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया………….. ! भैया आप मानो या न मानो उस रात आपका व्यवहार मुझे काफी आश्चर्यजनक लगा . आखिर क्या बात थी………ï? इस बार मैंने पुजारी को उस रात की सारी बाते बता दी तों वह मुझसे बोला ”भैया आपकी काली जी ने आखिर आपकी जान बचा ली वरणा आप भी उस बला के चक्कर में पड़ जाते……….. ! मैने पुजारी से पुछा कि ” पुजारी जी कैसे बला …..? कहाँ की बला…………? और कैसा चक्कर मैं आपकी बात समझ नही पा रहा हँू…………? बरेठा बाबा मंदिर का पुजारी बताने लगा ” भैया दर असल में बात आज से पाँच साल पहले की है . आपको याद होगा कि बरेठा के इसी घाट पर आगे आने वाले मोड़ पर बनारस की एक मारूति कार को एक प्रट्रोल डीजल वाले टैंकर ने टक्कर मार कर चकना चुर कर डाला था. इस दुर्घटना में एक पौढ़ महिला के साथ – साथ एक युवती भी घटना स्थल पर मर गई थी. उस कार में सवार उसके परिवार के बाकी सदस्य पाढऱ हास्पीटल में भर्ती होने के कुछ देर बाद मौत की गोद में सो गए . तबसे लेकर आज तक बरेठा के इसी घाट पर अकसर किसी न किसी मोटर साइकिल से लेकर चौ पहिया वाहन चालको से वह पौढ़ महिला और उसकी बहन पाढऱ तक जाने के बहाने लिफ्ट मांगती रहती है. जो भी उनके चक्कर में पड़ता है वे उसे इसी बरेठा घाट सेक्सन के बीच में अपना शिकार बना कर उसकी असमायिक मौत का कारण बन जाती है . इन दोनो अला और बला ने अब तक एक दर्जन से भी अधिक लोगो को को काल के गाल में पहँुचा दिया है वह तो माँ काली की आप पर कृपा रही कि आप बाल- बाल बच गए वरणा आपका भी काम लग जाता…………. ! मंदिर पुजारी की बात सुनने के बाद मैं आज तक उन दोनो बहनो अला- और बला को नही भूल पाया हँू . मुझे आज भी लगता है कि मेरी मोटर साइकिल की पीछे वाली सीट पर कही अला – या बला तो नहीं बैठ गई है .
इति,
दिल को छू लेने वाली रहस्य
रोमांचक युवा दिलों की सत्यकथा
काला गुलाब
रामकिशोर पंवार
रात की घटना को याद कर तरह – तरह के विचारो में खोये मनोज को पता ही नहीं चला की कब अंजली उसके कमरे में आ गई. अचानक अंजली को पता नहीं क्या शरारत सुझी उसने चुपके से विचारो में खोये मनोज की आँखो को अपने दोनो हाथो की हथेली से दबाई तो मनोज ने जैसे ही अपनी आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह जोर से चीख पड़ा. अचानक मनोज के जोर से चीख कर बेहोश हो जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. बेहोश हुए मनोज की उससे हालत देखी नहीं गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांपने लगी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया…..? मनोज की चीख को सुन कर उसके पड़ौस में रहने वाली अनुराधा दौड़ी चली आई. मनोज की चीख इतनी जोर की थी कि आसपास के लोग भी घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये.बड़े दिन की छुट्टïी खत्म होने वाली थी. स्कूल-कालेज लगना शुरू होने वाले थे. इस बीच अपने गांव से जल्दी लौट आये मनोज को अब सर पर सवार परीक्षा की तैयारी में जुट जाना था. अर्ध वार्षिक परीक्षा के बाद होने वाली पढ़ाई में जरा सी भी बरती ढील पूरा साल बरबाद कर सकती थी. सुबह जल्दी न उठ पाने की आदत के कारण मनोज ने अपने मकान मालिक से कहा था कि अंकल आप जब भी मार्निंग वाक के लिये जाते हैं मुझे भी साथ लेते चलिये मैं भी साथ चलूंगा. पिछले कई सालों से मनोज के मकान मालिक कुंदन मैथ्यू मार्निंग वाक के लिये जाते थे. मनोज ने सोचा कि वह सुबह चार से साढ़े पांच बजे तक मार्निंग वाक के बहानें अपनी किताबें-कापियां लेकर शांति से खुले मैदान में बैठकर पढ़ लेगा. एक पंथ दो काज के बहाने से सुबह देर से जगने की परेशानी से भी मुक्ति मिल जाएगी. अपने कमरे में सोने जाने से पहले मनोज ने एक बार फिर याद दिलाते हुये कहा कि अंकल रात से मैं भी आपके साथ चलूंगा.
मनोज का कमरा ऊपर की मंजिल पर होने की वजह से तीन चार दोस्त साथ मिलकर रहा करते थे. मनोज के सहपाठी आज शाम तक वापस लौट कर आने का कह कर गये थे लेकिन जब वे नहीं आये तो आज शाम को ही अपने गांव से वापस लौटे मनोज को आज की रात अकेले ही काटनी थी. इसलिये वह ज्यादा देर तक जगने के बजाय सोने चला गया. 31दिसंबर की उस रात अपने कमरे में अकेले सोये मनोज ने उस रात को जोर की पडऩे वाली ठंड से बचने के लिए अपने सारे गर्म कपड़े पहनने के बाद अपने गांव से अबकी बार साथ लाई जयपुरी मखमली रजाई को अपने ऊपर डाल कर उसकी गर्माहट में दुबक कर सो गया. सपनों की दुनिया में खोये मनोज की अचानक हुई खटपट की आवाज से नींद खुल गई. उसने अपने कमरे का नाइट लैम्प जलाया तो उसे अचानक नाइट बल्ब की रोशनी में जो दिखाई दिया उससे वह बुरी तरह डर गया. उसे अपने कमरे में एक भयानक डरावनी सूरत वाली काली बिल्ली दिखाई दी. जिसकी आँखो से अंगारे बरस रहे थे. उस काली भयावह डरावनी सूरत वाली बिल्ली से वह कुछ पल के लिये डर गया लेकिन उसने हिम्मत से काम लेते हुए उस बिल्ली को भगाने के लिए डंडा तलाशना चाहा , लेकिन उसे जब कहीं भी डंडा दिखाई नहीं दिया इस बीच डंडा तलाशते समय उसकी न$जर अनायास सामने की ओर बने सेंट पाल चर्च की ओर गई तो उसका कलेजा कांप गया. उसने अपने ऊपर की मंजिल पर स्थित कमरे से देखा कि रात के समय आसमानी तारों की जगमग रोशनी में उस चर्च के सामने बनी बावली के भीतर से एक महिला निकल कर उसके मकान की ओर आती दिखाई दी. सफेद लिबास पहनी वह महिला उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू के कमरे की ओर आती दिखाई दी वह महिला आई महिला बिना कुछ बोले उसके मकान मालिक के कमरे में चली गई. उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि उसने अभी कुछ देर पहले क्या देखा. आखिर वह महिला कौन थी. उसका इस मकान मालिक से क्या नाता-रिश्ता है. वह यहां पर इतनी रात को क्या करने आई है……? और न जाने कितने प्रकार के विचारों में खोए मनोज का डर के मारे बुरा हाल था. अगर वह बिस्तर पर जाकर नहीं बैठता तो वह बुरी तरह लडख़ड़ा कर गिर जाता.
मनोज ने जैसे – तैसे पूरी रात को अपनी आँखे के सामने कांटा. उसका एक- एक पल उसे सालो की तरह लग रहा था. सुबह होते ही जब उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू ने उसे घूमने के लिये चलने को कहा तो उसने पेट दर्द का बहाना बना कर वह अपने बिस्तर में दुबक कर सो गया. उसकी आंखों की नींद उड़ गई थी वह बार-बार यही सोचता रहा कि उस बावली से निकलने वाली महिला कौन थी? उसका इस मकान मालिक से क्या संबंध है? सवालों में उलझे मनोज ने किसी तरह दिन निकलते तक का समय काट लिया पर वह रात की घटना से परेशान हो गया. दिन भर बेचैन मनोज जब आज कॉलेज भी नहीं आया तो उसके मकान मालिक ने उससे आखिर पूछ लिया-बेटा मनोज क्या बात है? तुम्हारा पेट दर्द क्या अब भी कम नहीं हुआ है? अगर तकलीफ अभी भी है तो डाक्टर के पास चलो मैं तुम्हें ले चलता हंू. नहीं अंकल ऐसी कोई बात नहीं है, बस यूं ही इच्छा नहीं हो रही है. आप चिंता न करें मैं ठीक हंू यह कह कर मनोज अपने कमरे से बाहर निकल कर आ गया. रात की घटना को याद करता विचारों में खोये मनोज की अचानक किसी ने आंखों पर हथेली रखकर उसकी आंखोंं को दबा दिया. मनोज ने जैसे ही आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह चीख पड़ा और वह कटे वृक्ष की भॉति जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा. मनोज के चीख कर बेहोश गिर जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांप रही थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को क्या हो गया. मनोज की चीख को सुनकर आसपास के लोग घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये. कुछ ही पल में पूरा मोहल्ला जमा हो गया. किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा था. अंजलि का तो हाल बेहाल था. कुछ लोग मनोज को उठाकर उसके कमरे में ले गये. इस बीच कुछ लोग डाक्टर को तो कुछ लोग झाडऩे-फूंकने वाले को लेकर आ गये. डाक्टरों के लाख प्रयास के बाद रात वाली घटना को याद करके सिहर उठता था. इस बीच जब अंजलि ने चुपके से आकर उसकी आँखे क्या दबाई वह चीख कर ऐसा बेहोश हुआ कि उसे अभी तक होश नहीं आया. जब काफी देर तक मनोज को होश नहीं आया तो फिर क्या था उसके आस – पडौस के लोगो ने ओझा फकीरो को बुलवा लिया. सुबह से लेकर शाम तक झाड़ – फुक जंतर-मंतर का दौर शुरू हो गया. चर्च के फादर राबिंसन इन बातों पर विश्वास नहीं करते थे. इस बीच कोई मौलाना साहब को लेकर आ गया. मौलाना साहब ने कुछ बुदबुदाते हुये मनोज के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो अचानक बड़ी-बड़ी आंखें खोलकर घूरता हुआ जनानी आवाज में बोला ”तुम सब भाग जाओं नहीं तो किसी एक को भी नहीं छोडूंगी. …………. मौलाना साहब ने बताया कि यह लड़का किसी जनानी प्रेत के चक्कर में पड़ गया है. इसे कुछ समय लगेगा. ऐसा करें आप आधा घंटे का मुझे समय दे दीजिये. मैं इसे ठीक कर दूंगा. हां एक बात और भी इस लड़के का कोई अगर अपना है तो वह ही इसके साथ रहे बाकी सब चले जायें. सभी लोग अंजलि को छोड़ जाने लगे तो अंजलि जो कि इन सब बातों से बुरी तरह घबरा गई थी. बोली-प्लीज मेरे पापा को फोन करके बुला दीजिये न. अंजलि के पापा इसी शहर के पुलिस कप्तान थे इसलिये उन तक खबर पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं थी. पुलिस कप्तान साहब की बिटिया की खबर कौन नहीं पहुंचाएगा. लोग खबर देने के लिये दौड़ पड़े.
पुलिस कप्तान ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह का पूरे जिले में दबदबा था. अपराधी तो उसके नाम से ही थर-थर कांपता था. अंजलि उनकी एकमात्र संतान थी. तेजतर्रार पुलिस कप्तान साहब की एकमात्र नस थी तो वह उनकी बिटिया अंजलि जिसे वे बेहद प्यार करते थे. अंजलि मनोज के साथ डेनियल कालेज कला की छात्रा थी. मनोज भी उसी कालेज में साइंस का छात्र था. दोनों एक-दूसरे के विपरीत कोर्स की पढ़ाई कर रहे थे. कालेज की केन्टीन से शुरू हुये अंजलि और मनोज के प्रेम प्रसंग ने उन्हें पूरे कालेज में चर्चित कर रखा था. पुलिस कप्तान की बिटिया होने की वजह से हर कोई उसके आसपास आने से डरता था. वह अक्सर मनोज से मिलने आती थी. पिछले चार-पांच माह से दोनों के बीच चल रहे प्रेम प्रसंग की पूरी कालोनी में चर्चा होती थी. लोग चर्च कालोनी के इन दोनों प्रेमियों की तुलना हिर-रांझा, लैला-मजनू, सोनी-महिवाल से करते थे. अंजलि शहर के पुलिस कप्तान की बिटिया थी इसलिये कोई भी उसके बारे में बुरा भला कह पाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. कई बार तो कप्तान की कार ही मनोज को लेने आती थी. पूरे मोहल्ले में मनोज का जलवा था. अंजलि की मम्मी को ब्लड कैंसर की बीमारी थी. जिसकी वजह से वह असमय ही काल के गाल में समा गई थी. अंजलि की मम्मी का जब निधन हुआ था उस समय वह छ: माह की थी, ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह पर परिवार के लोगों का काफी दबाव आया कि वे दूसरी शादी कर लें, पर कप्तान साहब अपनी जिंदगी में किसी दूसरी औरत को आज तक आने नहीं दिया. अंजलि ही उसके जीने का एक मात्र सहारा थी. जब अंजलि के बीच प्रेम प्रसंग की उन्हें खबर मिली तो सबसे पहले कप्तान साहब ने बिना किसी को कुछ बताये मनोज के पूरे परिवार की जन्म कुंडली अपने मित्र से मंगवा ली थी. मनोज के घर परिवार के तथा उसके आचार विचार ने पुलिस कप्तान का दिल जीत लिया था. पुलिस कप्तान ने मनोज को अपना भावी दामाद बनाने का फैसला कर लिया था. अगले वर्ष दोनों का विवाह कर उनका घर संसार बसा देने का फैसला ठाकुर महेन्द्र प्रतापसिंह तथा मनोज के पापा के बीच हो चुका था लेकिन दोनों के बीच की बातचीत को अभी गुप्त रखा था. इस बात का न अंजलि को पता था और ना ही मनोज को आभास था कि उसके पापा और अंजलि के डैडी के बीच कोई बातचीत भी हुई है.
अंजलि की खबर मिलते ही पुलिस कप्तान दौड़े चले आए. उनके साथ शहर का पुलिस विभाग भी आगे-पीछे दौड़ा चला आया. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह की बिटिया संकट में है यह खबर सुन कर भला कौन चुप बैठ सकता था. सबसे ज्यादा हैरान – परेशान अखबार और टी.वी. चैनल वाले थे क्येकि उन्हे आपस में इस बात का डर सता रहा था कि कहीं उनकी खबर आने के पहले ही कोई ब्रेकिंग न्यूज न चला दे. शहर में सनसनी खेज खबर के घट जाने के चलते सारे मीडिया कर्मी ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह को खोजते कुन्दन मैथ्यू के घर पर आ धमके. सेंट पाल चर्च कालोनी की इस घटना की चर्चा शहर के पान ठेलो एवं होटलो तथा चाक चौराहो पर होने लगी. कुन्दन मैथ्यू के घर पुलिस कप्तान के पहँुचते ही वहाँ पर जमी भीड़ छटने लगी. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह उस कमरे में चले गए जहाँ पर गुमसुम अंजलि और मौलवी साहब के अलावा मनोज के अलावा उनके आसपास के लोग बैठे हुए थे. पापा के आते ही अंजलि स्वंय को रोक नही सकी और दहाड़ मार कर रोने लगी. ”पापा देखा न मनोज का क्या हो गया…..? अपनी बेटी की आँखो में आँसू देख महेन्द्र प्रतापसिंह स्वंय को रोक नही सके वे कुछ पुछते इसके पहले ही मौलवी साहब ने उन्हे चुपचाप रहने का इशारा कर दिया. पुलिस कप्तान साहब कमरे के एक कोने में बैठ कर वहाँ पर होने वाली गतिविधियो को देखने लगे. इस बार फिर मौलवी साहब ने गेहूँ के दानो को मनोज पर फेका तो आँखो में अंगारे लिए मनोज सोते से जाग गया. उसने सामने के मौलवी से तू चला जा नहीं तो बात बिगड़ जायेगी…….. मौलवी ने इस बार फिर कुछ बुदबुदाया और मनोज के चेहरे पर वह अभिमंत्रित पानी फेका तो वह जनानी आवाज में बोला मुझे छोड़ दो………… मौलवी साहब बोलें पहले तू यह तो बता आखिर तू है कौन………? तूने इसे क्यो अपने जाल में फँसा रखा है………..? इस बार मनोज के शरीर में समाई प्रेतात्मा बोली………….. मैं मरीयम हँू…………..सिस्टर जूली की छोटी बहन हँू. फादर डिसूजा ने मेरी सिस्टर जूली से मैरिज की थी. मैं अपनी सिस्टर के पास ही रहती थी. आज से 45 साल पहले मेरी चर्च कालोनी की इस सामने वाली बावली में गिरने की वजह से मौत हो गई थी. मेरी मौत लोगो के बीच काफी समय तक चर्चा का विषय बनी क्योकि फादर डिसूजा ने मेरी मौत को आत्महत्या बताया था जिसे आसपास के लोग मानने को तैयार नही थे. उस समय मैं दसवी कक्षा में पढ़ती थी. कुंदन मैथ्यू फादर डिसूजा के घर पर ही रहता था इसलिए हम दोनो के बीच पता नही कब प्यार का बीज अंकुरित हो गया. कुंदन के बचपन मेरी माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गये थे . एक दिन फादर डिसूजा को भूखे से व्याकुल कुंदन एक होटल में चोरी करते मिला. फादर डिसूजा को कुंदन पर दया आ गई और उसने उसे पुलिस थाने से जमानत पर छुड़ा कर अपने पास ले आया. सात साल की उम्र से कुंदन फादर डिसूजा के पास ही रहता है. फादर डिसूजा ने कुंदन को ईसाई धर्म की दीक्षा देकर उसका नाम कुंदन मैथ्यू कर दिया. कुंदन ने भी फादर डसूजा को अपने माता- पिता की तरह चाह कर उसकी सेवा चाकरी में कोई कसर नही छोड़ी. फादर ने कुंदन का नाम सामने वाले चर्च स्कूल में लगा दिया. पढऩें में तेज कुंदन ने हर साल अव्वल नम्बर पर आकर पूरे शहर में अपने नाम की पहचान बना ली थी. इस बीच सिस्टर जूली ने चर्च स्कूल में बतौर टीचर के जब नियुक्त हुई तो वह भी कुंदन की पढ़ाई के प्रति लगन और क्लास तथा स्कूल में नम्बर वन आने की वजह से उस पर खास ध्यान देने लगी. सिस्टर जूली भी श्ुारूआती दिनो में चर्च कालानी में रहती थी लेकिन जब फादर डिसूजा से उसकी मैरीज हो गई तो वह अपनी छोटी बहन मरीयम के साथ रहने लगी. मरीयम भी कुंदन के साथ पढ़ती थी इसलिए दोनो साथ – साथ रहने और पढऩे के कारण एक दुसरे के हमजोली बन गये. सिस्टर जूली से मैरीज के बाद फादर डिसूजा का कुंदन के प्रति व्यवहार काफी बदल गया. कुंदन का स्कूल जाना बंद करवा दिया गया. उसे चर्च में चौकीदार की नौकरी पर रखवाने के बाद फादर डिसूजा ने मरीयम की कुंदन से बातचीत तक बंद करवा दी. फादर डिसूजा नहीं चाहतें थे कि मरीयम की मैरीज एक ऐसे लड़के से हो जिसके माता- पिता न हो…… जिसके पास न घर है न दो वक्त की दो का इंतजाम ऐसे लड़के से मैरीज न होने देने की वजह कुछ और ही थी. दर असल फादर मरीयम को पाना चाहते थे लेकिन सिस्टर जूली की वजह से उनकी दाल नही गल पा रही थी. एक दिन सिस्टर जूली और कुंदन किसी काम से दूर किसी शहर गये थे . उस रात को घर में अकेली देख फादर डिसूजा ने मरीयम की इज्जत लूटनी चाही तो वह अपनी जान बचाते समय ऐसी भागी की बावली में जा गिरी. मरीयम की अचानक मौत का सिस्टर जूली पर ऐसा सदमा पड़ा की वह अकसर बीमार पडऩे लगी और एक दिन चल बसी. फादर डिसूजा ने कई लोगो को मेरी मौत को आत्महत्या बताया लेकिन किसी ने भी उसकी बातो पर यकीन नही किया. मैने आखिर मेरी और मेरी सिस्टर जूली की मौत का बदला लेने के लिए मुझे मनोज का सहारा लेना पड़ा
. मैं मनोज को बस एक ही शर्त पर छोड़ सकती हँू यदि आप मेरी कब्र पर एक काला गुलाब वो भी मेरे और कुंदन के प्यार की निशानी बतौर लोगो के बीच लम्बे समय तक जाना – पहचाना जा सके. लोगो ने जूली की मनोज के माध्यम से कहीं बातो पर विश्वास करके एक काला गुलाब की कली की कहीं से व्यवस्था करके ज्यों ही उसकी कब्र पर गाड़ा इधर मनोज अपने – आप ठीक हो गया . आज भी कुंदन और जुली के प्यार का वह प्रतिक लोगो के लिए ऐसा सबक साबित हुआ है कि लोग कभी भी ऐसे प्रेमी के प्यार के बीच में खलनायक बनने का प्रयास नहीं करते जों एक दुसरे को जान से जयादा चाहते है. अभी कुछ दिनो पूर्व ही अंजली अपने पति मनोज और पापा डी .आई .जी . ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह के साथ जब नागपुर जा रही थी तो वह छिन्दवाड़ा होते हुए जूली की कब्रतक पहँुची यह जानने के लिए की उसके द्वाराा अकुंरित काला गुलाब कैसा है………!
इति,
कथा के पात्र काल्पनिक है इसका किसी भी
जीवित व्यक्ति से कोई लेना – देना नहीं है
पत्रकार बना नटवर लाल
रामकिशोर पंवार
उस दिन जन सम्पर्क संचनालय भोपाल में काफी चहल- पहल थी . आयुक्त जन सम्पर्क अपने कक्ष में बैठे किसी फाइल के पन्ने पलट रहे थे . इस बीच कार्यालय का चपरासी एक विजिटींग कार्ड के साथ अंदर आया . कार्ड पर लिखा परिचय देख कर आयुक्त ने उस कार्ड धारक को अंदर बुलवा लिया . बातचीत चली तो पता चला कि कमरे में आने वाला युवक मयंक भार्गव है तथा वह मुख्यमंत्री पत्रकार सहायता कोष से अपनी कैंसर से पीडि़त माँ के इलाज के लिए 20 हजार रूपये की आर्थिक सहायता के प्रोफार्म के साथ आया हुआ था . आयुक्त ने सहायता नीधि के कागजो और संलग्र दस्तावेजो को देखने के बाद उस आवेदन की सिफारीश कर डाली और वह चला गया स्वीकृति के लिए……. पता नहीं क्यो आयुक्त जन सम्पर्क को रह – रह कर ऐसा लग रहा था कि मुख्यमंत्री पत्रकार सहायता कोष से बीस हजार रूपये की सहायता मांगने वाला युवक कहीं से कही तक असहाय या लाचार लग रहा था . मोबाइल धारक स्कारपीयों से आने वाले इस युवक को बीस हजार रूपयें की आर्थिक सहायता स्वीकृत करवाने वाले पूरे जन सम्पर्क विभाग को भी इस बात का अंदेशा नही था कि कल चल कर यह मामला इतना तूल पकडेगा कि जन सम्पर्क विभाग को लेने के देने पड़ जायेगें. आखिर एक दिन हुआ भी वही जिसकी आशंका थी. बैतूल जिला मुख्यालय स्थित प्रथम श्रेणी न्यायाधीश माननीय सुनील शौक की अदालत में एक परिवाद प्रस्तुत करते हुये जिले के जाने – माने अधिवक्ता राधाकृष्ण गर्ग के भतीजे मनीष गर्ग ने एक परिवाद पत्रकार मयंक भार्गव एवं उनकी माता श्रीमति उर्मिला भार्गव के खिलाफ प्रस्तुत करते हुये आरोप लगाया कि मयंक भार्गव ने अपनी बुढ़ी विधवा माँ श्रीमति उर्मिला शिव शंकर भार्गव को कैंसर का मरीज बतलाते हुये मुख्यमंत्री पत्रकार सहायता कोष से झुठे दस्तावजे तैयार करके पत्रकार मयंक भार्गव ने बीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता ली है . इसके अलावा दो अन्य परिवाद में विक्रमा दित्य सिंह ठाकुर , वीरेन्द्र दुबे तथा मयंक के छोटे भाई मयूर भार्गव जिनके खिलाफ परिवाद क्रंमाक 499- 6 , 500- 6 , 501- 6 धारा 420 , 467 , 468 , 471 , 468 , 469 , तथा दायर करने के बाद उक्त सभी पाँचो ्रआरोपियो ने ना – ना प्रकार के दबाव डाल कर फरियादी रामकिशोर पंवार को प्रताडि़त किया लेकिन इन पँाच आरोपियो की एक याचिका को खारीज करते हुये अपर सत्र न्यायाधीश श्री ए . जे . खान ने प्रथम श्रेणी मुख्य न्यायाधीश श्री सुनील शौक के आदेश को उचित बतलाते हुये इन पाँचो आरोपियो के खिलाफ बैतूल थाना प्रभारी को अपराध पंजीबद्घ कर मामले की जाँच के निर्देश दिये .
गत वर्ष 26 जून 2006 को अपर सत्र न्यायाधीश श्री ए . जे . खान के आदेश पर बैतूल पुलिस ने मयंक , मयूर , श्रीमति उर्मिला भार्गव , श्री विक्रमादित्य सिंह ठाकुर , श्री वीरेन्द्र दुबे के खिलाफ मामला तो दर्ज कर डाला लेकिन वह जाँच के बहाने आज दिनाँक तक न्यायालय में लंबित है . प्रथम श्रेणी मुख्य न्यायाधीश श्री सुनील शौक ने इन पाँचो आरोपियो के खिलाफ पुलिस विवेचना में देरी तथा चालान प्रस्तुत न किये जाने के मामले को लेकर पुलिस महानिर्देशक से लेकर पुलिस अधिक्षक तक को कड़ा पत्र लिख डाला लेकिन किसी के कान में जूँ तक नही रेंगी आखिर प्रथम श्रेणी मुख्य न्यायाधीश श्री सुनील शौक नें बैतूल थाना प्रभारी आर. एस. अग्रवाल को न्यायालय की अवमानना का नोटिस थमा डाला . आरोपियो को गिरफ्तार नही करने वाली पुलिस के पास ना – ना प्रकार के बहाने भी रहते है . एक दिन तो गजब हो गया जब बैतूल न्यायालय द्वारा लगभग 11 माह पूर्व बैतूल थाना में इन तीन अलग – अलग परिवादो पर दर्ज करवाये गये जालासाजी के प्रकरणो के चालान के बारे भोपाल में बैठे अफसरो को न्यायालय की ओर से लिखे पत्र मे चेतावनी दी गई तो स्वंय अनुविभागीय पुलिस अधिकारी श्रीमति सीमा अलाव ने विश्वास दिलाया कि बैतूल कोतवाली 15 दिनो के अंदर ही न्यायाधिपति सुनील शौक की अदालत में चलने वाले जालसाजी के मामले में जाँच रिर्पोट प्रस्तुत करने जा रही है . न्यायालय तय करता कि मामला सही है या गलत इसके पूर्व ही उन्होने कह डाला कि पुलिस ने अपनी जाँच रिर्पोट में उक्त मामले को झूठा पाया है . पुलिस के 15 दिन जब सवा माह हो गये लेकिन पुलिस 11 माह पुराने मामले पर सहीं जाँच निर्णय से न्यायालय को अवगत नहीं करा सकी है . वह न्यायालय के बार- बार आदेशो के बाद आज तक परिवाद में प्रस्तुत साक्ष्य को हासिल नहीं कर सकी है . सबसे मजेदार बात तो यह है कि बैतूल पुलिस ने अब वहीं रिर्पोट को आधार बनाया है जिसे बनाने वाले मध्यप्रदेश पुलिस के उप निरीक्षक एवं बैतूल गंज पुलिस चौकी के प्रभारी पर आज भी खण्डवा जिले के न्यायालय में बलात्कार एवं अनुसूचित जाति – जनजाति प्रताडऩा अधिनियम के दर्ज मामला विचारधीण है. जो खुद अपराधी हो उसे ही अपराधियो के खिलाफ जाँच करने की जवाबदारी देकर जिला मुख्यालय के आला पुलिस के अफसरो ने उस लोकप्रिय कहावत को सत्य साबित कर दिखाया कि चोर के हाथ में तिजोरी की चाबी……! ज्ञात हो कि लगभग 10 माह की तथाकथित जाँच के दौरान मामले की जाँच करने वाले बैतूल गंज पुलिस चौकी के प्रभारी एच.एल.शर्मा ने इस लम्बी समयावधि के दौरान मामले के सारे साक्ष्यो एवं गवाहो को आरोपियो के पक्ष में करके न्यायालय के द्वारा दर्ज जालासाजी के आरोपियो को बचाने का प्रयास किया है . अब देर – सबेर जागी पुलिस द्वारा इस बहुचर्चित जालसाजी के मामले के आरोपियो को बचाने के लिए न्यायालय में पेश की जाने वाली जाँच रिर्पोट तथा चालान के साथ पुलिस न्यायालस से अपील भी करने वाली है कि मामले को खारीज कर दिया जाये . अपने स्वजाति अपराधियो को बचाने के लिए पूरे मामले के साक्ष्यो को तोड़ – मरोड़ कर प्रस्तुत करने की रणनीति के तहत जाँच अधिकारी ने इन मामलो के सभी आरोपियो के खिलाफ गवाही देने वालो तक के आरोपियो के पक्ष में बयान करवा लिया है .पुलिस की यह कार्यवाही एक नई मिसाल साबित होगी.
इधर अपनी माँ को कैंसर का मरीज बता कर मुख्यमंत्री पत्रकार सहायता कोष से बीस हजार रूपसे की सहायता स्वीकृत करने वाले अफसर अब बुरी तरह दहशत में है . अब उन्हे भी लगने लगा है कि जो दस्तावेज प्रसतुत किये गये है उस आधार को न्यायालय में दी गई चुनौती के हिसाब से उनकी भी कलम बुरी तरह फँस चुकी है. बैतूल जिले के इस जालसाज पत्रकार मयंक को आर्थिक सहायता स्वीकृत करवा कर जन सम्पर्क के अफसर अब अपनी जान बचाने में लगे है . सबसे ज्यादा हैरान- परेशान रज्जू राय नामक अफसर बताया जाता है . जन सम्पर्क विभाग के सूत्रो के अनुसार इस अफसर ने ही मयंक को 20 हजार रूपये की सहायता राशी दिलवाने में अहम भूमिका निभाई थी .सूत्र बताते है कि शासन के राजपत्र में प्रकाशित प्रारूप के विपरीत सहायता दिलवाने का दु:साहस करने वाले रज्जू भैया अब इस बात को लेकर चिंतित न$जर आ रहे है कि मयंक का अपराध सिद्घ हुआ तो उन पर भी गाज गिर सकती है …. गार -पीट से बचने के लिए मंयक को स्वीकृत सहायता राशी की फाइल से कई महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब है लेकिन परिवाद के साथ प्रस्तुत दस्तावेजो की फोटो काफी में और पुलिस विभाग की जाँच तथा जन सम्पर्क विभाग के कथन में जमीन आसमान का फर्क है . विभाग के अफसरो को बैतूल जिले का नाम सुनते ही पसीना आने लगता है . कई भोपाली अफसर तो बैतूल के नाम से ऐसा रोना रोते जैसे उनके साथ कोई बहँुत बड़ी घटना या हादसा घट गया हो . जन सम्पर्क विभाग के एक अफसर ने स्वीकार किया कि पेंशनधारक पति के जिंदा होने पर उसकी आयकरदाती पत्नि को उसके पुत्र पर आश्रित दिखा कर बड़ी भूल तो हुई है क्योकि जो महिला हर साल 20 हजार से ज्यादा तो अपनी चल – अचल सम्पति का आयकर चुकाती हो वह भला अपने इलाज के लिए शासन से बीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता क्यो लेगी……? मयंक की विधवा माँ श्रीमति उर्मिला भार्गव के पति उस समय जीवित थे जब उसके इलाज के नाम पर बीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता ली गई . श्रीमति उर्मिला भार्गव के नाम पर बारह लाख रूपये का दो मंजिला मकान के अलावा 15 लाख रूपये की तिरूपति बालाजी आफसेट प्रिटंर्स है साथ ही वह स्कारपीयो वाहन की मालिक है . वह प्रति वर्ष अपनी चल एवं अचल सम्पति का आयकर चुकाती है .
जन सम्पर्क विभाग के उन अफसरो ने अपने स्वजाति भाई जो कि दूरदर्शन , आकाशवाणी और पी .टी .आई . तथा इंडिया टी .वी . का बैतूल ब्यूरो है उसे हर समय सहयोग किया . इन्ही भोपाल में बैठे ब्यूरो प्रमुखो या इंचार्ज प्रमुखो के दम पर मयंक भार्गव , मयूर भार्गव तथा उसके मित्रो के नाम पर इन लोगो ने कभी डाँ अशोक साबले से तो कभी विनोद डागा से सहायता पाने वाले इन जालसाजो ने तो सुखदेव पांसे , डाँ सुनीलम , सज्जन सिंह और महेन्द्र सिंह पर भी आर्थिक सहायता दिलवाने के लिए पहले तो दबाव डलवाया और जब वह काम नहीं आया तो ना – ना प्रकार के चक्कर चलाये लेकिन उक्त सभी विधायक इन जालसाजो को आर्थिक सहायता नहीं दिलवा सके .जन सम्पर्क विभाग के आला अफसर यह मानने लगे है कि इन दोनो भाईयो ने तो अंतरराष्टïय ठगराज को भी मात दे डाली .अभी हाल ही की सबसे बड़ी खबर यह है कि जन सम्पर्क विभाग के अफसरो ने इन दोनो भाईयो के साथ जेल जाने से बचने के लिए विभाग की कई महत्वपूर्ण फाइलो को ठिकाने लगाने का काम तो कर डाला पर उनके ही खास लोगो ने उन दस्तावेजो की फोटो कापी उपलब्ध करवाते हुये उनके जेल जाने का रास्ता पक्का कर दिया है . मयंक – मयूुर प्रकरण में अप्रत्यक्ष रूप से जिला कलेक्टर बैतूल श्री चन्द्रहास दुबे ने अपना बड़ा योगदान दिया वे पुलिस अधिक्षक से लेकर न्यायपालिका तक को अपने प्रभाव से प्रभावित करके मयंक के प्रकरण की जाँच को अभी तक लटकाये रखे. इधर बैतूल जिले के पुलिस अधिक्षक बस एक ही राग अलापते रहे कि मैं थानेदार तो हँू नहीं कि जाँच करू अब देखता हँू कि पुलिस क्यो जाँच नहीं कर रही है . कुल मिला कर न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका तक इस ठगी के बेताज बादशाह के कदमो में घुटने टेक चुकी है . अब उन परिवादो का क्या होगा यह तो ईश्वर ही जाने ………….?
इति,
कंलकित हुआ राखी का धागा
तेरे – मेरे बीच में कैसा है ए बंधन अंजाना
सत्यकथा :- रामकिशोर पंवार
उस दिन पूरे गांव की पंचायत की बैठक थी . . बैतूल जिला मुख्यालय से 25 किलो मीटर दूर रानीपुर के आगे कतिया कोयलारी नामक गांव बसा हुआ हैै . इसी ग्राम छन्नू नामक कोरकू का परिवार रहता है . छन्नू के परिवार में उसके तीन बेटे एवं छै बेटियाँ है . बड़ा बेटा कमल की अभी कुछ ही साल पहले शिवकली धुर्वे से शादी हुई थी . छन्नू कोरकू की पत्नि इमरती के अलावा उसके परिवार में उसका सबसे छोटा बेटा सम्बल को लेकर आज जात – समाज और गांव की पंचायत की बैठक में छन्नू धुर्वे का पूरा परिवार आज सर झुकाये बैठा हुआ था . गांव की पंचायत ने सर्व सम्मति से छन्नू धुर्वे के पूरे परिवार के सामाजिक बहिष्कार के अलावा उसके गांव से निकाले जाने की घोषणा करके सबको आश्चर्यचकित कर डाला था . गांव की महिला कोटवार सरस्वती देवी गांव का फैसला लेकर जब रानीपुर थाना पहँुची तो सारी घटना को सुनने के बाद थाना प्रभारी श्री के .एस . बघेल को पहले तो घटना पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब दोनो ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थानेदार बघेल अब कानून के पन्नो को पलटने ले क्योकि कानून में यह कही भी नही लिखा था कि युवक और युवती अगर बालिग हो तो उनके बीच स्थापित शारीरिक सबंध क्या कानून अपराध की श्रेणी में आता है .
जिस भारतीय समाज में हम सदियो से रहते चले आ रहे है , उस समाज में माँ और बेटे के बाद अगर कोई रिश्ता पवित्रता की कसौटी पर खरा उतरा है तो वह है राखी के धागो से बंधा भाई और बहन का रिश्ता लेकिन अब उस रिश्ते पर भी कलंक लगना शुरू हो गया है .रिश्तों की मर्यादाओं को तोड़ते हुए इस पवित्र बंधन को कलंकित करने वाले एक हवस के भूखे भेडिय़े ने अपनी सगी छोटी बहन को शिकार बनाने के बाद भले ही आत्मग्लानि की व$जह से फाँसी लगा कर आत्महत्या कर ली हो पर उसके इस कुकर्म ने माँ से उसका बेटा , बहन से उसका भाई जो बाद उसका होने वाला पति था तथा उस कंलकित रिश्ते से जन्मे नवजात शीशु के सिर पर से बाप का साया छीन लिया . एक ही छत के नीचे कब दोनो जवानी की दहलीज पर पैर रखने वाले भाई – बहन के पैर फिसल गए किसी को पता नहीं चला . उसके परिवार में उसके सगे बड़े भाई कमल और उसकी पत्नि शिवकली धुर्वे ,माँ इमरती बाई धुर्वे तथा बहनो तक उनके बीच बने इस शारीरिक सबंध से तब तक अंजान रही जब तक उस लड़की कोख का बीज अंकुरित होकर पेट में हलचल पैदा न कर सका . जैसे ही पेट के भीतर का पाप लोगो को दिखने लगा लोगो ने इस मामले को लेकर गांव और समाज की पंचायत बुलवा कर इस परिवार के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा करके उसे गांव से बाहर करने का फरमान जारी कर दिया . 21 वर्षिय सम्बल आत्मज छन्नू धुर्वे की मां इमरती पत्नि छन्नू धुर्वे की ममता ने उनके इस कृत्य को स्वीकार करते हुए दोनों की शादी करवाने का निर्णय तो ले लिया लेकिन गांव की पंचायत के दबाव तथा स्वंय को हुई आत्मग्लानि के चलते सम्बल धुर्वे अपनी ही सगी छोटी बहन का पति बन पाता इसके पूर्व ही उसने फाँसी का फंदा लगा कर मार डाला . बैतूल जिला मुख्यालय से 25 किलो मीटर दूर रानीपुर के आगे कतिया कोयलारी ग्राम में घटित हुई इस शर्मनाक – शर्मसार घटना से पूरा गांव अपने आपने आपको अपराधी मान रहा है . हालाकि इस घटना का खुलासा बीते शनिवार 9 जून 2007 को सूर्यास्त के बाद हुआ जब गांव की महिला कोटवार सरस्वती बाई मृतक युवक 21 वर्षीय सम्बल धुर्वे और 19 वर्षीय उसकी बहन माधुरी (परिवर्तित नाम) को लेकर रानीपुर थाने पहुंची जहां थाना प्रभारी के .एस . बघेल के पास उन दोनो के कारण गांव में उत्पन्न हुई समस्या और उनके बीच बने संबध के चलते गांव की एवं समाज की पंचायत से बहिष्कार की बात रखी तो थाना प्रभारी श्री बघेल सकते में पड़ गए उन्हे गांव की महिला कोटवार सरस्वती बाई की बात पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं हुआ लेकिन मामले की गम्भीरता तथा ग्रामिणो का आक्रोष के आगे वह स्वंय इस ज्वलंत प्रश्र पर कोई निर्णय नहीं ले सका कि इनके खिलाफ किस धारा का अपराध दर्ज किया जाए…..? अब सवाल यह उठता है कि जिस रिश्ते की डोर पवित्रता के विश्वास से जुड़ी है और जिस बहन की रक्षा का जीवन – मरण तक का दायित्व भाई के ऊपर रहता है वहीं भाई अपनी बहन का भक्षक बन जाये और बहन भी भाई के भाई के उस कृत्य को छुपा कर उस पाप को अपनी कोख में पलने दे तब कानून क्या करेगा . यह घटना अपने आपमें कटुसत्य है कि सम्बल ने अपनी बहन के साथ एक साल पहले ही जबरदस्ती कहे या उसकी मर्जी से अनैतिक असामाजिक शारीरिक संबंध स्थापित कर लिए थे और वे दोनो एक ही छत के नीचे पति-पत्नी के रूप में रहते चले आ रहे थे . गांव और समाज के लोगो को भले ही इस घटना के बारे में बाद में पता चला हो पर इसकी जानकारी उन दोनो के परिवार वालों को पहले ही लग गई थी ….. ! माँ की ममता ने बेटे और बेटी के इस अपराध को स्वीकार कर लिया था लेकिन जब लड़की के गर्भवती होने का खुलासा गांव वालों के सामने हुआ तो तत्काल ही गांव और समाज की एक पंचायत ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि सम्बल के पूरे परिवार का सामाजिक बहिष्कार किया जाये एवं इन दोनों को गांव निकाला भी दिया जाये . रानीपुर थाना प्रभारी श्री बघेल के पास गांव के उक्त फरमान को लेकर पहँुची गांव की महिला कोटवार सरस्वती बाई की मौजूदगी में पुलिस ने दोनों से पूछताछ करने के बाद उन्हें समझाईश देकर गांव वापस भेज दिया क्योकि पुलिस भी इस बात को जान चुकी थी कि दोनो बालिग होने के साथ – साथ इनके बीच बने अवैध या जोर – जबरदस्ती का न होकर आपसी सहमति का है . जिसके कारण पुलिस के पास ऐसी कोई धारा नहीं है , जिसके बल पर वह उन दोनो को दंडित कर सके . ग्राम कतिया कोयलारी में रहने वाले छन्नू धुर्वे की कुल 9 संतान है जिसमें 3 भाई तथा 6 बहने है . मात्र बड़े भाई कमल की ही शादी हो चुकी थी शेष की शादी होना बाकी था . ग्राम पंचायत कोयलारी पंच अशोक उइके ने गांव पहँुचे इस संवाददाता को बताया कि इस कंलकित घटना का पूरे स्वजाति समाज एवं अन्य समाज पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा …… ! भारतीय समाज में जिस रिश्ते को सम्मान से देखा जाता है अगर उस रिश्ते पर दाग लग जाए तो आने वाली पीढिय़ों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा . भले ही गांव की पंचायत ने मृतक सम्बल धुर्वे के परिवार का इस घटना को लेकर उनका सामाजिक बहिष्कार – दाना – पानी बंद कर दिया था पर उसे मिली सामाजिक प्रताडऩा एवं स्वंय को हुई इस नापाक घटना की आत्मग्लानि ने 21 वर्षिय सम्बल धुर्वे को पुलिस थाने से आने के बाद दुसरे दिन ही स्वंय के गले के गमछे से फाँसी लगा कर आत्महत्या कर ली . इधर सम्बल धुर्वे ने दम तोड़ा उधर उसकी 19 वर्षिय बहन माधुरी (परिवर्तित नाम) ने उस पाप से अंकुरित बीज को जन्म दिया . हालाकि मृतक सम्बल धुर्वे की मां इमरती बाई ने बार – बार मृतक के आत्महत्या करने के पूर्व अपने जात – समाज और गांव की पंचायत के समक्ष इनकी शादी को स्वीकार करने को तैयार थी, लेकिन समाज और गांव किसी भी सूरत में इस बात को स्वीकार करने को तैयार नही था . काफी मिन्नते के बाद सशर्त समाज और गांव पंचायत ने फैसला दिया कि प्रसव के बाद दोनों की शादी अलग-अलग स्थानों पर कराने के बाद ही इन पर लगाया गया दण्ड हटाया जाएगा . इस मामले को लेकर सम्बल की मां इमरती बाई का कहना है कि उनके बच्चों से गलती तो हुई है लेकिन अब उनकी शादी के अलावा कोई विकल्प नहीं है इसलिए अब वे भाई बहन की शादी करा देती लेकिन सम्बल ने फाँसी लगा कर आत्महत्या करके पूरे परिवार को एक बार फिर जीते – जी मार डाला . आदिवासी समाज में अकसर देवर – भौजाई , जीजा – साली के बीच अवैध संबधो के मामले जनप्रकाश में आते – रहते है लेकिन यह घटना पूरे बैतूल जिले में इस रूप में पहली बार घटी जिसके चलते सभी के होठ सिल गए .
इति,
माँ तो ऐसी नहीं होती ..!
आलेख – रामकिशोर पंवार
11 साल से माँ न बन पाने की त्रासदी भोग रही एक महिला ने स्वंय के माँ बनने का नाटक करने के लिये क्या नहीं किया . वह अपने पति – ससुराल वालो तक को अपने पेट में न ठहर पा रहे गर्भ का झूठा नाटक रचते हुये उसने स्वंय को गर्भवति तक बताया. उसकी माँ बनने की अभिलाषा ने उसे एक महिला के नवजात शीशु को चुरा कर ले जाने तक का कृत्य कर डाला उसकी यही लालसा से जेल के दरवाजे तक ले गई वही दुसरी ओर हवस की अंधी एक माँ ने पहले तो भरी पंचायत में अपने प्रेम का इजहार कर प्रेमी के साथ रहने का निर्णय लिया , निर्णय भी इसलिए लिया क्योंकि उसे गर्भ ठहर गया था. परन्तु डेढ़ माह माह में ही उसका प्रेमी से भी जी भर गया तब उसने स्वजातीय व्यक्ति से शादी कर ली. जहां 15-20 दिन बाद ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया. जिस पर उसके पति ने इस अवैध बच्चे को पालने से इनकार कर दिया. तब इस निर्दयी माँ ने अपने सुख के लिए बच्चे को ही ठिकाने लगाने के उद्देश्य से उसे एक सुनसान स्थान पर बने कुंए में फेंक डालने का एक ऐसा घिनौना अपराध कर डाला जिसके चलते ममतामयी माँ की परिभाषा ही बदल कर रख दी ……! लोग कहने लगे कि माँ तो ऐसी नहीं होती…..! अपनी कोख को कंलकित करने वाली इस पुत्रहंता माँ ने जिस लालसा से अपने गर्भ में 9 माह तक जिस बच्चे को पाल रखा था उसे अपने आँचल का दुध पिलाने के बजाय उसे कुआँ में पॅेक कर उसे अपनी प्रसव पीड़ा से बह निकले आसुँओ के स्थान पर कुआँ के पानी डुबा का मार डालने का कृत्य कर डाला जिसके चलते समुची नारी जाति ही शर्मसार हो गई क्योकि आमतौर पर यह कहा जाता है कि माँ – जननी के बारे में एक कवि की पंक्तिया कुछ इस प्रकार है कि ”अबला तेरी यही कहानी आँचल में दुध और आँखो में पानी…..!
मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के ग्राम टेकड़ाढाना की युवती फुलवंता बाई को अपने ही गांव के चैतराम लोहार से प्रेम हो गया लेकिन उससे जी भर जाने के साथ वह यह भी नहीं जान सकी कि उसे ठहरा अपने प्रेमी चैतराम का गर्भ वह उससे पीछा छुड़ाने के बाद उसका क्या करेगी. आदिवासी बाहुल्य इस गांव के लोगो ने अपने समाज की पंचायत बुला कर फुलवंती का विवाह गांव के हीरालाल गोंड (20) से करवा डाला लेकिन हीरा लाल वह हीरा नहीं निकला जो पत्थर को भी पारस कर दे . हीरालाल से शादी किये अभी 20 दिन भी नहीं बीत पाये थे कि फुलवंती की कोख ने एक बच्चे को जन्म दे डाला जिसे हीरा ने छुकर पारस बनाने से इंकार कर डाला और आखिर में उस निर्दयी माँ ने उसे कुआँ में फेक दिया. 10 दिन बाद जब गांव के कुएं में एक बच्चे की लाश तैरती न$जर आई तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई . समीपस्थ पुलिस थाना ने गांव कोटवार की सूचना पर मर्ग कायम कर जांच प्रारंभ की तो एक ऐसी दुख भरी कहानी सामने आई जिसने समुची मानव जाति पर कालिख पोत डाली . पुलिस ने इस पुत्रहंता मां फुलवंती को गिरफ्तार कर लिया.घटना के संबंध में पुलिस के रोजनामचे पर दर्ज अपराध के अनुसार चिचोली थाना अन्तगर्त ग्राम गोधना के ग्राम कोटवार ने थाना चिचोली में सूचना दी कि ग्राम गोधना से थोड़ी दूर पर एक निर्जन स्थान पर कुएं में एक अज्ञात बालक उम्र 3-4 माह का शव कुएं में पानी में दिखाई दे रहा है. पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच प्रारंभ कर दी. संपूर्ण जांच पर पुलिस ने पाया कि उक्त अज्ञात बच्चा ग्राम टेकड़ाढाना निवासी फुलवंता बाई पति हीरालाल गोंड (20) का था. जिसे अवैध संतान होने से खुद बच्चे की मां फुलवंता बाई ने कुएं में फेंक कर हत्या कर दी. प्रकरण के संबंध में विस्तृत जानकारी जो मिली वह इस प्रकार है ग्राम चिखलीढाना निवासी फुलवंता बाई (20) का प्रेम गांव के ही चैतराम लोहार से हो गया था. चैतराम लोहार से फुलवंता को गर्भ ठहर गया. गांव वालो की यह बात पता चली तो गांव में पंचायत हुई. तब पंचायत के सामने फुलवंता बाई ने अपनी मर्जी से चैतराम लोहार के साथ ही रहने की बात कह वह चैतराम के साथ ही रहने लगी. करीब एक डेढ़ माह बाद चैतराम लोहार के यहां से फुलवंता बाई निकल कर उनकी जाति प्रथानुसार ग्राम टेकड़ाढाना के हीरालाल गोंड के घर बैठ गई (हीरालाल से शादी कर ली) हीरा लाल से शादी करने के 15-20 दिन बाद ही फुलवंता बाई को बच्चा पैदा हो गया . इस बच्चे को लेकर फुलवंता का पति हीरालाल फुलवंता को हर कभी बोलते रहता था कि यह अवैध बच्चा है, मैं इसे नहीं पालूंगा या तो तू इस बच्चे को लेकर जा और दूसरा आदमी कर ले. तब फुलवंता बाई ने उस बच्चे को ही ठिकाने तो लगा दिया लेकिन वह भी इस घृणित कृत्य करने के बाद महिला जेल के सीखचो के पीछे एक कमरे आज पछताप के आँसु बहा रही है.
ऐसा नहीं कि इस प्रकार के अपराध नहीं होते …….. जो काम सदियो सें गांव की दाई – नाईन किया करती थी वही काम शहरो और महानगरो के बड़े नामचीन हास्पीटलो के बंद कमरो में होता है . भ्रूण हत्या पाप है लेकिन रतलाम की घटना हो या फिर अन्य किसी स्थान की आज भी वंश चलाने की लालसा के चलते सैकड़ों माँ अपने पति और परिवार के दबाव में वैध गर्भ में पल रही कन्याओं की किलकारी गुंजने से पहले ही उसे मार डालते है . सड़को पर या दुकान लगा कर बैठे नीम हकीम खतरे जान भी इस प्रकार के कृत्यो को करते है लेकिन प्रसव पीड़ा सहने के बाद बच्चे को अपने आँचल का दुध पिलाने के बदले उसका गला घोट कर मार डालने की घटना तब जन्म लेती है जब अवैध गर्भ पनपने लगता है जिसके बाहर आने पर उसे समाज में अपनी इज्जत का डर सताने लगता है . इन सबके पीछे वह रंगरैलिया – मौज मस्तीयाँ – रासलीला होती है जो शारीरिक भुख की तृप्ति के लिए जन्म लेती है .
उन्हें जमीन खा गई या आसमाँ निगल गया…!
लेख – रामकिशोर पंवार
उन्हे जमीन खा गई या आसमाँ निगल गया, यह कोई नहीं जानता. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस के प्रयास भी नाकाम साबित हो रहे हैं. यह दास्तां है जिले के उन 269 बदनसीब महिलाओं की है जो पिछले साढ़े सात वर्षो में अलग-अलग स्थानो से अलग – अलग समय में रहस्यमय ढंग से लापता है . कई के परिवारजनो ने जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रो से उनकी गुमशुदायगी की रिर्पोट दर्ज तो करवाई है पुलिस की फाइलो में महज खानापूर्ति बनी इन लापता महिलाओं में कई शादी शुदा तो कई विधवा और तलाकशुदा भी है . कुछ ऐसी भी महिलाए है जिनके बच्चे रोते बिखलते अपनी माँ को पुकार रहे है तो कुछ ऐसी भी है जिनकी कोख भर ही नही पाई और वे नौ – दो ग्यारह हुई या फिर उन्हे कोई बहला फुसला कर लोभ – लालच दिखा कर भगा ले गया . सबसे आश्चर्य जनक तथ्य तो यह है कि अधिकांश लापता महिलाओं में से कुछ देह व्यापार के बाजार में जा पहँुची है ….! जो हालात न$जर आ रहे है उनके अनुसार इन्ही लापता महिलाओ में कुछ तो शादी की आड़ में मुँह मांगे दामो पर बिक चुकी है . ऐसी ही कुछ युवतियो एवं महिलाओं के वापस लौटने पर आई जानकारी के अनुसार शादी और काम के नाम पर बिकने वाली अधिकंाश लापता महिलाओं की संख्या बीते साढ़े सात वर्षो में लगभग 614 रही जिसमें से 319 मिल चुकी है तथा शेष 269 का आज तक कोई पता नही चल सका है . जो युवतियाँ या महिलाए गायब है उनके परिजनो का रो-रोकर बुरा हाल है. गायब महिलाओं में सभी आयु वर्ग की हैं . जिसमें सबसे अधिक लापता महिलाए आदिवासी समाज की है. बैतूल जिले की पुलिस अकसर किसी भी गुमश्ुादा की रिर्पोट आने पर गुम इंसान का मामला दर्ज कर अपनी कागजी खानापूर्ति कर अपना पींड छुड़ा लेती है . एक अनाधिकृत जानकारी के मुताबिक वर्ष 2001 में गुमशुदा महिला 100 थी जिसमें से 78 मिली 22 अभी तक लापता है . इसी तरह वर्ष 2002 में 93 महिलाए गुम हुई जिसमें मात्र 63 मिली शेष 30 अभी तक लापता है. वर्ष 2003 में 83 महिलाए गुम हुई जिसमें 51 महिलाओं का पता चला शेष 32 का आज तक पता नही चल सका है. वर्ष 2004 में गुमशुदा महिलाओं की संख्या 78 थी जिसमें 36 महिला अपने घर वापस लौटी है अन्य 42 महिलाए अभी तक लापता है. वर्ष 2005 में गुमशुदा महिलाओं की संख्या 100 तक पहँुच गई जिसमें से मात्र 32 मिली शेष 68 महिलाओं का आज तक पता नही चल सका . वर्ष 2006 में यही आकड़ा 108 तक पहँुच गया जिसमें की 45 महिलाए अपने घर वापस लौटी 73 महिलाओं का आज तक पता नही लग सका आज भी इनमें से अधिकांश महिलाओं के परिजन इनके रहस्यमय ढंग से लापता होने के कारणो की तह तक नही पहँुच सके है . वर्ष 2007 में इन पंक्तियो के लिखे जाने तक गुमशुदा महिलाओं की संख्या 52 तक पहँुच गई है जिसमें मात्र 14 महिलाओं को पुलिस खोजने में सफल रही शेष 38 महिला की खोजबीन जारी है. इस तरह वर्ष 2001 से अभी तक 396 महिलाए गुम हो चुकी है जिसमें से 242 महिलाए अपने घर वापस लौटी है शेष 154 महिला पिछले पाँच वर्षो से अभी तक लापता है.
आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले से वर्ष 2001 से इन पंक्तियो के लिखे जाने तक गुमशुदा कमसीन बालाओं की संख्या 580 है जिसमें से 235 बालिकाओं की खोज हो चुकी है शेष 345 बालिकाएँ आज तक लापता है. इन लापता बालिकाओं 10 वर्ष से कम उम्र की 113 बालिकाए है शेष 232 बालिकाए दस वर्ष से अधिक उम्र की है जिनके माता- पिता आज भी पुलिस थानो के चक्कर लगा रहे है. वैसे देखा जाए तो 2001 से आज तक 481 बालक लापता हुए है जिनमें 214 बालक ही अपने घर वापस लौटे है शेष 481 बालको का आज तक पता नही चल सका है. लापता बालको में से दस वर्ष से अधिक उम्र के बालको की संख्या 242 है . शेष 239 लापता बालक दस वर्ष से कम उम्र है . बैतूल जिले के विभिन्न पुलिस थाना क्षेत्रो से मिली जानकारी के मुताबिक सबसे अधिक महिलाएं लापता हैं. लापता लोगों में समाज के प्राय: सभी वर्गो के लोग शामिल हैं. लेकिन सबसे अधिक घर से भागने वाले लोगो में अधिकांश संख्या आदिवासी युवतियो की है. जिनके बारे पुलिस कहती है कि वे किसी के साथ भाग गई होगी? बैतूल जिले की पुलिस ने लापता लोगों के मामले में उनके परिजनों की रिपोर्ट पर गुमइंसान का मामला तो दर्ज कर लिया है किन्तु उनके अब तक न मिलने से ये लोग काफी निराश है. महीनों से लापता लोगों के वापस न आने से उनके परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल हो गया है. कुछ लोग तो लापता के चक्कर में बीमार भी पड़ गए हैं. उनका इलाज चालू है तो कुछ परिवारों के मुखिया भी लापता की फेहरिस्त में शामिल है. इस कारण उनके परिजनों की आर्थिक स्थिति कमजोर होते जा रही है तो कुछ परिवारों के सामने भीख मांगने की नौबत आ गई है. इनमें से बैतूल थाने के सराड़ से लापता भूपत के परिवार वाले 4 माह से उसे ढूंढ-ढूंढकर परेशान हो उठे है. वे बताते है कि 4 माह में पुलिस भूपत का पता नहीं लगा पाई. इससे उनका पुलिस की कार्यप्रणाली पर से ही विश्वास उठ गया. लापता लोगों में जनवरी से अब तक 35 महिलाएं, 15 पुरूष, 16 बालक और 13 बालिकाएं शामिल हैं. जिनमें सांईखेड़ा थाने के सोहबत निवासी सांईखेड़ा की सर्वाधिक 75 वर्ष उम्र है, जबकि आमला थाने की पर्वतडोंगरी निवासी बबली पुत्री रामप्रकाश और बोरदेही थाने की शांति पुत्री मंशू की सबसे कम 9 वर्ष उम्र है. साढ़े सात माह में लापता 79 लोगों की फेहरिस्त में चौंकाने वाले तथ्य उभरकर सामने आए हैं कि बूढ़े, जवान और नन्हें बच्चे भी इस सूची में शािमल हैं. लापता में से सिर्फ 11 लोगों की जानकारी आज तक पता चल पाई है . सबसे आश्चर्य जनक तथ्य तो यह है कि जिले की पुलिस अभी भी इन आकड़ो को झुठलाती हुई कहती है कि इतने लोग न तो भागे है और न गुमशुदा है ……! जबकि पुलिस के रिकार्ड स्वंय इन तथ्यो से परे नही है आज भी गुमशुदायगी दर्ज करने वाला पुलिस विभाग का सेल अपने ही विभागो के अफसरो एवं कर्मचारियो से हैरान एवं परेशान है क्योकि वह लापता लोगो की खोज करने में आज तक सार्थक रूप से सफल सिद्घ नही हुआ है क्योकि अभी तक जितने भी लापता लोग अपने घर को वापस लौटे है उनके बारे में यह कहा जा सकता है कि वे लौट के बुद्घु घर को आए याने पुलिस ने उन्हे खोज निकाला नही बल्कि वे खुद वापस लौटे है. अब देखना बाकी है कि बैतूल जिले की पुलिस इन लापता लोगो के प्रति कौन सा तौर तरीका अपनाती है जिससे इन लोगो का पता चल सके.
इति,
लेख
कल के तुकाराम आज के आशाराम
सच्चा सदगुरू वही जो अपने साधक से बिना कुछ लिए उसे ज्ञान दे लेकिन आधुनिकता के इस दौर में गुरू से लेकर साधक भी मार्डन होते चले जा रहे है. गुफाओं – कंदराओं – नदियो और ऊँची – ऊँची पहाडिय़ो पर वर्षो से बिना कुछ खाये – पीये तपस्या करने वाले साधु – संतो की जगह अब बाबाओं और ने ले ली है . आज के इस भौतिकवादी युग में किसी भी चाइल्ड से लेकर एडल्ट वेब साइट पर ही अपना तथाकथित दिव्य ज्ञान की वर्षा करने वाले बाबाओं की एक – एक बुंदो की पल्स रेट तक तय है . जितनी देर आपको ज्ञान चाहिए उतनी देर तक कोई भी प्रशिक्षु साधक को एडवांस में डी.डी. या अपने ए टी एम कार्ड से बाबा से लेकर वेब साइट को आन करने वाले वेबसाइट को भुगतान करना पड़ता है . किसी बाबा से मिलना हो तो उसके लिए नम्बर लगेगा और उसके लिए भी बुकिंग करवाना पडेगा . बाबा की निर्धारित तारीख पर उनसे मिलने के बाद बाबा के दर्शन से लेकर उनके चरण स्पर्श या उन्हे माला पहनाने या उनसे अपने सिर पर हाथ रखवाने तक के रेट निर्धारित है . इन सबके पीछे कहीं न कहीं भारतीय प्राचिन सभ्यता और संस्कृति को नष्टï करने की अतंरराष्टï्रीय साजिश है जिसने गुरू से लेकर चेले तक की सोच में में अमूल- चूल परिवर्तन ला दिया है. बाबा के हाई – फाई होने का असर छोटे – मंझोले बाबाओं पर भी पडऩे लगा है तभी तो लेपटाप बाबा , वेबसाइट बाबा जैसे कई नाम सुनने को मिल रहे है. कुछ साल पहले तक भारत के बाबाओं के पास तन ढकने को कपड़े नही रहते थे तो वे पेड़ो के पत्तो से अपना तन ढक लेते थे लेकिन अब तो बाबा स्वंय के चार्टर प्लेन से आने – जाने लगे है. करोड़ो – अरबो – खरबो की बेनामी सम्पति के मालिक बने बाबाओं में कुछ ही ऐसे बाबा है जिसने लोगो को कुछ ऐसा संदेश दिया है जिससे उसके जीवन की दिनचर्या बदली है . साई इतना दीजिए जा में कुटंब समाय लेकिन अब तो भाई इतना दीजिए कि तुम कंगाल हो जाये ….?
संतो की भूमि महाराष्टï्र के महान संतो में तुकाराम जी महाराज का नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है. कल के तुकाराम जी महाराज और आज के आशाराम जी के रहन – सहन में परिवर्तन से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सच्चा सदगुरू कौन है….? सच्चाई सोलह दुनी बत्तीस आने सही है कि साई बाबा , संत ज्ञानेश्वर , गजानंद महाराज , दादा धुनी वाले , ताज वाले बाबा , संत तुकड़ो जी महाराज , के समकालिन इन महान दिव्य आत्माओं के शिष्यो की लम्बी चौड़ी जमात है. इनके प्रवचनो को सुनने का न तो कोई पैसा लगता था न किसी प्रकार का दान. साई बाबा तो अपने लिए भीक्षा मांग कर स्वंय अपना भोजन पकाते और खाते थे उसमें का एक हिस्सा वे किसी न किसी पशु को अवश्य खिलाते थे लेकिन आज के बाबा के लिए खाना भी किसी फाइव स्ट्रार होटल से आता है . आज के मार्डन बाबा चार घर भीक्षा मांगने के बजाय बाबा चार धन्नासेठो और राजनीतिझो को ही मुर्गा बना कर अपने लिए एक दिन के खर्चे का बंदोबस्त कर लेते है. बीते दिनो बैतूल जैसे पिछड़े जिले में आये आशराम बापू के दो दिवसीय प्रवचन के दौरान हजारो साधको के लिए भोजन से लेकर भजन तक की दुकाने लगी थी जो किसी स्थानीय व्यक्ति या दुकानदार की न होकर स्वंय योग वेदांत समिति के बैनर तले संचालित थी. लोगो की आस्था का पागल पन कहिए या फिर इन तथाकथित मार्डन युग के बाबाओं का सम्मोहन जाल की लोग आंख होते हुए भी अंधे कुये में डुबने को तैयार है . आशाराम बापू के करीबी दर्शन से लेकर उनके चरण स्पर्श के नाम पर लोगो का लूटना या लूटा जाना अपने आप में घिनौना मजाक है . यह अपने आप में कड़वी सच्चाई भी है कि जहाँ एक ओर अंधश्रद्घा में डूबे लोग अपने बुढ़े – लाचार माता – पिता को घर से निकाल रहे है और उन जैसे जीवित बाबाओं के फोटो जो पुलिस थानो में लगने चाहिए उन्हे अपने घरो में लगा कर उस पर जूतो की बजाय फूलो माला लगा कर उनके नाम पर भंडारा चला रहे . बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में दो दिन रहे संत आशाराम ने अपनी जेब से चार आने किसी गरीब – बेसहारा – विकलांग या जरूरतमंद व्यक्ति को न देकर स्वंय ही लाखो रूपैया बटोर कर ले गये. इसमें किसी को किसी प्रकार का गिला या शिकवा नही क्योकि दु़कानदार का काम तो अपना माल बेचना है लोग जब स्वेच्छा से उसे खरीद रहे है तब किसी प्रकार की जालसाजी या धोखाधड़ी या चिटिंग नही …. पर इस बात पर भी अमल करना चाहिए कि पड़ौसी भूखा हो और हम गिद्घ भोज करवाये क्या यही सच्चा धर्म है…?
जिस देश में नदियो को देवी के रूप में पूजा जाता है उस नदी ने कभी किसी से नही कहा कि वह उसमें नहाने से पहले एडंवास बुकिंग की रसीद दिखाये लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा हो रहा है. हर चीज बिकाऊ हो रही है जिसके चलते बाबाओं के बैंक बैलेंस बढ़ते जा रहे है. कभी कभार लुढकन बाबा जैसे पाखंडियो का पर्दाफाश तब होता है जब कोई नाबालिग युवती का बाप अपनी इज्जत की परवाह किये बिना इन बाबाओं की काली करतूतो को उजागर करने के लिए पुलिस की शरण ले. इस देश में कई संत – फकीर बाबाओं को रंगरैली मनाते रासलीला मनाते देश के छोटे से गांव से लेकर समुन्द्र के उस पार तक लोगो ने पकड़ा है लेकिन बाहुबल और धनबल के दम पर बाबा आज भी दम मारो दम मिट जाए गम का संदेश देते लोगो को चरस से लेकर हीरोइन तक का आदी बना चुके है . आज जरूरत इस बात की है कि इस देश का हर नागरिक इस बात पर चिंतन – मनन करे कि उसे कैसा गुरू चाहिए…?
इति,
प्याले से गायब हुई काफी.. …. !
रामकिशोर पंवार
काफी भारत की मूल्यवान फसल होने के साथ -साथ देश के लिए बहुँत महत्वपूर्ण है . काफी केवल 2500 फुट से 5000 फुट की ऊँचाई वाले क्षेत्र में अच्छी तरह से ऊगाई जा सकती है .बैतूल जिले के कुकुरू – खामला वन परिक्षेत्र की ऊँची पहाँडिय़ो पर आज से ठीक 89 साल पहले सेंट विल्फोर्ड द्घारा 208 एकड़ का रकबा काफी प्लांट के लिए आरक्षित कर काफी के उत्पादन की संभावनाओं को मूर्त रूप दिया गया था .हालाकि शुरूआती दौर में 110 एकड़ में काफी के उत्पादन को शुरू किया गया था . 5 – 7 फीट के अंतर लगाये जाने वाले काफी के पौधे सामान्यत: पाँच या छै साल के बाद फसल देना शुरू कर देते है . औसतन काफी का उत्पादन प्रति एकड़ दो हंडरवेट होता है . बैतूल जिले में काफी की इन्ही संभावनाओं को सबसे पहले 1907 में आज से ठीक सौ साल पहले ब्रिट्रिस हुकुमत के समय बैतूल जिले में पदस्थ एक ब्रिट्रिश नागरिक सेंट विल्फोर्ड ने अपने परिवार के सदस्यो एवं मित्रो को घुमाने के बहाने इस स्थान पर एक व्ही . आई .पी . सर्किट हाऊस की नींव रखी थी . जिसके पीछे यहाँ की प्राकृतिक सुन्दता एवं मौसमी वातावरण था . इस दौरान सेंट विल्फोर्ड को ऐसा लगा कि इतली ऊँचाई वाले क्षेत्र में काफी के उत्पादन की काफी संभावनाए है तब उसके द्घारा पेय प्रदार्थ काफी के उत्पादन की शुरूआत भी कुछ काफी के पौधो को रोपित करके की थी . उसकी दोनो अभिलाषा जब पूर्ण हुई तब तक वह इस जिले से जा चुका था . आज 1907 में बने इस सर्किट हाऊस के सौ साल तो पूरे हो गए . देश छोड़ कर अग्रेंज चले गए लेकिन हमे दे गए दो अनमोल सामान जिसकी हम देश आजादी के 60 साल बाद हिफाजत नही कर पाये . मध्यप्रदेश का एकलौता काफी उत्पादक क्षेत्र कुकुरू खामला में बना वह सर्किट हाऊस अपने मूल स्वरूप को खोते जा रहा है साथ ही वन विभाग अपने पूर्व दक्षिण वन मण्डल के वन मण्डलाधिकारी श्री मान द्घारा उस अग्रेंज सेंट विल्फोर्ड के सपनो को साकार करने के लिए काफी अथक प्रयास करके काफी के बीजो का उत्पादन का कार्य कुछ ग्रामिणो की मदद से वन सुरक्षा समिति बैनर तले शुरू किया प्रयास को संरक्षित एवं सुरक्षित नहीं रख पाए . अब दिन प्रतिदिन देश का जाना पहचाना काफी उत्पादक क्षेत्र जहाँ पर पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गांधी से लेकर न जाने कितने अनगिनत लोग आकर यहाँ की काफी की चुस्की का स्वाद लेकर चले गए आज वही काफी उत्पादक क्षेत्र कुकुरू खामला जाने वाले पर्यटको के प्याले से काफी गायब होती काफी दूर चली जा रही है . बैतूल जिले के वर्तमान वन संरक्षक श्री ए.के. भटटाचार्य एवं दक्षिण वन मण्डल के वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज अग्रवाल द्घारा पत्रकारो को इस भैसदेहीं तहसील मुख्यालय से लगभग पैतीस किमी दूर सतपुड़ा अंचल की गोद मे सबसे ऊंचाई वाला क्षेत्र कुकुर खामला की काफी उत्पादक नर्सरी को दिखाने के लिए ले जाया गया . जहाँ एक ओर काफी प्लांट में इस बरसात में काफी के पौधे सुख कर डंढ़ल जेसे दिखाई पड़ रहे है . समुद्र सतह से लगभग चार घन फीट ऊंचाई पर सीना ताने हुए भैसदेहीं तहसील के इस वन ग्राम को ऊंची पहाड़ी के नाम से जाना एवं पहचाना जाता है . यही व$जह भी है कि मध्यप्रदेश में सिर्फ इसी स्थान पर काफी बीजो का उत्पादन कार्य शुरू किया गया था . इस स्थान की काफी के बीजो को खरीदने के लिए देश की जाने – मानी काफी बनाने वाली कंपनियाँ के अलावा अन्य लोग भी आया करते थे . बैतूल जिला मुख्यालय से रिमझीम बरसात के दिनों में पत्रकारो को इस पर्यटक स्थल की प्राकृतिक सौंदर्यता का दर्शन कराने ले गए वन विभाग . को लगा कि पत्रकार लोग उनकी भाटगिरी – चाटुकारिता करके इस काफी उत्पादक क्षेत्र की कम$जोरीयो को उजागर नही कर पायेंगे लेकिन राज्य एवं केन्द्र सरकार से काफी उत्पादक नर्सरी को बचाने के लिए उत्पादित काफी के मूल्य से अधिके रूपयो को खर्च करने के बाद भी काफी उत्पादक की इस नर्सरी को वन विभाग के अफसरो एवं कर्मचारियो की लापरवाही रूपी दीमक ने चाट खाया है . जिसके कारण आज इस क्षेत्र की मूल पहचान उससे छीनती चली गई .. …. …. …. …. …. ! अँकड़ो पर गौर किया जाए तो वन विभाग के कई अफसरो को घर बैठना पड़ सकता है क्योकि इस काफी के पीने वालो ने काफी के बदले पूरा – का पूरा पैसा जो कि लाखो एवं करोड़ो रूपयो में आता है . वन सुरक्षा समिति को अपनी लापरवाही एवं भ्रष्टïचार की ढ़ाल बनाने वाले अफसरो ने कभी सपने मे भी नही सोचा था कि ग्रीष्मकाल में तपती धूप से बचने इस शांत एवं ठंडकपूर्ण स्थान का काफी उत्पादन इतने नीचे गिर जाएगा . कितनी शर्मसार बात है कि देश एवं प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रो के हजारों की संख्या में आने वाले पर्यटको को जब पता चलता है कि अब उन्हे यहाँ के सर्किट हाऊस में वन विभाग की इस नर्सरी से उत्पादित काफी के प्याले की चुस्की का म$जा नही मिल पाएगा …. …. …. …. …. ! इस खबऱ को सुनने के बाद हर कोई काफी आश्चर्यचकित हो जाता है . मंदसौर से कुकुरू खामला की सुन्दरता निहारने आए मनमोहन दुबे कहते है कि यहाँ आने के लिए उनके एक बैतूल जिले में पदस्थ रह चुके स्वास्थ विभाग में कार्यरत जीजाजी ने काफी आग्रह किया था , लेकिन यहाँ पर काफी का प्याला चाहने पर भी नही मिल सकता…. …. …. …. …. ….! अपने आप में प्राकृतिक सौंदर्यता का अनमोल खजाना समेटे हुए है कुकुरू खामला ग्राम से लगे हुए दुर्ग में पहाडिय़ों की मेखलाकार सौंदर्यता देखते बनती है. इस रमणीय स्थल पर देश – प्रदेश से वर्ष भर हजारों की संख्या में पर्यटक अनुपम प्रकृति की सुंदरता को अपने सजल नयनों से निहारने आते है.वन सुरक्षा समिति के पदाधिकारी ने पत्रकारो को इस रमणीय क्षेत्र के बारे में बताया कि इस पर्यटन स्थल को बुच पाइंट के नाम से जाना जाता है क्योंकि अपने ही जिले के पूर्व कलेक्टर एवं जाने – माने पर्याविद एम .एन . बुच ने अपने प्रवासी दौरे पर इस स्थल को पर्यटन स्थल बनाने का निश्चत किया था, तभी से यह प्राकृतिक सौंदर्यता का अनमोल खजाना बुच पाइंट कहलाने लगा . इस पर्यटन पाइंट के लिए जाने वाले 30 किमी के रास्ते में ऐसे अनेकानेक रमनीय एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत स्थान देखने मिलते है जिसे देखकर ह्दय प्रफुल्लित हो उठता है. यहां भैसदेही तहसील मुख्यालय से उतर – पश्चिम दिशा में 3 किमी दूरी पर स्थित ग्राम बगदरा में 25 से 40 ऊंचे दो मौसमी झरने है, जिनका पानी एक दूसरे के विपरीत दिशा में गिरता हुआ पहाडिय़ों से होकर बहता है, जिसका बलखाते हुए अंगडाईयां मारना मचलना देखते ही बनता है. यह स्थान अंधूरा देव बाबा के खोरे के नाम से जिले में विख्यात है. इस स्थान के कुछ आगे चले तो एक विशाल जलाशय मिलता है जिसका जल निर्मल एवं स्वच्छ दर्पण सा प्रतीत होता है जो अपने जल से आसपास के क्षेत्र को सदा लहलहाने में मदद करता है. वर्तमान समय में अंचल में व्याप्त जल संकट का भी एकमात्र विकल्प यह कुर्सी जलाशय ही है. इन दृश्यों को देखते हुए जब हम पहुंचते है जिले के विख्यात पर्यटन स्थल कुकुरू खामला तो मानो आत्मा आनंद विभोर हो जाती है. यहां काफी प्लांट के प्लाप हो जाने के बाद से बरसते पानी के मौसम और कड़कती ठंड में होठो की चुस्की से दूरे हुए काफी के प्याले पर आश्रित वन सुरक्षा समिति कुकुरू खामला के गरीब आदिवासी को यह नहीं पता कि अब उनकी नर्सरी में काफी के बीज क्यो नहीं उत्पादित हो पा रहे है . पूर्व वन मण्डलाधिकारी श्री मान ने वन सुरक्षा समिति का गठन करके इस काफी प्लांट के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार से काफी बड़ा अनुदान प्राप्त कर इसे काफी ख्याति दिलवाई थी लेकिन आज वही काफी उत्पादक नर्सरी के सदस्य अपनी रोजी – रोटी के छीन जाने से काफी मुसीबत में है . वन विभाग के इस सरकारी रेस्ट हाउस के ठीेक सामने पत्रकारो से चर्चा करते वन विभाग के अफसरो के साथ नाश्ता एवं रात्री भोज के पूर्व पत्रकारो का दल सूर्य का उदय एवं अस्त खुले आसमान में होता देख इस क्षेत्र की प्रशंसा करते ही मनमोहित हो गये . समीर के झोको का दिशा ज्ञान कराती रेस्ट हाऊस के पास ही लगी पवन चक्की, समीप बसा ग्राम कुकुरू ऊँची पहाडिय़ां ऐसे अनेक प्राकृतिक स्थल जो सुंदरता की रश्मियों को बिखेरता हुआ पर्यटको का मन मोह लेता है. ऐसे प्रकृति के अनुपम अनमोल खजाने की जितनी सराहना की जाए कम है. इस अनमोल एवं रमणीय से सराबोर प्राकृतिक सौंदर्य के धनी वन ग्राम कुकुरू खामला से लुप्त काफी के प्रति अगर राज्य सरकार का वन विभाग लापरवाह एवं भ्रष्टïचार के अजगर की तरह इसे निगलता गया तो कोई भी कुकुरू खामला नही पहँुच सकेगा क्योकि उन्हे नही मिल सकेगी काफी की चुस्की……..!
इति,
मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 लापता…..?
रामकिशोर पंवार
भारत में बाघों की संख्या को उजागर करने वाली ”भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादुन की ताजा रिर्पोट में इस बात का खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती बैतूल तथा महाराष्टï्र के सीमावर्ती अमरावती जिले के वन्य जीव क्षेत्र में बनी मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 बाघो का कोई अता – पता नहीं है . भारत सरकार के नियत्रण में कार्यरत इस संस्थान ने मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट द्घारा उपलब्ध आकड़ो की पोल खोलते हुए चौकान्ने वाले तथ्यों को उजागर करके दावा किया है कि वर्तमान समय में मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के वन्य जीव क्षेत्र में 67 बाघो में से केवल 30 ही बाघ बचे है…! देश के प्रधानमंत्री डाँ मनमोहन सिंह ने स्वंय देश की जानी- मानी एवं अनुभवी वन्य जीव विशेषज्ञ श्रीमति सुनीता नारायण की अगुवाई में टाइगर टास्क फोर्स का गठन किया गया था . इस टाइगर टास्क फोर्स ने मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट में बाघो के शिकार के मामले में चिंतित होकर आई . एफ . एस . अधिकारियों को लेकर बनाई ”भारतीय वन्य जीव संस्थान ÓÓ देहरादुन से मदद मांगी थी जिसके बाद ही उक्त तथ्यों का खुलासा हो सका . मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के वन क्षेत्र में बसे 22 गांवो में से इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मात्र दो ही गांवो का पुर्नवास हो सका है . शेष 20 गांव आज भी तलहटी एवं नदी – नालो तथा प्राकृतिक जल संग्रहित स्थानो के आसपास बसे होने के कारण इन गांवो के ग्रामिण जिनमें अधिकांश अनुसूचित जन जाति के लोग है वे ही वन्य प्राणियो के सबसे बड़े दुश्मन बने हुए है . बैतूल जिले की सीमा से लगे इस प्राजेक्ट में जिले का भी वन क्षेत्र तथा गांव आने से महाराष्टï्र सरकार के वन विभाग के पास एक रटा – रटाया जवाब रहता है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती बैतूल जिले के शिकारी और ग्रामिणो के कारण वन्य प्राणियो को जान के लाले पड़ रहे है लेकिन अब तो मध्यप्रदेश सरकार का वन मोहकमा भी महाराष्टï्र के अफसरो के सुर में सुर मिलाते हुए कहने लगा है कि जिले के वन्य प्राणियो का महाराष्टï्र के शिकारी एवं ग्रामिण शिकार कर रहे है . दोनो राज्यों के वन विभागो के आला अफसरो के लिए यह सबसे बड़ा शर्मनाक तथ्य है कि मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट के 37 बाघ न तो मध्यप्रदेश के वन क्षेत्र में है और न महाराष्ट के वन क्षेत्र में ऐसी परिस्थिति में अंतरराष्टïरीय वन्य प्राणियो के अवयवो का कुख्यात तस्कर संसार चंद भले ही तिहाड़ जेल की चार दिवारी में कैद हो लेकिन उसका अच्छा खासा नेटवर्क आज भी मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट में फैला हुआ है . ”भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादुन की रिर्पोट में इस बात को भी उजागर किया है कि 20 गांवो के लोगो को मोहरा बना कर वन्य प्राणियो अवयवो के तस्कर द्घारा पानी में जहर मिलाने एवं अधखाई शिकार पर जहर डालने तथा बिजली का कंरट लगा कर वन्य प्राणियो को मारने के तौर – तरीके अजमाए जा रहे है . दो राज्यो की सीमावर्ती वन क्षेत्र में मध्यप्रदेश के कटनी क्षेत्र की बहेरिया जाति के लोगो को भी संदेह की न$जर से देखा जा रहा है क्योकि यह जाति अपने तथाकथित जड़ी – बुटी से इलाज के नाम पर गाडिय़ो में पूरे साज और सामान के साथ आते है . इनके पास लोहे के बने फंदे होते है जिसमें वन्य प्राणी आसानी से फंस जाता है . बैतूल जिले के भैसदेही , आठनेर , भीमपुर तथा महाराष्ट के अजंनगांव , दर्यापुर , परतवाड़ा के आसपास के गांवो में अपना डेरा जमाने वाली इस बहेरिया जाति भी बरसो से वन्य प्राणियो की जानी दुश्मन बनी हुई है . बैतूल जिले के वन विभाग के अफसर तो साफ शब्दो में कहते है कि वर्तमान समय में बैतूल जिले में एक भी बाघ नही है . पड़ौसी सीमावर्ती राज्य के मेलघाट के टाइगर प्रोजेक्ट से 37 बाघो के लापता होने के लिए वे जिम्मेदार नहीं है …. भारत सरकार द्घारा बाघो के संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश एवं महाराष्टï्र के सीमावर्ती वन परिक्षेत्रो में स्थापित महाराष्ट जिले के अमरावती जिले के दो प्रमुख गुगामल राष्टरीय बाघ अभ्यारण और मेलघाट टाइगर प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले दोनो राज्यो के भारतीय वन सेवा (आई . एफ . एस .) के अफसरो की एक साझा बैठक बुलवाने के बाद ही उक्त प्रोजेक्ट को मूर्त रूप दिया गया था . जिसमें दोनो राज्यो के वन विभाग के आला अफसरो को साफ तौर यह निर्देशित किया गया था कि दोनो ही पड़ौसी राज्यों बाघो के संरक्षण के लिए आपसी तालमेल के कार्य करेगें तथा दोनो ही अपने वन क्षेत्रो में इस प्रोजेक्ट के बाघो पर निगरानी से लेकर उनके संरक्षण के प्रति जवाबदेह होंगे . दोनो राज्यो के अफसरो की समय – समय पर होने वाली साझा बैठको की खानापूर्ति तो हुई लेकिन दोनो ने ही एक दुसरे पर जवाबदेही का आरोप – प्रत्यारोप लगा कर वे स्वंय इन आरोपो से बचते रहे कि इन बाघो के लापता होने के लिए वे स्वंय जवाबदेह है . आज यही कारण है कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले से लगे दो वन्य प्राणियो के प्रोजेक्ट जिसमें एक भोपाल – नागपुर राष्टï्रीय राजमार्ग 69 पर बैतूल एवं छिन्दवाड़ा जिले के सीमवर्ती वन परिक्षेत्रो में स्थापित है उस पर अंतराष्टï्रीय वन्य प्राणियो के तस्कर की न$जर लग गई है . आज भले मध्यप्रदेश राज्य सरकार का वन मोहकमा टाइगर प्रोजेक्ट की जवाबदेही से स्वंय को दूर कर रखा हो पर उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि बैतूल जिले में वन्य प्राणियो की संख्या दिन – प्रतिदिन क्यो घटते जा रही है . जब इस संवाददाता ने राज्य के वन सचिव से इस बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाही तो स्वंय संतोष जनक जवाब नहीं दे सके . बैतूल जिले की एक मात्र पंजीकृत संस्था बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के संयोजक एवं भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्घारा गठित जिला पर्यावरण वाहिणी के सदस्य के अनुसार अभी हाल ही में जिला मुख्यालय पर स्थित अिकारी क्षेत्र में पूरे मोहल्ले के लोगो ने सांभर का मांस खाया लेकिन वन विभाग के अफसरो से लेकर पुलिस मोहकमा तक के लोग के कानो में जँू तक नहीं रेगी . सबसे शर्मनाक बात तो यह रही कि जिस मोहल्ले में सांभर का मांस बटा . समिति का आरोप है कि जिले में इस समय पूरा वन मोहकमा वन्यप्राणियो के संरक्षण तो दूर रहा वनो के संरक्षण तक के लिए अपनी जवाबदेही सही ढंग से नहीं निभा पा रहा है . आज जिले में लाखो की लकडिय़ा वन विभाग के उडऩदस्ते के सामने वन माफिया द्घारा जला दिया जाना तथा उसके बाद एक ही गांव से लाखो की लकड़ी वन्य प्राणियो की खाल तथा उन्हे पकडऩे के लिए उपयोग में आने वाले फंदो की बरामदी इस बात का प्रमाण है कि जिले का वन मोहकमा अपने कत्वर्य का किस ढंग से पालन कर रहा है .
इति,
रहस्य रोमांच पर आधारित कहानी
कटे हाथ वाला
रामकिशोर पंवार
जुलाई महीने की नौ – दस तारीख की उस काली स्याह रात को तकरीबन 11 बज रहे थे . मगरडोह रेल्वे स्टेशन पर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस अपने समय से आज फिर सवा घंटे लेट आई . उसका बदनूर पहुंचने का समय तो निकल गया . यात्रियों में टे्न के लेट होने के कारण बैचेनी हो रही थी . लेट आई टे्रन ने जब मगरडोह स्टेशन छोड़ा तब सवा ग्यारह बज रहे थे . लगता है कि इस गाड़ी को बदनूर पहुंचने में आज अगर बाहर या एक बज जाएंगे तो उसे अपने गांव जाने में उसे काफी परेशानी होगी . बदनुर रेल्वे स्टेशन से उसका गांव छै -सात कोस दूर था . गांव जाने के लिए उसे आज रात को कोई साधन नही मिला तो फिर उसे पैदल भी जाना पड़ सकता है . यह सोचकर रामू दरवाजे के पास वाली खिड़की के पास सर रखकर लेट गया . इस टे्रन में भीड़भाड़ नहीं थी. इसलिए रामू छत्तिसगढ़ एक्सप्रेस के गोरखपुर-परासिया कोच में घुस आया था. उसने सोचा कि वह एक आध घंटा आराम कर लेगा लेकिन उस डिब्बे में कुल 3-4 लोग ही थे. चारों परासिया जाने वाले थे. अगर वह सो गया तो उसे जगाएगा कौन..? आज दिन भर काम की वजह से चाह कर भी सो नहीं सका था. उसका इतनी रात को गांव जाने का कोई कार्यक्रम नहीं था पर क्या करे गांव से सुनार बाबा की चिी आ गई थी . आज अगर वह गांव नहीं जा सका तो फिर बात एक महीने फिर टल जाएगी. अगर इस बीच बारिश शुरू हो गई तो उसके बाप-दादों का पुश्तैनी मकान गिर जाएगा. गांव वालों ने उसकी गैर हाजिरी में मकान की मिट्टी तक खुरच-खुरच कर ढो डाली थी. अब तो उसके मकान के चारो ओर लंबा चौड़ा गड्ढा हो जाने से बरसात का सारा पानी उसके मकान को गिरा देगा. जिस घर में रामू का बचपन बीता था. आज उस घर में लोग अपने जानवर बांध रहे थे. कुछ लोगों ने तो खाली पड़ी जमीन पर ही कब्जा कर लिया था. गांव वाली माता माय और चम्पा के पेड़ की तो हालत बताई नहीं जा सकती थी. चिी पढ़कर वह कई बार रो दिया. कितना बढिय़ा गांव था उसका पता नहीं इसे किसकी नजर लग गई…? गांव और उसके बचपन की यादों में प्रकाश इस कदर खो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि कब बदनूर आ गया. जब टे्रन ने जाने के लिए सीटी बजाई तो प्रकाश दरवाजा खोलकर चलती गाड़ी से कूद पड़ा. किसी ने पीछे से टोका… क्यों भैया? सो गए थे क्या…? उसने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और वह गांव जाने के लिए निकल पड़ा. रात के सवा बाहर बज रहे थे. काली अंधयारी रात में अकेला करबला के किनारे सदर गेट तक चला आया. उसे उम्मीद थी कि कोई न कोई इस रोड पर मोटर साइकिल वाला उसे मिल जाएगा. लेकिन इंतजार करते-करते सवा बज गया. जब कोई नहीं आया तो वह अकेले ही गांव जाने का इरादा कर निकल पड़ा. करबला को पार कर आगे निकल गया. अभी कुछ दूर ही चला था कि पीछे से एक मोटर साइकिल आती दिखी. प्रकाश ने उसे हाथ देकर लिफ्ट लेनी चाही, उसके हाथ का इशारा देखकर वह मोटर साइकिल वाला उसके पास आकर रूक गया. रात अंधियारी थी जिसके चलते उसका चेहरा समझ में नहीं आ रहा था. उस अनजान व्यक्ति से प्रकाश ने पूछा भाई साहब कहा जा रहे हो तो वह बोला जूनागांव. उसे लगा शायद ऊपर वाले ने उसकी मुराद सुन ली और वह उस अनजान व्यक्ति की मोटर साइकिल के पीछे बैठ गया. सफर लंबा था इसलिए प्रकाश ने सोचा कि चलो इससे बातचीत कर टाईमपास कर लिया जाए . इधर रात का सन्नाटा चीख रहा था तो वह सवाल पर सवाल कर रहा था. मोटर साइकिल वाला उसके कुछ सवालों का जवाब नहीं देता. प्रकाश के सवाल पर वह एक दो बार तो खीज गया. प्रकाश ने कुछ पल के लिए चुप्पी साध ली, फिर वह रात काली अंधियारी थी. वह गाड़ी की टिमटिमाते लाइट में गाड़ी चला रहा था. प्रकाश के पूछने पर वह बताने लगा कि वह करंजी नदी के पास उसका खेत है.वह दूध का धंधा करता है. उसके घर में चार भाई तीन बहनें है. भाई बहनों में वह सबसे छोटा है. 12 वीं तक पढ़ा है. उसका पड़ोस के गांव की सुनंदा से चक्कर पिछले दिनों से चल रहा था. यह बात उसके जीजा जुगल को अच्छी नहीं लगती थी. वह उसे कई बात तो उसे अकेला देखकर डरा धमका चुका था. जुगल ने उसे कई बार तो घेरकर मारा-पीटा भी, परंतु उसने सुनंदा का चक्कर नहीं छोड़ा. उसने अपनी जान को जोखिम में डालकर सुनंदा को एक दिन भगाकर ले गया. जब वह सात दिन बाद लौटा तो सुनंदा को उसकी पत्नी के रूप में मांग भरा देखकर गुस्से से आग बबूला हो गया और उसने एक दिन सुनंदा की हत्या कर लाश को जला डाला. गांव वालों और तमाम रिश्तेदारों को यह बता दिया कि सुनंदा कहीं भाग गई, जबसे सुनंदा मरी है तब से वह उसे ढूंढता है. उसकी सुनंदा उसे केवल अमावस्या की रात को ही मिलती है. आज फिर वही अमावस्या की रात….है. जिस रात को उसे उसके जीजा ने मार डाला था. इस अमावस्या की रात को वह मुझे लेंडी नदी के पास मिलेगी…? आज भी उससे मिलने का वादा है. प्रकाश उसकी बात को सुनकर घबरा गया और वह हकलाते हुए कुछ पूछता उसकेेपहले ही एक ट्रक तेजी से आता देख प्रकाश ने उस मोटर साइकिल चालक को रोकने के लिए जैसे ही तेज रोशनी में उसे पकडऩा चाहा लेकिन उसकी आँखे फटी सी रह गई और धड़ाम से गिर गया. सुबह जब उसी आँखे खुली तो उसने स्वयं को लेंडी नदी के पास पुलिस के नीचे पाया. इतनी ऊपर से नीचे गिरा देख लोगों की भीड़-भाड़ जमा हो गई थी. भीड़ में से किसी ने उसे पहचान लिया. जब उसने उसे पुकारा तो वह उठकर बैठ गया और रात वाली बात को याद कर एक फिर थर-थर कांपने लगा. लोगों ने उसके ऊपर पानी छिड़का तब जाकर उसे होश आया. कुछ लोग उसे लेकर पास के आम के पेड़ की छांव में ले गए. लोगों के पूछने पर कि वह नदी के नीचे कैसे गिरा तो उसे याद आया कि जब उसने ट्रक की रोशनी में देखा कि वह जिस लड़के की मोटर साइकिल पर बैठकर यहां तक आया है उसके तो दोनों हाथ कटे हुए खून से लथपथ हैं. वह कटे हाथ से इतनी दूर से मोटर साइकिल कैसे चलाकर लाया. वह कौन है…? उसके हाथ कैसे कट गए…? उसकी किसने ऐसी हालत की है..? दर्जनों सवालों का पहाड़ उसके दिमाग में उथल-पुथल मचा रहा था. जब प्रकाश ने उसे घेर रखी भीड़ की मोटर साइकिल चालक की रात वाली बात बताई तो उस भीड़ में से बुर्जुग बोला- बेटा, किसी जन्म का पुण्य तुम्हारे काम आ गया..? तुम्हारी किस्मत अच्छी है कि तुम एक ही के फेर में पडे…? वरना कल रात तुम्हारे साथ क्या होता भगवान ही जाने….! यह कह उसने लंबी सांस ली, एक का फेर…. प्रकाश के लिए यह बात कुछ समय के बाहर की थी. जब उसने कारण पूछा तो वह बुर्जुग बोला- बेटा करबला से लेंडी तक तू जिस सुरेश की मोटर साइकिल पर बैठकर आया वह सुरेश आज से नौ माह पहले इसी रोड पर मरा मिला था. वह अमावस्या या पूनम की रात में किसी न किसी को अपनी मोटर साइकिल पर बैठाकर लाता है. लेंडी नदी के बाद करंजी नदी तक सुरेश और सुनंदा दोनों मिल जाते है. फिर दोनों भटकती आत्माएं मिलकर सुरेश के साथ आए व्यक्ति को फांस लेती है. सुनंदा अक्सर उन लोगों को अपना जीजा समझकर मार डालती है. सुरेश के बारे में कुछ लोगों ने बताया कि सुनंदा के जीजा ने एक रात दस सवा दस बजे मोटर साइकिल से घर वापस जा रहे सुरेश की बांह काटकर उसे भी मार डाला. जबसे सुरेश की आत्मा सुनंदा से मिली है तब से सुनंदा का बदला लेना शुरू हुआ है. वह उसके जीजा तक को मार चुकी है. अब तक इस रोड पर सुनंदा का प्रतिशोध कायम है. कई लोगों ने उसे बांधना चाहा पर वह काली नागिन की तरह एक-एक से बदला ले रही है. सुनंदा का इस तरह लोगों को सुरसा की तरह निगलना जारी है. वह अक्सर अपने प्रेमी ओर एक रात के पति के साथ किसी नए शिकार की तलाश में हर अमावस्या की रात को लेंड़ी नदी से लेकर करंजी के बीच मिलती है. आज भी जब प्रकाश उस घटना को याद करता है तो वह थर-थर कांपने लगता है.
इति,
दांत पीले है इसलिए , हाथ पीले नहीं हो पायेंगें …!
– रामकिशोर पंवार
शादी – विवाह का मौसम आया और चला भी गया……. इस बार भी सीवनपाट नामक उस गांव में एक बार फिर भी न तो ढोल बजे और न कोई शहनाई गुंजी ……. इसके पीछे जो भी कारण हो पर सच्चाई सोलह आने सच है कि इस गांव की लड़कियो के दंातो पर छाए पीलेपन को कोलेगेट से लेकर सिबाका ……. यहाँ तक की डाबर लाल दंत मंजन तक दूर नहीं कर पाया है . यह अपने आप में कम आश्चर्य जनक घटना नही है कि देश – दुनिया की कोई दंत मंजन कंपनी सीवन पाट गांव की उन युवतियों के चेहरो पर मुस्कान नहीं ला सकी है जिनके दांत पीले होने की वज़ह से उनके हाथ पीले नहीं हो पा रहे है . दंातो की समस्या पर आधारित उस गांव के हेडपम्प से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ता मीरा पत्नि शिवजी इवने एक हाथ से विकलंाग बन चुकी है . एक हाथ से काम ही नहीं हो पाने के कारण मीरा अपने पीड़ा को अपने गिरधर गोपाल को भी गाकर – बजा कर नहीं सुना सकती है . अपने एक कम$जोर हाथ को दिखाती मीरा इवने रो पड़ती है वह कहती है कि साहब जब हाथ ही काम नहीं कर पा रहा है तब दांत के बारे में क्या करू……. ! काफी शिकवा – शिकायते करने के बाद लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के द्घारा बंद किये गये बैतूल से आठनेर जाते समय ताप्ती नदी के उस पार बसे सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य गांव मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के अन्तगर्त आता है. इस गांव के बंद किये गये हेडपम्प के पानी पीने से के पानी की व$जह से अकेली मीरा ही विकलांग नहीं है उसकी तरह कक्षा 9 वी में गांव से 6 किलो मीटर दुर बसे कोलगांव में पढऩे जाने वाली गांव कोटवार हृदयराम आत्मज राधेलाल की बेटी रेखा आज भी बैसा$खी के सहारे गांव से पैदल ताप्ती मोड़ तक आना- जाना करती है. प्रतिदिन बस से किराया लगा कर स्कूल पढऩे जाने वाली रेखा की हिम्मत को दांद देनी चाहिये क्योकि उसने विकलांगता को चुनौती देकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा . अनुसूचित जाति की कक्षा 9 वी की इस विकलांग छात्रा कुमारी रेखा के पिता हृदयराम अपनी पीड़ा को व्यक्त करते समय रो पड़ता है वह बताता है कि ” साहब मेरी बेटी कन्या छात्रावास बैतूल में पढ़ती थी लेकिन वह इस पानी के चलते विकलांग बन गई और बीमार रहने लगी जिसके चलते वह एक साल फेल क्या हो गई उसे छात्रावास से छात्रावास अधिक्षका ने निकाल बाहर कर दिया मैंने काफी मन्नते मांगी लेकिन मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई …… ! हालाकि दांत के पीले होने की त्रासदी से रेखा भी नहीं बच पाई है. गांव में यूँ तो फ्लोराइड़ युक्त पानी ने कई लोगो को शारीरिक रूप में कम$जोर बना रखा है. 34 साल की देवला पत्नि राजू भी अपने पीले दांतो को दिखाती हुई कहती है कि मेरी शादी को 20 साल हो गये उस समय से मेरे दांत पीले है आज मैं हाथ – पैर से कम$जोर हँू आज मेरे पास कोई काम धंधा नही है….! गांव के स्कूल के पास रहने वाली इस आदिवासी महिला के 4 बच्चे है जिसमें एक बड़ी लड़की की वह बमुश्कील शादी करवा सकी है……! पथरी का आपरेशन करवा चुकी देवला और उसके सभी बच्चो के दांत पीले है.
उस गांव की युवतियाँ अपने भावी पति के साथ सात जन्मो का साथ निभाने के लिए दिन – प्रति दिन अपने यौवन को खोकर बुढ़ापे की ओर कदम रख रही है लेकिन इन पंक्तियो के लिखे जाने तक कोई भी इन युवतियों से शादी करने को तैयार नहीं है. इस गांव की फुलवा अपनी बेटी की दुखभरी दांस्ता सुनाते रो पड़ती है वह कहती है कि ”साहब इसमें हमारा क्या दोष ……… ! इस गांव के पानी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है . मेरी ही नहीं बल्कि इस गांव की हर दुसरी – तीसरी लड़की के हाथ सिर्फ इसलिए पीले नहीं हो पा रहे है क्योकि उनके दांत पीले है…….! माँ सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का जब यह हेड पम्प नहीं खुदा था तब तक पानी पीने वाले गांव के भूतपूर्व पंच 57 वर्षिय बिरजू आत्मज ओझा धुर्वे कहता है कि ”साहब उस समय हमें कोई बीमारी नहीं हुई न दांत पीले हुये न हाथ – पैर कमज़ोर हुये ……..! पता नहीं इस गांव को इस हेड पम्प से क्या दुश्मनी थी कि इसने हमारे पूरे गांव को ही बीमार कर डाला…… .! मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के इस गांव में बने स्कूल में पहली से लेकर पाँचवी तक कक्षाये लगती है . सीवनपाट के स्कूल में पहली कक्षा पढऩे वाली पांच वर्षिय मनीषा आत्मज लालजी के दांत पीले क्यो है उसे पता तक नहीं ….. मँुह से बदबू आने वाली बात कहने वाली शिवकला आत्मज रामचारण कक्षा दुसरी तथा कंचन आत्मज शिवदयाल दोनो ही कक्षा दुसरी में पढ़ती है इनके भी दांत पीले पड़ चुके है. 6 वर्षिय प्रियंका आत्मज पंजाब कक्षा दुसरी , 7 वर्षिय योगिता आत्मज रियालाल कक्षा तीसरी की छात्रा है. इसी की उम्र की सरिता आत्मज मानक भी कक्षा तीसरी में पढ़ रही है उसके पीले दांत आने वाले कल के लिए समस्या बन सकते है. गांव की कविता आत्मज लालजी सवाल करते है कि Ó”साहब कल मेरी बेटी शादी लायक होगी तब उसे देखने वाले आदमी को जब पता चलेगा कि इसके दांत पीले है तथा उसके मँुह से बदबू आती है तब क्या वह उससे शादी करेगा…. विनिता आत्मज सुखराम कक्षा तीसरी की तथा कक्षा पांचवी की प्रमिला चैतराम भी अपने दांत दिखाते समय डरी – सहमी से सामने आती है . लगभग तीन घंन्टे तक इस गांव की पीड़ा को परखने गए इस संवाददाता को ग्रामिणो ने बताया कि 290 जनसंख्या वाले इस गांव में सबसे अधिक महिलायें 151 है. 139 पुरूष वाले लगभग 60 से 65 मकान वाले इस गांव में जुलाई 2006 को स्कूली मास्टरो से करवाये गये सर्वे के अनुसार इस गांव में 54 बालिकायें 44 बालक है जिनकी आयु 1 से 14 वर्ष के बीच है. इन 54 बालिकाओं में 49 के दांत पूरी तरह पीले पड़ चुके है. इसी तरह गांव की 151 महिलाओं में से 99 महिलाओं के दांत पीले है. शेष 52 महिलाओं की उम्र 45 से अधिक है जिनके दांतो पर उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी कोई असार नहीं कर सका है. जिला प्रशासन द्घारा लगभग 5 साल पहले ही उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी वाले हेड पम्प को बंद करवा कर उसके बदले में दो फ्लांग की दूरी पर एक हेड पम्प तो खुदवा दिया लेकिन उस हेडपम्प से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी का निकलना जारी है क्योकि जिन लड़कियो की उम्र पाँच साल है जिनके दँुध के दांत टूट कर नये दांत उग आये है वे भी पीले पड़ चुके है . आंगनवाड़ी पढऩे वाली अधिकांश बालिकाओं के पीले दांत इस बात का जीता – जागता उदाहरण है कि गांव में टुयुबवेल से दिलवाये चार नल कनेक्शन से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी निकल रहा है. दस वर्षिय सीमा आत्मज रमेश की माँ रामकला कहती है कि ”आज – नही तो कल जब मेरी लड़की को देखने को कोई युवक आयेगा तक क्या वह उसके पीले दांतो को देखने के बाद उससे शादी करने को तैयार हो जाएगा…..? गांव की मालती आत्मज जुगराम कक्षा दसवी तथा कविता आत्मज बिन्देलाल कक्षा 9 वी में पढऩे के प्रतिदिन कोलगांव आना – जाना करती है. इसी तरह सरिता कक्षा 7 वी में पढऩे के लिए बोरपानी गांव जाती है .
गांव के कृष्णा आत्मज तुलाराम तथा गजानंद आत्मज राधेलाल की शिकायत पर वर्ष 2004 में बंद किये गये इस हेडपम्प के पानीे से जहाँ एक ओर राजू आत्मज तोताराम भी विकलांगता की पीड़ा को भोग रहा है. वही दुसरी ओर गांव की फूलवंती आत्मज झुमरू , कला आत्मज चैतू तथा संगीता आत्मज गोररी की भी समस्या दांत के पीले पन से है. उन्हे इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनका भावी पति उनके दांतो के पीलेपन तथा मँुह से आने वाली बदबू की व$जह से उनसे शादी करने से मना न कर दे . जब प्रदेश की विधानसभा तक मेें फ्लोराइड युक्त पानी पर बवाल मचा तो बैतूल जिला कलेक्टर भी दौड़े – दौड़े उन गांवो की ओर भागे जिनके हेडपम्पो से फ्लोराइड युक्त पानी निकलता था. बमुश्कील आधा घन्टा भी इस की दहली$ज तक पहँुचे जिला कलेक्टर ने यहाँ – वहाँ की ढेर सारी बाते की लेकिन जब गांव कोटवार ने ही अपनी बेटी की विकलांगता की बात कहीं तो उसके इलाज की बात कह कर कलेक्टर महोदय चले गये .
गांव के पंच संतराम , सुरतलाल , जुगराम , यहाँ तक की महिला पंच रामकली बाई भी कहती है कि ”साहब हमें नेता – अफसर नही चाहिये हमें तो ऐसा आदमी चाहिये जो कि हमारे दांतो का पीला पन दुर कर सके ताकि हम अपनी गांव की लड़कियो के हाथ आसानी से पीले कर सके……..! गांव के हेडपम्प और टुयुबवेल से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी की वजह सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य इस गांव की दुखभरी त्रासदी को सबसे पहले पत्रकारो ने ही जनप्रकाश में लाया लेकिन जिला प्रशासन की दिलचस्पी केवल उन्ही कामो में रही जिनसे कुछ माल मिल सके और यही माल कमाने की अभिलाषा जिले के तीन अफसरो को विधानसभा सत्र के दौरान सस्पैंड करवा चुकी है. लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के अफसरो का अपना तर्क है कि वह इस गांव के बारे में कई बार अपनी रिर्पोट जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार तक भिजवा चुका है लेकिन इस गांव की समस्या से उसे कोई निज़ात नहीं दिलवा सका है. अब जब इस गांव की लड़की अपने हाथ पीले होने के इंतजार में बुढ़ापे की दहलीज पर पहँुच रही है तब जाकर मध्यप्रदेश की वर्तमान राज्य सरकार ने यह स्वीकार किया है कि बैतूल जिले के कुछ गांवो में पोलियो की व$जह इन गांवो के लोगो द्घारा पीया जाने वाला फ्लोराइड़ युक्त पानी है. राज्य की भगवा रंग में रंग खाकी हाफपैन्ट छाप भाजपाई सरकार का प्रदेश की जनता के स्वास्थ के प्रति कितन सजग एंव कत्वर्यनिष्ठï है इस बात का पता आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला मुख्यालय की नगरपालिका बात की कार्यप्रणाली से लग सकता है. लोगो को बिमारियो की आगोश में समा देने वाली भाजपाई अध्यक्ष के नेतृत्व में कार्य कर रही इस नगरपालिका को इस बात का पता चल गया था कि बैतूल की जमीन से निकलने वाले पानी को पीने से कई प्रकार की गंभीर बिमारियाँ लग सकती है इसके बाद भी नगर पालिका ने अपने अंधे और बहरे होने का प्रमाण देकर बैतूल की जनता के स्वास्थ के साथ खिलवाड़ किया है. वैसे तो आमला एवं भैसदेही को छोड़ कर जिले की सभी नगरपालिका एवं नगर पंचायतो पर भाजपा का शासन है. जिला मुख्यालय पर श्रीमति पार्वती बाई बारस्कर की अध्यक्षता वाली भाजपा शासित बैतूल नगरपालिका परिषद की काफी बड़ी आबादी बीते डेढ़ महिने से शरीर के लिए निर्धारित मापदण्ड से दुगनी मात्रा वाले फ्लोराइड का पानी बगैर फिल्टर के पी रहे है. जबकि कार्यपालन यंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय खंड बैतूल ने मुख्य नगरपालिका अधिकारी बैतूल को देड़ माह पूर्व दी जांच रिपोर्ट में साफ कहा है कि संबंधित नलकूपों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित मापदंड से दुगनी है अत: इस पानी का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाए. फिर भी नगरपालिका द्वारा शहरवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर उन्हें फ्लोराइड युक्त पानी पिलाया जा रहा है. लेकिन न तो जनप्रतिनिधियों और न ही नपा के अफसरों का ध्यान इस ओर है. हालात इतने बदतर हो गए हैं कि नगरपालिका का भगवान ही मालिक है. नपा द्वारा डेढ़ माह से पिलाए जा रहे अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पानी के संबंध में डाक्टरों का कहना है कि अधिक मात्रा में फ्लोराइड वाले पानी के लगातार सेवन से हड्ïिडयों और दांतों पर दूरगामी असर पडऩा तय है.
दातो के पीले पन के लिए जिस फ्लोराइड को जिम्मेदार बताया जा रहा हन्ै वह तो जिला मुख्यालयो भी कई हेड़ पम्पो से लोगो को पिलाया गया. जिला मुख्यालय पर बीती ग्रीष्म ऋतु में नगरपालिका बैतूल द्वारा फिल्टर प्लांट स्थित माचना नदी का पानी पूरी तरह सूख जाने पर केन्द्रीय भूजल विभाग की मशीन से फिल्टर प्लांट परिसर में किए गए बोर का पानी नगर में सप्लाई करवा दिया. एक हजार और पांच सौ फीट के इन बोर का पानी विवेकानंद वार्ड, विकास नगर, शंकर नगर, कोठीबाजार, शिवाजी वार्ड, आर्यपुरा, टिकारी, मोतीवार्ड, दुर्गा वार्ड, में आज भी इस बोर का पानी दिया जा रहा है. नपा के जवाबदार अधिकारियों ने पेयजल सप्लाई के पहले इस पानी की केमिकल जांच किए बिना, फिल्टर किए जल प्रदाय किया गया व आज भी माचना नदी का फिल्टर किया हुआ पानी बोर का पानी साथ साथ सप्लाई कर आपूर्ति की जा रही है. नपा द्वारा उक्त बोर के पानी की केमिकल रिपोर्ट लाने स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से मांगी गई थी जो कि पानी का परीक्षण करने के बाद 6 जुलाई 05 को नपा को सौपी गई थी जिससे एक हजार फीट के इस बोर के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 3.19 मिग्राम प्रति लीटर बताई गयी है. जो कि निर्धारित आईएसआई मापदंड 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है. अत: नलकूप के जल का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाना चाहिए बावजूद इसके बैतूल नगरपालिका परिषद द्वारा दुगना फ्लोराइड मिला पानी शहर की जनता को पिलाया जा रहा है वहीं उक्त जल का डीफाउंडेशन भी नहीं किया गया. जब फिल्टर प्लांट जाकर वस्तुस्थिति की जानकारी लेनी चाही गई तो अभी भी यहां से स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग की रिपोर्ट के बाद भी फ्लोराइड मिला पानी वितरित किया जा रहा है. फिल्टर प्लांट में लगे उत्फालवन पंखे भी विगत दो वर्षो से खराब पड़े हुए है जबकि पानी को साफ करने हेतु उसमें मिलाया जाने वाला सोडियम हाइड्रोक्लोराइड की 38 लीटर पानी वाली केनो पर भी पर्चियों में जानकारी नहीं लिखी गई है. साथ ही जिस कुएं में पानी स्टोर कर साफ किया जाता है वहां लोग वाहन धो रहे है. जिससे पानी दूषित हो रहा है. इस संबंध में बैतूलनगरपालिका परिषद से संपर्क करना चाहा गया तो वहां पर संबंधित अधिकारी मौजूद नहीं थे.
निर्धारित मापदण्ड से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड के पानी का पेयजल के रूप में लगातार सेवन करना बच्चों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं सहित सभी के लिए अत्यधिक नुकसानदायक है और इसके दुरगामी परिणाम शरीर पर होते है जिसके चलते दात, हड्डïी, पर्वस सिस्टम और किडनी पर असर पड़ता है. यह बात प्रसिद्घ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ.योगेश गढ़ेकर से विशेष चर्चा में कही. उन्होंने बताया कि फ्लोराइड की अधिक मात्रा वाले पानी को पीने से फ्लोरोसिस नामक बीमारी होती है. इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है अन्य लोगों पर भी दूरगामी नतीजे नजर आते है. फ्लोराइड युक्त पानी पीने से दांतो, हड्डïी, नर्व सिस्टम और किडनी कमजोर होना शुरू हो जाती है. अधिक मात्रा में हड्डïी का बनना शुरू हो जाता है. गर्दन, पीठ, जोड़ों, एड़ी में दर्द शुरू हो जाता है. हड्डïी बढऩे से सवाईकल रेडिकूलो पेथी, लंबर रेडिकूलो पेथी नामक बीमारी शुरू हो जाती है. किडनी में यूरिया लेबल बढऩा शुरू हो जाता है. डॉ गढ़ेकर ने कहा कि बचाव का सबसे बेहतर उपाय यही है कि फ्लोराइड युक्त पानी का सेवन तत्काल रोका जाये और यदि किसी की उपरोक्त लक्षण नजर आते है तो ऐसे लोगो को तत्काल डाक्टर के पास जाकर अपना स्वास्थ परीक्षण करवाना चाहिए.राज्य सरकार से दूर रखे इस गांव में पोलियो के मरीज मिलना तो आम बात है लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से गांव की युवतियों के दांत पीले है जिसके चलते उन्हे देखने वाला युवक पहली ही बार में उसे अस्वीकार कर देता है . इस गांव को फ्लोराइड़ युक्त पानी से छुटकारा दिलवाने का भरोसा दिलवाने वाला व्यक्ति के रंग – ढंग से बेहद खफा इस गांव में के लोग कहीं इसी समस्या के चलते इस गांव में पहँुचने वाले उस हर व्यक्ति का हाल का बेहाल न कर दे बस इसी डर से वह दुबारा इस गांव में इसलिए नहीं आ रहा है. बरहाल दांत पीले से हाथ के पीले न होने की समस्या का हल कब निकल पायेगा यह कहना अतित के गर्भ में है.
इति,
कही ऐसा तो नही कि मेरे गांव को किसी की नजर लग गई ……..!
रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने एक पत्रिका देखी तो उसमें छपा एक कालम ”मेरा गांव ….! मुझे अपने बचपन की ओर ले गया . मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है. बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया – गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है. गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा – तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. इधर परासोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है. खेड़ी – सेलगांव – बावई होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है. पंगडंडी जितनी है मेरे गांव को जाने के लिए उतनी गांव को जाने वाली सड़के नही है. दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है. लोग आते है , चले जाते है. कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है. जहाँ पर लोग केवल घुमने के लिए आते है . जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है. थोड़ी से भूल – चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया…. ऐसे में सब कुछ खो जाने का डर रहता है. इसलिए लोग संभल – संभल कर चलने लगे है . गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के करतब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है . मेरे पापा बताते थे कि गांव के बुढे – बजुर्ग लोग विशेषकर महिलाये गांव से लड़को को बाहर जाने नहीं देती थी . पापा के एक जीजाजी राणा थानेदार खंडवा के रहने वाले थे वे उनसे कई बार कह चुके थे कि तू गांव को छोड़ कर बंबई चला जा लेकिन मेरे पापा की दादी लंगड़ी थी वह काफी नियम – कानून कायदे वाली थी. गांव में उस समय छुआछुत को काफी माना जाता था. गांव से दो – चार दिन लड़का बाहर क्या रहा उसे पुराने जमाने के पुराने रिवाजो को मानने वाले लोग गोबर – गौमुत्र – तुलसी के पत्तो से नहलाते थे उसके बाद भी उसे घर के अंदर आने देते थे . वन विभाग में नाकेदार के पद पर रहे पापा की नौकरी पंक्षी – टोकरा कनारी – पाट में रही . उस समय शुटिंग ब्लाक होने की व$जह से कई लोग जानवरो का शिकार करने आते थे . जानीवाकर खंडवा के रहने वाले थे इसलिए उन्हे बैतूल – होशंगाबाद के जंगलो में शिकार का बड़ा शौक था. जानीवाकर मेरे पापा से इतने प्रभावित हो गये थे कि वे उन्हे बंबई चलने का कह चुके थे . उस जमाने की मशहुर अदाकार मीना कुमारी के पास काम करने के लिए बबंई चलने का जानीवकार का प्रस्ताव शायद हम लोगो की तकदीर और तस्वीर बदल सकता था लेकिन मेरे पापा की दादी की $िजद के चलते वे बैतूल जिले से बाहर कहीं नही जा सके . कुछ लोग बड़े – बुर्जगो की िजद को दर किनार कर गांव से बाहर गये तो दुबारा फिर वापस नही लौटे . आज भी मेरे गांव के लोग बम्बई – दिल्ली – कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है . जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ”बच्चो का भविष्य देखना है …..! ”आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या…. ? अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि ……! मेरा जन्म गांव माता माँ की गली वाले चम्पा के पेड़ के पास बने पुश्तैनी मकान में ही हुआ जिसके चलते मेरा बचपन और उससे जुड़ी अमिट यादे आज भी मेरा मेरे गांव से पीछा नही छोड़ती. रोंढ़ा आज भले ही कुछ भी हो लेकिन मेरी जन्मभूमि होने के कारण वह मुझे अपने से जोड़ रखी है . आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ मेरे नटखट बचपन की एक ऐसी निशानी है जिसे बरबस याद करते ही मुझे मेरा बचपन किसी फिल्मी चलचित्र की तरह दिखाई पडऩे लगता है. काफी पुराना मेरे गांव के विकास बारे में क्या लिखूँ क्योकि मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है. मेरे दादा ने उस गांव के आसपास के खेतो और खलिहानो में तीस साल अपनी भुजाओं के बल पर तीस साल तक कुआँ खोदा लेकिन आज मैं गांव तक आने वाले 3 किलोमीटर का फासला तक पैदल नही तय नही कर सकता. पहले गांव की सड़क को जोड़ती पगडंडी ठीक थी कम से कम पैदल तो चला जा सकता था लेकिन अब तो उबड़ – खाबड़ सड़क पर मोटर साइकिल लेकर चलना तक मुश्कील हो गया है. हमेशा इस बात का डर सताता है कि कही टायर में कोई कट न लग जाये. गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ – बहने – बहु – बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें का पानी गर्मी आने के पहले ही सुखने लगा है.पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ – तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है.
जब मेरा बेटा रोहित तीन साल का था तब मेरे दादा का निधन हो गया. तीस साल तक कुआँ खोदने वाले मेरे दादा तीन बार मौत के मँुह से वापस लौटे शायद इसलिए कि उन्हे वे अपने मूलधन का ब्याज और उसका ब्याज देखना चाहते थे. अपने वंश के वृटवृक्ष की डालियो में खिले फूलो और फलो को देखने वाले मेरे दादा संत तुकड़ो जी महाराज के अन्यन्न भक्त वे खंजरी की थाप पर मराठी भाषी भजनो को गाने के साथ वे लावणी के अच्छे गायक थे. जिस गांव में रोज सुबह – शाम संत तुकड़ो जी महाराज के भजनो पर खंजरी की थाप गुंजा करती थी आज उसी गांव में बात – बात पर खंजर निकलने से लोग घरो में दुबके रहते थे. मेरे गांव को जैसे किसी की न$जर लग गई हो. आज मेरा गांव पुलिस की प्रोफाइल में झगड़ालू गांव के रूप में जाना जाता है. पिछले एक दशक से मेरे गांव में होने वाली हत्याओं ने गांव की छबि का विकृत स्वरूप पेश किया है. जंगल विभाग में नौकरी करने के बाद सेवानिवृत हुये मेरे पापा बताया करते है कि मेरे पूरे गांव को दुध और दही की धार से बांधा गया है वह इसालिए कि गांव में कोई बीमारी या अकाल मौत से कोई इंसान या जानवर नहीं मरे ……… लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि किसी ने मेरे पूरे गांव को उन्माद – नफरत – हिंसा – िजद और बदले की भावना से निकाले गये खून की धार से बांध रखा हो जिसके कारण मेरा गांव आज पुलिस की न$जर में हत्यारा गांव कहलाने लगा है . पापा बताते है कि पिछले कई वर्षो से मेरे गांव की जनसंख्या न तो बढ़ी है और न घटी है. एक दशक पहले तक तो पूरा गांव चारो ओर लहलहाते खेतो से घिरा था लेकिन अब लोगो ने भी गांव छोड़ कर खेत में अपना मकान बना कर रहना शुरू कर दिया है जिससे पूरे गांव की आबादी लगभग चौदह सौ रह गई है . कई साल पहले भी इतनी ही आबादी थी . आज मेरे गांव मे लोग आते कम जाते ज्यादा है . मेरे बचपन का साक्षी चम्पा का पेड़ की झुकी डालिया ही बताती है कि जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी संत तुकड़ो जी महाराज के तो कभी सर्वोदयी नेता एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे . आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है . अब तो इस गांव में भूदान करना तो दूर रहा दो गज जमीन के लिए ही लोगो को जान देनी पड़ रही है . गांव का प्राचिन शिव मंदिर हो या भुवानी माँ की दरबार सभी अपने स्थानो को छोड़ कर गांव की गलियो में आ गये है . अपने लिए घर बार बनाने वालो को पता नही क्यो उनके लिए घर – बार बनाने की चिंता नही रही जिनके दरवाजे पर जाकर जो मन्नते मांगते रहे है. एक प्रकार से देखा जाये तो जबसे हमारा पुश्तैनी घर ढहा है तबसे उससे लगा माता मंदिर का चबुतरा और चम्पा का पेड़ मुझे बार – बार इस बात के लिए कटोचता रहता है कि मैं एक बार फिर वापस आकर अपने लिए और अपने बचपन के साक्षी चम्पा के पेड़ और माता माँ के लिए एक ठौर ठिकाना बना लूँ …. लेकिन मैं जब भी यह बात अपनी बीबी और बच्चो के बीच करता हँू तो मेरा ही उपहास करते है कि गांव जाकर क्या करेगे ….? बच्चो के भविष्य के नाम पर मेरा बचपन मुझसे कोसो दूर होता जा रहा है . लोग कहते है कि भारत गांवो में बसता है लेकिन कोई भी इस गांव को आज तक भरत की तरह प्रतिज्ञा करने वाला भरतवंशी नहीं मिल सका जो कि मेरे इस गांव की तस्वीर को बदल सके .
इति,